doc_id
stringlengths 40
64
| type
stringclasses 3
values | text
stringlengths 6k
1.05M
|
---|---|---|
d471b0074b535e42f9699bb5659983f4f4fe94e0c00551fa4b3afa06e8faba4d | pdf | प्रकाशकीय निवेदन
आज हमें हिन्दी पाठकों के सम्मुख संयुत्त निकाय के हिन्दी अनुवाद को लेकर उपस्थित होने में बड़ी प्रसन्नता हो रही है। अगले वर्ष के लिए 'विसुद्धिसग्ग' का अनुवाद तैयार है। उसके पश्चात् 'अंगुत्तर निकाय' में हाथ लगाया जायेगा । इनके अतिरिक्त हम और भी कितने ही प्रसिद्ध बौद्ध-मन्थों के हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करना चाहते हैं। हमारे काम में जिस प्रकार से कितने ही सज्जनों ने आर्थिक सहायता और उत्साह प्रदान किया है, उससे हम बहुत उत्साहित हुए हैं।
आर्थिक कठिनाइयों एवं अनेक अन्य अड़चनों के कारण इस ग्रन्थ के प्रकाशित होने में जो अनपेक्षित विलम्ब हुआ है, उसके लिए हमें स्वयं दुःख है । भविष्य में इतना विलम्ब न होगा - ऐसा प्रयत्न किया जायेगा । हम अपने सभी दाताओं एवं सहायकों के कृतज्ञ है, जिन्होंने कि सहायता देकर हमें इस महत्वपूर्ण कार्य को सम्पादित करने में सफल बनाया
भिक्षु एम० संघरत्न मन्त्री, महाबोधि सभा
संयुत्त निकाय सुत्त-पिटक का तृतीय ग्रन्थ है। यह आकार में दोध निकाय और मतिम निकाय से बड़ा है । इसमें पाँच बड़े-बड़े वर्ग है- सगाया वर्ग, निदान वर्ग, खन्ध वर्ग, सळायतन वर्ग और महावर्ग । इन वर्गों का विभाजन नियमानुसार हुआ है। संयुक्त निकाय में ५४ संयुक्त हैं, जिनमें देवता, देवपुत्र, कोसल, भार, प्रह्म, ब्राह्मण, सक्क, अभिसमय, धातु, अनमतग्ग, लाभसक्कार, राहुल, लक्खण, खन्ध, राध, दिहि, सळायतन, वेदना, मानुगाम, असंखत, मय्ग, योजझङ्ग, सतिपहान, इन्द्रिय, सम्मप्पधान, चल, इद्धिपाद, अनुरुद्ध, ज्ञान, आनापान, सोतापत्ति और सच्च--यह ३२ संयुक्त वर्गों में विभक्त हैं, जिनकी कुल संख्या १७३ है। शेष संयुत्त वर्गों में विभक्त नहीं हैं। संयुत्त निकाय में सौ भागवार और
संयुत्त निकाय का हिन्दी अनुवाद पूज्य भदन्त जगदीश काश्यप जी ने आज से किया था, किन्तु अनेक बाधाओं के कारण यह अभीतक प्रकाशित न हो सका था। श्री अनुवाद की पाण्डुलिपि के बहुत से पन्ने कुछ पूरे संयुस तक खो गये थे। अनेक प्रेसों को दी गई और वापस ली गई थी।
उन्नीस वर्ष पूर्व इस दीर्घकाल के
इसकी पाण्डुलिपि
गत वर्ष पूज्य काश्यप जी ने संयुत्त निकाय का भार मुझे सौंप दिया। मैं प्रारम्भ से अन्त तक इसकी पाण्डुलिपि को दुहरा गया और अपेक्षित सुधार कर डाला । मुझे ध्यान संयुक्त, अनुरुद्ध संयुत्त आदि कई संयुत्तों का स्वतन्त्र अनुवाद करना पड़ा, क्योंकि अनुवाद के वे भाग पाण्डुलिपि में न थे ।
मैंने देखा कि पूज्य काश्यप जी ने म तो सुन्तों की संख्या दी थी और न सुत्तों का नाम ही लिखा था। मैंने इन दोनों बातों को आवश्यक समझा और प्रारम्भ से अन्त तक सुन्तों का नाम तथा सुत-संख्या को लिख दिया। मैंने प्रत्येक सुत्त के प्रारम्भ में अपनी ओर से विषयानुसार शीर्षक लिख दिये हैं, जिनसे पाठक को इस ग्रन्थ को पढ़ने में विशेष अभिरुचि होगी ।
ग्रन्थ में आये हुए स्थानों, नदियों, विहारों आदि का परिचय पाइटिप्पणियों में यथासम्भव कम दिया गया है, इसके लिए अलग से 'बुद्धकालीन भारत का भौगोलिक परिचय' लिख दिया गया है। इसके साथ ही एक नक्शा भी दे दिया गया है। आशा है, इनसे पाठकों को विशेष लाभ होगा।
पूरे ग्रन्थ के छप ज्ञाने के पश्चात् इसके दीर्घकाय को देखकर विचार किया गया कि इसकी जिल्दबन्दी दो भागों में कराई आय : अतः पहले भाग में सगाथा वर्ग, निदान वर्ग और स्कन्ध वर्ग तथा दूसरे भाग में सळायतन वर्ग और महावर्ग विभक्त करके जिल्दबन्दी करा दी गई है। प्रत्येक भाग के साथ विषय-सूची, उपमा-सूची, नाम- अनुक्रमणी और शब्द-धनुक्रमणी दे दी गई है।
सुत्त-पिटक के पाँचों निकायों में से दीन, मज्झिम और संयुक्त के प्रकाशित हो जाने के पश्चात् अंगुसर निकाय तथा खुड़क निकाय अवशेष रहते हैं। खुद्दक निकाय के भी खुद्दक पाठ, धम्मपद, उदान, सुत निपात, थेरी गाथा और आतक के हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। इत्तियुत्तक, बुद्धवंस और
परियाषिक के भी अनुवाद मैंने कर दिये हैं और ये ग्रन्थ प्रेस में हैं। अंगुप्तर निकाय का मेरा हिन्दी अनुवाद भी प्रायः समाप्त-सा ही है । संयुत्त निकाय के पश्चात् क्रमशः विशुद्धि और अंगुत्तर निकाय
को प्रकाशित करने का कार्यक्रम बनाया गया है। आशा है, कुछ वर्षों के भीतर पूरा सुत्तपिटक और अभिधम्म- पिटक के कुछ ग्रंथ हिन्दी में अनूदित होकर प्रकाशित हो जायेंगे ।
भारतीय महाबोधि सभा ने इस ग्रन्थ को प्रकाशित करके बुद्ध-शासन एवं हिन्दी-जगत् का बहुत किया है । इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए सभा के प्रधान मन्त्री श्री देवप्रिय चलिसिंह तथा भदन्त संघरत्नजी का प्रयास स्तुत्य है। ज्ञानमण्डल यन्त्रालय, काशी के व्यवस्थापक । कपूर की तत्परता से ही यह ग्रन्थ पूर्णरूप से शुद्ध और शीघ्र मुद्रित हो सका है।
महाबोधि सभा, सारनाथ, बनारस
भिक्षु धर्मरक्षित
संयुत्त निकाय सुप्त-पिटक का तीसरा ग्रन्थ है। दीघ निकाय में उन सूत्रों का संग्रह है जो आकार में बड़े हैं। उसी तरह, प्रायः मझोले आकार के सूत्रों का संग्रह मज्झिम निकाय में है। संयुत्त निकाय में छोटे-बड़े सभी प्रकार के सूत्रों का 'संयुक्त' संग्रह है। इस निकाय के सूत्रों की कुल संख्या ७७६२ है । पिटक के इन ग्रन्थों के संग्रह में सूत्रों के छोटे-बड़े आकार की दृष्टि रक्खी गई है, यह सचमुच जँचने वाली बात नहीं लगती है। प्रायः इन ग्रन्थों में एक अत्यन्त दार्शनिक सूत्र के बाद ही दूसरा सूत्र जातिवाद के खण्डन का आता है और उसके बाद ही हिंसामय यज्ञ के खण्डन का, और बाद में और कुछ दूसरा स्पष्टतः विषयों के इस अव्यवस्थित सिलसिले में साधारण विद्यार्थी ऊब-सा जाता है। ठीक-ठीक यह कहना कठिन मालूम होता है कि सूत्रों का यह क्रम किस प्रकार हुआ। चाहे जो भी हो, यहाँ संयुक्त निकाय को देखते इसके व्यवस्थित विषयों के अनुकूल वर्गीकरण से इसका अपना महत्व स्पष्ट हो जाता है।
संयुत्त निकाय के पहले वर्ग -- सगाथा वर्ग को पढ़कर महाभारत में स्थान-स्थान पर आये प्रश्नोत्तर की शैली से सुन्दर गाथाओं में गम्भीर से गम्भीर विषयों के विवेचन को देखकर इस निकाय के दार्शनिक तथा साहित्यिक दोनों पहलुओं का आभास मिलता है । साथ-साथ तत्कालीन राजनीति और समाज के भी स्पष्ट चित्र उपस्थित होते हैं ।
दूसरा वर्ग-निदान वर्ग बौद्ध सिद्धान्त 'प्रतीत्य समुत्पाद' पर भगवान् बुद्ध के अत्यन्त महत्वपूर्ण सूत्रों का संग्रह है।
तीसरा और चौथा वर्ग स्कन्धबाद और आयतनवाद का विवेचन कर भगवान् बुद्ध के अनात्म सिद्धान्त की स्थापना करते हैं। पाँचवाँ-- महावर्ग 'मार्ग', 'बोध्यंग', 'स्मृति प्रस्थान', 'इन्द्रिय आदि महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डालता है।
सन् १९३५ में पेनांग (मलाया) के विख्यात चीनी महाविहार 'चांग ह्वा तास्ज' में रह मैंने, 'मिलिन्द प्रश्न' के अनुवाद करने के बाद ही संयुक्त निकाय का अनुवाद प्रारम्भ किया था। दूसरे वर्ष लंका जा सलगल अरण्य के योगाश्रम में इस ग्रन्थ का अनुवाद पूर्ण किया। तब से न जाने कितनी बार इसके छपने की व्यवस्था भी हुई, पाण्डुलिपि प्रेस में भी दे दी गई और फिर वापस चली आई। मैंने तो ऐसा समझ लिया था कि कदाचित् इस ग्रन्थ के भाग्य में प्रकाशन लिखा ही नहीं है, और इस ओर से उदासीन-सा हो गया था। अब पूरे उन्नीस वर्षों के बाद यह ग्रन्थ प्रकाशित हो सका है। भाई त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित जी ने सारी पाण्डुलिपि को दुहरा कर शुद्ध कर दिया है। संयुत्त निकाय आज इतना अच्छा प्रकाशित न हो सकता, यदि भिक्षु धर्मरक्षित जी इतनी तत्परता से इसके प्रूफ देखने और इसकी अन्य व्यवस्था करने की कृपा न करते
मैं महाबोधि सभा सारनाथ तथा उसके मन्त्री श्री भिक्षु संघरल जी की भी अनेक धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने पुस्तक के प्रकाशन में इतना उत्साह दिखाया ।
नव नालन्दा महाविहार
भिक्षु जगदीश काश्यप |
cde45be4ae833401f125844f88a88833b7315e2699c0fe88e6ab57b95bd928fe | pdf | =दुआ । व्यक्ति अल्लाह को कहता है कि, "Do Allah" इसे ही, "दुआ" कहते हैं। इस Dual को ही ब्रह्म॑षि पाताञ्जली ने, "योग" कहा है। योग यानी परमात्मा से जुड़ाव । ब्रह्मषि पाताञ्जली भी अपने दोनों हाथों की हथेलियों को, जोड़कर परमात्मा में ध्यान लगाते थे । इसलिए उनका नाम "पाताञ्जली" है। क्योंकि दोनों हाथों की जुड़ी हुई, हथेलियों को "अंजुली" बोला जाता है। क्योंकि ब्रह्मषि पाताञ्जली ने, अपने अंजुली को ही "पात्र" बना लिया था । तो पात्र अंजुली से यह पाताञ्जली शब्द बना । पात्र + अंजुली = पाताञ्जली । यह "पाताञ्जली" ही आगे चलकर, "करपात्री" शब्द बन गया। क्योंकि कर को पात्र बनाया गया । कर+पात्री करपात्री । किन्तु कर एक हाथ को कहा जाता है। इसलिए जो केवल एक हाथ में, कुछ लेता है, वह "करपात्री" कहलाता है।
184 दंग + गल = दंगल -
दंग हो जाना किसी गल पर, दंगल कहलाता है। दंग+गल-दंगल । दंगल में आदमी तभी जाता है, जब व्यक्ति किसी गल पर, दंग रह जाता है ।
185. दूर + Shit = दूषितदूर बैठकर करना चाहिए Shit, नहीं तो स्थान दूषित हो जाएगा।
186.Delete=दलितजिस प्रकार से साहित्यिक रचना में से, अशुद्धियां को Delete कर दिया जाता है। उसी प्रकार से दल में से, अशुद्ध लोगों को Delete कर दिया जाता है, इन Delete लोगों को ही, दलित कहा जाता है। Delete= दलित । दल में से जिसे इत कर दिया गया है, उसे दलित कहा जाता है । दल + इत = दलित । "इत" को प्रयोग किसी को लोप करने के लिए किया जाता है। जैसे कि अंग्रेजी में "It" का प्रयोग निर्जीव वस्तुओं के लिए किया जाता है, उसी प्रकार से इत का प्रयोग उनके लिए किया जाता है, जो हैं तो पर दिखते नहीं है। इत=It.
187.ढक+कोष+ला = ढकोसला.
ढक कर कोष को लाया जाता है, उसे ढकोसला कहते हैं । ढक + कोष + ला ढकोसला । पहले जमाने में, जब कोष को लेकर चलते थे, तब उस कोष को इस तरह
से, ढककर चलते थे कि, किसी को मालूम नहीं पड़े की, कोष को लेकर जा रहे हैं। इसे ही ढकोसला कहते थे ।
188. दीवार + आला = दीवालजिस दीवार में आला होता है, उस दीवार को "दीवाल" कहते हैं। दीवार + आला दीवाल। आला में दीपक रखा जाता है, दीपक से आले में दिव्यता आती है, दिव्यता जब आले में आती है, तब उसे "दिव्यआले" कहा जाता है, दिव्य आले से दिव्याले बना है, और दिव्याले से कालांतर में, "देवालय" शब्द बन गया। दिव्य + आले देवालय । क्योंकि जब लालटेन आ गई, तब आले में दीपक रखना, बंद कर दिया गया । तब आले में किसी ने कुछ रखा, और किसी ने कुछ रखना, शुरु कर दिया । इसी दीवाल के आला में, लोगों ने अपनी धन-सम्पत्ति भी, रखनी शुरु कर दी । तो कभी किसी के आला में, कोई सेंध लगाकर धन ले जाता था, तो लोग कहते थे कि, "मेरा तो दीवाला ही निकल गया"। दीवाल + आला = दीवाला । किन्तु लोगों ने वर्ष में एक दिन, दीपक जलाना जारी रखा। जिसे लोगों ने "दीवाली" नाम दिया। दीवाल के आला में तो सामान रखा था, तो लोगो ने दीवाल में एक छोटी सी आली बनाई और, उस आली में दीपक को प्रज्वलित किया । इसलिए उसे नाम दिया "दीवाली" । दीवाल + आली = दीवाली । और किसी-किसी ने आले में, देवता की मूर्ति रखनी शुरु कर दी। और ऊपर से कपड़े से ढक दिया, या किवड़ियां उस पर लगा दीं। लेकिन उसको अभी भी देवालय, नाम से ही पुकारते रहे । किन्तु बाद में दीवारों में, आले बनने भी बंद हो गए, तब कालांतर में यही मूर्तियां, जब देवालय से निकालकर, एक बड़े भवन में स्थापित की गईं। तब उस बड़े स्थान को, भी देवालय कहा गया और, उस स्थान पर भी लोग, दीपक प्रज्वलित करने लगे। इस तरह से दीवाल का आला, देवालय बन गया । दीवाल से ही नाम पड़ा "Wall", The + Wall = Wall. इसमें The को Silent कर दिया गया ।
189.दाह + रूह = दारू -
व्यक्ति ने दारू पी तो ली, यह सुनकर कि, "दारू पीने से देह में दुःख नहीं होता है" । किन्तु उसे यह नहीं बताया गया कि, "दारू पीने से, उसकी मति काम नहीं करेगी" ।
इसी तरह से यह भी सुनाया जाता था कि, किसी व्यक्ति को दुःख देना है तो, प्रभु का नाम लेकर, उस व्यक्ति के पानी में, खाने में, चुपके से दारू मिला दो । उस व्यक्ति को पता भी नहीं चलेगा कि, उस व्यक्ति ने दारू पिया हुआ है । वह व्यक्ति अपने आपको सामान्य ही समझेगा । तब दारू को पीने के बाद, उस व्यक्ति का दिमाग जम जाएगा, जिससे उस व्यक्ति की बुद्धि काम नहीं करेगी, और वह कार्यों में गलती करेगा। उस व्यक्ति की गई गलतियों के कारण, उस व्यक्ति को आत्म ग्लानि होगी, और उस व्यक्ति को दुःख होगा। और वह व्यक्ति अपने आपको कोसेगा कि, "ऐसा मैंने क्यों किया" । तब उस व्यक्ति को कहो कि, "देखो यह दारू है, इस दारू को पीने से तुम्हारी, देह में दुःख नहीं होगा"। तब वह व्यक्ति दारू पीकर अपने, दुःख को दूर करने की कोशिश करेगा । क्योंकि उसको समझाया गया है कि, "दारू पीने से देह में दुःख नहीं आता है " । किन्तु उसे यह नहीं पता कि, "दारू पीने से मति खराब हो जाती है, जबकि वह व्यक्ति अपने दुःख का कारण, प्रभु को मान लेता है। और अपने दुःख के लिए, प्रभु को दोषी मानता है तथा, जिसने उसके खाने-पीने की वस्तुओं में, दारू मिलाकर पिला दिया था, उसे अभी तक पहचान भी नहीं पाया है। दाह करती जो रूह का उसे दारू कहते हैं। दाह + रूह = दारू । जिस प्रकार से बम के भीतर छिपी बारूद, विस्फोट होकर शरीर को दाह करती है। उसी प्रकार से शरीर के भीतर गई दारू, व्यक्ति को क्रोध दिलाकर, व्यक्ति की रूह को दाह करती है। दाह = जला । जिस प्रकार से बम के विस्फोट से, सबकुछ नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार से शरीर के भीतर गई दारू से, हुए क्रोध में सबकुछ नष्ट हो जाता है। क्योंकि शरीर के भीतर गई दारू, व्यक्ति के Blood Pressure को, High से भी High कर देती है और, व्यक्ति Hypertension का शिकार हो जाता है। जबकि उसे कुछ पता ही नहीं, यह क्यों हो रहा है। और व्यक्ति अपने आपको, आत्मग्लानि में झोक देता है । तथा इस किए गए पाप का स्वयं को, दोषी मान लेता है। जबकि उसे कुछ पता ही नहीं है। इसलिए भारत देश में, किसी के यहां का पानी एवं भोजन करने को मना किया गया है । क्योंकि कई लोग व्यक्ति को, भ्रमित करने के लिए, उस व्यक्ति के पानी एवं खाने में, Rum को भर देते हैं, जिससे व्यक्ति भ्रमित हो जाता है । भर + Rum = भ्रम । क्योंकि
व्यक्ति को हराने से पहले, व्यक्ति की मति हर ली जाती है। और इसका दोषी प्रभु को बना दिया जाता है । जबकि उसकी मति तो उसको, चुपके से दारू पिलाने से हर ली गई है। क्योंकि उसको दोस्त बनकर हराना जो है, इसलिए दोस्त दारू को पहले, चुपके से मिलाकर पिलाते हैं और, फिर बाद में उसके बारे में, बदनामी फैलाते हैं कि, "वह तो दारू पीता है"। उसे तो पता ही नहीं होता है कि, उसके शरीर में दारू जा रही है। क्या प्रभु भी षडयंत्र करते हैं, और षडयंत्र के तहत पहले दारू पिलाकर, उस व्यक्ति की मति हर लेते हैं, और तब उस व्यक्ति को दुःख देते हैं। जबकि प्रभु तो सभी को सुख देते हैं। और प्रभु सबको आनंद देते हैं। आखिर प्रभु क्यों किसी की, मति को पहले दारू पिलाकर, हर लेते हैं, फिर दुःख को मिटाने के लिए, दारू पीने को देते हैं कि, "दारू पीने से दुःख नहीं होता है देह में"। यानी ऐसा समझा जाए है कि, प्रभु के द्वारा दुःख को दूर नहीं किया जाता है, और दुःख को दूर करने के लिए, दारू को पिया जाता है । तो इसलिए व्यक्ति इसी बात को मानकर, प्रभु के स्थान में नहीं जाता है, वह व्यक्ति दारू के मिलनेवाले स्थान पर जाता है। इस तरह व्यक्ति अपनी करनी को, प्रभु पर डाल देता है, और सबको समझाता है कि, "प्रभु के द्वारा व्यक्ति को, किसी पाप का दुःख दिया जाता है"। जबकि जिसको दुःख मिल रहा है, उसने कोई पाप या गलती की ही नहीं है।
190. डर + Ream = Dream -
अपने डर को लिखने के लिए, पूरा Ream चाहिए । डर + Ream =Dream. सफेद कागज़ की Ream पर, अपने भीतर के Dark को, काली पक्तियों में लिखने के लिए, पूरी Ream लग जाती है, इसे ही Dream कहते हैं। यानी Dream को Ream पर उतारा जाता है।
191.धन+दो+लात - धन-दौलतजब कोई यह कहता है कि, "भले ही कोई मुझे दो लात मार ले, पर मुझे धन दे दे" । तब इसे ही"धन-दौलत" कहते हैं। धन+दो+लात=धन-दौलत।
192. धार + रण = धारण -
धार वाली वस्तु, रण में धारण करके ले जाना । |
4284738dfde88c74a0347ae5169760e726554137a8ea140a7973ac904376c2df | pdf | नियमोंका पालन करता है; जिसमें सत्य, दान, द्रोह न करना, सबके प्रति कोमल भाव रखना, लज्जा, दया और तप आदि सद्गुण देखे जाते हों, वह ब्राह्मण कहा गया है । जो युद्ध आदि कर्म करता और वेदोंके अध्ययनमें लगा रहता है, ब्राह्मणोंको दान देता और प्रजासे कर लेकर उसकी रक्षा करता है, उसको क्षत्रिय कहते हैं। इसी प्रकार जो वेदाध्ययनसे सम्पन्न होकर व्यापार, पशु-पालन और खेतीके काम करता है तथा दान देता और पवित्र रहता है, वह वैश्य कहलाता है। किंतु जो वेद और सदाचारका परित्याग करके सब कुछ खाता और सब तरहके काम करता है तथा सदा अपवित्र रहा करता है, वह शूद्र माना गया है ।
यदि ये ब्राह्मणोचित सत्यादि गुण शूद्र में दिखायी दें और ब्राह्मणमें न हों तो वह शूद्र शूद्र नहीं और वह ब्राह्मण ब्राह्मण नहीं है । हरएक उपायसे लोभ और क्रोधको दबाना ही पवित्र ज्ञान और आत्मसंयम है । क्रोध तथा लोभ मनुष्यके कल्याणमें सदा ही बाधा पहुँचानेको उद्यत रहते हैं; अतः पूरी शक्ति लगाकर उनका दमन करना चाहिये । क्रोधसे
सत्यकी महिमा, असत्यके दोष, दान भृगुजी कहते हैं - -मुने ! सत्य ही ब्रह्म है, सत्य ही तप है, सत्य ही प्रजाकी सृष्टि करता है, सत्यके हो आधारपर संसार टिका हुआ है और सत्यसे ही मनुष्य स्वर्ग प्राप्त करता है। असत्य अन्धकारका रूप है, वह नीचे गिराता है । अज्ञानान्धकारसे घिरे हुए मनुष्य ज्ञानका प्रकाश नहीं देख पाते । जो सत्य है वही धर्म है, जो धर्म है वही प्रकाश ( ज्ञान ) है और जो प्रकाश है वही सुख है । इसी प्रकार जो असत्य है वही अधर्म है, जो अधर्म है वही अन्धकार (अज्ञान) है और जो अन्धकार है वही दुःख है । संसारकी सृष्टि शारीरिक और मानसिक दुःखोंसे भरी हुई है, इसमें सुख भी वे ही हैं, जो परिणाममें दुःख देनेवाले हैं। यह जानकर विद्वान् पुरुष कभी मोहमें नहीं पड़ते । प्रत्येक बुद्धिमान्का यह कर्तव्य है कि वह दुःखोंसे छुटकारा पानेका उद्योग करे ।
असत्यसे तम ( अज्ञान ) की उत्पत्ति हुई है, तमोग्रस्त मनुष्य अधर्मके ही पीछे चलते हैं, धर्मका अनुसरण नहीं करते; अतः जो क्रोध, लोभ, हिंसा और असत्य आदिसे आच्छादित हैं, वे न तो इस लोकमें सुखी होते हैं और न परलोकमें ही सुख उठाते हैं। नाना प्रकारके रोग, व्याधि और तापसे संतप्त होते रहते हैं, वध और बन्धन आदिके क्लेश सहते हैं तथा भूख-प्यास और परिश्रमके कारण भी
श्रीको, मात्सर्यसे तपको, मान-अपमानसे विद्याको और प्रमादसे अपनेको बचावे । जिसके सभी कार्य कामनाओंके बन्धनसे रहित होते हैं तथा जिसने त्यागकी आगमें सब कुछ होम दिया है, वही त्यागी और बुद्धिमान् है । किसी भी प्राणीकी हिंसा न करे, सबके साथ मैत्रीपूर्ण बर्ताव करे, स्त्रीपुत्र आदिकी ममता एवं आसक्तिको त्याग कर बुद्धिके द्वारा इन्द्रियोंको वशमें करे और उस स्थितिको प्राप्त करे, जो इहलोक और परलोकमें भी निर्भय तथा शोकरहित है । नित्य तप करे, मननशील होकर मन और इन्द्रियोंका संयम करे, आसक्तिके आश्रयभूत देह-गेह आदिमें आसक्त न होकर परमात्माको प्राप्त करनेकी इच्छा रक्खे । मनको प्राणमें और प्राणको ब्रह्ममें स्थापित करे । वैराग्यसे ही निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त होता है, उसे पाकर किसी अनात्मपदार्थका चिन्तन नहीं होता । ब्राह्मण संसारसे परवैराग्य होनेपर परब्रह्म परमात्माको अनायास ही प्राप्त कर लेता है । सर्वदा शौच और सदाचारका पालन करना तथा सम्पूर्ण प्राणियोंपर दया रखना - - यह ब्राह्मणका लक्षण है।
आदिके फल और आश्रमधर्मोका वर्णन
कष्ट भोगते हैं। इतना ही नहीं, उन्हें आँधी, पानी, सर्दी और गर्मीसे उत्पन्न हुए भय तथा शारीरिक कष्ट भी झेलने पड़ते हैं । बन्धु-बान्धवोंकी मृत्यु, धनके नाश और प्रेमीजनोंके बिछोहके कारण होनेवाले मानसिक शोकका भी शिकार होना पड़ता है। इसी प्रकार वे जरा और मृत्युके कारण भी बहुतसे दूसरे दूसरे क्लेश भोगते रहते हैं ।
भरद्वाजने पूछा--मुनिवर ! दान, धर्म, तप, स्वाध्याय और अग्निहोत्रका क्या फल है ?
भृगुजीने कहा -- अग्निहोत्वसे पाप नष्ट होता है, स्वाध्यायसे उत्तम शान्ति मिलती है, दानसे भोगोंकी और तपसे स्वर्गकी प्राप्ति होती है ।
भरद्वाजने पूछा-ब्रह्माजीने जो चार आश्रम बनाये हैं, उनके अपने-अपने धर्म क्या हैं ? यह बताने की कृपा कीजिये ।
भृगुजीने कहा -- जगत्का कल्याण करनेवाले भगवान् ब्रह्माजीने धर्मकी रक्षाके लिये पूर्वकालमें हो चार आश्रमोंका उपदेश किया था। उनमें से ब्रह्मचर्यको पहला आश्रम कहते हैं, जिसमें शिष्यको गुरुके यहाँ रहकर वेदोंका स्वाध्याय करना पड़ता है। इसमें रहनेवाले ब्रह्मचारीको बाहरभीतरकी शुद्धि, वैदिक संस्कार तथा व्रत और नियमोंके
पालनसे अपने मनको वशमें रखना चाहिये। सुबह और शाम - - दोनों समय संध्या, सूर्योपस्थान तथा अग्निहोत्रके द्वारा अग्निदेवकी उपासना करनी चाहिये । तन्द्रा और आलस्यको त्याग करके प्रतिदिन गुरुको प्रणाम करे, वेदोंका अध्ययन तथा उसके अर्थका अभ्यास करता रहे । इस प्रकारकी दिनचर्यासे अपने अन्तःकरणको पवित्र बनावे । सबेरे, शाम और दोपहर -- तीनों वक्त स्नान करे । ब्रह्मचर्यका पालन तथा अग्नि और गुरुकी सेवा करे, प्रतिदिन भिक्षा माँगकर लावे और वह सब गुरुको अर्पण कर दे । अपनी अन्तरात्माको भी गुरुके चरणोंमें निछावर किये रहे । गुरुजी जो कुछ कहें, जिसके लिये संकेत करें और जिस कार्यके निमित्त स्पष्ट आज्ञा दें, उसके विपरीत आचरण न करे । इस प्रकार गुरुको प्रसन्न करके उनकी कृपासे स्वाध्यायका अवसर मिलनेपर वेदाध्ययनमें प्रवृत्त होना चाहिये । इस विषय में एक श्लोक है (जिसका भाव इस प्रकार है-- ) 'जो द्विज गुरुकी आराधना करके वेदोंका ज्ञान प्राप्त करता है, उसे अन्तमें स्वर्गकी प्राप्ति होती है और उसका मानसिक संकल्प सिद्ध होता है।'
सत्यकी महिमा, असत्यके दोष, दान आदिके फल और आश्रमधर्मोका वर्णन
'गार्हस्थ्य' को दूसरा आश्रम बतलाया जाता है । अब हम उसके द्वारा पालन करने योग्य आचरणोंकी व्याख्या करते हैं। जब सदाचारका पालन करनेवाला ब्रह्मचारी विद्या पढ़कर गुरुकुलमें रहनेकी अवधि पूरी कर ले और समावर्तन संस्कारके पश्चात् स्नातक हो जाय, उस समय यदि उसे पत्नीके साथ रहकर धर्मका आचरण करने तथा पुत्रादिरूप फल पानेकी इच्छा हो तो उसके लिये गृहस्थाश्रममें प्रवेशका विधान है; क्योंकि इसमें धर्म, अर्थ और काम तीनोंकी प्राप्ति होती है। इसलिये त्रिवर्ग-साधनकी इच्छासे गृहस्थको उत्तम कर्मके द्वारा धन-संग्रह करना चाहिये और उसीके द्वारा अपनी गृहस्थोका निर्वाह करना चाहिये । गृहस्थआश्रम सभी आश्रमोंका मूल कहलाता है । गुरुकुलमें वास करनेवाले ब्रह्मचारी, वनमें रहकर संकल्पके अनुसार व्रत, नियम तथा धर्मोंका पालन करनेवाले वानप्रस्थी और सब कुछ त्यागकर विचरनेवाले संन्यासीको भी गृहस्थाश्रमसे ही भिक्षा आदिकी प्राप्ति होती है । तात्पर्य यह कि अन्य सब आश्रमवालोंका निर्वाह गृहस्थाश्रमसे ही होता है । गृहस्थद्वारा किये जानेवाले अतिथि-सत्कारके विषयमें एक श्लोक है (जिसका भावार्थ इस प्रकार है -- ) 'जिस गृहस्थके दरवाजेसे कोई अतिथि भिक्षा न पानेके कारण निराश होकर लौट जाता है, वह उस गृहस्थको तो अपना पाप दे डालता है और स्वयं उसका पुण्य लेकर चला जाता है ।'
इसके सिवा, गृहस्थाश्रममें रहकर यज्ञ करनेसे देवता, श्राद्ध करनेसे पितर, शास्त्रोंके श्रवण, अभ्यास और धारणसे ऋषि तथा संतान उत्पन्न करनेसे प्रजापति प्रसन्न होते हैं । गृहस्थके कर्तव्यके विषयमें दो श्लोक और हैं, ( जिनका सारांश इस प्रकार है--) 'वाणी ऐसी बोलनी चाहिये, जिसमें सब प्राणियोंके प्रति स्नेह भरा हो तथा जो सुनते समय कानोंको मीठी लगे । दूसरोंको पीड़ा देना, मारना या कटुवचन सुनाना अच्छा नहीं है। किसीका अपमान करना, अहंकार रखना और ढोंग दिखाना - इन बातोंकी कड़ी निन्दा की गयी है । किसी भी जीवकी हिंसा न करना, सत्य बोलना और मनमें क्रोध न होने देना -- ये सभी आश्रमवालोंके लिये उपयोगी तप हैं। जिस पुरुषको गृहस्थाश्रममें सदा धर्म, अर्थ और कामके गुणोंकी सिद्धि होती रहती है, वह इस लोकमें सुखका अनुभव करके अन्तमें शिष्ट पुरुषोंकी गतिको प्राप्त करता है ।'
तीसरा आश्रम है वानप्रस्थ । इसमें रहनेवाले मनुष्य धर्मका अनुसरण और तपका अनुष्ठान करते हुए पवित्र तीर्थोंमें, नदियोंके किनारे, झरनोंके आस-पास तथा मृग, भैंसे, सूअर, बनैले हाथी और सिंह-व्याघ्र आदि जन्तुओंसे भरे हुए एकान्त वनोंमें विचरते रहते हैं। गृहस्थोंके उपयोगमें आने योग्य सुन्दर वस्त्र, स्वादिष्ठ भोजन और विषय - भोगोंका परित्याग करके वे जंगली औषध, फल, मूल तथा पत्तोंका आहार करते हैं, वह भी बहुत थोड़ी मात्रामें और नियमानुकूल एक ही बार खाकर रहते हैं। नियत स्थानपर ही आसन बिछाकर बैठते हैं। जमीन, पत्थर, रेती, कँकरीली मिट्टी, बालू अथवा राखपर सोते हैं। कास या कुशको रस्सी, मृगचर्म अथवा पेड़ोंकी छालसे अपना शरीर ढँकते हैं । सिरके बाल, दाढ़ी-मूँछ, नख और रोम बढ़ाये रहते हैं । नियत समयपर स्नान, बलिवैश्वदेव तथा अग्निहोत्र आदि कर्मोंका अनुष्ठान करते हैं । सबेरे हवन-पूजनके लिये समिधा, कुशा और फूल आदिका संग्रह करके आश्रमको झाड़-बुहार लेनेके पश्चात् विश्राम करते हैं। सर्दी, गर्मी, वर्षा और हवाका वेग सहते-सहते उनके शरीरके चमड़े फट जाते हैं । नाना प्रकारके नियमोंका अनुष्ठान करते रहनेसे उनके रक्त और मांस सूख जाते हैं, शरीरकी जगह चामसे ढँकी हुई हड्डियोंका ढाँचामात्र रह जाता है; फिर भी धैर्य धारण करके अत्यन्त साहसके कारण शरीरको चलाये जाते हैं। जो पुरुष नियमके साथ रहकर ब्रह्मषियोंद्वारा आचरणमें लायी हुई इस योगचर्याका अनुष्ठान करता है, वह अग्निकी भाँति अपने दोषोंको दग्ध करके दुर्लभ लोकोंको प्राप्त कर लेता है ।
अब संन्यासियोंका आचरण बतलाया जाता है । संन्यास ( चौथा आश्रम है -- इस ) में प्रवेश करनेवाले पुरुष अग्निहोत्र, धन, स्त्री आदि परिवार तथा घरको सारी सामग्रीका त्याग करके विषयासक्तिके बन्धनको तोड़कर घरसे निकल जाते हैं । ढेले, पत्थर और सोनेको समान समझते हैं। धर्म, अर्थ और कामके सेवनमें अपनी बुद्धि नहीं फँसाते । शत्रु, मित्र तथा उदासीन -- सबके प्रति समान दृष्टि रखते हैं। स्थावर, अण्डज, पिण्डज, स्वेदज और उद्भिज्ज प्राणियों के प्रति मन, वाणी अथवा कर्मसे भी कभी द्रोह नहीं करते । कुटी या मठ बनाकर नहीं रहते। उन्हें चाहिये कि चारों ओर विचरते रहें और रातमें ठहरनेके लिये पर्वतकी गुफा, नदीका किनारा, वृक्षकी जड़, देवमन्दिर, ग्राम अथवा नगर आदि स्थानोंमें चले जाया करें। नगरमें पाँच रात और गाँवोंमें एक रातसे अधिक न रहें । प्राण धारण करनेके लिये गाँव या नगरमें प्रवेश करके अपने विशुद्ध धर्मोका पालन करनेवाले द्विजातियोंके घरोंपर जाकर खड़े हो जायँ । बिना माँगे ही पात्रमें जितनी भिक्षा आ जाय, उतनी ही स्वीकार करें ।
आचारकी विधि और
युधिष्ठिरने पूछा-दादाजी ! अब मैं आपके मुखसे आचारकी विधि सुनना चाहता हूँ; क्योंकि आप सर्वज्ञ हैं ।
भीष्मजीने कहा- मनुष्यको सड़कपर, गौओंके बीचमें और अन्नके पौदोंसे हरेभरे खेतमें मल-मूत्रका त्याग नहीं करना चाहिये । आवश्यक शौच आदिसे निवृत्त होकर कुल्ला करनेके पश्चात् नदीमें स्नान करना चाहिये । इसके बाद (संध्योपासना और) देवता-पितरोंका तर्पण करना आवश्यक है। प्रतिदिन सूर्योपस्थान करे । सूर्योदयके समय कभी न सोये । सायं और प्रातः -- दोनों समय संध्या करके गायत्रीका जप करे। दोनों हाथ, दोनों पैर और मुँह - इन पाँच अङ्गोंको धोकर पूर्वकी ओर मुँह कर भोजन करने बैठे 1 भोजन के समय मौन रहे । भोजनके लिये परोसे हुए अन्नकी निन्दा न करे, उसे स्वादिष्ट मानकर प्रेमसे भोजन करे 1 भोजनके बाद हाथ धोकर उठे । रातको भीगे पैर न सोये । देवर्षि नारदजी इसीको आचार कहते हैं। यज्ञशाला आदि पवित्र स्थान, बैल, देवता, गोशाला, चौराहा, ब्राह्मण, धार्मिक मनुष्य तथा मन्दिरको सदा अपने दाहिने करके चले । घरमें अतिथियों, सेवकों और कुटुम्बीजनोंके लिये भी एक-सा ही भोजन बनवाना उत्तम माना गया है। शास्त्रमें मनुष्योंके लिये सबेरे और शाम - दो ही वक्त भोजन करनेका विधान
काम, क्रोध, दर्प, लोभ, मोह, कृपणता, दम्भ, निन्दा, अभिमान तथा हिंसा आदिसे दूर रहें ।
इस विषय में कुछ श्लोक हैं, (जिनके भाव इस प्रकार हैं -- ) 'जो मुनि सब प्राणियोंको अभयदान देकर विचरता रहता है, उसे कहीं किसी भी जीवसे भय नहीं होता। जो अग्निहोत्रको अपने शरीरमें आरोपित करके शरीरस्थित अग्निके उद्देश्य से मुखमें भिक्षाप्राप्त हविष्यका होम करता है, वह अग्निहोत्रियोंको प्राप्त होनेवाले लोकोंमें जाता है । जो बुद्धिको संकल्परहित करके पवित्र होकर शास्त्रोक्त विधिके अनुसार संन्यासके नियमोंका पालन करता है, वह परम शान्त ज्योतिर्मय ब्रह्मलोकको प्राप्त होता है।' इस प्रकार वेदमें प्रतिपादित आश्रम-धर्मका मैंने संक्षेपसे वर्णन किया है। जो मनुष्य लोकके धर्म-अधर्मको जानता है, वह बुद्धिमान् है ।
भीष्मजी कहते हैं - महर्षि भृगुजीके इस प्रकार उपदेश देनेपर परम धर्मात्मा भरद्वाजने विस्मयविमुग्ध होकर उनका पूजन किया ।
अध्यात्मज्ञानका वर्णन
है। बीचमें नहीं खाना चाहिये । ऐसा करनेसे मनुष्य उपवासी माना जाता है । होमके समय अग्निमें हवन और केवल ऋतु- स्नानके समय स्त्रीके साथ समागम करते हुए एक पत्नीव्रत धारण करनेवाला बुद्धिमान् गृहस्थ भी ब्रह्मचारी ही माना जाता है। ब्राह्मणके भोजनसे बचा हुआ ( यज्ञशिष्ट ) अन्न अमृतके तुल्य है; ऐसे अन्नको भोजन करनेवाले सत्पुरुष सत्यस्वरूप परमात्माको प्राप्त होते हैं । जो मिट्टीके ढेले फोड़ता, तिनके तोड़ता और दाँतोंसे नख चबाया करता है तथा जो सदा जूठे हाथ और जूठे मुँह रहा करता है, उसको बड़ी आयु नहीं मिलती ।
मनुष्य स्वदेशमें हो या परदेशमें, अपने पास आये हुए अतिथिको भूखा न रहने दे । जीविका के लिये किये हुए कार्यसे जो धन आदि प्राप्त हो, उसे माता-पिता आदि गुरुजनोंको निवेदन कर दे। गुरुजनोंके आनेपर उन्हें स्वयं आसन देकर बैठावे और सदा उनको प्रणाम किया करे । गुरुओंका सत्कार करनेसे आयु, यश और लक्ष्मीकी प्राप्ति होती है । उदयके समय सूर्यको न देखे, नंगी हुई परायी स्त्रीकी ओर दृष्टि न डाले और सदा धर्मानुसार ऋतुकालके समय एकान्त स्थानमें पत्नीके साथ समागम करे । परिचित मनुष्यसे जब-जब भेंट हो, उसका कुशल- समाचार पूछे ।
प्रतिदिन प्रातःकाल और संध्याके समय ब्राह्मणोंको प्रणाम करे -- ऐसी शास्त्रकी आज्ञा है। देवमन्दिरमें, गौओंके बीचमें, ब्राह्मणोंके यज्ञादि कर्मोमें, शास्त्रोंके स्वाध्यायकालमें और भोजन करते समय दाहिने हाथसे काम ले । प्रातः और संध्याके समय ब्राह्मणोंका विधिवत् पूजन करे । हजामतके समय, छींक आनेपर, स्नान और भोजनके समय तथा रुग्णावस्था में सबको चाहिये कि ब्राह्मणोंको प्रणाम करे; इससे आयु बढ़ती है। सूर्यकी ओर मुँह करके पेशाब न करे, अपनी विष्ठापर दृष्टि न डाले, स्त्रीके साथ एक आसनपर सोना और एक थालीमें भोजन करना छोड़ दे। अपनेसे बड़ोंको नाम लेकर या 'तू' कहकर न पुकारे । अपनेसे छोटे या समवयस्क पुरुषोंका नाम लेनेसे दोष नहीं लगता।
आचारकी विधि और अध्यात्मज्ञानका वर्णन
पापियोंका हृदय ही उनके पापोंको बता देता है; जो लोग जान-बूझकर किये हुए पापको महापुरुषोंसे छिपाते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं । जो मूर्ख हैं, वे ही जान-बूझकर किये हुए पापको छिपाते हैं । यद्यपि मनुष्य उस पापको नहीं देखते, तो भी देवता तो देखते ही हैं । पापी मनुष्यका छिपाया हुआ पाप उसे पुनः पापमें ही लगाता है और धर्मात्माका धर्मतः गुप्त रक्खा हुआ धर्म उसे पुनः धर्ममें ही प्रवृत्त करता है । मूर्ख मनुष्य पाप करके उसे भूल जाता है, किंतु वह पाप उसके पीछे ही लगा रहता है। किसी कामनाकी पूर्तिके लिये जो धन संचित करके रक्खा होता है, उसको अपने उपभोगमें खर्च करनेसे बड़ा क्लेश होता है । मगर समझदारलोग ऐसे धनकी प्रशंसा नहीं करते; क्योंकि मौत राह नहीं देखती (कामना पूरी हो या अधूरी, समयपर मृत्यु हो ही जाती है) । मनीषी पुरुषोंका कहना है कि सभी प्राणियोंका धर्म मानसिक है अर्थात् मनसे किया हुआ धर्म ही वास्तविक धर्म है; अतः मनसे समस्त जीवोंका कल्याण सोचता रहे । केवल वेदोक्त विधिका सहारा लेकर अकेले ही धर्मका आचरण करना चाहिये । इसमें दूसरेकी सहायताकी आवश्यकता नहीं है । धर्म ही मनुष्योंकी योनि है, धर्मही स्वर्गके देवताओंका अमृत है। धर्मात्मा मनुष्य मरनेके पश्चात् धर्मके ही बलसे सदा सुख भोगते हैं ।
ने सृष्टि और प्रलयकी व्याख्या के साथ ही अध्यात्मज्ञानका वर्णन किया है। उसे जान लेनेसे मनुष्यको प्रसन्नता और सुखकी प्राप्ति होती है। वह सम्पूर्ण भूतोंके लिये हितकारी है, जो उसे जानता है, उसकी सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं । पृथ्वी, वायु, आकाश, जल और अग्नि--ये पाँच महाभूत सम्पूर्ण प्राणियोंकी उत्पत्ति और प्रलयके स्थान हैं। जैसे लहरें समुद्रसे प्रकट होकर फिर उसीमें लीन हो जाती हैं, उसी प्रकार ये पाँच महाभूत भी जिस आनन्दस्वरूप परमात्मासे उत्पन्न हुए हैं, पुनः उसीमें लीन हो जाते हैं । शब्द, श्रोत और सम्पूर्ण छिद्र आकाशके कार्य हैं; स्पर्श, त्वचा और चेष्टा -- ये तीन वायुके; रूप, नेत्र और परिपाक -- ये तेजके; रस, जिह्वा और क्लेद जलके तथा गन्ध, नासिका और शरीर पृथ्वीके गुण हैं । इस प्रकार इस देहमें पाँच महाभूत तथा छठा मन हैं । इन्द्रियाँ और मन --ये जीवको विषयोंका ज्ञान कराते हैं। इन छः के अतिरिक्त सातवीं बुद्धि और आठवाँ क्षेत्रज्ञ है । इन्द्रियाँ विषयोंको ग्रहण करती हैं, मन संकल्प-विकल्प करता है और बुद्धि उसका ठीक-ठीक निश्चय करती है। क्षेत्रज्ञ (आत्मा) साक्षीकी भाँति स्थित रहता है । यह शरीरके भीतर और बाहर सर्वत्र व्याप्त है । पुरुषको अपनी इन्द्रियोंकी परीक्षा करके उनकी पूरी जानकारी रखनी चाहिये; क्योंकि सत्त्व, रज और तम-- ये तीनों गुण इन्द्रियोंका ही आश्रय लेकर रहते हैं। मनुष्य अपनी बुद्धिके बलसे जीवोंके आवागमनकी अवस्था जानकर धीरे-धीरे उसपर विचार करते रहनेसे परम शान्ति पा जाता है । यह चराचर जगत् बुद्धिके उदय होनेपर ही उत्पन्न होता और उसके लयके साथ ही लीन हो जाता है; इसलिये सबको बुद्धिमय कहा गया है ।
युधिष्ठिरने पूछा- पितामह ! शास्त्रमें पुरुषके लिये जो अध्यात्मज्ञानका चिन्तन बताया जाता है, वह अध्यात्म क्या है ? उसका स्वरूप कैसा है ? यह चराचर जगत् किससे उत्पन्न हुआ है और प्रलयके समय किसमें लीन होता है ? -- ये बातें मुझे बतानेकी कृपा करें ।
भीष्मजीने कहा -- कुन्तीनन्दन ! तुम मुझसे जिस अध्यात्मज्ञानके विषयमें पूछ रहे हो, उसकी व्याख्या करता हूँ । वह अत्यन्त कल्याणकारी और सुखस्वरूप है। आचार्योंबुद्धि ही जिसके द्वारा देखती है, उसे नेत्र कहते हैं; जिससे सुनती है, वह श्रोत्र कहलाता है और जिससे सूंघती है, उसे घ्राण कहा गया है। वही जिह्वाके द्वारा रसका और त्वचासे स्पर्शका अनुभव करती है । इस प्रकार बुद्धि ही विकारको प्राप्त होकर नाना रूपोंसे विषयोंको ग्रहण करती है । वह जिस द्वारसे किसी विषयको पाना चाहती है, मन उसीका आकार धारण कर लेता है । भिन्न-भिन्न विषयोंको ग्रहण करनेके लिये जो बुद्धिके पाँच अधिष्ठान हैं, उन्हींको पाँच इन्द्रियाँ कहते हैं। बुद्धिमान् पुरुषोंको चाहिये कि वे इन्द्रियोंको काबूमें रक्खें । सत्त्व, रज और तम - - ये तीन गुण सदा ही प्राणियों में स्थित रहते हैं और इनके कारण उनमें सात्त्विकी, राजसी तथा तामसी तीन तरहकी बुद्धि भी देखने में आती है। इनमें सत्त्वगुणसे सुख, रजोगुणसे दुःख और तमोगुणसे मोह उत्पन्न होता है ।
जब शरीर या मनमें किसी प्रकारसे भी प्रसन्नताका भाव हो, हर्ष बढ़ता हो, सुख और शान्तिका अनुभव हो रहा हो तो सत्त्वगुणकी वृद्धि समझनी चाहिये । जिस समय किसी कारणसे या बिना कारण ही असंतोष, शोक, संताप, लोभ और असहनशीलताके भाव दिखायी दें तो उन्हें रजोगुणके चिह्न जानने चाहिये । इसी प्रकार अपमान, मोह, प्रमाद, स्वप्न, निद्रा और आलस्य घेरते हों तो उन्हें तमोगुणके विविध रूप समझे । बुद्धि और आत्मा - - दोनों सूक्ष्म तत्त्व हैं, तथापि इनमें जो अन्तर है, उसपर दृष्टि डालो । इनमेंसे बुद्धि तो गुणोंकी सृष्टि करती है और आत्मा इन सब बातोंसे अलग रहता है। जैसे गूलरका फल और उसके भीतर रहनेवाले कीड़े - ये दोनों एक साथ रहते हुए भी एक-दूसरेसे भिन्न हैं, उसी प्रकार बुद्धि और आत्मा परस्पर मिले हुए प्रतीत होनेपर भी वास्तवमें अलग-अलग हैं। सत्त्व आदि गुण जड होनेके कारण आत्माको नहीं जानते, किंतु आत्मा चेतन है, इसलिये गुणोंको जानता है। जैसे घड़ेमें रक्खा हुआ दीपक घड़ेके छेदोंसे अपना प्रकाश फैलाकर वस्तुओंका ज्ञान कराता है, उसी प्रकार परमात्मा शरीरके भीतर स्थित होकर चेष्टा और ज्ञानसे शून्य इन्द्रियों तथा मन-बुद्धिके द्वारा सम्पूर्ण पदार्थोंका ज्ञान कराता है । बुद्धि गुणोंको उत्पन्न करती है और आत्मा केवल देखता है। बुद्धि और आत्माका यह सम्बन्ध अनादि है । जो संसारी कामोंसे मन हटाकर केवल
ध्यानयोगका वर्णन और जपकी महिमा
भीष्मजी कहते हैं-- कुन्तीनन्दन ! अब मैं तुमसे मैं ध्यानयोगका वर्णन कर रहा हूँ, जिसे जानकर महर्षिगण इस लोक में सनातन सिद्धिको प्राप्त हुए हैं। योगियोंको चाहिये कि वे सर्दी गर्यो आदि द्वन्द्वोंको सहन करते हुए नित्य सत्त्वगुणमें स्थित रहें और सब प्रकारकी आसक्तियोंसे मुक्त होकर शौचसंतोष आदि नियमोंका पालन करते हुए ऐसे स्थानोंपर ध्यान करें, जहाँ स्त्री आदिका संसर्ग तथा ध्यानविरोधी वस्तुएँ न हों, जहाँ मनमें पूर्णतया शान्ति बनी रहे । योगका साधक इन्द्रियोंको विषयोंकी ओरसे समेट कर काष्ठकी भाँति निश्चल होकर बैठ जाय और मनको एकाग्र करके परमात्मामें लगा दे। उस समय ध्यानमें इस प्रकार मग्न हो जाय कि कानों में कोई शब्द न सुनायी दे, त्वचासे स्पर्शका अनुभव न हो, आँखसे रूपका, जिह्वासे रसका तथा नासिकासे सुगन्धित वस्तुओंका पता न चले। पाँचों इन्द्रियोंको मोहमें डालनेवाले विषयोंकी इच्छा ही न हो। बुद्धिमान् योगी पहले
आत्मामें ही अनुराग रखता और आत्मतत्त्वका ही मनन करता है, वह सब प्राणियोंका आत्मा हो जाता है और इस साधनासे उसको बड़ी उत्तम गति प्राप्त होती है ।
जैसे जलमें विचरनेवाला पंछी, उसमें रहकर भी पानीसे लिप्त नहीं होता, उसी तरह ज्ञानी पुरुष भी सम्पूर्ण प्राणियों में निर्लिप्त होकर विचरता है । निर्लेप होना ही आत्माका स्वरूप है, ऐसा अपनी बुद्धिसे निश्चय करके मनुष्य दुःख पड़नेपर शोक न करे और सुख मिलनेपर हर्षसे फूल न उठे 1 सब जीवोंके प्रति समान भाव रक्खे । जैसे मैले बदनवाले मनुष्य जलसे भरी हुई नदीमें नहा-धोकर साफ-सुथरे हो जाते हैं, उसी प्रकार इस ज्ञानमयी नदीमें अवगाहन करके मलिन हृदयवाले पुरुषभी शुद्ध एवं विद्वान् हो जाते हैं। यही विशुद्ध अध्यात्मज्ञान है । जो मनुष्य बुद्धिसे जीवोंके आवागमनंपर शनैः शनैः विचार करके इस उत्तम ज्ञानको प्राप्त कर लेता है, उसे अक्षय सुख मिलता है । जो धर्म, अर्थ और कामको ठीक-ठीक समझकर उसका परित्याग कर चुका है और योगयुक्त चित्तसे आत्मतत्त्वके अनुसंधानमें लग गया है, वही तत्त्वदर्शी है । उसे दूसरी कोई वस्तु जाननेकी उत्कण्ठा नहीं होती । उस परमात्माको जानकर ज्ञानी पुरुष अपनेको कृतार्थ मानते हैं । अज्ञानियोंको जिस संसारसे महान् भय बना रहता है, उसीसे ज्ञानियोंको तनिक भी भय नहीं होता ।
बतानेके लिये एक जापक ब्राह्मणकी कथा इन्द्रियोंको मनमें स्थिर करे, फिर पाँचों इन्द्रियोंसहित मनको ध्यानमें एकाग्र करे ।
इस प्रकार प्रयत्न करनेसे पहले तो कुछ देरके लिये इन्द्रियोंसहित मन स्थिर हो जाता है, किंतु फिर बादलोंमें चमकती हुई बिजलीकी तरह वह बारंबार विषयोंकी ओर जानेके लिये चञ्चल हो उठता है । जैसे पत्तेपर पड़ी हुई पानीकी बूँद सब ओरसे हिलती रहती है, उसी तरह ध्यानमार्ग में स्थित साधकका मन भी चलायमान होता रहता है । एकाग्र करनेपर कुछ देरतक तो वह ध्यानमें स्थिर रहता है, किंतु फिर नाडीमार्ग में प्रवेश करके वायुकी भाँति चञ्चल हो जाता है । ऐसे विक्षेपके समय ध्यानयोगको जाननेवाले साधकको खेद या चिन्ता नहीं करनी चाहिये; बल्कि आलस्य और मात्सर्यका त्याग करके ध्यानके द्वारा मनको पुनः एकाग्र करनेका प्रयत्न करना चाहिये ।
योगी जब ध्यानका आरम्भ करता है तो पहले उसके |
7d85f622fb843d4c180cd0dc84571777d40c1c1a71184cc1cc79adcd59d9afe4 | pdf | समय उनके पास जाकर बैठजाता, सर्वो को प्यार करता । थोड़ा सा भी अनुशासन भंग में सहन नहीं करता। रात्रि को एक दो बार उठकर उनके बिस्तरों के पास जाता कोई उधाया पड़ाहोता तो कृपदा डाल श्राता यह विद्यार्थी मेरा सर्वस्व थे। मैं उनको जितना अच्छा बनाना चाहता था व जितने समय में बनाना चाहता था उसमें यदि कोई त्रुटि आती तो मैं सह नहीं सकता था। यदि किसी विद्यार्थी का प्रति होता दिखताःतो मैं रो पढ़ता था। मेरा कोई छात्र प्रसाद करता तो उसके प्रायश्चित्त स्वरूप या तो मैं एक दिन का या कई दिनों का उपवास कर लेता, या मेरी हथेलियां सामने कर के मेरे अपने ही हाथ से बेंतों से पीटता । मेरे छात्र एवं मैले कुचैले गांवों के लड़कों को जब मैले देखता तो मैं उन्हें अपने हाथ से नल्दाता व उनके कपड़े धो देता। उद्दण्ड बच्चे बड़े ही होशियार निकलते हुए पाये गए हैं । फारसी व फ्रेंच भाषा का अध्यापन भो में करता था ।
तड़के मेरे थे, वे मेरे सर्वस्व थे । कोई बच्चा किसी दूसरे का है यह तो मैंने कभी समझा ही नहीं, गरीव व श्रीमान का भेद मेरे छात्रों मेंः कभी नहीं रहा, लड़का प्रमाद करता तो मैं उसे बुलाकर हँसाता खिलाता को सजा देता । जिस लड़के को इतवा खिलाया जाता उसके रोने का कोई ठिकाना नहीं रहता, अन्य छात्रों की नजरों से वह
को छिपाता। इस का परिणाम यह हुआ कि मेरे छात्र व्यागम व नियमित संयमी जीवन बिता कर हृष्ट-पुष्ट व होशियार निकले हैं ।
में कुछ शान्ति स्थापित होने पर मैंने विद्यालय को बढ़ाने का काम हाथ में लिया । वर्धा व वक्षं से रामगढ़ कांग्रेस (बिहार) मे सम्मिलित होकर शिक्षाशास्त्रियों से इस विषय में विचार विमर्ष किया। काशी विद्यापीठ व काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवम् पुनश्च शान्तिनिकेतन गया। वहांने मेरे कृषि शिक्षा की व्यवस्था को एक निश्चित अच्छा स्वरूप देने को दृष्टि से विविद्यालय देखते २ लाहाबाद काँ कृषि महाविद्यालय जो अमेरिकन चलाते हैं देखा । आचार्य नरेद्र देव जी व पं० जवाहरलाल जी आदि लोगों ने एक अखिल भारतीय औद्योगिक सङ्घ स्थापित किया था उससे कुछ सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न किया व ऐसे किरपिसते व व्याड लागया । च्याइ आते ही इस जिले के अंग्रेज पुलिस सुपरिटेण्डेण्ट को तर गई। इसने मेरे व गांव के कुछ लोगों के विरुद्ध कुछ पुराने मुकदमे चलाना श्रारंभ कर दिया । पहिले ही हमारे व्याड के प्रथम आन्दोलन को कुछ साम्प्रदा यिका का स्वरूप सरकार ने व मुस्लिमलीग के लोगों ने देने का प्रयत्न किया था। अब लड़ने के लिये तो में तैयारथा व जेलखाना भो मेरे लिये कोई बड़ी बात नहीं थी, परन्तु साम्प्रदायिकता का प्रचार में होने देना नहीं चाहता था । अन्त में किसी कदर उन मुकदमों का गर्भ में ही पतन हुआ । वैसे तो कांग्रेस मिनिस्ट्री का काल छोड़ दिया जाय तो गत २० वर्षों में ऐसा एकभी बर्ष नहीं गया होगा कि उस वर्ष में सरकार
ने मेरे विरुद्ध मुकदमे न चलाये हो, ( हां जनता में से किसीने कभी भी मेरे विरुद्ध कोई मुकदमा नही चलाया ) ऐसे केसेस कुछ तो गर्भ
में ही गिर जाते, कुछमें सरकार द्वार जाती व कुछ मुकदमे अभी तक लटक ही रहे हैं, व सत्याग्रह या आन्दोलनों में हमें जेल हो जाती थी । इस प्रकार गुरुकुल को गरेमियों की छुट्टियों होगई, छात्र अपने घर चले गये, मैं विगाव, घर पर प्रचार करने जाने लगा, जहाँ भी जाता लोग भोजन समारोह करते, वडी बडी सभाएँ होती। मुझे कोई पैदल नहीं चलने देते थे, जो कार होती वहाँ कार नहीं तो. तांगा, गाडी ऋदि सवारियां गे से आगे तैयार रहती, लोग मुझ से प्रार्थना करते कि मैं उनमें आर्थिक सहायता लू । परन्तु
किसी से व्याड गुरुकुल के लिए भी चंदा को याचना नहीं की थी । मेरी गरीची चढ़ती ही जारही थीं, यहाँ तक कि गुरुकुल के वार्षिकोत्सव के दिन रातको मेरी झोपडी को आग लग कर जब मेरे बहुत से सामान के साथ मेरे दो कोट मी मम्मो भूत होगये, तो इसके पश्चात् ६ वर्ष तक अर्थात् सन् १६४६ तक मैं बिना कोट पहने ही रहा, मेरे लिए नये कोट नहीं बनवा सका था। गुरु का खर्च वडे अंशों में तो विद्यार्थियों से प्राप्त होने वाली गुरुदक्षिणा या मेरे परिभ्रम व पैसे से चल जाता था। मैंने कभी किसी धनवा कासरा खोजने का प्रयत्न नहीं किया ।
दूसरे वर्ष का गुरुकुल का कार्य प्रारंभ हुआ तो मेरे पास दूर दूर से विद्यार्थी आग्हुचे थे, इन लड़कों में श्रावे लडके तो लखपति सेटों के थे, मैने एक विदेश विभाग भी स्थापित कर लिया था। इस वर्ष ३ विद्याथी इस विभाग से हमारे खरचे से शिक्षा प्राप्त करने जापान मेजने थे । "विद्यार्थी चुनलिये गये थे व उनको जापानी भाषा आदि की निग भी दी
जा रही थी । जापानी पढ़ाने वाला अध्यापक न मिलने से मैं स्वयम्
जारानी पढ़ाया करता था, सरकार को जापान युद्ध में नेको शंका
शेरही थी तो भी मुझे व मेरे विद्यार्थियों के लिये जापान जाने को पास
पोर्ट देने का वचन सरकार दे चुकी थी.1. हमने पासपोर्ट का प्रयत्न
करना आरंभ कर दिया । जागन में रहने वाले हिन्दुस्थानियों से संबंध स्थापित किया, मैं मेरे छात्रों के जापान में नव निर्वाह की व्यवस्था उनके परिश्रम से करवाना चाहता था, तमाम जोड तोड़ में बैठा चुका था । जनता चंदा देने को उत्सुक थी, थोड़ा सा चंदा में स्वीकार भी कर लेना चाहता था। परंतु कुछ दिनों बाद सरकार ने हमें पासपोर्ट देने में अपनी असमर्थता प्रकट करदी। अब तक जितनी भी संस्थाएं इकने स्थापित की उनमें एक-दो छोटे मोटे अपवाद छोड़कर किसी से कभी चन्दा नहीं लिया केवल अपनी कमाई व उद्योग के बल पर ही सब संस्थाऐं चलाई।
साड में तथा आस पास में हमारे विरुद्ध अब प्रत्यक्ष तो कोई नहीं बोलता था परंतु गुंडो का दमन होजाने से ( व गुडे मुसलमान हो ये इसलिए ) इस भाग में सांप्रदायिकता की भावना कुछ प्रवल होचुकी थी। विद्यार्थियों पर भी इसका असर था, मैंने इस भावना को हटाने का प्रयत्न भी किया, मैं इस साम्प्रदायिकता के बातावरण में से गुरुकुल हटाकर अधिक एकांत में या अन्य सुभीताजनक स्थानपर लेजाना चाहता था, इसी बीन बरसात के कारण हमारी फ़ोडियों में पानी हो पानी भरगया। हम लोग कीं चाडपर पास बिछाकर उसपर बिस्तरे डालकर लेटते थे, हमारे पास न
तो खादें ही थी और न झोपड़ियों के ऊपर ड लनेके लिए टीन के चद्दर हो पे, लक्ष्मीकी श्रब कृपा थी, लक्ष्मी भी कृपा क्यों करें ? जब लक्ष्मी का हमारे पास कोई आदर सम्मान नहीं था, दो सप्ताह तक बरसात जोर से होती रही, काली मिट्टी की चिकनी जमीन थी, हम छोड़कर गांव में
आगये, तो भी बाहर निकलने ही एक डेढ फांट पैर कीचड़ में घंप जाते थे। मेरे पास ग्राने जाने वालों की और भी फजीहत होती थी, गुरुकुल गांव सेतो और गडबडी होगई, दिन चर्या,
विचारों में बाधा पड़ने लगी, मैंनें गुरुकुल व्याड से हटाकर दूर, एकांत में फौरन ही लेजाना निश्चिन किया, व्याङ के मेरे साथी गुरुकुल को अपने गांव का गौरव समझते थे, वे जैसे भी बने गुरुकुल को वहां रखने पर तुले हुए थे। हमारे यास में फूट पड़गई। यदि मैं गुरुकुल वहां से हटाने का प्रयत्न करता हूँ तो गुरुकुल के दो भाग होजावेंगे, विद्यर्थियों के अध्ययन का नुकसान होगा और फिर भी यहां का वातावरण शुद्ध बनाकर काम करने में समय लग जायेगा । इस विद्यालय की कीर्ति खूब फैल चुकी है, गुरुकुल जमा हुआ है, लखपतियों के लड़के थे, चाहे जितनी पूंजी इच्छा करते ही प्राप्त हो सकती थी । मैंने सोचा अच्छा मैं ही यहाँ से हटजाऊं । कई दिनों तक सोचते रह । । अपनी पत्नी को पर भेज दिया। मैंने सोचा चलो अब ऐसे एकांत में चलें जहां कोई अशुद्ध वातावरण नहीं होगा और इस इमारा अलग गांव बसा लेंगे। फिर भी छात्रों को साथ लेने का प्रयत्न करना चाहा परन्तु अन्त में मैं अकेला ही यहां से चलता बना।
( १व्ह }
मेरे पास एक कमीज, एक धोती व एक टोपी जो पहिने हुए था । इसके अलावा कोई वस्त्र या पैसा साथ नहीं लिया । संध्या समय निजाम राज्य के एक गांव में पहुँचा, नदी तैर कर मुझे जाना पंडा था, कपड़े गीले थे, गांवों के लोग मुझे जानते हो थे । उन्होंने मेरा स्वागत किया मैंने उनसे कुछ नहीं कहां वे मेरे लिये सवारी व नौकरों का इंतजाम मेरे साथ ही करके भेजना चाइये । परन्तु किसी से बिना कुछ कहे ही प्रातःकाल जल्दी उठकर वहां से चल दिया। सभी गांवों के लोग मुझे जानते थे । खेतों में से मूंगफली उखाकर खाते हुए व गांवों को टालते हुए, वनस्पति का वैज्ञानिक निरीक्षण चिना साहित्य के जो कुछ कर सकता था करता हुआ, हिंगोली नामक नंगर में गया। यहां के लोगों ने मेरा स्वागत किया, इस गांव में मेरे पास रहे हुए काकी और वे सब लखनति ] मैं किसी विद्या के यहां नहीं गया। मेरे एक मित्र की दूकान पर ठहर गया । मेरा स्वतंत्र रहने का बड़ा ही इंतजाम किया गया। नगर के बड़े २ लोग मुझ से श्राकर मिले । इस नगर में भारवायो -अगरवालों को बहुत सी दुकाने थी। इनमें आपस में बड़ा हो द्वोर था। इनके आपस में मुकदमे बाजी भी चलतो ये व भई २ को कटवाने पिटवाने के लिए मुसलमान नौकर भो रखे हुये थे । इनके हजारों रुपये गुडे व सरकार खा रही थी। इनके पसीभगडों को बड़ा नीट स्वरूप प्राप्त होगया था । हैदराबाद के राजा बहादूर पित्तियों की अगरवालों में बड़ी प्रतिष्ठा, वे भी इनकोसने का प्रयत्न
करके चले गये थे । और भी कई महानुभाव इन्हें समझा चुके थे । मैंने भी इनमें मेल जोल करवाने के लिए इनको समझाने का प्रयत्न किया परन्तु यह कत्र मानने वाले थे ? मैंने इनके आपस का शत्रुहूत्र मिटाने का निश्चय कर लिया । जब ये लोग किसी कदर नही मने i तो मैं दूसरे दिन प्रातःकाल उठकर के गोपालजी के मंदिर में जाकर बैठ गया व अनशन आरंभ कर दिया । मेरे इस उपवास की खबर गांव में फैल गई। मैंने कह दिया कि मैं अन्नग्रहण तमी करूंगा जब यहां की तमाम अग्रवाल जाति में आपस में मेल जोल व प्रेमभाव स्थापित हो जायेगा । अवाल लोग अधिक अकड गये ।
लेकिन ब्राम्हण व महेश्वरी व महाराष्ट्रीयन लोग मुझे मदत कर रहे थे । मेरे उपवाज के दूसरे दिन विद्यार्थी विद्यालयों को छोड़कर अग्रवालों एकी करो के नारे लगाते हुए जुलूम के रूप में फिरने लगे। उपवास का तीसरा दिन हुआ गांव के कई जाति के पंचों ने अग्रवाल पंचों को समझाने का प्रयत्न किया, अमवाल नौजवान घल तो मान गये परन्तु चूढे सजनों ने इनकार कर दिया । अब नगर के लोग श्रमवालों से सहयोग करने लगे । सारा धमवालों के विरूद्ध होगया । मेरे उपवास के चौथे दिन श्रमवालों का नगर में तिरस्कार होने लगा । उनके आपस में पंचायते होने लगी । रात व दिन विचारों ने पंचायती व विचार में ही व्यतीत किया । मेरे - उपवास का पांचवा दिन प्राय, दोनों पक्ष के अग्रवाल पंचों को लेकर शहर के प्रतिष्ठित लोग मेरे सामने मा उपस्थित हुए। अमवाल
लोगों ने मेरी सभी बातें मानली । एक दूसरे के खिलाफ न्यायान्तप में चलने वाले मुकदमे वापस ले लिये । एक पार्टी के लोग दूसरी पार्टी के घर जैने मैं ने कहा जाकर बिना बुलावे ही भोजन कर आये । बाद में मैंने उपवास छोड़ा। बाद में अग्रवालों का एक सहभोज हुवा । उसमें सवाल लोग एक साथ मिलकर बैठे व भोजन किया। इस प्रकार इनकी शत्रुत्व समाप्त हुआ। इन लोगों ने राजा लक्ष्मीनिवास को हैदराबाद से बुलवाकर एक वडा समारोह मेरे सम्मान में किया । मुझे मानपत्र भी भेट किया गया। यहां के अमवाल लोग व अन्य नगरवासी मुझे खूब चाहते थे। इन लोगो ने मुके थैलो भेट करना चाहा, इसके सिवा और इनके पास अधिक प्रिय था ही क्या ? मैंने थैली लेने से इनकार कर दिया, और एक दिन मैं हिंगोली नगर छोड़कर श्रागे पैदल भ्रमय को निकल पड़ा । मेरे पास मेरे जूने काफी अच्छे थे । उनको में संभालकर रखता था। एक जगह एक विद्यार्थी को नंगे पैर कांटो में जाते देख व जूते मैंने उसको वहां दे दिये और नंगे पैर ही पैदल भ्रमण प्रारंभ
कर दिया। इस प्रकार मेरे रहने के लिए व मेरे विद्या प्रचार व अन्य सेवा कार्य के लिए नवा नगर बसाने के लिए स्थान खोजते हुए फिरता रहा दो बार तो हैदराबाद रियासत को पूर्व से पश्चिम तक
पर पैदल ही फिरकर देखी। इस भ्रमण में स्थान २ पर ठहर कर नतियों का रूट प्रेशर अर्थात पोवे भूमि से जड़ों के द्वारा कितना पानी लेते हैं व Transperation अर्यात् पौधे धरने पानों में तथा |
0edc40ab2400b32e6aa8c00f784b7256dabb35ad1edd9593ddd98b2db6d1277b | pdf | मैकाइवर एव पेज के अनुसार, "समाजशास्त्री होने के नाते हमारी रुचि सामाजिक सम्बन्धों में है। केवल इन सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तन को ही सामाजिक परिवर्तन कहते हैं । "
जेन्सन के मत में, "सामाजिक परिवर्तन को लोगो के कार्य करने तथा विचार करने के तरीकों में होने वाले रुपान्तरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। "
वोटोमोर के अनुसार, सामाजिक परिवर्तन के अन्तर्गत उन परिवर्तनों को सम्मिलित किया जा सकता है जो सामाजिक संरचना, सामाजिक संस्थाओं अथवा उनके पारस्परिक सम्बन्धों में घटित होते हैं।
गिलिन एवं गिलिन के अनुसार, सामाजिक परिवर्तन जीवन को मानी हुई रोतिथो में परिवर्तन को कहते हैं। चाहे ये परिवर्तन भौगोलिक दशाओं में परिवर्तन से हुए हो या सास्कृतिक साधनो, जनसंख्या की रचना या विचारधारा के परिवर्तन से अथवा समूह के अन्दर ही आविष्कारों के फलस्वरूप हुए हो। "
गिन्सवर्ग के अनुसार, "सामाजिक परिवर्तन का अर्थ सामाजिक ढांचे में परिवर्तन से है अर्थात् समाज के आकार, इसके विभिन्न अगो अथवा इसके संगठन के प्रकारों को बनावट एवं सन्तुलन मे होने वाले परिवर्तनो को सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है।"
जोन्स के शब्दों में, "सामाजिक परिवर्तन वह शब्द है जो सामाजिक प्रक्रियाओं, सामाजिक प्रतिमानो, सामाजिक अन्तः क्रियाओं अथवा सामाजिक संगठन के किसी भाग में गठित होने वाले हेर-फेर या संशोधनों के लिए प्रयोग किया जाता है। "
मैरिल एवं एल्ड्रिन के अनुसार, "जब मानव-व्यवहार रूपान्तरण को प्रक्रिया में होता है तब हम उसी को दूसरे रूप में इस प्रकार कहते हैं कि सामाजिक परिवर्तन हो रहा है। " इस प्रकार इन्होंने मानव-क्रियाओं में होने वाले परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन
कहा है।
उपर्युक्त सभी परिभाषाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि सामाजिक परिवर्तन मे वे परिवर्तन सम्मिलित होते हैं जो मानवीय क्रियाओं, सामाजिक प्रक्रियाओं, व्यवहारों, संस्थाओं, प्रथाओं, प्रकार्यों अथवा सामाजिक ढाँचे अर्थात् सामाजिक संगठन और समाज के आकारों आदि में होते हैं। सामाजिक परिवर्तन में निम्नलिखित तथ्यों को लिया जा सकता है(1) सामाजिक परिवर्तन समाज को संरचना एवं उसके प्रकार्यों में परिवर्तन को
कहते हैं ।
(2) सामाजिक परिवर्तन व्यक्ति विशेष अथवा कुछ ही व्यक्तियों में आए परिवर्तन से नहीं माना जाता, बल्कि समाज के अधिकांश अथवा सभी व्यक्तियों द्वारा उसे जीवन-विधि व विश्वासों में स्वीकार किए जाने पर माना जाता है।
(4) सामाजिक परिवर्तन मानव के सामाजिक सम्बन्धो में परिवर्तन से सम्बन्धित है।
सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें
(Characteristics of Social Change) विभिन्न विद्वानों ने सामाजिक परिवर्तन की अनेक विशेषताएँ बताई हैं जो इसकी अवधारणा को और अधिक स्पष्ट करती हैं। ये विशेषताएँ अग्रलिखित हैं1. सामाजिक प्रकृति (Social nature) - सामाजिक परिवर्तन का सम्बन्ध सम्पूर्ण समाज में होने वाले परिवर्तन से होता है न कि व्यक्तिगत स्तर पर हुए परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन कहा जा सकता है। अर्थात् जब सम्पूर्ण समाज की इकाइयों; जैसे-जाति, वर्ग, समूह, समुदाय आदि के स्तर पर परिवर्तन आता है तभी उसे सामाजिक परिवर्तन की संज्ञा दी जाती है । किसी एक इकाई में होने वाले परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन नहीं कह सकते।
2. सार्वभौमिक प्रघटना ( Universal phenornenon) सामाजिक परिवर्तन सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक है। विश्व का कोई ऐसा समाज नहीं जहाँ परिवर्तन न हुआ हो। यद्यपि विभिन्न समाजों में परिवर्तन की गति एवं स्वरूप भिन्न हो सकता है क्योंकि कोई भी दो समाज एक जैसे नहीं होते हैं। उनके इतिहास, संस्कृति, प्रकृति आदि में इतनी भिन्नता होती है कि कोई एक-दूसरे का प्रतिरूप नहीं हो सकता, परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत सत्य है अतः समाज के स्तर पर यह सभी कालों में व सभी समाजों में किसी न किसी रूप में होता अवश्य है ।
3. स्वाभाविक एवं अवश्यम्भावी (Natural and inevitable)- परिवर्तन चूँकि प्रकृति का शाश्वत सत्य है, आवश्यक रूप से होता है अतः यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया कही जा सकती है। समाज भी स्वाभाविक रूप से परिवर्तित होता रहता है। प्रायः मानव स्वभाव परिवर्तन का विरोधी होता है लेकिन फिर भी परिवर्तन तो होता ही है क्योकि व्यक्ति की आवश्यकताएँ, इच्छाएँ, परिस्थितियाँ स्वाभाविक रूप से परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होती हैं। मानव अपनी बदलती परिस्थिति से समायोजन करने के लिए अनिवार्य रूप से परिवर्तन को स्वीकार कर लेता है। यह एक स्वाभाविक घटना है।
4. तुलनात्मक एवं असमान गति (Comparative and unequal speed) - सामाजिक परिवर्तन सभी समाजों में पाया जाता है किन्तु सभी समाजों में इसकी गति अलग-अलग होती है। ग्रामीण समाजों में परिवर्तन बड़ी मन्द गति से आता है। इसका कारण यह होता है कि वहाँ पर परिवर्तन लाने वाले कारक भिन्न प्रकार के होते हैं जबकि शहरी समाज में परिवर्तन तेज गति से आता है। इन दोनों स्थानों में आए परिवर्तन को तुलना द्वारा ही बताया जा सकता है कि किस स्थान पर कितना परिवर्तन आया उदाहरण के लिए आदिम समाजों को तुलना में शहरी समाज में सामाजिक परिवर्तन तीव्र गति से होता है। शहरी क्षेत्र में तकनीकी विकास आदिम क्षेत्र की तुलना में तीव्र गति से हो रहा है। यहाँ हम दोनों समाजों में हुए सामाजिक परिवर्तन की तुलना करके ही उनकी असमान गति का अनुमान लगा पा रहे हैं ।
5. जटिल प्रघटना (Complex phenomenon) - दो समाजो में हुए परिवर्तनों को तुलना के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक परिवर्तन हुआ है किन्तु कितना या किस
स्तर का ? इसकी माप-तोल सम्भव नहीं होती। उदाहरण के लिए आज के विचार, मूल्य, परम्पराएँ, रीतिरिवाज प्राचीन समय से भिन्नता लिए हुए हैं लेकिन कितना अन्तर है इसको मापा नहीं जा सकता क्योंकि परिवर्तन गुणात्मक रूप में होता है। अतः सामाजिक परिवर्तन की विशेषता यह है कि यह एक जटिल तथ्य है, सरलता से इसका रूप नहीं समझा जा सकता।
6 भविष्यवाणी असम्भव (Prediction is impossible) - परिवर्तन होता तो अवश्य है लेकिन वह किस दिशा में होगा' किस रूप में होगा ? किस स्थान पर होगा आदि स्पष्ट नहीं होता । उदाहरण के लिए तकनीकी विकास का प्रभाव सम्पूर्ण देश पर पड़ा है। रहन-सहन, भोजन-व्यवस्था, आवागमन, भौतिक सुख-सुविधा आदि अनेक क्षेत्र इससे प्रभावित हैं लेकिन व्यक्तियों के विचार, विश्वास, मूल्य किस सीमा तक इससे प्रभावित हैं और होगे इसकी भविष्यवाणी असम्भव नहीं तो दुष्कर कार्य अवश्य है । औद्योगीकरण और नगरीकरण ने संयुक्त परिवार, विवाह, जाति प्रथा आदि अनेक क्षेत्रों को प्रभावित किया है जिसके सम्पूर्ण प्रभाव के विषय मे निश्चित भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। केवल पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
विल्बर्ट मूर ने अपनी पुस्तक 'सोशियल चेन्ज' में सामाजिक परिवर्तन को निम्नलिखित विशेषताओं को बताया है -
(1) अनिवार्य नियम - सामाजिक परिवर्तन अनिवार्य नियम है अर्थात् सामाजिक संरचना के किसी-न-किसी अंश अथवा सम्पूर्ण अंश में परिवर्तन अवश्य होता है। सामाजिक पुनर्निर्माण की अवधि में यह सर्वाधिक तीव्र गति से होता है।
(2) आधुनिक समाजों में अधिक - आधुनिक समाजों में सामाजिक परिवर्तन अधिक होते हैं जिन्हे स्पष्टतया देखा भी जा सकता है। प्राचीन समाजो में परिवर्तन बहुत कम व अस्पष्ट होता था।
(3) भौतिक वस्तुओं में तीव्र- अभौतिक रूप (विचार मूल्य, परम्परा आदि) को तुलना में भौतिक वस्तुओं (मकान, औजार आदि) मे सामाजिक परिवर्तन की गति तीव्र होती है । यद्यपि परिवर्तन सभी क्षेत्रों में हो होता है।
(4) सामान्य गति व स्वाभाविक ढंग - जो सामाजिक परिवर्तन सामान्य गति एवं स्वाभाविक ढंग से होता है उसका प्रभाव सम्पूर्ण सामाजिक संरचना व विचारों पर अधिक पड़ता है।
(5) भविष्य वाणी कठिन- सामाजिक परिवर्तन के विषय में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती केवल अनुमान लगाया जा सकता है कि परिवर्तन किस रूप में होगा।
(6) गुणात्मक - सामाजिक परिवर्तन गुणात्मक होता है - इसमें एक स्थिति दूसरी स्थिति को परिवर्तित करती रहती है और इस प्रकार सम्पूर्ण समाज पर सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव हो जाता है।
(7) नियंत्रण सम्भव - सामाजिक परिवर्तन नियोजित ढंग से होता है - इच्छित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही इसे क्रियाशील बनाया जा सकता है व नियन्त्रित भी किया जा सकता है।
सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न प्रतिमान
(Various Patterns of Social Change )
सामाजिक परिवर्तन का स्वरूप भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। यह परिवर्तन निरन्तर होता रहता है तथा अनेक दिशाओं में होता है जिसके विषय में पूर्वानुमान लगाना भी कठिन होता है। मैकाइवर तथा पेज ने सामाजिक परिवर्तन के तीन प्रतिमान बताए हैं
प्रथम प्रतिमान-कभी-कभी परिवर्तन यकायक प्रकट हो जाते हैं और वे आगे और भी परिवर्तनो को उत्पन्न करते रहते हैं और ये परिवर्तन तब तक होते रहते हैं जब तक किसी नवीन परिवर्तन को जन्म नहीं दे देते - इस प्रकार के परिवर्तन को रेखीय परिवर्तन (Linear Change) कह सकते हैं। इस श्रेणी में आविष्कारों से उत्पन्न परिवर्तनों को लिया जा सकता है। रेडियो, टेलीफोन, वायुयान आदि के आविष्कारों के कारण उत्पन्न परिवर्तन तब तक होते रहते हैं जब तक कि किसी अच्छे एवं नवीन उपकरण का आविष्कार नहीं हो जाता। इस प्रकार के परिवर्तन एक ही दिशा या रेखा में होते हैं इसलिए इन्हें रेखीय परिवर्तन कहा जाता है। यह परिवर्तन का प्रथम प्रतिमान है। ये परिवर्तन मनुष्य के बौद्धिक विकास का परिणाम होते हैं और ये सामाजिक परिवर्तन को एक निश्चित पूर्व निर्धारित रूप में देखते हैं। प्रौद्योगिकी के परिवर्तन इसी प्रकार के उदाहरण हैं।
द्वितीय प्रतिमान - परिवर्तन का दूसरा प्रतिमान वह है जिसमें कुछ समय परिवर्तन प्रगति की ओर होता है फिर कुछ समय पश्चात् ह्रास की ओर हो जाता है अर्थात् परिवर्तन पहले ऊपर की ओर होता है फिर नीचे की ओर इसलिए इस परिवर्तन को उतार-चढ़ाव वाला परिवर्तन' कहा जा सकता है। 'जनसंख्या सम्बन्धी परिवर्तन एवं आर्थिक क्रियाओं के परिवर्तन' इसमे सम्मिलित हो सकते हैं। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में उन्नति व अवनति होती रहती है - अर्थात् इस प्रकार के परिवर्तन में यह निश्चित नहीं होता कि परिवर्तन की दिशा ऊर्ध्वगामी होगी या अधोगामी - एक निश्चित दिशा नहीं होती जबकि प्रथम प्रतिमान में परिवर्तन एक हो रेखा या दिशा में होता है।
तृतीय प्रतिमान - इस परिवर्तन को चक्रीय परिवर्तन कहा जा सकता है, क्योंकि विद्वानों के अनुसार परिवर्तन का एक चक्र चलता है। उदाहरण के लिए फैशन का रूप देखेंप्राचीन समय में महिलाएँ सीधा पल्ला लेकर साड़ी पहनती थीं - बाद में इसे घर-गृहस्थी वालो महिलाओं का प्रतीक माना गया क्योंकि पढ़ी-लिखी महिलाएँ या व्यावसायिक महिलाएँ उल्टा पल्ला लेकर साड़ी पहनने लगीं। आधुनिक समय में सीधा पल्ला लेना अत्याधुनिक महिलाओं का प्रतीक बन गया है--- जहाँ पार्टी आदि में महिलाएँ इस प्रकार की साड़ी पहिनकर जाती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार सर्दी-गर्मीबरसात का एक क्रम चलता रहता है या दिन-रात का चक्र चलता है वैसे ही इस प्रकार का परिवर्तन चक्र रूप में चलता रहता है । मानवीय क्रियाएँ राजनैतिक आन्दोलन, सामाजिक मूल्य, अलंकरण, सौन्दर्य प्रसाधन आदि के क्षेत्र में ऐसा ही प्रतिमान पाया जाता है - जिसमें एक के बाद दूसरा, तीसरा और पुनः वही चक्र दोहराया जाता है और पुनः वहीं लौटकर आ जाते हैं जहाँ से परिवर्तन का प्रारम्भ हुआ था। |
b6a77cdabd67e473fbc6090dd8b93564d9dcbb35 | web | आरिफ और सारस के साथ अखिलेश यादव (Image Source : Akhilesh Yadav Twitter)
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक सारस पक्षी और उसे पालने वाले शख्स का वीडियो जमकर वायरल हो रहा है. इस वीडियो में पक्षी और इंसान की दोस्ती लोगों को भी काफी पसंद आ रही है. लेकिन अब ये दोस्ती टूट गई है और वन विभाग की टीम ने सारस को समसपुर पक्षी विहार में शिफ्ट कर दिया.
भारतीय का संविधान देश के हर नागरिकों की तरह ही जानवरों को भी जीवन जीने की आजादी देता है. अगर कोई व्यक्ति जानवरों को मारने या प्रताड़ित करने की कोशिश करता है तो इसके लिए संविधान में कई तरह के दंड के प्रावधान हैं. इसके अलावा हमारे देश में कई जानवर ऐसे भी हैं जिसे मारने या प्रताड़ना पहुंचाने पर आपको जेल भी हो सकती है.
उत्तर प्रदेश की अमेठी के मंडखा गांव में रहने वाले आरिफ को उसकी ही खेत में लगभग एक साल पहले एक घायल सारस मिला था. जब आरीफ ने उस सारस को देखा तब उसके पैर में चोट लगी थी. घायल होने के कारण उसने उसे अपने घर ले जाकर सारस का इलाज किया. अब आरिफ काफी समय सारस के साथ गुजारता था उसे घर का बना खाना जैसे- दाल-चावल, सब्जी रोटी खिलाता था. इस तरह इन दोनों के बीच दोस्ती हुई और समय के साथ ये दोस्ती और भी गहरी होती चली गई.
सारस के ठीक हो जाने के बाद आरिफ और उनके परिवार वालों को लगा था कि वह पक्षी खुद ही उड़ जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आरिफ के अनुसार वह पक्षी दिन में उड़कर जंगल और खेतों में चला जाता था, लेकिन शाम होने पर वापस उनके घर आ जाता था. धीरे धीरे आरिफ का परिवार ही सारस का परिवार बन गया. जहां- जहां आरिफ जाते सारस उनके साथ साथ जाता है. वह उनके साथ ही भोजन करता. सारस आरिफ का दोस्त बन गया था.
इस दौरान आरिफ अपने यूट्यूब चैनल और अन्य सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर पर सारस के साथ अपनी कुछ वीडियो पोस्ट किया करते थे. इसमें से कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल भी हुआ.
वीडियो वायरल के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव आरिफ और उनके सारस से मिलने अमेठी पहुंचे. उन्होंने बी सोशल मीडिया पर सारस के साथ कुछ तस्वीरें पोस्ट की. जिसके बाद बीते 21 मार्च को वन विभाग ने आरिफ से सारस को अलग कर दिया और समसपुर पक्षी विहार ले गए. विन विभाग के अधिकारियों का तर्क है कि आरिफ उसकी अच्छे से देखभाल नहीं कर पाएंगे इसलिए सारस को अपने साथ ले जा रहे हैं.
हालांकि आरिफ की मुश्किले अभी और बढ़ सकती है क्योंकि उत्तर प्रदेश प्रभागीय वन अधिकारी गौरीगंज ने आरिफ को नोटिस जारी किया है. जिसके अनुसार आरिफ को दो अप्रैल को प्रभागीय वन अधिकारी कार्यालय में पहुंचकर बयान दर्ज कराना होगा. भेजे गए नोटिस में उन पर वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 2,9, 29,51 और 52 का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है.
सारस को समसपुर पक्षी विहार ले जाने के बाद अखिलेश यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, 'मैं जिससे भी मिलने जाता हूं सरकार उससे सब कुछ छीन लेती है. ' उन्होंने सारस के अलावा आज़म खान और कानपुर के सपा विधायक इरफान सोलंकी का भी उदाहरण दिया.
अखिलेश यादव ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा, 'सरकार अगर आरिफ से सारस छीन सकती है, तो उनसे भी मोर छीन लेना चाहिए जो मोर को दाना खिला रहे थे. लेकिन सरकार के पास वहां पहुंच जाने की. किसी अधिकारी की हिम्मत है कि वहां जाए और मोर को ले आए वहां से? यह सिर्फ़ इसलिए किया सरकार ने क्योंकि सारस से और सारस को पालने वाले आरिफ़ से मैं मिल कर आ गया. "
अखिलेश यादव ने आरिफ़ के बारे में कहा, "उन्होंने सारस के साथ दोस्ती दिखाई और उसकी सेवा की जिससे ये इनका मित्र बन गया. ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि कोई सारस किसी इंसान के साथ रहे और उसका व्यवहार बदल जाए. यह तो शोध का विषय है कि सारस इनके पास कैसे रुक गया. "
अखिलेश के अलावा कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी वन विभाग की कार्रवाई के खिलाफ और आरिफ के पक्ष में फ़ेसबुक पोस्ट किया है. प्रियंका कहती हैं, "अमेठी के रहने वाले आरिफ़ और एक सारस पक्षी की दोस्ती, जय-वीरू की तरह थी. साथ-साथ रहना, साथ खाना, साथ आना-जाना. उनकी दोस्ती इंसान की जीवों से दोस्ती की मिसाल है. आरिफ़ ने उनके प्रिय सारस को घर के सदस्य की तरह पाला, उसकी देखभाल की, उससे प्यार किया. ऐसा करके उन्होंने पशु-पक्षियों के प्रति इंसानी फ़र्ज़ की नज़ीर पेश की है जो कि काबिल-ए-तारीफ़ है. "
वन्य जीव संरक्षण कानून क्या है ?
भारत में बेजुबान जानवरों पर होने वाले किसी भी तरह के अत्याचार को रोकने के लिए भारत सरकार ने साल 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया था. इस कानून को लाने का मकसद वन्य जीवों के अवैध शिकार, मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना था. साल 2003 में इस कानून में संशोधन किया गया जिसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 रख दिया गया. इसमें दंड और और जुर्माना को और भी कठोर कर दिया गया है.
1. प्रिवेंशन ऑन क्रूशियल एनिमल एक्ट 1960की धारा 11(1) के अनुसार भारत में किसी भी पालतू जानवर की मौत उसे छोड़ने, प्रताड़ित करने, भूखा प्यासा रखने के होती है तो आपके खिलाफ केस दर्ज हो सकता है. ऐसी परिस्थिति में पालतू जानवर के मालिक पर जुर्माना हो सकता है. और अगर तीन महीने के अंदर दूसरी बार ऐसा ही होता है तो जानवर के मालिक पर जुर्माने के साथ 3 महीने तक की जेल भी हो सकती है.
2. आईपीसी की धारा 428 और 429 के किसी भी जानवर को जहर देकर या किसी और तरीके से जान से मारा गया या उसे कष्ट दिया तो दोषी तो दो साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है.
3. किसी भी जानवर, चाहे वह पालतू ही क्यों न हो उसे लंबे समय तक लोहे की सांकर या किसी भारी रस्सी से बांधकर रखना अपराध की श्रेणी में आता है. इसके अलावा अगर आप अपने पालतू जानवर को घर के बाहर नहीं निकालते तो यह भी कैद माना जाता है. ऐसी परिस्थिति में 3 माह की जेल और जुर्माना हो सकता है.
4. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 16 (सी) के अनुसार किसी भी जंगली पक्षियों या सरीसृपों को नुकसान पहुंचाना या उनके घोंसलों को नष्ट करना अपराध की श्रेणी में आता है. ऐसा करने पर व्यक्ति को 3 से 7 साल की जेल और 25,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है.
1. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में 66 धाराएं और 6 अनुसूचियां हैं. इन अनुसूचियों में पशु-पक्षियों की सभी प्रजातियों को संरक्षण प्रदान किया गया है.
2. अनुसूची-1 और 2 के तहत जंगली जानवरों और पक्षियों को सुरक्षा प्रदान की जाती है और इस नियम का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को सजा का प्रावधान दिया जाता है.
3. वहीं अनुसूची 3 और 4 भी जंगली जानवरों और पक्षियों को संरक्षण देते हैं लेकिन जिन जानवरों को रखा गया है उनके साथ किए गए अपराध पर सजा का प्रावधान काफी कम हैं.
4. अनुसूची 5 में उन जानवरों को रखा गया है जिसका शिकार किया जा सकता है. जबकि अनुसूची 6 में शामिल पौधों की खेती और रोपण पर रोक लगाई गई है.
भारत में जानवरों के खिलाफ कितनी बार गंभीर अपराध दर्ज किए जा चुके हैं?
कैग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2017-18 से 2020-21 के बीच 3 एशियाई शेरों और 73 हाथियों के साथ 63,000 से ज्यादा जानवरों की मौत रेलवे पटरियों पर टक्कर खाने से हुई है.
कैग ने रिपोर्ट 'परफॉर्मेंस ऑडिट ऑन डिरेलमेंट इन इंडियन रेलवे' में कहा है कि रेलवे को यह कन्फर्म करना चाहिए कि उन गाइडलाइंस का सख्ती से पालन हो रहा है जिन्हें जानवरों की मौत को रोकने के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय एवं रेल मंत्रालय ने जारी किया था. इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए दी गई सलाह ही इन आंकड़ों में कमी ला सकती है. कैग की रिपोर्ट के अनुसार इन 3 सालों में 73 हाथियों और चार शेरों सहित 63,345 जानवर ट्रेन की पटरियों पर आकर मौत के घाट उतर चुके हैं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में साल 2020 में हाथी और भालू के हमले से 137 लोगों की हुई है. जब 281 लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं. बीते दस सालों में इस राज्य में कम से कम 204 जंगली हाथी अलग-अलग कारणों से मारे गए. साल 2018 में ही 17 हाथी की मौत हुई, जिसमें 4 नर हाथी हैं. वहीं साल 2018 में 33 भालुओं की मौत हुई है. इसके अलावा एक सफेद शेर और तेन्दुआ की भी मौत प्रदेश के जंगलों में हुई.
|
190c36f1d92ff94b409957910b6fd2457dcc0939cf8f5c3afb58c46e50ba8a7e | pdf | प्रावधान के अनुसार विगत दो वर्षों में समिति की कितनी बैठकें आयोजित की गई? कौन-कौन उपस्थित रहे एवं क्याक्या प्रस्ताव रखे गये तथा क्या कार्यवाही की गयी? (ख) रेड क्रास समिति सबलगढ़ द्वारा किसी कर्मचारी की सेवा अवधि बढ़ाने का प्रावधान अनुसार नियम हैं। यदि हाँ, तो नियम की प्रति उपलब्ध करावें? प्रावधान अनुसार साधारण सभा की बैठक अथवा कार्य समिति की बैठक में सदस्यों के उपस्थित न होने पर बैठक निरस्त कर दी जाती है? यदि हाँ, तो कब-कब बैठक निरस्त की गई? (ग) क्या रेड क्रास समिति सबलगढ़ द्वारा किसी कर्मचारी जो कि सेवानिवृत्त हो चुका है, जिन्हें पेंशन भी मिलती है उन्हें रेड क्रास समिति से मानदेय देकर राशि का दुरूपयोग किया जा रहा है, क्योंकि प्रावधान अनुसार रेड क्रास की राशि गरीबों की मदद, आगजनी, विशेष बीमारी में व्यय की जाती है? (घ) क्या समिति सदस्यों को बिना सूचना दिये एवं सदस्यों द्वारा जिला रेड क्रास समिति में विरोध करने पर भी सेवानिवृत्त कर्मचारी की सेवा अवधि दो बार बढ़ा ली है? क्या पुनः रेडक्रास समिति की बैठक बुलाकर रेड क्रास की राशि का दुरूपयोग बचाने हेतु सेवानिवृत्त कर्मचारी की सेवा अवधि समाप्त की जायेगी?
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री (श्री रुस्तम सिंह ) : (क) रेडक्रास सोसायटी के गठन के प्रावधानों की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "अ" अनुसार है। संचालित रेडक्रास समिति सबलगढ़ के सदस्यों की सूची पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "ब" अनुसार है। प्रावधान अनुसार विगत दो वर्षों में समिति की 09 बैठकें आयोजित की गई। बैठक में उपस्थित सदस्यों एवं रखे गये प्रस्ताव की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "स" अनुसार है। (ख) रेडक्रास सोसायटी के सदस्यों द्वारा अवधि बढ़ाने का निर्णय लिया जाता है। प्रावधान अनुसार साधारण सभा की बैठक अथवा कार्य समिति की बैठक में सदस्यों की उपस्थिति आधे से कम होने पर बैठक निरस्त कर दी जाती है। सदस्यों के अभाव में कोई बैठक निरस्त नहीं की गई है । (ग) जी नहीं। (घ) जी नहीं। शेष प्रश्न
उपस्थित नहीं होता।
दोषी अधिकारी/कर्मचारियों के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही [लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण]
76. ( क्र. 1605 ) श्री अरूण भीमावद : क्या लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) प्रश्न क्रमांक 2797 दिनांक 01.03.2017 एवं प्रश्न क्रमांक 883 दिनांक 21 जुलाई 2017 के अन्तर्गत प्रश्नकर्ता के प्रश्नांश (क), (ख), (ग) एवं (घ) के अनुसार दोषी अधिकारी/कर्मचारी पर क्या कार्यवाही हुई है? (ख) क्या केवल स्टोर कीपर को ही निलम्बित किया गया है? शेष मुख्य चिकित्सा अधिकारी का स्थानांतरण बड़े जिले में किया गया है एवं एक अन्य कर्मचारी जिला शाजापुर में कार्यरत है? (ग) प्रश्नांश (ख) के अनुसार कार्या. कलेक्टर जिला शाजापुर के पत्र क्रमांक स्था.4-1/2017/77 शाजापुर, दिनांक 22.02.2017 के अनुसार स्वास्थ्य आयुक्त भोपाल को अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रस्तावित की गई है? (घ) क्या अनियमितता करने वाले अधिकारी / कर्मचारी पर कार्यवाही होगी? यदि हाँ, तो कब तक होगी?
लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री ( श्री रुस्तम सिंह ) : (क) जी हाँ । कलेक्टर, जिला शाजापुर के पत्र क्रमांक स्था. 4-1/2017/77 शाजापुर, दिनांक 22.02.2017 के अनुसार स्वास्थ्य विभाग, शाजापुर में पदस्थ अधिकारी/कर्मचारी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही हेतु संचालनालय को प्रस्ताव प्राप्त होने पर पत्र दिनांक 09.05.2017 द्वारा क्रमशः -1. अनुसुईया गवली तत्कालीन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी जिला शाजापुर वर्तमान में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी राजगढ़ 2. श्री कैलाश बाबू वर्मा निलंबित ड्रेसर 3. श्री एस. पी. जोशी, लेखापाल सह लेखा शाखा प्रभारी एवं 4. श्री अनिल वर्मा, सह स्टेशनरी क्रय प्रभारी के विरूद्ध आरोप पत्रादि आदि जारी कर संबंधितों से प्रतिवाद उत्तर चाहा गया। संबंधितों से प्रतिवाद उत्तर प्राप्त होने पर प्रस्तुत प्रतिवाद उत्तर परीक्षणोंपरान्त संतोषजनक नहीं पाये जाने पर संचालनालय के आदेश क्रमांक. 1834/दिनांक 16.11.2007 द्वारा उपरोक्त समस्त अधिकारी/कर्मचारी के विरूद्ध विभागीय जाँच संस्थित की गई। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता। (ख) जी हाँ। शाजापुर में पदस्थ अधिकारी/कर्मचारी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही हेतु संचालनालय को प्रस्ताव प्राप्त होने पर पत्र दिनांक 09.05.2017 द्वारा क्रमशः-1. अनुसुईया गवली तत्कालीन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी जिला शाजापुर वर्तमान में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी राजगढ़ 2. श्री कैलाश बाबू वर्मा निलंबित ड्रेसर 3. श्री एस. पी. जोशी, लेखापाल सह लेखा शाखा प्रभारी एवं 4. श्री अनिल वर्मा, केशियर क्रय प्रभारी के विरूद्ध आरोप पत्रादि आदि जारी कर संबंधितों से प्रतिवाद उत्तर चाहा गया। संबंधितों से प्रतिवाद उत्तर प्राप्त होने पर प्रस्तुत प्रतिवाद उत्तर परीक्षणोंपरान्त संतोषजनक नहीं पाये जाने पर संचालनालय के आदेश क्रमांक. 1834/दिनांक 16.11.2007 द्वारा उपरोक्त समस्त अधिकारी/कर्मचारी के विरूद्ध विभागीय जाँच संस्थित की गई।
(ग) हाँ । (घ) कार्यवाही प्रचलन में है। संचालनालय के आदेश क्रमांक. 1834 / दिनांक 16.11.2007 द्वारा उपरोक्त समस्त अधिकारी/कर्मचारी के विरूद्ध विभागीय जाँच संस्थित की गई।
हाई स्कूल का उन्नयन [स्कूल शिक्षा]
77. ( क्र. 1606 ) श्री अरूण भीमावद : क्या स्कूल शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) शाजापुर जिले के अन्तर्गत विकासखण्ड शाजापुर में स्थित हाई स्कूल सतगांव एवं हाई स्कूल साजोद से हायर सेकेण्ड्री स्कूल कितनी दूरी पर स्थित है? (ख) प्रश्नांश (क) के संदर्भ में शासकीय हाई स्कूल सतगांव एवं हाई स्कूल साजोद को हायर सेकेण्ड्री के रूप में उन्नयन किये जाने हेतु शासन स्तर पर कोई योजना है ?
स्कूल शिक्षा मंत्री ( कुँवर विजय शाह ) : (क) हाईस्कूल सतगांव से 8 कि.मी. की दूरी पर उ.मा.वि. ज्योतिनगर एवं हाईस्कूल साजोद से 21 कि.मी. की दूरी उ.मा.वि. ज्योति नगर पर हायर सेकण्डरी स्कूल स्थित है। (ख) शाला के उन्नयन हेतु नीति की जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। इसके अतिरिक्त वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता भी विचारणीय होती है।
परिशिष्ट - "तिरेपन"
हाईस्कूलों में प्राचार्य के पद [स्कूल शिक्षा]
78. ( क्र. 1607 ) श्री अरूण भीमावद : क्या स्कूल शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) प्रदेश में कितने हाई स्कूल विद्यालय हैं तथा कितने विद्यालयों में प्राचार्य के पद रिक्त हैं? रिक्त पदों पर पदोन्नति का क्या प्रावधान है? (ख) हाई स्कूल प्राचार्य के पद का वेतनमान क्या होता है? (ग) व्याख्याता एवं प्रधान अध्यापक (मा.वि.) की क्रमोन्नति के पश्चात् वेतनमान हाई स्कूल प्राचार्य के समकक्ष होता है? (घ) यदि हाँ, तो क्या व्याख्याता एवं प्रधानाध्यापक (मा.वि.) को हाई स्कूल प्राचार्य के पद पर पदोन्नति देने पर शासन को वित्तीय भार होगा?
स्कूल शिक्षा मंत्री ( कुँवर विजय शाह) : (क) प्रदेश में 3600 हाईस्कूल है। जिनमें से 1692 हाईस्कूलों में प्राचार्य के पद रिक्त है। वर्तमान प्रचलित भरती तथा पदोन्नति नियमों के अनुसार कुल स्वीकृत पदों के 50 प्रतिशत पद व्याख्याता संवर्ग से प्राचार्य हाईस्कूल के पद पर पदोन्नत किये जाने का प्रावधान है। (ख) प्राचार्य हाईस्कूल पद का वेतनमान 9300-34800/- + 4200/- ग्रेड पे है। (ग) जी हाँ। (घ) प्राचार्य हाईस्कूल के पद पर व्याख्याता संवर्ग की पदोन्नति का ही प्रावधान है। अतः शेषांश का प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
शिक्षकों, अध्यापकों को अतिशेष कर पदांकन
79. ( क्र. 1630 ) श्रीमती प्रतिभा सिंह : क्या स्कूल शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जबलपुर के शिक्षकों, अध्यापकों की अतिशेष सूची किन मापदण्डों के अनुसार तैयार की गयी? शासन के क्या नियम थे? क्या माध्यमिक विद्यालयों में विषयमान के अनुसार शिक्षकों को अतिशेष करना था ? जबलपुर जिले की प्राथमिक, माध्यमिक शालाओं के किन-किन शिक्षकों, अध्यापकों का कहाँ-कहाँ पदांकन किया गया है? नाम सहित शालावार जानकारी दें। (ख) जबलपुर जिले की किन-किन माध्यमिक शालाओं में एक ही विषय के एक से अधिक शिक्षक/अध्यापक पदस्थ हैं, उनमें से कौन शिक्षक/अध्यापक शाला में वरिष्ठ होने पर भी अतिशेष नहीं हुआ? नाम सहित शालावार बतायें? नियम विरूद्ध अतिशेष करने के लिए कौन दोषी है? (ग) क्या प्रदेश में अतिशेष शिक्षकों का विषयवार क्रम में हिन्दी भाषा को छटवें (6) क्रम में रखा गया है? यदि हाँ, तो क्यों?
स्कूल शिक्षा मंत्री (कुँवर विजय शाह) : (क) निर्देशों की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-1 अनुसार है। जी हाँ। जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-2 अनुसार है। (ख) माध्यमिक शालाओं जिनमें एक ही विषय के एक से अधिक शिक्षक/अध्यापक पदस्थ है की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र-3 अनुसार है। शेषांश जी नहीं, अतः शेषांश का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है। (ग) निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 19 के अंतर्गत कक्षा 6 से 8 तक की शिक्षा देने वाले स्कूलों में शिक्षकों की स्वीकृत पदस्थापना संरचना अनुसार कार्यवाही की गई है।
प्रयोग शालाओं में छात्रों का अभ्यास
80. ( क्र. 1631 ) श्रीमती प्रतिभा सिंह : क्या स्कूल शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) जबलपुर जिले के हाई स्कूल एवं हायर सेकेण्ड्री स्कूलों में प्रयोग शालाओं के उन्नयन प्रयोग शाला सामग्री के क्रय आदि हेतु कितनी-कितनी राशि स्कूलवार प्रदान की गयी? उक्त राशि से क्रय की गयी सामग्री से तैयार प्रयोग शालाओं में छात्रछात्राओं से प्रयोग कराये जा रहे हैं या नहीं? (ख) जिले के शासकीय हायर सेकेण्ड्री स्कूल बेलखेड़ा की प्रयोग शाला छात्र-छात्राओं के लिये क्यों नहीं खोली जाती है? छात्र-छात्राओं के हित में प्रयोग शाला का उन्नयन कर छात्रछात्राओं के लिये खोलने के निर्देश देंगे? यदि हाँ, तो कब तक?
स्कूल शिक्षा मंत्री ( कुँवर विजय शाह ) : (क) जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। जी हाँ। (ख) शास. हायर सेकेण्डरी स्कूल बेलखेड़ा की प्रयोगशाला छात्र-छात्राओं के लिये खोली जाती है। छात्र-छात्राओं के हित में प्रयोगशाला उन्नयन कर खोलने के निर्देश पूर्व से ही शालाओं को है।
व्यवसायिक पाठ्यक्रम में VTP की नियुक्ति
81. ( क्र. 1637 ) श्री बलवीर सिंह डण्डौतिया : क्या स्कूल शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत R.M.S.A. द्वारा जिन अभ्यर्थियों को वोकेशनल ट्रेनर पार्टनर के रूप में कक्षा 9 वीं से 12 वीं तक के स्कूलों में नियुक्त / पदस्थ / व्यवस्था के रूप में छात्रों को व्यवसायिक शिक्षा की पढ़ाई व उनके उज्जवल भविष्य के लिये रखा गया है तो उनकी नियुक्ति/व्यवस्था हेतु क्या नियम प्रक्रिया है, की जानकारी छायाप्रति सहित उपलब्ध करावें। (ख) मुरैना जिले में इस वर्ष कितने शिक्षकों को किन-किन स्कूलों में VTP के रूप में नियुक्त किया गया है, की जानकारी शिक्षक का नाम, पदस्थ स्कूल का नाम, पता सहित दी जावें।
स्कूल शिक्षा मंत्री (कुँवर विजय शाह) : (क) राष्ट्रीय कौशल विकास कॉर्पोरेशन नई दिल्ली से एमपेनल्ड वोकेशनल ट्रेनिंग पार्टनर (VTP) का चयन संबंधित VTP द्वारा किये गए तकनीकी प्रस्तुतीकरण के माध्यम से किया जाता है। चयनित VTPs के साथ अनुबंध किया जाता है। अनुबंध की शर्तों के अनुसार VTPS द्वारा पंडित सुन्दर लाल शर्मा केन्द्रीय व्यावसायिक शिक्षा संस्थान भोपाल द्वारा निर्धारित शैक्षणिक योग्यताधारी अभ्यार्थियों से आवेदन प्राप्त कर परीक्षा एवं साक्षात्कार के माध्यम से चयन किया जाता है। निर्धारित शैक्षणिक योग्यता की प्रति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "अ" अनुसार है । (ख) जिला मुरैना अंतर्गत वर्ष 2017-18 में 07 विद्यालयों में VTP के रूप में नियुक्ति की गई है। VTPs के अंतर्गत नियुक्त शिक्षकों की जानकारी शिक्षक का नाम, पदस्थ स्कूल का नाम, पता सहित विवरण सूची पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "ब" अनुसार है।
दोषी संविदा शिक्षक के विरूद्ध कार्यवाही
82. ( क्र. 1682 ) श्रीमती शीला त्यागी : क्या स्कूल शिक्षा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) मुख्य कार्यपालन अधिकारी जवा जिला रीवा को संयुक्त संचालक, लोक शिक्षण रीवा ने अपने पत्र क्रमांक/सतर्कता/2016/226 रीवा दिनांक 22.11.2016 से कृष्ण देव तिवारी संविदा सहायक, तत्कालीन प्रभारी प्रधानाध्यापक, प्राथ.पाठशाला तोमरनपुर्वा संकुल बरहुला के ऊपर शासकीय धनराशि का दुरूपयोग एवं संस्था में अध्ययनरत छात्रों से नियम विरूद्ध शुल्क लेने, रसोइया मानदेय न देने, शौचालय निर्माण की राशि बगैर कार्य के निकालने का दोषी मानते हुये संविदा समाप्त करने हेतु पत्र प्रेषित किया था? (ख) यदि प्रश्नांश (क) हाँ है तो दोषी संविदा शिक्षक के विरूद्ध राशि वसूली करते हुए संविदा समाप्त कर दी गई अथवा नहीं? यदि नहीं, तो क्यों? (ग) प्रश्नांश (क) के दोषी संविदा शिक्षक के विरूद्ध पुलिस प्रकरण दर्ज कराते हुए उक्त धन राशि की वसूली कब तक करा लेंगे? (घ) प्रश्नांश (क), (ख) एवं (ग) के संबंध में क्या प्राथ. पाठशाला तोमरनपुर्वा के प्रभारी पदस्थापना अवधि में उक्त संस्था का सम्पूर्ण रिकार्ड आज दिनांक तक प्रभार में नहीं दिया है। कब तक संस्था की कैशबुक एवं अन्य प्रभार वर्तमान प्रधानाध्यापक को दिला दिये जायेंगे?
स्कूल शिक्षा मंत्री ( कुँवर विजय शाह ) : (क) जी हाँ । (ख) संबंधित के विरूद्ध प्राप्त जाँच प्रतिवेदन दिनांक 16.11.2017 के परीक्षण उपरांत संबंधित को कारण बताओं सूचना पत्र दिनांक 20.11.17 जारी किया है। प्रतिवाद
|
e2c05dc26ae93f6c816ebedc167acd0d67835a211224dbe9bde29ec5bcb3fe07 | pdf | सुरुदित रत्नसंदीद प्रद
होता तो भूख प्याम श्रादिकको व्याधियों कैसे मुझे सताती ? यदि यह गरीर साथ न लगा होता तो ये सम्मान, अपमान, इष्टवियोग अनिष्ट सयोग प्रादिक कैसे लग जाते ? इस प्रमूर्त ज्ञानमात्र छात्मामे ये सम्मान प्रमान नहीं प्रायः करते । जब यह जीव शरीरपर दृष्टि दिए है में यह हू और इसने गुझे ऐसा कह डाला, यह भी कुछ नही समझता और ये मुके अनेक लोग देख रहे है, उनकी निगाहमे मेरा अपमान हो गया। ये सब वार्ते शरीरको निगाह करके स्टायी जा रही है, तो हम आपके सारे कष्टोका आधार यह शरीर बन रहा है। तब यह भावना बनायें कि शरीर हो न पाहिए। शरीर रहित मेरा शुभे स्वयका स्वरूप है, बस वही स्वरूप मेरा बने । मुझे यह शरीर न चाहिए । यह शरीर अलग हो और धागे कोई शरीर न मिले मेरी ऐसी वाया है। इसमे क्या नफा पाया जा रहा है ? नया शरीर मिला, जिन्दगीसे जिये, नाना कष्टोको पाया । फिर मरे, फिर नया जीवन पाया, फिर मरे, फिर नया जीवन पाया और उस जीवन से दुख पाया । यह धारा क्यो बने मेरे को । यह शरीर ही मेरा न रहे । शरीररहित केवल ज्ञानमात्र आत्मा रहूं, बस यह ही भीनरमे धून होनी चाहिए कि मुझको तो यही बनना है । सभी मनुष्य अपने अंतिम बनने की बात चित्तमे लाते है । तो हम प्रापमे यह हो बात आनी चाहिए कि मै शरीररहित केवल अपने स्वरूपमात्र रह जाऊँ, इसके अतिरिक्त मुझे अन्य कुछ न चाहिये । यह भावना हो तो जो होनेका है फल्याण के लिए वह सब सहज होता रहेगा । अपना कल्याण तो अपने स्वरूपकी सभाल मात्र है ।
दयितजनेन वियोग सयोगं खलजनेन जीवानां ।
मुखदुख च समस्त विधिरेव निरकुश कुरुते ॥३७०॥
( ८५ ) सांसारिक घटनाप्रोको दैवकृतता - इस लोकमे इष्ट जनोके साथ वियोग, अनिष्टजनोके साथ सयोग और सुख दुखकी प्राप्ति कराना आदिक सब बातें निर्भय रीतिसे प्रवर्ताने वाले देवकी कृपा है । दैव ही बिना किसी भयके इन सब बातोको करता है । यहाँ बाह्य घटनावोके साथ श्रात्मम्वरूपके असम्बन्धकी बात दर्शायी गई है। जितने ये सब बाह्य समागम घटनायें हो रही है ये सब औपाधिक हैं, नैमित्तिक हैं, ये आत्माके स्वभाव रूप नहीं है और ऐसा प्रवल निमित्त नैमित्तिक योग है यहाँ कि इस इस प्रकारसे कर्मविपाक होने पर इस इस पदार्थमे इस इस प्रकारकी घटना हो जाती है ।
(८६) कार्यकारणभावका दो पद्धतियोसे निरूपरगण - कार्य कारण भाव दो प्रकारसे - देखा जाता है । एक उपादानदृष्टि से भौर एक घटनादृष्टि से । उपादानदृष्टि से तो स्वयका स्वयंमे हो कार्यकारणभाव है। पूर्वावस्थासयुक्त स्वद्रव्य उपादान कारण है और प्रवर्तने वाली नई
गापा ३७०
अवस्था यह कार्य है । एक ही द्रव्य अपने में कारणपने और कार्यपनेको अनुभवता हुआ अनादि से अनन्तकाल तक निरन्तर वर्तता रहता है । घटनादृष्टि से यह बात घटती है कि जितने स्व भावानुरूप कार्य हैं वे पर उपाधिका सम्बध पाये बिना स्वय हो अपने आप बर्तते रहते हैं । हां कालद्रव्य एक साधारण निमित्त है अतएव उसकी कथनी विशिष्ट नहीं की जाती । वह तो निरन्तर है ही। पर विकार परिणमन जितने होते है अर्थात् स्वभाव के प्रतिकूल परिणमन वे समस्त परिणमन किसी बाह्य प्रसङ्गका सान्निध्य पाकर ही होते है, अन्य प्रकार नही हुआ करते । परिणमन सबका अपने आपमे है । यह तो है वस्तुको स्वतंत्रता । और विकार परिणमनसे भी वस्तुस्वातन्त्र्य को अपने स्वचतुष्टय के स्वातन्त्र्यको नही छोडता है । निमित्त सान्निध्यमे भी उपादान मात्र अपनी ही परिणतिसे परिणमा है, दूसरेकी परिणतिको लेकर नही परिणमता है, ऐसा ही नियोग है और इस ही प्रकार विकारका उत्पाद चलता है अर्थात् जब घटनादृष्टि से कार्य कारण भावका विचार करते हैं तो उन्हे कार्य कारण शब्दसे कहना या साध्य साधन शब्दसे कहना । साधन मायने कारण और साध्य मायने कार्य ।
( ८७ ) जतिके साध्य साधनको व्यवस्था - देखिये - साधन व साध्य उत्पत्ति और ज्ञप्ति दोनोमे होते है याने ज्ञप्तिसे भी साधन साध्य होता है, उत्पत्तिमे भी साधन साध्य होता है । जप्ति मायने जानकारी । जैसे ऊपर धुवाँ उठता हुआ देखा तो उस धुवेंका ज्ञान करनेसे यह ज्ञान कर लिया गया कि इस मकानमे या इस पर्वतसे झाग जल रही है । तो धुर्वांके ज्ञानसे अग्निका ज्ञान धुवाँके ज्ञानसे अग्निका ज्ञान होना ये ज्ञप्तिके साध्य साधन कहलाते है । जिसे दर्शनशास्त्रमे कहा है - "साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानम् ।" साधनसे साध्य का ज्ञान होना अनुमान है । तो ज्ञप्तिके साधनसे साध्यका ज्ञान होता है न कि उत्पाद हुआ है । ये जानकारीके साध्य साधन है। जब उत्पत्ति के साध्य साधनकी बात देखते है तो घटना दृष्टिमे उपादान निमित्त सभी प्रकारका परिचय किया जाता है । तो उत्पत्तिकी दृष्टिमे साधन है श्रग्नि और साध्य है धुव । धुर्वांसे श्रग्नि उत्पन्न नही होती, किन्तु अग्निसे धुवाँ उत्पन्न होता है । तब जानकारीमे तो धुवाँसे अग्निका ज्ञान चला, उत्पत्तिमे श्रग्निसे धुवाँको उत्पत्ति हुई है । तो उत्पत्ति और ज्ञप्तिमे साध्य साधन एकदम बदल गये । जो ज्ञप्तिमे साधन है वह उत्पत्तिमे साध्य है । जो ज्ञप्तिमे साध्य बना है वह उत्पत्तिमे साधन है ! अब इस तरहसे आत्माको निरखिये । श्रात्मामे विकारभावके जाननेसे कर्म प्रकृतिका उदय जाना जाता है । जैसे अग्नि पदार्थका प्रत्यक्ष नहीं है, परोक्ष है, तब ही तो धुवां जानकर अग्निका ज्ञान करना पड़ा है। ऐसे ही कर्मोदय परोक्ष है, प्रत्यक्ष नही है । स्पष्ट नहीं है और विकार प्रत्यक्ष है। यद्यपि विकार प्रमूर्तिक भाव है और कर्मविपाक मूर्तिक है तो विकारसे मोटी चीज है कर्म !
अमूर्तिक होने के कारण वे कर्म मूर्तिक तो हैं और ये विकार उन कर्मोंसे भी सूक्ष्म है, क्योंकि जीवविपरिणमन है, मगर खुदपर बीती हुई बात बात है इसलिए स्वसम्वेदन उनका बन जाता है, और स्वसम्वेदन होनेसे अपने आपके विकार को स्पष्ट प्रतिभात होते हैं पर कर्म विपाक ज्ञात नही होता । तो यहाँ साधनसे साध्यका शान किया गया है अर्थात् प्रात्माके रागद्वेषादिक विकारोको देखकर कर्मोदयका ज्ञान किया गया है । यहाँ कर्मोदय प्रवश्य था, अवश्य है क्योकि विकार भाव होने से । तो यह है शप्तिका साधन । जानकारीमै जीव विकार वना साधन और कर्मोदय बना साध्य । यह है जानकारीके विषयकी वात ।
(८८) उत्पत्तिके साध्य साधनको व्यवस्था - अब उत्पत्तिको श्रोरसे देखें तो उत्पत्तिसे पादानका परिचय होता, निमित्तका भी परिचय किया जाता । तो उत्पत्तिको ओरसे बात यह है कि कर्मोदयका सन्निधान होनेपर रागद्वेषादिक विकार जगा तो यहाँ कर्मोदय निमित्त कारण है, और विकार नैमित्तिक कार्य है । तो यहाँ विकार कार्य हो गया, कर्मोदय कारण हो गया । यह कार्यकारणभाव निमित्तनैमित्तिककी व्यवस्था है नही, उपादानको व्यवस्था वाला नही । उपादान व्यवस्थामे कार्मारण स्कंघ तो कारण है और कार्मारण स्कंघमे जो कर्मानुभाग उदित हुआ है वह उसका कार्य है । जीव यह प्रशुद्ध उपादान कारण है और जीवमे जो विकार उपयोग बनता है वह कार्य है । पर निमित्तनैमित्तिकदृष्टिसे यहा कर्मोदय निमित्त कारण है और यह विकार नैमित्तिक कार्य है । वहीं यह न कहा जा सकेगा कि विकारभाव होनेसे कर्मोदय हाजिर हुआ । यह सिद्धान्तके अत्यन्त विपरीत बात है, जानो जो बात जैसी है, वस्तुस्वातंत्र्य [सव जगह निरखो । उपादान उपादेय भाव सब जगह श्रमिट है । तो उत्पत्तिको जब बात कहने लगेगे तो यह ही कहा जायगा कि कर्मोदय निमित्त कारण है और विकार भाव नैमित्तिक कारण है । वहा कारण कर्मोदय रहा और कार्य विकार रहा, जब कि ज्ञप्तिके प्रसगमे साध्य रहा था कर्मोदय और साधन हुआ था विकार । श्रव समझना यह है कि उत्पत्ति और शप्तिमे साध्य साधनको व्यवस्था अपने अपने भिन्न भिन्न क्षेत्रको व्यवस्था है । श्रोर इसी कारण जब कबका प्रयोग यो होता है कि जब कर्मोदय होता है तव जीवमे विकार जगता है, यह निमित्त नैमित्तिक भाव उस ही समयका है । उस ही समयमे होनेपर भी निमित्त नैमित्तिकका विवरण यथार्थ किया जाता है, अटपट उल्टा नही । जैसे जब दीपक जलता है तब प्रकाश होता है। जब दीपक जलता है उसी समय प्रकाश होना एक क्रिया है, मगर जब दीपक जलता तब प्रकाश होता, यो तो बोला जाता है, पर यो नही कहा जाता कि जब प्रकाश हो जाता तब दीपक जलता । दोनो एक समयमे होकर भी निमित्त नैमित्तिक कार्य कारणकी व्यवस्था एक नियत व्यवस्था है । तो जब कर्मों |
a088fc06eb412852cc8e1cda783fe635b8cad78a | web | रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज विधानसभा में वित्तीय वर्ष 2021-22 के आय-व्ययक पर हुई सामान्य चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि कोरोना संक्रमण की चुनौतियों के बावजूद छत्तीसगढ़ का वित्तीय प्रबंधन राष्ट्रीय स्तर की तुलना में बेहतर स्थिति में है। अगले वर्ष हमारी आर्थिक स्थिति और भी बेहतर होगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर जीडीपी में 7. 7 प्रतिशत की कमी अनुमानित है, जबकि छत्तीसगढ़ में 1. 7 प्रतिशत कमी का अनुमान है। इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति आय में 5. 41 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जबकि छत्तीसगढ़ में मात्र 0. 14 प्रतिशत की कमी अनुमानित है। राजस्व प्राप्ति के ब्याज भुगतान के प्रतिशत में भी छत्तीसगढ़ बेहतर स्थिति में है। जहां केंद्र के स्तर पर ब्याज भुगतान राजस्व प्राप्तियों का 35 प्रतिशत है, वहीं छत्तीसगढ़ में यह अनुपात मात्र 8 प्रतिशत है। केंद्रीय बजट में अगले वर्ष लिया जाने वाला शुद्ध ऋण कुल बजट का 26 प्रतिशत है, जबकि छत्तीसगढ़ में यह 14 प्रतिशत है। केंद्रीय बजट 2021-22 में राजस्व प्राप्तियों में 11. 5 प्रतिशत की कमी अनुमानित है, जबकि छत्तीसगढ़ की राजस्व प्राप्तियां गत वर्ष के बराबर ही अनुमानित हैं। श्री भूपेश बघेल ने कहा- कोरोना आपदा के समय जब देश और दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट आई है, छत्तीसगढ़ में हमारे प्रयासों से इस वर्ष तुलनात्मक रूप से हम कम प्रभावित हुए हैं।
केंद्रीय बजट में वित्तीय घाटा जीडीपी का 9. 5 प्रतिशत और अगले वर्ष 6. 4 प्रतिशत अनुमानित है। छत्तीसगढ़ के बजट के पुनरीक्षित अनुमानों में यह इस वर्ष 6. 5 प्रतिशत और अगले वर्ष 4. 5 प्रतिशत अनुमानित है, जो केंद्र से इस वर्ष 03 और अगले वर्ष 02 प्रतिशत कम है। केंद्र का राजस्व घाटा इस वर्ष जीडीपी का 7. 5 प्रतिशत और अगले वर्ष 5. 1 प्रतिशत अनुमानित है, जबकि हमारा राजस्व घाटा इस वर्ष 3. 5 प्रतिशत और अगले वर्ष मात्र 01 प्रतिशत अनुमानित है। इस प्रकार राज्य का राजस्व घाटा भी केंद्र से इस वर्ष और अगले वर्ष 04 प्रतिशत कम है। इस वर्ष और अगले वर्ष में ये दोनों ही घाटे केंद्र से राज्य को मिलने वाले राजस्व में भारी कमी (12 हजार 132 करोड़) और जीएसटी क्षतिपूर्ति (3109 करोड़) अनुदान के बजाय ऋण के रूप में देने के कारण है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि यदि जीएसटी नहीं लगता तो हम वैट में राशि वसूल कर सकते थे। जीएसटी में वसूल किए गए करों का 50 प्रतिशत हिस्सा केंद्र को जाता है और 43 प्रतिशत राज्यों को देने का प्रावधान है। उत्पादक राज्य होने के कारण छत्तीसगढ़ को इसमें भारी घाटा उठाना पड़ रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने गरीब आदमी को अपने बजट के केंद्र में रखा है। हमने पिछली सरकार के सिस्टम को एलीट ओरिएंटेड से कॉमन मैन ओरिएंटेड कर दिया है। हम लोग तो डाउन टू अर्थ हैं। हमारी सरकार में छत्तीसगढ़ के 17 लाख 96 हजार किसानों का 8734 करोड़ 50 लाख रुपए का कर्ज माफ किया।
कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में भी छत्तीसगढ़ की स्थिति राष्ट्रीय स्तर से बेहतर है। देश में कृषि क्षेत्र में 3. 4 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, वहीं छत्तीसगढ़ में 4. 61 प्रतिशत की वृद्धि हुई, इसमें हम केंद्र से बेहतर स्थिति में हैं। उद्योग क्षेत्र में केंद्र सरकार माइनस 9. 6 प्रतिशत पर रही, जबकि छत्तीसगढ़ में इस कमी को हम माइनस 5. 28 प्रतिशत पर रोकने में सफल रहे। इसी तरह सेवा क्षेत्र में देश में माइनस 8. 8 प्रतिशत की गिरावट रही, जबकि छत्तीसगढ़ में सेवा क्षेत्र में 0. 75 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। श्री बघेल ने कहा कि वर्ष 2021-22 में केंद्र सरकार का डेब्ट जीएसडीपी रेश्यो 62. 22 प्रतिशत है, जबकि छत्तीसगढ़ के लिए ये अनुमान केवल 22. 29 प्रतिशत है। इसी प्रकार केंद्र का इन्टरेस्ट पेमेंट और रेवेन्यू रिसीप्ट का रेश्यो अनुमानित 45 प्रतिशत है, जबकि छत्तीसगढ के लिए ये रेश्यो 8. 16 प्रतिशत है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लगभग 18 हजार करोड़ रुपए की राशि नहीं दी गई, इस कारण ऋण लेना पड़ा। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2019-20 में 63 हजार 147 करोड़ रुपए का ऋण रहा जो सकल घरेलू उत्पाद का 18. 03 प्रतिशत है। जबकि वर्ष 2020-21 के लिए अब तक 72 हजार 12 करोड़ रुपए का ऋण लिया है, जो सकल घरेलू उत्पादन का 20. 5 प्रतिशत है।
श्री बघेल ने कहा कि विभिन्न विभागों को बजट आबंटन में किसी तरह की कमी नहीं की गई है। लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के बजट में पिछली सरकार ने वर्ष 2018-19 में 3445 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था, जबकि हमने वर्ष 2020-21 में 3998 करोड़ रुपए और वर्ष 2021-22 में 4088 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के बजट में वर्ष 2018-19 में 3358 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, जबकि वर्ष 2021-22 में 3592 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में आदिवासी आबादी 30 प्रतिशत है, लेकिन हमने वर्ष 2021-22 के बजट में अनुसूचित जनजाति क्षेत्र के लिए 34 प्रतिशत, अनुसूचित जाति हेतु 13 प्रतिशत और सामान्य क्षेत्र के लिए 53 प्रतिशत राशि का प्रावधान किया है। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र के लिए 38 प्रतिशत, सामान्य क्षेत्र में 23 प्रतिशत और आर्थिक क्षेत्र में 39 प्रतिशत बजट प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री ने केंद्र और राज्य सरकार के बजट की तुलना करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने कृषि के बजट में गत वर्ष की तुलना में लगभग 2. 03 प्रतिशत की वृद्धि की, जबकि छत्तीसगढ़ में कुल बजट का लगभग 09 प्रतिशत कृषि के लिए प्रावधानित किया गया, जो लगभग 9 हजार करोड़ रुपए है। इसी तरह केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य विभाग के बजट में गत वर्ष की तुलना में लगभग 7843 करोड़ रुपए की कटौती की, जबकि हमने गत वर्ष की तुलना में 100 करोड़ रुपए बढ़ाया है। केंद्र सरकार ने ग्रामीण विकास के बजट को 21 हजार 709 करोड़ रुपए कम कर दिया है, जबकि हमने अपने बजट का लगभग 09 प्रतिशत 8828 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।
श्री बघेल ने कहा कि समर्थन मूल्य पर धान बिक्री के लिए इस साल 21 लाख 52 हजार किसानों ने पंजीयन कराया, जिनमें से 95 प्रतिशत किसानों ने धान बेचा। उन्होंने कहा कि यह सरकार किसानों की सरकार है, हम किसानों के हित में काम करते रहेंगे। केंद्र सरकार के लगातार अड़ंगे के बावजूद राजीव गांधी किसान न्याय योजना में 5703 करोड़ रुपए का प्रावधान इस बार के बजट में किया गया है। श्री बघेल ने कहा कि पिछली सरकार में 60 से 70 लाख मीटरिक टन धान की खरीदी होती थी, और वे 24 लाख मीटरिक टन चावल एफसीआई को देते थे। हमने 92 लाख मीटरिक टन धान की खरीदी की है, हमें एफसीआई को 60 लाख मीटरिक टन चावल देने की अनुमति केंद्र द्वारा मिलनी चाहिए। मुख्यमंत्री ने बारदानों की कमी के संबंध में कहा कि राज्य सरकार रायगढ़ की जूट मिल को प्रारंभ करने के लिए प्रयासरत है। छत्तीसगढ़ में यदि कोई जूट मिल लगाना चाहता है, तो उनका स्वागत है। औद्योगिक क्षेत्र में पूंजी निवेश के संबंध में उन्होंने कहा कि पिछले सरकार ने 93 हजार करोड़ रुपए के एमओयू किए थे, लेकिन वास्तविक निवेश मात्र 02 हजार करोड़ रुपए का हुआ। हमारी नयी औद्योगिक नीति के कारण 154 एमओयू हुए, जिनमें 56 हजार करोड़ रुपए का पूंजीनिवेश संभावित है। उन्होंने कहा कि देश में पहली बार चिडफंड कंपनियों से 16 हजार निवेशकों के पैसे वापस दिलवाए गए।
वनअधिकार मान्यता पत्रों के वितरण के संबंध में उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने 12 साल में 3. 87 लाख पट्टे वितरित किए थे। हमने निरस्त किए गए पट्टों का पुनर्परीक्षण किया। व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार मान्यता पत्र के माध्यम से 46 लाख एकड़ वन भूमि पर अधिकार दिलाया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि वनोपज की खरीदी में छ्त्तीसगढ़ पूरे देश में अग्रणी राज्य है। कोरोना काल में देश में खरीदी गई वनोपजों का 99 प्रतिशत छत्तीसगढ़ में खरीदा गया। वर्तमान स्थिति में भी छत्तीसगढ़ की देश के कुल संग्रहित लघु वनोपजों में भागीदारी 72. 5 प्रतिशत बनी हुई है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने तेंदूपत्ता संग्रहण पारिश्रमिक दर ढाई हजार रुपए प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 4000 रुपए प्रति मानक बोरा कर दी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के कारण कुपोषण में 25. 9 प्रतिशत कमी आई है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार हमारी प्राथमिकता है। साथ ही चाहे सड़क-पुल-पुलिया की बात हो, या प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की बात हो, इनके निर्माण में कमी नहीं आने दी गई है। उन्होंने कहा कि रेत के अवैध उत्खनन और अवैध परिवहन पर राज्य सरकार द्वारा तत्परता से कार्यवाही की जा रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि शराब बंदी की नीति विभिन्न राज्यों की नीतियों का अध्ययन कर सबकी सहमति से बनाई जाएगी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2020-21 में शराब से प्राप्त राजस्व में पिछले साल की तुलना में 17 प्रतिशत और खपत में 38. 4 प्रतिशत की कमी हुई है। उन्होंने कहा कि गोधन न्याय योजना के माध्यम से राज्य सरकार ने खेती में सुधार, गौ माता की सेवा और लोगों को रोजगार दिलाने की व्यवस्था करने की पहल की है। उन्होंने कहा कि 200 से ज्यादा गोठान आत्मनिर्भर बन चुके है, हमारा लक्ष्य सभी गोठानों को स्वावलंबी बनाने का है। गोठानों में 63 हजार वर्मी-टांके भरे हुए हैं, प्रति टांका लगभग 15 क्विंटल के मान से वर्मी कंपोस्ट तैयार होने का अनुमान है।
|
71046e087f7b7bf75ea2a54cc6eca8405226db28 | web | नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी 'गुड' गवर्नेंस नीति की खुद ही बलाईयां लेते नहीं थकते। पर देश के बेहतरीन दिमाग़ों के लिए जानी जाने वाली आईएएस बिरादरी के लिए चुने जाने वाले पूर्व आईएएस कनन गोपीनाथन ऐसा नहीं मानते। वो कहते हैं कि "मुझे नहीं लगता कि इस सरकार के पास सोचने की क्षमता है। इलेक्शन जीतने की है, पर सरकार चलाने की न नाॅलेज है न कैपिसिटी है।" कनन जंतर-मंतर पर यूथ इंडिया के सीएए, एनआरसी, एनपीआर के विरोध में निकाले गए "पीस एंड जस्टिस" मार्च में हिस्सा लेने आए थे। कनन गोपीनाथन वही आईएएस अफसर हैं जो भारत सरकार के कश्मीर में धारा 370 हटाने और वहां के लोगों के मूल अधिकारों को छीनने के विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं।
बता दें कि यंग इंडिया के आह्वान पर 3 मार्च को सीएए, एनआरसी, एनपीआर के खि़लाफ़ और दिल्ली में मुसलमानों के साथ सत्ता की सरपरस्ती में पुलिस की देख-रेख में जो हिंसा को अंजाम दिया गया है उसके विरोध में रामलीला मैदान में देश भर से आए नौजवान पहुंचे तो दिल्ली पुलिस ने जगह-जगह धरपकड़ शुरू कर दी। हालांकि पहले से इस कार्यक्रम की परमिशन आयोजकों द्वारा ले ली गई थी। पर ऐन वक़्त पर बताया गया कि उनकी अनुमति ख़ारिज कर दी गई। इसके साथ ही उनको जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने से भी मना कर दिया गया। बावजूद इसके युवाओं ने जबरन जंतर-मंतर पर सभा की।
सभा को संबोधित करते हुए सीपीआई (एमएल) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने मंच से ऐलान किया कि हमें एनआरसी पूरे देश में कहीं भी नहीं चाहिये। बिहार की नीतिश-बीजेपी सरकार की आंदोलन के दबाव में बदली बोली पर उन्होनें कहा कि अभी हमने देखा कि बिहार विधान सभा में हमारे विधायकों ने जब बिहार विधानसभा से प्रस्ताव पारित करने की मांग उठाई तो नितीश जी ने बीच का रास्ता निकाला और उन्होंने भी कह दिया कि बिहार को एनआरसी नहीं चाहिये। और हमने देखा कि भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने भी हां कर दिया। भारतीय जनता पार्टी के लोग जो जगह-जगह एनआरसी-एनआरसी कर रहे हैं आज वो बिहार विधान सभा में इस आंदोलन के बढ़ते दबाव के आगे कह रहे हैं कि बिहार को एनआरसी नहीं चाहिये। बिहार को अगर नहीं चाहिये तो बंगाल को क्यों चाहिये? बिहार-बंगाल को नहीं चाहिये तो पूरे हिंदुस्तान को एनआरसी नहीं चाहिये। और इसीलिए हम किसी एक राज्य की बात करने नहीं आए हैं। एनआरसी को पूरी तरह से वापस करो।
ये कह रहे हैं कि एनआरसी अभी नहीं लागू होगा। इसका मतलब क्या है\ अभी तक कोई योजना नहीं बनी है। इसका मतलब क्या\ इसका मतलब है कि ये अपने हिसाब से समय चुनकर एनआरसी हमारे ऊपर थोपना चाहते हैं। हम ये एलान करने आए हैं कि अभी नहीं और कभी भी नहीं। इस देश में हमें एनआरसी मंजूर नहीं है। हम कतई इसे लागू नहीं होने देंगे। एनपीआर एनआरसी का ही दूसरा नाम है।
माले के दिल्ली सचिव रवि राय ने बताया कि दिल्ली पुलिस नहीं बल्कि पूरी दिल्ली की पुलिस ने मिलकर आज होम मिनिस्ट्री के इशारे पर यंग इंडिया के मार्च पर हमला किया। रामलीला मैदान से सैकड़ों युवाओं को गिरफ्तार किया गया। यूपी से निकलने वाली 20 से ज्यादा बसों को रोक दिया गया। इनके बस ड्राइवरों तक को गिरफ्तार किया गया। इंद्रलोक से आने वाली महिला प्रदर्शनकारियों के साथ मारपीट की गई और स्टेडियम में डिटेन कर के रखा गया। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तक से युवाओं को डिटेन किया गया। विश्वविद्यालय मेट्रो का गेट बंद कर दिया गया। दिल्ली के हर हिस्से से जहां से भी मार्च के लिए लोग निकल रहे थे वहां पुलिस ने रोकने की कोशिश की। इतनी मुस्तैदी दिल्ली में साम्प्रदायिक हिंसा के समय पुलिस ने नहीं दिखाई। लेकिन आज जब यंग इंडिया सड़क पर उतर कर इसके लिए जिम्मेदार अमित शाह का इस्तीफा मांगने निकली तो गजब मुस्तैदी दिखाई। अभी 4 दिन पहले इस हिंसा के एक और मास्टर माइंड कपिल मिश्रा को गोली मारो मार्का शांति रैली की इजाज़त दी गयी लेकिन आज युवाओं को अमन और न्याय के लिये मार्च करने से रोकने की हर संभव कोशिश की गई।
लेकिन इनके हर दमन से लड़ते हुए हजारों नौजवान जन्तर मन्तर पहुंचे और अमित शाह के इस्तीफे की मांग की।
यंग इंडिया से जुड़ीं दिल्ली यूनिवर्सिटी से पाॅलिटिकल सांइस में एमए कर रही दामिनी ने बताया कि यंग इंडिया सीएए, एनआरसी, एनपीआर के विरोध में एक मंच का गठन किया गया था जिसमें देश भर से बहुत से छात्र संगठन जुडे़ हैं। लाॅयर्स एसोसिएशन्स हैं। डाॅक्टर्स एसोसिएशन हैं। ट्रेड यूनियन हैं। किसान भी हिस्सा ले रहे हैं। और टीचर्स एसोसिएशन भी हैं। पुलिस ने रामलीला मैदान से हमें हटा दिया। पर फिर भी यहां जंतर-मंतर पर लोग इकट्ठा हुए हैं। क्योंकि हम दिल्ली में ये दंगा नहीं बर्दाश्त कर सकते। अपने हिंदू-मुस्लिम भाई-बहनों और दोस्तों पर ये जुल्म बर्दाश्त नहीं करेंगे।
आॅल इंडिया प्रोग्रेसिव वूमेन एसोसिएशन (एपवा) की सचिव कविता कृष्णन ने भी विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। सरकार के जन विरोधी रवैये पर कविता कहती हैं कि "दिल्ली पुलिस जंतर-मतंर पर आने वाले हर शख़्स का वीडियो ले रही है। कैमरा लगा है यहां। हर व्यक्ति से पूछ रही है आप कहां, किस प्रदर्शन में जा रहे हो? मैं ये पूछना चाहती हूं कि दिल्ली में जहां दंगे हो रहे थे, हत्याएं हो रही थीं, आगजनी हो रही थी वहां आपने जगह-जगह कैमरे तोड़ दिए। ताकि पहचान न हो पाए कि कौन लोग गुनहगार हैं। दंगाईयों को बचाने के लिए दिल्ली पुलिस ने वहां काम किया। दिल्ली पुलिस ने घायल लोगों को लात मारी है और उन्हें अस्पताल पहुंचने से रोका है।
यहां शांति के लिए जो लोग जुट रहे हैं। बिल्कुल निहत्थे, शांति के लिए सिर्फ़ अपनी आवाज़ लेकर संविधान, लोकतंत्र की रक्षा के लिए जुट रहे हैं, सरकार से सवाल करने जुट रहे हैं। उनके वीडियो बना रहे हैं, पहचान कर रहे हैं। कह रहे हैं कि आपमें से एक-एक को हम याद रखेंगे।
सरकार से सवाल करना लोकतंत्र की परिभाषा है। सरकार से सीएए, एनपीआर,एनआरसी को लेकर सवाल करना लोकतंत्र की परिभाषा है। ये सरकार की तरफ से दिया जाने वाला कोई तोहफ़ा नहीं है जो फ्री में दिया जा रहा है। ये हमारा संवैधानिक अधिकार है।
अमितशाह जिनकी दिल्ली पुलिस है उनकी क्या मंशा है इससे बिल्कुल साफ पता चल रही है। आप सोचते हैं कि उनको सिर्फ कैरियर चाहिये। बढ़िया से बढ़िया देश की सेवा करने के लिए आईएएस जैसे पद कनन गोपीनाथन जैसे लोगों ने छोड़े हैं। जब उनको लगा कि देश की सेवा और सरकार की सेवा में फर्क़ है। ऐसी सरकार की सेवा मैं नहीं करूंगा जो कश्मीर को बंदी बना रहे हैं और पूरे देश में फासीवादी कानून को लागू कर रहे हैं। इसलिए वो देश की सेवा में उतर गए हैं। ये हैं युवाओं की स्प्रिट। यंग इंडिया देश को बचाने का काम करेगा। हिंदू-मुस्लिम, सिख हैं जो देश को बचा रहे हैं। इन लोगों में अभी भी भारत जिंदा है। भगत सिंह का भारत ज़िन्दा है। अंबेडकर का भारत ज़िन्दा है। फातिमा का भारत ज़िन्दा है।
उमर ख़ालिद ने कहा कि 17 फरवरी को मेरा महाराष्ट्र में दिया एक भाषण जिसके लिए मुझे दोषी बनाया जा रहा है। जो मैंने वहां बोला वो बात आज यहां फिर से दोहराने में मुझे कोई गुरेज़ नहीं है। मैंने बोला था कि जब डोनाल्ड ट्रंप भारत आएंगे तो हम ये बताएंगे कि भारत के अंदर महात्मा गांधी के उसूलों की धज्ज्यिां उड़ाई जा रही हैं। मैं फिर से बोलता हूं आज हमारे देश के अंदर जब गोली मारो चिल्ला-चिल्लाकर बोलते हैं तब इस दिल्ली में जिस दिल्ली में महात्मा गांधी ने अपना आखि़री उपवास हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए रखा, जब उस दिल्ली को जलाया जा रहा है मैं फिर से बोलता हूं इस देश की सरकार महात्मा गांधी के उसूलों की धज्जियां उड़ा रही है।
सरकार देश को बांटने का काम करेगी तो हम महात्मा गांधी के उसूलों को बचाने का और इस देश को जोड़ने का काम करेंगे। हम सड़कों पर संविधान को बचाने आते हैं। संविधान का दायरा वो पार करते हैं जो खुलेआम गोली मारो चिल्ला रहे हैं। हिम्मत है ज़ी न्यूज़, टाइम्स नाॅउ में तो चलाओ अनुराग ठाकुर पर एक दिन प्राइम टाइम। कपिल मिश्रा पर प्राइम टाइम।
यंग इंडिया के मंच से भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने दिल्ली दंगों के लिए सरकार पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि "जो भी दंगा हुआ दिल्ली में 23 तारीख़ को कपिल मिश्रा के भाषण के बाद हुआ। वो बड़े-बड़े भाषण दे रहा था। डीसीपी बराबर में खड़े थे। इतने हथियार और पत्थर सब हमने देखे। कैसे पहुंचे ? ये सब सरकार ने किया है। राज्य प्रायोजित दंगा है ये। सरकार रोक सकती थी। गृह मंत्री रोक सकते थे। रोका क्यों नहीं? क्योंकि आम लोग मरे। इससे उनकी राजनीति चमकेगी।
कनन गोपीनाथन ने मीडिया के सवालों के जवाब देते हुए उन महत्वपूर्ण बिंदुओं को चिन्हित किया जो देश में नफ़रत को पालने-पोसने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू-मुसलमानों को एक-दूसरे से दूर नहीं पास रहकर नफ़रत की राजनीति को हराना होगा।
सवालः दिल्ली में दंगे पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार की आलोचना हो रही है। इसको आप किस नज़रिये से देखते हैं?
कनन गोपीनाथनः भारत का विश्व स्तर पर एक डेमोक्रेटिक-प्रोग्रेसिव, सोशल सोसाइटी होने की कैपिटल थी। जिस वक़्त सभी देश बोलते थे कि ये देश आगे नहीं जाएगा तब भी हम एक लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ते रहे। आज हर जगह आप देखेंगे हमारे मंत्री, फाॅरेन सेक्रेटरी यही कह रहे हैं कि एनआरसी से बांग्लादेश में असर नहीं पड़ेगा। मलेशिया सवाल पूछेगा तो हम उसका पाम आॅयल नहीं लेंगे। अभी इंडोनेशिया, ईरान, टर्की, इंग्लैंड ने भी सवाल उठाया। यूएन के सेक्रेटरी जनरल, एक्टिविस्ट लगातार बोल रहे हैं। आज की लड़ाई में सारा विश्वास जो हमने विदेश में पाया है आज के आज ख़त्म करना चाहते हैं।
कल के लिए कुछ रहे ना। वो समझ नहीं पा रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि इस सरकार के पास सोचने की क्षमता है। इलेक्शन जीतने की है, पर सरकार चलाने की न नाॅलेज है न कैपिसिटी है। सिर्फ इसी बात पर नहीं, आप अर्थव्यवस्था देख लीजिये, रोज़गार, फाॅरन पाॅलिसी देख लीजिये। इंटरनल हारमनी देख लीजिये। हर एक चीज़ में गवर्नेंस कैसे होना है इसका कोई आईडिया नहीं है, कैपिसिटी नहीं है।
सवालः क्या ब्यूरोक्रेसी पर दबाव बनाया जा रहा है?
कनन गोपीनाथनः अभी ब्यूरोक्रेसी को साइन करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि आपने उन्हें रिक्रूट किया है दिमाग़ चलाने के लिए। और आप चाहते हैं कि हम जो बोल रहे हैं वो बस वही करते रहें। उन्हें अपना दिमाग़ इस्तेमाल नहीं करने देने के चलते ही आप ऐसी बेवकूफ़ियां कर रहे हैं।
सवालः दिल्ली में मुसलमानों के घर चुन-चुनकर जलाए गए हैं। ग़रीब से ग़रीब को भी नहीं बक्शा गया है। मुसलमानों का कहना है कि 370 की वजह से हमें अगल माना जाता था अब तो वो भी हटा दिया फिर हमारे साथ ये सलूक क्यों?
कनन गोपीनाथनः कहीं न कहीं एक दूसरे के ऊपर शक़ को बढ़ाते गए और उस शक़ में जिस तरीके़ से भी नफ़रत डाली जा सकती है उसे डालकर वोट की राजनीति खेलते गए। इसीलिए आज हम यहां पर हैं। इसे हमें मानना पड़ेगा और दोबारा विश्वास बहाली के लिए फिर से काम शुरु करना पड़ेगा। हम एक-दूसरे को मिलें तो शक़ की नहीं प्यार की नज़र से देखें। हम इस देश के नागरिक हैं सभी। ऐसे शुरु करके आगे बढ़ना पड़ेगा। जैसे हिंदू ख़तरे में है एक तरह का नरेटिव खड़ा किया गया इसके कारण एक परसीक्यूशन मोड क्रिएट किया गया। इस लेवल तक नफ़रत भर दी है लगातार। उसी के बल पर आज सरकार भी बनी हुई है। मैं समझता हूं इसको रोकना ज़रूरी है। मीडिया के नाते, जनता-नागरिक के नाते हमें ये मेहनत करना ज़रूरी है।
सवालः दिल्ली में जो हुआ वो कपिल मिश्रा से शुरु नहीं हुआ। इसकी तैयारी पहले से थी। ये फिर से ना हो इसके लिए आप क्या सोच रहे हैं? लग रहा है ये यहीं रुकने वाला नहीं है।
कनन गोपीनाथनः मैं ये समझता हूं कि हमें एक-दूसरे के साथ ज़्यादा मिलना जुलना होगा। जिसे हम एवायड कर रहे हैं। वो चाहते हैं कि घेटोइज़ हो जाएं। मुसलमान एक जगह रहें। हिंदू एक जगह रहें। फिर उसमें भी आपस में बांटे। एक जाति एक जगह दूसरी जाति दूसरी जगह। इस तरह की घेटोइज़्म जब हो जाए तो एक दूसरे के लिए शक़-नफ़रत फैलाना बहुत आसान है। तो साथ में रहकर जब दंगा हो जाता है तो इसलिए अलग-अलग रहने लगते हैं। बहुत लंबा वक़्त लगेगा। एक दिन में नहीं होगा। हमें मेहनत करनी होगी। हम सबको मेहनत करनी होगी ताकि ये नफ़रत समाज से निकल जाए।
(जनचौक दिल्ली की हेड वीना की रिपोर्ट।)
|
ff7db4ba45f4b5f7ee465559a43b12e99db870e9 | web | पोर्टेबल एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम PPZR Piorun (पोलैंड)
2019 में, एक होनहार स्व-विकसित PPZR Piorun पोर्टेबल एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम ने पोलिश सेना के साथ सेवा में प्रवेश किया। यह मौजूदा सीरियल MANPADS के आगे के विकास का एक प्रकार था, जो उनसे एक नए तत्व आधार और बढ़ी हुई विशेषताओं में भिन्न है। हालांकि, ऐसे परिणाम प्राप्त करना गंभीर कठिनाइयों से जुड़ा था, जिसके कारण काम में गंभीर देरी हुई।
पिछली शताब्दी के सत्तर के दशक में, पोलिश पीपुल्स रिपब्लिक को सोवियत MANPADS "स्ट्रेला -2 एम" के उत्पादन के लिए लाइसेंस प्राप्त हुआ था। ऐसे उत्पादों का उत्पादन सफलतापूर्वक स्थापित किया गया था, और प्रमुख घटकों की आपूर्ति यूएसएसआर से की गई थी। अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में, एक नए इगला परिसर के निर्माण की तैयारी शुरू हुई, लेकिन प्रसिद्ध घटनाओं ने इसे पूरा नहीं होने दिया।
इस संबंध में, अपने स्वयं के MANPADS का विकास और निर्माण करने का निर्णय लिया गया। कई पोलिश वैज्ञानिक और तकनीकी संगठन Przeciwlotniczy zestaw rakietowy Grom नामक परियोजना में शामिल थे, लेकिन रूसी घटकों के बिना ऐसा करना संभव नहीं था। नतीजतन, पोलिश "थंडर" सोवियत "सुई" का आंशिक रूप से स्थानीयकृत संस्करण निकला। बाद में, पोलैंड ने आयातित इकाइयों के उत्पादन में महारत हासिल करने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप PPZR Grom-2 MANPADS दिखाई दिया।
2010 में, मेस्का एसए ने ग्रोम -2 कॉम्प्लेक्स का एक उन्नत संस्करण विकसित करना शुरू किया। इस परियोजना का उद्देश्य संरचना के कार्डिनल पुनर्विक्रय के बिना मुख्य लड़ाकू विशेषताओं और गुणों में सुधार करना था। प्रारंभ में, आधुनिकीकरण परियोजना ने पदनाम ग्रोम-एम को बोर कर दिया, और फिर इसका नाम बदलकर PPZR Piorun कर दिया गया। इस नाम के तहत, वह परीक्षा में आया और सेवा में प्रवेश किया।
तकनीकी दृष्टिकोण से, पिओरुन पोर्टेबल वायु रक्षा प्रणालियों की सोवियत लाइन के लिए अगला विकास विकल्प है। पुराने और सिद्ध वास्तुकला का उपयोग रॉकेट के साथ एक डिस्पोजेबल परिवहन और लॉन्च कंटेनर में किया गया था, जिस पर तथाकथित। पुनः प्रयोज्य ट्रिगर और दृष्टि। रॉकेट स्वयं अभी भी एकल-चरण ठोस-प्रणोदक है और एक अवरक्त साधक से सुसज्जित है।
वजन और समग्र विशेषताएं लगभग अपने पूर्ववर्तियों के स्तर पर बनी रहीं। युद्ध के लिए तैयार स्थिति में MANPADS की कुल लंबाई 1,6 मीटर से अधिक है, और इसका वजन 16,5 किलोग्राम है। परिसर को ले जाना और उपयोग करना एक शूटर-ऑपरेटर द्वारा प्रदान किया जाता है।
"पेरुन" के लिए रॉकेट एक पारदर्शी अर्धगोलाकार सिर फेयरिंग के साथ बड़े बढ़ाव के बेलनाकार शरीर में बनाया गया है, जो एक विशेषता "सुई" से सुसज्जित है। मिसाइल 1,6 मीटर लंबी, 72 मिमी व्यास और वजन 10,5 किलोग्राम है। उत्पाद का लेआउट समान रहता हैः हेड कम्पार्टमेंट नियंत्रण उपकरणों को समायोजित करता है, इंजन पूंछ में स्थित होता है, और उनके बीच एक वारहेड स्थापित होता है।
आधुनिक तत्व आधार के आधार पर पोलिश डिजाइन के एक नए कूल्ड जीओएस का उपयोग किया जाता है। संवेदनशीलता में वृद्धि प्रदान की जाती है और, तदनुसार, लक्ष्य का पता लगाने की सीमा में वृद्धि या कम थर्मल हस्ताक्षर के साथ लक्ष्य पर काम करना। मिसाइल नियंत्रण प्रणाली डिजिटल है और इसमें उच्च गति है, जिससे लक्ष्य ट्रैकिंग की विश्वसनीयता और समग्र युद्ध प्रभावशीलता को बढ़ाना संभव हो गया है। पीछा करने या लक्ष्य की ओर शुरू करने के लिए ऑपरेटिंग मोड पेश किए गए हैं।
मिसाइल को बढ़ाए गए चार्ज के साथ 1,82 किलोग्राम वजन का एक नया विखंडन वारहेड प्राप्त होता है। संपर्क और लेजर गैर-संपर्क फ़्यूज़ हैं। कथित तौर पर, फ़्यूज़ का ऐसा सेट आपको न केवल विमान, बल्कि छोटे लोगों को भी हिट करने की अनुमति देता है। ड्रोन.
ट्रिगर में महत्वपूर्ण संशोधन हुए हैं। इसके इलेक्ट्रॉनिक्स को आधुनिक घटकों के साथ फिर से डिजाइन किया गया है और नई सुविधाओं को जोड़ा गया है। "सुई" के अनुरूप, फायरिंग मोड को कैच-अप या हेड-ऑन कोर्स पर सेट करने के लिए एक स्विच बनाया गया था। जोड़ा गया "प्राधिकरण प्रणाली" केवल ऑपरेटर को शुरू करने की कुंजी के साथ अनुमति देता है।
ट्रिगर विभिन्न दृष्टि उपकरणों को माउंट करने के लिए एक सार्वभौमिक रेल से लैस था। विशेष रूप से, अवरक्त स्थलों की स्थापना की अनुमति है, जो आपको अंधेरे में लक्ष्य खोजने की अनुमति देती है।
युद्धक उपयोग के दृष्टिकोण से, PPZR Piorun उत्पाद मौलिक रूप से सोवियत और रूसी MANPADS से भिन्न नहीं है, जिस पर इसका डिज़ाइन वापस जाता है। यह 400 मीटर से 6,5 किमी की दूरी पर और 10 मीटर से 4 किमी की ऊंचाई पर लक्ष्य पर प्रभावी फायरिंग सुनिश्चित करता है। रॉकेट 660 मीटर/सेकेंड की रफ्तार से उड़ता है। फायरिंग करते समय अधिकतम लक्ष्य गति - 400 मीटर / सेकंड; के बाद - 320 मीटर / सेकंड।
पेरुन का डिजाइन 2015-16 में पूरा हुआ था। पहले से ही दिसंबर 2016 में, परीक्षण और विकास की प्रतीक्षा किए बिना, पोलिश रक्षा मंत्रालय ने एक नए के धारावाहिक उत्पादन के लिए मेस्का को एक बड़ा आदेश जारी किया। हथियारों. . . अनुबंध की शर्तों के तहत, 2017-20 में। ठेकेदार को टीपीके को 420 स्कोप्ड लांचर और 1300 मिसाइलों की आपूर्ति करनी थी।
नए MANPADS का पहला परीक्षण 2017 के पतन में हुआ और तुरंत समस्याओं का सामना करना पड़ा। पोलिश निर्मित ठोस प्रणोदक इंजन उच्च गुणवत्ता और विश्वसनीयता के नहीं थे, यही वजह है कि एक प्रक्षेपण के दौरान एक प्रायोगिक रॉकेट में विस्फोट हो गया। 2018 के वसंत और गर्मियों में अगले दो परीक्षण चरण समान परिणामों के साथ समाप्त हुए।
नए PPZR Piorun का सीरियल उत्पादन और सेना का पुनर्मूल्यांकन खतरे में था। हालांकि, मेस्का और संबंधित कंपनियों ने दुर्घटनाओं के कारणों का पता लगाया और उनसे छुटकारा पाने में कामयाब रही। 2019 में, कॉम्प्लेक्स ने सभी आवश्यक परीक्षणों को सफलतापूर्वक पास कर लिया और श्रृंखला और गोद लेने के लिए अनुशंसित किया गया। 2020 की शुरुआत तक, निर्माण कंपनी सेना को मिसाइलों के साथ लांचर और टीपीके के पहले बैच को स्थानांतरित करने में कामयाब रही।
पेरुन उत्पाद को कंधे से फायरिंग के लिए पोर्टेबल एंटी-एयरक्राफ्ट हथियार के रूप में बनाया गया था। हालांकि, पहले से ही विकास के चरण में, मौजूदा एंटी-एयरक्राफ्ट सिस्टम को आधुनिक बनाने या पूरी तरह से नए बनाने के लिए स्व-चालित और टो किए गए प्लेटफार्मों पर मिसाइलों को स्थापित करने के प्रस्ताव दिखाई दिए।
2018 में, पोलिश सेना द्वारा SPZR पोपराड स्व-चालित वायु रक्षा प्रणाली को अपनाया गया था। यह AMZ ubr-P टू-एक्सल आर्मर्ड कार के आधार पर बनाया गया है और यह सिंगल कंट्रोल यूनिट के साथ लॉन्चर से लैस है और MANPADS से चार TPK के लिए माउंट है; चार और मामले के अंदर जमा हैं। प्रारंभ में, पोपराड का उद्देश्य ग्रोम मिसाइलों का उपयोग करना था, और 2020 में नए पियोरन का एकीकरण पूरा हुआ।
2021-22 . तक उद्योग को 79 स्व-चालित वायु रक्षा प्रणालियों को सेना में स्थानांतरित करना चाहिए, और उनमें से कुछ दो प्रकार की मिसाइलों का उपयोग करने में सक्षम होंगे। लड़ाकू क्षमताओं के संदर्भ में, SPZR पोपराड कई एंटी-एयरक्राफ्ट गनर को एक बख़्तरबंद कार्मिक वाहक पर MANPADS से बदल देता है, और इसके कई अन्य विशिष्ट लाभ भी हैं।
2020 के अंत में, पोलिश सेना को पहला टो पीएसआर-ए पिलिका मिसाइल-गन माउंट प्राप्त हुआ। वास्तव में, यह नए अग्नि नियंत्रण उपकरणों और दो MANPADS मिसाइलों के लिए एक लांचर के साथ एक गहन आधुनिकीकरण ZU-23-2 है। स्थापना शुरू में थंडर और पेरुन मिसाइलों के साथ संगत है। वर्तमान आदेश केवल कुछ मिसाइल और तोप प्रतिष्ठानों के उत्पादन के लिए प्रदान करते हैं, और परियोजना की भविष्य की संभावनाएं अज्ञात हैं।
सभी समस्याओं और देरी के बावजूद, अब तक Piorun MANPADS को सफलतापूर्वक श्रृंखला में लाया गया और सैनिकों को आपूर्ति की गई। ऐसे हथियारों का उपयोग स्वतंत्र रूप से और अन्य विमान-रोधी प्रणालियों के हिस्से के रूप में किया जाता है। परीक्षणों के परिणामों और ऑपरेशन के पहले वर्षों के अनुसार, सेना इस विकास के बारे में अच्छी तरह से बोलती है और उद्योग और सैनिकों के लिए इसके महत्व को नोट करती है।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि ऐसे आकलनों को अस्तित्व का अधिकार है। दरअसल, पेरुन परियोजना के ढांचे के भीतर, पोलिश उद्योग सेना के लिए आवश्यक पर्याप्त उच्च विशेषताओं के साथ एक आधुनिक MANPADS बनाने में कामयाब रहा। इसके अलावा, ऐसा परिसर पूरी तरह से अपने स्वयं के उद्यमों में निर्मित होता है, और इसका उत्पादन अमित्र देशों से आयात पर निर्भर नहीं करता है। अंत में, इस परियोजना के निर्माण के दौरान, मेस्का और अन्य उद्यमों ने अनुभव प्राप्त किया जिसका उपयोग नए MANPADS और अन्य निर्देशित हथियारों के विकास में किया जा सकता है।
हालाँकि, तकनीकी दृष्टिकोण से, Piorun परियोजना सफलता या उत्कृष्ट नहीं है। यह कई दशक पहले विदेशों में बनाए गए परिसर के अगले गहन आधुनिकीकरण के बारे में है। नए घटकों और असेंबलियों के कारण, पुराने स्ट्रेला -2 या थंडर पर तकनीकी और लड़ाकू लाभ प्राप्त करना संभव था, लेकिन अब आधुनिक विदेशी मॉडलों के साथ प्रतिस्पर्धा करना संभव नहीं होगा। ऐसा करने के लिए, सभी मुख्य क्षेत्रों में मौलिक रूप से नए समाधानों को विकसित और कार्यान्वित करना आवश्यक है, जबकि इसके लिए अभी भी कोई अवसर और क्षमताएं नहीं हैं।
इस प्रकार, कई दशकों के काम के बाद, निरंतर कठिनाइयों और समस्याओं के साथ, पोलैंड अभी भी अपनी पोर्टेबल एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम बनाने और आयात पर निर्भरता को खत्म करने में सक्षम था। नए SSZR पिरौं में संक्रमण की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है, लेकिन सेना पहले से ही निष्कर्ष निकाल रही है - सभी उद्देश्य सीमाओं और नुकसानों के बावजूद, इस MANPADS को सफल माना जाता है।
- लेखकः
- इस्तेमाल की गई तस्वीरेंः
|
a37d88fe3bbbf8293c921b6dcd11b49202b2688a | web | वैश्विक सूचना प्रौद्योगिकी, परामर्श और व्यापार प्रक्रिया सेवा कंपनी, विप्रो ने भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के साथ रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की। भारत स्वायत्त प्रणाली, रोबोटिक्स और 5G अंतरिक्ष में उन्नत अनुप्रयुक्त अनुसंधान करने के लिए, विज्ञान और इंजीनियरिंग में अनुसंधान और उच्च शिक्षा के लिए सार्वजनिक स्थापना को प्रमुखता देता है।
दोनों संगठनों ने संयुक्त रूप से विप्रो आईआईएससी रिसर्च एंड इनोवेशन नेटवर्क (डब्ल्यूआईआरआईएन) की स्थापना की है, जो एक हाइब्रिड उद्योग अकादमी सहयोग इकाई ड्राइव विचार, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी और उत्पाद डिजाइन में नवाचार है।
IISc के वरिष्ठ प्रोफेसरों और अनुसंधान कर्मचारियों, स्वायत्त प्रणालियों, रोबोटिक्स और विप्रो के 5G डोमेन के इंजीनियरों, शोधकर्ताओं और कर्मचारियों के एक समूह WIRIN में टीम का गठन करेंगे। वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, विजुअल कंप्यूटिंग, ह्यूमन कंप्यूटर इंटरेक्शन (HCI) और व्हीकल-टू-एवरीथिंग कम्युनिकेशन (V2X) में अत्याधुनिक तकनीकों के अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित करेंगे। अनुसंधान से अंतर्दृष्टि विप्रो द्वारा अपने ग्राहकों और उद्योग पारिस्थितिकी तंत्र के लिए लीवरेज की जाएगी। संस्थान को अपने अनुसंधान लक्ष्य और क्षमता निर्माण को आगे बढ़ाने के अलावा अनुसंधान परिणामों के व्यावसायीकरण से लाभ होगा।
अबिदाली जेड नीमचवाला, मुख्य कार्यकारी अधिकारी और विप्रो लिमिटेड के प्रबंध निदेशक। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित शोध संस्थानों में से एक, स्वायत्त प्रणाली, रोबोटिक्स और 5 जी के लिए अभिनव समाधान विकसित करना। इन परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों में सबसे आगे रहने की हमारी स्थिति को मजबूत करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति करने के लिए मजबूत प्रौद्योगिकी क्षमता और दोनों संगठनों की सक्षम प्रतिभा एक साथ आएंगे। IISc बैंगलोर।
दोनों संगठनों ने संयुक्त रूप से विप्रो आईआईएससी रिसर्च एंड इनोवेशन नेटवर्क (डब्ल्यूआईआरआईएन) की स्थापना की है, जो एक हाइब्रिड उद्योग अकादमी सहयोग इकाई ड्राइव विचार, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी और उत्पाद डिजाइन में नवाचार है।
IISc के वरिष्ठ प्रोफेसरों और अनुसंधान कर्मचारियों, स्वायत्त प्रणालियों, रोबोटिक्स और विप्रो के 5G डोमेन के इंजीनियरों, शोधकर्ताओं और कर्मचारियों के एक समूह WIRIN में टीम का गठन करेंगे। वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, विजुअल कंप्यूटिंग, ह्यूमन कंप्यूटर इंटरेक्शन (HCI) और व्हीकल-टू-एवरीथिंग कम्युनिकेशन (V2X) में अत्याधुनिक तकनीकों के अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित करेंगे। अनुसंधान से अंतर्दृष्टि विप्रो द्वारा अपने ग्राहकों और उद्योग पारिस्थितिकी तंत्र के लिए लीवरेज की जाएगी। संस्थान को अपने अनुसंधान लक्ष्य और क्षमता निर्माण को आगे बढ़ाने के अलावा अनुसंधान परिणामों के व्यावसायीकरण से लाभ होगा।
अबिदाली जेड नीमचवाला, मुख्य कार्यकारी अधिकारी और विप्रो लिमिटेड के प्रबंध निदेशक। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित शोध संस्थानों में से एक, स्वायत्त प्रणाली, रोबोटिक्स और 5 जी के लिए अभिनव समाधान विकसित करना। इन परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों में सबसे आगे रहने की हमारी स्थिति को मजबूत करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति करने के लिए मजबूत प्रौद्योगिकी क्षमता और दोनों संगठनों की सक्षम प्रतिभा एक साथ आएंगे। IISc बैंगलोर।
भारतीय फ़ुटबॉल कप्तान सुनील छेत्री को विश्व के 28 खिलाड़ियों में से एक चुना गया है, जिन्होंने COVID-19 महामारी से निपटने के लिए फीफा/FIFA के अभियान को संचालित किया है। उन्हें लियोनेल मेसी, फिलिप लाहम, इकर कैसिलास और कार्ल्स पुयोल के साथ चुना गया है।
मुख्य विशेषताएंः
मुख्य विशेषताएंः
भारत सरकार को अगले तीन महीनों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत 2 किलोग्राम अतिरिक्त खाद्यान्न की आपूर्ति करनी है। प्रति व्यक्ति कुल 7 किलोग्राम का कोटा दिया जाएगा। उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा 26 मार्च को घोषणा की गई थी।
मुख्य विशेषताएंः
मुख्य विशेषताएंः
विमानन कंसल्टेंसी कैपा इंडिया ने बताया कि भारत के विमानन उद्योग को जून तिमाही में 3-3. 6 बिलियन डॉलर का घाटा होने की उम्मीद है, जिसका शीर्षक 'भारतीय विमानन पर COVID-19 के संभावित वित्तीय प्रभाव का अनुमान' है।
नुकसान इसलिए है क्योंकि COVID-19 महामारी के कारण यात्रा प्रतिबंधों की श्रृंखला के बाद एयरलाइंस को भारी समस्या का सामना करना पड़ा है।
नुकसान इसलिए है क्योंकि COVID-19 महामारी के कारण यात्रा प्रतिबंधों की श्रृंखला के बाद एयरलाइंस को भारी समस्या का सामना करना पड़ा है।
उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने देश भर में लगाए गए 21 दिन के बंद के दौरान पान मसाला के उत्पादन और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह कदम कोरोनोवायरस प्रकोप के मद्देनजर आता है। इसकी जानकारी खाद्य सुरक्षा आयुक्त मिनिस्ती एस ने दी।
पान मसाला पर प्रतिबंधः
पान मसाला पर प्रतिबंधः
समीर अग्रवाल को वॉलमार्ट इंडिया का सीईओ नियुक्त किया गया है। अग्रवाल की नियुक्ति 1 अप्रैल से लागू होगी। वह डर्क वान डेन बर्घे, कार्यकारी उपाध्यक्ष और एशिया और ग्लोबल सोर्सिंग, वॉलमार्ट के क्षेत्रीय सीईओ को रिपोर्ट करेंगे।
अघरकर अनुसंधान संस्थान (ARI) वैज्ञानिकों ने बायोफोर्टिफाइड ड्यूरम गेहूं की किस्म MACS 4028 विकसित की है। नई गेहूं किस्म में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है।
नई गेहूं किस्म एमएसीएस/MACS 4028:
नई गेहूं किस्म एमएसीएस/MACS 4028:
उद्देश्यः
उद्देश्यः
रेल मंत्रालय ने भारतीय रेलवे पर यात्री ट्रेन सेवाओं को रद्द करने की अवधि बढ़ा दी है। यह कदम COVID-19 के मद्देनजर किए गए उपाय को जारी रखने के लिए है। प्रीमियम रेलगाड़ियों, यात्री ट्रेनों, उपनगरीय ट्रेनों और मेट्रो रेलवे, कोलकाता की ट्रेनों सहित सभी मेल / एक्सप्रेस ट्रेनों को 14 अप्रैल 2020 तक रद्द कर दिया गया है।
कोरोनावायरस का समुदाय प्रसार को रोकने के लिए भारत सरकार CoWin-20 शुरू करने जा रही है । CoWin-20 एक नया स्मार्टफोन ऐप है जिसका उद्देश्य व्यक्तियों को उनके स्मार्टफोन स्थानों द्वारा ट्रैक करना है। ऐप जल्द ही बनाया जाएगा और पूरे भारत में व्यापक रूप से उपलब्ध होगा।
CoWin-20:
CoWin-20:
COVID-19 महामारी के प्रकोप के कारण भारत सरकार द्वारा दो चरणों में आयोजित की जाने वाली जनगणना 2021 को स्थगित कर दिया था।
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर/NPR) का अपडेशन असम को छोड़कर सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में जनगणना 2021 के चरण I के साथ किया जाएगा।
जनगणना भारत 2021:
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर/NPR) का अपडेशन असम को छोड़कर सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में जनगणना 2021 के चरण I के साथ किया जाएगा।
जनगणना भारत 2021:
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के पुनर्पूंजीकरण की प्रक्रिया को जारी रखने की मंजूरी दी।
मुख्य विशेषताएंः
मुख्य विशेषताएंः
चीन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक व्यक्ति की मौत हंटावायरस से हुई। वह चीन के युन्नान प्रांत से था। उसकी मृत्यु शैंडोंग प्रांत जाने वाली बस में हुई। उसके साथ यात्रा करने वाले लोगों का परीक्षण किया गया है।
हंटावायरस :
हंटावायरस :
|
f76123437e42d5871b8492161ad64c958ac22d520c1070a21cb24d7596b28dcb | pdf | मंत्र, जादू टोना - भोजपुरी लोकगाथाओं में मंत्र, जादू टोना इत्यादि - का भी वर्णन है । लोकगाथाओं के खलनायक एवं खलनायिकाएँ मंत्र, जादू तथा टोना इत्यादि अनार्य शक्तियों के कारण प्रबल दिखाए गए है । प्रत्येक लोकगाथा में जादूगरनियों द्वारा नायकों को कष्ट मिलना, तांत्रिकों द्वारा बाधा पहुँचना तथा नायक नायिकाओं का भंड़ा बन जाना, तोता बन जाना इत्यादि वर्णित है । 'लोरकी' की लोकगाथा में 'फुलिया डाइन' समस्त सेना को पत्थर बना देती है । सोरठी की लोकगाथा में 'हेवली केवली' जादू की लड़ाई करती हैं। शोभानयका बनजारा की लोकगाथा में एक कलावारिन (शराब बेचने वाली) शोभानायक को भेड़ा बना देती है। बिहुला की लोकगाथा में विषहर ब्राह्मण मंत्र शक्ति से सर्पों को वश में रखता है।
लोकगाथाओं में इन शक्तियों का प्राबल्य होते हुए भी अन्त में इनका पराभव ही दिखलाया गया है । सत्य एवं आदर्श मार्ग पर चलने वाले नायक एवं नायिकायें इन शक्तियों पर विजय प्राप्त करते हैं ।
कुछ विश्वास - भोजपुरी लोकगाथाओं के प्रचलन के साथ साथ कुछ विश्वासों का भी प्रचार हो गया है। गायकों का विश्वास हैं कि जब से लोकगाथाओं का अथवा उनमें वर्णित चरित्रों का उद्भव हुआ तभी से कुछ विश्वास प्रचलित हुए हैं ।
( १ ) 'लोरिकी' की लोकगाथा में नायक लोरिक को गायक लोग 'कनौजिया' अहीर, तथा लोकगाथा के खलनायक राजा शाहदेव को 'किसनौर' अहीर बतलाते हैं । 'लोरिक' का चरित्र प्रदर्श नायक की भांति है, इसलिये 'कनौजिया' अहीर आज भी श्रेष्ठ माना जाता है तथा ये लोग 'किसनौर' में विवाह दान नहीं करते हैं ।
(२) 'सोरठी' की लोकगाथा में जब सोरठी को सन्दूक में बन्द करके गंगा में बहा दिया गया, तो काठ का सन्दूक सोने में परिवर्तित हो गया। घाट के किनारे एक धोबी ने सोने की सन्दूक को बहते देखा और लालच में पड़कर सन्दूक पकड़ना चाहा । परन्तु वह पकड़ न सका । उसने केंका नामक कुम्हार को बुलाया । वह धर्मात्मा व्यक्ति था, उसके हाथ सन्दूक लग गया । धोबी के लालच को देखकर उसने सोने का सन्दूक उसे दे दिया और सोरठी को घर ले गया । धोबी जब सन्दूक को घर लाया तो वह पुनः काठ का हो एया । इसी समय वह 'हाय हाय' कर उठा ।
गायकों का विश्वास है कि धोबी लोग, कपड़ा धोते समय 'हायछियों जो करते हैं, इसका प्रारम्भ वहीं से हैं ।
(३) 'बिहुला' की लोकगाथा के विषय म गायकों का विश्वास हूं कि सर्प भी ग्राकर सुनते हैं।
(४) बिहुला की लोक गाया में विषहरी ब्राह्मण ( खलनायक) पनिहा (डोड़वा) साँप को विष का गट्ठर लाने के लिए भेजा। पनिहा साँप जब विष की मोटरी ला रहा था तो मार्ग में उसे स्नान करने की इच्छा हुई, और तालाब के किनारे मोटरी रखकर स्नान करने लगा। तालाब की मछलियों तथा बिच्छुओं ने कर विष लूट लिया । सर्प खाली हाथ पहुँचा । विषहर ने क्रोष में आकर श्राप दिया कि तेरे काटने से किसी पर विष नहीं चढ़ेगा ।
ऐसा विश्वास है कि इसी समय से पनिहा साँप विषरहित हो गया तथा बिच्छुत्रों में विष आ गया, क्योंकि उन्होंने मोटरी में से विष खा लिया था ।
अनेक धर्मो, देवी देवताओं तथा विश्वासों पर विचार करने से यही निष्कर्ष निकलता है कि भोजपुरी लोकगाथाओं में धर्म का स्वरूप अत्यन्त ब्यापक एवं समन्वयकारी है। वस्तुतः लोकगाथाएं धर्म नहीं अपितु चरित्र प्रधान हैं । प्रादर्श चरित्रों के विकास के लिये ही उनमें धर्मों का तथा विश्वासों का समावेश हुआ है। इन लोकगाथाओं में सभी धर्मों के देवी देवता एवं सन्त लोग सहायक के रूप में ही चित्रित किये हैं। इनका स्वतंत्र अस्तित्व कहीं नहीं है । लोकगाथाओं के नायक नायिकाओं के साथ साथ ये चलते हैं तथा प्रादर्श मार्ग को प्रशस्त करते रहते हैं। इन्हीं भिन्न भिन्न देवी देवताओं एवं सन्तों के नाम के उल्लेख के कारण ही लोकगाथाओं में उनके धर्म विशेष की प्रतिय पड़ गई है। इसीलिये लोकगाथाओं के धार्मिक स्वरूप पर विचार किया गया है । यह हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं इनमें सिद्धान्त का अथवा कर्मकांड का प्रतिपादन नहीं हुआ है। केवल लोकगाथा में देवी देवताओं के नाम तथा उनके कार्यों का ही वर्णन है । अतएव भोजपुरी लोकगाथाओं में धर्म का स्वरूप प्रति विशाल एवं सामंजस्यकारी है । वस्तुतः उसमें मानव धर्म चित्रित किया गया है जिसमें वीरता, उदारता, सदाचार, त्याग, परोपकार तथा ईश्वर में विश्वास का प्रमुख स्थान रहता है ।
अध्याय १०
(१) भोजपुरी लोकगाथाओं में अवतारवाद
भारतवर्ष में अवतारवाद की भावना अत्यन्त प्राचीन है । भारतीय मनीषियों ने सृष्टि के क्रमिक विकास को अवतारवाद के द्वारा ही स्पष्ट किया है । मत्स्यावतार से लेकर बुद्धावतार तक हम सृष्टि के निरन्तर विकास को भलीभांति समझ सकते हैं । यह भारतीय चिंतन है कि समस्त ब्रम्हांड में ईश्वर व्याप्त है, उसी के निर्देश से समस्त सचराचर परिचालित होता है, तथा वही अनेक रूपों में इस पृथ्वी पर अवतार लेता है । इस प्रकार से सृष्टि का विकास होता है, और उसमें संस्कृति एवं सभ्यता पनपती है । इसी को पुनः पुनः गतिमान बनाने के लिये भगवान मानव रूप में जन्म लिया करते हैं ।
पाश्चात्य विद्वानों ने लोकसाहित्य में निहित देववाद ( डिविनिटी ) को केवल मनुष्य के आदिम अवस्था का ही द्योतक माना है । १ यह सिद्धान्त भारतीय लोकसाहित्य के लिए उपयुक्त नहीं है। यहाँ की परिस्थिति दूसरी है । यहाँ की लोकभावना आदिम अवस्था से संबंध नहीं रखती अपितु देश की चिरंतन सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक साधना से सामीप्य रखती है ।
अवतार का होना अर्थात् मंगल भावना का उदय होना है। अवतरित व्यक्ति सत्कर्म करने के लिये ही आता है । वह संसार में सुख शांति का संदेश में देने आता है । भोजपुरी लोकगाथाओं में अवतारवाद की यही प्राचीन कल्पना निहित है । लोकगाथाओं के प्रायः सभी नायक-नायिका अवतार के रूप में हैं ।
भोजपुरी लोकगाथाओं में अवतारों के तीन रूप मिलते हैं । प्रथम भगवान लालदेव ( हनुमान) वीर रूप में जन्म लेते हैं, जैसे कि लोरिक, विजयमल, शोभानायक इत्यादि ।
द्वितीय, इन्द्रपुरी से च्युत अप्सराए एवं गंधर्व पृथ्वी पर भाकर जन्म लेते हैं, जैसे सोरठी, बिहुला तथा हेवन्ती इत्यादि ।
तृतीय देवी दुर्गाी एवं
जैसे वृजाभार तथा विजयमल ।
गोरखनाथ की कृपा से नायकों का जन्म होता है,
१ -सी० एस० बर्न श्री हैंड बुक ग्राफ फोकलोर ५० ७४
भोजपुरी वीरकथात्मक लोकगाथाओं में अधिकांश रूप में भगवान लालदेव के अवतार लेने का वर्णन है । भोजपुरी क्षेत्र में हनुमान जी को लालदेव, कहा जाता है। हनुमान वीरता एवं सेवा भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं । वीरकथात्मक लोकगाथाओं के नायक भी वीर वृत्ति एवं सेवा वृत्ति रखते हैं । अतएव इनकी समानता लालदेव से करना उपयुक्त है । प्रायः सभी लोकगाथाओं में वर्णित है"रामा भाभी रात गइले लिहले लालदेव अवतारवा होना"
वीरकथात्मक लोकगाथाओं के अतिरिक्त भी शेष लोकगाथाओं में लालदेव के अवतार का वर्णन है । 'बिहुला' में बालालख न्दर जन्म का वर्णन इसी प्रकार है"ए राम रहल महेसरा के गरभ रे दइबा दिन बलकवा भइले ए राम
ए राम लालदेव लिहले जनमवाँरे दइया सासुनी महेसरा कोखी ए राम"
इन्द्रपुरी में त्रुटि हो जाने के कारण लोकगाथाओं के कई नायक-नायिकाओं का जन्म होता है। सोरठी अपने जन्म के समय कहती है -
"एकिया हो रामा इन्द्रपुरी में रहलीं रामा इन्द्र परिया हो एक त चुकवा हमसे भइल रेनुकी । एकिया हो रामा तेही कारण इन्द्र राजा दिहले सरपवा हो नर जोइनी होई अवतरवा रेनुकी ।"
इसी प्रकार बिहुला का भी जन्म होता है -
"ए राम एक दिन इन्द्र महराज रे दइबा श्याम परी के बुलाइ कहे ए राम
ए राम जाहूँ श्याम परी मृत्यु लोकवा रे दईबा जाई मानुष जनमवाँ लेहूँ ए राम"
नायक बृजाभार भी मेघदूत के यक्ष की भांति इन्द्रपुरी से निकाला गया है। परन्तु मृत्यु लोक में उसका जन्म गुरु गोरखनाथ की कृपा से ही है। इसी प्रकार दुर्गा देवी की कृपा से विजयमल का भी जन्म होता है । वह वरदान देती हैं |
dd2c04e358044961b9f177f32cecd8d237556a19b92af4e723b3855c63874329 | pdf | (iv) विश्वविद्यालयों को अपनी सांस्कृतिक विरासत को विस्मृत नहीं चाहिये । अतः इन्हें राष्ट्रीय विरासत को अपनाने वाले और उसमें योगदान देने वाले नवयुवकों को तैयार करना चाहिये।
"आयोग" के शब्दों में - "हम न्याय, स्वतन्त्रता, समानता एवं बन्धुता की प्राप्ति द्वारा प्रजातन्त्र की खोज में संलग्न हैं। अतः हमारे विश्वविद्यालयों को अनिवार्यतः इन आदर्शों का प्रतीक एवं संरक्षक होना चाहिये । " (2) शिक्षक-वर्ग (Teaching Staff) -"आयोग" ने विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की दशा में सुधार करने के लिये निम्न सुझाव दिये हैं -
(i) शिक्षकों के लिये किराये के निवास स्थानों की विश्वविद्यालय के समीप ही व्यवस्था होनी चाहिये।
(ii) शिक्षकों को अध्ययन के लिये एक बार में 1 वर्ष का और सम्पूर्ण सेवाकाल में 3 वर्ष का आधे वेतन पर अवकाश दिया जाना चाहिये।
(iii) शिक्षकें को "प्रॉविडेण्ट-फण्ड" की अधिक उत्तम सुविधा प्रदान की जानी चाहिये । इस फण्ड में शिक्षक एवं विश्वविद्यालय दोनों को 8-8 प्रतिशत देना चाहिये।
(iv) शिक्षकों को एक सप्ताह में 18 घण्टे (Periods) से अधिक का शिक्षण कार्य नहीं दिया जाना चाहिये। (v) शिक्षकों ( Teachers) को 60 वर्ष की अवस्था में अपने पदों से अवकाश दिया जाना चाहिये। अच्छे स्वास्थ्य वाले प्रोफेसरों (Professors) को 64 वर्ष की अवस्था तक अपने पदों पर कार्य करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
( 3 ) शिक्षण के स्तर (Standards of Teaching) -"आयोग" ने कॉलेजो और विश्वविद्यालयों के शिक्षण-स्तर का उन्नयन करने के लिये अधोलिखित सिफारिशें की हैं(i) कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में परीक्षा-दिवसों को छोड़कर एक वर्ष में कम से कम 180 दिन शिक्षण कार्य किया जाना चाहिये ।
(ii) छात्रों की बढ़ती हुई भीड़ को रोकने के लिये शिक्षण विश्वविद्यालयों में 3,000 और उनसे सम्बद्ध कॉलेजों में 1,500 से अधिक छात्र नहीं होने चाहिये।
(iii) स्नातकोत्तर (Post Graduate) कक्षाओं के विद्यार्थियों को व्याख्यानों में उपस्थित होने के लिये विवश नहीं किया जाना चाहिये। स्नातकोत्तर कक्षाओं में विचार - गोष्ठियों (Seminars) की योजना क्रियान्वित की जानी चाहिये।
(iv) शिक्षकों के व्याख्यान परिश्रम और सावधानी से तैयार किये जाने चाहिये। उनके व्याख्यानों की पूर्ति करने के लिये लिखित कार्य, ट्यूटोरियल कक्षाओं और पुस्तकालयों में अध्ययन की व्यवस्था की जानी चाहिये।
(v) परीक्षाओं के स्तर को ऊँचा उठाने के लिये प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी के लिये न्यूनतम प्राप्तांक क्रमशः 70, 55 और 40 प्रतिशत होना चाहिये।
(4) पाठ्यक्रम (Courses of Study)-"आयोग" के पाठ्यक्रम सम्बन्धी विचार निम्नांकित हैं(i) स्नातकोत्तर उपाधि - स्नातक बनने के 2 वर्ष पश्चात् और " आनर्स कोर्स" के 1 वर्ष पश्चात् दी जानी चाहिये।
(ii) शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में सामान्य और विशेषीकृत शिक्षा में समन्वय स्थापित किया जाना चाहिये।
(iii) स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के लिये अध्ययन की अवधि 3 वर्ष की होनी चाहिये।
(iv) कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में उन्हीं छात्रों को प्रवेश दिया जाना चाहिये जो 12 वर्ष की विद्यालय शिक्षा समाप्त कर चुके हों ।
(v) विशेषीकृत शिक्षा (Specialization) के दोषों का निवारण करने के लिये विश्वविद्यालयों और माध्यमिक स्कूलों में "सामान्य शिक्षा के सिद्धान्त एवं प्रयोग" (Theory and Practice of General Education) का शिक्षण आरम्भ किया जाना चाहिये।
इकाई - 13: विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग-नीति सापेक्ष अध्यापक शिक्षा
(5) शिक्षा का माध्यम (Medium of Instruction)-"आयोग" ने सब राज्यों और जातियों की भाषाओं पर विचा करने के बाद शिक्षा के माध्यम के विषय में निम्नांकित विचार व्यक्त किये हैं(i) संघीय भाषा के लिये केवल देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जाना चाहिये और इस लिपि के दोषों को यथाशीघ्र दूर किया जाना चाहिये।
(ii) संघीय और प्रादेशिक भाषाओं का विकास करने के लिये शीघ्र ही ठोस कदम उठाये जाने चाहिएँ।
(iii) उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी के बजाए प्रादेशिक भाषाएँ होनी चाहिये, पर संघीय भाषा (हिन्दी) को शिक्षा का माध्यम बनाने की स्वतन्त्रता होनी चाहिये।
(iv) विद्यार्थियों को नवीन ज्ञान के सम्पर्क में रखने के लिये हाई स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी की शिक्षा को बनाये रखना चाहिये।
(v) उच्चतर माध्यमिक एवं विश्वविद्यालय स्तर पर छात्रों को 3 भाषाओं की शिक्षा दी जानी चाहिये-(a) मातृभाषा अर्थात् प्रादेशिक भाषा, (b) हिन्दी अर्थात् संघीय भाषा और (c) अंग्रेजी ।
टास्क विश्वविद्यालय आयोग द्वारा शिक्षकों को दी जाने वाली विशेष सुविधाओं का उल्लेख कीजिए ।
(6) स्नातकोत्तर - प्रशिक्षण व अनुसंधान कार्य (Post-Graduate Training and Research Work) - "आयोग" ने विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर और अनुसंधान कार्य के स्तरों को ऊँचा उठाने के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये है(i) स्नातकोत्तर कक्षाओं में छात्रों को प्रवेश अखिल भारतीय स्तर पर दिया जाना चाहिये और छात्रों एवं शिक्षकों में घनिष्ठ व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित किये जाने चाहिये।
(ii) एम. एम-सी. एवं पी-एच. डी. के छात्रों को "शिक्षा मंत्रालय" द्वारा बड़ी संख्या में छात्रवृत्तियाँ दी जानी चाहिये।
(iii) स्नातकोत्तर कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में एक विशेष विषय के उच्च अध्ययन एवं अनुसंधान की विधियों के प्रशिक्षण को स्थान दिया जाना चाहिये।
(iv) डी. लिट्. और डी. एम-सी. उपाधियाँ केवल उच्च कोटि के मौलिक एवं प्रकाशित कार्यों पर दी जानी चाहिए। (v) पी-एच. डी. के छात्रों का चयन अखिल भारतीय स्तर पर किया जाना चाहिये और उनके अनुसंधान कार्य की अविधि दो वर्ष से कम नहीं होनी चाहिये।
(7) परीक्षाएँ (Examinations)-"आयोग" ने विश्वविद्यालयों की परीक्षा प्रणाली को सबसे अधिक दोषपूर्ण पाया है। अतः "आयोग" ने यह विचार प्रकट किया है - "हमें इस बात का विश्वास है कि यदि हमसे विश्वविद्यालय शिक्षा में केवल एक बात के बारे में सुझाव देने के लिये कहा जाये, तो वह सुझाव परीक्षाओं के सम्बन्ध में होगा।" इन परीक्षाओं को दोष मुक्त करने के लिये, "आयोग" ने निम्नलिखित सिफारिशें की हैं(i) त्रिवर्षीय डिग्री कोर्स की परीक्षा 3 वर्ष पश्चात् न ली जाकर, प्रत्येक वर्ष के अन्त में ली जानी चाहिये। यह परीक्षा "स्वतः पूर्ण इकाइयों" (Self-Contained Units) में ली जानी चाहिये और छात्रों के लिये प्रत्येक इकाई अर्थात् प्रति वर्ष की परीक्षा में उत्तीर्ण होना अनिवार्य होना चाहिये।
(ii) छात्रों की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिये यथाशीघ्र "वस्तुनिष्ठ प्रगति परीक्षाओं" का कुलक (Set of Objective Progressive Tests) तैयार किया जाना चाहिये।
(iii) विश्वविद्यालयों की सब परीक्षाओं में कृपाक (Grace Marks) देने की पद्धति समाप्त कर दी जानी चाहिये।
(iv) परीक्षाओं के स्तर का उन्नयन करने के लिये प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी के न्यूनतम प्राप्तांक क्रमशः 70, 55 एवं 40 प्रतिशत होने चाहियें।
(v) प्रत्येक विश्वविद्यालय में कम से कम 5 वर्ष के शिक्षण का अनुभव रखने वाले 3 सदस्यों का एक पूर्णकालीन बोर्ड संगठित किया जाना चाहिये। इस बोर्ड के निम्नांकित 3 मुख्य कार्य होने चाहिये2.
(a) विश्वविद्यालयों एवं उनसे सम्बद्ध कॉलेजों के शिक्षकों को वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं की नवीन योजनाएँ बनाने में सहायता देना।
(b) उक्त शिक्षकों को पाठ्यक्रम में संशोधन करने के लिये सामग्री की व्यवस्था करना।
(c) सम्बद्ध कॉलेजों के छात्रों की प्रगति का समय-समय पर "प्रगति परीक्षाओं " द्वारा मूल्यांकन करना।
स्व- मूल्यांकन (Self Assessment )
रिक्त स्थान की पूर्ति करें- (Fill in the blanks)
1948 में गठित विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने
में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी।
विश्वविद्यालय आयोग ने शिक्षकों के लिए प्रॉविडेंट फंड की अधिकतम सुविधा की सिफारिश की जिसमें विश्वविद्यालय एवं शिक्षक दोनों को देना चाहिए।
विश्वविद्यालय आयोग की सिफारिशों के अनुसार शिक्षक की सेवा निवृत्ति की आयु
होनी चाहिए। के प्रयोग की बात कही।
आयोग ने शिक्षा के माध्यम पर विचार करते हुए संघीय भाषा के लिए केवल
( 8 ) व्यावसायिक शिक्षा (Professional Education) -"आयोग" ने व्यावसायिक शिक्षा के महत्व को स्वीकार किया है और उसके विभिन्न अंगों के सम्बन्ध में अपनी सिफारिशों को लिखित रूप प्रदान किया है, यथा(i) कृषि (Agriculture)1. छात्रों को कृषि का प्रत्यक्ष और व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि - शिक्षा की संस्थाओं की स्थापना की जानी चाहिये।
2. कृषि के नवीन कॉलेजों को यथासम्भव नवीन ग्रामीण विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध किया जाना चाहिये।
3. प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा में कृषि की शिक्षा को सर्वप्रथम स्थान दिया जाना चाहिये।
4. कृषि-अनुसंधान कार्य के लिये, केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों द्वारा "प्रयोगात्मक फार्म" (Experimental Farms) खोले जाने चाहिये।
5. कृषि के वर्तमान कॉलेजों को उदारतापूर्वक आर्थिक सहायता देकर अधिक साधन सम्पन्न बनाया जाना चाहिये।
(ii) वाणिज्य (Commerce)
1. बी. कॉम. की शिक्षा प्राप्त करते समय, छात्रों को 3 या 4 प्रकार की विभिन्न व्यावसायिक फर्मों में व्यावहारिक कार्य करने का अवसर दिया जाना चाहिये।
2. बी. कॉम. परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले छात्रों को किसी विशेष शाखा में विशेषज्ञ बनने का परामर्श दिया जाना चाहिये।
3. एम. कॉम. में केवल विशेष योग्यता रखने वाले छात्रों को अध्ययन करने की अनुमति दी जानी चाहिये। इस परीक्षा में पुस्तकीय ज्ञान की अपेक्षा व्यावहारिक ज्ञान पर अधिक बल दिया जाना चाहिये। (iii) शिक्षण (Teaching)
1. प्रशिक्षण-कॉलेजों के पाठ्यक्रम में संशोधन एवं सुधार किया जाना चाहिये और पुस्तकीय ज्ञान की अपेक्षा अध्यापन के अभ्यास पर अधिक बल दिया जाना चाहिये।
इकाई - 13: विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग-नीति सापेक्ष अध्यापक शिक्षा
2. प्रशिक्षण-कॉलेजों में अधिकांश अध्यापक वही होने चाहिये जो स्कूलों में पढ़ाने का पर्याप्त अनुभव प्राप्त कर चुके हों।
3. छात्राध्यापकों के वार्षिक कार्य का मूल्यांकन करने के समय, उनकी शिक्षण - योग्यता को विशेष महत्व दिया जाना चाहिये ।
4. एम. एड. की डिग्री के लिये केवल उन्हीं व्यक्तियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जो कुछ वर्षों का शिक्षण अनुभव प्राप्त कर चुके हों।
5. शिक्षा सिद्धान्त के पाठ्यक्रम को लचीला एवं स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल बनाया जाना चाहिये। (iv) इंजीनियरिंग व टेक्नॉलॉजी (Engineering and Technology)
1. वर्तमान इंजीनियरिंग एवं टेक्नॉलॉजी की संस्थाओं को देश की राष्ट्रीय सम्पत्ति समझा जाना चाहिये और उनकी उपयोगिता में वृद्धि की जानी चाहिये ।
2. देश की विभिन्न आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये इंजीनियरिंग की विभिन्न शाखाओं में विभिन्न प्रकार की संस्थाओं का शिलान्यास किया जाना चाहिये।
3. उच्च व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने के लिये टेक्नॉलॉजिकल संस्थाओं (Technological Institutes) की शीघ्र से शीघ्र सृष्टि की जानी चाहिये ।
4. फोरमैन, ड्राफ्टसमैन और ओवरसियरों को शिक्षा देने वाले इंजीनियरिंग स्कूलों की संख्या में वृद्धि करने के लिये कदम उठाये जाने चाहिये।
5. इंजीनियरिंग के स्कूलों एवं कॉलेजों में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को कारखानों में कार्य करने, व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने का पूर्ण अवसर दिया जाना चाहिये।
(v) कानून (Law)
1. कानून का अध्ययन करने की आज्ञा केवल उन्हीं छात्रों को दी जानी चाहिये जो 3 वर्ष के "पूर्व-कानूनी एवं सामान्य डिग्री कोर्स" (Pre-Legal and General Degree Course) को प्राप्त कर चुके हों।
2. कानून के विद्यार्थियों को अपने अध्ययन काल में अन्य डिग्री कोर्स लेने की अनुमति केवल विशेष परिस्थितियों में प्रदान की जानी चाहिये ।
3. प्रत्येक स्थान को कानून की कक्षाओं से कानून सम्बन्धी अनुसन्धान की व्यवस्था होनी चाहिये।
4. कानून के विशेष विषयों के पाठ्यक्रम की अवधि 3 वर्ष की होनी चाहिये।
5. कानून के अध्यापकों में "पूर्णकालीन" और "अल्पकालीन", दोनों प्रकार के अध्यापक नियुक्त किये जाने चाहिये।
नोट्स विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (सन् 1949) ने कॉलेज प्राध्यापकों हेतु (Periods) अध्यापक अवधि
सप्ताह में 18 घंटे रखने की सिफारिश की थी जो आज भी लागू है।
(vi) चिकित्सा (Medicine)
1. प्रत्येक मेडिकल कॉलेज में योग्य अध्यापक और प्रचुर शिक्षण - सामग्री होनी चाहिये।
2. स्नातक पूर्व और स्नातकोत्तर कक्षाओं के विद्यार्थियों को ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
3. किसी भी मेडिकल कॉलेज में 100 से अधिक छात्रों को प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिये।
4. देशी चिकित्सा-पद्धतियों में अनुसन्धान कार्य के लिये सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिये।
|
698e6db5888fb5e633b4c5271467a08c883e5791 | web | मानव शरीर स्वतंत्र रूप से सक्षम शराब का उत्पादन होता है। इथेनॉल, जो जटिल जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं, अंतर्जात शराब के रूप में जाना का एक परिणाम के रूप में हमारे शरीर में उत्पादन किया जाता है। इस सामग्री को फेफड़े और यकृत के ऊतकों में सबसे बड़ा मात्रा में केंद्रित है। एक छोटे हद तक अंतर्जात शराब शरीर के अन्य संरचनाओं में है।
कई चालकों के लिए कि क्या सड़क यातायात दुर्घटनाओं के सर्वेक्षण के परिणामों पर इस तरह के एक सामग्री प्रभाव के सक्रिय विकास के सवाल में रुचि रखते हैं? सब के बाद, मौजूदा कानूनों जब खून में अल्कोहल की बहुत कम सांद्रता का पता लगाने के ड्राइविंग लाइसेंस के अभाव के लिए प्रदान करते हैं।
रक्त में अंतर्जात शराब - यह क्या है? पदार्थ की शारीरिक हालत में अपर्याप्त उत्पादन में परिलक्षित के रूप में? हम इन सवालों के जवाब और आलेख में और बाद में करने की कोशिश करेंगे।
अंतर्जात शराब - यह क्या है?
संक्षेप में बात हो रही है, अंतर्जात शराब बुलाया इथेनॉल, जो जीवन की प्रक्रिया में शरीर में ग्रंथियों द्वारा निर्मित है। वह आक्रामक स्थिति के प्रति शरीर की ऊतकों के अनुकूलन में भाग लेता है, में कार्य करता है ऊर्जा के स्रोत के रूप में यह आसान तनावपूर्ण स्थितियों से उबरने के लिए बनाता है।
विशेष अध्ययन के परिणामों के रूप में, शरीर में अंतर्जात शराब सक्रिय रूप से सकारात्मक भावनात्मक राज्यों के साथ उत्पादन किया जाता है। इसके विपरीत, राशि मजबूत नकारात्मक भावनाओं के मामले में कम है।
जैसे शराब के कई अलग-अलग प्रकारः
- सही मायने में अंतर्जात - शराब है, जो, कम मात्रा में शरीर में कोशिकाओं द्वारा निर्मित है बाहरी उत्तेजनाओं के प्रभाव की परवाह किए बिना। जिम्मेदार पदार्थों विशेष रासायनिक यौगिक शराब डिहाइड्रोजनेज की परिभाषा के तहत जाना जाता है के उत्पादन के लिए। कहा उत्प्रेरक सबसे अंगों की कोशिकाओं में उपलब्ध है। विशेष रूप से जिगर ऊतक में अपनी उच्च सामग्री। इसलिए, इस शरीर मुख्य अंतर्जात शराब की "उत्पादक" माना जाता है।
- सशर्त अंतर्जात कुछ खाद्य पदार्थों के पाचन तंत्र में दरार के प्रभाव में शरीर में गठन किया था।
किन कारणों से शरीर में अंतर्जात शराब में वृद्धि के स्तर पर असर पड़ेगा?
अंतर्जात शराब सक्रिय रूप से निम्नलिखित परिस्थितियों में खून में जारी किया जा सकता हैः
- रोग। एक ऊंचा से डॉक्टरों द्वारा शोध के अनुसार रक्त शराब सामग्री मधुमेह, क्रोनिक ब्रोन्काइटिस के साथ लोगों को, और साथ ही जिगर और गुर्दे की बीमारी के साथ उन लोगों के रूप में प्रभावित करता है। ऐसे मामलों में, शरीर में अल्कोहल की अधिकतम एकाग्रता 0. 4 पीपीएम के आदेश तक पहुँच सकते हैं। हालांकि, कहा उपाय स्वीकार्य मानकों के भीतर है।
- खाद्य। इथाइल अल्कोहल के उत्पादन के लिए शरीर में सक्रिय कोशिकाओं में भोजन है कि शराब शामिल नहीं है की खपत हो सकती है। यह दही, चॉकलेट, क्वास, कुछ फलों और सब्जियों हो सकता है।
- मानसिक राज्यों। जैसा कि पहले उल्लेख, सकारात्मक और नकारात्मक अनुभवों रासायनिक प्रतिक्रियाओं है कि मानव में शराब अंतर्जात फार्म को सक्रिय करें। हालांकि, सही ढंग से, मात्रात्मक रूप में इथाइल अल्कोहल के उत्पादन की निर्भरता निर्धारित करने के लिए कुछ भावनात्मक गड़बड़ी की प्रकृति के अनुसार, वैज्ञानिकों अभी भी विफल रहता है।
कोई 0. 01 पीपीएम से अधिक पर अंतर्जात खड़ा की एक स्वस्थ व्यक्ति के रक्त शराब एकाग्रता में मौन राज्य में। वास्तव में, शरीर दिन शुद्ध इथेनॉल के बारे में 10 ग्राम के दौरान उत्पादन करने में सक्षम है। हालांकि, यह संख्या, काफी भिन्न होता है कारकों की एक संख्या के प्रभाव पर निर्भर करता है।
शराब की दैनिक दर को समायोजित करने के लिए एक व्यक्ति बियर का आधा एक गिलास, वोदका की के बारे में 30 मिलीलीटर, क्वास 800 मिलीलीटर, 120 मिलीलीटर या शराब दही का 1. 5 एल का उपयोग करने के लिए पर्याप्त है। इन ढ़ाल के आदर्श की अवधारणा के अंतर्गत आते हैं। अगर अधिक नहीं, व्यक्ति के लक्षण है कि नशे की अवधारणा के अनुरूप महसूस नहीं होगी।
क्यों अंतर्जात शराब शरीर के लिए आवश्यक?
इथेनॉल, जो शरीर में कोशिकाओं द्वारा निर्मित हैः
- यह शरीर जल्दी से अपरिचित, काफी आक्रामक पर्यावरणीय कारकों के अनुकूल करने के लिए अनुमति देता है। यह तनाव को संभालने और कठिन परिस्थितियों में नैतिक अशांति दूर करने के लिए मदद करता है।
- यह शरीर की ऊतकों के लिए ऊर्जा के स्रोत के कार्य करता है।
- मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के कामकाज पर सकारात्मक प्रभाव।
- यह vasodilatation को बढ़ावा देता है, परिणामस्वरूप, रक्त प्रवाह, त्वरित आपूर्ति पोषक तत्वों की कोशिकाओं में सुधार होगा।
- यह चयापचय की प्रक्रिया की सक्रियता प्रदान करता है।
- एंडोर्फिन के उत्पादन में शामिल हैं - तो खुशी का हार्मोन कहा जाता।
- यह रोग की स्थिति में नकारात्मक कारकों का विरोध करने के कक्षों की क्षमता बढ़ जाती है।
शरीर में विफलताओं के कारण के रूप में अंतर्जात अल्कोहल की अनुपस्थिति शरीर की कोशिकाओं के उत्पादन के उल्लंघन व्यक्त किया है और प्रतिकूल ऊपर प्रक्रियाओं के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है।
खतरा यह है कि ड्राइवरों के लिए अंतर्जात शराब वहन करती है?
वाहन मालिकों लोगों की श्रेणी है, जो शरीर में अल्कोहल की अनुमति दर से अधिक नहीं बहुत महत्वपूर्ण है कर रहे हैं। परिस्थितियों, तंत्रिका अधिक वोल्टेज के मामले में विशेष रूप से, कुछ खाद्य पदार्थों, ऑक्सीजन की कमी खाने, अंग, कोशिकाओं है, जो चयापचय में शामिल हैं के रोगों की उपस्थिति, रक्त में इथेनॉल की राशि में प्राकृतिक वृद्धि मनाया जा सकता है जब। कुछ स्थितियों में, वहाँ प्रभाव है कि एक व्यक्ति वोदका का एक गिलास हाल ही में उपयोग किया गया है। इस तरह के मामलों की स्थिति में, चालक साबित होता है कि वह कोई शराब ले लिया है।
एक व्यक्ति पहिया पीछे प्राप्त करने से पहले शराब पीने नहीं करता है, निरीक्षण पर यह नशीली दवाओं के उपचार केंद्र के लिए यात्रा करने के लिए एक विशेष परीक्षा प्रदर्शन करने के लिए मना नहीं करना चाहिए। विफलता तो तुरंत करने के लिए, और बाद में यह उनके मामले को साबित करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। उपरोक्त प्रक्रिया के बाद एक स्वतंत्र रक्त परीक्षण लेने के लिए एक निजी क्लिनिक में जाने के लिए अपने दम पर खड़ा है। इस तरह के कार्यों अदालत में एक यातायात दुर्घटना के मुकदमे में अपने ही निर्दोष साबित करने के लिए एक विश्वसनीय मकसद होगा।
क्या से खाद्य पदार्थ छोड़ देना चाहिए, पहिया पीछे पाने के लिए इच्छुक?
तथाकथित श्वास है, जो करने के लिए कानून प्रवर्तन अधिकारी के उपयोग के चालकों के संयम का निर्धारण करने की अनुमति के उपयोग में खून में अल्कोहल का स्तर से अधिक पुष्टि कर सकते हैं में सहाराः
- घोड़ी के दूध, अल्कोहल रहित बीयर 0. 4 पीपीएम का परिणाम को जोड़ सकते हैं;
- किण्वित केफिर, दही, सब्जियां या फल के साथ संयुक्त - 0. 2 पीपीएम के आदेश;
- पेस्ट्री और ब्रांडी - 0. 4 पीपीएम;
- क्वास - 0. 3 से 0. 6 पीपीएम तक;
- चॉकलेट - 0. 1 पीपीएम;
- 0. 2 पीपीएम - काले रोटी और सॉस से बना सैंडविच।
अंतर्जात, बहिर्जनित शराब Corvalolum के रूप में ऐसी दवाओं, valoserdin, वेलेरियन, motherwort मिलावट के उपयोग में शरीर में केंद्रित किया जा सकता है। ड्राइवर के लिए समस्या भी तम्बाकू का उपयोग हो सकता है। अभ्यास से पता चलता है के रूप में, एक हाल ही में सिगरेट आप धूम्रपान करते हैं जितना 0. 2 पीपीएम से खून में अल्कोहल का स्तर बढ़ जाता।
हम यह भी शराबियों की संतानों के बारे में बात करनी चाहिए। आनुवांशिक कारक, ऐसे व्यक्तियों के कारण शरीर में अंतर्जात शराब का अभाव है। रोग घटना गर्भ में असामान्य प्रक्रियाओं के विकास, विशेष रूप से, चयापचय की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण धीमा द्वारा समझाया जा सकता।
इस तरह के बदलाव के परिणामों अक्सर शारीरिक, मानसिक और सामाजिक क्षेत्रों में बच्चों को गतिविधि की कमी प्रकट। शराबियों के बच्चे अक्सर तनाव से ग्रस्त हैं,, एक भावनात्मक कमजोरी महसूस अपने साथियों के साथ।
यह उल्लेखनीय है कि बुरा आनुवंशिकता के साथ बच्चों बाद में विफल पेय पदार्थ नशीली के उपयोग के द्वारा रक्त में इथाइल अल्कोहल के लिए आवश्यक दर को बनाने वाली है। शराबियों के इस तरह के चयापचय संबंधी विकार संतानों से पीड़ित जीवन भर के लिए जिम्मेदार है।
देखा जा सकता है, किसी भी व्यक्ति के शरीर में, यहां तक कि एक पूर्ण जो नशे में हो, हमेशा इथाइल अल्कोहल की कम मात्रा में होती। स्वाभाविक रूप से, सामग्री इस तरह के कम मात्रा कि नशा करने के लिए नेतृत्व नहीं करता है में निर्मित है। बारी में, नकारात्मक घटना के एक नंबर का एक कारण के रूप में अंतर्जात शराब की कमी, व्यक्त किया जा सकता, विशेष रूप से, दूसरों को मानव जीवन शक्ति की कमी, बाह्य stimuli करने के लिए मस्तिष्क की प्रतिक्रियाओं को धीमा,।
अंत में यह ध्यान देने योग्य है कि लोगों के भारी बहुमत रक्त में अंतर्जात शराब की कमी से ग्रस्त नहीं है लायक है। इसलिए, यह विचार है कि क्या यह समझ में आता है, शराब का सहारा एक राशि है जो शरीर की शर्त पर एक हानिकारक प्रभाव पड़ता में इसका इस्तेमाल करने के लायक है।
|
d5c92a12f89383a2bc490c8f2acdcd40e5e111de | web | इस प्रयोगशाला में अल्पकालिक परियोजना कार्य करने के लिए विश्वविद्यालयों/कॉलेजों से कुछ संख्या में छात्रों को शामिल करना संस्थान की अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों की आवश्यकता के आधार पर मामले के आधार पर किया जाएगा। हालांकि, ऐसे प्रवेशों की संख्या, जो समय-समय पर भिन्न हो सकती है, केवल योग्यता के बाद संस्थान के अनुसंधान एवं विकास प्रभाग/अनुभागों के वैज्ञानिकों की आवश्यकता पर आधारित होगी।
विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में एम.एससी, एम.फिल, एम.फार्मा, एमसीए, एम.ई और एम.टेक जैसे स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम करने वाले और अपने पाठ्यक्रम के भाग के रूप में अंतिम वर्ष/सेमेस्टर परियोजनाओं को पूरा करने के इच्छुक छात्र आवेदन कर सकते हैं।
परियोजना कार्य के लिए नियुक्ति की मांग करने वाले उम्मीदवार द्वारा अनुरोध पत्र।
नीचे दिए गए प्रारूप में कॉलेज के विभागाध्यक्ष/प्रधान आचार्य द्वारा सिफारिश/परिचय।
विस्तृत जीवन वृत्त (सीवी) (प्रतिशत में अंक प्रदान करें)
अंतिम सेमेस्टर / वर्ष तक के सभी अंक कार्डों की सत्यापित प्रतियां।
समय सीमा से पहले सीएसआईआर-एनआईआईएसटी में उपरोक्त दस्तावेजों के साथ प्राप्त आवेदनों की केवल हार्डकॉपी पर विचार किया जाएगा। उपरोक्त किसी भी संलग्नक के बिना प्राप्त सभी आवेदनों को अस्वीकार कर दिया जाएगा, और अस्वीकृत आवेदनों के संबंध में कोई पत्राचार प्राप्त नहीं किया जाएगा।
कॉलेज के विभागाध्यक्ष/प्रधान आचार्य द्वारा सिफारिश/परिचय के लिए प्रारूप(14.0 KiB, 9,820 hits)
परियोजना कार्य करने के लिए प्रवेश वर्ष में केवल 4 बार अर्थात प्रत्येक वर्ष 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर को होगा। इस प्रयोगशाला में परियोजना कार्य करने की अनुमति चाहने वाले सभी छात्र ऊपर उल्लिखित किसी भी तिमाही में शामिल हो सकते हैं। सीएसआईआर-एनआईआईएसटी उपर्युक्त अवधि के अलावा अन्य किसी भी उम्मीदवार के प्रवेश पर विचार नहीं करेगा। परियोजना की न्यूनतम अवधि तीन महीने और अधिकतम अवधि बारह महीने है।
प्रयोगशाला में परियोजना कार्य करने की अनुमति का अनुरोध करने वाले आवेदनों की प्राप्ति की अंतिम तिथि निम्नानुसार होगीः
केवल उन्हीं आवेदनों पर विचार किया जाएगा जो सभी प्रकार से और प्रासंगिक संलग्नकों से भरे हुए हैं और निदेशक द्वारा प्राप्त किए गए हैं और ऊपर उल्लिखित अंतिम तिथि से पहले एपीसी को अग्रेषित किए गए हैं। पीजी कोर्स के अंतिम सेमेस्टर/वर्ष में प्राप्त अंकों के आधार पर तैयार की गई मेरिट सूची और यूजी अंकों के आधार पर क्षेत्रवार तैयार की जाएगी और संबंधित प्रभागों को भेजी जाएगी। प्रभागों के प्रमुख, अन्य वैज्ञानिकों/तकनीकी अधिकारियों के परामर्श से, उम्मीदवार की योग्यता और पर्यवेक्षकों के पास उपलब्ध पदों के आधार पर एपीसी को केवल उन्हीं आवेदनों की सिफारिश करेंगे। चयनित छात्रों को शामिल होने की तारीख के विवरण के साथ सीएसआईआर-एनआईआईएसटी वेबसाइट के माध्यम से सूचित किया जाएगा। प्रवेश के लिए अनुशंसित नहीं किए गए आवेदनों के संबंध में कोई पत्राचार नहीं किया जाएगा।
परियोजना कार्य में भर्ती होने वाले सभी छात्रों को परियोजना शुल्क के रूप में 5000/- रुपये प्रति माह का भुगतान करना होगा। प्रवेश के समय परियोजना की पूरी अवधि के लिए भुगतान ऑनलाइन हस्तांतरण के रूप में किया जाना चाहिए।
बैंक विवरणः
।संस्थान के खाते का नाम (बैंक रिकॉर्ड के अनुसार)
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/बीपीएल वर्ग के विद्यार्थियों को अधिकृत सरकारी विभाग/संस्था प्रमुख के वैध प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने पर परियोजना शुल्क में छूट दी जायेगी।
परियोजना कार्य करने के लिए प्रवेश के लिए चुने गए उम्मीदवार को व्यक्तिगत रूप से आना चाहिए और निर्धारित तिथि और समय पर सीएसआईआर-एनआईआईएसटी में भर्ती होना चाहिए और वेबसाइट पर सूचित किया जाना चाहिए। छात्र को नीचे दिए गए घोषणा पत्र को पूरी तरह से भरकर और छात्र के कॉलेज/विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष/प्रधानाचार्य द्वारा हस्ताक्षरित करके जमा करना होगा। उपरोक्त के अभाव में प्रवेश नहीं दिया जायेगा।
कॉलेज के एचओडी/प्रिंसिपल द्वारा सिफारिश/परिचय के लिए प्रारूप(14.0 KiB, 9,820 hits)
परियोजना कार्य के लिए चयनित और प्रवेश के लिए सूचित किए गए सभी छात्रों को निर्धारित तिथि और समय पर व्यक्तिगत रूप से आना चाहिए और बिना चूके उन्हें सूचित करना चाहिए। उपरोक्त तिथि पर एपीसी से पूर्व अनुमोदन के बिना शामिल होने में विफल रहने वाले उम्मीदवार के नियुक्ति प्रस्ताव रद्द किया जाएगा।
छात्र की नियुक्ति और अनुसंधान मार्गदर्शिका का चयन प्रयोगशाला में निदेशक/विभागाध्यक्ष के विवेकाधिकार पर आधारित होगा।
परियोजना कार्य में छात्र का प्रवेश और प्रयोगशाला में उनका रहना परियोजना के समय और अवधि तक ही सीमित है और इसे बढ़ाया नहीं जाएगा। अतिरिक्त समय, यदि आवश्यक हो, तो पहले से ही सोच लिया जाना चाहिए, और अनुसंधान पर्यवेक्षक के माध्यम से एपीसी को एक आवश्यक अनुरोध किया जाना चाहिए ताकि परियोजना की अवधि पहले ही विकसित हो सके।
परियोजना कार्य के अपने कार्यकाल के दौरान, उम्मीदवारों को प्रयोगशाला के सभी नियमों और विनियमों और समय का सख्ती से पालन करना होगा। प्रयोगशाला के अंदर छात्रों द्वारा सुरक्षा नियमों का कड़ाई से पालन अनिवार्य है। प्रयोगशाला कार्यालय समय के बाद छात्रों की सुरक्षा की कोई जिम्मेदारी नहीं लेगी। छात्रों को सलाह दी जाती है कि वे सीएसआईआर-एनआईआईएसटी में रहने के दौरान अल्पकालिक दुर्घटना बीमा लें।
परियोजना कार्य के लिए प्रवेशित छात्रों की संख्या केवल अनुसंधान एवं विकास अनुभागों/प्रभागों की आवश्यकता पर आधारित है और इसका किसी कोटा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
इस कार्य के लिए विश्वविद्यालय/महाविद्यालय से कोई मार्गदर्शक नहीं होगा। तथापि, यदि वांछित हो तो विभाग से कोई सह-मार्गदर्शक भी हो सकता है। लेकिन इसकी सूचना विभागाध्यक्ष/प्रधानाचार्य के पत्र में व्यक्ति के नाम के साथ एनआईआईएसटी को स्पष्ट रूप से दी जानी चाहिए।
एनआईआईएसटी के पास छात्र द्वारा किए गए कार्य का पूर्ण बौद्धिक संपदा अधिकार होगा। हालांकि, यदि कोई पेपर काम के बाहर प्रकाशित होता है, तो छात्र के नाम पर उनके योगदान के आधार पर लेखकत्व के लिए विचार किया जाएगा।
परियोजना कार्य के लिए प्रवेशित छात्रों की संख्या केवल अनुसंधान एवं विकास अनुभागों/प्रभागों की आवश्यकता पर आधारित है और इसका किसी भी कोटा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
विश्वविद्यालय/कॉलेज छात्र (छात्रों) द्वारा किसी भी कदाचार के लिए जिम्मेदारी लेता है।
थीसिस/शोध प्रबंध शीर्षक/कवर पृष्ठ पर कार्य का शीर्षक, विश्वविद्यालय का नाम जहां इसे प्रस्तुत किया जाएगा, छात्र का नाम, उनकी पंजीकरण संख्या (वैकल्पिक), पर्यवेक्षक के रूप में एनआईआईएसटी वैज्ञानिक का नाम, प्रभाग/विभाग जहां काम एनआईआईएसटी और जमा करने के महीने और वर्ष में किया जाता है। संबंधित विश्वविद्यालय/कॉलेज द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के बावजूद सभी छात्रों को इस पैटर्न का सख्ती से पालन करना होगा।
छात्रों को आवश्यक संख्या में प्रतियों में अपनी थीसिस तैयार करने और अपने विभाग / कॉलेज से सभी प्रतियों में मूल रूप से हस्ताक्षरित सभी प्रमाण पत्र प्राप्त करने और अंत में उन्हें राष्ट्रीय अंतर्विषयी विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संस्थान, त्रिवेंद्रम में शोध मार्गदर्शिका द्वारा मूल रूप से हस्ताक्षरित करने की आवश्यकता होती है। थीसिस/शोध प्रबंध के दो दस्तावेज़ एनआईआईएसटी में अनुसंधान मार्गनिर्देशक को प्रस्तुत किए जाने चाहिए।
उपरोक्त किसी भी उल्लंघन को गंभीरता से देखा जाएगा, और उम्मीदवारों/कॉलेजों/विश्वविद्यालयों द्वारा अनुपालन न करने पर भविष्य में विभाग/कॉलेज के आवेदनों को पूरी तरह से खारिज कर दिया जाएगा।
सीएसआईआर-राष्ट्रीय अंतर्विषयी विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईआईएसटी)
|
1d0e005527db6a37249fe516eddd66b8f42d1a9ac6429fee9b0c3536646b94a4 | pdf | अपने आसपास १३
यह स्थिनि अधिक समय तक स्थिर नहीं रहती । थोडे समय बाद ही अधकार आलोक बनकर मेरा मार्ग प्रशस्त कर देता है और मै परिस्थितियों के प्रतिकार के लिए सजग हो जाता हू ।
मैने अपने अतीत के अनुभवो के आधार पर जीवन को एक नई परिभाषा दी है। उसके अनुसार जीवन वह है, जिसमे नये-नये सघर्ष एव नई-नई बाधाए आए और व्यक्ति उनके साथ जूझता हुआ आगे का मार्ग तय करता जाए । 'मुहूर्त्त ज्वलित श्रेयो न च धूमायित चिरम्' - यह वाक्य मेरे भीतर गूजता रहता है । इसलिए मुझे निष्क्रिय जीवन जीने मे रस नही है । मै अपनी योजनाओ की क्रियान्विति मे जिन प्रयोगो और प्रक्रियाओ को काम मे लेता हू, उनके संबंध में एक स्पष्ट रूपरेखा तैयार करता
और अपने सहयोगियों के साथ परामर्श भी करता हू। अपने चितनशील सहयोगियो से मुझे बहुत-बहुत आशाए है। मेरी उलझन के समय मेरा सबसे वडा आलम्बन है पूज्य गुरुदेव कालूगणी की स्मृति । इससे मुझे नया मार्ग मिलता है, प्रेरणा मिलती है, वल मिलता है और मैं अपने सतुलन को स्थिर रखता हुआ कठिन परिस्थितियो से नये अनुभव लेकर आगे बढ जाता हू। प्रश्नः अपनी षष्टिपूर्ति के अवसर पर आप अपने धर्मसघ और देश के नाम क्या संदेश देना चाहते है ?
उत्तर : मेरे सदेश का पहला सूत्र है - अवस्था और वुढापा दो भिन्न-भिन्न तत्त्व है। इसलिए अवस्था को बुढापा न माना जाए। यह माना हुआ बुढापा व्यक्ति को निष्क्रिय बना देता है । अवस्था के साथ वृद्धत्व का गठवधन नहीं है, इस सत्यता को स्वीकार कर जीवन को नये-नये उन्मेपो से अनुप्राणित रखना चाहिए।
मेरे सन्देश का दूसरा सूत्र है - खाद्यसयम । मैने अनुभव किया कि खाद्यसयम जीवन का सच्चा मित्र है। मैने इसका अभ्यास किया है और वर्तमान में भी कर रहा हू । मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस सूत्र को लेकर चलने वाला व्यक्ति अनेक दृष्टियो से लाभान्वित होता है ।
१४ जिज्ञासा के पख समाधान का आकाश
तीसरी बात है - समय का सदुपयोग । मैंने समय का बहुत उपयोग किया है। मेरा क्षण-क्षण किसी अच्छे कार्य में लगे, यह मेरी तीव्र भावना है। साधु-साध्वियों ने भी इस सूत्र को पकडकर अपने जीवन मे काफी परिवर्तन किया है। श्रावक समाज मे अभी तक मै इसकी कमी अनुभव करता हू । इसलिए उन्हे विशेष रूप से कहना चाहूंगा कि वे भगवान महावीर के सूक्त - 'समयं गोयम ! मा पमायए' को जीवन विकास का सूत्र बनाकर समय का उपयोग करना सीखें ।
देश के नाम अपने सार्वजनिक संदेश में मैं कहना चाहूगा कि व्यक्ति-व्यक्ति अपने जीवन का निर्माण करने के लिए संकल्प-बद्ध हो । ससार निर्माण की कल्पना अति कल्पना है, व्यामोह है। इस व्यामोह को तोड़कर व्यक्ति सुधार की दृष्टि से वातावरण निर्मित किया जाए।
देश में बढ़ती हुई हिसक परिस्थितियों के संदर्भ में अहिंसा का मूल्य प्रतिष्ठित करने के लिए यह अनुकूल अवसर है। अहिंसा एक ऐसा तत्त्व है, जिसमे समग्र विश्व के हित, सुख और कल्याण की सभावनाएं निहित है। समाज मे अहिंसा और अपरिग्रह के मूल्य प्रस्थापित होने के बाद बहुत सी सामयिक समस्याएं स्वयं निरस्त हो जाती है। लोक-चेतना के परिष्कार और सस्कारो की उच्चता के लिए जनता स्वयं जागृत होकर नैतिक मूल्यों के उन्नयन मे सलग्न हो, मेरे सदेश का आदि, मध्य और अन्तिम बिन्दु यही है ।
प्रश्न : भगवान महावीर के पचीससौवे निर्वाण - वर्ष मे आपका षष्टिपूर्ति समारोह समाज को नवचेतना देगा, इस विषय मे आप क्या सोचते है ?
उत्तर : समाज को नयी चेतना देना किसी के हाथ की वात नहीं है । सामाजिक धरातल पर काम करने वाला प्रत्येक व्यक्ति सोचता है कि वह समाज को वदल देगा, किन्तु ऐसा होना बहुत कठिन है। अनेक महापुरुष अब तक अपनी पष्टिपूर्ति मना चुके है।
अपने आसपास १५
क्या उन्होंने समाज को जो रूप देना चाहा, वैसा दे सके?
सामाजिक मूल्यों को बदलने और नए मानदण्डो की स्थापना के लिए मेरे मन में भी बहुत कल्पनाएं है। मैं उनके अनुरूप समाज को नई दिशा देना चाहता हूं। अपने जीवन के साठ वर्षो के अनुभवों के आधार पर निष्कर्ष रूप मे मुझे जो तत्त्व उपलब्ध हुआ है, उससे साधु-संघ और श्रावक-समाज की चेतना के ऊर्ध्वारोहण मे यथासभव योगदान करने का शुभ सकल्प संजोता हुआ मै सातवें दशक में प्रवेश कर रहा हूं।
प्रश्न : आपने अपने आचार्यकाल में अनेक वर्ष भनाए हैं। इस सदी के अतिम दशक को आप किस रूप में मनाने की बात सोच रहे हैं?
उत्तर दशक का काल लम्बा होता है। किसी भी चिन्तन की क्रियान्विति के लिए प्रलम्ब समय सामने होता है तो उसमें तत्परता नहीं रहती । कालः पिबति तद्रसं - उस काम के रस को काल पी जाता है । इस दृष्टि से कोई दशक मनाने की बात अब तक नही सोची है । वैसे हमारे कार्यक्रम ऐसे हैं, जो एक क्या, कई दशको मे भी पूरे होने के नहीं है । अणुव्रत का काम हम पिछले चार दशको से करते आ रहे है। इस सदी के अतिम दशक का प्रथम वर्ष हम 'अणुव्रत वर्ष' के रूप मे मना रहे है । पर इसका अर्थ यह नहीं है कि वर्ष पूरा होने से अणुव्रत का काम पूरा हो जाएगा । अणुव्रत का कार्यक्रम निरन्तर चलता रहेगा । यही बात प्रेक्षाध्यान और जीवनविज्ञान आदि व्यापक कार्यक्रमों पर लागू होती है ।
सार्वकालिक या दीर्घकालिक कार्यक्रमो को जब कभी अतिरिक्त बल देना होता है तो अणुव्रत वर्ष, सयम वर्ष, अनुशासन वर्ष, योगक्षेम वर्ष जैसी आयोजनाए की जाती है । इस चालू दशक के पूर्वार्ध मे रचनात्मक कार्यक्रमों की दृष्टि से एक पचवर्षीय योजना तैयार की जा रही है। उस योजना को भी हम पूर्णत नही, खण्डशः क्रियान्वित करना चाहेगे। उसमे एक- एक वर्ष के
१६ जिज्ञासा के पखं समाधान का आकाश
कार्यक्रम निर्धारित कर व्यवस्थित रूप से काम करने का चिन्तन किया गया है। इस योजना के तहत् कोई वर्ष मनाया जाएगा तो मैं 'अहिसा-प्रशिक्षण वर्ष' को प्राथमिकता देना चाहूगा । प्रश्न : आज आप नये वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, अग्रिम वर्ष मे सघ के सम्बन्ध में आप क्या सोचते है?
उत्तर : नव वर्ष प्रवेश के अवसर पर मै सात्विक प्रसन्नता का अनुभव करता हूं । सघ के बारे मे चिन्तन का जहा तक प्रश्न है, मै अपने आपको संघ से भिन्न नहीं मानता और संघ को अपने से भिन्न नही मानता । इसलिए मैं अपने बारे मे जो कुछ सोचूगा, वह सघीय परिवेश से सपृक्त रहेगा और संघ के बारे मे जो चिन्तन करूगा, उससे मेरा जीवन अप्रभावित नहीं रह पाएगा ।
इस वर्ष हम तेरापन्थ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य की निर्वाण - शताब्दी मनाने का निर्णय ले चुके हैं। वह वर्ष 'अनुशासनवर्ष' के रूप में मनाया जाएगा, यह भी निश्चित हो चुका है। फिर अग्रिम वर्ष मे सघीय दृष्टि से इससे अतिरिक्त मै सोच ही क्या सकता हू? हमारा धर्मसघ सहज रूप से अनुशासित है। समूचे संघ की अनुशासन मे निष्ठा है। फिर भी मै चाहता हूं कि अग्रिम वर्ष मे अनुशासन के कुछ विशेष प्रयोग हों। ध्यान, स्वाध्याय, सेवा और स्वभाव- परिवर्तन के प्रयोग हों । श्रमण धर्म को जीवन मे विकसित करने के प्रयोग हों और वे सब प्रयोग हो जो हमारे धर्मसघ को अधिक यशस्वी और तेजस्वी बना सके ।
अनुशासन के सदर्भ मे नये प्रयोग करने की दृष्टि से चिन्तन के शुरू हो गया है। उसकी निष्पत्ति के रूप में हम एक प्रारूप तैयार करेंगे। उसके आधार पर व्यक्तिश और सामूहिक रूप से साधु-साध्वियो पर प्रयोग किए जाएगे। वे स्वयं भी अपने जीवन मे कुछ प्रयोग करेगे। इससे आगे हम श्रावक समाज को भी कुछ प्रयोग सुझाएंगे। मेरा निश्चित विश्वास है कि आगामी 'अनुशासन वर्ष' हमारे धर्मसघ के लिए नयी प्रेरणा और नया संदेश लेकर आएगा।
अपने आसपास १७
प्रश्न : आपने जयाचार्य शताब्दी के उपलक्ष्य में 'अनुशासन वर्ष' मनाने की घोषणा की है, क्या राष्ट्रीय दृष्टि से भी आप कुछ करेगे ? उत्तर : हमारा 'अनुशासन वर्ष' व्यक्ति का स्पर्श करता हुआ अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज को छू सकेगा, ऐसा मेरा विश्वास है । उस अवसर पर हम व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व को कुछ ऐसे सूत्र समझाने का प्रयत्न करेगे, जिनसे अनुशासन के क्षेत्र मे नया मोड आ सके । आज राष्ट्र के सामने सबसे बड़ी समस्या अनुशासनहीनता की है। बच्चो से लेकर विधायको तक किसी भी वर्ग मे अनुशासन का अस्तित्व नहीं के बराबर है। हम आत्मानुशासन के द्वारा राष्ट्रीय अनुशासन की बात में विश्वास करते है। इस दृष्टि से वर्गीय स्तर पर ऐसी आचार सहिता लागू करने की अपेक्षा है, जो व्यक्ति के भीतर से अनुशासन को उभार सके ।
प्रश्न : तेरापंथ सघ मे व्यक्ति अपनी हर सफलता का श्रेय आचार्य को देता है। ऐसा हमने बहुत बार अनुभव किया है। इस स्थिति को व्यक्तित्व विकास मे साधक मानना चाहिए या वाधक ? उत्तर : तेरापथ धर्मसघ के साधु-साध्वियो का यह सहज वैशिष्ट्य है कि वे स्वयं को गौण रखकर सघ और सघपति को महत्त्व देते है। हमारे सघ मे यह सस्कार काम करता है कि जो व्यक्ति अपनी महत्त्वाकाक्षा रखता है, उसका महत्त्व घटता है और जो व्यक्ति गुरु के प्रति समर्पित रहता है, उसका महत्त्व वढता है । समय-समय पर इन सस्कारो को पोषण भी दिया जाता है। हमारे साहित्य में भी ऐसी बाते मिलती है, जैसेबात-बात प्रवचन- प्रवचन मे, गण गणपति रो नाम । सुविनीता री सरल कसौटी, दो चावल कर थाम ॥
तेरापथ संघ मे पदलिप्सा, यशलिप्सा और महत्त्वाकाक्षा सर्वथा वर्जित है । यद्यपि सब लोग समान नहीं होते। फिर भी हमारे सघ की परम्परा यही है और वह आगे-से-आगे संक्रान्त
१८ जिज्ञासा के पख समाधान का आकाश
हो रही है ।
संघ और गुरु के प्रति समर्पण एव विनम्रता की यह वृत्ति व्यक्ति के स्वतन्त्र विकास में बाधक कैसे हो सकती है? यह तो विकास में सहायक बनती है। हमारा अनुभव भी यही है कि जहां कहीं व्यक्तिगत महत्त्वाकाक्षा बढ़ती है, विकास के द्वार बन्द हो जाते हैं और गति मे अवरोध उपस्थित हो जाता है 1 प्रश्न : कुछ लोगो का कथन है कि आपने आचार्य भिक्षु की मर्यादाओ का अतिक्रमण किया है। जो कार्य उस समय नही होता था वह अब होने लगा है। आपका इस सम्बन्ध मे क्या अभिमत है ? उत्तर : उस समय जो होता था, आज वह नहीं होता है तथा आज जो होता है, वह उस समय नहीं होता होगा - यह बात एक सीमा तक ठीक है। पर इसका अर्थ यह कैसे हुआ कि हम आचार्य भिक्षु की मर्यादाओ का अतिक्रमण कर रहे है? स्वामीजी ने मर्यादाओ का सूत्र वर्तमान आचार्य के हाथ मे सौंपते हुए निर्देश दिया कि मर्यादाओ एव परम्पराओ मे द्रव्य, क्षेत्र, काल और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन सम्भाव्य है। भावी आचार्य सूत्र, सिद्धान्त और विवेक को काम में लेकर इन मर्यादाओ मे परिवर्तन, परिवर्धन तथा संशोधन कर सकते है और नई मर्यादाओ का निर्माण कर सकते है। स्वामीजी द्वारा प्रदत्त इस अधिकार का उपयोग कर मैंने देश-काल के अनुसार कुछ परिवर्तनो को मान्यता दी है। ऐसा मैने ही नहीं, पूर्वाचार्यो ने भी किया है। स्वामीजी ने भी अपने युग मे कुछ नया किया। उनके बाद जयाचार्य ने अपने समय मे नई धारणाओं को जन्म दिया। वर्तमान मे हम अपनी तटस्थ नीति से सम्भावित परिवर्तनो के दौर से गुजर रहे है । हमारी साधना का मूल आधार है सयम । सयम की मौलिक आस्थाओ का परिवर्तन न कभी हुआ है और न कभी होने का है। सामयिक परिवर्तनो को मर्यादा का अतिक्रमण नहीं माना जा सकता ।
प्रश्न : इन दिनो अनेक पत्रो, पैम्फलेटो आदि के द्वारा आपके धर्मसघ
अपने आसपास १६
पर शिथिलाचार के आरोप लगाये जा रहे है। इस सम्बन्ध में आपके क्या विचार हैं ?
उत्तर : किसी वस्तु का निर्माण कठिन होता है, उसका ध्वंस कोई भी कर सकता है। आरोप लगाना भी बहुत सुगम है । कोई व्यक्ति किसी भी समय किसी पर आरोप लगा सकता है। मै अब तक भी समझ नहीं पाया हू कि यह शिथिलाचार क्या बला है ? शिथिलाचार की वात नई नही, रूढ हो चुकी है । पूज्य कालूगणी के समय कुछ व्यक्तियो द्वारा शिथिलाचार का आरोप लगाया गया था । श्रीमज्जयाचार्य के समय में शियिलाचार की चर्चा काफी तीव्र थी । इससे भी आगे चले तो तेरापथ के आद्यप्रवर्तक श्री भिक्षुस्वामी पर भी यह आरोप लगाया गया था । स्वामीजी की कठोर चर्या को भी जिन्होने नहीं बख्शा, उनके वंशज धर्म-सघ की वर्तमान प्रवृत्तियो पर भी मनमाना कीचड उछाल सकते है ।
मै स्वय ही नहीं समझ पाया कि शिथिलाचार शब्द से लोग क्या कहना चाहते है ? घिसा-पिटा और रटा रटाया यह शब्द धर्म-सघ की गरिमा को तब तक क्षीण नही कर सकेगा, जब तक सघ के सदस्य मौलिक आचार मे दृढ रहेगे । जो व्यक्ति शिथिलाचार की बात कहते है, मै उन्हे पूछना चाहूंगा कि शिथिलाचार क्या है और दृढाचार क्या है ? यदि सघ द्वारा मान्य नई प्रवृत्तियों को ही शिथिलाचार कहा जाए और उन प्रवृत्तियो को छोड़ दिया जाए तो उस धर्मसघ को रूढ होने से कैसे बचाया जा सकता है?
धर्मसघ की मौलिकता को सुरक्षित रखते हुए सामयिक परम्पराओ मे परिवर्तन का सिद्धान्त हमे मान्य है। इसी आधार पर हमने युगानुकूल नई प्रवृत्तियों को स्वीकार किया है और प्राचीन परम्पराओ मे सशोधन किया है । भविष्य में भी ऐसी सभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । प्रश्न : 'योगक्षेम वर्प' की सफल आयोजना के वाट आप पाली पधार रहे है। अगला वर्ष आपने 'अणुव्रत वर्ष' के रूप में मनाने की |
3cebff23d4672bc961740db9dc172eaf0699c799 | pdf | दो करोड़ नब्बे लाख बहत्तर हज़ार बीस संध्या एक हज़ार नौ सौ बजे मुख्य समाचार एक केन्द्र सरकार ने नई शिक्षा नीति को स्वीकृति प्रदान की दो हजार पैंतीस तक उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकल नामांकन दर पचास प्रतिशत तक पहुंचाना लक्ष्य
राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या दस हजार के करीब पहुंची लगभग चार हजार मरीज उपचार के बाद हुए स्वस्थ
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कोरोना जांच का दायरा बढ़ाने पर दिया जोर कहा वैश्विक महामारी से निपटने के लिए किया जायेगा स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार
चतरा जिले में पूर्व नक्सली कमांडर सहित चार अपराधकर्मी गिरफ्तार सिमडेगा में भी कुख्यात अपराधी पुलिस गिरफ्त में
दो तीन चार केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति2020 को स्वीकृति प्रदान कर दी
इसमें जो बड़े सुधार किए गए हैं उनमें वर्ष दो हज़ार पैंतीस तक उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकल नामांकन दर को पचास प्रतिशत के लक्ष्य तक पहुंचाना और विद्यार्थियों को अलगअलग स्तर पर शिक्षा छोड़ने या प्रवेश लेने की सुविधा प्रदान करना भी शामिल है
नई शिक्षा नीति में किए गए अन्य प्रमुख सुधारों में शिक्षा संस्थाओं को अकादमिक प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करना और सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिए एक ही विनियामक बनाना भी शामिल है
इसके अलावा तरह तरह के निरीक्षण के स्थान पर स्वीकृति लेने के लिए स्वघोषणा पर आधारित पारदर्शी प्रणाली कायम करने की बात भी नई शिक्षा नीति में कही गई है
राज्य में कोरोना संक्रमण का प्रसार लगातार बढ़ रहा है
पिछले चौबीस घंटे में सात सौ इक्कानवे नये मामले सामने आये हैं
इसके साथ ही राज्य में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या नौ हजार छह सौ अड़सठ हो गई है
इनमें तीन हजार नौ सौ चौरासी मरीज उपचार के बाद स्वस्थ भी हुए हैं
राज्य में फिलहाल पांच हजार पांच सौ नब्बे सक्रिय केस हैं
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक महामारी कोरोना से राज्य में अब तक चौरानवे लोगों की मौत हुई है
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य में कोरोना जांच का दायरा बढ़ाने पर जोर दिया है
पलामू जिले में स्थित पीएमसीएच में डायग्नोस्टिक लैब का ऑनलाईन उद्घाटन करते हुए श्री सोरेन ने कहा कि कोरोना संक्रमण के हालात को देखते हुए राज्य सरकार ने शुरूआती दिनों से ही तेज गति से काम करती रही है
उन्होंने कहा कि इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं का लगातार विस्तार किया जा रहा है
राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने मनरेगा कर्मियों से काम पर लौटने की अपील की है
रामगढ़ में पत्रकारों से बातचीत में श्री आलम ने कहा कि मनरेगा कर्मियों की उचित मांगों पर गंभीरता से विचार किया जायेगा
जैसा की आपको मालूम है कि राज्य के मनरेगाकर्मी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं
सिमडेगा जिले में चैंबर ऑफ कॉमर्स के आह्वान पर दुकानदारों ने सेल्फ लॉकडाउन आज से शुरू कर दिया है
देश में कोरोना संक्रमण से स्वस्थ लोगों की संख्या दस लाख तक पहुंच गई है
इसके साथ ही स्वस्थ होने की दर अब चौंसठ दशमलव पांचएक प्रतिशत हो गयी है
कोरोना से मृत्यु दर भी घटकर दो दशमलव दोतीन प्रतिशत रह गई है
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि पिछले चौबिस घंटे में पैंतीस हजार दो सौ छियासी मरीज ठीक हुए हैं
अब तक कुल नौ लाख अठासी हजार उनतीस रोगी स्वस्थ हो चुके हैं
अधिकारी ने बताया कि पिछले चौबिस घंटे में देश में कुल अड़तालीस हजार पाँच सौ तेरह लोग संक्रमित हुए
इसके साथ ही संक्रमितों की कुल संख्या पंद्रह लाख इकतीस हजार छः सौ उनहत्तर हो गई है
इनमें से पांच लाख नौ हजार चार सौ सैंतालीस का इलाज चल रहा है
एक दिन में सात सौ अड़सठ लोगों की मृत्यु के साथ कोविड19 से मृतकों की संख्या चौंतीस हजार एक सौ तिरानवे हो गई है
इस बीच भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषदआईसीएमआर ने कहा कि पिछले चौबिस घंटों के दौरान विभिन्न प्रयोगशालाओं में चार लाख आठ हजार आठ सौ पचपन कोविड19 नमूनों की जांच की गई
अब तक देशभर में एक करोड सतहत्तर लाख तैंतालीस हजार सात सौ चालीस नमूनों की जांच की जा चुकी है
फिलहाल देश में एक हजार तीन सौ सोलह जांच केन्द्र हैं जिसमें नौ सौ छह सरकारी और चार सौ दस निजी क्षेत्र के जांच केन्द्र शामिल हैं
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने लोगों को सलाह दी है कि वे नोवल कोरोना वायरस से अपने को सुरक्षित रखने के लिए सभी बुनियादी एहतियाती उपायों का पालन करें और सामाजिक दूरी बनाए रखें
आकाशवाणी का समाचार सेवा प्रभाग आज अपने फोन इन कार्यक्रम में कोविड19 पर विशेष परिचर्चा प्रसारित करेगा
यह कार्यक्रम रात नौ बजकर तीस मिनट से एफएम गोल्ड और अतिरिक्त मीटरों पर सुना जा सकता है
सफदरजंग अस्पताल में श्वसन रोग विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ नितेश चर्चा में भाग लेंगे
श्रोता स्टूडियो में हमारे टोलफ्री नम्बर एक आठ शून्य शून्य एक एक पाँच सात छः सात पर फोन करके विशेषज्ञ से सवाल पूछ सकते हैं
श्रोता शून्य एक एक दो तीन तीन एक चार चार चार चार पर भी सवाल पूछ सकते हैं
चतरा जिले के लावालौंग थाना क्षेत्र से पुलिस ने तीन लुटेरों को गिरफ्तार किया है
इनके पास से हथियार सहित कई आपत्तिजनक चीजें बरामद की गई हैं
गिरफ्तार अपराधियों में नक्सलियों का एक पूर्व एरिया कमांडर भी शामिल है
पुलिस ने एक अन्य कार्रवाई में एक अफीम तस्कर को भी गिरफ्तार किया है
उसके पास से एक सौ पन्द्रह किलो अफीम डोडा का चूर्ण बरामद किया गया है
उधर सिमडेगा जिले में भी पुलिस ने एक कुख्यात अपराधी को हथियार के साथ गिरफ्तार किया है
इस अपराधी के खिलाफ जिले के विभिन्न थानों में ग्यारह संगीन मामले दर्ज हैं
हजारीबाग में भी पुलिस ने कुख्यात अमन श्रीवास्तव गिरोह के एक सक्रिय सदस्य को गिरफ्तार किया है
पुलिस को लंबे समय से इस अपराधी की तलाश थी
रफाल लडाकू विमान की पहली खेप बाद अम्बाला पहुंच गई है
रफाल के इस खेप में तीन सिंगल सीटर और दो दोसीटर विमान हैं
इन्हें हरियाणा के अम्बाला स्थित एयरबेस में भारतीय वायुसेना मे शामिल किया जायेगा
फ्रांस की कंपनी दस्सों द्वारा निर्मित इन लडाकू विमानों को सोमवार को दक्षिणी फ्रांस के बॉर्डे स्थित मेरीनियाख हवाईअड्डे से रवाना किया गया था
वर्ष दो हज़ार सोलह में भारत और फ्रांस के बीच हुए सौदे के तहत भारत ने फ्रांस से उनसठ हजार करोड रूपये में छत्तीस विमानों की खरीद की थी
फ्रांस में भारतीय दूतावास ने एक बयान में कहा है कि दस विमानों की डिलीवरी तय समय के भीतर पूरी कर ली गई है
इनमें से पांच विमान प्रशिक्षण मिशन पर फ्रांस में ही रहेंगे
अगले वर्ष के अंत तक सभी छत्तीस विमान भारत को सौंप दिये जायेंगे
एशियाई विकास बैंक ने अपने एशिया प्रशान्त आपदा मोचन कोष से भारत को तीस लाख अमरीकी डॉलर के अनुदान की मंजूरी दी है
इससे देश में कोविड महामारी से निपटने के तात्कालिक उपायों में मदद मिलेगी
इस वर्ष अट्ठाईस अप्रैल को बैंक ने भारत को कोविड महामारी का मुकाबला करने के लिए पंद्रह अरब अमरीकी डॉलर की मदद की घोषणा की थी
झारखण्ड कैडेर आईपीएस अधिकारी श्री आलोक का कल रात निधन हो गया
वे कैंसर से पीड़ित थे
आज राजधानी रांची के डोरण्डा स्थित जैप वन के ग्राउंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें श्रद्धांजलि दी
आलोक सयुक्त बिहार के के दौरान वर्ष एक हज़ार नौ सौ निन्यानवे में बतौर डीएसपी बहाल हुए थे
झारखण्ड बनने के बाद वे झारखण्ड कैडर में आये और एक मार्च दो हज़ार सोलह को उन्हें आईपीएस रैंक में प्रोन्नती मिली थी
आज अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जा रहा है
बाघ संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए दुनिया भर में हर साल उनतीस जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने अपने संदेश में कहा है कि देश में बाघों की संख्या में वृद्धि में वन्य कर्मचारियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है
उन्होंने कहा कि ताजा गणना के अनुसार देश में बाघों की संख्या दो हजार नौ सौ सरसठ है
देश में चार वर्षों में इनकी संख्या सात सौ इकतालीस बढी है
पर्यावरण मंत्री ने कहा कि एक हज़ार नौ सौ तिहत्तर में जब बाघ परियोजना शुरू की गई थी उस समय देश में सिर्फ नौ बाघ अभयारण्य थे जिनकी संख्या बढ़कर अब पचास हो गई है
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा कर दी है
इस वर्ष का लाइफ टाइम उत्कृष्टता पुरस्कार प्रोफेसर अशोक साहनी को भूगर्भ विज्ञान के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया है
राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान विशाखापत्तनम के डॉ वी वी एस सरमा और ध्रुवीय तथा समुद्री अनुसंधान केन्द्र गोवा के डॉ रविचन्द्रन को ध्रुवीय और समुद्र अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया है
वायुमंडलीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी का राष्ट्रीय पुरस्कार डॉ एस सुरेश बाबू को प्रदान किया गया है
स्वतंत्रता दिवस समारोह की तैयारियों को लेकर धनबाद जिले में उपायुक्त की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजित की गई
बैठक में कोरोना संक्रमण के बढ़ते दायरे को देखते हुए एहितियाती उपायों के साथ स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने का निर्णय किया गया
पंजाब नैशनल बैंक के बोकारो मंडल के अधिकारियों और कर्मचारियों में एक कैंसर पीड़ित युवा की मदद कर एक अनुकरणीय पहल की है
उपायुक्त की पहल पर बैंक अधिकारियों ने पीड़ित युवा के ईलाज के लिए एक लाख रूपये का अर्थिक सहयोग दिया है
भारत रत्न जे आर डी टाटा की आज एक सौ सोलहवीं जयंती जमशेदपुर में सादगीपूर्वक मनाई गई
इस दौरान टाटा स्टील की अनुषंगिक इकाई जेमीपॉल की ओर से रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया
रांची के उपायुक्त ने डॉक्टर्स जुनियर इंजिनियर प्रखण्ड पशुपालन पदाधिकारी और स्वास्थ्यकर्मियों सहित सोलह कर्मचारियों को शोकॉज नोटिस जारी किया है
समाप्त |
c28c28578f76b5f8fce751e6dd839309d4e720257f80b1c543ef51c5c2c899f4 | pdf | होना "अज़ीमत" है । हिजरत के वक़्त सिद्दीके अकबर (रज़ि) जैसे फ़िदाई ने रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ऊंटनी पेश की थी तो हुजूर ने कीमत
तै करके कर्ज़ ली।
लेकिन जब तक रगबत व तअल्लुक का यह दर्जा और यह जज़बा पैदा न हो उस वक्त तक मुनासिब तौर पर उनकी माली मदद की जाती रहे। (ग) माली इमदाद के आदाब में से एक यह भी है कि बहुत ही छुपे तौर पर और इज़्ज़त व एहतिराम के साथ दिया जाय और देने वाले अमीर लोग दीन की ख़िदमत में लगे हुये ग़रीबों के कुबुल कर लेने को उनका एहसान समझें और उनको अपने से बड़ा समझें कि बावजूद गरीबी व तंगी के वह दीन के लिये घर से निकलते हैं, दीन के लिये घर से निकलना हिजरत की सिफत है, और उनकी मदद करना नुसरत की सिफत है।
और "अनसार" कभी "मुहाजिरीन" के बराबर नहीं हो सकते ।
(घ) इस राह में काम करने वालों की मदद ज़कात व सदकात से ज़्यादा तोहफे की सूरत में की जाय। ज़कात व सदक़ात की मिसाल हांडी के मैल कुचैल और रद्दी हिस्से की सी है कि उसको निकालना ज़रूरी है वरना सारी हंडिया खराब रहेगी। और तोहफ़े की मिसाल ऐसे समझो जैसे कि तय्यार खाने में खुशबू
डाली जाय, और उस पर चांदी सोने के वरक लगा दिये जायें ।
(ड) दीन के लिये घर से निकलने वालों की मदद की एक सबसे बड़ी सूरत यह भी है कि उनके घर वालों के पास जाकर उनके सौदा वगैर और उनकी ज़रुरतों की फिक्र करें, और उनको आराम पहुंचाने की कोशिश करें और उन्हें बतायें कि तुम्हारे घर के लोग कैसे अज़ीमुश्शान काम में निकले हुये हैं, और वह किस कदर खुशनसीब हैं, गरज़ यह कि ख़िदमत और तरगीब से इतना मुतमइन करें कि वह खुद अपने घर के निकले हुये लोगों को लिखें कि "हम लोग यहां हर तरह आराम से हैं, तुम इत्मिनान के साथ दीन के काम लगे रहो।"
(च) माली मदद के सिलसिले में हालात जानने की कोशिश करने की भी ज़रुरत है (यानी दीन के काम में लगे रहने वालों के हालात पर गौर करे, और टोह लगाये कि उनकी क्या ज़रूरियात हैं और उनकी गुज़र बसर कैसी है)।
(छ) हालात जानने की एक सूरत जिसको ख़ास तौर से रिवाज देना चाहिये यह है कि बड़े लोग अपनी औरतों को दीन के वास्ते निकलने वाले गरीबों के घरों में भेजा करें। इससे उन गरीबों के घर वालों की दिलदारी और हौसला अफ़ज़ाई भी होगी और उनके अन्दरुनी हालात का भी कुछ इलम होगा।
इसी सिलसिले में फरमाया- इनफाक फी सबीलिल्लाह (खुदा की राह में खर्च करने) पर नुसूस' में दुनयावी बरकात का जो वादा किया गया है वह उसका "अज्ज" नहीं है। नेकियों के अस्ल अज्ज को तो दुनिया बरदाश्त ही नहीं कर सकती, वहां की ख़ास नेमतों की बरदाश्त यहाँ कहाँ ? इस दुनिया में तो पहाड़ जैसी सख़्त मखलूक और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जैसे बड़े पैग़म्बर भी एक तजल्ली की ताब न ला सके ।
فلتاتجربة الجبل جعله دكاؤن
फरमाया जन्नत की नेमतें अगर यहां भेज दी जायें तो खुशी से मौत वाके हो जाय । यही हाल वहाँ के अज़ाब का है। अगर दोज़ख़ का एक बिच्छू इस दुनियां की तरफ रुख करे तो यह सारी दुनिया उसके ज़हर की तेज़ी से सूख जाय ।
इसी सिलसिले में फरमाया खुदा की राह में खर्च करने वालों की मिसाल कुरआन पाक में जो उस शख़्श से दी गई है जिसने एक दाना बोया और उससे सात सौ दाने पैदा
हुये ।
مثل الذين ينفقون أموالهم في سبيل الله كمثل حية أنبتت سبع سنابل في كل سنبلة مائة والله يضاعف لمن لا والله واسع عليم
1. कुरआन व हदीस
तो यह मिसाल दुनियावी बरकात ही की है। आख़िरत में इस इनफाक' का जो अज्ज मिलेगा वह तो बहुत ही ऊँचा होगा ओर उसकी तरफ इशारा इससे अगली आयत में है।
الذين ينفقون أموالهم سبيل الله ثم لايعون ما التقوا مولااذي لهناجرهم عندرتها عليهم
इस में
का इशारा उसी असली अज्र की तरफ है जो मौत के बाद आख़िरत में मिलने वाला है।
इसी सिलसिले में फ़रमाया अस्ल तो यही है कि अल्लाह की रज़ा और आख़िरत के अज ही के लिये दीनी काम किया जाय लेकिन तरगीब में मौके के मुताबिक दुनियावी बरकात का भी जिक्र करना चाहिए बाज़ आदमी ऐसे होते हैं कि शुरू में दुनियावी बरकात ही की उम्मीद पर काम में लगते हैं, और फिर इसी काम की बरकत से अल्लाह तआला उन्हें हकीकी इख़्लास भी अता फरमा देता है।
1 खर्च करना
تتالينا انزلت إلى من يرتقي
फ़रमाया दुनियावी बरकात हमारे लिये मौऊद' हैं, उनको मक़सूद व मतलूब नहीं बनाना चाहिये, लेकिन उनके लिये दुआयें खूब करना चाहियें, अल्लाह की तरफ से आने वाली हर नेमत का बन्दा बहुत ज़्यादा मोहताज है।
फ्रमाया- अल्लाह तआला ने जो वादे फरमाये हैं, बिला शुबह वह बिल्कुल यक़ीनी हैं, और आदमी अपनी समझ-बूझ और अपने तजुर्बात की रोशनी में जो कुछ सोचता है और जो इरादे बनाता है वह सिर्फ ख़्याली और वहमी बातें हैं मगर आज का आम हाल यह है कि अपने ज़ेहनी इरादों और अपने तजवीज़ किये हुये ज़रीओं व अस्बाब और अपनी सोची हुई तदबीरों पर यकीन व भरोसा करके लोग उनके मुताबिक जितनी मेहनतें और कोशिशें करते हैं अल्लाह के वादों की शर्तें पूरी करके उनका मुस्तहिक बनने के लिये उतना नहीं करते, जिससे मालूम होता है कि अपने ख़्याली अस्बाब पर उनको जितना भरोसा है उतना अल्लाह के वादों पर नहीं है, और यह हाल सिर्फ हमारे अवाम का ही नहीं है बल्कि सब ही अवाम व ख़्वास इल्ला मन शाअल्लाह इलाही वादों 1. जिनका वादा किया गया है।
वाले यकीनी और रोशन रास्ते को छोड़ कर अपनी ख़्याली और वहमी तदबीरों ही में उलझे हुये हैं। पस हमारी इस तहरीक का ख़ास मक़सद यह है कि मुसलमानों की ज़िन्दगी से इस उसूली और बुनयादी ख़राबी को निकालने की कोशिश की जाय, और उनकी ज़िन्दगियों और सरगरमियों को ग़लत ख़्यालात और वहमों की लाइन के बजाय अल्लाह के वादों के यकीनी रास्ते पर डाला जाय। अम्बिया अलौहिमुस्सलाम का तरीका यही है और उन्होंने अपनी उम्मतों को यही दावत दी है कि वह अल्लाह के वादों पर यकीन करके और भरोसा करके उनकी शर्तों को पूरा करने में अपनी सारी कोशिशें खर्च करके उनके हकदार बनें। अल्लाह के वादों के बारे में जैसा तुम्हारा यकीन होगा वैसा ही तुम्हारे साथ अल्लाह का मामला होगा। हदीसे कुदसी है।
"أنا عند ظن عبدی
1. हज़रत मौलाना का यह मलफूज बहुत मुखतसर अलफ़ाज में था, आम लोगों को इसका समझना मुश्किल होता । नाचीज़ मुरत्तिब में ने किसी क़दर वजाहत और तशरीह के साथ अपनी इबारत हज़रत के मतलब को अदा किया है, गोया इस मलफूज़ के अलफ़ाज़ व इबारत की ज़िम्मेदारी खास तौर से इस आजिज़ पर है। अगर्चे अक्सर दूसरे मलफ़ज़ात में भी वजाहत व आसान करने के ख़्याल से ताबीर ओर तर्ज़ अदा में कुछ थोड़ी बहुत तब्दीली की गई है-- नोमानी
फरमाया- इस राह में काम करने की सही तरतीब यूं है कि जब कोई कदम उठाना हो, जैसे खुद तबलीग़ में जाना हो या कोई तब्लीगी काफला कहीं भेजना हो, या शुकूक व शुबहात रखने वाले किसी शख़्स को मुतमइन करने के लिये। उससे मुखातब होने का इरादा हो तो सबसे पहले अपनी नाअहलियत और बेबसी और वसायल व असबाब से अपने खाली हाथ होने का ख़्याल करके अल्लाह को हाज़िर व नाज़िर और कादिरे मुतलक यकीन करते हुये पूरी गिड़गिड़ाहट व रोने के साथ उससे अर्ज करे कि ऐ खुदा ! तूने बारहा बगैर अस्बाब के भी सिर्फ अपनी पूरी कुदरत से बड़े-बड़े काम कर दिये हैं। इलाही बनी इसराईल के लिये तूने सिर्फ अपनी कुदरत ही से समुन्दर में खुशक रास्ता पैदा कर दिया था। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिये तूने अपनी रहमत और कुदरत ही से आग को गुलज़ार बना दिया था और ऐ अल्लाह! तूने अपनी छोटी-छोटी मखलूकात से भी बड़े-बड़े काम लिये हैं, अबाबील से तूने अब रहा के हाथियों वाले लशकर को हार दिलवाई और अपने घर की हिफाज़त कराई । अरब के ऊंट चराने वाले अनपढ़ों से तूने दीन को सारी दुनिया में चमकाया और कैसर व किसरा की हुकूमतों को टुकड़े-टुकड़े करा दिया। पस ऐ अल्लाह! अपनी इस पुरानी सुनत के मुताबिक मुझ निकम्मे नाकारा और अजिज़ व कमज़ोर बन्दे से भी काम ले। और मैं तेरे दीन के जिस काम का इरादा कर रहा हूं उसके लिये जो तरीका
तेरे नज़दीक सही है मुझे उसकी तरफ रहनुभाई फरमा, और जिन अस्बाब की ज़रुरत हो वह सिर्फ अपनी कुदरत से अता फरमादे ।
बस अल्लाह से यह दुआ मांग कर फिर काम में लग जाय। जो अस्बाब अल्लाह की तरफ से मिलते रहें उनसे काम लेता रहें और सिर्फ अल्लाह ही की कुदरत व मदद पर पूरा भरोसा रखते हुये अपनी कोशिश भी भरपूर करता रहे और रो-रो कर उससे मदद और "इनजाज़े वअद"1 की दरख्वास्तें भी करता रहे बल्कि अल्लाह की मदद ही को असल समझे और अपनी कोशिश को इसके लिये शर्त और परदा समझे ।
फ़रमाया खुद काम करने से भी ज्यादा तवज्जोह और मेहनत दूसरों को इस काम में लगाने और उन्हें काम सिखाने के लिये करनी चाहिये । शैतान जब किसी के मुतअल्लिक यह समझ लेता है कि यह तो काम के लिये खड़ा हो ही गया और अब मेरे बैठाये बैठने वाला नहीं तो फिर उसकी कोशिश यह होती है कि खुद तो लगा रहे मगर दूसरों को लगाने की कोशिश न करें, और इस लिये वह इस पर राज़ी हो जाता है कि यह शख़्स इस भलाई के काम में पूरे तौर इस क़दर मसरुफियत से लग जाय कि दूसरों को दावत देने और लगाने का उसको होश ही न हो, पस शैतान को हार
1. कुरआन का वादा "का- न हक़्क़न अलैना नसरुल मुमिनीन" की तरफ इशारा है।
यूं ही दी जा सकती है कि दूसरों को उठाने और उन्हें काम पर लगाने और काम सिखाने की तरफ ज़्यादा से ज़्यादा तवज्जोह दी जाय और दावत इललखैर और दलालत इललखैर के काम पर अज्ज व सवाब के जो वादे कुरआन व हदीस में फरमाये गये हैं उनका ख़्याल और ध्यान करते हुये और उसी को अपनी तरक़्क़ी और तकरर्ब 2 का सबसे बड़ा ज़रीआ समझते हुये इसके लिये कोशिश की जाय ।
फ़रमाया-दीन में ठहराव नहीं । या तो आदमी दीन में तरक़्क़ी कर रहा होता है और या नीचे गिरने लगता है। इसकी मिसाल यूं समझो कि बाग़ को जब पानी और हवा मुवाफिक हो तो वह हरियाली व ताज़गी में तरक़्क़ी ही करत रहता है और जब मौसम मुवाफिक न हो या पानी न मिले तो ऐसा नहीं होता कि वह हरयाली और ताज़गी अपनी जगह पर ठहरी रहे बल्कि उसमें कमी शुरु हो जाती है। यही हालत आदमी के दीन की होती है ।
फ़रमाया लोगों को दीन की तरफ लाने और दीन के काम में लगाने की तरकीबें सोचा करो (जैसे दुनिया वाले अपने दुनियावी मक़ासिद के लिये तरकीबें सोचते रहते हैं) और जिसको जिस तरह से मुतवज्जेह कर सकते हो उसके साथ उसी रास्ते से कोशिश करो।
1. नेकी की तरफ दावत और नेकी के कामों पर दलालत । 2. खुदा से क़रीब होना ।
تأتوا البيوت من ابوابها
फ़रमाया- तबीअत मायूसी (ना-उम्मीदी) की तरफ ज्यादा चलती है, क्योंकि मायूस हो जाने के बाद आदमी अपने को अमल का ज़िम्मेदार नहीं समझता और फिर उसे कुछ करना नहीं पड़ता। खूब समझ लो यह नफ़्स और शैतान का बड़ा धोका है।
फ़रमाया- अस्बाब की कमी पर नज़र डाल कर मायूस हो जाना इस बात की निशानी है कि तुम अस्बाब परस्त हो और अल्लाह के वादों और उसकी गैब की ताकतों पर तुम्हारा यकीन बहुत कम है, अल्लाह पर भरोसा करके और हिम्मत करके उठो तो अल्लाह ही अस्बाब पैदा कर देता हैं, वरना आदमी खुद क्या कर सकता है। मगर हिम्मत और ताकत भर कोशिश शर्त है।
किस्त नम्बर 8
जो लोग ज़िन्दगी के अकेले मामलात या साथ के कामों में यूरोप की मसीही क़ौमों के तौर तरीकों पर चल रहे हैं । और उसी को इस ज़माने में सही काम का तरीका समझते हैं उनके रवैये पर रंज व अफ़सोस का इज़हार करते हुये एक बैठक में फ़रमायाः"ज़रा सोचो तो! जिस क़ौम के आसमानी उलूम (यानी हज़रत मसीह अलैहिस्सलाम के लाये हुये उलूम) का चिराग, उलूमे मोहम्मदी (कुरआन व सुन्नत) के सामने बुझ गया बल्कि अल्लाह की तरफ से मनसूख कर दिया गया और बराहे रास्त उससे रोशनी हासिल करने को साफ मना फरमा दिया गया, उसी क़ौम की अहवा व अमानी (यानी उन यूरोपियन मसीही क़ौमों के अपने खुद के बनाये हुये नज़रियों को इस क़ुरआन व सुन्नत की हामिल मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत का इख़्तियार कर लेना और उसको सही काम का तरीक़ा समझना अल्लाह तआला के नज़दीक कितना बुरा और से किस क़दर गुस्से वाला होगा? और अक़्ल के हिसाब से भी यह बात कितनी ग़लत है कि मोहम्मदी वही के महफूज होते
हुये (जिसमें जिन्दगी के तमाम इनफिरादी व इजतिमाई शोबों के मुतअल्लिक पूरी हिदायतें मौजूद हैं) ईसाई कौमों के तौर तरीकों की पैरवी की जाय, क्या यह उलूमे मोहम्मदी की सख्त नाक़दरी नहीं है?
फ्रमाया-हम जिस दीनी काम की दावत देते हैं जाहिर में तो यह बड़ा सादा सा काम है, लेकिन हक़ीक़त में बड़ा नाजुक काम है। क्योंकि यहां मक़सूद सिर्फ करना कराना ही नहीं है बल्कि अपनी कोशिश करके अपनी मजबूरी का यक़ीन और अल्लाह तआला की कुदरत व मदद पर भरोसा पैदा करना है। अल्लाह का तरीका यही है कि अगर अल्लाह की मदद के भरोसे पर अपनी सी कोशिश हम करें तो अल्लाह तआला हमारी कोशिश और हरकत ही में अपनी मदद को शामिल कर देते हैं। कुरुआन मजीद की आयत
में इसी तरफ इशारा है, अपने को बिल्कुल बेकार समझ के बैठे रहना तो "जबरियत" है और अपनी ही ताक़त पर भरोसा करना "कदरियत (कदर करना) है (और यह दोनों गुमराहियां हैं) और सही इस्लाम इन दोनों के दरमियान है। यानी अल्लाह तआला ने मेहनत और कोशिश की जो हकीर सी ताकत और सलाहियत हमको दे रखी है, अल्लाह के हुक्म को पूरा करने में उसको तो पूरा-पूरा लगा दें और इसमें |
8dda54dca539c27bc73b1f55b5f65c89985d23d6 | web | तमिलनाडु में साहित्यकारों और कलाकारों की एक वैचारिक सभा में डीएमके के युवा नेता उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म के उन्मूलन वाले बयान के बाद भाजपा और संघ का पूरा गिरोह अपने सारे कपड़े फाड़कर देश भर में बबाल मचाने में भिड़ा है। उनके ब्रह्मा जी को छोड़कर कुनबे में जितने भी देव, दानव, गण, भक्तगण, गणवेशधारी और हिंदुत्व पुंगव, बन्धु और भगिनियां हैं, वे पूरा गोला बारूद लेकर इसे धर्मोन्माद में बदलने और राजनीतिक मुद्दा बनाने में जुटे हुए हैं।
'सनातन उन्मूलन सम्मेलन' में भाग लेते हुए पहले उदयनिधि स्टालिन ने 'भारतीय मुक्ति संग्राम में आरएसएस का योगदान' शीर्षक से व्यंग्य चित्रों वाली एक पुस्तक का विमोचन किया था; भक्तगण इसके बारे में एक भी शब्द नहीं बोल रहे, वे इसके बाद दिए गए भाषण में उन्होंने सनातन धर्म को लेकर जो टिप्पणियां की थीं उन्हें लेकर भनभनाये हुए हैं।
उदयनिधि स्टालिन ने अपने संबोधन में सम्मेलन के शीर्षक को बहुत अच्छा बताया और इसके लिए बधाई देते हुए कहा कि 'सनातन विरोधी सम्मेलन' के बजाय 'सनातन उन्मूलन सम्मेलन' रखा जाना इसलिए ठीक है क्योंकि हमें कुछ चीज़ों को ख़त्म करना होगा। सिर्फ उनका विरोध करने से काम नहीं चल सकता। जैसे मच्छर, डेंगू बुखार, मलेरिया, कोरोना वायरस इत्यादि का विरोध करना काफी नहीं होता, उन्हें खत्म करना होता है ठीक उसी तरह सनातन धर्म भी ऐसा ही है जिसका हमें विरोध नहीं करना है बल्कि इसका उन्मूलन करना है।
जिस सनातन को लेकर इतना हल्ला मचाया जा रहा है वह सनातन क्या है? इस पर आने से पहले यह जानना दिलचस्प होगा कि पिछले कुछ महीनों- अधिकतम एक साल- से आरएसएस और उसके कुनबे की भाषा में अचानक सनातन के इतनी प्रमुखता हासिल करने के पीछे मकसद क्या है? संघ और उसकी सभी भुजाएं अब तक हिन्दू और हिंदुत्व की बातें करती रही हैं। हिन्दू धर्म वालों की एकता बनाकर, हिंदुत्व पर आधारित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का दावा करती रही हैं।
गोलवलकर की 1939 में लिखी किताब 'हम और हमारी राष्ट्रीयता', जिसे आरएसएस ने अभी तक आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया, फिलहाल उससे अपनी असंबद्धता ही जाहिर की है, उसमें हिन्दू राष्ट्र में रहने की 5 योग्यतायें गिनाते समय एक धर्म- सनातन धर्म- का उल्लेख छोड़कर अभी तक संघ के प्रचार साहित्य में भी सनातन का उस तरह जिक्र नहीं मिलता जिस तरह हाल के कुछ महीनों में शुरू हुआ है। हर जगह हिन्दू पहचान, हिन्दू धर्म, हिंदुत्व और उस पर आधारित हिन्दू राष्ट्र की बात मिलती है। हिंदुत्व भी वह वाला जिसे उन सावरकर ने परिभाषित किया था जो खुद किसी धर्म में विश्वास नहीं करते थे और घोषित रूप से स्वयं को नास्तिक बताते थे।
संघी गिरोह द्वारा अचानक से हिन्दू धर्म और हिंदुत्व को कब और क्यों गंगा में सिरा दिया गया और बंद अंधेरी गुफा में पड़े सनातन की प्राण प्रतिष्ठा कर दी गयी? यह अचानक नहीं हुआ। इसकी भी एक क्रोनोलोजी है। मुख्य वजह यह है कि हिंदुत्ववादी साम्प्रदायिकता के उभार के बाद से देशभर में चले विमर्श में हिंदुत्व के वर्णाश्रम, जाति श्रेणी क्रम के अमानवीय आधार, लोकतंत्र और समता के निषेध के आपराधिक रूप जनता के सामने आये हैं- नतीजे में इसकी अमानुषिकता उजागर हुयी है।
इनके कथित सामाजिक समरसता के अभियानों के बावजूद दलितों, आदिवासियों, अन्य पिछड़े समुदायों और महिलाओं के एक बड़े हिस्से में हिंदुत्व के असली चेहरे की भयावहता सामने आयी है- उनकी इसके प्रति अरुचि बढ़ी है, अविश्वास बढ़ते बढ़ते तिरस्कार भाव तक पहुंचने लगा है। इसी के साथ, इसी बीच, हिन्दू शब्द के उद्गम को लेकर आई जानकारियों ने भी इस गिरोह को असुविधा में डाला है। लिहाजा बहुत ही सोचे समझे तरीके से पिछले कुछ महीनों से इस कुनबे ने हिन्दू, हिंदुत्व की केंचुली उतारना और सनातन की खाल ओढ़ कर नया बाना धारण करना शुरू कर दिया है।
हालांकि जिस सनातन की ये दुहाई दे रहे हैं वह सनातन क्या और कितना सनातन है, यह बात भी कोई दबी छिपी नहीं है। सनातन एक आधुनिक पहचान है जो विविधताओं से भरी हिन्दू परम्परा के प्रभुत्वशाली ब्राह्मण धर्म में कुरीतियों के विरुद्ध हुए धार्मिक सुधार आंदोलनों के मुकाबले घनघोर पुरातनपंथी रूढ़ीवाद की पहचान के रूप में सामने आयी।
बंगाल के नवजागरण सहित ब्रह्म समाज आन्दोलन, दक्षिण के जाति और वर्णाश्रम विरोधी मैदानी और वैचारिक संघर्षों, महाराष्ट्र के सामाजिक सुधारकों की मुहिमों और खासकर उत्तर भारत में मूर्तिपूजा, अंधविश्वास और एक हद तक जाति विरोधी आन्दोलन आर्य समाज के बरक्स असमानता, ऊंचनीच और भेदभाव का धुर पक्षधर पुराणपंथ सनातन के नाम पर गिरोहबंद हुआ।
18वीं और 19वीं सदी में सनातनियों का सबसे बड़ा युद्ध जिस आर्य समाज के साथ हुआ था उस आर्य समाज का तो नारा ही वेदों की ओर वापस लौटने का था, इसलिए सनातन धर्म का वैदिक धर्म के साथ कोई रिश्ता होने का सवाल ही नहीं उठता। यूं भी चारों वेदों में कहीं सनातन नहीं है, 14 ब्राम्हण ग्रंथों, 7 अरण्यकों, 108 उपनिषदों- जिनमें से ज्यादातर एक दूसरे के खिलाफ भी राय देते हैं- में इसका कोई महात्म्य नहीं समझाया गया है। एक भागवत को छोड़कर, जो तुलनात्मक रूप से आधुनिक है, 18 पुराणों में भी सनातन का कहीं जिक्र नहीं मिलता।
श्री कृष्ण- जिनके उपदेश वाले ग्रंथ गीता को संघ-भाजपा भारत का राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करता रहा है- उन्होंने तो धर्म की जो परिभाषा दी है वह सनातन को अधर्म करार देती है। वे कहते हैं कि "जो समय के साथ नहीं बदलता, जो अपरिवर्तित और सनातन रहता है वह धर्म नहीं अधर्म है।" प्रश्न यह था कि जब द्रौपदी का चीरहरण किया गया तब द्यूत सभा में मौजूद सभी ज्ञानियों के चुप रहने पर कृष्ण ने अपनी आपत्ति दर्ज की और इसे अधर्म बताया।
भीष्म और विदुर ने अपनी-अपनी प्रतिज्ञाओं के पालन का धर्म निबाहने का हवाला देते हुए खुद कृष्ण को कठघरे में खडा किया और कहा कि उन्होंने शस्त्र न उठाने का वचन तोड़कर खुद अधर्म किया है। इसके जवाब में कृष्ण धर्म को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि "जिस धर्म का पालन करने की बात आप कर रहे है वह धर्म नहीं है। धर्म किसी वचन से बंधा नहीं होता, वह लगातार बदलता है, जो समय के साथ नहीं बदलता वह अधर्म है।" उदयनिधि स्टालिन के खिलाफ युद्ध जैसा छेड़े आरएसएस और भाजपा यदि सनातन की सनातनता पर सचमुच में गंभीर हैं तो उन्हें पहले कृष्ण के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहिये।
रही सनातन के शाब्दिक अर्थ के हिसाब से अनादिकाल से चले आने की बात है तो पाली भाषा में लिखे ग्रंथों में उन बुद्ध और उनके बौद्ध धर्म को भी सनातन कहा गया है जिन गौतम बुद्ध का खुद का यह कहना था कि "दुनिया में कुछ भी स्थिर नहीं है। कुछ भी शाश्वत नहीं है। कुछ भी सनातन नहीं है। व्यक्ति और समाज के लिये परिवर्तन ही जीवन का नियम है। वेदों को प्रमाण मानने से इनकार करने वाले, ईश्वर के अस्तित्व को भी न मानने वाले पृथ्वी के इस हिस्से के पहले नास्तिक धर्म में भी "है भी, नहीं भी है" का संशयवाद है- हालांकि इसके बाद भी जैन धर्मावलंबियों का दावा है कि वह भी अनादिकाल से अस्तित्वमान है।
ठीक यही वजह है कि सनातन धर्म में सनातन क्या है, यह बात कोई सनातनी भी न खुद समझ पाया है ना हीं किसी को समझा पाया है। ताजा विवाद के बाद अचानक धर्मवेत्ता बन गए राजनाथ सिंह का राजस्थान में दिया गया भाषण इसी गफलत का एक और नमूना है। वे सनातन की ठीक उलटी परिभाषा देते हुए वह सब बातें बखानने लगते हैं, सनातन जिनके पूरी तरह खिलाफ है।
उन्होंने दावा किया कि "जो जड़ में हैं वही चेतन में है, जो पिंड में है वही ब्रह्माण्ड में है, जो छोटे में है वही बड़े में है, जो मेरे में है वही तेरे में है।" अरक्षनीय का रक्षण करते करते वे यहां तक बोल गए कि "जो जात-पात और धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता, न जिसका आदि है न अंत है वही सनातन धर्म है।" जाहिर सी बात है कि वे बता कम रहे थे छुपा ज्यादा रहे थे।
यह कुनबा जिस सनातन धर्म की बात कर रहा है वह वर्णाश्रम पर आधारित, जाति प्रथा और उसके आधार पर ऊंच-नीच यहां तक कि छुआछूत तक में यकीन करने, महिलाओं को शूद्रातिशूद्र मानने को धर्मसम्मत बताने वाली व्याधि है जिसका सही नाम ब्राह्मण धर्म है। वही ब्राह्मण धर्म जिसके खिलाफ पिछले ढाई तीन हजार वर्षों में भारत में दार्शनिक और धार्मिक विद्रोह होते रहे; जिससे लड़ते-लड़ते जैन, बौद्ध, लोकायत धारा, सिख, शैव, भांति-भांति के वैष्णव जैसे अनेक धर्म और उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम में अनेकानेक पंथ विकसित हुए।
यह वह सांघातिक बीमारी है जिसने इस देश को करीब डेढ़ हजार वर्ष तक घुप्प अंधेरे में डालकर रखा- मनुस्मृति के आधार पर हाथ और दिमाग को एक दूसरे से काटकर भारत के विज्ञान, साहित्य, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास को अवरुद्ध करके रख दिया, सडांध पैदा कर दी। यह वही जकड़न है जिससे निजात पाने के लिए कबीर से लेकर रैदास, गुरु घासीदास से होते हुए राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने अपने तरीकों से जद्दोजहद की। जोतिबा फुले से पेरियार होते हुए अम्बेडकर तक ने निर्णायक चोटें की।
ई एम एस नम्बूदिरिपाद और ए के गोपालन से होते हुए वाम आन्दोलन ने इसे सुधार से आगे बढाया और सामाजिक बदलाव की लड़ाई से जोड़ा। इन्हीं संघर्षों का असर था, जिसने भारत के संविधान के रूप में मूर्त आकार ग्रहण किया। जिसने भारत को मध्ययुगीन यातना गृह से बाहर निकाल एक सभ्य समाज बनाने की पृष्ठभूमि तैयार की। यही बाद में 70 के दशक में देश की राजनीति में सामाजिक प्रतिनिधित्व में गुणात्मक परिवर्तन के रूप में दिखा।
इस तरह यह जहां एक ओर कुख्यात हो गए हिंदुत्व की नई पैकेजिंग है वहीं दूसरी ओर इन ढाई-तीन हजार वर्षों के वैचारिक संघर्षों की उपलब्धियों का नकार भी है। संविधान और उसमें दी गयी समता, समानता, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता का धिक्कार भी है। यह बर्बर असलियत को छिपाने का कपट है। राजनाथ सिंह के दावे को सावरकर की 1923 की पुस्तक हिंदुत्व, जिसे संघ-भाजपा अपना ध्येय मानती है, में लिखे के आधार पर जांच कर देखना चाहिए।
बकौल सावरकर "वर्ण व्यवस्था हमारी राष्ट्रीयता की लगभग मुख्य पहचान बन गयी है। यह भी कि "जिस देश में चातुर्वर्ण नहीं है, वह म्लेच्छ देश है। आर्यावर्त नहीं है।" और आगे बढ़कर सावरकर इसे और स्पष्ट करते हैं कि "ब्राह्मणों का शासन, हिन्दू राष्ट्र का आदर्श होगा।" वे यह भी कहते हैं कि "सन 1818 में यहां देश के आखिरी और सबसे गौरवशाली हिन्दू साम्राज्य (पेशवाशाही) की कब्र बनी।" ध्यान रहे यह वही पेशवाशाही है जिसे हिन्दू पदपादशाही के रूप में फिर से कायम कर आरएसएस एक राष्ट्र बनाना चाहता है और इसी को वह हिन्दू राष्ट्र बताता है।
भारत के इतिहास में कलंक के रूप में जानी जाने वाली यह पेशवाशाही क्या थी, इसे जोतिबा फुले की 'गुलामगीरी' या भीमा कोरेगांव की संक्षेपिका पढ़ कर जाना जा सकता है। यही बात संघ के एकमात्र गुरु जी गोलवलकर ने कही थी कि "ईरान, मिस्र, यूरोप तथा चीन के सभी राष्ट्रों को मुसलमानों ने जीत कर अपने में मिला लिया, क्योंकि उनके यहां वर्ण व्यवस्था नहीं थी। सिंध, बलूचिस्तान, कश्मीर तथा उत्तर-पश्चिम के सीमान्त प्रदेश और पूर्वी बंगाल में लोग मुसलमान हो गए क्योंकि इन क्षेत्रों में बौद्ध धर्म ने वर्ण व्यवस्था को कमजोर बना दिया था।" इनका सनातन धर्म की बहाली का दावा वर्णाश्रम की बहाली के सिवा कुछ नहीं है।
इस मामले में भी इस कुनबे की हिटलर के साथ आश्चर्यजनक समानता है; हिटलर जो खुद नास्तिक था, 18 वर्ष का होने के बाद कभी मास या प्रेयर में नहीं गया, उसने भी अपने कर्मों को जायज ठहराने के लिए न केवल "सकारात्मक ईसाई धर्म" के नाम पर एक नया धर्म और उसका नया चर्च बनाने की कोशिश की थी, ईसा मसीह को भी एक आर्य सेनानी के रूप में स्थापित करने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी बल्कि इतिहास के कूड़ेदान से निकालकर अपना एक अलग देवता भी प्रतिष्ठित कर दिया था।
उनकी ताजा भड़भड़ाहट की वजह यह है कि हिंदुत्व और हिन्दू की जगह सनातन का जाप कर उसी पुराने और त्याज्य पर नया मुलम्मा चढ़ाने की इस कोशिश को लोग समझने लगे हैं। भट्टी सुलगने के पहले ही समता, सामाजिक सुधार, लोकतंत्र और संविधान की हिमायती ताकतें उसे बुझाने के लिए खुद जाग चुकी हैं औरों को भी जगा रही हैं। तमिलनाडु के साहित्यकारों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों की वह सभा इसी जागरण अभियान का हिस्सा थी। कहने की आवश्यकता नहीं कि संघ और भाजपा जितना शोर मचाएंगे उतना ही इसके खिलाफ प्रतिरोध भी तेज से तेजतर होगा।
(बादल सरोज, लोकजतन के सम्पादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।)
|
a027d8a2e62c03a58db9a5d12cda3da2ed1e4125233bcc72a361565c7938f43e | pdf | याचिकाकर्ता को इन अनेक कंपनियों की वार्षिक रिपोर्टें प्रदान की गई थी और इसी के आधार पर यह स्थापित किया गया था। इन कंपनियों के वास्तव में निर्माण सुविधाएं तक नहीं हैं और याचिका में उल्लिखित विचाराधीन उत्पाद के समान वस्तु के निर्माण में नहीं लगी है। ऐसे उत्पादकों, जो विचाराधीन उत्पाद के उत्पादन का दावा करते हैं, के संबंध में प्रदान किए जा रहे वास्तविक डाटा यह दर्शा रहे हैं कि उन्हें वर्तमान विचाराधीन के लिए घरेलू उद्योग के रूप में शामिल क्यों नहीं किया जाए। याचिकाकर्ता घरेलू उद्योग की अपेक्षाओं को पूरा करता है, जैसा कि पाटनरोधी नियमावली, 1995 के नियम (ख) के तहत निर्धारित किया गया है, और यह घरेलू उद्योग बनने के लिए पात्र है। उत्पादकों/निर्यातकों/आयातकों/ अन्य हितबद्ध पक्षकारों द्वारा किए गए अनुरोध
उत्पादकों/ निर्यातकों/ आयातकों / अन्य हितबद्ध पक्षकारों द्वारा किए गए अनुरोध इस प्रकार है :याचिकाकर्ता मै० ग्लोबल नान वूमन, जो विचाराधीन उत्पाद का एकमात्र उत्पादक होने का दावा करता है, उसके पास वर्तमान जांच शुरू करने के लिए आधार का अभाव है लेकिन जांच को मिथ्या कथन के बाद शुरू किया गया है।
सेज यूनिट डी टी ए को बहुत ही कम मात्रा में बिक्री करती है। कोई सेज डी टी ए में अपनी बिक्री की सीमा तक ही घरेलू उद्योग की स्थिति का दावा कर सकता है। यह तथ्य कि सेज में एक उत्पादन डी टी ए बिक्री कर सकता है, इसका यह अर्थ नहीं है कि उसने उस प्रयोजन के लिए इसकी स्थापना की है। मै० एलस्टोर्म ऐसी वस्तुओं की बिक्री स्वास्थ्य अनुप्रयोगों के लिए करता है और याचिकाकर्ता स्वास्थ्य एवं सफाई अनुप्रयोगों के लिए वस्तुओं का उत्पादन करता है, जिससे उत्पाद भिन्न हैं। इसके अलावा, एलस्टोर्म ग्रुप वेट लेड टेक्नोलॉजी और स्मन लेड टेक्नोलॉजी का प्रयोग करता है, जिनका अनुप्रयोग हाइजीन के क्षेत्र में नहीं होता और स्पन मेल्ट का कुल आउटपुट, कुल आउटपुट का 12 प्रतिशत से कम है। इसलिए, मै० एलस्टोर्म को समान वस्तुओं का एक उत्पादक नहीं माना जाना चाहिए।
० अल्फा फोम को समान वस्तुओं के उत्पादक के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि उनके उत्पादकों में भिन्नता है। याचिकाकर्ता विभिन्न तकनीकी और अल्फा फोम से भिन्न सामग्री भिन्नताओं वाली उत्पाद का उत्पादन करता है। साथ ही, अल्फा फोम एक पुराना उत्पादक होने के बावजूद, भारत में संबद्ध वस्तुओं का बड़ा उपभोक्ता होने के कारण बिक्री नहीं करता। जबकि याचिकाकर्ता बहुत ही कम समय में भारत और विदेशों में संबद्ध वस्तुओं के कई बड़े उपभोक्ताओं को बिक्री करता है।
घरेलू उद्योग सबसे महत्वपूर्ण घटक "बड़ा हिस्सा" और "घरेलू उत्पादक समग्र रूप से" के संबंध में गहन जांच की जानी चाहिए। बड़ा हिस्सा होने का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता, यदि हिस्सा बहुत ही कम हो। इसी समय घरेलू उत्पादक समग्र रूप से होने का तात्पर्य संबद्ध वस्तुओं के सभी घरेलू उत्पादकों से है, जिसे घरेलू उद्योग के दायरे में शामिल किया जाना चाहिए और इसे यूरोपीय समुदाय - चीन जन. गण. से कतिपय लौह और इस्पात फास्टनर्स के संबंध में निश्चयात्मक पाटनरोधी उपायों के मामले में अपील निकाय द्वारा पाया गया था।
याचिकाकर्ता में ऐसे सभी घरेलू उत्पादकों को शामिल नहीं किया गया था जिनमें समग्र उत्पादक शामिल हैं और यह पर्याप्त आधार है कि जांच को समाप्त किया जाना चाहिए अथवा घरेलू उद्योग का दायरा बदला जाना चाहिए तथा इसमें सभी अन्य घरेलू उत्पादक शामिल होने चाहिए।
याचिकाकर्ता का डी टी ए में एकमात्र उत्पादक होने का दावा बिल्कुल गलत है। अन्य घरेलू उत्पादक विगत कई वर्षों से समान उत्पादों का उत्पादन कर रहे हैं। घरेलू मांग की पूर्ति मै० फाइबर वेब इंडिया, मै० ० अल्फा फोम, मै० सूर्या टेक्सटेक जैसे घरेलू उत्पादकों द्वारा आयातों के साथ की गई थी। अन्य घरेलू उत्पादकों के डाटा मांगे जाने चाहिए और उनकी जांच करनी चाहिए। इन कंपनियों द्वारा उत्पादित वस्तुएं बिल्कुल वहीं है, जो याचिकाकर्ताओं द्वारा निर्मित किए जा रहे उत्पाद हैं।
जहां कोई स्थापित उद्योग मौजूद है, वहां प्रत्येक नए उद्योग के लिए मैटेरियल रिटार्डेशन का दावा खुला नहीं है। याचिकाकर्ता इस नव अवस्था में और विकास की अवस्था में, अन्य भारतीय उत्पादक द्वारा वाणिज्यिक उत्पादन के 10-15 वर्षों के बाद स्वयं दावा नहीं कर सकता। यह सेज में एक उत्पादक की
पहले से मौजूदगी के चलते एक मैटेरियल रिटार्डेशन का मामला नहीं हो सकता । एक सेज यूनिट को घरेलू उद्योग के रूप में माना जाना चाहिए। प्राधिकारी ने विगत में ऐसे मामलों में ऐसा किया था। सेज यूनिट में अन्य उत्पादक हैं, जिनके पास डी टी ए की मंजूरी है और डी टी ए की मंजूरी वाली यूनिट को ए पाटनरोधी नियमावली के नियम 2 (ख) के प्रयोजन के लिए घरेलू उत्पादक के रूप में माना जाना चाहिए।
आवेदक पाटनरोधी नियमावली के नियम 2 (ख) में उल्लिखित आधार की अपेक्षा को पूरा नहीं करता। याचिकाकर्ता के उत्पादन का हिस्सा, हितबद्ध पक्षकारों की गणना के अनुसार केवल 20.39 प्रतिशत है, जो कि एक रूढि़िवादी धारणा के आधार पर है कि सभी अन्य घरेलू उत्पादक अपनी समेकित क्षमताओं का केवल 30 प्रतिशत प्रचालन कर रहे हैं।
घरेलू उद्योग के कुल आउटपुट में घरेलू उत्पादन का बड़ा हिस्सा शामिल है अर्थात 51 प्रतिशत से अधिक तक है । याचिकाकर्ता अपनी याचिका में उल्लिखित 29 उत्पादकों के कुल उत्पादक को शामिल करने में विफल रहा है, जिन्होंने विचाराधीन उत्पाद का निर्माण करने का दावा किया है। याचिका में शामिल उन 29 उत्पादकों में से एक उत्पादक मै० अल्फा फोम सुनवाई में मौजूद था। अल्फा फोम ने अपनी क्षमता प्रति वर्ष 3000 टन से बढ़ाकर 6000 टन प्रति वर्ष की है। साथ ही, उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उनके पास विचाराधीन के उत्पादन की क्षमता है, जो 10 जी एस एम से 150 जी एस एम तक की है। आयातकों मै० यूनिचार्म ने यह दावा किया है कि उन्होंने भारत में 25 जी एस एम से कम के बिना बुने फैब्रिक की खरीद की है और यह कि उनके द्वारा इस संबंध में साक्ष्य प्रस्तुत किए जाएंगे। यह तथ्य स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि विचाराधीन उत्पाद अन्य उत्पादकों द्वारा भी उत्पादित किए जा रहे हैं ।
आवेदन मै० ग्लोबल नान वूवन्स लिमिटेड द्वारा दायर किया जा रहा है, जिसमें यह दावा किया गया है कि याचिकाकर्ता के पास विचाराधीन और भारत में घरेलू टैरिफ क्षेत्र (डी टी ए) में उत्पादित समान उत्पाद का 100 प्रतिशत उत्पादन शामिल है। याचिकाकर्ता ने अन्य उत्पादकों के संबंध में याचिका में सूचना प्रदान की है लेकिन यह भी उल्लेख किया है कि ये उत्पादक बिना बुने फैब्रिक लेकिन उत्पाद जी एस एम से भिन्न का उत्पादन कर रहे हैं, जिसका उपयोग हाइजीन और स्वास्थ्य अनुप्रयोगों के लिए नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता ने अपने दावे का पुनः उल्लेख किया है कि याचिकाकर्ता द्वारा उत्पादित उत्पाद, बाजार में अन्य घरेलू उत्पादकों द्वारा उत्पादित उत्पादन से भिन्न है और उत्पाद के गुणों में और घरेलू उद्योग तथा अन्य उत्पादकों द्वारा बेचे गए उत्पाद की परिणामी कीमतें भिन्न हैं ।
जांच की शुरूआत की अवस्था में तथा रिकार्ड में उपलब्ध सूचना के आधार पर, प्राधिकारी ने यह विचार किया है कि विचाराधीन उत्पाद का उत्पादन भारत में केवल याचिकाकर्ता द्वारा किया जा रहा है, जहां तक डी टी ए में उत्पादन का संबंध है। इसके अलावा, विचाराधीन उत्पाद का उत्पादन एलस्ट्रोम फाइबर कंपोजिट्स द्वारा किया जाता है, जो सेज में उपलब्ध है और जिसने बाद में याचिका का समर्थन किया। अतः जांच की शुरूआत मै० ग्लोबल नान-वूवन्स लिमिटेड द्वारा घरेलू उद्योग की ओर से दाखिल की गई एक याचिका के आधार पर किया गया
जांच शुरू होने के बाद और सुनवाई के दौरान अनेक हितबद्ध पक्षकारों ने यह तर्क दिया कि याचिकाकर्ता का कोई आधार नहीं है और ऐसे अनेक उत्पादक है जिन्होंने देश में उत्पाद का उत्पादन किया है। यह भी तर्क दिया गया था कि चूंकि उत्पाद का उत्पादन देश में अनेक अन्य उत्पादकों द्वारा किया जा रहा है। मामले की जांच इस आधार पर नहीं शुरू की जा सकती कि पाटित आयातों से घरेलू उद्योग की स्थापना के लिए मैटेरियल रिटार्डेशन हो रहा है। जांच शुरू करने से पूर्व प्राधिकारी ने वस्त्र आयुक्त के कार्यालय को लिखा, जिसमें बिना बुने वस्त्र के ज्ञात उत्पादकों के ब्यौरों की मांग की गई है । तथापि, ऐसे कोई ब्यौरे प्राधिकारी को उपलब्ध नहीं कराए गए थे।
इसके अलावा, यह नोट किया गया है कि याचिकाकर्ता ने न तो विचाराधीन उत्पाद का आयात किया है और नहीं विचाराधीन उत्पाद के उत्पादकों से वे संबद्ध हैं। किसी भी उत्पादक ने जांच शुरू करने की अधिसूचना का उत्तर नहीं दिया है, जिसे 15 जून, 2016 का सार्वजनिक डोमेन में अधिसूचित किया गया था। याचिकाकर्ता द्वारा |
ffff618a68b0572e2afd1561927f3dcf0bab7ab7 | web | सुरक्षित जमा बॉक्स - इन विशेष छोटे जगह है जहां लोग लोगों की आँखें है कि उसके लिए कुछ मूल्य का प्रतिनिधित्व करता से छिपा कर सकते हैं कर रहे हैं। वे क्या हैं? सुरक्षा की गारंटी देता है क्या दिया जाता है? उनके आदेश वहाँ में क्या सुविधाओं? इन सब सवालों का हम इस लेख में संबोधित करेंगे।
सुरक्षित जमा बॉक्स घर सुरक्षित के साथ लोकप्रियता के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। बेशक, न है और न ही अन्यथा पूरी तरह से चीजों की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकते। लेकिन अगर वे बीमा, बैंक के मामले में नकदी समकक्ष प्राप्त करने के लिए आसान हो जाएगा। अधिक जानकारी के लिए, हम इस बारे में बात करेंगे। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि बैंक एक सेल न केवल विरोधी छेड़छाड़ लेकिन fireproofed प्रदान कर सकते हैं। इसके अलावा, जब उनके घर के वातावरण remodeling जहां यह सुरक्षित ले जाने के लिए लायक है के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा, सेल बैंक आम तौर पर सुरक्षा है, जो यह न केवल तोड़ने में, लेकिन यह भी आग जैसी आपदाओं की एक किस्म का सामना करने के लिए अनुमति देता है की दो परतों है।
बैंकों में सुरक्षित जमा बॉक्स तकनीकी हालत के साथ पालन, बिना कि वित्तीय संस्था का जुर्माना किया जाएगा। इसके अलावा, एक महत्वपूर्ण लाभ बैंक के संरक्षण के संगठन है। इस प्रकार, संभावित घुसपैठियों के लिए एक गंभीर समस्या एक अलग कमरे में, जहां सेल, और कहा कि घटना में है कि एक तेजी से प्रतिक्रिया टीम के नाम से जाना जाएगा।
(- न्यायाधीश करने का कार्य नहीं है, हालांकि के रूप में चीजों को वास्तविकता में हैं) यह भी विश्वसनीयता के पक्ष में तथ्य यह है कि बैंकों एक अद्वितीय कुंजी के उपयोग की घोषणा है। इसलिए, कर्मचारियों की अशुद्ध हाथों में एक विदेशी सेल खोलने के लिए और वैधता काम नहीं करेगा की उपस्थिति पैदा करते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि आप चीजों की आवश्यक आकार के तहत भंडारण का चयन करें, पट्टे की अवधि निर्दिष्ट कर सकते हैं, साथ ही, किसी भी इच्छुक व्यक्ति के लिए उपयोग की देखभाल अगर वांछित है। जमा कोशिकाएं भी के अधीन हो सकता त्रिपक्षीय समझौता। ऐसे मामलों में, सेल केवल घटना दोनों साथियों देखते हैं कि खोला जा सकता है। यह भी एक सेल इकाई डिजाइन करने के लिए संभव है। यह उसकी कंपनी की कीमत के लिए भुगतान करने की अनुमति देगा, और केवल उन कर्मचारियों, जो पहले के रूप में सूचीबद्ध किया गया है का उपयोग करने में सक्षम हो जाएगा न्यासियों। इसके अलावा, आप अपने हस्ताक्षर के नमूने रहना होगा। इस प्रकार, आप दस्तावेज़ों को काफी महत्व की हैं अनधिकृत पहुँच को रोकने कर सकते हैं।
कितना एक लिफ्ट और सुरक्षित जमा बॉक्स है?
बैंक अपनी लागत के आधार पर दरों करता है, पर सामान्य रूप में हम सीमा मान सकते हैं जो वित्तीय संस्थानों के काम के अधिकांश में। इसलिए, यह प्रति दिन (दस्तावेजों के भंडारण के लिए एक सेल के लिए) 40-50 रूबल है। नहीं झाड़ी के आसपास से हराया और चाय की पत्तियां पढ़ने के लिए, हमें देश की सबसे बड़ी वित्तीय संस्था पर गौर करें - जो है, हम Sberbank में मदद मिलेगी। सेल में सुरक्षित यह रेंज ऊपर दिखाए में फिट। वे आकार में आप को पूरा नहीं कर सकते हैं, यह एक वित्तीय संस्थान पूरे तिजोरियां पट्टों है! सच तो यह है कि वे है और मान के संगत है - $ 100 प्रति रात से है, लेकिन आकार ऐसा है कि लगभग सब कुछ के लिए आवश्यक है कि, तुम सब की तरह।
स्पष्ट उच्च लागत के बावजूद, मुश्किल एक खाली सुरक्षित जमा बॉक्स खोजने के लिए। मास्को, रियाज़ान, सेंट पीटर्सबर्ग, व्लादिवोस्तोक, Tver - यहाँ यह बैंक की पहली शाखा में आने और एक छोटे से दुकान ऑर्डर करने के लिए कठिन हो जाएगा। इसलिए, लोकप्रिय और दूरदराज के उपयोग की संभावना। वह व्यक्ति जो अपने खुद के प्रयोजनों के लिए, यह एक सहायता सेवा वित्तीय संस्था के साथ जुड़ा हुआ है सुरक्षित जमा बॉक्स की तलाश में है, और यह आप सेवा का उपयोग कर सकते हैं जहां के बारे में जानकारी प्रदान करता है। और विभाग कितना ग्राहक सुविधाजनक उसे सामग्री की जाँच करें या इसे लेने के लिए यात्रा करने के लिए के लिए किया जाएगा के आधार पर संकेत दिया।
क्या बैंकों को अपने ग्राहकों की पेशकश?
साथ में भंडारण ग्राहकों के साथ कुछ लाभ प्रदान की जाती हैं। पर विचार करें वे खुद क्या कर रहे हैं, हम Sberbank डिपॉजिटरी में मदद मिलेगीः
- कोशिकाओं एक कमरे कि विशेष रूप से कार्य करने के लिए सुसज्जित किया गया है में हैं।
- निक्षेपागार उन्नत निष्क्रिय सुरक्षा की एक संख्या है, साथ ही दौर घड़ी सुरक्षा है।
- कोशिकाओं विभिन्न आकारों कि आगे एक बख़्तरबंद अलमारी में छिपा की तिजोरियां हैं।
- आप उनकी जरूरतों और इसके लिए भुगतान करने की इच्छा पर निर्भर करता है भंडारण आकार का चयन कर सकते हैं।
- वहाँ छूट का एक लचीला प्रणाली है - तो क्या बड़ा जिस अवधि के लिए सेल पट्टे, आपको उतना ही कम है भुगतान करने के लिए है।
- वहाँ मूल्यों कि बैंक में हैं करने के लिए तीसरे पक्ष के उपयोग रोकने के लिए संग्रह मोड की एक विशेष संगठन (यह एक वित्तीय संस्थान के कर्मचारियों से भी सुरक्षित है) है।
- सेल में निवेश मूल्य के समय गोपनीयता के लिए केवल वर्तमान मालिक है। यह नियम बीमा है, जो हम बाद में एक छोटे से चर्चा करेंगे के साथ जुड़े एक अपवाद है।
- सुरक्षित केवल दो चाबियों का एक साथ इस्तेमाल के साथ खुलता है। उनमें से एक ग्राहक के बैंक में स्थित है, और दूसरा - कर्मचारी।
यही कारण है कि Sberbank के डिपॉजिटरी है। अब चलो पैराग्राफ पर ध्यान देना जाने №7।
आमतौर पर, बैंक कोशिकाओं क़ीमती सामान स्टोर करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। यह इस तरह हो सकता है कि वे पैसे कि कर अधिकारियों से छिपा दिया गया था रखने के लिए आदेश दिया जाता है। यह जो कुछ भी था, आमतौर पर कक्ष की सामग्री में गोपनीय रखा जाता है। लेकिन इस वहाँ अपवाद हैं।
तो अगर वहाँ मूल्य के कुछ है कि मैं एक ही समय में कम करने के लिए, तो नहीं करना चाहती है, और बाहरी मौजूद हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक बीमा एजेंट, जिसका कार्य - यह सुनिश्चित करें कि ग्राहक बात यह है कि बीमा डाल करने के लिए वास्तव में है बनाने के लिए। और इस तथ्य है कि यह मूल और नहीं एक नकली है। इसके अलावा, अपनी यात्रा को विनियमित और चीजों की "अप्रत्याशित" नुकसान से बचने के लिए, एक यात्रा के जिम्मेदार बैंक अधिकारी लॉग इन किया जाएगा। यह आमतौर पर ऐसे मामलों में जहां एक व्यक्ति (इस तरह के मामलों में बीमा गैर आर्थिक नुकसान में) खुद के लिए "सफेद" आभूषण या बस मूल्यवान चीजें रखना चाहता है को दर्शाता है।
क्या सुरक्षित जमा बॉक्स में जमा हो जाती है?
एक नियम के रूप में, यह दस्तावेज, गहने, प्रतिभूतियों, पैसा है, कला, तस्वीरों के काम करता है - एक शब्द सब कुछ है जो व्यक्ति इसे छिपाने के लिए एक इच्छा है के लिए मूल्य देता है। वहाँ क्या सुरक्षित जमा बॉक्स में रखने के लिए निषिद्ध है की एक सूची है। आमतौर पर, यह द्वारा हम हथियार, ड्रग्स, जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थ (जैसे मांस या मछली के रूप में) मतलब है। बैंकों के नियमों के तहत, वे अनिवार्य सत्यापन कि तिजोरी में रखी है के लिए पात्र नहीं हैं। लेकिन हर आदमी एक अनुबंध है, जो कहता है कि सुरक्षित में वित्तीय संस्थानों के कुछ भी अवैध और गैरकानूनी करार दिए नियम नहीं किया जाएगा है। आदेश के नियमों के अनुसार कार्य करने के लिए, एक नियम के रूप में "प्रेरित" में है, बशर्ते कि ग्राहक के आकार की दृष्टि से महत्वपूर्ण पर अनुबंध के उल्लंघन के मामले में जुर्माना लगाया जाएगा, राशि, जिनमें से रूबल सैकड़ों हजारों के दसियों से भिन्न होता है, और यह उन डिपॉजिटरीज कि आम नागरिकों के लिए उपलब्ध हैं पर है।
पारंपरिक, लेख के इस पैरा तीन भागों में बांटा जा सकता हैः
- पहुँच प्रॉक्सी। इसका मतलब है कि जो व्यक्ति सुरक्षित किराए के एक दस्तावेज उससे जिसके अनुसार है, के अलावा, सेल के लिए उपयोग लोग हैं, जो जरूरी संलग्न की एक विशिष्ट सूची है। के रूप में प्रवेश और छोटे बारीकियों के एक नंबर के लिए शर्तें निर्धारित किया जा सकता।
- बैंक कर्मचारियों का उपयोग। तथ्य यह है एक प्रमुख एक ही तरीका है सेल में पहुँच प्राप्त करने के लिए है कि वे, यदि एक ग्राहक को अपने खो देता है, के बावजूद - यह यह हैक। आमतौर पर, इस प्रक्रिया क्या एक विशेष मास्टर, कर्मचारियों और सामग्री अभ्यास के मालिकों महल बाहर के साथ जो (कम आरी खुद सुरक्षित) कहा जाता है।
- एक कानूनी इकाई की ओर से प्रवेश। यह विकल्प एक निश्चित कंपनी है, जो कि भंडार की सामग्री व्यक्तियों की एक संख्या से पहुँचा जा सकता है प्रदान करता है के साथ एक विशिष्ट अनुबंध के ड्राइंग ऊपर निकलता है। आम तौर पर इस विकल्प दस्तावेजों है कि कंपनी के कामकाज के लिए महत्वपूर्ण हैं पर प्रयोग किया जाता है। जो व्यक्ति उपयोग कर सकते है, आम तौर पर निर्धारित निदेशक, उनके सहायक, मुख्य लेखाकार, साथ ही अन्य लोगों के एक नंबर।
मैं सेल के एक नागरिक किराए के लिए क्या करना होगा?
यह एक प्राकृतिक व्यक्ति का आदेश देता है, तो वह पहचान दस्तावेज़, साथ ही पहचान कर नंबर के मूल प्रमाण पत्र की काफी है। वेतन सेल जैसे ही अनुबंध के रूप में हस्ताक्षर किए गए थे होना चाहिए। एक समझौते पर एक कानूनी इकाई की ओर से है, तो यह राज्य पंजीकरण, चार्टर दस्तावेजों (सभी और परिवर्तनों के साथ) की आवश्यकता, एक भी रजिस्टर में लाने के बारे में प्रमाण पत्र, साथ ही एक दस्तावेज है कि व्यक्ति है कि ठेके पर हस्ताक्षर के अधिकार की पुष्टि करता है का प्रमाण पत्र की एक प्रति है के लिए आवश्यक है।
|
8b681cdf7f4237ed8241ea47204d1056a0648837 | web | शादी यानी ढोल, नगाड़ा, बारातियों का बेसुध नाचना, हंगामा, ठिठोली, रस्मो-रिवाज और बहुत सारी मस्ती। अरे, अरे शादियों में एक जरूरी आइटम तो भूल ही गए- असलहे यानी बंदूक, रिवॉल्वर, राइफल, पिस्तौल से फायरिंग। लाइसेंसी नहीं है तो गैरलाइंसेंसी तमंचा तो है ही। बारात है तो फिर वह भी तो चाहिए न-बोतल-सोतल, दारू-सारू, नशा-वशा। शक्ति प्रदर्शन की न जाने कौन-सी मानसिकता इस तरह की आत्मघाती परंपराओं को कायम रखे हुए है? नकली रोब दिखाने का मंसूबा तब तक पूरा होता नहीं दिखता जब तक खुशी के मौकों पर फायरिंग न हो। भले ही कोई ढेर ही क्यों न हो जाए। कभी-कभी तो 'तमंचे पर डिस्को' ने शादी के सरताज तक को नहीं बख्शा है। इस नुमाइशी शौक ने तो कई बार दूल्हा-दुलहन का ही काम तमाम कर दिया है। शादी- विवाह या दूसरे खुशी के अवसरों पर होने वाली फायरिंग से सैकड़ों घर उजड़े हैं। देश के हर कोने से विवाह के मौके पर शक्ति प्रदर्शन की वजह से कइयों की मौतें हुई हैं और जाने कितने घायल हुए हैं। बारातों की खुशी को पल भर में मातम में बदलते देखा गया है। असलहों का शौक इतना गहरा है कि इससे हमारे साधु संत भी नहीं बचे हैं। घर संसार का मोह छोड़ चुकी साध्वी भी जब वर वधू को आशीर्वाद देने पहुंचीं तो फायरिंग कर दीं, जिससे तीन चार घर उजाड़ गए। बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों में तो शादियों में जो जितने राउंड गोली चलाता है वह उतना ही ताकतवर माना जाता है। इसी ताकत के प्रदर्शन में सैंकड़ो राउंड गोली चलाना फैशन बन गया है।
पिछले पांच दिसंबर को पंजाब के बठिंडा जिले के मोड़ मंडी में शादी के दौरान एक गोली चली और गर्भवती डांसर कुलविंदर कौर की मौत हो गई। कुलविंदर को गोली उस समय लगी जब स्टेज पर चार लड़कियां डांस कर रही थीं। अचानक स्टेज के बिल्कुल सामने एक युवक ने बंदूक से फायरिंग की। गोली स्टेज पर डांस कर रही कुलविंदर को लग गई, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। गोली चलाने वाला आरोपी युवक तुरंत बंदूक फेंककर घटनास्थल से फरार हो गया। कुलविंदर शादियों में चलाई जा रही गोलियों की न तो पहली शिकार हैं न आखिरी। कुलविंदर से पहले भी तमाम लोग इस तरह की घटना के शिकार हुए हैं और अगर प्रशासन अब भी नहीं चेतता है तो लोग शिकार होते रहेंगे। हरियाणा के करनाल में तो अखिल भारतीय हिंदू महासभा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष साध्वी देवा ठाकुर एक शादी समारोह में गई थीं। वहां साध्वी और उनके सुरक्षा गार्ड ने फायरिंग की। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और चार घायल हो गए थे। दिल्ली में 17 दिसंबर को सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी के बेटे ने नशे में धुत होकर गोली चलाई, जिससे कैटरिंग के एक कर्मचारी की मौत हो गई। 11 दिसंबर को शादी के मौके पर दुलहन के भाई की हर्ष फायरिंग में मौत हो गई।
अहम सवाल है कि क्यों असलहा आज शादियों में इतना महत्त्वपूर्ण हो गया है? क्यों और कब यह हमारे परिवारों और खुशियों का अहम हिस्सा बन गया? क्या शादियों में असलहे लहराए बिना शादियां नहीं हो सकतीं? इन सवालों को समाजशास्त्री सीधे तौर पर बाजारवाद से जोड़ते हैं। समाजाविज्ञानी बद्रीनारायण बताते हैं कि असलहों का प्रदर्शन सामंतवाद से प्रभावित है। ये देन भी सामंतवाद की ही है। शक्ति प्रदर्शन पुराने जमाने में जरूरी होता था। राजे रजवाड़ों के यहां शादी विवाह के मौकों पर प्रशिक्षित तलवार बाज आदि आते थे। शादी और खुशी के मौकों पर कई तरह के खेल खेले जाते थे। असलहों का प्रदर्शन किया जाता था। बदलते समय के साथ तलवार की जगह दुनाली, तमंचे और बंदूकों ने ली। जब शादी विवाह के मौकों पर वे अपनी सामर्थ्य और शक्ति का प्रदर्शन करते तो हैं गांव वाले, मुहल्ले वाले देखते हैं। सामंतीयुग में दूल्हा-दुलहन के परिवार वाले एक दूसरे से ज्यादा ताकतवर दिखने के लिए हवाई फायरिंग किया करते थे। जैसे ही समय बदला बाजारवाद आया। ऐसा लगा कि इन हथियारों का का चलन कम होगा, लेकिन यह और बढ़ गया। हथियारों को कहीं और कभी भी चलाने के विरुद्ध कठोर कानून है।
लाइसेंसी हथियार भी केवल आत्मरक्षा में ही चलाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के वकील राज के सिंह बताते हैं कि 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने शादी-विवाह आदि खुशी के अवसरों पर फायरिंग को गैरकानूनी घोषित कर दिया था, लेकिन न तो इस पर पुलिस का ध्यान है न ही प्रशासन का। यही वजह है कि कई राज्यों में जहां सामंती मानसिकता और दबंगई सिर चढ कर बोलती है, वहां शादी-विवाह तो छोड़िए, हर बात पर असलहों का प्रदर्शन किया जाता है। और बड़े हादसे के बाद पुलिस हाथ मलती नजर आती है। आजादी के बाद समाज में डकैतों आदि का खतरा होता था, तब सरकारों ने आत्मरक्षा के लिए असलहों के लाइसेंस थोक के भाव जारी किए। लेकिन अब जब पुलिस सक्षम है, ऐसे समय में घर-घर में असलहे रखने का कोई तुक नहीं है। इस पर लगाम लगाए जाने की जरूरत है। शादी की रस्मो में वर पक्ष का दुलहन के परिवार से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होने का भ्रम हमारा समाज सदियों से पाले हुए है। वधू पक्ष के द्वारा किए गए इंतजाम का वर पक्ष के सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतिबिंब होने का ढकोसला भी खूब होता है। कुछ शहरी इलाकों को छोड़ दें तो बारात के स्वागत से लेकर विदा होने तक दुलहन के परिवार की तरफ से हो रहे हर प्रकार के इंतजामों को दूल्हे के परिवार वालों की तरफ से न जाने कितने ही मापदंडो पर तौला जाता है। मतलब, इस तरह का माहौल होता हैं जहां अगर आप लड़के वालों की तरफ से हैं तो आपको पूरा अधिकार है, अपनी ताकत की नुमाइश करने का और इसका विरोध होने की संभावना नाम मात्र भी नहीं होती। सदियों से हथियारों को ही ताकत से जोड़कर देखा जाता है। तो इस तरह के माहौल में कुछ हवाई फायर तो बस यों ही हो जाती है।
शादियों में नशा, खासकर शराब पीने का चलन भी तेजी से बढ़ा है। नशा और हथियारों की संगत ही दुर्घटनाओं को जन्म देती है। हथियार थामने वाले हाथ लड़खड़ाते हैं। कुछ लड़खड़ाहटें तो नाच गाने तक सीमित रह जाती है, लेकिन सामाजिक प्रतिष्ठा की गलत परिभाषा पढ़ कर आए लोगों के हाथ अपने आप बंदूक तक पहुंच जाते हैं। और फिर जो कुछ होता है, उसकी सिर्फ कहानी ही रह जाती है। मुहावरा है कि बोली और गोली कभी वापस नहीं आती। अगर बंदूक खुले आसमान की तरफ भी तनी है तो भी गोली चलने तक इसका मुंह किसी और की तरफ मुड़ गया तो तबाही निश्चित है। अमूमन इस तरह के किस्से कानून की गिरफ्त से दूर ही रखे जाते हैं लेकिन कोई तबाह जरूर हुआ होता है। अगर ये खबरों की सुर्खिया बन भी जाएं तो चंद ही दिनों में हमारा सभ्य समाज इसे भुलाने में ही अक्लमंदी समझता है और शायद इसलिए कोई हल नहीं निकल पाता। लेकिन इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि अगर कुछ लोगों में शक्ति के प्रदर्शन में गोलीबारी को स्थान दिया है तो कुछ ऐसे लोग इसका सिरे से बहिष्कार भी करते हैं। एक शादी का कार्ड उस समय चर्चा में आ गया जब उसमें लिखा गया कि शराब पीनेवाले और असलहावाले लोग शादी में न आएं। किसी भी किस्म की हर्ष फायरिंग पूरे देश में मना है। फिर भी यह रुक नहीं रही। उत्तर प्रदेश में पिछले महीने भर के भीतर दस लोग हर्ष फायरिंग में मारे गए हैं। उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि हर्ष फायरिंग में धाराएं तो वही लगाई जाती हैं जो किसी जघन्य अपराध में लगाई जानी हैं। चूंकि फायरिंग किसी को मारने के इरादे से नहीं होती, इसलिए अक्सर इसमें गैरइरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाता है। अक्सर मारने वाला और मरने वाला एक ही परिवार या रिश्तेदारी का होता है इसलिए भी न तो लोग पैरवी करते हैं और न ही गवाही-बयान देने सामने आते हैं। इस वजह से मामले तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच पाते। हालांकि, ऐसे मामलों में असलहों के लाइसेंस रद्द करने का आदेश है और कई बार लाइसेंस निरस्त भी किए जाते हैं। लेकिन देखा गया है कि अधिकतर फायरिंग गैरलाइसेंसी हथियारों जैसे कट्टों-तमंचों से की जाती है। मेरठ, मुंगेर और अब मध्यप्रदेश के खारगोन में धड़ल्ले से अवैध हथियारों का धंधा चल रहा है। देशी तमंचे दो-चार हजार रुपए में ही आसानी से मिल जाते हैं। अवैध हथियारों के मामले में कई बार पुलिस भी लाचार नजर आती है।
हथियार पास में रखने और शादी-विवाह में फायरिंग को मनोचिकित्सक एक अलग नजर से देखते हैं। उनका मानना है कि बाजारवाद, दबंगई और फिल्मों ने इसे खूब बढ़ावा दिया है। उसे फैशन में शामिल कर दिया है। बात बात पर तंमचा निकालना ताकतवर होने की फैशन की निशानी बना दिया गया है। बिहार, उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में तो स्थानीय भाषाओं में बनाए जाने वाले गानों में तमंचे को लेकर कई गाने बनाए गए हैं। इससे युवा वर्ग भी प्रभावित होता है। यहां तक की बॉलीवुड में भी 'तमंचे पर डिस्को' जैसे गाने लोगों को खूब आकर्षित करते रहे हैं। और जब भी समारोहों में गाने बजाए जाते हैं तो डीजे से पहली फरमाइश तमंचे पर डिस्को जैसे गानों की ही होती है।
|
618aef93431bd7ea3a523b741351ee9850486645 | web | "पूर्व कार्य" शब्द का क्या अर्थ है?
अंतरराष्ट्रीय व्यापार की वास्तविकताएं ऐसी हैं कि यह कर सकती हैठेकेदारों के बीच एक गलतफहमी है, जिसके कारण बाद में माल के वितरण के साथ समस्याएं हो सकती हैं, इसके भुगतान या कुछ और के साथ। ऐसी समस्याओं से बचने के लिए, संक्षेपों का एक अंतरराष्ट्रीय संदर्भ बनाया गया था।
यह समझने के लिए कि इस शब्द का क्या अर्थ है,यह "फ्रैंको" शब्द का अनुवाद करने लायक है। यह अंग्रेजी शब्द "मुक्त" से आया, जिसका अर्थ है "मुफ़्त।" दूसरे शब्दों में, पूर्व कारखाना गोदाम, कारखाने, कारखाने इत्यादि से माल के मुक्त निर्यात का पदनाम है। यह उल्लेखनीय है कि इंकोटर्म 2010, जिसमें न केवल यह शब्द शामिल है, पूरी तरह से एकीकृत प्रकाशन है। यह केवल एक ही अर्थ में संक्षेप में संक्षेप में देता है। यह अनुबंध की प्रक्रिया को बहुत सरल बनाता है और पार्टियों के बीच अनुबंध के बीच गलतफहमी के जोखिम को कम करता है। उदाहरण के लिए, इंकोटर्म में "पूर्व कार्य" को EXW - Ex Works के रूप में नामित किया गया है। हालांकि, इन सभी शब्दकोषों में एक बात आम है। वे सभी माल की आपूर्ति से संबंधित हैं। यही है, इंकोटर्म एक संदर्भ पुस्तक है, जिसमें समुद्र, वायु, भूमि द्वारा माल के सभी संभावित प्रकार की डिलीवरी शामिल है। कारखाने के पूर्व कार्यों के अलावा, निर्देशिका में समझने वाले कई और शब्द हैं। साथ ही, यह भी जोड़ा जाना चाहिए कि इस संग्रह में सभी परिभाषाओं को तीन अक्षरों द्वारा इंगित किया गया है।
पूर्व कार्य - यह क्या है?
शब्द की सबसे सटीक परिभाषा लगता हैलगभग इस प्रकार है। सभी आवश्यकताओं की पूर्ति इस समय अंतिम मानी जाएगी जब माल नियंत्रण बिंदु तक पहुंच जाएंगे जिसमें इसे विक्रेता द्वारा वितरित किया जाना था। हालांकि, कुछ आरक्षण हैं। वे इस तथ्य में शामिल हैं कि विक्रेता स्वयं इस उत्पाद को परिवहन नहीं करता है। "पूर्व कार्य" शब्द का अर्थ है कि विक्रेता परिवहन और माल की लोडिंग के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। और माल के रास्ते पर भी वह इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है। उत्पाद के परिवहन के दौरान उत्पन्न होने वाले सभी जोखिम खरीदार द्वारा उठाए जाते हैं।
यदि अनुबंध के समापन पर विधि का चयन किया गया था(इंकोटर्म निर्देशिका के तहत EXW), यह समझना उचित है कि माल के लिए जोखिम और पूरी ज़िम्मेदारी खरीदार या इस माल के वाहक द्वारा ली जाती है, न कि इसके विक्रेता द्वारा। इस तरह के एक लेनदेन के समापन के बाद, कार्गो कार्यान्वयन इसकी गुणवत्ता और सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। हालांकि, यह कथन केवल तभी वैध है जब कोई अतिरिक्त समझौता नहीं हुआ है। एक विकल्प है जिसमें विक्रेता को सामान लोड करने के लिए सभी जिम्मेदारी सौंपना संभव है, और परिवहन से जुड़े सभी जोखिमों को स्थानांतरित करना भी संभव है। हालांकि, इसके लिए, दोनों पक्षों को नियम और शर्तों पर सहमत होना चाहिए, और दस्तावेज़ में उन्हें ठीक करना होगा। यह स्पष्ट रूप से बताएगा कि जोखिम और देनदारी पूरी तरह विक्रेता पर हैं। अन्यथा, मानक शब्द "पूर्व कार्य" का अर्थ है कि यह सब खरीदार के साथ है। यह कहने लायक है कि रूसी संघ के क्षेत्र में EXW को एक सरल और अधिक समझने योग्य अभिव्यक्ति "स्व-वितरण" के साथ प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
अनुबंध समाप्त करते समय, प्रत्येक पार्टी किसी भी परिस्थिति को पूरा करने के लिए कार्य करती है। तो, विक्रेता निम्नलिखित करने के लिए बाध्य हैः
- विक्रेता सभी सामान प्रदान करने के लिए उपक्रम करता है,जो बिक्री के अनुबंध में निर्धारित किया गया था। इसके अलावा, वह उन सामानों के लिए सभी आवश्यक दस्तावेज प्रदान करने के लिए बाध्य है जिन्हें खरीदार की आवश्यकता हो सकती है। नियम, एक नियम के रूप में, उत्पादों की गुणवत्ता और मात्रा की पुष्टि करते हैं।
- अगर खरीदार विक्रेता से पूछता हैमाल के निर्यात के लिए सभी कागजात प्राप्त करने में उनकी मदद करने के लिए, विक्रेता मदद करने के लिए बाध्य है। हालांकि, इस मामले से जुड़े सभी लागत और जोखिम अभी भी खरीदार पर आते हैं।
- विक्रेता की ज़िम्मेदारी में शिपिंग भी शामिल हैअनुबंध में निर्दिष्ट जगह में कार्गो। आइटम अनलोडेड स्थिति में होना चाहिए। अनलोडिंग का समय और स्थान अक्सर पार्टियों द्वारा अग्रिम में बातचीत की जाती है, लेकिन यदि स्थान, उदाहरण के लिए, पहले से निर्दिष्ट नहीं किया गया था, तो विक्रेता को माल को निकटतम और सबसे उपयुक्त बिंदु पर पहुंचाने का अधिकार है।
- एक महत्वपूर्ण शर्त यह है कि जब तक खरीदार को डिलीवरी के स्थान पर माल वितरित नहीं किया जाता है, तब तक सभी जोखिम विक्रेता पर झूठ बोलते हैं।
- एक महत्वपूर्ण बात यह है कि विक्रेता को अपने खरीदार को सूचित करने के लिए बाध्य किया जाता है कि उसके माल कहाँ और कब स्थित होंगे ताकि वह आगे परिवहन के लिए इसे उठा सके।
स्वाभाविक रूप से, गाड़ी का अनुबंध एक पेपर है जो अनुबंध के दोनों किनारों पर दायित्व लगाता है। खरीदार के कर्तव्यों में निम्नलिखित मद शामिल हैंः
- पहली बात यह है कि खरीदार को लागू करना चाहिए वह माल के लिए भुगतान है जो पहले प्राप्त अनुबंध में दर्शाया गया था।
- निर्यात या आयात लाइसेंस प्राप्त करनाशुरुआत में माल के खरीदार के साथ निहित है। इसके अलावा, कागजात की प्राप्ति के बाद उत्पन्न होने वाले सभी जोखिम, साथ ही भविष्य की सभी लागतों को भी खरीदार द्वारा भुगतान किया जाना चाहिए।
- वह पार्टी जो सामान खरीदती है उस दिन माल प्राप्त करने के लिए बाध्य होती है और उस समय जब इसे लोड होने की जगह पर पहुंचाया जाता है।
- खरीदार की जिम्मेदारियों में एक महत्वपूर्ण बिंदु होगाकि वह विक्रेता द्वारा लोड होने के बिंदु पर वितरित किए जाने के पल से सामान की ज़िम्मेदारी मानता है। यह इस तथ्य के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है कि उदाहरण के लिए, सभी खर्चों की आवश्यकता हो सकती है, माल के नुकसान के मामले में, खरीदार द्वारा लोडिंग बिंदु पर माल आने के पल से भी खरीदा जाता है।
- एक महत्वपूर्ण बात यह होगी कि खरीदार को माल के विक्रेता को सूचित करने के लिए बाध्य किया जाता है जिसे उसने अपना सामान प्राप्त किया था।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि माल के बाद के स्व-निर्यात के साथ अनुबंध का निष्कर्ष सावधानी से किया जाना चाहिए, क्योंकि कुछ नुकसान हैं।
इस समझौते का बहुत अप्रिय बिंदुयह है कि लोडर खरीदार के कंधों पर पड़ता है, हालांकि माल की विक्रेता अक्सर इस कार्रवाई को करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में होती है। यह ध्यान देने योग्य भी है कि अगर कार्यान्वयनकर्ता लोडिंग करता है, तो सभी जोखिम अभी भी खरीदार के साथ झूठ बोलेंगे। यही कारण है कि संक्षिप्त नाम एफसीए के साथ एक समझौते को समाप्त करना बेहतर है, जो खरीदार से विक्रेता को लोड करने के जोखिम को स्थानांतरित करता है।
खरीदार के प्रयासों के कारण लोडिंग के अलावा, कुछ अप्रिय क्षण हैं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि जब निष्कर्ष निकाला जाता हैईडब्ल्यू वर्क्स की शर्तों पर अनुबंध, कार्यान्वयन सीमा शुल्क औपचारिकताओं के कार्यान्वयन के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। वे सभी भी खरीदार के कंधों पर पड़ते हैं। इस वजह से, केवल ऐसे अनुबंध में प्रवेश करने की अनुशंसा की जाती है जब खरीदार को भरोसा है कि वह भविष्य में आवश्यक होने पर सभी सीमा शुल्क संचालन करने में सक्षम है।
|
d4b909c5a9c5f042c2bd7ccf198e76b07ea89b57 | web | कृपा का सही मतलब क्या है? कृपा कैसे पाएं?
कृपा का सही मतलब क्या है और किस तरह से हम अपने आपको कृपा के लिये उपलब्ध करा सकते हैं? यहाँ सद्गुरु समझा रहे हैं कि कृपा कोई अमूर्त, गैरहाजिर विचार या कल्पना नहीं है पर ये एक जीवित शक्ति है जिसे हम अपने जीवन में आमंत्रित कर सकते हैं। वे आगे समझा रहे हैं कि कैसे हम अपने आपको कृपा का पात्र बना सकते हैं, और कृपा हमारे लिये क्या-क्या कर सकती है?
हम अपनी शक्ति, बुद्धि और जानकारी से जो कुछ भी कर सकते हैं, वो सब बहुत सीमित है। अगर आप कृपा की खिड़की को खोल सकें तो जीवन ऐसे अद्भुत तरीके से चलेगा, जो संभव होने की आपने कल्पना भी नहीं की होगी। आपके सामने हर जगह यह सवाल है, "मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ"? पर, ये कोई करने वाली चीज़ नहीं है। आपके अंदर, अगर कोई खाली जगह है जहाँ आपके विचार और पूर्वाग्रह, आपकी भावनायें, विचारधारायें और फिलोसोफी अंदर ना आ सकें, तो आपके जीवन में कृपा एक प्रबल शक्ति की तरह होगी। अगर आप अपने ही विचारों, अपनी ही भावनाओं और कल्पनाओं आदि से भरे हुए हैं तो कृपा आपके आसपास बहते हुए भी, आपके अंदर कुछ नहीं होगा। ज्यादातर लोगों के जीवन के साथ यही त्रासदी है कि उनके आसपास एक जबर्दस्त संभावना हमेशा बनी रहने के बावजूद वे उसे पूरी होने नहीं देते। सभी आध्यात्मिक प्रक्रियाओं के लिये विचार, फोकस और करने के तरीके यही हैं कि आपके व्यक्तित्व को फाड़ डाला जाये, खत्म कर दिया जाये, जिससे आपके अंदर कोई खाली उपस्थिति बने और वो आपके लिये कृपा और संभावना का ऐसा प्रवेशद्वार बने जिसके बनने की संभावना के बारे में आपने कभी सोचा ही न होगा।
#2. क्या आपमें से कृपा रिसती है?
सवाल यह नहीं है कि आप पर कृपा काम कर रही है या नहीं? वह तो कर ही रही है, वरना आपका अस्तित्व ही संभव नहीं। सवाल सिर्फ यह है कि क्या कृपा आपमें से रिसकर बह रही है( यानि, क्या आप दूसरों के लिये सहायक हैं, भलाई का काम कर रहे हैं) या फिर आप इसे किसी खराब चीज़ में बदल रहे हैं और दूसरों के साथ दुष्टता का व्यवहार कर रहे हैं?
एक अंधे ऋषि थे जो किसी जंगल में रहते थे। लोग बहुत कम ही, शायद कभी ही उस तरफ़ से गुजरते होंगे। जब वे उधर से निकलते तो उन्हें कुछ दे देते और ऋषि उसी से अपना गुजारा चलाते। एक दिन, राजा, मंत्री और उनके सैनिकों की टुकड़ी जंगल में शिकार के लिये आये। शिकार के दौरान एक हिरन का पीछा करते हुए रास्ता भूल गये। राजा बाकी लोगों से बिछड़ गया। चूंकि राजा के पास सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा था, तो वह बहुत आगे निकल गया और भटक गया। वे एक दूसरे को ढूंढते रहे और खो गये। फिर, एक सैनिक ने उन ऋषि को देखा और पूछा, "क्या आपने राजा को देखा है"? ऋषि ने कहा, "नहीं"! फिर सेनापति आया और उसने भी वही पूछा। ऋषि ने उसे भी नहीं कहा। फिर मंत्री वहाँ पहुँचा और उसने भी वही सवाल किया। ऋषि ने फिर से नहीं कहा। जब राजा खुद पहुँचा तो उसके पूछने पर ऋषि ने राजा को तुरंत पहचान लिया और कहा, "आपके लोग आपको ढूँढते हुए यहाँ आये थे। पहले सैनिक आया, फिर सेनापति और फिर मंत्री। राजा ने देखा कि ऋषि अंधे थे तो उसने पूछा, "हे दिव्य मुनि, आपको कैसे पता चला कि पहले सैनिक आया था, फिर सेनापति और फिर मंत्री? ऋषि बोले, " जो पहला व्यक्ति आया, उसने कहा, "ओ अंधे, क्या तुमने हमारे राजा को इधर आते देखा है"? तो मैं समझ गया कि वो आपका सैनिक होगा! दूसरे ने अधिकार के साथ पर बिना सन्मान के पूछा तो मुझे लगा कि वो आपका कोई सैनिक अधिकारी ही होगा। तीसरा जो आया, उसने बहुत सन्मान के साथ पूछा, तो मैं समझ गया कि वह आपका मंत्री होगा। जब आप आये और जब आपने मेरे पैर छू कर मुझे दिव्य मुनि कहा, तो मैं समझ गया कि आप राजा होंगे।
आप चाहे खाना खायें या पानी पियें या साँस लें, ये सब कृपा ही है। हाइड्रोजन के दो भाग ऑक्सीजन के एक भाग के साथ मिल कर जीवन देने वाला पानी बनाते है। यह भी कृपा ही है। आप इसको समझा सकते हैं पर आप ये नहीं जानते कि ऐसा क्यों होना चाहिये? यह सब जो कुछ भी हो रहा है, वह कृपा ही है। तो अगर आप खाना खा रहे हैं, पानी पी रहे हैं और साँस ले रहे हैं तो आपमें से भी कृपा पसीजनी ही चाहिये, है कि नहीं? पर, दुर्भाग्यवश, लोग अपने अंदर बहुत अच्छी, अद्भुत चीजें ले तो लेते हैं पर वे इनसे दुष्टतापूर्ण चीजें बनाते हैं और उन्हें दूसरों पर खराब, बकवास चीजों के रूप में डालते हैं। पर, आप पेड़ को देखिये। आप उसमें कचरा डालते हैं लेकिन वो आपको सुगंध देता है, छाया, फल और फूल देता है। अगर आप पेड़ का तरीका सीख लें तो आपमें से भी कृपा ही बरसेगी, पसीजेगी। जब आपमें से कृपा रिसती होगी तो लोग उसे पोषित करना चाहेंगे, बढ़ाना चाहेंगे और उसका हिस्सा बनना चाहेंगे।
#3. आप कैसे जानेंगे कि गुरु की कृपा आप पर काम कर रही है?
प्रश्न : हमें यह कैसे पता चलेगा कि गुरु की कृपा हम पर है?
सद्गुरुः जब आप किसी होटल की लॉबी में होते हैं तो वहाँ, पृष्ठभूमि में, हल्का-हल्का संगीत चल रहा होता है पर क्या आपने ध्यान दिया है कि कुछ समय बाद ये आपके ख्याल में भी नहीं आता, आपको महसूस भी नहीं होता कि वहाँ कोई संगीत भी है। सिर्फ अगर आप किसी से बातचीत करना चाहें, तो आपको लग सकता है कि वो संगीत बाधा डाल रहा है, वरना वो संगीत तो हमेशा चल ही रहा होता है और आपको पता भी नहीं चलता। ऐसे ही, आपके घर में किसी मशीन की आवाज़, हल्की घरघराहट, आ रही होती है पर आपका ध्यान उस पर तभी जाता है, जब आप घर में घुस रहे होते हैं। इसी तरह, सामान्य रूप से, आपको पता भी नहीं चलता कि आपकी साँस चल रही है पर अगर एक भी मिनिट ये न चले तो आपको पता चलेगा। यही वजह है कि आपको यह पता भी नहीं होता कि दिव्यता का हाथ हमेशा ही आप पर है।
जब कोई चीज़ आपके लिये 24 घंटे उपलब्ध हो तो क्या फर्क पड़ेगा अगर आप यह न जानें कि वो है या नहीं? जीवन तो फिर भी चलता रहेगा पर कृपा में होने के अपने आनंद को आप खो देंगे। कृपा कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो आप पर कभी हो और कभी न हो। यह कोई ऐसी बात नहीं है जिस पर आप हर सप्ताहांत में सवाल उठायें। यह तो हर समय है ही। अगर आप इसके बारे में जागरूक रहेंगे तो आपको कृपा में होने के आनंद का पता जरूर चलेगा। मैंने यह बात कई तरीकों से कही है पर मुझे पता है कि आप में से ज्यादातर लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया है।
अगर आप मेरे साथ एक पल के लिये भी बैठें तो आपके जीवन में कोई निजीपन नहीं रह जायेगा। जैसे ही आप मेरे साथ बैठे, खास तौर पर मेरे द्वारा दीक्षित हुए तो फिर कृपा है या नहीं जैसी कोई चीज़ नहीं रह जायेगी - कृपा हर समय रहेगी ही! कृपा का मतलब यह है कि प्रकाश के लिये कोई बाहरी स्रोत आप नहीं ढूँढते, आप खुद प्रकाश के स्रोत बन जाते हैं। हर समय भले ही इसका अनुभव न हो पर, अगर एक पल के लिये भी आप समझ लें कि आप प्रकाश से भरे हुए हैं तो इसका मतलब है कि आपको कृपा ने छुआ है।
हम ईशा में ऐसी बहुत सी चीज़ें कर रहे हैं जिनसे आपको किसी तरह से, कम से कम एक पल के लिये यह अनुभव मिल जाये। अगर इसने आपको एक पल के लिये भी छुआ हो तो, चाहे ये आपके पास वापस लौट कर न भी आये तो भी आपका जीवन पहले जैसा नहीं रहेगा। आप उस एक पल के साथ जुड़े रह सकते हैं और, आसपास के किसी भी व्यक्ति की तुलना में, अपना जीवन बिल्कुल अलग ढंग से जी सकते हैं। अगर ये हर समय आपके साथ है तो इसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
बात सिर्फ इतनी है कि आपकी उम्मीद यह है कि कृपा के द्वारा आपकी सारी इच्छायें, योजनायें पूरी हो जायें। आपकी यह वही पुरानी आदत है कि मंदिर या चर्च जा कर भगवान से कहते हैं कि आपके लिये उसको यह या वह चीज़ जरूर करनी चाहिये। अगर वो ऐसा न करे तो आप अपने भगवान ही बदल देते हैं। कृपा का काम आपकी छोटी मोटी इच्छायें, योजनायें पूरी करना नहीं है। वैसे भी आपकी योजनायें हर समय बदलती रहती हैं। अपने जीवन में, अलग अलग समय पर, आप सोचते थे, "यही सबकुछ है" और फिर, अगले ही मिनिट में उसे बदल देते थे। आप छुट्टी मनाने जाना चाहते हैं, तो पूछते हैं, "सद्गुरु, आप मेरी मदद क्यों नहीं करते"? तो, हर दूसरे दिन यह मत पूछते रहिये, "क्या कृपा मेरे साथ है"? "क्या कृपा मेरे साथ नहीं है"? किसी गुरु की कृपा आपकी योजनायें पूरी करने के लिये नहीं होती। गुरु की कृपा तो जीवन की योजनायें पूरी करने के लिये होती है। ये आपको जीवन का हिस्सा बनाने के लिये है, जीवन का मकसद पूरा करने के लिये है।
प्रश्नकर्ता : मैं एक डॉक्टर हूँ। कभी कभी, मेरे दवाखाने में, जब मैं किसी मरीज का इलाज कर रहा होता हूँ तो मुझे लगता है कि मेरे नियंत्रण के बाहर, किसी तरह की कृपा मुझे मरीज का इलाज करने में मदद कर रही है। मैं इसे कैसे समझाऊँ?
सद्गुरु : किसी दूसरे का जीवन अपने हाथ में ले लेना कोई अच्छी बात नहीं है क्योंकि इसका असर आप पर एक खास तरह से पड़ता है। अपने खुद के जीवन के साथ आप थोड़ा बहुत, इधर उधर कर सकते हैं, उसके साथ खेल सकते हैं। पर जब किसी और का जीवन आपके हाथों में हो तो आप थोड़ा भी इधर उधर नहीं कर सकते। आप चाहे डॉक्टर हों या ड्राइवर, आप दूसरों का जीवन अपने हाथ में ले रहे हैं। अगर आप गुरु हैं तो स्थिति और भी ज्यादा खराब हो जाती है। बहुत सारे लोगों का जीवन अपने हाथ में ले लेना अपने सिर पर एक बड़ा बोझ ढोने जैसा है, खास तौर पर तब, जब वे आपके सामने एक खास तरीके से बैठें हों या आपके सामने असहाय अवस्था में सर्जरी टेबल पर पड़े हों।
औषधि/इलाज की किसी भी प्रणाली - आयुर्वेद, सिद्ध, एलोपैथी या कुछ और - को अगर आपने अच्छी तरह से देखा, समझा है तो आप जानते हैं कि किसी के इलाज में आपकी भूमिका 50% भी नहीं होती। दुनिया के महानतम डॉक्टरों का भी यही अनुभव है कि जिन्होंने लोगों के साथ अद्भुत काम किया है, वे लोग बहुत सामान्य ढंग से ऐसी भाषा बोलते हैं।
अगर आपको ईश्वर में विश्वास है तो ये बहुत आसान है। आप ऊपर देख कर कह सकते हैं, "हे राम"! या "हे शिव"! या कुछ भी! अगर मरीज़ मर भी जाये तो भगवान की गोद में ही तो जायेगा, तो ये ठीक ही है। विश्वास करने वालों को सामान्य रूप से कृपा का अनुभव नहीं होता। उन्हें इस पर बस विश्वास होता है। ये बहुत आसान, सुविधाजनक भी है, कुछ और करना ही नहीं है। पर, इन विश्वास प्रणालियों को अगर आप नहीं मानते तो आपको समझ में आ जाता है कि चीज़ें आपके मुताबिक हों, इसमें आपकी भूमिका बहुत कम होती है और तभी आपको कृपा की उपस्थिति की समझ आती है।
वास्तविक समस्या और परेशानी उन लोगों को होती है जिन्हें पता ही नहीं चलता कि वे विश्वास करें या न करें - वे लोग जिनकी बुद्धि दोनों चीज़ों के साथ संघर्ष में होती है! जो कभी विश्वास करता है और कभी नहीं करता - जिसकी बुद्धि को दोनों के साथ परेशानी है। वह व्यक्ति जो कभी तो ईश्वर में, उसके किसी भी रूप में विश्वास करता है, और कभी कभी नहीं भी करता, जो अपने तर्क और अपनी काबिलियत की सीमितताओं के साथ संघर्ष में है, और जो ऐसे आयामों के साथ भी सहज नहीं है जो सामने दिखते न हों, ऐसे व्यक्ति के लिये कृपा की परिस्थिति उसके जीवन में एकदम स्पष्ट होती है। वह बिल्कुल ठीक ठीक समझता है कि जब उसे कोई संकरा पुल पार करना हो तो दूसरे आयाम की मदद के बिना कुछ नहीं हो सकता। सवाल यह है कि कृपा की यह उपस्थिति आपके पास कैसे आये? क्या यह किसी संयोग से आती है या इसके लिये कोई तरीका है?
गुरुत्वाकर्षण हर समय आप पर काम कर रहा है, चाहे आप सतर्क हों या न हों। कृपा सूक्ष्म है। आप जब तक सतर्क, सजग नहीं होते, ये नहीं आयेगी( आपके चारों ओर होने के बावजूद)। कृपा आपकी उपस्थिति के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील होती है। अगर आप हाजिर नहीं हैं तो ये हाजिर नहीं होगी। यही स्वभाव दिव्यता का है। ज्यादातर लोग इसी वजह से इसे पाने से चूक जाते हैं क्योंकि ज्यादातर वे गैर हाजिर होते हैं। आपके विचार, आपकी भावनायें, आपकी गतिविधि आप पर राज कर रही होती है। आपकी हाजिरी या उपस्थिति आप पर राज नहीं करती। किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया से आप अपने में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं। आपका शरीर, मन और आपकी भावनायें आपके साथ साथ आते ही हैं पर आपको चाहिये कि आपकी हाजरी मुख्य रूप से अधिकारी बन कर रहे। चूंकि आप हैं, इसीलिये आपने अपने विचारों, अपने शरीर और अपनी भावनाओं को अपने से ज्यादा महत्व दिया है। इस अस्त व्यस्त दशा में आप कृपा को महसूस नहीं कर सकते।
अगर आप अपने अंदर की ऐसी दशा को उल्टा कर दें तो अचानक ही सामान्य परिस्थिति असामान्य बन जायेगी। जीवन का हरेक पहलू पूरी तरह से जीवन के अलग अनुभव में पहुँच जायेगा। ये इसलिये नहीं होता कि आप किसी में कुछ विश्वास करते हैं। विश्वास प्रणालियों की वजह से आप कल्पनायें कर सकते हैं, यह समस्या विश्वास करने वालों के साथ होती ही है। अगर आप अपने तार्किक मूल में, अपने आधार पर स्थित नहीं हैं तो यह पूरी तरह से संभव है कि आप अपनी कल्पनाओं में उड़ने लगेंगे और सोचेंगे कि यही कृपा है। अपने आप में, एक मजबूत तार्किक आधार पर रहना और फिर भी कृपा के लिये उपलब्ध हो पाना, ये कुछ ऐसा है जो आपको अपने लिये करना चाहिये, करना है। तात्विक(दिव्यदर्शी) और तार्किक, ये दो क्षेत्र समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। अगर आपका तार्किक क्षेत्र सही ढंग से स्थिर है, स्थापित है तो आपके जीवन की सामान्य, छोटी-छोटी बातें ठीक से होती रहेंगी।
अगर आपके जीवन में तात्विक क्षेत्र खुला हुआ हो तो आपका जीवन का अनुभव बहुत ही अद्भुत होगा। अगर ऐसा न हुआ, अगर आप बस तार्किक क्षेत्र को संभालते रहे तो आपकी व्यवस्था अच्छी रहेगी पर जीवन के अनुभव अच्छे नहीं होंगे। दूसरी ओर, अगर आपने तार्किक क्षेत्र की ओर ध्यान नहीं दिया तो आपके अनुभव बढ़िया हो सकते हैं पर आपकी व्यवस्थायें गड़बड़ होंगीं। तो, तार्किक क्षेत्र को सही रख कर भी तात्विक पक्ष के लिये तैयार होने, खुल जाने की प्रक्रिया को दुनिया के समाजों ने ठीक तरह से संभाला नहीं है। हमसे या तो यह छूट जाता है या वह, इन दोनों के साथ में हुए बिना हमारा जीवन सुंदर नहीं होगा। जब आपने अपने सामान्य काम अच्छी तरह से कर लिये हों तो अब समय है कि आप अपने आपको तात्विक/दिव्यदर्शी क्षेत्र के लिये उपलब्ध करायें।
इसमें आपके तर्क काम नहीं करेंगे, वे बस आपको सीमित कर देंगे। "मैं अपने तर्कों के साथ कैसे लड़ सकता हूँ"? आप तर्क व्यवस्था को बंद करने के पीछे न पड़ें, बस उसके द्वारा जो विचार पैदा हो रहे हैं, उनकी ओर ध्यान देना बंद कर दें। दस जन्मों तक कोशिश कर के भी आप मन को खत्म नहीं कर सकते पर उसके उत्पादों की ओर ध्यान देना आप बंद कर सकते हैं। मन विचार पैदा करता है, आप उनकी ओर ध्यान न दें। ऐसा करने से आप भक्ति की स्वाभाविक प्रक्रिया का हिस्सा बन जाएंगे। भक्ति का मतलब किसी का गुणगान करना नहीं है। भक्ति तो वह है जिसमें आप ही नहीं होते। आप अभी जिसे "मैं" कहते हैं वह तो विचारों, भावनाओं और आपकी राय का एक गट्ठर मात्र है। अगर आप इन तीन चीजों को अलग रख दें तो आपका व्यक्तित्व हाजिर नहीं रह पायेगा। तब, आपमें जो जीवन है, वह उपस्थित होगा। अगर यह उपस्थित है, तो आप कृपा से चूक नहीं सकते।
एक शिष्य ने अपने झेन गुरु के पास जा कर पूछा, "अपने आध्यात्मिक विकास के लिये मैं क्या करूँ"? गुरु ने जवाब दिया, "फर्श साफ करो, लकड़ी काटो, खाना बनाओ"! शिष्य बोला, "उसके लिये मैं यहाँ क्यों आऊँ, यह सब तो मैं घर पर भी कर सकता हूँ"। गुरु मुस्कुराये, "पर जब तुम अपने घर का फर्श साफ करते हो तो वह तुम्हारा अपना फर्श है। तुम अपने पड़ोसी का फर्श साफ नहीं करोगे, चाहे वह कितना भी गंदा हो गया हो। लकड़ी काटना और खाना बनाना तुम सिर्फ अपने लिये करोगे या उनके लिये जिन्हें तुम अपना मानते हो। तुम सभी काम अपने आप को बढ़ाने के लिये करते हो बजाय इसके कि हर काम तुम अपने आपको खत्म करने के लिये करो"! तो, हम, अपनी गतिविधि को, अपने लिये बंधन बनाते हैं या मुक्ति की प्रक्रिया - यही फर्क महत्वूर्ण है।
आप कोई भी काम या तो अपने आपको बढ़ाने के लिये करते हैं, या फिर अपने आपको खत्म करने के लिये। या तो आप अपने लिये कर्म के बंधन बांध रहे हैं या फिर अपने कर्म को योग बना रहे हैं। बस, यही सब कुछ है। आप तो बस फर्श साफ करें, खाना बनायें या कोई पेड़ लगायें - अपनी ज़मीन पर नहीं, पेड़ की छाया में खुद या अपने बच्चों के बैठने के लिये नहीं - बस इसे लगायें, जिससे आपका कोई दुश्मन भी इसके नीचे बैठ कर इसका आनंद ले। तभी, यह गतिविधि खत्म होने की, पिघल जाने की प्रक्रिया बनती है। आप जिसे मैं और मेरा मानते हैं, उसके लिये आप जितना कम करेंगे, उतने ही ज्यादा आप कृपा के लिये उपलब्ध रहेंगे।
ज्यादातर लोग सिर्फ वही करते हैं जिसे वे अपना कर्तव्य समझते हैं। सिर्फ तभी, जब किसी चीज़ के लिये, आपमें प्रेम या भक्ति का भाव बहुत गहरा हो, तभी आप वह सब कुछ करेंगे जो आप कर सकते हैं। अपने जीवन के हर पल में, अगर आप वो सब कुछ नहीं कर रहे हैं, जो आप कर सकते हैं, तो आप अपने आपको किस चीज़ के लिये बचा कर रख रहे हैं? क्या ये महत्वपूर्ण नहीं है कि अपने जीवन के हर पल में आप वो सब कुछ करें जो आप कर सकते हैं? शामिल होने का यह गहन भाव ही भक्ति है। भक्ति कोई सौदा, कोई समझौता, कोई लेन देन नहीं है।
"सद्गुरु, मैं आपके प्रति इतना समर्पित रहा हूँ पर आपने मेरे लिये कुछ नहीं किया"! आपके लिये कुछ करना मेरा काम नहीं है। सौदा करने वाले लोग अलग होते हैं, भक्त अलग होते हैं। "मुझे कुछ भी नहीं चाहिये, मेरे लिये कुछ भी होना ज़रूरी नहीं है", यही भक्ति है। "मुझे क्या मिलेगा", सिर्फ इस एक बात से अगर आप मुक्त हो जायें तो आपका जीवन बहुत ही आनंदमय, भरपूर कृपा वाला हो जायेगा। भक्ति का मतलब है आशाओं, इच्छाओं के दर्द से मुक्त हो जाना। जब आपका किसी तरह की चीज़ में कोई स्वार्थ नहीं होता, आपको कोई रुचि नहीं होती, तब आप सबसे अच्छा, सबसे ऊँचे स्तर का काम करते हैं और कोई इंसान बस इतना ही कर सकता है।
अपनी वो प्रतिबद्धता अगर आप दिखायें, उतने स्तर पर हर उस चीज़ में शामिल हों, जो मौजूद है - तो आप कृपा के लिये उपलब्ध हो जायेंगे। भक्ति का मतलब है बिना किसी सवाल के, बिना खुद को रोके, बिना कुछ पीछे रखे, पूरी तरह से शामिल होना। आपका शामिल होना अगर उस तरह का है तो आप पर कृपा एक झरने की तरह बहेगी, बूँदों में नहीं टपकेगी। जब आप पर ऐसी कृपा बरसेगी तो आपके जीवन का मकसद पूरा हो जायेगा। अगर आपका शरीर, आपका मन और आपकी ऊर्जा बाधा नहीं बनते और आप कृपा के लिये उपलब्ध हैं तो आपको यह चिंता करने की ज़रूरत नहीं रहेगी कि आपके जीवन का क्या होगा? जो भी होगा, सबसे ज्यादा अद्भुत चीजें ही होंगी।
इधर उधर घूमते हुए यह समझिये कि आप जो कुछ भी हैं, बहुत छोटे हैं। छोटे होने का मतलब यह नहीं है कि आप शून्य हैं। पर छोटा होना शून्यता के बहुत करीब है। आपको यह भी दिखाने की ज़रूरत नहीं है कि आप छोटे हैं क्योंकि वास्तव में आप बहुत ज्यादा छोटे हैं। आप सिर्फ बड़े होने का दिखावा कर रहे हैं। आप अगर अपने सब दिखावे, सब नाटक बंद कर दें तो आप कृपा को उपलब्ध हो जायेंगे।
जीसस ने कहा था, "अगर आपकी एक ही आँख हो तो आपका शरीर प्रकाश से भरा होगा"। दो भौतिक आँखें भेद कराती हैं, अलग अलग दिखाती हैं। वो आपको बताती हैं कि क्या ऊँचा है, क्या नीचा है, कौन पुरुष है, कौन स्त्री है, ये क्या है, वो क्या है! ये दो आँखें वो साधन हैं जिनसे आप टिके रहते हैं। "अगर आपकी एक आँख हो" का मतलब यह नहीं है कि आप एक आँख बंद कर लें। इसका मतलब सिर्फ यही है कि आप कोई भेदभाव नहीं करते, आप सभी चीज़ों को एक ही समझते हैं, एक ही जैसा। अगर आप ऐसे हो जायें तो आपका शरीर प्रकाश से भर जायेगा। यही कृपा है।
आप नहीं जानते कि कोई पेड़ वास्तव में कैसे काम करता है? आपको नहीं पता कि घास का तिनका कैसे बनता है? आपको नहीं मालूम कि इस ब्रह्मांड में कोई भी चीज़ किस तरह से काम कर रही है? तो, यहाँ जो कुछ है वो आपसे थोड़ी ज्यादा बुद्धिमान लगती है। जब आप इतने बुद्धू हैं तो बेहतर होगा कि आप हर चीज़ के सामने झुकें। जब पेड़ को देखें तो झुकें, पहाड़ को देखें तो झुकें। अगर आप घास का तिनका देखें तो भी झुकें। बालू का एक कण भी जीवन के बारे में आपसे ज्यादा जानता है। आप यहाँ बहुत छोटे हैं, जूनियर हैं।
आपके आने के बहुत पहले से वे यहाँ हैं और जीवन के बारे में वे सभी आपसे बहुत ज्यादा जानते हैं। मैं चाहता हूँ कि जब आप चलें तो हर चीज़ पर आपमें आश्चर्य और भक्ति का एक खास भाव होना चाहिये। अगले 24 घंटे तक ऐसा कीजिये। जीवन के दरवाजे खोलने के लिये बस यही होना चाहिये कि आप खुद को बहुत बड़ा न मानें। आप अपने बारे में वह न सोचें जो सही नहीं है। आप अपने बारे में जो कुछ सोचते हैं वो काफी झूठ है क्योंकि अगर हम मूल जीवन की बात करें, तो आप वो कुछ भी नहीं जानते जो ये मिट्टी जानती है। आपका मस्तिष्क वो नहीं कर सकता जो ये मिट्टी कर रही है। तो, जब आपके आसपास इतनी हस्तियाँ हों, तो आपको शांति से, हल्के से चलना चाहिये। अगर आप बस भक्ति के भाव में चलें तो धीरे धीरे आप कृपा की गोद में गिर जायेंगे।
एक धागे को दूसरे पर रखने की,
जिसमें हर धागा उतना ही अहम है, जितना दूसरा,
तो फिर बन जाता है एक शानदार वस्त्र।
मेरे प्रिय, ऐसा ही जीवन के बारे में भी है,
पहला वाला था और जो बाद में आने वाला है।
जो एक असीमित जीव के लिये है - दिव्यता।
शरीर ढंकने के लिये ही ये वस्त्र नहीं है,
सृष्टि के जैविक सौंदर्य का स्पर्श करा देगा और,
एकांत के लिये मार्ग खोल देगा।
और समझ की बुद्धिमानी में भीगे हुए धागे।
इतने ज्यादा तरह के रंगों और बनावटों के धागे,
|
4e63cc01e1ca6629641b5770519b7e38444b08c52dbf092bf6dbfebc1a27c25d | pdf | गिरवर में धात धात मैं गिरवर, गिरवर धात न षाया ॥ भेष भरोसे मति कोई भूलै जब लग यहु मत नाया ॥१०॥ चौमासे दोइ चात्रिग ग्रास्या, निरपषि निजरि समाया ।। सात समद मोती मैं वास्या, मरजीवा ले आया ।।११।। नवघण घटा वरसती थाकी, भार अठारह पाई । चिंता षिवणि गाजै गत आप वसुधा गिगन समाई ॥१२॥ गागरिका पांणी कूवा पीवै, मया अचंभा मारी ॥ उलटी नेज अगम सूँ लागी, पड़ि फूटी पणिहारी ।।१३।।
पाठभेद - इहु - २ । चात्रग - २ । निरपष - ३-४ । नौघरण- १ । स्यू - १ ।
१० वीं साखी - गिरवर सर्वोच्च, सर्वश्रेष्ठ चेतनतत्व के धातु त्रिगुरणात्मक, पंचभूतात्मक, स्थूल तत्व हैं । धातु स्थूल तत्वों में चेतन व्याप्त है, पर चेतनतत्व स्थूल देहादि का नाशक नहीं है, उनका नाश कर्मानुबन्धिकालजन्य है। केवल भेष से काल की चपेट टल जाय ऐसी भूल कोई न करे । काल जब ही जीता जायगा, जब साधना से आत्मज्ञान की प्राप्ति की जाय ।
११ वीं साखी - एकाग्र प्रात्मरत वृत्तिरूपी चातुर्मास दशा ने प्रज्ञान तथा मोहरूपी दो चात्रज्ञ पक्षियों को ग्रसित किया, जिससे द्वेत बुद्धि का निवारण हो । निरपष - धर्म, जाति, कुलादि का पक्ष निवृत्त हो व्यापक समत्व दृष्टि प्राप्त हुई । विशुद्ध मन रूपी मोती में साधना की सत्य भूमिका सिद्ध हुई। इस तरह - मरजीवाजीवन्मृतक साधक जीवन्मुक्त अवस्था को ले आया-प्राप्त हुआ ।
१२ वीं साखी - नवघर-पाँचों इन्द्रियाँ व चारों अन्तःकररणरूपी बादलों की घटायें बरस बरस थक गई । भार अठारह-आठ महत दस लघु सिद्धियाँ पुष्ट हुईं । चिता षिवरिण - वासना रूपी बिजली की गरज व प्रधानता समाप्त हुई । गत पौ अहंकार नष्ट हुआ । वसुधा वृत्ति गगनदशम द्वार में स्थिर हुई अर्थात् समाधिदशा प्राप्त हुई।
१३ वीं साखी - आत्मतत्वरूपी कुआ देहध्यासरूपी गागर का पानी पीने लगा, जिससे प्रति आश्चर्य हुआ, उलटी नेज-वृत्तिरूपी नेज-डोरी अन्तर्मुख आत्माभिमुख हुई । अगम सू - ब्रह्म से लगी, ब्रह्मनिष्ठ हुई । वासनामय पणिहारी पड़ीखत्म हुई, तब भोगरूपी गगरी भी फूट गई ।
मेरडंड वाई चढ़ छेद्या, जलमल अगनि ग्रास्या ।। मिट गया त्रिवधि तिमिर या तन तैं, परम सूर परकास्या ।।१४।। सीमरता सकला जुग सूता, पडदा परहा न होई ।। उदै कँवल तहाँ अनि वलत है, जागि न देषे कोई ॥१५॥ सत रज तम गुण काम क्रोध मद, मोह दोह कस दीया ।। पांगी जलै अगनि जल सोषै, ऐसा आरंभ कीया ॥१६॥ मुद्रा सवद सुवधि कंठि सींगी, ग्यांन चक्र करि धार । चेला पांच जटा सिरि जरणां, आसण सूनि हमारं ।।१७।। पैंडा अधर अगम उरिं उदबुद कथा अभेदं ।। षिम्यां षड़ग लै ऐसे षेलू, जनम मरण सिरि छेदं ।।१८।।
पाठमेद - मेरदंड - १ । सुवुधि - १ । बेलौ - १ । जन्म-४ ।
१४ वीं साखी - वाई प्रारण- मेरुदण्ड सुषुम्ना मार्ग द्वारा गगनमंडल में पहुंचा, प्रदीप्त योगाग्नि ने वासना के जल व भोग के कालुष्य का शोषण किया, देह के त्रिविध ताप निवृत्त हो गए - मल, विक्षेप, ध्यासरूपी तिमिर- प्रज्ञानान्धकार का भी निवारण हुआ और परम सूर - विशुद्ध ब्रह्मतेज का प्रकाश फैला ।
१५ वीं साखी - सांसारिक भोग-विलासमय शीत से त्रस्त सब संसार सो रहा है - अज्ञानरूपी अन्धकार का पर्दा दूर नहीं हो रहा है । उदै कँवल - नाभिकमल में ज्ञानज्योति जल रही है पर कोई जागकर सचेत होकर देख नहीं रहा है। १६ वीं साखी - त्रिगुरणात्मक अन्तःकरण के धर्म, काम, क्रोध, मोह आदि सब को कस दिये - काबू में कर लिये। ज्ञानाग्नि प्रदीप्त हो विषयवासना के जल को जला रही है - शोषण कर रही है । ऐसा आरंभ कीया - इस तरह की साधना में लगा हूँ ।
१७ वीं साखी - साधक रूपक द्वारा अपना भेष बता रहा है । शब्द - अनहद शब्द का श्रवरण मुद्रा है, कण्ठ में अजपा-जाप होता है वह सींगी है, ज्ञानरूपी चक्र वही हाथ में कड़ा है, पांचों ज्ञानेन्द्रियां हैं वे ही शिष्यवर्ग हैं, जरगां है वही सिर पर जटा है, शून्य - गगनमंडल में वृत्ति को स्थिति वही आसन है ।
१८ वीं साखी - पेंडा - मार्ग हमारा अधर निरालंबी है, चेतन से सम्बन्धित है, अगम- इन्द्रियातीत स्वस्वरूप है वही हृदय में निवास करता है। यह प्रभेदरूपी ज्ञानकथा उदबुद - अद्भुत है । क्षमारूपी खड्ग को ले जन्ममृत्यु के कारणरूप काल का सिर काट देता हूँ ।
जप मंत्र मैं सीष्या, लोभ लहरि सब झाड़ ।। काली नागणि डसण न पावै, गिणि गिणि डाढ उपाड़ ।।१६।। पाणी मैं पैसि न परसू पांगी, अवनि न ग्रालं ।। गुणां पैस निरगुण होइ निक, आसा वसि रहूं निरासं ।।२०।। करूं कर रहूं निरारंभ, जीवण कूँ पपू न हारूँ ।। छाडू साथ न साथी राघूँ, ना मैं मरूँ न मारूँ ।॥ २१॥ रहूँनयां आऊँ चालू नहीं चलाया ।। सोऊँ सहज न हठ करि जागू, भूषा , भूषा रहूं न धाया ।।२२।।
पाठभेद - प्रसौ- १ । गिरास - २ - ४ । निकस्यू - १ । करौ - १ ५ । रहौं-१ । कौं-१ । षपौं-१ । हारौं - १ । छाड़ौं-१ । राषौं-१ । मरौं - १ । मारौं-१ ।
१६वीं साखी - मैंने अजपा जाप वृत्तिमय चिन्तन का मन्त्र सीखा है । लोभलालसा की लहरें सब झाड़ भड़क दी हैं - दूर कर दी हैं। मायारूपी काली नागिन अब काट नहीं सकती, उसकी विषय-वासना काम क्रोधादि सब डाढ़ जड़ें गिनगिन कर निकाल दी हैं ।
२०वीं साखी - रज वीर्यरूपी पानी से उत्पन्न इस देह में रहकर भी देहाध्यास रूप पानी का स्पर्श नहीं करता । काम-क्रोधादि की इस देह में अग्नि जलती रहती है, पर मैं उस काम-क्रोधादि विषयवासनादि अग्नि से ग्रसित नहीं हूँ । त्रिगुरणात्मक शरीर में रहकर भी मैं निर्गुरण होकर उससे तटस्थ हूँ। विविध प्राशा वाले मन के साथ रहते हुए भी मैं सब आशाओं से मुक्त हूँ ।
२१वीं साखी - साधना रूपी कर्म का प्रारम्भ करता हूँ, पर वह कर्म निष्काम है । अतः आरम्भ दिखते हुए भी निरारम्भ है । मुक्त होने के प्रयास में हूँ, इसमें आने वाली बाधाओं से हारूगा नहीं। अपने आत्मस्वरूप का साथ छोडूंगा नहीं, ज्ञानेन्द्रियों को अन्तर्मुख कर साथ रखूँगा । न मैं काल-कवलित होऊँगा, अभेदभावना से किसी का में मारक भी नहीं ।
२२वीं साखी - कामादि प्रवृत्तियों से रुक नहीं, लोभ-लालसा के बुलाने पर ग्राऊँ नहीं, मन के चलाने से चलू नहीं, सहज दशा प्राप्त कर समाधि में सोऊ । सांसारिक प्रवृत्तियों के दुराग्रह से जागू नहीं, अपनी साधना छोडू नहीं, स्वस्वरूप - प्राप्ति के परमानन्द से तृप्त रहूं पर उससे धापू नहीं - विरत नहीं होऊ ।
का सहज गुण ग्रासै, गुण कोई व्यापै नांही ॥ अवधू तन मन ऐसे राषै ज्यू, चंदा जल मांही ।।२३।। साहिब घट साध सब घट घर, कीमति कहत न आवै ।। वार पार कोई मधिन जांग, सब कोई अगम बतावे ।॥ २४ ॥ परमपुरिष परग्यांन परमसुष, परापरै पति पाया ।। जन हरीदास मन उनमनि लागा, सहजैं सुनि समाया ।।२५।। पारब्रह्म पति परम सनेही, समद रूप सब मांहीं ॥ जन हरीदास साध सुषि लागा, धार पार कछु नांही ।।२६।। ।। इति जोगध्यान जोगग्रन्थ सम्पूर्ण ।।
॥ अथ प्राणमात्रा जोगग्रन्थ ॥
ॐ प्राणमात्रा सुगौ हो साधौ,
भजन का
भेद, कांम क्रोध का करिवा
छेद ।।
राषिवा पाँच साथी, मन मैमंत मारिवा हाथी ॥१॥ मैं तैं मोह दल जीतिवा जोगी, जुरा भै मेटिवा पवन रस भोगी ।। सवद की गूदड़ी सास सव धागा, अचाहि की सूई लै सींव लागा ।।२।।
पाठभेद - ज्यौं-२ । कहैत - २ ।
उनमन - २ । पंच-१ ।
शब्दार्थ - प्रारणमात्रा = प्रारण का काल से नियन्त्रण । एकपहि एक स्थान, एकाग्र । मैमंत= मस्त । मैं तें मेरा तेरा । पवन रस भोगी - प्रारणसमाधि रस । प्रचाहि-अनिच्छा ।
२३वीं साखी - जैसे प्रकाश में विविध वर्गों की प्रतीति होते हुए भी प्रकाश सब वर्गों से अलिप्त रहता है- ऐसे ही आत्मसाधना में लगा साधक अपने तन-मन को सब विषय-भोगों से अलिप्त रखे जैसे जल में चन्द्रमा ।
श्री हरिदासजी की वारमी
निरास मैं मुद्रा सील संतोष सति चेला, ध्यांन की धूई तहां सिधां का मेला ॥ दया धीरज डंड साच करि गहिवा, विचार के उनमनि रहिवा ॥३॥
सवद की सींगी सहज की माला, जत की कोपीन तहाँ जोग का ताला ।। निरमोह मढी निहचल वासा, जरणां की जटा सिरि देषिवा तमासा ॥४॥ निरास उड़ाणी अकल की छाया, अवर उठि चालिवा तजिवा काम क्रोध काया। भेद सिर टोपी तन वाघंवर, निरगुण जो घोटा सूनि वस्ती न घर ॥५॥ Xपताल का पांणी काकू चढ़ाइवा, कलपना सरपणी पवन मुषि षाइवा ॥ सतगुर सवद ले अगह अगम उर धारिवा, ग्यांन का चक्र लै काल कूँ मारिवा वारह सोलहकला लै एक वरि आणिवा, जोगका मूल यह जुगति सब जांणिवा । गुर का सवद लै भौंरा जगाइवा, सरप बंबई तजि अगम तहाँ जाइवा । ७ । देषि पग धरिवा दया पंथ करिवा, उद्र भरि न सोइवा धात करि न धरिवा ।। भैमीत नग्री मोहनी माया, कामना मिटी तब जोग पंथ पाया ।।८। रहता सो भाई वहता सो वहरणां, अवधू उलटा गोता मारिस मैं रहणां ।।
की अंमध्यान भाषिवा, निरंजन मात्रा जतन सूँ राषिवा ॥६॥ पाठमेद - दंड - १ । वसती -२ । श्रपणी - १ -५ । अगेह- १ । बारह - ३-५ । देषि पांव धारिवा-१ । उदर - १ । नगरी - १ । अर्थ - ४-५ ।
शब्दार्थ - भेद-रहस्य, ज्ञान, तथ्य । वारह - सूर्य की कला, पिंगला । सोलहचन्द्रमा की सोलह कला, इड़ा । इड़ा पिंगला को एक घर सुषुम्ना में आरिणवालाना । भौंरा = जीवात्मारूपी भ्रमर । सरप वंवई संशय का मूल । देषि-ज्ञानदृष्टि से । दया पंथ करिवा=मन, बचन, कर्म से अहिंसक रहना । उद्र भरि प्रतिहार कर । धात करि न घरिवा- सोना, चांदी आदि धातु को लेना नहीं । भयभीत नग्री = देह रूपी नगरी कालभय से भयभीत है । रहता = एकाग्र मन । वहता चंचल मन । प्ररथ की अंधारी रूप, रस, शब्दादि विषयों का अन्धकार न आने देना ।
x पांरगी - शुक्ररूपी द्रव जो स्वभावतः अधोगति है, जिसके निकलने का स्थान मूत्रेन्द्रिय है। उस पाताल स्थान से वीर्य को प्रकाश में चढ़ाना - ऊर्ध्व रेता होना । मन की चंचलतारूपी सर्पिणी को प्रारणायाम की साधना द्वारा समाप्त करना, सतगुरु के उपदेशानुसार पकड़ में न आने वाले इन्द्रियातीत चेतन तत्व की स्वानुभूति करना, नित्यानित्य विवेक रूपी चक्र से काल पर विजय पाना । |
8ab783de42eee3af7c7bb2fdc665610e197d7eaf | web | हाल ही में अपने एक फ़ैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक डॉक्टर के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया। इस डॉक्टर पर अवैध लिंग परीक्षण के संबंध में सूचना पर एक अस्पताल में छापेमारी के बाद पीसीपीएनडीटी अधिनियम की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। हाई कोर्ट ने कहा कि गर्भ में मौजूद भ्रूण की लैंगिक जानकारी तक पहुंच पर प्रतिबंध सीधे तौर पर महिलाओं के प्रति द्वेष की समस्या से जुड़ा है, जो न केवल इस देश में बल्कि विश्व स्तर पर भी सभी सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि की महिलाओं को प्रभावित करता है।
इस मामले के तहत ज़िला उपयुक्त प्राधिकरण, पीसी एंड पीएनडीटी, रोहतक को कुछ डॉक्टरों द्वारा जीवन अस्पताल, नई दिल्ली में भ्रूण के अवैध लिंग निर्धारण के संबंध में एक सूचना प्राप्त हुई थी और फिर वह सूचना डॉ. नितिन राज्य कार्यक्रम अधिकारी, पीसी और पीएनडीटी (डीएफडब्ल्यू) को भेज दी गई थी। इसके बाद संबंधित अधिकारियों को सूचित किया था। ऐसी सूचना मिलने पर, दिल्ली में संबंधित प्राधिकरण ने एसडीएम, डिफेंस कॉलोनी, दक्षिण पूर्वी दिल्ली की अध्यक्षता में जिला निरीक्षण निगरानी समिति (डीआईएमसी) टीम, दक्षिण पूर्व जिला, नई दिल्ली और पीसी एंड पीएनडीटी टीम, रोहतक की एक संयुक्त छापेमारी टीम का गठन किया था।
सभी ने मिलकर एक महिला को फ़र्ज़ी मरीज़ बनाकर जीवन हॉस्पिटल में भेजा और फिर सही समय पर छापेमारी करके अस्पताल में आरोपी लोगों को पकड़ लिया उसके बाद डॉ. शिखा और एक डॉ. रविंदर सभरवाल को जिला उपयुक्त प्राधिकरण, दक्षिण पूर्वी दिल्ली के कार्यालय से एक निलंबन आदेश दिया, साथ ही उन्हें कारण बताओ नोटिस प्राप्त भी भेजा, जिसके द्वारा पीसी और पीएनडीटी अधिनियम की धारा 20 (2) के तहत जीवन अस्पताल के पंजीकरण को सस्पेंड कर दिया गया था।
हाई कोर्ट ने कहा कि गर्भ में मौजूद भ्रूण की लैंगिक जानकारी तक पहुंच पर प्रतिबंध सीधे तौर पर महिलाओं के प्रति द्वेष की समस्या से जुड़ा है, जो न केवल इस देश में बल्कि विश्व स्तर पर भी सभी सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि की महिलाओं को प्रभावित करता है।
इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 (पीसीपीएनडीटी अधिनियम) के सख्त कार्यान्वयन के लिए अधिकारियों को कई निर्देश पारित करते हुए कहा कि भ्रूण का लिंग जानने पर लगा प्रतिबंध सीधे तौर पर महिलाओं के प्रति द्वेष की समस्या से जुड़ा है, जो न केवल इस देश में बल्कि विश्व स्तर पर भी सभी सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि की महिलाओं को प्रभावित करता है।
पीसी एंड पीएनडीटी ऐक्ट क्यों लागू हुआ?
पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम 20 सितंबर 1994 को भ्रूण के लिंग के निर्धारण के लिए मुख्य रूप से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीकों को प्रतिबंधित करने के इरादे से लागू किया गया था। इस अधिनियम का शुरुआती उद्देश्य कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाना था। यह अधिनियम गलती करनेवाले रेडियोलॉजिस्ट/सोनोलॉजिस्ट को बचने का कोई प्रस्ताव नहीं देता है।
इस अधिनियम के बारे अदालत ने कहा कि सुविचारित और अच्छी तरह से लागू किया गया पीसी और पीएनडीटी अधिनियम और नियम लैंगिक असंतुलन से निपटने के लिए हस्तक्षेप के साधन हैं। अधिनियम के सामाजिक संदर्भ के साथ-साथ अपराध को भी याद रखने की ज़रूरत है। साथ यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि लैंगिक हिंसा, चाहे वह जन्म के बाद एक महिला बच्चे की सुरक्षा हो या उसके पैदा न होने पर भी हो, केवल राज्य की चिंता नहीं है, बल्कि अदालतों की भी चिंता है। जबकि व्यवहारिक परिवर्तन प्रत्येक परिवार से शुरू होना चाहिए। जब तक उक्त लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता, तब तक ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए कानून का सख्त होना ज़रूरी है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब यह अधिनियम विधायिका द्वारा बनाया गया था, तो अन्य चिकित्सा मुद्दों के साथ-साथ इसका मुख्य उद्देश्य भ्रूण में मौजूद बच्चे के सेक्स बताने की प्रथा को रोकना और दंडित करना भी था। विधायिका इस तथ्य से अच्छी तरह वाकिफ थी कि देश के अधिकांश हिस्सों में कन्या भ्रूण हत्या एक आम मुद्दा था। पिछला लिंगानुपात जनसंख्या प्रवृत्ति देश में पुरुष संतानों के लिए वरीयता दर्शाती है। यह मुद्दा इस हद तक अत्यंत महत्वपूर्ण था कि एक लड़की के जन्म से पहले ही उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपायों के पूरक के लिए और उसके लिंग के आधार पर उसकी हत्या नहीं की जाए, विभिन्न सरकारों ने अतीत में कई योजनाओं को लागू किया।
हाल ही में, लड़कियों की शिक्षा और कल्याण को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार ने ऐसी योजनाएं लागू की हैं जिनमें मुफ्त शिक्षा जैसे प्रोत्साहन प्रदान करना और बेटी के जन्म पर एक निश्चित राशि बैंक में जमा करना शामिल है, ताकि उसे बोझ न समझा जाए और उसके माता-पिता को इस बात की चिंता नहीं हो कि उसकी शिक्षा या शादी का खर्चा कैसे उठाया जाए। माज में देखा गया है कि ज़्यादातर लोग लड़कियों को बेटियों के रूप में इसीलिए पसंद नहीं करते हैं कि उसके बड़े होने तक उसकी शिक्षा का बोझ कैसे उठाएंगे और जवान होने के बाद उसकी शादी का खर्चा कैसे वहां होगा। शिक्षा पर खर्चा न करने के पीछे का कारण लड़कियों को दूसरे घर का कूड़ा समझने की सोच है। यही सोच लड़कियों को अच्छा खाने को न देने और शिक्षा पर खर्चा करने से माता-पिता को रोकती है। वे ये सोचते हैं कि इस पर खर्चा करने का क्या फायदा यह तो दूसरे घर चली जाएगी।
हालांकि, एक अजन्मी बच्ची की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए व्यवहारिक बदलाव ज़रूरी हैं। सरकारों द्वारा अलग-अलग योजनाओं को लागू किए जाने के बावजूद हमारा पितृसत्तात्मक समाज हमेशा कम से कम एक लड़के की इच्छा रखते हैं। यह लिंग निर्धारण के लिए एक प्रमुख मानदंड बन गया और इसी वजह से एक लड़की के मामले में अवैध अबॉर्शन होता है । अवैध लिंग निर्धारण परीक्षण और उसके बाद, अवैध अबॉर्शन अपने आप में एक छोटा उद्योग बन गया।
कहने की जरूरत नहीं है कि एक महिला अपने जेंडर के आधार पर 'दोहरी हिंसा' का सामना करती है। पहले, एक महिला पर उसके परिवार के सदस्यों द्वारा केवल एक लड़के को जन्म देने के लिए दबाव डाला जाता है। हालांकि, कुछ स्थितियों में, पितृसत्तात्मक कंडीशनिंग के कारण महिलाएं खुद एक लड़का चाहती हैं। इस तथ्य पर विचार करते हुए कि एक बार जब वह बूढ़ी हो जाएगी, तो उसके पास एक बेटा होगा जो उसे सहारा देगा। कुछ मामलों में महिलाओं में यह भी असुरक्षा की भावना होती है कि अगर वे एक लड़के को जन्म देने में सक्षम नहीं होती हैं, तो उन्हें परिवार के सदस्यों के साथ-साथ पितृसत्तात्मक समाज द्वारा भी सम्मान या महत्व नहीं दिया जाएगा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब यह अधिनियम विधायिका द्वारा बनाया गया था, तो अन्य चिकित्सा मुद्दों के साथ-साथ इसका मुख्य उद्देश्य भ्रूण में मौजूद बच्चे के सेक्स बताने की प्रथा को रोकना और दंडित करना भी था। विधायिका इस तथ्य से अच्छी तरह वाकिफ थी कि देश के अधिकांश हिस्सों में कन्या भ्रूण हत्या एक आम मुद्दा था।
दूसरी ओर, ऐसी स्थितियां होती हैं जब एक महिला के परिवार में पहले बच्चे के रूप में पहले से ही एक बेटी होती है, और उन मामलों में, महिलाओं को अबॉर्शन कराने के लिए गंभीर मानसिक दबाव का सामना करना पड़ता है। अगर उनका दूसरा बच्चा लड़का नहीं होता है तो उन्हें मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ता है और उनके शारीरिक स्वास्थ्य से फैसले भी परिवार लेता है। इसी से बचने के लिए महिला लिंग निर्धारण का रास्ता चुनती हैं और भ्रूण में बेटा न होने की स्थिति में उसका अबॉर्शन उन्हें करवाना पड़ता है। इस तरह के अबॉर्शन कानून के खिलाफ किए जा रहे हैं जो चयनात्मक लिंग निर्धारण पर आधारित हैं और इस अधिनियम के उद्देश्य पर अंकुश लगते हैं।
लिंग-चयनात्मक परीक्षण, उसके बाद लिंग-चयनात्मक गर्भपात आमतौर पर दूसरी तिमाही के बाद के चरणों के दौरान किए जाते हैं। यह काम न केवल महिलाओं को शारीरिक पीड़ा और आघात पहुंचाती है, बल्कि भावनात्मक उथल-पुथल का कारण भी बनती है। जो महिलाएं ऐसी परिस्थितियों में अबॉर्शन कराने का विकल्प चुनती हैं या परिवार के दबाव में अबॉर्शन कराने के लिए मजबूर होती हैं, वे प्राइवेट क्लीनिकों का विकल्प चुनती हैं जहां पर डॉक्टर असुरक्षित और अस्वच्छ उपकरणों का उपयोग करते हैं। बड़ी संख्या में हमारे देश में महिलाओं के पास सुरक्षित और स्वच्छ गर्भपात सेवाओं तक पहुंच नहीं है। चूंकि वे सरकारी अस्पतालों में ऐसा नहीं करवा सकती हैं, तो वे घर पर या असुरक्षित निजी क्लीनिकों में असुरक्षित तरीके अपनाती हैं। ऐसी महिलाएं चिंता, भय और दुख की भावनाओं का अनुभव कर सकती हैं जिन्हें व्यक्त करना मुश्किल है।
पीसी और पीएनडीटी अधिनियम प्रसव पूर्व निदान प्रक्रियाओं के संचालन को नियंत्रित करता है और लिंग चयन को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करता है। लेकिन, लिंग निर्धारण परीक्षण का व्यवसाय भ्रूण के लिंग को बताने के लिए परीक्षण करने पर समाप्त नहीं होता है, बल्कि कई मामलों में लिंग-चयनात्मक गर्भपात में समाप्त होता है, जो एक प्रमुख चिंता का विषय है। एक कठोर अधिनियम के होने के बावजूद भी यह कार्य आज भी देश में कई क्लिनिक में चोरी-छिपे किया जाता है जो कि की विफलता को दर्शाता है।
|
ba5fdec7fdf3fd55fbc2b9b7053fd78807464842b15d8604f4eef10ef931f75f | pdf | कुत्तेको अपना भक्त बतलाकर स्वर्गतकका त्याग कर दिया। तुम्हारे इस त्यागकी बराबरी कोई स्वर्गवासी भी नहीं कर सकता ।" ऐसा कह वे युधिष्ठिरको रथ में चढ़ाकर स्वर्ग गये । इस प्रकार महाराज युधिष्टिरने स्वर्गकी भी परत्रा न करके अन्ततक धर्मका पालन किया ।
जो लोग धर्म और ईश्वरको नहीं मानते, वे धर्म और ईश्वर क्या वस्तु है, इसीको नहीं समझते। उन्होंने न तो कभी इस विषयके शास्त्रोंका ही अध्ययन किया है और न इस विषयका तत्त्व समझनेकी ही कभी चेष्टा की है। उनका इस विषयके अन्तर में प्रवेश न होनेके कारण ही वे इस महान् लाभसे वञ्चित हो रहे हैं ।
ईश्वरकी आज्ञारूप जो धर्म है, उसका सकामभावसे पालन किया जाता है तो उससे इस लोक और परलोक में सुख मिलता है और यदि उसका निष्कामभावसे पालन किया जाता है तो उससे अपने आत्माका कल्याण हो जाता है। भगवान् ने कहा है -- देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः । परस्परं भावयन्तः श्रेयः
(गीता ३ । ११ ) 'तुमलोग इस यज्ञके द्वारा देवताओंको उन्नत करो और त्रे देवता तुमलोगोंको उन्नत करें । इस प्रकार नि स्त्रार्थभावसे एकदूसरेको उन्नत करते हुए तुमलोग परम कल्याणको प्राप्त हो जाओगे ।'
अतएव हमें निष्कामभावसे धर्मका पालन करना चाहिये । निष्कामभावसे धर्मका पालन करनेवाला मनुष्य परम पदको प्राप्त हो जाता है ।
जिसके द्वारा इस जीवनमें और आगे भी पवित्र सुख, शान्ति और समृद्धिमय सफलता प्राप्त हो और अन्त में निरतिशय एवं दुखलेशरहित परम कल्याणरूप आत्यन्तिक सुखकी प्राप्ति हो जाय, उसका नाम धर्म है । विभिन्न कर्मानुसार जीव, जगत् एवं जीवोंके सुख-दुःख एवं उन्नत - अवनतका निर्णय, निर्माण, नियमननियन्त्रण करनेवाली नित्य सत्य चेतन शक्तिका नाम ईश्वर है । त्रिकालज्ञ - सर्वज्ञ ऋषियोंने ईश्वरकी इच्छा और अभिप्रायको जानकर
* यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः । (वैशेषिकदर्शन ) 'जिसके द्वारा अभ्युदय और निःश्रेयमकी सिद्धि हो, वह धर्म है ।" य एव श्रेयस्करः स एव धर्मशब्देनोच्यते ।
'जिसके अनुष्ठानसे ( लौकिक और
धर्म कहते हैं । '
( मीमासादर्शन सूत्र - भाप्य ) पारमार्थिक ) कल्याण हो, उसे
ईश्वरस्वरूप वेदोंके अनुकूल जो विधि-निषेधमय कानून बनाये हैं, उनका नाम है - शास्त्र । ईश्वरको मानकर शास्त्रके अनुकूल आचरण करनेवाला मनुष्य इस लोकमें पवित्र सुख, शान्ति एवं समृद्धिको प्राप्त करता हुआ अन्तमें मनुष्य जीवनके चरम फलरूप परमात्माको प्राप्त कर लेता है । यह धर्मका फल है ।
ईश्वर और धर्म - - जगत्की सर्वाङ्गीण एवं स्थायी उन्नतिके ये ही दो परम आधार हैं। धर्म सदा ही ईश्वरके आश्रित है और जहाँ धर्म है, वहाँ ईश्वर है ही। इन दोनोंमें परस्पर नित्य सम्बन्ध है। ईश्वर का कानून ही धर्म है। और जहाँ धर्म है, वहीं विजय है - सफलता है । 'यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जय । ( महा० अनु० १६७ । ४१ ) ईश्वर और धर्मके प्रति जब मनुष्यकी अनास्था हो जाती है, तब धर्मका बन्धन ढीला हो जाता है और मनुष्यके आचरण मनमाने होने लगते हैं। मनमाने आचरण करनेवाले को न सिद्धि मिलती है, न सुख और न परम गति ही मिलती है । भगवान्ने गीतानें कहा है---
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः । नस मिद्धिमाप्नोति न मुर्ख न परां गतिम् ।। ( १६ । २३ )
'जो पुरुष शास्त्रविधिको त्यागकर अपनी इच्छा मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धिको प्राप्त होता है, न परम गतिको और न सुखको ही ।'
सिद्धि, सुख और परम गति धर्माचरणले ही मिलते ।
जगत् में आज जो सर्वत्र असफलता और दुःख दिखायी दे रहे हैं, इसका एकमात्र कारण है - मनुष्यका धर्मसे च्युत हो जानाईश्वरको न मानकर उनके अनुकूल आचरण न करना । जगत्का यह दुख तबतक बना रहेगा, जबतक मनुष्य ईश्वर और उनके कानूनको मानकर मनमाना आचरण करता रहेगा । हम सभी सफलता चाहते हैं; परतु ईश्वर और धर्मसे विमुख होकर सफलता चाहना दुराशामात्र ही है ।
गीता हमें बतलानी है कि सृष्टिके आदिमें जगत्पिता ब्रह्माजीने मनुष्यको यही आदेश दिया था कि 'तुम इन देवताओंकी स्वधर्मपालनरूप यज्ञद्वारा आराधना करो और तुम्हारी सेवासे प्रसन्न एवं परिपुष्ट होकर ये तुम्हारी पुष्टि, तुम्हारी उन्नति करें - 'देवान् भात्रयतानेन ते देवा भावयन्तु वः' ( ३ । ११ ) । ये देवता यदि हमारी सहायता न करें तो हम जगत् में जीवित ही नहीं रह सकते; और इनकी सहायता प्राप्त करनेके लिये यह आवश्यक है कि हम भी बदले में उनकी पुष्टि करें। आज जगत् में विग्रह, महामारी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल, भूकम्प, अग्निकाण्ड एव बाढ़ आदिके कारण जो भयङ्कर जन-संहार हो रहा है, उसका प्रधान कारण इन देवताओंका मनुष्यके द्वारा पुष्ट न किया जाना ही है । परंतु आज भी जितना अपराध देवताओंका हम करते हैं, उतना देवता हमारा नहीं करते । सूर्य अभी भी समयपर उगते और समयपर ही अस्त होते हैं । चन्द्रमा अब भी हमपर तथा हमारी ओषधियों एवं वनस्पतियोंपर सुधावृष्टि करते हैं। अग्नि अब भी हमें सदाकी भाँति ताप एवं प्रकाश देती है और हमारे अनेकों कार्य
तत्त्व-चिन्तामणि भाग.७
सिद्ध करती है । अवश्य ही इसके कार्यों में बहुत कुछ व्यतिक्रम होने लगा है, परंतु इनके स्वभाव में परिवर्तन नहीं हुआ है। कहते हैं, इनके स्वभाव में परिवर्तन होगा, उस समय प्रलय हो जायगा । अतः जगत् में सुख-समृद्धि के विस्तारके लिये इन देवताओंका पूजन एवं पोषण होना आवश्यक है। लौकिक कार्यों में देवताओंके यजन एवं आराधन से शीघ्र सिद्धि मिलती है । भगवान् गीतामें कहते हैं-काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः । क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा ।।
(४। १२) 'इस मनुष्यलोकमें कर्मोंके फलको चाहनेवाले लोग देवताओंका पूजन किया करते हैं, क्योंकि उनको कर्मोंसे उत्पन्न होनेवाली सिद्धि शीघ्र मिल जाती है ।।
यहाँ इस वातपर ध्यान देना चाहिये कि जहाँ एक ओर भगवान् मनमाने आचरणसे सिद्धिका अभाव बतलाते हैं वहीं दूसरी ओर वे देवताओंके आराधनसे बहुत शीघ्र सिद्धि मिलनेकी बात कहते हैं । इससे लौकिक सिद्धिमें भी देवारावनकी आवश्यकता एवं उपयोगिता सिद्ध होती है ।
देवाराधनका पञ्चमहायज्ञ एक मुख्य अङ्ग है । इसमें देवताओं, ऋषियों, पितरों, मनुष्यों तथा अन्य जीवोंका यजन किया जाता है । वडिवैश्वदेव इसका प्रतीक है । इनमें देवताओंको अग्निहोत्र तथा पूजनके द्वारा, ऋपियों को स्वाध्यायसे पितरोंको तर्पणादिसे,
ईश्वर और धर्ममें विश्वासको आवश्यकता २३७ भोजन आदि के द्वारा और अन्य जीवोंको भी आहार आदिके द्वारा प्रसन्न करना होता है । आजकल पचमहायज्ञोंका अनुठान तो दूर रहा, अधिकाश लोग नियमपूर्वक सन्ध्यावन्दन भी नहीं करते । उसके विपरीत वे ऐसे कर्म करते हैं, जिनसे देवताओंका पोरग. संर्द्धन तो किनारे रहा, उल्टे उनकी शक्ति क्षीण होनी चटी जा रही है। ऐसी दशा में मनुष्यजाति आये दिन देवी
का शिकार बने उसमें आश्रर्य ही क्या है । आज मनुष्वका प्राय देवी साधनोंम विश्वास नहीं रहा, अतएव वह केवल भौतिक साधनोंके करने में ही अपने कर्तव्यकी इतिश्री मान बैठा है । आजकउका शिक्षित समाज यज्ञादिके अनुष्ठानपर यो कहकर आपत्ति किया करता है कि इस समय जब कि प्रजापर अन्नका महान् सकट है, लोग अन्नके बिना भूखों मर रहे, हैं, यज्ञ ट्रिके नामवर अन्नका अपव्यय करना --उसे अग्निमें होम देना कितना वड़ा अपराध है । वे लोग यह नहीं सोचते कि आखिर अन्न आता कहाँसे है ? पृथ्वी माताके गर्भसे ही तो ? अन्नके लिये पृथ्वीपर वर्षाका होना भी परमात्रश्यक है, परंतु वर्मा इन्द्रकी कृपाके विना नहीं हो सकती। ऐसी दशामें अन्नको उपजके लिये अन्नका चोया जाना जैसे अपव्यय नहीं कहा जा सकता, उसी प्रकार यज्ञादिम देवताओंकी पुष्टिके लिये अन्न-घी आदिका उपयोग करना उनका दुरुपयोग नहीं कहा जा सकता, बल्कि प्रजाके हितके लिये वह परमावश्यक है । ठीक तरह मे यदि देवाराचन हो तो देवी विपत्तियों आ ही नहीं सकतीं - अकाल, महामारी आदिकिा भय ही न रहे । जगत् में इतना अन्न उपजे कि वह जल्दी समाप्त ही न हो ।
गोस्वामी तुलसीदासजीने रामचरितमानसमें रामराज्यका इस प्रकार वर्णन किया है ---
लता विटप मागें मधु चवहीं । मनभावतो धेनु पय स्रवहीं ।। ससि संपन्न सदा रह धरनी । त्रेता भइ कृतजुग के करनी ॥ प्रगटीं गिरिन्ह विविधि मनि खानी। जगदातमा भूप जग जानी ॥ सरिता सकल बहहिं घर बारी। सीतल अमल खाद सुखकारी ।। सागर निज मरजादाँ रहहीं । डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहीं ॥ सरसिज संकुल सकल तड़ागा। अति प्रसन्न दस दिसा विभागा ।। विधु महि पूर मयूखन्हि रवि तप जेतने हि काज । मागें वारिद देहिं जल रामचंद्र के राज ॥
( उत्तर० २३ )
इसका कारण भी गोस्वामी जीने वहीं लिख दिया हैवरनाश्रम निज निज धरम निरत वेद पथ लोग । चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहि भय सोक न रोग ।।
( उत्तर० २० ) आजकउके लोग इस वर्णनको काल्पनिक अथवा अयुक्तिपूर्ण कह सकते हैं; परंतु वास्तव में ऐसी बात नहीं है। जिन देवी शक्तियों के द्वारा जगचकका परिचालन होता है, उन शक्तियोंके प्रसन्न रहनेसे असम्भव भी सम्भव हो सकता है। फिर भगवान् खुकुलचूड़ामणि श्रीरामचन्द्रजी तो साक्षात् परमेश्वर ही थे। सारी शक्तियों के अनन्त निवि थे। उनके राज्य में ऐसा हो तो उसमें आवर्यकी कौन-सी बात है धार्मिक लोगोंका ऐसा विश्वास ही
नहीं, अनुभव भी है। वे लोग ऐसा मानते है कि लौकिक उपायों से उतना लाभ नहीं होता, जितना दैवी उपायोंसे सम्भव है । किसी वृक्षको हरा-भरा देखनेका एकमात्र उपाय है-उसकी जड़को सींचना । वृक्षके मूलमें सींचा हुआ जल डालके तनेको ही नहीं बल्कि उसकी शाखा-प्रशाखाओं एवं छोटी-छोटी टहनियों, पत्तियों, फूलों तथा फलोतकोआप्यायित कर देता है, उनमें रस भर देता है । इसके विपरीत यदि वृक्षके मूलमें जल न देकर केवल उसके पत्तों, फलो एवं टहनियों आदिको ही सींचा जाय तो उससे कोई लाभ नहीं होगा, वृक्ष हरा-भरा होनेके बदले जल्दी ही सूख जायगा और मर जायगा । जगतुके सुख-शान्तिके विस्तार एवं देवी आपदाओंको टालने के लिये भगवदाराधन और भगवान् के आज्ञानुसार देवाराधनादि कर्तव्यपालनको छोड़कर केवल बाहरी उपाय करना तो वृक्षकी जड़को न सींचकर केवल पत्तोंको सींचनेके समान ही है।
मानत्रका वाह्य भौतिक प्रयत्न आज कम नहीं है । लौकिक सुख तथा शरीरको आराम पहुॅचानेके साधन जितने आज उपलब्ध हैं, उतने पहले कभी थे -- यह कहा नहीं जा सकता । क्योंकि पारमार्थिक उन्नतिमें बाधक होनेके कारण उस समय भौतिक सुखका इतना आदर नहीं था । परंतु यह मूलमें जल न देकर डालीपत्तोंको सींचना है, इसलिये इनसे सफलता न होकर व्यर्थता ही मिलती है । सुख-शान्तिके लिये जितने बाह्य उपाय किये जाते हैं, उतना ही जगत् में दु.ख और अशान्ति बढ़ती जा रही है ।
यह बात नहीं है कि लोगोंको देवाराधनके लिये अवकाश नहीं है । समय तो है परंतु अधिकाश मनुष्योंका दैवी साधनोंमें
विश्वास ही उठ गया है। विश्वास होनेपर समय आसानीसे निकल सकता है । सिनेमा देखने, सभा-सोसाइटियोंमें जाकर व्याख्यान देने, क्लबोंमें जाकर अनुचित आमोद-प्रमोदमें तथा भोजोंमें सम्मिलित होनेके लिये आज लोग समय निकाल ही लेते हैं । प्राचीन कालमें ऐसी बात नहीं थी । बडे-बडे चक्रवर्ती नरेश भी देवाराधन तथा अन्य धार्मिक कृत्यों में अपना समय लगाया करते थे। द्विजातिमात्रके लिये सन्ध्या, तर्पण, बलिवैश्वदेव, गायत्री जप तथा अग्निहोत्र आदि अनेवार्य माने जाते थे। महाभारत में वर्णन आता है कि महाराज युधिष्ठिर जुएमें अपना सर्वस्व हारकर जब वनमें गये, उस समय अग्निहोत्रकी अग्नियाँ उनके साथ थीं। इतना ही नहीं, घोर युद्धके समय जब लड़ते-लडते सूर्यास्तका समय हो जाता था और किसी पक्षकी विजय नहीं होती थी, उस समय दोनों पक्षोंकी सम्मतिसे युद्ध बंद कर दिया जाता था और उभयपक्षके योद्धा सायं सन्ध्योपासना के लिये बैठ जाते थे । महाराज दिलीपकी कथा प्रसिद्ध है कि वे गुरुकी आज्ञासे अपनी राजोचित मानमर्यादाका परित्याग कर एक साधारण सेवककी भौति वनमें जाकर अपने गुरुकी गायकी सेवा करते थे । स्त्रयं भगवान् श्रीकृष्णकी दिनचर्याका वर्णन श्रीमद्भागवत में मिलता है। वहाँ लिखा है कि वे प्रतिदिन पहर रात रहते उठ जाते थे और उठकर आचमन करके आत्मचिन्तन करने बैठ जाते थे । फिर विधिपूर्वक निमज्जन ( जलमे गोता लगाकर स्नान ) करके नवीन वस्त्र धारण कर सन्ध्या-चन्दन तथा अग्निहोत्र करते थे और फिर मौन होकर गायत्री मन्त्रका जाप करते थे । इसके अनन्तर सूर्योपस्थान तथा
ईश्वर और धर्म में विश्वासकी आवश्यकता २४९ अपनी ही कटारूप देवता, ऋषि एवं पितरोका तर्पण करते थे, ब्राह्मणोका पूजन करते थे और फिर वस्त्र, तिल तथा वस्त्राभूषणोंसे अलङ्कत १३०८४ गौओंका प्रतिदिन दान करते थे। इसके बाद वे गौ, ब्राह्मण, देवता, बड़े-बूढे तथा गुरुजनोंको प्रणाम करते थे । इस प्रकार उनका बहुत-सा समय नित्य धार्मिक कृत्योंमें बीतता था । ( श्रीमद्भागवत १० स्कन्ध, ७० अध्याय देखिये ।) भगवान् श्रीकृष्ण के जैसा कर्ममय जीवन तो किसका हो सकता है। फिर भी वे नियमितरूपसे दो पहरका काल धार्मिक कृत्यों में बिताते थे । किसलिये ? इसका उत्तर उन्हींके शब्दोंमे सुनिये । गीतामें वे स्वयं कहते हैं-न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन । नानवासमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥ यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः । मम वर्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥ उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्या कर्म चेदहम् । संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥
'हे अर्जुन । मुझे इन तीनों लोकोंमें न तो कुछ कर्तव्य हैं और न कोई भी प्राप्त करनेयोग्य वस्तु अप्राप्त है, तो भी मैं कर्ममें ही वरतता हूँ। क्योंकि हे पार्थ ! यदि कदाचित् में सावधान बरतें तो बड़ी हानि हो जाय, क्योंकि मनुष्य सव प्रकारसे मेरे ही मार्गका अनुसरण करते हैं । इसलिये यदि में
कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्ट-भ्रष्ट हो जायँ और मैं सकरताका करनेवाला होऊ तथा इस समस्त प्रजाको नष्ट करनेवाला बनूँ ।।
असलमें उस समय वृक्षके पत्तोंको न सींचकर मूल सींचनेकी भोति भौतिक साधनोंकी अपेक्षा दैवी साधनों पर अधिक आस्था थी । धार्मिक जनताकी बात जाने दीजिये - हिरण्याक्ष-हिरण्यकशिपु तथा रावण-कुम्भकर्ण-जैसे महान् असुरोंका भी तप एवं यज्ञ-यागादि में विश्वास था, चाहे उनका लक्ष्य कितना ही दुष्ट रहा हो । हिरण्यकशिपुने अपने अभूतपूर्व तपके द्वारा ब्रह्माजीको प्रसन्न किया था और रावणने अपने हाथों अपने सिरोंकी बलि देकर शङ्करजीका अमोघ वर प्राप्त किया था। यह बात दूसरी है कि देवाराधनके द्वारा प्राप्त शक्तिका दुरुपयोग करके अधर्माचरणके द्वारा वे भगवान् के कोपभाजन बने और अन्तमें अपनी दुर्दम्य शक्ति, सर्वस्व एव प्यारे प्राणोंसे भी हाथ धो बैठे। परन्तु आरम्भ श्रेष्ठ होनेके कारण वे भी भगवान्के हाथों मरकर अन्तमें परम कल्याणको ही प्राप्त हुए । उनके चरित्रसे हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि जिस प्रकार तपस्या एव देवाराधन के द्वारा शक्तिसञ्चय होता है, उसी प्रकार धर्मविरुद्ध आचरणके द्वारा उस शक्तिको हम खो बैठते हैं ।
लौकिक साधनोंके द्वारा शक्ति सञ्चय तो होता है, परन्तु वह अधिक दिन टिकता नहीं । जर्मनीने थोडे ही दिनोंमें कितनी शक्ति अर्जन कर ली थी, पर आज वह देश पराधीन हो गया है । यूरोप आज कितना समृद्धिशाली माना जाता है और है भी, परन्तु वहाँ कितना हाहाकार मचा हुआ है- -इसे वहाँके निवासी ही जानते हैं । अमेरिका इस समय सबसे अधिक
ईश्वर और धर्ममें विश्वासकी आवश्यकता २४३ बलशाली तथा समृद्ध राष्ट्र माना जाता है; परन्तु वहाँ भी सुख-शान्ति नहीं है। बहुत से लोग अशान्तिमय जीवनसे दुखी होकर आत्मघात करते सुने जाते हैं। पारस्परिक राग-द्वेष एवं प्रतिहिंसाके भाव भी कम नहीं हैं, और तो क्या, पति-पत्नियोंके भी आपसमें बहुत संख्यामे मुकद्दमे होते रहते हैं । जापानने थोड़े ही वर्षों में इतनी उन्नति कर ली थी कि वह ससारकी बड़ी-बडी शक्तियोंमे गिना जाने लगा था । पर आज उसकी क्या दशा हैइसे सब लोग जानते हैं । इस प्रकार परिणाम में प्राप्त होनेवाली इस असफलताका कारण है - प्रयत्नकी अधर्ममूलकता । अधर्ममूलक कर्मसे आरम्भ में चाहे सफलता दीखे, पर परिणाममें असफलता ही हाथ लगती है । अधर्ममूलक प्रयत्न व्यर्थ ही नहीं जाते, उनसे परलोकमे भी दुर्गति भोगनी पड़ती है । आसुरी सम्पदा और उससे होनेवाले अनिष्टकर परिणामोंका भगवान्ने गीताके सोलहवें अध्याय में बड़ा ही सुन्दर एवं विशद वर्णन किया है। कहना न होगा कि आजका मानव स्पष्ट ही असुर-मानव होने जा रहा है और उसके कर्म प्रायः आज वैसे ही हैं, जैसे भगवान्ने आसुरी सम्पदावालोंके बताये है । फलतः इस लोकमें दु.ख और अशान्ति तथा परलोकमें घोर नारकी यन्त्रणाएँ अनिवार्य हैं, चाहे कोई इसे माने या न माने ।
यह ऊपर बताया जा चुका है कि धर्म और ईश्वर - ये दो ही सुख, सफलता एवं परम गतिके एकमात्र आधार हैं । परन्तु आजका अभिमानमत्त असुर- मानव इन्हींको अनावश्यक एवं व्याय मानने लगा है । कुछ ही वर्षों पूर्व रूसवासियोंने बहुमतसे ईश्वर
और धर्मका बहिष्कार करनेका दु. साहस किया था। (सौभाग्यकी बात है कि पिछले युद्धकी विभीषिकाने उनकी आँखें खोल दीं और आज वे खुल्लमखुल्डा ईश्वर तथा धर्मका विरोध नहीं करते एव वहाँके गिरजाघरों में फिरसे ईश्वरकी प्रार्थना होने लगी है ।) पश्चिमके लोगोंकी देखा-देखी हम भारतवासी भी आज यह कहने लगे हैं कि धर्मसे ही हमारा पतन हुआ है, ईश्वरके प्रति विश्वासने ही हमे अधोगतिपर पहुॅचाया है। इसीका परिणाम यह है कि आज हम पापसे नहीं डरते । ईश्वर और धर्ममें विश्वास करनेवाला एकान्तमें भी पाप करनेसे झिझकेगा, क्योंकि वह जानता है कि ईश्वर सर्वव्यापी एव सर्वतश्चक्षु हैं । किन्तु ईश्वर और धर्मको न माननेवाला पापसे नहीं डरेगा, केवल कानूनसे बचनेकी चेष्टा करेगा । यही कारण है कि आज लोग कानूनसे बचनेके नये-नये उपाय निकालकर नाना प्रकारके पाप करते हैं । ईश्वर और धर्म के प्रति अविश्वासके कारण ही आज प्रायः सभी क्षेत्रोंमें घूसखोरी बढ़ गयी है। चोरवाजार और जनताके सकटोंसे लाभ उठानेकी जघन्य मनोवृत्ति भी इसीके परिणाम हैं । सरकार घूसखोरी और चोरबाजारीको रोकनेके लिये नये महकमे खोलने जा रही है, परन्तु इस बुराईको रोकने के लिये नियुक्त किये जानेवाले अधिकारी भी तो हमारे-ही-जैसे मनुष्य होंगे। वे घूसखोरी और चोरबाजारीको रोकने जाकर स्वय इनके शिकार नहीं बन जायेंगे - यह कौन कह सकता है। आज तो यह स्थिति है कि जनताके रक्षक कहलानेवाले भी जनताको दोनों हाथोंसे लूटने लगे हैं। इसका कारण यही है कि हमारे मनोंमें धर्म और ईश्वरका
भय नहीं रहा; इसकी ओर किसीका ध्यान नहीं है । इसीलिये क्षुद्र स्वार्थ की सिद्धि के लिये किसी भी पाप-कर्ममे संकोच नहीं है । पकडे न जायँ, फिर चाहे सो करें; कोई आपत्ति नहीं । और इसीलिये कानूनको बचाकर पाप करना आजकल बुद्धिमानीका चिह्न हो गया है । सर्वव्यापी भगवान् सब कुछ देखते हैं, हृदयके अंदरकी बात भी जानते हैं - यह धारणा प्राय मिट गयी है ।
एक कथा आती है कि एक बार किसी महात्माके पास दो शिष्य ज्ञान प्राप्त करनेके उद्देश्यसे गये । गुरुजीने दोनों को एक-एक चिडिया देकर कहा कि 'इसे किसी ऐसे स्थानमें ले जाकर मार डालो, जहाँ कोई न देखता हो ।" पहला शिष्य गुरुजीकी आज्ञा मानकर तुरंत उसे किसी निर्जन स्थानमें ले जाकर मार लाया । दूसरे शिष्यने बहुत चेष्टा की, परन्तु उसे ऐसा कोई स्थान ही नहीं मिला, जहाँ कोई न देखता हो । वह जहाँ भी गया, वहाँ कोई-नकोई देखनेवाला था ही । कहीं कोई पशु बैठा था तो कहीं कोई पक्षी । जहाँ कोई भी जीव नहीं मिला, वहाँ उसने देखा कि और नहीं तो वायु देवता तो वहाँ हैं ही; एकान्त वनमें भी उसने सोचा कि यहाॅ वनदेवी तो अवश्य होंगी । वह कहीं भी जाता पृथ्वीमाता तो मौजूद ही रहती, सूर्य भगवान् तो हैं ही; कोई भी नहीं, वहाँ भी स्वयं वह और उसके अपने अंदरका अन्तर्यामी द्रष्टा तो था ही । अन्तमें वह निराश होकर लौट आया और जहाँ पहला शिष्य अपनी करतूतपर गर्वित था, वहाँ यह गुरुजीकी आज्ञाका पालन न कर सकनेके कारण विषण्णवदन होकर खेद प्रकट करने लगा । परीक्षा हो गयी । गुरुजीने समझ लिया कि दूसरा शिष्य ही ज्ञानका
वास्तविक अधिकारी है, क्योंकि वह भगवान्को सर्वत्र देखता था । गुरुजी समर्थ थे। उन्होंने पहले शिष्यद्वारा मारी हुई चिडियाको जिला दिया।
जात्पर्य यह है कि आजका मनुष्य पहले शिष्यकी भाँति प्रत्यक्षवादी हो गया है । अधर्मका फल प्रत्यक्ष तो दीखता नहीं । इसीलिये लोग झूठ बोलने में, झूठी गवाही देनेमें, झूठे आँकड़े बनाने में नहीं हिचकते। कहीं पकड़े भी जाते हैं तो यही सोचते हैं कि 'मैंने अमुक जाल बनानेमें भूल कर दी, आगे और भी सावधान रहूँगा ।" उस समय भी यह नहीं सोचते कि 'मैने झूठ बोलकर पाप किया है, इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा ।" आज तो हमारा यहाँतक पतन हो गया है कि ईश्वर और धर्मको माननेवालोंको आजका शिक्षित समाज पाखण्डी और मूर्ख मानने लगा है। यही नहीं, सभ्य समाज में लोग अग्ज अपनेको ईश्वरवादी कहनेमे भी हिचकने लगे हैं । यह सत्य है कि आज अपनेको ईश्वरवादी और धार्मिक कहलानेवालों में पाखण्डी भी बहुत-से हैं और वे नास्तिकोंसे भी अधिक भयकर और नास्तिकता के उत्पादक हैं, परन्तु ऐसे लोगोंसे ईश्वर और धर्मका अपलाप ( बाध ) नहीं हो सकता । सत्य तो सत्य ही रहेगा । उसका त्रिकालमें भी बाध नहीं हो सकता । अवश्य ही उसे न माननेवाला उसके लाभसे वञ्चित रहेगा और नष्ट हो जायगा ।
जो कुछ सहृदय महानुभाव जनताका दुःख दूर करना, सर्वत्र सुख-शान्तिका प्रसार करना, अनाचार अत्याचारको मिटाकर सबको समान भावसे लौकिक पदार्थों की प्राप्ति कराना और सबको आराम
पहुँचाना चाहते हैं, उनमें भी अधिकांश ऐसे हैं जो, इस उद्देश्यकी सिद्धि के लिये स्वयं केवल लौकिक उपायोंको ही काम में लाते हैं और उन्हींके लिये दूसरोंको भी उपदेश करते हैं। धर्म और ईश्वरमें, जो सुख-शान्तिके मूल हैं, विश्वास बढ़नेका साधन न तो वे करते हैं और न उसे करनेके लिये दूसरोंको ही उपदेश करते हैं । यही कारण है कि आज जगत् में सर्वत्र हाहाकार मचा हुआ है और मानवजाति दु खाग्निको जालासे जल रही है !
धर्म और ईश्वर नित्य हैं, अटल हैं, महान् है । ऐसा समझकर हमें अपने कल्याण के लिये उनका आश्रय लेकर उनका प्रचार करना चाहिये । 'वर्मो रक्षति रक्षितः ।' जो बुद्धिमान् एवं विचारशील हैं, उनका कर्तव्य है कि वे धर्मानुकूल आचरणके द्वारा धार्मिक भावोंका प्रचार करें । स्वयं धर्मानुकूल आचरण किये विना कोई धर्मका प्रचार नहीं कर सकता । वास्तवमें तो ईश्वर और धर्मका प्रचार कोई कर ही क्या सकता है। ईश्वर सर्वसमर्थ हैं । उनकी शक्तिसे ही सब कुछ हो रहा है। कल्याणकामी सभी मनुष्योंको एक-न-एक दिन उन्हें मानना ही पड़ेगा । बिना माने जीवका निस्तार नहीं है, फिर भी प्रत्येक धार्मिक एवं ईश्वरवादी मनुष्यका यह कर्तव्य है कि वह ईश्वरका आश्रय लेकर अपने आचरणद्वारा जगत्में ईश्वर और धर्मका प्रचार करे । स्वयं ईश्वर और धर्मकी ओर आगे बढे तथा सबको वढ़ानेका प्रयत्न करे । यही जगत् की सबसे बड़ी सेवा है । इसीसे जगत्का वास्तत्रिक कल्याण होगा । |
a6eafc4eb9daa0e0838d7be306c01f9bde34ce0bce0cfaf8843bb20404b9001b | pdf | फवरि । ]
स्वामी ब्राह्मण से अन्य को दीक्षा नहीं देते तत्र वे अत्यन्त हतोत्साह हुए। उन्होंने सोचा कि बिना ● कौशल रचे इनसे काम निकलना कठिन है। यह सोच कर फीर गङ्गा के किनारे मुर्दा वन कर पड़ गये। स्वामी रामानन्द भी उसी घाट पर स्नान करने जाया करते थे । दैवयोग से उस दिन बदली भी थी और अन्वेश छाया हुआ था, पांस की वस्तु भी दिखलाई नहीं पड़ती थी, यथा समय रामानन्द स्वामी जब स्नान कर के खौटने लगे त उनका पैर कदीर पर पड़ा । मुर्दा समझ कर रामानन्द स्वामी कहने लगे "राम कह, राम कह" कवीर ने रामानन्द स्वामी से इस प्रकार मूल मन्त्र की दीक्षा पायी और कहा, गुरुदेव हमारी यद दीक्षा हुई।
कवीर ने अपने घर थाकर शिर मुंडाय तिलक और माला धारण की । माता के पूँछने पर कधीर ने कहा में रामानन्द स्वामी का शिष्य हुआ है। उनकी माता ने उस समय के दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोदी के दरबार में फरयाद की । परन्तु कवीर के धर्मभाव और युक्तियुक्त वचन से परास्त हो कर बादशाह ने कार को छोड़ दिया। ये सन् १४०० ई० में वर्तमान थे, कहा जाता है कि ये तीन सौ वर्ष तक जीते रहे । इनके बनाये ग्रन्थ ये हैं१ सुखनिधान, २ गोरखनाथ की गोष्ठी, ३ कवीरपांजी, ४. वलव की रमायनी, २ रामानन्द की गोष्टी, ६ थानन्दरामसागर, ● शब्दावली, ८ मङ्गल, ६ वसन्त, 10 होली, 39 देखता, १२ भूलना, १३ खमरा, १४ हिण्डोला, १५ बारहमासा १६ चाँचर, १७ घाँतीस ३८ लामा, १६ रमाइनी, २० माखी, २१ बीजक । इनके अतिरिक्त "अगमवाणी" नामक एक और भी पुस्तक है । ( श्रदर्शमहात्मागण ) कवीरपन्थी =कवीर का चलाया धर्मसम्प्रदाय । शमानन्द के शिष्यों में कबीरदास प्रधान थे । इन्होंने जो धर्म पन्थ चलाया है उसका नाम कबीरपन्थी है। कवीरपन्थी सम्प्रदाय में धन्य देवताथों से विष्णु को प्रधान ग्रासन दिया जाता है। रामानन्दी वैवों से इनके
[ 'कक्षसेन ।
आचार व्यवहार में बहुत ही अन्तर है तथापि रामानन्दी वैष्णवों के साथ इनकी सहानुभूति रहती है। इनमें देव देवी की पूजा निषिद्ध है । इनमें न तो पूजा करने का मन्त्र ही माना जाता औौर न प्रणाम करने की रीति । यह पन्थ अदृश्य कवीर की पूजा करता है। कीर्तन ही इनकी उपासना है । गृहस्थ कवीरपन्थी देवी देवता पूजा करते हैं परन्तु संन्यासी पूजा से बरी कर दिये जाते हैं। कवीर के मुख्य वारद शिष्य इस सम्प्रदाय के प्रचारक समझे जाते हैं। कवीरपन्थी सम्प्रदाय की अनेक शाखाएँ हैं इनके टेसफविरी, दानकविरी, मङ्गलकविरी, श्रादि नाम हैं ।
( भारतवर्षीय इतिहास ) कश- राजा सुहोत्र के पुत्र का नाम । ये सुत्र पुरुरवा के पुत्र श्रायु के वंशज थे। कश, काशी के राजा थे ।
कश्य- एक राजकुमार का नाम यें सेनजित् के पुत्र थे ।
कश्यप विख्यात प्रजापति ऋषि । ये प्रह्मा के पौत्र औौर मरीचि के मानस पुत्र थे । किसी के मत से मरीचि के औौरसकला नाम की उनकी श्री के गर्भ से इनकी उत्पत्ति मानी जाती है। महर्षि कश्यप की सात खियाँ थीं । दिति से दैत्य, अदिति से श्रादित्य ( देवता ), विनता से पक्षी, कह से सर्प, सुरभि से गौ महिप थादि, सरमा से कुकुर यादि धौर दनु से दानच उत्पन्न हुए । ( ब्रह्मवैवर्तपुराण )
मार्कण्डेयपुराण और हरिवंश में लिखा है कि कश्यप की १३ स्त्रियाँ थीं। जिनके नाम ये थे, दिति, प्रदिति, दनु, विनता, ख़सा, कद्दू, मुनि, क्रोधा, अरिer, इरा, ताम्रा, इला और प्रधा। रामायण के श्रादिकाण्ड में कश्यप की वंशावली इस प्रकार की गयी है कश्यायता दक्ष की कन्या की सन्तान । जिसका विवाह एक ऋऋषि से हुआ था । कसेरु-भारत के नौ वर्षों में से एक वर्ष का नाम । कहोड=महर्षि उद्दालक के शिष्य का नाम ये ऋषि अष्टावक के पिता थे । कक्षसेन= चन्द्रवंशी राजा परीक्षित के ग्राउ पुत्रों में से एक पुत्र का नाम । ये रात्र स बड़े थे ।
कक्षे । ]
कक्षेयु -पुरुवंशी राजा रौद्राश्व के पुत्र का नाम । रौद्राश्व के पाँच पुत्र थे। उनमें ये मध्यम थे ।. का=दक्षप्रजापति का दूसरा नाम । मूत्रस्थान और मलस्थान के देवता ।
काकमुख एक प्राचीन जाति। पहले एक जाति - के लोगों को चिढ़ाने के लिये उनका नाम लोगों ने रख दिया था। काकमुख काकवर्ण-मगध के राजाओं के एक राजा का नाम । इन्होंने ३६ वर्ष तक राज्य किया था। ये शिशुनाग के पुत्र थे । काकस =प्राचीन जाति का नाम है यह जाति जहाँ से सिन्धुनद निकला है वहीं सिन्धुनद के तट पर रहती थी ।
काकुत्स्थ = ( देखो फाकुत्स्थ )
काञ्चन = पुरुरवा के वंशज थीम के पुत्र का नाम । काञ्चनप्रभ=श्रमावसू के पौत्र, और भीम के पुत्र
का नाम ।
कात्यायन = (१) विख्यात धर्मशासफार। ये विश्वा मित्र वंश में उत्पन्न हुए थे। इनके बनाये कात्यायन श्रौतसूत्र और फास्यायन गृह्यसूत्र का पडित समाज में विशेष आदर है । गृह्यसूत्र में ब्राह्मणों के दशविध संस्कार और वास्तु क्रिया श्रादि का विवरण दिया गया है।
( २ ) विख्यात स्मृतिशासकार । ये महर्षि गोमिल के पुत्र थे और इनके बनाये स्मृतिग्रन्थ का नाम कर्मप्रदीप है।
( ३ ) प्रसिद्ध वैयाकरण । इनका दूसरा नाम वररुचि भी था । ये वररुचि राजा विक्रमादित्य की सभा के नवरमों में के वररुचि से भिन्न थे। कात्यायन वैदिक मुनि हैं और पाणिनि के समकालीन हैं। इनके रचित ग्रन्थों के नाम वाजीसूत्र, क्रमप्रदीप, प्राकृत व्याकरण और पाणिनीय व्याकरण पर वार्सिक हैं। कथा सरित्सागर में लिखा है कि कात्यायन बचपन ही से अति अद्भुत बुद्धिमान् थे। वे नाव्यशाला में किसी नाटक का खेल देखते तो उसे अपनी माता के निकट आ कर समग्र आद्योपान्त कह दे सकते थे और जनेऊ होने के पहले ही व्याडी श्रादि मुनियों से सुने प्रातिशारूप को फण्ठाग्र कह जा सकते थे। ये वर्षमुनि के शिष्य थे और वे वेदाङ्ग में इतने
[ कात्यायनसंहिना ।
निपुण थे कि पाणिनि भी इनकी समानता नहीं कर सके । इनसे स्पर्श करके पायिणनि ने महादेव की धारापना की थौर पाणिनि ने इन्हें जीता। ये राजा नन्द के मन्त्री थे। राजा नन्द पाटली. पुत्र के राजा चन्द्रगुप्त के पिता है । चन्द्रगुम कह राज्यकाल सन् ६० के पूर्व चौधी शताब्दी में निश्रित हुआ है। इसके अनुसार सृष्टीय चौंधी शताब्दी या उसके भी कुछ पूर्वका समय माना जा सकता है। रमेशचन्द्रद्रत रहते है कि का समय सृष्टीय सदी से ८०० वर्ष पूर्व है और वे अनुमान करते हैं कि कारयायन पाणिनि के समकालीन होने के कारण नव सदी में रहे होंगे। डाक्टर भाडारकर कात्यायन का समय सृष्टीय सन् से पूर्व चौथी सदी के पूर्वार्द्ध में मानते हैं । कात्यायन का जन्म कौशाम्बी में हुआ था। इनके पिता का नाम सोमदत्त था । चेद की सर्वानुक्रमणी भी इन्ही कात्यायन मुनि श्री चना हुई है। महाराज नन्द के समकालीन और मन्त्री मानने से कात्यायन मुनि का समय सूट के पूर्व २१५ वर्ष से (जब चन्द्रगुप्त राज्य पर बैठा था ) भी पहिले स्थिर होता है। कात्यायनसंहिता=इस संहिता के उनतीस ध्यम हैं। इनमें पाँच सौ से अधिक लोक है। इसमें कितने ही स्थानों पर गय भी दिये गये हैं। गृहसूत्रकार गोभित ने जिन फर्मों का विव रग्य किया है, उन्हीं कमों के कठिन भाग का विवरण कात्यायनमुनि ने अपनी संहिता में किया है। श्राद्ध और सदाचार का वर्णन इसमें कई अध्याय में किया गया है। इस संहिता में गौरी, पथा, शची, मेधा, सावित्री, विजया, जया, देवसेना, स्वधा, स्वाहा, धृति, पुष्टि तुष्टि और श्रात्मदेवता मातृगण तथा गणेश की पूजा का विधान है। सफल फर्मों में गणेश और मातृकागए की पूजा करने की धाशा है। चित्र प्रतिमा और पट की पूजा करने की विधि लिसी है। तर्पण पिट और शौच आदि का भी इस संहिता में विधान है। ज्येष्ठ को वर्तमा नता में कनिष्ट का ध्याह किस प्रकार फरना साहिये । कात्यायन नामक अनेक ऋऋhियों का
कात्यायनसंहिता । 3
पता मिलता है । परन्तु संहिताकार कात्यायन महर्षि गोभिल के पुत्र थे।
( भारतवर्षीय इतिहास ) कात्यायनी मंगवती की मूर्ति विशेष । महर्षि फाल्यायन ने सघ से पहले इस मूर्ति की पूजा की थी । इसी कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा । सौ वर्ष के युद्ध के धनन्तर महिषासुर ने देवताओं को राज्य कर दिया, देवता लोग ब्रह्मा को धागे करके शिव और विष्णु के समीप उपस्थित हुए। हरि हर मझा के मुख से देवताओं की विपत्ति का हाल सुन अत्यन्त कुरु हुए । तीनों देवों के मुखमद्दल से एक तेज निर्गत हुआ । उस तेज ने एक सी की मूर्ति धारण की । उस भयकर जी को देवताओं ने अपने अपने अन दिये। महिषासुर अपने सेना धौर सेनापति के साथ देवी से युद्ध करके मारा गया । यह सिंहवाहिनी कात्यायनी ग्राश्विन कृष्ण चतुद्देशी को उत्पन्न हुई थी और उसी महीने की शुक्र सप्तमी, थटमी और नवमी को कात्यायन की पूजा से कर देवी ने दशमी को महिषासुर का वध किया था। यह देवीमूर्ति दशभुजा है । महियापुर रम्भासुर का पुत्र था। अपने ही वर के प्रभाव से महादेव रम्भासुर के तीन बार पुत्र रूप से उत्पन्न हुए थे। तीनोयार भगवती ने मूर्ति धारण कर महिषासुर का नाश किया था । महिपार अत्यन्त मायावी था । उसने एक समय कात्यायन के एक शिष्य को मनोहर जी मूर्ति धारण करके विखाना चाहा था, हिमालगवासी कात्यायन यह जान कर अत्यन्त हुनु
और उन्होंने उसे शाप दिया कि तुमने जी का रूप धर कर जो हमारे शिष्य की तपस्या में विघ्न डालने की चेष्टां फी, अतः श्री ही के द्वारा तुम्हारी मृत्यु होगी। इसी शाप से महिषासुर भगवती के हाथ से मारा गया ।
( मार्कण्डेयपुराण ) 'कादम्बरी-वाणहनिर्मित ग्रन्थ विशेष । इस ग्रन्थ की नायिका का नाम कादम्बरी है, जो चित्ररथ नामक गन्धर्वराज की कन्या थी । कान्यकुज (देखो कीज ) कापालिका सम्पदाय की एक शाखा ।
[ कामन्दक ।
• पुस्तकों के देखने से करारी नामक एक शाक्ल सम्प्रदाय की शाखा का पता चलता है । इसी करारी सम्प्रदाय को अघोरघट या कापालिक भी कहते हैं। कहते हैं कि सात घाठ सौ वर्ष पूर्व काली चामुण्डा छिनमस्ता आदि देवियों के सामने ये नरवलि दिया करते थे। शङ्करदिग्विजय में लिखा है कि कापालिक उच्छिष्ट गणपति या हैडिम्य सम्प्रदाय के अन्तर्गत है। इस समय कापालिकों का बड़ा अपवाद संसार में फैला है। इसमें सन्देह नहीं कि भारत के बुरे दिनों में इस सम्प्रदाय के भी कतिपय मनुष्य उच्छृद्ध लता और व्यभिचार दोषग्रस्त हो गये थे, परन्तु उनके उद्देश्य आदि को बिना जाने कभी वे बुरे नहीं कहे जा सकते । यद्यपि वलिदान यादि की निन्दित मथा इस सम्प्रदाय में इस समय पायी जाती है, जो इनके सचमुच अधःपात के सूचक हैं; तथापि इनके ग्रन्थ देखने से स्पष्ट मालूम होता है कि पार्थिव शरीर का वलिदान करने की थाज्ञा इनके ग्रन्थों में नहीं है । फिन्तु काम क्रोध यादि रिपुत्र के चलिदान का ही उपदेश है। कामदेव = प्रेम के देवता । ये कृष्ण या विष्णु के
औौरस और लक्ष्मी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । जो उस समय माया या रुक्मिणी कही जाती थी। दूसरी जगह ऐसा लिखा मिलता है कि ये प्रया से ली के रूप में उत्पन्न हुए हैं। इनके रूप के विषय में लिखा है कि ये सर्वदा युवावस्था में रहते हैं, अपनी माता के साथ कभी कभी घूमने जाते और उनसे बातें भी करते हैं । ये कभी कभी तोतों पर सवार हो कर चांदनी में घूमने भी निकलते हैं। इनकी ध्वजा पर मछली का चिन्ह है, और ध्वजा के कपड़े की जमील लाल है । ( देखो नङ्ग ) कामन्दक-इनका बनाया कामन्दकीय नीतिसार नामक एक ग्रन्थ है । इसमें इन्होंने चाणक्य का नामोल्लेख किया है। इससे निश्चय होता है कि ये घाणक्य की अपेक्षा अर्वाचीन है । यह चाणक्य नही हैं जिन्हों ने मगध के राजा नन्द का विनाश कर चन्द्रगुप्त को उनके सिंहासन पर बैठाया । चाणक्य का समय सृष्ट ६० से ३१५ वर्ष पूर्व निश्चित हुया है। अतएव कामन्दक |
acb142b68f82d96799df86c43d9523ee5bf1601e | web | पीयूष मिश्रा (जन्म १३ जनवरी १९६३) एक भारतीय नाटक अभिनेता, संगीत निर्देशक, गायक, गीतकार, पटकथा लेखक हैं। मिश्रा का पालन-पोषण ग्वालियर में हुआ और १९८६ में उन्होंने दिल्ली स्थिति नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने मकबूल, गुलाल, गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फ़िल्मों में गाने गाये हैं। .
12 संबंधोंः दीवार (2004 फ़िल्म), पिंक (फ़िल्म), ब्लैक फ्राइडे (फ़िल्म एल्बम), भिन्डी बाज़ार इंक॰, मोहेंजो दारो (फ़िल्म), रिवॉल्वर रानी, गुलाल (फ़िल्म), गैंग्स ऑफ वासेपुर - भाग 1, गैंग्स ऑफ वासेपुर - भाग 2, 2009 की बॉलीवुड फिल्में, 2010 की बॉलीवुड फिल्में, 2011 की बॉलीवुड फ़िल्में।
दीवार (2004 फ़िल्म)
दीवार 2004 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
पिंक (फ़िल्म)
पिंक अनिरुद्ध रॉय चौधरी द्वारा निर्देशित 2016 की हिन्दी फिल्म है। इसमें अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हरी, अंगद बेदी, एंड्रिया तारियांग, पीयूष मिश्रा, और धृतिमान चटर्जी ने मुख्य किरदार निभाए हैं। फिल्म 16 सितम्बर 2016 को अच्छी समीक्षाओं के साथ रिलीज़ हुई और व्यावसायिक सफल रही। .
ब्लैक फ्राइडे (फ़िल्म एल्बम)
ब्लैक फ्राइडे २००७ की इसी नाम की फ़िल्म की संगीत तथा स्कोर एल्बम है। एल्बम में संगीत इंडियन ओशॅन बैंड द्वारा दिया गया है, और यह उनका पहला फिल्म साउंडट्रैक है। इसमें कुल नौ गीत हैं, जिनमें से तीन में बोल हैं, और शेष छह इंस्ट्रुमेंटल हैं। ब्लैक फ्राइडे ३ मई २००५ को टाइम्स म्यूजिक द्वारा रिलीज़ की गयी थी। .
भिन्डी बाज़ार इंक॰ २०१० की एक बॉलीवुड फ़िल्म है। .
मोहेंजो दारो (फ़िल्म)
मोहेंजो दारो (अंग्रेजी; Mohenjo Daro)(Mound of the Dead Men) वर्ष २०१६ की भारतीय रोमांचक-प्रेम गाथा आधारित हिन्दी भाषा की फ़िल्म है, जिसका लेखन एवं निर्देशन आशुतोष गोवारिकर, तथा निर्माण युटीवी मोशन पिक्चर्स के सिद्धार्थ राॅय कपूर व आशुतोष गोवारिकर प्रोड्क्शन्स लिमिटेड (एजीपीपीएल) की सुनीता गोवारिकर द्वारा किया गया है, और फ़िल्म में ऋतिक रोशन व पूजा हेगड़े मुख्य भूमिकाओं में अदाकारी कर रहे हैं। मोहेंजो दारो विश्व की प्रथम सिनेमाई प्रदर्शन है जो प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता को संदर्भित की गई है, तथा इस महान नगर, मोहेंजो दारो को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के तौर पर अंकित किया गया है (अब यह क्षेत्र पाकिस्तान स्थित सिंध जिले के लरकाना में पड़ता है)। फ़िल्म की शुरुआत मुताबिक प्राचीन समय के २०१६ के ईसा पूर्व की है जब सिंधु घाटी सभ्यता चरम पर थी, कहानी एक साधारण किसान (रोशन) के मोहेंजो दारो नगर की ओर यात्रा करने और फिर नगर की संभ्रांत वर्ग की औरत (हेगड़े) से हुए प्रेम को लेकर बुना गया है, और जिसके परिणाम में वह नगर के अभिजात वर्ग को चुनौती दे डालता है तथा आखिर में उसी नगर के अपरिहार्य विनाश के विरुद्ध संघर्ष भी करता है। गोवारिकर ने अपने तीन वर्ष शोध करने तथा पटकथा के विकास में व्यतीत किए, अपनी इस काल्पनिक कहानी को प्रामाणिकता पक्का करने के लिए पुरातत्ववेत्ताओं के साथ काफी नजदीकी कार्य किया। फ़िल्मांकन का कार्य भुज एवं मुंबई के साथ संक्षिप्त समयावधि में बेड़ाघाट (जबलपुर) एवं थाणे में भी किया गया। फ़िल्म का संगीत एवं एलबम रचना ए.आर. रहमान के साथ गीत लिखने का काम जावेद अख़्तर ने भी किया। फ़िल्म का प्रदर्शन १२ अगस्त २०१६ में वैश्विक स्तर पर जारी किया गया। .
रिवॉल्वर रानी एक बॉलीवुड हास्य नाटक फ़िल्म है जिसका निर्देशन साई कबीर ने किया है। फ़िल्म वेव सिनेमा ने प्रस्तुत की। इस फ़िल्म में मुख्य अभिनय भूमिका में कंगना राणावत और वीर दास हैं जबकि पीयूष मिश्रा, ज़ाकिर हुसैन और पंकज सारस्वत सहायक अभिनेता हैं। फ़िल्म राजनीतिक पृष्ठभूमि में उपहासात्मक और असामान्य प्रेम कहानी दिखाती है। यह फ़िल्म २५ अप्रैल २०१४ को जारी की गई। .
गुलाल (फ़िल्म)
गुलाल २००९ की एक बॉलीवुड फ़िल्म है। .
गैंग्स ऑफ वासेपुर - भाग 1 (या Gangs of वासेपुर) 2012 की एक भारतीय अपराध फिल्म है, जिसे अनुराग कश्यप द्वारा सह-लिखित, निर्मित और निर्देशित किया गया है। यह धनबाद, झारखंड के कोयला माफिया और तीन अपराधिक परिवारों के बीच अंतर्निहित शक्ति संघर्ष, राजनीति और प्रतिशोध पर केंद्रित फ़िल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर श्रृंखला की पहली फ़िल्म है। फ़िल्म के पहले भाग में मनोज वाजपेई नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, ऋचा चड्ढा, हुमा कुरेशी, तिग्मांशु धूलिया, पंकज त्रिपाठी आदि कलाकार प्रमुख भुमिकाओं में है। इसकी कहानी 1990 से 2009 तक के कालक्रम में फैली हुई है। फिल्म के दोनों हिस्सों को एक फिल्म के रूप में शूट किया गया था, जो कुल 319 मिनट की थी और इसे 2012 के कान्स फ़िल्म समारोह में प्रदर्शित किया गया था, लेकिन चूंकि कोई भी भारतीय सिनेमाघर पांच घंटे की फिल्म को नहीं दिखाना चाहते थे, इसिलिये इसे भारतीय बाजार के लिए दो भागों (160 मिनट और 159 मिनट क्रमशः) में विभाजित किया गया था। पहले भाग को 22 जून 2012 को भारत भर के 1000 से अधिक थिएटर स्क्रीनों में प्रदर्शित किया गया था। इसे फ्रांस में 25 जुलाई और मध्य पूर्व में 28 जून को प्रदर्शित किया गया था लेकिन कुवैत और कतर में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया था। जनवरी 2013 में सनडांस फ़िल्म समारोह में गैंग्स ऑफ वासेपुर फ़िल्म दिखाई गई थी। गैंग्स ऑफ वासेपुर ने 55वें एशिया-प्रशांत फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ निर्देशक सहित चार नामांकन प्राप्त किये थे। .
गैंग्स ऑफ वासेपुर - भाग 2 (या Gangs of वासेपुर II) 2012 की एक भारतीय अपराध फिल्म है, जिसे अनुराग कश्यप द्वारा सह-लिखित, निर्मित और निर्देशित किया गया है। यह धनबाद, झारखंड के कोयला माफिया और तीन अपराधिक परिवारों के बीच अंतर्निहित शक्ति संघर्ष, राजनीति और प्रतिशोध पर केंद्रित फ़िल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर श्रृंखला की दूसरी किस्त है। फ़िल्म के दूसरे भाग में प्रमुख भूमिकाओं में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, ऋचा चड्ढा, हुमा कुरेशी, तिग्मांशु धूलिया, पंकज त्रिपाठी, राजकुमार राव और ज़ीशन कादरी आदि कलाकार शामिल है। इसकी कहानी 1990 से 2009 तक के कालक्रम में फैली हुई है। फिल्म के दोनों हिस्सों को एक फिल्म के रूप में शूट किया गया था, जो कुल 319 मिनट की थी और इसे 2012 के कान फ़िल्मोत्सव में प्रदर्शित किया गया था, लेकिन चूंकि कोई भी भारतीय सिनेमाघर पांच घंटे की फिल्म को नहीं दिखाना चाहते थे, इसिलिये इसे भारतीय बाजार के लिए दो भागों (160 मिनट और 159 मिनट क्रमशः) में विभाजित किया गया था। फिल्म में भारी मात्रा में अश्लील शब्द और हिंसा के कई दृश्य होने के कारण केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से इसे केवल वयस्क प्रमाणीकरण मिला। फिल्म का संगीत, पारंपरिक भारतीय लोक गीतों से बहुत प्रभावित था। भाग 2 को पूरे भारत में 8 अगस्त 2012 को प्रदर्शित किया गया था। फिल्म के दोनों भागों का आलोचकों द्वारा प्रशंसित किया गया था। संयुक्त फिल्म ने 60वीं राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ ऑडिगोग्राफी, फाइनल मिश्रित ट्रैक (आलोक डी, सिनोई जोसेफ और श्रीजेश नायर) के पुनः रिकॉर्डिस्ट और अभिनय (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) के लिए विशेष उल्लेख जीता था। फिल्म ने 58वें फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में सर्वश्रेष्ठ फिल्म (आलोचकों) और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (आलोचकों) समेत चार फिल्मफेयर पुरस्कार जीते, हालांकि किसी भी वित्तीय मानक से भारी सफल नहीं होने के बावजूद, 18.5 करोड़ के कम संयुक्त बजट के कारण, 50.81 करोड़ (2 भागों के संयुक्त) की शुद्ध घरेलू कमाई के साथ व्यावसायिक रूप से सफल रही। इसे कई आधुनिक पंथ फिल्म के रूप में माना जाता है। .
8x10 तस्वीर नामक फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद इस वर्ष फ़िल्म निर्माताओं की हड़ताल आरम्भ हो गई थी जिसका कारण टिकटघर से सम्बंधित है, यह हड़ताल जून माह के शुरू में बन्द हुई। .
यह पृष्ठ २०१० में निर्मित बॉलीवुड फ़िल्मों की एक सूची है। टिकट खिड़की पर 30 उच्चतम अर्जक फ़िल्मों की सूची में छः फ़िल्में शामिल हुई। इस वर्ष की उच्चतम 10 फ़िल्मों द्वारा अर्जित राशी थी, जो 2009 में आर्जित राशी से तुलना करने पर इसमें प्रतिशत वृद्धि 11.71% हुई। 2010 में पहली बार यह आँकड़ा पार हुआ केवल उच्चतम अर्जक 10 फ़िल्में के अंक को पार कर गई। यह बॉलीवुड के इतिहास में पहली बार था कि दो फ़िल्में दबंग और गोलमाल 3 ने से अधिक धन अर्जित किया। निम्नलिखित 10 फ़िल्में बॉलीवुड की 2010 की सर्वश्रेष्ठ अर्जक फ़िल्में हैं। .
यह बॉलीवुड फ़िल्म इंडस्ट्री द्वारा २०११ में निर्मित फ़िल्मों की सूची है। वर्ष के दौरान व्यावसायिक तौर पर एवं समीक्षकों की दृष्टि से विभिन्न सफल फ़िल्में जारी की गई। आठ फिल्मों ने भारतीय बॉक्स ऑफिस पर सबसे अधिक कमाई करने वाली शीर्ष 30 हिन्दी फ़िल्मों की सूची में जगह बनाई। प्रमुख दर्शनीय फ़िल्मों का संक्षिप्त विश्लेषण निम्न प्रकार है.
|
dd9f2caa0b6d0aa2788511a05b8df6c36360e4aecb0421eaa4ea5c7155505d12 | pdf | सम्बन्ध जोडते हैं एव दुःख त्या व्यामोह उत्पन्न करने वाले परस्वभावी सम्बन्धियों से सदा के लिए नाता तोड़ देते हैं - सम्बन्धविच्छेद कर लेते है । आत्मा की आत्मीय सम्यग्दृष्टि है । सम्यग्दृष्टि का परिवार है --- शम, सवेग, निर्वेद, अनुकम्पा, आस्तिक्य और भेदविज्ञान, विवेक आदि । अथवा सम्यक्त्व के ६७ बोलो का समावेश भी परिवार में शुमार है ।
भगवान् मल्लिनाथ जब वीतराग हो कर स्वरूप मे स्थिर हुए, क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त किया, तब क्षायिक सम्यक्त्व और उसके समस्त परिवार के साय उन्होंने ऐसा गाढ सम्बन्ध जोडा कि फिर वह कभी टूट न सके । सादि-अनन्त भग की दृष्टि से उन्होंने जब अटूट सम्बन्ध जोड लिया तो मिथ्यावुद्धि (मिथ्याष्टि-मिथ्यात्व) ने आपत्ति उठाई, और अपने हक का दावा करने. लगी। किन्तु जब तक क्षायिक सम्यक्त्व नही था, तब तक तो वह चुपकेचुपके घुस जाती और अपनी मोह माया को फैला कर आत्मा को चक्कर मे डाल देती थी, लेकिन जब भगवान् ने क्षायिक सम्यवत्व पा लिया तो उसकी पोलपट्टी का पता लगा, आत्मा के महित करने वाले विविध अपराधो का भी पता चला । अत वीतराग परमात्मा ने कुदृष्टि (मिथ्यामति ) के कारण वारवार होने वाले आत्मगुण के अवरोधो को दूर करने हेतु उसे अपराधिनी सिद्ध करके उसमे सदा के लिए सम्बन्ध विच्छेद कर डाला और उसे अन्तरात्मारूती घर से बाहर निकाल दी। मतलब यह है कि क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त होते ही भगवान् ने मिथ्यादृष्टि का आत्यन्तिक क्षय कर डाला । बाद मे उसकी कोई परवाह नहीं की। इससे प्रभु के स्वभाव का पता लग गया कि वे गुणो का आदर और अवगुणो का अनादर करते हैं ।
मिथ्यात्व के द्वारा होने वाले अपराध मिथ्यादर्शन ( दृष्टि) आत्मा का विविध प्रकार से अहित करता है । शास्त्रो मे मिथ्यात्व के अनेक भेद बताए गए हैं - धर्म को अधर्म और अधर्म कोधर्ममानना, साधु को असाधु और असाधु को साधु मानना, मोक्षमार्ग को ससार का मार्ग और ससार के मार्ग को मोक्षमार्ग समझना, आठ कर्मों से मुक्त को ममुक्त और अमुक्त को मुक्त समझना, जीव को अजीव और अजीव को जीव मानना, ये सव मिथ्यात्म है, जो आत्मा को वस्तु का असली स्वरूप समझने मानने
नही देते । खरे को खोटा और खोटे को खरा मानना ही वस्तुतः मिथ्यात्व है। इसी प्रकार मिथ्यात्व के मुख्य ५ एव २५ भेद है । भेद इस प्रकार हैं - आभिग्रहिक, अनाभिग्रहिक, आभिनिवेशिक, साशयिक एव अनाभोगिक मिथ्यात्व ।
( १ ) आणिग्रहिक - कुदेव को सुदेव, कुगुरु को सुगुरु एवं कुधर्म को सुधर्म माने, पकडी हुई जिहछ डे नहीं, वहीं यह मिथ्यात्व है । (२) अनाभिग्रहिकसभी देव, सभी गुरु और सभी धर्मों को विना सोचे-समझे एक सरीखे माने, वहाँ यह मिथ्यात्व होता है । ( ३ ) आभिनिवेशिक---सन्चे देव आदि को न माने, पर वाप-दादो ने जो किया, उसे ही किया करे, गतानुगतिक हो, वहाँ यह मिथ्यात्व होता है । (४) सांशयिक-वीतराग आप्तपुरुषो के वचनो पर कुशका करे, सशय-निवारण न करे, वहाँ ऐसा मिथ्यात्व होता है । (५) अनाभौगिक मिथ्यात्व - मूढता और बौद्धिक जड़ता के कारण अच्छे-बुरे का या हिताहित का भान न हो, धर्माधर्म का भी कुछ पता न चले; जहाँ एकेन्द्रियावि जीवो की तरह मोघसज्ञा से प्रवृत्ति हो, वहां यह मिथ्यात्व होता है ।
मिथ्यात्व के इन प्रकारो को देखते हुए सहज ही यह पता लग जाता है कि मिथ्यात्व आत्मा का सबसे ज्यादा महित करता है, वह सारी साधना को, सद्ज्ञान को, सद्बुद्धि को चौपट कर देता है, आत्मा जिन अच्छे विचारों को कार्यरूप में परिणत करना चाहती है, मिथ्यात्व उन सब कार्यक्रमो को उलटा कर देता है । यही कारण है कि वीतराग प्रभु इमे अपराधी एव अहितकर समझ कर सर्वथा वहिष्कृत कर देते हैं ।
अब अगली गाथा मे भगवान् ने हाम्यादि ६ दोपो का कैसे निवारण किया, इस विषय मे कहते हैंहास्य, अरति, रति, शोक, दुगछा, भय पासर करसाली । नोकपाय गजश्रेरगी चढतां, श्वानतणी गति झाली, हो ॥ म०।।५।। अर्थ
हास्य, अरति (चित्त का उद्वेग), रति [पाप मे प्रोति], शोक [अनिष्ट के सयोग और इष्ट के वियोग से होने वाली ग्लानि ], दुग छा (जुगुप्सा - घृणा, मानसिक ग्लानि ), मय इन ६ पामर एवं कर्म की खेती करने वाले कृषक
अथवा कर्मों को बटोर कर संग्रह करने वाली दंताली (करवाली) रूप नोकषयों ( आत्मा को थोड़ी मात्रा मे बिगाड़ने वाली कषायभावना) के क्षय करके आत्मगुगो पर आरोहण कराने वाले क्षाकणीरूपी हाथी पर आपके चढते हो इन सब नोकपायो ने फुत्त को चाल पकड़ ली । यानी उस क्षपकश्रेणीही हाथी को देख कर भोंकते लगे और जब वह नजदीक आया तो दुम दवा कर भाग गए।
हास्यादि षड्दोषो के निवारण के बाद अप्रमत्त-अवस्था मे प्रभु मे ये ६ दोष थे । परन्तु जब उन्होंने देखा कि इन नोकपाग्ररूपी (हास्यादि ६, और ३ वे३) कुत्तो को ज्योज्यों पुचकारते है, त्यो त्यो नजदीक आते हैं, और जब इन्हे दुत्कारते हैं तो ये भौकने लगते हैं । अत आपने इन ६ को आत्मा के प्रति गैरवफाद र देख कर इन्हें दूर करने का प्रयत्न किया । जब तक आपको वृत्ति और आत्मस्वभाव मे रमणता का मुझे पता न था वहीं तक मे अपने मन मे यह समझना था कि हास्यादि नो नोकषाय आपके सेवक होंगे, मैं भी हास्यादि मे सुख मानता था, लेकिन जब से आपके वास्तविक स्वरूप और सुख को मैंने समझा, मुझे असलियत का पता चल गया कि नौ नोकपायो मे सुख मानता तो पागलपन है, ये तो कपाय के ही छोटे भाई हैं, मोहनीय कर्म के बेटे हैं, इसलिए बड़े भयकर हैं, ये सुन्न के ही नही, आत्मगुणो के घातक हैं ।
और मैंने देखा कि जब से आपने अपना स्वरूप सभाला, उग्र तप सयम द्वारा आपने क्षपकश्रेणी पर चढ़ना शुरू किया, तब मुझे ऐसा लगा मानो कोई विजयी पुरुष हाथी पर चढा जा रहा है, और उसके पीछे कुत्ते भौक रहे हैं। सचमुच जव आप क्षपकणीरूपी हाथी पर चढ़े तो ये हास्यादि छह कुत्तो की तरह भौकने लगे, परन्तु आपने उनकी ओर देखा तक भी नही, आप तो चुपचाप मोक्षपुरी के दरवाजे के सामने पहुँच गए । बेचारे कमजोर हास्यादि नोकपायो की जब दाल नही गली तो चुपचाप दुम दबा कर भाग गए । किन्तु इन सबका स्वभाव कुत्ते की नाई खिच आने का (करसाली) है, कुत्ते को जितमा पुचकारेंगे, उतना नजदीक खिचता चला आएगा, वैसे ही ये है ।
हास्यादि ६ नोकपाय प्रत्येक आत्मा का बहुत बडा अहित करते हैं, वीतराग प्रभु के भी ये शत्रु बने थे । हास्य इन नवका अगुआ है । हॅसी-भजाक कितना बड़ा नुकसान कर बैठती है, उससे मित्र भी किस प्रकार शत्र, वन जाने है, और एक दूसरे के प्राण लेने पर उतारू हो जाते हैं, यह किसी से छिपा नही है । इसलिए हास्यकषाय आत्मार्थी के लिए त्याज्य है। रति भी दूपरा 'नोकपाय है, इससे व्यक्ति अनुकून पौद्गलिक पदार्य या पद, प्रतिष्ठा आदि मिलने ही मन मे प्रसन्न हो उठता है । इससे भी कर्मबन्ध करता है। इसी तरह तीसरा नोकपाय अरति है, जिससे व्यक्ति प्रतिकूल पदार्थ, व्यक्ति वा पदादिपा कर घृणा कर बैठता है, घबरा जाता है। चीया है - शोक, जिसमे प्रियवस्तु
व्यक्ति के वियोग मे या अप्रिय के नयोग में व्यक्ति हायतोवा, मचाता है, अफसोम करता है, छाती-माथा कूटना है । इसके बाद का नोकपाय है- भय, जो आत्मा को अपने स्वभाव से बहुत जल्दी विचलित कर देता है । वह भी जव अपने दल बलसहित आता है, तो व्यक्ति की बुद्धि पर हमला कर देता है। इसके बाद छठा नोकपाय है - जुगुप्सा, इने व्यक्ति किसी गदी, घिनौनी या अपवित्र वस्तु को, शरीर को या जगह को देख कर घृणा से मुँह मचक्रोड लेता है। यह भी वस्तुस्वरूप की नासमझी का परिणाम है । परन्तु वीतरागप्रभु को क्षपकगज पर देखते ही ये भाग गए । ज्योज्यो प्रभु सयमस्थान पर चढ़ने गए, त्यो त्यो इन छहो को चले जाना पड़ा। कमजोर को देख कर तो ये उस पर हावी हो जाते हैं । परन्तु भगवान् के आगे जब अनन्तानुबन्धी आदि वडे बडे दिग्गज हार मान कर चले गए तो इन बेचारों की क्या विमान थी ? इनका चले जाना भगवान् के लिए शोभारूप ही हुआ ।
प्रभो । आपका यह अद्भुत तेजस्वी स्वभाव देख कर मुझे भी यह प्रेरणा मिली है कि मुझे हास्यादि ६ दोषो से सावधान रहना चाहिए, इ हें जरा भी मुंह नहीं लगाना चाहिए । आप मेरे आदर्श है, इसलिए मुझे भी आपकी तरह गजगति पकड़ कर इन नोकषायो पर विजय पाना चाहिए ।
इसके बाद श्रीआनन्दघनजी चारित्रमोहनीय कर्म के दिग्गज सुभेटो को भगवान् के द्वारा पराजित करने की कहानी लिख रहे हैं -
राग, द्वेष, अविरतिनी परिणति, ए चररगमोहना योधा । वीतराग-परिणति परिगमतां, उठी नाठा बोधा, हो ॥ मल्लि० ॥६॥
चारित्रमोहनीय के सबसे बडे योद्धा (दोष) राग, द्वेष और अविरति की परिणति ऊधम मचा रहे थे, लेकिन आपके (आपकी आत्मा के) वीतराग-परिगति मे परिगत होते ही ज्ञानी का दम्भ करने वाले ये बोधक अथवा बोधा या जाग कर, झटपट खडे हो कर भाग गए।
राग, द्वेष और अविरति का त्याग आत्मा के सबसे बडे घातक दुश्मन राग, द्वेप और अविरति है । ये १२ वें, १३ वें, और १४ वें दोष है, वीतराग के लिए । राग मनोज्ञ वस्तु पर प्रीति करने से और द्वेष अमनोज्ञ वस्तु के प्रति तिरस्कार करने से होता है । राग और द्वेष ही वास्तव में कर्मवीज है, जो मुक्तिपथ पर आगे बढने से प्रत्येक साधक को रोकते है । ये ऐसे मीठं और कातिल दुश्मन हैं कि इनका पता बडे बडे उच्च कहलाने वाले साधको को नहीं चलता । राग-द्वेष के नशे मे प्राणी मन और इन्द्रियों के अनुकून सयोगो मे इतना मशगूल हो जाता है कि बाजदफा तो वह अपना सर्वस्व होमने को तैयार हो जाता है, अपमान सह लेता है, भूख, प्यास और नीद तक को हराम कर बैठता है । इस घातक विषो से साधक की आत्मा अपने स्वभाव से भर जाती है, वह पनप नहीं पाती। वारवार जन्म-मरण के चक्कर मे डाल देते हैं, ये ही हमलावर । मोहनीयकर्म के ये बडे जबर्दस्त लडाकू योद्धा हैं । तीसरा है- अविरति नामक दोष । जब साधक के जीवन और अन्तर्मन मे अविरति पैदा हो जाती है तो वह आत्मा को विरूप बनाने वाले भावो का त्याग नही कर पाता, हिंस/दि पाँचो आश्रवो को वह आत्मघातक समझते हुए भी छोड नही पाता, हिंसादि को छोड़ने का विचार करते ही कभी तो अभिमान वीच मे आ कर रोक देता है, कभी अपनी गलत आदत, दुर्व्यसन, कुटेव या कुप्रकृति उसमे रोडे अटकाती है, कभी कभी क्रोध, कपट और लोभ आ कर विरति का हाथ पकड लेते हैं और उसे पीछे धकेल देते हैं। मोहराजा का आदेश होते ही ये तीनो एकदम आत्मा की स्वभाव |
c6f50c68c18dbe12b2c80d79856754ae4eeea441c99babc6fc497e864f4fcf1c | pdf | कौने चित्त पहुएन ? क्या इन जलाशायों को आपस दिगम्बर लोग ही मिल-मिलाकर खोद लिया करते हैं, या वे ही ऊपर कहें हुए शूद लोग उन्हें खोदा करते हैं ? सच्ची वात हो, सो कह दीजिए । उत्तर देते समय जरा कैंपिये नहीं । यदि भ्रमचारी जी । जो शूद्रादि आप के जलाशयों को खोढते है, तो फिर उन मे नहाने, तथा उन का पानी पीने पर तो, आप शूद्रों से भी गये बीते ठहर जाते हैं, या नही ? क्योंकि, यह तो आप ही के शास्त्रों का नुस्खा है, उन्हीं की यह अनोखी सूझ है। हमारा तो इस मे तनिक भी हाथ नहीं ।
(५) आगे चलते चलिये । उसी " त्रिवर्णिकाचार नामक ग्रन्थ के पृष्ठ ६८ पर लिखा है, कि, अंगुली मे ताँबे का छल्ला पहनने वाला मनुष्य पवित्र होता है। आपके इस सिद्धान्तानुसार, यह तो स्वत सिद्ध हो गया, सिद्ध हो गया, कि जितने भी
दिगम्बर भाई, अपने हाथों की
अँगुलियों मे, चॉदी तथा सोने
की अंगूठियाँ पहनते है, वे सब-के-सत्र पवित्र है। अरे भ्रमचारी जी । जिन के कारण से तुम, तुम बने हुए हो, उन्हीं गृहस्थियों को क्यों अपवित्र ठहराते हो ?
भ्रमचारी जी । यहीं ठिठक न रहिये । जरा, आगे क़दम धरते ही चलिये । आप के उसी ऊपर वाले धर्म-प्रन्थ के पृष्ठ ६६ पर, पापों से पिंड छुडाने का एक बडा ही अनुप उपाय सुझाया गया है । वाह-वाह । क्या कहना । आप के, दिगम्बर दिमाग और दकियानूसी दिल वाले नगे गुरुओं ने
अपने शारों का मंथन फरके, क्या ही सुन्दर शोष बूँद निकाली है। कि-गोड करने वाला, सभा चोरी आदि सब पापों का करने वाला पुरुप दिन भगवान् के भरण-परिव सन्कापन करने से सब पापों
से मुक्त हो जाता है। पाठको वन वो जेस और नर्क माहि से मुखि पाने का क्या दी और सामान पा भाप के शात्रों में लिखा है। भ्रमवारी जी ! म यो- Danda of dalaneta sre committed in the dark 'ममात् जगत् में जितने भी अन्याय और अत्याचार के काम है सब के सब धंधेरे दी में किये जाते हैं, इस माद-नियम पे भीतर ही मीवर मयंकर पाप निमपि करते असे माइये, और उघर, गयन-अप करते रहिये जिस से, स पूर्णपसे भी भाप चुप चाप सुहाते रहें। बाद रे स्वायम्मकार के उसको । न्य को भरने स्वार्य-साधन केहि तुमने क्यायाम किया और क्या-क्या करोगे तुम्ह अपूर्ण सम है। जरा, अपना यह उपाय भारत सरकार को भी तो तुम योग दिया। जिससे मर्यकर पाप के करने वाले सब के सब फ राधियों को शत-श्री पास में सरकार रिहा कर दिया करे। यू नाना प्रकार केनों के शासन तथा मठ मसि के कानूनों की रचना से सरकार बषे ा
(६) भ्रमवारी जी आपसी परम पावन (१) शास्त्र के दूस १४१ वे पर पर स्त्रियों को आकर्षित या मादित करने
का तो खूत्र ही अच्छा मन्त्र बताया है । हमें विश्वास है, कि तब तो आपके नगे गुरु इस अजीब मोहन मन्त्र को काम में लाकर, परदाराओं को मोहित तथा आकर्षित करते ही होंगे ! क्योंकि यह तो आपके यहाँ आपके परम पावन धर्म-शास्त्र ही.. की है। अतः प्राण रहते तो आप इसका उल्लंघन कदापि कर ही नहीं सकते। भ्रमचारी जी । भला हो आपके उन शास्त्रकारों और शास्त्र का ! भ्रमचारी जी ! "बड़े भाग मानुष-तन पावा।" कभी भाग्य ने जोर मारा तो कोई-न-कोई झूठन-झाटन आपको भी एक न एक दिन मिल ही जावेगा । उस दिन उस वहती गंगा में हाथ धोने से कदापि न चूकिये । आपके शास्त्रों के अनुसार आपकी पावन करणी ( १ ) से तो,
पूर्ण परिचित हैं ही। फिर परलोक मे इस गंगा स्नान का सौभाग्य आपको मिले न मिले ! "धन्य भूमि वन पन्थ पहारा ! जहॅ-जहॅ नाथ पाँव तुम धारा 11" धन्य है आपके ऐसे भ्रमभरे ब्रह्मचर्य को ! और शत-शत चार धन्य है आपके कचन और कामिनी के त्यागी, नामधारी ऐसे नग्न गुरुओं को !!
(७) आपके पावन धर्म शास्त्र (?) पर चढ़े हुए ढोल की पोल को कहाँ तक खोलें। जरा ही आगे और सटकिये। आपके इसी धर्म - रसिक ग्रन्थ के पृष्ठ १४२ पर, स्त्री-पुरुष की एकता मे विद्रोह मचा देने वाला तरीका भी क्या ही मजेदार लिख दिया है । यही नहीं, किसी को रोगी, या दुखी बनाना हो तो इन चातों के भी अनुभूत तथा परिक्षित योग वहाँ बता दिये गये हैं।
भ्रमणारी जी । धन्य है आपके ऐसे धर्म-शाा (१) मानव-समाज को दुखी और रोगी तक बनाने के अनुभूत प्रोमोगों का दिग्दर्शन कराया गया हो । हा हुन्छ । ऐसे प्रयोगों की मीमांसा करने वाले बैनरत्र (1) पर भू मू !! हि' ! । हि ।। एक-जोबस और सौ मही, बरम् इचारों बार मिस्कार । विक्कार !! पिक्कार !!!
पाठको भ्रमचारी जी का पैर भय करा देहा-मेड़ा पड़ रहा है। अब मेही भ्रमचारी की, मील के शातिर ममते-भ्रमते बीकानेर पहुंचते हैं। और वे बीकानेर निवासी गणपविभाजी कीकृत "सम्पपरीक्षा कारण देते हैं। मगर न हो इस पुस्तक का स्थानकासी है और म यह पुस्तक ही स्थानकवासियों को माम्प है। पोथो कई समय-असमय, महावीर के सम्बन्ध में अंट-सेट लिखा और सिख देते हैं, तो धनकी सारी जिम्मेदारी नहीं पर तो है। इस माते, "सम्ब परीचा" के रस का मोश और दो ही क्या विचारणाम् पाठक स्वयं सोच-समझ से। रही पाव भय भ्रमचारी जी की ! जिन्होंने उसे स्थानकवासियों की मान्यता का प्रम्य मोहुए भी व्यवरम स्थानकवासियों के सिर कन् बसेका दिया है। श्वना दी करके वे चुप हो रहते वो ठीक था। पर नहीं वो उसका प्रमाण तक के सामने पेश कर दिया है। इस भी हो पर है यह सब अयुक्ति पुक्ति, अमामाणिक और अनुमान के सिरों पर
हुआ । भ्रमचारी जी की यह कितनी अक्षम्य धृष्टता है ! पाठको क्यों नहीं शीघ्र-से-शीघ्र ऐसे भ्रमित बुद्धि के भ्रमचारी जी का फैलाये हुए दूषित वातावरण को शुद्ध बनाने का भरसक प्रयत्न आप करते हैं ? चेविये, समाज की अचेवन अमराव भी कुछ स्वाँस ले रही है ।
एक ही नाम-ठाम के अनेक व्यक्ति जगत् मे हुए; होते हैं, और होते रहेंगे। यह तो कभी सम्भव नहीं, कि यदि इस घराधाम पर किसी व्यक्ति का नाम रेवती हो तो अपने नाम का एकाधिकारनामा (Monopoly) बस उसी ने लिखा लिया हो। हम और आप सभी देखते तथा सुनते हैं, कि एक ही नाम के अनेकों व्यक्ति यहाँ पहले भी थे और आज भी हैं। तब सुन्दरलाल जी ! क्या दुनिया में एक तुम्हीं सुन्दरलालजी हो ? क्या तुम्हारे सिवाय संसार में सुन्दरलाल जी नाम का अन्य कोई व्यक्ति है ही नहीं ? अरे भ्रमचारी जी ! ऐसी बात न तो है ही, और न कभी हो ही सकती है। परन्तु हाँ, इतना तो हम भी मानने को तैयार हैं; कि यदि एक सुन्दरलाल व्यभिचारी है, तो दूसरा कोई माँसाहारी । फिर तीसरा सुन्दरलाल कोई चोर, कठोर और मुँह चोर है, तो चौथा कोई सुन्दरलाल सढ़े हुए दिमाग और दकियानूसी विचार वाला है। यों नाम के एक होने पर भी व्यक्ति सब अलग-अलग हैं । उन के
रूप और काम, तथा गुण और स्वभाव, सभी, मिल मिन हैं। अमचारी जी । अहम
हो सिद्धान्तों को कर लें, तुम दुनियाभर में, जैसे एक माम का केवल एक ही व्यक्ति समते हो मैसा हम भी मामले, व यो तुम्हारे ही बचन, अनुमान और प्रमाण से, फिर दुनिया भर में तुम जैसा केवल एक दी म्हरहुआ। और इस नाते व तो नामी, कामी, व्यभिचारी, मौस-भक्षक, चोर, डा आदि सभी दुगु यों के पिटारे तुम्ही ठहरे (बदि यह बात तुम्हें माम्य है, तब या "मौर्म सम्मति लक्षणम् "के न्याय से उपयुक सारे गुणों (१) के मूर्तिमा भौतुम हो ही और कदाचित् वद कथम तुम्हे अन्वीकार है, दो फिर मगबाम् महावीर का श्रीपमि दान देने वाली रेवती जो मेहिया गाँव की रहने वाली है, उसकी तुझमा केवल नाम के नातेदांग-सूत्रष्ट १६२ पर बत राजद की हवा मांसाहारिणी और पारि रवती के साथ करना तुम्हारी हिमालय जैसीमर्यकर मूल नहीं और क्या हो सकता है ? भ्रमचारी जी भ्रम को भाड़-मुहार । कर परे फैको सास्त्रों का मनन और विचारपूर्वक अन्यम करो। कभी वक्रिमानूसी विचार तुम्हारा दूर हो पायेगा। भाई भ्रमचारी जी मेडिया गाँव की रहने बाली रेवती और राजगृह निवासिमी रेवती दोनों पकू-पृथक् लिज भी और दोनों के
आचरण, गुण स्वभाव आदि भी सत्र भिन्नभिन्न थे ।
भ्रमचारी जी ! कई व्यक्ति संसार में ऐसे हो सकते हैं, जिनके केवल नाम आपके नंगे गुरुओं से मिलते-जुलते हो परन्तु उनमे से कोई तो मांसाहारी हो और कोई डाकू कोई व्यभिचारी और कोई दुराचारी हो और कोई मदकची तथा कोई गॅजेड़ी भँगेड़ी हो । तो क्या केवल उनके नाम के नाते ये सब के सब आरोप आपके नंगे गुरुओं पर भी लग सकते है ? भ्रमचारी जी ! क्या इस बात को मानने के लिये तुम उतारू हो ? यदि नहीं तो फिर मेढिया गाँव की रहने वाली रेवती की तुलना केवल नाम मात्र एक होने से राजगृह की रहनेवाली रेवती के साथ करना तुम्हारी नादानीपन का नमूना नहीं तो और क्या हो सकता है ?
भ्रमचारी जी (१) उपासक दशाग मे वर्णिता रेवती राजगृह मे रहनेवाले महाशतक जी की स्त्री परतन्त्र है । और ( २ ) भगवती जी सूत्र मे वर्णन की हुई रेवती मेढियाग्राम की रहनेवाली स्त्री स्वतन्त्र अर्थात् एक गृह स्वामिनी है । ये दोनों स्त्रियाँ जो भी नाम से एक ही थीं; पर ग्राम और काम दोनों से पृथक्पृथक् थीं । उपासक-दशाग-सूत्र मे जिस रेवती का वर्णन आता है, वह एक माँसाहारिणी, क्रूरा, कुलटा, हिंसा परायणा और अधर्मरता नारी है। इसके विपरीत जिस रेवती का वर्णन भगवती जी सूत्र मे आता है, वह सर्वज्ञ, भगवान् महावीर के अमल कोमल चरणों मे भक्ति-भाव रखने वाली, सिंहा अरणगार को दान देने वाली और एक धर्म-परायणा नारी है। इन में से
उपासक दशांग सूत्र की रेवती मर करके म गामी बनी है।और भगवती की सूत्र वाली रेववी अपनी मीन लीला समाप्त करके में सिपारी है। प्रमाण के रूप में इन दोनों के विषय में सूत्र पाठ निम्न शिवि हैवसा र गाहाइसी अंतोसचररस सवा हिस्सा घमिमूया भट्ट दुबह वसट्टा कालामाचे कालं किडचा इमीस श्ययभार पुरवीर सो नरम व्यसोई वासह
ठिइपसु नेरश्पस मरइपचार वरणा" पास ८२७ । ""वपक्ष वीप रेवतीर गाहाबविग्री तेर्स इम्पस बाबा सी भयगारे पहिलाभिए साये याउप निबद्ध बदा विजयस्त बाग जम्मी ती गव्हानवियीय ।"
भ्रमचारी जी । कोष-सरीय माग्जार
आदि का अर्ज एक नहीं परम भनेको बार बनस्पति सिद्ध कर दिया गया है, के लिये देवा(१) ५० की महाराज
चित्रित 'साम
प्रदीप (२) रावादमामी 4 श्री रस्म श्री महाराज द्वारा मिचरित 'रेवतीरान-मोचमा (1) पं० मिश्रीलाल जी महाराज प्रम्बर-मत समीर (४) मुनि श्रीचन्द जी महाराज भय मशीय 'सस्मासस्य सीमांसा आदि में पदों का धर्म रूप से बनस्पति के अर्थ में सिद्ध करके दि दिया गया है। वह सम दो मुकने पर भी सूखी ए
न्या मतसिंहजी सुन्दरलालजी जैसे दक्कियानूसी विचारों के लोगों के द्वारा बीसियों बार हिर- फिर कर अपनी-अपनी रचनाओं मे, इसी बात का रोना 'अन्धा मुर्गा चक्की के इर्द-गिर्द' वाली कहावत का घरितार्थ करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इस पी से हुए को पीसने मे न जाने हुन लोगों को मज्रा कौन सा मिलता है ! मजा ? अजी मज्जा मज्जा तो कुछ नहीं, इन के पास दूसरी कोई चर्चा ही नहीं । इन अड़ियल दिमागों के पास और कुछ कहने सुनने की कोई ताकत ही नहीं फिर वे और कुछ कहें तो भी क्या ?
जरा आँखें खोल कर देखना सीखो । भ्रमचारी जी ! शास्त्रों मे एक ही नाम के यत्र-तत्र अनेकों व्यक्ति अपनी शुभ तथा अशुभ क्रियाओं के द्वारा स्वर्ग या अपवर्ग और स्थानों में अपनी-अपनी करणी के अनुसार गये हैं। केवल नाम साम्य होजाने मात्र ही से उनकी क्रियाएँ समान कैसे हो सकती हैं ? कदापि नहीं। अजी व्यवहार ज्ञान से शून्य भ्रमघारी जी । 'अॅगुली' इस शब्द के समान होने पर भी, एक ही हाथ की सब अँगुलियाँ तक जब रूप और काम में समान नहीं होतीं, नहीं हो सकतीं और न होना ही युक्तियुक्ति तथा प्रामाणिकता का प्रमाण हैं, तब दूर के दो व्यक्तियों की बातें तो चलावे ही कौन ? और क्यों ? भ्रमचारी जी ! यदि 'कृष्ण' नामक किसी एक भील को जो हिंसा-रत, असत्यवादी, चोर, व्यभिचारी और मद्यपी है, केवल नाम-भर की समानता के कारण, 'श्रीकृष्णचन्द्र' मान कर महत्व आप देने लगे, तो लोग आपकी |
f8388f3ef854b2d30f0781f4cb3a4f203fee477adccaa7b206ae257c45f85b43 | pdf | यह दिखाना चाहते थे कि अधिकारियोंकी सहायताके बिना वे अपने जानमालकी रक्षा नही कर सकते ।' दंगेके समय पुलिसका ऐसा रवैया सर्वथा निन्दनीय और अक्षम्य है । सभी श्रेणी और वर्गोके गवाहोंने एक स्वरसे यह बात स्वीकार की कि पुलिसने दंगेकी विभिन्न घटनाओके सम्बन्धमे तटस्थता और निष्क्रियता दिखायी, मानो उसे इन बातोसे कोई मतलब ही न था । इन गवाहोमें यूरोपियन व्यापारी, सभी मतो और विचारोके मुसलमान और हिन्दू सैनिक अधिकारी अपर इण्डियन चेम्बर आव कामर्सके मन्त्री, भारतीय ईसाई सम्प्रदायके प्रतिनिधि तथा भारतीय अधिकारीतक थे । गवाहीमें कही गयी बातोंमें इन सबकी एक स्वरसे कही गयी इस बातकी उपेक्षा करना असम्भव है ...... हमे इस बातमें भी लेशमात्र सन्देह नही कि दंगेके आरम्भिक तीन दिनोमे पुलिसने अपने कर्तव्यपालनमें वह तत्परता नही दिखायी जो उसे दिखानी चाहिये थी । ........ .. अनेक गवाहोने ऐसी भीषण घटनाओं के विवरण दिये है जो पुलिसकी आंखोके सम्मुख घट रही थी परन्तु पुलिस चुप बैठी तमाशा देख रही थी। अनेक गवाहोने हमें बताया है तथा जिला मजिस्ट्रेटने भी अपने बयानमे कहा है कि पुलिसकी तटस्थता और निष्क्रियताकी उस समय शिकायतें की गयी थीं । खेदकी बात है कि ऐसी शिकायतोंकी ओर कोई ध्यान नही दिया गया ।"
त्रिभुजके आधारकी वृद्धि
दिसम्बर १९२६ में कांग्रेसके गोहाटी अधिवेशनके ठीक पूर्व दिल्ली में एक धर्मान्ध मुसलमानने जाकर मुलाकातके बहाने रोगशय्यापर पड़े स्वामी
* के० बी कृष्णः 'दि प्राब्लेम आव माइनारिटीज', पृष्ठ २७२-२७३
श्रद्धानन्दकी निर्दयतापूर्वक हत्या कर डाली । इससे स्वभावतः सारे देशमें आतंककी एक लहर फैल गयी और यह बात महसूस करने लगे कि हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच फैले हुए राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक सभी प्रकारके मतभेद मिटानेका प्रयत्न करनेकी आवश्यकता है। यहां यह बात स्मरण रखनी चाहिये कि १९२० में मांटेगू चेम्सफोर्ड सुधार जारी होनेपर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा खिलाफत कमेटीने कौसिलोंका बहिष्कार कर दिया था और १९२० के चुनावमें कोई भाग नहीं लिया । १९२२ में सविनय अवज्ञा आन्दोलन बन्द कर दिये जानेपर दोनों संस्थाओंके नेताओंमें मतभेद उत्पन्न हुआ जिसके फलस्वरूप बहिष्कार बन्द कर दिया गया तथा १९२३ के अन्तमें जो चुनाव हुआ तथा उसके बादके चुनावोमें भी काग्रेसजनोंने तथा खिलाफत आन्दोलनके कार्यकताओंने भाग लिया । स्वराज्य पार्टी स्थापित हो गयी थी और असेम्बलियोंमे कांग्रेसकी ओरसे स्वराज्य पार्टी ही कांग्रेस कार्य कर रही थी । स्वराज्य पार्टी सुधारोको कार्यान्वित करनेके पक्षमें न थी और वह असेम्बलियोंमे सरकारके साथ असहयोग करनेके पक्षमे थी । अतः केन्द्रीय असेम्बलीके काग्रेसी सदस्योंने विधानमें परिवर्तनकी मांगका प्रस्ताव रखा और अर्थ बिल अस्वीकार कर दिया ताकि गवर्नर जनरल जो कुछ करें वह अपने विशेषाधिकारसे करें, असेम्बलीकी स्वीकृतिसे नही । असेम्बलीके अनेक गैर कांग्रेसी मुसलमान सदस्योंने भी इस कार्यमें कांग्रेसजनोंका साथ दिया। इससे स्पष्ट है कि देशमें तनातनी होते हुए भी केन्द्रीय असेम्बलीके हिन्दू और मुसलमान सदस्योंमें किसी अशमें सहयोग था।
वैधानिक प्रश्नपर लेशमात्र भी आगे बढ़ने के किसी भी प्रस्तावका सरकार जान बूझकर विरोध कर रही थी । परन्तु यह बात महसूस की जाने लगी कि सरकारका यह विरोध अधिक समयतक नहीं चल सकता और किसी प्रकारके साम्प्रदायिक समझौतेके बिना कोई भी प्रगति सम्भव नहीं । अतः गोहाटी कांग्रेसने अपनी कार्यसमितिको यह अधिकार दिया कि वह हिन्दुओं और मुसलमानोंके पारस्परिक मतभेदको दूर करनेके लिए हिन्दू और मुसलमान नेताओंसे परामर्श
निर्वाचन केवल तभी त्याग सकते हैं जब उनकी अन्य शर्तें स्वीकार कर ली जायं । प्रस्तावमे मद्रास कांग्रेसका वह समझौता भी शामिल था जो आत्मस्वातन्त्र्य, धार्मिक कानून, गौ तथा बाजेके प्रश्न और मत परिवर्तनके सम्बन्ध - में हुआ था । यहा यह स्मरण रखना चाहिये कि अखिल भारतीय मुस्लिम लीगमें दो दल हो गये थे । एक कलकत्तेमें अपना अधिवेशन कर रहा था और दूसरा लाहौरमें, सर मिया मुहम्मद शफीकी अध्यक्षतामे । उपर्युक्त प्रस्ताव कलकत्तेवाले अधिवेशनमे स्वीकृत हुए जिसके अध्यक्ष थे मौलवी मुहम्मद याकूब । श्रीमुहम्मदअली जिना इसके प्रमुख पथप्रदर्शक थे ।
यहां उन थोड़ी-सी बातोंका जिक्र करना अनुचित न होगा जिनके कारण लीगके एक दलमे और काग्रेसमें पुन एकता हो गयी थी और दूसरी ओर लीगमें ही फूट होकर दो दल हो गये थे । ऊपर कहा जा चुका कि सरकार वैधानिक प्रगतिके सभी प्रस्तावोका विरोध कर रही थी । उस समय लार्ड बर्कनहेड भारतमन्त्री थे। उन्होने १० दिसम्बर १९२५ को तत्कालीन वाइसराय लार्ड रीडिगको उस 'स्टेट्यूटरी कमीशन' की नियुक्तिकी तारीख बढ़ानेके सम्बन्धमे लिखा कि सुधारोकी प्रगतिपर अपना मत प्रकट करनेके लिए सुधार लागू होनेके अधिकसे अधिक दस वर्षके अन्तमें नियुक्त करनेका १९२० के भारत शासन विधानमे आयोजन था । उन्होने लिखा'अतः यदि आप कभी इस (स्टट्यूटरी कमीशन ) के द्वारा लाभदायक सौदा पटानेका अवसर देखें अथवा स्वराज्य पार्टी और अधिक फूट डालनेका मौका पाये तो मै आपकी सलाहका स्वागत करूंगा.. . यदि ऐसी शीघ्रतासे आपको सौदा पटानेका अवसर मिले तो आप उसका यह विश्वास रखते हुए भरपूर उपयोग करे कि सरकार आपका हृदयसे समर्थन करेगी । *
अस्तु १९२७ में इंग्लैण्डकी स्थिति के कारण वे विवश हो गये । "ब्रिटेनके भावी चुनावके लक्षण अच्छे न थे । मजदूर दलीय सरकार बननेकी सम्भावना
* बर्केनहेड : 'दि लास्ट फेज -श्री के० बी० कृष्णकी 'दि प्राब्लेम ऑव माइनारिटीज', १० ३०७ में उद्धृत ।
थी । वे नहीं चाहते थे कि १९२८ वाले कमीशनकी नियुक्तिमें मजदूर दलकी सरकारका कर्नल वेजउड और उनके साथियोंका,... थोड़ा-सा भी हाथ हो ।... कारण, इससे तो 'स्वराज्य पार्टीमें और अधिक मतभेद उत्पन्न करनेकी' ( बर्केनहेड : 'दि लास्ट फेज', पृष्ठ २५०-५१ में वर्णित ) वर्णित ) उनकी योजना ही उलट जायगी ।'
आपने नवम्बर १९२७ में 'स्टेट्यूटरी कमीशन' की नियुक्तिकी घोषणा की । कमीशनमे ७ सदस्य थे जिनमें सर जान साइमन उसके अध्यक्ष थे । उसमें भारतीय सदस्य एक भी न था । केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभासे कहा गया था कि वह एक संयुक्त विशेष समिति नियुक्त करे जो कमीशनकी जांचके लिए उसके सम्मुख अपने विचार उपस्थित करे । कमीशनमें एक भी भारतीय सदस्यके न रखे जानेकी बातको भारतीयोंने अपना घोर अपमान समझा और केवल कांग्रेस तथा खिलाफत कमेटीने ही उसका बहिष्कार करनेका निश्चय नहीं किया, अपितु अनेक मुसलमानोंने और यहांतक कि लिबरल दलके व्यक्तियोंने भी ऐसा निश्चय किया, जिनके बारेमें ऐसा समझा जाता था कि राजनीतिक मामलों में उनके विचार बडे नरम है और कांग्रेसके बहिष्कार करनेपर भी देशके विभिन्न राजनीतिक दलोंमे लिबरल दल ही ऐसा दल था जिसने माटेगू चेम्सफोर्ड सुधारोंको कार्यान्वित करनेकी चेष्टा की थी। अखिल भारतीय मुस्लिम लीगमें साइमन कमीशनसे सहयोग करने तथा पृथक् निर्वाचनके प्रश्नपर मतभेद उत्पन्न हो गया था । लार्ड बर्केनहेड भारतके विभिन्न दलोंके बीच फूट डालनेके महत्वको भली भांति समझते थे और "भारतमन्त्रीकी हैसियतसे उन्होंने वाइसराय लार्ड रीडिंगको अपनी यह सलाह भेजी कि 'जितना ही अधिक यह दिखाया जा सकेगा कि लोगोंमें मतभेद बहुत बढ़ा हुआ है तथा इसके कारण जनतामें अत्यधिक फूट फैली है उतना ही अधिक यह प्रदर्शित किया जा सकेगा कि हम और केवल हम ही सबमें झगड़े मिटा सकते
* अतुलानन्द चक्रवर्ती : 'काल इट पालिटिक्स' पृ० ५८
१९९-है' (बर्केनहेड : 'दि लास्ट फेज' पृष्ठ २४५-२४६ ) " जब भारतमें कमीशनका बहिष्कार हुआ तो उन्होंने लार्ड अरविनको पुनः लिखा कि बहिष्कारका रुख मिटानेके लिए हम सदा ही अबहिष्कारी मुसलमानों, दलित वर्ग, व्यापारी वर्ग तथा ऐसे ही अन्य अनेक वर्गोंपर निर्भर रहते आये हैं। आपको और साइमनको इस दौरेके समय ही इस प्रश्नपर विचार करना चाहिये कि इसी समय ब्रिटिश सरकारके प्रति विरोधकी दीवारमें दरार डालनेका प्रयत्न करना उपयुक्त होगा अथवा नहीं ( बर्केनहेड : 'दि लास्द फेज', पृष्ठ २५३) ।"*
कुछ दिन बाद फरवरी १९२८ में उन्होंने वाइसरायको पुनः लिखा कि "मैं साइमनको सलाह दूंगा कि वे हर हालतमें ऐसे महत्वशाली व्यक्तियोसे मिलें जो कमीशनका बहिष्कार नही कर रहे है, विशेषतः मुसलमानों और दलित वर्गके लोगोंसे । लोकप्रतिनिधि विशिष्ट मुसलमानोंसे उनकी जो मुलाकातें होंगी उनका मै व्यापक प्रचार करूंगा। अब सारी नीति स्पष्ट है । वह नीति यह है कि विशाल हिन्दू जनताके मस्तिष्क में यह भय उत्पन्न कर दिया जाय कि कमीशनपर मुसलमान लोग हाबी हो गये है और वह ऐसी रिपोर्ट दे सकता है जो हिन्दू हितोंके लिए पूर्णतः घातक हो और इस प्रकार मुसलमानोंका ठोस समर्थन प्राप्त किया जाय तथा जिनाको निर्बल बनाकर छोड़ दिया जाय ।" ( बर्केनहेड : 'दि लास्ट फेज', भाग २, पृष्ठ २५५)
तब इसपर आश्चर्य करनेकी आवश्यकता नहीं कि सर मुहम्मद शफीने लाहौरमें लीगकी एक पृथक् बैठक की और श्री जिना 'बैध' लीगका पथ-प्रदर्शनके लिए निर्बल बनाकर अलग छोड़ दिये गये । लाहौरमें जिस समय शफी लीगकी बैठक हो रही थी उसी समय दिसम्बर १९२७ में श्री जिना कलकत्तेमें अपनी लीगकी बैठक कर रहे थे ।
* अतुलानन्द चक्रवर्ती : 'काल इट पालिटिक्स', पृष्ठ ५७ । + वही, पृष्ठ ५९ ।
I के० बी० कृष्ण : 'दि प्राब्लेम आव माइनारिटीज, पृष्ठ ३०८।
साइमन कमीशनकी नियुक्तिद्वारा भारतीयोका जो अपमान किया गया था और लार्ड बर्केनहेडने भारतवासियोंको सभी भारतीयोके लिए ग्राह्य विधान बनानेकी जो चुनौती दी थी उसका परिणाम यह हुआ कि १९२८ के आरम्भमे कांग्रेस, अखिल भारतीय मुसलिम लीग तथा अन्य संस्थाओने मिलकर भारतके लिए एक विधान बनाया । उपर्युक्त प्रस्तावोके अनुसार सर्वदलीय सम्मेलन हुआ । उसने विधान निर्माणका कार्य आगे बढाया और तदुपरान्त यह कार्य एक कमेटीके सिपुर्द किया गया । पण्डित मोतीलाल नेहरू उक्त कमेटीके अध्यक्ष थे। उक्त कमेटीने 'नेहरू रिपोर्ट तैयार की । लखनऊमे सर्वदलीय सम्मेलनकी बैठक हुई जिसमें उक्त रिपोर्ट कुछ संशोधनोके साथ स्वीकृत हुई। दिसम्बर १९२८ मे कलकत्तेमें सभी दलोका एक संयुक्त अधिवेशन बुलाया गया जिसमे उक्त स्वीकृत रिपोर्ट पेश की गयी । इस बीच पर्दमे कुछ अन्य शक्तिया कार्य कर उठी थीं और अखिल भारतीय मुसलिम लीगके प्रतिनिधियोंके साथ मतभेद उत्पन्न हो चला था । मतभेद मुख्यतः इन तीन बातोपर अत्यधिक था - (१) केन्द्रीय असेम्बलीमें मुसलमान प्रतिनिधियोकी सख्या एक तिहाईसे कम न हो । (२) नेहरू रिपोर्टमे प्रस्तावित बालिग मताधिकार स्वीकृत न होनेपर पंजाब और बंगालमें आबादीके अनुपातसे स्थान मिले और दस वर्षके उपरान्त उसमे हेरफेर हो, (३) अवशिष्ट अधिकार प्रान्तों में रहे, केन्द्रमे नही । ये सारी बाते श्री जिनाने एक प्रस्तावके रूपमें अधिवेशनके सम्मुख उपस्थित की । इनपर इसी कार्यके लिए नियुक्त एक कमेटीमें बहुत देरतक विचार होता रहा परन्तु लोग किसी निर्णयपर न पहुंचे और अन्तमे अधिवेशनने इन्हें अस्वीकृत कर दिया । इसके बाद लीग व्यवहार्यतः अधिवेशनसे पृथक् हो गयी और कलकत्ते में होनेवाला उसका अधिवेशन इस स्थितिपर बादमे विचार करनेके लिए स्थगित कर दिया गया ।
लीगका वह दल जिसने पिछले वर्ष लाहौरमे अपना अधिवेशन किया था, अंबतक चुप नहीं बैठा था । उसने उस अधिवेशनमें कांग्रेसके मद्रासवाले अधिवेशनमें स्वीकृत प्रस्तावोंको अस्वीकार कर लाहौर अधिवेशनमें स्वीकृत सिद्धान्तों के आधार |
1dcd2404da56780a6ea94a5e5c4c1364aa62d7339da3d3be2e25b7bd0c86d470 | pdf | वडिवणाए फोसणं
६३८२. चादरपुढविषज० अट्ठावीमं पयडीणं सगपदवि० लोग० असंखे० भागो सव्वलोगो वा । णवरि इत्थि पुरिस० असंखे० भागवड - अवडि० लोग० असंख० मागो । एवं वादरआउ० तेउ० वाउ० बादरवणप्फ दिपत्तेयपञ्जनाणं । णवरि बादरवाउ०पज● लोग० संखे० भागो' सव्वलोगो वा । इत्थि- पुरिम० असंख० भागवड्ड अवडिदविह लोग० संखे० भागो' ।
इसलिए इनकी अपेक्षा म्पर्शन कुछकम आठवडे चांदह राजुप्रमाण कहा है। स्त्री और पुरुषवेद की तीन वृद्धियों और अवस्थितपद् स्वस्थानके समय, विहारादिके समय तथा वीं और नारकियोंके तिर्यों और मनुष्यों मे मारणान्तिक समुद्घातके समय भी सम्भव है, इसलिए इन प्रकृतियों के उक्त पढ़ोंकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और कुछ कम बारह बड़े चौदह राजुप्रमाण कहा है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चारवृद्धियाँ अवस्थित ओर अवक्तव्यपद स्वस्थानमे और विहारादिके समय ही सम्भव है, इमलिए इन दो प्रकृतियाके उक्त पढ़ोकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातव भागप्रमाण और कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। इन दो प्रकृतियोकी चार हानियोका स्पर्शन लोकके असंख्यातवे भागप्रमाण. कुछ कम आठ घंटे चांद्रह राजुप्रमाण और सब लोकप्रमाण है यह स्पष्ट ही है, क्योंकि ये चारों हानियाँ उर्दुलना में भी सम्भव होनसे उक्तप्रमाण म्पर्शन बन जाता है। यहाँ त्रस आदि अन्य जितनी मार्गणाएं गिनाई है उनमें यह व्यवस्था बन जाता है, इसलिए उनके कथनको पंचेन्द्रियद्विक के समान कहा है ।
६३८२ बार पृथिवीकायिक पर्याप्तकों में अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब पद स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी असंव्यातभागवृद्धि और अवस्थितका स्पर्शन लोकका असंख्यातवाँ भाग है। इसी प्रकार बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त और बादर वनम्पतिकायिक प्रत्येकडारीर पर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि बार वायुकायिक पर्याप्त जीवाने लोकका संख्यातवों भाग और सब लोकका स्पर्शन किया है तथा श्रीवेद और पुरुपवेदकी अमंग्यातभागवृद्धि और अवस्थितस्थितिविभक्तिवालाने लोकके संख्यातवे भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषाथ - बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवे भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण है । अतः यहा अट्टाईस प्रकृतियोंके जो पद सम्भव है उनका यह स्पर्शन बन जाता है, इसलिए वह उक्तप्रमाण कहा है। मात्र श्रीवेद और पुरुपवेदकी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितपढ़ इसके अपवाद है। बात यह है कि जो उक्त जीव नपुंसकोंमें मारणान्निक समुद्रात करते है उनके ये पढ़ नहीं होते, इसलिए इन दो प्रकृतियों के उक्त दो पदोकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातव भागप्रमाण कहा है। यहाँ अन्य जितनी मार्गणाएं गिनाई है उनमें यह व्यवस्था बन जाती है इसलिए उनमे वादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवोंके समान स्पर्शन कहा है । मात्र वादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोका म्पर्शन लोकके संख्यातवे भागप्रमाण और मत्र लोकप्रमाण होने से इनमे सब प्रकृतियों के सम्भव पढ़ोकी अपेक्षा यह स्पर्शन जानना चाहिए । किन्तु स्त्रीवेद और पुरुपवेदकी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितपदकी अपेक्षा यह स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण ही जानना चाहिए। कारण म्पष्ट ही है ।
१ ता० प्रतौ असंखे० भागो इति पाठ । २ ता० प्रती असं० भागो इति पाट; ।
६३८३, ओरालियमिस्स० छब्बीसं पयडीणं असंखे० भागवड-हाणि-अवडि० के० १ सव्बलोगो । दोवड्डि दोहाणि० केव० १ लोग० असंखे० भागो सव्वलोगो वा । इत्थि- पुरिस० दोवडि० लो० असंखे० भागो । सम्मत्त-सम्मामि० चदुहं हाणीणमोघं ।
६३८५. वेउव्विय० छब्बीसं पयडीणं असंखे० मागवडि-हाणि०-दोवडि-दोहाणि - अवद्वि० लो० असंखेजदिमागो अट्ठ- तेरहचो६० भागा वा देणा । णवरि इत्थि- पुरिस० तिण्णिवड्डि-अवडि० लोग० असंखे० भागो अट्ट- बारहचोद्द० देखणा । अणंताणु० चउक० असंखे० गुणहाणि० - अवत्तव्व० सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिखड्डि अवडि० अवत्तव्वं च अट्टचोद्दस० देसूणा । मम्मत्त-सम्मामि० सेसपदाणं लोग० असं०भागो अट्ठ-तेरह० देखणा । वेउव्वियमिम्स अट्ठावासं पयडीणं सच्चपदवि० लोग० असंखे० भागो ।
S३८३ औदारिकमिश्रकाययोगिया में छच्चीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितम्थितिविभक्तिवाले जीवान कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकका म्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानिवाल जीवाने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवं भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पर स्त्रीवेद और पुरुषवेद की दो वृद्धियोंका स्पर्शन लॉकका असंख्यातवो भाग है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानियांका स्पर्शन आंघके समान है ।
विशेष थ औदारिकमिश्रयोगी जीव सब लोकमे पाये जाते हैं, इसलिए इनमें छब्बीम प्रकृतियाँकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितपद्का स्पर्शन सत्र लोकप्रमाण कहा है। इनमें दो वृद्धि और दो हानियोका वर्तमान स्पर्शन तो लोकके असंख्यातव भागप्रमाण ही है. परन्तु अतीत स्पर्शन सब लोकप्रमाण बन जाता है. इसलिए यह लोकके असंख्यातव भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण कहा है । मात्र स्त्री और पुरुषवेदकी दो वृद्धियों न तो एकेन्द्रियों में सम्भव है और न नपुंसकामे मारणान्तिक समुद्रात करनेवालोंम सम्भव है. अन्यत्र यथायोग्य होती है. अत इन दो प्रकृतियों के उक्त पदांका स्पर्शन लोकके असंख्यातवे भागप्रमाण कहा है । शेप कथन स्पष्ट ही हूँ ।
३३८५. वैकियिककाययोगियों में छच्चीस प्रकृतियांकी असंख्यातभागवृद्धि असंख्यात भागहानि, दो वृद्धि, दो हानि और अवस्थिनस्थिनिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवे भाग और त्रस नालीके चौदह भागांमसे कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है । किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी तीन वृद्धि और अवस्थितका स्पर्शन लोकका असंख्यातवाँ भाग और त्रसनालांके चौदह भागांमेसे कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भाग है । अनन्तानुबन्धा चतुष्ककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यका तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्यका स्पर्शन त्रम नालांके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग है ता सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके शेप पदोका स्पर्शन लोकका असंख्यातवाँ भाग और त्रस नालीके चौदह भागोमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह भाग है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोमे अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब पढ़ स्थितिविभक्तिवाले जीवाने लोकके असंख्यातव भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषार्थ - वैक्रियिककायोगियों में स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी तीन वृद्धियों और अवस्थित पद स्वस्थानमे, विहारादिक समय तथा नारकियों और देवोके निर्यचां और मनुष्यांमे मारणान्तिक
वड्डिपरूवणाए पोसणं ।
६३८५, कम्मइय० छब्बीसं पयडीणमसंखे० भागवडि-हाणि-अवट्टि० केव० १ सव्वलोगो । दोवड्डि-दोहाणि० केव० १ लो० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । णवरि इत्थि- पुरिस० दोवडि० लोग० असंखे • भागो बारहचोद्दस देसूणा । सम्मत्त-सम्मामि० ओघं । णवरि पदविसेसो णायव्वो । एत्रमणाहारीणं ।
९३८६. आहार-आहार मिस्स• सव्वपयडीणं सव्वपदवि० लोग० असंखे० भागो । एवमवगद० - अकसा० - मणपज० - संजद०-सामाइय- छेदो०परिहार० सुहुमसांप० - जहाक्खादसंजदे चि ।
समुद्रात के समय सम्भव होनेसे इन प्रकृतियोंके उक्त पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और कुछ कम बारह बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है । अनन्तानुवन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यपद तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धियों, अवस्थित और अवक्तव्यपद मारणान्तिक समुद्घात आदिके समय सम्भव नहीं है, इसलिए इनका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। सब प्रकृतियोंके शेप पदोंका स्पर्शन वैक्रियिककाययोगके समान ही है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इसमें सब प्रकृतियोंके सव पदोंका म्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है ।
६३८५ कार्मणकाययोगियों में छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवाने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। दो वृद्धि और दो हानिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी दो वृद्धियोंका स्पर्श लोकका असंख्यातवाँ भागप्रमाण और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम बारह भागप्रमाण है तथा सम्यक्त्व ओर सम्यग्मिथ्यात्वका स्पर्श ओघके समान है। किन्तु पद विशेष जानना चाहिये । इसी प्रकार अनाहारकोंके जानना चाहिए ।
विशेषार्थ - कार्मणकाययोगका स्पर्शन सब लोकप्रमाण है, इसलिए इसमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित पदका स्पर्शन उक्तप्रमाण कहा है। इन प्रकृतियोंकी दो वृद्धि और दो हानिमेंसे यथासम्भव द्वीन्द्रियादिक जीवोंके वृद्धियाँ और काण्डक घातके साथ संज्ञियोंके एकेन्द्रियादिकमें उत्पन्न होनेपर हानियाँ होती हैं। ऐसे जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सब लोकप्रमाण होने से यह उक्तप्रमाण कहा है । मात्र स्त्रीवेद और पुरुपवेदकी दो वृद्धियाँ जो स्त्रीवेदी और पुरुषवेदियोंमे उत्पन्न होते हैं उन्हींके यथासम्भव होती है, अतः इनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और कुछ कम बारह बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है ।
६३८६ आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियों में सब प्रकृतियोंके सब पदस्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार अपगतवेदी, अकषायी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत और यथाख्यातसंयत जीवोंके जानना चाहिए ।
[ दिविती ३
६ ३८७, इत्थिवेद० छब्बीसं पयडीणम संखे० भागवड्डि-हाणि० [ संखेजभागवड्डिहाणि - ] संखे० गुणवड्डि-हाणि अवडि० लोग० असंखे० भागो अट्टचोद्दम० देखणा सव्वलोगो वा । णवरि इत्थि- पुरिस० तिण्णिवड्डि-अवडि० लोग० असंखे०भागो अट्ठचोद्द० भागा वा देखणा । सव्वकम्माणमसंखे० गुणहाणि • लो० असंखे • मागो । अणंताणु००
चउक० असंखे० गुणहाणि-अवत्तव्व लो० असंखे० भागो अट्टचो६० देसूणा ।
सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिखड्डि-अवडि० अवत्तव्व० केव० १ लो० असंखे० भागो - अचोद० देसूणा । चत्तारिहाणि० लोग० असंखे० भागो अट्टचोद० सन्चलोगो वा । पुरिसवेदे इत्थिवेदभंगो ।
विशेषार्थ- आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इनमें सत्र प्रकृतियोंके सब पदोंका स्पर्शन उक्तप्रमाण कहा है । यहाँ अपगतवेदी आदि अन्य जितनी मार्गणाऐ गिनाई है उनमें इसीप्रकार स्पर्शन घटित होता है, इसलिए उनके कथनको आहारककाययोगी द्विकके समान जाननेकी सूचना की है।
६३८७ स्त्रीवेदियों में छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंन्यातभागहानि, संख्यात भागवृद्धि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणवृद्धि, संख्यातगुणहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग, त्रसनाली के चौदह भागोंमसे कुछ कम आठ भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि कहीवेद और पुरुपवेदकी तीन वृद्धि और अवस्थितका स्पर्श लोकका असंख्यातवाँ भाग और त्रसनालीके चौदह भागोमेसे कुछ कम आठ भाग है । तथा सत्र कर्माकी असंख्यातगुणहानिका म्पर्श लोकका असंख्यातवा भाग और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यपदका स्पर्श लोकका असंख्यातवाँ भाग और त्रसनालीके चौदह भागांमसे कुछ कम आठ भाग है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको चारवृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले जीवाने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और चसनाली के चौदह भेदोमंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । चार हानिवाले जीवाने लोकके असंख्यातव भागप्रमाण, बसनालीके चौदह भागांमसे कुछ कम आठ भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। पुरुपवेदियों में स्त्रीवेदियांके समान भंग है ।
विशेषार्थ - स्त्रीवेदियोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और सब लोकप्रमाण है। इन सब स्पर्शनों के समय छब्बीस प्रकृतियांकी तीन वृद्धियाँ, तीन हानियों और अवस्थितपद सम्भव हैं, इसलिए यह स्पर्शन उक्तप्रमाण कहा है । मात्र स्त्रीवेद और पुरुपवेदकी तान वृद्धियों और अवस्थित पदका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ओर अनोत स्पर्शन कुछ कम आठ वटे चौदह राजुप्रमाण है। यहाँ उपपाद पदकी विवक्षा नहीं होनसे अन्य स्पर्शन नहीं कहा है। अनन्तानुवन्धाचतुष्क के सिवा पूर्वोक्त बाईस प्रकृतियों की असंख्यातगुणहानि उनकी क्षपणा के समय होती है, इसलिए इसकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातव भागप्रमाण कहा है। तथा अनन्तानुबन्धाचतुष्ककी असंख्यातगुणहान और अवक्तव्य पद की अपेक्षा वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवे भागप्रमाण है, क्योंकि चारों गनिके संज्ञी पञ्चेन्द्रिय सम्यग्दृष्टि जीव इसकी विसंयोजना करते है और ऐसे
वढिपरूणाए पोसणं
६३८८, मदि- सुदअण्णाणी० छब्बीसं पयडीणमसंखे० भागवडि-हाणि अवट्टि० केब• पो० १ सव्वलोगो । दोवड्ड- दोहाणि० केव० पो० १ लो० असंखे० भागो अट्ठचोदस● सव्वलोगो वा । णवरि इत्थि पुरिस० दोवडि० लोग० असंखे० भागो अट्ट-बारह चोद्द देसूण । सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिहाणि० लोग० असंखे० भागो अट्टचोद्दस• सव्वलोगो वा ।
६ ३८९. विहंगणाणी• छब्बीसं पयडीणं तिण्णिवडि-तिण्णिहाणि अवडि० लोग० असंखे०भागो अट्टचो६० सव्वलोगो वा । णवरि इत्थि पुरिस० तिण्णिवड्डि - अवट्टि •
जीवोंने अतीत कालमें कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है, इसलिए यह उक्त प्रमाण कहा है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्य पद सम्यग्दृष्टि होते समय होते है, अतः इनकी अपेक्षा वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातव भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ वटे चौदह राजुप्रमाण कहा है । तथा इन दोनों प्रकृतियोंकी चार हानियाँ एकेन्द्रियादि सबके सम्भव हैं, इसलिए इनकी अपेक्षा म्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ घंटे चौदह राजप्रमाण और सब लोकप्रमाण कहा है। पुरुपवेदियोंमें स्त्रीवेदियोके समान स्पर्शन बन जाता है, अतः उनका भङ्ग स्त्रीवेदियोंके समान जाननेकी सूचना की है।
६३८८ मत्यज्ञानी और ताज्ञानी जीवाम छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। दो वृद्धि और दो हानिवाले जीवाने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग, वसनालीक चौदह भागामेसे कुछ कम आठ भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुपवेदकी दो वृद्धिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह भागोमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानिवाले जीवाने लोकके असंख्यातव भाग, त्रसनालीके चौदह भागोमेसे कुछ कम आठ भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है ।
विशोषार्थ- मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंका सब लोकप्रमाण स्पर्शन होनसे इनमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितपदकी अपेक्षा स्पर्शन सब लोकप्रमाण कहा है । तथा इनकी दो वृद्धियों और दो हानियांका प्रारम्भ क्रमसे द्वीन्द्रियादि और संज्ञी पश्चेन्द्रिय करते है और ऐसे जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातव भागप्रमाण, विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और मारणान्तिक व उपपाद पदकी अपेक्षा सब लोक प्रमाण होनेसे यह स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। दो हानियाँ एकेन्द्रियों मे भी सम्भव है, इसलिए भी सब लोक प्रमाण स्पर्शन बन जाता है। नारकियोंके तिर्यवां और मनुष्यों में मारणान्तिक समुद्घात और उपपादपदके समय तथा देवांके स्वस्थान विहारादिके समय स्त्रीवेद और पुरुषवेदका बन्ध सम्भव है और इनका यह सम्मिलित स्पर्शन कुछ कम बारहबढे चौदह राजु प्रमाण है, अतः स्त्रीवेद और पुरुषवेदका दो वृद्धियोंका स्पर्शन कुछ कम बारह बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है, क्योंकि उसका पहले अनेक बार स्पष्टीकरण कर आये हैं।
६३८९. विभंगज्ञानियोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितस्थितिविभक्तिवाले जीवॉन लोकके असंख्यातव भाग और त्रसनालीके चौदह भागांमसे कुछ कम आठ
लोग० असंखे० भागो अट्ठ- बारहचोदस० देसूणा । सम्मत्त-सम्मामि० चत्तारिहाणि लोग० असंखे० भागो अट्टचो६० सव्वलोगो वा ।
६३९० आभिणि० सुद० - ओहि ० छब्बीसं पयडीणं असंखे० भागहाणि-संखे०भागहाणि-संखे० गुणहाणि● लोग० असंखे० मागो अट्टचो६० देसूणा । असंखे ० गुणहा० लोग० असंखे० भागो । णवरि अनंताणु० चउक० असंखे० गुणहाणि० अट्ठचोद्दसभागा देखणा । सम्मत्त-सम्मामि० असंखे० भागहाणि-संखे० भागहाणि संखे० गुणहाणि० लोग ० असंखे० भागो अट्ठचोद० देखणा । असंखे० गुणहाणि● लोग० असंखे०भागो । एवमोहिदंस० सुकले० सम्मादिहि त्ति । णवरि सुकले० उचोद्दस० देखणा । सम्मत्त सम्मामि० अवट्टिद० खेत्तभंगो । चत्तारिवड्ढि अवत्तव्त्र० अणंताणु० चउक० अवत्तव्व० लोग० असंखे० भागो छचोहसभागा वा देखणा ।
भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेद्की तीन वृद्धि और अवस्थितविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों मेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार हानिवाले जीवाने लोकके असंख्यातव भाग, त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है ।
विशेषार्थ - विभङ्गज्ञानी जीव वर्तमानमें सब लोकमें नहीं पाये जाते, क्योंकि संज्ञी पञ्चेन्द्रियोंमें ही कुछके यह ज्ञान होता है, इसलिए इनमें छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितपदकी अपेक्षा वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम आठबटे चौदह राजु और सब लोकप्रमाण कहा है। शेष सब विचार मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंके समान कर लेना चाहिए । मात्र यहाँ सब लोकप्रमाण स्पर्शन मारणान्तिक समुद्धातके समय कहना चाहिए ।
६३९०. अभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोमे छब्बीस प्रकृतियांकी असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिवाले जीवोन लोकके असंख्यातवें भाग और बसनालीके चौदह भागोमेंसे कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। असंख्यातगुणहा निवाले जीवोंने लोकके असंख्यातव भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। किन्तु विशेषता यह है कि अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी असंख्यातगुणहा निवालोंका स्पर्श त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिवाले जीवोने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेसे कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। असंख्यातगुणहानिवाले जीवाने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले, शुक्ललेश्या वाले और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि शुक्ललेश्यावालोंने त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितस्थितिविभक्तिका भंग क्षेत्रके समान है। चार वृद्धि और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवालोंने तथा अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनाली के चौदह भागों मे से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
वड्ढपरूवणाए पोसणं
६ ३९९, संजदासंजद • अट्ठावीसं पयडीणमसंखे० भागहाणि वि० लोग० असं०भागो छचोद्दस० देखणा । संखे० भागहाणि० लोग० असंखे० भागो । मिच्छत्त-सम्मत्तसम्मामि० अणंताणु० चउक्क० संखे० गुणहाणि असंखे० गुणहाणि० लोग० असंखे० भागो ।
६ ३९२ किण्ण णील-काउ• छब्बीसं पयडीणमसंखे • मागवड-हाणि० अवट्टि ० के० १ सव्वलोगो । दोवडि-दोहाणिवि० केव० १ लो० असंखे० मागो सव्वलोगो वा । अणताणु ० चउक० असंखे ० गुणहाणि-अवत्तव्व० लो० असंखे० भागो । इत्थि पुरिस० दोवड्डि ० लोग० असंखे० भागो वे-चत्तारि-छचोहसमागा वा देसूणा । सम्सत्त-सम्मामि० चत्तारिविशेषार्थ - आभिनिबोधिकज्ञानी आदि तीन ज्ञानियों में अनन्तानुबन्धीचतुष्कके सिवा सब प्रकृतियों की असंख्यातगुणहानि क्षपणाके समय होती है, इसलिए इसकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। शेष सब स्पर्शन इन मार्गणाओं के स्पर्शनके समान घटित होनेसे वह उक्तप्रमाण कहा है। यहाँ अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले और सम्यग्दृष्टि ये तीन मार्गणाएं गिनाई है उनमे यह प्ररूपणा अविकल घटित हो जाती है, इसलिए उनके कथनको आभिनिबोधिकज्ञानी आदिके समान कहा है । मात्र शुक्ललेश्याका अतीत स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजु प्रमाण होनसे इसमें कुछ कम आठ बढे चौदह राजुप्रमाण स्पर्शनके स्थानमें यह स्पर्शन जानना चाहिए। साथ ही शुक्ललेश्या में अनन्तानुवन्धीचतुष्क, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जो अतिरिक्त पद होते है जो कि पूर्वोक्त मार्गणाओंमें सम्भव नहीं उनका मूलमें कहे अनुसार स्पर्शन अलगसे घटित कर लेना चाहिए । कोई वक्तव्य न होनेसे यहाँ हमने उसका अलगसे स्पष्टीकरण नहीं किया है ।
६३९१. संयतासंयतो अट्ठाईस प्रकृतियांकी असंख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवे भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमसे कुछ कम छह भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। संख्यातभागानिवाले जीवान लोकके असंख्यातव भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्क की संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहा निवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवे भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषार्थ - संयतासंयतोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजुप्रमाण है। अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिकी स्पर्शन बन जाता है, अतः यह उक्तप्रमाण कहा है । पर इन प्रकृतियांकी यथासम्भव शेष हानियोंकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही स्पर्शन प्राप्त होता है, अतः यह उक्तप्रमाण कहा है। कारण स्पष्ट है ।
६३९२. कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावालोंमे छब्बीस प्रकृतियांकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानि स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातव भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असख्यातगुणहानि और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी दो वृद्धिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग
जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
वड्डि-अवडि ० अवत्तव्व० लोग० असंखे० मागो । चत्तारिहाणि० लोग० सव्वलोगो वा ।
[विदिविहत्ती ३ असंखे० भागो
६ ३६३. तेउ० छब्बीसं पयडीणमसंखे० भागवड्डि-हाणि-संखे ० भागवड-हाणि - संखेज्जगुणवड्ड-हाणि-अर्वाट्ट० लोग० असंखे० भागो अट्ट- णवचोद्दस० देरणा । णवरि इत्थि- पुरिस० तिष्णिवड अवडि० लोग० असंखे० भागो अट्टचोद्दसभागा वा देखूणा । अणंताणु० चउक० असंखे० गुणहाणि-अवत्तव्य● लोग० असंखे० भागो अट्ठचोद्दस देसूणा । मिच्छत्त० असंखे० गुणहाणि वि० लोगस्स असंखे० भागो । सम्मत्त-सम्मामि०
तथा त्रसनालीके चौदह भागांमसे क्रमसे कुछ कम दो, कुछ कम चार और कुछ कम छह भोग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले जीवान लोकके असंख्यातव भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा चार हानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवे भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषार्थ -- कृष्णादि तीन लेग्याओं का वर्तमान स्पर्शन सर्वलोकप्रमाण है। यहाँ छन्चोस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि असंख्यातभागहानि और अवस्थितपदकी अपेक्षा यह स्पर्शन बन जाता है, अतः यह उक्त प्रमाण कहा है । मात्र इन प्रकृतियोकी दो वृद्धियों और दो हानियोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातव भागप्रमाण होकर भी अतीत स्पर्शन सव लोकप्रमाण है, इसलिए यह उक्त प्रमाण कहा है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यपद संज्ञी पचन्द्रियांके ही होते है और ये पद मारणान्तिक समुद्रात आदिके समय नहीं होतं, अतः इनकी अपेक्षा लोकके असंख्यातव भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। स्त्रीवेद और पुरुपवेदकी दो वृद्धियाँ द्वीन्द्रियादिकके ही होती हैं जिनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यात भागनमाण है तथा स्त्रीवेदी और पुरुपवेदियों मे कृष्णादि लेग्यावालोंका मारणान्तिक समुद्रात द्वारा स्पर्शन कुछ कम छह् बटे चौदह राजु, कुछ कम चार बटे चौदह राजु और कुछ कम दो बटे चौदह राजुप्रमाण है, अतः यह स्पर्शन उक्तप्रमाण कहा है । इन लेश्याओंगे सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धियाँ अवस्थित और अवक्तव्यपद सम्यक्त्व के समय होते है और ऐसे जीवांका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, अतः यह उक्तप्रमाण कहा है। तथा इनकी चारो हानियाँ किसीके भी सम्भव है, इसलिए इनकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण कहा है ।
६ ३९३ पीतलेश्यावालों में छब्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणवृद्धि, संख्यातगुणहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोन लोकके असंख्यातवे भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेद की तीन वृद्धि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवालांन लोकके असंख्यातव भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवालोन लोकके असंख्यातव भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानि स्थितिविभक्तिवाले जीवाने लोकके असंख्यातव भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है।
व ड्डिपरूवणाए पोसणं
चत्तारिखड्डि-अवडि० ६० अवत्तव्व० लोग० असंखे० भागो अट्टचोदस दे० । चत्तारिहाणि ● लोग० असंखे० भागो अट्ट-पत्रचोदस० दे० ' एवं पम्म० । णवरि णवचोद्दसभागा पत्थि ।
६ ३६४. अभवसिद्धि० छब्बीसं पयडीणं असंखे० भागवड - हाणि० - अवडि० सव्वलोगो । दोवडि-दोहाणि० केव० १ लोग० असंखे० भागो अट्टचोदस० सव्वलोगो वा । इत्थि- पुरस० दोवड्ड० लोग० असंखे० भागो अह-बारह० चोइसभागा वा देसूणा ।
सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवे भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा वार हानिवाले जीवोन लोकके असंख्यातवे भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार पद्मलेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम नौ भागप्रमाण पश नहीं है।
विशेषार्थ - पीनलेश्याका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ घंटे चौदह राजमाण और मारणान्तिक समुद्रातकी अपेक्षा कुछ कम नौ बटे चौदह राजुप्रमाण है। यहाँ छवीन प्रकृतियांकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदकी अपेक्षा यह् पर्जन बन जाना है, अतः यह उक्तप्रमाण कहा है । मात्र स्त्रीवेद और पुरुपवेदकी तीन वृद्धि और अवस्थित पदकी अपेक्षा कुछ कम नौ बटे चौदह राजप्रमाण स्पर्शन नहीं बनता, क्योंकि एकेन्द्रियोंमे मारणान्तिक समुद्रात करनेवाले इन जीवाके इन दो प्रकृतियांका बन्ध न होनेसे वहाँ इनकी तीन वृद्धियाँ और अवस्थान सम्भव नहीं, इसलिए इन दो प्रकृतियाके उक्त पदोकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यात भागप्रमाण और कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है । इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुककी असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यपदकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवे भागप्रमाग और कुछ कम आठ वटे चौदह राजुप्रमाण घटित कर लेना चाहिए । मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानि क्षपणाके समय ही होती है, इसलिए यहाँ इसकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यात भागप्रमाण कहा है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, अवस्थित और अवक्तव्यपदकी अपेक्षा स्पर्शन जो मूलमें कहा है उसका स्पष्टीकरण अनन्तानुबन्धोकी असंख्यातगुणहानिके स्पर्शनके समान कर लेना चाहिए, क्योंकि दोनोंका स्पर्शन एक समान है। इन दो प्रकृतियाका चार हानियाँ एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्रातके समय भी होती हैं, इसलिए इनकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और सच लोकप्रनाग कता है। पझलेश्यामे कुछ कम नौ बटे चौदह राजप्रमाण स्पर्शन नहीं है, क्योंकि वे एकेन्द्रियामे मारणान्तिक समुद्घात नहीं करते । शेप सब कथन पीतलेश्या के समान है ।
६३९४. अव्यों की प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने सब लोकका स्पर्श किया है। दो वृद्धि और दो हानिवाले जीवाने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातव भाग और त्रसनाली के चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भागप्रमाण और सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी दो वृद्धिवाले जीवोन लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनाली के चौदह भागों में से कुछ कम
६ ३९५. वेदगसम्मादिट्ठीसु अठ्ठावीसपयडीणम संखे • मागहाणि - संखे० भागहाणिसंखे० गुणहाणि० लोग० असंखे० भागो अट्ठ चोद० देखणा । मिच्छच-सम्मत्त-सम्मामि० असंखे० गुणहाणि० लोग० असंखे० भागो । अणंताणु० चउक० असंखे० गुणहाणि ● लोग० असंखे० मागो अट्ठचोइस० देखणा ।
९ ३९६. खइयसम्माइडी० एकवीसपयडीणमसंखेज्जभागहाणि० लोग० असंखे ०भागो अट्ठचोद्द० देखणा । संखेज्जमागहाणि-संखेज्जगुणहाणि असंखेज्जगुणहाणि ● लोग० असंखेज्जदिभागो ।
आठ और कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है ।
विशेषार्थ- -अभव्योंका वर्तमान स्पर्शन सर्व लोक है, अतः इनमें छब्बीस प्रकृतियों की असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितपदकी अपेक्षा स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण कहा है। इनकी दो वृद्धि और दो हानिवाले जीवाने वर्तमानमें लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और अन्य प्रकारसे सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है, इसलिए यह स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है ।
६ ३९५ वेदकसम्यग्दृष्टियों में अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानि स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनाली के चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुगहा निवालोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है ।
विशेषार्थ - वेदकसम्यग्दृष्टियोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण स्पर्शन है। इनमें अट्टाईस प्रकृतियोंकी तीन हानियोंकी अपेक्षा और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानिकी अपेक्षा यह स्पर्शन बन जाता है, अतः यह उक्त प्रमाण कहा है। पर इनमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वकी असंख्यातगुणहानि क्षपणाके समय होती है, अतः इसकी अपेक्षा स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है ।
§ ३९६ क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में इक्कीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि स्थितिविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहा निवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषार्थ-- क्षायिकसम्यक्त्वका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण है। इनमें इक्कीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिकी अपेक्षा यह स्पर्शन वन जाता है, अतः वह उक्त प्रमाण कहा है। इनमें इन प्रकृतियों की शेष हानियाँ क्षपणाके समय होती हैं, अतः उनकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शन कहा है।
वड्डिपरूवणाए पोसणं
९३९७ उवसमसम्मा० अट्ठावीसं पयडीणमसंखेज्जभागहाणि-संखेज्जभागहाणि ● अणंताणु० चउक० संखेज्जगुणहाणि असंखेज्जगुणहाणि० लोग० असंखेज्जदिभागो अट्ठ चोद्दस० देसूणा । सम्मामि० अट्ठावीसं पयडीणमसंखेज्जभागहाणि-संखेज्जभागहाणिसंखेज्जगुणहाणि● लोग० असंखेज्जदिभागो चोद देणा ।
६३९८ सासणसम्माइट्ठी० अट्ठावीसं पयडीणमसंखेज्जभागहाणि • लोग० असंखेज्जदिभागो अट्ट बारहचोद्द० देसूणा ।
छब्बीसं पयडीणमसंखेज्ज भागवडि-हाणि० अवट्टि० सव्वलोगो । 'दोवडि-दोहाणि० केव० १ लोग० असंखेज्जदिमागो अट्टचोद्दस० देखणा सव्वलोगो वा । णवरि इत्थि- पुरिस० दोवडि० लोग० असंखेज्ज दिमागो अट्ठ-बारहचोद्द०
१३९७. उपशमसम्यग्दृष्ट्रियामं अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानि और संख्यात भागहानिवाले जीवोन तथा अनन्तानुबन्धीचतुककी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानिवाले जीवोन लोकके असंख्यात भाग और त्रमनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिध्यादृष्टियोमे अट्ठाईस प्रकृतियांकी असंख्यातभागहानि, संख्यात भागहानि और संख्यानगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातत्रे भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेपार्थ - उपशमसम्यग्दृष्टियों में वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और विहारादिकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण है। इनमें अट्ठाई प्रकृतियों के यथासम्भव पदोंकी अपेक्षा यह स्पर्शन बन जाता है, अतः वह उक्त प्रमाण कहा है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यावृष्टियोंमे स्पर्शन घटित कर लेना चाहिए ।
३९८ सासादनसम्यग्दृष्ट्रियों में अट्ठाईस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और बसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषार्थ - मासादनसम्यक्त्वमें अट्ठाईस प्रकृतियों की एक असंख्यातभागहानि होती है और वह सासादनसम्यष्टियोंकी सब अवस्थाओं में सम्भव है, अतः यहाँ इस पदकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवे भागप्रमाण, कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण और कुछ कम बारह घंटे चौदह राजप्रमाण म्पर्शन कहा है।
६ ३९९. मिथ्याष्ट्रियोंमे छन्बीस प्रकृतियोंकी असंख्यातभागवृद्धि; असंख्यातभागहानि और अवस्थित स्थितिविभक्तिकालीन सब लोकका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानिवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवे भाग, त्रसनाली के चौदह भागोंमेसे कुछ कम आठ भाग और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। किन्तु इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी दो वृद्धिवाले जीवान लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ और कुछ कम चारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मि१ ता.श्रा.प्रत्यो· सव्वलोग वा । दोङ्ग इति पाट । |
241b01f6f4eca0356fcc1daf534afd0b79e0ad1e | web | 'पद्मावत' हिंदी के सर्वोत्तम प्रबंधकाव्यों में है। ठेठ अवधी भाषा के माधुर्य और भावों की गंभीरता की दृष्टि से यह काव्य निराला है। पर खेद के साथ कहना पड़ता है कि इसके पठनपाठन का मार्ग कठिनाइयों के कारण अब तक बंद सा रहा। एक तो इसकी भाषा पुरानी और ठेठ अवधी, दूसरे भाव भी गूढ़, अतः किसी शुद्ध अच्छे संस्करण के बिना इसके अध्ययन का प्रयास कोई कर भी कैसे सकता था ? पर इसका अध्ययन हिंदी साहित्य की जानकारी के लिए कितना आवश्यक है, यह इसी से अनुमान किया जा सकता है कि इसी के ढाँचे पर 34 वर्ष पीछे गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने लोकप्रसिद्ध ग्रंथ 'रामचरितमानस' की रचना की। यही अवधी भाषा और चौपाई दोहे का क्रम दोनों में है, जो आख्यानकाव्यों के लिए हिंदी में संभवतः पहले से चला आता रहा हो। कुछ शब्द ऐसे हैं जिनका प्रयोग जायसी और तुलसी को छोड़ और किसी कवि ने नहीं किया है। तुलसी के भाषा के स्वरूप को पूर्णतया समझने के लिए जायसी की भाषा का अध्ययन आवश्यक है।
इस ग्रंथ के चार संस्करण मेरे देखने में आए हैं - एक नवलकिशोर प्रेस का, दूसरा पं. रामजसन मिश्र संपादित काशी के चंद्रप्रभा प्रेस का, तीसरा कानपुर के किसी पुराने प्रेस का फारसी अक्षरों में और म. प. पं. सुधाकर द्विवेदी और डॉक्टर ग्रियर्सन संपादित एशियाटिक सोसाइटी का जो पूरा नहीं, तृतीयांश मात्र है।
'फेरत नैन चेरि सौ छूटी। भइ कूटन कुटनी तस कूटी' । इसका ठीक अर्थ यह है कि पद्मावती के दृष्टि फेरते ही सौ दासियाँ छूटीं और उस कुटनी को खूब मारा। पर 'चेरि' को 'चीर' समझकर इसका यह अर्थ किया गया है - 'अगर वह ऑंखें फेर के देखे तो तेरा लहँगा खुल पड़े और जैसी कुटनी है, वैसा ही तुझको कूटे'।
'गढ़ सौंपा बादल, कहँ, गए टिकठि बसि देव' । ठीक अर्थ - चित्तौरगढ़ बादल को सौंपा और टिकठी या अरथी पर बस कर राजा (परलोक) गए।
कानपुर की प्रति में इसका अर्थ इस प्रकार किया गया है - 'किलअ बादल को सौंपा गया और बासदेव सिधारे"। बस इन्हीं नमूनों से अर्थ का और अर्थ करनेवाले का अन्दाज कर लीजिए। अब रहा चौथा, सुधारक जी और डॉक्टर ग्रियर्सन साहब वाला भड़कीला संस्करण। इसमें सुधारक जी की बड़ी लंबी चौड़ी टीका टिप्पणी लगी हुई है; पर दुर्भाग्य से या सौभाग्य से 'पद्मावत' के तृतीयांश तक ही यह संस्करण पहुँचा। इसकी तड़क भड़क का तो कहना ही क्या है। शब्दार्थ, टीका और इधर उधर के किस्सों और कहानियों से इसका डीलडौल बहुत बड़ा हो गया है। पर टिप्पणियाँ अधिकतर अशुद्ध और टीका स्थान स्थान पर भ्रमपूर्ण है। सुधारक जी में एक गुण यह सुना जाता है कि यदि कोई उनके पास कोई कविता अर्थ पूछने के लिए ले जाता तो वह विमुख नहीं लौटता था। वे खींच तान कर कुछ न कुछ अर्थ लगा ही देते थे। बस, इसी गुण से इस टीका में भी काम लिया गया है। शब्दार्थ में कहीं यह नहीं स्वीकार किया गया है कि इस शब्द से टीकाकार परिचित नहीं। सब शब्दों का कुछ न कुछ अर्थ मौजूद है, चाहे वह अर्थ ठीक हो या न हो। शब्दार्थ के कुछ नमूने देखिए - 1. ताईं = तिन्हें (कीन्ह खंभ दुइ जग के ताईं)। 2. आछहि =अच्छा (बिरिछ जो आछहि चंदन पासा)। 3. ऍंबरउर =आम्रराज, अच्छे जाति का आम या अमरावती। 4. सारउ =सास, दूर्वा, दूब (सारिउ सुआ जो रहचह करहीं)। 5. खड़वानी =गडुवा, झारी। 6. अहूठ = अनुत्थ, न उठने योग्य। 7. कनक कचोरी =कनिक या आटे की कचौड़ी। 8. करसी = कर्षित की, खिंचवाई (सिर करवत, तन करसी बहुत सीझ तेहि आस)।
कहीं - कहीं अर्थ ठीक बैठाने के लिए पाठ भी विकृत कर दिया गया है, जैसे, 'कतहु चिरहटा पंखिन्ह लावा' का 'कतहु छरहठा पेखन्ह लावा' कर दिया गया है और 'छरहटा' का अर्थ किया गया है 'क्षार लगानेवाले' 'नकल करनेवाले'। जहाँ 'गथ' शब्द आया है (जिसे हिंदी कविता का साधारण ज्ञान रखनेवाले भी जानते हैं) वहाँ 'गंठि' कर दिया गया है। इसी प्रकार 'अरकाना' (अटकाने दौलत अर्थात् सरदार या उमरा) 'अरगाना' कर के 'अलग होना' अर्थ किया गया है।
स्थान स्थान पर शब्दों की व्युत्पत्ति भी दी हुई मिलती है जिसका न दिया जाना ही अच्छा था। उदाहरण के लिए दो शब्द ही काफी है - पउनारि - पयोनाली, कमल की डंडी।
अहुठ - अनुत्थ, न उठने योग्य।
प्रा. अज्हुट्ठ, अहवे =हिं. अहुठ (साढ़े तीन, 'हूँठा' शब्द इसी से बना है)।
शब्दार्थों से ही टीका का अनुमान भी किया जा सकता है, फिर भी मनोरंजन के लिए कुछ पद्यों की टीका नीचे दी जाती है - 1. अहुठ हाथ तन सरवर, हिया कवल तेहि माँझ।
सुधाकरी अर्थ - राजा कहता है कि (मेरा) हाथ तो अहुठ अर्थात् शक्ति के लग जाने से सामर्थ्यहीन हो कर बेकाम हो गया और (मेरा) तनु सरोवर है जिसके हृदय मध्यह अर्थात् बीच में कमल अर्थात् पद्मावती बसी हुई है। ठीक अर्थ - साढ़े तीन हाथ का शरीर रूपी सरोवर है जिसके मध्य में हृदय रूपी कमल है।
2. हिया थार कुच कंचन लारू। कनक कचोरि उठे जनु चारू।
सुधाकरी अर्थ - हृदय थार में कुच कंचन का लड्डू है। (अथवा) जानों बल कर के कनिक (आटे) की कचौरी उठती है अर्थात् फूल रही है (चक्राकार उठते हुए स्तन कराही में फूलती हुई बदामी रंग की, कचौरी से जान पड़ते हैं)। ठीक अर्थ - मानो सोने के सुंदर कटोरे उठे हुए (औंधे) हैं।
1. एक शब्द 'अध्युसष्ट ' भी मिलता है पर वह केवल प्राकृत 'अवझुट्ठ' की व्युत्पत्ति के लिए गढ़ा हुआ जान पड़ता है।
3. धानुक आप, बेझ जग कीन्हा। 'बेझ का अर्थ ज्ञात न होने के कारण आपने 'बोझ' पाठ कर दिया और इस प्रकार टीका कर दी - सुधाकरी अर्थ - आप धानुक अर्थात् अहेरी हो कर जग (के प्राणी) के बोझ कर लिया अर्थात् जगत के प्राणियों को भ्रूधनु और कटाक्षबाण से मार कर उन प्राणियों का बोझा अर्थात् ढेर कर दिया।
ठीक अर्थ - आप धनुर्धर हैं और सारे जगत को वेध्य सा लक्ष्य किया है।
4. नैहर चाह न पाउब जहाँ। सुधाकरी अर्थ - जहाँ हम लोग नैहर (जाने) की इच्छा (तक) न करने पावेंगी। ('पाउब' के स्थान पर 'पाउबि' पाठ रखा गया है, शायद स्त्रीलिंग के विचार से। पर अवधी में उत्तमपुरुष बहुवचन में स्त्री. पुं. दोनों में एक ही रूप रहता है)। ठीक अर्थ - जहाँ नैहर (मायके) के खबर तक हम न पाएँगी।
5. चलौं पउनि सब गोहने फूल डार लेइ हाथ।
सुधाकरी अर्थ - सब हवा ऐसी या पवित्र हाथ में फूलों की डालियाँ ले ले कर चलीं।
ठीक अर्थ - सब पौनी (इनाम आदि पानेवाली) प्रजा - नाइन, बारिन आदि - फूलों की डालियाँ ले कर साथ चलीं।
इसी प्रकार की भूलों से टीका भरी हुई है। टीका का नाम रखा गया है 'सुधाकर - चंद्रिका'। पर यह चंद्रिका है कि घोर अंधकार? अच्छा हुआ कि एशियाटिक सोसाइटी ने थोड़ा-सा निकाल कर ही छोड़ दिया।
सारांश यह कि इस प्राचीन मनोहर ग्रंथ का कोई अच्छा संस्करण अब तक न था और हिंदी प्रेमियों की रुचि अपने साहित्य के सम्यक् अध्ययन की ओर दिन-दिन बढ़ रही थी। आठ नौ वर्ष हुए, काशी नागरीप्रचारिणी सभा ने अपनी 'मनोरंजन पुस्तकमाला' के लिए मुझसे 'पद्मावत' का एक संक्षिप्त संस्करण शब्दार्थ और टिप्पणी सहित तैयार करने के लिए कहा था। मैंने आधे के लगभग ग्रंथ तैयार भी किया था। पर पीछे यह निश्चय हुआ कि जायसी के दोनों ग्रंथ पूरे निकाले जायँ। अतः 'पद्मावत' की वह अधूरी तैयार की हुई कापी बहुत दिनों तक पड़ी रही।
इधर जब विश्वविद्यालयों में हिंदी का प्रवेश हुआ और हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य भी परीक्षा के वैकल्पिक विषयों में रखा गया, तब तो जायसी का एक शुद्ध उत्तम संस्करण निकालना अनिवार्य हो गया क्योंकि बी.ए. और एम.ए. दोनों की परीक्षाओं में पद्मावत रखी गई। पढ़ाई प्रारम्भ हो चुकी थी और पुस्तक के बिना हर्ज हो रहा था; इससे यह निश्चय किया गया कि समग्र ग्रंथ एकबारगी निकालने में देर होगी; अतः उसके छह-छह फार्म के खंड कर के निकाले जायँ जिससे छात्रों का काम भी चलता रहे। कार्तिक संवत् 1980 से इन खंडों का निकलना प्रारंभ हो गया। चार खंडों में 'पद्मावत' और 'अखरावट' दोनों पुस्तकें समाप्त हुईं।
'पद्मावत' की चार छपी प्रतियों के अतिरिक्त मेरे पास कैथी लिपि में लिखी एक हस्तलिखित प्रति भी थी जिससे पाठ के निश्चय करने में कुछ सहायता मिली। पाठ के संबंध में यह कह देना आवश्यक है कि वह अवधी व्याकरण और उच्चारण तथा भाषाविकास के अनुसार रखा गया है। एशियाटिक सोसाइटी की प्रति में 'ए' और 'औ' इन अक्षरों का व्यवहार नहीं हुआ है : इनके स्थान पर 'अइ' और 'अउ' प्रयुक्त हुए हैं। इस विधान में प्राकृत की पुरानी पद्धति का अनुसरण चाहे हो, पर उच्चारण की उस आगे बढ़ी हुई अवस्था का पता नहीं लगता जिसे हमारी भाषा, जायसी और तुलसी के समय में प्राप्त कर चुकी थी। उस समय चलती भाषा में 'अइ' और 'अउ' के 'अ' और 'इ' तथा 'अ' और 'उ' पृथक्-पृथक् स्फुट उच्चारण नहीं रह गए थे, दोनों स्वर मिल कर 'ए' और 'औ' के समान उच्चरित होने लगे थे। प्राकृत के 'दैत्यादिष्वइ' और 'पौरादिष्वउ' सब दिन के लिए स्थायी नहीं हो सकते थे। प्राकृत और अपभ्रंश अवस्था पार करने पर उलटी गंगा बही। प्राकृत के 'अइ' और 'अउ' के स्थान पर 'ए' और 'औ' उच्चारण में आए - जैसे प्राकृत और अपभ्रंश रूप 'चलइ', 'पइट्ठ', 'कइसे', 'चउक्कोण' इत्यादि हमारी भाषा में आ कर 'चलै', पैठ, 'कैसे', 'चौकोन' इस प्रकार बोले जाने लगे। यदि कहिए कि इनका उच्चारण आजकल तो ऐसा होता है पर जायसी बहुत पुराने हैं, संभवतः उस समय इनका उच्चारण प्राकृत के अनुसार ही होता रहा हो, तो इसका उत्तर यह है कि अभी तुलसीदास जी के थोड़े ही दिनों पीछे की लिखी 'मानस' की कुछ पुरानी प्रतियाँ मौजूद हैं जिनमें बराबर 'कैसे', 'जैसे', 'तैसे', 'कै', 'करै', 'चौथे', 'करौं', 'आवौं' इत्यादि अवधी की चलती भाषा के रूप पाए जाते हैं। जायसी और तुलसी ने चलती भाषा में रचना की है, प्राकृत के समान व्याकरण के अनुसार गढ़ी हुई भाषा में नहीं। यह दूसरी बात है कि प्राचीन रूपों का व्यवहार परंपरा के विचार से उन्होंने बहुत जगह किया है, पर भाषा उनकी प्रचलित भाषा ही है।
क. इहै बहुत जो बोहित पावौं। - जायसी। ख. रघुबीर बल गर्वित वीभीषनु घाल नहिं ताकहँ गनै। - तुलसी।
एक एक की न सँभार। करै तात भ्रात पुकार - तुलसी जब एक ही कवि की रचना में नए और पुराने दोनों रूपों का प्रयोग मिलता है, तब यह निश्चित है कि नए रूप का प्रचार कवि के समय में हो गया था और पुराने रूप का प्रयोग या तो उसने छंद की आवश्यकतावश किया है अथवा परंपरापालन के लिए।
हाँ, 'ए' और 'औ' के संबंध में ध्यान रखने की बात यह है कि इनके 'पूरबी' और 'पच्छिमी' दो प्रकार के उच्चारण होते हैं। पूरबी उच्चारण संस्कृत के समान 'अइ' और 'अउ' से मिलता - जुलता और पच्छिमी उच्चारण 'अय' और 'अव' से मिलता जुलता होता है। अवधी भाषा में शब्द के आदि के 'ए' और 'औ' का अधिकतर पूरबी तथा अंत में पड़नेवाले 'ए' 'औ' का उच्चारण पच्छिमी ढंग पर होता है।
'हि' विभक्ति का प्रयोग प्राचीन पद्धति के अनुसार जायसी में सब कारकों के लिए मिलेगा। पर कर्ता कारक में केवल सकर्मक भूतकालिक क्रिया के सर्वनाम कर्ता के तथा अकारांत संज्ञा कर्ता में मिलता है। इन दोनों स्थलों में मैंने प्रायः वैकल्पिक रूप 'इ' (जो 'हि' का ही विकार है) रखा है, जैसे केइ, जेइ, तेइ, राजै, सूए, गौरे, (किसने, जिसने, उसने, राजा ने, सूए ने, गौरा ने)। इसी 'हि' विभक्ति का ही दूसरा रूप 'ह' है जो सर्वनामों के अंतिम वर्ण के साथ संयुक्त हो कर प्रायः सब कारकों में आया है। अतः जहाँ कहीं 'हम्ह' 'तुम्ह', 'तिन्ह' या 'उन्ह' हो वहाँ यह समझना चाहिए कि यह सर्वनाम कर्ता के अतिरिक्त किसी और कारक में है - जैसे हम्म, हमको, हमसे, हमारा, हममें, हम पर। संबंधवाचक सर्वनाम के लिए 'जो' रखा गया है तथा यदि या जब के अर्थ में अव्यय रूप 'जौ'।
प्रत्येक पृष्ठ में असाधारण या कठिन शब्दों, वाक्यों और कहीं चरणों में अर्थ फुटनोट में बराबर दिए गए हैं जिससे पाठकों को बहुत सुबीता होगा। इसके अतिरिक्त 'मलिक मुहम्मद जायसी' पर एक विस्तृत निबंध भी ग्रंथारंभ के पहले लगा दिया गया है जिसमें कवि की विशेषताओं के अन्वेषण और गुणदोषों के विवेचन का प्रयत्न अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार किया है।
अपने वक्तव्य में 'पद्मावत' के संस्करणों का मैंने जो उल्लेख किया है, वह केवल कार्य की कठिनता का अनुमान कराने के लिए। कभी कभी किसी चौपाई का पाठ और अर्थ निश्चित करने में कई दिनों का समय लग गया है। झंझट का एक बड़ा कारण यह भी था कि जायसी के ग्रंथ बहुतों ने फारसी लिपि में उतारे। फिर उन्हें सामने रख कर बहुत सी प्रतियाँ हिंदी अक्षरों में तैयार हुईं। इससे एक ही शब्द को किसी ने एक रूप में पढ़ा, किसी ने दूसरे रूप में। अतः मुझे बहुत स्थलों पर इस प्रक्रिया से काम लेना पड़ा है कि अमुक शब्द फारसी अक्षरों में लिख जाने पर कितने प्रकार से पढ़ा जा सकता है। काव्य भाषा के प्राचीन स्वरूप पर भी पूरा ध्यान रखना पड़ा है। जायसी की रचना में भिन्न भिन्न तत्त्वसिद्धांतों के आभास को समझने के लिए दूर तक दृष्टि दौड़ाने की आवश्यकता थी। इतनी बड़ी-बड़ी कठिनाइयों को बिना धोखा खाए पार करना मेरे ऐसे अल्पज्ञ और आलसी के लिए असंभव ही समझिए।
अतः न जाने कितनी भूलें मुझसे इस कार्य में हुई होंगी, जिनके संबंध में सिवाय इसके कि मैं क्षमा माँगू और उदार पाठक क्षमा करें, और हो ही क्या सकता है?
|
f95de328abb04bbbcc32efad43db12edd8231c0a | web | सेंट पीटर्सबर्ग - ऐतिहासिक के लिए एक युवा शहरमानक, लेकिन रूसी साम्राज्य की पूर्व राजधानी में चिकित्सा का स्तर इसकी इमारतों और सड़कों के साथ-साथ बढ़ता गया। यहां तक कि एलिजाबेथ पेत्रोव्ना के शासनकाल के दौरान, वह देश का सांस्कृतिक और वैज्ञानिक केंद्र बन गया, और वह आज भी बना हुआ है।
सेंट पीटर्सबर्ग का पहला मुफ्त अस्पताल, याजैसा कि उन्हें कहा जाता था, चैरिटी हाउस, या अलम-हाउस, 18 वीं शताब्दी के अंत में धर्मार्थ समाजों, व्यक्तियों और रॉयल्टी के प्रयासों से खुलने लगे।
आज सेंट पीटर्सबर्ग में लगभग 150 अस्पताल हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना इतिहास है, सीधे इस शहर में चिकित्सा के विकास से संबंधित है।
अगर हम बहु-चिकित्सा चिकित्सा संस्थानों के बारे में बात करते हैं, तो सेंट पीटर्सबर्ग का दूसरा शहर अस्पताल यूरोपीय स्तर की सेवा का एक संकेतक है और शहर का सबसे बड़ा बहु-विषयक अस्पताल है।
समर्थन और सहायता के साथ 1991 में स्थापितजर्मन विशेषज्ञ, यह जल्द ही नवीनतम चिकित्सा उपकरणों से सुसज्जित सबसे आधुनिक चिकित्सा संस्थान बन गया। यह योग्य विशेषज्ञों को न केवल उपचार के उच्च-तकनीकी तरीकों का उपयोग करके सबसे जटिल संचालन करने की अनुमति देता है, बल्कि देश के कई शोध संस्थानों और चिकित्सा विश्वविद्यालयों के लिए एक प्रशिक्षण मंच भी है।
आज, सेंट पीटर्सबर्ग सिटी हॉस्पिटल 2 निम्नलिखित विभागों में प्रति वर्ष 40,000 से अधिक रोगियों की सेवा करता हैः
- नैदानिक इकाई;
- पुनर्वास विभाग;
- नेत्र विज्ञान केंद्र;
- स्त्री रोग;
- गैस्ट्रोएंटरोलॉजी सेंटर;
- कार्डियोलॉजी के तीन विभाग;
- पुनर्जीवन और गहन देखभाल;
- चिकित्सा कॉस्मेटोलॉजी;
- न्यूरोसर्जरी के 2 विभाग;
- न्यूरोलॉजी के 2 केंद्र;
- सामान्य सर्जरी;
- रक्त आधान केंद्र;
- संवहनी सर्जरी विभाग;
- आघात और ऑर्थोपेडिक्स;
- मूत्रविज्ञान;
- एंडोक्रिनोलॉजी;
- मैक्सिलोफैशियल सर्जरी के लिए केंद्र;
- पल्मोनोलॉजी और वर्टेब्रल सर्जरी के केंद्र।
इस अस्पताल में सबसे अच्छा हैनैदानिक उपकरण, रोगी की बीमारी का कारण निर्धारित करने के लिए उच्च सटीकता के साथ अनुमति देता है। हृदय, मस्तिष्क के जहाजों और अन्य अंगों पर सबसे जटिल ऑपरेशन लेजर और इलेक्ट्रोसर्जरी की मदद से किए जाते हैं। इस चिकित्सा संस्थान में डॉक्टरों की उपलब्धियां और उपचार का स्तर उन्हें देश के शीर्ष दस सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में बने रहने की अनुमति देता है।
अलेक्जेंडर बैरक अस्पताल की स्थापना 1882 में हुई थी। आज यह बोटकिन अस्पताल (सेंट पीटर्सबर्ग) है, जो कि मिरगोडास्काया स्ट्रीट, 3 में स्थित है।
तेज-तर्रार की जरूरत का सवालशहर में एक अलग संक्रामक चिकित्सा संस्थान था, यह इस तथ्य के कारण था कि संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ गई थी क्योंकि संक्रमित मरीज एक ही वार्ड में अन्य रोगियों के साथ थे।
इन उद्देश्यों के लिए, एक अलग 22 बैरक का निर्माण किया गया था, जिनमें से प्रत्येक को एक विशेष प्रकार की बीमारी के लिए आवंटित किया गया था, और दीक्षांत समारोह के लिए एक।
तथ्य यह है कि सेंट पीटर्सबर्ग के बाकी अस्पताल बंद हो गए हैंसंक्रमित में ले लो, राजधानी में महामारी विज्ञान की स्थिति को काफी कम कर दिया। इस संस्था के ट्रस्टी एस। पी। बोटकिन थे, जिनकी मृत्यु के बाद यह उनका नाम धारण करने लगे।
आज यह सबसे बड़ा शहरी केंद्र हैसंक्रामक रोगों की रोकथाम और उपचार। बोटकिन अस्पताल (सेंट पीटर्सबर्ग) ने इस दिशा में काम करते हुए शहर की सभी चिकित्सा इकाइयों को एकजुट कर दिया है।
2004 तक, यह सुविधा पुराने में स्थित थीइमारतें, ताकि शहर की सरकार ने नई इमारतों का निर्माण करने का फैसला किया, जो 2011 और 2013 में पूरी तरह से चालू थीं।
आज शहर में बच्चों के लिए 20 चिकित्सा संस्थान हैं। सेंट पीटर्सबर्ग में सबसे बड़े बच्चों के अस्पतालः
- सेंट मैरी मैग्डलीन का नाम। यह शहर के सबसे पुराने अस्पतालों में से एक है, जिसकी स्थापना 1829 में हुई थी। जिस हवेली में यह स्थित था, वह 1794 में इवान कुसोव, शाही उद्योग के एक प्रमुख उद्योगपति और आपूर्तिकर्ता के लिए वासिलीव्स्की द्वीप पर बनाया गया था। 1828 में इमारत को अस्पताल में बदलने के लिए बेच दिया गया था। इसके आधार पर, उस समय के लिए इतने उच्च स्तर पर एक अस्पताल स्थापित किया गया था कि शाही परिवार के प्रतिनिधियों ने बार-बार इसका दौरा किया। केवल 1993 के बाद से, अस्पताल को युवा रोगियों को प्राप्त करने के लिए परिवर्तित किया गया था।
- 1 सिटी चिल्ड्रन हॉस्पिटल खोला गया1974, जिसके लिए 600 हेक्टेयर Polezhaevsky Park, Krasnoselsky District में आवंटित किए गए थे। आज, अस्पताल के दिन के 13 मरीज वहां रोगियों से मिलते हैं, जिनमें से अधिकांश घड़ी के आसपास रोगियों को प्राप्त करते हैं।
- पांचवां बच्चों का नैदानिक अस्पताल। फिलाटोव को कभी शाही निकोलस कहा जाता था, रूस में बच्चों का पहला अस्पताल था। 1832 में स्थापित, आज यह सालाना लगभग 70,000 छोटे रोगियों को प्राप्त करता है। इसके 29 कार्यालयों में 650 बेड हैं और इसकी दीवारों के भीतर 800 कर्मचारी काम करते हैं। यदि किसी बच्चे को तत्काल सहायता की आवश्यकता होती है, तो उसे यहां भेजा जाता है।
सेंट पीटर्सबर्ग में बच्चों के अस्पताल सर्वोत्तम नैदानिक उपकरण और आधुनिक ऑपरेटिंग थिएटर से सुसज्जित हैं।
रूसी साम्राज्य की राजधानी प्रसिद्ध थीअपने निवासियों के दान और संरक्षण। शहर की कई इमारतें उस समय के अमीर और प्रबुद्ध लोगों द्वारा बनाई गई थीं। इसी तरह, क्षेत्रीय अस्पताल (सेंट पीटर्सबर्ग) एक बार एक चैरिटी हाउस था जो ए। आई। टिमेनकोव के पहले गिल्ड के निजी आवास के आंगन में बनाया गया था।
एक बार इसने 3 कार्यालय रखेः नर, मादा और बच्चे, साथ ही अनाथों और एक चैपल के लिए एक स्कूल। 1939 से, इसने 600 बिस्तरों के एक क्षेत्रीय अस्पताल को सुसज्जित किया है, जिसके साथ इसने एक क्लिनिक और एक नर्सिंग स्कूल खोला है। 1980 तक, इसमें सभी रोगी शामिल नहीं थे, और इसे विस्तारित करने का निर्णय लिया गया। 1987 में, इस चिकित्सा संस्थान ने एक ही समय में 1,000 से अधिक रोगियों का इलाज किया।
आज, सेंट पीटर्सबर्ग में सभी शहर के अस्पताल ऐसे परिणामों का दावा नहीं कर सकते हैंः
- 1053 स्थानों में अस्पताल;
- क्लिनिक, जहां डॉक्टर 40 विशिष्टताओं में काम करते हैं;
- प्रति दिन 500 से अधिक रिसेप्शन;
- इस अस्पताल में आउट पेशेंट उपचार प्रति वर्ष 200,000 से अधिक लोगों द्वारा प्राप्त किया जाता है;
- यह एक वैज्ञानिक और व्यावहारिक परिसर है जिसमें रोगों के उपचार के नए तरीकों को लगातार सर्वोत्तम चिकित्सा प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके पेश किया जा रहा है।
शहर का क्षेत्रीय अस्पताल कई दशकों से लेनिनग्राद क्षेत्र के सभी निवासियों को तत्काल चिकित्सा सेवा प्रदान कर रहा है।
सेंट पीटर्सबर्ग के नैदानिक अस्पताल हैंशहर के चिकित्सा विश्वविद्यालयों के आधार। तो, उन्हें अस्पताल। पीटर द ग्रेट (पिस्करेव्स्की एवेन्यू, 47) विश्वविद्यालय को संदर्भित करता है। Mechnikov। इस प्रमुख चिकित्सा संस्थान के उद्भव से पहले 1903 में 1000 बिस्तरों वाले अस्पताल की आवश्यकता पर राज्य ड्यूमा के एक निर्णय से पहले किया गया था। 1914 में शाही व्यक्तियों की उपस्थिति में इसका भव्य उद्घाटन हुआ। 1917 तक, इसमें 1,500 बिस्तर थे, और टाइफाइड और हैजा जैसी जरूरी बीमारियों के लिए कार्यालय खुले थे।
1932 से, अस्पताल खोला गया हैmedvuz- अस्पताल, जहां हर साल 200 छात्र अध्ययन करते थे और साथ ही साथ अस्पतालों में काम करते थे। आज, इसके 50 भवनों में 26 विभाग हैं, जो सालाना 40,000 से अधिक रोगियों को लेते हैं।
क्लिनिक नवीनतम चिकित्सा तकनीक से लैस है और अभी भी भविष्य के डॉक्टरों के लिए एक प्रशिक्षण आधार है।
सेंट पीटर्सबर्ग में कई अस्पताल नहीं हो सकतेअलेक्जेंडर क्लिनिक के रूप में इस तरह की "जीवनी" का दावा करें। 04.16.1842 के निकोलस I के फरमान से स्थापित, अकुशल मजदूरों के लिए अस्पताल इस बात का एक उदाहरण है कि शाही परिवार ने लोगों की जरूरतों को कितना बढ़ाया। प्रारंभ में, रोगियों को अन्य चिकित्सा संस्थानों के नामित वार्डों में रखा गया था, लेकिन 1866 में, अलेक्जेंडर II के डिक्री द्वारा, एक अलग क्लिनिक खोला गया, जिसे कामकाजी आबादी के लिए अलेक्जेंडर अस्पताल कहा जाता था।
1891 तक, 10,000 से अधिक का इलाज यहां प्रतिवर्ष किया जाता था।लोग। इस संस्था की एक विशिष्ट विशेषता यह है कि यह यहाँ था जिसने विभिन्न रोगों के उपचार के लिए कई नए तरीके विकसित किए। अलेक्जेंडर अस्पताल में आज का स्टाफ भी इसके लिए प्रसिद्ध है। यह प्रतिदिन 200 रोगियों को स्वीकार करता है, और चौबीसों घंटे नैदानिक विभाग जीवन को बचाता है जब आपातकालीन सहायता की आवश्यकता होती है। सिकंदर अस्पताल की दीवारों के भीतर 30,000 से अधिक रोगियों को उच्च-गुणवत्ता वाली चिकित्सा देखभाल प्राप्त होती है।
सेंट पीटर्सबर्ग में केवल 3 अस्पतालों में ऐसे हैंगरीबों के लिए मरिंस्की क्लिनिक के रूप में लंबा इतिहास। यह शहर की 100 वीं वर्षगांठ के सम्मान में स्थापित किया गया था, महारानी मारिया फियोडोरोव्ना के अनुरोध पर और 1805 में अपने पहले रोगियों को स्वीकार करना शुरू किया। जियाकोमो क्वारेंगी के डिजाइन के अनुसार बनाया गया, यह आज लाइटिनि प्रोस्पेक्ट का एक आभूषण भी है।
हमारे समय में, यह लगभग विशेषज्ञों का प्रतिनिधित्व करता हैसभी चिकित्सा क्षेत्रों में, यह सालाना 40,000 रोगियों की मदद करता है। क्लिनिक विशेष रूप से अपने सर्जनों के परिणामों के लिए प्रसिद्ध है, जिसकी बदौलत हर साल 12,000 से अधिक ऑपरेशन किए जाते हैं।
अस्पताल में 15 इमारतें हैं, जिनमें 18 मुख्य और 20 अतिरिक्त विभाग हैं, जो सिर्फ 1000 से अधिक विशेषज्ञों को नियुक्त करते हैं।
1946 में, इसे खोलने का निर्णय लिया गयासेंट पीटर्सबर्ग का ऑन्कोलॉजिकल अस्पताल। मुख्य भवन और इसकी शाखा के पतेः वयोवृद्ध Ave., 56, और 2 एन डी बर्च गली। पहले से ही 70 वर्षों के लिए, सौम्य और घातक ट्यूमर वाले रोगियों के लिए सहायता और व्यापक उपचार किया गया है।
ऑन्कोलॉजिकल डिस्पेंसरी कैंसर के निदान और उपचार के लिए सर्वोत्तम उपकरणों से सुसज्जित है।
सेंट पीटर्सबर्ग के अस्पतालों का एक गौरवशाली इतिहास हैन केवल शहर में, बल्कि पूरे देश में दवा का निर्माण। एक समय में, ऐसे महान डॉक्टरों और वैज्ञानिकों जैसे कि बोटकिन, बेखटरेव, विनोग्रादोव और अन्य ने उनमें काम किया था। उनमें से कई के नाम विदेश में प्रसिद्ध हैं।
|
00d7698c849ec73a170232bdc0acf7ed91e4f588 | web | The Annual Report of Amnesty International tells that South Asia is epicenter of deteriorating human rights. एमनेस्टी इन्टरनेशनल ने हाल में ही वार्षिक रिपोर्ट 2022/23 : द स्टेट ऑफ़ वर्ल्डस ह्यूमन राइट्स, प्रकाशित की है। इसमें भारत के बारे में बताया गया है कि बिना बहस और बिना कानूनी जानकारों के सलाह के ही नए क़ानून और नीतियाँ लागू कर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कुचला जा रहा है। सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों पर लगातार प्रहार कर रही है, और सत्ता में बैठे नेता, समर्थक और सरकारी अधिकारी अल्पसंख्यकों के विरुद्ध खुले आम नफरती बयान देते हैं, नारे लगाते हैं और इन्हें कोई सजा नहीं मिलती। मुस्लिम परिवारों और उनके व्यापार को सजा देने के नाम पर किसी कानूनी प्रक्रिया के बिना ही बुलडोज़र से ढहा दिया जाता है और इसमें किसी को सजा नहीं होती।
एमनेस्टी की रिपोर्ट के अनुसार अल्पसंख्यकों की मांगों को उठाते आन्दोलनों को सत्ता और मीडिया देश के लिए ख़तरा बताती है और उन्हें इसके अनुरूप ही सजा भी दी जाती है। विरोध की हरेक आवाज को दबाने के लिए आतंकवादियों के लिए बनाये गए कानूनों का व्यापक दुरूपयोग किया जाता है। निष्पक्ष पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को खामोश करने के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी के साथ ही अवैध तरीके से उनकी निगरानी की जाती है। आदिवासियों और दलित जैसे हाशिये पर खड़े समुदायों के विरुद्ध हिंसा और भेदभाव देश में सामान्य है। इस रिपोर्ट में जिन विषयों का विस्तार से वर्णन है, वे हैं - अभिव्यक्ति और विरोध की आजादी, गैर-कानूनी हिरासत, गैरकानूनी हमले और हत्याएं, सुरक्षा बलों का अत्यधिक उपयोग, धार्मिक आजादी, भेदभाव और असमानता, आदिवासियों के अधिकार, जम्मू और कश्मीर, निजता का अधिकार, महिलाओं का अधिकार, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में विफलता और पर्यावरण विनाश।
इस रिपोर्ट के अनुसार केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरा दक्षिण एशिया ही मानवाधिकार हनन का गढ़ बन चुका है। इस पूरे क्षेत्र में सत्ता के विरोध की आवाजों को कुचला जा रहा है, महिलाओं के अधिकार छीने जा रहे हैं और अल्पसंख्यक भेदभाव का शिकार हो रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण दक्षिण एशिया का वैश्विक आर्थिक गतिविधियों और राजनैतिक ताकतों की वैश्विक धुरी बनना है, जिसके कारण मानवाधिकारों की उपेक्षा की जा रही है और दुनिया का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है। किसी भी अंतरराष्ट्रीय या क्षेत्रीय वार्ता में मानवाधिकार कोई मुद्दा ही नहीं रहता। सत्ता से त्रस्त जनता तमाम खतरों के बाद भी पिछले वर्ष अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, भारत, नेपाल, मालदीव्स, म्यांमार, पकिस्तान और श्री लंका में सडकों पर प्रदर्शन करती रही। भारत, अफ़ग़ानिस्तान, म्यांमार और बांग्लादेश में सत्ता द्वारा प्रेस की आजादी को कुचला जा रहा है।
भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, निष्पक्ष पत्रकारों और विपक्षी नेताओं के विदेश जाने पर पाबंदी लगाई जाती है, जिससे मानवाधिकार को कुचलने की खबरें विदेशों तक नहीं पहुंचे। भारत में विरोध की आवाज कुचलने के लिए बिना मुकदमा चलाये ही मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में लम्बे समय तक बंद करने का एक नया चलन शुरू हो गया है। विरोधियों और निष्पक्ष पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर अचानक से मनीलाउनडरिंग की जांच शुरू कर दी जाती है। एमनेस्टी इन्टरनेशनल में दक्षिण एशिया के मामलों की उपनिदेशक दिनुशिखा दिसानायके के अनुसार इस पूरे क्षेत्र में मानवाधिकार डगमगाते हुए हाशिये पर पहुँच गया है, जहां सामने हिंसा है और भेदभाव है।
एमनेस्टी इन्टरनेशनल से पहले ह्यूमन राइट्स वाच ने ग्लोबल एनालिसिस 2023 को प्रकाशित किया था, जिसमें वर्ष 2022 में वैश्विक मानवाधिकार की स्थिति का आकलन प्रस्तुत है। वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। अफगानिस्तान और म्यांमार में मानवाधिकार के साथ ही जीने के अधिकार का भी हनन किया जा रहा है, पर दुनिया खामोश है। चीन में लाखों उगियार और तुर्किक मुस्लिमों को गुलामों जैसी स्थिति में रखा जा रहा है।
ह्यूमन राइट्स वाच की प्रमुख टिराना हसन के अनुसार कुछ देशों में जहां निरंकुश सत्ता के विरुद्ध कभी जनता खडी नहीं होती थी, वहां भी बड़े आन्दोलन और प्रदर्शन होते रहे। चीन में ही जीरो-कोविड के नाम पर लगाए गए सख्त प्रतिबंधों के खिलाफ अनेक शहरों में सडकों पर बड़े प्रदर्शन किया गए। इरान में 22 वर्षीय मेहसा अमिनी की पुलिस द्वारा ह्त्या के बाद लगभग पूरी आबादी सडकों पर उतर गयी। इरान जैसे निरंकुश देश में आन्दोलन की बात सोची भी नहीं जा सकती थी, पर इस आन्दोलन में महिलायें, पुरुष और बच्चे भी शामिल रहे, खिलाड़ियों और कलाकारों ने भी सक्रिय हिस्सा लिया।
टिराना हसन के अनुसार कुछ घटनाओं के बाद आन्दोलन और प्रदर्शन किये जाते हैं, पर पूरी तरीके से मानवाधिकार की बहाली के लिए ऐसे आन्दोलनों को वैश्विक सहायता की जरूरत होती है, पर दुनिया इन आन्दोलनों को अनदेखा करती है। आज भी अफगानिस्तान, म्यांमार, फिलिस्तिन और इथियोपिया जैसे देशों में मानवाधिकार के बड़े पैमाने पर हनन के बाद भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय चुपचाप बैठकर तमाशा देखता है। वर्ष 2022 महिला अधिकारों के लिए बहुत ही खराब रहा। अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं से सारे अधिकार छीन लिए गए और अमेरिका में गर्भपात सम्बंधित क़ानून को निरस्त कर दिया गया। पर, दूसरी तरफ मेक्सिको, अर्जेंटीना और कोलंबिया जैसे अनेक दक्षिण अमेरिकी देशों में गर्भपात से सम्बंधित क़ानून का दायरा बढाया भी गया।
इस रिपोर्ट में भारत के बारे में बताया गया है कि बीजेपी सरकार लगातार अल्पसंख्यकों को कुचलने का काम कर रही है और इसके समर्थक बिना किसी भय के अल्पसंख्यकों पर हमले करते हैं। बीजेपी की धार्मिक और छद्म राष्ट्रीयता की भावना अब न्याय व्यवस्था और नॅशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन जैसे संवैधानिक संस्थाओं में भी स्पष्ट होने लगी है। न्याय व्यवस्था भारी-भरकम बुलडोज़र के नीचे दब गयी है और अल्पसंख्यकों पर बुलडोज़र चलाने के समर्थन में जनता और मीडिया खडी रहती है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और स्वतंत्र पत्रकारों की आवाज को पुलिस और प्रशासन कुचल रहे हैं।
देश में एक पुलिस राज स्थापित हो गया है, और वह कभी भी किसी की भी हत्या करने के लिए स्वतंत्र है। वर्ष 2022 के पहले 9 महीनों के दौरान ही पुलिस कस्टडी में 147 मौतें, न्यायिक हिरासत में 1882 मौतें और पुलिस द्वारा तथाकथित एनकाउंटर में 119 मौतें दर्ज की गयी हैं। जम्मू कश्मीर में अभिव्यक्ति की आजादी और आन्दोलनों के अधिकार को कुचलने के लिए क्रूरता का पैमाना बढ़ गया है। लम्बे से से कश्मिरी पंडितों के साथ खड़े होने का दावा करने वाले नेता और राजनैतिक दल इन्ही पंडितों की ह्त्या के बाद इन्हें धमकाने लगे हैं। जनवरी 2022 में बीजेपी समर्थित कुछ तथाकथित पत्रकारों ने कश्मीर प्रेस क्लब पर हमला कर उस पर अधिकार जमा लिया। अगस्त 2019 के बाद से अब तक 35 से अधिक पत्रकारों पर हिंसा की गयी है या उन्हें पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया गया है और अनेक पत्रकार जेलों में बंद हैं। देश में मानवाधिकार हनन करने वाली भारत सरकार ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी मानवाधिकार हनन करने वाली सरकारों के साथ एकजुटता दिखाई है।
निरंकुश सत्ता के विरुद्ध वर्ष 2022 में कुछ आवाजें तो उठीं, पर क्या इस वर्ष भी ऐसा होगा और विरोध का सिलसिला चलता रहेगा, यह तो समय ही बताएगा, पर भारत जैसे पारंपरिक प्रजातंत्र में जब लोकतंत्र द्वारा बार-बार निरंकुश सत्ता की वापसी होती है, तब निश्चित तौर पर यह खतरे का संकेत है।
|
be9f25ebbc41e8da22071a892dbb7e98c1601556 | web | भारतीय बैंकिंग उद्योग के लिए इससे बेहतर समय कभी नहीं रहा। वित्त वर्ष 2022 के दौरान सूचीबद्ध भारतीय बैंकों का समग्र शुद्ध लाभ 1. 57 लाख करोड़ (ट्रिलियन) रुपये रहा। बैंकों के मुनाफे का यह ऐतिहासिक स्तर है। देसी बैंकों में 36,961 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ के साथ एचडीएफसी बैंक अव्वल रहा, वहीं 31,676 करोड़ रुपये के साथ भारतीय स्टेट बैंक दूसरे, 23,339 करोड़ रुपये के साथ आईसीआईसीआई बैंक तीसरे और 13,025 करोड़ रुपये के साथ ऐक्सिस बैंक मुनाफा कमाने के लिहाज से चौथे पायदान पर रहा। वहीं कोटक महिंद्रा बैंक (8,573 करोड़), बैंक ऑफ बड़ौदा (7,272 करोड़), केनरा बैंक (5,678 करोड़) और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (5,232 करोड़) जैसे कम से कम चार ऐसे बैंक रहे, जिन्होंने 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का लाभ अर्जित किया। इस वर्ष केवल आरबीएल बैंक ही लाल निशान पर रहा, जिसे 74. 74 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
बैंकिंग उद्योग के शुद्ध लाभ में 61. 25 फीसद की उछाल आई और उसमें भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) का प्रदर्शन अपने निजी प्रतिस्पर्धियों से बेहतर रहा। जहां निजी क्षेत्र के बैंकों के लाभ में 38. 54 प्रतिशत (वर्ष 2021 में 67,437 करोड़ रुपये की तुलना में 2022 में 93,430 करोड़ रुपये) की तेजी आई, वहीं पीएसबी के लाभ में 113 फीसदी (2021 के 29,658 करोड़ रुपये की तुलना में 2022 में 63,135 करोड़ रुपये) की जोरदार बढ़त दर्ज हुई। पिछले वित्त वर्ष में घाटा दर्ज करने वाले सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और पंजाब ऐंड सिंध बैंक ने भी वित्त वर्ष 2022 में वापसी करते हुए मुनाफे की ओर कदम बढ़ाए और दोनों को एक-एक हजार करोड़ रुपये से अधिक का लाभ हुआ।
ब्याज से हुई मोटी कमाई ने मुनाफा बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई, क्योंकि इस दौरान शुल्क आय एवं ट्रेजरी प्रॉफिट जैसे मोर्चों पर सुस्ती ही रही। पीएसबी के मामले में खासतौर से ऐसा देखने को मिला। फिर भी मुनाफे में सबसे अहम पहलू खराब कर्जों के मामले में प्रावधान (प्रॉविजन) में नाटकीय गिरावट रहा। यह एक शुभ संकेत है, जो दर्शाता है कि ताजा गिरावट को थाम लिया गया है और परिसंपत्तियों की गुणवत्ता बेहतर हुई है। इसके अतिरिक्त अधिकांश बैंक अपनी खराब परिसंपत्तियों के लिए पहले ही व्यापक स्तर पर बंदोबस्त कर चुके हैं।
वित्त वर्ष 2022 में बैंकों की शुद्ध ब्याज आय (एनआईआई) में 10. 41 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, जो 2021 में 4. 72 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2022 में 5. 21 लाख करोड़ रुपये हो गई। एनआईआई बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज पर हुई कमाई और जमाओं पर दिए जाने वाले ब्याज भुगतान का अंतर होता है। इस दौरान जहां निजी बैंकों के औसत एनआईआई में 12. 61 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई तो पीएसबी में 8. 64 प्रतिशत। यानी इस मोर्चे पर निजी बैंक बाजी मार गए। निजी बैंकों में जहां आईडीएफसी फर्स्ट बैंक तो सरकारी बैंकों में बैंक ऑफ महाराष्ट्र शीर्ष पर रहे। अन्य आय के मामले में भी निजी बैंक आगे रहे। निजी बैंकों की अन्य आय में 13. 5 प्रतिशत की तेजी आई तो समूचे बैंकिंग उद्योग की यह वृद्धि दर केवल 5. 86 प्रतिशत ही रही, जिसके लिए पीएसबी जिम्मेदार रहे, जिनका इस मामले में प्रदर्शन लगभग स्थिर रहा। वहीं प्रावधान में 27. 32 प्रतिशत की गिरावट ने बैंकों के मुनाफे को बड़ा सहारा दिया। इस मामले में निजी एवं सरकारी बैंकों में औसत गिरावट का स्तर कमोबेश एक जैसा रहा। बंधन बैंक, आईडीएफसी बैंक, धनलक्ष्मी बैंक और आरबीएल बैंक जैसे चार निजी बैंकों और इंडियन बैंक जैसे सरकारी बैंक द्वारा प्रॉविजन में ऊंची कटौती के बावजूद दोनों श्रेणियों के बैंकों में यह संतुलन बना।
गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की बात करें तो सूचीबद्ध बैंकों का एनपीए 7. 5 लाख करोड़ रुपये से घटकर 6. 73 लाख करोड़ रुपये रह गया, जिसमें 10. 38 प्रतिशत की गिरावट आई। पीएसबी के सकल एनपीए में 11. 34 प्रतिशत और निजी बैंकों में यह गिरावट 7. 54 प्रतिशत की रही। शुद्ध एनपीए में तो और भी ज्यादा 21. 15 प्रतिशत की जोरदार गिरावट आई, जो 2. 35 लाख करोड़ रुपये से घटकर 1. 85 लाख करोड़ रुपये रह गया। इस प्रकार देखा जाए तो सरकारी और निजी बैंकों का प्रदर्शन एक जैसा रहा। सभी पीएसबी के सकल एनपीए में कमी आई है, लेकिन पांच निजी बैंकों का एनपीए बढ़ा है। इनमें एचडीएफसी बैंक, बंधन बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक और आरबीएल बैंक शामिल हैं। वहीं प्रॉविजनिंग के बाद इंडसइंड बैंक को छोड़कर प्रत्येक बैंक ने अपने शुद्ध एनपीए को घटाया है। एचडीएफसी बैंक और कैथलिक सीरियन बैंक का सबसे कम सकल एनपीए (दोनों का 2 प्रतिशत से कम) है, जबकि आईडीबीआई बैंक का सबसे अधिक 19. 14 प्रतिशत एनपीए है। पांच बैंकों का एनपीए निरंतर रूप से दो अंकों में बना हुआ है। ये हैं केनरा बैंक, येस बैंक, पंजाब ऐंड सिंध बैंक, पंजाब नैशनल बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया। जहां तक समूचे बैंकिंग उद्योग की बात है तो उसमें सकल एनपीए छह वर्षों के सबसे निचले स्तर पर है। सभी बैंकों के शुद्ध एनपीए में कमी आई है। एचडीएफसी सहित सात निजी बैंक ऐसे रहे, जिनका शुद्ध एनपीए मार्च 2022 में एक प्रतिशत से भी कम दर्ज हुआ। इस सूची में आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, इंडसइंड बैंक, ऐक्सिस बैंक, कैथलिक सीरियन बैंक और फेडरल बैंक के नाम शामिल रहे। बैंक ऑफ महाराष्ट्र इस सूची में इकलौता सरकारी बैंक रहा। वहीं स्टेट बैंक का शुद्ध एनपीए एक प्रतिशत से थोडा ऊपर 1. 02 प्रतिशत था, तो 4. 8 प्रतिशत शुद्ध एनपीए के साथ इस मामले में सबसे खराब हालत पंजाब नैशनल बैंक की रही, जबकि निजी बैंकों में 4. 53 प्रतिशत शुद्ध एनपीए के साथ येस बैंक सबसे ऊपर था।
कुल मिलाकर 2022 की कहानी शानदार रही। अधिकांश बैंकों में पर्याप्त पूंजी है, दबाव वाली परिसंपत्तियों का बोझ घटा है और खराब परिसंपत्तियों के लिए उन्होंने प्रॉविजन किए। भविष्य में भी आशंकाओं के बादल छंटते दिख रहे हैं। फिर भी बड़ा सवाल यही है कि क्या इस रुझान में निरंतरता कायम रहेगी? इसके जवाब के लिए हमें प्रतीक्षा करनी होगी। कुछ नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। ब्याज दरों में बढ़ोतरी का दौर शुरू हो गया है, जिससे बॉन्ड प्रतिफल में भी तेजी आएगी और यह बैंकों के ट्रेजरी प्रॉफिट में सेंध लगाएगी। साथ ही दरें बढ़ने से कई कर्जदारों को कर्ज चुकाने में भी मुश्किलें पेश आ सकती हैं। ऐसे में कुछ बैंक पुराने कर्जों के असर को कम करने के लिए नए कर्ज देने की सदाबहार नीति का सहारा ले सकते हैं। हालांकि यह विशेष रूप से छोटे कर्जों के मामले में ही होता है। वहीं यह अनुमान लगाना भी कठिन है कि कितने पुनर्गठित कर्ज खराब कर्जों में तब्दील होंगे। फिर भी यह वक्त ऐसा है कि हमें 2022 के शानदार प्रदर्शन का जश्न मनाना चाहिए, लेकिन संभावित खतरों के प्रति भी सावधान रहें। हम सभी जानते हैं कि खराब कर्जों के बीज अच्छे वक्त में ही बोए जाते हैं।
भारतीय बैंकिंग उद्योग के लिए इससे बेहतर समय कभी नहीं रहा। वित्त वर्ष 2022 के दौरान सूचीबद्ध भारतीय बैंकों का समग्र शुद्ध लाभ 1. 57 लाख करोड़ (ट्रिलियन) रुपये रहा। बैंकों के मुनाफे का यह ऐतिहासिक स्तर है। देसी बैंकों में 36,961 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ के साथ एचडीएफसी बैंक अव्वल रहा, वहीं 31,676 करोड़ रुपये के साथ भारतीय स्टेट बैंक दूसरे, 23,339 करोड़ रुपये के साथ आईसीआईसीआई बैंक तीसरे और 13,025 करोड़ रुपये के साथ ऐक्सिस बैंक मुनाफा कमाने के लिहाज से चौथे पायदान पर रहा। वहीं कोटक महिंद्रा बैंक (8,573 करोड़), बैंक ऑफ बड़ौदा (7,272 करोड़), केनरा बैंक (5,678 करोड़) और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (5,232 करोड़) जैसे कम से कम चार ऐसे बैंक रहे, जिन्होंने 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का लाभ अर्जित किया। इस वर्ष केवल आरबीएल बैंक ही लाल निशान पर रहा, जिसे 74. 74 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
|
0d4a163fc85ecc54e264a37333122f829e07b6b3d26256d09b23cf96c5f6be2f | pdf | जाता है बल्कि भारतीय मनोवृत्ति और भावनाकी उदारताक अत्यंत अमुकल पड़नेवाले उपसे उन्हें एक साथ मिलाकर उनमें परस्पर संगम गोड़कर या उन्हें एकत्र करके समन्वित कर दिया गया है। यह समन्बय कभी कमी तो स्पष्ट रूपमें पर अधिकतर एक ऐसे रूपमें किया पा है जो किस्से-कहानी प्रतीक मीतिकथा चमत्कार और इसके द्वारा इसके कुछ बंघको बनसाधारणकीमा और भाष मानातक पहुचा सके। व चैत्य-माध्यात्मिक अनुभव की एक बृहत और बलि राधिको लिपिबद्ध करके दृश्य प्रतिमानों द्वारा सपुष्ट किया गया है वमा योम-सामनाकी पद्धतियक रूपमे व्यवस्थित कर दिया गया है। मह तरम भी पुरानमें पाया जाता है पर अधिक सिमित रूपमें इसे अमबद्ध करने से यहां अपेक्षा कृत कम श्रम किया गया है। माखिरकार, यह पति की पद्धतिका ही एक विस्तार हो इसका रूप कुछ और प्रकारका है तथा इसमें स्वभावगत परिवर्तन भी बेसनेमें जाता है। पुराण भौतिक रूप और मनुष्ठानोमी एक प्रभासीमा निर्माण करते है जिनमें से प्रत्येकका अपना चैत्य बर्ष है। इस प्रकार, गंगा यमुना और सरस्वती इन तीन मि सममग्री पवित्रता एक आंतरिक संगमका प्रतीक है और मागी मनाभौतिक प्रक्रिया एक निर्मायक अनुभबकी ओर करती है तथा इसके अन्य इस्पार्थ भी है जैसा कि इस प्रकार की पति प्राम ही देखने में जाता है। पुराबकि तबाकमित कल्पनात्मक भौगोलिक विवरण स्वयं में भी स्पष्ट रूपर्स ऐसा ही कड़ा गया है - याम्येतरिक पैम जयत्का समृद्ध काव्यात्मक रूपक एवं प्रतीकात्मक भूगोल है। सृष्टपुत्पतिका सिद्धांत इसमे कभी-कभी स्कूल बगदके उपयुक्त परिभाषामित किया गया है उसका बेरकी ही मांति यहां भी एक माध्यारिमन और मनोवैज्ञानिक अर्थ एवं आभार है। यह सम में ही देखा जा सकता है कि कैसे बाबके मुमकी हुई समानतामें पौराणिक प्रतीक विज्ञान के अधिक पारिभाषिक मं आध्यात्मिक और जवरात्मिक वस्तुओंके विषय में नि वार्यत ही भयभित संबविश्वास तमा स्थूम भौतिक मारनामकि बिहार हो गये। परंतु यह सवरा व उन धमी मना रहता है या इनको जनसाधारण समझने सापक बनाने के लिये किये जाते है और इस हानिक कारण हमें इस तथ्य के प्रति मंपनी बन जाना चाहिये कि राम्होने जनताक मामसको शिक्षित करने में बड़ा भारी कार्य किया है ताकि वह उस मनोवामिष एवं पैम माध्यात्मिक आकर्यनका प्रत्युत्तर दे सके जो लिये क्षमता प्रदान करता है। प्रभास हुआ है से दीपौराषिपद्धतिका एक सूक्ष्मतर मानर्यगक द्वारा तथा अधिक प्रत्यक्षात सूक्ष्म जबकि प्रति जागरसके द्वारा मतिम करने आबस्ता हो और यदि इस प्रकार नियम करना [संभव बन जाये तो स्वयं यह भी अपिरामे पुरानद्वारा किये गये इस कार्यकारण ही समय होगा।
पुराण मूलत एक सम्बा बामिर बाध्य है अपने मामिक सत्य समिनिकभारतीय साहित्य
की कला है। निसदेह, अठारहो पुराणोका समस्त स्तूप इस प्रकारकी कलामे उच्च पदका अधिकारी नही ठहरता इनमें निरर्थक सामग्री भी बहुत सी है और निर्जीव और नीरस वस्तु भी कम नहीं है, पर वहा जो काव्य-पद्धति प्रयुक्त की गयी है वह, मोटे तौरपर रचनाकी समृद्धता और ओजस्विता के द्वारा उचित ठहरती है । इनमेंसे प्राचीनतम कृतिया ही श्रेष्ठ है - हा, एक अतिम रचना इसका अपवाद है, वह एक नयी शैलीमे है जो अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखती है एव अद्वितीय है। उदाहरणार्थ, विष्णु पुराण, एक या दो शुष्क स्थलोके होते हुए भी, बहुत मूल्यवान् गुणोसे सपन्न एक अनूठी साहित्यिक रचना है जिसमें प्राचीन महाकाव्योकी शैलीकी प्रत्यक्ष ओजस्विता और उच्चताको अधिकाशमें सुरक्षित रखा गया है । इसमे एक विविधतापूर्ण गति है, वहुत-सी ओजस्वी और कुछ- थोडी उदात्त महाकाव्योचित रचना है, कही-कही प्रसादपूर्ण मधुरता और सुन्दरताका गीत्यात्मक तत्त्व भी देखने में आता है, ऐसी अनेक कथाए भी पायी जाती है जो काव्य-शिल्पके सर्वोतम ओज और निपुणतापूर्ण सरलतासे सपन्न है। भागवत पुराण ( पौराणिक कालके) अतमें आता है तथा अधिक प्रचलित शैली एव प्रणालीसे बहुत कुछ दूर चला जाता
यह भाषाके एक विद्वत्तापूर्ण और अधिक अलकृत एव साहित्यिक रूपसे प्रवलतया प्रभावित है। यह विष्णु पुराणसे भी अधिक विलक्षण कृति है जो सूक्ष्मता और समृद्ध एव गभीर विचारधारा और सुषमासे परिपूर्ण है । इसीमें हम उस आदोलनकी चरम परिगति देखते है जिसका भविष्यपर, अर्थात् भावुकतापूर्ण और उल्लासजनक भक्ति-सप्रदायोंके विकासपर अनेक प्रकारसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पडा । इस विकासके मूलमें जो प्रवृत्ति कार्य कर रही थी वह भारतके धर्मप्रधान मनके प्राचीनतर रूपोमे भी विद्यमान थी और शनैशनै प्रगति कर रही थी, पर अवतक वह ज्ञान और कर्मकी तपस्याओकी ओर तथा सत्ताके केवल उच्चतम स्तरोपर आध्यात्मिक हर्षावेशकी खोजकी ओर (भारतीय मनकी) प्रवल प्रवृत्ति होनेके कारण दवी हुई थी तथा उसके पूर्ण स्वरूपका गठन रुका पड़ा था । उच्चसाहित्यिक युगकी बाह्य जीवन तथा इद्रिय-तुष्टिकी ओर झुकी हुई बहिर्मुख प्रवृत्तिने एक नयी अतर्मुख प्रवृत्तिका सूत्रपात किया जिसकी पूर्णतम अभिव्यक्ति वैष्णव धर्मके परवर्ती अत्यत आनंदमय रूपोंके द्वारा हुई । प्राण और इद्रियोके अनुभवको इस प्रकार थाह लेना यदि सासारिक और बाह्य वस्तुओतक ही सीमित रहता तो यह केवल स्नायु और प्राण-शक्तिवहलाव तथा नैतिक पतन या स्वेच्छाचारकी ओर ही ले गया होता, पर भारतीय मन अपनी प्रधान प्रवृत्तिके द्वारा सदा ही अपने ममस्त जीवनानुभवको अनुरूप आध्यात्मिक अवस्था और तत्त्वमें परिणत करनेके लिये वाध्य होता रहा है और इसका परिणाम यह हुआ है कि उसने इन अत्यंत वाह्य वन्तुओंको भी नये आध्यात्मिक अनुभवके आधार प में परिवर्तित कर डाला है। सत्ताको भावुस्तापूर्ण, पेंद्रिय और बहातक कि कामुक चेष्टाए भी अतरात्माको और अधिक बहिर्मुभी नहीं उन्हें हाथमे लेकर
भारतीय संस्कृति मापार
भैरम रूपमें रूपांतरित कर डाला गया और इस प्रकार परिवर्तित होकर हम और इंडियाके द्वारा भगवा मुझ प्राप्तिर तथा ईदवरीय प्रेम धार्मर और मौदर्यजन्म के धर्मके अंग बन गयी। शत्रमें इन तम अगको लेकर मोग एम सर्वांगपूर्ण प-आयास्मिक एवं मनोमोतिष विज्ञान में अपना स्थान दे दिया गया है। बेप्शन धर्म में इसका प्रम लित रूप बालक गोपजीवी पर केंद्रित है।
में कृपकी कथा रिम्प अवतारका बीरतापूर्ण उपायान है पीछेक पुराणोंमें हम सदस्यक एवं शृंगारमय प्रतीकका विकास होत देते है और भागवत में से इसकी पूर्व प्रकल किया गया है तथा इसका आयोजन इस प्रकार किया गया है कि यह अपने बाध्या हिमय दार्शनिक तमाम मर्मको पूरका पूरा करके स्थानपर वम्यात्मिक प्रेम एवं मानवको समन्वय 4 बनाएर बेदालके प्राचीनतर बर्षको नये सिरेसे अपनी ही पद्धति अनुरूप है। इस विकासकसपूर्ण परिषति चैतन्यके द्वारा प्रचारित रिम्प प्रेमके वर्धन और धर्ममें पायी जाती है।
वैदातिक वर्धनकी परमर्ती विकासमारामा और पौराधिक विचारों एवं बपकोले तमा भक्ति-संप्रदायीकाप्यमय और सौंदर्यी मायामिने अपने जम्मसे ही प्रादेशिक साहित्यको प्रेरणा प्रदान की। पर संस्कृत भाषाक साहित्यकी का एकाएक मही नहीं टूट जाती उच्चसाहित्यिक भैसीके काम्पी रचना विशेषकर दक्षिण में अपेक्षा अधिक बर्वाचीन कामतक जारी रहती है और जब भी दर्शन तथा सब प्रकारकी विद्याकी भाषा बनी रहती है समस्त वयात्मक रचना मालोचक मनकी समस्त कृति प्राचीन भाषा ही सी जाती है। परंतु प्रतिमा इससे धीघ्र ही सप्त हो जाती है में यह कर्कण्ठ भारी और कृषिम बन जाती है और अब फेबल कोई पाहित्यपूर्ण प्रतिमा इसे बारी रखनेवाली रह जाती है। प्रत्येक प्रांत स्थानीय बोडियां कहीं पहले और कुछ पीछे साहित्यके पौरवके अनुरूप उठ बड़ी होती है और काव्य रचताका सामन तमा सो संस्कृतिका माध्यम बन जाती है। यद्यपि लोकप्रिय तत्त्वसिन्म नही संस्कृत हो जाती फिर भी मूल रूपमें तथा सर्वोत्तम अर्थ यह कुलीन वर्गकी भाषा रह जाती है मह उबात अभीप्साकी आवश्यकता तथा महान् सीके अनुरूप एक ऐसी उच्च माध्या रिचय बौखिक मै सिम और सौंदर्यप्रकृतिका विकास तथा संरक्षण करती है जो स समय इसमें केवल उम्पवर बनके किये ही प्राप्त की और प्रभावोत्पादन तथा संचारक की विविध प्रणालिका द्वारा एवं विशेषकर धर्म कला मौर सामाजिक तथा मैतिक लियम के द्वारा इस सस्कृतिको यह (भाषा) बनसमुदायतक पहुंचाती है। बौद्धोंकि हाथ में पाकी इस संचारयका प्रत्यय सामन बन जाती है। इसके विपरीत प्रादेशिक भाषाओंका काव्य 'सार्बजमीन' के प्रत्येक वर्ष में सार्बजतीन साहित्यका सृजन करता है। संस्कृत डेवळ तीन उन्नयम बनके व्यक्ति में अधिकतर दो और क्षभिम ही होने |
4c7bc9cf259cf06be1061ce7d2f19effbf02fc65 | web | चार सितारा अमेरिकी जनरल फिलिप ब्रीडलवे क्रीमिया के सैन्यीकरण से चिंतित हो गए। नाटो कमांडर-इन-चीफ द्वारा यूरोप में दूसरे दिन पत्रकारों के साथ बैठक में यह घोषणा की गई।
"हम वहां तैनात हथियारों के संदर्भ में क्रीमिया में महत्वपूर्ण बदलाव देख रहे हैं। एंटी-एयरक्राफ्ट सिस्टम ब्लैक सी के लगभग आधे हिस्से को नियंत्रित करते हैं, और सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें इसे पूरी तरह से कवर करती हैं। इन हथियारों प्रणालियों ने क्रीमिया को एक शक्तिशाली स्प्रिंगबोर्ड में बदल दिया है, जो इस क्षेत्र में बल प्रदान करता है। अमेरिकी विशेषज्ञों के अनुसार, हथियारों की ऐसी तैनाती से सीधे काला सागर में नाटो के जहाजों की मौजूदगी का खतरा है और यह क्षेत्र में बलों के संतुलन को बदल सकता है। और फिर, अमेरिकी जहाजों पर रूसी विमान की उड़ानों के बारे में सवाल का जवाब देते हुए, काला सागर में प्रवेश करने वाले ब्रिडलव ने कहा कि रूसी सेना इस क्षेत्र में आक्रामक तरीके से काम नहीं कर रही है। "हमने (रूसी सेना के) अलग व्यवहार को देखा है, लेकिन अधिकांश भाग के लिए इसे पेशेवर कहा जा सकता है," उन्होंने कहा। हालांकि, ध्यान देने वाली बात यह है कि नाटो के करीबियों ने क्रीमियन तट से संपर्क किया, जितना अधिक उन्हें सक्रिय प्रतिरोध प्राप्त हुआ।
रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अलेक्जेंडर लुकाशेविच ने यूरोप में नाटो कमांडर-इन-चीफ द्वारा इस पर और अन्य टिप्पणी पर टिप्पणी की, जहां उन्होंने विशेष रूप से दलील दी कि रूस "सोवियत संघ के बाद के देशों पर राजनीतिक दबाव के साधन के रूप में जमे हुए संघर्ष" का उपयोग करता है, उत्तर अटलांटिक गठबंधन एक बड़े पैमाने पर रूसी-विरोधी प्रचार अभियान चला रहा है।
लुकाशेविच ने कहा, "यह स्पष्ट है कि ब्रिजला द्वारा दिए गए उपरोक्त कथन बड़े पैमाने पर रूसी-विरोधी प्रचार अभियान का अनुसरण कर रहे हैं, जिसका एकमात्र उद्देश्य किसी भी तरह से हमारे देश के प्रति उत्तर अटलांटिक गठबंधन की आक्रामक नीति को उचित ठहराना है, नाटो के सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए नाटो के कदमों की आवश्यकता को उचित ठहराना है। " जिनमें से शब्द रूसी एमएफए वेबसाइट पर दिए गए हैं। विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रतिनिधि ने कहा, "इस तरह के बयान वास्तविकता से इतने बेतुके और तलाकशुदा हैं कि वे किसी भी व्यक्तिगत टिप्पणी के लायक नहीं हैं। "
लेकिन जो विदेश मंत्रालय टिप्पणी नहीं करना चाहता है, उसका विश्लेषण पत्रकारों द्वारा किया जा सकता है। क्रीमिया की रूस में वापसी और प्रायद्वीप की सैन्य सुरक्षा को मजबूत करने के साथ अमेरिकी जनरल का असंतोष सिद्धांत रूप में समझा जा सकता है। काला सागर में अमेरिकी या नाटो वर्चस्व के लिए कई बार, विशेष रूप से 2008 की अगस्त की घटनाओं के बाद, जब अमेरिकी जहाज, यूक्रेन विक्टर Yushchenko के तत्कालीन राष्ट्रपति की अनुमति के साथ, जो नॉर्थ अटलांटिक एलायंस में नेजलेझनाया में शामिल होने का सपना देखते थे और काला सागर की कमान के साथ समन्वय के बिना। बेड़ा हम सेवस्तोपोल गए, समाप्त हुए। नाटो और बड़े लोगों का इस क्षेत्र में कोई लेना-देना नहीं है। जिन आतंकवादियों के साथ ब्रसेल्स, जैसा कि बार-बार कहा गया है, लड़ रहा है, अभी यहां नहीं हैं। वे दक्षिण और पूर्व का संचालन करते हैं। वैसे, उन जगहों पर जहां अमेरिकी सैनिक कम से कम एक बार गए थे। गठबंधन के सदस्य - तुर्की, बुल्गारिया और रोमानिया - खतरे में नहीं हैं। गैस पाइपलाइन बिछाने - भी। क्या यह यूरोपीय संघ की नौकरशाही है। लेकिन अटलांटिस्ट किसी तरह उसका मुकाबला करने में असमर्थ थे।
यह सच है, यहां तक कि उन वर्षों में भी जब अमेरिकी क्रूजर फिलीपीन सी या डलास कोस्ट गार्ड कार्वेट को ग्रॉस्फ़काया घाट पर पिघलाया गया था, सेवस्तोपोल के लोगों ने रूसी और एंड्रयू झंडे, काले समुद्री डाकू बैनर द्वारा प्रकट किए गए विरोध कार्यों के साथ मुलाकात की, और अभिव्यंजक विरोधी नाटो के नारे भी लगाए। । जैसे, उदाहरण के लिए, "नाटो बंद करो", "नाटो में Yushchenko - सैन्य कार्यालय से ताबूत की माँ", "युद्ध नहीं प्यार करो"। कोई संयुक्त राज्य अमेरिका से आए मेहमानों के लिए पाव रोटी डमी बम के बजाय एक बेंच हथौड़ा पर लाया। किसी ने अमेरिकियों को तीन उंगलियों का एक प्रसिद्ध संयोजन दिखाया। "मेहमाननवाज" क्रीमियन ने अमेरिकी नाविकों को भी जाने नहीं दिया। आज के बारे में हम क्या कह सकते हैं, जब क्रीमिया और सेवस्तोपोल रूसी हो गए, और नाटो और पेंटागन ने रूसी सेना के साथ सभी सैन्य संबंध तोड़ दिए। मॉस्को में न तो ब्रसेल्स, न ही वाशिंगटन लंबे समय से भागीदारों के लिए एक भागीदार रहा है, और निश्चित रूप से, काले सागर में रूस के क्षेत्रीय जल के पास विदेशी जहाजों की मांग के बिना रूसी जनरलों और एडमिरलों द्वारा स्पष्ट रूप से अनफिट माना जाता है। और, स्वाभाविक रूप से, काला सागर बेड़े के सैन्य कर्मियों के निपटान में सभी संभव तरीकों से, वे हर तरह से हमारे देश की संप्रभुता के संभावित उल्लंघन को रोकेंगे।
रूस के क्षेत्रीय जल की सीमा पर संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो के युद्धपोतों पर घरेलू हमले के विमानों को उड़ाना बिन बुलाए मेहमानों को याद दिलाने का एक तरीका है, जैसा कि कहा जाता है, मिखाइल गोर्बाचेव, जो काला सागर में है। इसके अलावा, वे किसी भी अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन नहीं करते हैं। लेकिन वे अपनी लड़ाकू क्षमताओं को भी नहीं भूलते। ऐसा कहा जाता है कि अमेरिकी विध्वंसक ड्रॉन्ड कुक यूआरओ के नाविक अभी भी एक सिहरन के साथ याद करते हैं कि कैसे रूसी सु-एक्सएनयूएमएक्सपर्लेरी एक्सएनयूएमएक्स ने एक बार अपने एंटेना पर उड़ान भरी थी, पूरी क्षमता से खैबिनी रेडियो-इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली में कटौती की, जिसके कारण युद्धपोत सभी विफल हो गए। प्रबंधन परिसरों हथियार। जिसमें प्रशंसा प्रणाली एजिस भी शामिल है।
फिर भी, नाटो जहाज नियमित रूप से काला सागर में प्रवेश करना जारी रखते हैं, ब्लॉक में अपने सहयोगियों के बंदरगाहों का दौरा करते हैं। उदाहरण के लिए, बुल्गारिया, जहां, गठबंधन के नौसैनिक बलों के नियंत्रण बिंदुओं में से एक बनाया जा रहा है। रोमानिया, जहां अमेरिकी मिसाइल रक्षा बेस एजिस सिस्टम और SM-3 एंटीमाइलेस के साथ बनाया जा रहा है। तुर्की, जहां इज़मिर और इनरलिक में अमेरिकी ठिकानों पर डेढ़ हज़ार सैनिक और पेंटागन के अधिकारी हैं। और अब रूस की ओर एक शत्रुतापूर्ण यूक्रेन की सेना के संयुक्त प्रशिक्षण में भी साझेदार हैं और अगस्त के एक्सन्यूएमएक्स तक, जॉर्जिया के संबंधों तक हमारे साथ स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन अब इन जहाजों के नाविकों को अपने आंदोलन के मार्गों की सावधानीपूर्वक निगरानी करने के लिए मजबूर किया जाता है। और, ज़ाहिर है, मॉन्ट्रो कन्वेंशन की आवश्यकताओं का अनुपालन करते हैं। दिन के 21 से अधिक काला सागर बेसिन में उनके प्रवास की अवधि से अधिक न हो और 45 KT पर उनके जहाजों के कुल विस्थापन से अधिक न हो। यहां और अंतिम बार कॉन्स्टंटा के रोमानियाई बंदरगाह पर, अमेरिकी विध्वंसक URO कोल (DDG-67), जो फरवरी 8X से काला सागर में था। 25 फरवरी समाप्त हो गया। ब्लैक नेवी के पश्चिमी तट के अपने संयुक्त युद्धाभ्यास की तरह, फ्रान्सिस Marasesti (F 111) और रोमानियाई नौसेना के रेजिना मारिया (F 222) के साथ, और फिर फ्रिगेट यिलदिरिम (F-243) और तुर्की नौसेना के पनडुब्बी Yildiray (S 350) के साथ।
ब्लैक सी फ़्लीट के पूर्व कमांडर के अनुसार, और आजकल रूसी सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के प्रमुख, एडमिरल इगोर कासातोनोव के सलाहकार, नाटो युद्धपोतों की काला सागर की यात्राएं हमारे देश के खिलाफ पश्चिम द्वारा की गई खुफिया जानकारी का हिस्सा हैं। यह उनकी भूमि और उपग्रह निगरानी का पूरक है। बेशक, इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस का संचालन करने वाले एक या दो जहाज हमें कोई विशेष नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं, एडमिरल कहते हैं, लेकिन एक जटिल में यह बहुत अप्रिय है। इसलिए, हमें स्थिति की लगातार निगरानी और नियंत्रण करने के लिए मजबूर किया जाता है, और जब ये जहाज प्रवेश करते हैं, तो खुफिया संकेतों को कम करने और रडार गतिविधि को कमजोर करने के लिए उपाय करते हैं। आइए एडमिरल जोड़ेंः एक कारण के लिए सैन्य आचरण टोही - जिज्ञासा से बाहर। यह औद्योगिक, सामाजिक और सैन्य उद्देश्यों में सबसे महत्वपूर्ण हमलों की तैयारी है। उनमें से कुछ सर्बियाई राजधानी बेलग्रेड की जीवन समर्थन सुविधाओं की तरह हैं, जिस पर अमेरिका और नाटो के जहाजों ने एक्सएनयूएमएक्स वर्ष में मिसाइल हमले शुरू किए थे।
काला सागर में अमेरिका और नाटो की बढ़ी हुई गतिविधि, जिसे यहां तक कि आक्रामक भी कहा जा सकता है, काला सागर बेसिन में रूस के पड़ोसियों के साथ अपने सैन्य संबंधों को मजबूत करना, अपने क्षेत्रों पर सैन्य ठिकानों की तैनाती, इस क्षेत्र में रंग प्रस्तावों का उकसाना हमारे देश की दक्षिणी सीमाओं की सुरक्षा बढ़ाने पर ध्यान देता है। क्रीमिया में शामिल है। कोई भी उसे छिपाता नहीं है।
रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने कहा कि यूक्रेन में बिगड़ती स्थिति और रूसी सीमा के पास बढ़ती विदेशी सैन्य उपस्थिति ने दक्षिणी सैन्य जिले की कमान के काम में समायोजन किया है, जिसमें क्रीमिया भी शामिल है। और सैन्य नेतृत्व की प्राथमिकताओं में से एक क्रिमिनल क्षेत्र में सेनाओं की एक पूर्ण और आत्मनिर्भर समूह की तैनाती थी। प्रायद्वीप पर किस तरह के सिस्टम और हथियार सिस्टम और कॉम्बैट सपोर्ट सिस्टम हैं, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। लेकिन खुले प्रेस में एक से अधिक बार ऐसे शब्दों का उच्चारण किया गया था कि यहां एक पूर्ण विकसित और गहन रूप से विकसित वायु रक्षा प्रणाली बनाई गई थी। यह C-300PMU और Tor-M2 प्रकार के विमानभेदी मिसाइल प्रणालियों पर आधारित है, साथ ही साथ पैंटीर-C1 वायु-रक्षा मिसाइल प्रणाली है। तटीय रक्षा यखोंट सुपरसोनिक एंटी-शिप मिसाइल से लैस बैस्टियन मिसाइल सिस्टम द्वारा प्रदान की जाती है। यह सक्षम है (हम जनरल ब्रिजलव के साथ सहमत होंगे) नियंत्रण में रखने के लिए और, जैसा कि वे कहते हैं, रूस के सभी क्षेत्रीय जल और यहां तक कि हमारे आर्थिक हितों के क्षेत्र के माध्यम से स्वीप करते हैं।
इसके अलावा, क्रीमिया में, काला सागर बेड़े के जहाजों और इसके ढांचे को बनाने वाले विभिन्न हिस्सों के अलावा, सु-एक्सएनयूएमएक्स और मिग-एक्सएनयूएमएक्स सेनानियों के फ्रंट स्क्वाड्रन तैनात किए गए, फ्रंट-लाइन बमवर्षक और हमलावर विमान एसयू-एक्सएनयूएमएक्स और एसयू-एक्सएनयूएमएक्स, और यहां तक कि आधिकारिक तौर पर भी नहीं था। लंबी दूरी की Tu-30М29 बमवर्षक द्वारा पुष्टि की गई। आने वाले महीनों और यहां तक कि वर्षों में, छह डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों और जितने भी फ्रिगेट सेवस्तोपोल और नोवोरोस्सिएस्क में आने चाहिए, जहां ब्लैक सी फ्लीट के जहाजों के लिए एक नया आधार बनाया जा रहा है। उनमें से पहला - एक्सएनयूएमएक्स "नोवोरोस्सिएस्क" परियोजना की डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां और एक्सएनयूएमएक्स "एडमिरल ग्रिगोरोविच" परियोजना का फ्रिगेट - पहले से ही समुद्री परीक्षणों से गुजर रहा है और जल्द ही बेड़े के मुकाबले का हिस्सा बन जाएगा।
इस सारे सैन्यीकरण का आह्वान करते हुए, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि काला सागर बेड़े के प्रमुख, मिसाइल क्रूजर "मास्को" की 30 वर्षों में एक उम्र है, और सेवस्तोपोल "बोरा" और "सैमम" में सबसे कम उम्र के जहाज पिछली शताब्दी के 90 की शुरुआत के रूप में बेड़े में दिखाई दिए। और इस तथ्य के बावजूद कि रूस के काले सागर बेड़े की तुलना में केवल तुर्की के पास आज अधिक जहाज हैं, भाषा की बारी नहीं है। केवल जनरल ब्रीडलोव ऐसी बकवास करने में सक्षम है।
वह मगरमच्छ के रूप में हमारे देश की सुरक्षा को मजबूत करने के बारे में मगरमच्छ के आंसू देखती है, किसी भी तरह, उसे रूस के संबंध में उत्तरी अटलांटिक गठबंधन द्वारा अपनाई गई आक्रामक नीति को उचित ठहराना चाहिए। जैसा कि वे लोगों में कहते हैं, वह दूसरे की आंख में एक धब्बा देखता है, और अपने आप में लॉग को नोटिस नहीं करता है।
- लेखकः
- मूल स्रोतः
|
756e598957dc000ae855cdc6c5a11473b2209667 | web | रिपोर्टर एक विशेषज्ञ है जो इसमें व्यस्त हैप्रशिक्षण घोड़ों वह सवारी करने के लिए उन्हें तैयार करता है सर्कस में ट्रेनर के रूप में कार्य कर सकते हैं। हर कोई सवार नहीं बन सकता है, क्योंकि इसमें आयरन तंत्रिकाओं की आवश्यकता होगी, जानवरों के लिए प्यार, खासकर घोड़ों के लिए, उन्हें समझने की क्षमता और एक आम "भाषा" खोजने के लिए।
इसलिए, स्कूल चल रहे थे घोड़ों के प्रशिक्षकों को "सवार" कहा जाता था यह घुड़सवारी का एक शिक्षक है सवार वर्गों और मेलों में प्रदर्शन किया। रूसी सेना में घुड़सवार रेजिमेंट, पैर ब्रिगेडों में और प्रत्येक घोड़े की बैटरी में सवार की सेवा में था।
यूरोप में पहली सवारी वाली विद्यालय खोले गए। उन्होंने घोड़ों के प्रबंधन को दिखाया, एक्रोबैट स्टंट 1772 में, एफ। एस्ले ने लंदन में एक अलग इमारत का निर्माण किया, जिसका उद्देश्य सवारों के प्रशिक्षण के लिए था।
17 9 3 में एक समान स्कूल पेरिस में दिखाई दिया। लेकिन इमारत घुड़सवारी प्रदर्शन के लिए इस्तेमाल किया गया था और पहली बार एक सर्कस बुलाया गया था मास्को में, इसी तरह की इमारत 1853 में ही बनाई गई थी। इससे पहले, सवार केवल लोक उत्सव और मेले में थे।
सेंट पीटर्सबर्ग में 1819 से 1882 साल तक। एक विशेष ब्रीएटर स्कूल का काम किया, जिसमें उन्होंने घुड़सवारों के लिए घोड़ों की तैयारी के लिए विशेषज्ञों को प्रशिक्षित किया। लेकिन 1822 से पहले संस्था को शाही अदालत में पहले दिया गया था और मिखाइलोव्स्की मनेज का नाम देना शुरू किया था। इसके बाद, दोहराया गया स्कूल पूरी तरह समाप्त कर दिया गया।
सवार घोड़ों का कोच है। वह घुड़सवार खेल, सर्कस, चलने के लिए जानवरों को तैयार करता है। सच है, एथलीट खुद घोड़े के साथ काम करना पसंद करते हैं। लेकिन ऐसे मामले हैं जब सवार द्वारा तैयार जानवर ओलंपिक में भी जीते थे। प्रशिक्षण घोड़ों में विभिन्न तत्वों को काम करने में शामिल होते हैं।
एक सवार कई घोड़ों के साथ काम कर सकता है। वे अलग-अलग समय पर ट्रेन करते हैं। लेकिन काम हर समय जारी रखना चाहिए। केवल प्रशिक्षण की तीव्रता में परिवर्तन।
सर्कस राइडर "दाहिने हाथ" हैट्रेनर। यह कोच अभ्यावेदन के लिए घोड़ों तैयारी कर रहा है। अपने कार्य को पशु केवल आसपास नहीं चल रहा है, लेकिन सीमित स्थान, दर्शकों चिल्लाती और तेज आवाज में संगीत का डर नहीं है सिखाना है।
घोड़े की पुलिस में, सवार घोड़ों को सिखाते हैं कि लोगों को जोरदार झटके, आवाज, विस्फोट, भीड़ पर प्रतिक्रिया न दें। लेकिन ऐसे कोच जानवरों के साथ काम करने से पहले एक पुलिस स्कूल खत्म करने की आवश्यकता है।
अक्सर सवार हिप्पोथेरेपी के लिए घोड़ा तैयार करते हैं। यह बीमार बच्चों के इलाज के साधन के रूप में सवार होने का उपयोग है। हिप्पोथेरेपी के लिए धन्यवाद, पक्षाघात को सही किया गया है, मनोविज्ञान क्रम में रखा गया है। आंशिक रूप से इस तकनीक की मदद से, प्रारंभिक ऑटिज़्म, डाउन सिंड्रोम और ओलिगोफ्रेनिया का इलाज किया जाता है। लेकिन इसके लिए, घोड़ा स्वस्थ होना चाहिए, यहां तक कि शांत गति भी होनी चाहिए। जानवर में कोई भी आक्रामकता पूरी तरह से बाहर रखा गया है। यह वह सवार है जो उन बच्चों को आदी करता है जो अचानक झूठ बोल सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं, चिल्ला सकते हैं, आदि। और सवार दो सवारों को ले जाने के लिए घोड़ा तैयार करता है, क्योंकि बच्चे को प्रशिक्षक के साथ जोड़े में सवारी करना चाहिए।
कोचिंग-राइडर न केवल मांग के लिए हैघोड़े के पौधों, हिप्पोड्रोम आदि पर घोड़ों की तैयारी आदि। ऐसे विशेषज्ञों को निजी घोड़े के मालिकों के बीच बड़ी मांग है। कुछ में जानवर के साथ अध्ययन करने का समय नहीं होता है, और दूसरों के पास अनुभव होता है। इसलिए, यहां तक कि एक नौसिखिया संवाददाता भी काम ढूंढ सकता है। यदि उसके पास पहले से ही सेवा का ठोस रिकॉर्ड है, तो ऐसे कोच "स्पॉट पर" होंगे।
ऐसा लगता है कि सवार -एक असंगत पेशे, क्योंकि मांग आपूर्ति से कम है। लेकिन यदि आप व्यावसायिकता के स्तर तक पहुंचते हैं, तो ऐसे विशेषज्ञ एक दुर्लभता है। उसे अपने काम के लिए बहुत बड़ा पैसा मिलता है। घोड़े की दौड़ के लिए घोड़ों की यात्रा या तैयारी करने वाले प्रशिक्षकों का वेतन प्रति प्रशिक्षण सत्र 150 से 500 या उससे अधिक डॉलर तक हो सकता है।
लेकिन शुरुआती लोगों के लिए भी हमेशा एक जगह होती है। उदाहरण के लिए, आप एक छोटे से निजी स्थिर में चलने वाले घोड़ों को तैयार कर सकते हैं। यहां तक कि यदि मालिक प्रति घोड़े $ 50 का भुगतान करते हैं, तो यह न केवल वेतन होगा, बल्कि एक अच्छा अभ्यास होगा, कैरियर की सीढ़ी पर प्रगति की शुरुआत होगी।
एक सवार के पेशे को प्राप्त करने के लिए, आपको पास करने की आवश्यकता हैविशेष प्रशिक्षण प्रारंभ में, बचपन से, आप युवाओं में नामांकन कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, मॉस्को और मॉस्को में उनके पास काफी बड़ा चयन है। विभिन्न सीखने की स्थितियों के साथ भुगतान और मुक्त कक्षाएं हैं। 10 वर्षों से ऐसे स्कूलों में नामांकित करें।
कुछ संस्थानों में, प्रशिक्षण "शून्य" से शुरू होता हैदूसरों में वे केवल सवारी के शुरुआती कौशल के साथ ही लेते हैं। किसी भी मामले में, घोड़े के स्कूल में दाखिला लेने पर, बाल रोग विशेषज्ञ से चिकित्सा प्रमाणपत्र और माता-पिता से सहमति का बयान आवश्यक होगा।
सवार विदेश में प्रशिक्षित किया जाता हैः जर्मनी, फिनलैंड और ऑस्ट्रिया में। आमतौर पर तीन साल के लिए। प्रशिक्षण पशु की शारीरिक रचना और इसकी सभी आदतों के अध्ययन के साथ परिचित होने से शुरू होता है। कई व्यावहारिक कक्षाएं भी आयोजित की जाती हैं। परीक्षा के बाद।
एक सवार बनने के लिए, इसमें एक वर्ष से अधिक समय लगेगा। ऐसे प्रशिक्षकों को एक निश्चित योजना के अनुसार प्रशिक्षित किया जाता है। सबसे पहले, शुरुआती प्रारंभिक समूहों में शुरुआती पहचान की जाती है। पहले चरण में, सुरक्षा इंजीनियरिंग में प्रशिक्षण, घोड़े की उचित देखभाल और आगे के काम के लिए जानवर की तैयारी होती है। पहले वर्ष में, सवार घोड़े को सही कदम, ट्रॉट और गैलप सिखाने में सक्षम होना चाहिए।
दूसरा चरण विभिन्न गेट्स का मास्टरिंग है। यह प्रशिक्षण का दूसरा वर्ष है। सबसे सक्षम छात्रों को प्रशिक्षण समूहों में स्थानांतरित कर दिया जाता है। इन वर्गों में अधिक तीव्र हैं। प्रतियोगिताओं में भाग लेने, पुरस्कार लेने और खेल श्रेणियां प्राप्त करने का अवसर है।
इसके अलावा एक और तरीका है कि आप दुर्लभ विशेषता कोच-राइडर प्राप्त कर सकते हैं। प्रशिक्षण केवल व्यावसायिक स्कूलों में आयोजित किया जाता है। मास्को क्षेत्र में उनमें से केवल दो हैं - पीयू -51 और पीयू -98।
सवार के मुख्य गुणों में से एक धैर्य है। कभी-कभी परिणाम लंबे और जिद्दी घोड़े के प्रशिक्षण के बाद भी कठिनाई के साथ दिया जाता है। एक जानवर पर तोड़ने के क्रम में, लौह नसों आवश्यक हैं। ट्रेन करने में बहुत समय और ऊर्जा लगती है। यह पेशेवर सलाह और प्राकृतिक फ्लेयर ले जाएगा।
घोड़े को साधनों के रूप में नहीं माना जा सकता हैकमाई या परिवहन के साधन। पशु उनके प्रति दृष्टिकोण महसूस करते हैं। लेकिन आप सीखने की प्रक्रिया में "भंग नहीं" कर सकते हैं, अपनी आत्मा का निवेश कर सकते हैं। आखिरकार घोड़े को भाग लेना होगा।
सवार का कार्य घोड़े को तैयार करना हैसवार, राइडर का पालन करने के लिए जानवर को सिखाने के लिए। सवार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि घोड़ा काम करना पसंद करे। प्रशिक्षक को जानवर के मनोदशा को ध्यान में रखकर, भार को विनियमित और पुनर्वितरण करने में सक्षम होना चाहिए।
"यात्रा" की धारणा सही हैसवार के नीचे घोड़े की संतुलन। जानवर शारीरिक रूप से अच्छी तरह से विकसित, प्लास्टिक, मजबूत पेशाब होना चाहिए, और सवार की आवश्यकताओं को स्वीकार और सख्ती से पूरा करना चाहिए। टेम्स और एक युवा अखंड घोड़े सिर्फ सवार को शांत करता है। इस मामले में प्रशिक्षण क्रूरता स्वीकार नहीं करता है। जानवर को दंडित नहीं किया जा सकता है। चाबुक का उपयोग केवल "सूचक" के रूप में किया जाना चाहिए।
सवार को घोड़े को किसी के नीचे चलने के लिए सिखाया जाना चाहिएविभिन्न पैरों में सवार, मोड़, कूद, इत्यादि बदलते हैं और इसके लिए कोच में धैर्य, शांति और दृढ़ता होनी चाहिए। जानवरों को प्यार करना, और विशेष रूप से घोड़ों, उनसे डरते नहीं हैं, अगर जानवर समझ में नहीं आता है या गलती नहीं करता है तो परेशान न हों।
घोड़ों के मालिकों द्वारा लगातार रूगरों की आवश्यकता होती है, क्योंकि बाद में अक्सर समय नहीं होता है या शारीरिक रूप से अपने जानवरों की निगरानी नहीं कर सकता है।
एक उच्च योग्य विशेषज्ञ की जरूरत हैघुड़सवार क्लब और स्कूल, क्योंकि प्रतियोगिताओं के लिए घोड़ों को तैयार करना उनका काम है। अनुभवी सवार एथलीटों के साथ मिलकर काम करते हैं, उनके साथ विदेशी प्रतियोगिताओं में जाते हैं।
|
5f84ef78e0e9a6f91e43759a36587a3dc3ddf282 | web | ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी. गोस्वामी तुलसीदास ने बहुत पहले ही कह दिया था. रामायण में भी जगज्जननी सीता की अग्नि परीक्षा के बाद भी धोबी के द्वारा लांछना देने पर राजमहल से निर्वासित कर जंगल में भेज दिया गया, वह भी गर्भावस्था में. अहिल्या प्रकरण से भी हम सभी परिचित हैं. द्रौपदी के साथ क्या हुआ, हम सभी वाकिफ हैं. पुराणों के समय से महिलाओं और शूद्रों की अवहेलना होती रही है. इतिहास में भी महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है. इतिहास में भी महिलाओं के साथ बहुत भद्रता से पेश नहीं आया गया. सती प्रथा उन्मूलन, विधवा विवाह प्रारंभ और बाल विवाह उन्मूलन आदि कार्यक्रम महिलाओं की ख़राब स्थिति को देखते हुए ही चलाये किये गए. काफी वेश्याएं मजबूरीवश ही यह पेशा अपनाती हैं. कोठे पर जानेवाले तो शरीफ और खानदानी होते हैं. पर वेश्याओं को कभी भी अच्छी नजर से नहीं देखा गया. कमोबेश आज भी स्थिति वही है.
हालांकि पहले भी और आज भी महिलाएं सम्मान और सम्मानजनक पद भी पा चुकी है. पहले भी देवियाँ थी और आज भी वे पूज्य हैं. आज भी अनेकों महिलाएं कई सम्मानजनक पद को सुशोभित कर चुकी हैं. प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, मुख्य मंत्री से लेकर कई पार्टियों की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. इसके अलावा कई जिम्मेदार पदों पर रहकर अपनी भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन का रही हैं. प्रधान मंत्री रह चुकी इंदिरा गाँधी को विश्व की ताकतवर हस्तियों में गणना की जाती रही है. पर लांछन लगानेवाले उनके भी चरित्रहनन से बाज नहीं आये. सोनिया गाँधी पर भी खूब प्रहार किये गए. एक दिवंगत भाजपा नेता ने उनकी तुलना मोनिका लेवेस्की से कर दी थी. वर्तमान सरकार के मुखर मंत्री भी सोनिया गाँधी पर अमर्यादित टिप्पणी कर चुके हैं. महिला हैं, यह सब सुनना/सहना पड़ेगा. महिलाओं, वृद्धाओं, बच्चियों के साथ हो रहे घृणित कर्मों से समाचार पत्र भरे रहते हैं. निर्भया योजना, महिला सशक्तिकरण, बेटी बचाओ, बेटी पढाओ आदि योजनाओं के होते हुए भी महिलाओं पर ज्यादती हो रही है और कब तक होती रहेगी कहना मुश्किल है. भाजपा की वर्तमान सरकार की पूर्व मानव संशाधन विकास मंत्री (वर्तमान कपड़ा मंत्री) पर भी बीच-बीच में फब्तियां कसी जाती रही हैं. हालाँकि वे स्वयम मुखर हैं और वे अपना बचाव करती रही हैं.
वर्तमान सन्दर्भ है, मायावाती को भाजपा के उत्तर प्रदेश के पार्टी उपाध्यक्ष श्री दया शंकर सिंह ने उन्हें सार्वजनिक सभा में वेश्या कहा. मायावती ने इसका पुरजोर विरोध किया. संसद में खूब दहाड़ी और अपने कार्यकर्ताओं को भी एक तरह से ललकार दिया कि वे सड़कों पर उतर आयें और विरोध प्रदर्शन करें. हालाँकि दयाशंकर सिंह ने माफी मांग ली पर उनपर कई धाराएं लगाकर प्राथमिकी दर्ज कर दी गयी है. उन्हें गिरफ्तार करने के लिए यु पी पुलिस ढूंढ रही है, पर वे तो अंडरग्राउंड हो गए. हालाँकि एक प्रेस को उन्होंने साक्षात्कार भी इसी बीच दे दिया है और फिर से माफी मांग ली है और यह भी कहा है कि उनकी गलती की सजा उनकी पत्नी और बेटी को क्यों दी जा रही है? उल्लेखनीय है कि मायावती की शह पाकर बसपा कार्यकर्ताओं की भीड़ ने दयाशंकर की पत्नी और उनकी १२ वर्षीय बेटी को भी अपमान जनक शब्दों से नवाजा. दयाशंकर की बेटी सदमे में हैं और उनकी पत्नी स्वाति सिंह उत्तेजित. उन्होंने मायावती और उनके कार्यकर्ताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा चुकी हैं. धरने पर बैठने की तैयारी में थी, पर शायद बेटी की तबीयत ज्यादा ख़राब हो गयी इसलिए फिलहाल धरने का कार्यक्रम टाल दिया है. पर मीडिया में वह भी मायावती पर खूब हमला कर रही है. स्वाति जी सुशिक्षित, LLB और पूर्व लेक्चरर भी हैं भाजपा प्रदेश के उपाद्ध्यक्ष की पत्नी हैं. इसलिए मायावती पर वह भी जमकर प्रहार कर रही हैं. उनका आक्रोश भी खूब झलक रहा है. वह मायावती और उनके कार्यकर्ताओं पर हमलावर हैं, पर अपने पति के द्वारा प्रयुक्त शब्द पर उनका जवाब रक्षात्मक ही है. कुछ लोग उनमें राजनीतिक नेत्री की छवि भीं देख रहे हैं. क्योंकि दयाशंकर के पार्टी से ६ साल के निष्कासन पर उनकी जगह वही भर सकती हैं और एक खास वर्ग के वोटों की हकदार हो सकती हैं.
रविवार, २४ जुलाई को मायावती का प्रेस कांफ्रेंस हुआ उसमें मायावती ने भाजपा पर जमकर प्रहार किया साथ ही दयाशंकर की माँ, बहन और पत्नी को भी दोहरी मानसिकता की शिकार बताया. जबकि बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दकी का बचाव करती नजर आयीं. मायावती के अनुसार नसीमुदीन ने कोई गलत शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था. वे तो दयाशंकर को पेश करने की मांग कर रहे थे. गुजरात के ऊना में दलितों के साथ हुए प्रताड़ना का मुद्दा भी उठाया. रोहित वेमुला केस को भी उन्होंने कुरेदा और यह अहसास करवाया कि भाजपा दलित विरोधी पार्टी है. बसपा एक राजनीतिक पार्टी के साथ एक सामाजिक परिवर्तन की भी पैरोकार है. मायावती ने सपा और भाजपा की मिलीभगत की तरफ भी इशारा किया. क्योंकि अब तक दयाशंकर की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई है? इस मामले में प्रधान मंत्री की चुप्पी भी विपक्ष को प्रश्न उठाने का मौका दे देता है.
जाहिर है मामला राजनीतिक है और इसे दोनों पार्टियाँ अपने-अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं. भाजपा प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने कहा कि मायावती खुद दलित विरोधी हैं और उन्हें चुनाव के समय ही दलितों की याद आती है. भाजपा भी दलितों के घर खाना खाकर, बाबा साहेब अम्बेडकर की १२५ जयंती के उपलक्ष्य में विभिन्न कार्यक्रम करके बसपा के वोट बैंक दलित समाज में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं. अब तो चुनाव परिणाम ही बताएगा कि दलित वोट किधर जाता है?
उधर आम आदमी पार्टी के विधायक अमानुतल्ला खान को एक महिला की साथ बदसलूकी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है. ख़बरों के अनुसार अबतक आम आदमी पार्टी के नौवें विधायक गिरफ्तार हो चुके हैं. शाम तक आम आदमी पार्टी के एक और विधायक नरेश यादव को भी पंजाब में विद्वेष फ़ैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. आम आदमी पार्टी पर कानून का शिकंजा शख्ती से लागू होता है. पर भाजपा के पदाधिकारी को पुलिस ढूढ़ ही नहीं पाती है. एक और बिहार भाजपा के पार्षद(एमएलसी) टुन्ना पाण्डेय पर किसी १२ वर्षीय लड़की के साथ ट्रेन में छेड़छाड़ का आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. उसे भी भाजपा ने तत्काल पार्टी से निलंबित कर दिया. इससे यह जाहिर होता है कि भाजपा फिलहाल अपनी छवि को बेदाग रखना चाहती है.
अब थोड़ी चर्चा मानसून की कर ली जाय. इस साल पहले से ही अच्छे मानसून की भविष्यवाणी की जा रही थी. मानसून अच्छी हो भी रही है. कहीं-कहीं खासकर उत्तर भारत में अतिबृष्टि हो रही है. अतिबृष्टि से जान-माल का भी काफी नुकसान हो रहा है. बिहार झाड़खंड में देर से ही सही पर अभी अच्छी वर्षा हो रही है. खरीफ की अच्छी पैदावार की उम्मीद की जा सकती है. पर वर्तमान में दाल और सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं, इस पर सरकार का कोई खास नियंत्रण नहीं है. सब्जियों और खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण और रख-रखाव के मामले में भी अभी बहुत कुछ करना बाकी है. किसानों को उनकी लागत के अनुसार दाम नहीं मिलते, इसलिए वे खेती-बारी की पेशा से दूर होते जा रहे हैं. उपजाऊ जमीन या तो बेकार हैं या वहाँ अब ऊंचे ऊंचे महल बन गए हैं. गाँव में भी शहर बसाये जा रहे हैं. विकास के दौर में कृषि का अपेक्षित विकास नहीं हो रहा है. भारत गांवों का देश है, अभी भी लगभग ७० प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है. कृषि और कृषि आधारित उनका पेशा है पर वे गरीब हैं. ऋण ग्रस्त हैं. इसलिए वे असंतोष की आग में आत्महत्या करने को भी मजबूर हैं. सच कहा जाय तो दलित और पिछड़ा वही हैं. कब मिलेगी उन्हें इस दलितपने और निर्धनपने से आजादी! पूरे देश को खाना खिलानेवाला वर्ग आज स्वयम भूखा नंगा है. खोखले वादों से तो कुछ भला नहीं होनेवाला. जमीनी स्तर पर काम होने चाहिए. सामाजिक समरसता और समान वितरण प्रणाली से ही सबका भला होगा. तभी होगा जय भारत और भारत माता की जय!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
|
101e5d8413c85393f86cf6389cad44ed1e8072f8 | web | आईडी सॉफ्टवेयर और बेथेस्डा के साथ डोमः शाश्वत अब जंगली में, कुछ लोगों को इस बात का स्वाद मिल रहा है कि गेमप्ले कैसा है जबकि अन्य को इससे थोड़ी परेशानी हो रही है। हालांकि कोई चिंता नहीं। चाहे आप गेम को निनटेंडो स्विच, पीसी, या एक्सबॉक्स वन या पीएस 4 पर खरीदे, एक वॉकथ्रू उपलब्ध है जो गेम को शुरू से अंत तक कवर करता है।
YouTuber MKIceandFire पूरे 15 वीडियो प्लेलिस्ट में गेम को कवर किया, जिसमें एक प्लेथ्रू की विशेषता है जो केवल 10 घंटों में देखता है। आप इसे नीचे देख सकते हैं।
अभियान मोड का चयन करने के बाद आप निम्नलिखित कठिनाइयों से चयन कर पाएंगेः
दो अतिरिक्त मोड हैंः
- एक्स्ट्रा लाइफ मोड।
अब अल्ट्रा-नाइटमेयर एक और एक सौदा है जहां यदि आप पेंच करते हैं तो आप अच्छे के लिए मर चुके हैं। Permadeath फीचर आपको एक बाजार दिखाएगा कि आपको धूल से थोड़ा पहले कितनी दूर मिला था।
खेल पृथ्वी पर नर्क के साथ शुरू होता है, मूल की तरह कयामत 2 1990s में वापस से।
इंट्रो सीक्वेंस में मिक गॉर्डन के E1M1 थीम के रीमिक्स को दिखाया गया है, जैसा कि डूम गाइ ने अपने टेस्टोस्टेरोन पर डाला है और हर नरक में अपवित्र मर्दानगी को फैलाने के लिए आगे बढ़ता है, जिसने पृथ्वी पर खुर स्थापित करने की गलती की।
एक संक्षिप्त ट्यूटोरियल है जो आपको सिखाता है कि कैसे खेलना है; ग्लोरी किल्स को कैसे निभाया जाए, कैसे जंजीर को उतारा जाए और कैसे उसे फिर से जिया जाए।
स्तर के माध्यम से रेखीय मार्ग का अनुसरण करें जब तक आप मुकाबला बन्दूक मोड प्राप्त करने के बाद पहले क्षेत्र खंड तक नहीं पहुंचते।
अपने पंप-एक्शन शॉटगन और विस्फोटक ट्रिगर उंगली के साथ अपने क्षय मांस का छोटा काम करके घातक रूप से चुनौती देने वाले इंटरलेपर्स को आगे बढ़ाएं।
एक बार जब आप क्षेत्र के सभी दुश्मनों से छुटकारा पा लेते हैं, तो निगॉक्स के कक्षों में आगे बढ़ें।
दूम गाइ नर्क पुजारी का छोटा काम करेगा, और आपको फिर अन्य दो का पता लगाने और मारने की आवश्यकता होगी। हेल प्रीस्ट बिल्डिंग के नीचे यात्रा करें और दीवार के माध्यम से बस्ट करें।
आप दुर्घटनाग्रस्त शटल के चारों ओर अपना रास्ता बना सकते हैं और ध्रुव के पार डबल कूद कर सकते हैं, जो अर्चनट्रॉन के साथ आपकी पहली मुठभेड़ तक पहुँच सकते हैं।
यदि आपने युद्धक बन्दूक के लिए ग्रेनेड लांचर का चयन किया है तो आप दिमागी चतुष्कोणीय खतरे और इसके अवयवों का कम काम कर पाएंगे।
कवच के साथ ईंधन और बन्दूक के गोले पकड़ो।
यह भी सुनिश्चित करें कि आपके सभी बारूद लाश को बर्बाद करने के बजाय उनमें से अतिरिक्त आपूर्ति प्राप्त करने के लिए कमजोर दुश्मनों को विस्फोट और हाथापाई करें।
खेल को वैकल्पिक हमलों के साथ खेला जाता है ताकि आप पूरी तरह से आपूर्ति से बाहर रहने से बचें। दुश्मनों को चमक और तब तक उन्हें मारने के लिए कुछ शॉट्स का उपयोग करें।
जीर्ण भवनों के माध्यम से अपना रास्ता बनाओ, और इमारतों में से एक के दूसरे तल के माध्यम से बाहर वापस सिर और आप नीचे दुश्मनों का एक गुच्छा पाएंगे।
अपने ग्रेनेड्स को अर्चानाट्रॉन के लिए बचाना सुनिश्चित करें अन्यथा यह आपके जीवन को वास्तव में जल्दी से कम कर सकता है। इसकी तोप पर निशाना लगाकर इसे कमीशन से उड़ाने और इसे गंभीर रूप से कमजोर करने के लिए।
इमारत के अंदर जाओ और अगले खंड तक पहुंचने के लिए दीवार पर हाथापाई करो।
बिल्डिंग को हेड करें और येलो की कार्ड को पकड़ें, यह आपको मेट्रो टर्मिनल तक पहुंच प्रदान करेगा।
मेट्रो के माध्यम से नेविगेट करें और फ्यूजन तोपों को चकमा दें।
आपको भारी तोप या लड़ाकू बन्दूक के लिए एक नया अपग्रेड मॉड्यूल भी मिलेगा।
मेट्रो के माध्यम से अपना रास्ता बनाओ और आप उस नाजुक ग्रेनेड तक पहुंचेंगे, जो मूल रूप से एक शिकारी के कंधे-तोप है।
टर्मिनल के माध्यम से आगे बढ़ें और एक और क्षेत्र अनुक्रम हो।
दुश्मनों के माध्यम से लड़ो और फिर गढ़ के लिए अपना रास्ता बनाओ।
उस रास्ते के चारों ओर अपना रास्ता बनाएं, जहां आपको क्षतिग्रस्त मेट्रो के अंदर जाने के लिए रॉक फेस पर कूदना और चढ़ना होता है।
टर्मिनल में जाएँ और वहाँ एक और अखाड़ा लड़ाई है जिसके ज़रिए आपको अपनी लड़ाई लड़नी होगी।
यहां सावधानी बरतें क्योंकि यदि आप सावधान नहीं हैं तो अर्चानाट्रॉन आपको मुश्किल से निकाल सकता है, इसलिए इसे पहले और सबसे पहले बाहर निकालना सुनिश्चित करें।
एक बार जब आप बाहर निकलते हैं, तो आपको दुश्मनों के एक समूह और एक अर्चानाट्रॉन की ओर जाने वाली चट्टान की तरफ एक अतिरिक्त जीवन मिलेगा।
दुश्मनों को बाहर करो और गढ़ फाटकों की ओर अपना रास्ता बनाओ।
एक सिनेमाई खेल होगा और फिर आप अगले चरण में पहुँचेंगे।
शुरुआती भाग में आपको कुछ करना होगा राजकुमार फारस की दीवार पर चढ़ना।
जब तक आप पहले गढ़ के अंदर नहीं पहुंचते तब तक प्लेटफ़ॉर्म पर पार करें और फिर उस आंगन में आगे बढ़ें जहां आप अपने पहले हेल नाइट के खिलाफ उतरेंगे।
तुम भी नरक नाइट के निपटान के बाद रक्त पंच अनलॉक जाएगा। रक्त पंच आपको एक ही हाथापाई के हमले के साथ कई दुश्मनों को तुरंत मारने की अनुमति देगा।
आप अपने पहले Rune तक भी पहुँच प्राप्त कर सकते हैं, जो आपको सभी उपकरण स्लॉट्स को अनलॉक करने के बाद तीन रन तक लैस करने की अनुमति देगा।
गड्ढे में नीचे जाएं और नर्क नाइट को मार डालें। नरक शूरवीरों के लिए अपने चेनसो बारूद को बचाने के लिए सुनिश्चित करें क्योंकि चेनसा उन्हें जल्दी से मार सकता है। अगर आपके पास गैस के तीन डिब्बे हैं तो आप उन्हें तुरंत मार सकते हैं।
पुल पर आगे बढ़ें और मिक गॉर्डन के साउंडट्रैक को अपने गुस्से को भड़काने दें क्योंकि आप गढ़ के बपतिस्मा में अपने कौशल की शुरुआत करते हैं और हर फाउल जानवर को फाड़ देते हैं जो गढ़ के खंडहरों के पार जाता है।
सेंटिनल प्रतिमा के साथ मंच की ओर चेस के बाहर और बाहर सिर।
मंच की चक्की के साथ कमरे में आगे बढ़ें और दूसरी मंजिल तक जाएं जहां आपको एक नया कोडेक्स प्रविष्टि और कुछ हाथापाई पैनल मिलेंगे जिन्हें आपको नष्ट करना होगा।
यह डैश फ़ंक्शन को अनलॉक करेगा, जिसका उपयोग आप जमीन और हवा दोनों पर कर सकते हैं।
ग्राइंडर के ठीक बाहर प्लेटफॉर्म पर पहुंचने के लिए एयर डैश का उपयोग करें और किंग नोविक के क्वार्टर में प्रवेश करें। एक छोटा सिनेमाघर बजाएगा।
राजा के क्वार्टर से बाहर निकलें और आप एक और अखाड़ा लड़ाई के अधीन होंगे। यहाँ से आपको बिजली के फर्श के पार जाने और जहाज की बैटरी को पकड़ने की आवश्यकता होगी।
यदि आप बाहर मंच पर अपना रास्ता बनाते हैं तो आप एक गुप्त मुठभेड़ में संलग्न होंगे।
वहां से आपको पोर्टल गेट तक अपना रास्ता बनाना होगा, जो आपको रेवेनेंट के साथ अपने पहले मुकाबले में ले जाएगा।
आप इसे कमजोर करने के लिए रेवनेंट पर कंधे के तोपों को बंद करने के लिए भारी मशीन गन का उपयोग कर सकते हैं, या उस चलने वाले कंकाल से कभी-कभी नफरत करने वाले बकवास को विस्फोट करने के लिए प्लाज्मा राइफल का उपयोग कर सकते हैं।
मांस के गड्ढे की हिम्मत में नीचे सिर और आप एक हथियार मोड और एक 1up के साथ, वहाँ एक automap मिल जाएगा।
पावर कोर को पकड़ो और रास्ता खोलने के लिए डूम गाइ मेक पर इसका उपयोग करें।
दुःख की बात है कि हमें मेज़ का पूरा वजन देखने को नहीं मिला, लेकिन वहाँ से आपको खंडहरों के पार जाना होगा और दरवाज़ा खोलने के लिए हाइलाइटेड प्लेट चिह्नों का उपयोग करना होगा। बस हरे रंग की चमक वाली प्लेटों पर खड़े रहें जब तक आप दरवाजे तक नहीं पहुंचते और यह अगले क्षेत्र में खुल जाती है।
यह बुद्धिमान हो सकता है कि आप नीचे से नीचे उन्हें उलझाने से पहले ऊपर से दुश्मनों को क्या कर सकते हैं।
मिक गॉर्डन के साउंडट्रैक को अपनी आत्मा के ऊपर से धोने दें क्योंकि आप भूमि को दागने वाले सभी अशुद्ध घृणा पर न्याय के महान क्रोध को उजागर करते हैं।
प्लेटफ़ॉर्म पर अपना रास्ता बनाएं और डैश रीफिल को पकड़ें, जो फिर आपको एक और दीवार तक ले जाएगी जो आपको पावर कोर तक ले जाएगी, जिसमें आपको mech का भाला चार्ज करना होगा।
पावर कोर एक भाले को सक्रिय करेगा जो कि दानव के मांस में छेद कर देगा - भाले की नोक पर फैल जाएगा और दागी जानवर के हिम्मत के माध्यम से दूसरे पक्ष तक पहुंचने के लिए आगे बढ़ेगा।
एक और अखाड़ा युद्ध शुरू होगा। कताई की लपटों से बचें और अगले क्षेत्र में आगे बढ़ने से पहले आप क्या आपूर्ति कर सकते हैं।
दुश्मनों को साफ़ करो; इसे टाइटन पर दस्तक देने के लिए बॉक्स पर हाथापाई का उपयोग करें; बॉक्स का उपयोग उभड़नेवाला हड्डी के पार छलांग लगाने और टाइटन पर चढ़ने और पावर कोर को पकड़ने के लिए करें। टाइटन के अंदर मेक की तोप और सिर को ऊपर करने के लिए शक्ति का उपयोग करें। आपको एक सेंटिनल क्रिस्टल मिलेगा जिसके अंदर आप अपने गियर को अपग्रेड करने के लिए उपयोग कर सकते हैं।
प्लेटफार्मों और आग की झील के पार आगे बढ़ें।
यदि आप बहुत लंबे समय तक उन पर बने रहेंगे तो आपको तेजी से कार्य करना होगा क्योंकि प्लेटफॉर्म गिर जाएंगे।
कैकोडेमन्स को बाहर निकालें और फिर गुफा में अपना रास्ता बनाएं।
राक्षसों को साफ़ करें और आपके पास एक काइल कुंजी प्राप्त करने और एक बेलगाम, रॉक, तेजस्वी और धर्मी अनुभव में बहुत सारे राक्षसों से जूझने का विकल्प है जो एक ऑल-आउट गोर उत्सव है।
यदि आप चुनौती को पूरा करते हैं तो आप छह एम्पायर कुंजियों में से एक को अनलॉक कर देंगे, जिसका उपयोग आप बाद में मयक्र को अनलॉक करने के लिए कर सकते हैं।
आगे चलकर, डूम गाइ बेट्रेयर से मिलेंगे जिन्होंने अर्जेंटीना के योद्धाओं को समय और स्थान के हेलस्केप में बिखरे हुए छोड़ दिया। उन्होंने अपने बेटे को जीवित करने के लिए अपने व्यर्थ प्रयास में निर्वासन को चुना।
कयामत गाइ को बेतेयर से उपहार मिलता है, जिसे पहले कमांडर वैलेन के नाम से जाना जाता था, साथ ही खगोलीय लोकेटर के लिए बहाली भी।
निकास पोर्टल की ओर फ़्लोटिंग प्लेटफ़ॉर्म पर वापस जाएं।
जब आप नर्क के तट पर पहुंचते हैं, तो उन सभी को दूर किया जाता है, जो एक हजार सूर्यों के क्रोध और गोलियत के पराक्रम के साथ आपके रास्ते में खड़े होते हैं।
पोर्टल के माध्यम से आगे बढ़ें जब आप स्तर पूरा करने के लिए तेजस्वी और फाड़ रहे हों।
आपके द्वारा जहाज के नेविगेशन सिस्टम के अंदर आकाशीय लोकेटर को वापस डालने के बाद, जहाज के अन्य भागों में बिजली बहाल करने के लिए बैटरी को अंदर रखने के लिए केंद्रीय पावर स्टेशन पर जाएं।
आप अपने उपकरणों के साथ अभ्यास या परीक्षण करने के लिए रिपिटोरियम की यात्रा कर सकते हैं, साथ ही अपने प्रिटोर सूट को अपग्रेड करने के लिए प्रहरी क्रिस्टल का उपयोग कर सकते हैं।
आकाशीय लोकेटर को बहाल करने के बाद, आपको फिर कृषकों के आधार पर घुसपैठ करने और अन्य नर्क पुजारी का पता लगाने की आवश्यकता होगी।
गलियारे के माध्यम से आगे बढ़ें। स्पाइनी रिज से दूर और ब्लू जंप पैड की ओर फिर दीवार को मापें और प्लेटफॉर्म के विपरीत तरफ दुश्मनों को बाहर निकालने के लिए आगे बढ़ें।
प्लेटफ़ॉर्म के नीचे एक 1up है जहाँ पर कल्चर्स स्थित हैं। मछली के चारों ओर खानों को गोली मारो और 1up खुला हो जाएगा।
रैंप पर जाएं और उस क्षेत्र के अंदर जाने के लिए बर्फ के ब्लॉक को नष्ट करें जहां छत से दानव खोपड़ी निलंबित है। एक खिलौना है जिसे आप पकड़ सकते हैं।
क्षेत्र के ठीक बाहर चट्टान रिज के साथ एक और मंच है। प्लेटफ़ॉर्म पर जाएँ और गेट को अनलॉक करने के लिए स्विच को हिट करें।
संरचना के अंदर आगे बढ़ें और दुश्मनों को तब तक बाहर निकालें जब तक नर्क पुजारी आपके रास्ते में और अधिक दुश्मनों को न भेज दे।
मैनक्यूबस की चौकड़ी निकालो और फिर बाहर सिर। ग्रीन स्विच को गोली मारो और फिर दीवार पर कूदो-कूदो और ऊपर चढ़ो।
सभी दुश्मनों को बाहर निकालें, और फिर प्लेटफ़ॉर्म को दाईं ओर खोलने के लिए प्लेट के दाईं ओर हरी प्लेट को शूट करें जो 1up के लिए गेट खोल देगा।
एक बार अंदर जाने के बाद, गेट के माध्यम से आगे बढ़ें और गलियारे में सभी राक्षसों को बाहर निकालने के लिए कृषक कुंजी को पकड़ें।
बाहर अपना रास्ता बनाओ और दुश्मन ढाल के साथ ग्रन्ट्स को नीचे ले जाओ। आपको दीवार को स्केल करना होगा और उस पर कवच के साथ प्लेटफॉर्म पर अपना रास्ता बनाना होगा। नीचे कूदो और गेट खोलने और रॉकेट लॉन्चर पर अपने हाथ पाने के लिए नीले रंग के जंप पैड का उपयोग करें।
अखाड़े में दुश्मनों को बाहर निकालने के बाद, कमरे के अंदर जाएं, स्विच को फ्लिप करें, दीवार को स्केल करें, और आपको प्लेटफार्मों में से एक के शीर्ष पर एक सेंटिनल क्रिस्टल मिलेगा।
बंद पंथ गेट के साथ अखाड़ा क्षेत्र में अपना रास्ता बनाएं और सभी राक्षसों को बाहर निकालें। गेट खोलने के लिए प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े हों और अगले सेगमेंट पर जाएँ।
अंदर सिर। ब्लॉक को नष्ट करने के लिए हाथापाई का उपयोग करें और फिर गेट खोलने के लिए स्विच को खटखटाने के लिए हाथापाई का उपयोग करें।
यदि आप दीवार पर निलंबित खदान को गोली मारते हैं और दाहिनी ओर दरार वाली दीवार पर हाथापाई करते हैं, तो आप दूसरे प्रहरी बिंदु तक पहुंच सकते हैं।
एक और अखाड़ा लड़ाई है जहाँ आपको आगे बढ़ने से पहले दुश्मनों को साफ़ करना होगा। एक बार जब आप करते हैं, तो आपको कैकोडेमॉन को बाहर निकालना होगा और फिर आंतरिक कक्ष में प्रवेश करना होगा।
दुश्मनों को मार डालो और लिफ्ट को अगले स्थान पर ले जाएं। सुपर शॉटगन के लिए दरवाजा खोलने के लिए संरचना पर हाथापाई का उपयोग करें, लेकिन इससे पहले कि आप आगे बढ़ सकें राक्षसों के एक गिरोह को फिट करने के लिए आपको एक गड्ढे में नीचे सिर करने की आवश्यकता होगी।
एक बार जब आप दुश्मनों को साफ कर देंगे तो मंजिल ऊपर उठ जाएगी। आप बस कोने के चारों ओर ऑटोमैप का उपयोग कर सकते हैं और फिर खूनी इलेक्ट्रिक फर्श के साथ गलियारे में जा सकते हैं। दीवार तक पहुँचने, ऊपर चढ़ने, स्विच दबाने और फिर अवशेष तक पहुँचने के लिए फर्श के पार कूदो-पानी का छींटा।
दरवाजे में से एक में एक गुप्त मुठभेड़ भी है जिसे आप पूरा कर सकते हैं। कमरे में फर्श के साथ अपना रास्ता बनाएं जो ऊपर और नीचे हो।
पिस्टन प्लेटफ़ॉर्म में जाएं और वहां खड़े रहें और वे आपको निचले स्तर पर ले जाएंगे जहां बाएं हाथ की तरफ कोने में एक प्रिटोर सूट बिंदु है।
मंच पर सिर, स्विच पर हाथापाई का उपयोग करें और फिर दीवार पर स्विंग करने के लिए बार का उपयोग करें जहां आपको ऊपर चढ़ने की आवश्यकता होती है। अगले खंड में यह एक और अखाड़ा लड़ाई है जिसे आपको संक्षेप में युद्ध करना होगा। तुम भी एक संतानों के माध्यम से एक प्रहरी बैटरी मिल जाएगा।
वापस मुख्य दालान के माध्यम से और फिर ड्रोन स्टेशन तक पहुंचने के लिए खूनी मंजिल में डबल-कूद डैश का उपयोग करें।
दुश्मनों को मारने और मंच से सुपर शॉटगन को पुनः प्राप्त करने के लिए रेवेनेंट का उपयोग करें।
शॉटगन लें, बेट्टी को मारें, मंच पर हॉप करें और फिर सभी कक्षों को खोलकर अंदर मौजूद सभी राक्षसों को मार डालें।
लिफ्ट तक के मार्ग का अनुसरण करें, जो आपको कृषक कक्ष तक ले जाएगा।
आपको स्कल स्विच को सक्रिय करने के लिए अपने रास्ते को कूदने की आवश्यकता होगी और फिर घूर्णन मोनोलिथ के शीर्ष पर नीली फ्लेमिंग लॉन्च पैड का उपयोग करना होगा।
एक कमरे में प्रहरी बिंदु है। इसे पकड़ो और फिर अगले क्षेत्र तक पहुँचने के लिए अगले क्षेत्र में सिलेंडर पर चढ़ने के लिए आगे बढ़ें।
विस्कोर गोर रूम के माध्यम से आगे बढ़ें और आपको एक और संग्रहणीय मिल जाएगा कयामत द्वितीय.
प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े हों और प्लेटफ़ॉर्म को ऊपर तक ले जाने के लिए ग्रीन स्विच को शूट करें।
एक और छोटा अखाड़ा खंड है जिसके माध्यम से आपको संघर्ष करना होगा और एक स्विच जिसे आपको प्रेस करना होगा।
दरवाजा खोलने और कुछ और लाश से लड़ने के लिए दूसरे प्लेटफार्म को सक्रिय करें।
दरवाजा खोलने के लिए पंथ प्रमुख का उपयोग करें, कुछ और राक्षसों को मारें और यह हरे रंग की चमक वाले प्लेटफॉर्म को सक्रिय करेगा जिसे आप दरवाजा खोलने के लिए उपयोग कर सकते हैं।
प्रतिमा की पीठ के चारों ओर सिर और दीवार तक झूले का उपयोग बार; कमरे के विपरीत दिशा में दीवार पर डैश-डबल कूद और फिर मंच से बाहर दस्तक देने के लिए बॉक्स पर सिर।
यह एक जंप पोर्टल खोलेगा जिसका उपयोग आप दानव के अलग-अलग शरीर में करने के लिए कर सकते हैं।
प्लेटफ़ॉर्म को अगले खंड पर ले जाएं और कोने में प्रेटोर सूट बिंदु को पकड़ें।
बाहर सिर और वहाँ एक और लंबा क्षेत्र लड़ाई है जिसका आपको सामना करना पड़ेगा।
वहां से लिफ्ट की प्लेट सक्रिय होगी। उस पर कदम रखें और फिर कलिस्ट बेस को पूरा करने के लिए खोपड़ी स्विच को सक्रिय करें।
आप डूम हंटर के बेस की ओर एक मंच की सवारी करेंगे।
सभी दुश्मनों को मार डालो और फिर बस्ट लिफ्ट के मोर्चे पर स्विच खोलें। यह आपको उस सुविधा तक ले जाएगा जहां आपको नर्क के पिछवाड़े और उसके संरक्षक का शिकार करना होगा।
जब तक आप अगले क्षेत्र तक नहीं पहुँचते तब तक फोर्ज भर में प्लेटफार्मिंग मार्ग का अनुसरण करें।
|
94981647ac28eacace56e2c309bf25cbe0df26aa | web | अभी तक आपने पिछले भाग में पढ़ा की मिनी की कस्टडी को लेकर नीना देवी और नियति के वकील के बीच बहस चल रही है। जज साहब इत्मीनान से ध्यान पूर्वक दोनों पक्षों की बात सुन रहे थे। खुराना भी बहुत बड़े देश के जाने माने वकील संतोष साल्वे भी अदालत में मौजूद थे। रस्तोगी अपना पॉइंट जज साहब के सामने रख चुका था। अब आगे पढ़े।
कोर्ट अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा था। दोनो पक्ष अपना अपना पॉइंट बड़ी ही कुशलता से रख रहे थे।
अब रस्तोगी को इंतज्ञार था बस नीता के आने का। बस उसकी गवाही ही बची थी। और उसी पर केस का पूरा दारोमदार था।
तभी अचानक नीता कोर्ट में आ गई। रस्तोगी ने उनको गवाही के लिए बुलाया। पूरे केस का रुख पलटने में नीता का बयान तुरुप का इक्का साबित होगा ये रस्तोगी और मुझे पूरा यकीन था। कस्टडी नियति को ना देने कि जो वजह नीना देवी के वकील ने बताई थी की, नीता के बयान से वो दोनों वजहें समाप्त हो जाती। नीता कोर्ट में आई और विटनेस बॉक्स में जाकर अपना परिचय जज साहब को बड़े ही सम्मान के साथ दिया।
नीना को ये तो पता था की नीता उससे नाराज है। उसे लगा हमेशा की तरह कुछ दिन बाद वो सामान्य हो जायेगी और फिर से घर आने जाने लगेगी। ऐसा पहले भी हो कई बार हो चुका था। नियति का पक्ष लेने पर नीता को कई बार भला बुरा सुनना पड़ा था। और नीना की बातों को बड़ी बहन का अधिकार समझ कर नीता नजर अंदाज का देती। पर इस बार बात इतनी दूर तक चली जायेगी ये नीना को अंदाजा नहीं था। नीना ये भी अच्छे से जानती थी की नीता मिनी से ज्यादा दिन दूर नही रह पाएगी। पर नीता...! उसकी खुद की छोटी बहन उसके खिलाफ कोर्ट में खड़ी हो जायेगी ये उसने सपने में भी नही सोचा था!!!
नीता सिर्फ कोर्ट ही नही आई बल्कि नियति के पक्ष में अपना बयान भी दिया। साथ ही नीता ने कहा, "जज साहब नियति ने पति को खोने के बाद बहुत दुख झेला है। खुद संघर्ष कर अपने पैरो पर खड़ी हुई है। इतनी बड़ी बिजनेस फैमिली की बहू होने के बाद भी कभी कोई अधिकार नही मांगा। मेरे कोई संतान नहीं है। मैं नियति के पति मयंक को ही अपना बेटा मानती थी। और अब नियति और मिनी ही मेरी फैमिली है। अभी खुराना साहब ने कहा कि नियति मिनी की परवरिश उस तरीके से करने में सक्षम नहीं है जिस तरह से अभी हो रही है। एक बात और की उसके जॉब पर जाने पर मिनी की देख भाल कौन करेगा?" कुछ पल के लिए नीता रुकी, फिर से बोलना शुरू किया, "मेरे पास ईश्वर की कृपा से सब कुछ है। मैं उसी तरह परवरिश करने में नियति का सहयोग कर सकती हूं। जैसे की अभी तक मिनी की परवरिश होती आई है। उसके जॉब पर जाने पर, उसकी घर पर ना रहने पर मैं मिनी की देखभाल करूंगी..... कोई कोर कसर नहीं रहने दूंगी। इसका विश्वाश मैं इस अदालत और जज साहब को दिलाना चाहूंगी।" नीता ने बड़े ही आत्म विश्वास के साथ ये सब कुछ कहा।
जज साहब को नीता की बात तर्क संगत लग रही है, उनके हाव भाव से ऐसा प्रतीत हो रहा था की वो नीता की बातों से संतुष्ट है।
जज साहब नीता की बातों से संतुष्ट थे फिर भी अपना जो थोड़ा बहुत शक था उसे दूर कर लेना जरुरी समझा और नीता से प्रश्न किया, " मिसेज नीता ..! अगर इतनी बड़ी जिमेदारी लेने के बाद कल को आपके पति ने एतराज किया... या आपका ही इरादा कुछ समय बाद बदल गया तो...? इस मासूम बच्ची के साथ गलत नही हो जायेगा?"
नीता ने बिना एक पल गवाए फौरन जवाब दिया, "अगर अदालत या जज साहब को मेरी बातों का सबूत चाहिए तो मैं अपना बंगला, प्रॉपर्टी सब कुछ नियति के नाम करने को तैयार हूं। आप जब भी आदेश देंगे मैं ये सब कुछ नियति के नाम कर दूंगी। आप समझते ही होंगे इतना बड़ा फैसला कोई भी औरत अकेले नहीं ले सकती।और जब मैं इतना बड़ा फैसला ले रही हूं तो जाहिर है मेरे पति को किसी भी फैसले पर एतराज नहीं होता होगा।"
नीता का दृढ़ निश्चय जज साहब को प्रभावित कर गया। पर जज साहब केस के हर पहलू , हर छोटी बड़ी बात को समझ लेना चाहते थे इसी लिए वो बोले, "नियति मैडम...पर मैं अपनी तरफ से कुछ नही कह रहा पर इनका कोई तो कसूर होगा, कुछ तो गलती होगी, जो नीना देवी ने इन्हे खुद से और बच्ची से दूर कर रक्खा है। कोई तो वजह होगी।"
नीता ने लंबी सांस ले उल्टा जज साहब से ही सवाल कर ते हुए कहा, "जज साहब आपने दुनिया नही देखी क्या....? इसमें आश्चर्य क्या है....? अपने भारतीय समाज की यही तो विडंबना है। एक लड़की शादी कर अपना घर द्वार, मां बाप, सब छोड़ कर पति के घर को अपनाती है और उसे ही अपना घर मान कर, परिवार मान कर नया जीवन शुरू करती है। पर दुर्भाग्य वश यदि पति को कुछ हो जाए, वो इस दुनिया से चला जाए तो वही परिवार उसे बेघर करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है। आप उस औरत के लिए सोचिए ..? एक तो पति के जाने का गम दूसरा ससुराल में अपमान.... तिरस्कार!! इसमें कुछ भी तो नया नही है। यही सब कुछ नियति के साथ भी हुआ है। कोढ़ में खाज की स्थिति हो जाती है यदि दोनो का प्रेम विवाह हुआ हो तो। मयंक ने नियति से प्रेम विवाह किया था। नियति को मेरी बहन बिलकुल पसंद नहीं करती थीं । नीना दीदी ने सिर्फ पुत्र को कहीं खो ना दे ...? इस बेटे के खोने के डर से ही नियति को बहू के रूप में स्वीकार किया था। अब जब मयंक नही है तो वो नियति को क्यों झेलें ? मयंक का जाना एक विडंबना थी। नीना देवी मेरी सगी बड़ी बहन है। पर मैं भी इनका एक और अत्याचार एक मासूम लड़की पर नही सह सकती। आखिर मैं भी एक नारी हूं। मैं अपनी आंखे के आगे ये सब होते अब और नहीं देख सकती।
इस कारण मैने नियति का साथ देने का फैसला किया।
मैं एक मां को अपनी बच्ची के लिए तड़पते और नही देख सकती।"
जज साहब अभी विचार कर रहे थे की नीना देवी ने खुराना को पास बुलाया और उनके कान में कुछ कहा। उसके बाद खुराना ने जज साहब से नीना देवी को बयान देने को विटनेस बॉक्स में बुलाने की इच्छा जाहिर की। कहा "जज साहब नीना देवी भी अपना पक्ष रखना चाहती है।" जज साहब ने परमिशन दे दी।
नीना देवी विटनेस बॉक्स में आईं और जज साहब का अभिवादन कर कहना शुरू किया, "जज साहब मैं एक मां हूं और मां का दर्द समझती हूं पर इस लड़की में मां वाली कोई बात ही नही दिखी मुझे जो मैं इसे बच्ची सौप दूं । मिनी मेरे बेटे की आखिरी निशानी है। मैं इसे किसी गैर जिम्मेदार हाथों में नही दे सकती। इसी कारण मैने इसे बच्ची से दूर कर दिया। इसके लक्षण अच्छे नहीं थे शुरू से ही । पहले मेरे बेटे को वश में कर शादी कर ली। जब ऊब गई तो गाड़ी में पता नही ऐसा क्या किया की मेरा बेटा चला गया। अब इसने किसी दूसरे को भी अपने वश में कर रक्खा है।" (नीना ने खुराना से मेरे बारे में सारे मालूमात कर लिए थे। उसके दिमाग में एक शातिर चाल चल रही थी। मेरे और नियति के संबंध का लांछन लगा कर नियति को चरित्रहीन साबित करना चाहती थी।)
फिर मेरी ओर इशारा कर बोली, "शायद यही प्रणय है, नियति के अगले टाइम पास। ये भी आज अपना कीमती समय लेकर यहा आए है। अब मुझे नही पता क्यों? (रहस्यमी मुस्कान के साथ नीना देवी बोली)
अब आप ही बताइए मैं कैसे अपनी पोती इस... लड़की को सौप दूं?"
रस्तोगी ने तुरंत ऑब्जेक्शन किया, कहा "मेरी क्लाइंट के चरित्र पर ऐसे कीचड़ नही उछाल सकती नीना देवी।"
जज साहब ने भी कड़े शब्दों में नीना देवी को बिना सबूत कोई भी लांछन नियति पर लगाने से मना किया।
आगे की कहानी में पढ़े क्या नियति के पक्ष में नीता का बयान देना असरदार साबित हुआ? क्या नीता के बयान ने केस का रुख पलट दिया..? क्या नीना देवी के आरोपों को जज साहब ने कोई अहमियत दी? पढ़े अगले भाग में।
|
4e47bdd2e97450b257cbd881a7f4139dac1ab398 | web | 23 जुलाई, 1954 को मिन्ह ऑटोमोबाइल ऑटोमोबाइल प्लांट के आधार पर बायरलोरियन एसएसआर में एक विशेष डिजाइन ब्यूरो का गठन किया गया था। महान बोरिस ल्वोविच शापोशनिक ने विकास की निगरानी की। कम से कम संभव समय में, यह सबसे जटिल रणनीतिक वाहन MAZ-535 बनाने के लिए निकला। डिजाइन ब्यूरो केवल पांच वर्षों में ऐसा करने में कामयाब रहा - 1954-1959। हां, पाठक मुझे माफ कर देंगे, लेकिन यहां कोई भी आधुनिक रूसी विकास "प्लेटफॉर्म-ओ" के साथ समानताएं नहीं बना सकता है, जिसे कामाज़ दस साल से अधिक समय तक ध्यान में नहीं ला सका है। हाल ही में, एक इलेक्ट्रिक रॉकेट जहाज, जिसे विशेष पहिएदार चेसिस में बेलारूसी एकाधिकार को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, नए सिरे से विकसित किया जाने लगा। सोवियत संघ में, एक भारी कार केवल पांच वर्षों में खरोंच से व्यावहारिक रूप से बनाई गई थी। निस्संदेह, MAZ-535 में कमियों का एक समूह था - V-2 टैंक डीजल इंजन का छोटा जीवन, प्रमुख घटकों की कम विश्वसनीयता और उच्च तेल और ईंधन की खपत। लेकिन यह एक वास्तविक रॉकेट वाहक था जिसे सेना ने मांग की थी। बाद में, कार को एक टैंक ट्रैक्टर में अपग्रेड किया गया और उत्पादन को कुरगन के एक बैकअप प्लांट में स्थानांतरित कर दिया गया। आधुनिक इंजीनियरों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो प्लेटफ़ॉर्म-ओ परियोजना के विकास में खुलकर देरी करते हैं? यह सवाल लफ्फाजी भरा है।
मिन्स्क ऑटोमोबाइल प्लांट के विशेष ब्यूरो का सबसे सफल विकास, निश्चित रूप से, दो-कैब MAZ-543 था, जो अभी भी विभिन्न रूपों में निर्मित है! लेकिन तकनीक को पहले चालीस से पचास वर्षों के लिए सफल माना जा सकता था। इस साल, सभी मामलों में, अप्रचलित कार 64 साल पुरानी हो जाएगी। कुछ सैन्य घटनाक्रम इतने लंबे समय तक घमंड कर सकते हैं इतिहास. . . अब क्लासिक वोलेट MAZ रूस को मुख्य रूप से निर्यात किया जाता है, इसका उपयोग MLRS "Smerch", "Tornado-S", तोपखाने परिसर "Bereg" और वायु रक्षा प्रणाली S-300PS के लिए एक मंच के रूप में किया जाता है। रूसी सेना को प्राचीन चेसिस केवल इसलिए खरीदना पड़ता है क्योंकि बेलारूसवासी इस सेगमेंट में कुछ और नहीं देना चाहते हैं।
MZKT-7930 विशेष रूप से घर पर मांग में नहीं है। केवल "पोलोन्ज़" के वाहक के रूप में।
543 वें के उत्तराधिकारी को MZKT-7930 माना जाता था, लेकिन कार समानांतर में उत्पादित होने वाली केवल अपनी आधुनिक एनालॉग बन गई। अब चेसिस 7930 को ऑपरेशनल-टैक्टिकल इस्केंडर में देखा जा सकता है। बेलारूसियों ने इस वाहन को पोलोनज़ रॉकेट लांचर के वाहक के रूप में अपनाया है। वैसे, बेलारूसी सेना में ऐसे वाहन अधिक नहीं हैं। MZKT-79221 के साथ सेवा में लापता होने के साथ - रूसी अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों के विशाल सोलह पहियों वाले वाहक। अब इन अद्वितीय उत्पादों को विशेष रूप से रूस में निर्यात किया जाता है, हालांकि, ऐसे राक्षस कहीं और मांग में नहीं हैं। आठ-एक्सल और आठ-सौ-हार्सपावर का वोल्ट 80 टन तक ले जाने में सक्षम है, जबकि प्रति 300 किमी पर लगभग 100 लीटर ईंधन की खपत होती है - जैसे कई मुकाबला टैंक!
मिन्स्क व्हील ट्रेक्टर प्लांट ने ऑपरेशन के 67 वर्षों में लगभग 27 हजार वाहनों का उत्पादन किया है, जिनमें से तीन चौथाई से अधिक अन्य देशों या यूएसएसआर के गणराज्यों को निर्यात किए गए थे। वर्तमान में, स्थिति मौलिक रूप से नहीं बदली है। अन्य वर्षों में, रूसी सशस्त्र बलों द्वारा सभी उत्पादों के 68% तक खरीदे गए, कुछ तीसरे देशों में गए, और केवल 14% बेलारूस में गए। इसी समय, उत्पादन रेंज में न केवल विशेष पहिएदार चेसिस, बल्कि साधारण ट्रक MZKT-600103 भी शामिल हैं, जो रक्षा मंत्रालय के आरएफ कभी नहीं खरीदेंगे। सच है, बेलारूस की सेना खरीद के साथ जल्दी में नहीं है - केवल आपूर्ति के लिए सीमा सैनिकों में केवल बच्चा MZKT-500200 (GAZ-66 का एनालॉग) को स्वीकार किया गया था। नतीजतन, एक अद्वितीय उद्यम मिन्स्क में बड़ा हो गया है, लगभग पूरी तरह से निर्यात पर केंद्रित है। इस मामले में, मुख्य खरीदार संघ राज्य है, जो कि आय का शेर हिस्सा प्रदान करता है। शायद रूसी सेना की व्यक्तिगत जरूरतों के लिए अलेक्जेंडर लुकाशेंको से MZKT खरीदना बहुत अधिक तर्कसंगत होगा?
MZKT बिक्री के लिए नहीं है!
दस साल पहले, रूसी रक्षा-औद्योगिक परिसर प्रयासों के समेकन के एक चरण से गुजर रहा था। रणनीतिक उत्पादों से निपटने वाले बड़े क्लस्टर बनाए गए थे। एक ऐसा देश जो खुद को न केवल एक क्षेत्रीय नेता मानता है, बल्कि एक बहुध्रुवीय दुनिया में अभिनेताओं में से एक है, बस एक रणनीतिक रूप से खुद को प्रदान करने के लिए बाध्य है हथियार स्वयं। इस संबंध में, MZKT स्पष्ट रूप से अवधारणा से बाहर हो गया। परमाणु हथियारों की गतिशीलता निर्भर है और अभी भी एक विदेशी संयंत्र से उत्पादों की आपूर्ति पर निर्भर करता है। 2011 के बाद से, दिमित्री मेदवेदेव प्लांट के 100% शेयरों की बिक्री, या कम से कम एक नियंत्रित हिस्सेदारी की बिक्री पर बेलारूसी नेतृत्व के साथ असफल वार्ता कर रहा है। वार्ता प्रक्रिया की स्थिति को गंभीरता से यूक्रेनी इतिहास ने बढ़ाया, जब रूस व्यावहारिक रूप से आयातित इकाइयों के पूरे परिसर के बिना छोड़ दिया गया था। इसने कुछ समय के लिए घरेलू हेलीकॉप्टर और जहाज निर्माण उद्योग को पंगु बना दिया। क्रेमलिन के विश्लेषकों ने सैन्य-तकनीकी क्षेत्र में विदेशी साझेदारों के साथ मिन्स्क के चुलबुलेपन को निराशाजनक रूप से देखा। इसके अलावा, किसी ने बेलारूस में अपने रूसी विरोधी मैदान को रद्द नहीं किया, जिससे घरेलू सैन्य-औद्योगिक परिसर के लिए नुकसान यूक्रेनी लोगों की तुलना में बहुत बड़ा होगा। लुकाशेंका ने इसे सूक्ष्मता से महसूस किया और लगातार पहिया ट्रैक्टर संयंत्र की बिक्री को चकमा दिया। 2016 में, पर्म में "मोटोविलिखिनस्की ज़ावड़ी" में दिमित्री मेदवेदेव ने अपने दिल में कहाः
उन्होंने हमें इस MZKT को तीन साल के लिए बेच दिया, लेकिन हम किसी भी बात पर सहमत नहीं हुए। वे बेचना नहीं चाहते हैं, हमें जरूरत नहीं है, हम कामाज़ में उत्पादन स्थापित करेंगे।
योजनाओं को नाबेरेज़िन चेल्नी और मिन्स्क में कारखानों को एक मेगा-होल्डिंग में विलय करना था। सबसे लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, लुकाशेंको ने फिर मिन्स्क संयंत्र के लिए 3 बिलियन डॉलर या बाशनेफ्ट में 330 मिलियन रूबल की कीमत के लिए एक नियंत्रित हिस्सेदारी की मांग की। 2016 में एक साक्षात्कार में, बेलारूसी नेता ने एक ही बार में सैन्य-औद्योगिक परिसर के चार उद्यमों में रूसी हित का उल्लेख किया और मास्को को बार के समान कुछ की पेशकश कीः
मैं कहता हूंः ठीक है, इन उद्यमों में आपकी रुचि है, तेल उत्पादन में हमारी रुचि है। हम आपसे 7-8 मिलियन टन निकाल सकते हैं।
मॉस्को ने भी इस तरह के "लुभावने" प्रस्ताव का जवाब नहीं दिया।
बेलारूस के साथ बातचीत की वास्तविक विफलता के बाद, विश्लेषकों ने रूस को अपने MZKT-5 मिसाइल वाहक विकसित करने के लिए केवल 6-79221 साल की भविष्यवाणी की। बेशक, यह खरोंच से बनाने के लिए बहुत महंगा और मुश्किल है, यह तैयार उत्पादों को खरीदने के लिए बहुत सस्ता है। यह 2021 है, और प्लेटफ़ॉर्म-ओ परिवार के विकास पर कोई जानकारी नहीं है, नियमित सैनिकों में मिन्स्क चेसिस के प्रतिस्थापन का उल्लेख नहीं करना है। एकमात्र उम्मीद ब्रायोन्स्क ऑटोमोबाइल प्लांट की कारों के लिए है, लेकिन वे अब तक अल्माज-एंटेई चिंता के वायु रक्षा उपकरणों को फिर से लैस करना शुरू कर चुके हैं।
मिन्स्क व्हील ट्रेक्टर प्लांट में एक अनोखी स्थिति विकसित हुई है। सबसे पहले, एक मजबूत डिजाइन स्टाफ का गठन किया गया है, जो परिष्कृत प्रौद्योगिकी विकसित करने के दशकों से गुस्सा है। बेलारूस के नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस की मशीनों के पूरे इंस्टीट्यूट ऑफ मैकेनिक्स और विश्वसनीयता उद्यम की जरूरतों के लिए काम करती है। यह, वैसे, रूसी सैन्य-औद्योगिक परिसर में सीखने लायक है। दूसरे, उत्पादन रेंज में विविधता लाने के लिए MZKT प्रबंधकों का मुख्यालय हर संभव कोशिश कर रहा है। इसलिए, उदाहरण के लिए, टर्मिनल ट्रैक्टर MZKT-730240 बंदरगाहों में काम के लिए प्रकट होता है। विकास में बख्तरबंद कारों के कई मॉडल हैं जो रूस के लिए बिल्कुल भी इरादा नहीं हैं - बेलारूसवासी रूसी निर्भरता से दूर होने की कोशिश कर रहे हैं। और सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने स्पष्ट रूप से कहानी को खराब कर दिया। अब उन्होंने वास्तव में देश को अंतर्राष्ट्रीय अलगाव में डाल दिया है, केवल रूस और चीन को भागीदारों के बीच छोड़ दिया है। अब स्थिति का लाभ क्यों नहीं उठाया और मिन्स्क को एक प्रस्ताव दिया कि वह मना नहीं कर सकता? यह उच्च समय है, खासकर जब से लुकाशेंका के पास बस पैंतरेबाज़ी के लिए कोई जगह नहीं है - वह निश्चित रूप से MZKT के बदले में एक तेल कंपनी से पूछने की हिम्मत नहीं करेगा। हालाँकि, इस योजना में कई जटिलताएँ हैं।
यह 2011 में पूरी तरह से स्पष्ट नहीं था, और पांच साल बाद, आप विदेशों में स्थित सैन्य-औद्योगिक परिसर कैसे खरीद सकते हैं? यहां तक कि अभी भी एक अनुकूल राज्य के क्षेत्र पर। तकनीकी रूप से, सब कुछ सरल है - मैंने पैसे दिए, और दस्तावेजों के अनुसार, MZKT रूसी स्वामित्व में है। लेकिन यह मिस्टरेल हेलीकॉप्टर वाहक नहीं है, इसे बंदरगाह में मूर नहीं किया जा सकता है। कहाँ गारंटी है कि नई सरकार जिसने लुकाशेंका की जगह ली, या यहाँ तक कि वह खुद भी प्लांट का राष्ट्रीयकरण नहीं करेगी? जनरल मोटर्स के स्वामित्व वाले ओपल का उदाहरण और द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में जर्मनों द्वारा जब्त किया गया, इस तरह के विकास को बाहर नहीं करता है। हां, युद्ध के बाद इसे उसके मालिकों को लौटा दिया गया था, लेकिन 160 ओपल ब्लिट्ज मध्यम-ड्यूटी ट्रक वेहरमाट की शानदार सेवा करने में कामयाब रहे। इसलिए, रूसी रक्षा मंत्रालय की जरूरतों के लिए MZKT की खरीद शुरू में एक जुआ की तरह लग रही थी। जब तक, निश्चित रूप से, मास्को की योजना धीरे-धीरे पूरे मुख्यालय को डिजाइन मुख्यालय के साथ नाबेरेज़िन चेल्नी के पास ले जाने की थी।
डिज़ाइनर, इंजीनियरों और उपयुक्त स्तर के प्रौद्योगिकीविदों को शिक्षित करने के लिए, विशेष पहिएदार चेसिस के अपने उत्पादन को विकसित करने के लिए केवल एक ही चीज़ बची है। यदि यह सिद्धांत रूप में संभव है, तो MZKT केवल सहानुभूति कर सकता है - सही निष्पादन में रूसी "प्लेटफॉर्म-ओ" का पुनरुद्धार वास्तव में मिन्स्क संयंत्र को मार देगा। या, सबसे अच्छे रूप में, यह विदेशी भारी ट्रकों के लिए दुर्लभ आदेशों को पूरा करने वाले छोटे पैमाने पर सब्सिडी वाले एटलियर में बदल जाएगा।
- लेखकः
|
8671967ce738c003942130aee5a7c6ffd1f53b2c | web | Sharda suman (चर्चा । योगदान)
('{{GKGlobal}} {{GKRachna ।रचनाकार=चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' }} एक मनुष्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
Lalit Kumar (चर्चा । योगदान)
।पंक्ति 3:
।पंक्ति 3:
।रचनाकार=चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी'
।रचनाकार=चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी'
एक मनुष्य को कहीं जाना था। उसने अपने पैरों से उपजाऊ भूमि को बंध्या करके पगडंडी काटी और वह वहाँ पर पहला पहुँचने वाला हुआ। दूसरे, तीसरे और चौथे ने वास्तव में उस पगडंडी को चौड़ी किया और कुछ वर्षों तक यों ही लगातार जाते रहने से वह पगडंडी चौड़ा राजमार्ग बन गई, उस पर पत्थर या संगमरमर तक बिछा दिया गया, और कभी-कभी उस पर छिड़काव भी होने लगा।
एक मनुष्य को कहीं जाना था। उसने अपने पैरों से उपजाऊ भूमि को बंध्या करके पगडंडी काटी और वह वहाँ पर पहला पहुँचने वाला हुआ। दूसरे, तीसरे और चौथे ने वास्तव में उस पगडंडी को चौड़ी किया और कुछ वर्षों तक यों ही लगातार जाते रहने से वह पगडंडी चौड़ा राजमार्ग बन गई, उस पर पत्थर या संगमरमर तक बिछा दिया गया, और कभी-कभी उस पर छिड़काव भी होने लगा।
एक मनुष्य को कहीं जाना था। उसने अपने पैरों से उपजाऊ भूमि को बंध्या करके पगडंडी काटी और वह वहाँ पर पहला पहुँचने वाला हुआ। दूसरे, तीसरे और चौथे ने वास्तव में उस पगडंडी को चौड़ी किया और कुछ वर्षों तक यों ही लगातार जाते रहने से वह पगडंडी चौड़ा राजमार्ग बन गई, उस पर पत्थर या संगमरमर तक बिछा दिया गया, और कभी-कभी उस पर छिड़काव भी होने लगा।
वह पहला मनुष्य जहाँ गया था वहीं सब कोई जाने लगे। कुछ काल में वह स्थान पूज्य हो गया और पहला आदमी चाहे वहाँ किसी उद्देश्य से आया हो, अब वहाँ जाना ही लोगों का उद्देश्य रह गया। बड़े आदमी वहाँ घोड़ों, हाथियों पर आते, मखमल कनात बिछाते जाते, और अपने को धन्य मानते आते। गरीब आदमी कण-कण माँगते वहाँ आते और जो अभागे वहाँ न आ सकते वे मरती बेला अपने पुत्र को थीजी कि आन दिला कर वहाँ जाने का निवेदन कर जाते। प्रयोजन यह है कि वहाँ मनुष्यों का प्रवाह बढ़ता ही गया।
एक सज्जन ने वहाँ आनेवाले लोगों को कठिनाई न हो, इसलिए उस पवित्र स्थान के चारों ओर, जहाँ वह प्रथम मनुष्य आया था, हाता खिंचवा दिया। दूसरे ने, पहले के काम में कुछ जोड़ने, या अपने नाम में कुछ जोड़ने के लोभ से उस पर एक छप्पर डलवा दिया। तीसरे ने, जो इन दोनों से पीछे रहना न चाहता था, एक सुंदर मकान से उस भूमि को ढक दिया, इस पर सोने का कलश चढ़ा दिया, चारों ओर से बेल छवा दी। अब वह यात्रा, जो उस स्थान तक होती थी, उसकी सीमा की दीवारों और टट्टियों तक रह गई, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य भीतर नहीं जा सकता। इस 'इनर सर्कल' के पुजारी बने, भीतर जाने की भेंट हुई, यात्रा का चरम उद्देश्य बाहर की दीवार को स्पर्श करना ही रह गया, क्योंकि वह भी भाग्यवानों को ही मिलने लगा।
कहना नहीं होगा, आनेवालों के विश्राम के लिए धर्मशालाएँ, कूप और तड़ाग, विलासों के लिए शुंडा और सूणा, रमणिएँ और आमोद जमने लगे, और प्रति वर्ष जैसे भीतर जाने की योग्यता घटने लगी, बाहर रहने की योग्यता, और इन विलासों में भाग लेने की योग्यता बढ़ी। उस भीड़ में ऐसे वेदांती भी पाए जाने लगे जो दूसरे की जेब को अपनी ही समझ कर रुपया निकाल लेते। कभी-कभी ब्रह्मा एक ही है उससे जार और पति में भेद के अध्यास को मिटा देनेवाली अद्वैतवादिनी और स्वकीया-परकीया के भ्रम से अवधूत विधूत सदाचारों के शुद्ध द्वैत(=झगड़ा) के कारण रक्तपात भी होने लगा। पहले यात्राएँ दिन-ही-दिन में होती थीं, मन से होती थीं, अब चार-चार दिन में नाच-गान के साथ और आफिस के काम को करते सवारी आने लगी।
एक सज्जन ने देखा की यहाँ आनेवालों को समय के ज्ञान के बिना बड़ा कष्ट होता है। अतएव उस पुण्यात्मा ने बड़े व्यय से एक घंटाघर उस नए बने मकान के ऊपर लगवा दिया। रात के अंधकार में उसका प्रकाश, और सुनसानी में उसका मधुर स्वर क्या पास के और क्या दूर के, सबके चित्त को सुखी करता था। वास्तव में ठीक समय पर उठा देने और सुला देने के लिए, एकांत में पापियों को डराने और साधुओं को आश्वासन करने के लिए वह काम देने लगा। एक सेठ ने इस घंटे की (हाथ) (सूइयाँ) सोने की बनवा दीं और दूसरे ने रोज उसकी आरती उतारने का प्रबंध कर दिया।
कुछ काल बीत गया। लोग पुरानी बातों को भूलने लग गए। भीतर जाने की बात तो किसी को याद नहीं रही। लोग मंदिर की दीवार का छूना ही ठीक मानने लगे। एक फिर्का खड़ा हो गया जो कहता था कि मंदिर की दक्षिण दीवाल छूनी चाहिए, दूसरा कहता कि उत्तर दीवाल को बिना छुए जाना पाप है। पंद्रह पंडितों ने अपने मस्तिष्क, दूसरों की रोटियाँ और तीसरों के धैर्य का नाश करके दस पर्वों के एक ग्रंथ में सिद्ध कर दिया या सिद्ध करके अपने को धोखा देना चाहा कि दोनों झूठे हैं। पवित्रता प्राप्त करने के लिए घंटे की मधुर ध्वनि का सुनना मात्र पर्याप्त है। मंदिर के भीतर जाने का तो किसी को अधिकार ही नहीं है, बाहर की शुंडा और सूणा में बैठने से भी पुन्य होता है, क्योंकि घंटे का पवित्र स्वर उन्हें पूत कर चुका है। इस सिद्ध करने या सिद्ध करने के मिस का बड़ा फल हुआ। गाहक अधिक जुटने लगे। और उन्हें अनुकूल देख कर नियम किए गए कि रास्ते में इतने पैंड़ रखने, घंटा बजे तो यों कान खड़ा करके सुनना, अमुक स्थान पर वाम चरण से खड़े होना, और अमुक पर दक्षिण से। यहाँ तक कि मार्ग में छींकने तक का कर्मकांड बन गया।
और भी समय बीता। घंटाघर सूर्य के पीछे रह गया। सूर्य क्षितिज पर आ कर लोगों को उठाता और काम में लगता, घंटाघर कहा करता कि अभी सोए रहो। इसी से घंटाघर के पास कई छोटी-मोटी घड़ियाँ बन गईं। प्रत्येक में की टिक-टिक बकरी और झलटी को मात करती। उन छोटी-मोटियों से घबरा के लोग सूर्य की ओर देखते और घंटाघर की ओर देख कर आह भर देते। अब यदि वह पुराना घंटाघर, वह प्यारा पाला-पोसा घंटा ठीक समय न बतावे तो चारों दिशाएँ उससे प्रतिध्वनि के मिस से पूछती हैं कि तू यहाँ क्यों है? वह घृणा से उत्तर देता है कि मैं जो कहूँ वही समय है। वह इतने ही में संतुष्ट नहीं है कि उसका काम वह नहीं कर सकता और दूसरे अपने आप उसका काम दे रहे हैं, वह इसी में तृप्त नहीं है कि उसका ऊंचा सिर वैसे ही खड़ा है, उसके मांजने को वही वेतन मिलता है, और लोग उसके यहाँ आना नहीं भूले हैं। अब यदि वह इतने पर भी संतुष्ट नहीं, और चाहे कि लोग अपनी घड़ियों के ठीक समय को बिगाड़ उनकी गति को रोकें ही नहीं, प्रत्युत उन्हें उल्टी चलावें, सूर्य उनकी आज्ञानुसार एक मिनट में चार डिग्री पीछे हटे, और लोग जाग कर भी उसे देख कर सोना ठीक समझें, उसका बिगड़ा और पुराना काल सबको संतोष दे, तो वज्र निर्घोष से अपने संपूर्ण तेज से, सत्य के वेग से मैं कहूँगा - 'भगवन, नहीं कभी नहीं। हमारी आँखों को तुम ठग सकते हो, किंतु हमारी आत्मा को नहीं। वह हमारी नहीं है। जिस काम के लिए आप आए थे वह हो चुका, सच्चे या झूठे, तुमने अपने नौकरों का पेट पाला। यदि चुपचाप खड़े रहना चाहो तो खड़े रहो, नहीं तो यदि तुम हमारी घड़ियों के बदलने का हठ करोगे तो, सत्यों के पिता और मिथ्याओं के परम शत्रु के नाम पर मेरा-सा तुमारा शत्रु और कोई नहीं है। आज से तुम्हारे मेरे में अंधकार और प्रकाश की-सी शत्रुता है, क्योंकि यहाँ मित्रता नहीं हो सकती। तुम बिना आत्मा की देह हो, बिना देह का कपड़ा हो, बिना सत्य के झूठे हो! तुम जगदीश्वर के नहीं हो, और न तुम पर उसकी सम्मति है, यह व्यवस्था किसी और को दी हुई है। जो उचक्का मुझे तमंचा दिखा दे, मेरी थैली उसी की, जो दुष्ट मेरी आँख में सूई डाल दे, वह उसे फोड़ सकता है, किंतु मेरी आत्मा मेरी और जगदीश्वर की है, उसे तू, हे बेतुके घंटाघर, नहीं छल सकता अपनी भलाई चाहे तो हमारा धन्यवाद ले, और-और और चला जा!!'
|
6d2446e0626be4dccfa580b2bea37d60257fae43 | web | चर्चा में क्यों?
काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 75 प्रतिशत से अधिक ज़िले चक्रवात, बाढ़, सूखा, हीट वेव और कोल्ड वेव जैसी चरम जलवायु घटनाओं के मुख्य हॉटस्पॉट हैं।
- यह रिपोर्ट 'प्रिपेयरिंग इंडिया फॉर एक्सट्रीम क्लाइमेट इवेंट्स' के नाम से प्रकाशित की गई है।
- यह पहली बार है जब देश में चरम जलवायु घटनाओं के हॉटस्पॉट का मानचित्रण किया गया है।
- CEEW सभी प्रकार के संसाधनों के उपयोग, पुनरुपयोग और दुरुपयोग को प्रभावित करने वाले सभी विषयों पर अनुसंधान हेतु समर्पित एक स्वतंत्र और गैर-लाभकारी नीति अनुसंधान संस्थान है।
- यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, 2020 के बाद जारी की गई है, ज्ञात हो कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने अपनी रिपोर्ट में चेताया है कि विश्व मौजूदा सदी में 3°C से अधिक तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रहा है।
- बीते दशकों में चरम जलवायु घटनाएँ जैसे- बाढ़ और सूखा आदि की आवृत्ति, तीव्रता और अप्रत्याशितता काफी तेज़ी से बढ़ी हैं।
- जहाँ एक ओर भारत में वर्ष 1970-2005 के बीच 35 वर्षों में 250 चरम जलवायु घटनाएँ दर्ज की गईं, वहीं वर्ष 2005-2020 के बीच मात्र 15 वर्षों में इस तरह की 310 घटनाएँ दर्ज की गईं।
- वर्ष 2005 के बाद से चरम जलवायु घटनाओं में हुई वृद्धि के कारण भारत के 75 प्रतिशत से अधिक ज़िलों को संपत्ति, आजीविका और जीवन के नुकसान के साथ-साथ माइक्रो-क्लाइमेट में होने वाले बदलावों को वहन करना पड़ रहा है।
- यह पैटर्न वैश्विक परिवर्तन को भी प्रदर्शित करता है।
- जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप चरम जलवायु घटनाओं के चलते वर्ष 1999-2018 के बीच विश्व भर में 4,95,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई।
- रिपोर्ट के मुताबिक, इस अवधि के दौरान संपूर्ण विश्व में 12000 से अधिक चरम जलवायु घटनाएँ दर्ज की गईं और इसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को 3.54 बिलियन अमेरिकी डॉलर (क्रय शक्ति समता या PPP के संदर्भ में) के नुकसान का सामना करना पड़ा।
- मौजूदा भयावह जलवायु परिवर्तन घटनाएँ बीते 100 वर्षों में केवल 0.6 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि का परिणाम हैं, इस तरह यदि भविष्य में तापमान में और अधिक वृद्धि होती है तो हमें इससे भी भयानक घटनाएँ देखने को मिल सकती हैं।
- भारत पहले से ही चरम जलवायु घटनाओं के मामले में वैश्विक स्तर पर 5वाँ सबसे संवेदनशील देश है।
- आँकड़ों के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि वर्ष 2005 के बाद से चक्रवातों से प्रभावित ज़िलों की वार्षिक औसत संख्या तथा चक्रवातों की आवृत्ति तकरीबन दोगुनी हो गई है।
- बीते एक दशक में पूर्वी तट के लगभग 258 ज़िले चक्रवात से प्रभावित हुए हैं।
- पूर्वी तट में लगातार गर्म होते क्षेत्रीय माइक्रो-क्लाइमेट, भूमि-उपयोग में परिवर्तन और निर्वनीकरण ने चक्रवातों की संख्या में बढ़ोतरी करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
- वर्ष 2000-2009 के बीच भीषण बाढ़ और उससे संबंधित अन्य घटनाओं में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई और इस दौरान बाढ़ के कारण तकरीबन 473 ज़िले प्रभावित हुए।
- बाढ़ से संबंधित अन्य घटनाओं जैसे- भूस्खलन, भारी वर्षा, ओलावृष्टि, गरज और बादल फटने आदि घटनाओं में 20 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है।
- भूस्खलन, 'अर्बन हीट लैंड' और हिमनदों के पिघलने के कारण समुद्र स्तर में हो रही वृद्धि के प्रभावस्वरूप बाढ़ की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो रही है।
- 'अर्बन हीट लैंड' वह सघन जनसंख्या वाला नगरीय क्षेत्र होता है, जिसका तापमान उपनगरीय या ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 2°C अधिक होता है।
- जहाँ एक ओर मानसून के दौरान वर्षा वाले दिनों की संख्या में कमी आई है, वहीं दूसरी ओर चरम वर्षा की घटनाओं में वृद्धि हो रही है, जिससे बाढ़ की घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो रही है।
- पिछले एक दशक में भारत के आठ सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित ज़िलों में से छह ज़िले (बारपेटा, दारंग, धेमाजी, गोवालपारा, गोलाघाट और शिवसागर) अकेले असम में स्थित हैं।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2005 के बाद सूखा प्रभावित ज़िलों का वार्षिक औसत 13 गुना अधिक बढ़ गया है।
- वर्ष 2005 तक भारत में सूखे से प्रभावित ज़िलों की संख्या मात्र छह थी, जो कि वर्ष 2005 के बाद से बढ़कर 79 हो गई है।
- यद्यपि सूखे के कारण होने वाले जनजीवन के नुकसान में काफी कमी आई है, किंतु इस प्रकार की घटनाओं के चलते कृषि और ग्रामीण आजीविका के क्षेत्र में अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई है।
- पिछले एक दशक में भारत के सूखा प्रभावित ज़िलों में अहमदनगर, औरंगाबाद (दोनों महाराष्ट्र), अनंतपुर, चित्तूर (दोनों आंध्र प्रदेश), बागलकोट, बीजापुर, चिक्काबल्लापुर, गुलबर्गा, और हासन (सभी कर्नाटक) आदि शामिल हैं।
- विश्लेषण से माइक्रो-तापमान में वृद्धि और मानसून के कमज़ोर होने के संबंध का पता चलता है।
- इस तथ्य की पुष्टि इस बात से की जा सकती है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को वर्ष 2015 में भीषण गर्मी और कमज़ोर मानसून के कारण पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ा था।
- इस अध्ययन के दौरान चरम जलवायु घटनाओं के पैटर्न में बदलाव भी पाया गया है, उदाहरण के लिये भारत के 40 प्रतिशत बाढ़-ग्रस्त ज़िलों की स्थिति अब सूखाग्रस्त है, जबकि सूखाग्रस्त ज़िलों के बाढ़-ग्रस्त होने की जानकारी मिल रही है।
- कुछ मामलों में जिन ज़िलों में बाढ़ की आशंका थी, वे अब सूखाग्रस्त हो रहे हैं और जहाँ सूखे की आशंका थी वे अब बाढ़ से प्रभावित हो रहे हैं।
- वहीं भारत के कई ज़िलों को बाढ़ और सूखा दोनों ही घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है। विश्लेषकों के मुताबिक, यह प्रवृत्ति काफी गंभीर है और इस विषय पर आगे अनुसंधान किये जाने की आवश्यकता है।
- भारत के तटीय दक्षिणी राज्यों में सूखे की घटनाएँ काफी तेज़ी से दर्ज की जा रही हैं।
- इसके अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और तमिलनाडु के कई ज़िलों में बाढ़ और सूखे की स्थिति एक ही मौसम के दौरान दर्ज जा रही है।
- अर्बन हीट स्ट्रेस, जल तनाव और जैव विविधता के नुकसान जैसी महत्त्वपूर्ण सुभेद्यताओं का प्रतिचित्रण करने के लिये एक जलवायु जोखिम एटलस (Develop a Climate Risk Atlas) विकसित किया जाना चाहिये।
- आपात स्थितियों के प्रति व्यवस्थित और निरंतर प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये एक एकीकृत आपातकालीन निगरानी प्रणाली विकसित की जानी चाहिये।
- स्थानीय, क्षेत्रीय, मैक्रो और माइक्रो-क्लाइमैटिक स्तर सहित सभी स्तरों पर जोखिम मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
- जोखिम मूल्यांकन प्रक्रिया में सभी हितधारकों की भागीदारी अनिवार्य हो।
- स्थानीय, उप-राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की योजनाओं में जोखिम मूल्यांकन को एकीकृत किया जाना चाहिये।
- माइक्रो-क्लाइमैटिक ज़ोन का आशय ऐसे क्षेत्र से है, जहाँ का मौसम आस-पास के क्षेत्रों से भिन्न होता है। भारत के अलग-अलग ज़िलों में माइक्रो-क्लाइमैटिक ज़ोन की स्थिति में परिवर्तन आ रहा है।
- माइक्रो-क्लाइमैटिक ज़ोन में बदलाव के कारण संपूर्ण क्षेत्र में व्यवधान पैदा हो सकता है।
- उदाहरण के लिये वार्षिक औसत तापमान में मात्र 2 डिग्री सेल्सियस वृद्धि के कारण कृषि उत्पादकता में 15-20 प्रतिशत की कमी आ सकती है।
- कारणः इसके कारणों में भूमि उपयोग में बदलाव, निर्वनीकरण, अतिक्रमण के कारण आर्द्रभूमि एवं प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों को होने वाला नुकसान और अर्बन हीट लैंड आदि शामिल हैं।
|
240d81eabaca7537fe56bae474386db53d07c2f3 | web | राजस्थान में राइट टू हेल्थ (RTH) बिल के विरोध में चल रही डॉक्टरों की हड़ताल को लेकर सीएम अशोक गहलोत ने गंभीरता दिखाई है। गहलोत दिल्ली दौरा बीच में छोड़कर शनिवार शाम को जयपुर पहुंचे। सीएम ने स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा और मुख्य सचिव उषा शर्मा सहित वरिष्ठ अफसरों के साथ बैठक की। सीएम ने मुख्य सचिव को डॉक्टरों के साथ बैठक करने के निर्देश दिए।
सीएम अशोक गहलोत ने डॉक्टरों से हड़ताल खम कर काम पर लौटने की अपील की है। सीएम ने कहा कि राइट टू हेल्थ में डॉक्टरों के हितों का पूरा ध्यान रखा गया है। डॉक्टरों की मांगों को भी बिल में रखा गया है। डॉक्टरों का हड़ताल पर जाना उचित नहीं है। पक्ष-विपक्ष ने सर्वसम्मति से यह बिल पास किया है।
राजस्थान में राइट टू हेल्थ (RTH) बिल का विरोध कर रहे प्राइवेट डॉक्टरों और हॉस्पिटल्स पर सरकार शिकंजा कसने की तैयारी में है। सरकार ने प्रदेशभर के प्राइवेट हॉस्पिटल्स की डिटेल के साथ सूची मांगी है। इसके लिए सभी सीएमएचओ को लेटर जारी हो चुका है।
सरकार को खूब पता है कि तमाम हॉस्पिटल्स नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। कोई आवासीय में हॉस्पिटल चला रहा है तो कोई बायो मेडिकल वेस्ट का ठीक से निस्तारण नहीं कर रहा है।
सरकार को मिलने वाले टैक्स में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ी होती है। कई हॉस्पिटल्स तो नक्शे के अनुसार बने ही नहीं हैं। ऐसी बिल्डिंग को या तो सील किया जाएगा या गिरा दिया जाएगा। कुल मिलाकर सरकार इनकी कमियां निकालकर दबाव बनाने के प्रयास में है।
बिल का विरोध अब राज्य के अलावा देशभर में होने जा रहा है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सभी डॉक्टरों से 27 मार्च को मेडिकल सर्विस बंद करने का आह्वान किया है। शनिवार को जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल स्थित जेएमए हॉल में प्राइवेट हॉस्पिटल संचालकों की बैठक हुई।
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शरद अग्रवाल ने आंदोलन को समर्थन देते हुए 27 मार्च को संगठन से जुड़े सभी डॉक्टरों से देशभर में बंद का आह्वान किया है।
प्राइवेट हॉस्पिटल एवं नर्सिंग होम सोसाइटी के सचिव डॉ. विजय कपूर ने बताया कि 27 मार्च को जयपुर में महारैली निकाली जाएगी। प्रदेशभर के डॉक्टर्स इसमें शामिल होंगे।
बिल के विरोध में शनिवार को भी डॉक्टरों ने जयपुर में जेएलएन मार्ग पर प्रदर्शन कर रैली निकाली। सुबह 11 बजे बड़ी संख्या में डॉक्टरों का समूह एसएमएस स्थित जेएमए सभागार से निकाला और नारेबाजी-प्रदर्शन करते हुए त्रिमूर्ति सर्किल तक पहुंचा।
यहां करीब 10 मिनट प्रदर्शन करने के बाद डॉक्टर्स वापस जेएमए लौट गए। इस दौरान करीब आधे घंटे तक त्रिमूर्ति सर्किल पर ट्रैफिक बंद रहा। उसे दूसरे रास्ते पर डायवर्ट किया गया।
सरकारी हॉस्पिटल के मेडिकल ऑफिसरों की यूनियन अखिल राजस्थान सेवारत चिकित्सक संघ (अरिसदा) भी अपना विरोध तेज करने जा रही है।
अरिसदा के प्रदेशाध्यक्ष अजय चौधरी ने बताया कि हम 29 मार्च को प्रदेशभर में एक दिन का सामूहिक अवकाश रखेंगे। अगर 29 मार्च को ऐसा होता है तो प्रदेशभर की पीएचसी, सीएचसी, उप जिला हॉस्पिटल में मरीजों को नहीं देखा जाएगा, क्योंकि यहां ज्यादातर डॉक्टर मेडिकल ऑफिसर ही होते हैं। ये इस संगठन से जुड़े हैं।
हेल्थ डिपार्टमेंट राजस्थान के सभी जिलों के सीएमएचओ को पत्र लिखकर उनके एरिया में संचालित प्राइवेट हॉस्पिटल की लिस्ट और जानकारी मांगी है। इसमें हॉस्पिटल नाम, पता, मालिक का नाम और फोन नंबर, हॉस्पिटल में बेड की संख्या और वर्तमान स्थिति चालू है या बंद है। जयपुर में पुलिस कमिश्नरेट ने भी अपने एरिया में संचालित हॉस्पिटल की जानकारी मांगी है। जयपुर जिले की बात करें तो वर्तमान में अभी 175 छोटे-बड़े हॉस्पिटल संचालित हैं।
राइट टू हेल्थ के विरोध में रेजिडेंट्स के काम नहीं करने से एसएमएस समेत दूसरे सरकारी हॉस्पिटल में भी मरीजों की परेशानी बढ़ गई है। रूटीन बीमारी के लिए दिखाने आने वाले मरीज अब नहीं आ रहे हैं। इसके कारण एसएमएस में अन्य सेक्शन में भी इसका असर देखने को मिला है। रेजिडेंट्स को मनाने के लिए जयपुर एसएमएस मेडिकल कॉलेज के सीनियर डॉक्टर्स ने भी प्रयास शुरू कर दिए। कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर राजीव बगरहट्टा ने बताया- हमने रेजिडेंट्स से बात की है। उनका समझाने का प्रयास किया जा रहा है। उम्मीद है वो जल्दी मान जाएंगे और काम पर लौट आएंगे।
बीजेपी के तमाम विरोध और हो-हल्ला के बीच राजस्थान विधानसभा में राइट टू हेल्थ (स्वास्थ्य के अधिकार) बिल 21 मार्च को पास हो गया था। इसी के साथ राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य बना है, जहां राइट टू हेल्थ बिल पारित हुआ है। सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटल इलाज से अब मना नहीं कर सकेंगे। यहां के हर व्यक्ति को इलाज की गारंटी मिलेगी। इमरजेंसी की हालत में प्राइवेट हॉस्पिटल को भी फ्री इलाज करना होगा। प्राइवेट हॉस्पिटल में इमरजेंसी में फ्री इलाज के लिए अलग से फंड बनेगा। ऐसे मामलों में किसी भी तरह की हॉस्पिटल स्तर की लापरवाही के लिए जिला और राज्य स्तर पर प्राधिकरण बनेगा। इसमें सुनवाई होगी। दोषी पाए जाने पर 10 से 25 हजार रुपए जुर्माना लगाया जा सकता है।
राइट टू हेल्थ का उल्लंघन करने और इलाज से मना करने पर 10 से 25 हजार तक का जुर्माने का प्रावधान रखा गया है। पहली बार उल्लंघन पर जुर्माना 10 हजार और इसके बाद 25 हजार तक होगा। राइट टू हेल्थ बिल की शिकायतें सुनने और अपील के लिए जिला स्वास्थ्य प्राधिकरण और राज्य स्तर पर राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण बनेगा। प्राधिकरण में ही शिकायतें सुनी जाएंगी। बिल के उल्लंघन से जुड़े मामले में प्राधिकरण के फैसले को किसी सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
राइट टू हेल्थ में क्या कवर होगा?
राजस्थान में स्टेट हेल्थ अथॉरिटी बनेगी। जिसमें जॉइंट सेक्रेटरी या उससे ऊपर रैंक का आईएएस अधिकारी अध्यक्ष होगा। हेल्थ डायरेक्टर मेंबर सेक्रेटरी होंगे। जबकि मेडिकल एजुकेशन कमिश्नर, राजस्थान स्टेट हेल्थ इंश्योरेंस एजेंसी के जॉइंट सीईओ, आयुर्वेद डायरेक्टर, होम्योपैथी डायरेक्टर, यूनानी डायरेक्टर सदस्य होंगे।
सरकार की ओर से नॉमिनेटेड दो लोग जिन्हें पब्लिक हेल्थ और हॉस्पिटल मैनेजमेंट की नॉलेज हो, वह मेंबर होंगे। पदेन सदस्य के अलावा सभी मेंबर्स की नियुक्ति 3 साल के लिए होगी। 6 महीने में कम से कम एक बार हेल्थ अथॉरिटी की बैठक होगी। साल में 2 बार बैठक करनी होगी।
राजस्थान के सभी जिलों में डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी भी बनाई जाएगी। स्टेट हेल्थ अथॉरिटी बनने की तारीख से 1 महीने के अंदर डिस्ट्रिक्ट हेल्थ अथॉरिटी की ऑटोनॉमस बॉडी बनाई जाएगी। इसमें जिला कलेक्टर पदेन अध्यक्ष होगा। जिला परिषद सीईओ पदेन सह अध्यक्ष होगा।
डिप्टी सीएमएचओ पदेन सदस्य, जिला आयुर्वेद अधिकारी और पीएचईडी के एसई पदेन सदस्य होंगे। राज्य सरकार करी ओर से नॉमिनेटेड दो मेंबर सदस्य होंगे। जिला परिषद का प्रमुख इसका सदस्य होगा। साथ ही पंचायत समितियों के 3 प्रधान सदस्य होंगे। पदेन मेंबर्स के अलावा सभी सदस्यों की नियुक्ति 3 महीने के लिए होगी।
केंद्र सरकार के बाद अब राजस्थान सरकार ने भी सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स का महंगाई भत्ता (DA) चार फीसदी बढ़ा दिया है। अब डीए 38 से बढ़कर 42 फीसदी हो गया है। वित्त विभाग ने कर्मचारियों और पेंशनर्स का डीए बढ़ाने के आदेश जारी कर दिए हैं। प्रदेश के करीब आठ लाख कर्मचारियों और चार लाख पेंशनर्स को बढ़े हुए डीए का फायदा मिलेगा। (पूरी खबर पढ़ें)
This website follows the DNPA Code of Ethics.
|
d8870d8e9dc3bcb09d834272a466bf5de307e212 | web | नई दिल्ली। बेनज़ीर ,बेमिसाल Kashmir ,जिसकी वादियों में जन्नत है, जो हमारे देश का ताज है। जिसकी सुंदरता के बारे में कभी किसी फारसी कवि ने कहा था "गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त/ हमी अस्तो ,हमी अस्तो ,हमी अस्त" यानि कि धरती पर अगर कहीं फिरदौस यानि स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है। सचमुच में कश्मीर से दो चार होते ही ऐसा महसूस होता है कि ऐसी खूबसूरती तो कल्पनाओं में ही सोची जा सकती है। चारों ओर बिछी हुई बर्फ की सफेद चादर, देवदार, चीड़ के पेड़। उन पेड़ों की पत्तियों से धीमे-धीमे गिरते बर्फ के नन्हें-नन्हें टुकड़े यहां आने वालों को नई दुनिया का आभास कराते हैं। जिधर नजर दौड़ाएं, बस बर्फ ही बर्फ की सफेद अनछुई चादर बिछी दिखती हैं।
कम ही लोग जानते होंगे कि कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि के नाम पर रखा गया था। सुप्रसिद्ध कवि, नाटककार और इतिहासकार कल्हण ने 'राजतरंगणी' में कश्मीर का इतिहास लिखा है । कश्मीर की खूबसूरती और दिलकश अंदाज इसकी आबोहवा में घुल सा गया है।
कश्मीरियत से रंगे पुते लोग कश्मीर के एहसास को दोगुना कर देते हैं । कश्मीर की लोक संस्कृति, सदियों से अनेक तहजीबों के मेल से बनी है जिसे आज हम कश्मीरियत कहते हैं वो बेहद निराली है। कश्मीर में ऐसी कई जगहें हैं जहां दुनिया भर के कोने-कोने से आए सैलानी इसकी खूबसूरती निहारने आते हैं। चश्मा-ए-शाही, शालीमार बाग, डल झील, गुलमर्ग, पहलगाम, सोनमर्ग और अमरनाथ की पर्वत गुफा तथा जम्मू के निकट वैष्णो देवी मंदिर,पटनी टाप यहां के प्रमुख पर्यटन केंद्र हैं। गुलमर्ग में आइस स्केटिंग केन्द्र, जो बारामूला के दक्षिण में पीर पंजाल श्रेणी में स्थित है और पहलगाम, जो लिद्दर नदी के किनारे स्थित है। कश्मीर आने वाला हर पर्यटक एक बार डल झील की बोट सवारी का मौका लेने से नहीं चूकता। कभी आप भी डल झील की सैर करिए और इस जगह के नजारों का लुत्फ उठाइए।
हमारा बॉलीवुड भी कश्मीर की इन वादियों से कैसे महरूम रहता। उसे तो इस जन्नत में आना ही था और तो और वो इस जन्नत की खूबसूरती के बेमिसाल रंगों को दर्शकों के सामने लेकर आया जिसमें कश्मीर का वो नजारा था जिसमें हर कोई खो जाना चाहता था,कभी ये लोगों के इश्क का गवाह बना तो कभी जन्नत की वो हकीकत बना जिसने लोगों की पहली चाहत में उन्हें कश्मीर ही दिखा दिया। फिल्में हमेशा से ही हमारे समाज का दर्पण रही हैं। यह अमूमन ही होता है कि अपनी थकान और चिंता को दूर करने के लिए आदमी किसी सुंदर मनोहारी जगह की सैर करता है और उसे सुकून मिलता है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए फिल्मों के निर्माता निर्देशकों को यह ख्याल आया कि सिनेमा हॉल पहुंचे दर्शकों को उनकी परेशानी दूर करने के लिए प्राकृतिक नजारों के अच्छे गीत-संगीत से सुकून पहुंचाया जाए। या यूं कहें कि चल फिल्मों की शुरुआत से ही निर्देशकों ने दर्शकों की इस नब्ज को पकड़ लिया था और एक से बढ़कर एक खूबसूरत दृश्यों को सिनेमा के कैमरे में कैद करना शुरू कर दिया। ऐसे में कश्मीर की खूबसूरती सिनेमा के निर्देशकों, कलाकारों आदि से कैसे बचती और कब तक बचती और इस तरह फिल्मों से कश्मीर से संबंधों की शुरुआत हुई।
1963 में आयी "आज और कल" फिल्म का वो खूबसूरत गाना "ये वादियां ये फिजाएं बुला रही हैं" जो कश्मीर की हसीं वादियों में फिल्माया गया। साहिर की कलम से निकला गीत और रफी की आवाज में जैसे कह रहा हो कि खामोशियों की सदाए बुला रही हैं तुम्हें। फिर तो सिलसिला चल पड़ा। हिन्दी फिल्मों का हर निर्माता निर्देशक अपनी फिल्मों के लिए आउटडोर शूटिंग लोकेशन की लिस्ट में कश्मीर का नाम सबसे उपर रखते। गर्मियों में जब पूरे हिंदुस्तान में चिलचिलाती गर्मियों होती हैं तो उस वक्त कश्मीर उस गर्मी से बिलकुल अछूता रहता है। ऐसे में सितारों की विशेष डिमांड होने लगी कि उनकी आउटडोर शूटिंग कश्मीर में ही हो। इसका फायदा भी हुआ।
कश्मीर में फिल्माए गए दृश्य फिल्मों की जान होते थे। गाने जो कश्मीर की डल झील में फिल्माए गए या फिर उसके सदाबहार बागों में फिल्माए जाते उसे देखते वक्त दर्शकों को लगता था मानो मुफ्त में कश्मीर की सैर पे आए हों। ऐसी फिल्में हिट भी काफी हुई। "कश्मीर की कली" का गाना "दीवाना हुआ बादल" और "चांद सा रोशन चेहरा" देखकर तो हर किसी का दिल कश्मीर के नजारों में खो जाने के लिये मचलने लगा तो वहीं "जब-जब फूल खिले" का गाना "ये समां समां है प्यार का"। नये जोड़े की पहली तमन्ना बन गया कि वो अपने नये जीवन की शुरूआत इन्हीं हसीं और खूबसूरत वादियों से करें। बॉलीवुड में एक वक्त तो ऐसा आया कि हर दूसरी फिल्म का थोड़ा या ज्यादा हिस्सा कश्मीर की खूबसूरत वादियों में जरूर फिल्माया जाने लगा। इससे कश्मीर का पर्यटन भी काफी फला-फूला। भारतीय सिनेमा को तो फायदा हुआ ही।
इस तरह सिनेमा ने देश के अन्य हिस्से के लोगों को भी कश्मीर और कश्मीरियत से अनायास ही जोड़ दिया। दर्शकों के दिलो दिमाग में कश्मीर की खूबसूरती का आलम ही था कि एक दौर वह भी आया कि हर नया शादीशुदा जोड़ा हनीमून के लिए कश्मीर जाने लगा। 60-से 70 के दशक में कश्मीर के हर नजारे को अपने कैमरे में कैद करने के लिये बॉलीवुड हमेशा ही बेताब दिखा। उस समय के सभी डायरेक्टर्स की पहली पसन्द ही कश्मीर की खूबसूरत वादियां ही हुआ करती थीं। "जंगली" ,"कश्मीर की कली" कई ऐसी कई फिल्में आयी जिसमें न केवल वहां की वादियों को बल्कि कश्मीर की रवायतों और वहां के बर्फीले हुस्न को दिखाने की भी कामयाब कोशिश की गयी जो ओस की बूंद की तरह खूबसूरत और नायाब था लेकिन जिस डायरेक्टर ने कश्मीर की हर फिजा में प्यार की रूमानियत को घोला वो थे यश चोपड़ा।
उन्होंने कश्मीर को उस शायर की गज़ल की तरह पेश किया जो बेनजीर और बेमिसाल थी।
सत्तर के दशक में बॉलीवुड में रुमानियत का काफी जोर रहा। रोमांस पर आधारित फिल्मों का बोलबाला शुरू हो गया। राजेश खन्ना जैसे सुपर स्टार इसी दौर की पैदाइश रहे। रोमांटिक फिल्में बनाने वाले भी एक से एक धुरंधर हुए। यश चोपड़ा को तो परदे पर प्यार के अलग-अलग पहलुओं को फिल्माने में महारत हासिल थी और ऐसे सभी फिल्मकारों की पसंदीदा जगह कश्मीर ही थी। इस दौर की शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो जिसकी यूनिट कश्मीर में शूटिंग करने ना पहुंची हो।
यश चोपड़ा को तो कश्मीर का एक्सपर्ट माना जाने लगा। नूरी फिल्म का गाना "आजा रे नूरी" ने सभी के दिलों के छुआ और बेहद हिट रहा। सत्तर के दशक के दौर में ही जब रोमांटिक फिल्में चरम पर थी उसी दौर में अमिताभ की एंट्री हुई। एक एंग्री यंग मैन के रूप में परदे पर आग बरसाती अमिताभ की छवि ने सिनेमा के नए प्रतिमान गढ़े। लेकिन कहानी की डिमांड हो या पूरी फिल्म ही हो, दो दिलों के प्यार के उतार-चढ़ाव को दर्शाने वाली फिल्म हो तो परदे पर अमिताभ रोमांस भी जबरदस्त करते और उनके ऐसे दृश्यों में इस दौर में भला कश्मीर कैसे दूर रहता।
साहिर का "कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है" गाना जब अमिताभ और राखी पर फिल्माया गया तो हर कोई वहां के रोमांटिक नजारों का मुरीद हो गया और हर युवा की कल्पनाओं का संसार मानों जैसे साहिर के अल्फाजों और कश्मीर के नजारों को बुनने लगा। फिल्म "सिलसिला" का गाना "ये कहां आ गए हम" में अमिताभ और यश चोपड़ा के करिश्माई मेल ने कश्मीर के लोकेशनों की प्रसिद्धि को चरम पर पहुंचा दिया।
श्री देवी जो अब हमारे बीच नहीं है को भी कश्मीर की खूबसूरती खूब रास आती थी। उन्होंने भी यश चोपड़ा के साथ कई फिल्मों में काम किया था और कहते हैं कि वो काम इस शर्त पर करती थीं कि फिल्मों की अधिकांश शूटिंग कश्मीर में ही की जाएगी। आज यह सच है कि चोपड़ा की चांदनी जैसी फिल्म यदि कश्मीर में शूट नहीं होती तो अधूरी सी लगती। इस दौर में हालांकि कई निर्माता निर्देशक और कुछ नए की तलाश में विदेश जाने लगे लेकिन बॉलीवुड में कश्मीर के प्रति क्रेज जरा भी कम नहीं हुआ।
पूरी की पूरी फिल्म यूनिट्स यहां पहुंचती रही। रणवीर कपूर और दीपिका पादुकोण जैसे नई पीढ़ी के कलाकार भी कश्मीर की खूबसूरती के कायल हो गए हैं और कई फिल्मों के गाने यहाँ फिल्माए गये। हम कह सकते है कि कश्मीर और इसकी खूबसूरती एक शराब की पुरानी बोतल की तरह है, जो जितनी पुरानी होते जाती है , सुरूर उतना ही खूब चढ़ता है।
हिंदी फिल्मों की कश्मीर के साथ इस प्रेम कहानी में खलनायक की एंट्री भी हुई । 80 के दशक तक आते- आते कश्मीर में धीरे-धीरे आतंकवाद ने पैर पसारना शुरू कर दिया और इसका असर कश्मीर के साथ-साथ बॉलीवुड में भी दिखना शुरू हो गया। अब लोगों के सामने कश्मीर की एक अलग तस्वीर थी जो बेहद खतरनाक और डरावनी थी यहां के मासूमों को कुछ नापाक इरादों ने गलत राह दिखाकर यहां की फिज़ा में आतंकवाद का जहर घोलना शुरू कर दिया और इसी के साथ शुरू हुई उस स्वर्ग को खत्म करने की गहरी साजिश,हमारी फिल्मों ने इस पहलू को भी दिखाया और लोगों को ये संदेश देने की कोशिश की कि नफरत और हिंसा से कभी भी सही रास्ता नहीं मिलता है।
रास्ता अगर मिलता है तो वो शान्ति और सही राह पर चलने से ही मिलता है। कश्मीर और कश्मीरियत का शेष भारत के साथ घुलना-मिलना पाक में बैठे कुछ इस्लाम के ठेकेदारों को रास नहीं आ रहा था और फिर उनके नापाक इरादों ने कश्मीर की फिजा में जहर घोलने की शुरुआत की। जैसा कि हम आपको शुरुआत में ही बता चुके है कि बॉलीवुड की फिल्में हमेशा से समाज की सच्चाई को सामने लाती रही हैं। ऐसे में बदलते कश्मीर की तस्वीर भी बॉलीवुड के फिल्मों के जरिए दर्शको के सामने आने लगी।
इस कड़ी में जो सबसे पहले फिल्म हमारे जेहन में आती है वो है मणि रत्नम की रोजा। वैसे "रोजा" थी तो एक लव स्टोरी लेकिन इसमें कश्मीर में पैर पसारते आतंकवाद की जो झलक दिखाई गई उससे देशवासियों का दिल दहल गया। रोजा के बाद फिजा, मिशन कश्मीर जैसी फिल्में भी बड़ी गहराई और शिद्दत से आतंकवाद से लहूलुहान हुए कश्मीर के छलनी सीने को हमारे सामने दिखाती रहीं। इन सब के बीच कश्मीरियत कहीं खोता हुआ नजर आयी।
इस्लाम के नाम पर अलग कश्मीर की मांग उठने लगी। पाकिस्तान ने कश्मीर के भोले-भाले नौजवानों को भारत के खिलाफ भड़काना जारी रखा। कश्मीर में माहौल खराब करने के लिए अपने इलाके में इन नौजवानों के लिए कैंप भी लगाए। ऋतिक रौशन और संजय दत्त की फिल्म"मिशन कश्मीर"कश्मीर के बिगड़ते हालात के इस पहलू को बखूबी बयान करती है । फिल्म तहानका जिक्र भी ज़रूरी है जिसमें कश्मीर की एक कड़वी सच्चाई सामने आती है जब फिल्म का हीरो 8 साल का बच्चा आतंकियों के षडयंत्र का हिस्सा बन जाता है।
ये फिल्म इस बात को काफी करीब से दिखाती है कि कश्मीर के नाम पर भले ही वहां पर राजनैतिक सियासत काफी लम्बे वक्त से चली आ रही हो पर कश्मीर में बच्चों को आतंकवाद की क्या कीमत चुकानी पड़ रही है ये इस फिल्म के ज़रिये समझा जा सकता है, आतंकवाक की लड़ाई में मासूम बच्चों को आतंकवादी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। आमिर खान और काजोल की फिल्म 'फना' भी एक कश्मीर के आतंकी की कहानी है जो एक कश्मीरी अंधी लड़की के प्यार में बदलने लगता है। आमिर खान और काजोल देवगन की इस फिल्म में कश्मीरी युवा और फिदायीन आतंकवाद को दिखाया गया है। कुछ इसी तरह की हकीकत बयां करती फिल्म लम्हा भी थी जिसमें कश्मीर की समस्या को बड़ी गहराई से दिखाया गया है और यही नहीं कश्मीर में सेना के प्रति नफरत फैलाने वालों की सच्चाई को भी यहाँ फिल्म में बड़ी गहराई से दिखाया गया है कई बार तो ऐसा लगा कि कश्मीर में क्या कभी अमन शांति भी आएगी लेकिन भारतीय सेना का जज्बा कहिए या जूनून।
पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को हर बार रणनीति बना कर ईंट का जवाब पत्थर से दिया गया। भारतीय सेना के इस पहलू को भी हमारी सिनेमा में बखूबी दिखाया गया। जान देकर भी उन्होंने कश्मीर की एक एक इंच भूमि की रक्षा की। कारगिल फिल्म हो या लक्ष्य सभी में हमारे जांबाज़ सेना के शौर्य औऱ बलिदान को बखूबी दिखाया गया । यह हमारी सेनाओं का ही मनोबल है कि अब फिर से कश्मीर में कई फिल्म निर्देशक आउटडोर शूटिंग करने आ रहे हैं। अब कश्मीर की फिजाओं में रौनक लौट रही है। धीरे-धीरे हमारी सरकार और सेना के अथक प्रयासों के जरिये आतंकवाद पर लगाम लगाने की कोशिश की जा रही है और यही वजह है कि फिल्मों में फिर से कश्मीर की खूबसूरत वादियों के खूबसूरत नज़ारों को एक बार फिर से देखने का मौका मिल रहा है जिसमें कश्मीर में लोगों के प्रति सबकी सोच भी बदल रही है अब वहाँ देशभर से डायरेक्टर अपनी फिल्मों को शूट करने आ रहे हैं और कश्मीर के उस अमनो चैन को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं जो कभी वहाँ की फिज़ाओं और वादियों में सुनाई दे रहा था।
इसी के साथ एक बार फिर हम बेनज़ीर बेमिसाल कश्मीर से रूबरू हो रहे हैं वाकई में ये तार्रूफ ही असली कश्मीर की पहचान है जहाँ पर कश्मीर की कश्मीरियत आज भी ज़िन्दा है। 2018 मे आयी मेघना गुलज़ार की फिल्म राज़ी ने एक बार फिर कश्मीर की वादियों के उस पहलू से लोगों को रूबरू कराया जिसमें अपने वतन के लिये जज़्बा है मोहब्बत है। इसकी कहानी एक स्पाई थ्रिलर की है की जिसमें दिखाया गया है कि आज भी कश्मीर के लोगों को अपने वतन भारत से बेहद प्यार है और इसके लिये वो कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं वहीं बजरंगी भाईजान में भी फिल्म का क्लाईमेक्स सोनमर्ग में शूट किया गया । जो दिखाता है कि इंसानियत का रिश्ता सबसे बड़ा है । रॉक स्टार का खूबसूरत गाना एक बार फिर हमें उसी पुराने कश्मीर की याद दिलाता है जो आज भी हमारी यादो में बसा हुआ है।
हालांकि यश चोपड़ा आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी फिल्म "जब तक है जान" का जिक्र तो लाजिमी है 2012 में बनी "जब तक है जान" फिल्म में एक बार फिर यश चोपड़ा का वो मैजिक दिखा जिसके लिये लोग उन्हें जानते हैं और इसके लिये भी उन्होने उसी खूबसूरत वादियों का सहारा लिया जिसकी फिज़ाओं में इश्क की अलग रोमानियत नज़र आती है 2012 में आयी फितूर में भी कश्मीर की खूबसूरत वादियों में बेपनाह मोहब्बत के सुरूर को जवाँ होते हुये दिखाया गया है जिसमें कश्मीर के नज़ारे तो लोगों का दिल जीत लेते हैं इसी के साथ कई और फिल्में हैं जो कश्मीर की फिज़ाओं में शूट हुयी और हिट भी रही। जिनमे ये जवानी है दिवानी ,हाईवे ,अय्यारी, students of the year फिल्में खास तौर से हैं।
जिन्होने एक बार फिर कश्मीर की उन्हीं खूबसूरत वादियों में खो जाने के लिये और बर्फ की सफेद चादर में लिपट जाने के लिये मजबूर कर देती हैं और पुराने दिनों की याद दिलाती है कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो वो कश्मीर है तो कई ऐसी फिल्में भी रहीं जिन्होनें कश्मीर के दर्द और उस हिस्से को दिखाया जिसे पूरे विश्व को जानना ज़रूरी था।
विवेक अग्निहोत्री की The Kashmir Files और विदू विनोद चोपड़ा की फिल्म "शिकारा" में कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार और नरसंहार को बड़े मार्मिक तरह से दिखाया गया है कि किस तरह आतंकवाद के दंश ने कई हंसते खेलते परिवार को तबाह कर दिया । आज कश्मीर में एक बार फिर से पुराने दिन लौट रहे हैं और वहाँ की फिज़ा में इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत की सुगंध पूरे कश्मीर में महकेगी।
संबंधित खबरेंः
|
4918bfff442fe090e984453b7892e1835ce22939cb70d8d03364204ec54b701b | pdf | का उपदेश भगवान् ने आपण कस्बे में विहार करते समय ही दिया था। यहीं पर केणिय जटिल भगवान् से मिलने आया था और उसने १२५० भिक्षुओं के सहित भगवान् को भोजन के लिये निमंत्रित किया था ।' जैसा हम अभी देखेंगे, भगवान् भद्दिय से अंगुत्तराप प्रदेश में चले गये थे, जहाँ कुछ दिन विचरण करने के बाद वे उसके कस्बे आपण में पहुँचे थे। इससे यह प्रकट होता है कि भद्दिय और आपण सड़क के मार्ग से जुड़े हुए थे, जो अंगुत्तराप प्रदेश में होकर गुजरती थी । भद्दिय से आपण जाते हुए जब भगवान, १२५० भिक्षुओं के सहित अंगुत्तराप प्रदेश में होकर गुजर रहे थे, तभी रास्ते में एक वन में मेण्डक गृहपति ने भिक्षु-संघ सहित भगवान बुद्ध का धारोष्ण दूध से सत्कार किया था।
ऊपर मज्झिम-निकाय के तीन सुत्तों (पोतलिय सुत्तन्त, लकुटिकोपम सुत्तन्त और सेल-सुत्तन्त) का हमने उल्लेख किया है, जिनका उपदेश भगवान् ने आपण में किया था। इन तीनों सुतों के आरंभ में यह कहा गया है "एक समयं भगवा अंगुत्तरापेस चारिक चरमानो... येन आपणं नाम अंगुत्तरापानं निगमो तदवसरि । अर्थात्" "एक समय भगवान्. अंगुत्तराप (देश) में चारिका करते हुए, जहाँ अंगुत्तरापों का आपण नामक निगम था, वहाँ पहुँचे।" यह अंगुत्तराप क्या था ? अंगुत्तराप वस्तुतः अंग देश काही वह भाग था, जो गंगा ( महामहीगंगा) नदी के उत्तर में अवस्थित था । इसके "अंगुत्तराप" नाम से भी यह बात स्पष्टतः विदित होती है । 'अंगुत्तराप' नाम की व्याख्या करते हुए सुत्तनिपात की अट्ठकथा में कहा गया है, "अंगा एवं सो जनपदो। गंगाय ( महामहो गंगाय) पन या उत्तरेण आपो, तासं अविदूरत्ता उत्तरापाति वुच्चति ।' इसका अर्थ यह है "अंग ही वह जनपद है। गंगा (महामही गंगा) नदी के उत्तर में जो पानी है, उसके अ-दूर उत्तर होने के कारण उत्तराप कहा जाता है"। इससे विदित
१. मज्झिम-निकाय (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ ३८१; शंल ब्राहमण के साथसाथ केणिय के भी आपण में दीक्षित किये जाने का उल्लेख अश्वघोष ने बुद्ध-चरित (२१११२) में किया है।
२. विनय पिटक (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ २४८-२५०।
३. परमत्वजोतिका (सुत्त-निपात को अट्ठकथा), जिल्ब दूसरी, पृष्ठ ४३७ ।
होता है कि अंगुत्तराप अंग के उत्तर में गंगा नदी के उस पार का, उसके खादर का प्रदेश था, जो अंग जनपद में हो सम्मिलित माना जाता था। डा० मललसेकर ने भी इसे गंगा नदी के उत्तर में अंग देश का ही एक भाग माना है। अंग के समान अंगुत्तराप भी मगघ राज्य के अन्तर्गत था, यह इस बात से विदित होता है कि केणिय जटिल ने १२५० भिक्षुओं के साथ भगवान् बुद्ध को भोजन के लिये निमंत्रित किया था और जब वह उसकी तैयारी में लगा था तो शैल नामक ब्राह्मण ने उससे पूछा था "क्या आपके यहाँ मगधराज श्रेणिक बिम्बिसार कल भोजन के लिये निमन्त्रित किये गये है ? " यह निश्चित हो जाने पर कि अंगुत्तराप अंग जनपद का ही गंगा नदी के उत्तर वाला भाग था, उसकी आधुनिक स्थिति का अनुमान लगाना कठिन नहीं है। महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने उसके सम्बन्ध में एक जगह लिखा है "कोसी (नदी) के पश्चिम तथा गंगा के उत्तर में अंगुत्तराप प्रदेश था "" और एक दूसरी जगह लिखा है, "अंगुत्तराप मुंगेर और भागलपुर जिलों का गंगा के उत्तर वाला भाग था।"* दोनों वर्णनों का एक ही अर्थ है और वह यह कि अंग देश का वह भाग जो गंगा नदी के उत्तर में स्थित था, अंगुत्तराप कहलाता था। अंग देश का गंगा के उत्तर वाला भाग अंगुत्तराप कहलाता था और दक्षिण का केवल अंग, यद्यपि अंगुत्तराप स्वयं अंग का ही एक भाग था । डा० मललसेकर ने सुझाव दिया है कि आपण अंगुत्तराप की राजधानी था। अंगुत्तराप को अंग जनपद का ही एक अंग मान लेने पर उसकी पृथक राजधानी की आवश्यकता नहीं जान पड़ती। हाँ, उसे अंगुत्तराप का प्रधान नगर हम मान सकते हैं। आपण की ठीक आधुनिक पहचान करने का प्रयत्न किसी विद्वान् ने अब तक नहीं किया है।
१. डिक्शनरी ऑव पालि प्रॉपर नेम्स, जिल्ब पहली, पृष्ठ २२, ७३४
२. मज्झिम-निकाय (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ ३८२ ।
३. मज्झिम-निकाय (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ छः ( प्राक्कचन ) ।
४. विनय पिटक (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ २४९, पद-संकेत २; मिलाइये
बुद्धचर्या, पृष्ठ १४४, पद-संकेत १; वहीं, पृष्ठ ५४२ भी ।
५. डिनरी ऑब पालि प्रॉपर नेम्स, चिल्द पहली, पृष्ठ २७७१
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने आतुमा नामक गाँव या नगर को अंगुत्तराप में बताया है, जो ठीक नहीं जान पड़ता क्योंकि विनय पिटक में हम देखते हैं कि भगवान् आतुमा में कुसिनारा से आये थे और कुछ दिन आतुमा में निवास कर श्रावस्ती चले गये थे। इस आधार पर आतुमा को कुसिनारा और सार्वत्थि के बीच में कोई स्थान मानना ही ठीक होगा।" हम उसे मल्ल और कोसल राज्यों में से किसी एक में रख सकते हैं।
अंग देश के उपर्युक्त कस्बों में भगवान् की चारिकाओं की भौगोलिक रूपरेखा विनय पिटक के अनुसार कुछ इस प्रकार होगी। पहली बार भगवान् वाराणसी से भद्दिय आये और वहाँ कुछ दिन निवास कर श्रावस्ती चले गये ।' एक दूसरी बार भगवान् वैशाली से भद्दिय आये' और वहाँ से अंगुत्तराप चले गये। अंगुत्तराप के वन में कुछ दिन विहार करने के पश्चात् भगवान उसके कस्बे आपण में पहुँचे । आपण में कुछ दिन विहार करने के पश्चात हम भगवान् को कुसिनारा की ओर जाते देखते हैं।
बुद्ध-पूर्व काल में मगध अंग की अपेक्षा एक निर्बल राष्ट्र था और दोनों में सत्ता के लिये संघर्ष चला करता था, यह हम पहले देख चुके हैं। मगघ राज्य का विवरण देते समय हम यह भी देख चुके हैं कि किस प्रकार मगघराज
१. बुद्धचर्या, पृष्ठ ५४४
२. विनय पिटक (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ २५२-२५४।
३. मिलाइये मललसेकरः डिक्शनरी ऑव पालि प्रॉपर नेम्स, जिल्द पहली,
पृष्ठ २४४ ।
४. विनय पिटक (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ २०७१
५. वहीं, पृष्ठ २०८।
६. वहीं, पृष्ठ २४८।
७. वहीं, पृष्ठ २४९; मिलाइये धम्मपवट्ठकथा, जिल्द पहली, पृष्ठ ३८४ भी। ८. वहीं, पृष्ठ २५०; बेलिये धम्मपदवकमा, जिल्ब तीसरी, पृष्ठ ३६३ भी। ९. विनय-पिटक (हिन्दी अनुवाद), पृष्ठ २५२ ।
श्रेणिक बिम्बिसार द्वारा जीत लिये जाने पर बुद्ध के जीवन काल में अंग मगध राज्य का एक अंग मात्र हो गया और उसकी स्वतन्त्र राजनैतिक सत्ता समाप्त हो गई। यहाँ हम एक जनपद के रूप मे मगध का, या ठोक कहें तो मगधों का, मगध जनों का, पालि तिपिटक और उसकी अट्ठकथाओं के आधार पर विवरण प्रस्तुत करेंगे।
मगध जनपद का बौद्ध धर्म के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। वस्तुतः इसी जनपद में धम्म का आविर्भाव हुआ। विनय पिटक में कहा गया है "भगव में मलिन चित्त वालों से चिन्तित, पहले अशुद्ध धर्म पैदा हुआ था । अब अमृत के घर को खोलने वाले विमल ( पुरुष ) द्वारा जाने गये इस धर्म को लोक सुने । उरुवेला, जहाँ भगवान ने ज्ञान प्राप्त किया, मगध जनपद का ही एक स्थान था। इस जनपद के अनेक नगरों, निगमों और ग्रामों का, जो भगवान बुद्ध की स्मृति के कारण अमर हो गये है, हम पहले उल्लेख कर चुके हैं। भगवान् बुद्ध के अनेक शिष्य मगध-निवासी थे और बुद्ध धर्म का प्रारम्भिक प्रचार केन्द्र मगघ ही था, यह सब हम पहले निरूपित कर चुके हैं।
एक जनपद के रूप में मगध का विस्तार आधुनिक बिहार राज्य के गया और पटना जिलों के बराबर समझना चाहिये। उसके उत्तर मे गंगा नदी, पश्चिम में सोण नदी, दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी का बढ़ा हुआ भाग और पूर्व में चम्पा नदी थी ।
मगध जनपद का यह नाम क्यों पड़ा, इसका कारण देते हुए आचार्य बुद्धघोष कहा है कि इस सम्बन्ध में लोग अनेक प्रकार की किवदन्तियाँ प्रपंचित करते हैं । 'बहुधा पपंचन्ति' । इस प्रकार की एक किंवदन्ती यह है कि जब राजा चेतिय, जिसने प्रथम बार संसार में झूठ बोलना शुरू किया, अपने इस कार्य के कारण धरती में धंसने लगा, तो जो लोग उसके पास खड़े हुए थे उन्होंने उससे कहा 'मा गघं पविस' । इसी से मिलती हुई दूसरी किवदन्ती यह है कि जब राजा चेतिय धरती में प्रवेश
१. पातुरहोसि मगधेसु पुम्बे बम्मो असुद्धो समलेहि चिन्तितो । अपापुरेसं अमतस्स द्वारं सुणन्तु धम्मं विमलेनानुबुद्धं ॥ महावग्गो-विनय पिटकं, पठमो भागो, पृष्ठ ८ (बम्बई विश्वविद्यालय संस्करण ) ।
कर गया, तो कुछ लोगों ने जो धरती खोद रहे थे उसे देखा और उसने उनसे कहा, "मा गां करोथ" । इस प्रकार इन शब्दों 'मा गधं' के कारण मगध जनपद का यह नाम पड़ा। इन मनोरंजक अनुश्रुतियों का उल्लेख करने के बाद मगध के वास्तविक नामकरण का कारण बताते हुए आचार्य बुद्धघोष ने कहा है कि मगघ ( मगधा ) नामक क्षत्रिय जाति की निवास-भूमि होने के कारण यह जनपद 'मगध' कहलाया।' मगध जनपद के सम्बन्ध में अन्य सब आवश्यक बातों का उल्लेख हम मगध राज्य का विवरण देते समय कर चुके हैं।
काशी राष्ट्र (कासि रट्ठ) बुद्ध पूर्व युग का सम्भवतः सबसे अधिक शक्तिशाली जनपद था । परन्तु बुद्ध के जीवन काल में उसकी स्थिति राजनैतिक दृष्टि से अत्यन्त नीची गिर गई और उसको आय कोसल और मगध देश के राजाओं के झगड़े का कारण बन गई और जब तक काशी जनपद अन्तिम रूप से मगध राज्य का अंग न बन गया, यह झगड़ा चलता ही रहा।
काशी जनपद पूर्व में मगध और पश्चिम में वंस ( वत्स ) जनपद के बीच में स्थित था। उसके उत्तर में कोसल जनपद था और दक्षिण में उसको सीमा सम्भवतः सोज ( सोन) नदी तक थी, यद्यपि अस्सक जातक में जिस समय की स्थिति का वर्णन है, उसके अनुसार (बुद्ध-पूर्व काल में ) काशी राज्य का विस्तार दक्षिण में गोदावरी के तट तक हो गया था, क्योंकि इस जातक मे अस्तक राज्य की राजधानी पोतलि नगर को काशी राज्य का नगर बताया गया है। बज विहेठ जातक में काशी राज्य का विस्तार ३०० योजन बताया गया है।
जैसा हम पहले देख चुके हैं, कांसलराज प्रसेनजित के पिता महाकोसल के समय (छठी शताब्दी ईसवी-पूर्व के मध्य भाग ) में ही काशी जनपद कोसल राज्य का एक अंग हो गया था। हरितमातक जातक और वड् ढकि सूकर जातक के साक्ष्य पर हम देखते हैं कि महाकोसल ने अपनी पुत्री कोसला देवी का विवाह मगवराज बिम्बिसार से कर काशी-ग्राम की आय उसकी स्नान-सामग्री के व्यय के लिये दे दी थी। बाद में अजातशत्रु ने जब अपने पिता बिम्बसार को मार दिया तो कोसला देवी भी दुःखाभिभूत होकर मर गई। इस पर प्रसेनजित ने अपने
१. परमत्मजोतिका, जिल्द पहली, पृष्ठ १३५
मानजे अजातशत्रु से काशी ग्राम छीनना चाहा, जिस पर दोनों में काफी लम्बा संघर्ष चला और प्रसनजित की तीन बार हार हुई, परन्तु अन्त में प्रसेनजित् ने अजातशत्रु को बन्दी बना लिया और उदार नीति का अनुसरण कर उसे छोड़ दिया। इतना ही नहीं, अपनी पुत्री वजिरा का विवाह उसने अजातशत्रु के साथ कर दिया और काशी ग्राम पूर्ववत् उसके स्नान और सुगन्ध के व्यय के लिये दिया । इसके बाद प्रसेनजित् के सेनापति दीर्घ चारायण (पालि, दोष कारायन) ने, जिसके मामा बन्धुल मल्ल को (जो प्रसेनजित का भूतपूर्व सेनापति था) बिना किसी अपराध के प्रसेनजित् ने मरवा दिया था, राजा के विरुद्ध विडूडभ से अभिसंधि की और जब प्रसेनजित्, जिसको आयु उस समय अस्सी वर्ष की थी, भगवान बुद्ध से संलाप में मग्न था ( जो मज्झिम-निकाय के धम्मचेतिय सुत्तन्त में निहित है) दोध कारायन उसे छोड़कर चल दिया और श्रावस्ती में जाकर विड्रडम को राजा घोषित कर दिया। राजा प्रसेनजित, ने राजगृह में जाकर शरण लेनी चाही। दिन भर की थका हआ रात में राजगृह पहुँचा, जब कि उसके दरवाजे बन्द हो चुके थे। बाहर ही धर्मशाला में टिका और थका-माँदा उसी रात ठंड लग जाने से मर गया। अजातशत्रु ने उसकी दाह क्रिया की। उधर विडूडभ ने शाक्यों का विनाश कर अपनी प्रतिहिंसा की तृप्ति की और मार्ग में लौटते हुए आँधी और बाढ़ के बीच अचिरवती (रापती ) नदी में समन्य मृत्य प्राप्त की। इस प्रकार काशी के सहित कोसल राज्य, जिसको अधीनता में हो शाक्य जनपद था, सब मिलकर मगध राज्य में सम्मिलित हो गये ।
ऊपर हम देख चुके हैं कि काशी जनपद के पूर्व में भगघ, उत्तर में कोसल और पश्चिम में वंस जनपद थे। अतः इन तीनों जनपदों के साथ बुद्ध-पूर्व काल में काशी राज्य के अनेक संघर्ष चले, जिनका कुछ उल्लेख करना यहाँ आवश्यक होगा। बुद्ध-पूर्व काल में काशी एक स्वतंत्र और समृद्ध राष्ट्र था। वह सप्त ग्लों से युक्त था । पूर्व काल में काशी एक समृद्ध राष्ट्र था, इसका साक्ष्य
१. संयुत्त निकाय (हिन्दी अनुवाद) , पृष्ठ ७६-७८ ( पठम-संगाम-सुत्त तथा दुतिय संगाम-सुत) ; धम्मपदट्ठकथा, जिल्द तोसरी, पृष्ठ २६६१.
२. अंगुत्तर -निकाय, जिल्द पहली, पृष्ठ २१३; जिल्द चौनी, पुष्ठ २५२, २५६, २६० |
8f8fb5f41b31ba5dea6cbef4bc40beb05885b6a3812990a60bf4ce9a827d74ec | pdf | भारतं वेदतुन्यं स्यादर्थतोऽधिकमुच्यते । तत्रापि भगवद्गीता विष्णोर्नामसहस्रकम् ॥ ५८।। दशाधिकफलं प्रोक्तं भारतादापि सर्वशः । श्रोताऽधं फलप्राप्नाति भक्तितः शृणुयात्तु यः ॥ ५९॥ भारतं वितिहासञ्च रामायणसमुद्भवम् । यद्वेदपाठपुण्यं तज्ज्ञेय रामायणस्य च ॥६० ।। पाठात्तदर्द्ध श्रवणे व्याख्यातुश्च दशाधिकम् । बाल्मीकिना कृतं यच शतकोटिप्र विस्तरम् ।।६१।। तत्सर्वेषामादिभूतं महामंगलकारकम् । रामायणादेव नाना संति रामायणानि हि ।। ६२।। शेषभूतं चतुर्विंशत्सहस्रं प्रथमं स्मृतम् । तथा च योगनिष्ठमध्यात्माख्यं तथा स्मृतम् ॥ ६३ ॥ वायुपुत्रकृतं चापि नारदोक्तं तथा पुनः । लघुरामायण चैरवृहद्रामायण तथा ।।६४।। अगस्त्युक्तं महाश्रेष्ठं साररामायणं तथा देहरामायणं चापि वृतरामायण पुनः ।। ६५।। मर। मायणं रम्पं भारद्वाजं तथैव च शिवरामायणं क्रौंचं भारतस्य च जैमिनेः ।।६६।। आत्मधर्म श्वेतकेतुऋपेश्चैव जटायुषः ॥ ६७ ।।
रवेः पुलस्तेदव्याथ गुह्यकं मंगलं तथा गाधिजं च सुतीक्ष्णं च सुग्रीवं च विभीषणम् ।।६८॥ तथाऽऽनंद रामायणमेतन्मंगलकार कम् । एवं सहस्रशः संति श्रीरामचरितानि हि ॥ ६९ ॥ कः समर्थोऽस्ति तेषां हि संख्यवक्तं सविस्तरात् । शतकोटिनितादेव विभाति पृथपृथक् ॥७०॥ सर्वेप्वप्यानंदसंज्ञं वरिष्ठं प्रोच्यते विदम् । अस्प पाटेन यत्पुण्यं तत्ते शिष्य वदाम्यम् ॥७१ ॥ शतकोटिमितं श्रुत्वा यत्फलं लभ्यते नरैः फलमस्य तदर्द्ध हि ज्ञेयं शिष्प शुभप्रदम् ॥७२॥ श्रवणाद्विगुणं पाठे व्याख्यातुश्च दशाधिकम् । तस्मादेतत्मदाऽऽनंदसंज्ञ श्राव्यं नरोत्तमैः ।।७३ ।। नानेन सदृशं किंचिद्धतं नाग्रे भविष्यति । सर्वेष्वपि च शास्त्रेषु पाञ्चरात्रागमोऽधिकः ॥७४।। विष्णुरहस्य ये अष्टादश उपपुराण हुए। इनका पाठ करनेस पुराणपाठका आधा फल मिलता है ।। ५५ ।। ।। ५६ ।। ५७ ।। महाभारत तो साक्षात् वेदके समान है। उसमें कही हुई भगवद्गीता और विष्णुसहस्रनाम ये दोनों महाभारतसे भी दसगुना अधिक फल देते हैं। जो श्रोता भक्तिपूर्वक उन्हें सुनता है, वह आधा फल पाता है। महाभारत रामायणसे ही निकला हुआ इतिहास है। वेदके पाठसे जो पुण्य होता है, वही फल रामायण के पाठमें है ।। ५८-६० ।। मूल-मूल आधा पुण्य मिलता है और व्याख्या करनेसे दसगुना अधिक फल प्राप्त होता है। सो करोड़ा वाल्मीकिने जिस रामायणकी रचना की है, वह सब रामायणोंका मूल और महामङ्गलका क है। उस रामायण से ही विविध प्रकारकी रामायणोंकी रचना हुई है ।। ६१ ।। उसीके परिशिष्ट अंशसे बनी और वर्तमान समय में चलती हुई चोवीस हजार श्लोकोंवाली वाल्मीकिरा मायण, योगवासिष्ठ, अध्यात्मरामायणपुत्र (हनुमान्जी) की रामायण, नारदरामायण, लघुरामायण, बृहद्रामायण, अगस्त्यजी को बनायी महाश्रेष्ठ साररामायण, देहरामायण, वृत्तरामायण, भारद्वाजरामायण, शिवरामायण, क्रौंचरामायण, भरतरामायण, जैमिनिरामायण आदि बहुतेरी रामायण है।। ६२-६६ ।। इनके अतिरिक्त आत्मधर्मकी, जटायुकी, श्वेतकेतु ऋषिकी पुलस्त्यकी देवीजीकी, विश्वामित्रकी, सुतीक्ष्णकी, सुग्रोवकी, विभीषणकी और यह मङ्गलमय आनन्दरामायण, इस तरह रामचरित्रका वर्णन करनेवाली हजारों रामायण बनी हैं। ६७-६९। उन सबकी सविस्तार संख्या बतलाने में कोई भी समर्थ नहीं हो सकता। वाल्मीकिजीके सौ करोड़ श्लोकात्मक रामायणसे ही इन सबका निर्माण हुआ है ॥ ७० ॥ किन्तु ऊपर गिनायी हुई सब रामायणों में यह आनन्दरामायण ही श्रेष्ठ है। ऐसा लोगोंने कहा है। इसके पढ़नेसे क्या पुण्य होता है, सो हे शिष्य ! मैं तुमको इसका माहात्म्य बतला रहा हूँ ॥ ७१ ॥ पूर्वोक शतकोटिसंख्यात्मक वाल्मीकिरामायण के सुनने से जो पुण्य प्राप्त होता है, उसका आधा पुण्य इस आनन्दरामायण पाठसे होता है। इसको सुननेसे दुगुना और व्याख्या करनेसे दसगुना पुण्य होता है । इस कारण लोगोंको चाहिए कि इस आनन्दरामायणका श्रवण करें ॥ ७२ ॥ ७३ । इसके साथ पवित्र कोई ग्रन्यन अवतक हुआ है और न
भगवद्गीतया तुल्य फलं तस्याखिलस्य च । भारतीयकथाबंधं सत्तरेव निर्मितम् ।। ७५।। तत्काव्यं यः पठेत्प्राज्ञो दशांशं फलमाप्नुयात् । यतैर्निमित तत्तु शतांशफलदं स्मृतम् ।।७६ ।। यः करोति स्वयं काव्यं कम्पयित्वा स्वयं कथम् तमो व्यर्थतामेति तदध्येता च दोषभाक् ॥ ७७।। पौराणी भारतीं वापि तथा रामायणस्थिताम् । तथा हापपुराणस्थां कथां ग्रंथति यः स्वयम् ।।७८।। रामभक्तोऽपि लभते शक्रलोकाधिवासताम् । प्रत्यक्षरं वर्षमेक बासस्तस्य भवेद्ध्वम् ।।७९।। रामभक्तः पुराणेभ्यः कथां ग्रंथति यः पुनः समृर्तिः स लभते बृहस्पतिसलोकताम् ।।८० ।। दौहित्रपोषितः शिष्य आरामश्च जलाशयः । सङ्क्रन्थवरणं पुत्रः ते पुत्रा वै प्रकीर्तिताः ।।८१ ।। एवं भृम्यामंशभूतैर्नरैस्ते विचरंति हि अश्वत्थामादयः सप्त ये चिरंजीविनः सदा ।।८२ ।। । अतः श्रीरामभक्कैथ कवित्वैस्वसतुतिः कृता । सापि मान्या सदाव्या बुधैर्मुहुः ।।८३।। भारताच्च शवांशेन फलदात्री स्मृताऽत्र हि । निर्देति ये भक्त कवितां ते खराः स्मृताः ।।८४॥ तत्तद्भाषाकृतं काव्यं रामवर्णनसंयुतम् । भारतस्य सहस्रांतुः फलं स्मृतम् ।।८५ ।। ।। निर्मातुस्तु भवेत्पुण्यं साधुशब्दशतांशतः । गीर्वाणीकविताकर्ता सोऽपि व्यासांश ईरिख । ८६ ॥ स्वस्वभाषाकवियानां कर्तारस्ते कवीश्वराः । गोणीकविता नापि पदान्वयसमन्त्रिता ।।८७ । अर्थप्रमाणसहिता सैव मान्या न चेतरा वरस्तुतिं तु यः कुर्याजी विकार्थं कविः कचित् ॥८८ ॥ निष्फलतच्छ्रमः प्रोक्तस्तदध्येता च दोषभाक् । उन्मादेन तु यः कुर्यारकामिनीनां तुवर्णनम् ।।१९।। सहि श्वयोनिं प्राप्नोति वर्षाव्यक्षरसंख्यया । वेदोक्तार्थानुसारेण मन्त्राद्या स्मारकाः स्मृता ॥९० ॥
भविष्य में होगा। सब शास्त्रोंसे पाञ्चरात्रके आगमको विशेष महत्त्व दिया गया है। उसका पाठ करनेसे भगवद्गीता पाठके तुल्य फल प्राप्त होता है। महाभारत के कथानकों को और जिनको अच्छे-अच्छे भगवद्भक्तोंने बनाया है ।। ७४ ।। ७५ ॥ उन काव्योंको जो मनुष्य पढ़ता है, उसे रामायण के पाठका दशांश पुण्य प्राप्त होता है। अन्य भक्तोंके बनाये काव्योंका अध्ययन करनेसे शतांश फल मिलता है ॥ ७६ ॥ जो मनुष्य कथाकी कल्पना करके स्वयं काव्य बनाता है, उसका परिश्रम व्यर्थ जाता है और उसका पाठ करनेवाला भी दोषका भागी बनता है ॥ ७७ ॥ जो कवि पुराणोंमें, महाभारतमें रामायण में तथा उपपुराणोमें लिखी हुई कथाओंका संग्रह करता है। वह रामभक्त होकर इन्द्रलोकमें निवास करता है। वह प्राणी जितने अक्षरोंको लिखे रहता है, उतने ही वर्षतक इन्द्रलोकमें रहता है ॥ ७८ ॥ ७६ ॥ जो रामभक्त पुराणोसे कथाओंका संग्रह करता है, वह साक्षात् व्यासदेवके समान पूज्य होता हुआ बृहस्पतिके लोकमें निवास करता है ॥ ८० ॥ अपनी लड़कीका लड़का, पोष्य पुत्र, शिष्य, बगीचा, तालाव तथा सद्ग्रन्थको रचना, अपना निजी पुत्र, इतने सत्पुत्र माने गये हैं ॥ ८१ ॥ वे लोग अंशभूत मनुष्यों अर्थात् अश्वत्थामा आदि जो सात चिरंजीवी बतलाये गये हैं, उनके साथ पृथ्वीमंडलपर विचरते हैं ॥ ८२ ॥ अतएव बहुतेरे रामभक्तोने अपनी कविता में श्रीरामकी स्तुति की है। इसलिए लोग उनकी भी कविताओंका आदर करें, वारम्बार सुने और पढ़ें ॥ ३ ॥ रामभक्तों की कविता महाभारतका शतांश फल देनेवाली होती है। जो लोग किसी रामभक्तको बनायी कविताका निरादर करते हैं, वे एक प्रकारके गधे हैं ॥ ८४ ॥ संस्कृत भाषा के अतिरिक्त और और भाषाओं में रामके चरित्रवर्णन युक्त कवितायें श्रोता-बक्ताको महाभारतके सहस्र अंशका फल देनेवाली होती हैं ॥ ८५ ।। अच्छे शब्दों में की हुई कविता कविको शतांश फल देती है । संस्कृत कविता करनेवाला प्राणी व्यासका अंश होता है ॥ ८६ ॥ अपनी-अपनी भाषामें कविता करनेवाले कवीश्वर अथवा संस्कृत में रचना करनेवाले कवियोमेंसे जिनकी कविता पद और अन्वय संयुक्त हो, जिसमें अर्थ तथा प्रमाण दोनों विद्यमान हों, वे ही मान्य हैं, और नहीं। जो कवि अपने स्वार्थ के लिए किसी मनुष्यकी स्तुतिमयी कविता करता है, उसका परिश्रम व्यर्थं जाता है अन्य उसका अध्ययन करनेवाला प्राणी भी दोषका भागी बनता है। जो कवि उन्मादवश स्त्रियोंका वर्णन करता है, वह कवितामें लिखे हुए जितने अक्षर हैं, उतने वर्षंतक श्वानकी योनिमें |
55145525f8e3ba090e2f720743ee97578accb2b0 | web | A subscription to JoVE is required to view this content.
You will only be able to see the first 2 minutes.
The JoVE video player is compatible with HTML5 and Adobe Flash. Older browsers that do not support HTML5 and the H.264 video codec will still use a Flash-based video player. We recommend downloading the newest version of Flash here, but we support all versions 10 and above.
If that doesn't help, please let us know.
Please note that all translations are automatically generated.
यहां, हम ल्युकोसैट निकास के vivo ठहराव में भोले, सूजन, और घातक murine त्वचा के लिए तरीके प्रदर्शित करते हैं । हम दो मॉडलों की एक सिर से सिर की तुलना प्रदर्शनः ट्रांसडर्मल FITC आवेदन और सीटू photoconversion में । इसके अलावा, हम त्वचा के ट्यूमर से ल्युकोसैट निकास पर नज़र रखने के लिए photoconversion की उपयोगिता का प्रदर्शन ।
फोटोकंवर्सेशन ल्यूकोसिटे निवास में एक यंत्रवादी अंतर्दृष्टि के लिए ल्यूकोसिटे egress के मात्रात्मक विश्लेषण के लिए वीवो विधि में एक ट्रैक करने योग्य प्रदान करता है और रोगग्रस्त राज्यों में कई ऊतक साइटों से बाहर निकलना गतिशीलता प्रदान करता है। खैर, यहां हम क्यूकोसाइट ट्रैकिंग की उपयोगिता को क्यूकॉयश ट्यूमर से प्रदर्शित करते हैं। अन्य ऊतकों और बीमारियों के लिए इस परख का आवेदन केवल प्रकाश को प्रशासित करने की क्षमता से सीमित है।
इस तकनीक का मुख्य लाभ यह है कि विवो में सूजन ऊतकों से एक egress के रूप में प्रतिरक्षा कोशिका आबादी स्थानांतरित करने के बजाय अंतर्जात के मात्राकरण की अनुमति देता है। सूजन को प्रेरित करने के लिए, अंगुली चुटकी के लिए प्रतिक्रिया की कमी की पुष्टि करने के बाद, एक माइक्रोपिपेट का उपयोग डायब्यूटिल थैलेट या डीबीपी के 20 माइक्रोलीटर को एक एनेस्थेटाइज्ड काडे ट्रांसजेनिक माउस के कान पिन्ना के वेंट्रल साइड में प्रशासित करने के लिए करें। डीबीपी को सूखने की अनुमति देने के बाद, एल्यूमीनियम पन्नी के एक टुकड़े में एक भट्ठा के माध्यम से कान खींचें और ऊपर की ओर का सामना कर रहे पृष्ठीय पक्ष के साथ पन्नी के लिए कान को साफ सुरक्षित करने के लिए डबल-तरफा टेप का उपयोग करें।
फिर, स्थिति है कि आप सीधे एक 405 नैनोमीटर प्रकाश स्रोत और बिजली के 100 मिलीवाट पर तीन मिनट के लिए फोटोकनवर्ट के तहत कर रहे हैं। वैक्सिनिया संक्रमण के लिए, एक माइक्रोपिपेट का उपयोग 5 गुना 10 को पीबीएस के 10 माइक्रोलीटर में वैसिनिया वायरस की 6 पट्टिका बनाने वाली इकाइयों को एक एनेस्थेटाइज्ड काडे ट्रांसजेनिक माउस के कान पिन्ना पर करने और पिन्ना को 25 बार प्रहार करने के लिए करें। 24 घंटे बाद, फोटो पिन्ना के रूप में सिर्फ प्रदर्शन किया ।
उपयुक्त प्रायोगिक समय बिंदु पर, पिन्नी और सर्वाइकल और इंगिनल लिम्फ नोड्स की कटाई करें और प्रत्येक पिन्ना के वेंट्रल और पृष्ठीय पक्ष को अलग करने के लिए चिमटी के दो जोड़े का उपयोग करें। फिर लिम्फ नोड्स और पिन्ना टुकड़ों को कान के अंदर सामना करने के साथ, 24-अच्छी तरह से प्लेट के व्यक्तिगत कुओं में रखें जिसमें कोलेज डी के 1 मिलीलीटर प्रति मिलीलीटर और कैल्शियम और मैग्नीशियम युक्त एचबीबीएस में पतला डीएनएस के 80 इकाइयां प्रति मिलीलीटर होते हैं। प्रत्येक लिम्फ नोड कैप्सूल को खोलने के लिए दो 29 गेज सुइयों का उपयोग करें और प्लेट को 30 मिनट के लिए 37 डिग्री सेल्सियस पर रखें।
इनक्यूबेशन के अंत में, प्रत्येक ऊतक के एकल कोशिका निलंबन प्राप्त करने के लिए अलग-अलग 70 माइक्रोन नायलॉन सेल स्ट्रेनर्स के माध्यम से पचा पिन्ना और लिम्फ नोड ऊतकों को दबाएं। जब ट्यूमर उचित प्रयोगात्मक आकार के लिए हो गए हैं, ट्यूमर साइट के आसपास किसी भी नए regrown फर दाढ़ी और एल्यूमीनियम पन्नी का एक टुकड़ा में एक परिपत्र छेद कटौती के माध्यम से ट्यूमर खींच । ट्यूमर सीधे 405 नैनोमीटर प्रकाश स्रोत और 200 मिलीवाट बिजली पर 5 मिनट के लिए फोटोकनवर्ट के नीचे स्थिति।
फोटोकनॉवर्तन के 24 घंटे बाद, प्रत्येक जानवर से ट्यूमर और ब्रैकिल और इंगिनल लिम्फ नोड्स की कटाई करें और एचबीबीएस में कोलेजनेस डी और डीएनएसे युक्त 24-अच्छी तरह से प्लेट के व्यक्तिगत कुओं के भीतर ट्यूमर को कीमा बनाने के लिए कैंची का उपयोग करें। लिम्फ नोड्स को अलग-अलग कुओं में रखें और कैप्सूल को खोलें जैसा कि सिर्फ प्रदर्शन किया गया है। एक घंटे के लिए ट्यूमर इनक्यूबेटिंग और ३७ डिग्री सेल्सियस पर एक आधे घंटे के लिए लिम्फ नोड्स इनक्यूबेटिंग के बाद, प्रत्येक ऊतक के एकल कोशिका निलंबन प्राप्त करने के लिए अलग ७० माइक्रोन छलनी के माध्यम से पचा ऊतकों को दबाएं ।
फ्लो साइटोमेट्री द्वारा एकल कोशिका निलंबन का विश्लेषण करने के लिए, सबसे पहले एक काडे ट्रांसजेनिक माउस से तिल्ली या रक्त एकत्र करें और अमोनियम क्लोराइड पोटेशियम बफर के साथ लाल रक्त कोशिकाओं को lyse करें। कोशिकाओं को एक अपरिवर्तित काडे फिटसी और एक परिवर्तित काडे पीई आबादी में विभाजित करें और 24-अच्छी प्लेट के एक कुएं में पीबीएस के एक मिलीलीटर में एकल रंग काडे पीई कोशिकाओं को फिर से खर्च करें, फिर 100 मिलीवाट में 405 नैनोमीटर प्रकाश स्रोत के तहत कोशिकाओं को 5 मिनट के लिए फोटोकंवर्ट करें। अगला प्रत्येक फ्लोरोसेंट चैनल की कुल सीमा के 70 से 80% तक फोटोमल्टीप्लाज़ सेट करने के लिए फोटोकनवर्टेड काडे पीई कोशिकाओं और अपरिवर्तित काडे फिटसी कोशिकाओं का उपयोग करें।
एक बार Kaede प्रोटीन के लिए वोल्टेज सेट किया गया है, अंय प्राथमिक एंटीबॉडी दाग के सभी के लिए क्षतिपूर्ति एकल फ्लोरोफोर लेबल मुआवजा मोती का उपयोग कर, निर्माता के निर्देशों के अनुसार । फिर, मानक प्रवाह साइटोमेट्रिक विश्लेषण प्रोटोकॉल के अनुसार प्रवाह साइटोमीटर पर नमूने चलाएं। फोटोकनॉवर्स एक्सपोजर के तुरंत बाद कान की त्वचा या सर्वाइकल ड्रेनिंग लिम्फ नोड्स से उत्पन्न सिंगल सेल सस्पेंशन त्वचा में सभी सीडी 45 पॉजिटिव ल्यूकोसाइट्स की 78% रूपांतरण दक्षता प्रकट करती है, जिसमें नोइंग लिम्फ नोड्स में कोई परिवर्तित कोशिकाएं नहीं दिखाई देती हैं।
फोटोकनवर्टेड कान शून्य और 24 घंटे बाद रूपांतरण में घुसपैठ सीडी 45 सकारात्मक ल्यूकोसाइट्स की संख्या की मात्रा से पता चलता है कि वायलेट प्रकाश जोखिम ल्यूकोसिटे घुसपैठ में सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण वृद्धि का कारण बनता है। CD45 सकारात्मक ल्यूकोसिटे घुसपैठ में यह वृद्धि हालांकि, एक शक्तिशाली भड़काऊ उत्तेजना जैसे वैक्सिनिया वायरस से प्रेरित घुसपैठ के सापेक्ष छोटी है। फोटोकंवर्सेशन भी मीलों परख द्वारा मापा के रूप में कान pinnae में संवहनी पारगम्यता बढ़ जाती है, एक साथ यह दर्शाता है कि ऊतक सूजन पर बैंगनी प्रकाश के प्रभाव पर विचार किया जाना चाहिए जब खुराक, जोखिम समय और डेटा व्याख्या का अनुकूलन ।
फोटोकनवर्टेड जानवरों से अलग ट्यूमर कोशिकाओं के प्रवाह साइटोमेट्रिक विश्लेषण काडे फिटक सकारात्मक से काडे पीई सकारात्मक करने के लिए इंट्राट्यूमोरल सीडी 45 सकारात्मक कोशिकाओं के एक महत्वपूर्ण रूपांतरण का पता चलता है, जबकि लिम्फ नोड कोशिकाओं को निकालने से अपरिवर्तित रहते हैं। CD45 सकारात्मक ल्यूकोसाइट्स की फोटोकन्वर्जन दक्षता ट्यूमर प्रकार और आकारों के बीच काफी भिन्न होती है, जिसमें सीडी 45 सकारात्मक ल्यूकोसाइट्स के साथ छोटे मेलानोमा ट्यूमर के भीतर सबसे कुशल फोटोकंवर्सन का प्रदर्शन होता है। ट्यूमर की मात्रा में वृद्धि के रूप में, रूपांतरण दक्षता लगभग 50% तक कम हो जाती है, विशेष रूप से, मेलेनिन का फोटोकन्वर्जन दक्षता पर एक उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है जिसमें सीडी 45 सकारात्मक कोशिकाओं की अधिकतम फोटोकन्वर्जन के साथ छोटे ट्यूमर में केवल लगभग 30% के ट्यूमर का उत्पादन होता है, जो ट्यूमर की मात्रा 400 घन मिलीमीटर तक पहुंचने के साथ 10% तक गिर जाता है।
फोटोकनॉवर्स के 24 घंटे बाद ट्यूमर की जांच लिम्फ नोड्स की जांच से विभिन्न फेनोटाइप की काडे रेड पॉजिटिव इम्यून सेल्स की मौजूदगी का पता चलता है, इस तरह फोटोकनवर्टेड ट्यूमर से ल्यूकोसिट इमीग्रेशन का प्रदर्शन होता है । इसके विकास के बाद, इस तकनीक ने इम्यूनोलॉजी के क्षेत्र में शोधकर्ताओं के लिए स्थिर राज्य के काइनेटिक्स को उजागर करने और परिधीय ऊतक में ल्यूकोसाइट टर्नओवर को उजागर करने का मार्ग प्रशस्त किया। इस प्रक्रिया का प्रयास करते समय, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि केवल ब्याज के ऊतकों को फोटोकनवर्ट किया गया है, क्योंकि आसपास के ऊतकों का अनजाना फोटोकनिवर्तन आपके परिणामों से समझौता करेगा।
इस विधि के लिए नए व्यक्तियों को अपने ऊतकों के रूपांतरण के लिए जोखिम समय का अनुकूलन करना चाहिए, साथ ही ऊतक संग्रह ब्याज की ल्यूकोसाइट की गतिशीलता के आधार पर समय की अवधि।
|
5fc467714a893d961734f9d92bcda9cbff91ba5c | web | उत्तर प्रदेश में चुनावों के लिए वोट पड़ रहे हैं. पंजाब और गोवा के वोट पड़ चुके हैं. भारी संख्या में मतदान हुआ है. लोकतंत्र में लोगों का फैसला ही सर्वोपरी होता है, चाहे वो किसी की नज़र में सही हो, या किसी की नज़र में गलत हो. इस चुनाव में बहुत सारे अंतर्विरोध भी दिखाई दिए.
हम आपको कुछ स्थितियां बताते हैं, ताकि आप खुद इस बात का फैसला कर सकें कि इन चुनावों में वोट पड़े हैं, तो फैसला किसके पक्ष में जाएगा. बात शुरू करने या स्थितियों का जायजा लेने से पहले हम आपको दो घटनाएं बताते हैं. एक घटना में नाम है, एक घटना में संकेत है. जिनमें संकेत हैं, उन्हें आप समझें कि उसके पात्र कौन-कौन हैं.
देश की एक बहुत बड़ी अभिनेत्री अपने एक गहरे मित्र के साथ बैठी हुई थीं. दोनों की बातचीत राजनीतिज्ञों पर शुरू हुई, क्योंकि आजकल अभिनेत्री, अभिनेता और राजनेता न केवल हम प्याला-हम निवाला होते हैं, बल्कि अपनी परिधि और अपनी सीमाएं भी खुद बनाते हैं. इस अभिनेत्री ने अपने दोस्त से कहा कि चलो मैं तुम्हें एक खेल दिखाती हूं, जो रियल लाइफ ड्रामा है, पर शर्त ये है कि तुम चुप रहोगे. अगर सांस की आवाज भी फोन में आ गई, तो तुम्हारा सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. उस दोस्त ने हामी भर दी. इस अभिनेत्री को यहां हम पीडी नाम देते हैं. पीडी ने देश के एक बड़े नेता को फोन मिलाया.
ये नेता उत्तर प्रदेश के हैं और उत्तर प्रदेश के उन 8 बड़े नेताओं में शामिल हैं, जो मुख्यमंत्री की दौड़ में हैं. फोन पर इस नेता को जैसे ही पीडी की आवाज सुनाई दी, उन्होंने बहुत लरजते हुए स्वर में कहा कि आज तो मेरी शाम बन गई. लेकिन अगर आप मेरे पास होतीं, तो मैं बहुत सुकून से सोता. पीडी ने बहुत ही मधुर आवाज में इस नेता से बात की कि ऐसा क्या हो गया कि आपको मेरी आवाज से इतना सुकून हुआ. इस अंदाज में लगभग पांच मिनट तक फोन पर दोनों की बातचीत हुई.
बातचीत खत्म होने के बाद पीडी का दोस्त थोड़ा भौचक्का था, क्योंकि पहले उसने पीडी से कहा था कि मुझे भरोसा ही नहीं होता कि तुम जो कह रही हो, वह सही है. इसका सबूत पीडी ने अपने दोस्त को दे दिया था, बातचीत करते हुए फोन को स्पीकर पर लगाकर. दोस्त ने कहा कि अब मुझे बताओ कि ये सब बात क्या है और कहां तक पहुंची है? पीडी ने पहले तो बताने से मना कर दिया, लेकिन इसके बाद सारी घटनाएं उसने अपने दोस्त को बताई.
पीडी के सेक्रेटरी ने पीडी से कहा कि आज मुझे थोड़ा सा गंवार दिखने वाला उत्तर प्रदेश का एक आदमी मिला, वो आपसे मिलना चाहता है. पीडी ने उससे कहा कि मैं किसी से नहीं मिलूंगी, तुम किसी का भी प्रस्ताव ले के आ जाते हो. तो सेक्रेटरी ने कहा कि नहीं, वो डायमंड की पांच कैरेट की अंगूठी और पांच कैरेट के इयर रिंग्स आपको गिफ्ट करना चाहता है. पीडी ने फौरन कहा कि उसे बुला लो. अगले दिन वो व्यक्ति पीडी से मिला और पीडी को गिफ्ट दिया.
गिफ्ट देने के बाद उसने कहा, मैं चाहता हूं कि आप मेरी कंपनी की ब्रांड एंबेसडर बनें. उस शख्स को यहां हम एसएन कहेंगे. ये उत्तर प्रदेश के एक शहर का बड़ा बिल्डर है, या अपकमिंग बिल्डर है. उसने पीडी से कहा कि आप अगर मेरी कंपनी की ब्रांड एंबेसडर बनेंगी, तो मेरे बनाए हुए मकान ज्यादा अच्छी तरह से बिक जाएंगे. पीडी ने हामी भर दी. उसके बाद ये शख्स पीडी को महंगे-महंगे तोहफे भेजने लगा. एक दिन इस शख्स ने कहा कि मैं आपसे मिलकर कुछ बात करना चाहता हूं. पीडी ने उसे बुला लिया.
एसएन ने पीडी से कहा कि एक शख्स (एक बड़ा राजनेता) आपसे मिलना चाहता है. पीडी ने नाम सुना, तो मिलने की हामी भर दी. एसएन ने कहा कि कल शाम को वो शख्स मुंबई में होगा और वहां आपसे मुलाकात करेगा. पीडी ने कहा कि मुलाकात में क्या मैं अपने मैनेजर को साथ ला सकती हूं. एसएन ने कहा, जरूर ले आइए. अगले दिन कोलाबा के ताजमहल होटल के प्रेसिडेंसियल सुइट में रात 9 बजे पीडी की मुलाक़ात उस शख्स से हुई. मुलाक़ात में 10 मिनट के बाद पीडी ने अपने मैनेजर को इशारा किया और मैनेजर सुइट के ड्राइंग रूम में बैठ गया.
इस बड़े राजनेता और पीडी के बीच बातचीत शुरू हुई, जिसमें उसने पीडी की बहुत तारीफ की. इस दौरान उस शख्स ने पीडी से कहा कि मैं तुम्हें मूनलाइट यानी चांदनी रात में ताजमहल दिखाना चाहता हूं. पीडी मुस्कुराते हुए उसके चेहरे की तरफ देखती रह गई. उस शख्स ने पीडी से यह भी पूछा कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं.
पीडी ने कहा कि आप क्या करना चाहते हैं. उसने कहा कि मैं चाहता हूं कि आप जिंदगी में बहुत खुश रहें, सुखी रहें. यह मुलाक़ात लगभग डेढ़ घंटे चली, फिर खाने-पीने के बाद पीडी अपने मैनेजर के साथ घर आ गई. अगले दिन से इस शख्स ने पीडी को बहुत अपनेपन के मैसेजेज भेजने शुरू किए. इसके दो हफ्ते के बाद एसएन ने पीडी से कहा कि आपको एक फंक्शन में लखनऊ में आना है, आपके वो मित्र आपको आमंत्रित कर रहे हैं.
एसएन ने पीडी से ये भी कहा कि वे आपके प्यार में वशीभूत हो गए हैं और आपसे बहुत ज्यादा प्रभावित हैं. पीडी ने कहा कि पागल हो गए हो, वो इतने बड़े हैं, शादीशुदा हैं, उनके बच्चे हैं. तो एसएन ने कहा कि इससे क्या हुआ. बहुत सारे लोग शादीशुदा हैं, बहुत से लोगों को बच्चे हैं, लेकिन वो प्यार करते हैं.
पीडी को उसके ऊपर भरोसा नहीं हुआ. उसे लगा कि ये गॉसिप है. हालांकि वो स्पेशल हवाईजहाज से तय समय पर लखनऊ पहुंची. लखनऊ में कोई कार्यक्रम नहीं था. एक बड़े पॉश गेस्ट हाउस में पीडी की मुलाक़ात उस शख्स से हुई. उस शख्स ने पीडी से कहा कि पीडी मैं चाहता हूं कि मैने आपको चाहा है, तो आपको जिंदगी में कभी दुःख नहीं हो. बताइए आप कहां रहती हैं.
पीडी ने बताया कि मैं एक छोटे फ्लैट में रहती हूं, लेकिन एक बड़ा फ्लैट खरीदना चाहती हूं. उस शख्स ने पूछा कि उस फ्लैट की कीमत कितनी है, तो पीडी ने कहा कि वो 32 करोड़ का फ्लैट है. अब इस शख्स के चेहरे पर चिंता दिखने लगी. इसने कहा कि 32 करोड़ तो बहुत ज्यादा है, लेकिन आपके पास कितना पैसा है? पीडी ने कहा कि 12 करोड़ मेरे पास है, लेकिन बाकी 20 करोड़ नहीं है. इस व्यक्ति ने पीडी को 20 करोड़ देने का वादा कर लिया.
इस वादे को उसने अगले 4 दिनों में निभाया. उसने पीडी से ये भी कहा कि मैं आपको मुंबई में एक इतनी बड़ी प्रॉपर्टी खरीद के दूंगा, जिसका किराया आएगा 15-16 लाख रुपया महीना. शायद इस व्यक्ति ने ये प्रॉपर्टी भी खरीद के पीडी को दे दी और उसके बाद उसने जिस तरह से पीडी को मैसेजेज भेजने शुरू किए- मैं ये करना चाहता हूं, मैं ये कर लूंगा, मैं ये छोड़ दूंगा. इससे पीडी परेशान हो गई और उसने एसएन से कहा कि कृपा कर मेरा इनसे पिंड छुड़वाइए. वो पिंड अभी छूटा नहीं है.
दूसरी घटना, चुनाव की घोषणा हो गई, टिकटों के बंटवारे शुरू हुए, तो अमित शाह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट नेताओं की अपने जाट मंत्रियों सहित एक मीटिंग बुलाई. मीटिंग में उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि जाट नाराज हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने सौ प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था.
किसी भी तरह से जाटों को अपने साथ लाना है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के जितने जाट नेता आए थे, वे अपने यहां के चौधरी माने जाते हैं. उन्होंने हाथ जोड़ लिए और कहा कि इस बार जाट आपका साथ नहीं देगा, क्योंकि आपने अजित सिंह को अपने साथ नहीं लिया.
जाटों को लगता है कि अजित सिंह के राजनीतिक एकांतवास के पीछे भारतीय जनता पार्टी की रणनीति है और जाट पूरे तौर पर अजित सिंह के साथ हैं. अमित शाह ने कहा कि किसी भी तरह से जाटों को साथ रखिए, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट मंत्रियों सहित जाट नेता अमित शाह से यह साफ कह कर चल दिए कि इस बार वे जाटों को अपने साथ या भारतीय जनता पार्टी के साथ रखने के लिए कुछ नहीं कर पाएंगे.
ये दो घटनाएं दो तरह के संकेत देती हैं. एक तो, चुनाव में भारतीय जनता पार्टी कैसे अपने वादे से हटती है और कैसे अपना गठजोड़ बनाने में विफल रहती है, जिसकी वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा समुदाय उससे दूर चला जाता है. इसका अगला संभावित कदम लोकसभा चुनाव मेंहरियाणा में भी देखने को मिल सकता है. दूसरा यह कि उत्तर प्रदेश के अगले आठ संभावित मुख्यमंत्रियों में किस तरह के लोग हैं, जो अपनी मानवीय कमज़ोरियों को बिना किसी संकोच के पूरा करने के लिए अपनी स्थिति का फायदा उठाते हैं.
सबसे पहले हम बहुजन समाज पार्टी को लेते हैं. हमारे सर्वे में शुरू में बहुजन समाज पार्टी सबसे आगे दिखाई देती थी. लेकिन बहुजन समाज पार्टी से कई लोग, पार्टी छोड़कर चले गए और वो भी तब, जब चुनाव नजदीक आ गया था. उन्होंने लोगों के बीच कई अलग-अलग तर्क दिए. लेकिन जो पार्टी में हैं, उनमें एक सज्जन मंत्री भी रहे. उन्होंने अपने किसी दोस्त से कहा कि मैंने दो टिकट मांगे थे और उन दो टिकटों के लिए मुझे 10 करोड़ रुपए देने पड़े. उन्होंने अपने मित्र से कहा कि तब मुझे लगा कि मैं क्यों इस पार्टी में हूं. जिसके लिए मैंने सब कुछ किया और मुझे भी अपने और एक दूसरे टिकट के लिए पार्टी को 10 करोड़ देने पड़ रहे हैं.
इस तरह की घटनाएं बहुत सारे लोगों के साथ घटीं और जो अच्छे उम्मीदवार थे, उनकी जगह उन लोगों को टिकट मिला, जो उम्मीदवार शायद दलित समुदाय के वोट के लिए बहुजन समाज पार्टी में शामिल हुए हैं. पूरे चुनाव के दौरान या चुनाव से पहले, बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने मुस्लिम समाज को अपने पास न तो बुलाया, न तो उनसे मंत्रणा की और न ही उनके सवालों को हल करने का कोई वादा किया. उल्टे मुस्लिम समाज या इस समाज के नेता बहुजन समाज पार्टी के पक्ष में अपीलें करने लगें, क्योंकि उन्हें लगा कि अखिलेश यादव के अंतर्विरोध की वजह से कहीं भारतीय जनता पार्टी को बढ़त ना मिल जाय.
अगर मुस्लिम समुदाय अखिलेश यादव और मायावती में बंट गया, तब भारतीय जनता पार्टी की जीत निश्चित हो जाएगी. अखिलेश यादव ने सफलता पूर्वक उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के बीच यह संदेश पहुंचा दिया कि अगर मायावती जी ये चुनाव जीतती हैं और कुछ सीटें कम रह जाती हैं, तो उनका गठजोड़ भारतीय जनता पार्टी के साथ हो जाएगा. इस प्रचार का दबाव इतना ज्यादा बढ़ा कि मायावती जी को सार्वजनिक रूप से ये घोषणा करनी पड़ी कि मैं भले सरकार ना बना पाऊं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की मदद से सरकार नहीं बनाऊंगी.
दूसरी ताकत, जो उत्तर प्रदेश के चुनाव में सबसे बड़ी बनकर उभरी है, वो अखिलेश यादव हैं. अखिलेश यादव इस समय अति आत्मविश्वास से लबालब हैं और उन्होंने समाजवादी पार्टी की राजनीतिक दिशा एक झटके में मोड़ दी है. मुलायम सिंह यादव 30 साल तक कांग्रेस के विरोध की राजनीति करते रहे. हालांकि कांग्रेस सरकार को समर्थन भी देते रहे, सरकार भी चलवाते रहे.
लेकिन सार्वजनिक तौर पर उन्होंने कभी कांग्रेस की प्रशंसा नहीं की. अखिलेश यादव ने एक झटके में कांग्रेस का साथ लिया और राहुल गांधी के साथ सीटों का समझौता कर लिया. इस समझौते के पीछे राहुल गांधी कम और प्रियंका गांधी ज्यादा थी. प्रियंका गांधी ने किसी भी तरह से अखिलेश यादव को समझाया और तैयार किया कि वो कांग्रेस के साथ समझौता करें.
प्रियंका गांधी के विश्वासपात्र प्रशांत किशोर का भी इसमें बड़ा रोल रहा. अखिलेश यादव के साथ इस चुनाव में उत्तर प्रदेश का नौजवान दिखाई दे रहा है. समाजवादी पार्टी के चुने हुए एमएलए भी अखिलेश यादव के साथ हैं. लग रहा है कि अखिलेश यादव बड़े बहुमत से चुनाव जीतेंगे. लेकिन अखिलेश यादव के साथ दो अंतर्विरोध हैं. अखिलेश यादव पिछले तीन सालों से समाजवादी पार्टी को नौजवानों की पार्टी बनाने की कोशिश कर रहे थे.
उन्होंने हर विधान सभा में एक नौजवान तैयार किया और उसे पिछले चार साल में उसे पैसे से मजबूत किया. उसे ठेके दिलवाए, ताकि वो किसी के प्रति आश्रित न रहे. उस व्यक्ति ने अपने चुनाव क्षेत्र में जम कर काम किया. लेकिन जैसी गतिविधिया हुईं, जिस तरह की घटनाएं घटीं और चुनाव आयोग में विधायकों के शपथपत्र की आवश्यकता पड़ी, तो अखिलेश यादव ने मौजूदा सभी विधायकों से वादा किया या उन्हें ये वादा करना पड़ा कि वे उन्हें टिकट देंगे. अखिलेश यादव ने ज्यादातर मौजूदा विधायकों को टिकट दिया.
इसका परिणाम ये हुआ कि वो सारे लोग टिकट से वंचित रह गए, जो पिछले 3-4 सालों के दौरान उत्तर प्रदेश विधानसभा में जाने की तैयारी कर रहे थे और जिन्हें अखिलेश यादव ने ही मजबूत बनाया था. उनमें से अधिकांश समाजवादी पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ ही चुनाव लड़ रहे हैं. दूसरी तरफ, जब अखिलेश यादव अपने पिता से सत्ता छीन रहे थे, तब मुलायम सिंह यादव ने दो बयान दिए. पहला बयान कि अखिलेश यादव मुस्लिम विरोधी हैं और दूसरा ये कि मैं इस गठबंधन को सही नहीं मानता और मेरे समर्थक कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ें.
इस घोषणा के बाद बहुत सारे लोग, लगभग 50 सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हो गए. हालांकि, मुलायम सिंह यादव ने ये वादा किया था कि वे उनके लिए चुनाव प्रचार करेंगे. लेकिन मुलायम सिंह यादव किसी के लिए भी चुनाव प्रचार में अभी नहीं गए हैं.
ये दो स्थितियां अखिलेश यादव के लिए परेशानी पैदा कर सकती हैं. एक तीसरी अंतर्धारा है कि शिवपाल यादव को जिस तरह से मात मिली, उससे शिवपाल यादव के बहुत सारे समर्थक चुनाव से दूर खड़े हैं. हालांकि सिर्फ शिवपाल यादव के समर्थक ही दूर नहीं खड़े हैं, मुलायम सिंह के 40 साल के राजनीतिक साथी और उनकी प्रशंसा करने वाले लोग भी चुनाव से दूर खड़े हैं. ये तीन चीजें अखिलेश यादव के पूर्ण रूप से सत्ता प्राप्त करने में आड़े आ सकती हैं.
कांग्रेस पार्टी का गठजोड़ समाजवादी पार्टी से हुआ और इसमें प्रियंका गांधी का बहुत बड रोल रहा. सीटें भी लगभग बंट गईं और कांग्रेस सिर्फ 105 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. लेकिन इस समझौते में इतनी देर हो गई कि उत्तर प्रदेश की किसी भी रैली में कांग्रेस के लोग शामिल नहीं हुए (उन रैलियों को छोड़ कर जिनमें अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक साथ बोलने वाले थे). दूसरा तथ्य, कांग्रेस के समर्थक वोट समाजवादी पार्टी को नहीं पड़े, बल्कि जहां कांग्रेस नहीं लड़ रही है, वहां कांग्रेस का वोट भारतीय जनता पार्टी को चला गया.
तीसरी चीज, मुसलमानों में बंटवारा हुआ और मुसलमानों की बड़ी संख्या बहुत सारे चुनाव क्षेत्रों में अखिलेश और राहुल गांधी के गठबंधन के साथ गई. कांग्रेस की परेशानी ये है कि बहुत सारी जगहों पर उम्मीदवार ही नहीं मिले, तो उसे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव में उतारना पड़ा, क्योंकि उसे अपने 105 लोगों की संख्या पूरी करनी थी.
लखनऊ के ताज होटल में अखिलेश यादव और राहुल गांधी की पहली प्रेस कांफ्रेंस में लोगों ने ध्यान नहीं दिया. वहां पर राहुल गांधी अपना वर्चस्व दिखाने के लिए बेताब थे. अखिलेश यादव ने अपना संबोधन राहुल जी बोल कर किया और राहुल गांधी ने अपने संबोधन में कहा कि अखिलेश एक अच्छा लड़का है. अखिलेश ने उनकी तरफ अचंभे से देखा और इस वाक्य के बाद उन्होंने राहुल जी की जगह राहुल कहना शुरू किया. ये बताता है कि दोनों के कार्यकर्ता एक हो कर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.
इसलिए कांग्रेस की सीटें 35 से 45 के बीच रहने की उम्मीद है. जबकि प्रशांत किशोर का कहना है और उन्होंने प्रियंका गांधी को इस बात पर प्रजेंटेशन भी दिया कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 76 सीटें जीत रही है. लेकिन, प्रियंका गांधी ने सिर्फ गांधी परिवार के पारंपरिक सीट रायबरेली क्षेत्र में ही प्रचार करने का फैसला किया.
जबकि, ये खबर आ रही थी कि वह पूरे उत्तर प्रदेश में कैंपेन करेंगी. प्रियंका शायद इस पशोपेश में पड़ी रहीं कि अगर वो कैंपेन करती हैं और कांग्रेस को सीटें नहीं आती हैं, तो उनके अपने राजनीतिक भविष्य को ले कर बहुत बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा हो जाएगा. इस पशोपेश से राहुल गांधी का कोई लेना-देना नहीं है. राहुल गांधी इस चुनाव में साधु-संत वाली भाषा में उन सवालों पर ज्यादा बात करते दिखाई दिए, जिनका चुनाव से कोई मतलब नहीं है.
भारतीय जनता पार्टी अपना चेहरा तय नहीं कर पाई है, जिसे मुख्यमंत्री बनाया जा सके. लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक सभा में योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह का भाषण दिया और उन्हें वहां जैसी प्रतिक्रिया मिली, उससे दिल्ली में बैठे पार्टी अध्यक्ष को ये निर्णय लेना पड़ा कि योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा जगहों पर घुमाया जाए.
योगी आदित्यनाथ को दिल्ली बुलाया गया. उनके दिल्ली पहुंचने से पहले ये फैसला हो गया था कि उन्हें स्थायी रूप से प्रचार के लिए एक हेलिकॉप्टर दिया जाए, ताकि वे ज्यादा से ज्यादा जगहों पर जाएं. जब वे दिल्ली आए, तो उनसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने, खास कर पार्टी अध्यक्ष ने कह दिया कि हम घोषणा तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन अगर हम जीतते हैं, तो आप हमारे अगले मुख्यमंत्री होंगे.
योगी आदित्यनाथ दिन-रात भारतीय जनता पार्टी के प्रचार में लगे हुए हैं. योगी द्वारा उठाए गए सवाल उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को ये आशा दे गए कि चुनाव में ध्रुवीकरण हो जाएगा और मुसलमानों के खिलाफ सारे हिंदू भाजपा को वोट देंगे. हालांकि अब तक ये ध्रुवीकरण नहीं हो पाया है. सारी कोशिशों के बाद भी, शुरू के तीन-चार फेज तक जनता ने ध्रुवीकृत होने से मना कर दिया है. अब आखिरी चरण के लिए कुछ ताकतें ध्रुवीकरण की कोशिशें कर रही है.
भारतीय जनता पार्टी के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा कोई और बड़ा कैंपेनर नहीं है. उन्हीं की सभाओं में भारी भीड़ हो रही है. वे जैसे भाषण दे रहे हैं, उससे ये माना जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को स्पष्ट विजय मिलने वाली है. लेकिन यहां पर सन 1957 के चुनाव को याद रखना चाहिए, जब भारतीय जनसंघ की सभाएं हो रही थीं और अटल बिहारी वाजपेयी की सभाओं में लाखों लोग आते थे.
बाद में अटल जी ने एक बातचीत के दौरान, जिसमें मैं शामिल था, भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी से कहा कि हम ये सोच रहे थे कि हम जीत रहे हैं, लेकिन बाद में मुझे पता चला कि मेरी सभाओं में जितनी भीड़ हो रही थी, उतने ही हमारे वोट कम हो रहे थे. ये बात मैं इसलिए याद कर रहा हूं क्योंकि भारतीय जनता पार्टी से ग्रामीण क्षेत्र के लोग नाराज हैं.
खास कर किसान, जिन्हें इस नोटबंदी से काफी परेशानियां झेलनी पड़ी. व्यापारी वर्ग हमेशा भाजपा का समर्थक रहा है, लेकिन आज उसका एक बड़ा तबका भाजपा से नाराज है. नोटबंदी से उनका खुदरा व्यापार बहुत ज्यादा दबाव में आ गया और उन्हें उनलोगों को अपने यहां से हटाना पड़ा, जिन्हें वे नगद पैसा दे कर अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए काम में लाते थे.
व्यापार पर जिस तरह की सख्ती प्रधानमंत्री मोदी लागू करने की कोशिश कर रहे हैं, वो व्यापारियों को समझ में नहीं आ रहा है. व्यापारियों की नाराजगी का दूसरा कारण यह भी है. उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का संपूर्ण नेतृत्व पिछडों को दे दिया गया है. इससे उनका परंपरागत ब्राह्मण समाज सौ प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी के साथ नहीं है.
भारतीय जनता पार्टी को अजित सिंह के साथ गठबंधन न करने का बड़ा नुक़सान उठाना पड़ रहा है. भारतीय जनता पार्टी को कुछ मुस्लिम वोट भी मिलते, लेकिन भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को चुनाव में नहीं उतारा. इसलिए इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति भले ही देखने में बहुत मजबूत लगे, पर ये परेशानियां चुनाव में उसके सामने आ रही हैं और लोगों को उसके पक्ष में वोट देने से रोक रही है.
सरकार किसकी बनेगी. .
अगर यही स्थिति रहती है, तो इसमें शंका है कि उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी को बहुमत मिले और अगर ऐसा होता है, यानी किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है, तो इसका मतलब है, फ्रैक्चर्ड मैंडेट यानी हंग विधान सभा उत्तर प्रदेश में दिखाई देगी. तब सरकार किसकी बनेगी? इसका सीधा जवाब है कि तब भारतीय जनता पार्टी और मायावती जी की सरकार बनेगी या भारतीय जनता पार्टी और अखिलेश यादव जी की सरकार बनेगी. अखिलेश यादव के बारे में एक आम धारणा है कि उन्होंने संघर्ष नहीं देखा है, समाजवाद नाम उनका रटा हुआ है, लेकिन समाजवादी मूल्यों में उनकी आस्था कम है. उन्होंने जैसे कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, सरकार बनाने के लिए वैसे ही भारतीय जनता पार्टी के साथ भी गठबंधन कर सकते हैं. अगर मायावती की संख्या कम हुई, तो राहुल गांधी अखिलेश यादव का साथ छोड़ कर मायावती से भी हाथ मिला सकते हैं और उनकी सरकार बनवा सकते हैं. राहुल गांधी ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में ये संदेश या इशारा दिया भी कि वे मायावती को बहुत हानिकारक नहीं मानते हैं. अगर चुनाव के बाद ऐसी कोई स्थिति आती है, तो मायावती साथ समझौता करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी.
भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता अगर चुनाव नहीं जीतते हैं, जिनमें संगीत सोम भी शामिल हैं, तो उत्तर प्रदेश का फैसला भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ गया माना जाएगा. ऐसी स्थिति में भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह के भविष्य पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश के सारे फैसले सिर्फ और सिर्फ अमित शाह ने लिए हैं. अमित शाह की कोशिश राजनाथ सिंह को उत्तर प्रदेश में पार्टी का चेहरा बनाने की थी, लेकिन राजनाथ सिंह बहुत सफाई से उनके हाथ से निकल गए.
उत्तर प्रदेश का चुनाव देश के आने वाले चुनावों पर भी असर डालेगा, जिनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रदेश शामिल हैं. 2019 के ऊपर तो निश्चित तौर पर इसका असर होगा. यह चुनाव उन रेखाओं को साफ तौर पर सामने लाएगा, जिसके आस-पास अखिलेश यादव-राहुल गांधी अपनी रणनीति तय करेंगे.
प्रियंका गांधी और नीतीश कुमार, ये दो पर्दे के पीछे के खिलाड़ी हैं. प्रियंका गांधी कांग्रेस की पूरी रणनीति बनाने में, मुद्दे तय करने में, मदद पहुंचाने में सबसे बड़ा रोल प्ले कर रही हैं. दूसरी तरफ, नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में एक भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, ताकि सेकुलर वोटों का बंटवारा न हो. हालांकि अगर वे 50-60 सीटों पर चुनाव लड़ते, तो भी उनके पास भी 6-8 सीटें होतीं. लेकिन उन्होंने वैसा ही साहसिक फैसला लिया, जैसा फैसला उन्होंने कांग्रेस को बिहार में 40 सीटें दे कर लिया था.
अखिलेश यादव की एक बात सही है कि उत्तर प्रदेश का चुनाव देश का भविष्य तय करेगा. ये बात लगभग सभी लोग दबी जुबान से कर रहे हैं. मैं ये तो नहीं कहता कि यह चुनाव देश का भविष्य तय करेगा, लेकिन देश के भविष्य की दिशा तय करेगा और भारतीय जनता पार्टी को अपनी बहुत सारी नीतियों पर फिर से सोचने पर विवश करेगा. भारतीय जनता पार्टी अगर ये चुनाव जीत जाती है, तो फिर समाजवादी पार्टी हो या देश की दूसरी पार्टियां, उन्हें 2019 के लिए एक दबाव के तहत एक साथ आने पर विवश होना पड़ेगा. उस समय अगर राहुल गांधी परिस्थितियों के ऊपर सारा बोझ डाल देंगे, तब वे विपक्ष के एकमात्र नेता नहीं कहलाएंगे, उनके सामने कई सारे और नेता खड़े हो जाएंगे, जिस स्थिति का फायदा सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को होगा.
|
dec77fed29af80202cafbbbe70aa74c0e92d57d8655c7a9b78b0810bd2bba333 | pdf | कुंवर कहे रख सामने, दर्पण कला सिखाय भेज दिया नृप खुश हुआ, फिर एक पत्र लिखाय ।। हुक्म हुआ वर वालु के, डोरे बट भिजवाय । कुवर नमूना की लिखी, सुण विस्मित नर राय ।।६।। (तर्ज-सखी छन्द)
एक दिन फिर हुक्म सुनाया, नन्दी ग्राम का कूप मंगाया। सुन के लोक सभी घबराया, चली अभय कुंवर पै आया। कुंवर कहे तुम क्यों मन शंको, तुमरो बाल न करसी बांको । लिखो खेडा का कूप भड़कना, यह नहीं आता इसीसे है लिखना ।। एक कूप को भेजो वहां से उसे बांध के ठेले यहां से । बांची पत्र हुआ नृप राजी, जानी अभय कुंवर की बाजी ।।१०।। (तर्ज-मिलत)
बुद्धिवंता के संकट टाले, पर उपकारी कुंवर सुजान। बिना अग्नि से खीर बनाके, भेजो हुक्म ऐसा वरणा सुन घबराने, कुंबर से अर्ज करे कैसा करना ।। अच्छे चांवल भीजा जलमें ले बरतन में भरना । गल जाने से, उसे सुखे चूने पे जा धरना ।।११।। (तर्ज - शेर)
पीछे से दूध मिलाय के तैयार कर भेजी त्वर । चकित चित राजा विचारे, कुंवर बुद्धि से भरा ।। भेजा सुभट को देखिये कैसा जो लड़का हैं वहाँ । आते सुभट को देख चढ़ गये, जांबू तरु ऊपर जहां ।।१२।।
यही प्रतिज्ञा मेरी पहिले, मुझे करो
उसके बाद
बताऊंगी मैं, बातें
पूर्ण करूंगा मैं प्रण तेरा, रख पूरा अब मैं कहूँ परिचय अपना की युवति
स्वीकार ।
सविस्तार ।।५६ ।।
विश्वास । अरदास ।।६० ।।
कहते रुपवती मुझ को मैं, पुरोहित की विद्याबल से किया सभी यह, चॉदी का इच्छित रजतमयी रचने की है, शक्ति भरपूर । अब तो प्रियतम आप, प्रिया मै हुई, करी भंजूर ।।६२ ।। सुख से रहे वहां पर दोनों बहुत परस्पर हेत। रजत काम करने का कीना, दंड मार संकेत ।।६३।। प्यारी तुम्हें पता हो तो बतलाओ, उसका धाम ।
जो कर सकती हो तेरे सम, सब सोने का काम । ॥६४ ।। नाथ ! पधारो दक्षिण मे मही अति दूर नजदीक । महल नजर आयेगा आगे, सुवर्ण का
कनकावती सहेली मेरी, अद्भुत रूप पद्मसेन प्रयाण किया है, सुन प्यारी मुख सीधा उसी महल में पहुँचा, जिसमें मंजिल सात । प्रतिज्ञा पूरण करने की, कही कडकावती बात ।।६७ ।।
सचिव सुता मैं जानुं विद्या, कंचन का निर्माण । करूं आपकी इच्छा जैसे, दंडा मार निशान ।।६८ ।। पद्मसेन खुश होकर बोला, वाक्य तेरा स्वीकार । इच्दित काम करे कोई ऐसी है मुक्तावली बार ।।६६ ।।
(तर्ज-द्रोण )
कहे सुभट जम्बू फल पक्के हमें भी खिलाओ, म. पूछे गरम की शीतलजी ।
दो गरमा गरमी कहे मसल के डाले तरु तलजी, दे फूँक करी रज दूर सुभट फल खावे । महाराज बहुत क्या है गरमाईजी । पहचान कुंवर है यही गया दिलमें शरमाईजी ।।१३।।
कीना दिलमें कुंवर ख्याल छलना नगर जन भूपाल, भाडे करके रथ विशाल संग सुभट लिया । दासी चाकर है भाड़े, रथ के अन्दर एक बैसाड़े, सरहद वख्त कोल कर ठाडे; दाम चूका दिया ।। १४ ।।
बनके आये जवेरी सेठ, भूषण रत्न मणि के रेठ, पहुॅचे आय जवेरी पेठ, मिले बांह को पसार । पूछे कहो माल क्या लेना चाहिये रत्न जड़ित का गहणा । डब्बे खोल परख लेना, कहे कुंवर विचार ।।१५।।
लेना जंचाय माल यह विचार हमारा । रथ देख कहे सेठ भरोसा है तुम्हारा ।। उठ दूसरी दुकान से ले माल उधारा । लेके अनुक्रम तुरत नन्दी ग्राम सिधारा
तब ललना कर जोड़ वीनवे, सुनिए प्राणाधार । पूर्व दिशा में आप पधारो, सफल करो अवतार ।।७० ।। निर्धारित पथ गमन किया है, सत्वर राजकुमार । मुक्ता महल मनोहर देखा, विस्मित हुआ अपार ।।७१।। शीघ्र सातवें मंजिल पहुंचा, बैठी कन्या एक । मणिमुक्ता के भूषण तन पर धारण किये अनेक ।।७२ ।। परी उतर का आई मानो, स्वयं स्वर्ग से चाल । करे मनन है अजब विश्व में कर्मों की टकसाल ।।७३ ११ हे सुनयना ! कौन पिता मां, कौन नगर बीच वास । इस अटवी के मध्य महल में क्यों कर लिया निवास ।।७४।। मुक्तावली मधुर वचनों से, बोली बन गंभीर । पहिले अपना हाल कहो, हे कटिधारक शमशीर ।।७५ ।। देश कलिग कंचनपुर मांही, पृथ्वीसिंह नरेश । तस सुत पद्मसेन मैं आया, लेकर बात विशेष ।।७६ ।। बोली बाला राजकुंवर से, सुनना होकर शाँत । मेरी क्या घटना चारों की कह दूं आद्योपान्त ।।७७ ।। सिद्धपुर पाटण शिरोमणि, अरिमर्दन नृपाल । पूरण ज्ञाता न्याय नीति का, रय्यत का रखवाल ।।७८।। सुसज्जित हो एक दिवस में राजसमा में आई। पूज्य पिता ने सादर मुझको अपने पास विठाई ।।७६ ।। निमित्त ज्ञान का ज्ञाता इतने, सभी बीच में आया। कर सम्मान योग्यासन पर, महिपती उन्हें बिठाया ।।५० ।।
रथ जाने लगा जब दिवस रहा है थोड़ा। पूछ व्यापारी सेठ कहो किस ठोरा ।। कहे सुभट कौन है सेठ को हम क्या जाने। दे दाम कौल कर लाया किराणे महाने ।।१७।।
यो सुनवेजी व्यापारी हुए उदासी, देख रथ मे एक दासी । हस बोलीजी, हम नहीं किसे पिछाना, सून सेठ सभी घबराना। सब मिलके जी आये पास राजाके, कहे लूट गया ढंग आके । जग हांसीजा घर का माल गुमाया, ठग ऐसा नजर नहीं आया ।।१८।। (तर्ज-दोहा)
पडह बजायो शहर में दोनों हुक्म सुनाय । जो कोई ठग ठावो करे, सम्माने तस राय ।। कोटवाल वडो गह्यो, धूर्त पकडने काज प्रसरी घुरमे वारतां हर्षित चित्त महाराज ।।१६।। (तर्ज-सखी छन्द)
सुनी अभय कुंवर जन वाणी, कोटवाल ठगन चित्त ठानी। संग सुमट लेई पुर आया. सुन्दर वनिता का वेश बनाया ।। नौकरों को बिठाये दूरा, भूषण वसन सजे तन पूरा । मध्य निशा गांहे, रम झम करती, देखी कातवाल तिहां फिरती । देखी रूपने अचरज पायो, पूछन बात पास चल आयो । कौन किस काज कहां को जावा, छोडी शंका हमें बतलाओ ।।२०।।
इस कन्या का बने कौन वर, कहिए पंडित राज । अनुभव द्वार देख मनन कर कहे सुनो सिरताज । ॥५१॥ वैश्य सचिव और पुरोहित पुत्री, चौथी राजदुलारी । इन चारों का बने एक वर, श्रेष्ठ पुरुष बलकारी ।।८२ ।। पिता स्वप्न को सफल बनाने, आवे एक युवान । कैसा स्वप्न उसे आयेगा उसका किया
सुना हाल पंडित के मुख से, हमने किया सिद्ध कर विद्या काम सुधारे, ले उसका अटवी में यह महल बनाये, विद्या बल से चार ! देख रही हम राह आपको, प्रतिपल नयन पसार ।।६५ ।। मन में हमने जो प्रण ठाया, पूर्ण हुआ है आज । मिले दर्श शुभ आज आपका सफल हुआ सब काज ।।८६ ।।
काम हमारे से लेना हो, करना दंड प्रहार । आप हमारे बीच समस्या गुप्त रहे सरकार ।।८७ ।। चारों ही कन्याएं मिल ले पद्मसेन को संग । आई है अपनी नगरी मे, दिल में धरी उमंग ।।८।। अपने अपने मात-पिता को, सारी बात बताई । श्रेष्ठ समय में राजकुंवर संग, चारों को परणाई ।।८६ ।। सुख पूर्वक प्रमदा संग रहता राजकुंवर ससुराल । स्वकृत शुभ कर्मोदय से, ही फली मनोरथ माल ।।१०।। एक समय रजनी के अन्दर, आई घर की याद । परिवार से मिलना करना, पितु इच्छा आबाद ।।६१।।
(तर्ज - मिलत)
देख क्रिया का रूप पुरुष परिणाम फिरे विसरे शुद्ध ज्ञान । मधुर वचन से कहे आज मुझको प्रीतम ने अपमानी ।। निकल चली हूँ, खास मरजाने को दिलमें ठानी। कोटवाल कहे चलो मेरे घर मौज करो तुम मनमानी । खुशी होय सो, हुक्म कीजै चाकर अपनो कर जानी ।।२१।। (तर्ज-शेर)
घर पास खोड़ा देख के, पूछे कहोजी ये कहां । चोर व्यभिचारी पकड़ के पांव भर देते यहां ।। हमको भी तो दिखंलाइये, इसमें रह सकता किस तरह। पग घाल के दिखला दिया, कहे निकल जाता है अरे ।।२२।।
खीली जमाय के हाथ मोगरी दीनी,
महाराज ठीक मजबूत जमाकेजी।
निज सुभट बुलाय पट बदल कहे गुल शोर मचाकेजी ।। कोई दौड़ो धूर्त को पकड़ लिया खोडे मे । महाराज ! लोक जितने सुन पायाजी ।
ले दंडे ताजने हाथ दौड़ पासे चल आयाजी ।।२३।। (तर्ज-तिकडिया)
मिल गये सुभट लोक उस बारे, लाठी मुट्ठी लात प्रहारे, सिरपे पड़ते है पेजारे, बाजे फड़ा फड़ी। दुःख से रोवे जार जार, सुनत कोई नहीं पुकार, कीना कोतवाल की ख्वार हो गयी कुन्दी बड़ी |
d269aaf344f8b7c6ca332269be5bc33412cb94c9 | web | माउंटेन बाइक एपिटोम हैएक उत्पाद में अविश्वसनीय स्वतंत्रता और शक्ति। इस ब्रांड की बाइक की उपस्थिति क्लासिक और आधुनिक को जोड़ती है। इस कंपनी के वाहनों के प्रशंसक बड़ी संख्या में ग्राहक हैं जिन्होंने उच्चतम गुणवत्ता वाले उत्पादों, उपयोगकर्ताओं के लिए अविश्वसनीय आराम और विविध अनुप्रयोगों की संभावना की सराहना की है।
कंपनी का ऐतिहासिक जन्मस्थान दक्षिण हैऑस्ट्रिया, जिसमें सबसे महत्वाकांक्षी घरेलू स्की रिसॉर्ट स्थित है, अर्थात् स्की वेल्ट। यह भूमि न केवल अपने अद्भुत परिदृश्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी विशाल ऊंचाई के लिए भी है, 800 से 2500 मीटर तक। सुंदर प्रकृति के लिए धन्यवाद, यह क्षेत्र न केवल स्कीइंग का आनंद लेने के लिए, बल्कि गर्मियों में साइकिल की सवारी करने की अनुमति देता है।
2012 कंपनी के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष था। यह इस अवधि के दौरान था कि ट्रेडमार्क की स्थापना की गई थी, जिसके ब्रांड में वेल्ट साइकिल और सहायक उपकरण थे।
बैठक करते समय मुख्य प्रश्नवेल्ट बाइक ट्रेडमार्क के साथ - निर्माता कौन है? एक संपूर्ण उत्तर देने के लिए, कंपनी के भौगोलिक घटक को समझना आवश्यक है। ब्रांड का मुख्य कार्यालय ऑस्ट्रिया में ब्रांड के जन्मस्थान में स्थित है। उत्पाद की गुणवत्ता के लिए नियामक अधिकारियों सहित उत्पादन सुविधाएं, चीन में स्थित हैं। उत्पादन प्रक्रियाओं की इस एकाग्रता के कारण, कंपनी के संसाधन सबसे आदर्श तरीके से वितरित किए जाते हैं, जो आपको उत्कृष्ट गुणवत्ता और उपलब्धता को पूरी तरह से संयोजित करने की अनुमति देता है। इस ब्रांड के माल की प्रचलित मात्रा रूसी बाजार पर केंद्रित है।
गतिविधि का मुख्य और अपरिवर्तनीय लेथमोटिफब्रांड निम्नलिखित नारा हैः "हम इसे जीवन में लाते हैं, खरीदार गति में सेट होता है। वेल्ट सक्रिय जीवन के लिए प्रतिबद्ध है, जो आंदोलन है। "
- एमटीवी - वेल्ट बाइक, जो किसी भी मिट्टी पर फिटनेस, क्रॉस-कंट्री और सभी प्रकार की यात्राओं के लिए डिज़ाइन की गई है।
- ब्रांड की साइकिलों का शहरी संस्करण डामर पटरियों और बिना पार्क किए गए रास्तों पर चलने के लिए बनाया गया है।
- इन वाहनों की महिलाओं की लाइनएक सार्वभौमिक विन्यास और स्टाइलिश डिजाइन में प्रस्तुत किया गया। पार्क की स्थिति में और शहर की रूपरेखा में किसी भी मिट्टी पर अंतिम सवारी के लिए इरादा।
- किशोर बाइक लाइन तकनीकी विशेषताओं और उपस्थिति सहित वयस्क मॉडल के सभी गुणों को जोड़ती है।
- बच्चों की इस ब्रांड की साइकिल की श्रेणी हैसुरक्षा के उच्चतम स्तर, हल्के डिजाइन और उत्कृष्ट कार्यक्षमता है। इस प्रकार के वाहन लड़कियों और लड़कों दोनों पर केंद्रित होते हैं। इस उत्पाद के उज्ज्वल डिजाइन के लिए धन्यवाद, कोई भी बच्चा साथियों के बीच ध्यान के केंद्र में महसूस करेगा।
- स्वतंत्रता रेखा सबसे अधिक में से एक हैइस ब्रांड के उत्पादों की लोकप्रिय किस्में। इस व्याख्या में बाइक वेल्ट अविश्वसनीय आराम, क्लासिक डिजाइन और उत्कृष्ट गतिशीलता को जोड़ती है।
यूनिवर्सल बाइक वेल्ट एडलवाइस हैइस ऑस्ट्रियाई निर्माता के वाहनों की महिला लाइन का सबसे प्रमुख प्रतिनिधि। साइकिल ब्रेक सिस्टम एक डिस्क है, जिसे यांत्रिक नियंत्रण द्वारा सक्रिय किया जाता है।
साइकिल की सीट यात्री प्रदान करता हैयात्रा के दौरान आराम। निलंबन कांटा के लिए धन्यवाद, हाथों के जोड़ों पर भार जितना संभव हो उतना कम होगा। उत्पाद डिजाइन काफी स्टाइलिश और उज्ज्वल है। चरणों की उपस्थिति के कारण, मालिक समय की न्यूनतम हानि के साथ अप्रत्याशित और आपातकालीन स्टॉप बना सकता है।
इसी तरह के उत्पादों के बीच अग्रणी पदों परविश्व बाजार आत्मविश्वास से रिज मॉडल को पकड़े हुए है। वे एक अच्छे सेट और उच्च-गुणवत्ता वाले असेंबली में अवतार लेते हैं। एक नियम के रूप में, इस तरह के वाहन को दोहरे रिम्स पर छब्बीसवें आकार के पहियों में पेश किया जाता है और यह 21 वीं गति से सुसज्जित है। सस्पेंशन कांटा और हाइड्रोलिक डिस्क ब्रेक सिस्टम, वेल्ट माउंटेन बाइक को मालिक के लिए बहुत विश्वसनीय और आरामदायक बनाते हैं।
सबसे पहले यह ध्यान दिया जाना चाहिए किलड़कियों और लड़कों के लिए इस श्रेणी की साइकिलें दो व्याख्याओं में प्रस्तुत की जाती हैं। इन दो प्रकार के वाहनों के बीच मुख्य अंतर विशेषता रंग और रंग पैलेट है।
इस वाहन का पहला प्रकारलड़कों पर ध्यान केंद्रित किया और अधिक संयमित शैली में बनाया। बाइक के पहियों का आकार 20 इंच है। दोहरे रिम के कारण, उत्तरार्द्ध प्रभाव प्रतिरोध और कर्ब के लिए काफी प्रतिरोधी हैं। जटिल फ्रेम प्रोफाइल इस वाहन को ऑपरेशन के दौरान बच्चे के लिए उच्चतम विश्वसनीयता, लपट और सुरक्षा प्रदान करता है। स्टीयरिंग सिस्टम साइकिल के वयस्क मॉडल के लिए एक पूर्ण सादृश्य है। इस लाइन के प्रत्येक उत्पाद में एक कार्यात्मक फुटबोर्ड है। साइकिल की सीट में एक संरचनात्मक, काफी आरामदायक आकार है, जो मालिक को शरीर को नुकसान पहुंचाए बिना लंबी यात्राएं करने की अनुमति देता है।
बच्चों की साइकिल का दूसरा मॉडल उन्मुख हैविशेष रूप से 6 से 8 वर्ष की आयु की लड़कियों के लिए। उज्ज्वल डिजाइन और मजबूत एल्यूमीनियम फ्रेम के लिए धन्यवाद, युवा राजकुमारियां न केवल सुरक्षित होंगी, बल्कि साथियों का भी ध्यान केंद्रित करेंगी। साइकिल की सवारी करने के लिए सीखने की सुविधा के लिए, निर्माता आरामदायक पंख और एक कदम प्रदान करता है। बच्चे के लिए इस वाहन पर सात गति और निलंबन कांटा की सवारी के कारण, एक आकर्षक साहसिक कार्य होगा, जो क्षितिज को विकसित करेगा, साथ ही साथ शारीरिक फिटनेस और स्वास्थ्य को भी प्रभावित करेगा।
लोकप्रिय ब्रांड वेल्ट की साइकिल की लागतइन उत्पादों की उच्चतम गुणवत्ता के साथ काफी सस्ती और पूरी तरह से सुसंगत है। इस वाहन के लिए मूल्य सीमा, कॉन्फ़िगरेशन, उद्देश्य और कार्यक्षमता के आधार पर 19,536 से 41,766 रूबल तक भिन्न होती है, जो लोकतंत्र को इंगित करता है।
समीक्षाओं के अनुसार, आकर्षक बाहरी के अलावाएक तरह से, इस दो-पहिया वाहन के बहुत सारे फायदे हैं जिन्हें केवल सवारी करते समय ही सराहा जा सकता है। बाइक का मूल विशेषाधिकार एक परेशानी मुक्त ब्रेक प्रणाली है जो असंभव कर सकता है। इसका रहस्य डिस्क ब्रेक की यांत्रिक प्रणाली और स्ट्रोक को अवरुद्ध करने की संभावना में निहित है। फ़्रेम की सामग्री की गुणवत्ता के कारण यात्री की ओर से बहुत प्रयास किए बिना उस पर माल परिवहन की संभावना है।
लोकप्रियता का एक संकेतक और तेजस्वी हैउपस्थिति जो इसे मालिक और आसपास की बाइक के लिए आकर्षक बनाती है। स्पोर्ट्स ड्राइविंग और प्रकृति में चलने के प्रशंसकों के बीच इस दो-पहिया वाहन की समीक्षा केवल सकारात्मक और सकारात्मक है, क्योंकि यह बाइक कई लोगों को स्वास्थ्य हासिल करने और बाहरी डेटा को बेहतर बनाने में मदद करती है।
समीक्षाओं के अनुसार, इसका मतलब हैआंदोलन किसी भी स्थिति में एक सच्चा वफादार सहायक है। मुख्य लाभों में - न केवल एक आकर्षक कीमत, बल्कि कार्यक्षमता भी। इसकी सहजता के कारण, यहां तक कि सबसे नाजुक महिला भी समस्याओं के बिना उसे उठा पाएगी। चरम ड्राइविंग के प्रशंसक बार-बार एक विश्वसनीय ब्रेकिंग सिस्टम में मदद करते हैं, जो परेशानी से मुक्त है और काफी कम समय में रोकने में मदद करता है। उपयोगकर्ताओं के अनुसार, यह बाइक उत्कृष्ट गुणवत्ता और सस्ती कीमतों का प्रतीक है, जो खेल के लिए सही साथी पाने के लिए काफी कम राशि की अनुमति देता है।
|
af0cba7592d34d66421f5dcf028395a5b0c4420b | web | इन्फ्रारेड हीटर "प्लान" सबसे नया हैरूसी वैज्ञानिकों द्वारा विकसित हीटिंग सिस्टम। इसे एक फिल्म के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, और इसकी मोटाई भिन्न हो सकती है। इसके आधार पर, इसके पैरामीटर अलग हो सकते हैं। एक प्रतिरोधक उपकरण का उपयोग फिल्म में हीटिंग तत्व के रूप में किया जाता है। योजना प्रणालियों को एक नियम के रूप में, कमरे में छत पर स्थापित किया गया है और विभिन्न निर्धारण भवन तत्वों की मदद से तय किया गया है।
इस स्थिति में, बहुत मोटाई पर निर्भर करता हैफिल्म का आदेश दिया। हालांकि, इस योजना और एहतियाती उपायों में हैं। जैसा कि विशेषज्ञ आश्वासन देते हैं, योजना तत्वों को स्थापित करते समय, आप किसी भी धातु की वस्तुओं, साथ ही दर्पण का उपयोग नहीं कर सकते हैं। जब सही ढंग से स्थापित किया जाता है, तो सिस्टम केवल वस्तुओं को गर्म करेगा, हवा नहीं। वे "योजना" के तत्वों को संवहन हीटिंग सिस्टम के लिए जिम्मेदार मानते हैं।
सुविधाएँ प्रणाली "योजना"
सबसे पहले यह उच्च ध्यान दिया जाना चाहिएफिल्म प्रदर्शन "योजना"। सिस्टम की कम बिजली खपत को देखते हुए, यह लगभग तीन वर्षों में भुगतान करता है। निर्माता इस उत्पाद के लिए एक अच्छी गारंटी देते हैं, और यह लगभग 50 वर्षों तक सेवा कर सकता है। उपरोक्त प्रणाली को स्थापित करना सस्ती है और इस पर विचार किया जाना चाहिए। औसतन, वर्ग की स्थापना के लिए विशेषज्ञ। मी। 1,500 रूबल के लिए बाजार से पूछ रहा हूं। जैसा कि आप जानते हैं, इन प्रणालियों को रखरखाव की आवश्यकता नहीं है। नियंत्रण इकाई का उपयोग करके, आप डिवाइस की शक्ति को समायोजित कर सकते हैं।
इस प्रकार, घर में लोगों की अनुपस्थिति मेंसिस्टम में किफायती मोड पर रखने की क्षमता है। चूंकि प्लान ब्रांड हीटर बनाता है जो हवा को गर्म नहीं करते हैं, दीवारें सूख नहीं जाती हैं। आप सर्दियों के समय में सिस्टम को बिना एयरिंग के सुरक्षित रूप से उपयोग कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि उत्सर्जित अवरक्त किरणें दीवारों पर मोल्ड की उपस्थिति को रोकती हैं। इस प्रकार, नमी के सामान्य स्तर के साथ कमरा हमेशा सूखा रहेगा। यह एक औसत वर्ग है। मी। कैनवास लगभग 1300 रूबल।
सिस्टम की मुख्य विशेषताओं के लिए "प्लान" चाहिएप्रदर्शन प्रदर्शन के साथ-साथ बिजली की खपत। इसके अतिरिक्त, खरीदार को दक्षता के स्तर को ध्यान में रखना चाहिए। हीटिंग तत्व का सीमित तापमान वेब की मोटाई पर निर्भर करता है। हीटर की सतह पर यह थोड़ा कम होगा। इस पैरामीटर को निर्माता के साथ भी जांचा जा सकता है। योजना प्रणाली की बिजली आपूर्ति 180, 200 या 220 वी के वोल्टेज के साथ एक नेटवर्क है। विकिरण तरंग दैर्ध्य हीटिंग तत्व के आकार पर निर्भर करता है। जब स्थापित करना महत्वपूर्ण है तो वर्ग की मोटाई और वजन है। m कैनवास।
यह फिल्म "योजना" (हीटिंग) तकनीकीविशेषताएं इस प्रकार हैंः हीटिंग तत्व की शक्ति 180 वी है, और वर्तमान खपत 1 ए प्रति वर्ग मीटर है। फिल्म की विशिष्ट शक्ति 130 किलोवाट प्रति वर्ग मीटर है। मी। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, वेब की मोटाई 1.2 मिमी है। औसत विकिरण तरंग दैर्ध्य 9 माइक्रोन है। हीटिंग तत्व का न्यूनतम तापमान 47 डिग्री तक पहुंच जाता है। हीटर की वोल्टेज की खपत 200 वी पर है। कैनवास के एक वर्ग मीटर की कीमत 1,500 रूबल है।
इस प्रणाली के मालिकों की "प्लान" समीक्षा हैअच्छे हैं कई खरीदार इस कैनवास को इस तथ्य के लिए पसंद करते हैं कि एक छोटे से घर के लिए यह पूरी तरह से फिट बैठता है। ऊर्जा की खपत नगण्य है, और यह अच्छी खबर है। इसके अलावा, योजना फिल्म को उत्पाद की उच्च गुणवत्ता और सुरक्षा के वर्ग के कारण लोगों से अच्छी समीक्षा मिली। इसके कारण, कपड़े अग्निरोधक हैं। कमरे को गर्म करना बहुत तेज है। कंट्रोल यूनिट का उपयोग आराम से करें।
कैनवास कैसे स्थापित करें?
घर में ठीक से स्थापित करने के लिए"प्लान" (हीटिंग), अपने हाथों से स्थापना माप से शुरू होनी चाहिए। शुरू करने से पहले, काम की सतह करना महत्वपूर्ण है। इस मामले में, छत को बहुत सावधानी से साफ किया जाना चाहिए। यदि इसमें पेंट है, तो आप एक विलायक का उपयोग कर सकते हैं। यदि वॉलपेपर मरम्मत के लिए उपयोग किया गया था, तो आपको एक स्पैटुला के साथ सब कुछ हटाने की आवश्यकता है। अगला, आपको सतह को एक प्राइमर के साथ इलाज करने और पूरी तरह से सब कुछ चिकना करने की आवश्यकता है, साथ ही साथ इसे स्तर।
उसके बाद, कैनवास की लंबाई की गणना (के आधार पर) की जाती हैकमरे के वर्ग से)। दीवार के किनारे से, न्यूनतम इंडेंट कम से कम 2 सेमी होना चाहिए। फिर, फास्टनरों को तैयार किया जाना चाहिए। ऐसी मोटाई की वेब के लिए, प्लास्टिक स्टड का उपयोग करना अधिक समीचीन है। कुछ मामलों में, विशेषज्ञ हुक के उपयोग की सलाह देते हैं। हालांकि, वे अधिक महंगे फिक्सिंग तत्व हैं, इस पर विचार किया जाना चाहिए। कैनवास को ठीक करने के लिए आदमी को एक सहायक की आवश्यकता होगी।
पहले किनारे पर दूसरी शीट शीर्ष पर अंकित है।लगभग 3 सेमी। वेब के साथ बन्धन हर 20 सेमी किया जाना चाहिए। हीटिंग तत्वों को नहीं छूना बहुत महत्वपूर्ण है अन्यथा, आपूर्ति केबल क्षतिग्रस्त हो सकती है। नतीजतन, चिंतनशील फिल्म की अखंडता टूट जाएगी। इसके बाद ढांकता हुआ कोटिंग को बहाल करना असंभव होगा। सिस्टम को ठीक करने के बाद कंट्रोल यूनिट को करना चाहिए। इस मामले में, बहुत कुछ इसके प्रकार पर निर्भर करता है। अधिकांश निर्माता तीन मोड के साथ पारंपरिक डिवाइस पेश करते हैं। यूनिट की स्थापना आउटलेट के पास की जाती है।
शॉर्ट सर्किट के मामलों से बचने के लिए पहलेबॉक्स को फिक्स करना आपको घर में वायरिंग के स्थान के बारे में जानने की आवश्यकता है। यह काफी सरलता से किया जा सकता है - एक परीक्षक का उपयोग करके। अगला, बिजली की आपूर्ति के बगल में एक विशेष न्यूनाधिक "प्लान" माउंट किया गया है। सिस्टम पिछले आउटलेट से जुड़ा हुआ है। इस मामले में तत्व का पूर्ण हीटिंग लगभग 40 मिनट तक चलेगा। यदि हीटर काम नहीं करता है, तो आपको नेटवर्क से यूनिट को डिस्कनेक्ट करने और घुमावदार की अखंडता की जांच करने की आवश्यकता है।
यह फिल्म ("योजना" -heating) तकनीकीविशेषताएं इस प्रकार हैंः सीमित वोल्टेज 180 वी है, और ऑपरेटिंग वर्तमान 3 ए है। कोटिंग के रूप में, आइसोलोन की एक अतिरिक्त परत का उपयोग किया जाता है। इस मॉडल में थर्मोस्टैट को अंकन "टीयू 3" के साथ स्थापित किया गया है। बदले में, न्यूनाधिक एक किस्म का उपयोग किया जा सकता है। इस मामले में पोस्टिंग PW2 है। केबल चैनल 3 मीटर की लंबाई के साथ शामिल हैं।
हीटर को नेटवर्क से जोड़ने के लिए यह काफी हैपर्याप्त। इसके अलावा, यह प्रणाली एक विशेष चुंबकीय एक्ट्यूएटर कंपनी "इलेक्ट्रिक" से सुसज्जित है। अधिकतम भार 30 ए पर रखा गया है। ऐसे उपकरणों की दक्षता 80% तक पहुंच जाती है। न्यूनाधिक की चरम शक्ति 4 किलोवाट है। सिस्टम की खपत स्वीकार्य है। कंट्रोल यूनिट पर किफायती मोड का उपयोग किया जाता है। इस मामले में, प्रति घंटे ऑपरेशन के बारे में 6 किलोवाट प्रति घंटे की खपत होगी। योग्य वर। एम। लिनन 1.4 मिमी मोटी लगभग 1500 रूबल।
वे "प्लान 1.4" सिस्टम के बारे में क्या कहते हैं?
और यह सिस्टम "प्लान" मालिकों से प्रतिक्रिया प्राप्त करता हैसकारात्मक। कई खरीदार इसकी कॉम्पैक्टनेस के लिए 1.4 मिमी फिल्म की प्रशंसा करते हैं। इसकी स्थापना में कमरे में आकार कुछ भी नहीं खो देता है। कैनवास की स्थापना काफी तेज है। यदि आप योग्य श्रमिकों को किराए पर लेते हैं, तो वर्ग की स्थापना। मी। फिल्म की औसत लागत लगभग 1,400 रूबल है। सिस्टम के दहन उत्पाद पूरी तरह से अनुपस्थित हैं। इस प्रकार, हवा हमेशा साफ रहती है।
सीधे हीटिंग "प्लान" -सिस्टमसमान रूप से प्रदर्शन किया। सभी मौसम की स्थिति में बिल्कुल नियंत्रण इकाई का उपयोग करना संभव है। कमियों को ध्यान में रखते हुए तापमान को लंबे समय तक सेट करना चाहिए। इस प्रकार, तुरन्त गर्म काम नहीं करेगा। हीटिंग तत्व का सीमित तापमान बहुत अधिक नहीं है, इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए। इस तथ्य के बावजूद कि संकेतित योजना प्रणाली में काफी अच्छी तकनीकी विशेषताएं हैं, सर्दियों के समय में अन्य हीटिंग उपकरणों के साथ फिल्म का उपयोग करना बेहतर है।
फिल्म 1 का उपयोग करना।4 मिमी ("प्लान"), घर में एक गर्म मंजिल स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है। कैनवास को डॉवेल से जोड़ा जाना चाहिए। काम शुरू करने से पहले, सतह को पूरी तरह से साफ करना नहीं भूलना महत्वपूर्ण है। वर्ग। m कैनवास का वजन 750 ग्राम है, इसलिए इसे हर 20 सेमी पर फर्श पर लगाया जाना चाहिए। दीवार से ऑफसेट - 2 सेमी - किया जाना चाहिए। शीट पर कैनवास डालना कमरे के वर्ग के आधार पर बेहतर है। फिल्म को ठीक करने के लिए फर्श की न्यूनतम दूरी 3 सेमी है। किसी भी धातु की वस्तुओं का उपयोग नहीं करना महत्वपूर्ण है। यदि दीवारों पर दर्पण हैं, तो उन्हें सुरक्षित दूरी पर स्थापित करना होगा।
इस प्रणाली "योजना" में विशेषताएं हैंनिम्नलिखितः विकिरण तरंग दैर्ध्य 10 माइक्रोन है, और सीमित वोल्टेज 200 वी है। बिजली की खपत प्रति वर्ग मीटर 1 ए है। हीटर की कार्य आवृत्ति लगभग 22 हर्ट्ज है। इस मामले में हीटिंग तत्व प्रतिरोधक है। इसकी अधिकतम शक्ति प्रति वर्ग 150 वाट तक पहुंचती है। अर्थव्यवस्था मोड में सतह पर, अधिकतम तापमान 40 डिग्री है।
हीटर की क्षमता70% पर है। इस प्रकार, इसका प्रदर्शन काफी अधिक है। प्रणाली में सामग्री का घनत्व 7 किलोग्राम प्रति घन मीटर है। मी। मायलार के उत्पादन में उपयोग किया जाने वाला लेप। थर्मोस्टेट डिफ़ॉल्ट तीन-चैनल पर सेट है। स्थापना के दौरान, विद्युत पैनल 220 वी के वोल्टेज के साथ सालट कंपनी के एक मानक का उपयोग करता है। यह 30 ए तक के भार को झेलने में सक्षम है। मानक पैकेज में मॉड्यूलेटर को पीपीके 20 के साथ लेबल किया गया है।
यह सिस्टम "प्लान" मालिकों की समीक्षा करता हैअसाधारण रूप से अच्छा है, कई खरीदार उपरोक्त ग्रीनहाउस कपड़े का अधिग्रहण करते हैं। यह कमरे में तापमान उत्कृष्ट है, प्रदर्शन के बारे में कोई शिकायत नहीं है। इसके अलावा, इस प्रणाली को अक्सर विभिन्न कैफे और रेस्तरां को गर्म करने के लिए चुना जाता है। इस हीटर की ख़ासियत यह है कि आर्द्रता हमेशा सामान्य रहती है।
1 में सामग्री की मोटाई को देखते हुए।6 मिमी, हीटिंग तत्व काफी शक्तिशाली है। नतीजतन, हीटिंग दर में बहुत कम समय लगता है। मालिकों के अनुसार, कमरा समान रूप से गर्म होता है और दीवारें हमेशा सूखी रहती हैं। अवरक्त किरणें, सामान्य रूप से, मानव स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित नहीं करती हैं। बिना किसी जोखिम के लंबे समय तक डिवाइस चालू रहने से घर के अंदर रहना संभव है। योग्य वर। एक विशेष स्टोर में 1700 रूबल के बारे में निर्दिष्ट कैनवास। यदि प्रत्येक वर्ग के लिए स्वतंत्र रूप से सेट नहीं किया गया है। मीटर विशेषज्ञों को 1500 रूबल का भुगतान करना होगा।
क्या मैं इसे खुद स्थापित कर सकता हूं?
समीक्षा कहती है कि स्थापना "योजना"(हीटर) पूरी तरह से स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है। इस मामले में, सतह के प्राइमर को जिम्मेदारी से व्यवहार करना बहुत महत्वपूर्ण है। छत के लिए सामग्री के करीब फिट होना आवश्यक है। इस प्रकार, मोल्ड कमरे में कभी नहीं दिखाई देगा। विशेषज्ञ डॉवल्स को फास्टनरों के रूप में उपयोग करने की सलाह देते हैं। इस स्थिति में, दीवारों की सामग्री पर बहुत कुछ निर्भर करता है।
यदि घर पूर्वनिर्मित है, तो डॉवल्स पूरी तरह से फिट होते हैं। जब लकड़ी की सतहों की बात आती है, तो आप clamps पर बचा सकते हैं और उदाहरण के लिए, कैप के साथ हुक करते हैं। स्पिन में वे थोड़ा अधिक जटिल हैं, लेकिन मालिक कम पैसे के परिमाण के एक आदेश को खर्च करेगा। नियंत्रण इकाई स्थापित करने से पहले, तारों को बिना असफलता के जांचना चाहिए। अन्यथा, आप इसे नुकसान पहुंचा सकते हैं और सर्किट को पूरी तरह से शॉर्ट सर्किट कर सकते हैं। किसी भी खराबी से बचने के लिए, स्थापना के दौरान सभी धातु की वस्तुओं को फिल्म से हटा दिया जाना चाहिए। दर्पण से छुटकारा पाने के लिए भी वांछनीय है। किट में न्यूनाधिक दोहरी चैनल है। यह दो कनेक्टर्स के माध्यम से नियंत्रण इकाई से जुड़ा हुआ है।
हीटर की महत्वपूर्ण विशेषताएं "प्लान 1.8"
पावर वर्ग। मीटर। ब्लेड 5 किलोवाट है, और ऑपरेटिंग आवृत्ति 23 हर्ट्ज है। लगातार संचालन के एक घंटे के लिए, हीटिंग तत्व प्रति मिनट लगभग 6 ए का उपभोग करता है। दक्षता 86% के स्तर पर है। 220 वी के वोल्टेज वाले नेटवर्क के माध्यम से बिजली की आपूर्ति की जाती है। किट में नियंत्रण इकाई मानक है। निर्माता द्वारा अर्थव्यवस्था मोड प्रदान नहीं किया जाता है। पीक पावर सिस्टम 6 किलोवाट तक पहुंचने में सक्षम है।
सामान्य तौर पर, कैनवास की सतह होती हैअग्निरोधक। सामग्री का घनत्व 8 किलोग्राम प्रति घन मीटर के क्षेत्र में है। मी। इस मामले में विकिरण तरंग दैर्ध्य 9 माइक्रोन है। मॉड्यूलेटर MPP 23 श्रृंखला में चूक करता है। इसे विभिन्न फास्टनरों का उपयोग करके बिजली केबल से जोड़ा जा सकता है। इस हीटिंग सिस्टम के लिए विद्युत पैनल सलाट प्रकार के लिए उपयुक्त है। इस मॉडल में निर्माता द्वारा चुंबकीय स्टार्टर प्रदान किया जाता है। वर्ग खर्च होगा। 1550 रूबल के लिए एम। कैनवास खरीदार। इस स्थापना वर्ग में। मी। फिल्म की औसत लागत लगभग 1,700 रूबल है।
निर्दिष्ट सिस्टम "प्लान" मालिकों की समीक्षा करता हैसकारात्मक पात्र हैं, क्योंकि यह फिल्म अलग-अलग कमरों में लागू की जा सकती है। ईंट के घरों के लिए, यह पूरी तरह से फिट बैठता है। इसी समय, वह विभिन्न कार्यशालाओं में भी जगह पाएगी। कैनवास में विद्युत ताप तत्व प्रतिरोधक है। सेवा में, यह हीटिंग सिस्टम बहुत सरल है।
यदि आवश्यक हो, तो इसे हमेशा साफ किया जा सकता हैसूखे कपड़े से पोंछना। साथ ही, योजना प्रणाली को बिल्कुल मूक संचालन के कारण अच्छी समीक्षा मिली है। सर्दियों में, अवरक्त किरणों का त्वचा पर लाभकारी प्रभाव पड़ता है, और इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए। इस प्रकार, बादल के दिनों में, यह फिल्म मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालने में सक्षम है।
फास्टनरों का उपयोग करना, आप कर सकते हैंस्वतंत्र रूप से स्थापना "प्लान" करें। ताप नियंत्रण इकाई द्वारा नियंत्रित किया जाता है। स्थापना में यह काफी सरल है, कोई भी मोड स्विच कर सकता है। फिल्म को ठीक करने के लिए आपको सभी माप बनाने और फास्टनरों को तैयार करने की आवश्यकता है। काम को हमेशा किनारे से शुरू करने की आवश्यकता होती है। यदि हीटिंग तत्व क्षतिग्रस्त है, तो शीट को तुरंत फेंक दिया जा सकता है। इस प्रकार, चादरों को बहुत सावधानी से जकड़ना आवश्यक है।
कम से कम पैड को 5 सेमी करना चाहिए। इस मामले में हुक की सिफारिश नहीं की जाती है। विपरीत परिस्थिति में, कुछ समय के बाद शीट शिथिल हो सकती है और यह अवांछनीय है। इस संबंध में, सब कुछ बहुत जल्दी से dowels के साथ किया जाता है। वे बाजार पर बहुत खर्च करते हैं, लेकिन ऐसे तत्व विश्वसनीय हैं। नतीजतन, आप कई वर्षों तक उन पर ध्यान नहीं दे सकते हैं।
पैरामीटर्स हीटर "प्लान 2.0"
अधिकतम सतह ताप तापमान - 30डिग्री, और सीमित वोल्टेज 200 वी है। हीटर 30 ए के भार का सामना करने में सक्षम है। इस मॉडल में थर्मोस्टैट को РР233 श्रृंखला में स्थापित किया गया है। नेटवर्क पर तारों को विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है, और केबल की लंबाई 3 मीटर है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि वेब की मोटाई 2 मिमी है। इस मामले में विकिरण तरंग दैर्ध्य 9 माइक्रोन है।
इस हीटिंग सिस्टम की कार्य शक्ति5 किलोवाट के स्तर पर है। लगातार संचालन के एक घंटे के लिए, यह लगभग 8 किलोवाट की औसत खपत करता है। एक ही समय में दक्षता अधिकतम 85% तक पहुंच जाती है। अंदर सामग्री का घनत्व 8 किलो प्रति घन मीटर है। नियंत्रण इकाई 200 वी के वोल्टेज के साथ नेटवर्क से संचालित होती है। मॉड्यूलेटर की अधिकतम शक्ति बिल्कुल 5 किलोवाट है। योग्य वर। एम। एक विशेष स्टोर में लगभग 1800 रूबल की फिल्म। स्थापना जबकि मालिक को लगभग 1600 रूबल की लागत आएगी। तिमाही के लिए। मीटर।
अधिकांश सभी फिल्म मोटाई 2।0 मिमी विभिन्न प्रशासनिक परिसरों को गर्म करने के लिए उपयुक्त है। एक आवासीय भवन में, आप इसे स्थापित कर सकते हैं। ऑपरेशन में, यह सरल है और विशेष ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। कमरे का हीटिंग लंबे समय तक किया जाता है, लेकिन यह शायद इस प्रणाली का एकमात्र दोष है। सर्दियों में, इस हीटर का उपयोग अन्य हीटिंग उपकरणों के साथ किया जाता है।
कहा जाता है कि इससे बिजली की बचत होती हैफिल्म काफी सरल हो सकती है। यह सीखना महत्वपूर्ण है कि नियंत्रण इकाई का ठीक से उपयोग कैसे किया जाए। गीले कमरों में निर्दिष्ट हीटर का भी उपयोग किया जा सकता है। कई घंटों के ऑपरेशन के बाद, आर्द्रता सामान्य हो जाती है। इसके अलावा, कई लोगों को लंबे समय तक शैल्फ जीवन के लिए इस प्रणाली से प्यार था। माल की कम लागत को देखते हुए, यह एक महत्वपूर्ण लाभ माना जाता है।
फिल्म को ठीक करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
घर में ठीक से स्थापित करने के लिएयोजना (हीटिंग), डू-इट-ही इंस्टॉलेशन केवल डॉवल्स का उपयोग करके किया जाना चाहिए। बिजली की आपूर्ति सीधे आउटलेट के पास तय की जाती है। न्यूनाधिक भी वहां संलग्न है। हीटिंग सिस्टम को सुरक्षित रूप से उपयोग करने के लिए, दीवार के किनारे से न्यूनतम दूरी 3 सेमी होनी चाहिए इसी समय, कमरे के वर्ग के आधार पर इंडेंटेशन कम से कम 4 सेमी होना चाहिए।
काम से पहले, बिना असफलता के पोस्टिंगएक परीक्षक द्वारा जाँच की गई। अन्यथा शॉर्ट सर्किट की स्थिति हो सकती है। धातु की वस्तुओं की स्थापना के दौरान उपयोग सख्त वर्जित है। सतह पर फिल्म को ठीक करते समय गोंद का उपयोग करने की भी सिफारिश नहीं की जाती है। सुरक्षात्मक परत को सावधानीपूर्वक छेदना आवश्यक है ताकि हीटिंग तत्वों को नुकसान न पहुंचे।
लक्षण हीटर "योजना 2.2"
छत की शक्ति "योजना 2।2 "में 5 किलोवाट है, और ऑपरेटिंग आवृत्ति 55 हर्ट्ज है। थर्मोस्टैट केवल एक सेट है। एक अतिरिक्त परत के रूप में, इसका उपयोग एल्युफोम द्वारा किया जाता है। इस मामले में, यह सिस्टम प्रदर्शन में काफी सुधार करता है। दक्षता 77% है। सिस्टम एक पीवी 3 श्रृंखला का उपयोग करता है नियंत्रण बॉक्स में थर्मल इन्सुलेशन मौजूद है, मोड केवल मैन्युअल रूप से कॉन्फ़िगर किए गए हैं।
|
e21e32f294923f9b0090d10b175b7bdcc73f13ca | web | कोरोना संकट से बुरी तरह प्रभावित राजस्थान के लोक कलाकारों के लिए राज्य के कला एवं संस्कृति मंत्रालय ने एक योजना निकाली है - मुख्यमंत्री लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना. राजस्थान सरकार इस योजना का चारों तरफ जोर-शोर से प्रचार कर रही है. इस योजना में कई किंतु-परंतु हैं लेकिन सबसे पहले उसी के बारे में बात कर लेते हैं जिसके बारे में सुगनाराम भोपा हमें ऊपर बता रहे थे. इस योजना के तहत ग्रामीण लोक कलाकारों को 15 से 20 मिनट का वीडियो बनाकर ईमेल के जरिये राजस्थान सरकार को भेजना होगा.
पहली बात तो यह कि गांवों में रहने वाले सुगनाराम जैसे हज़ारों लोक कलाकार 15-20 मिनट का वीडियो बनाएंगे कैसे? योजना में यह साफ-साफ लिखा है कि 'वीडियो कम से कम इस स्तर का हो कि लोग उसको देखकर उस प्रस्तुति का आनंद लें सकें और उसे मूल्यांकन समिति द्वारा डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपलोड करने योग्य समझा जाये. ' ऐसा वीडियो बनाना बहुत से लोक कलाकारों के लिए असंभव नहीं तो बेहद मुश्किल जरूर है. यदि किसी की मदद से उन्होंने ऐसा कर भी लिया तो फिर सवाल यह उठता है कि राज्य के गांवों में तो पढ़े-लिखे लोगों के पास ही ईमेल आईडी नहीं हैं. तो फिर उन लोक कलाकारों के पास ईमेल आईडी कैसे होंगी जिनको अपना नाम तक लिखना नहीं आता? यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि राजस्थान के 98 फीसदी लोक कलाकार पढ़े-लिखे नहीं हैं.
चलिये मान लिया कि उनके पास ईमेल आईडी हैं भी तो इतनी बड़ी फ़ाइलों को ई-मेल के जरिये भेजा कैसे जाएगा? अच्छी गुणवत्ता का 15-20 मिनट का वीडियो कम से कम 100 एमबी का तो होगा ही. ईमेल से इतनी बड़ी फ़ाइल कैसे भेजी जा सकती है?
योजना की घोषणा में यह भी कहा गया है कि 'सभी लोक कलाकरों को योजना के तहत अपनी प्रस्तुति की रिकार्डिंग के समय सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ही कोरोना की रोकथाम और बचाव के लिए सरकार द्वारा जारी की गई गाईडलांइस की पूर्ण पालना करनी होगी. इच्छुक लोक कलाकार यथासंभव ऐसी प्रविष्टियों का चयन करे जिसमें एक से अधिक व्यक्ति (लोक कलाकर) उस प्रस्तुति में सम्मिलित ना हों. ' इससे यह पता चलता है कि इस योजना को कितने नासमझ लोगों ने तैयार किया है.
लोक कला में कितनी ही ऐसी परफार्मिंग आर्ट्स है जो 10-12-15-20 लोगों के बगैर सम्भव नहीं हैं. लेकिन कर्फ्यू ओर लॉकडाउन के समय इतने लोग एकत्रित होंगे कैसे! यदि किसी तरह से इकट्ठे हो भी गए तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना है. इसके लिए स्टेज को भी पहले से काफी बड़ा बनाना होग. इतनी बड़ी स्टेज बनेगी कैसे?
यानी कि जिन परफार्मिंग कलाओं में लोगों का जमघट बनाना पड़ता है वे तो सीधे-सीधे इस योजना के दायरे से बाहर हो जाती हैं. क्योंकि यदि वे मुख्यमंत्री लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना में हिस्सा लेंगे तो सामाजिक दूरी का उल्लंघन करने के लिए जेल जाएंगे और अगर ऐसा नहीं करेंगे तो खायेंगे क्या!
उदाहरण के लिए जो आदिवासी अपने लोक नृत्य में मगरमच्छ की आकृति बनाते हैं, शेर बनाते हैं, माता को विराजमान दिखाते हैं. वे लोग क्या करेंगे? उनका ये लोक नृत्य तो सदियों से चला आ रहा है. ऐसे ही बेड़िया घुमंतू जाति राई लोक नृत्य करती है. इसमें 10-12 लोग घेरा बनाते है और फिर उसमें नृत्य किया जाता है. घेरा बनाये बिना यह लोक-नृत्य नहीं हो सकता.
'मुख्यमंत्री लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना' के दस्तावेज के मुताबिक 'यह योजना राजस्थान के उन कलाकारों के लिए है जो ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं और अपनी आजीविका हेतु पूर्ण रूप से लोक कला के प्रदर्शन पर निर्भर हैं. आधार कार्ड में दर्ज पता ग्रामीण क्षेत्र तय करने का आधार होगा. ' यहां सवाल यह उठता है कि यह डिवाइड कैसे होगा? लोक कलाकारों को शहरी और ग्रामीण में कैसे बांटा जाएगा?
अकेले जयपुर की बात करें तो यहां 10 हज़ार से ज्यादा लोक कलाकार होटल और टूरिस्ट स्थानों पर अपनी कला दिखाकर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं? इन लोगों के पास यहीं का आधार कार्ड है. लेकिन अभी होटल और कला केंद्र बंद हैं. तो इन कलाकारों को मुख्यमंत्री लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना का लाभ क्यों नहीं मिलना चाहिए? जयपुर की कठपुतली कॉलोनी में हज़ारों लोक कलाकार नरक से बदतर जीवन जी रहे हैं. उनको इस योजना से कैसे हटाया जा सकता है? और यह समस्या केवल जयपुर की भी नहीं है. जैसलमेर, जोधपुर इत्यादि सभी शहरी क्षेत्र इससे बाहर हैं. यहां तक कि दौसा जिले में आने वाला बांदीकुई जैसा क्षेत्र भी इस योजना के लिहाज से एक शहरी क्षेत्र है.
अब आते हैं इस योजना के ज्यूरी मंडल पर. सामान्यतः किसी को भी यह लगेगा कि इसकी ज्यूरी में लोक कला के बड़े जानकार होंगे. चर्चित लोग होंगे. कुछ लोक कलाकार होंगे. लेकिन ऐसा है नहीं. राजस्थान सरकार के मुताबिक 'इस योजना हेतु रवींद्र मंच, जयपुर को नोडल एजेंसी नामित किया गया है. ' इस संस्था की स्थिति पहले से ही बदहाल है. और इसकी कृपा से 'मुख्यमंत्री लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना' की ज्यूरी में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो लोक कला से जुड़ा हुआ हो. इसके सभी सदस्य सिर्फ प्रशासन से जुड़े लोग ही हैं.
यह क्या बतलाता है? यह बताता है कि हमारे लोक कलाकार कैसे भिखमंगे बने हुए हैं, हमारी लोक कलाएं आखिर क्यों विलुप्त हुई हैं, और लोक वाद्य क्यों डूबे?
जैसलमेर के मरु संग्रहालय के निदेशक नंद किशोर शर्मा को लोक कला को संरक्षित करने के उनके प्रयासों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. उन्हें लोक कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, एपीजे अब्दुल कलाम, तमाम प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सम्मानित कर चुके है.
जवाहर कला केंद्र के एक कर्मचारी भी इस मामले में अपना नाम न छापने की शर्त पर बतलाते हैं कि जिन लोक कलाकारों के वीडियो को यूट्यूब पर अपलोड किया जा रहा है वह वहीं रहेगा चाहे वह लोक कलाकार मुख्यमंत्री 'लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना' में चयनित हो या न हो. इसके अलावा ऐसा भी देखने को मिल रहा है कि अब कई संस्थाएं भी इस शर्त पर लोक कलाकारों का वीडियो बनाकर भेज रही हैं कि 50 फीसदी हिस्सा उस संस्था का होगा.
कलाकारों को मदद देने के मामले में मनमानी का एक उदाहरण राजस्थान के बाड़मेर ज़िले में भी देखने को मिलता है. यहां पर प्रशासन द्वारा ऐसे लोक कलाकारों की सूची जारी की गई है जिन्हें तत्काल लाभ देना है. सवाल यह है यह सूची आई कहां से? यहां के हर गांव में 30-40 लोक कलाकार होते हैं. लेकिन यह सूची करीब 100 लोगों की ही है. इतने लोगों की सूची को किसने तैयार किया? यह किस तरह का न्याय है?
बाढ़मेर जिले की हडुवा में रहने वाले एक लोक कलाकार बताते हैं कि 'कई सरकारी अधिकारी लोक कलाकारों को अपने व्यक्तिगत इवेंट में बुलाते हैं और उन्ही को विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभ दिये जाते हैं. ' इनके मुताबिक बाढ़मेर में कलाकारों के चयन के मामले में भी शायद ऐसा ही कुछ हुआ होगा.
जो राजस्थान पूरे हिंदुस्तान से लेकर विश्व में अपनी कला, संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है. क्या उस राजस्थान सरकार के पास अपने लोक कलाकारों की कोई सूची नहीं हैं?
क्या यहां विराजमान अधिकारियों को यह पता है कि राजस्थान में कितने तरह के वाद्य यंत्र होते हैं? उन वाद्य यंत्रों को बजाने वाले लोग किस समुदाय से आते हैं? वे लोग कहां रहते हैं? उनका क्या जीवन है? कितनी तरह की लोक कलाएं हर दिन मरने की ओर बढ़ रही हैं?
पिछले 15 वर्ष से राजस्थान की लोक संस्कृति को संरक्षित करने में लगे प्रख्यात संस्कतिकर्मी श्री अशोक टॉक कहते हैं कि राजस्थान सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग ने अपने पुरखों के ज्ञान को तो पहले ही लात मार दी थी. वे बताते हैं कि राज्य में पहले एक म्यूज़ियम हुआ करता था. जिसके आधे सामान को गायब कर दिया गया और यह कह दिया गया कि उसे दीमक खा गई. कुछ सामान को बड़े म्यूजियम में भेज दिया गया. कुछ सामान को कबाड़ के कमरे में डाल दिया. वे पूछते हैं कि जब उस सदियों के सीखे ज्ञान के साथ यह सब करोगे तो कला और कलाकार कैसे जिंदा रहेंगे?
कला केंद्र का काम क्या होता है?
राजीव सेठी कहते हैं कि हमें यह अच्छे से समझ लेना चाहिए कि कला केंद्र कोई तेल-साबुन बेचने का अड्डा नहीं है. न ही लाभ कमाने की कोई दुकान. कला केंद्र वह स्थान है जहां पर कला संरक्षित होती है, पैदा होती है. जहां विचार पैदा होते हैं, पलते हैं, बढ़ते हैं और फिर प्रेरणा बनकर और नये विचारों को जन्म देते हैं. कला केंद्र वह स्थान है जो कलाकार को दुख की घड़ी में संभालता है, उसको संबल देता है.
जब इन सवालों को लेकर कला संस्कृति विभाग की प्रिंसिपल सचिव श्रीमती श्रेया गुहा से बात करना चाहा तो न उन्होंने मैसेज का जवाब दिया और न ही बार-बार फ़ोन करने के बावजूद फोन उठाया. रवीन्द्र मंच की एडीजी शिप्रा शर्मा को भी फ़ोन किया गया किन्तु उन्होंने समयाभाव की बात कहकर बात करने से मना कर दिया.
राजस्थान समग्र सेवा संग से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता अनिल गोस्वामी कहते हैं यह अजीब विडम्बना है. जब कला मर रही होती है तब कोई बात नहीं करता. जब कला मर जाती है तब उसे डाइंग आर्ट्स के नाम से जाना जाता है और उसे बचाने के लिए बड़े टेंडर जारी होते हैं. यह समय तो इन डाइंग आर्ट्स को सहेजने का था.
तुरंत क्या हो सकता है?
Share your perspective on this article with a post on ScrollStack, and send it to your followers.
|
a1c8aaa85622e40e261b5bcc2ee77740cd9a95220f4d2d18ae809bf7a0baf63b | pdf | सम्पत्ति सम्बन्धी स्वत्व और कर्तव्य ।
प्राचीनकालसे ही यह माना गया है कि राजोंको सम्पत्ति रखनेका अधिकार है । जिस समुदायका किसी भूमिविशेषपर कब्जा न हो उसे राज ही नहीं कहते। पर राजकी सम्पत्ति भूमिके अतिरिक्त अन्य प्रकारकी भी होती उनके पास घर, मकान, मशीन, रुपया पैसा, पशु, शस्त्र, पुस्तकें, कुर्सियां, इत्यादि, अनेक वस्तुए होती हैं। इनका क्रयविक्रय प्रत्येक देश के घरेलू कानूनके अनुसार होता है जिससे अन्ताराष्ट्रिय विधानसे कोई सम्बन्ध नहीं है पर यदि युद्ध के समय शत्रुसेना इनपर कृब्जा कर लेती है तो अलबत्ता अन्ताराष्ट्रिय विधान उनके उपयोग और उपभोगके नियम बताता है ।
इन फुटकर वस्तुओं के अतिरिक्त राजकी सम्पत्तिमे भूमि, जल और वायु सम्मिलित हो सकते हैं । इन तीनोपर पृथक् पृथक विचार करना होगा, फिर अन्तमे यह निश्चय हो सकेगा कि राजकी सम्पत्तिकी क्या सीमा हो सकती है ।
भूमिपर अधिकार ।
सबसे पहिले यह देखना है कि राजोंकी भौम सम्पत्ति किस प्रकार बढ़ती है। इसके दो प्रकार हैं, प्राथमिक और गौण * । प्राथमिकके भी दो भेद हैं, अधिकृति और प्राकृतिक वृद्धि +
* Original, derivative + Occupation, accretion.
और गौणके तीन भेद हैं हस्तान्तर, विजय और उपभोग। दोनों में भेद यह है कि जो भूमि किसी अन्य सभ्य राजके कब्जे में नहीं थी या यदि कभी बहुत पहिले थी भी तो अब उसपर किसी सभ्य राजका न तो कब्जा है न स्वत्व, उसपर अधिकार प्राप्त करने के प्रकारको प्राथमिक कहते है और किसी अन्य सभ्राजके कब्जेकी भूमिपर कब्जा करने के प्रकारोको गौण कहते हैं ।
अधिकृति ।
जो भूमिखण्ड किसी अन्य सभ्य राजके अधिकारमें न हो उसे अपने हाथ में लेने को अधिकृति कहते हैं। यह आवश्यक नहीं कि वह निर्जन हो। इतना ही पर्याप्त है कि उसके निवासी किसी ऐसे राजकी प्रजा न हों जो अन्ताराष्ट्रिय विधानका पात्र हो । जब पहिले पहिले अमेरिका महाद्वीपत पता लगा तो यूरोपके राजोंके सामने यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि इसपर किसका और किस नियमके अनुसार अधिकार हो । अन्तमे प्राचीन रोमन विधानकी शरण ली गयी । उसमें एक नियम था कि यदि सडकपर कोई लावारिस चीज पडी हो तो जिसके हाथ वह पहिले लगे वह उसे ले सकता था । इस नियमका विचार इस प्रकार किया गया कि जो पहिले अमेरिका पहुचा अर्थात् जिस राजके जहाजने अमेरिकाका पहिले पता लगाया वही उसका स्वामी होगा। पर इससे काम न चला । स्पेनवाले कहते थे कि १५५५ में अमेरिगो वेस्पूची जो स्पेन-वासी था उत्तरी अमेरिकाके तटपर सबसे पहिले उतरा था इसलिये उत्तरी अमेरिका हमारा है। अग्रेज कहते थे जान केबट यहा १५५४ में ही आ चुका था। § Cession, conquest, preseiption Amerigo Vespuce
फ्रांस और पुर्तगाल भी इसी प्रकारकी बातें कहते थे । तत्कालीन पोप षष्ठ सिकन्दरने सारे अमेरिकाको स्पेन और पुर्तगाल में बांटना चाहा पर उनकी बात कौन सुनता । क्रोनरेशने स्पेनके पञ्चम चार्ल्स से इस प्रयत्नकी इसी उडाते हुए पूछा था "आप और पुर्तगालके नरेश किस अधिकारसे सारी पृथ्वी के स्वामी बनना चाहते हैं ? क्या बाबा आदमने आपको ही अपना एकमात्र उत्तराधिकारी बनाया है ? यदि ऐसा है तो वसीयतनामेकी प्रतिलिपि तो दिखलाइये । कहनेका तात्पर्य यह है कि किसी स्थान विशेषका पहिले पहिले पता लगा लेना पर्याप्त नहीं है । केवल इतनेसे ही उसपर स्वाम्य नहीं होता, हाँ पहिले पता लगाना एक गौण प्रमाण नि सन्देह है। आजकल केवल इतने से अधिकार नहीं मिलता पर प्रचलित प्रथा यह है कि यदि किसी राजका जहाज किसी नये भूखण्डका पता लगाता है तो अन्य राज थोडे दिन ठहर कर देखते हैं कि वह उसपर कब्जा करता है या नहीं। उसको ऐसा करनेका पर्याप्त अवकाश दिया जाता है।
अस्तु, तो पता लगाना ही कब्जा नहीं है। जिस राजका जहाज पता लगाये या जो अन्य राज कब्जा करना चाहे उसे चाहिये कि यह स्पष्ट प्रकट कर दे कि इस स्थानपर कब्जा करनेकी हमारी इच्छा है । इसका साधारण नियम यह है कि वहांपर राजका झण्डा गाड दिया जाय और कब्जेकी घोषणा कर दी जाय । पर यह घोषणा उस राजकी सर्कारकी ओरसे ही होनी चाहिये । कोई अन्य व्यक्ति, चाहे वह राजका उच्च कर्मचारी ही क्यों न हो, घोषणा नहीं कर सकता। इसलिये ऐसे अवसरपर एक कर्म्मचारी, विशेष अधिकार देकर, इसी कामके लिये भेजा जाता है । १७५६ में डैम्पियर नामक एक ब्रिटिश नाविकने
entre, Horty worth the way for your vous am Band m
आस्ट्रेलिया के निक्ट न्यूब्रिटेन और न्यूआयरलैण्ड नामक दो नये द्वीपोका पता लगाया । १८२४ में कप्तान कोर्टरेटने ब्रिटेनके नामपर इनमें कब्जेकी घोषणा कर दी । वह ब्रिटिश जल-सेनाके ऊँचे दर्जेके अफसर थे पर उन्हें ब्रिटिश सर्कारकी कोई विशेष आज्ञा नथी अत उनकी घोषणा अन्य राजोके लिये मान्य नथी । १९४१ में जर्मनीने इन द्वीपोंपर अपना अधिकार जमा लिया । कभी कभी ऐसा होता है कि अधीन संस्थाए या कर्म्मचारी विना आज्ञाके ही किसी प्रदेश विशेषपर कब्जेकी घोषणा कर देते हैं पर ऐसी अवस्थामे यथासम्भव शीघ्र ही उनकी सर्कार उनके ऐसा करनेका स्वय समर्थन करती है। यदि वह ऐसा न करे तो घोषणा निरर्थक होती है ।
पर केवल घोषणासे ही काम नहीं चलता। जिस प्रकार माधारण कानूनमें दाखिल खारिज अर्थात् सम्पत्तिपर नाम चढनेके लिये यह देखा जाता है कि वस्तुतः उस सम्पत्तिका उपभोग कौन करता रहा है उसी प्रकार अन्ताराष्ट्रिय विधान भी यह देखता है कि वस्तुतः उस भूखण्डका कोई उपभोग भी हुआ है या नहीं। इसलिये अब घोषणाके बाद ही थोडी बहुत बस्ती बसानी पटती है। यदि जगह छोटी हो तो कुछ सर्कारी कर्मचारी ही रख दिये जाते है नहीं तो शीघ्र ही कृषकों और व्यापारियोंको बसानेकी चेष्टा की जाती है। बस्ती भी निरन्तर होनी चाहिये । थोडे दिनोंके लिये हट जाना दूसरी बात है पर यदि कुछ काल तक बस्ती इस प्रकार हटा ली जाय कि इस बातका कोई प्रमाण न रह जाय कि फिर आकर बसना है तो दूसरे राजोको वहा कब्जा करनेका पूर्ण अधिकार है । यह स्मरण रखना चाहिये कि बस्तीमे कुछ सर्कारी कर्मचारियोंका, जो वहींके लिये नियुक्त हुए हों, रहना परमावश्यक है। केवल व्यापारियों या
ताराष्ट्रिय विधान
बसनेगे सकारी कब्जा नहीं होता। बहुधा पहिले सर्कार कब्जा जमा लेती है फिर बस्ती बसाती है, पर कभी कभी इसके विपरीत भी होता है। दक्षिणी अफ्रीकाके नेटाल प्रदेश में १८८१ में ही कुछ अंग्रेज बस गये थे पर सर्कारी घोषणा १९०० में हुई। इसमें ढर यही रहता है कि यदि बीचमें कोई और राज उसे अधिकृत करना चाहता तो अंग्रेज सर्कार उसे वैध रूपसे नहीं रोक सकती थी ।
अत. यह निश्चय हुआ कि किसी लावारिस भूमिपर पूर्ण अधिकार जमाने के लिये यह आवश्यक है कि अधिकार जमानेकी घोषणा करके उसके शासनके लिये कुछ सर्कारी कर्मचारी नियुक्त किये जाय जो वहीं रहें।
इस समय यह प्रश्न, बड़े महत्व का इस लिये नहीं प्रतीत होता कि पृथ्वी इस प्रकार छान डाली गयी है कि स्नात कोई ऐस देश ही नहीं बच गया है जिसपर किसी
अधिकृत भूमिका किसी सभ्य राजका अधिकार न हो। कभी कभी क्षेत्रफल भूकम्प आदिके कारण प्रशान्त महासागरमें एकाध छोटासा द्वीप भले ही उत्पन्न हो जाय पर किसी बडे द्वीप या देशके मिलनेकी आशा नहीं है । पर दो बातें ध्यान रखने योग्य हैं। एक तो अब भी अफ्रीका के बहुत बड़े भागपर किसी सभ्य राजका कब्जा नहीं है, दूसरे यह असम्भव नहीं है कि जिन देशोपर आज सभ्य राज अधिकार जमाये बैठे हैं वहासे भविष्यत् में उनका अधिकार उठ जाय। किसी समय ब्रिटेनपर रोमका अधिकार था पर जब रोमके पतनका समय आया तो वह इतना दुर्बल हो गया कि उसे ब्रिटेनसे हाथ खींचना पड़ा और ब्रिटेन लावारिस हो गया। यह कौन कह सकता है कि यदि फिर कोई भीषण महायुद्ध हुआ तो ब्रिटेन, फ्रांस
हालैण्ड इत्यादि एशिया और आस्ट्रेलिया के पासके द्वीपोंपर अपना अधिकार स्थिर रख सकेंगे। यदि यह द्वीप एक बार इनके हाथसे निकल गये तो फिर लावारिस हो जायेंगे और अन्य सभ्य राजोको उनपर कब्जा करने में कोई रुकावट न होगी। उस समय यह नियम काम देंगे।
एक बडे महत्त्वका प्रश्न यह है कि एक बार घोषणा करने और कुछ कर्मचारी नियुक्त कर देनेसे कितनी भूमिपर अधिकार हो जाता है। इसमें तो सन्देह नहीं कि छोटे द्वीप या द्वीपसमूहपर एक साथ ही कब्जा हो जाता है पर समूचे महाद्वीपपर इस प्रकार कब्जा नहीं हो सकता । फ्रांस या स्पेन चाहते थे कि सारा अमेरिका ही उन्हें मिल जाय पर उनकी बात किसीने न मानी । एक दो नहीं दस पांच बस्तियां बसानेसे भी महाद्वीप या बडा देश नहीं अपनाया जा सकता । आज आस्ट्रेलियाका द्वीप, जो एक महाद्वीप कहा जा सकता है, ब्रिटेनका हो गया है। कारण यह है कि उसके चारोओर समुद्रतटपर ब्रिटिश बस्तिया हैं और किसी अन्य राजने उसमे अपना उपनिवेश बसाया ही नहीं। पर यह अवस्था बहुतोको अच्छी नहीं लग रही है। देश बहुत बड़ा है और अग्रज बहुत थोड़े हैं। भारतीय, चीनी, जापानी अभी उसमें घुसने नहीं पाते हैं यद्यपि आस्ट्रेलिया एशियाके निकट है और एशियावासियोंके लिये सर्वथा उपयुक्त है । सम्भवत. एक दिन उसमें भारत, चीन और जापानके ही उपनिवेश होंगे ।
विधान शास्त्रका यह एक सिद्धान्त है कि स्थलसे संलग्न जल होता है, जलमे सलग्न स्थल नहीं । स्थलपर स्वाम्य होनेसे जलपर स्वाम्य हो जाता है परन्तु जलपर स्वाम्य होनेसे स्थलपर स्वाम्य नहीं होता। यदि किसी नदीके मुहानेपर कब्जा कर
कर सक
लिया जाय तो उस सारे भूखण्डपर कब्जा नहीं माना जायगा जिसमें से वह नदी या उसकी सहायक नदिया बहती है पर यदि समुद्र तट के पासके बड़े भूखण्डपर कब्जा हो जाय तो उस ऊँची भूमि या पहाडी तक कब्जा माना जाता है जहांसे नदिया इस तटकी ओर झुकती है। यदि दो राजोकी बस्तियोके बीचमेसे नदी बहती है तो दोनोंका नदीक अपने अपने तट तक कब्जा माना जाता है और नदीके जिस भागसे नाव चल सकती हैं उसके मध्यकी कल्पित रेखा दोनो बस्तियोकी सीमा मानी जाती । जहां नदी, पहाड इत्यादि प्राकृतिक सीमाए नहीं मिलती वहां कल्पित और कृत्रिम सीमाए बनानी पड़ती है। बहुधा यह करते हैं कि दोनो ओरकी अन्तिम इमारतोके बीचकी भूमिके बीचो बीचकी कल्पित रेखाको सीमा मान लेते हैं ।
इन नियमोंका पालन करनेसे झगडे बहुत कम हो जाते है पर उनके लिये अवकाश निकल ही आते है । इमोको बचाने के लिये अफ्रीका के विषय में ब्रिटेन जर्मनी, फ्रांस, पुर्तगाल इत्यादिने आपसमें समझौता कर यह निश्चय कर लिया कि कौन देश कहां तक कब्जा करेगा । आजकल तो यह नियम हो गया
कि कब्जा करने वाला राज स्वयं पहिलेसे ही कह दे कि वह कहां तक कब्जा करना चाहता है 1 १९४५ में लोसानमे अन्ताराष्ट्रिय विधान परिषद्ने पहिले पहिले यह परामर्श दिया था। यह कहना अनावश्यक है कि यदि वह राज बहुत बड़े भूखण्डको दबाना चाहेगा तो अन्य राज उसकी एक न सुनेंगे । साथ ही यह भी शर्त है कि वह जितनी भूमिपर कब्जा करे उसमें ऐसी कोई परिस्थिति उत्पन्न न होने दे जिससे सभ्य मनुष्य उसमें बस ही न सकें या वहाँ व्यापार, कृषि आदि करना असम्भव हो जाय ।
हम देख चुके है कि जिन देशोंपर किसी सभ्य राजका शासन न हो उनपर कब्जा हो सकता है । यदि वह देश निर्जन हो तो कोई अडचन नहीं होती पर यदि वहाँ आदिम निवासी कुछ मनुष्य पहिलेसे बसे हो तो एक प्रश्न उठता है। माना कि यह लोग असभ्य है पर हैं तो
मनुष्य । क्या इनका इस भूमिपर कोई अधिकार नहीं है ? आजसे सौ दो सौ वर्ष पूर्व तो यह प्रश्न किमीको नहीं सनाता था पर आजकल लोगोकी विवेक- बुद्धि कुछ तीक्ष्ण हो गयी है अत यह बात खटकती हैं। पहिलेके लोगोका तो यह भाव था कि आदिम निवासियोंदा कोई अधिकार नहीं है। आजकल ऐसा नहीं कहा जाता । उत्तरी अमेरिकामे अग्रेजोने जो वस्तियां स्थापित कीं उनके सम्बन्धमे फिलिमोर कहत है-'उत्तरी अमेरिकाक आदिम निवासियों को यह अधिकार था कि अपनी आखेट-भूमियोमे अंग्रेज व्यापारियोको न बसने देत, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया । इसलिये यह समझना चाहिये कि भूमिके स्वाभ्यमे अग्रेज भी सम्मिलित कर लिये गये । फिलिमार इस बातको छिपाते हैं कि उन जंगलियोंने प्रेमवश होकर अग्रेजोंको अपना हिस्सेदार (!) नहीं बनाया वरनू तोप बन्दूक और शराबके आगे उनकी एक न चली। अस्तु, आजकल बहुधा यह मत है --कोई विधान हो वह अपने पात्रोंका ही नियंत्रण कर सकता है, उन्हींके अधिकारों और कर्तव्योंका निर्णय कर सकता है । सभ्य राज अन्ताराष्ट्रिय विधानके पात्र हैं अत वह विधान उनके ही लिये नियम बना सकता है। उसने कब्जा करने के सम्बन्धमे कुछ नियम बनाये हैं। यदि उसके पात्र अर्थात् सभ्य राज उन नियमोंका पालन करते हैं और उनके अनुसार कब्जा करते हैं तो वह सन्तुष्ट है । असभ्य या अर्द्ध-सभ्य समुदाय उसके पात्र नहीं हैं इसलिये वह न तो उनके
अधिकारोंको जानता है न कर्तव्योंको । इसलिये यदि सभ्य राज इस प्रकारके देशोंपर कब्जा कर लेते है तो उनका ऐसा करना पूर्णतया वैध है। परन्तु विधानके अतिरिक्त धर्म्म भी एक वस्तु है और न्याय धर्मका एक प्रधान अग है। धर्मं यह कहता है कि जो समुदाय, चाहे वह कैसा ही जगली हो, किसी भूखण्डपर बस गया है उसका उसपर अधिकार हो गया है । अतः सभ्य राजोंपर वैध नहीं तो नैतिक दबाव अवश्य है। इसलिये आजकल यह चाल चल पडी है कि एक बार अन्ताराष्ट्रिय विधानके अनुसार कब्जा करके फिर तत्रस्थ जगली सर्दारोंसे सन्धियां की जाती हैं। इन सन्धियोंक अनुसार उस भूखण्डका कुछ भाग तो आदिम निवासियोंके लिये छोड़ दिया जाता है, कुछ उनसे ले लिया जाता है। जो भाग लिया जाता है उसका मूल्य भी उन्हें दिया जाता है। इस युक्तिसे यूरोपकी सभ्यता अपनी धर्म्मपरताका परिचय देती है। पर यह स्मरण रखना चाहिये कि यह सर्दार जंगली होते हैं। यह बेचारे लिखित सन्धियोंके ढंगसे अपरिचित होते है, कानूनी शब्दोके दावपेचसे सर्वथा अनभिज्ञ होते है, धनके महत्वको समझते नहीं, पाश्चात्य सभ्यताकी शक्तिसे घबराते है और उसके प्रलोभनोंमें फँस जाते है । अत उन्हें बहकाकर ऐसी सन्धियां लिखवायी जाती हैं कि थोड़ेसे ही कालमे सारा देश यूरोपियनोंका हो जाता है और वह बेचारे या तो अन्नादिके कष्टसे प्रायः सारे नष्ट हो जाते हैं या गुलामोंसे भी बुरी दशामें जा गिरते हैं। दक्षिणी और पूर्वीय अफ्रीका तथा उत्तरी अमेरिकाका इतिहास ऐसी घटनाओंसे परिपूर्ण है। आजकल जिन राजोंको राष्ट्रसंघने शासनादेश दिये है उनसे यह शर्त की है कि इन देशोंका शासन इस प्रकार करो कि आदिम निवासी सभ्य हो जायं और उनको किसी सरक्षककी आवश्यकता ही न रहे । देखा चाहिये
सरा अध्याय
क्या होता है। अभी तो सर्वत्र ऐसा ही शासन रहा है कि यदि कल यूरोपियन सभ्यता उन देशोंसे उठ जाय तो वहां के निवासी हर्षोत्फुल्ल होकर परमात्माकी वन्दना करेंगे और मनायेंगे कि हे भगवन्, अब हमें इन सभ्य मूर्तियों के दर्शन न दीजिये । यूरोपियन राज कहते अवश्य हैं कि हम जब कहीं कब्जा करते हैं तो केवल अपने बलवैभवकी वृद्धि या उपनिवेश स्थापित' करने के उद्देश्यले नहीं प्रत्युत आदिम निवासियों को सुसभ्य बनाना भी हमारा एक प्रधान लक्ष्य रहता है, पर आजतक ऐसी बातें देखनेमे नहीं आयीं जिनसे इस कथनकी सत्यतापर विश्वास हो । प्राकृतिक वृद्धि ।
यह कोई बहुत महत्त्वका विषय नहीं है क्योकि इस प्रकार राज्यवृद्धि बहुत कम होती है और यदि कभी होती है तो उसके विषय में प्राय मतभेद और विवाद भी नहीं होता । प्राकृतिक वृद्धि समुद्र या नदी तटपर ही सम्भव है । कमी को पानी हट जाता है और इस प्रकार कुछ नयी भूमि बढ़ जाती है। ग्रह उसी राजकी सम्पत्ति होती है जिससे मिली होती है । यदि पानी में कुछ नये द्वीप बन जाये तो वह भी उसी राजकी सम्पत्ति माने जाते हैं जिसके राज्य के निकट होते हैं। यदि दो राजोंके बीचमें पानी पंड़ता हो और ठीक बीच धारमे ही गयी भूमि निकल आये तो वह बीच धारकी उस कल्पित रेखा द्वारा, जो दोनों राजकी सीमा मानी जाती है, दी भागोमे बांट दी जाती है । पर यदि दो राजके बीच कोई नदी या झील हो और वह किसी दैवी दुर्घटनाके कारण यकायक अपना मार्ग ही छोड़ दे या विलुप्त हो जाय तो दोनों राजोंके राज्यों में कुछ भी वृद्धि हासन होगा प्रत्युत उनकी सोमा पुरानी अदृष्ट धाराकी कल्पित मध्यरेखा हो मानी जायगी और इसीके अनुसार पानी के हट जानेसे जो नयी
भूमि निकल आयेगी वह आपसमें बांट ली जायगी। प्राय. इसी प्रकारके नियम सभी देशो में खेतों और उन जमोनदारियोंके लिये प्रचलित है जो नदीके किनारे होती है
हस्तान्तर ।
एक सभ्य राजसे दूसरे सभ्य राजके हाथमे बहुधा हस्तान्तरित होकर ही भूखण्ड जाया करते हैं। इसका अर्थ तो यह है कि भूखण्ड अपनी इच्छासे दिया जाय पर कभी कभी ऐसा होता है कि भूखण्ड लिया तो जाता है बलात् ही पर दिखलानेको, ताकि देनेवालेकी अप्रतिष्ठा न हो, हस्तान्तरका स्वरूप दिया जाता है। हस्तान्तर सन्धि द्वारा होता है। सन्धिपत्रमे यह लिखा जाता है कि नये अधिकारीको पुराने अधिकारीके ऋणका कौनसा भाग अपने ऊपर लेना होगा, हस्तान्तरित प्रदेशकी प्रजाके किन किन स्वत्वोकी विशेष रक्षा की जायगी, इत्यादि । हस्तान्तर कई प्रकारोसे होता है। उनमें विक्रय, भेंट और विनिमय मुख्य है।
आजकल विक्रय कम होता है क्योंकि राजोंके पास ऐसी परती भूमि ही नहीं है जिसे अनावश्यक समझ कर बेच डाला जाय। पर कभी कभी अब भी विक्रय होता है। १९२४ में संयुक्त राजने रूससे उत्तरी अमेरिकाके वायव्य कोणका अलास्का प्रान्त ७२,००,००० डालर ( अर्थात् लगभग २,४०,००,००० रुपये ) में सोल ले लिया । भेट आपसके सौहार्द की द्योतक है। इस प्रकारकी भेंट स्यात् ही कभी होती है । पहिले होती थी । १८१९ मे फ्रांसने स्पेनको लूइजीआनाका उपनिवेश भेंट कर दिया था । बम्बईका द्वीप : ब्रिटिश नरेश प्रथम चार्ल्सको पुर्तगालसे अपने विवाहके उपलक्ष्य में मिला था। जबरदस्तीकी भेंट अब भी होती है। यदि दो राजोंमें युद्ध होकर एक हार जाता है और उसे कुछ
भूखण्ड विजेताको देना पडता है तो इसे भी भेंट ही कहते हैं । १९२८ में फ्रांसको जर्मनीने हराया । परिणाम यह हुआ कि फ्रांसने अल्सास और लारेन दो प्रान्त जर्मनीको भेंट किये। यह भेंट फ्रांसको कभी न भूली । उसीका प्रतिकार वह जर्मनीसे अब ले रहा है। कभी कभी भेंट और विक्रयको मिला कर हस्तान्तर होता है। १९५५ में संयुक्त राजने स्पेनको हराया और उसे फिलिपाइन द्वीपसमूह भेंट करनेपर विवश किया पर स्वत द्वीपके लिये २,००,००,००० डालर ( ७,००,००,००० रुपये ) स्वीकार किया । इसे जबरदस्तीका विक्रय कह सकते हैं। कभी कभी आपस में विनिमय भी होता है । १९४७ में जर्मनीने व्रिटेनको अपने पूर्वीय अफ्रीका के राज्यका एक भाग दे दिया जिसके स्थानमे ब्रिटेनने जर्मनीको हेलिगोलैण्ड दे दिया।
विजय ।
जब किसी राजके राज्यके किसी भागमें किसी दूसरे राजकी सेना उसकी सेनाओंको हरा कर अपना अधिकार जमा लेती है तो वह राज जिसकी सेना जीत गयी होती है उस प्रदेशका विजेता कहलाता है अर्थात् यह कहा जाता है कि उस प्रदेशमे उसकी विजय हुई है। पर यह सैनिक विजय मात्र है, इससे वह विजेता उस प्रदेशका स्वामी नहीं हो जाता । गत युद्ध में तीन चार वर्ष तक बेल्जियम तथा फ्राँसका बहुत बडा भाग जर्मन सेनाओं के अधीन था पर जर्मनी उन भूखण्डोंका स्वामी नहीं हुआ। ऐसे प्रान्तोंमें विजेताकी सेना तो रहती है पर शासन पुरानी सर्कार के कर्मचारी ही करते हैं। उसीके बनाये कानून बरते जाते हैं, उमीके न्यायालय होते हैं, उसीका सिक्का चलता है। यह अवश्य होता है कि विजेता सर्कारी कोषका स्वत्र उपयोग कर लेता है और सैनिक सुविधा के लिये कुछ नियमोपनियम बना देता है पर वह |
eeaf90f92610fa7b1e666b09a7a15759ef32d919bd3c0626fecfab01285878e6 | pdf | अभी विज्ञान वहीं नहीं पहुँचा है, लेकिन पहुँच जायगा । क्योंकि कल वह भौतिक को स्वीकार करता था, आणविक को स्वीकार नहीं करता था। कल बह कहता था, पदार्थ ठोस चीज है । आज वह कहता है ठोस जैसी कोई चीज हो नहीं है। जो भी है सब गैर-ठोस ( नानसॉलिड ) हो गया है सब। यह दीवाल भी जो हमें इतनी ठोस दिखायी पड़ रही है, वह ठोस नहीं है । यह भी पोरस ( छिद्रभय ) है । इसमें भी छेद है और चीजें इसमें आर-पार जा रही है। फिर भी हम कहेंगे कि छेदों के आसपास जिनके बीच छेद हैं वह तो कम-से-कम ठोस अणु होंगे। वह भी ठोस अणु नहीं है। एक-एक अणु भी पोरस है । अगर हम एक अणु को बड़ा कर सकें तो जमीन और चाँद और सूरज और तारे के बीच जितना फासला है उतना अणुओं के कणों के बीच फासला है। अगर उसको इतना बड़ा कर सकें तो फासला इतना ही हो जायगा ।
फिर वह जो फासले को भी जोड़ने वाले अणु हैं, हम कहेंगे कम-से-कम वह तो ठोस हैं। लेकिन विज्ञान कहता है कि वह भी ठोस नही है । वह सिर्फ विद्युत् कण हैं। कण भी अब विज्ञान मानने को राजी नहीं है। क्योंकि कण के साथ पदार्थ का पुराना ख्याल जुड़ा हुआ है। कण का मतलब होता है पदार्थ का टुकड़ा । वह कण भी नहीं है। क्योंकि कण तो एक जैसा रहता है । वह पूरे वक्त बदलते रहते हैं। वे लहर की तरह हैं, कण की तरह नहीं हैं। जैसे पानी में एक लहर उठी । जब तक आपने कहा लहर उठी तब तक वह कुछ और हो गयी। जब आपने कहा वह रही लहर तब तक वह कुछ और हो गयी। क्योकि लहर का मतलब यह है कि वह आ रही है, जा रही है। लेकिन अगर हम लहर भी कहें तो भी पानी की लहर एक भौतिक घटना है। इसलिए विज्ञान ने एक नया शब्द खोजा है जो कि अभी था ही नहीं, बाज से तीस साल पहले। वह है क्वान्टा । अभी हिन्दुस्तान में उसके लिए दूसरा शब्द खोजना मुश्किल है। इसलिए मुश्किल है जैसे हिन्दी के पास शब्द है ब्रह्म और इसे अंग्रेजी में कहना मुश्किल है। क्योंकि कभी जरूरत पड़ गयी थी कुछ अनुभव करनेवाले लोगों को तब यह शब्द खोज लिया गया। पश्चिम उस जगह नहीं पहुँचा है कभी, इसलिए इस शब्द की उन्हें कभी जरूरत नहीं पड़ी।
इसलिए धर्म की भाषा के बहुत से शब्द पश्चिम की भाषा में नहीं मिलेंगे । जैसे ओम् । उसका कोई अनुवाद दुनिया की किसी भाषा में नहीं हो सकता है। वह कभी किन्हीं आध्यात्मिक गहराइयों में अनुभव की गयी बात है। उसके लिए हमने एक शब्द खोज लिया था। लेकिन पश्चिम के पास उसके लिए कोई समानान्तर शब्द नहीं है कि उसका अनुवाद किया जा सके। ऐसे ही क्वान्टा पश्चिम के विज्ञान की बहुत ऊँचाई पर पाया गया शब्द है जिसके लिए दूसरी भाषा में कोई
आधुनिक विज्ञान की बुबकी-धर्म के असीम रहस्य-सागर में ४०३
शब्द नहीं है । क्वाटा का अगर हम मतलब समझना चाहें तो क्वांटा का मतलब होता है कण और तरंग एक साथ। इसको कन्सीव करना ( समझना ) मुश्किल हो जायगा। कोई चीज कण और तरंग एक साथ, कभी वह तरंग की तरह व्यवहार करता है और कभी कण की तरह व्यवहार करता है । और कोई भरोसा नहीं है उसका कि वह कैसा व्यवहार करे ।
४. पदार्थ के सूक्ष्मतम ऊर्जा कणों में चेतना के लक्षण
पदार्थ हमेशा भरोसे योग्य था । पदार्थ में एक निश्चितता ( सटॅन्टी ) थी लेकिन वह जो अणु ऊर्जा के आखिरी कण मिले हैं वे अनिश्चित ( अनमर्टेन ) के हैं। उनकी कोई निश्चयात्मकता नहीं है। उनके व्यवहार को पक्का तय नहीं किया जा सकता । इसलिए पहले विज्ञान बहुत सटॅन्टी ( निश्चयात्मकता ) पर खड़ा था। वह कहता था हर चीज निश्चित है। अब वैज्ञानिक उतने दावे से नहीं कह सकता कि हर चीज निश्चित है। क्योंकि वह जहाँ पहुँचा है वहाँ उसको पता चला है कि निश्चित होना बहुत ऊपर-ऊपर की बात है। भीतर बहुत गहरा अनिश्चय है । और एक बड़े मजे की बात है कि अनिश्चय का मतलब क्या होता है ?
जहाँ अनिश्चय है वहाँ चेतना होनी चाहिए नहीं तो प्रनिश्चय नहीं हो सकता। अनसटॅन्टी ( अनिश्चयात्मकता ) जो है वह कान्शसनेस ( चेतना ) का हिस्सा है । सटॅन्टी ( निश्चयात्मकता ) जो है वह मैटर ( पदार्थ ) का हिस्सा है। अगर हम इस कमरे में एक कुर्सी को छोड़ जायँ तो लौटने पर हमे वही मिलेगी जहाँ थी । लेकिन एक बच्चे को हम इस कमरे में छोड़ जायें तो वह वहाँ नहीं मिलेगा जहाँ था । उसके बाबत अनसटॅन्टी ( अनिश्चयात्मकता ) रहेगी कि अब वह कहाँ है और क्या कर रहा है। कुर्सी के बाबत हम सटॅन ( निश्चित ) हो सकते हैं कि वह वहीं है जहाँ थी । पदार्थ के बाबत निश्चित हुआ जा सकता है। चेतना के बाबत निश्चित नहीं हुआ जा सकता है। तो विज्ञान ने जिस दिन यह स्वीकार कर लिया कि अणु का जो आखिरी हिस्सा है उसके बाबत हम निश्चित नहीं हो सकते हैं कि वह कैसा व्यवहार करेगा, उसी दिन से विज्ञान के द्वारा पदार्थ के आखिरी हिस्से में चेतना की सम्भावना स्वीकृत हो गयी है ।
अनसर्टेन्टी ( अनिश्चितता ) चेतना का लक्षण है। जड़ पदार्थ अनिश्चित नहीं हो सकता। ऐसा नहीं है कि आग का मन हो तो जलाये और मन हो तो न जलाये। ऐसा नहीं है कि पानी की तबीयत हो तो नीचे बहे और तबीयत हो तो ऊपर बहे । ऐसा नहीं है कि पानी १०० डिग्री पर गर्म होना चाहिए तो १०० पर हो, ८० पर होना चाहे तो ८० पर हो । पदार्थ का व्यवहार सुनिश्चित है। लेकिन
जब हम इन सबके भीतर प्रवेश करते है तो वह जो आखिरी हिस्से मिलते हैं पदार्थ के वह अनिश्चित है।
इसे हम ऐसा भी समझ सकते है कि समझ ले कि बम्बई के बाबत अगर हम तय करना चाहें कि रोज कितने आदमी मरते है तो तय हो जायगा। करीबकरीत्र तय हो जायगा । अगर एक करोड़ आदमी है तो साल भर का हिसाब लगाने से हमको पता चल सकता है कि रोज कितने आदमी मरते हैं और वह भविष्यवाणी करीब-करीब सही होगी। थोड़ी बहुत भूल हो सकती है। अगर हम पूरे पचास करोड़ के मुल्क के बाबत विचार करे तो भूल और कम हो जायगी । सटॅन्टी ( निश्चितता ) और बढ़ जायेगी। अगर हम सारी दुनिया के बाबत तय करें तो सटॅन्टी और बढ़ जायेगी और हम तय कर सकते है कि इतने आदमी रोज मरते है। लेकिन अगर हम एक आदमी के बाबत तय करने जायें कि यह कब मरेगा तो सटॅन्टी बहुत कम हो जायेगी ।
जितनी भीड़ बढ़ती है उतना मैटेरियल ( भौतिक ) हो जाती है चीज । जितना इन्डीवीजुअल ( निजी ) होती है बात उतनी ही कान्शस ( संचेतन ) हो जाती है। असल में एक पदार्थ का टुकड़ा भीड़ है करोड़ो अणुओ की । इसीलिए उसके वाबत हम तय कर सकते हैं। अगर हम नीचे प्रवेश करते है और एक इलेक्ट्रान को पकड़ते हैं तो वह इण्डीविजुगल ( निजी ) है । उसके बाबत तय होना मुश्किल हो जाता है। उसका व्यवहार वह खुब ही तय करता है तो पूरे पत्थर के बाबत हम कह सकते हैं कि यह यहीं मिलेगा । लेकिन इस पत्थर के भीतर जो अणुओं का व्यक्तित्व था वह वही नहीं मिलेगा । जब हम लौटकर आयेंगे तब सब बदल चुका होगा । उसने सब जगह बदल ली होगी। वह यात्रा कर चुका होगा ।
पदार्थ की गहराई में उतरकर अनिश्चय शुरू हो गया । इसलिए अत्र विज्ञान सटॅन्टी ( निश्चितता ) की बात न करके प्रोबेबिलिटी ( सम्भावनात्मकता ) की वात करने लगा । वह कहता है 'इसकी' सम्भावना ज्यादा है बजाय 'उसके' । अब वह ऐसा नहीं कहता है कि 'ऐसा ही' होगा। बड़े मजे की बात है कि विज्ञान की तो सारी दावेदारी जो थी वह उसकी निश्चयात्मकता पर थी। वह जो भी कहता था तो निश्चित था कि ऐसा होगा और विज्ञान की जो गहरी खोज है उसने विज्ञान को उगमगा दिया है। और उसका कारण है। उसका कारण यह है कि विज्ञान फिजिकल ( भौतिक ) से इथरिक ( आकाशीय ) पर चला गया है जिसका वैज्ञानिकों को अन्दाज नहीं है। असल में वह इस भाषा को स्वीकार नहीं करते इसलिए तब तक उनको अन्दाज भी नही हो सकता कि फिजिकल ( भौतिक ) से हट कर इथरिक ( आकाशीय, भाव ) पर पहुँच गये हैं। वह पदार्थ में भी
प्राधुनिक विज्ञान की डुबकी-धर्म के असीम रहस्य-सागर में ४०५ दूसरे भाव-शरीर पर पहुँच गये हैं और दूसरे शरीर की अपनी सम्भावनाएं हैं। लेकिन पहला शरीर और दूसरे शरीर के बीच कोई खाली जगह नही है । ५. ईथर के कणों को तोड़ने पर एस्ट्रल कणों का पता चलेगा
तीसरा जो एस्ट्रल ( सूक्ष्म ) शरीर है वह और भी सूक्ष्म है । वह सूक्ष्म का भी सूक्ष्म है । वह ईयर के भी अगर हम अणु बना सकें, जो अभी बहुत मुश्किल है क्योंकि अभी अभी तो हम मुश्किल से फिजिक्स में परमाणु पर पहुँच पाये है, अभी हम पदार्थ के परमाणु जान पाये हैं। अभी ईथर के लिए बहुत वक्त लग सकता है। लेकिन जिस दिन हम ईथर के परमाणु जान सकेंगे उस दिन हमें पता चलेगा कि उनके भीतर के सूक्ष्म कण आगे वाले शरीर के कण सिद्ध होंगे, एस्ट्रल के । असल में फिजिकल एटम ( भौतिक कण ) को जब हमने तोड़ा तो उसके सूक्ष्मतम कम इमरिक सिद्ध हुए हैं, ईयर को हम तोड़ेंगे तो उसके सूक्ष्मतम-कण एस्ट्रल सिद्ध होंगे, सूक्ष्म सिद्ध होगे। तब उनके बीच एक जोड़ मिल जायगा । ये तीन शरीर तो बहुत स्पष्ट जुड़े हुए हैं इसलिए प्रेतात्माओं के चित्र लिये जा सके हैं ।
६. प्रेतात्मा का शरीर इथरिक व एस्ट्रल ऊर्जा का बना हुआ
प्रेतात्मा के पास भौतिक शरीर नहीं होता है । इथरिक बॉडी ( भावशरीर ) से शुरू होता है उसका परदा । प्रेतात्माओं के चित्र लिये जा सके हैं सिर्फ इसी वजह से कि ईथर भी अगर बहुत कण्डेन्स्ड हो जाय तो बहुत सेन्सीटिव फोटो प्लेट उसे पकड़ सकती है और ईथर के साथ एक सुविधा है कि वह इतनी सूक्ष्म है कि मनस से प्रभावित होगी। अगर एक प्रेत यह चाहे कि मैं यहाँ प्रकट हो जाऊँ तो वह अपनी इथरिक बॉडी को कण्डेन्स्ड ( सघन ) कर लेगा । वह अणु जो दूर-दूर है पास सरक आयेंगे और उसकी एक रूपरेखा बन जायेगी । उस रूपरेखा का चित्र लिया जा सका है, उस रूपरेखा का चित्र पकड़ा जा सका है ।
यह जो दूसरा हमारा ईयर ( आकाश ) का बना हुआ शरीर है यह हमारे भौतिक शरीर से कहीं ज्यादा मन से प्रभावित हो सकता है । भौतिक शरीर भी हमारे मन से प्रभावित होता है लेकिन उतना नहीं। जितना सूक्ष्म होगा उतना मन से प्रभावित होने लगेगा, उतने मन के करीब हो जायगा। एस्ट्रल ( सूक्ष्म ) शरीर तो और भी ज्यादा मन से प्रभावित होगा। इसलिए एस्ट्रल ट्रेवेलिंग ( सूक्ष्म शरीर की यात्रा ) सम्भव हो जाती है। एक आदमी इस कमरे में सोकर भी अपनी एस्ट्रल बॉडी ( सूक्ष्म शरीर ) से दुनिया के किसी भी हिस्से में हो सकता है । इसलिए यह कहानियाँ बहुत बार सुनी होंगी कि एक आदमी दो जगह दिखायी पड़ गया, तीन जगह दिखायी पड़ गया, इसमें कोई कठिनाई नहीं है। उसका भौतिक शरीर एक जगह होगा, उसका एस्ट्रल शरीर दूसरी जगह हो सकता है ।
इसमें अड़चन नहीं है। यह थोड़े से ही अभ्यास की बात है और आपका शरीर दूसरी जगह प्रकट हो सकता है।
जितना हम भीतर जाते हैं उतनी ही मन को शक्ति बढ़ती चली जाती है, जितना हो हम बाहर आते हैं उतनी ही मन की शक्ति कम होती चली जाती है। ऐसा ही जैसे हम एक दीया जलायें और उस दीये के ऊपर कांच का एक ढक्कन रख दें। अब दीया उतना तेजस्वी नहीं मालूम होगा। फिर एक दूसरा ढक्कन और रख दें। अब दीया और भी कम तेजस्वी मालूम होगा, अब उस पर हम एक ढक्कन और रख दें और हम सात ढक्कन रख दें, तो सातवें ढक्कन के बाद दीये की बहुत ही कम रोशनी बाहर पहुँच पायेगी। पहले ढक्कन के बाद ज्यादा पहुँचती थी, दूसरे के बाद उससे कम तीसरे पर और कम, सातवें पर बहुत धीमी और धूमिल हो जायेगी। क्योंकि सात पर्दो को पार करके आयेगी ।
७. भौतिक ऊर्जा का ही सूक्ष्मतम रूप मनोमय-ऊर्जा
तो हमारी जो जीवन ऊर्जा की शक्ति है वह शरीर तक आते-आते बहुत धूमिल हो जाती है। इसलिए शरीर पर हमारा उतना काबू नहीं मालूम होता है । लेकिन अगर कोई भीतर प्रवेश करना शुरू करे तो शरीर पर उसका काबू बढ़ता चला जायगा । जिस मात्रा में भीतर प्रवेश होगा उस मात्रा में शरीर पर भी काबू बढ़ता चला जायगा। भौतिक का सूक्ष्मतम शरीर है इथरिक, इथरिक का सूक्ष्मतम हिस्सा है एस्ट्रल । अब चौथा शरीर है मेण्टल ।
अब तक हम सबको यही ख्याल था कि माइण्ड ( मन ) कुछ और बात है तथा पदार्थ कुछ और बात है। माइण्ड और मैटर ( पदार्थ ) अलग बातें हैं । असल में परिभाषा करने का उपाय ही न था । अगर किसी से हम पूछें कि मैटर ( पदार्थ ) क्या है तो कहा जा सकता है कि जो माइण्ड ( मन ) नहीं है । और माइण्ड ( मन ) क्या है, तो कहा जा सकता है कि जो मैटर ( पदार्थ ) नहीं है । बाकी ओर कोई परिभाषा है भी नहीं । इसी तरह हम सोचते रहे हैं इन दोनों को अलग करके । लेकिन अब हम जानते हैं कि माइण्ड ( मन ) भी मैटर का ही सूक्ष्मतम हिस्सा है या इससे उल्टा भी हम कह सकते हैं कि जिसे हम मैटर ( पदार्थ ) कहते है वह माइण्ड ( मन ) का ही कण्डेन्स्ड, ( सघन ) हो गया हिस्सा है ।
८. अलग-अलग विचारों को अलग-अलग तरंग रचना
एस्ट्रल ( सूक्ष्म ऊर्जा ) के भी अगर अणु ( कण ) टूटेंगे तो वे माइण्ड के थाट-वेव्ज ( विचार तरंगे ) बन जायेंगे । अब क्वान्टा और थाट वेव्ज ( विचार तरंगों ) में बड़ी निकटता है। अब तक नहीं समझा जाता था कि विचार भी
कोई भौतिक अस्तित्व रखता है। लेकिन जब आप एक विचार करते हैं तब आपके आसपास की तरंगें बदल जाती हैं। यह बहुत मजे की बात है । न केवल विचार को, बल्कि एक-एक शब्द की भी अपनी तरंग-लम्बान ( देव लेंथ ) है । अगर आप एक कांच के ऊपर रेत के कण बिष्ठा दें और कांच के नीचे से जोर से कहें बोम् तो उस कांच के ऊपर रेत पर अलग तरह की वेन्ज ( तरंगे ) बन जायेंगी और आप कहें राम तो अलग तरह की वेव्ज ( तरंगें ) बनेंगी । और अगर आप एक भद्दी गाली दें तो एक अलग तरह की तरंगें ( वेन्ज ) बनेंगी। और आप एक बड़ी हैरानी की बात में पड़ जायेंगे कि जितना भद्दा शब्द होगा उतना ही कुरूप ऊपर तरंगें ( वेब्ज ) बनेंगी । और जितना सुन्दर शब्द होगा उतनी सुन्दर तरंगें ( वेन्ज ) होंगी, उतना पैटर्न ( रूप ) होगा उनमें । जितना भद्दा शब्द होगा उतना पैटर्न ( ढाँचा ) नहीं होगा, अनाफिक ( अस्त-व्यस्त ) होगा ।
इसलिए बहुत हजारों वर्ष तक शब्द के लिए बड़ी खोजबीन हुई कि कौन-सा शब्द सुन्दर तरंग पैदा करता है, कौन-सा शब्द कितना वजन रखता है दूसरे के हृदय तक चोट पहुँचाने मे । लेकिन शब्द तो प्रकट हो गया विचार है । अप्रकट शब्द भी अपनी ध्वनियाँ रखता है जिसको हम विचार कहते हैं। जब आप सोच रहे हैं कुछ, तब भी आपके चारों तरफ विशेष प्रकार की ध्वनियाँ फैलनी शुरू हो जाती हैं। विशेष प्रकार की तरंगें आपको घेर लेती हैं इसलिए बहुत बार आपको ऐसा लगता है कि किसी आदमी के पास जाकर आप अचानक उदास हो जाते हैं । अभी उसने कुछ कहा भी नहीं। हो सकता है वह ऐसे हँस ही रहा हो आपको मिलकर । लेकिन फिर भी कोई उदासी भीतर से आपको पकड़ लेती है। किसी आदमी के पास जाकर आप बहुत प्रफुल्लित हो जाते हैं। किसी कमरे में प्रवेश करते ही आपको लगता है कि आप भीतर कुछ बदल गये । कुछ पवित्रता पकड़ लेती है, अपवित्रता पकड़ लेती है। किसी क्षण में कहीं कोई शान्ति पकड़ लेती है और कहीं कोई अशान्ति छू लेती है जिसको आपको समझना मुश्किल हो जाता है कि मैं तो अभी अशान्त नही था, अचानक यह अशान्ति मन में क्यों उठ आयी ।
आपके चारों तरफ विचारों की तरंगें है और वे तरंगें २४ घण्टे आपमें प्रवेश कर रही है। अभी तो एक फ्रेंच वैज्ञानिक ने एक छोटा-सा यन्त्र बनाया है जो विचार की तरंगों को पकड़ने में सफल हुआ है। उस यन्त्र के पास जाते से ही वह बताना शुरू कर देता है कि यह भावनी किस तरह के विचार कर रहा है। उस पर तरंगें पकड़नी शुरू हो जाती हैं। अगर एक इटिएट ( मूर्ख ) को जड़ बुद्धि आदमी को ले जाया जाय तो उसमें बहुत कम तरह की तरंगें पकड़ती है। क्योंकि वह विचार ही नहीं कर रहा है। अगर एक बहुत प्रतिभाशाली आदमी को ले
जाया जाय तो वह पूरा का पूरा यन्त्र कम्पन्न लेने लगता है, उसमें इतनी तरंगें पकड़ने लगती हैं ।
तो जिसको हम मन कहते हैं वह एस्ट्रल ( सूक्ष्म ) का भी सूक्ष्म है । निरन्तर भीतर हम सूक्ष्म-से-सूक्ष्म होते चले जाते हैं। अभी विज्ञान इथरिक ( आकाशीय ) तक पहुँच पाया है। अभी भी उसने उसको इथरिक नहीं कहा है, उसको एटामिक कह रहा है, परमाणविक कह रहा है, ऊर्जा एनर्जी कह रहा है। लेकिन तत्व के दूसरे शरीर पर वह उतर गया है। तीसरे शरीर पर उतरने में बहुत देर नहीं लगेगी । वह तीसरे शरीर पर उतर जायगा । उतरने की जरूरतें पैदा हो गयी है ।
चौथे शरीर पर भी बहुत दूसरी दिशाओं से काम चल रहा है। क्योंकि मन को अलग ही समझा जाता था इसलिए कुछ वैज्ञानिक मन पर अलग से ही काम कर रहे हैं । वह शरीर से काम नहीं कर रहे हैं। उन्होंने चौथे शरीर के सम्बन्ध में बहुत सी बातों का अनुभव कर लिया है। अब जैसे हम सब एक अर्थ मे ट्रान्समीटर्स ( विचार-प्रेषण यन्त्र ) हैं और हमारे विचार हमारे चारों तरफ विकीर्ण रहे हैं। मैं धापसे जब नहीं भी बोल रहा हूँ तब भी मेरा विचार आप तक जा रहा है।
९. चौथे मनस शरीर को वैज्ञानिक सम्भावना- विचार सम्प्रेषण ( टेलिपंथी ) पर खोजें
इधर रूस में इस सम्बन्ध में काफी दूर तक काम हुआ है और एक वैज्ञानिक फयादेव ने एक हजार मील दूर तक विचार का सम्प्रेषण किया। वह मास्को मे बैठा है और एक हजार मील दूर दूसरे आदमी को विचार का सम्प्रेषण कर रहा है । ठीक वैसे ही जैसे रेडियो से ट्रान्समीशन ( सम्प्रेषण ) होता है। ऐसे ही अगर हम संकल्प पूर्वक एक दिशा में अपने चित को केन्द्रित करके किसी विचार को तीव्रता से सम्प्रेषित करें तो वह उस दिशा में पहुँच जाता है। अगर दूसरी तरफ भी माइण्ड रिसीव करने को, ग्राहक होने को तैयार हो उसी क्षण में, उसी दिशा में मन केन्द्रित हो, खुला हो और स्वीकार करने को राजी हो तो विचार सम्प्रेषित हो जाते हैं ।
१०. विचार सम्प्रेषण का एक घरेलू प्रयोग
इस पर कभी छोटा-मोटा प्रयोग आप घर में करके देखें तो अच्छा होगा । छोटे बच्चे जल्दी से पकड़ लेते हैं। क्योंकि अभी उनकी ग्राहकता तीव्र होती है । कमरा बन्द कर लें । एक छोटे बच्चे को कमरे को अन्धेरा करके दूसरे कोने पर बिठा दें। आप दूसरे कोने पर बैठ जायें और उस बच्चे से कहें कि पांच मिनट के लिए तू ध्यान मेरी तरफ रखना। मैं तुझसे चुपचाप कुछ कहूँगा उसे तू सुनने की
धाधुनिक विज्ञान की डुबकी-धर्म के असीम रहत्य-सागर में ४०९
कोशिश करना । अगर तुझे सुनायी पड़ जाय तो बोल देना। फिर आप एक शब्द पकड़ लें कोई भी, जैसे राम या गुलाब। और इस शब्द को उस बच्चे की तरफ ध्यान रखकर जोर से अपने भीतर गुंजाने लगें । बोलें नहीं । राम-राम ही गुंजाने लगें। दो तीन दिन में आप पायेंगे कि उस बच्चे ने आपके शब्द को पकड़ना शुरू कर दिया। तब इसका क्या मतलब हुआ। फिर इससे उल्टा भी हो सकता है। एक दफे ऐसा हो जाय तो आपको आसानी हो जायेगी । फिर आप बच्चे को बिठा सकते हैं और उससे कह सकते हैं कि वह एक शब्द सोचकर आपकी तरफ फेंके। लेकिन तब आप ग्राहक हो सकेंगे। क्योंकि आपका सन्देह ( डाउट ) गिर गया होगा । घटना घट सकती है तो फिर ग्राहकता बढ़ जाती है। ११. निर्जरा -कर्म-मल ( कर्माणुओं ) का झड़ जाना
आपके और आपके बच्चे के बीच तो भौतिक जगत फैला हुआ है। यह विचार किसी गहरे अर्थों में भौतिक ही होना चाहिए अन्यथा इस भौतिक माध्यम को पार न कर पायेंगे । यह जानकर आपको हैरानी होगी कि महाबीर ने कर्म तक को भौतिक ( फिजिकल, मैटेरियल ) कहा है। जब आप क्रोध करते हैं और किसी की हत्या कर देते हैं तो आपने एक कर्म किया क्रोध की और हत्या करने का । तो महाबीर कहते हैं यह भी सूक्ष्म अणुओं में आपमें चिपक जाता है, कर्म-मल बन जाता है। यह भी भौतिक ( मैटेरियल ) है । यह भी कोई अभौतिक ( इममैटिरियल ) चीज नहीं है। यह भी मैटर ( पदार्थ ) की तरह पकड़ लेता है आपको । और इसलिए महावीर निर्जरा कहते हैं इस कर्म मल से छुटकारा हो जाने को। यह सारा का सारा जो कर्म-अणु आपके चारों तरफ जुड़ गये हैं ये गिर जायें। जिस दिन ये गिर जायेंगे उस दिन आप शुद्धतम शेष रह जायेंगे। वह निर्जरा होगी। निर्जरा का मतलब है कर्म के अणुओं का झड़ जाना । जब आप क्रोध करते है तब आप एक कर्म कर रहे हैं। वह क्रोध भी आणविक होकर आपके साथ चलता है। इसलिए जब आपका यह शरीर गिर जाता है तब भी उसको गिरने की जरूरत नहीं होती है। वह दूसरे जन्म में भी आपके साथ खड़ा हो जाता है। क्योंकि वह अत्यन्त सूक्ष्म है।
तो मेण्टल बॉडी (मनस शरीर ) जो है वह एस्ट्रल बॉडी ( सूक्ष्म शरीर ) सूक्ष्मतम हिस्सा है। और इसलिए इन चारों में कहीं भी कोई खाली जगह नहीं है । ये सब एक दूसरे के सूक्ष्म होते गये हिस्से हैं । मेण्टल बॉडी पर काफी काम हुआ है । क्योकि अलग से मनस-शास्त्र उस पर काम कर रहा है । और विशेष कर पेरा साइकोलॉजी ( परा-मनोविज्ञान ) उस पर अलग से काम कर रही है । और मनस-ऊर्जा के अद्भुत नियम विज्ञान की पकड़ में आ गये हैं। धर्म के पकड़ में तो बहुत समय से थे, अब विज्ञान की पकड़ में भी बहुत सी बातें साफ हो गयी है ।
बिन बोधा तिन पाइ
१२. संकल्प का विचार तरंगों का प्रभाव पदार्थ पर भी
अब जैसे मांटकालो में ऐसे ढेर मादमी हैं जिनको जुए में हराना मुश्किल है। क्योंकि वह जो पौसा फेंकते हैं वह जो नम्बर फेंकना चाहते हैं, वही फेंक लेते हैं । उनके पाँसे बदल देने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। पहले तो समझा जाता था कि बे पाँसे कुछ चालबाजी से बनाये गये हैं कि ये पासे वहीं गिर जाते हैं जहाँ थे गिराना चाहते हैं। लेकिन हर तरह के पाँसे देकर थे जो नम्बर लाना चाहते हैं वही आँकड़ा ले जाते हैं। भांख बन्द करके भी ले आते हैं। तब बड़ी मुश्किल हो गयी । तब इसकी जांच-पड़ताल करनी जरूरी हो गयी कि बात क्या है। असल में उनका विचार का तीव्र संकल्प पाँसे को प्रभावित करता है। वह जो लाना चाहते हैं उसके तीव्र संकल्प की धारा से पाँसे को फेंकते हैं। विचार की वे तरंगें उन पौसों को उसी झांकड़े पर ले ग्राती । अब इसका मतलब क्या हुआा। अगर विचार की ये तरंगे एक पौस को बदलती हैं तो विचार की तरंगें भी भौतिक हैं नहीं तो पाँसे को नहीं बदल सकती ।
१३. विचार शक्ति की एक प्रयोगात्मक जाँच
आाप छोटा सा प्रयोग करें तो आपके ख्याल में भा जाय। चूंकि विज्ञान की बात भाप करते हैं इसलिए मैं प्रयोग की बात करता हूँ। एक गिलास में पानी भरकर रख लें भौर ग्लेसरीन या कोई भी चिकना पदार्थ उस ग्लास के पानी के ऊपर थोड़ा सा डाल दें जिससे कि उसकी एक पतली हल्की फिल्म पानी के ग्लास के ऊपर फैल जाय । एक छोटी प्रालपीन बिलकुल पतली जो फिल्म पर तैर सके, उसको उसके ऊपर छोड़ दें। फिर कमरे को सब तरफ से बन्द करके दोनों हाथों से जमीन पर टेक कर भाँखें उस छोटी सी भालपीन पर गड़ा लें । पाँच मिनट चुपचाप बैठे रहें भाँखें गड़ाये हुए। फिर उस झालपीन से कहें कि बायें घूम जाओ तो मालपीन बायें घूमेगी। फिर कहें दायें घूम जानो तो दायें घूमेगी । कहें कि रुक जामो, तो रुकेगी । कहें चलो, तो चलेगी। अगर आपका विचार एक भालपीन को बायें घुमा सकता है, दायें घुमा सकता है तो फिर एक पहाड़ को भी हिला सकता है। जरा लम्बी बात है बाकी फर्क नहीं रह गया, बुनियादी फर्क नही रह गया। प्रापकी सामर्थ्य अगर एक भालपीन को हिलाती है तो बुनियादी बात पूरी हो गयी है। अब यह दूसरी बात है कि पहाड़ बहुत बड़ा पड़ जाय और आप न हिला पायें लेकिन हिल सकता है पहाड़ ।
१४. वस्तुओं द्वारा विचार तरंगों का अपशोषण
हमारे विचार की तरंगें पदार्थ को छूती और रूपान्तरित करती हैं। ऐसे लोग हैं जिनको, अगर आपके हाथ का रूमाल दिया जा सके तो आपके व्यक्तित्व |
38535b564205bbb1e1297548b788f4e31d822af7 | web | एक मजबूत डॉलर मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से फायदेमंद है, लेकिन समान प्रतिस्पर्धा की स्थितियों में बेहद लाभहीन है। फिलहाल इसके बारे में बात करने की कोई आवश्यकता नहीं है, और इसलिए फेड, अमेरिकी विदेश विभाग के साथ मिलकर डॉलर की स्थानीय मजबूती को काफी शांति से महसूस करता है।
मौजूदा वित्तीय संकट के लिए, जो पहले से ही एक संकर युद्ध में विकसित हो चुका है, सभी के खिलाफ नहीं, डॉलर की मजबूती मुख्य कारकों में से एक है। रिजर्व में शामिल सभी विश्व मुद्राएं अब कमजोर हो रही हैं - डॉलर के मुकाबले पाउंड, यूरो और येन गिर गए हैं।
हालांकि, उन सभी ने स्पष्ट रूप से चीनी युआन का अनुसरण किया, जिसके लिए डॉलर की मजबूती हमेशा सबसे महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक लाभ रही है। पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने नियमित रूप से मजबूत इरादों वाले फैसलों से युआन का मूल्यह्रास किया, या तो विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों पर ध्यान नहीं दिया या फेड और आईएमएफ से प्रचार रोता है।
दरअसल, पाठ्यक्रमों पर इस तरह का खेल खुद युआन के लिए नहीं, बल्कि चीनी अर्थव्यवस्था के लिए एक फायदा है, लेकिन अब यह लगभग समाप्त हो गया है। एक उभरता हुआ चीन हर किसी के अपने प्रतिस्पर्धियों से बेहतर प्रदर्शन करने की समस्या का सामना कर रहा है - अपनी आबादी की बढ़ती समृद्धि के साथ।
एक ओर, यह कीन्स के अनुसार समान प्रभावी मांग की गारंटी देता है, और न केवल निर्यात से, बल्कि घरेलू बाजार में भी। दूसरी ओर, यह चीनी सामानों की कीमत में वृद्धि की ओर ले जाता है, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाती है।
पीआरसी के बाहर उत्पादन सुविधाओं का प्रतीत होता है कि लाभकारी हस्तांतरण, जहां श्रम बल सस्ता है, रूस और उसके पड़ोसियों से सस्ते कच्चे माल की कमी की भरपाई करने में मदद करता है, लेकिन यह लंबे समय तक नहीं रहेगा। और कुछ देशों की अर्थव्यवस्थाएं जो चीन से मजबूती से जुड़ी हुई हैं, बस खतरे में हैं।
सामान्य तौर पर, स्थिति विरोधाभासी है - दुनिया की प्रमुख आर्थिक ताकतें - संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन अपने पदों की रक्षा के लिए सर्वसम्मति से मुनाफे का त्याग कर रहे हैं। यह ताइवान के लिए भी एक गर्म युद्ध की ओर ले जाने की संभावना नहीं है, केवल इसलिए कि कच्चे माल वाले देशों को विशेष रूप से अपने लिए अनुकूलित करना अधिक महत्वपूर्ण है, रूस से शुरू होकर, और इसके समानांतर, यूरोपीय संघ।
यह हमेशा डॉलर की संपत्ति में छिपाने के लिए प्रथागत रहा है। हर कोई, ड्रग लॉर्ड्स के लिए। छोटी, मध्यम और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह बेहतर है कि वे संकट से सुरक्षित स्थान पर रहें। अमेरिकी ऋण प्रतिभूतियां, मुख्य रूप से कोषागार, पारंपरिक रूप से सबसे सुरक्षित आश्रय स्थल हैं।
रूसी वित्तीय जहाज, हालांकि, इस बंदरगाह में, ऐसा लगता है, बस जला दिया गया था। हालांकि, इससे डॉलर की मांग में गिरावट नहीं आई। लेकिन अभी के लिए, जैसे ही कुछ साफ होगा, मांग निश्चित रूप से गिर जाएगी। लेकिन अगर यह हमारे पक्ष में नहीं निकला। अगर हमारे देश में, मांग में उछाल आएगा, और डॉलर कहीं और मजबूत नहीं होगा।
यह अमेरिका और फेड के लिए इतना बुरा नहीं है, हालांकि कुल कर्ज मूल्य में आसमान छू जाएगा। लेकिन अमेरिकी जीडीपी की तुलना में, यह उतना बड़ा नहीं है जितना लगता है, और अर्थव्यवस्था को गर्म करके, इसके अलावा, उधार दरों में और वृद्धि के बिना, कुछ भी मुआवजा दिया जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में अर्थव्यवस्था को गर्म करने के लिए, यूक्रेन के साथ हमारी लड़ाई भी शुरू हो गई है, और दरें बढ़ाने के संसाधन स्पष्ट रूप से समाप्त हो रहे हैं।
एक मजबूत डॉलर अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए फायदेमंद है, अन्य सभी मामलों में यह अधिक हानिकारक है। लेकिन यह संयुक्त राज्य के भीतर पारंपरिक पूर्ण वित्तीय स्थिरता के अधीन है। अब वही फेड डॉलर की वृद्धि पर किसी भी तरह से प्रतिक्रिया नहीं कर सकता है।
तथ्य यह है कि केवल कुछ क्लस्टर अमेरिकी सामानों के लिए प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्रदान करते हैं, जैसे सिएटल अपने बोइंग के साथ, ऑटो उद्योग, जो खनन उद्योग के वर्तमान संयोजन पर वसा बढ़ रहा है, और वही कैलिफ़ोर्निया। और उनके लिए धन्यवाद, समग्र वित्तीय असंतुलन गैर-महत्वपूर्ण है।
जैसे ही अमेरिका ने दरें बढ़ाने की मंजूरी दी - चीन से पहले और यूरोपीय संघ से पहले अमेरिकी अर्थव्यवस्था में पैसा आया। दरों में बढ़ोतरी के रुकने के साथ, जो कि निकट ही है, पूंजी अमेरिका से फिर से बाहर निकल जाएगी। डॉलर कमजोर होगा, और अर्थव्यवस्था तुरंत लहरों के बीच के छेद का उपयोग करेगी।
विश्लेषकों ने बार-बार नोट किया है कि यूरो के उदाहरण पर डॉलर के साथ प्रतिस्पर्धा करने की कठिनाई का पता लगाना सबसे आसान है। यहां तक कि तथ्य यह है कि वित्तीय बाजारों पर अमेरिकी एकाधिकार के कारण एकल मुद्रा, एक डॉलर सरोगेट से ज्यादा कुछ नहीं है, इसे समय-समय पर अपने स्थान पर रखने की आवश्यकता को समाप्त नहीं किया है।
उल्लेखनीय है कि यूरो में सबसे ज्यादा गिरावट उस दौर में हुई जब डॉलर के बड़े पैमाने पर और यहां तक कि ठोस विरोध की हर जगह चर्चा हो रही थी। और यह केवल फेड की क्षमता को सटीक और अनावश्यक शोर के बिना अपनी सभी कठिनाइयों को दूसरे पर फेंकने की पुष्टि करता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका से यूक्रेन को वित्तीय सहायता की मात्रा की तुलना यूरोपीय लोगों के साथ नहीं की जा सकती है, लेकिन किसी कारण से यूरो का मूल्यह्रास हर चीज के लिए जिम्मेदार है। ऐसा प्रतीत होता है कि यूरोपीय संघ के देश अब उभरते प्रतिस्पर्धी लाभों से लाभान्वित हो सकते हैं। हालांकि, यह पता चला है कि यूरोपीय लोगों के पास प्रतिस्पर्धा करने के लिए कुछ भी नहीं है, और फिर प्रतिबंध और रूसी बाजार का वास्तविक बंद होना है।
अब जो कुछ भी हो रहा है वह इस तथ्य की ओर ले जाता है कि प्रतिबंधों का प्रभाव बंद हो गया है, कम से कम मनोवैज्ञानिक रूप से। ट्रस्ट के लिए सरोगेट के रूप में पैसे के बारे में थीसिस पूरी तरह से काम करती है, और यहां तक कि स्विफ्ट के बजाय अन्य भुगतान प्रणालियों का उपयोग भी एक बाधा नहीं बनता है। आखिर कोई भी डॉलर को मना नहीं करेगा।
इराक और लीबिया के खिलाफ प्रतिशोध, जिन्होंने डॉलर के खिलाफ विद्रोह किया, और व्यक्तिगत रूप से अपने नेताओं के साथ-साथ यूरो मुद्रा के वर्तमान प्रदर्शनकारी कोड़े को रूस के खिलाफ उसी हद तक लागू नहीं किया जा सकता है। लेकिन, जैसा कि हम देखते हैं, एक पूरी तरह से अलग चीज ने उसके खिलाफ काम किया - एक पड़ोसी ने विद्रोह कर दिया, लगभग रूसी कुलीन वर्गों के लिए एक तरह के औद्योगिक अपतटीय में बदल गया।
वर्षों बीत गए जब स्थिति धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से गर्म हो गई, और विस्फोट से लाभ बाद में और पूरी तरह से अलग तरीकों से लिया जाएगा। यहां तक कि वैश्विक वित्त में डॉलर के प्रभुत्व को नकारते हुए। एकाधिकार पूंजीवाद की मृत्यु है। भले ही डॉलर का एकाधिकार हो।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और राजनीतिक वैज्ञानिक, निकिता मास्लेनिकोव ने इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित किया कि जो लोग, ऐसा प्रतीत होता है, दूसरों की तुलना में डॉलर को "अपमानित" करने में अधिक रुचि रखते हैं, वे बिल्कुल भी शर्मिंदा नहीं हैं और अपने भंडार का शेर का हिस्सा रखते हैं। डॉलर।
समकालीन विकास संस्थान का यह विशेषज्ञ, जो वास्तव में काफी उदार है, और इसलिए डॉलर के प्रभुत्व के खिलाफ कुछ भी नहीं है, न केवल रूस, चीन, ईरान और, एक खिंचाव के साथ, भारत, बल्कि वित्तीय संस्थानों के एक पूरे समूह को भी मानता है। ब्रिटेन और यूरोपीय संघ सहित। और वह गेहूँ को भूसी से अलग करने का सुझाव देता हैः
"आज, बहुत से लोग डॉलर के दबाव से बाहर निकलना चाहते हैं, और वे ही हैं जो इसके आसन्न पतन के बारे में बयान देते हैं। लेकिन एक इच्छा है और एक संभावना भी है। और उपलब्धि कम से कम डॉलर के पूर्ण आधिपत्य से छुटकारा पाने की होगी।
विशुद्ध रूप से सैद्धांतिक रूप से, पूर्वानुमान है कि "थोड़ा अधिक" और अमेरिकी राष्ट्रीय ऋण डॉलर को उलट देगा, एक आधार है। जल्दी या बाद में यह होगा यदि कोई प्रतिवाद नहीं किया जाता है, जैसा कि अभी है। हालाँकि, आपको यह समझने की आवश्यकता है कि वर्तमान समय में डॉलर अभी भी नंबर 1 आरक्षित मुद्रा है।
और वही चीनियों से पूछा जाना चाहिए कि वे लगभग तीन ट्रिलियन डॉलर रिजर्व के रूप में क्यों रखते हैं? अगर उन्हें डॉलर पर भरोसा नहीं है, तो उन्हें अमेरिकी सरकार के बॉन्ड बेचने चाहिए। "
विशुद्ध रूप से सैद्धांतिक रूप से, पूर्वानुमान है कि "थोड़ा अधिक" और अमेरिकी राष्ट्रीय ऋण डॉलर को उलट देगा, एक आधार है। जल्दी या बाद में यह होगा यदि कोई प्रतिवाद नहीं किया जाता है, जैसा कि अभी है। हालाँकि, आपको यह समझने की आवश्यकता है कि वर्तमान समय में डॉलर अभी भी नंबर 1 आरक्षित मुद्रा है।
और वही चीनियों से पूछा जाना चाहिए कि वे लगभग तीन ट्रिलियन डॉलर रिजर्व के रूप में क्यों रखते हैं? अगर उन्हें डॉलर पर भरोसा नहीं है, तो उन्हें अमेरिकी सरकार के बॉन्ड बेचने चाहिए। "
इसके बजाय पी. एस. फरवरी 2022 से, अंतरराष्ट्रीय भुगतान, वित्तीय और व्यापार निपटान में डॉलर की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से अधिक हो गई है। यूरो और अन्य आरक्षित मुद्राएं केवल 30 प्रतिशत से अधिक हैं। नतीजतन, डॉलर अन्य बातों के अलावा, तेल और गैस की कीमतों का निर्धारण, मूल्य का एक उपाय बना हुआ है।
|
86373da3bbba273a0e0c59b0287244e167abc3ad | web | बनारस का एक छोटा सा गांव है ढखवां। शहर से करीब 25 किमी दूर। निषाद समुदाय की बस्ती। यहीं रहती हैं 45 वर्षीय तारा देवी। इनके घर पर भाजपा का झंडा अब भी लहरा रहा है। यह झंडा भी इस बात की तस्दीक कर रहा है कि समूचा परिवार भाजपाई है। तारा के कच्चे मकान के आगे दो बोरे में रखे उपलों को देखकर हमने सवाल किया, "रसोई गैस नहीं है क्या?" इस सवाल पर तारा देवी थोड़ी ठिठकीं। कहा, "हुजूर, महंगाई बहुत है। जब सब्जी के लिए तेल ही नहीं है तो रसोई गैस के लिए हजार रुपये कहां से लाएंगे? कहीं काम भी नहीं मिल रहा है। पाई-पाई के लिए मोहताज हैं।" महंगाई है, बेरोजगारी है और जिंदगी भी कठिन है। फिर वोट किसे दिया? तारा का जवाब था, "मोदी को...भाजपा को...।"
तारा को महंगाई की चिंता साल रही है तो बेरोजगारी का दर्द भी सता रहा है। वह कहती हैं, "सिर्फ मुफ्त में मिलने वाले सरकारी नमक का हक अदा करने के लिए हमने भाजपा को वोट दिया है। सरकार हमें मुफ्त में चावल-दाल और तेल के साथ नमक भी दे रही है। भाजपा को वोट नहीं देते तो नमकहराम ही तो कहे जाते...।हमारी बिरादरी पहले से ही भाजपा के साथ थी। समूची निषाद बस्ती ने कमल की बटन दबाई, फिर हम दूसरों को वोट कैसे देते?"
ढखवां गांव के बीचो-बीच तारा का आधा मकान कच्चा है, आधा पक्का। कई बरस पहले इंदिरा आवास योजना के तहत इन्हें एक छोटा सा कमरा मिला था। दशकों बीत गए, पर उसपर सीमेंट-बालू का पलस्तर नहीं चढ़ सका। तारा बताती हैं, "चुनाव में कोई नेता हमारा दुखड़ा सुनने नहीं आया। निषाद बिरादरी के कुछ लोग भाजपा के लिए वोट मांगने जरूर आए। नए और पक्के मकान का भरोसा दे गए हैं। देखिए कब बनता है?"
तारा के पास खड़ीं उनकी देवरनी माधुरी देवी भी यही बात दुहराती हैं। वह कहती हैं, " हमारी बेटी विकलांग हैं। दुश्वारियां ज्यादा हैं। हमें सरकार से नहीं प्रधान से ज्यादा शिकायत है। हम जानते हैं कि पांच किलो राशन से जिंदगी नहीं चलेगी। हमारी असल समस्या नाली की है। चुनाव लड़ने वाले जीतकर चले गए। अब भला हमें कौन पूछेगा? नमक का हक अदा करने के लिए सभी ने भाजपा को वोट दिया तो हमने भी कमल का बटन दबाया।"
दरअसल बनारस शहर से करीब 25 किमी दूर है ढखवां बस्ती। गंगा के किनारे बसी इस बस्ती को डाल्फिन मछलियों की वजह से भी जाना जाता है। यूपी सरकार इस गांव को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित कर रही है। यहां गंगा के किनारे मंदिरों की श्रृंखला है और उसके ठीक नीचे गंगा, जिसकी मझधार में डाल्फिन मछलिया हर वक्त करतब दिखलाती रहती हैं। निषाद बस्ती के लोग पर्यटकों को नौका विहार कराते हुए डाल्फिन मछलियों का करतब दिखाया करते हैं। नौकायन ही इस बस्ती के तमाम युवकों की आजाविका का साधन है। ढखवां बस्ती के लोगों की जिंदगी में अनगिनत मुश्किलें हैं, लेकिन नमक का कर्ज उतारने के लिए सत्तारूढ़ दल को वोट देने में इन्हें तनिक भी एतराज नहीं है।
ढखवां की कांति देवी को इस बात ज्यादा चिंता है कि गंगा कटान के चलते उनका घर नदी में समा जाने की कगार पर पहुंच गया है। कांति कहती हैं, "नाला बन जाता तो हमारा घर बच जाता। चुनाव बीत गया और अब हम किसे खोजेंगे? गद्दी पर बैठने के बाद भला कौन आता है। महंगाई चपी हुई है। 12 किलो सरकारी राशन मिलता है, जिसमें से दो किलो कोटे वाला काट लेता है। आखिर कहां लगाएं गुहार और किससे करें फरियाद। हमने नमक का कर्ज अदा किया है तो मोदी को भी हमारी चिंता होनी ही चाहिए।"
ढखवां के पास है चंद्रावती गांव। वाराणसी-गाजीपुर हाईवे पर स्थित इस गांव के ज्यादतर मकानों पर भाजपा के झंडे अभी तक लहरा रहे हैं। यहां मिले विजय कुमार मौर्य। ये कृषक सेवा केंद्र चलाते हैं। इनका समूचा परिवार भाजपाई है, लेकिन इन्हें मोदी-योगी की रीति-नीति पसंद नहीं है। विजय कहते हैं, "हमें समझ में नहीं आ रहा है कि लोग भाजपा के पीछे क्यों भाग रहे हैं? मुफ्त का राशन लोगों को काहिल बना रहा है। यही राशन जब गुलाम बना देगा तब क्या होगा? डबल इंजन की सरकार अगर सचमुच गरीबों का हित चाहती है तो मुफ्त की रोटी नहीं, रोजगार दे। हर आदमी को काम दे, तभी अच्छा समाज बनेगा। महंगाई आसमान छू रही है। समूचे बनारस में साड़ों का जखेड़ा घूम रहा है। फिर भी झूठा दावा किया जा रहा है कि किसानों की आदमनी दोगुनी होगी। मुफ्त का राशन और नमक देकर गरीबों को भरमाया जा रहा है। किसानों, मजदूरों और गरीबों का भ्रम टूटेगा तो तब क्या होगा?"
दरअसल, विजय कुमार मौर्य शिक्षित हैं और सपन्न भी। वह कहते हैं, "मतगणना से पहले तक हमें यकीन नहीं था कि अबकी भाजपा फिर सत्ता में आएगी। हमारी बस्ती में साइकिल को वोट भी पड़े, पर समझ में नहीं आया कि भाजपा कैसे चुनाव जीत गई? बड़ी संख्या में लोगों ने चुपके से भाजपा को वोट दे दिया। हमें भी यही लगता है कि भाजपा के नमक बांटने की युक्ति सबसे ज्यादा कारगर साबित हुई।"
चंद्रावती में कृषक सेवा केंद्र पर यूरिया उर्वरक खरीदने पहुंचे थे उगापुर के लालजी यादव। लालजी पहड़िया मंडी में पल्लेदारी का काम करते हैं। इन्हें लगता है कि भाजपा ईमानदारी से चुनाव नहीं जीती है। चुनाव में गड़बड़झाला हुआ है। वह सवाल करते हैं कि नमक खिलाकर कोई उसका हक अदा करने की बात भला कौन करता है? लालजी कहते हैं, "चुनाव से पहले बनारस से लगायत कैथी तक सड़क के किनारे आवारा पशुओं का जखेड़ा घूमा करता था। इलेक्शन में सांड जब मुद्दा बनने लगे तो वो अचानक गायब कैसे हो गए? गांवों में बने ज्यादातर गो-आश्रय स्थल भी खाली हैं। गौर करने वाली बात यह है कि किसानों के लिए दिन-रात जी का जंजाल बने ये सांड़ आखिर लापता कैसे हो गए?"
लालजी से सवालों का जवाब नियार गांव के बेचन सिंह देते हैं। वह बताते हैं, "पूर्वांचल जब इलेक्शन में आया तो शासन के निर्देश पर पशुपालन विभाग ने विकास भवन में छुट्टा पशुओं के बाबत नियंत्रण कक्ष खोल दिया। वहां ढेरों शिकायतें पहुंचीं तो छुट्टा पशुओं की धर-पकड़ का अभियान चला। पकड़े गए आवारा पशु कहां रखे गए हैं, यह तो नहीं मालूम, लेकिन उनके आतंक से छोड़ी राहत जरूर मिली है?"
कैथी गांव में उगापुर के 34 वर्षीय राज कुमार गोंड एक किसान के यहां काम में जुटे थे। इनके पांच बच्चे हैं। वो बताते हैं, "पूर्वांचल में गोंड समाज की आबादी काफी कम है। सपा ने हमारी बिरादरी को कभी अहमियत नहीं दी। चुनाव के समय भी और चुनाव से पहले भी। इसका मतलब यह नहीं है कि हम कई पीढ़ियों तक सामंतों की गुलामी करते रहें। भाजपा सरकार आई तो हमें आवास मिला और राशन भी। बाबा के बुल्डोजर की सुरक्षा भी मिली। हमारी बिरादरी तो पहले से ही ऐसी है कि जिसका नमक खाती है, उसका हक भी अदा करती है। धरसौना, चोलापुर, दानगंज, हाजीपुर, दमड़ीपुर, रौना गोड़ बिरादरी बहुतायत है और चलकर पूछ लीजिए, हमने मोदी के नमक का हक अदा किया है या नहीं? गोंड समाज ने तो थोक में भाजपा को वोट डाला। सपा तो सिर्फ हवा में ही चुनाव लड़ रही थी, जो हार गई।"
कैथी पुल के पास फूलों की माला बेचने वाले छित्तनपुर के 48 वर्षीय बरसाती सोनकर को लगता है कि सपा ने ज्यादातर अयोग्य और नाकारा प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया। खासतौर पर उन्हें जिनके पांव जमीन पर कभी दिखे ही नहीं। सपा प्रत्याशी सुनील सोनकर कभी वोट मांगने आए ही नहीं तो फिर उन्हें वोट क्यों दे देते। इन्हीं के पास फूलों की माला बेचने वाले सोनू सोनकर भाजपा सरकार के कामकाज पर सवाल खड़ा करते मिले। वह कहते हैं, "पूर्वांचल में मुफ्त के राशन और नमक पर लोग फिदा है। लोगों को यह पता नहीं कि सरकार एक ओर देती है तो दूसरी तरफ से वह पैसा गरीबों की जेब से ही खींच लेती है। चाहे खाने-पीने का सामान महंगा करके या फिर डीजल-पेट्रोल का दाम बढ़ाकर। मीडिया भी निष्पक्ष नहीं। वो भी भाजपा सरकार की भाषा ही बोलती है। किस पर यकीन करें और किसपर नहीं? हम तो दिन भर फूलों की माला बेचते हैं, तब मुश्किल से कमा पाते हैं दो-ढाई सौ रुपये।"
बनारस के जाने-माने समाजसेवी बल्लभ पांडेय के घर मिले बलिया के रेवती निवासी विजय कुमार पांडेय। इन्होंने कुछ ही देर में चुनावी नक्शा खींच दिया। साफ-साफ कहा, "इलेक्शन जीतना भी एक ट्रिक है। हमें लगता है कि भाजपा के नमक का ट्रिक सबसे असरदार रही। हालांकि सियासी निजाम को देखेंगे तो पाएंगे कि यूपी में हर आठवां विधायक ब्राह्मण है। कम आबादी के बावजूद 403 सीटों में 52 ब्राह्मण और 46 ठाकुर विधायक बने। कुर्मी समाज के लोग गोलबंद हुए तो इस बिरादरी के 41 विधायक चुनाव जीत गए, जबकि इनसे ज्यादा आबादी होने के बावजूद यादव बिरादरी के सिर्फ 27 विधायक चुने गए। यूपी में 34 मुसलमान, 29 जाटव-पासी जीते। वैश्य समुदाय के 22, लोध 18, जाट 15, मौर्य-कुशवाहा 14 निषाद, कश्यप, बिंद मल्लाह सात, तेली, कलवार, सोनार जातियों के छह, गुर्जर सात, भूमिहार पांच, राजभर चार, खटिक पांच, कायस्थ तीन के अलावा सिख व वाल्मीकि समुदाय के लोग एक-एक सीट पर काबिज हुए हैं। वैश्य, ब्राह्मण, राजपूतों के अलावा ज्यादातर गैर-यादव पिछड़ों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया, जिससे भाजपा का मतदान 43 फीसदी तक पहुंच गया।"
विजय कुमार पांडेय कहते हैं, "आवास और राशन के साथ बांटे जाने वाले नमक ने इस चुनाव में अहम भूमिका अदा की। खासतौर पर महिलाओं ने नमक का हक अदा किया। अति-पिछड़ी जातियां इसलिए भाजपा के पक्ष में लामबंद हुई क्योंकि उसने लगातार पांच साल तक दलितों और पिछड़ों के घरों में पहुंचकर हिन्दुत्व और देशभक्ति की अलख जगाई। कोई ऐसी बिरादरी नहीं थी, जिनके बीच भाजपा और उनके अनुषांगिक संगठन आरएसएस व विहिप के लोग न गए हों। सपा नेता तो तब दिखे जब इलेक्शन नजदीक आया। पता ही नहीं चला कि वो साढ़े चार साल कहां गायब थे? सपा के खाते में जितनी भी सीटें आईं वो किसान आंदोलन की बदौलत आईं। योगी के बुल्डोजर पर ज्यादा लोग रीझे। सपा ने टिकट भी बांटा तो ऐसे जैसे कोटे की दुकान में गेहूं-चीनी बिकती है। सपा के जो नेता टिकट के लिए महीनों से मुंह बाए खड़े थे, वो निराश लौटे तो भी उनका गुस्सा ठंडा नहीं हुआ। सपा की अंतर्कलह उसके प्रत्याशियों की नाव डुबोता चला गया। हमें लगता है कि अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव से सिर्फ राजनीतिक दांव-पेंच ही नहीं एक बुरी आदत भी सीखी है। उनके इर्द-गिर्द अब चाटुकारों की एक बड़ी फौज रहती है, जिसके चलते साइकिल का पहिया पंचर होता जा रहा है। अखिलेश को अगर सचमुच लंबी रेस का घोड़ा बनना है तो चाटुकारों से उन्हें थोड़ी दूरी बनानी होगी।"
कारवां मैग्जीन में डाइवर्सिटी रिपोर्टिंग फेलो सुनील कश्यप पूर्वांचल समेत समूचे उत्तर प्रदेश में खासतौर पर उन जातियों पर काम करते हैं जो समाज के आखिरी पायदान पर खड़ी हैं। वह कहते हैं, "गरीब तबके के लोगों में नमक ने ज्यादा काम किया। समाज में अभी भोले-भाले लोग ज्यादा हैं। लोग मानते हैं कि जिसका नमक खा लिया है तो उसे अदा करना है। जहां नेता वादे करके तोड़ते हैं, लेकिन गरीब तबका नमक की अदायगी में भी वफादारी दिखाता है। इस चुनाव में नमक की अदायगी का फैक्टर बहुत बड़ा था। चुनाव के समय मैं बनारस में था और एक रिक्शावाले से सवाल किया कि वो वोट किसे देगा? तो उसने तपाक से जवाब दिया कि जिसका नमक खा रहे हैं, उसकी अदायगी तो करनी ही होगी। इलेक्शन से पहले ही यह बात साफ हो गई थी कि नमक की बात बहुत अंदर तक पहुंच चुकी थी।"
ये भी देखेंः यूपी में हिन्दुत्व की जीत नहीं, ये नाकारा विपक्ष की हार है!
"कास्ट फैक्टर को लेकर जो काम कांशीराम ने किया, भाजपा ने उससे एक कदम आगे बढ़कर गरीब जातियों के उत्थान के लिए काम किया। सरकार ने माटी कला बोर्ड बनाकर कुम्हारों के बीच काम किया तो भेड़ कला बोर्ड बनाकर गड़ेरिय़ों को अपने साथ जोड़ा। इसी तरह नाइयों के लिए केश कला बोर्ड बनाया तो लोहार समुदाय के लिए विश्वकर्मा कला बोर्ड। निषादों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड दिया। अपनी पहचान के साथ ये जातियां जल्दी खड़े हो गईं। साल 2014 के बाद भाजपा के साथ ये जातियां जुड़ीं तो फिर बाद में हटी नहीं। इन जातियों में असुरक्षा का डर ज्यादा समाया रहता है। इनके लिए सामाजिक सुरक्षा एक बड़ा सवाल था, जिसके चलते गरीब तबके के लोगों ने योगी के बुल्डोजर पर ज्यादा भरोसा किया। हिंदू वर्ण व्यवस्था में निचले पायदान में होने के बावजूद, भाजपा के प्रति गैर-यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों का आकर्षण पहचान की राजनीति के फॉल्ट लाइन की ओर इशारा करता है।"
सुनील यह भी कहते हैं, "सामाजिक तौर पर जो जातियां सबसे निचले पायदान पर हैं उनके लिए अनाज और सुरक्षा सबसे बड़ी चीज है। खासतौर पर उन लोगों के लिए जिनके पास खेती-किसानी नहीं है। साल 1990 के बाद लोहार, बढ़ई, कुम्हार समुदाय को जजमानी के तौर पर हर साल मिलने वाला अनाज बंद हो गया था। गांवों में काम करने वाले शिल्पकारों को किसान पहले एक बार अनाज देते थे, जिससे उनकी आजीविका चला करती थी। कोरोना के संकटकाल में जब उनके सामने भोजन का संकट पैदा हुआ तो मुफ्त का अनाज ही जिंदा रहने का सबसे बड़ा जरिया बना। यह आरोप गलत है कि गरीब तबके के लोग पांच किलो अनाज पर बिक गए। सच यह है कि खाना हर किसी के लिए बेहद जरूरी है। दूसरी बात, यूपी में ऐसी तमाम जातियां हैं जिनकी आबादी अंगुलियों पर गिनी जा सकती है। इन्हें न गांवों में सम्मान मिलता है और न ही ये ग्राम प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य और ब्लाक प्रमुख बन पाते हैं। दूसरे समुदायों के मुकाबले ये पढ़ाई-लिखाई में भी बहुत पीछे हैं। ऐसे में इनके लिए पांच किलो राशन के साथ नमक की प्रतिबद्धता बड़ी चीज है।"
पत्रकार सुनील कश्यप बताते है कि उन्होंने यूपी चुनाव से पहले उस फॉल्ट लाइन को समझने की कोशिश की तो पता चला कि भाजपा ने गैर-यादव ओबीसी जातियों को ज्यादा अहमियत दी। खासतौर पर वो जातियां दो पीढ़ियों से दस्तकारी किया करती थीं। यूपी में इन जातियों में राजनीतिक और सामाजिक चेतना कांशीराम ने पैदा की तो उन्होंने भी अपने नायकों की तलाश शुरू कर दी। यादवों ने भगवान कृष्ण में अपने नायक को पाया तो कुर्मियों ने (जो अपने नाम के साथ पटेल, गंगवार, सचान, कटियार, निरंजन, कनौजिया आदि लगाते हैं) 17वीं शताब्दी के मराठा राजा शिवाजी और शाहुजी महाराज को अपना नायक माना। इसी तरह देश के पहले गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल के साथ कांग्रेस पार्टी की एक काल्पनिक नाइंसाफी की कहानी पटेल समाज को बीजेपी से जोड़ती है।"
"मल्लाह जाति ने भी रामायण की कथा में राम को सरयू पार कराने वाले केवट में अपना नायक खोज लिया। ओबीसी मौर्य-कुशवाहा, शाक्य-सैनी ने पौराणिक पात्रों में नहीं, बल्कि ऐतिहासिक पात्रों में अपने-अपने नायक खोजे। इन्होंने अपनी पहचान पहले बुद्ध, चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक से मिलाई और फिर अपनी परंपरा के तार 19वीं शताब्दी के सामज सुधारक ज्योति राव फुले से जोड़ा। बुद्ध को अपना आदर्श मानने वाले मौर्य-कुशवाहा को बसपा के आंदोलन ने सामाजिक क्षितिज पर पहचान दिलाई। साल 2012 में इन्होंने समाजवादी पार्टी का साथ दिया। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में केशव प्रसाद मौर्य की मजबूत साख के चलते भाजपा को वोट दिया। गैर-यादव ओबीसी में कुर्मी और लोध पहले से ही भाजपा के साथ थे। गैर-यादव ओबीसी जातियों में मौर्य-कुशवाहा आरएसएस व बाह्मणों के सबसे प्रबल विरोधी हैं, लेकिन राजनीतिक भागेदारी की चाहत ने इन्हें साल 2017, 2019 और अब 2022 में भाजपा और आरएसएस के करीब ला दिया।"
सुनील के मुताबिक, "भाजपा ने कश्यप, निषाद, गडेरिया, राजभर, चौहान और जायसवाल जैसी जातियों को रामायण और अन्य हिंदू कथाओं की छद्म परंपराओं के साथ गूंथ कर एक ऐसी माला तैयार की है जो सामाजिक न्याय की उसी मांग को ध्वस्त कर देती है जिसका पहला ही लक्ष्य ब्राह्मणवादी ऊंच-नीच से मुक्त होकर बराबरी वाले समाज का निर्माण करना है। गडेरिया जातियों को लुभाने के लिए भाजपा ने इस समाज की कुलदेवी महारानी अहिल्याबाई होलकर की प्रतिमा को काशी विश्वनाथ धाम में जगह देकर इस समाज के लोगों का दिल जीतने का काम किया है। अब से पहले तक कोई भी राजनीतिक दल गडेरिया समाज को यह प्रतिष्ठा और सम्मान नहीं देता था। गडेरिया समाज आमतौर पर पाल, बघेल, धनगर उपनामों से जाना जाता है। इसी तरह चौहानों को पाले में करने के लिए बीजेपी ने ऐतिहासिक नायक पृथ्वीराज चौहान का दामन थामा। 12वीं शताब्दी के अफगान शासक मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के राजनीतिक संघर्ष की ऐतिहासिक और लोक गाथाओं को भाजपा ने यूपी के चौहानों को अपने हिंदुत्व के उद्देश्यों के साथ जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया। यूपी में एक अन्य ओबीसी जाति है कहार, धीवर, कश्यप। खांडसारी का कारोबार करने वाली ये जातिया हमेशा से उपेक्षित रही हैं। माना जाता है कि कश्यप समाज की जातियों का रुख जिस भी पार्टी की तरफ हुआ है वह पार्टी सत्ता में जरूर पहुंची है। इस बार के यूपी चुनाव में 17 वो जातियां निर्णायक साबित हुईं, जिन्हें अनुसूचित जाति में शामिल करने के मामले में अदलती रोक लगा दी गई है।"
पिछड़ों में राजभर समाज सियासी तौर अब उठ खड़ा हुआ है। भाजपा ने महाराजा सुहेलदेव राजभर के नाम पर ट्रेन चलाई और डाक टिकट जारी किया। साथ ही बहराइच में सुहेलदेव राजभर की युद्धस्थली में सुहेलदेव का मंदिर और कुठला झील को इस योद्धा के शौर्य और पराक्रम की स्मृतियों के तौर पर संजोने का कार्य शुरू किया। भाजपा ने निषाद, प्रजापति और जायसवाल जैसी गैर-ओबीसी जातियों को भी सामाजिक और राजनीतिक प्रतिनिधित्व देकर वृहद ओबीसी एकता से दूर रखा, जो इस चुनाव में उसके लिए संजीवनी साबित हुई। हालांकि गैर-यादव अन्य पिछड़ा जातियों में सिर्फ जायसवाल ऐसी जाति है जिसके साथ बीजेपी का संबंध ज्यादा पुराना है। इस ओबीसी जाति के साहू, गुप्ता, तेली, हलवाई, कलवार, कलार और अन्य का सभी शहरों की व्यापार मंडलियों पर कब्जा है। नोटबंदी और बाद में जीएसटी से इस तबके को सर्वाधिक नुकसान हुआ, फिर भी भाजपा से इनका मोहभंग नहीं हुआ।
बनारस के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, "सपा सुप्रीमो अपने चुनावी रथ पर सावर होकर समूची यूपी नाप आए, लेकिन उनकी भीड़ से निकला संदेश गांवों और समाज के आखिरी आदमी तक नहीं पहुंच सका। 111 सीटें लेकर सपा गुमान कर सकती है, लेकिन यह नतीजा भविष्य के लिए सुखद नहीं है। अखिलेश के साथ अब न मीडिया है और न ही मुलायम सिंह यादव के जमाने वाले अलग-अलग जाति समूहों के कद्दावर नेता। अखिलेश के साथ अब बेनी प्रसाद वर्मा, जनेश्वर मिश्र, बृजभूषण तिवारी, मोहन सिंह, भगवती सिंह, सलीम इकबाल शेरवानी हैं, न आजम खां। इनकी सेल्फ सेंटर्ड राजनीति ने सपा का दिवाला पीटकर रख दिया, क्योंकि वह वह अपने आगे किसी को खड़ा नहीं होने देना चाहते।"
"भाजपा ने मुफ्त राशन, कोरोना वैक्सीन, नमक, तेल, पैसा के अलावा छुट्टा पशुओं को पकड़वाने का अभियान चलावाकर वोटरों की नाराजगी दूर करने की कोशिश की, जबकि अखिलेश इस 'ग़ुस्से' को और भड़काने तथा चुनावी हवा का रुख अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब नहीं हो सके। कोरोना के संकटकाल में अखिलेश लोगों के बीच होते और उनके आंसुओं को पोछा होता तो जनता में यह भरोसा जरूर पैदा होता। अखिलेश बहुत देर से चुनावी मैदान में कूदे। इससे पहले मुफ्त राशन के साथ नमक का हक अदा करने की बात हर गरीब की झोपड़ी तक पहुंच गई थी। सपा का बेहद लचर और कमजोर संगठन भाजपा की नमक वाली मुहिम को बेअसर करने में नाकाम साबित हुआ।"
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।
|
e9fe22f3f5f2ba03b1e3933005adf56096659a40 | web | जम्मू एवं कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा के जरिये भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश कर रहे चार आतंकवादियों को सेना ने मार गिराया। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल राजेश कालिया ने बताया, "सेना ने रविवार शाम केरन सेक्टर में नियंत्रण रेखा के जरिये घुसपैठ की कोशिश कर रहे आतंकवादियों को मार गिराया।" उन्होंने बताया, "इलाके में खोज अभियान अभी जारी है।" जम्मू-कश्मीर में सर्दियों के जाते ही सरहद पार से आतंकी हलचल बढ़ गई है. आज सुबह LoC पर सेना ने घुसपैठ की एक बड़ी कोशिश को नाकाम कर दिया. कुपवाड़ा के केरन सेक्टर में 4 आतंकियों को मार गिराया गया.
ये दहशतगर्द पाकिस्तानी सेना की मदद से भारत के भीतर घुसने की कोशिश कर रहे थे. सूत्रों के मुताबिक आतंकियों से भारी मात्रा में हथियार बरामद हुए हैं। वो पाकिस्तानी सेना की स्नो ड्रेस पहने हुए थे। सेना का सर्च ऑपरेशन अब भी जारी है। केरन सेक्टर नियंत्रण रेखा के बेहद करीब है. यहां साल भर कड़ा पहरा रहता है लेकिन पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की कोशिशें भी लगातार की जाती हैं।
जम्मू एवं कश्मीर में सोमवार को अलगाववादियों की ओर से आहूत बंद के मद्देनजर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। अलगाववादियों ने रविवार को श्रीनगर-बडगाम संसदीय सीट के लिए उपचुनाव के दौरान हुई हिंसा में आठ लोगों की मौत के बाद सोमवार को बंद का आह्वान किया है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, "कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं।" श्रीनगर-बडगाम संसदीय सीट के लिए रविवार को हुए उपचुनाव के दौरान भीड़ ने बडगाम में लगभग 100 जगह मतदान केंद्रों पर हमला किया और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के साथ तोड़फोड़ की थी। सुरक्षा बलों की ओर से की गई कार्रवाई में आठ लोगों की मौत हो गई, जिनमें से सात की मौत बडगाम में और एक की गांदरबल जिले में हुई।
श्रीनगर-बडगाम संसदीय सीट पर उपचुनाव के लिए रविवार को हुए मतदान के दौरान हुई हिंसा में कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई, और कई अन्य घायल हो गए। कुछ मतदान केंद्रों पर भीड़ ने हमले की कोशिश की। हिंसा के कारण इस उपचुनाव में मात्र सात प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो तीन दशक में राज्य का सबसे कम मतदान प्रतिशत है। यह लोकसभा क्षेत्र तीन जिलों श्रीनगर, बडगाम और गांदरबल में फैला हुआ है। पूरे क्षेत्र में व्यापक तौर पर हिंसा की खबर है, और पुलिस ने कहा कि इस दौरान मध्य कश्मीर में हिंसा की लगभग 200 घटनाएं घटीं। सुबह मतदान शुरू होने के साथ मतदान केंद्रों के बाहर बहुत कम मतदाता दिखे। इस दौरान नारेबाजी करती भीड़ ने बडगाम में मतदान केंद्रों पर हमला किया, ईवीएम क्षतिग्रस्त कर दिए और मतदाताओं को वोट नहीं डालने दिया। पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि सुरक्षा बलों ने प्रारंभ में भीड़ को तितर-बितर करने के लिए चेतावनी स्वरूप हवा में गोलियां चलाई, लेकिन जब इसका असर नहीं हुआ तो सीधे भीड़ पर गोलीबारी की गई, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई।
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने रविवार को लोगों से आग्रह किया कि वे देश को एक नकदी रहित समाज बनाने के सरकार के अभियान का साथ दें। राष्ट्रपति ने कहा, "मैं सभी नागरिकों से आग्रह कर रहा हूं कि वे भारत को कम नकदी वाला समाज बनाने के मिशन में अपना बिना शर्त समर्थन दें। सरकार की सभी कोशिशें तभी सफल होंगी जब लोग इन पर सक्रियता से अमल करेंगे।" मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में लकी ग्राहक योजना और डिजी धन व्यापार योजना के सौवें मेगा लकी ड्रा के मौके पर यह बातें कहीं। उन्होंने कहा, "भारत को नकदी रहित समाज बनने में अभी लंबा सफर तय करना है। हम मुख्य रूप से एक नकदी आधारित अर्थव्यवस्था बने हुए हैं। निजी उपभोग का 95 फीसदी और कुल लेनदान का 86 फीसदी हम नकदी में करते हैं।" केंद्र सरकार की पहल की सराहना करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि चलन में नकदी को घटाना जरूरी है। अधिक पारदर्शिता के लिए डिजिटल भुगतान के तरीकों पर तत्काल अमल करने की जरूरत है।
उत्तरी मिस्र के तंता शहर में पाम रविवार को दो अलग-अलग विस्फोट में कम से कम 43 लोग मारे गए और 100 घायल हो गए। पाम रविवार ईसाई कैलेंडर का एक सबसे पवित्र दिन है। स्वास्थ्य मंत्रालय और सुरक्षा सूत्र ने यह जानकारी दी। मिस्र की राजधानी काहिरा से 120 किलोमीटर दूर मार गिर्गिस कॉप्टिक चर्च परिसर में हुए पहले विस्फोट में 27 लोगों की मौत हो गई और 78 लोग घायल हो गए। सेंट जॉर्ज मार गिर्गिस चर्च में अगली सीट के नीचे विस्फोटक लगाया गया था, और मुख्य प्रार्थना कक्ष में इसमें विस्फोट कर दिया गया। स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान के मुताबिक, इस विस्फोट के कुछ देर बाद एलेक्सेन्ड्रिया में संत मार्क्स कॉप्टिक ऑर्थोडोक्स कैथ्रेडल के बाहर आत्मघाती विस्फोट किया गया जिसमें 16 लोगों की मौत हो गई और 41 घायल हो गए। इस्लामिक स्टेट ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली है। आईएस की अर्ध-अधिकारिक समाचार एजेंसी अमाक ने एक संक्षिप्त बयान में दावा किया उसी ने हमले किए हैं। बयान में कहा गया कि हमले में इस्मालिक स्टेट की सुरक्षा यूनिट शामिल थी।
चीन की मुद्रा युआन की केंद्रीय समता दर सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 93 आधार अंकों की कमजोरी के साथ 6.9042 दर्ज की गई। चीन विदेशी विनिमय व्यापार प्रणाली के हवाले से यह रिपोर्ट दी है। इसके मुताबिक, चीन के हाजिर विदेशी विनिमय बाजार में युआन को प्रत्येक कारोबारी दिन केंद्रीय समता मूल्य से अधिकतम दो फीसदी कमजोर होने या मजबूत होने दिया जा सकता है।
उत्तरी मिस्र के तंता शहर में पाम रविवार को दो अलग-अलग विस्फोट में कम से कम 43 लोग मारे गए और 100 घायल हो गए। पाम रविवार ईसाई कैलेंडर का एक सबसे पवित्र दिन है। स्वास्थ्य मंत्रालय और सुरक्षा सूत्र ने यह जानकारी दी। मिस्र की राजधानी काहिरा से 120 किलोमीटर दूर मार गिर्गिस कॉप्टिक चर्च परिसर में हुए पहले विस्फोट में 27 लोगों की मौत हो गई और 78 लोग घायल हो गए। सेंट जॉर्ज मार गिर्गिस चर्च में अगली सीट के नीचे विस्फोटक लगाया गया था, और मुख्य प्रार्थना कक्ष में इसमें विस्फोट कर दिया गया। स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान के मुताबिक, इस विस्फोट के कुछ देर बाद एलेक्सेन्ड्रिया में संत मार्क्स कॉप्टिक ऑर्थोडोक्स कैथ्रेडल के बाहर आत्मघाती विस्फोट किया गया जिसमें 16 लोगों की मौत हो गई और 41 घायल हो गए।
सोमालिया की राजधानी मोगादिशू में रक्षा मंत्रालय के पास रविवार को हुए एक आत्मघाती हमले में सोमाली सैनिकों सहित कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई। सोमालिया की सरकारी समाचार एजेंसी सोना के अनुसार, आत्मघाती कार बम हमले में कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। एक सुरक्षा अधिकारी ने नाम न जाहिर करने के अनुरोध के साथ फोन पर बताया कि तीन सरकारी सैनिकों सहित 15 लोग मारे गए हैं और पांच अन्य घायल हुए हैं। अधिकारी ने कहा, "आत्मघाती कार हमले के मृतकों में ज्यादातर एक मिनीबस में सवार विद्यार्थी और अन्य नागरिक थे। सोमाली नेशनल आर्मी के नए प्रमुख, जनरल मोहम्मद अहमद जिमाली इस हमले में बाल-बाल बच गए।"
मनीष पांडेय (नाबाद 81) की बेहतरीन बल्लेबाजी के बावजूद खराब क्षेत्ररक्षण के चलते कोलकाता नाइट राइडर्स रविवार को वानखेड़ स्टेडियम में हुए इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के 10वें संस्करण के सातवें मैच में मुंबई इंडियंस से चार विकेट से हार गए। कोलकाता से मिले 179 रनों के चुनौतीपूर्ण लक्ष्य का पीछा करते हुए मुंबई ने एक गेंद शेष रहते छह विकेट पर 180 रन बना मैच जीत लिया, जिसके नायक नीतीश राणा (50) रहे। सत्र में मुंबई की दूसरे मैच में यह पहली जीत है, जबकि कोलकाता की दूसरे मैच में पहली हार है। पार्थिव पटेल (30) और जोस बटलर (28) की सलामी जोड़ी ने 7.3 ओवरों में 65 रन जोड़ते हुए मुंबई को सधी शुरुआत दिलाई। लेकिन यहां कोलकाता के गेंदबाजों ने वापसी की और पटेल, बटलर तथा रोहित शर्मा (2) के विकेट लगातार अंतराल पर चटकाते हुए मैच में वापसी के संकेत दिए। इसके बाद मैदान पर आए क्रुणाल पांड्या (11) ने राणा के साथ तेजी से अगली 14 गेंदों में 23 रन बटोरे।
आस्ट्रेलिया ने डेविस कप विश्व ग्रुप के क्वार्टर फाइनल मुकाबले में रविवार को अमेरिका को 3-2 से मात दे दी। आस्ट्रेलिया के स्टार खिलाड़ी निक किर्जियोस ने अपनी टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई। किर्जियोस ने 25वीं विश्व वरीयता प्राप्त सैम क्वेरी को उलट एकल मुकाबले में 7-6 (7-4), 6-3, 6-4 से मात देकर आस्ट्रेलिया को डेविस कप विश्व ग्रुप के सेमीफाइनल में पहुंचाया। क्वेरी पर किर्जियोस की जीत के साथ आस्ट्रेलिया ने 3-1 से अजेय बढ़त बना ली थी। मैच के बाद किर्जियोस ने कहा, "तीन सेटों तक खिंचे कठिन मुकाबले में जीत हासिल करते हुए सेमीफाइनल में प्रवेश कर काफी राहत महसूस कर रहा हूं। निश्चित तौर पर मैच का समापन होते-होते भावुक हो गया था। इस मुकाबले का मैं लंबे समय से इंतजार कर रहा था।"
|
ec45ed318a0cb6e8d943af77694b6de1015fbb8f8ae03ebbb355bec9ca143992 | pdf | इस पत्र को पढ़ने के बाद मुनि जीतमल की मुद्रा गम्भीर हो गई । वे दो क्षण के लिए स्तब्ध से रहे । उनका मानस इस आकस्मिक उपलब्ध दायित्व की एषणा में लग गया ।
वड़े पत्र में लिखा था - ऋषि जीतमल से सुख- प्रश्न विदित हो । तुम पर मेरा बहुत ध्यान है, दिन - दिन प्रेम वढ रहा है । तुम बहुत प्रसन्न रहना । यहां शीघ्र आ जाओ । शरीर का यत्न करना । तुम्हारे आने से सब काम अच्छे होगे। अधिक रसायन उत्पन्न होगा । कोई कमी नही रहेगी । तुम्हारी और मेरी भावना एक है । शेष समाचार छोटे पत्र मे है । वह तुम जान लेना । उसे अपने मन में रखना । मूल वात यह है कि तुम्हे शीघ्रातिशीघ्र यहा आना है। विलम्ब नही करना है । मुनि सरूपचंद पर मेरी दृष्टि बहुत अनुकूल है । साध्वी दीपांजी तुम से बहुत प्रसन्न है । उनकी वंदना स्वीकार कर लेना । उदयपुर में अच्छा उपकार हुआ है। मेरा यह जिनशासन का भार तुम्हारे कंधों पर है ।
मुनिवर ने आचार्यवर के दोनों पत्र पढ़ । सारी स्थिति ज्ञात हो गई । उन्होंने अपने सहवर्ती तीन साधुओं से कहा - तुम धीमे-धीमे आना । हम लोग लम्बे-लम्बे विहार कर आचार्यवर के पास शीघ्र पहुंच रहे है । मुनिवर एक साधु को साथ ले आगे बढ गये । आपने एक संकल्प किया - आचार्यवर के दर्शन नही होगे तब तक मार्ग मे आने वाले गावो में एक दिन से अधिक नही रहूंगा । किसी भी गांव में दूसरे दिन न आहार करू गा और न पानी पीऊंगा । इस संकल्प के साथ आपकी यात्रा शुरू हुई । जोधपुर, पाली होते हुए मेवाड़ पहुंचे । नाथद्वारा में एक रात का प्रवास कर उसके वाहरी भाग में गए । उधर आचार्यवर उदयपुर से विहार कर नाथद्वारा के वाहरी भाग मे पहुचे। मुनि जीतमल ने वही आचार्यवर के दर्शन किए । ने उन्होने अत्यन्त आनन्द का अनुभव किया । आचार्यवर भी बहुत प्रसन्न हुए । सारा वातावरण उत्साह से भर गया । मुनिवर आचार्यवर के साथ फिर नाथद्वारा में आए । आचार्यवर ने मुनि जीतमल के युवाचार्यपद पर किए गए मनोनयन की घोषणा कर दी । समूचे संघ में मुनि जीतमल की जय का स्वर गूज उठा । प्रसन्न था आकाश, प्रसन्न थी धरती, प्रसन्न था
वातावरण । मुनि जीतमल के मनोनयन में कुछ वाधाएं थी । वाधाओं के बादल फट गए । इसलिए प्रसन्न था आकाश । वे सर्वंसह थे इसलिए उनके मनोनयन से प्रसन्न थी सर्व संघभूमि । उनकी सृजनात्मक शक्ति और कृतित्व की सुरभि से सुरभित था वातावरण, इसलिए वह भी प्रसन्न था । प्रसन्नता की परिस्थिति में मुनि जीतमल अव युवाचार्यपद पर अभिषिक्त हो गए ।
युवाचार्यपद की कसौटी
आचार्य अपने उत्तराधिकारी का मनोनयन करते है, यह कोई आकस्मिक घटना नही है । वे मनोनीत किये जाने वाले व्यक्ति का दीर्घकाल तक परीक्षण करते है, उसे विभिन्न कसौटियों से कसते है । ऋषिराय ने अपने युवाचार्य को जिन कसौटियो से कसा था, वे ये है :
१. विनय और अनुशासन ।
२. गण के प्रति वात्सल्य !
३. आचार - कुशलता, संयम-कुशलता । ४. प्रवचन की योग्यता ।
५. गण के संचालन में निपुणता ।
६. आवश्यक साधन-सामग्री के संकलन की क्षमता । ७. आचरणात्मक और क्रियात्मक क्षमता ।
८. धैर्य ।
९. पराक्रम ।
१०. गम्भीरता ।
११. गण के प्रति समर्पण ।
गण- संचालन की क्षमता हर किसी में नहीं होती । उसके लिए विशेष योग्यता की अपेक्षा होती है । आगम साहित्य में उसकी छह कसौटिया वतलाई गई हैं । गण का सचालन वही कर सकता है जो श्रद्धाशील होता है, सत्यवादी होता है, मेधावी होता है, बहुश्रुत होता है, शक्तिशाली होता है,
६० : प्रज्ञापुरुष नयाचार्य
कलहरहित होता है । '
आचार्यवर ने इन आगमिक मानको का उपयोग कर मुनि जीतमल को युवाचार्य के पद पर अभिषिक्त कर दिया । आचार्यवर ने मुनि जीतमल का मनोनयन उनके परोक्ष में किया। इस मनोनयन की सबसे पहले जानकारी मुनि सरूपचंद को हुई, मुनि जीतमल को वाद मे हुई। वे पाच-छह मास तक अज्ञात अवस्था मे युवाचार्य रहे । अज्ञात के ज्ञात हो जाने पर सघ को एक आश्वासन मिला । कुछ व्यक्ति अन्यमनस्कता और संदेह को लिए हुए भी थे । कुछ लोग चाहते थे कि मुनि जीतमल को आचार्य पद न मिले, वह किसी दूसरे को मिले । कुछ व्यक्ति इस संदेह मे थे कि इतने बड़े-बड़े साधुओं पर मुनि जीतमल कैसे अनुशासन कर पाएंगे ? इन दोनो प्रतिक्रियाओं के साथ नियति जुड़ी हुई नही थी । उस नियति ने आचार्यवर ऋषिराय को आश्वस्त किया और मुनि जीतमल के भविष्य में शासन के विकास का प्रतिबिब देखा ।
१. ठाण ६।१ : छहि ठाणेहि सपण्णे अणगारे अरिहति गण धारित्तए, त जहा - सड्टी पुरिसजाते, सच्चे पुरिसजाते, मेहावी पुरिसजाते, बहुस्सुते पुरिसजाते, सत्तिम, अप्पाधिकरणे ।
युवाचार्यपद पर मनोनयन : ६९
आचार्यपद का अभिषेक
जयाचार्यं पन्द्रह वर्ष तक युवाचार्य अवस्था मे रहे। इस अवधि मे वे ऋषिराय के साथ बहुत कम रहे । उन्होने स्वतन्त्र विहार कर अनेक जनपदों को प्रतिबुद्ध किया । थली प्रदेश ( तत्कालीन बीकानेर राज्य) मे उनकी प्रेरणा से धर्म की व्यापक चेतना जागृत हुई । आचार्यवर ऋषिराय ने सं० १९०८ का चातुर्मासिक प्रवास उदयपुर मे किया । चातुर्मास सम्पन्न होने पर आचार्यवर जनपद विहार करते-करते छोटी रावलिया पहुचे । उन्हें कभीकभी श्वास का प्रकोप हो जाता था । माघ कृष्णा चतुर्दशी का दिन । आचार्यवर ने संध्याकालीन प्रतिक्रमण बैठे-बैठे किया। उनके शरीर मे कोई विशेष व्याधि नही थी, कोई विशेष उपद्रव नही था । सामान्य था स्वास्थ्य और शान्त था मानस । आयुष्य की समाप्ति ही उनके अवसान का कारण वनी । प्रतिक्रमण के पश्चात् सोने की इच्छा हुई । उन्होंने साधुओं से कहा - प्रमार्जनी लाओ । साधुओ ने वह प्रस्तुत कर दी । स्थान का प्रमार्जन कर वे लेट गए । लेटते ही पसीने से भीग गए, श्वास का प्रकोप बढ़ गया। उन्होंने कहा - अब तक सोने पर श्वास का प्रकोप नही होता था । आज यह पहली बार हुआ है । वे तत्काल बैठ गए । कुछ साधु उनके पीछे सहारा दिये बैठे थे । वैठे-बैठे वे महाप्रयाण कर गए । स० १९०८ माघ कृष्णा चतुर्दशी, एक मुहूर्त रात्री के लगभग ।' आचार्यवर का महाप्रयाण, युवाचार्य की अनुपस्थिति । आचार्यवर मेवाड में थे, युवाचार्य थली प्रदेश में । माघ के कृष्णपक्ष में युवाचार्यवर वीदासर में विराज रहे थे । माघ शुक्ला अष्टमी के दिन एक पत्र आया । उसमें समाचार था - १. आ.२९ ३५-४६ [ ऋषिरायचरित ढा० १३] ।
पक्षायुरूप नवाचार्य
आचार्यवर ऋषिराय का माघ कृष्णा चतुर्दशी के दिन स्वर्गवास हो गया । आचार्यवर के स्वर्गवास का समाचार युवाचार्य को दस दिन के बाद मिला । सीमित संचार - साधनों की परिस्थिति में इसे आश्चर्य नहीं कहा जा सकता ।
आचार्यवर के स्वर्गवास का सवाद सुन युवाचार्य को मानसिक आघात जैसा लगा । उन्होंने उस घटना को दृढ़ता के साथ सहा । उस सवेदना के अवसर पर युवाचार्य ने उपवास किया और आचार्यवर के प्रति श्रद्धासिक्त भावाजली समर्पित की । अब युवाचार्य सहज ही आचार्य हो गए। फिर भी औपचारिकता पूर्वक आचार्यपद पर आसीन होना अभी शेष था । माघ शुक्ला पूर्णिमा, वृहस्पतिवार, पुष्य नक्षत्र, विष्टिकरण, शुभ मुहूर्त और शुभ वेला मे चतुर्विध तीर्थ के समक्ष युवाचार्य आचार्यपद पर विराजमान हुए । उस समय साधु-साध्वियों ने उनका अभिनन्दन किया ।
'जय जय नंद ! जय जय भद्र ! भद्रं ते । अजित पर विजय पाएं, विजित की रक्षा करे ।'
इस अभिनंदन पदावली का स्वर गूज उठा। जन-जन का मन उत्साहित हो गया । बीदासर के राजा भी उस पदारोहण समारोह में उपस्थित थे । यह पदारोहण एक धर्माचार्य का था, इसलिए इसमे त्याग - वैराग्य के विकास का उपक्रम भी चला । मुनि रामजी ने जीवन पर्यत बेले-बेले की तपस्या ( दो दिन का उपवास और तीसरे दिन आहार, फिर दो दिन का उपवास और तीसरे दिन आहार ) का सकल्प लिया । अन्य लोगो ने भो नाना प्रकार के त्याग किए । आचार्यवर उस दिन अनेक घरो मे स्वयं गोचरी (आहार और वस्त्र लाने के लिए ) गये । इससे जनता मे प्रसन्नता लहर दौड़ गई।' जयाचार्य आचार्यपद पर आसीन हुए उस समय उनके पास साधु-साध्वियों के वर्ग कम थे । वे आचार्यवर ऋषिराय के पास पहुचे हुए थे । वे ऋषिराय के स्वर्गवास के वाद जयाचार्य के पास नही पहुच पाए, उससे पहले ही युवाचार्य का आचार्य पदारोहण अभिषेक सम्पन्न हो गया । आचार्यवर वीदासर से विहार कर लाडणू पहुचे । वहा मेवाड़ से आने वाले साधु-साध्वियों के वर्गो ने आचार्यवर के दर्शन किए । वहा साबुओं की संख्या चालीस और साध्वियों की संख्या चवांलीस हो गई ।' आने वाले साधुओ ने
आचार्यपद का अनिषेक : ७१
असंतोष की भाषा मे कहा- 'आप हमारे आने से पहले ही पदासीन हो गये । हमारे मन की बात मन मे रह गई ।' आचार्यवर ने कहा - 'तुम लोग होते तो क्या करते ?' साधु वोले - 'हम पट्टोत्सव मनाते, अभिनंदन करते, नई चादर ओढाते ।' आचार्यवर ने मुस्कराते हुए कहा - 'ये सव तुम अब भी कर सकते हो । वात संपन्न हो गई । शोभाचन्दजी बैगानी ने प्रार्थना कीआचार्यप्रवर ! एक वार फिर वीदासर पधारें और वहां कोई वड़ा आयोजन करें । वे वड़े शासन - भक्त और समर्थ व्यक्ति थे । आचार्यवर उनको प्रार्थना स्वीकार कर सुजानगढ़ से वीदासर पधारे । वहा मेवाड़ से आए हुए साधु-साध्वियों ने पट्टोत्सव मनाया ।
कुछ साधु सोचते थे - जयाचार्य का पदारोहण हमारी कुछ शर्तो को स्वीकारने के बाद ही हो सकेगा । किन्तु दूरदर्शी और नीतिज्ञ शास्ता ने ऐसा अवसरही नही दिया । वे इस प्रकार के चिन्तन से अनभिज्ञ नही थे । उनकी अभिज्ञता और विज्ञता ने सूझ-बूझ से काम लिया । शर्त्त मनवाने की वात सोचने वाले साधुओं के आगमन से पूर्व ही पदारोहण - विधि संपन्न हो गई । इसके साथ उनके मानसिक स्वप्न भी संपन्न हो गए । जयाचार्यं शर्तो के बारे में जानते थे । वे शर्ते संघ की एकता के लिए हितकर नही थी । आचार्यवर का ध्यान उन शर्तो में नही उलझा । उन्होने अपनी पूरी शक्ति संघ के विकास की दिशा में लगा दी ।
७२ प्रज्ञापुरुष नयाचार्य |
e6ef55e112a92c20a4fad0ec0660b0cc7fba6018 | web | सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक,
कृपया बैंकों तथा एनबीएफसी के क्रेडिट कार्ड परिचालन पर 1 जुलाई 2014 का हमारा मास्टर परिपत्र बैंपविवि.एफएसडी.बीसी.02/24.01.011/2014-15 देखें जिसमें बैंकों और एनबीएफसी के क्रेडिट कार्ड परिचालन तथा बै डेबिट कार्ड/प्री-पेड कार्ड परिचालन पर जारी किए गए अनुदेशों/दिशानिर्देशों को समेकित किया गया है।
2. इस मास्टर परिपत्र में 30 जून 2015 तक बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए क्रेडिट कार्ड परिचालन पर जारी दिशानिर्देशों के साथ-साथ बैंकों द्वारा डेबिट कार्ड और को-ब्राडेंड प्री-पेड कार्ड जारी करने पर दिशानिर्देशों को समेकित किया गया है।
3. यह नोट करें कि बैंकों के लिए क्रेडिट कार्ड परिचालन पर अनुदेश, क्रेडिट कार्ड जारीकर्ता गैर बैंकिंग वित्तीय् कंपनियों पर यथोचित संशोधनों सहित लागू हैं।
4. यह मास्टर परिपत्र रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (http://rbi.org.in) पर उपलब्ध है। क्रेडिट, डेबिट तथा प्री-पेड कार्ड जारी करनेवाले सभी बैंकों /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को इन दिशानिर्देंशों का कड़ाई से पालन करना चाहिए।
(लिली वढेरा)
क्रेडिट, डेबिट, प्री-पेड कार्ड जारी करनेवाले बैंकों/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को उनके क्रेडिट कार्ड व्यवसाय के लिए नियमों /विनियमों /मानकों /प्रथाओं का एक ढांचा प्रदान करना तथा यह सुनिश्चित करना कि वे सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के अनुरूप हैं। अपने क्रेडिट कार्ड का परिचालन भलीभाँति, विवेकपूर्ण और ग्राहक अनुकूल रूप से करना सुनिश्चित करने के लिए बैंकों को पर्याप्त सुरक्षा उपाय तथा निम्नलिखित दिशानिर्देशों को अपनाना चाहिए।
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया गया सांविधिक दिशानिर्देश।
इस मास्टर परिपत्र में परिशिष्ट में सूचीबद्ध परिपत्रों में निहित अनुदेशों को समेकित किया गया है।
ये दिशानिर्देश उन सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैँकों को छोड़कर)/गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर लागू होते हैं जो प्रत्यक्ष अथवा अपनी सहायक कंपनियों अथवा उनके द्वारा नियंत्रित संबद्ध कंपनियों के माध्यम से क्रेडिट कार्ड व्यवसाय करते हैं।
इस परिपत्र का उद्देश्य है बैंकों/गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को उनके क्रेडिट कार्ड परिचालनों तथा अपने क्रेडिट कार्ड व्यवसाय के प्रबंधन में उनसे अपेक्षित प्रणालियों तथा नियंत्रणों के संबंध में सामान्य मार्गदर्शन प्रदान करना। इसमें उन सर्वोत्तम प्रथाओं को भी निर्धारित किया गया है जिन्हें पाना बैंकों /गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का लक्ष्य होना चाहिए।
यह अनुभव रहा है कि बैंकों के क्रेडिट कार्ड संविभागों की गुणवत्ता उस परिवेश को प्रतिबिंबित करती है जिसमें वे कार्य करते हैं। आर्थिक गिरावट तथा ऐसे संविभागों की गुणवत्ता में गिरावट में सुदृढ़ संबंध होता है। बैंकों द्वारा बाजार में गहरी प्रतियोगिता के कारण अपने ऋण हामीदारी मानदंड तथा जोखिम प्रबंधन मानकों को शिथिल करने की स्थिति में यह गिरावट और भी गंभीर हो सकती है। अतः बैंकों के लिए यह आवश्यक है कि वे जिस बाजा़र परिवेश में अपना क्रेडिट कार्ड व्यवसाय करते हैं उससे संबंधित जोखिमों के प्रबंधन के लिए विवेकपूर्ण नीतियां तथा प्रथाएं बनाए रखें।
2.1 भारत में कार्यरत बैंक विभागीय अथवा इस प्रयोजन के लिए शुरू की गई किसी सहायक कंपनी के माध्यम से क्रेडिट कार्ड का व्यवसाय प्रारंभ कर सकते हैं। वे ऐसे किसी अन्य बैंक से गठबंधन की व्यवस्था कर घरेलू क्रेडिट कार्ड व्यवसाय में प्रवेश कर सकते हैं, जिसके पास क्रेडिट कार्ड जारी करने की व्यवस्था पहले से उपलब्ध है।
2.2 स्वतंत्र या अन्य बैंकों से गठबंधन की व्यवस्था करके क्रेडिट कार्ड व्यवसाय प्रारंभ करने के इच्छुक बैंकों को रिज़र्व बैंक का पूर्व अनुमोदन लेने की आवश्यकता नहीं है। अपने निदेशक मंडलों के अनुमोदन से बैंक ऐसा कर सकते हैं। तथापि, ₹100 करोड़ रुपये और उससे अधिक निवल संपत्ति रखने वाले बैंक ही क्रेडिट कार्ड का व्यवसाय कर सकते हैं। तथापि पृथक सहायक कंपनियाँ स्थापित कर क्रेडिट कार्ड का व्यवसाय करने वाले बैंकों को रिज़र्व बैंक का पूर्व अनुमोदन लेना होगा।
2.3 प्रत्येक बैंक में क्रेडिट कार्ड परिचालनों के लिए एक सुप्रलेखित नीति और उचित व्यवहार संहिता अवश्य होनी चाहिए। जिन बैंकों ने बीसीएसबीआइ संहिता को अपनाया है वे क्रेडिटकार्ड परिचालनों के लिए अपनी उचित व्यवहार संहिता तैयार करते समय क्रेडिट कार्ड परिचालनों के लिए भारतीय बैंक संघ (आइबीए) की उचित व्यवहार संहिता के स्थान पर उसमें बीसीएसबीआइ संहिता में निहित सिद्धांतों को सम्मिलित करे। बैंकों/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को उचित व्यवहार संहिता को अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित करना चाहिए।
2.4 बैंक /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को क्रेडिट कार्ड जारी करते समय विवेकशीलता सुनिश्चित करनी चाहिए और विशेषतः छात्रों और ऐसे अन्य व्यक्तियों को कार्ड जारी करते समय ऋण जोखिम का निर्धारण स्वतंत्र रूप से करना चाहिए जिनके स्वतंत्र वित्तीय साधन नहीं हैं।
2.5 हमारे 6 मार्च 2007 के परिपत्र बैंपविवि.सं.एलईजी.बीसी.65/09.07.005/2006-07 में निहित अनुदेशों के अनुसार बैंकों को यह सूचित किया गया है कि क्रेडिट कार्ड के आवेदनों सहित ऋण के सभी श्रेणियों के मामले में चाहे उनकी प्रारंभिक सीमा कितनी भी क्यों न हो, संबंधित ऋण आवेदनों को ऋण आवेदन अस्वीकार किये जाने का/ के मुख्य कारण लिखित रूप में सूचित किया जाना/किए जाने चाहिए। इस बात को दोहराया जाता है कि बैंकों को क्रेडिट कार्ड आवेदनों के अस्वीकार किए जाने का/के मुख्य कारण लिखित रूप में सूचित किया जाना /किये जाने चाहिए।
2.6 चूँकि अनेक क्रेडिट कार्ड रखने से किसी भी उपभोक्ता के लिए उपलब्ध कुल ऋण में वृद्धि होती है, अतः बैंकों / गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को चाहिए कि वे कार्डधारक द्वारा स्वयं की गई घोषणा/ सीआईसी से प्राप्त ऋण सूचना के आधार पर अन्य बैंकों से उसके द्वारा प्राप्त की जा रही ऋण-सीमाओं को ध्यान में रखते हुए क्रेडिट कार्ड के ग्राहक के लिए ऋण-सीमा निर्धारित करें।
2.7 कार्ड जारी करते समय, क्रेडिट कार्ड के निर्गम और उपयोग की शर्तें स्पष्ट और सरल भाषा (वरीयतः अंग्रेजी, हिन्दी या स्थानीय भाषा) में कार्ड के उपयोगकर्ता के लिए समझने योग्य रूप में निर्दिष्ट की जानी चाहिए। अनुबंध में दी गई शर्तों के मानक सेट के रूप में नामित सर्वाधिक महत्वपूर्ण शर्तों (एमआइटीसी) की ओर संभावित ग्राहक / ग्राहकों का सभी चरणों पर अर्थात् विपणन के दौरान, आवेदन करते समय, स्वीकृति के स्तर (स्वागत किट) पर और बाद के महत्वपूर्ण पत्राचार आदि में विशिष्ट रूप से ध्यान आकर्षित करना चाहिए तथा वे विज्ञापित की जानी चाहिए /अलग से प्रेषित करनी चाहिए।
2.8 जिन मामलों में बैंक अपने क्रेडिट कार्डधारकों को बीमा कंपनियों के साथ गठबंधन कर बीमा कवर देना चाहते हैं वहाँ बैंक दुर्घटनाग्रस्त मृत्यु और अंगहानि की स्थिति में मिलनेवाले लाभों के संबंध में बीमा कवर के लिए नामिति /नामितियों के ब्यौरे क्रेडिट कार्डधारक से लिखित रूप में प्राप्त करने पर विचार करें। बैंक यह सुनिश्चित करें कि संगत नामन ब्यौरे बीमा कंपनी द्वारा रिकार्ड किए जाते हैं। बैंक क्रेडिट कार्डधारकों को बीमा कवर से संबंधित दावों का काम देखनेवाली बीमा कंपनी का नाम, पता और टेलीफोन नंबर संबंधी ब्यौरे दर्शानेवाला एक पत्र जारी करने पर भी विचार करें।
3.1 बैंक अपने कारपोरेट ग्राहकों को-ब्राडेंड क्रेडिट कार्डों सहित क्रेडिट कार्ड, कारपोरेट क्रेडिट कार्ड तथा ऐड ऑन कार्ड जारी कर सकते हैं।
3.2 तथापि गैर-बैंक संस्था के साथ को-ब्राडेंड क्रेडिट कार्ड जारी करते समय बैंकों को उचित सावधानी बरतनी चाहिए ताकि वे इस तरह की व्यवस्था के कारण सामने आनेवाली प्रतिष्ठा जोखिम से अपना बचाव कर सकें। जो एनबीएफसी बैंकों के साथ को-ब्राडेंड क्रेडिट कार्ड जारी करने के लिए इच्छूक वे कृपया 4 दिसंबर 2006 का सं.गैबैंपवि(पीडी)सीसीNo.83/03.10.27/2006-07 में निहित निर्देश देखें।
3.3 एड-ऑन कार्ड अर्थात् ऐसे कार्ड जो मुख्य कार्ड के अनुषंगी हैं, इस सुस्पष्ट शर्त पर जारी किये जा सकते हैं कि देनदारी प्रधान कार्डधारक की होगी । उसी प्रकार कारपोरेट क्रेडिट कार्ड जारी करते समय कारपोरेट तथा उसके कर्मचारियों की देयता स्पष्ट की जानी चाहिए।
केवाईसी/एएमएल/सीएफटी के संबंध में बैंकों पर लागू भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी होने वाले अनुदेशों/दिशानिर्देशों का को-ब्रैंडेड डेबिट कार्डों सहित सभी जारी किए गए कार्डों के संबंध में पालन किया जाए।
5.1 बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे क्रेडिट कार्ड के बकाए पर ब्याज का निर्धारण करते समय, समय-समय पर संशोधित अनुदेशों का पालन बैंकों को यह भी सूचित किया गया था कि उन्हें कम मूल्य के वैयक्तिक ऋणों और इसी स्वरूप के ऋणों के संबंध में प्रक्रियागत तथा अन्य प्रभारों के साथ-साथ ब्याज दर की उच्चतम सीमा विनिर्दिष्ट करनी चाहिए। ये अनुदेश क्रेडिट कार्ड देयताओं पर भी लागू हैं। यदि बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां कार्डधारक की अदायगी /अदायगी में चूक के मामलों के आधार पर विभिन्न ब्याज दर लगाते /लगाती हैं तो इस प्रकार विभेदक ब्याज दर लगाने में पारदर्शिता होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, किसी कार्डधारक को उसकी अदायगी/ अदायगी में चूक के मामलों के आधार पर उच्चतर ब्याज दर लागाई जा रही है तो इस तथ्य से कार्डधारक को अवगत करा दिया जाना चाहिए। इस प्रयोजन के लिए बैंकों को चाहिए कि वे अपनी वेबसाइट अथवा अन्य साधनों के जरिए ग्राहकों के संबंध में विभिन्न श्रेणियों के संबंध में लगाई गई ब्याज दरों को प्रदर्शित करें। बैंकों /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को चाहिए कि वे क्रेडिट कार्डधारक को वित्त प्रभारों की गणना की पद्धति स्पष्ट रूप से सोदाहरण दर्शाएं, विशेषकर उन मामलों में जहां संबंधित ग्राहक द्वारा केवल बकाया राशि का हिस्सा ही अदा किया जाता है।
5.2 इसके अलावा बैंकों/गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को क्रेडिट कार्डों पर लागू ब्याज दरों तथा अन्य प्रभारों से संबंधित निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन करना होगाः
क) कार्ड जारीकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बिल भेजने में कोई विलंब न हो और ब्याज लगाया जाना शुरू होने से पहले भुगतान करने के लिए ग्राहक को पर्याप्त समय (कम से कम एक पखवाड़ा) मिल सके। देरी से दिये जानेवाले बिलों की बार-बार की जानेवाली शिकायतों से बचने के लिए क्रेडिट कार्ड जारी करनेवाला बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी बिलों और खातों के विवरणों को ऑनलाइन उपलब्ध कराने पर विचार कर सकती है, जिसमें इस प्रयोजन के लिए समुचित सुरक्षा का प्रावधान हो। बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं मासिक विवरण प्राप्त होने के संबंध में ग्राहक से पावती लेना सुनिश्चित करने हेतु एक प्रणाली लागू करने पर भी विचार कर सकते हैं।
ख) कार्ड जारीकर्ताओं को चाहिए कि वे कार्ड उत्पादों पर वार्षिकीकृत प्रतिशत दरें (एपीआर) उद्धृत करें (फुटकर खरीद और नकदी अग्रिम के लिए अलग-अलग, यदि दरें भिन्न हांे)। बेहतर समझ के लिए एपीआर की गणना-पद्धति के कुछ उदाहरण दिए जाने चाहिए। प्रभारित एपीआर और वार्षिक शुल्क को समान महत्व देते हुए दर्शाया जाना चाहिए। विलंब से भुगतान के प्रभार, ऐसे प्रभारों की गणना की पद्धति और दिनों की संख्या सहित प्रमुख रूप से निर्दिष्ट किये जाने चाहिए। वह तरीका जिससे भुगतान न की गई बकाया राशि ब्याज के परिकलन के लिए शामिल की जाएगी, सभी मासिक विवरणों में विशिष्ट रूप से प्रमुखता के साथ दर्शाया जाए। उस स्थिति में भी जहाँ कार्ड को वैध रखने के लिए निर्दिष्ट न्यूनतम राशि अदा कर दी गई है, यह मोटे अक्षरों में निर्दिष्ट किया जाना चाहिए कि भुगतान के लिए नियत तारीख के बाद देय राशि पर ब्याज लगाया जाएगा। मासिक विवरण में दिखाने के अतिरिक्त, इन पहलुओं को स्वागत किट में भी दर्शाया जाए। सभी मासिक विवरणों में इस आशय का नोटिस प्रमुख रूप से दर्शाया जाना चाहिए कि "प्रत्येक महीने में सिर्फ न्यूनतम भुगतान करने के परिणामस्वरूप चुकौती वर्षों तक खिंच जाएगी जिससे आपको शेष उधार राशि पर ब्याज का भुगतान करना होगा" ताकि ग्राहकों को केवल देय न्यूनतम राशि अदा करने में होनेवाले खतरों के बारे में सावधान किया जा सके।
ग) बैंकों/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को चाहिए कि वे कार्डधारकों को यह स्पष्ट करें कि केवल न्यूनतम देय राशि अदा करने के क्या परिणाम हो सकते हैं। `अत्यधिक महत्वपूर्ण शर्तें एवं निबंधन' के अंतर्गत विशेष रूप से यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि यदि पिछले महीने का कोई बिल बकाया है तो `ब्याज रहित ऋण की अवधि' खत्म हो जाती है। इस प्रयोजन के लिए बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां निदर्शी उदाहरण तैयार कर, उन्हें कार्डधारक की स्वागत सामग्री (वेलकम किट) में शामिल कर सकते हैं और साथ ही साथ अपनी वेबसाइट पर भी प्रदर्शित कर सकते हैं।
घ) बैंकों/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को ऐसा कोई प्रभार नहीं लगाना चाहिए जो क्रेडिट कार्ड धारक को, संबंधित कार्ड जारी करते समय तथा उसकी सहमति प्राप्त करते समय सुस्पष्ट रूप से दर्शाया नहीं गया हो। तथापि, यह सेवा कर आदि जैसे प्रभारों के लिए लागू नहीं होगा जो सरकार अथवा किसी अन्य सांविधिक प्राधिकरण द्वारा बाद में लगाये जाएंगे ।
ड) क्रेडिट कार्ड की देय राशियों के भुगतान की शर्तें, जिनमें न्यूनतम अदायगी की देय राशि शामिल है, विनिर्दिष्ट की जाएं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई ऋणात्मक परिशोधन नहीं है ।
च) प्रभारों में (ब्याज के अलावा) परिवर्तन कम-से-कम एक महीने का नोटिस देकर केवल भावी प्रभाव से किये जाने चाहिए । यदि क्रेडिट कार्ड धारक अपना क्रेडिट कार्ड इस कारण से अभ्यर्पित करना चाहता हो कि क्रेडिट कार्ड प्रभारों में किया कोई परिवर्तन उसे हानिकारक है तो ऐसी समाप्ति के लिए उससे कोई अतिरिक्त प्रभार लिये बगैर कार्ड समाप्ति की अनुमति दी जाए । क्रेडिट कार्ड को समाप्त करने संबधी किसी अनुरोध को क्रेडिट कार्ड जारीकर्ता द्वारा तत्काल स्वीकार किया जाना होगा, बशर्ते कार्डधारक ने देय राशि का पूरा निपटान कर दिया हो।
छ) पहले वर्ष में प्रभार मुक्त क्रेडिट कार्ड जारी करने में पारदर्शिता (किसी छुपे प्रभारों का न होना) होनी चाहिए।
कार्ड जारी करनेवाले बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गलत बिल बनाकर ग्राहकों को जारी नहीं किया जाए। यदि कोई ग्राहक किसी बिल का विरोध करता है तो बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कपंनी को उसका स्पष्टीकरण देना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो शिकायतों के आपसी निवारण की भावना से ग्राहक को अधिकतम साठ दिन की अवधि के भीतर दस्तावेजी प्रमाण भी देना चाहिए।
7.1 बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी जब क्रेडिट कार्ड के विभिन्न परिचालनों को बाहरी स्रोतों से (आउटसोर्स) करवाते हैं, तब उन्हें इसकी अत्यधिक सावधानी बरतनी होगी कि ऐसी सेवा प्रदान करनेवालों की नियुक्ति से ग्राहक सेवा की गुणवत्ता तथा बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी की ऋण, चलनिधि और परिचालनगत जोखिमों के प्रबंधन की क्षमता पर विपरीत असर नहीं होता है । उक्त सेवा प्रदान करनेवाले के चयन में बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को ग्राहकों के अभिलेखों की गोपनीयता, ग्राहक की प्राइवेसी का सम्मान सुनिश्चित करने की तथा ऋण वसूली में उचित प्रणालियों का पालन करने की आवश्यकता को आधार बनाना होगा ।
7.2 बैंक के ग्राहकों के प्रति दायित्व संबंधी बीसीएसबीआइ संहिता के अनुसार जिन बैंकों ने उक्त संहिता को अपनाया है उन्हें अपने उत्पादों/सेवाओं के विपणन के लिए नियुक्त डीएसए के लिए एक आचार संहिता निधार्रित करनी चाहिए। बैंकों/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्होंने जिन डीएसए को अपने क्रेडिट कार्ड उत्पादों के विपणन कार्य में लगाया है वे बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी की क्रेडिट कार्ड परिचालनों की आचार संहिता का कड़ाई से पालन करते हैं। ऐसी आचार संहिता संबंधित बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी की वेबसाइट पर प्रदर्शित की जानी चाहिए और किसी भी क्रेडिट कार्डधारक को आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए ।
7.3 बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के पास आकस्मिक जांच और प्रच्छन्न खरीद (मिस्टरी शॉपिंग) की एक प्रणाली होनी चाहिए ताकि वे यह सुनिश्चित कर सकें कि उनके एजेंटों को उचित रूप से जानकारी दी गयी है तथा सावधानी और सतर्कता से अपनी जिम्मेदारियां निभाने का प्रशिक्षण दिया गया है, विशेषकर इन दिशा-निर्देशों में शामिल पहलुओं के संबंध में, जैसे ग्राहक बनाना, कॉल करने का समय, ग्राहक की जानकारी की प्राइवेसी, उत्पाद देते समय सही शर्तें सूचित करना आदि ।
7.4 अवांछित वाणिज्यिक संवाद - राष्ट्रीय ग्राहक अधिमान पंजिका (एनसीपीआर) पर जारी दिशानिर्देश का पालन करते समय बैंक यह सुनिश्चित करें कि ट्राई (टीआरएआई) द्वारा उक्त विषय पर समय-समय पर जारी निर्देशों/ विनियमों का अनुपालन करेने वाले टेलीमार्केटर्स को ही नियुक्त किया जाता हैं।
8.1 बिना मांग के कार्ड जारी नहीं किये जाने चाहिए । यदि बिना मांगे कोई कार्ड जारी किया जाता है और संबंधित प्राप्तकर्ता की लिखित सहमति के बगैर कार्यान्वित हो जाता है और उसके लिए उसे बिल भेजा जाता है तो कार्ड जारी करनेवाला बैंक न केवल उक्त प्रभारों को तत्काल वापस करेगा बल्कि वापस किये गये प्रभारों के मूल्य से दुगुनी राशि कार्ड के प्राप्तकर्ता को दंड के रूप में अविलंब अदा करेगा।
8.2 इसके अलावा, जिसके नाम पर कार्ड जारी हुआ है वह व्यक्ति बैंकिंग लोकपाल से भी संपर्क कर सकता है। बैंकिंग लेाकपाल योजना, 2006 के उपबंधों के अनुसार बैंकिंग लोकपाल अवांछित क्रेडिट कार्ड के प्राप्तकर्ता को बैंक की ओर से दी जानेवाली राशि अर्थात् शिकायतकर्ता के समय की हानि, उसके द्वारा किया गया व्यय, उसें हुई परेशानी तथा मानसिक कष्ट के लिए क्षतिपूर्ति की राशि निर्धारित करेगी।
8.3 कुछ ऐसे भी मामले हैं जिनमें अवांछित क्रेडिट कार्ड जिनके नाम पर जारी किए गए हैं उन तक पहुँचने के पहले उनका दुरुपयोग किया गया है। यह स्पष्ट किया जाता है कि ऐसे अवांछित कार्डों के दुरुपयोग के कारण हुई किसी भी प्रकार की हानि के लिए कार्ड जारी करनेवाला बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी ही जिम्मेदार होगा /होगी और जिसके नाम पर कार्ड जारी किया गया है उस व्यक्ति को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
8.4 जारी कार्डों के लिए अथवा कार्ड के साथ दिए अन्य उत्पादों के लिए दी गई सम्मति सुस्पष्ट होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में क्रेडिट कार्ड जारी करने से पहले संबंधित आवेदक की लिखित सम्मति आवश्यक होगी।
8.5 क्रेडिट कार्ड के ग्राहकों को बिना मांगे ऋण अथवा अन्य ऋण सुविघाएं न दी जाएं। यदि कोई ऋण सुविधा बिना मांगे प्राप्तिकर्ता की सहमति के बगैर दी जाती है और यदि वह इस बात के लिए आपत्ति उठाता है तो ऋण मंजूर करनेवाला बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी न केवल उक्त ऋण सीमा वापस लेगी बल्कि उसे समुचित समझे जानेवाले अर्थ-दंड की अदायगी भी करनी होगी ।
8.6 कार्ड जारी करनेवाले बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को क्रेडिट कार्ड का एकतरफा उन्नयन नहीं करना चाहिए तथा ऋण सीमा को नहीं बढ़ाना चाहिए । जब भी शर्तों में कोई परिवर्तन हो तब अनिवार्यतः संबंधित उधारकर्ता की पूर्व सहमति ली जाए।
9.1 कार्ड जारी करने वाले बैंक /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को खाता खोलते अथवा क्रेडिट कार्ड जारी करते समय प्राप्त की गयी ग्राहकों से संबंधित जानकारी, वह जानकारी किस प्रयोजन के लिए उपयोग में लायी जाएगी तथा किन संगठनों के साथ बांटी जाएगी, इस संबंध में ग्राहकों की विशिष्ट अनुमति प्राप्त किए बिना किसी अन्य व्यक्ति अथवा संगठन को बतायी न जाए। बैंकों को चाहिए कि वे ग्राहक को क्रेडिट कार्ड के लिए आवेदन करते समय इस बात का निर्णय करने का विकल्प दें कि वह अपनी जानकारी बैंकों द्वारा अन्य एजेन्सियों के साथ बांट दिए जाने से सहमत है अथवा नहीं। इस प्रयोजन के लिए सुस्पष्ट प्रावधान हेतु क्रेडिट कार्ड के आवेदन का फॉर्म उचित रूप से संशोधित किया जाए। साथ ही, जिन मामलों में ग्राहक अन्य एजेन्सियों के साथ जानकारी बांटने के लिए बैंकों को सम्मति देते हैं वहाँ बैंकों को चाहिए कि वे संबंधित ग्राहक को प्रकटीकरण खंड के पूरे आशय /निहितार्थ को साफ-साफ बताएं और स्पष्ट रूप से समझाएं। बैंकों /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को, विशिष्ट विधिक परामर्श के आधार पर, अपने आपको इस बात से संतुष्ट करना होगा कि उनसे मांगी गयी जानकारी का स्वरूप ऐसा नहीं है जिससे लेनदेनों में गुप्तता संबंधी कानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन होगा। उक्त प्रयोजन से दी गयी जानकारी सही होने अथवा सही न होने के लिए बैंक /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी पूर्णतः जिम्मेदार होगी।
9.2 डीएसए / वसूली एजेंटों के लिए प्रकटीकरण भी केवल उस सीमा तक ही होना चाहिए कि वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए सक्षम हो जाए। कार्ड धारक द्वारा दी गई व्यक्तिगत जानकारी, लेकिन वसूली उद्देश्यों के लिए जो जरूरी नहीं हैं कार्ड जारीकर्ता बैंक / एनबीएफसी द्वारा जारी नहीं की जानी चाहिए। कार्ड जारीकर्ता बैंक / एनबीएफसी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि डीएसए / डीएमएस क्रेडिट कार्ड उत्पादों के विपणन के दौरान किसी भी ग्राहक की जानकारी का अंतरण अथवा दुरुपयोग नहीं करते हैं।
10.1 कार्डधारक के ऋण इतिहास /चुकौती रिकार्ड से संबंधित जानकारी किसी क्रेडिट इंफॉर्मेशन कंपनी (भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त) को देने के लिए, बैंक /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को उन ग्राहकों के ध्यान में यह बात स्पष्टतः लानी होगी कि यह जानकारी क्रेडिट इंफॉर्मेशन कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 के अंतर्गत दी जा रही है ।
10.2 क्रेडिट इंफॉर्मेशन कंपनी अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य क्रेडिट कंपनी को किसी क्रेडिट कार्डधारक के संबंध में चूक की स्थिति की सूचना देने से पूर्व, बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ यह सुनिश्चित करें कि वे अपने बोर्ड द्वारा विधिवत् अनुमोदित क्रियाविधि का अनुपालन करती हैं जिसमें ऐसे कार्ड धारक को क्रेडिट इंफॉर्मेशन कंपनी को उसे चूककर्ता के रूप में रिपोर्ट करने के उद्देश्य के बारे में पर्याप्त सूचना जारी करना शामिल है । इस क्रियाविधि में ऐसी सूचना देने के लिए आवश्यक सूचना अवधि तथा चूककर्ता के रूप में सूचित किए जाने के बाद ग्राहक द्वारा अपनी देयताओं का निपटान करने की स्थिति में, ऐसी सूचना को जिस अवधि के भीतर वापस लिया जाएगा, उस अवधि को भी शामिल किया जाए। बैंक /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को उन कार्डों के मामले में विशेष रूप से सावधान रहना होगा जिनमें विवाद लंबित हैं। जानकारी का प्रकटीकरण/जारी किया जाना, विशेषतः चूक से संबंधित जानकारी, जहां तक संभव हो विवाद के निपटान के बाद ही किया जाए। सभी मामलों में एक सुव्यवस्थित क्रियाविधि का पारदर्शिता से अनुपालन किया जाए। इन क्रियाविधियों को पारदर्शिता से एमआइटीसी के भाग के रूप में बताया जाए।
11.1 देय राशियों की वसूली के मामले में, बैंक यह सुनिश्चित करें कि वे तथा उनके एजेंट भी उधारदाताओं के लिए उचित व्यवहार संहिता संबंधी मौजूदा अनुदेशों तथा बैंक के ग्राहक के प्रति दायित्व संबंधी बीसीएसबीआइ संहिता (बीसीएसबीआइ संहिता को अपनाने वाले बैंक) का अनुपालन करते हैं। यदि देय राशियों की वसूली के लिए बैंक की अपनी खुद की संहिता है तो उसमें कम-से-कम उपर्युक्त संदर्भित बीसीएसबीआइ संहिता की सभी शर्तों को शामिल किया जाना चाहिए।
11.2 ऋण वसूली के लिए अन्य एजेंसियों को नियुक्त करने के संबंध में यह विशेष रूप से आवश्यक है कि ऐसे एजेंट कोई ऐसा कार्य नहीं करते जिससे बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी की ईमानदारी तथा प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचे तथा वे ग्राहक की गोपनीयता का कड़ाई से पालन करते हैं। वसूली एजेंट द्वारा जारी किए गए सभी पत्रों में कार्ड जारी करने वाले बैंक के जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारी का नाम तथा पता होना चाहिए जिससे ग्राहक उसके स्थान पर संपर्क कर सके।
11.3 बैंकों /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों /उनके एजेंटों को अपने ऋण वसूली के प्रयासों में किसी व्यक्ति के विरुद्ध किसी भी प्रकार से मौखिक अथवा शारीरिक रूप से डांट-डपट अथवा परेशान करने का सहारा नहीं लेना चाहिए । इनमें क्रेडिट कार्ड धारकों के परिवार के सदस्यों, मध्यस्थों तथा मित्रों को खुलेआम अपमानित करने अथवा उनकी प्राइवेसी में दखल देने के कार्य, धमकी देनेवाले तथा बेनामी फोन कॉल अथवा झूठी तथा गलत जानकारी देना भी शामिल है।
11.4 बैंकों को वसूली एजंटों की नियुक्ति के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय- समय पर जारी दिशानिर्देश का अनुपालन भी सुनिश्चित करना चाहिए ।
12.1 ग्राहकों को अपनी शिकायतें प्रस्तुत करने के लिए सामान्यतः साठ (60) दिन की समय सीमा दी जाए ।
12.2 कार्ड जारी करने वाले बैंक /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को बैंक /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी में ही शिकायत निवारण तंत्र गठित करना चाहिए तथा इलैक्ट्रॉनिक तथा प्रिंट मीडिया के माध्यम से उसका व्यापक प्रचार करना चाहिए। बैंक /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के नामित शिकायत निवारण अधिकारी के नाम तथा संपर्क नंबर का उल्लेख क्रेडिट कार्ड के बिलों में होना चाहिए। नामित अधिकारी को सुनिश्चित करना चाहिए कि क्रेडिट कार्ड के ग्राहकों की वास्तविक शिकायतों का बिना विलंब के तत्परता से निवारण किया जाता है ।
12.3 बैंकों/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका कॉल सेंटर वाला स्टाफ ग्राहकों की सारी शिकायतों से संबंधित काम देखने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित है।
12.4 बैंकों/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास एक ऐसी प्रणाली भी होनी चाहिए जिससे किसी कॉल सेंटर से निवारण न की गई शिकायतें अपने आप उच्चतर प्राधिकारियों के पास चली जाएं तथा ऐसी प्रणाली के ब्यौरे वेबसाइटों के ज़रिए पब्लिक डोमेन में प्रदर्शित किए जाने चाहिए।
12.5 बैंक /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी की शिकायत निवारण क्रियाविधि तथा शिकायतों का प्रत्युत्तर देने के लिए निर्धारित समयावधि बैंक /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी की वेबसाइट पर दी जाए । बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के महत्वपूर्ण कार्यपालकों तथा शिकायत निवारण अधिकारी का नाम, पदनाम, पता तथा संपर्क नंबर वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाए । ग्राहकों की शिकायत पर अनुवर्ती कार्रवाई के लिए शिकायतों की पावती की प्रणाली हो, जैसे शिकायत /डॉकेट नंबर होना चाहिए, भले ही शिकायतें फोन पर प्राप्त हुई हों ।
12.6 शिकायत दर्ज करने की तारीख से अधिकतम 30 दिन की अवधि में शिकायतकर्ता को यदि बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी जो बैंक की सहायक संस्था है, से संतोषप्रद प्रतिसाद नहीं मिलता है तो उसके पास अपनी शिकायत के निवारण के लिए संबंधित बैंकिंग लोकपाल के कार्यालय में जाने का विकल्प होगा। बैंक की गलती के कारण और समय पर शिकायत का निवारण न होने के कारण शिकायतकर्ता को जो समय की हानि, व्यय, वित्तीय हानि तथा परेशानी और मानसिक संत्रास भुगतना पड़ा उसकी भरपाई करने के लिए बैंक /गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी जो बैंक की सहायक संस्था है, बाध्य होगी ।
बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी में ग्राहक सेवा की गुणवत्ता निरंतर आधार पर सुनिश्चित की जाती है, यह सुनिश्चित करने की दृष्टि से प्रत्येक बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी में ग्राहक सेवा से संबंधित स्थायी समिति को क्रेडिट कार्ड के परिचालनों, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्राधिकृत ऋण सूचना कंपनी, जिसका बैंक/एनबीएफसी सदस्य है, को प्रस्तुत चूककर्ता की रिपोर्टों तथा क्रेडिट कार्ड से संबंधित शिकायतों की समीक्षा मासिक आधार पर करनी चाहिए और सेवा में सुधार हेतु तथा क्रेडिट कार्ड परिचालन में व्यवस्थित वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए। बैंकों को क्रेडिट कार्ड से संबंधित शिकायतों का ब्योरेवार तिमाही विश्लेषण अपने वरिष्ठ प्रबंधतंत्र को प्रस्तुत करना चाहिए। मर्चेंट लेनदेनों की सत्यता की नमूना जाँच करने के लिए कार्ड जारीकर्ता बैंक में एक उपयुक्त निगरानी प्रणाली होनी चाहिए। बैंकों को अर्धवार्षिक आधार पर प्रत्येक लेखा वर्ष के सितम्बर और मार्च के अंत की स्थिति के लिए क्रेडिट कार्ड कारोबार पर एक व्यापक समीक्षा रिपोर्ट अपने बोर्ड/प्रबंधन समिति के समक्ष करनी चाहिए, जिसमें क्रेडिट कार्ड कारोबार के आंकड़े, जैसे श्रेणी और जारी किए गए कार्डों की संख्या, न जारी किए गए कार्डों की संख्या, सक्रिय कार्ड, प्रति कार्ड औसत कारोबार, किए गए प्रतिष्ठानों की संख्या, देय राशि की वसूली के लिए गया औसत समय, गैर-निष्पादक के रूप में वर्गीकृत ऋण और उसके लिए किया गया प्रावधान या बट्टे खाते में डाली गयी राशि, क्रेडिट कार्ड पर हुई धोखाधड़ी का विवरण, देय राशि वसूल करने के लिए किए गए उपाय, व्यवसाय की लाभप्रदता का विश्लेषण आदि शामिल हो।
14.1 बैंकों /गैर- बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को चाहिए कि वे धोखाधड़ी से निपटने के लिए आंतरिक नियंत्रण प्रणाली स्थापित करें और बैंकों को धोखाधड़ी निवारक समितियों/ टास्क फोर्स में सक्रिय रूप से भाग लें, ये समितियां /टास्क फोर्स धोखाधड़ी रोकने और धोखाधड़ी नियंत्रण तथा कार्यान्वयन संबंधी पूर्वयोजित उपाय करने के लिए कानून बनाती हैं ।
14.2 खोये हुए/चुराये गये कार्डों के दुरुपयोग के मामलों को कम करने की दृष्टि से बैंकों / गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को यह सिफारिश की जाती है कि वे (i) कार्डधारक की फोटो के साथ (ii) वैयक्तिक पहचान संख्या (पीआइएन) सहित कार्ड (iii) लैमिनेटेड हस्ताक्षर वाले कार्ड अथवा समय-समय पर आनेवाली कोई अन्य उन्नत पद्धतियों सहित कार्ड जारी करने पर विचार करें।
14.3 डीपीएसएस द्वारा समय समय पर जारी किए गए दिशा निर्देशों के अंतर्गत बैंकों को यह भी सूचित किया गया है कि ईलेक्ट्रानिक लेनदेनों के लिए विभिन्न सुरक्षा और जोखिम को कम करने के उपाय करे।
14.4 बैंकों को यह सूचित किया जाता है कि वे ग्राहक से कार्ड खो जाने की सूचना मिलने पर तत्काल खोये हुए कार्ड को ब्लॉक कर दें और यदि एफआइआर दर्ज करने सहित कोई औपचारिकताएं हों, तो उचित समयावधि में उन्हें पूरा किया जाए।
14.5 ग्राहक के विकल्प पर बैंक खोये हुए कार्डों से उत्पन्न देयताओं के लिए बीमा कवर आरंभ करने पर विचार कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, केवल उन्हीं कार्डधारकों को खोये हुए कार्डों के संबंध में उचित बीमा कवर प्रदान किया जाना चाहिए जो प्रीमियम की लागत वहन करने के लिए तैयार हैं।
भारतीय रिज़र्व बैंक इन दिशानिर्देशों में से किसी के भी उल्लंघन के लिए क्रमशः बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949/भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत किसी बैंक/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी पर दंड लगाने का अधिकार रखता है ।
बैंकों द्वारा डेबिट कार्ड दिनांक 12 नवंबर 1999 के परिपत्र बैंपविवि.सं.एफएससी.बीसी.123/24.01.019/99-2000 में दिए गए दिशानिर्देशों तथा परवर्ती संशोधनों एवं मेल-बॉक्स स्पष्टीकरणों के अनुसार जारी किए जाते हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक के भुगतान एवं निपटान प्रणाली विभाग (डीपीएसएस) ने भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम 2007 (पीएसएसए) पारित होने के बाद डेबिट कार्ड के कुछ पहलुओं जैसे सुरक्षा तथा जोखिम शमन, घरेलू डेबिट, प्री-पेड तथा क्रेडिट कार्डों के बीच परस्पर निधियां अंतरित करना तथा मर्चेंट डिस्काउंट दरों के संबंध में भी अनुदेश जारी किए हैं। उक्त के मद्देनजर तथा हमारे पूर्व अनुदेशों के अधिक्रमण में डेबिट कार्ड पर व्यापक अनुदेश जारी किए गए ।
बैंक निम्नलिखित के अधीन भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्व अनुमोदन लिए बिना संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार को-ब्रांडेड डेबिट कार्डों सहित डेबिट कार्ड जारी करना सुनिश्चित करें।
बैंक अपने बोर्ड के अनुमोदन से को-ब्रांडेड डेबिट कार्डों सहित डेबिट कार्ड जारी करने की एक व्यापक नीति बना सकते हैं तथा इस नीति के अनुसार अपने ग्राहकों को डेबिट कार्ड जारी कर सकते हैं। डेबिट कार्ड बचत खाता/चालू खाता धारक ग्राहकों को जारी किए जाने चाहिए, नकदी ऋण/ऋण खाता धारकों को नहीं।
बैंक को-ब्रांडेड डेबिट कार्डों सहित केवल ऐसे ऑन-लाईन डेबिट कार्ड ही जारी कर सकते हैं जिनमें ग्राहकों के खाते से तुरंत डेबिट होता है और जिनमें स्ट्रेट थ्रू प्रसंस्करण होता है।
अब से बैंकों को ऑफ-लाईन डेबिट कार्ड जारी करने की अनुमति नहीं है। जो बैंक वर्तमान में ऑफ-लाईन डेबिट कार्ड जारी कर रहे हैं वे अपने ऑफ-लाईन डेबिट कार्ड परिचालनों की समीक्षा करें और इस परिपत्र की तिथि से 6 माह की अवधि के भीतर ऐसे कार्डों का परिचालन बंद कर दें। तथापि बैंक यह सुनिश्चित करें कि ग्राहकों को ऑन-लाईन डेबिट कार्ड अपनाए जाने के बारे में समुचित रूप से सूचित किया जाता है। ऑफ-लाईन डेबिट कार्डों के निर्गमन तथा परिचालन को बंद करने संबंधी समीक्षा तथा पुष्टि मुख्य महाप्रबंधक, बैंकिंग विनियमन विभाग,केंद्रीय कार्यालय भवन, शहीद भगत सिंह मार्ग, मुंबई - 400001 को प्रेषित की जानी चाहिए। तथापि ऑफ-लाईन कार्डों को बंद किए जाने तक कार्डों में संचित बकाया शेष/खर्च न किए गए शेष आरक्षित अपेक्षाओं की गणना के अधीन होंगी।
केवाईसी/एएमएल/सीएफटी के संबंध में बैंकों पर लागू भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी होने वाले अनुदेशों/दिशानिर्देशों का को-ब्रैंडेड डेबिट कार्डों सहित सभी जारी किए गए कार्डों के संबंध में पालन किया जाए।
ब्याज का भुगतान समय-समय पर जारी होने वाले ब्याज दर संबंधी निदेशों के अनुसार होना चाहिए।
i) कोई भी बैंक किसी ग्राहक को बिना मांगे कार्ड प्रेषित नहीं करेगा, सिवाय ऐसे मामले के जिसमें कार्ड ग्राहक द्वारा पहले से धारित किसी कार्ड के एवज में हो।
ii) बैंक तथा कार्डधारक का संबद्ध संविदात्मक होगा।
iii) प्रत्येक बैंक कार्ड धारकों को लिखित रूप में संविदात्मक नियमों एवं शर्तों का एक सेट उपलब्ध कराएगा जो ऐसे कार्डों के जारी करने एवं उनके प्रयोग पर लागू होगा। इन शर्तों में संबंधित पक्षों के हितों के संबंध में उचित संतुलन बरता जाएगा।
iv) शर्तें स्पष्ट रूप से व्यक्त की जाएंगी।
v) शर्तों में विभिन्न प्रभारों के आधार को विनिर्दिष्ट किया जाएगा, लेकिन किसी समय लगने वाले प्रभारों की राशि विनिर्दिष्ट करना जरूरी नहीं है।
vi) शर्तों में उस अवधि को विनिर्दिष्ट किया जाएगा जिसके भीतर सामान्य तौर पर कार्ड धारक के खाते से डेबिट किया जाएगा।
vii) बैंक शर्तों में बदलाव कर सकता है, लेकिन परिवर्तन की पर्याप्त अग्रिम सूचना कार्डधारक को दी जाएगी ताकि यदि वह चाहे तो संविदा से संबंध-विच्छेद कर सके। ऐसी अवधि विनिर्दिष्ट की जाएगी जिसके समाप्त होने के बाद यह मान लिया जाएगा कि कार्डधारक ने शर्तें स्वीकार कर ली हैं यदि उस विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान उसने संविदा से संबंध-विच्छेद नहीं कर लिया है तो।
viii) (क) इन शर्तों के द्वारा कार्डधारक बाध्य होगा कि वह कार्ड तथा उन साधनों (जैसे कि पिन या कोड) जिनसे कार्ड का परिचालन संभव होता है, को सुरक्षित रखने के लिए सभी समुचित उपाय करेगा।
(ख) इन शर्तों के द्वारा कार्डधारक बाध्य होगा कि वह पिन या कोड को किसी भी रूप में रिकार्ड न करे ताकि ऐसे रिकार्ड तक ईमानदारी या बेईमानी से किसी तृतीय पक्ष की पहुँच हो जाए तो उसे पिन या कोड ज्ञात हो सकता है।
(ग) इन शर्तों के द्वारा कार्डधारक बाध्य होगा कि वह निम्नलिखित के संबंध में जानकारी मिलते ही अविलंब बैंक को सूचित करेगाः
कार्ड के खो जाने, चोरी होने या उसकी नकल बनाए जाने या अन्य साधनों से उसका दुरुपयोग होने पर,
कार्डधारक के खाते में किसी अनधिकृत लेनदेन दर्ज होने पर,
बैंक द्वारा उस खाते के परिचालन में किसी प्रकार की त्रुटि या अनियमितता होने पर।
(घ) इन शर्तों में ऐसे संपर्क केंद्र को विनिर्दिष्ट किया जाएगा जहां ऐसी सूचना दी जा सके। ऐसी सूचना दिन या रात में किसी भी समय दी जा सकेगी।
ix) इन शर्तों में यह विनिर्दिष्ट किया जाएगा कि पिन या कोड जारी करते समय बैंक सावधानी बरतेगा तथा कार्डधारक के पिन या कोड को कार्डधारक के अतिरिक्त किसी अन्य को न प्रकट करने के लिए बाध्य होगा।
x) इन शर्तों में यह विनिर्दिष्ट किया जाएगा कि किसी कार्डधारक को किसी प्रणालीगत खराबी के कारण हुई प्रत्यक्ष हानि के लिए, जो बैंक के प्रत्यक्ष नियंत्रण में हो, बैंक उत्तरदायी होगा। तथापि, भुगतान प्रणाली के तकनीकी रूप से खराब हो जाने के कारण हुई किसी क्षति के लिए बैंक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा यदि प्रणाली के खराब होने की जानकारी उपकरण के डिसप्ले पर किसी संदेश द्वारा या किसी अन्य माध्यम से कार्डधारक को दी गयी हो। लेनदेन पूरा न होने या गलत लेनदेन होने की स्थिति में बैंक की जिम्मेदारी शर्तों पर लागू होने वाले कानून के प्रावधानों के अधीन मूलधन राशि तथा नुकसान हुए ब्याज तक सीमित है।
बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 23 के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्व प्राधिकार प्राप्त किए बिना किसी भी सुविधा के अंतर्गत बिक्री स्थल (पीओएस) पर डेबिट कार्डों के माध्यम से किसी प्रकार के नकदी लेनदेन की सुविधा नहीं दी जानी चाहिए।
i) बैंक डेबिट कार्ड की पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। डेबिट कार्डकी सुरक्षा की जिम्मेदारी बैंक की होगी तथा सुरक्षा में चूक होने या सुरक्षा प्रणाली के फेल होने के कारण किसी पक्ष को होनेवाली हानि का वहन बैंक को करना होगा।
ii) परिचालनों को ढूंढ़ा जा सके तथा त्रुटियों में सुधार किया जा सके इसके लिए (कालबाधित मामलों के लिए लॉ ऑफ लिमिटेशन को ध्यान में रखते हुए) बैंक पर्याप्त समयावधि तक आंतरिक अभिलेखों को बनाए रखेंगे।
iii) कार्डधारक को लेनदेन पूरा करने के बाद रसीद के रूप में तुरंत या समुचित समयावधि के भीतर पारंपरिक बैंक विवरणी जैसे किसी अन्य रूप में लेनदेन का लिखित रिकार्ड उपलब्ध कराया जाएगा।
iv) कार्डधारक कार्ड के खोने, चोरी होने या उसकी नकल बनाए जाने की सूचना बैंक को देने तक हुई हानि का वहन करेगा, किन्तु केवल एक निश्चित सीमा (जिस पर बैंक तथा कार्डधारक के बीच पहले से ही लेनदेन के प्रतिशत या एक निश्चित राशि के रूप में समझौता हुआ होगा) तक ही करेगा सिवाय ऐसे मामले को छोड़कर जहां कार्डधारक ने कपटपूर्ण रीति से, जानबूझकर या अत्यधिक लापरवाही से कार्य किया हो।
v) प्रत्येक बैंक ऐसे साधन मुहैया कराएगा जिनसे ग्राहक दिन या रात के किसी भी समय अपने भुगतान साधनों के खोने, चोरी हो जाने या उसकी नकल बनाए जाने के संबंध में सूचना दे सके।
vi) कार्ड के खोने, चोरी हो जाने या उसकी नकल बनाए जाने के संबंध में सूचना प्राप्त होने पर बैंक ऐसी सभी संभव कार्रवाइयां करेगा जिनसे कार्ड का आगे प्रयोग किया जा सके।
vii) खो गए/चोरी हो जाने वाले कार्डों के दुरुपयोग की घटनाओं में कमी लाने की दृष्टि से, बैंक कार्डधारक के फोटो के साथ या समय-समय पर विकसित होने वाली किसी अन्य उन्नत युक्तियों का प्रयोग करके कार्ड जारी करने पर विचार कर सकते हैं।
एक भुगतान प्रणाली के रूप में डेबिट कार्डों का निर्गम, नकदी आहरण, इंटरनैशनल डेबिट कार्ड जारी करना,सुरक्षा मुद्दों तथा जोखिम कम करने के उपायों, एक कार्ड से दूसरे कार्ड पर निधियों के अंतरण, व्यापारियों द्वारा प्रदत्त छूट की दरों की संरचना, असफल एटीएम लेनदेन इत्यादि, पर दिशानिर्देश, समय-समय पर यथासंशोधित भुगतान एवं निपटान अधिनियम, 2007 के अंतर्गत भुगतान एवं निपटान प्रणाली विभाग द्वारा जारी संबंधित दिशानिर्देशों के अधीन होगा।
अंतरराष्ट्रीय डेबिट कार्ड का जारी किया जाना समय-समय पर यथासंशोधित विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम 1999 के अंतर्गत जारी निदेशों के अधीन होगा।
बैंकों को छमाही आधार पर अपने डेबिट कार्ड निर्गम/ परिचालन करने की समीक्षा करनी चाहिए। समीक्षा में अन्य बातों के साथ-साथ अंतर्निहित जोखिमों की दृष्टि से लंबी अवधियों के लिए प्रयोग में न लाए गए कार्डों सहित कार्ड के प्रयोग से संबंधित विश्लेषण शामिल होना चाहिए।
परा बैंकिंग गतिविधियों पर मास्टर परिपत्र के पैरा 14.1 के अंतर्गत यह अपेक्षित था कि बैंकों द्वारा जारी स्मार्ट/डेबिट कार्डों के परिचालन संबंधी रिपोर्ट का छमाही आधार पर भुगतान एवं निपटान प्रणाली विभाग को प्रस्तुत किया जाना चाहिए और इसकी एक प्रति बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग के उस संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय में प्रस्तुत की जानी चाहिए जिसके न्याय क्षेत्र में उस बैंक का प्रधान कार्यालय स्थित है। यह अपेक्षा 12 दिसंबर 2012 से समाप्त की गयी।
बैंक ग्राहकों की शिकायतों का निवारण करने के लिए एक सुदृढ़ प्रणाली की स्थापना सुनिश्चित करें। बैंक की शिकायत निवारण प्रक्रिया और शिकायतों पर कार्रवाई शुरू करने हेतु निर्धारित समय-सीमा की जानकारी बैंक की वेबसाइट में दी जाए। वेबसाइट पर महत्वपूर्ण कार्यपालकों तथा बैंक के शिकायत निवारण अधिकारी के नाम, पदनाम, पता और संपर्क हेतु दूरभाष सं. दर्शायी जाए। अनुवर्ती कार्रवाई करने के लिए ग्राहकों की शिकायतों के लिए प्राप्ति-सूचना जैसे कि शिकायत संख्या/डाकेट संख्या देने की प्रणाली होनी चाहिए चाहे शिकायतें फोन से ही क्यों न प्राप्त हुई हों। यदि किसी शिकायतकर्ता को शिकायत दर्ज करने की तिथि से अधिकतम (30) दिनों के भीतर बैंक से संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं प्राप्त होती है, तो उसके पास अपनी शिकायतों के निवारण के लिए संबंधित बैंकिंग लोकपाल के कार्यालय से संपर्क करने का विकल्प होगा। इस संबंध में असफल एटीएम लेनदेनों के समाधान के लिए समय-सीमा के संबंध में समय-समय पर यथासंशोधित डीपीएसएस के दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए।
को-ब्रांडिंग व्यवस्था बैंक के बोर्ड द्वारा अनुमोदित की गई नीति के अनुसार होनी चाहिए। इस नीति में विनिर्दिष्ट रूप से, प्रतिष्ठा संबंधी जोखिम सहित, इस प्रकार की व्यवस्था से जुड़े विभिन्न जोखिमों से संबंधित मुद्दों के समाधान तथा जोखिम कम करने हेतु उपयुक्त उपायों का उल्लेख होना चाहिए।
बैंकों को चाहिए कि ऐसे कार्ड जारी करने के लिए वे जिन गैर-बैंकिंग कंपनियों से गठबंधन करने के इच्छुक हों, उन कंपनियों के संबंध में पर्याप्त सावधानी बरतें, ताकि ऐसी व्यवस्था के कारण उत्पन्न होने वाले प्रतिष्ठा संबंधी जोखिम से वे स्वयं को सुरक्षित कर सकें। किसी वित्तीय संस्था से गठबंधन प्रस्तावित होने पर बैंक यह सुनिश्चित करें कि उस संस्था को उसके विनियामक से इस तरह का गठबंधन करने के लिए अनुमोदन प्राप्त है।
कार्ड जारी करने वाला बैंक को-ब्रांडिंग पार्टनर के सभी कृत्यों के लिए उत्तरदायी होगा। बैंक 'बैंकों द्वारा वित्तीय सेवाओं की आउट-सोर्सिंग में आचरण संहिता तथा जोखिम का प्रबंधन' पर समय-समय पर यथासंशोधित दिनांक 3 नवंबर 2006 के परिपत्र बैंपविवि.सं.बीपी.40/21.04.158/2006-07 में दिए गए दिशानिर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करें।
गठबंधन व्यवस्था के अंतर्गत गैर-बैंक संस्था की भूमिका कार्डों के विपणन/वितरण तक या दी जाने वाली वस्तुओं/सेवाओं की उपलब्धता कार्डधारक को प्रदान करने तक ही सीमित होनी चाहिए।
कार्ड जारी करने वाले बैंक को खाता खोलते या कार्ड जारी करते समय प्राप्त की गई ग्राहक से संबंधित किसी सूचना को प्रकट नहीं करना चाहिए तथा को-ब्रांडिंग गैर-बैंकिंग संस्था को ग्राहक के खातों के ऐसे किन्हीं ब्यौरों के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए जिससे बैंक की गोपनीयता के उत्तरदायित्वों का उल्लंघन हो सकता हो।
जिन बैंकों को अतीत में को-ब्रांडेड डेबिट कार्ड जारी करने के लिए विनिर्दिष्ट अनुमोदन प्रदान किए गए हैं उन्हें सूचित किया जाता है कि वे यह सुनिश्चित करें कि को-ब्रांडिंग व्यवस्था उपर्युक्त अनुदेशों के अनुरूप है। यदि को-ब्रांडिंग व्यवस्था दो बैंकों के बीच है, तो कार्ड जारीकर्ता बैंक उक्त शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित करे।
जैसा कि पैरा I 7.4 में बताया गया है, अवांछित वाणिज्यिक संवाद - राष्ट्रीय ग्राहक अधिमान पंजिका (एनसीपीआर) पर जारी दिशानिर्देश का पालन करते समय बैंक यह सुनिश्चित करें कि ट्राई (टीआरएआई) द्वारा उक्त विषय पर समय-समय पर जारी निर्देशों/ विनियमों का अनुपालन करेने वाले टेलीमार्केटर्स को ही नियुक्त किया जाता हैं।
हमारे 12 नवंबर 1999 के परिपत्र बैंपविवि.सं.एफएससी.बीसी.123/24.01.019/99-2000, 18 जून 2001 के परिपत्र बैंपविवि.सं.एफएससी.बीसी.133/24.01.019/2000-01 और 11 अप्रैल 2002 के परिपत्र बैंपविवि.सं.एफएससी.बीसी.88/24.01.019/2001-02 में निहित अनुदेशों के अनुसार बैंकों को स्मार्ट कार्ड जारी करने की अनुमति दी गयी थी। जबकि विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गित प्री-पेड कार्ड का जारी किया जाना, को-ब्रांडिंग व्यवस्थाओं सहित, समय-समय पर यथासंशोधित विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 के अंतर्गत जारी दिशानिर्देशों के अधीन होगा। रुपए में मूल्यवर्गित प्री-पेड भुगतान लिखत जारी करना, 13 मई 2014 के परिपत्र डीपीएसएस.सीओ.पीडी.सं.2366/02.14.006/2013-14 के माध्यम से भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम 2007 के अंतर्गत जारी ‟भारत में प्रीपेड भुगतान लिखतों का निर्गम व परिचालन- समेकित संशोधित नीति दिशानिर्देश" के अधीन है। के अधीन है।
तदनुसार, स्मार्ट कार्ड जारी करने पर पूर्व दिशा निर्देशों के अधिक्रमण में यह निर्णय लिया गया कि भारत में रुपया मूल्यवर्गित को- ब्रांडेड प्री-पेड कार्ड जारी करने के लिए निम्नलिखित नियमों और शर्तों के अधीन बैंकों को सामान्य अनुमति प्रदान की जाए।
को-ब्रांडिंग व्यवस्था बैंक के बोर्ड द्वारा अनुमोदित की गई नीति के अनुसार होनी चाहिए। इस नीति में विनिर्दिष्ट रूप से, प्रतिष्ठा संबंधी जोखिम सहित, इस प्रकार की व्यवस्था से जुड़े विभिन्न जोखिमों से संबंधित मुद्दों के समाधान तथा जोखिम कम करने हेतु उपयुक्त उपायों का उल्लेख होना चाहिए।
बैंकों को चाहिए कि ऐसे कार्ड जारी करने के लिए वे जिन गैर-बैंकिंग कंपनियों से गठबंधन करने के इच्छुक हों, उन कंपनियों के संबंध में पर्याप्त सावधानी बरतें, ताकि ऐसी व्यवस्था के कारण उत्पन्न होने वाले प्रतिष्ठा संबंधी जोखिम से वे स्वयं को सुरक्षित कर सकें। किसी वित्तीय संस्था से गठबंधन प्रस्तावित होने पर ऐसी व्यवस्था करने से पूर्व बैंक यह सुनिश्चित करें कि उस संस्था को उसके विनियामक से इस तरह का गठबंधन करने के लिए अनुमोदन प्राप्त है।
कार्ड जारी करने वाला बैंक को-ब्रांडिंग पार्टनर के सभी कृत्यों के लिए उत्तरदायी होगा। बैंक 'बैंकों द्वारा वित्तीय सेवाओं की आउट-सोर्सिंग में आचरण संहिता तथा जोखिम का प्रबंधन' पर समय-समय पर यथासंशोधित दिनांक 3 नवंबर 2006 के परिपत्र बैंपविवि.सं.बीपी.40/21.04.158/2006-07 में दिए गए दिशानिर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करें।
गठबंधन व्यवस्था के अंतर्गत गैर-बैंक संस्था की भूमिका कार्डों के विपणन/वितरण तक या दी जाने वाली वस्तुओं/सेवाओं की उपलब्धता कार्डधारक को प्रदान करने तक ही सीमित होनी चाहिए।
समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए केवाईसी एएमएल सीएफटी पर बैंकों पर लागू होने वाले अनुदेशों/दिशानिर्देशों का अनुपालन को-ब्रांडिंग व्यवस्था के अंतर्गत जारी किए गए सभी कार्डों के संबंध में किया जाना चाहिए।
कार्ड जारी करने वाले बैंक को खाता खोलते या कार्ड जारी करते समय प्राप्त की गई ग्राहक से संबंधित किसी सूचना को प्रकट नहीं करना चाहिए तथा को-ब्रांडिंग गैर-बैंकिंग संस्था को ग्राहक के खातों के ऐसे किन्हीं ब्यौरों के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए जिससे बैंक की गोपनीयता के उत्तरदायित्वों का उल्लंघन हो सकता हो।
प्री-पेड भुगतान कार्डों को अंतरित किए गए शेष पर कोई ब्याज न दिया जाए।
यह व्यवस्था भारत में प्री-पेड लिखतों, जिनमें प्री-पेड कार्ड शामिल हैं, को जारी करने तथा उनका परिचालन करने के संबंध में डीपीएसएस द्वारा जारी अनुदेशों का अनुपालन/ अनुसरण किए जाने के अधीन होगी।
जिन बैंकों को अतीत में रुपये में मूल्यवर्गित को-ब्रांडेड प्री-पेड कार्डों को जारी करने के लिए विनिर्दिष्ट अनुमोदन दिये गये हैं, उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए सूचित किया जाता है कि को-ब्रांडिंग व्यवस्था उपरोक्त अनुदेशों के अनुसार होनी चाहिए।
जैसा कि पैरा I 7.4 में बताया गया है, अवांछित वाणिज्यिक संवाद - राष्ट्रीय ग्राहक अधिमान पंजिका (एनसीपीआर) पर जारी दिशानिर्देश का पालन करते समय बैंक यह सुनिश्चित करें कि ट्राई (टीआरएआई) द्वारा उक्त विषय पर समय-समय पर जारी निर्देशों/ विनियमों का अनुपालन करेने वाले टेलीमार्केटर्स को ही नियुक्त किया जाता हैं।
1. अत्यधिक महत्वपूर्ण शर्तें (एमआइटीसी)
(ii) चूक-रिपोर्ट वापस लेने के लिए प्रक्रिया तथा वह अवधि जिसमें देय राशियों के निपटारे के बाद चूक-रिपोर्ट वापस ली जाएगी ।
कार्डधारक से संबंधित सूचना का प्रकार जो कार्डधारक के अनुमोदन से या अनुमोदन बगैर प्रकट करनी है ।
नोट :
(ii) कार्ड जारीकर्ता द्वारा कार्डधारकों को विभिन्न स्तरों पर सूचित की जानेवाली शर्तें पहले की तरह ही रहेंगी ।
|
d1bce5d7431fa5cc0be21d2015e584d68f1cd71ff1d9cf78feb26ba409397c34 | pdf | करने वालो पर निर्भर है । अगर उन्होंने पूर्ण श्रद्धा से मन्त्र ग्रहण किया है तो वे तुम्हारे भक्त सद्गति को प्राप्त कर सकेंगे ।"
यह बात सुनकर तो रामानुज का चेहरा पुन प्रफुल्लित हो गया और वे अपने गुरु के समक्ष हाथ जोड़कर वोले - "गुरुदेव । तव तो मुझे आपके द्वारा प्रदत्त मन्त्र का रहस्य ओरो को बताने का कोई दु.ख नही है । मेरे बताए हुए मत्र से अगर उन सबकी सद्गति होगी तो केवल मेरी दुर्गति के लिए मुझे तनिक भी चिन्ता नही है । "
गुरुजी अपने शिष्य की वात सुनकर अवाक् रह गए और उन्होंने हृदय से अपने देवता स्वरूप शिष्य को धन्य धन्य कहा ।
ये उदाहरण मनुष्य मे रहने वाली दैवी वृत्ति के परिचायक हैं और ये बताते हैं कि इस वृत्ति वाले पुरुष किस प्रकार अपना अहित करके भी औरो का हितचिन्तन करते हैं । रामानुज जैसे सत ने अपने भक्तो की सद्गति की खुशी मे जव अपनी स्वय की दुर्गति की भी परवाह नही की, जिसके कारण न जाने कितने काल तक नाना कष्ट उठाने पडते है तो फिर धन की तो बात ही क्या है ? जिसके लिए
मेरा-मेरा कहकर ओरो के पेट पर लात मारे । दैवीवृत्ति वाले महामानव तो अपना सर्वस्त्र ही औरो को देने के लिए तैयार रहते हैं । उनके हृदय में अपनी अधिकृत किसी भी वस्तु के लिए ममत्व नहीं होता और इसीलिए वे- 'तेरा सो तेरा मेरा भी तेरा' - यह कहते है ।
(४) ब्रह्मवृत्ति
वन्धुओ, ध्यान में रखने की बात है कि देवी वृत्ति वाले मनुष्य अपना भी औरो को देते हैं, किन्तु इतना जरूर कहते हैं कि 'मेरा सो भी तेरा है ।' अर्थात्वे मेरे और तेरे मे अन्तर जरूर समझते हैं पर ब्रह्मवृत्ति वाले व्यक्ति में तो मेरे और तेरे की भावना ही नहीं रहती । उसके पवित्र मानस में ज्ञान की दिव्य ज्योति जल जाती है तथा उसके प्रकाश में उसे कोई पराया नही दिखाई देता । वह सभी को आत्मा मे परमात्मा का अश देखता है, दूसरे शब्दो मे सभी आत्माओ को परमात्मा का ही रूप मानता है ।
कहा जाता है कि सत एकनाथ जी ऐसी ही ब्रह्मवृत्ति के स्वामी थे । एक बार वे अपने लिए रोटियां सेक रहे थे कि एक कुत्ता उनकी कुछ रोटियां मुंह मे लेकर भागने लगा ।
जब एकनाथ जी ने यह देखा तो वे घी की कटोरी लेकर उस कुत्ते के पीछे दौड़ते हुए बोले"अरे भगवन् । रुखी रोटियाँ लेकर मत जाइये, उन्हें चुपड तो देने
दीजिये ।"
कई बार एकनाथ जी के साथ कुत्ते खाने के लिए भी बैठ जाते थे क्योकि वे उन्हे भगाते नहीं थे । लोग जब इस दृश्य को देखते तो हँस पडते थे। यह देखकर एकनाथ जी चकित होते और लोगो से कहते - "भगवन् । हंसते क्यो हैं ? भगवान, भगवान के साथ खा रहा है, इसमे भला हँसने की कोनसी बात है ?"
तो ब्रह्मवृत्ति वाले महापुरुष किसी को भी अपने से हीन नही समझते । वे मानते हैं कि कीडी से लेकर कुजर यानी हाथी के अन्दर तक भी एक सी अनन्त शक्तिशाली आत्माएँ हैं । कोई भी आत्मा कम या अधिक महत्व नहीं रखती । केवल पूर्व कर्मों के कारण ही उन्हे भिन्न-भिन्न योनियो में जाना पड़ता है और भिन्न-भिन्न प्रकार के आकारो मे कैद रहना पड़ता है। इसलिए वे किसी प्राणी का अपमान नहीं करते तथा सभी पर समान प्रेम एव करुणा का भाव रखते है । वे सदा यही भावना अपने अन्तर में बनाये रखते हैं कि अगर आत्मा का कल्याण करना है तो भगवान के आदेशो का पालन करना पडेगा और श्रेष्ठ आर्य धर्म को स्वीकार करके जीवन के अन्त तक उसे दृढतापूर्वक निभाना पडेगा ।
यद्यपि धर्म का पालन करने में अनेको बाधाएं, विघ्न और परिपह आते हैं किन्तु जब शरीर पर से ममत्व हटा लिया जाता है तो उन्हें सहन करना कठिन नही होता । मारे परियह शरीर को ही कष्ट पहुँचाते हैं, आत्मा को उनसे कोई हानि नही होती । उल्टे परिषहो को समतापूर्वक सहन करने से आत्मा की शक्ति जाप्रत होती है ।
हमारे प्रवचन मे भी 'जल्ल परिषह' का वर्णन चल रहा है। इसके लिए विवेकी और शक्तिशाली सत सोचते हैं कि जब साधना को समीचीन रूप से चलाने के लिए गजसुकुमाल जैसे बाल मुनि कुछ क्षणो मे ही यह देह त्याग देने की दृढता रखते हैं तो शरीर पर पसीने का आ जाना और उस पर मल का जम जाना क्या महत्व रखता है ? यह शरीर तो एक दिन जाना ही है चाहे इसे धो-धोकर साफ करते रहो या फिर जैसी भी स्थिति में रहता है, रहने दो । दशवकालिक सूत्र के छठे अध्याय में कहा गया है - में -
तम्हा ते न सिणायति, सीएण उसियेण वा । जावज्जीव वय घोर असिणाणम हिट्ठगा ।।
के लिए कहा गया है कि वे कभी भी उष्ण या शीतल जल से स्नान नही करते तथा जीवनभर इस घोर व्रत का पालन करते हैं । यद्यपि शरीर पर पानी का पड़ जाना या न पडना महत्व नहीं रखता, महत्व मन की वृत्ति का होता है । हम देखते है कि किसी पतिव्रता स्त्री का पति अगर परदेश में चला जाता है तो उसे अच्छे वस्त्र पहनना, नाभूषण धारण करना या इम-फुलेल आदि लगाना अच्छा नहीं लगता। यानी शरीर का शृंगार करना उसे प्रिय नहीं लगता ।
तो हाड-मास के एक व्यक्ति के लिए भी जब स्त्री अपने शरीर के सजाने का मोह छोड देती है तो फिर मुनि तो अपनी आत्मा को परमात्मा के रूप में लाने का सर्वोत्कृष्ट लक्ष्य अपने सामने रखता है और उसे पूरा करने के उद्देश्य मे जब जुट जाता है तो फिर शरीर को नहलाने, धुलाने और सजाने मे वह कब अपने मन को लगा सकता है ? शरीर की शुश्रूषा करने पर मन की वृत्ति मे फर्क आ जाता है। हमारे बुजुर्ग तो यह कहते रहे हैं कि अगर कपडा फट जाय और नया पहनना पडे तो शरीर पर पहने जाने वाले सभी वस्त्र नये नही होने चाहिए। एक कपडा नया हो तो अन्य पुराने होने चाहिए । इस प्रकार शरीर को आकर्षक बनाने का प्रयत्न न करके इन्द्रियो पर सयम रखने से सवर के मार्ग पर चला जा सकता है ।
साधक को तो दृढ सकल्प के साथ अपनी आत्म-शुद्धि करके आत्मा के शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए । शरीर की शुद्धि मे लगा रहने से उसे क्या हासिल हो सकता है ? कुछ भी नही, यह शरीर तो चाहे मलिन रहने दिया जाय या सजाकर रखा जाय एक दिन निश्चय ही नष्ट हो जायगा । किन्तु अगर आत्मा को शुद्ध कर लिया जाएगा तो सदा के लिए शाश्वत सुख की प्राप्ति हो जाएगी और फिर शरीर धारण करने की जरूरत ही नही रहेगी। इसलिए साधक को चाहिए कि वह अपनी आत्म-शक्ति पर दृढ विश्वास रखता हुआ यह चिन्तन करेऐ जजवाए दिल ! गर मैं चाहूँ, हर चीज मुकाविल आ जाए । मजिल के लिए दो गाम चलूं, सामने मजिल आ जाए ॥
इस उर्दू भाषा के पद्य मे गाम का अर्थ है कदम । आप विचार करेंगे कि क्या दो कदम चलने का निश्चय कर लेने पर ही मजिल मिल सकती है ? अवश्य मिल सकती है । यद्यपि मोक्ष की मजिल जीव को कई-कई जन्म तक चलने पर प्राप्त होती है, किन्तु गजसुकुमाल मुनि उस मजिल को प्राप्त करने के लिए कितना चले थे ? केवल एक रात्रि, सभवत वह भी पूरी नहीं निकल सकी थी । अपनी माता के हाथ से खाये हुए अन्न के पश्चात् सयमी जीवन मे सभवत उन्होंने पुन अन्न भी ग्रहण नहीं किया था । साधना के जीवन मे एक दिन चलकर ही उन्होंने शिवपुर की लम्बी मजिल हासिल करके अक्षय सुख और शांति प्राप्त कर ली थी ।
तो बधुओ, परिषहयुक्त साधना का मार्ग कठिन अवश्य है किन्तु आत्म-शक्ति की दृढता उसे अवश्यमेव पार लगा देती है । इसीलिए भगवान का कथन है कि परिपहो के कारण तनिक भी विचलित न होते हुए साधक को सवर के मार्ग पर बढ़ना चाहिए और ऐसा करने पर ही मुक्ति रूपी मंजिल प्राप्त हो सकती है ।
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओो एव बहनो ।
बहुत दिनो से हमारा सवर तत्व पर विवेचन चल रहा है । सवर के सत्तावन प्रकार होते हैं और उसके छब्बीसवे भेद यानी अठारहवें 'जल्ल परिषह' का वर्णन पिछले दो दिनों से किया जा रहा है ।
कल श्री उत्तराध्ययन सूत्र के दूसरे अध्याय की सैतीसवी गाथा मैंने आपके सामने रखी थी । जिसमे भगवान महावीर ने मुमुक्षु प्राणियो को उपदेश दिया है कि अगर कर्मों को निर्जरा करनी है तो आर्य धर्म का शरीर रहते पालन करो । आर्य धर्म भी कैसा ? अनुत्तरम् अर्थात् जिससे बढकर और कोई धर्म नहीं है । ऐसे धर्म की महत्ता का वर्णन शब्दो के द्वारा नहीं किया जा सकता । शास्त्र कहते हैंदिव्य च गई गच्छन्ति चरित्ता धम्ममारिय ।
- उत्तराव्ययन सूत्र
आर्य धर्म का आचरण करके महापुरुष दिव्य गति को प्राप्त होते है ।
तो धर्म से बढकर इस संसार में और कुछ नही है, जो आत्मा का भला करने मे समर्थ हो सके । इसीलिए कहते है - 'लोकस्स धम्मो सारो ।' इस संसार मे अगर - कोई सारभूत पदार्थ है तो वह एकमात्र धर्म ही है । वैसे भी कीमत सारभूत वस्तु की होती है । अनाज की कीमत होती है भूसे की नहीं, क्योंकि वह सारहीन होता । इसी प्रकार विश्व के सम्पूर्ण पदार्थों मे सारभूत केवल घम है और अन्य सव सारहीन । इसीलिए प्रत्येक प्राणी को सच्चे धर्म का अनुसरण करना चाहिए ।
धर्म के तीन प्रकार हैं - ज्ञान, दर्शन एव चारित्र ज्ञान ने समझा, दर्शन से उस पर श्रद्धा रखी और चारित्र के द्वारा अमल में लाया गया तो धर्म सच्चे अर्थो मे ग्रहण किया गया है, ऐसा कहा जा सकता है ।
अभी मैंने बताया कि लोक मे सारभून पदार्थ क्या है ? बताया गया है कि लोक मे नारभूत पदार्थ केवल धर्म है। अब
ज्ञान का माहात्म्य इस प्रश्न के उत्तर मे
दूसरा प्रश्न होता है |
f0640b347cac426790d362b87030ede0b8070619b9e19a96fd3635124cd801ed | pdf | ऊपर जो ३० प्रकृतिक उदयस्थान के दो प्रकार बतलाये हैं उसमे से यदि जिसने भाषा पर्याप्ति को भी प्राप्त कर लिया और उद्योत का भी उदय है, उसको ३१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ यश कीर्ति और अयश कीर्ति तथा दोनो स्वरो के विकल्प से चार भङ्ग होते है। इस प्रकार पर्याप्त द्वीन्द्रिय के सब उदयस्थानों के कुल भङ्ग २० होते हैं ।
दीन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में भी एकेन्द्रिय के समान २,८८,८६, ८० और ७८ प्रकृतिक, ये पाँच सत्तास्थान होते है । पहले जो छह उदयस्थानो के २० भङ्ग बतलाये है उनमे से २१ प्रकृतिक उदयस्थान के दो भाग तथा २६ प्रकृतिक उदयस्थान के दो भङ्ग, इन चार भागो मे से प्रत्येक भङ्ग मे पाँच-पांच सत्तास्थान होते है क्योकि ७८ प्रकृतियो की सत्ता वाले जो अग्निकायिक और वायुकायिक जीव पर्याप्त द्वीन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं, उनके कुछ काल तक ७८ प्रकृतियों की मत्ता संभव है तथा उस काल मे द्वीन्द्रियों के क्रमश २१ और २६ प्रकृतिक उदयस्थान ही होते है। इसीलिये इन दो उदयस्थानो के चार भागो में से प्रत्येक भाग में उक्त पाँच मनास्थान कहे हैं तथा इन चार भङ्गो के अतिरिक्त जो शेष १६ भङ्ग रह जाते है, उनमें से किसी मे भी ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान न होने से प्रत्येक में चार-चार सत्तास्थान होते है। क्योकि अग्निकायिक और वायुकाविक जीवो के सिवाय शेष जीन शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त होने के पश्चात् नियम से मनुष्यगति और मनुष्यानुर्सीका वध करते हैं, जिससे उनके ७८ कृतिक सत्तास्थान नहीं पाया जाता है ।
पर्याप्त दीन्द्रिय जीवो की तरह मीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीवो को भी यादि स्थानों और उनके जी को जानना चाहिये । इतनी विशेषता जानना चाहिये कि उदयस्थानी मे दोन्द्रिय के स्थान पर द्रिय और चतुरिन्द्रिय का उत्लेस कर दिया जाये ।
अब क्रमप्राप्त असज्ञी पर्याप्त जीवस्थान मे बधादि स्थानो और उनके भङ्गो का निर्देश करते है। इसके लिये गाथाओ मे निर्देश किया है - 'छच्छप्पणग' 'असन्नी य' अर्थात् असज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान के छह बधस्थान हैं, छह उदयस्थान है और पाँच सत्तास्थान है । जिनका विवेचन यह है कि असज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त जीव मनुष्यगति और तिर्यंचगति के योग्य प्रकृतियो का बध करते ही है, किन्तु नरकगति और देवगति के योग्य प्रकृतियो का भी बध कर सकते हैं । इसलिये इनके २३, २५, २६, २८, २६ और ३० प्रकृतिक ये छह बधस्थान होते है और तदनुसार १३९२६ भङ्ग होते है ।
उदयस्थानो की अपेक्षा विचार करने पर यहाँ २१, २६, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये छह उदयस्थान है । इनमे से २१ प्रकृतिक उदयस्थान मे तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, वर्णचतुष्क, निर्माण, तिर्यंचगति, तिर्यचानुपूर्वी, पचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त सुभग और दुर्भाग मे से कोई एक, आदेय और अनादेय मे से कोई एक तथा यश कीर्ति और अयश कीर्ति मे से एक, इन २१ प्रकृतियो का उदय होता है । यह २१ प्रकृतिक उदयस्थान अपान्तरालगति मे ही पाया जाता है तथा सुभग आदि तीन युगलो मे से प्रत्येक प्रकृति के विकल्प से ८ भङ्ग प्राप्त होते हैं ।
अनन्तर जब यह जीव शरीर को ग्रहण कर लेता है तब औदारिक शरीर, औदारिक अगोपाग, छह सस्थानों में से कोई एक संस्थान, छह सहननो मे से कोई एक सहनन, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियो का उदय होने लगता है । किन्तु यहाँ आनुपूर्वी नामकर्म का उदय नही होता है । अतएव उक्त २१ प्रकृतिक उदयस्थान मे छह प्रकृतियों को मिलाने और तिर्यंचानुपूर्वी को कम करने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ छह सस्थान और छह सहननो
की अपेक्षा सुभगत्रिक की अपेक्षा से पूर्वोक्त ८ भङ्गो मे दो बार छह से गुणित कर देने पर ६x६x६=२८८ भङ्ग प्राप्त होते हैं ।
अनतर इसके शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हो जाने पर पराघात तथा प्रशस्त विहायोगति और अप्रशस्त विहायोगति मे से किसी एक का उदय और होने लगता है । अत २६ प्रकृतिक उदयस्थान में इन दो प्रकृतियो को और मिला देने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ दोनो विहायोगतियों के विकल्प की अपेक्षा भङ्गो के विकल्प पूर्वोक्त २८८ को दो से गुणा कर देने पर 2८८४२ = ५७६ हो जाते हैं । २६ प्रकृतिक उदयस्थान दो प्रकार से होता है - एक तो जिसने आन-प्राण पर्याप्ति को पूर्ण कर लिया है उसके उद्योत के बिना केवल उच्छ्वास के उदय से प्राप्त होता है और दूसरा शरीर पर्याप्ति के पूर्ण होने पर उद्योत प्रकृति के उदय से प्राप्त होता है। इन दोनो स्थानो में से प्रत्येक स्थान मे ५७६ भाग होते हैं । अत २९ प्रकृतिक उदयस्थान वः कुल ५७६ ×२ = ११५२ भङ्ग हुए ।
३० प्रकृतिक उदयस्थान भी दो प्रकार से प्राप्त होता है। एक तो जिसने भाषा पर्याप्ति को पूर्ण कर लिया उसके उद्योत के विना सुस्वर और दुस्वर प्रकृतियों में से किसी एक प्रकृति के उदय से प्राप्त होता है और दूसरा जिसने श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति को पूर्ण कर लिया, उसके उद्योत का उदय हो जाने पर होता है। इनमें से पहले प्रकार के स्थान के पूर्वोक्त ५७६ भगो को स्वरद्विक मे गुणित करने पर १९५२ भङ्ग प्राप्त होते हैं तथा दूसरे प्रकार के स्थान में ५७६ भग ही होते हैं । सपकार ३० प्रकृतिक उदयस्थान के कुल भग ११५२+५७६= १७२८ होते हैं।
अनन्तर जिसने भाषा पर्याप्ति को भी पूर्ण कर लिया और उद्योत प्रकृति का भी उदय है उसके ३१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है ।
यहाँ कुल भग ११५२ होते है । इस प्रकार असज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान के सब उदयस्थानो के कुल ४९०४ भङ्ग होते है ।
असज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान मे ९२,८८,८६, ८० और ७८ प्रकृतिक ये पाच सत्तास्थान होते है । इनमे से २१ प्रकृतिक उदयस्थान के ८ भङ्ग तथा २६ प्रकृतिक उदयस्थान के २८८ भङ्ग, इनमें से प्रत्येक भङ्ग मे पूर्वोक्त पाँच-पाँच सत्तास्थान होते है । क्योकि ७८ प्रकृतियो की सत्ता वाले जो अग्निकायिक और वायुकायिक जीव हैं वे यदि असज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्तको मे उत्पन्न होते है तो उनके २१ और २६ प्रकृतिक उदयस्थान रहते हुए ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान पाया जाना सभव है । किन्तु इनके अतिरिक्त शेष उदयस्थानो और उनके भङ्गो मे ७८ के बिना शेष चार-चार सत्तास्थान ही होते है ।
इस प्रकार से अभी तक तेरह जीवस्थानो के नामकर्म के बधादि स्थानो और उनके भङ्गो का विचार किया गया । अब शेप रहे चौदहवें सज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान के बधादि स्थानो व भङ्गो का निर्देश करते हैं । इस जीवस्थान के बधादि स्थानों के लिये गाथा मे सकेत किया गया है - 'अट्ठदसग ति सन्नी य' अर्थात् सज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान मे आठ बधस्थान, आठ उदयस्थान और दस सत्तास्थान है । जिनका स्पष्टीकरण नीचे किया जाता है ।
नाम कर्म के २३, २५ २६, २८ २९, ३०, ३१ और १ प्रकृतिक, ये आठ बधस्थान बतलाये हैं । ये आठो बधस्थान सज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त जीवो के होते है और उनके १३९४५ भङ्ग सभव हैं। क्योकि इनके चारो गति सम्बन्धी प्रकृतियो का बध सम्भव है, इसीलिये २३ प्रकृतिक आदि बधस्थान इनके कहे हैं । तीर्थंकर नाम और आहारकचतुष्क का भी इनके बध होता है इसीलिये ३१ प्रकृतिक बधस्थान कहा है । इस जीवस्थान मे उपशम और क्षपक दोनो श्रेणियाँ पाई जाती हैं इसीलिये १ प्रकृतिक बधस्थान भी कहा है ।
उदयस्थानो की अपेक्षा विचार करने पर और २०, ६ और प्रकृ तिक ये तीन उदयस्थान केवली सम्वन्धी हैं और २४ प्रकृतिक उदयस्थान एकेन्द्रियो को होता है अत इस जीवस्थान मे २०, २४, ६ और ८ प्रकृतिक, इन चार उदयस्थानो को छोडकर शेप यह जीवस्थान वारहवें गुणस्थान तक ही पाया जाता है । २१, २५, २६, २७, २८, २३ ३०, ३१ प्रकृतिक ये आठ उदयस्थान पाये जाते है। इन आठ उदयस्थानों के कुल भग ७६७१ होते है । क्योंकि १२ उदयस्थानों के कुल भग ७७६१ हैं सो उनमे से १२० भग कम हो जाते हैं, क्योकि उन भगो का संबंध सज्ञी पवेन्द्रिय पर्याप्त जीव से नही है ।
नामकर्म के सत्तास्थान १२ हैं, उनमे से 8 और ८ प्रकृतिक सत्तास्थान केवली के पाये जाते है, जत वे दोनो मज्ञी पचेन्द्रिय जीवस्थान मे सभव नहीं होने से उनके अतिरिक्त ६३, ६२, ८६, ८८, ८६,८०, ७ ७५, ७६ और ७५ प्रकृतिक, ये दन सत्तास्थान पाये जाते हैं । २१ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानों के क्रमश और २८८ भगो मे से तो प्रत्येक भग मे १२,८८,८६,८०और ७६ प्रकृतिक, ये पांच-पांच सत्तास्थान ही पाये जाते है ।
गो० रमाड गाथा ६०९ मे नामकर्म के ८३, ६२, ९१, २०,८८८८, ८२,८७,७८, २७, ४० और प्रकृतिक ये १३ मत्तास्थान तलाये है । इन 1 सीपजीवस्थान १० और प्रकृतिक सत्तास्वान को छोडकर नास्थान बतलाये १ -- दमणवपरिहोणमव्वय
चत ॥
ताम्र और दिम्बिर मन्थो नाम के निम्नलिमित नताराना पनि ३६८और शनि और बारी के मतास्थानों में प्रतियों में मिलता है । देवनार ६२५ प्रति तथा दिगम्बर २०२० प्रतिपत्तास्थान बना हू ।
इस प्रकार चौदह जीवस्थानों में बधादि स्थानो और उनके भगो का विचार किया गया । अब उनके परस्पर सवेध का विचार करते हैं । सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवो के २३ प्रकृतिक बधस्थान मे २१ प्रकृतिक उदयस्थान के रहते ६२,८८,८६, ८० और ७८ प्रकृतिक, ये पाच सत्तास्थान होते हैं । इसी प्रकार २४ प्रकृतिक उदयस्थान मे भी पाच सत्तास्थान होते हैं । कुल मिलाकर दोनो उदयस्थानो के १० सत्तास्थान हुए । इसी प्रकार २५, २६, २६ और ३० प्रकृतियो का बध करने वाले उक्त जीवो के दो-दो उदयस्थानो की अपेक्षा दस-दस सत्तास्थान होते हैं । जो कुल मिलाकर ५० हुए । इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त आदि अन्य छह अपर्याप्तो के ५० -५० सत्तास्थान जानना किन्तु सर्वत्र अपने-अपने दो-दो उदयस्थान कहना चाहिये ।
सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त के २३, २५, २६, २६ और ३० प्रकृतिक, ये पाच बधस्थान होते है और एक-एक बधस्थान मे २१, २४, २५ और २६ प्रकृतिक, ये चार उदयस्थान होते है । अत' पाच को चार से गुणित करने पर २० हुए तथा प्रत्येक उदयस्थान मे पाच-पाच सत्तास्थान होते है अतः २० को ५ से गुणा करने पर १०० सत्तास्थान सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में होते है ।
बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त के भी पूर्वोक्त २३, २५, २६, २६ और ३० प्रकृतिक, पाच बधस्थान होते है और एक-एक बघस्थान मे २१, २४, २५, २६ और २७ प्रकृतिक, ये पाच-पाच उदयस्थान होते है, अत· ५ को ५ से गुणा करने पर २५ हुए । इनमे से अन्तिम पाच उदयस्थानो मे ७८ के बिना चार-चार सत्तास्थान होते है, जिनके कुल भग २० हुए और शेप २० उदयस्थानो मे पाच-पाच सत्तास्थान होते है, जिनके कुल भग १०० हुए । इस प्रकार यहाँ कुल भग १२० होते हैं ।
दीन्द्रिय पर्याप्त के २३, २५, २६, २७ और ३० प्रकृतिक, ये पाच
वधस्थान होते है और प्रत्येक वधस्थान मे २१, २६, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये छह उदयस्थान होते हैं। इनमें से २१ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानो मे पाच-पाच सत्तास्थान है तथा शेप चार उदयस्थानो मे ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान के सिवाय चार-चार सत्तास्थान हैं । ये कुल मिलाकर २६ सत्तास्थान हुए। इस प्रकार पाच वधस्थानो के १३० भग हुए ।
द्वीन्द्रिय पर्याप्त की तरह त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय पर्याप्त के वधस्थान आदि जानना चाहिये तथा उनके भी १३०, १३० भङ्ग होते हैं ।
असज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में भी २३, २५, २६, २६ और ३० प्रकृतिक, इन पाच वधस्थानों में से प्रत्येक वधस्थान मे विकलेन्द्रियो की तरह छब्बीस भङ्ग होते हैं जिनका योग १३० है । परन्तु २८ प्रकृतिक वधस्थान मे ३० और ३१ प्रकृतिक ये दो उदयस्थान ही होते हैं । जत यहा प्रत्येक उदयस्थान मे ९२,८८ और ८६ प्रकृतिक ये तीन-तीन सत्तास्थान होते है । इनके कुल ६ भङ्ग हुए । यहा तीन सत्तास्थान होने का कारण यह है कि २८ प्रकृतिक वधस्थान देवगति और नरकगति के योग्य प्रकृतियो का वध पर्याप्त के ही होता है। इसी प्रकार जसज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान मे १३०+६=१३६ भङ्ग होते है ।
सभी पचेन्द्रिय पर्याप्त के २३ प्रकृतिक वधस्थान में जैसे जमज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त के २६ सत्तास्थान वतलाये, वैसे यहां भी जानना
टावतियधराना पुनस्तपा एवोदयस्पाने, तद्यथा- विशदेकविदा प्रत्येक नोणि प्रोणि सत्तास्थानानि तथथा- द्विनवति नष्टाशोपित नष्टविहिं देवगनियोग्य नायाग्यावा ततस्तस्या उभ्यमानापानवदन वैश्चिचतुष्टयादि बध्यते इत्यशीति-अष्टसप्त/ - सप्ततिश प्रकरण टोका, पृ० २०५ |
5961082b64b8a434734e5b540d8700ac375de639802a6c3b045e878f9931d63e | pdf | चौथा अध्याय ।
रणजीत का लाहौर अधिकार और महाराज की पदवी धारण करना ।
सध्या का समय है। अभी अच्छे प्रकार से सूर्य अस्त नहीं हुए हैं। कुछ कुछ किरणो को लाली वाकी है। पश्चिम प्रात मे कुछ बादल के टुकडे डूबते हुए सूरज की मुनहली किरणों में रजित हो एक अपूर्व शोभा को धारण कर रहे हैं । भगवान् अशुमाली अभी एक वृक्ष के शिखर के पीछे दिखाई द रहे थे। किरणों में मध्यान्हकाल जैसी प्रसरता न थी । देसते नेसते मधन वृक्षों के बीच बीच से मद मद किरणे कहीं कहीं फूट फूट कर आने लगी । एक प्रकार की शीतल पर सुसदायक हवा चल रही श्री, जिसके झकोरे से धान के सेतों में एक अनोसीपैदा हो रहा थी, मानों पृथिवी देवी ने लहरिया डोरिण्डार धानी टुपट्टा ओढा हो जो सूर्य देव की चला चली की तैयारी देस अपनी शोभा अदृश्य हो जाने की आशका से चचलता के कारण मँभाले नहीं सँभलता और फर फर उड़ा जाता है । लेखिए, धीरे धीरे भगवान् अशुली ने अस्ताचल को गमन किया । वही मुसहायक हवा अब वुद्ध और भी आनद और शातिप्रद मालूम पड़ने लगी । ग्रामों से बाहर खेत में काम करते हुए किसानों ने हल कधे पर रसा, कृपक-चालकों ने गायो को
कर मधुर स्वर से गायन करते हुए अपनी कुटिया की
ओर पयान किया। दो एक बछडे जो पिछड़ गए थे, दौड़ दौड कररभाते हुए अपनी माता के पास आने लगे और माता प्रेम से उनका शरीर चाटने लगी। एक ओर ग्राम पथ में तो यह दृश्य था, दूसरी ओर पास ही राजमार्ग पर दूल से गोधूली लग्न में कृपकों ने बडी धूल उडती हुई देसी जो इधर ही को आ रही थी, इस लिये इसका यर्थाथ कारण जानने की इच्छा से वे लोग ठहर गए । इस ही पद्रह मिनिट बाद कुछ शस्त्रधारी सवार दिसाई दिए, जिनके चमकते हुए नेजों पर केसरिए रग की झडिया उड रही थीं। पोशाक भी इन सबों की हल्के केसरिए अथवा मोनजर रंग की थी, जो दूर से सुवर्ण की तरह चमक रही थी । गिनती मे ये सब सवार पाच हजार से कम न थे, जो कमर में तलवार लटकाए, पीठ पर बट्टक बाँधे बडी शान में फौजी कायदे के अनुसार घोडे को चलाते हुए आ रहे थे, इन सबो के आगे सफेद अरवी घोडी पर सवार एक बीस वर्ष का नवयुवक हाथ मे नगी तलवार लिए और वसती साफा वाँधे वडी ज्ञान से उटा था। कमर मे पिस्तौल खुसी हुई थी और पीठ पर ढाल और बंदूक दोनो कसी थी । यह शरीर का हरीला जवान उन्ही किसानो की ओर एक आँस कानी होने के कारण, एक ही आँस से बड़ी तेजी से, भेद भरी और सोज भरी दृष्टि से सता हुआ आगे आगे घोडी छोडे चला आ रहा था । पाठको को रहना नहीं होगा कि यही बहादुर सुकरचकिया मिसल का सर रणजीत सिंह है जिसकी कानी ऑरस का जिक्र ही उसे पहच नवा देने के लिये यथेष्ट है। अस्तु, रणजीत सिंह अपने पूरे
ठाठ पाठ से सवत १८५६ मा के आपाद माम कृष्ण पक्ष की एक सध्या को पाच हजार मालसा नीरो के साथ लाहौर के बाहरी ग्रामों का मायकालीन दृश्य देखता हुआ, नगर के निकट जा पहुँचा और पहले के प्रबंध के अनुसार नगर के बाहर नवाब वजीरयों की पारदरी में उसने डेरा डाला। यह स्थान लाहौर के अनारकली बाजार मे है, जहाँ अन मर्कारी पुस्तकालय स्थापित है । इसीके निक्ट मेना ने भी पडान डाला। उस स्थान पर आजकल सर्कारी डाकखाना बना हुआ हे, मानो पहले ही से भगवान् ने यह सूचित कर दिया कि रणजीत की चढ़ती हुई कीर्त्ति की चर्चा केवल पुस्तकों में रह जायगी अथवा साल्सा सेना वृटिश गवर्नमेंट की सेवक हो उसके राज्य को एक देश से दूसरे देश में फैलाने का कार्य करगी । सैर जो हो, रणजीत ने अपने पहुचने का सवा लौहार के पटयनकारी रईसों के पास गुमचरो द्वारा भेज दिया। गत ही को दृत लौट कर आया और उसने यह सँसा दिया कि "हम लोगों ने सब काम ठीक कर रक्सा है, आप रात्रि के समय फाटक की एक रिडकी की राह से पहले छिप कर आइए और सलाह मशविरा हो जाने के उपरात फिर दूसरी कारवाई की जायगी ।" रणजीत ने कहला भेजा कि " मैं उत्त प्रकार से कदापि न आऊँगा । जय आऊँगा ससैन्य दिन के समय फाटक की राह से नगर में प्रवेश करूँगा । जैसा पहले इतजाम हो चुका है उसमें अब उलट फेर नहीं होना चाहिए।" रणजीत सिंह के आने का समाचार लाहौर के शासक सर्दारो को भी निदित हो गया। दूसरे दिन सबेरे हो करीव पाच सौ सवारो
ने आकर रणजीत की सेना पर हल्ला बोल दिया। पाँच हजार प्रवल वीरो के सामने ये क्या चीज थे । भुट्टा ऐसे काट कर निछा दिए गए। दूसरे दिन उसने कहला भेजा कि कल प्रात काल भवत १८५६ आपाढ कृष्ण ५ को साढ़े सात बजे लुहारी दरवाजा सुला रहना चाहिए । उसी द्वार से मे प्रविष्ट होउँगा । अस्तु, उहिसित रईसी ने वैसा ही प्रबंध कर दिया और चार हजार सवारों को बाहर छोड केवल एक हजार सवारो के साथ ग्णजीत उस दिन प्रात काल नगर की ओर चला । उम ओर आते ही द्वार खुला मिला और "वाह गुरू की फतह " कायारण कर सनों ने वे रोक टोक नगर में प्रवेश किया । नगर में प्रविष्ट हो रणजीत ने सीधे किले की तरफ घोडे की वागडोर उठाई । रणजीत के उधर जाने के बाद निपक्षियों का सर चेतसिह कुछ सेना के साथ लुहारी दरवाजे की ओर आया, पर यहाँ द्वार पर जो रक्षक थे सबके सब रणजीत मे मिले हुए थे, सो उन्होंने झूठे ही सर्दार चेतसिह से कह दिया कि "रणजीत इधर आया था, पर हम लोगो को मचेत पा दिल्ली दर्वाजे की तरफ चला गया है । आप फौरन उधर जा कर उसका मार्ग रोकिए ।" सर चेतसिंह जन उधर की तरफ चला गया तो इन लोगो ने पुन द्वार सोल कर बाकी के और चार हजार सवारों को भी भीतर ले लिया । चेतासंह को ज्याद हुल्लड देस कर द्वारपालों का धोसा मालूम अब तो सर्दार हो गया और वह बेतहाशा घौडा दौडा किले के भीतर एक गुम मार्ग से रणजीत के पहुँचने के पहले ही जा घुसा और फाटक बद कर उसने बुर्जियों पर तोपें चढा दी। बाकी के दो सर्दार
ठाठ पाठ मे सवत १८५६ विनमान्द के आपाद माम कृष्ण पक्ष की एक सध्या को पाच हजार सालमा नीरों के साथ लाहौर के बाहरी प्रमों का सायकालीन दृश्य देखता हुआ, नगर के निकट जा पहुँचा और पहले के प्रबंध के अनुसार नगर के बाहर नवान बजीरसों की यारहरी में उसने डेरा डाला। यह स्थान लाहोर के अनारकली बाजार में है, जहाँ अन मर्कारी पुस्तकालय स्थापित है। इसीके निक्ट मेना ने भी पडाव डाला। उस स्थान पर आजकल सर्कारी डाकसाना बना हुआ है, मानो पहले ही मे भगवान् ने यह सूचित कर दिया कि रणजीत चढ़ती हुई वीर्त्ति की चर्चा केवल पुस्तकों में रह जायगी अथवा साल्सा सेना वृटिश गवर्नमेंट की वो उसके राज्य को एक देश से दूसरे देश मे फैलाने का कार्य करेगी। सैर जो हो, रणजीत ने अपने पहुंचने का सवा लौहार के पडयनकारी रईसों के पास गुप्तचरों द्वारा भेज दिया। गत ही को दूत लौट कर आया और उसने यह सँसा दिया कि "हम लोगों ने सब काम ठीक कर रखा है, आप रात्रि के समय फाटक की एक सिडकी की राह से पहले डिप क आइए और सलाह मशविरा हो जाने के उपरात फिर दूसरी कारवाई की जायगी ।" रणजीत ने कहला भेजा कि " मैं उत्त प्रकार से कदापि न आऊँगा । जब आऊँगा मसैन्य दिन के समय फाटक की राह से नगर मे प्रवेश करूँगा । जैसा पहले इतजाम हो चुका है उसमें अब उलट फेर नहीं होना चाहिए। रणजीत सिंह के आने का समाचार लाहौर के शासक सर्दारों को भी विदित हो गया। दूसरे दिन सबेरे ही करीन पाच सौ सवारो
ने आकर रणजीत की सेना पर हल्ला बोल दिया। पाँच हजार प्रवल वीरा के सामने ये क्या चीज थे । भुट्टा ऐसे काट कर निछा दिए गए। दूसरे दिन उसने कहला भेजा कि कल प्रात काल संवत १८५६ आपाढ कृष्ण ५ को साढ़े सात बजे लुहारी दरवाजा खुला रहना चाहिए। उसी द्वार से मैं प्रविष्ट होऊँगा । अस्तु, उल्लिखित रईसो ने वैसा ही प्रवध कर दिया और चार हजार सवारों को बाहर छोड केवल एक हजार सवागे के साथ रणजीत उस दिन प्रात काल नगर की ओर चला । उस ओर आते ही द्वार खुला मिला और "नाह गुरू की फतह" का उधारण कर सबो ने ये रोक टोक नगर मे प्रवेश किया । नगर में प्रविष्ट हो रणजीत ने सीधे किले की तरफ घोड़े की बागडोर उठाई । रणजीत के उधर जाने के बाद विपक्षियों का सदर चेतमिह कुछ सेना के साथ लुहारी दरवाने की ओर आया, पर यहाँ द्वार पर जो रक्षक थे सबके सब रणजीत से मिले हुए थे, सो उन्होंने झूठे ही सर्दार चेतसिंह मे कह दिया कि "रणजीत इधर आया था, पर हम लोगो को सचेत पा दिवजे की तरफ चला गया है । आप फौरन उधर जा कर उसका मार्ग रोकिए ।" सर्दार चेतसिंह जT उधर की तरफ चल गया तो इन लोगों ने पुन द्वार सोल कर बाकी के ओर चार हजार सवारो को भी भीतर ले लिया । अन तो सर्दार चेतसिंह को ज्याद हुड़ देख कर द्वारपालों का धोसा मालूम हो गया और वह नेतहाशा घौड़ा दौडा' किले के भीतर एक गुम मार्ग से रणजीत के पहुँचने के पहले ही जा घुसा और फाटक बद कर उसने चुजियो पर तोपें चढा दीं। बाकी के दो सदर
पहले भाग चुके थे। अस्तु, रणजीत ने जन किले पर तोपें चढी देखी तो वह ठहर गया और अपने तोपखाने को बुलवा कर उसने आगे किया । अब दोनों ओर से दनादन तोपे छूटने लगी और अभिलीला होने लगी। दिनभर लड़ाई जारी रही। इस मौके पर रणजीत की बहादुर और चतुर सास सदाकुँवर भी साथ थी । उसने रणजीत को समझाया कि "मुस्तैदी से क्लेि को चारों ओर से घेर लो, जिसमे किसी मार्ग से भी कोई सामान भीतर न जाने पावे क्यो कि मुझे सनर लग चुकी है कि किले के भीतर बहुत थोडे से सिपाही हैं और युद्ध की में सामग्री भी बहुत कम है। ढो ही एक दिन मे किला हाथ आ जायगा ।' रणजीत ने ऐसा ही किया । किले को चारा और मे घेर कर, सव मार्ग बद कर दिए गए। उसका फल भी वैसा ही हुआ । वास्तव मे बुद्धिमती सदाकुँवर ने जो बात यही थी यह सही निकली। सर्दार चेतसिंह ने जन देखा कि फिला चारों तरफ से घिर गया और युद्ध की सामग्री यथेष्ट नहीं है तो दूसरे ही दिन प्रात काल उसने सुलह का पैगाम भेजा । रणजीत ने कहला भेजा कि "यदि शांतिपूर्वक मिला छोड़ दो, तो तुम्हारे साथ अठा वर्ताव किया जायगा ?" सन्दर चेतसिंह तत्काल ही घोड़े पर सवार हो कर किले के आया और उसने किले के सिलहाने और सजाने की ताला का गुच्छा रणजीत को अर्पण किया। रणजीत ने उसकी बहुत प्रतिष्ठा की और उसी समय जीविकानिर्वाह के लिये उसे श्राम-जागीर में दान किए। वह तत्काल ही लाहौर त्यागकर अब तो ग्णजीत ने बडी खुशी खुशी किले में |
7d0b050711eace55e02fe87f85d12111e4f2de446d85f8cdfbc77689e8cd33d6 | pdf | वर्ष २. किरण ८]
स्वरूप भी देखने में आते हैं। उदाहरण के लिये महान् ग्रंथकार हाकलंकदेवक'लधीयस्त्रय' और 'न्यायविनिश्वय'. जैसे कुछ ग्रंथोंको प्रमागामें पेश किया जा सकता है, जिनका पहला पय अनुप छन्दमें है जो प्रायः अनुष्टुप् छन्दमें ही लिंग्वे गये हैं; परन्तु उनमेमे प्रत्येक का दूसरा पद्य 'शार्दूलविक्रीडित छन्दमें है और वह कण्टकशुद्धिको लिये हुए ग्रंथका खास अंगस्वरूप है । सिद्धिविनिश्चय ग्रंथ में भी इसी पद्धतिका अनुसरण पाया जाता है। ऐसी हालतमं छन्दभेदके कारण उक्त दोनों पद्योंको प्रक्षिप्त नहीं कहा जामकता ।
ग्रंथ के प्रथम पद्यमं निष्कलात्मरूप सिद्ध परमात्माको और दूसरे पद्य मकलात्मरूप परमात्माको नमस्काररूप मंगलाचरण किया गया है --परमात्मा के ये ही दो मुख्य अवस्थाभेद हैं, जिन्हें इप्र समझकर स्मरण करते हुए यहाँ थोड़ा-सा व्यक्त भी किया गया है। इन दोनों पद्यों में ग्रंथ रचना सम्बन्धी कोई प्रतिज्ञा वाक्य नहीं है - ग्रंथ के अभिधेय-सम्बन्ध प्रयोजनादिको व्यक्त करता हुआ वह प्रतिज्ञा - वाक्य पद्य नं० ३ में दिया है; जैसा कि ऊपर उसके उल्लेग्बसे स्पष्ट है और इसलिये शुरू के ये तीनों पद्य परस्पर में बहुत ही सुसम्बद्ध है - उनमें से दो के प्रक्षित होनेकी कल्पना करना, उन्हें टीकाकार प्रभाचन्द्र के पद्य बतलाना और उनकी व्यवस्थित टीकाको किसीका टिप्पण कहकर यों ही ग्रंथमं घुमड जानकी बात करना बिल्कुल ही निराधार जान पड़ता है। डा० साहब प्रथम पद्यमे प्रयुक्त हुए "अयानन्तबोधाय तस्मै सिद्धात्मने नमः" - उस अक्षय अनन्त बोधस्वरूप परमात्माको नमस्कार - इस वाक्यकी मौजूदगीमें, तीसरे पद्यमे निर्दिष्ट हुए ग्रंथ के प्रयोजनको अप्रस्तुत स्थलका ( बेमौका ) बतलाते हुए उसे अनावश्यक तथा पुनरुक्त तक प्रकट करते हैं, जब कि प्रस्तुत स्थलता और
पुनरुक्तताकी वहां कोई गन्ध भी मालूम नहीं होती; परन्तु टीका के मगलाचरण पद्य में प्रयुक्त हुए "वचमे समाधिशतकं" में समाधिशतक की व्याख्या करता हूँ - इस प्रतिज्ञा वाक्यकी मौजूदगीमें तीसरे पद्यको टीकाकारका बतलाकर उसमें प्रयुक्त हुए प्रतिज्ञा वाक्यको प्रस्तुत स्थलका आवश्यक और पुनरुक्त समझते हैं, तथा दूसरे पद्यको भी टीकाकारका बतलाकर प्रतिज्ञा के अनन्तर पुनः मंगलाचरणको उपयुक्त समझते हैं यह सब अजीब सी ही बात जान पड़ती है !! मालूम होता है आपने इन प्रभाचन्द्र के किसी दूसरे टीका ग्रंथके साथ इस टीकाकी तुलना भी नहीं की है। यदि रत्नकरण्ड श्रीवकाचार की टीका के साथ ही इस टीकाकी तुलना की होती तो आपको टीकाकार के मंगलाचरणादि विषयक टाइपका-लेखनशैली का -- कितना ही पता चल गया होता और यह मालूम होगया होता कि यह टीकाकार अपनी ऐसी टीका के प्रारम्भ में मंगलाचरण तथा प्रतिज्ञाका एक ही पद्य देते हैं और इसी तरह टीका के अन्त में उपसंहारादि का भी प्रायः एकही पद्य रखते हैं; और तब आपको मूलग्रंथ के उक्त दोनों पद्य (नं० २, ३ ) को बलात् टीकाकारका बतलानेकी नौबत ही नती।
हां, एक बात यहाँ और भी प्रकट कर देनेकी है और वह यह कि, डा० साहब जब यह लिखते हैं कि "पूज्यपादांनी हा विषय श्रागम, युक्ति आणि अंतःकर गाची एकाग्रता करून त्यायोगे स्वानुभव संपन्न होऊन त्याच्या आधारे स्पष्ट आणि सुलभ रीतीने प्रतिपादला आहे", तब इस बातको भुला देते हैं कि यह श्रागम, युक्ति और अन्तः तःकरण की एकाग्रता द्वारा सम्पन्न स्वानुभव के आधार पर अंथरचनेकी बात पूज्यपादने ग्रंथके तीसरेंपद्यमे ही तो प्रकट की है वहीं से तो वह उपलब्ध होनी होती है; फिर उस पद्यको मूलग्रंथका माननेंस क्यों
इनकार किया जाता है और यदि यह बात उनकी खुदकी जाँच पड़ताल तथा अनुसंधान से सम्बन्ध रखती हुई होती तो वे आगे चलकर, कुछ तत्सम-ग्रन्थोंकी सामान्य तुलना का उल्लेख करते हुए, यह न लिखते कि 'उपनिषद् ग्रंथके कथनको यदि छोड़ दिया जाय तो परमात्मस्वरूपका तीन पदरूप वर्णन पूज्यपादने ही प्रथम किया है ऐसा कहने में कोई हरकत नहीं; क्योंकि पूज्यपादसे पहले कुन्दकुन्दके मोक्षप्राभूत (मोक्खपाहुड) ग्रन्थमं त्रिधात्माका बहुत स्पष्ट रूप से वर्णन पाया जाता है और पूज्यपादने उसे प्रायः उसी ग्रंथपरसे लिया है; जैसा कि नमूने के तौर पर दोनों ग्रंथों के निम्न दो पद्योंकी तुलनासे प्रकट है और जिससे यह स्पष्ट जाना जाता है कि समाधितंत्रका पद्य मोक्षप्राभूतकी गाथाका प्रायः अनुवाद
[ ज्येष्ठ वीर निर्वाण सं० २४६५ विषय और पूर्वपद्यों के साथ इनके प्रतिपाद्य विषयक श्रमम्बद्धता बतलाते हैं ----लिखते हैं "या दोन श्रीकांच्या प्रतिपाद्य विषयांशीं व पूर्व श्लोकांशी काहींच संवन्ध दिसत नाहीं ।" साथ ही, यह भी प्रकट करते हैं कि ये दोनों श्लोक कब, क्यों और कैसे इस ग्रंथमं प्रविष्ट ( प्रक्षिप्त ) हुए हैं उसे बतलानेके लिये वे
है। पिछली बात के अभाव में इन पद्योंकी प्रक्षि ताका दावा बहुत कमज़ोर होजाता है; क्योंकि सम्बद्ध ताकी ऐसी कोई भी बात इनमें देखनेको नहीं मिलती। टीकाकार प्रभाचन्द्रने अपने प्रस्तावना -वाक्योंके द्वारा पूर्व पद्यांके साथ इनके सम्बन्धको भने प्रकार घोषित किया है। वे प्रस्तावना वाक्य अपने अपने पद्यके साथ इस प्रकार हैंःतिपयारो सो अप्पा परमंतरबाहिरो हु दे हीणं । तत्थ परो भाइज्जइ अन्तोवाण चयहि बहिरप्पा ॥ - मोक्षप्राभृतः बहिरन्तः परश्चेति त्रिधात्मा सर्वदेहिषु । उपेयास्त्र परमं मध्योपायावहिस्त्यजेत् ॥ -समाधितंत्रम्
मालूम होता है मैंने अपने उक्त लेख में ग्रंथाधारकी जिस बातका उल्लेख करके प्रमाण ग्रन्थके पद्य नं० ३को उद्धृत किया था और जो ऊपर इस प्रस्तावना लेखमें भी पद्य नं० ३ के साथ ज्याँकी त्यों दी हुई है उसे डा० माहवने अनुवादरूप में अपना तो लिया परन्तु उन्हें यह खयाल नहीं आया कि ऐसा करनेसे उनके उस मन्तव्यका स्वयं विरोध होजाता है जिसके अनुसार पद्य नं. ३ को निश्चितरूपसे प्रक्षित कहा गया है। अस्तु ।
रही पद्यनं० १०३, १०४ की बात, इनकी प्रक्षितताका कारण डा० साहब ग्रन्थके प्रतिपाद्य
"ननु यद्यात्मा शरीरात्सर्वथा भिन्नस्तदा कथमात्मनि चलति नियमेन तञ्चलेन् तिष्टति तिष्टेदिति वदन्तं प्रत्याहप्रयतादात्मनो वायुरिच्छा द्वेषप्रवर्तितात् ।
वायोः शरीरयंत्राणि वर्तन्ते स्वेषु कर्मसु ॥ १०३ ॥ " "तेषां शरीरयन्त्राणामात्मन्यारोपाऽनारोपी कृत्वा जडविवेकिनौ किं कुर्वत इत्याहतान्यात्मनि समारोप्य साक्षाण्यास्ते सुखं जडः । व्यक्त्वाssरोपं पुनर्विद्वान् प्राप्नोति परमं पदम् ॥१०४॥"
इन प्रस्तावना-वाक्योंके साथ प्रस्तावित पद्योंके अर्थको देखकर कोई भी सावधान व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि इनका ग्रंथके विषय तथा पूर्व पद्योंके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है - जिस मूलविषयको ग्रन्थमं अनेक प्रकार से पुनः पुनः स्पष्ट किया गया है उसीको इन पद्योंमें भी प्रकारान्तरसे और भी अधिक स्पष्ट किया गया है और उसमें पुनरुक्तता जैसी भी कोई बात नहीं है। इसके सिवाय, उपसंहारके पूर्व, ग्रंथकं विषयकी समाप्ति भी 'अदुःखभावितं' नाम के भावनात्मक पद्य नं० १०२ की अपेक्षा पद्य नं०
वर्ष २, किरण ८].'
१०४ के माथ ठीक जान पड़ती है; जिसके अन्त में साध्यकी मिद्धि के उल्लेखरूप प्राप्नोति परमं पदम्' वाक्य पड़ा हुआ है और जो इस ग्रन्थकं मुख्य प्रयोजन अथवा ग्रात्मा के अन्तिम ध्येयको स्पष्ट करता हुआ विषयको समाप्त करता है ।
अब में पद्य १०५ को भी लेता हूं, जिसे डाकटर साहवने सन्देह कोटि में रखा है। यह मंदिग्भ नहीं है बल्कि मूलग्रंथका अन्तिम उपसंहार पय है; जैसा कि मैंने इस प्रकरण के शुरूमं प्रकट किया है । पूज्यपादके दूसरे ग्रंथीमं भी, जिनका प्रारम्भ अनुप छन्दके पद्यों द्वारा होता है, ऐसे ही उपसंहारपद्य पाये जानें हैं जिनमें ग्रंथकथित विषयका संज्ञेपमं उल्लेख करते हुए ग्रंथका नामादिक भी दिया हुआ है । नमुनेके तौर पर 'टोपदेश' और 'सर्वार्थसिद्धि' ग्रंथोंके दो उपसंहारपद्यांको नीचे उद्धृत किया जाता है :।
इष्टोपदेशमिति सभ्यगधीत्य धीमान मानाऽपमानसमतां स्वमताद्वितन्य । मुक्ता ग्रहो विनिवसनसजने वने वा मुक्तिश्रियं निकमामुपयः ति भव्यः ॥ "
-इष्टोपदेशः ।
स्वर्गःपवर्गसुखमाप्त मनोभिरायें9
जैनेन्द्रशासनवरा मृतसारभृता । सर्वार्थसिद्धिरिति सद्भिरुपालनामा तस्वार्थवृत्तिरनिशं मनमा प्रधार्या ॥
· सर्वार्थसिद्धिः
इन पद्यपरमे पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि ये दोनों पद्य भी रमी वसन्ततिलका छन्दमें लिखे गये हैं जिसमें कि समाधितंत्रका उक्त उपसंहार-पद्य पाया जाता है। तीनों ग्रंथोंके ये तीनों पद्य एक ही टाइपके है और वे अपने एक ही प्राचार्यद्वारा ग्चे जानेकी स्पष्ट
घोषणा करते हैं । इसलिये समाधिततंत्रका पद्म नं० १०५ पूज्यपादकृत ही है, इसमें सन्देह को ज़रा भी स्थान नहीं है ।
जब पद्य नं० १०५ श्रसन्दिग्धरूपसे पूज्यपादकृत है तब ग्रन्थका असली मूलनाम भी 'समाधितन्त्र' ही है; क्योंकि इसी नामका उक्त पद्य में निर्देश है, जिसे डा० सावने भी स्वयं स्वीकार किया है। और इसलिये 'समाधिशतक' नामकी कल्पना बादकी है-- उसका अधिक प्रचार टीकाकार प्रभाचन्द्र के बाद ही हुआ है। श्रवणबेल्गोल के जिस शिलालेख नं० ४० में इस नामका उल्लेख है वह विक्रमकी १३वीं शताब्दीका है और टीकाकार प्रभाचन्द्रका समय भी विक्रमी १३वीं शताब्दी है ।
इस तरह इस ग्रंथका मूलनाम 'समाधितंत्र' उत्तरनाम या उपनाम 'समाधिशतक' है और इसकी पद्यसंख्या १०५ है - उसमें पाँच पद्यांके प्रक्षित होनेकी जो कल्पना की जाती है वह निरी निर्मूल और निराधार है । ग्रंथकी हस्तलिखित मूल प्रतियों में भी यही १०५ पद्यसंख्या पाई जाती हैं । देहली आदि अनेक भण्डा रोमं मुझे इस मूलग्रंथकी हस्तलिखित प्रतियोंके देखने कार मिला है - देहली सेठके कुँचेके मन्दिर में तो एक जीर्ण-शीर्ण प्रति कईसौ वर्षकी पुरानी लिखी हुई जान पड़ती है। श्रारा जैन सिद्धान्त भवन के अध्यक्ष पं० के० भुजबलीजी शास्त्री से भी दर्याप्त करनेपर यही मालूम हुआ है कि वहाँ ताडपत्रादि पर जितनी भी मूलप्रतियाँ हैं उन सबमें इस ग्रन्थकी पद्मसंख्या १०५ ही दी है। और इसलिये डा० साहबका यह लिखना उचित प्रतीत नहीं होता कि 'इस टीकासे रहित मूलग्रंथकी हस्तलिखित प्रतियां उपलब्ध नहीं है । '
ऐसा मालूम होता है कि 'शतक' नामपरसे डा० |
01e33fad90ab7cbad03a8f37b54069d4aaa308de438e8c9271f454b50391df2d | pdf | जम्बूद्वीप के पूर्व महाविदेह क्षेत्र में, वत्स नाम की विजय हैं, जिसमें सुसीमा नाम की एक रमणीय नगरी थी । वहां, धनपति नाम का एक पराक्रमी राजा राज्य करता था, जो धर्म-अर्थ काम और मोक्ष की आराधना करता हुआ प्रजा का पालन करता था । धनपति को संसार से विरक्ति हो गई, इसलिए उसने श्री संवर मुनि के पास दीक्षा धारण कर ली । अनेक प्रकार से ब्राह्माभ्यन्तर तप एवं बीस स्थानकों में से कितने ही स्थानक की आराधना करके धनपति मुनि ने, तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया । अन्त समय में, अनशन करके समाधि सहित शरीर त्याग सर्वार्थ सिद्ध महाविमान में, तैंतीस सागर की आयु वालों महर्द्धिक देव हुआ ।
एक लक्ष योजन के विस्तार वाले इस जम्बूद्वीप के भरतार्द्ध में परम समृद्धिशाली हस्तिनापुर नाम का एक नगर था । वहां ईक्ष्वाकु वंशोत्पन्न महा तेजस्वी महाराजा सुदर्शन राज्य करता था। महाराजा सुदर्शन की रानी का नाम श्रीदेवी था, जो रूप एवं स्त्रियोचित गुणों से परिपूर्ण थीं ।
सर्वार्थसिद्ध विमान का आयुष्य भोग कर, धनपति राजा का जीव फाल्गुन शुक्ला २ की रात में - जय चन्द्र का रेवती नक्षत्र के साथ योग था - महारानी श्रीदेवी के उदर में आया । सुखशैय्या पर शयन किये हुई महारानी श्रीदेवी ने, तीर्थंकर के गर्भसूचक चौदह महास्वप्न देखे । महारानी श्रीदेवी नींद से जाग उठीं। उन्होंने महाराजा सुदर्शन को स्वप्न सुनाये, जिन्हें सुनकर उन्होंने महारानी से यह कहा कि तुम्हारी त्रिलोकपूज्य उत्कृष्ट पुत्र होगा। महारानी श्रीदेवी ने पति के वचन पर विश्वास करके तथास्तु कहा और गर्भ का पालन करने लगीं ।
गर्भ काल समाप्त होने पर, महारानी श्रीदेवी ने, सर्व लक्षण व्यञ्जन युक्त स्वस्तिका के चिन्ह वाले स्वर्णवर्णी पुत्र को जन्म दिया । भगवान का जन्म होते ही क्षण भर के लिए तीनों लोक में प्रकाश हो गया और नैरियकों को भी शान्ति मिली ।
छप्पन दिक्कुमारियों ने, आसनकम्प से भगवान का जन्म हुआ जाना। ये छप्पन दिककुमारियां, आठ-आठ, चारों दिशा में, घार-चार, चारों विदिशा में; चार उर्ध्वलोक में और अधःलोक में वसती हैं । भगवान जन्मे हैं, यह जानकर छप्पन ढिकुकुमारियां, अपने चार हजार सामानिक देव, सोलह हजार आत्मरक्षक देव, बीस हजार तीनों परिषद् के देव, और सात अणिका; भार महत्तरिका आदि परिवार सहित, विमान में बैठ कर, भग★
घान के जन्म गृह में उपस्थित हुई । महारानी श्रीदेवी को नमस्कार करके छप्पन दिक्कुमारियों ने अपना परिचय दिया और माता से प्रार्थना की, कि हम अपने जीताचार के अनुसार भगवान का जन्मकल्याण मनाने के लिए आई हैं, अतः आप किसी प्रकार का भय न करें। इस प्रकार प्रार्थना करके दिककुमारियां अपना-अपना काम करने लगीं ।
दिकूकुमारियों की तरह इन्द्रों ने भी भगवान का जन्म हुआ जाना। तब भुवनपति के बीस, व्यन्तरों के बत्तीस, ज्योतिषियों के दो और वैमानिकों के दस, इन चौंसठ इन्द्र में से त्रैसठ इन्द्र तो के अपने-अपने परिवार सहित सुमेरु गिरि पर पधारे और सौधर्मपति शकेन्द्र महाराज, अपने परिवार सहित माता श्रीदेवी की सेवा में उपस्थित हुए । माता को नमन करके अपना परिचय देकर शकेन्द्र महाराज ने माता को अवश्यव्यापिनी निद्रा दी और भगवान को लेकर, सुमेरुगिरि की ओर प्रस्थान किया । सुमेरु गिरि पर, शकेन्द्र महाराज, भगवान को अपनी गोद में लेकर बैठे, तब शेष नैसठ इन्द्रों ने भगवान को स्नान करा, वस्त्राभूषण पहनाये और भगवान कीपूजा करके आरती उतारी । फिर भगवान को, इशानेन्द्र की गोद में देकर शकेन्द्र महाराज ने, चार - वृषभ वैक्रिय करके उनके अंगो में से जल की धारा, भगवान के ऊपर पहुँचाई और सब ने मिलकर भगवान को
स्नान कराया । फिर भगवान को दिव्य वस्त्रालंकार पहना, भगवान की पूजा की और आरती उतारी । यह हो जाने पर,
गीत नृत्य करके शकेन्द्र महाराज, भगवान को माता के पास
लाये । भगवान की सेवा के लिये, अनेक देव देवियों को नियत करके इन्द्रादि देव अपने-अपने स्थान को गये ।
प्रातःकाल महाराजा सुदर्शन ने
पुत्रजन्मोत्सव मनाकर,
भगवान का अरहनाथ नाम रखा । लालन-पालन के मध्य भगवान, वृद्धि पाने लगे । वाल अवस्था त्याग कर भगवान ने, युवावस्था में प्रवेश किया । उस समय भगवान का तीस धनुष ऊँचा शरीर बहुत सुन्दर मालम होता था । माता-पिता ने अति आग्रह- पूर्वक भगवान का अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह कर दिया ।
दामपत्य सुख भोगते हुए अब भगवान की आयु इक्कीस सहस्र वर्ष की हुई, तब पिता के आग्रह से भगवान ने, राजभार प्रहण किया । भगवान को राज्य करते हुए इक्कीस सहस्र वर्ष व्यतीत हो चुके, उस समय भगवान के आयुधागार में, दिव्य चक्ररत्न प्रकट हुआ । आयुधागार - रक्षक ने, भगवान को, चक्ररत्न प्रकट होने की बधाई दी। भगवान ने, सपरिवार पधार कर, चक्ररत्न की विधिपूर्वक पूजा की । पूजा होते ही चक्ररत्न, आयुधशाला से बाहर निकला और पूर्वाभिमुख आकांश में
स्थित हुआ । भगवान अरहनाथ ने, तत्क्षण सेना सजा कर विजय के लिए प्रधान किया ।
सेना सहित भगवान, नित्य एक योजन चल कर पड़ाव डला देते थे और मार्ग में जितने भी देश नगर आते थे, उनके अधि पति (राजा) से अपनी अधीनता स्वीकार कराते जाते थे । इस प्रकार भगवान, ससैन्य समुद्र तक पहुंच गये और वहां के रक्षक भागधदेव को साधकर, वहां के निरीक्षण का भार उसे सौंप भगवान, दक्षिण दिशा की ओर बढ़े। दक्षिण में वरदाम देव को और पश्चिम में प्रभासदव को साध, भगवान, सैन्य सहित सिन्धुदेवी की ओर बढ़े । सिन्धुदेवी, तथा सिन्ध के पश्चिम भाग को साध भगवान, वैतादयगिरि के निकट पहुंचे। वहां वैताढ्यगिरि देव को साध और गुफाओं के द्वार खोल, भगवान ने उत्तर के तीनों ख़ण्ड साधे । फिर, गंगादेवी और गंगा के पूर्वीय भागों को साधे । इस प्रकार सारे भरतक्षेत्र में अपनी आण प्रवर्तकर चारसौ वर्ष पश्चात भगवान अरहनाथ, चक्रवर्ती की सम्पूर्ण सम्पदा सहित हस्तिनापुर पधारे। हस्तिनापुर में, पच्चीस हजार देवता, बत्तीस हजार मुकुदधारी राजा, और प्रधान सामन्त आदि ने मिलकर भगवान अरहनाथ को चक्रवर्ती पद का अभिषेक किया, जिसका महोत्सव बारह वर्ष तक होता रहा ।
भगवान अरहनाथ ने इक्कोस सहस्र वर्ष तक सम्पूर्ण भरत↑
क्षेत्र पर आधिपत्य किया। एक दिन भगवान आत्मचिन्तवन कर रहे थे, इतने ही में लोकान्तिक देवों ने आकर भगवान से प्रार्थना की, कि प्रभो, तीर्थ प्रवतीइये । भगवान ने तत्क्षण राज१
पाट अपने पुत्र अरविन्द को सौंप दिया और आप वार्षिकदान देने को । वार्षिक दान समाप्त होने पर, दीक्षाभिषेक के पश्चात वस्त्रालंकार धारणकर भगवान, वैजन्ति शिविका में विराजे और देव तथा मनुष्यों द्वारा होने वाले जयजयकार के मध्य, सहस्राम्र बाग में पधारे। वहां, शिविका एवं वस्त्रालंकार त्याग भगवान ने राजपरिवार के एक सहस्र पुरुषों सहित मार्गशीर्ष शुक्ला ११ को दिन के पिछले पहर में, बंड के तप में संयम स्वीकार किया। उसी समय भगवान को मनःपर्यय ज्ञान हुआ ।
दूसरे दिन, राजपुर के अपराजित राजा के यहां भगवान का परमान्न से पारणा हुआ । देवताओं ने, दान की महिमा करने के लिए पांच दिव्य प्रकट किये ।
अप्रतिबंध विहार करते हुए भगवान, तीन वर्ष पश्चात पुनः हस्तिनापुर के सहस्राम्र बाग में पधारें । वहां भगवान, आम्र वृक्ष के नीचे प्रतिमा धारण करके खड़े रहे। ध्यान का तीव्र वेग बढ़ने से, क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ हो, भगवान ने चार घन घातिक कर्म क्षय किये और भगवान को अनन्त केवलज्ञान प्राप्त हुआ । भगवान को केवलज्ञान होते ही, त्रिलोक में प्रकाश हुआ ।
आसनकम्प द्वारा प्रभु को केवलज्ञान हुआ जानकर, असंख्य देवों सहित अच्युतांदि इन्द्र, केवलज्ञान की महिमा करने के लिए उपस्थित हुए। वहीं, समवशरण की रचना हुई, जिसमें बारह प्रकार की परिषद्, भगवान की वाणी श्रवण करने के लिये एकत्रित हुई । भगवान ने, कर्ण - मधुर वाणी का प्रकाश किया, जिसे सुनकर अनेक भव्य जीव प्रतिवोध पाये ।
भगवान अरहनाथ के, कुम्भ आदि तैंतीस गणधर थे। पचास हजार मुनि थे, साठ हजार साध्वी थी । एकलाख चौरासी हजार श्रावक थे और तीन लाख बहत्तर हजार श्राविका थी ।
भगवान अरहनाथ, तीन वर्ष कम इक्कीस हजार वर्ष तक केवली पर्याय में विचरते रहे और अनेक भव्यजीवों का कल्याण करते रहे । अपना निर्वाण काल समीप जान, भगवान अरहनाथ एक हजार मुनियों सहित सम्मेत शिखर पर पधार गये । वहां भगवान ने अनशन कर लिया, जो एक मास तक चलता रहा । अन्त में मार्गशीर्ष शुक्ला १० के दिन - जब चंद्र रेवंती नक्षत्र में आया- अयोगी अवस्था को प्राप्त हो भगवान ने, चार अघातिक कर्म क्षय कर दिये और सिद्ध पद प्राप्त किया ।
भगवान अरहनाथ, इक्कीस हजार वर्ष कुमार पद पर रहे । इक्कीस हजार वर्ष माण्डलिक राजा रहे । इक्कीस हजार वर्ष चक्रवर्ती पद पर रहें । तीन वर्ष स्थ अवस्था में रहे और शेष
केवली पर्याय में व्यतीत की । इस प्रकार भगवान अरहनाथ चौरासी हजार वर्ष की आयु भोग कर, भगवान कुन्थुनाथ के निर्वाण को एक क्रोड़ वर्ष कम पाव पल्योमप व्यतीत होने पर निर्वाण पधोर ।
प्रश्न --
१ - भगवान अरहनाथ, पूर्व भव में कौन थे, कहां रहते थे और क्या करके तीर्थंकर गोत्र बांधा था ?
- भगवान अरहनाथ, किस नगर में किस कुल में, और किस तिथि को जन्मे थे तथा इनके माता-पिता का नाम क्याथा ? ३ - भगवान अरहनाथ, माता के गर्भ में, कहां से और कितना आयुष्य भोग कर पधारे थे ?
४ - चौंसठ इन्द्र के भेद बताओ ? -
५ - - भगवान अरहनाथ का शरीर कितना ऊँचा था और इनके शरीर पर कौनसा चिन्ह था ?
६ -- भगवान अरहनाथ से पहले कोई और तीर्थकर ऐसे हुए थे या नहीं, जो चक्रवर्ती रहे हों ? यदि थे, तो कौन ? ७ - चक्रवर्ती किसे कहते हैं ?
८ -- भगवान अरहनाथ को छःखण्ड साधने में कितना समय लगा था और कौन से छःखण्ड सावे थे ?
९ - - भगवान अरहनाथ को केवल ज्ञान किस तिथि को हुआ था और किस तिथि को भगवान का निर्वाण हुआ ? १० -- भगवान ने आयु का उपभोग किस कार्य में कितने कितने वर्ष तक किया ? संख्या सहित बताओ ?
भगवान श्री मल्लिनाथ प्रार्थना
श्लोकःश्री मल्लिनाथ शमथ द्रुम सेकपाथः कान्त प्रियंगु रूचिरोचित काय तेजः । पादाब्ज मस्तु मदनार्ति मधौ विमुक्ता, कान्त ! प्रियंगुरुचिरोचितकाय तेजः ।। भावार्थ- जिनके चरण कमल शान्ति रूपी वृक्ष को सींचन में अमृत समान हैं, जिनका शरीर प्रियंगुलता के समान सुन्दर है और जो कामदेव रूपी मधु देत्य के लिये कृष्ण के समान वीर हैं, ऐसे हे मल्लिनाथ प्रभु ! आपके चरण कमल की सेवा मुझे प्राचीन और उचित सुख के लिए हो ।
जम्बू द्वीप के पश्चिम महाविदेह में, लीलावती विजय के अन्तर्गत वीतशोका नाम की एक रमणीय नगरी थी । वहां, बलि नाम का राजा राज्य करता था, जिसके धारिणीदेवी नाम की रानी थी । धारिणीदेवी ने, स्वप्न में केसरी सिंह देखा । परिणामतः महारानी धारिणीदेवी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम महावल रखा गया । महाबल के अचल, धरण, पूरण, बसु, वैश्रवण और अभिचन्द्र नाम के छः वालमित्र थे । बाल मित्रों के साथ विनोद करता हुआ, कुमार महाबल, युवक हुवा । महाबल का कमलश्री आदि पांच सौ राज-कन्यायों के साथ विवाह हुआ कुछ समय पञ्चात, महाराजा, बलि, महाबल को राज्य सौंप कर आत्मकल्याण में लग गये ।
महाराजा महाबल, राजकार्य करने लगे। महाबल की कमलश्री रानी से बलभद्र नाम का पुत्र हुआ । जब बलभद्र युवक हुआ तब महाबल ने उसे युवराज पद पर अभिषिक्त किया और स्वयं अपने मित्रों सहित अर्हत-भाषित धर्म की सेवा करने लगे ।
एक समय महाराज महाबल ने अपने मित्रों से कहा, कि मै सांसारिक कष्टों से बहुत भयभीत हुआ हूँ, अतः मेरी इच्छा संयम लेने की है । आप लोगों की इच्छा क्या है ? यह प्रश्न.
( भगवान श्री मल्लिनाथ'
करने पर, छर्हो मित्र वोले, कि आज तक हम आपके साथ रह कर ही सांसारिक सुख भोगते रहे हैं, अतः कल्याण-मार्ग में भी आपही के साथ रहेगे । महाराजा महावल ने, राजपाट युवराज बलभद्र को सौंप दिया । इनके छहों मित्र भी, सांसारिक बोझ से निवृत्त हो गये और सातों मित्रों ने महात्मा वरधर्म मुनि के पास दीक्षा लेली ।
दीक्षा लेकर सातों मित्रों ने आपस में यह प्रतिज्ञा की, कि अपन सत्र समान रूप से तप करेंगे । यह प्रतिज्ञा करके सातों मुनि, चतुर्थादि अनेक प्रकार के तप करने लगे, किन्तु पीछे से महावल मुनि ने विचार किया, कि मैं इन छः से बड़ा हूं, अतः मुझे विशेष तप करना चाहिये; अन्यथा भविष्य में सातों समान हो जायेंगे, मेरा वड़प्पन न रहेगा। इस प्रकार विचार कर महाबल मुनि पारणे के दिन, बहाना बनाकर पारणा न करते और तपस्या बढ़ा देते । इस प्रकार मायामिश्रित तप करने से, महाबल मुनि ने स्त्री वेद प्रकर्ति का निकाचित बन्ध कर लिया, लेकिन अर्हद्भक्ति आदि बोलों का उत्कृष्ट भावेण सेवन करने से प्रथम तीर्थङ्कर नाम कर्मः उपार्जन कर लिया था। सातों मुनियों ने, चौरासी हजार वर्ष तक संयम का पालन किया। अन्त में, अनशन द्वारा समाधिपूर्वक शरीर त्याग, जयन्त नाम के अनुत्तर विमान में बत्तीस सागर की आयु बाले अहिमिन्द्र देव हुए।
तीर्थकर परित्र )
महाबल मुनि ने, माया सहित किये हुए तप की आलोचना नहीं की, इससे स्त्री-चेद कर्म अविच्छिन्न रहा। इस घटना से यह शिक्षा मिलती है कि, धर्म-करणी चाहे कम करे या ज्यादा, परन्तु हो कपट-रहित शुद्ध हृदय से । कपट सहित अधिक की गई धर्मकरणी भी, दुःखदायिनी हो जाती है। शास्त्रकार कहते हैं, कि 'माई मिच्छादिट्टी अमाई समदिट्टी ।' अर्थात कपटी ही मिथ्यादृष्टि है और निष्कपटी ही समदृष्टि है । कपटी का जप-तप नियम प्रत्याख्यान श्रावकपना और साधुपना भी, अंक रहित बिन्दियों के समान हो जाता है। आज कल जितना लक्ष्य हिंसा अहिंसा और आरम्भ समारम्भ के कार्यों प्रति दिया जाता है, सत्य और सरलता के प्रति नहीं दिया जाता बात-बात में असत्याचरण किया जाता है और उसे सत्य सिद्ध करने के लिए माया का आश्रय लिया जाता है जैसे माया का कोई पाप ही न हो। ऊपर यह मानते हैं कि हम बड़े चतुर हैं जो काम भी बनाते हैं और प्रतिष्ठा भी बनायी रखते हैं परन्तु यह चरित्र सिद्ध करता है कि माया (कपट) ही भयंकर पाप है अतः बुद्धिमानों को कपटभाव त्याग, सरल व शुद्ध हृदय से ही धर्म करना उचित है ।
चरित्र से ज्ञात होता है, कि महाबल मुनि का भावी आयुष्य कपट सहित तप करने से पूर्व ही बन्ध चुका था, अन्यथा कपटी का शुभ आयुष्य नहीं बन्धता । थोड़े से दोष की भी आलोचना
( भगवान श्री महिनाभ
न करने से कैसा दुष्परिणाम भोगना होता है, यह इस चरित्र से स्पष्ट है ।
इसी जम्बूद्वीप के भरतार्द्ध में विदेह देशान्तर्गत मिथिलापुरी नाम की एक नगरी थी । वहां कुम्भ नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे । इनकी रानी का नाम प्रभावती था जो शील सौन्दर्यादि गुणों में अप्रतिम थी ।
जयन्त विमान का आयुष्य पूर्ण करके महाबल राजा का जीव, फाल्गुन शुक्ला ४ को - जब चन्द्र अश्विनी नक्षत्र में आया था - महारानी प्रभावती के गर्भ में आया । सुखरैया पर शयन किये हुई महारानी प्रभावती, तीर्थकर के गर्भ सूचक चौदह महास्वप्नं देखकर जाग उठीं । तत्काल महारानी प्रभावती ने, पति को स्वप्नं सुनाये जिन्हें सुन कर कुम्भराजा ने कहा कि तुम्हारे गर्भ से तीर्थङ्कर का जन्म होगा। महारानी प्रभावती, गर्भ का पालन-पोषण करने लगीं।
गर्भवती महारानी को, मालती पुष्प की शैया पर शयनं करने की इच्छा हुई। देवों न, महारानी - प्रभावती की इस |
2b715e95b600f7ea4cf67e8be40188a305cccfb13f76c95fc721cf59024d201f | pdf | (५) शीलः परस्परमें शोल और सदाचारका हो नाता था । शील और सदाचारमें कमी आने पर साधु-साध्वी गणसे अलग कर दिये जाते थे। शिष्योंको भी अधिकार दिया गया था कि असदाचारी, दुःशील माचार्यको परित्यक्त कर सकें। संघकी नींव सदाचार, उपासना और गुण-पूजा पर अवस्थित यो । "भिक्षुक हो या गृहस्थ, जो सुव्रती होता है, वही दिव्यगति प्राप्त करता है।" यह भगवान्को शाश्वत शिक्षा थी। " दुःशील साधु नरकसे नहीं बच सकता और गृहवासमें बसता हुआ भी सुव्रती शिक्षा सम्पन्न हो तो देवलोक प्राप्त करता है।" "गृहस्य संयममें श्रेष्ठ हो सकता है, पर सुशील साधु गृहस्थ संयमीसे हमेशा उत्तम होता है ।" उपर्युक्त शिक्षा में भगवान्ने शोलकी महिमा बतलाई है और गृहस्य - साधु सबको दुःशील छोड़ उत्तम से उत्तम संयमकी भोर आकृष्ट किया है। संयम और तपकी उपासना ही संघको उत्तम साधना रही ।
( ६ ) मैत्री : परस्पर व्यवहार में मृदुता और मंत्रीभावको बहुत ही उच्च स्थान दिया गया था। साधु, श्रावक, साध्वी, श्राविका - सबको मंत्री - भावनाका उपदेश रात-दिन मिलता था । "सबको आत्माके समान मानो ।" "सब भूतोंके प्रति मंत्रीभाव रखखां । " परस्पर मनोमालिन्यको इन्हीं भावोंकी उपासना द्वारा दूर रखा जाता है । आगममें ऐसे अनेक प्रसंग मिलते हैं, जबकि मंत्री भावना के प्रसार
१ - उत्तराध्ययन सूत्र : अ० २७ : १०, १६ २ - उत्तराध्ययन सूत्र : म० ५ : २२ ३- उत्तराध्ययन सूत्रः ०५ : २२, २४ ४- उत्तराध्ययन सूत्र : अ० ५ : २०
द्वारा उत्तमार्थसाधा गया। प्रतिमुक्तक नामक एक बालवयस्क कुमार साधु थे । । एक बार उन्होंने वर्षा के जलको पालसे बांध, उसमें अपने पात्रको तिरा दिया। स्थविर साधुओंने पूछा- "भदन्त ! आपका कुमार श्रमण अतिमुक्तक कितने भव करने के बाद सिद्ध होगा ?" भगवान् बोले- "वह इस भषको पूरा करके ही सिद्ध होगा। तुम लोग उसकी अवहेलना, निन्दा, तिरस्कार और अपमान मत करो, पर अम्लानभावसे उसकी सहायता करो, सम्भाल करो और सेवा करो।" इस तरह मृदुभाव - मंत्री भाबको जगा भगवान् संघमें बड़ा प्रेम और सौहार्द रखाते । ऐसी ही एक दूसरी घटना मिलती है। एक बार शंख नामक एक श्रमणोपासकने अपने मित्रों के साथ सहल करनेका तय किया। निश्चयानुसार मित्रोंने भोजन बना डाला । पर बादमें शंखने यह सोच कि इस तरह खान-पान, मौज-शौक करना श्रेयस्कर नहीं ब्रह्मचर्य रख, उपवास करते हुए पौषध ठाम दिया। दूसरे दिन सुबह श्रमणोपासकोंने उसे उलाहना दिया। भगवान् बोले"आर्यो ! तुमलोग शंखकी हीला, निन्दा, अपमान मत करो; कारण वह धर्म में प्रीतिषाला और दृढ़ है। उसने प्रमाद और निद्राको त्याग धर्म जागरिका की है।" इसके बाद भगवान्ने बतलाया कि क्रोध करनेवालेंकी कैसी दुर्गति होती है । श्रमणोपासकोंने शंखसे क्षमा मांगी। हृदय-शुद्धि करानेका एक तीसरा प्रसंग इस प्रकार हैश्रेणिक के पुत्र मेघकुमारने दीक्षा ली। रात में उसकी शय्या अन्त में होने से श्रमणोंके माने जाने और उनके पैरोंकी धूल उसके शरीर पर
१ - भगवती सूत्र : श० ५ उ० ४ : ११ २ - भगवती सूत्र : श० १२ उ० १
मिरनेके कारण उसे नींद न आई। वेद-खिन्न हो प्रातः होते ही उसने घर चले जाने की ठान ली। सुबह भगवान्ने मेषकुमारको प्रतिबोधित करते हुए कहा - "हे मेषं ! पिछले भबमें तू हाथी था। वनमें दावामल सुलग गया, जंगलके पशु एक जगह एकत्रित हो गये । तू भी उममें था। तेरे शरीर में खुजलाहट होने लगी। तूने शरीर खुजलाने के लिए एक पैर उंचा उठाया। भीड़ के दबाव से एक खरगोश उस पर के स्थान में प्रा घुसा। पैर रखनेका स्थान न रहा। कहीं खरगोश न मारा जाय इस भयसे तूने अपना पर अधर रखा। इस तरह २।। दिन तक तू तीन पैर पर ही खड़ा रहा। दावानल बुझा। खरगोश हटा । तूने पैर फैला जमीन पर रखने की चंष्टा की। तीन पैरके बल खड़ा रहने से तेरा शरीर अकड़ गया और वहीं जमीन पर तेरी मृत्यु हुई । हे मेघ ! तूने पशु योनियों में इतनी सहनशीलता - इतना समभाव दिखलाया; अब तो तुझमें अधिक बल, वीर्य, पुरुषार्थ, पराक्रम और विवेक हूँ। भोग-विलास छोड़ तूने मेरे पास दीक्षा ली है । श्रमणोंके आवागमनसे पड़ती धूलके कारण तू इतना व्याकुल हो गया ?" मेघ मारका मन शान्त हुआ। उसकी प्रांखों में हर्षाश्रु छा गये । वह बोला - " भवन्त ! प्राजसे मेरा यह शरीर श्रमणोंकी सेवामें समर्पित है।" भगवान्ने उसे फिरसे प्रव्रज्या दी और वह किस तरह संयममें सावधान रहे यह बतलाया' । भगवान् प्रेमभाव और परस्पर सद्भावना को किस तरह स्थापित करते, यह उसका ज्वलंत उदाहरण है। मनमें जहां थोड़ासा भी खटास देखते उसे दूर करते पोर मंत्रोभावकी ऊर्मियां भर देते। एक अन्य घटना तो धौर भी हृदयस्पर्शी है। एक बारका
१ -शाताषर्मकथा : अ० १
प्रसंग है कि महाशतक नामक एक प्रतिमाघारी उपासक संकेषण । व्रत धारण कर पौषधशाला में धर्मध्यान कर रहा था। उसकी पत्नी रेवती इतनी क्रूर थो कि उसने अपने बारह सौखोंको मौत के घाट उतार दिया था। वह गौ मांस और मदिरा तकका खान-पान करती। एक मदोन्मत्त हो, वह पौषधशाला में महाशतक के पास आई वस्त्र गिरा दिए मौर विषयांभ हो कहने लगी, "यदि तुमने मेरे साथ भोग नहीं भोगा हो स्वर्ग मोक्षके सुख लेकर क्या होगा ?" महाशतकको क्रोम चढ़ आया। वह बोला- "अप्रार्थकी प्रार्थना करनेवाली ! काली चतुर्दशी की जन्मी ! लज्जाहीन ! तू सात दिनके अन्दर रोगाकान्त हो मृत्यु प्राप्त कर नरक में उत्पन्न होगी।" रेवती भयभीत हो गई। "न माहूम मुझे कैसी मौत मरना होगा।" भगवान्ने गौतमसे कहा - "जाबो गौतम ! गायापतिसे कहो 'श्रमरणोपासकको ख़ास कर अपश्चिम मरणान्तिक संलेषणा करनेवालेको सत्य होने पर भी अनिष्टकारी, अप्रिय, प्रौर अमनोश वचन कहना नहीं कल्पता । उसने रेवतीको संतामकारी वचन कहे हैं उसकी वह मालोचना करें।" गो मांस खानेवाली, मदिरा पीनेवाली स्त्री के प्रति भी उदार भावनाका स्रोत बहा भगवान् ने आलोचना करवाई। परस्पर व्यवहार में जिसकी त्रुटि होती उसीको क्षमा याचनार्थ कहते । साधु और श्रावक इनमें कोई भेद नहीं रखते थे । अपराधी साधु भी गृहस्थ उपासकसे क्षमा मांगनेका पात्र होता । एक बार प्रधान शिष्य इन्द्रभूति गौतम तकको भगवान्ने मानन्द श्रावक से क्षमा याचना करने के लिए भेजा था ।
१ - उवासगदसाओ : ०८
२ - उपासकदसाओ : अ० १
(७) समभाव -प्राध्यात्मिक क्षेत्र में सबकी समानता के सिद्धान्तको संघ- सञ्चालनमें बड़ा उच्च स्थान दिया गया था। धनी निर्धनका अन्तर नहीं था। आर्य प्रनार्यका अन्तर नहीं माना जाता था । वर्णभेद, जाति भंद, गौत्र भेद, रूप भंद, शरीर भेदको स्थान नहीं था । सब प्रव्रजित हो सकते थं' । कुल मद, वर्ण मदको जघन्य और त्याज्य माना गया था। 'जातिकी कोई विशेषता नहीं होती, संयम और तपकी ही विशेषता होती है - इस सिद्धान्तका व्यापक प्रचार था । 'जाति प्रादिका मद करनेवाले पुरुषको जाति या कुल उसकी रक्षा नहीं कर सकते। अच्छी तरह सेवन किए हुए ज्ञान और चारित्रके सिवाय कोई भी पदार्थ जीवकी रक्षा करने में समर्थ नहीं ।' 'जो गौरवी बोर श्लोककामी होता है वह निष्किञ्चन और रूक्षभोजी होने पर भी अज्ञानी है। वह पुनः पुनः संसार भ्रमण करेगा।' 'धीर पुरुष मद स्थानोंको अलग करे। जो धर्मी इनका सेवन नहीं करते वे सब गौत्रोंसे छुटे हुए महर्षि उच्च अगोत्र गति मोक्षको पाते हैं।' 'मुनि गौत्र या दूसरी बातोंका मद न करें ।' 'परनिन्दा पापकारिणी होती है यह बाने। 'यदि एक अनायक - स्वयं प्रभु - चक्रवर्ती प्रादि हो और दूसरा दासका दास हो तो भी संयम मार्ग में आने के बाद परस्पर ब्यवहारमें लज्जा नहीं करनी चाहिए । सदा समभावसे व्यवहार करना चाहिए।
१ - सूत्रकृतांग सूत्र : श्रु० २ ० १ : ३५ उत्तराध्ययन सूत्र : अ० १२ : १ २ - सूत्रकृतांग श्रु० १ अ० १३ : १०, १५, उत्तराध्ययन सूत्र १२ : ३७
स्त्री पुरुष दोनोंको धर्म पालनका समान हक था। बुद्धके संघर्म भी श्रमणियां थीं पर बुद्धने अपने शिष्य आनन्दके बहुत हट करने के बाद ही स्त्रियोंके लिए प्रव्रज्याका मार्ग खोला था। वे बराबर कहते रहे - "मत रुवं कि स्त्रियां भी तथागतके दिखाए धर्म - विनयमें घर से बेघर हो प्रव्रज्या पावै ।" स्त्रियोंके लिए बाठ गुरु धर्म - संकीर्ण शर्तें थी। जो स्त्रियां इन्हें स्वीकार करती वे ही प्रव्रज्या पा सकती। अन्त तक उनकी यह धारणा बनी रही कि स्त्रियों को प्रव्रजित करनेसे संघकी आयुमें क्षीणता आ गई । "यदि तथागत प्रवेदित धर्म - विनयमें स्त्रियां प्रव्रज्या न पाती तो यह ब्रह्मचर्य चिरस्थायी होता, सद्धर्म सहस्र वर्ष तक ठहरता पर अब वह पांच सौ वर्ष ही ठहरेगा'।" भगवान् वर्द्धमानने अपने संघ में श्रमण श्रमणियोंका समान अधिकार रखा और स्त्रियोंकी पवित्र रहने की शक्तिमें कभी शंकाको स्थान नहीं दिया। साधु-साध्वियां दोनों के लिए सूक्ष्म ब्रह्मचर्य के नियम दिए । संघमें श्रमणियोंकी बहुत बड़ी संख्या होने पर भी भ्रष्टाचार जरा भी नहीं फल पाया । अत्यन्त कुशलता और दृढ़ अनुशासनशीलतासे ही यह
सम्भव था ।
(८) प्रमोदः - मंत्री भावनाके प्रचार द्वारा जिस तरह सहृदयता को कायम रखा जाता था उसी तरह प्रमोद भावनाके विकास द्वारा संघमें नवीन जीवन शक्तिको सदा संचारित रखा जाता था। जिस साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाम गुण देखते, भगवान् उसकी प्रशंसा सबके सामने कर गुणमें आनन्द भावना - प्रमोद भावनाको जागृत करते। ऐसे प्रसंग मिलते हैं जब कि गृहस्थ उपासकको प्रादर्श बतला
१ - विनय पिटक ( भिक्षुणी-स्कंधक ) १० ५१९-५२१,
र श्रमण श्रमणियोंको उसके जीवनसे शिक्षा ग्रहण करनेका उपदेश भगवान्ने दिया। एकबार कामदेव नामक श्रमणोपासककी प्रशंसा करते हुए श्रमण श्रमणियोंसे भगवान्ने कहाः- "घरमें बसते हुए इस श्रमणोपासकमे देव, मनुष्य और पशुकृत उपसर्गोंको बड़े समभावसे संहन करते हुए व्रत पालनमें इतनी दृढ़ता दिखलाई, फिर श्रमण-श्रमजियोंको तो अपना आचार - चरित्र सुरक्षित रखने के लिए हमेशा चौकस रहना चाहिए। जरा भी चलित नहीं होना चाहिये और जो उपसर्ग उपस्थित हों उन्हें सहन करना चाहिए।" इसी तरह एक बार अन्य तोर्थकोंको जंन रहस्य से भरपूर, युक्तिपुरस्सर सुन्दर उत्तर देने के लिए भगवान्ने मद्रुक और कुंडकौलिक श्रावक की मुक्त कंठसे प्रशंसा की थी। इस प्रमोद भावना - दूसरोंके गुणोंमें मुदिता भावना के प्रसारसे संघमें एक बड़ी दृढ़ शक्ति पैदा हो गई थी और सद्गुणोंकी निशदिन वृद्धि होती जाती थी।
पार्श्वनाथके श्रमण और एकीकरण
हम ऊपर एक जगह कह पाये हैं कि भगवान् के माता-पिता पश्र्विनाथके श्रमरणों के उपासक थं १ जब भगवान् एक तीर्थ करके रूपमें धर्म प्रचार करने लगे उस समय भी पार्श्वनाथ के अनुयायी साधु व उनके संघ विद्यमान थे। एक बार भगवान् के राजगृह पधारनेके अवसर पर पार्श्वनायके अनुयायी ५०० साघुंओंका एक संघ तुंगिका
१ - उपासगदसा सूत्रः ० २ : २९, ३०, ३१ २ - भगवती सूत्र श० १८ उ० ७ : १५,
उपासकदशा सूत्र प० ६ः१०, ११, १२
नगरी में आया था। तुंगिका नगरीमें जैन गृहस्य बहुत बड़ी संख्या में रहते थे और वे सब पार्श्वनाथके श्रमणोंके अनुयायी थे, ऐसा वर्णनसे प्रतीत होता है। पार्श्वनाथके वंशके कालास्यवेषिपुत्र नामक साधुका श्रमण महावीरके स्थविरोंके साथ सम्पर्क हुआ था, ऐसा भी उल्लेख मिलता है। पार्श्वनाथ के शिष्य के शीश्रमणके संघका उल्लेख उत्तराध्ययन सूत्रमें आया है। वाणिज्य ग्राममें जिन गांगेय श्रमणके साथ भगवान्का प्रश्नोत्तर हुमा था वे भी पार्श्वपात्य हो थे । निर्ग्रन्थ उदक पेढालपुत्रका उल्लेख सूत्रकृतांग में मिलता है। इन सबसे प्रकट होता है कि पार्श्वनाथकी परम्परा के अनेक श्रमण उस समय विद्यमान थे ।
पाश्र्वंपात्य निर्ग्रन्थ श्रमणोंके प्रति महावीर और उनके श्रमणोंका बहुमान ही देखा जाता है। तुंगिकानगरीमें जिन ५०० श्रमणोंके प्राने की बात है उनका वर्णन बड़े हो आदरपूर्ण और प्रशंसात्मक शब्दों में है भौर उन्हें विनय, ज्ञान, दर्शन और चारित्रयुक्त बताया गया है । उन्हें विशेष ज्ञानी भी कहा गया है । ऐसे श्रमय ब्राह्मणोंकीपर्यु - पासनाका फल भगवान्ने सिद्धि प्राप्ति तक बतलाया है। इससे प्रतीत होता है कि पार्श्वपात्य साधु और निजके साधुओं में भगवान् कोई मूल
१ - भगवती सूत्र : श० २ उ० ५ : १३ -
३ - भगवती सूत्र : श० १ उ० ९ः१५
४ - उत्तराध्ययन सूत्र : अ० २३ : १-३
५ - भगवती सूत्र : श० ९ उ० ३२ : १, ३४
६ - सूत्रकृतांग : श्रु० २ अ० ७ः४
भन्तर नहीं समझते थे । पूर्वोक्त श्रमणोंमें अनेक बहुश्रुत पौर श्रुतज्ञांनी थे। एकबार गणधर गौतम स्वयं पार्श्वपात्य केशीकुमारके पास गये थे और ज्येष्ठ तीर्थंकरके साधुओंके पास उनका जाना ही उन्हें ठीक प्रतीत हुआ था। यह भी बहुमानका ही परिचायक था। इससे मालूम होता है कि भगवान्, पार्श्वनाथको अपना ज्येष्ठ तीर्थङ्कर मानते थे ।
केशो और गौतमके परस्पर सम्मेलन के बाद तो दोनों संघोंके शामिल होनेका मार्ग ही खुल गया । इस सम्मेलनका विस्तृत वर्णन उतराध्ययन सूत्र म० २३ में मिलता है, जिसका सार इस प्रकार हैः
"लोकमें प्रदीप समान जिन तीर्थङ्कर पार्श्वनाथके विद्या और माचरण में पारङ्गत केश कुमार नामक एक महायशस्वी श्रमण थे । वे एक बार ग्रामानुग्राम विहार करते शिष्य संघके साथ श्रावस्ती नगरीमें मा पहुँचे और उस नगरके तिंदुक नामक उद्यान में प्रासुक शय्या-संस्तारक ग्रहण कर ठहरे। उसी अमें लोकविश्रुत धर्मतीयंकर वर्द्धमानके महायशस्वी और विद्या तथा प्राचारमें पारङ्गत शिष्य गौतम भी शिष्य समुदाय के साथ उसी नगरमें आ पहुंचे और कोष्ठक उद्यान में ठहरे (१-८) ।
" उस समय उन दोनों के शिष्य संघमें यह चिन्ता हुई : 'वर्द्धमान द्वारा उपदिष्ट पांच शिक्षावाला यह धर्म कैसा मौर महामुनि पार्श्व द्वारा उपदिष्ट यह चार यामवाला धर्म कैसा ? भोर अचेलक - वस्त्र
१ - भगवनी सू० : श० २ उ०५ : १३
उत्तराध्ययनः प्र० २३ : ३
२ - उत्तराध्ययन सू० : अ० १३ : १५ |
121513c0f616a8932f40641fec3c8cc644f72dfc6d44f81638071943a2c21499 | pdf | अशक्यमस्य पुरतोऽवस्थातुम्' इत्यादि ।
उपर्युक्त विवरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हर्षवार्तिक ने सभवतया सभी अध्यायो पर टीका लिखी थी। इस टीका की रचना मुख्य रूप से आर्या छन्द में की गई और साथ ही गद्य भी दिये गये थे। इसमे नाटकीय साहित्य से उदाहरण भी लिये गये थे। कवि महोदय ( दूसरे भाग की भूमिका, पृ. २३) का कथन है कि अगहार पर बार्तिक का अधिकांश उपलब्ध हो चुका है। डा. राघवन ने आक्षेप किया है (ज ओ. रि. मद्रास, भाग ६, पृ. २०५ पर अभिनवभारती मे उल्लिखित लेखकों के विषय मे) कि यहाँ भी केवल प्रथम ६ अध्यायो में ही इनके मत का उल्लेख है। शेष पूरी अभिनवभारती में कुछ नहीं मिलता।' तर्क अन्य स्थानो पर वार्तिक का उल्लेख न होने के कारण उपस्थित किया गया है किन्तु इससे यह निष्कर्ष निश्चित रूप से नहीं निकाला जा सकता कि पुस्तक के किसी भी अन्य अध्याय पर वार्तिक नही लिखा गया। अभिनवगुप्त की टीका सातवें और आठवें बध्याय पर ( प्रथम कुछ श्लोकों को छोड़कर) नही मिलती तथा अन्य परिच्छेदो मे भी कही-कही अनुपलब्ध है। ३२ वे अध्याय के बाद तो कुछ भी नही मिलता । भावप्रकाशन ( पृ २३८) मे हर्ष के मत का उल्लेख है कि त्रोटक, नाटक से भिन्न होता है क्योकि त्रोटक मे कोई विदूषक नही होता । डा. सकरन ने 'रस-सिद्धान्त का इतिहास' (पृ. १३) मे कन्नौज के सम्राट् हर्षवर्द्धन और श्रीहर्ष को एक ही व्यक्ति बताया है। लेकिन यह कल्पना मात्र है ।
भावप्रकाशन ( पृ० २३८) मे सुबन्धु को नाट्यशास्त्र का लेखक बताया गया है जिसने नाटक के पाँच भेदों का प्रतिपादन किया है - पूर्ण, प्रशान्त, भास्वर, ललित तथा समग्र । नाट्यशास्त्र ( २४.४१) मे शरीराभिनय को छ भागो मे विभाजित किया है जिसका एक भाग नाट्यायित है (इसकी परिभाषा गाया ४८ मे दी गई है) । और उदाहरण के रूप में अभिनवभारती (भाग ३, पृ० १७२) मे महाकवि सुबन्धुकृत 'वासवदत्तानाट्यवार' को प्रस्तुत किया गया है । ( तत्रास्य बहुतरव्यापिनो बहुगर्भस्वप्नायिततुल्यस्य नाटघायितस्योदाहरण महाकविसुबन्धुनिबद्धो वासवदत्तानाट्याधाराख्यः समस्त एव प्रयोगः । तत्र हि
1. सम्पादक महोदय का सुझाव है कि हास के स्थान पर भास होना चाहिये किन्तु इसके लिये कोई आधार नही है। हो सकता है अज्ञात नाटककार का नाम हास ही हो ।
बिन्दुसारः प्रयोज्यवस्तुके उदयन चरिते इत्यादि ।) प्रतीत होता है कि सुबन्धुकृत इसी नाटक का उल्लेख अभिनवभारती (भाग २, ४२७) ने "वासवदत्तानृत्तधार" के नाम से किया है। महाकवि सुबन्धु और नाट्यग्रंथ के लेखक सुबन्धु ( जिनका उल्लेख भावप्रकाशन मे हुआ है) एक ही व्यक्ति थे, यह सदेहास्पद है । सभवतया वे भिन्न है । भ० ओ० रि० इ० मे हस्तलिखित ग्रन्थों का जो राजकीय सग्रह है उसमे एक हस्तलिखित ग्रन्थ उपलब्ध हुआ है जिसका निर्देश हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची भाग १२, पृ० ३७७-३८३, स० १११, १८६९-७० के रूप में किया गया है। पुस्तक का नाम है 'भारतभाष्य' अथवा 'सरस्वतीहृदयालङ्कार' (और अन्त मे दी गई पुष्पिका मे उसका नाम भरतवार्तिक भी दिया है) है। पुष्पिकाओ में उसके रचयिता का नाम नान्यपति अथवा नान्यदेव दिया गया है और उसके साथ महासामन्ताधिपति घर्मावलोक एवं मिथिलाधिपति विशेषण लगाये गये हैं। योजना के अनुसार ग्रन्थ विशालकाय होना चाहिये, उपरोक्त अश में चार प्रकार के अभिनयो मे से केवल वाचिक अभिनय की चर्चा है । प्रधानरूप से यह नाट्यशास्त्र के अध्याय २८-३३ की टीका है, जिसमे संगीत की चर्चा है । लेखक ने अपना नाम राजनारायण भी बताया है (Folio 12 a) तथा कहा है कि ये कीतिराज के अनुज थे ( Folho 19) a) । उन्होंने 'ग्रन्थमहार्णव' नामक अपनी एक अन्य रचना का भी उल्लेख किया है । फोलियो २२१ पर अन्तिम श्लोक का उत्तरार्द्ध नीचे लिखे अनुसार है - "तेनाय मिथिलेश्वरेण रचितोऽध्यायोऽवनद्धाभिध ।" उन्होने प्रारम्भ में प्रतिज्ञा की है कि सत्रह अध्यायो मे वे वाचिकाभिनय की चर्चा करेंगे। साथ ही नाम तथा विषयों का सक्षिप्त विवरण दिया है। हस्तलिखित ग्रन्थ (२२१ फोलियों) अत्यंत प्राचीन है और उसमे पृष्ठमात्राओ का प्रयोग है। लिपि अत्यत निबिड होने पर भी स्पष्ट है । ग्रन्थ कुछ अस्तव्यस्त है । अलङ्कार विषयक पाँचवाँ तथा सोलहवाँ एवं सत्रहवाँ अध्याय लुप्त हैं । ग्रन्थ मे भरत के प्रत्येक श्लोक पर टीका नही है किन्तु उन्हे सैकड़ो बार उद्धृत किया गया है। कश्यप, दत्तिल और नारद के भी सैकड़ो उद्धरण है; फोलियो १११ b तथा ११४ b पर बृहत्कश्यप एव वृद्ध कश्यप का उद्धरण है । बहुद्देशी, मतग, याष्टिक तथा विशाखिल के बीसियों उद्धरण हैं। इनके अतिरिक्त निम्नलिखित ग्रन्थो एव लेखको के उद्धरण हैं. नारदीय शिक्षाविवरणकृत् (फोलियो 16 b), देवराज (जिनका पाठान्तर देदराज भी है, जैसे फोलियो 69b, 70 ), मेर्वाचार्य (फोलियो 70 a), नन्दिमत (205a, 210 b),
स्वरसंहिताचार्य ( 1:7b ), स्वाति ( २०12, जिन्हें स्वरमुनि कहा जाता है), याज्ञवल्क्यस्मृति, भाग ३, ११२-११६ (फोलियो १८२ क), तुम्बुरू (१८१ ख ). कालिकापुराण (१३१ क ), भगवतपुराण अथवा भागवतपुराण ( १३८ क १३८ ख ). लेखक ने पूर्णतया अभिनवगुप्त का अनुसरण किया है किन्तु उनका उल्लेख प्रायः नहीं किया जैसे फोलियो १० क, १८४ ख । पाणिनि, नारद तथा अपिशालि (आपिशलि ? ) का उल्लेख एक ही स्थान (८ ख ) पर है । कहीकही पर अपने मत का भरत के मत से भेद प्रगट किया है, जैसे ( १३ क ) - "गान्धारग्रामश्च भरतेनालौकिकश्चात्रोपदर्शितः । अस्माभिश्चागमानुसारेण प्रदर्शित.", १५ क "भरताचार्यस्यास्य शास्त्रे प्रयोगागता अस्माभिश्च कश्यपमतगतुम्बरविशाखिलाद्याचार्यनिखिलमुनिवचनात्" इत्यादि । बहुत से स्थानो पर सूत्र भी उद्धृत हैं (जैसे फोलियो २१ क, ३९ क, ४३ क, गान्धारपञ्चमीलक्षण पर, ४३ ख आन्ध्री लक्षण पर)। इसी प्रकार संस्कृत के ब्रह्मोक्त कहे जाने वाले चतुष्पद तथा चतुष्पदी भी उद्धृत हैं (फोलियो २२ ख ४२ क, अस्या ब्रह्मोक्त चतु पदी यथा-सोस्या गौरीमुखांभोजरूहदिव्यतिलकपरिचुम्बिताचित इत्यादि) ।
भरतभाष्य के लेखक नान्यदेव का तिथि-निर्णय अपेक्षाकृत सरल किन्तु एक कठिनाई है। चौथा प्रस्तावित श्लोक है-'लक्ष्यप्रधान खलु शास्त्रमेतन्नि शङ्कदेवोऽपि तदेव वष्टि ( वक्ति ? ) प्रथम अध्याय का २३ वाँ श्लोक (जो उपजाति मे है) भी निःशङ्क का उल्लेख करता है - 'नोपाधि ददेघस्य ( ? ) विकारभेद नि शङ्कसूरि खलु कूटताने । सर्वेषु तास्तेपि कृताश्च शुद्धाश्चतुर्दशवेति मत मदीयम् ।' किसी लेखक का नाम निशङ्क असाधारण सा प्रतीत होता है। संगीतरत्नाकर के लेखक ने भी इसी नाम को स्वीकार किया है जहाँ उन्हें निशकशार्गदेव के रूप में बताया गया है। उसके पिता सोढल को देवगिरि के यादवनरेश भिल्लम और सिघन ने आश्रय दिया था। सिंघण का राज्य १२१०-१२४७ ई० तक था । शार्ङ्गदेव का समय १२३३ से १२७० ई० तक है ऐसी स्थिति में यदि नान्यदेव ने निशकशार्गदेव का उल्लेख किया है तो उसका समय १२८०-१३०० ई० तक होना चाहिये । किन्तु ऐसा कोई उल्लेख नही मिलता जिससे यह कहा जा सके कि प्रस्तुत नान्यदेव ने तेरहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मिथिला पर राज्य किया था । मिथिला के राजा नान्यदेव ही कर्णाटक के मैथिल राजवंश के संस्थापक थे और उनका शासनकाल १०९७ - ११४७ ई० तक है । (देखो इ० हि० कां० का कार्य विवरण, १३०-१३५; । 'नान्यदेव तथा उसके
समकालोन', लेखक श्री राधाकृष्ण चौधरी) । उन्हें बंगाल के राजा विजयसेन ने हराया था जिनका शासनकाल १०९५-११५८ ई० तक है । (देखो देओपारा प्लेट (ए० इ०, भाग १, ३०५, पृ० ३१४ पर) और डा० आर० सी० मजुमदार का लेख इ० हि० क्व० भाग ७, पृ० ६७९-६८७) जहाँ उन्होने बताया है कि विजयसेन १०९५ ई० मे सिंहासनारूढ़ हुए। इससे प्रगट होता है कि प्रस्तुत नान्यदेव ग्यारहवी शताब्दी के लगभग विद्यमान थे । अत. या तो भरतभाष्य की हस्तलिखित प्रति मे निशकदेव का उल्लेख प्रक्षिप्त है (जो कि बहुत सभव है क्योंकि प्रस्तुत हस्तलिखित प्रति अधूरी है और अन्य कोई प्रति तुलना के लिये उपलब्ध नहीं है) अथवा भरतभाष्य मे उल्लिखित नि. शंकदेव, शार्गदेव से भिन्न है अथवा मिथिला के नान्यदेव कोई और रहे होगे जिनका अभी तक पता नही चला है । अत भरतभाष्य के तिथि-निर्णय का प्रश्न इसी स्थिति मे छोडना होगा, सागरनन्दी के नाटकलक्षण रत्नकोश के अन्त मे नीचे लिखी कारिका है- 'श्रीहर्षविक्रमनराधिप - मातृगुप्त गर्ग -अश्मकुट्टनख - कुट्टकबादराणाम् । एषा मतेन भरतस्य मत विगाह्य ध्रष्ट मया समनुगच्छत रत्नकोशम् ॥' प्रतीत होता है सागरनन्दी द्वारा निर्दिष्ट उपरोक्त सात आचार्यों ने या तो भरत पर टीका लिखी थी या नाट्यशास्त्र से सम्बन्ध रखने वाले विषयो पर स्वतंत्र प्रकरण ग्रन्थ लिखे थे ।
अभिनवगुप्त तथा अन्य आचार्यों ने (देखो ऊपर पृ० १० - ११, २६ इत्यादि ) नाट्यशास्त्र का निर्देश भरतसूत्र के नाम से किया है। अत व्याकरण, तर्कशास्त्र, वेदान्त आदि की परम्परा के अनुसार प्रस्तुत सूत्र पर लिखी गई टीकाओ को भी भाष्य, वार्तिक आदि नाम दिये गये।
कवि महोदय तथा उनकी शैली के विषय मे हम पहले लिख चुके हैं (पृ०१४) । डा. डे महोदय की आलोचना का उत्तर देते हुए कवि महोदय ने ( इ० हि० क्वा० भाग ५, पृ० ५५८-५७७ ) अपने वक्तव्य को समीचीन सिद्ध करने का प्रयत्न किया है । डे महोदय का प्रत्युत्तर ३० हि० क्वा० भाग ५, पृ० ७८६-७८९ मे प्रकाशित हुआ है। देखो डा० राघवन का लेख "रसो की सख्या', अड्यार पुस्तकालय, पृ० ९२-९०६ और "भोज का शृगारप्रकाश" पृ० ५३६ - ५४३ (कर्नाटक पब्लिशिंग हाउस) अभिनवभारती का सशोधित संस्करण के लिये और अड्यार लाइब्रेरी बुलेटिन, १८, खण्ड ३-४, १० १९६-२०९ कुछ अनुच्छेदों में सुधार के लिये देखो अभिनवभारती, भाग १ और २ ( गा० ओ० सि० ) ।
४. मेणावी - भामह ने मेघावी नामक आलङ्कारिक का दो बार उल्लेख किया है जिसने उपमा के सात दोष बताये हैं। ( त एत उपमादोषा सप्त मेघाविनोदिताः, भाग २, ४०). उसी ने अन्य स्थान पर कहा है - "यथासंख्यमथोत्प्रेक्षामलङ्कारद्वयं विदु । संख्यानमिति मेघाविनोत्प्रेक्षाभिहिता क्वचित् ॥ " (भाग २,८८). उपरोक्त मुद्रित पाठ के उत्तरार्द्ध का अर्थ है कि 'मेधावी ने कुछ स्थानो पर उत्प्रेक्षा के बदले संख्यान नाम दिया है। किन्तु यह ठीक नहीं है। दण्डी के मतानुसार अन्य आलङ्कारिकों ने सख्यान को यथासख्य का दूसरा नाम माना है । ( यथासंख्यमिति प्रोक्त संख्यानं क्रम इत्यपि काव्यादर्श भाग २, पृ० २७३) । अतः भामह के ग्रन्थ में उपलब्ध पाठ अशुद्ध प्रतीत होता है । यदि पाठ को 'मेधावी नोत्प्रेक्षा के रूप में बदल दिया जाय तो दण्डी के साथ समन्वय हो सकता है। उसका अर्थ यह होगा कि मेघावी ने यथासंख्य के स्थान पर सख्यान लिखा है और अनेक स्थानों पर (कुछ अलङ्कार प्रन्थो मे) उत्प्रेक्षा को अलङ्कार नही माना गया । नमिसाधु ने रुद्रट के काव्यालङ्कार (१,२) पर व्याख्या करते हुए लिखा है - "ननु दण्डिमेधाविरुद्रभामहादिकृतानि सन्त्येवालङ्कारशास्त्राणि' । प्रश्न यह है कि 'मेधाविरुद्र एक ही नाम है अथवा 'मेधावि' और 'रुद्र' अलङ्कारशास्त्र के दो विभिन्न लेखक हैं। रुद्र द्वारा विरचित किसी अलङ्कार-ग्रन्थ का उल्लेख अन्य किसी आलङ्कारिक ने नही किया । रुद्रभट्ट का शृगारतिलक, जैसा कि उसकी विषय-सूची से प्रतीत होता है, अलङ्कार-प्रन्थ नहीं कहा जा सकता । अतः सभव है कि पूरा नाम मेघाविरुद्र हो । धर्मकीर्ति और भर्तृहरि को प्रायः कीर्ति और हरि शब्द से उद्धृत किया जाता है। अत. यदि मेघाविरुद्र भी केवल मेघावी शब्द से निर्दिष्ट हुए हों तो कोई आश्चर्य नही है । (देखो ज० रो० ए०सी०, १९०८ पृ० ५४५ पर मेरा लेख भामह और दण्डिन्) शार्ङ्ग० ने मालवरुद्र ( स० १०९१) का एक श्लोक उद्धृत किया है। इसी प्रकार कपिलरुद्र ( स० ३७८७) का भी एक श्लोक तथा एक सुभाषित ( १६६६) उद्धृत किया है। इससे प्रतीत होता है कि रुद्र नामक अनेक लेखक थे। रुद्रट ( ११, २४) पर टीका करते हुए नमिसाधु ने मेघावी को पुन उद्धृत किया है जहां उपमा के सात दोगों की चर्चा है। चर्चा की शैली से प्रतीत होता है कि उदाहरण मेधावी के ग्रन्थ से लिये गये हैं। 'अत्र च स्वरूपोपादाने सत्यपि चत्वार इति ग्रहह्णाद्यन्मेधाविप्रभृतिभिरुक्तं यथा लिंगवचनभेदी हीनताधिक्यमसम्भवो विपर्ययोऽसादृश्यमिति सप्तोपमादोषाः तदेतन्निरस्तम् ।' नमिसाघु ने उपमा के सात दोषों का प्रति |
cebb21445c065fa63dbe8d5828165ed41ea8d53b | web | जम्मू और कश्मीर में बीजेपी को हराने के लिए बनी पीपल्स अलायंस के सामने क्या हैं चुनौतियाँ?
जम्मू और कश्मीर में 28 नवंबर से स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं. ज़िला विकास परिषद (डीडीसी) के इस चुनाव में बीजेपी और जम्मू और कश्मीर अपनी पार्टी (जेकेएपी) को छोड़कर मुख्यधारा की सभी राजनीतिक पार्टियों ने हाथ मिलाया है.
अनुच्छेद 370 के निरस्त किए जाने के बाद, डीडीसी चुनाव जम्मू और कश्मीर में आयोजित सबसे बड़ी राजनीतिक गतिविधि होगी. जिन राजनीतिक दलों ने इन चुनावों के लिए हाथ मिलाए हैं उन्होंने 'गुपकर घोषणापत्र' पर हस्ताक्षर किए थे.
अपने गठन के बाद से ही पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) पिछले पाँच अगस्त को अनुच्छेद 370 ख़त्म किए जाने के केंद्र सरकार के फ़ैसले का विरोध कर रहा है.
अल्ताफ़ बुख़ारी की जम्मू और कश्मीर अपनी पार्टी (जेकेएपी) गुपकर घोषणा का हिस्सा नहीं है. बुख़ारी को दिल्ली में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का क़रीबी माना जाता है.
जम्मू और कश्मीर से राज्य का दर्जा छीनकर उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद यहां पहली बार डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के चुनाव होने जा रहे हैं. ये चुनाव 28 नवंबर से 22 दिसंबर तक आठ चरणों में होंगे. जम्मू और कश्मीर चुनाव आयुक्त केके शर्मा ने बीते चार नवंबर को इसकी घोषणा की थी.
पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुपकर घोषणा क्या है?
पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) सात पार्टियों नेशनल कॉन्फ़्रेंस (एनसी), पीपुल्स डेमोक्रैटिक पार्टी (पीडीपी), कांग्रेस, पीपल्स कॉन्फ़्रेंस, सीपीआई, सीपीआईएम, अवामी नेशनल कॉन्फ़्रेंस और जम्मू और कश्मीर पीपल्स मूवमेंट (जेकेपीएम) का समूह है.
इसी वर्ष चार अगस्त को इन पार्टियों ने एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर अनुच्छेद 370 और 35-ए को निरस्त करने के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ाई करने की घोषणा की थी.
बीते वर्ष पाँच अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करते हुए राज्य को मिले विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया था.
अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद यहां के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के सैकड़ों लोगों और कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया गया था.
इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में भी विभाजित करते हुए लद्दाख को इससे अलग कर दिया गया था.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीरी नेताओं पर हमला करते हुए उन्हें 'गुपकर गैंग' कहा है.
अमित शाह ने ट्वीट किया और लिखा, "गुपकर गैंग वैश्विक हो रहा है. वो लोग चाहते हैं कि विदेशी शक्तियां जम्मू-कश्मीर में हस्तक्षेप करें. गुपकर गैंग भारतीय तिरंगे का भी अपमान करता है. क्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी गुपकर गैंग के इस क़दम का समर्थन करते हैं? उन्हें अपनी स्थिति भारत के लोगों के सामने स्पष्ट करनी चाहिए. "
जून 2018 तक जम्मू और कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार थी. लेकिन दोनों दलों के बीच मतभेद के बाद बीजेपी ने गठबंधन की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था.
इसके साथ ही महबूबा मुफ़्ती की सरकार गिर गई और दोनों पार्टियों के गठबंधन का अंत हुआ. उसके बाद से अब तक प्रदेश में विधानसभा के लिए कोई चुनाव नहीं हुए हैं. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी ने 28 सीटें जीतीं जबकि बीजेपी को 25 सीटें मिली थीं.
डीडीसी चुनाव क्या है?
जम्मू और कश्मीर में पहली बार डीडीसी चुनाव हो रहे हैं. अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने से पहले जम्मू और कश्मीर में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली (ग्राम स्तरीय, ब्लॉक स्तरीय, ज़िला स्तरीय) नहीं थी.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बीते महीने जम्मू और कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989 में संशोधन के लिए अपनी सहमति दे दी थी.
अब इन चुनाव के ज़रिए जम्मू क्षेत्र के 10 और कश्मीर घाटी के 10 समेत कुल 20 ज़िलों में डीडीसी का गठन किया जाएगा.
केंद्र शासित प्रदेश के प्रत्येक ज़िले में 14 निर्वाचन क्षेत्र होंगे. इस प्रकार समूचे जम्मू और कश्मीर में कुल 280 निर्वाचन क्षेत्र के लिए इन चुनावों के माध्यम से लोग डीडीसी के प्रतिनिधियों का चयन करेंगे.
यह बताना ज़रूरी है कि पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी ने 2018 में नगर निगम और पंचायत चुनावों का बहिष्कार किया था.
तब दोनों दलों, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रैटिक पार्टी, ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुच्छेद 35-ए की सुरक्षा को लेकर आश्वासन माँगा था.
गुपकर के हस्ताक्षरकर्ताओं का कहना है कि डीडीसी चुनाव में एकजुट होकर भाग लेना अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए संघर्ष करने के लिए ज़रूरी है, साथ ही यह सांप्रदायिक ताक़तों से इस क्षेत्र को अलग रखने के लिए भी आवश्यक है.
पीएजीडी के प्रवक्ता सज्जाद ग़नी ने बीते दिनों एक प्रेस वार्ता में यह कहा था कि "हम डीडीसी का चुनाव लड़ेंगे. "
लोन ने कहा, "पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुपकर डिक्लेरेशन ने सिविल सोसाइटी के सदस्यों, राजनीतिक दलों और विभिन्न समुदायों जिनमें गुज्जर, बकरवालों, एससी/एसटी और दलितों से मुलाक़ातें की हैं. उन सभी को कई बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इसके अलावा जो एकसमान धागा हमें बांधता है वो ये है कि हम सभी दुखी हैं. हम पाँच अगस्त के फ़ैसले से आहत हैं. हमनें आगामी डीडीसी चुनाव में एकजुट होकर लड़ने का फ़ैसला किया है. "
पीएजीडी के घटक दलों ने हाल ही में जम्मू का दौरा किया था जहां उनके नेताओं के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हुए.
उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी.
हाल ही में, जब पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती को लगभग चौदह महीने बाद नज़रबंदी से रिहा किया गया तो उन्होंने कहा था कि "जब तक संविधान में किए गए बदलावों को बहाल नहीं किया जाता, तब तक मैं तिरंगा नहीं पकड़ूंगी. "
लेकिन एक हफ़्ते बाद ही जम्मू की अपनी पहली यात्रा में उन्होंने यू टर्न लेते हुए कहा कि "तिरंगे और राज्य के झंडे को एक साथ रखूँगी. "
बीजेपी के नेताओं के साथ ही अन्य राजनीतिक दलों ने तिरंगे वाले बयान पर मुफ़्ती की बहुत खिंचाई की थी.
जब बीबीसी ने महबूबा मुफ़्ती के झंडे के बयान पर यूटर्न लेने को लेकर पीडीपी से पूछा तो उसके प्रवक्ता ताहिर सईद का कहना था, "उन्होंने अपना बयान नहीं बदला. उन्होंने ठीक यही बात जम्मू में भी कही. लेकिन मीडिया ने उसे तोड़ मरोड़ कर पेश किया. बीजेपी बिहार में चुनाव लड़ रही थी तो उनके नियंत्रण वाली मीडिया ने उनके बयान को ख़राब तरीक़े से पेश किया. उन्होंने जम्मू में अपने पहले की कही हुई बात की व्याख्या की. "
जम्मू-कश्मीर बीजेपी ने तिरंगे पर टिप्पणी को लेकर महबूबा मुफ़्ती की गिरफ़्तारी की माँग की थी.
बीजेपी ने कहा है कि परिसीमन प्रक्रिया को अंतिम रूप दिए जाने के बाद ही विधानसभा चुनाव आयोजित किए जाएंगे.
जब यह पूछा गया कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कराने को लेकर बीजेपी की दिलचस्पी क्यों नहीं है तो गुप्ता ने कहा, एक बार परिसीमन प्रक्रिया पूरी हो गई तो विधानभा चुनाव होंगे.
इस साल मार्च में क़ानून मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड में परिसीमन आयोग को अधिसूचित किया है.
परिसीमन अभ्यास क्या है?
परिसीमन लोकसभा और विधानसभा सीटों की सीमाओं को फिर से रेखांकित करने का काम करता है. यह वहां की जनसंख्या में बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है और इसे अंतिम जनगणना के आधार पर किया जाता है. आख़िरी बार जम्मू-कश्मीर में 1995 में परिसीमन किया गया था.
जम्मू कश्मीर में परिसीमन की माँग पहली बार बीजेपी ने 2008 में अमरनाथ भूमि विवाद के दौरान उठाई थी.
कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों ने परिसीमन का विरोध किया है. इस वर्ष मई में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि उसके तीन सांसद कश्मीर से हैं, जिन्हें आयोग में सहयोग सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है, वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि यह पाँच अगस्त 2019 की घटना को स्वीकार करने जैसा होगा.
87 सदस्यीय विधानसभा में कश्मीर की 46 सीटें हैं जबकि जम्मू क्षेत्र के हिस्से में 37 सीटें हैं.
इसके साथ ही जम्मू कश्मीर की कुल सीटों में से 24 सीटें हमेशा ख़ाली रहती हैं, क्योंकि वे पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर को आवंटित हैं.
ताहिर सईद कहते हैं कि जिन राजनीतिक दलों ने हाथ मिलाए हैं वो केवल बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने को लेकर चिंतित नहीं हैं बल्कि उनका कहना है कि पीएजीडी एक बड़े उद्देश्य के लिए साथ लड़ रहा है.
अटकलों के बाद, जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जेकेपीसीसी) ने भी यह घोषणा कर दी कि वो डीडीसी के चुनाव पीएडीजी के साथ मिलकर लड़ेगी.
यह घोषणा राज्य कांग्रेस के प्रमुख ग़ुलाम अहमद मीर ने की.
कांग्रेस बीते महीने श्रीनगर में आयोजित पीएजीडी की एक महत्वपूर्ण बैठक में नहीं शामिल हुई थी.
पीएजीडी सीटों के बंटवारे के आधार पर डीडीसी चुनाव लड़ रही है. इस समूह का नेतृत्व डॉक्टर फ़ारूक़ अब्दुल्लाह कर रहे हैं.
कश्मीर के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पीएजीडी के सामने कई बड़ी चुनौतियाँ मौजूद हैं.
कश्मीर यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफ़ेसर नूर अहमद बाबा ने कहा, "जहां तक इन चुनावों का सवाल है, यह सच है कि गुपकर अलायंस के सामने कई बड़ी चुनौतियाँ मौजूद हैं. पहली चुनौती स्थानीय चुनाव में उनके किरदार की है जो उनके अपनी अपनी दख़ल के आधार पर थी और वे अपने आधार को मज़बूत कर रहे थे. लेकिन पाँच अगस्त 2019 को उनकी राजनीति ख़त्म हो गई और उन्हें जेल में भर दिया गया. मुझे लगता है कि ऐसी परिस्थितियों में उन्हें चुनावी राजनीति में नहीं उतरना चाहिए था. "
वे कहते हैं, "अगर वे चुनावी राजनीति में उतरते हैं तो यह 370 के हटाए जाने को मान्यता देने जैसा होगा. और अब, वे यह कहकर कि 370 की बहाली के लिए लड़ेंगे, फिर से वही राजनीति कर रहे हैं. बीजेपी उनके लिए एक और चुनौती है जो कश्मीर में अपने पांव मज़बूत करना चाहती है. "
नूर अहमद कहते हैं कि गठबंधन के सामने जीत की बड़ी चुनौती है. वे कहते हैं, "बड़ी चुनौती यह है कि यह गठबंधन कैसे जीतेगा? ये भी देखना होगा कि क्या यह गठबंधन अपने एजेंडे और विचारों को लोगों तक पहुँचा पाता है. ? "
वे कहते हैं, "अगर पीएजीडी अपना संदेश जम्मू-कश्मीर की अवाम तक पहुँचाने में कामयाब रहा तो निश्चित रूप से यह बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा करेगा. "
फ़िलहाल, बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी कर दी है जबकि पीएजीडी ने भी दूसरे चरण के प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर दी है.
पीएजीडी इन चुनावों में इससे जुड़ी पार्टियों के झंडों पर ही चुनाव लड़ेगी.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं. )
|
e62ac150b294bdca687c804d9ed7e710826853df | web | अम्मा अपने जिस बेटे के परिवार के साथ सबसे ज़्यादा समय तक रहीं, उस का परिवार बिखर कर छिन्न- भिन्न हो गया।
अब अम्मा को अपने दूसरे बेटे का साथ मिला।
प्रायः बुजुर्गों का ये सोचना होता है कि एक से अधिक संतान होने पर वे दोनों के साथ रह कर एक संतुलन बनाना चाहते हैं। लेकिन कई बार वे एक दूसरे की अच्छाई को अपनी सुविधाओं के लिए ढाल बना लेते हैं।
मसलन, यदि एक घर में उन्हें कोई कष्ट या कमी हो रही है तो झट से वो ये जता देते हैं कि वहां दूसरे घर में तो ऐसा नहीं होता।
इसके उलट यदि यहां उन्हें कुछ एक्स्ट्रा मिल रहा है तो उसका ज़िक्र वे नहीं करते। उन्हें लगता है कि इससे ये सुविधा चली जाएगी। उनकी कोशिश तो ये होती है कि इसका उदाहरण देकर वहां भी ये आराम मांगा जा सके।
दुनिया के ज़्यादा से ज़्यादा आराम तलब होते जाने की ये होड़ अधिकतर उन्हीं से शुरू होती है। अब अधिकांश बुज़ुर्ग और अनुभवी लोग "सहने" के आदी नहीं रह जाते।
सरकारों ने भी "सीनियर सिटीजन" के नाम पर उन्हें इसका अभ्यस्त बनाया है।
बुजुर्गों की इस होशियारी को उनके बेटे- बेटी तो फ़िर भी सह जाते हैं किन्तु बहुएं आसानी से नहीं चलने देती हैं। और दामादों से ये अपेक्षा आज भी बहुत से दंपत्ति नहीं रखते।
अम्मा को ये बिसात यहां ख़ूब बिछानी पड़ती थी।
वहां तो काम पर जाने वाली बहू की सुविधाएं भी थीं और उसकी अनुपस्थिति के आराम भी। किन्तु यहां बहू के दिन भर घर पर ही रहने से अम्मा के छोटे - मोटे काम संपादित होने से रह जाते थे।
एक कहावत है कि जो चार काम करता है वो पांचवां भी आसानी से कर डालता है। पर जिसके पास एक ही काम की ज़िम्मेदारी रहे, उससे दूसरा नहीं होता।
वहां घर, दफ़्तर, बच्चे, सब काम एक साथ संभालती बहू को जब अम्मा कुछ बतातीं तो वो लगे में लगा अम्मा का काम भी कर डालती।
यहां अम्मा को कुछ भी कहने- मांगने से पहले बेटे को ही देखना पड़ता था। यहां तो घर के नोन - तेल - लकड़ी भी बेटे के ऊपर ही थे, और साग -सब्जी - दूध भी। बाज़ार तक पहुंच- पकड़ भी उसी की।
एक फर्क कमाऊ बहू और घरेलू बहू का भी था।
सौ बातों की एक बात ये, कि अम्मा अब कुछ तंग- हाथ भी रहती थीं।
दुनियादारी का एक और समीकरण यहां लागू होता था।
जिस तरह ग्रामीण किसान परिवारों में गाय की नियति होती है।
जब तक गाय दुधारू रहे सबके लिए पूजनीय गौ- माता होती है। उसके बाद केवल पशुधन, और उसके भी बाद मात्र एक चरने वाला प्राणी!
अम्मा की उम्र अब घर के कुछ कामकाज करने की भी नहीं रही थी। आयु का नवां दशक भी बीत रहा था।
असल में अम्मा की ये वही बहू थी जिसने अपने होनहार युवा बेटे को उसकी कुल चौबीस साल की उम्र में खो दिया था।
इसके बाद उनकी बेटी की शादी हो गई थी और फिर दोनों पति- पत्नी उसके भी चले जाने के बाद बिल्कुल अकेले ही अपने घर में रह गए थे।
ऐसा लगता था कि कभी - कभी बहू गहरे अवसाद में चली जाती थी और उसे दुनियादारी की बिल्कुल खबर नहीं रह जाती थी।
इसी कारण अम्मा का सूनापन और भी बढ़ जाता था।
अम्मा को ये परिवर्तन रास नहीं आता था।
लेकिन कुछ समय बाद एक बार फिर अम्मा को कुछ रौनक देखने का मौक़ा मिला।
अमेरिका गए अम्मा के पोते की पढ़ाई वहां पूरी होते ही उसे वहीं नौकरी मिल गई।
कुछ समय बाद वो छुट्टी लेकर वापस आया।
संयोग से उसी दौरान यहां इसी शहर में उसका रिश्ता भी तय हो गया।
जिस लड़की से उसका रिश्ता हुआ वो डॉक्टरेट कर रही थी। उसका काम पूरा होने में अभी कुछ समय शेष था।
इसलिए ये तय किया गया कि अभी बेटे की सगाई कर ली जाए और जब उसकी होने वाली बहू की डॉक्टरेट उपाधि पूरी हो जाए तब किसी अच्छे से मुहूर्त पर उन दोनों की शादी कर दी जाए, ताकि शादी के बाद बेटा- बहू दोनों एक साथ अमेरिका जा सकें।
अब उस बेटे की मां के न होने के कारण अम्मा एकबार फिर से घर में महत्वपूर्ण हो गईं।
उम्रदराज अम्मा कुछ दिन के लिए ये भी भूल गईं कि अब उनकी उम्र किसी सगाई- शादी की भाग दौड़ करने या घर में ऐसे समारोह को करने, मेहमानों की आवभगत करने की ज़िम्मेदारी लेने की नहीं है।
लेकिन फ़िर भी अम्मा को लगता कि बहू के न रहने पर अब इस शुभ कार्य को संपादित करने की पूरी जिम्मेदारी अब उन्हीं की तो है।
वृद्धावस्था शरीर की शक्तियों को क्षीण ज़रूर कर देती है लेकिन व्यक्ति की अनुभव जन्य सोच उसकी आवाज़ का वही दमखम बरकरार रखती है।
अम्मा हर बात में ऐसे ही बोलतीं मानो वो सब कर लेंगी, और घर के सभी लोग बस उनके कहे पर चलते रहें।
लेकिन अम्मा के तीसरे बेटे ने अपनी और घर की तमाम परिस्थिति को देख- समझ कर सारी व्यवस्था किसी अच्छे से होटल में कर दी, और घर के लोगों को बिना कोई कष्ट दिए हुए केवल मेहमानों की भांति ही आमंत्रित किया।
सही समय पर सब संपन्न हो गया।
अम्मा के तीसरे बेटे के विचार शादी -ब्याह को लेन -देन का कारोबार बना देने के कभी नहीं रहे थे।
बल्कि उसे तो ऐसे अवसरों पर लिए जाने वाले रस्मो रिवाज किसी ढकोसले की तरह नज़र आते थे।
घर- परिवार को हिला कर रख दिया जाए। अपनी ज़िन्दगी भर की जमा- राशि का भद्दा दिखावा किया जाए। रोज़ में न पहने जा सकने वाले बेतुके, तड़क - भड़क वाले कपड़े खरीद कर घर में बेवजह भर लिए जाएं। ज़िन्दगी भर बैंक लॉकरों में सड़ने वाले, या फिर जान जोखिम में डालकर मौक़े- बेमौके अपनी मालियत- मिल्कियत का बेहूदा प्रदर्शन करने वाले गहने ज़ेवर खरीद कर रख लिए जाएं। तमाम रिश्तेदारों मित्रों और परिचितों को इकट्ठा करके सजावटी- दिखावटी बेशुमार भोजन की बरबादी कर ली जाए और फ़िर इस तमाम खर्च और तामझाम का बोझ लड़की के घर वालों पर हक़ से डाल दिया जाए...ये सब किसी त्यौहार- खुशी से ज़्यादा कोई बर्बादी का बवंडर जैसा नज़र आता था उसे।
बाप तो बाप, बेटा तो और भी एक कदम आगे की सोच रखता था।
सब जानते हैं कि इन बातों से किसी का भला नहीं होता, फ़िर भी परंपरा, दिखावा, स्पर्धा और एक दूसरे से भद्दी होड़! अम्मा का पोता तो इस सब से और भी ज़्यादा चिढ़ता था।
इसलिए अमेरिका से लौटे बेटे से जब एक रात पिता ने पूछा कि मैं तेरी सगाई में आमंत्रित किए जाने वाले लोगों की सूची बना रहा हूं, तू बता किस - किस को बुलाना है, तो बेटे ने एक बहुत ही संक्षिप्त और सटीक उत्तर दिया।
बोला- रिश्ते और संबंध तो आप देख लो, मेरी ओर से तो उन सब लोगों को बुला लो जो आकर ख़ुश हों।
बेटे ने बहुत ही व्यावहारिक बात की थी।
- उन्हें तो ज़रूर बुलाना, नाक पर गुस्सा लिए बैठे हैं।
- उसे तो अभी कह दो, नहीं तो बाद में ताना मारेगा कि नाम के लिए बुलाया है, अब रिज़र्वेशन कहां मिलेगा।
- वो तो बेचारा अा ही जाएगा, बुलाओ या न बुलाओ।
- उसे ज़रूर कहना, हर मौक़े पर उसने हमें बुलाया है।
- उसे रहने दो, आकर और बखेड़ा करेगा।
- वो तो कभी मिलने पर सीधे मुंह बात तक नहीं करता,पर बुलाना तो पड़ेगा, बहन- बेटी के ससुराल का मामला ठहरा।
समाज में लोगों को अपनी किसी खुशी में शामिल करने के लिए छांटना भी जैसे एक कठिन परीक्षा हो।
लेकिन घर की महिलाएं इन सब कामों को बेहद कुशलता से निभा ले जाती हैं। किसी को पता तक नहीं चलता कि महिलाओं ने अलग - अलग दिशाओं में भागते ये घोड़े कब और कैसे साध लिए।
जब मौका आता है तो सब परिजन, मित्रजन और पड़ोसजन सज- धज कर आकर खड़े हो जाते हैं। और मंगल गीत गाए जाने लग जाते हैं।
अमेरिका में नौकरी कर रहे इस बेटे की सगाई भी धूमधाम से संपन्न हुई।
लोग भी जितने बुलाए गए थे,सभी अाए।
अम्मा को एक बार फ़िर अपना पूरा कुनबा एक साथ देख पाने का मौक़ा मिला। जो न अा सके, उनसे इस बहाने संदेशों का आदान- प्रदान हुआ। कम से कम इस बहाने संबंधों में एक बार फ़िर से खाद पानी तो पड़ ही गया।
अम्मा अब फिर अपने बड़े बेटे के पास सूने से घर के अकेले कमरे में आ गईं।
लेकिन एक बात ज़रूर थी।
बाहर से देखने वालों को चाहे ऐसा लगता हो कि ये बिना बच्चों का सूना घर है जहां तीन बुज़ुर्ग जन शांति से अकेले से रहते हैं। पर भीतर से तो वो घर खासा चहल- पहल भरा था ही।
वहां नब्बे साल की अम्मा अपने पैंसठ साल के बेटा- बहू के साथ रहती थीं।
मां के लिए तो बेटा, बेटा ही था।अम्मा उसे कभी गर्म पानी के लिए दौड़ातीं, कभी ठंडी चादर के लिए।
चाहे वहां किलकारियों की जगह कराह ही क्यों न गूंजती हो, अम्मा को भी बच्चे सामने दिखते, और बच्चों को भी मां!
वो साथ में ताश भी खेलते, टीवी भी देखते, चाय भी पीते और दूसरे घरवालों के सुख- दुःख पर चर्चा- टिप्पणी भी करते।
घुटनों के दर्द की बात होती, ढीली बत्तीसी की बात होती, पेट की गैस की बात होती, चश्मे के नम्बर की बात होती।
बहू कभी- कभी जब अम्मा और बेटे की गुफ्तगू देखती तो उसे अपना दिवंगत बेटा भी याद आ जाता और वो अवसाद की बदली में घिर कर अपने कमरे में जा बैठती और कमरा अंदर से बंद करके लेट जाती।
कभी- कभी ऐसे में ही वो गहरी नींद सो भी जाती और तब बेचारे अम्मा और बेटा तीसरे पहर की चाय का इंतजार ऐसे किया करते जैसे अलसभोर जागे हुए पंछी बादलों की ओट से सूरज के दिखने की आस लगाए बैठे इंतजार किया करें।
बेटा अगर शौच घर में भी जाए तो उसे अम्मा की दो- तीन पुकार सुन कर हड़बड़ी करनी पड़ जाती।
फ़िर अगर बेटे का मूड ठीक हुआ तो अम्मा को तत्काल उसका चेहरा शांति से दिख जाता, और नहीं तो अगले पंद्रह- बीस मिनट तक मां बेटे की जिरह से बहू को मनोरंजन मिल जाता और सबका कुछ समय पास हो जाता।
बेटा कहता- मैं क्या कहीं भागा जा रहा हूं? पांच मिनट का भी सब्र नहीं है।
पलट कर अम्मा कहती थीं- अब घर में इंसान हो, तो कुछ बोलेगा ही, मुंह में दही जमा कर तो नहीं बैठ सकता।
कभी - कभी अम्मा की इस व्यंग्योक्ति को बहू अपने पर कटाक्ष समझ लेती और चुपचाप रसोई में जाकर उस गैस का नॉब बंद कर देती जिस पर चाय का पानी चढ़ा होता।
चाय में हुई इस अकारण देरी से अम्मा खिन्न होकर बगावत कर जातीं और फ़िर लापरवाही से चम्मच में रखे उस गर्म तेल को पड़े- पड़े ठंडा हो जाने देती थीं जो अभी - अभी बहू ने कर के दिया होता।
कुछ देर बाद अम्मा कहती थीं- बिल्कुल ठंडा तेल है, इसे कान में डालने से क्या फायदा होगा?
और तब बेटे को उठ कर रसोई में जाना पड़ता और तेल दोबारा गर्म करके लाना पड़ता।
बेटा जब रसोई में जाता तो चाय भी बना लाता और चाय पीकर दोनों का मूड ठीक हो जाता, अम्मा का भी और बहू का भी।
तब अम्मा कहती थीं - बेटी, तू ज़रा मेरे सिर में भी तेल लगा दे!
सास - बहू के इस उपक्रम में बेटे को थोड़ी सी मोहलत मिल जाती और वो टीवी के सामने आ बैठता।
इस तरह सबका समय खूब आराम से कट जाता।
सारी उम्र सरकारी नौकरी करते रहे बेटे को बिना कुछ किए भी पांच बजाना अच्छी तरह आता था। सरकार ने उसे ये तो अच्छी तरह सिखाया ही था।
शाम को अम्मा की कुर्सी बाहर डाल दी जाती।
मोहल्ले- पड़ोस के आते - जाते लोग "अम्माजी राम- राम" कहते हुए थोड़ी देर भी अगर अम्मा के समाचार लेने रुकते तो बेटा झट बाहर निकल कर थोड़ी हवा- खोरी भी कर आता, और बाज़ार से सौदा- सुलफ़ भी ले आता।
कभी - कभी शहर में ही रहने वाले अम्मा के अन्य बेटों के परिवार से कोई अम्मा के समाचार लेने आ जाता तो दिन और भी सुगमता से कटता।
अम्मा बिस्तर पर लेटी- लेटी सोचती रहतीं, राजा हो या रंक, उम्र की चाबुक तो सभी पर पड़ती है।
लेकिन अब अम्मा के भाई बहनों में से कोई नहीं बचा था जिसे अम्मा देखें और पुराने दिनों की यादें ताज़ा करें।
सब बच्चे ही थे, या थे बच्चों के बच्चे।
इनके लिए तो अम्मा घर में सांसें लेता हुआ एक जीवित कलेंडर ही थीं। बेचारे बच्चे क्या जाने कि इस झुर्रियों में सिमटी जर्जर काया की अपनी कहानियां भी हैं और इतिहास भी।
कोई बहुत छोटा बच्चा अम्मा के पास बैठा दिया जाता तो अम्मा के गालों पर हाथ फेरता हुआ पूछता- दादी मां, आपके दांत कैसे टूटे? आपका मुंह सिकुड़ कैसे गया? अम्मा आप अखरोट कैसे खाती हो?
अम्मा एकटक प्यार से बच्चे को देखती थीं और सोचती जाती थीं कि दूसरा जन्म मिल जाए तो इस मासूम के सब सवालों का जवाब दे सकें अम्मा!
लेकिन अगले ही पल अगर बच्चा अम्मा के दुखते घुटनों पर चढ़ जाता तो अम्मा दर्द से बिलबिला कर कहतीं - परे हट! कमबख्त ने प्राण ही निकाल दिए!
|
ca545ef336f803578a2cadeaa2891ac090476988c52d81265f9e7ae292fb6561 | pdf | खिलाफ थी । उसने अपने देश की न सिर्फ आजादी हासिल की, वल्कि उसे पूरे तौर पर आधुनिक यानी नये ढंग का बना दिया -- यहाँतक कि कोई पहचान नहीं सकता कि यह वही पुराना तुर्की है। उसने सुलतानियत, खिलाफत, स्त्रियो के परदे और बहुतेरे पुराने रिवाजो का खात्मा कर दिया है । सोवियट का नैतिक और व्यावहारिक समर्थन यानी अमली ताईद उसके लिए बडी मददगार सावित हुई । ब्रिटिश प्रभाव से छुटकारा पाने की अपनी कोशिशो में फारस को भी सोवियट से मदद मिली । वहाँ भी रिजावाँ नामक एक मजबूत और ताकतवर आदमी उठ खड़ा हुआ, और वही अब वादशाह है । इसी अवधि या जमाने में अफगानिस्तान भी पूर्ण स्वतन्त्रता या मुक म्मल आजादी हासिल करने में कामयाब हुआ ।
अरवस्तान को छोड़कर और सब अरब देश अब भी विदेशी हुकूमत के नीचे है । अरवो को एक कर दिये जाने की माँग अभीतक पूरी नहीं की गई है । अरबस्तान का ज्यादातर हिस्सा सुलतान इब्नसऊद के शासन-तले स्वतन्त्र होगया है । कागज पर तो इराक भी स्वतन्त्र है, पर असल में वह ब्रिटेन के प्रभाव और नियंत्रण में है । फिलस्तीन और ट्रासजोर्डन के छोटे राज्य ब्रिटिश शासनादेश में और सोरिया फ़ासीसी शासनादेश में है, यानी इन देशो में राष्ट्रसंघ के आदेश से ब्रिटेन और फ्रांस का शासन है । सीरिया में फ़ासीसियो के खिलाफ एक जबरदस्त और बहादुराना बगावत हुई, और वह कुछ हदतक कामयाब भी हुई । मिस्र में भी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ वलवे हुए और लम्बे अर्से तक आजादी की लडाई चलती रही । यह लड़ाई आज भी चल रही है, गोकि मिस्र स्वतन्त्र कहलाता है और ब्रिटेन के हाथ की कठपुतली एक सुलतान वहाँ बादशाहत करता है । उत्तर- अफरीका के सुदूर पश्चिम मोरवको में भी अब्दुलकरीम के नेतृत्व में आजादी के लिए बड़ी बहादुराना लड़ाई हुई। उसने • स्पेनवालो को निकाल बाहर करने में कामयाबी हासिल की, पर बाद में फ़ासीसियो की पूरी ताकत ने उसे कुचल दिया ।
एशिया और अफरीका में होनेवाली आजादी की ये लड़ाइयाँ यह बताती है कि पूर्व के सुदूर देशो में कैसे एक ही वक़्त में नई भावना लोगो -- स्त्री पुरुषो- - के मन पर असर डाल रही थी । इनके बीच दो देश ऊँचे खडे है, क्योंकि उनका सारी दुनिया के लिए महत्त्व है । ये चीन और हिन्दुस्तान है । इन दोनो में से किसी एक में भी एकाएक कोई गहरा परिवर्तन होने से वह दुनिया की सारी वडी ताकतो को प्रणाली पर असर डालता है, दुनिया की राजनीति में उसका जबरदस्त नतीजा हुए बिना नहीं रह सकता । इस तरह हम देख सकते हैं कि चीन और हिंदुस्तान की आजादी की लडाई सिर्फ इन्ही देशो के वाशिन्दो की राष्ट्रीय या घरू लड़ाई नहीं है। चीन की B ६२
सफलता का मतलब एक ताकतवर राष्ट्र का निकलकर मैदान में आता है, जो ताक्तो के वर्तमान समतौल में बड़ा फर्क पैदा कर देगा और जिससे साम्राज्यवादी ताकतो के चीन के शोषण का अपनेआप खात्मा हो जायगा । इसी तरह हिन्दुस्तान की कामयाबी का मतलब एक जबरदस्त और महान् राष्ट्र का रंगमंच पर आना है और इससे तुरन्त ब्रिटिश साम्राज्य का खात्मा होजायगा ।
पिछले दस वर्षों में चीन में बहुत से उतार-चढ़ाव हुए है । काउ-मिन-ताग और चीनी साम्यवादियो में जो एका हुआ था वह टूट गया और तबसे चीन 'तूशन' और दूसरी तरह के लुटेरे सरदारो या सिपहसालारो का शिकार रहा है। विदेशी स्वार्थों और हितों ने बराबर उनकी मदद की है, क्योंकि वे चीन में गड़बडी कायम रखना चाहते है और इसमें उनका फायदा है । पिछले दो वर्षों से तो जापान ने सचमुच चीन पर चढ़ाई ही करदी और उसके कई सूबो पर कब्जा कर लिया है । यह अनियमित लड़ाई अभीतक चल रही है । इस बीच चीन के भीतर के कई प्रदेश साम्यवादी होगये है और उनमें एक तरह की सोवियट सरकार कायम हो गई है ।
हिन्दुस्तान में पिछले चौदह वर्ष घटनाओ से भरे रहे हैं । इस जमाने में एक उग्र पर शान्तिपूर्ण राष्ट्रीयता उठी है । महायुद्ध के बाद जब बडे-बडे सुधारो को उम्मीदें लोगो के दिलो में उठ रही थीं, तब हमने पंजाब में फ़ौनी कानून ( मार्शलला ) और जलियाँवाला बाग का वह भयानक कत्लेआम देखा । इसकी खीझ और तुर्की और खिलाफत के बारे में मुसलमानो के विरोध से वापू ( गाधीजी ) के नेतृत्व में १९२० से १९२२ तक का असहयोग आन्दोलन पैदा हुआ । १९२० के वाद से बापू भारतीय राष्ट्रीयता के एकमात्र असन्दिग्ध नेता रहे है, इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता । यह हिन्दुस्तान में गाधी-युग रहा है और उनके शान्तिपूर्ण विद्रोह के उपायो ने अपने नयेपन और सामर्थ्य ( efficacy ) से दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है । बीच के विधायक कामो और तैयारी के कुछ वर्षों के वाद १९३० में फिर आजादी की लड़ाई शुरू हुई, जब काग्रेस ने साफ-साफ पूर्ण स्वतंत्रता या मुकम्मल आजादी का ध्येय अपनाया । तवसे हम लोग, बीच की चन्दरोजा सुलह के अलावा, सत्याग्रह की लडाई, जेलो का भरना और बहुत नी दूसरी चीजें, जिन्हें तुम जानती हो, देखते रहे है । इस बीच ब्रिटिश नीति यह रही है कि छोटे-छोटे सुधार देकर अगर मुमकिन हो तो कुछ लोगो को अपनी तरफ मिला लिया जाय और राष्ट्रीय आन्दोलन को फुचल दिया जाय । वह नीति अब भी चल रही है, लेकिन फिर भी हमारी लड़ाई असन्दिग्ध प से जारी है ।
दो वर्ष पहले वरमा में भूखे किसानो को एक बडी बग़ावत हुई और बड़ी
वेरहमी के साथ कुचल दी गई। जावा और डचइडीज में भी बलवा हुआ । अखबारो से मालूम होता है कि स्याम में भी कुछ उथल-पुथल और तब्दीली हुई है और राजा के अधिकार सोमित कर दिये गये है । फ्रासीमी इण्डोचीन में भी राष्ट्रीयता जग रही है ।
इन तरह हम देखते है कि सारे पूर्व में राष्ट्रीयता अपनी अभिव्यक्ति के लिए लड रही है और कई देशो में इसके साथ साम्यवाद का भी कुछ रग मिल गया है इन दोनो यानी राष्ट्रीयता और साम्यवाद के बीच सिवा इसके कोई सामान्य या यकताँ बात नहीं है कि दोनो साम्राज्यवाद से नफरत करते है । यूनियन के बाहर और भीतर के नव पूर्वी देशो के प्रति सोवियट रूस की बुद्धिमत्तापूर्ण और उदार नीति के कारण अ-साम्यवादी देशो में से भी कई उसके दोस्त बन गये है ।
जैसा कि हम देख चुके है, आजादी और स्वतंत्रता की तरफ हिन्दुस्तान के बढ़ने का मतलब ही ब्रिटिश साम्राज्य का ख़त्म होजाना है। इसमें शक नहीं कि अगर हिन्दुस्तान की इस आजादी की लड़ाई को छोड़ दें तो भी निश्चितरूप से ब्रिटिश साम्राज्य नष्ट होता चला जा रहा है । 'एलिस इन वण्डरलैण्ड' नाम की किताब की चेशायर बिल्ली की तरह यह मिटता जा रहा है; पर मुस्कराहट बची हुई है और यह बहादुराना मुस्कराहट है । एक बडे राष्ट्र को गिरते हुए देखना बड़ा दुख दायी या करुणापूर्ण होता है । अपने जमाने में इग्लैण्ड महान् रहा है और उसकी पुरानी ताकत के सब जरिये एक-एक करके उससे कटते जा रहे है । इस वक्त वह अपनी जमा की हुई दौलत पर जी रहा है और यह दौलत इतनी काफी है कि कुछ दिनो तक यह खेल चल सकता है । अंग्रेजो के सामने जो बहुतेरी दिक्कते है उनका सामना करने की हिम्मत का उनमें अभाव नहीं है । साम्राज्यवादी इंग्लैण्ड ऊपर से अपनी वही पुरानी टोम-टाम बनाये रखने को जबरदस्त कोशिश कर रहा है - उस बूढ़ी औरत की तरह जो कभी खूबसूरत थी पर अब उसे जवानी को पार किये बहुत दिन हो चुके है फिर भी वह पेण्ट और पाउडर की मदद से अपनेको खूबसूरत और नौजवान दिखाने की कोशिश करती है। पर इस शाही औरत के पतन के पीछे मजदूरो और उनका साथ देनेवाले बहुतेरे विद्वानों का एक दूसरा इंग्लैंग्ड भी है और भविष्य इन्हीं लोगों का है ।
हाल के इन वर्षों की एक मुख्य विशेषता स्त्रियो का बहुतेरे कानूनी, सामाजिक और परम्परागत बन्धनो से, जिनमें कि वे जकडी हुई थीं, छुटकारा है । पश्चिम में महायुद्ध ने इस बात में बडी मदद को । पूर्व में भी तुर्की से हिन्दुस्तान और चीन तक स्त्रियाँ जाग उठी है और राष्ट्रीय और सामाजिक कामो में बहादुरी के साथ हिस्सा ले रही है ।
विश्व इतिहास को
ऐना यह युग है जिसमें हम रह रहे है । हर रोज परिवर्तन महत्वपूर्ण घटना राष्ट्रों के झगडे, पौग्ड और डालर के इंटयूह. सोवियट पर पूंजीपतियों का और सोवियट का उनसे बदला बढ़ती हुई गरीबी और लाचारी और श्रेणी-संघर्ष यानी मालदारों और गरीब श्रमिकों को रशमन्त्र को ख़बर जाती हो रहती हैः और इन सबके ऊपर युद्ध की लगातार बढ़ती हुई काली छाया है ।
यह इतिहास का एक उथल-पुथल का जमाना है और ऐसे वक्त में जिन्दा होता लौर अपना हिस्सा अदा करना - फिर चाहे वह हिस्सा देहरादून-जेल का एकान्त हो क्यों न हो - बडी लच्छी कौर खुशक़िस्मती की बात है ।
प्रजातंत्र के लिए आयर्लेण्ड की लड़ाई
२८ अप्रैल १९३३ अब हम हाल के वर्षों की महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर जरा तफ़तोल के साथ गौर करेगे । मै आयर्लेण्ड से शुरू करता हूँ । विश्व इतिहास और विश्व-शक्तियो की दृष्टि से योरप के सबसे पश्चिम के इस छोटे से देश का इस समय कोई ज्यादा महत्व नहीं है । पर यह बहादुर औौर दुईमनीय यानी किसी तरह न दबनेवाला देश है और ब्रिटिश साम्राज्य की सारी ताकृत इनकी आत्मा को कुचलने या इसे झुकाकर मातहतो स्कूल कराने में कामयाब नहीं हुई है। इस वक्त यह भी ब्रिटिश साम्राज्य के विनाश में मदद देनेवाली एक चीज है ।
आयर्लंण्ड के बारे में जो पिछला खत मंने तुम्हे लिखा था उसमें मैने होमरल• विल का जिक्र किया था । यह बिल ब्रिटिश पार्लमेण्ट ने ठोक महायुद्ध शुरू होने के पहले पास हुआ था । अल्सटर के प्रोटेस्टेण्ड नेताओं और इंग्लैण्ड के अनुदार दल ने इसका विरोध किया और इसके खिलाफ बाकायदा एक बगावत का संगठन किया गया । इसपर दक्षिणी आयलैण्ड के वाशिन्दो ने भी जरूरत ला पड़ने पर अल्मटर से लड़ने के लिए अपने 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक' दल बनाये । मालूम पड़ता था कि आयलॅण्ड में गृह युद्ध होने ही वाला है। इसी मौके पर महायुद्ध आगया और सबका ध्यान वेलजियन और उत्तर-क़ात की युद्ध भूमि की तरफ सिंच गया। पार्लनेण्ट के आयरिश नेता वृद्ध में अपनी तरफ ने मदद देने को तैयार होगये, पर उनरा देश इस तरफ ने उदासीन था और उने युद्ध में मदद देने की कोई उत्सुक्ता न थी। इस बीच अल्मटर के 'बागियों' को निविदा सरकार में ऊँचे-ऊंचे जोहदे दिये गये और इनसे आयर्लंण्ड वालो का अनो और ज्यादा बढ़ गया ।
प्रजातंत्र के लिए आयर्लंण्ड की लडाई
आयर्लंण्ड में असन्तोष बढता गया और इसके साथ यह अनुभूति या एहसास भी पैदा हुआ कि इग्लैण्ड की लडाई में आयलैण्ड वालो की कुरबानी न की जाय। जब इग्लैण्ड की तरह आयर्लंग्ड में भी अनिवार्य रूप से फौज में शामिल होने का कानून (Conscription) बनाने का प्रस्ताव सामने आया (जिसके अनुसार सब स्वस्थ नौजवानो को फौज में शामिल होना पडता) तो सारा देश आग-बबूला होगया और जबरदस्त विरोध किया गया । यहाँतक कि जरूरत पड़ने पर आयलैंण्ड ने जोर-जबरदस्ती से भी उसे रोकने की तैयारी की ।
१९१६ के ईस्टर-सप्ताह में डबलिन में एक बगावत होगई और आयरिश प्रजातंत्र का ऐलान कर दिया गया । चन्द दिनो की लड़ाई के बाद अग्रेजो ने इसे कुचल दिया और इस चन्दरोजा बगावत में हिस्सा लेने के जुर्म में फौजी कानून के मुताबिक, बाद में, आयर्लंण्ड के कुछ सबसे बहादुर और अच्छे नौजवानो को गोली मार दी गई । यह बगावत, जो 'ईस्टर - विद्रोह' के नाम से मशहूर है, अग्रेजो को चुनौती देने का कोई गभीर प्रयत्न कही कहा जा सकता । असल में यह दुनिया के सामने यह दिखा देने की एक बहादुराना कोशिश थी कि अब भी आयलैण्ड प्रजातंत्र का सपना देखता है और अपनी इच्छा से ब्रिटेन की मातहती कबूल करने से इन्कार करता है । इस बगावत के पीछे जो बहादुर नौजवान थे उन्होने दुनिया के सामने यह बात जाहिर करने के लिए जान-बूझकर अपनेको कुरबान कर दिया । वे अच्छी तरह जानते थे कि इस बार की कोशिश में कामयाबी न होगी, पर उम्मीद करते थे कि उनकी कुरबानी बाद में रंग लायगी और आजादी को नजदीक लायगी ।
इस बगावत के समय एक आयरिश जर्मनी से आयर्लंण्ड में अस्त्रशस्त्र लाने की कोशिश करता हुआ पकड़ा गया । यह आदमी सर रोजर केसमेण्ट था, जो बहुत दिनो से ब्रिटेन के राजदूत विभाग में था । लन्दन में केसमेण्ट पर मुकदमा चला और उसे फॉसी की सजा दी गई। अदालत में मुजरिम के कठघरे में खड़े हुए उसने अपना जो बयान पढा, वह बड़ा हो जोशीला और हृदयस्पर्शी था और उसमें आयरिश आत्मा की उग्र देशभक्ति तड़प रही थी ।
वगावत तो असफल हुई, पर उसकी नाकामयाबी में ही उसको विजय थी । इसके बाद ब्रिटिश सरकार की तरफ से जो दमन शुरू हुआ उसने और खासकर नौजवान नेताओ के गिरोह को गोली मार दिये जाने के काम ने आयरिश लोगो पर वड़ा गहरा असर डाला । ऊपर से आयर्लंण्ड शान्त दीखता था, पर अन्दर-ही- अन्दर क्रोध की आग भड़क रही थी और बहुत जल्द वह 'सिनफोन' की शक्ल में सामने आई । सिनफोनभावना बडी तेजी से फैली। शुरू में इसे बहुत कम कामयाबी हुई थी, पर अब यह में जंगल की आग की तरह फैल गई । |
eca134978bcdcd82e79bf93a40124c73c5da18ea7557fc4f9d21e4be740fb99b | pdf | जल संसाधन मंत्री ( श्री जयंत मलैया ) : (क) जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र "अ" अनुसार है । (ख) जानकारी संलग्न परिशिष्ट के प्रपत्र "ब" अनुसार है। प्रश्नाधीन क्षेत्र के निकट 2 पक्की पुलिया बनाई जाने के परिप्रेक्ष्य में अतिरिक्त पुलिया निर्माण कराना आवश्यक नहीं होने के कारण। (ग) जी नहीं, नहर की खुदाई स्वीकृत रेखांकन अनुसार की जाना प्रतिवेदित है। स्थल पर विसंगति नहीं पाई जाने से शेष प्रश्नांश उत्पन्न नहीं होते है।
परिशिष्ट - "चालीस"
शराब उत्पादक इकाइयाँ
108. ( क्र. 3762 ) श्री पुष्पेन्द्र नाथ पाठक : क्या जल संसाधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) छतरपुर जिले में कितनी शराब उत्पादक इकाइयाँ संचालित हैं? उनके नाम एवं उनके द्वारा कौन-कौन सी शराब उत्पादित की जाती है? (ख) प्रश्नांश (क) के अनुसार उक्त शराब इकाइयों के मालिक एवं साझेदार कौन-कौन हैं? उनके नाम एवं निवास स्थान क्या है ? (ग) प्रश्नांश (क) के अनुक्रम में वित्तीय वर्ष 2014-15 में इनका वार्षिक उत्पादन कितना रहा ? (घ) प्रश्नांश (क) के अनुक्रम में वर्तमान वित्तीय वर्ष के प्रत्येक माह में इन इकाईयों ने कितनी शराब एवं अन्य उत्पादों का उत्पाद किया? यह शराब एवं अन्य उत्पाद कब-कब कितनी मात्रा में कहाँ-कहाँ भेजे गए ?
जल संसाधन मंत्री ( श्री जयंत मलैया ) : (क) जिला छतरपुर में मेसर्स जैगपिन ब्रेवरीज लिमिटेड नौगांव के नाम से एक शराब उत्पादन इकाई स्थापित व संचालित है। इस इकाई में आसवनी (डी- 1) लायसेंस, विदेशी मदिरा बॉटलिंग ( एफ. एल.-9) लायसेंस, ब्रुअरी (बी-3) लायसेंस एवं देशी मदिरा बॉटलिंग (सी.एस. - 1 - बी) लायसेंस अन्तर्गत क्रमशः रेक्टिफाईड स्पिरिट/ ई. एन. ए., विदेशी मदिरा, बीयर तथा देशी मदिरा उत्पादित की जाती है। (ख) रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज हरियाणा एवं दिल्ली के अनुसार जैगपिन ब्रेवरीज लिमिटेड नौगांव के संचालक मण्डल में निम्नलिखित मालिक एवं साझेदार है। 1. श्री विपिन चन्द्र अग्रवाल निवासी डिस्टिलरी परिसर नौगांव, जिला छतरपुर 2. श्री जगदीश चन्द्र अग्रवाल, निवासी - 8ए/ 15 डब्ल्यू. ई. ए. करोलबाग, नईदिल्ली 3. श्रीमती क्षमा अग्रवाल, निवासी-डिस्टिलरी परिसर नौगांव, जिला छतरपुर 4. श्रीमती राधा अग्रवाल, निवासी डिस्टिलरी परिसर नौगांव जिला छतरपुर (ग) वित्तीय वर्ष 2014-15 की अवधि में लायसेंस वार वार्षिक उत्पादन की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र- एक अनुसार है। (घ) वित्तीय वर्ष 2015-16 में प्रत्येक माह में उत्पादित, परिवहन एवं निर्यात की गई शराब एवं अन्य उत्पादों की जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र - दो, तीन, चार एवं पाँच अनुसार है।
नगरपालिका गुना में दिए गए ठेला
109. ( क्र. 3788 ) श्री पन्नालाल शाक्य : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) नगरपालिका गुना में दर्ज हितग्राहियों जैसे बीड़ी मजदूर, कामकाजी महिला हाथ ठेला मजदूर, विधवा पेंशन, सामाजिक सुरक्षा निधि से प्राप्त सहायता
प्राप्त सहायता राशि 2014-15 उपलब्ध करावें? (ख) नगरपालिका गुना क्षेत्र में विगत 05 वर्षों से किन-किन संस्थाओं को ठेका दिया गया है तथा इस सम्बंध में जारी निविदा विज्ञप्ति आवेदन पत्र का विवरण उपलब्ध करावें?
मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) बीड़ी मजदूरी योजना लागू नहीं है। नगर पालिका परिषद् गुना में वर्ष 2014-15 में योजनावार हितग्राहियों की संख्या एवं सहायता राशि का विवरण संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ख) नगर पालिका परिषद् गुना में 05 वर्षों में दिये गये ठेकों का विवरण संलग्न परिशिष्ट अनुसार है।
परिशिष्ट "इकतालीस"
नरबाई जलाने पर प्रतिबंधक कानून का निर्माण
110. ( क्र. 3792 ) श्री मोती कश्यप : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) ग्लोबल वार्मिंग से ऋतुओं में आए तथा राज्य के महानगरों में प्रदूषण का स्तर निर्धारित मात्रा व अनुपात से अधिक हो तो और उसे संतुलित करने की दिशा में किस प्रकार के प्रयत्न किये गये है? (ख) राज्य में फसलों की नरवाई को जलाने की परम्परा से वायुमण्डल के ताप में कितना प्रभाव पड़ता है और कहाँ तक उचित माना जा सकता है? (ग) क्या विभाग ने प्रश्नांश (ख) की रोकथाम के लिये कोई अधिनियम बनाया है और उसमें राजस्व और पुलिस विभाग की कोई भूमिका सुनिश्चित की है? नहीं, तो कब तक बना लिया जावेगा?
मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा राज्य के भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर में की जा रही परिवेशीय वायु गुणवत्ता में आर, एस.पी.एम. का स्तर निर्धारित मानकों से कुछ अधिक है। शेष पैरामीटर सल्फर डाईऑक्साईड, नाइट्रोजन ऑक्साईड निर्धारित मानकों के अनुरूप है। प्रयत्नों की जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ख) राज्य में फसलों की नरवाई को जलाने के संबंध में भोपाल के निकट बैरसिया के ग्राम-रोडिंया तथा जिला-रायसेन के
ग्राम-समनापुर के खेत में प्रायोगिक अध्ययन किया गया है। जिसमें परिवेशीय वायु गुणवत्ता मानकों के अनुरूप पाई गई है। (ग) उत्तरांश "ख" के परिप्रेक्ष्य में कोई कार्यवाही अपेक्षित नहीं हैं।
परिशिष्ट - "बयालीस"
आदिवासी कृषि भूमि का पंजीयन
111. ( क्र. 3869 ) श्रीमती संगीता चारेल : क्या जल संसाधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) विधानसभा क्षेत्र सैलाना अंतर्गत आदिवासी जाति की कृषि भूमि गैर आदिवासी जाति के नाम रजिस्ट्री (पंजीयन) करने के क्या नियम निर्धारित है? नियम की प्रति देवें? (ख) प्रश्नांश (क) के प्रकाश में क्या कलेक्टर को आदिवासी जाति की कृषि भूमि का पंजीयन गैर आदिवासी जाति के नाम करने के लिये अनुमति प्रदान करने का
अधिकार प्राप्त है? नियम सहित बतावें तथा वर्ष 2013-14 से आज दिनांक तक सैलाना विधानसभा अंतर्गत कलेक्टर द्वारा ऐसे कितने प्रकरणों में किस आधार पर अनुमति दी गई? (ग) क्या सैलाना विधान सभा अंतर्गत आदिवासी जाति की कृषि भूमि को गैर आदिवासी जाति के नाम पंजीयन में शासन द्वारा निर्धारित नियमों का पालन किया जा रहा है? यदि नहीं, तो इसके लिये कौन दोषी है? क्या दायित्व निर्धारित करेंगे?
जल संसाधन मंत्री ( श्री जयंत मलैया ) : (क) मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा-165 (6) के प्रावधानों के तहत विधानसभा क्षेत्र सैलाना अधिसूचित जनजाति क्षेत्र होने से आदिवासी जाति की कृषि भूमि गैर आदिवासी जाति के नाम पंजीयन की अनुमति नहीं दी जा सकती है। नियमों की प्रति पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट अनुसार है। (ख) जी नहीं। वर्ष 2013-14 से प्रश्न दिनांक तक सैलाना विधानसभा अन्तर्गत कलेक्टर रतलाम द्वारा कोई अनुमति नहीं दी गई है। (ग) उप पंजीयक द्वारा नियमों का पालन किया जा रहा है। शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता है।
शराब दुकानों के ठेके
112. (क्र. 3871 ) श्रीमती संगीता चारेल : क्या जल संसाधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) विधान सभा क्षेत्र सैलाना अंतर्गत शासन द्वारा वर्तमान कितनी अंग्रेजी शराब की दुकानों के ठेके किस-किस नाम से किन नियमों के तहत आवंटित किये गये? (ख) क्या प्रश्नांश (क) के संदर्भ में सैलाना विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत अंग्रेजी शराब दुकान के ठेकेदारों द्वारा आस-पास के गांवों में डायरी बनाकर पुलिस अधिकारियों से साठ-गांठ कर शराब विक्रय किया जा रहा है? यदि हाँ, तो ठेकेदार एवं पुलिस अधिकारियों के विरूद्ध शासन क्या कार्यवाही करेगा? (ग) क्या शासन इस प्रकार के भ्रष्टाचार एवं अवैध शराब विक्रय पर कोई कार्यवाही करेगा? यदि नहीं, तो क्यों ?
जल संसाधन मंत्री ( श्री जयंत मलैया ) : (क) विधान सभा क्षेत्र सैलाना अन्तर्गत वर्तमान में 03 अंग्रेजी शराब की दुकानें यथा सैलाना, बाजना एवं रावटी में संचालित है। दुकानों के ठेकेदारों के नाम की जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। आबकारी अधिनियम, 1915 की धारा-1 के अधीन जारी मध्यप्रदेश राजपत्र (असाधारण) क्रमांक 29 दिनांक 21 जनवरी 2015 से जारी विज्ञप्ति अनुसार वर्ष 2015-16 के लिए उपरोक्त दुकानों का आवंटन टेण्डर द्वारा प्राप्त उच्चतम ऑफर अनुसार लायसेंसियो को किया गया है। (ख) पुलिस अधीक्षक जिला रतलाम के प्रतिवेदन अनुसार सैलाना विधानसभा क्षेत्रांतर्गत थाने में दिनांक 01.01.2015 से अब तक अवैध शराब के 393 प्रकरण पंजीबद्ध कर 41042 लीटर शराब जप्त की गई है। शराब विक्रय संबंधी किसी भी ठेकेदार से पुलिस की सांठ-गांठ नहीं है। ऐसी गतिविधियों की शिकायत प्रमाणित होने पर नियमानुसार संबंधित के विरूद्ध कार्यवाही की जावेगी । (ग) विधानसभा क्षेत्र सैलाना अन्तर्गत संचालित मदिरा दुकानों के ठेकेदारों द्वारा वैध स्त्रोतों से प्राप्त वैध ड्यूटी पेड शराब का विक्रय किया जाता है। अवैध शराब विक्रय के संबंध में जिला आबकारी प्रशासन को शिकायत प्राप्त होने पर नियमों के अन्तर्गत कार्यवाही की जाती है। वर्ष
2015-16 के दौरान (जनवरी 2016 अंत तक) सैलाना विधानसभा क्षेत्र में अवैध विदेशी मदिरा विक्रय, परिवहन एवं धारण के कुल 03 प्रकरण प्रकाश में आये है। संबंधित के विरूद्ध न्यायालयीन प्रकरण कायम कर विधिवत कार्यवाही की गई है।
परिशिष्ट - "तैंतालीस"
पेंच नहर हेतु कृषकों की भूमि अधिग्रहण
113. ( क्र. 3892 ) श्री दिनेश राय : क्या जल संसाधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) सिवनी जिले की सिवनी विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत पेंच नहर का निर्माण किया जा रहा है? उक्त नहर के निर्माण हेतु कितने कृषकों की भूमि का अधिग्रहण किया गया है? (ख) प्रश्नांश (क) के नहर निर्माण हेतु जिन कृषकों की भूमि का अधिग्रहण किया गया था ? उनको प्रश्न दिनांक तक मुआवजा क्यों नहीं दिया गया ? इसके लिए कौन उत्तरदायी है? उन्हें कब तक मुआवजा का भुगतान कर दिया जायेगा? जल संसाधन मंत्री ( श्री जयंत मलैया ) : (क) एवं (ख) जी हाँ । अब तक 896 कृषकों की भूमि का अधिग्रहण किया गया है। इनमें से 787 कृषकों को मुआवजा भुगतान किया जा चुका है। भू-अर्जन की प्रक्रिया सतत् है जिसके पूर्ण होने पर भुगतान किया जाना संभव है। जिला कलेक्टर को अतिशीघ्र भुगतान करने के लिए लिखा गया है। किसी अधिकारी के उत्तरदायी होने की स्थिति नहीं है।
दोषियों की पहचान कर आपराधिक प्रकरण दर्ज कराना
114. ( क्र. 3956 ) श्री सुन्दरलाल तिवारी : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या रीवा जिले में दिनांक 1.4.15 से प्रश्न दिनांक तक कितने खम्भों में लगे एल्यूमीनियम के तारों (कंडक्टर) को निकाल कर उनके जगह में विद्युत प्रवाह हेतु खम्भों में केबिलों का उपयोग किया जा रहा है? अगर हाँ तो कितने फीडरों में केबिलीकरण का कार्य प्रारंभ कर दिया गया तथा कितने शेष हैं? कार्य किनके द्वारा किस मान से कराये जा रहे हैं? अगर ठेकेदारों द्वारा कार्य कराये जा रहे हैं तो कब-कब निविदा की कार्यवाही की गई? अगर केबिलिंग का कार्य नियम विरूद्ध दिया गया तो इसके लिए कौन दोषी हैं? (ख) प्रश्नांश (क) के संदर्भ में उपयोग की जा रही केबिले किस-किस एजेन्सी से कितनी-कितनी लागत से रीवा संभाग हेतु खरीदी गई? क्या शासन के मापदण्डों का पालन करते हुए क्रय की कार्यवाही की गई? क्रय पूर्व इनकी गुणवत्ता की जाँच कराई गई तो विवरण देवें? केबिलों के जलने एवं टूटने की कितनी शिकायतें अधीक्षण (संचा- संधा) कार्यालय रीवा में प्राप्त हुई, का विवरण देवें? (ग) प्रश्नांश (क) हाँ तो बिजली के खम्भों से कितने किलो मीटर के एल्यूमीनियम (कंडक्टर) के तार निकाले गए? उनकी मात्रा, स्टॉक, स्टोर में कब-कब दर्ज की गई ? (घ) यदि प्रश्नांश ( ख ) एवं (ग) अनुसार केबिलों के लगाने हेतु निविदा में गड़बड़ी की गई तो क्या उसकी जाँच के साथ केबिलों की गुणवत्ता में कमी की भी जाँच उपरांत दोषियों के विरूद्ध कार्यवाही करेंगे? साथ ही निकाले गए कंडक्टरों की अवैध बिक्री के लिए भी दोषियों की पहचान कर आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध करायेंगे? तो कब तक? अगर नहीं तो क्यों?
ऊर्जा मंत्री ( श्री राजेन्द्र शुक्ल ) : (क) जी हाँ रीवा जिले में दिनांक 01.04.15 से प्रश्न दिनांक तक 5484 खम्भों में लगे एलयूमिनियम के तारों (कंडक्टर) को निकाल कर उनकी जगह में विद्युत प्रदाय हेतु केबिलों का उपयोग किया जा रहा है। 34 फीडरों में केबलीकरण का कार्य किया जा रहा है तथा 82 फीडरों में केबिलीकरण का कार्य शेष है। कार्य ठेकेदार एवं पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी द्वारा विभागीय स्तर पर फीडर विभक्तिकरण एवं आर. ए. पी.डी.आर.पी. योजनांतर्गत कराये जा रहे है। रीवा जिले के ग्रामीण क्षेत्र में उक्त केबिलीकरण के कार्य हेतु मेसर्स बजाज इलेक्ट्रिकल लि. मुम्बई को अवार्ड क्र. एमडी/ईजेड/एफएस/एफ 08 / लाट-7-आर / रीवा साउथ/आई. /1992 दिनांक 14.05.15 एवं मेसर्स व्ही. टी. एल. लि. नई दिल्ली को अवार्ड क्र. एमडी/ईजेड / एफएस // एफ 08/लाट-6-आर/रीवा नाथ / आई / 1882 दिनांक 05.05.15 को जारी किया गया है। रीवा जिले के शहरी क्षेत्र में प्रश्नाधीन कार्य मेसर्स जी.ई.टी.लि. चेन्नई को अवार्ड क्र. सीएमडी/ईजेड / आरएपीडीआरपी/लाट-16 / रीवा / आई / 13 दिनांक 25.03.11 को जारी किया गया था। मेसर्स जी.ई.टी.लि. चेन्नई द्वारा निर्धारित समय-सीमा में कार्य न करने के कारण आदेश क्रमांक 3033 दिनांक 09.12.14 के माध्यम से उन्हें जारी अवार्ड निरस्त कर दिया गया था एवं शेष कार्य को वितरण कंपनी द्वारा विभागीय स्तर पर टर्न की कांट्रेक्टर की रिस्क एण्ड कास्ट के आधार पर वितरण कंपनी द्वारा पंजीकृत अ/ब श्रेणी के स्थानीय ठेकेदारों के माध्यम से कराया जा रहा है। केबिलिंग का कार्य कार्यदेशों के वर्णित शर्तों के अनुसार एवं जारी निर्देशों के अनुरूप पंजीकृत ठेकेदारों से नियमानुसार कराया जा रहा है। अतः इस हेतु कोई दोषी नहीं है। (ख) केबिलीकरण कार्य के लिए वितरण कंपनी द्वारा विभागीय स्तर पर किये जा रहे कार्य हेतु कंपनी स्तर पर संपूर्ण कंपनी क्षेत्र हेतु केबल क्रय कर क्षेत्रीय भण्डार से आवश्यकतानुसार मैदानी उपयोग हेतु समय-समय पर प्रदाय की जाती है। रीवा संभाग हेतु अलग से केबल क्रय नहीं की गई है। ठेकेदार कंपनियों द्वारा विभिन्न एजेन्सियों से खरीदी गई केबिल, एजेन्सी के नाम एवं लागत के विवरण सहित जानकारी पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "अ" अनुसार है। जी हाँ, मापदण्डों का पालन करते हुए नियमानुसार क्रय प्रक्रिया अपनाई गई है। क्रय पूर्व केबिल की गुणवत्ता की जाँच स्वतंत्र एजेन्सी द्वारा कराई गई जिसका विवरण पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "अ" अनुसार है। केबिलों के जलने एवं टूटने की 54 शिकायतें प्राप्त हुई जिसका विवरण पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "ब" अनुसार है। उक्त प्राप्त सभी शिकायतों का निराकरण कर दिया गया है। (ग) बिजली के खम्भों से लगभग 946 कि.मी. एल्यूमीनियम के तार निकाले गये। निकाले गये तार की मात्रा, विभागीय / ठेकेदार कंपनी के स्टोर में स्टॉक एवं क्षेत्रीय भण्डार, सतना को वापिस की गयी मात्रा का विवरण पुस्तकालय में रखे परिशिष्ट के प्रपत्र "स" एवं "द " अनुसार है। (घ) केबिलों के लगाने हेतु निविदा में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है और न ही केबिलों की गुणवत्ता की जाँच में कोई कमी हुई है। इसी प्रकार निकाले गये कंडक्टर का समुचित रिकार्ड संधारित किया जा रहा है। अतः उक्त संबंध में किसी के दोषी होने अथवा कोई कार्यवाही किये जाने का प्रश्न नहीं उठता।
अवैध खनिज परिवहन के दोषियों की पहचान कर कार्यवाही बावत्
115. ( क्र. 3957 ) श्री सुन्दरलाल तिवारी : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) रीवा जिले अन्तर्गत खनिज साधन विभाग द्वारा अवैध खनिज परिवहनों एवं अवैध खनन के कितने प्रकरण तैयार कर उन पर क्या कार्यवाही की गयी ? उन पर रायल्टी चोरी एवं अवैध रेत उत्खनन के कितने प्रकरण खनिज विभाग द्वारा वर्ष 2012 से प्रश्नांश दिनांक तक तैयार किये गये? साथ ही अवैध उत्खनन एवं रायल्टी चोरी बंद करने की शासन की क्या कार्ययोजना है? (ख) प्रश्नांश (क) के संदर्भ में खनिज विभाग द्वारा तैयार प्रकरणों पर कब-कब क्या-क्या कार्यवाही की गयी? वर्तमान में प्रकरणों की क्या स्थिति है ओव्हर लोडिंग के कितने प्रकरण तैयार किये गये ? (ग) प्रश्नांश (क) एवं (ख) के संदर्भ में खनिज विभाग द्वारा रीवा जिले में अवैध खनिज परिवहन करने, अवैध रूप से खनिजों के खनन एवं उपयोग पर रोक लगाने पर क्या कार्य योजना तैयार की है? जिससे खनिज संपदा दोहन पर रोक लगायी जा सके? साथ ही खदानों की पटाई एवं समतलीकरण कराने की क्या कार्ययोजना शासन ने तैयार की है? खनिज उत्खनन करने के पूर्व खदानों की अगर पटाई / समतलीकरण नहीं की जाती तो उसका उत्तरदायित्व किस पर निहित किया जावेगा? (घ) रीवा जिले में कितनी ऐसी खनिज खदानें हैं जिनकी नीलामी की जाकर कितनी राजस्व की वसूली की गयी ? प्रश्नांश (क), (ख) एवं (ग) के अनुसार अगर संबंधित अधिकारियों द्वारा सतत् निरीक्षण कर खनिज सम्पदा के दोहन एवं रायल्टी चोरी एवं खदानों के पटाई न करने से प्रकरण तैयार कर कार्यवाही नहीं की तो संबंधितों की पहचान कर वसूली के साथ कब तक कार्यवाही प्रस्तावित करेंगे?
ऊर्जा मंत्री ( श्री राजेन्द्र शुक्ल ) : (क) प्रश्नाधीन जिले में माह जनवरी 2012 से प्रश्न दिनांक तक खनिजों के अवैध परिवहन के 590 एवं अवैध खनन के 74 प्रकरण दर्ज किए गए हैं। अवैध परिवहन के प्रकरणों में आरोपित अर्थदण्ड की वसूली की गई है। अवैध उत्खनन के प्रकरण नियमानुसार कलेक्टर /अपर कलेक्टर / अनुविभागीय अधिकारी राजस्व के समक्ष निराकरण हेतु प्रेषित किए गए हैं। अवैध उत्खनन के दर्ज प्रकरणों में रेत खनिज का कोई प्रकरण दर्ज नहीं किया गया है। खनिजों के अवैध उत्खनन एवं परिवहन की रोकथाम हेतु खनिज नियमों में दण्डात्मक प्रावधान हैं। इनकी रोकथाम हेतु जिला स्तर पर टास्क फोर्स गठित है। खनिजों के अवैध उत्खनन / परिवहन की रोकथाम हेतु संभागीय उड़नदस्ता कार्यशील है। इसके अतिरिक्त जिले में पदस्थ खनिज अमले द्वारा नियमित रूप से इसके संबंध में कार्यवाही की जाती है । (ख) प्रश्नांश 'क' के उत्तर में इस संबंध में जानकारी दी गई है। जिले में वाहनों की जाँच के दौरान अवैध परिवहन के जो 590 प्रकरण दर्ज किए गए थे, उनमें से 81 प्रकरण ऐसे थे जिनमें वाहनों में अभिवहन पास में दर्ज मात्रा से अधिक खनिज मात्रा पाई गई थी। इन सभी प्रकरणों में आरोपित अर्थदण्ड की वसूली की गई है। (ग) जिले में पदस्थ अमले द्वारा, गठित टास्क फोर्स द्वारा एवं संभागीय उड़नदस्ते द्वारा खनिजों के अवैध उत्खनन / परिवहन की रोकथाम हेतु कार्यवाही की जाती है। खदान की समयावधि समाप्त हो जाने के पश्चात्
खदान बंद करने की योजना के प्रावधान नियमों में है। इसका पालन न किए जाने पर संबंधित पट्टेदार के विरुद्ध कार्यवाही किए जाने के नियमों में प्रावधान हैं। (घ) प्रश्नाधीन जिले में 27 खदानें नीलाम किए जाने हेतु चिन्हित हैं। इन खदानों की नीलामी कुल उच्चतम बोली रूपए 40,56,500/- (चालीस लाख छप्पन हजार पाँच सौ) में की गई है। इनकी नीलामी से प्रतिभूति के रूप में राशि रूपए 12, 16,950 /- एवं रायल्टी के रूप में रूपए 24,62,920/- प्राप्त हुई है। प्रश्नांश 'क', 'ख' एवं 'ग' में दिए उत्तर के प्रकाश में शेष प्रश्न उपस्थित नहीं होता।
मीटर वाचकों का नियमितीकरण
116. ( क्र. 3982 ) पं. रमाकान्त तिवारी : क्या ऊर्जा मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी जबलपुर के अधीनस्थ रीवा जिले में सन् 2006 में लिखित परीक्षा कर मैरिट सूची के आधार पर मीटर वाचकों का चयन किया गया एवं सन् 2015 में उन्हें हटा दिया गया ? (ख) म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी में मीटर वाचक योजना के परिपत्र 2012 में जो पूर्व में मीटर वाचक 5 वर्ष 3 वर्ष कार्य किये हैं तो उन्हें नयी भर्ती में अनुभव का लाभ क्या दिया जा रहा है या नहीं? (ग) म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी रीवा वृत्त में सन् 2006 में लिखित परीक्षा के माध्यम से रीवा जिले में कितने मीटर वाचकों का चयन किया गया था एवं आज वर्तमान में कितने मीटर वाचक पूर्व में काम कर रहे थे? उन्हें क्या अभी काम में रखा गया है या नहीं? (घ) क्या म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी में सन् 2006 एवं सन् 2012 में चयनित मीटर वाचकों की योग्यता आई.टी.आई एवं अभियांत्रिकी डिग्री एवं उसके समकक्ष स्नातक डिग्री प्राप्त मीटर वाचकों के भविष्य को ध्यान में रखा जावेगा? यदि हाँ, तो बतायें ?
ऊर्जा मंत्री ( श्री राजेन्द्र शुक्ल ) : (क) पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी क्षेत्रान्तर्गत प्रश्नाधीन क्षेत्र में सन् 2006 में लिखित परीक्षा कर मैरिट सूची के आधार पर मीटर वाचकों का चयन किया गया था तथा अनुबंध अवधि समाप्ति उपरान्त मीटर वाचक स्वमेव पृथक हो गये, उन्हें हटाये जाने का प्रश्न नहीं उठता। (ख) मीटर वाचक योजना से संबंधित पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के परिपत्र 2012 में पूर्व में मीटर वाचकों द्वारा किये गये कार्य के अनुभव का लाभ दिये जाने का कोई प्रावधान नहीं है। (ग) म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी अन्तर्गत रीवा जिले में सन् 2006 में लिखित परीक्षा के माध्यम से 448 मीटर वाचकों का चयन किया गया था। उच्च न्यायालय, जबलपुर के स्थगन आदेश के तहत् वर्तमान में 2 मीटर वाचक कार्यरत् हैं। (घ) म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में ठेका मीटर वाचकों के चयन हेतु निर्धारित की गई नीति 2006 में अनुबंध अवधि एक वर्ष तथा कार्य संतोषजनक पाए जाने पर आगामी एक वर्ष की वृद्धि किये जाने का प्रावधान था। इसी प्रकार ठेका मीटर वाचक योजना 2012 एवं 2013 में जारी पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के परिपत्र के अनुसार ठेके की अवधि कुल दो वर्ष हो जाने के उपरान्त कार्य संतोषजनक पाए जाने पर पुनः एक वर्ष
के लिए बढ़ाई जाने का प्रावधान था। इस प्रकार ठेके की अवधि एक बार में अधिकतम 3 वर्ष रखे जाने का प्रावधान था। अतः इसके उपरान्त ठेके की अवधि को बढ़ाने का प्रावधान नहीं है।
मुख्य नगर पालिका अधिकारी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही
117. ( क्र. 3983 ) पं. रमाकान्त तिवारी : क्या मुख्यमंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) मुख्य नगर पालिका अधिकारी त्यौंथर जिला रीवा द्वारा आय कर, वाणिज्य कर एवं उपकर की कटौती राशि मार्च 2015 में निर्धारित मद में जमा की जानी थी? मार्ग सी.एम. ओ. त्यौंथर द्वारा अभी तक यह राशि जमा नहीं किया गया है एवं उक्त तीनों मदों की राशि पृथक से कब तक जमा करेगें? (ख) अनुविभागीय अधिकारी त्यौंथर के द्वारा इसकी जाँच दिनांक 11.12.2015 को की गई? जिसमें मुख्य नगर पालिका अधिकारी को दोषी पाया गया हैं एवं सी. एम. ओ. त्यौंथर द्वारा लिखित में झूठी जानकारी दी गई हैं ? इसके विरूद्ध क्या निलंबन की कार्यवाही की गई हैं? यदि नहीं, की गई तो कब तक की जावेगी?
मुख्यमंत्री ( श्री शिवराज सिंह चौहान ) : (क) जी हाँ। आयकर वाणिज्य कर एवं उपकर की कटौती राशि दिनांक 31 मार्च, 2016 तक जाम करा दी जावेगी। (ख) जी हाँ। अनुविभागीय अधिकारी, अनुविभाग के प्रतिवेदन के आधार पर प्रकरण की जाँच की जा रही है। संपूर्ण जाँच प्रतिवेदन प्राप्त होने पर नियमानुसार कार्यवाही की जावेगी। बांध निर्माण कार्य गुणवत्ता हीन होना
118. ( क्र. 3992 ) श्री रामप्यारे कुलस्ते : क्या जल संसाधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) निवास विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत दहरा जलाशय निर्माण की स्वीकृति कब दी गई है तथा कितनी राशि की स्वीकृति दी गई है? बांध निर्माण में कुल कितने किसानों की कितनी जमीन अधिग्रहित की गई है? अधिग्रहित जमीन का मुआवजा किस आधार पर दिया गया है तथा उक्त जलाशय के निर्माण से कितनी जमीन की सिंचाई होगी ? (ख) जलाशय निर्माण में नींव स्तर से किस तरह के काम का मापदंड तय किये गये है? क्या बांध निर्माण कार्य निर्धारित मापदण्ड के अनुसार हो रहा है? निर्माण कार्य का निरीक्षण समय-समय पर सक्षम अधिकारियों के द्वारा कब-कब किया गया? (ग) क्या निर्माण एजेंसी के द्वारा जाँच अधिकारियों को धमकाया जाता है ? क्या ऐसी निर्माण एजेंसी के खिलाफ कोई कार्यवाही करेगे, ताकि अधिकारी निर्भय होकर गुणवत्ता पूर्ण कार्य करा सके?
जल संसाधन मंत्री ( श्री जयंत मलैया ) : (क) देहरा लघु सिंचाई परियोजना की प्रशासकीय स्वीकृति दिनांक 27.08.2013 को रू. 230.25 लाख की सैच्य क्षेत्र 107 हेक्टर के लिए दी गई। बांध के शीर्ष कार्य में 54 किसानों की 8.325 हेक्टर भूमि अधिग्रहित की गई जिसका मुआवजा भू-अर्जन अधिनियम के प्रावधानों के तहत निर्धारित किया गया। (ख) तकनीकी स्वीकृति अनुसार । जी हाँ । जानकारी संलग्न परिशिष्ट अनुसार है। (ग) निर्माण एजेंसी के प्रतिनिधि श्री प्रवीण कटारे द्वारा उपयंत्री श्री एम. एम. अंसारी के
साथ मारपीट की जाने के अपराध की सूचना थाना नारायणगंज में दिनांक 03.02.2016 को दी जाना प्रतिवेदित है। जी हाँ, निर्माण एजेंसी को "कारण बताओ सूचना पत्र जारी किया जा चुका है।
परिशिष्ट- "चौवालीस"
जल उपभोक्ता अध्यक्ष पद पर पदस्थ व्यक्ति की जानकारी
119. ( क्र. 3995 ) श्री आर. डी. प्रजापति : क्या जल संसाधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या छतरपुर जिले के अंतर्गत तहसील लवकुश नगर में श्री रमेश पटेल जल उपभोक्ता क्र. 74 धरमपुरा निवासी देवपुर अध्यक्ष जल उपभोक्ता का चुनाव लड़कर निर्वाचित हुए थे? क्या उक्त चुनाव दिनांक 17.05.2015 में सम्पन्न हुआ था? (ख) क्या प्रश्न (क) में वर्णित उक्त व्यक्ति को अनुविभागीय अधिकारी राजस्व तहसील लवकुश नगर द्वारा प्रकरण क्रमांक 28/अ 89 अ/2008-09 में पारित आदेश दिनांक 17.11.2009 में 32 लाख 2 हजार रूपये को दोषी करार देते हुये 6 वर्ष के लिये चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य / वंचित किया गया था ? (ग) क्या सत्र न्यायाधीश छतरपुर द्वारा प्रकरण क्र. 40/2009 के पारित निर्णय दिनांक 11.05.2010 में गबन का दोषी पाते
6 वर्ष कारावास एवं 40 हजार रूपये अर्थदण्ड से दण्डित किया गया था ? (घ) क्या उक्त व्यक्ति किसी भी चुनाव में भाग लेने हेतु पात्र हैं? यदि नहीं, तो वर्तमान में अध्यक्ष जल उपभोक्ता समिति जैसे महत्वपूर्ण पद पर रह सकता हैं? यदि नहीं, तो इसके लिये कौन दोषी हैं तथा दोषी अधिकारियों के विरूद्ध क्या कार्यवाही की गई ? यदि नहीं, तो कब तक की जावेगी?
जल संसाधन मंत्री ( श्री जयंत मलैया ) : (क) जी हाँ, जी हाँ । (ख) जी हाँ। (ग) जी नहीं। (घ) जी नहीं। पद से पृथक करने की कार्रवाई अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) राजनगर के समक्ष विचाराधीन है। विचाराधीन कार्रवाई वृहद स्वरूप की होने के कारण प्रकरण के निराकरण होने तक किसी अधिकारी का दोष निर्धारित किया जाना संभव नहीं है।
लोकायुक्त द्वारा जाँच
120. ( क्र. 3996 ) श्री आर.डी. प्रजापति : क्या जल संसाधन मंत्री महोदय यह बताने की कृपा करेंगे कि (क) क्या दिनांक 17.11.15 को लोकायुक्त पुलिस अधीक्षक सागर द्वारा मेसर्स शिवा ट्रेडर्स प्रो. सुरेश यादव से तीन लाख रूपये की रिश्वत लेते डिप्टी कमिश्नर वाणिज्य कर संभाग सागर एच. एस. ठाकुर व असि. कमिश्नर ए.सी. जलज रावत पकड़ गये थे? (ख) क्या लोकायुक्त की कार्यवाही के बाद एच. एस. ठाकुर को अपील डिवीजन भोपाल में पदस्थ किया गया है क्या यह नियम विरुद्ध है क्या यह लोकायुक्त के प्रकरण की जाँच में अपने पद का प्रभाव डाल सकतें है, क्योंकि सागर संभाग भोपाल डिवीजन अपील के अधीनस्थ आता है? (ग) क्या (क), (ख) में वर्णित अधिकारियों की लोकायुक्त में प्रकरण चलने तक कहीं पदस्थ किया जाना उचित है ? यदि हाँ, तो नियम
|
1e256b10d997cdad6fb899a2c5da014e341939e99a63e176eed77c901a0b7119 | pdf | छायावाद-विषयक आलोचना-साहित्य
छायावादी काव्य-धारा के प्रवहमान होते ही, संयोग की ही संयोग की ही बात समझिये, उसकी आलोचना का भी कार्य प्रारंभ हो गया। आरंभ में, उस प्रकार की कविताओं का, जिसे व्यंग्य मे 'छायावाद' का नाम दिया गया था, घोर विरोध हुआ और कोई भी दुर्बल व अशक्त काव्य प्रवृत्ति, सहज, समाप्त हो जा सकती थी। किंतु अनेक विरोधों के बावजूद, छायावाद - काव्य जिन्दा रह सका और यही उसके महत्त्व का प्रमाण है । छायावाद के विरुद्ध आरोपित आक्षेपों के उत्तर स्वयं उसके कवियों ने दिये और बाद में उसकी सम्यक आलोचना का भी अवसर आया । छायावाद-काव्य का अध्ययन व विवेचन किया गया और आज तो उस पर अनेक अच्छी समीक्षाएँ उपलब्ध हैं ।
छायावाद विषयक आलोचना - साहित्य को समझने के लिए उसके इतिहास को हम तीन स्पष्ट भागों में विभक्त कर सकते है । सबसे पहले उसके इतिहास का वह युग हमारे समक्ष आता है जिसे "विरोध-काल" कहना चाहिये । इस समय में छायावाद को समझने और समझाने की कोशिश नहीं की गई; उसका बिल्कुल विरोध किया गया । छायावाद के उपहास और निन्दा की भदी आलोचनाओं का आरंभ, निर्भीक होकर कहना पड़ता है, श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनाओं से हुआ । उन्होने 'छायावाद के छोकड़ों की कटु निन्दा की और उन पर अनेक असभ्व ब असंस्कृत आक्षेप भी किये । लाला भगवान दीन, बनारसीदास चतुर्वेदी, ज्योतिप्रसाद 'निर्मल' भी छायावाद के प्रति कुरुचिपूर्ण आलोचना का कूड़ा-कर्कट जमा करते रहे । ज्वालाराम 'विलक्षण' ने भी छायावाद के विरोध में ही अपनी विलक्षणता का परिचय दिया। पद्मसिंह शर्मा का भी काम निरंतर व्यंग्य - विरोध से छायावाद का उपहास करना था । 'सुधा', 'माधुरी' और 'अभ्युदय' आदि अनेक पत्र पत्रिकाओं को अस्त्र बनाया गया और छायावाद का डँटकर विरोध किया गया । उस समय का साहित्यिक फैशन हो छायावाद की खिल्ली उड़ाना था। इतना ही नहीं, छायावाद के विरोध में काशी से "छायावाद" पत्रिका भी निकाली गई जिसके पृष्ठ छायावादी कवि व कविताओं के प्रति व्यंग्य-विनोद और कार्टूनों से भरे रहते थे। 'चाँद' और 'विशाल भारत' ने भी छायावाद का निरंतर विरोध किया। इस प्रकार ऐसा लगता है कि यह समय ही छायावाद की किस्मत में अच्छा नहीं बदा था । विद्वान् आलोचक श्री रामचंद्र शुक्ल भी छायावाद का निष्पक्ष विश्लेषण एवं मूल्यांकन नही कर सके और छायावाद-विषयक उसकी आलोचनाओं ने अन्य अनेक भ्रांतियाँ हीं उत्पन्न कीं। "हिंदी साहित्य का इतिहास" नामक उनके ग्रंथ के कतिपय पृष्ठ, इस दृष्टि से पठनीय हैं ।
छायावाद के इतने विरोध होने पर भी उसके कवि नहीं थे। उन्होंने विरोधों से डँटकर मोर्चा लिया और स्वयं
१. विस्तार पूर्वक विवेचन के लिए पढ़िए"हिंदी काव्य में छायावाद" पृ० ६१ - ७८
मैदान छोड़कर भागने वाले अपनी व्याख्याएँ प्रस्तुत कीं ।
प्रसाद, पंत, निराला और महादेवी ने खुद लेखनी उठाई और छायावाद को समझाने का प्रयास किया । इस प्रसग में प्रसाद जी का "काव्य, कला व अन्य निबंध' तथा 'इन्दु' पत्रिका में प्रकाशित उनके लेख दृष्टव्य है । पंत के 'पल्लव' एन महादेयी की 'यामा' की भूमिकाएँ भी विशेष ध्यातव्य है। किंतु विरोधियों पर वज्र प्रहार किया निराला ने हिंदी कविता के इतिहास मे जिसकी कोई अन्य मिसाल नहीं है । 'मतवाला' मे निराला ने छायाबाद के विरोधियो को मुँह तोड़ उत्तर दिया । छायावादी कवियों के इस प्रकार समझाने व अपने विरोधियों को दो-टूक उत्तर देने की वजह से कुछ लोग अब इनकी ओर आकृष्ट होने लग गए थे । नई पीढ़ी के साहित्यकारी और विद्वान आलोचकों ने छायावाद का अध्ययन आरंभ किया और तब वे एक दूसरे ही निष्कर्ष पर पहुँचे। उन्हें छायावाद - काव्य की विशेषता और महत्ता का ज्ञान हुआ और अपने विचार उन्होंने खुलकर अभिब्यक्त किये । ऐसे लोगों में प्रमुख थे - श्री शिवाधार पाण्डेय, श्री रामनाथ सुमन, श्री शातिप्रिय द्विवेदी, प० नन्ददुलारे वाजपेयो इत्यादि । पं० कृष्णविहारी मिश्र, श्री अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' और पं० मातादीन शुक्ल ने भी छायावाद का पक्ष लिया। इस परिवर्तित द्वितीय-युग को छायावाद का पोषण-काल कहना चाहिये । श्री शिवावार पाण्डेय, श्री रामनाथ सुमन, प० नन्ददुलारे वाजपेयी, श्री अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' पं० कृष्णबिहारी मिश्र आदि आलोचकों ने छायावाद का पक्ष लेकर उसके आरिम्भक विकास मे पर्याप्त सहायता की।
छायावाद-विषयक आलोचना-साहित्य के आरंभिक इतिहास में पं० नन्ददुलारे वाजपेयी को आलोचनाएँ विशेष महत्त्व की अधिकारिणी हैं, इसमें सन्देह नही । 'आधुनिक साहित्य,' और 'हिंदी साहित्य : बीसवी शताब्दी" शीर्षक उनके पुस्तकाकार ग्रंथों में छायावाद-विषयक सामग्री, इस दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय है । छायावाद क्या है, उसकी मुख्य विशेषताएँ और उपलब्धियाँ कौन-सी है, उसका अभिव्यजना- सौन्दर्य और प्रधान जोवन-दर्शन के आकर्षण क्या हैं, इन सभी तथ्यों का मार्मिक उद्घाटन पहले-पहल प० नन्ददुलारे वाजपेयी की समीक्षाओं द्वारा हो संभव हुआ। किंतु इतना सब होते हुए भी वाजपेयी जी की आलोचना में कहीं भा सस्ती भावुकता और झूठी प्रशंसा के आलोचनोचित दोष नहीं हैं, यह एक श्रेय की बात है ।
श्री शांतिप्रिय द्विवेदी की छायावाद - विषयक आलोचनाएँ उसके "कवि और काव्य" तथा 'संचारिणी' आदि पुस्तकों में देखी जा सकती हैं। छायावाद विषयक उनको आलोचनाएँ प्रशंसाभिभूत गद्गद कंठ के उद्गार है; युक्तिसंगत व्याख्या एवं तटस्थ विश्लेषण का अभाव जिसकी सहज विशेषता है । फिर भी, उनको समीक्षा का ऐतिहासिक महत्त्व है, यह तो कहा ही जा सकता हैं और इसलिए उसे हम छायावाद के प्रेमी पाठकों से पढ़ने का अनुरोध कर सकते हैं । इसके उपरांत छायावाद के अलाचकों में प्रमुख हैं - डॉ० नगेन्द्र, डॉ० सुधीन्द्र, डॉ० केसरीनारायण शुक्ल, श्री शभूनाथ सिंह, श्री नामवर सिंह, प्रो० क्षेम, श्री विश्वंभर 'मानव', डॉ० इन्द्रनाथ मदान, पं० गंगाप्रसाद पाण्डेय, श्रीमती शचीरानी गुर्टू
और डॉ० प्रेमशंकर तथा श्री नलिन विलोचन शर्मा । इन विद्वानों की पुस्तके और प्रबंध छाया बाद के प्रेमियों व पाठको के लिए विशेष उपयोगी है। डॉ० नगेन्द्र की पुस्तक है. 'आधुनिक हिंदी कविता की मुख्य प्रवृत्तियां ।" १२४ पृष्ठो की यह समीक्षा - पुस्तक गौतम बुक डिपो, दिल्ली से सन् १६५५ में प्रकाशित हुई । प्रारंभ में, इसमें दस पृष्ठो का छायावाद के आरंभ की पृष्ठभूमि, उसको विशेषताएँ, मूलदर्शन, व तत्सम्बन्धी भ्रातियों का निराकरण करते हुए विद्व न् आलोचक का निष्कर्ष है कि ' छायावाद एक विशेष प्रकार को भाव पद्धित है : जावन के प्रति एक विशेष भावात्मक दृष्टिकोण है । ७५ विवेचन गभोर व स्पष्ट है ।
डॉ० सुधोन्द्र ने भी "हिंदी कविता मे युगातर" शोपंक ५२२ पृष्ठों की अपनी विशाल पुस्तक मे छायावाद पर विचार किया है और बताया है कि आत्मानुभूति, अंतवेदना, लाक्षणिक भगिमा और चित्रभाषा व चित्रराग छायावाद की प्रधान विशेषताएं थी । रहस्यवाद ओर छायावाद, प्रेम और वासना, सर्व चेतनवाद या प्रकृति दर्शन पर भी विवेचन किया गया है और सामग्री अत्यंत उपयोगी है। विचार स्पष्ट और बोधगम्य हैं तथा विवेचन में गंभीरता की झाकी मिलती है।
"आधुनिक काव्यधारा" और "आधुनिक काव्यधारा का सांस्कृतिक स्रोत" शीर्षक डॉ० केसरीनारायण शुक्ल की दो पुस्तकें भी छायावाद-विषयक आलोचना - साहित्य के अध्ययन - आकलन के प्रसंग में विशेष उल्लेख्य है। उनमें छायावाद का उद्भव व विकास, प्रमुख प्रवृत्तियाँ और रहस्यवाद से उसके अंतर आदि पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है ।
श्री शंभूनाथ सिंह की पुस्तक "छायावाद-युग" अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । लेखक का विचार है कि "छायावाद-युग के पीछे छूट जाने का अर्थ यह है कि हिन्दी कविता आगे बढ़ी है, एक ही जगह खड़ी होकर लेफ्ट राइट (मार्क टाइम) नही कर रही है। इस प्रगति को छायावाद का पतन नहीं कहा जा सकता। यह भी नहीं कह सकते कि छायावाद मर गया क्योंकि वह जी रहा है और रूप बदल कर जी रहा है, जैसे पाँच वर्ष का बच्चा पचीस वर्ष की उम्र में भी वही रहता है यद्यपि उसके रूप और ज्ञान कोश में आकाश पाताल का अंतर हो गया रहता है; बच्चा मर कर नही, जी कर जवान होता है । उसी तरह आज का स्वच्छंदतावादी यथार्थवाद हो या प्रगतिवाद, प्रतीकवाद ( प्रयोगवाद ) हो या नूतन रहस्यवाद, ये सभी छायावाद के ही विकसित रूप है । " 3 सन् १९५२ में प्रकाशित ३९२ पृष्ठों को इस पुस्तक में इतिहास के आलोक में छायावाद का अध्ययन व विवेचन प्रस्तुत हुआ है । पुस्तक के प्रथम खंड में ८८ पृष्ठ है जिनमें औद्योगिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक परिस्थितियों की पीठिका में छायावाद की विकसित काव्यधारा का सविस्तर आकलन किया गया है । छायावाद-युग की प्रधान प्रवृत्तियों, प्रेमभावना, सौंदर्य - भावना, प्रकृति, शैली या अभिव्यंजना प्रणाली आदि पर विस्तार से विचार
० हि० क० की मुख्य प्रवृत्तियाँ - डॉ० नगेन्द्र (१० १५) २. हिंदा कविता में युगांतर - डॉ० सुधीन्द्र ( पृ० ३७०)
छायावाद-युग, पृष्ठ २ |
acf7679e77addc7103c2b3c2f6449fbfeaa8c94eb68ebd594539e2e41a0d9e9c | pdf | २२१ पत्र उपनिवेश सचिवको
जोहानिसबग अक्टूबर ७, १९०७
मेरे सघकी समितिने मुझे निर्देश दिया है कि मैं आपके उस भाषण के बारेमे आपको अत्यत विनयपूर्वक कुछ शब्द लिखू जो आपने अपने निर्वाचकोके सामने दिया था और जिसमे आपने एशियाई कानून संशोधन अधिनियमका उल्लेख किया था । यदि पत्रोमे छपा हुआ विवरण ठीक है तो मेरी नम्र रायमे उसमे तथ्योके सम्बधमे कई गलत बयानिया है ।
मेरे सघको इस बात से बहुत दु ख पहुँचा हे कि आप एक ऐसे उत्तरदायित्वपूर्ण पदपर आसीन होकर भी मदीके कारणके बारेमे जन साधारणमे प्रचलित भ्रातिका ही प्रचार करे। व्यापार करनेवाले इस बातको जोर देकर कह चुके है कि इस भारी मन्दीका कारण कुछ और है। कुछ भी हो, उसका प्रभाव भारतीयोपर उतना ही पडा है जितना यूरोपीयोपर ।
मेरा सघ इस वक्तव्यका पूर्णतया खण्डन करता है कि इस समय उपनिवेशमे १५,००० भारतीय है। मेरे सघको अकोका जो विश्लेषण प्राप्त हुआ है, वह शीघ्र ही आपको भेज दिया जायेगा । उससे आपको पता चलेगा कि इस समय ट्रासवालमे ७,००० से अधिक भारतीय नही है ।
आपने यह कहनेकी कृपा की है कि पुराने कानूनके अतगत जो प्रमाणपत्र जारी किये गये थे उनकी दूसरी जाली प्रतिया तैयार करके उनको बेचा गया है और बम्बई, जोहानिसबग और डबनमे ऐसे स्थान मौजूद है जहा ऐसे जाली प्रमाणपत्र अमुक रकम देकर खरीदे जा सकते हैं । मेरा सघ आपके इस वक्तव्यका पूरी तरह खण्डन करता है और विनयपूवक निवेदन करता है कि इस मामलेकी सावजनिक जाच की जाये । किन्तु मेरे सघको इस बातका पता है कि पंजीयन कार्यालयका एक मुशी जाली अनुमतिपत्रोका व्यवसाय करता था और उसने नि सदेह कुछ भारतीयोको, जिनको न तो अपनी राष्ट्रीयताका और न अपने सम्मानका ध्यान था, अपना साधन बनाया । परन्तु वह बात, आपने जनताके सामने जो कुछ रखा है उससे, बिलकुल अलग है ।
आपने यह भी कहनेकी कृपा की है कि भारतीयोने अँगुलियोके निशानोके कारण इस अधिनियमका विरोध किया है। मेरा सघ सरकारसे कई बार निवेदन कर चुका है कि भारतीयोके विरोधका मौलिक कारण अँगुलियोका निशान नहीं, बल्कि अनिवायताका सिद्धान्त तथा कानूनका वह सम्पूर्ण उद्देश्य है जो भारतीयोको अपराधी करार देता है। इस कानूनके खिलाफ जब पहलेपहल एतराज पेश किये गये थे तब अँगुलियोके निशानोका जिक्र तक नही किया गया था । साथ ही मै यह भी बताना चाहता हूँ कि जो भारतीय ट्रान्सवाल आये है उनसे भारतमे
पत्र उपनिवेश सचिवको
कभी भी न तो अँगुलियोके और न ही अँगूठोके निशान लगवाये गये थे । भारतमे निश्चय ही कुछ मामलोमे अँगूठोके निशान लिये जाते है, किंतु उनका सम्बंध अपराधोसे नही होता । अँगुलियोके निशान केवल अपराधियोसे अथवा उनसे ही लिये जाते है, जिनका अपराधोसे कोई सम्बध होता है । अँगूठेका निशान जहा लिया जाता है वहा वह नियम केवल निरक्षरोपर ही लागू होता है ।
मेरे सघको सरकारकी इस इच्छाका हमेशा ही पता रहा है कि वह इस कानूनको पूरी तरह और कठोरतासे अमलमे लाना चाहती है । किंतु मुझे एक बार फिर यह कहनेकी अनुमति दी जाये कि इस कानूनके सामने झुकने तथा सोच विचार कर की गई अपनी शपथको तोडनेसे हमारे समाजका जो पतन होगा, उसके मुकाबले कानूनका कठोरसे कठोर प्रशासन भी कुछ नही है। मेरा सघ यह अनुभव करता है कि यद्यपि आपने यह घोषणा कर दी है कि आपने इस प्रश्नके भारतीय दष्टिकोणका विशेष रूपसे अध्ययन किया है, फिर भी विरोधकी मूल भावना और साथ ही मेरे सघ द्वारा उठाये हुए अत्यन्त महत्वपूर्ण मुद्दोपर आपने बिलकुल ही ध्यान नहीं दिया ।
अन्तमे मै इस बातको फिर दोहरा देना चाहता हूँ कि भारतीयोके अत्यधिक संख्यामे आव्रजन तथा व्यापारमे अनियत्रित प्रतियोगिता के विरुद्ध आपके एतराजकी मेरे सघने सदा ही कद्र की हे । और समाजकी नेकनीयती प्रकट करनेकी दृष्टिसे उसने विनम्रतापूवक ऐसे प्रस्ताव पेश किये है, जिनसे दोनो एतराज दूर हो जाये । किन्तु, भारतीयोके लिए यह असम्भव हे कि वे इस कानूनको स्वीकार कर अपना रहा सहा सम्मान भी खो बैठे, क्योकि यह कानून सही वस्तुस्थितिसे अनभिज्ञता के कारण बनाया गया है, कायरूपमे एक हद तक दमनकारी है और मेरा सघ जिस समाजका प्रतिनिधित्व करता है उसकी धार्मिक भावनाओको चोट पहुँचाता है।
अध्यक्ष, ब्रिटिश भारतीय संघ
[' रड डेली मेल' जोहानिसबर्ग ]
२२२ पत्र 'रैड डेली मेल' को
जोहानिसबग अक्तूबर ९, [१९०७ ]
आपने श्री सुलेमान मगा' तथा पूनिया नामक एक भारतीय महिलाके, जिनके साथ घोर दुव्यवहार किया गया था, मामलोको उत्साहपूर्वक उठा लेनेकी कृपा की थी । मै आपका ध्यान एक तीसरे मामलेकी ओर आकर्षित करता हूँ, जो मेरे देखनेमे आया है। इस मामलेमे जो अकारण अपमान किया गया है, वह पहले दोनो मामलोसे अधिक नहीं, तो कम भी नही है ।
श्री ए थनी पीटस जन्मत भारतीय ईसाई और नेटालके एक पुराने सरकारी नौकर है । इस समय वे पीटरमरित्सबगके मुख्य न्यायाधीशकी अदालतमे दुभाषियेका काम कर रहे ह । रविवारकी बात है, वे शनिवारको पीटरमैरित्सबगसे चलनेवाली जोहानिसबग मेलसे जोहानिसबग जा रहे थे। उनके पास रियायती टिकट और रेलवेकी ओरसे मिला हुआ एक प्रमाणपत्र था, जिसमे उनके सरकारी पदका विवरण था । फोक्सरस्टमे जाच करनेवाले पुलिस अधिकारीने उनसे कडी जिरह की । श्री पीटसने अपना अनुमतिपत्र दिखलाया, जो उहे भारतीयाके स्वेच्छया अँगूठा निशान देनेसे पहले दिया गया था। इससे अधिकारीको सतोष नही हुआ । अत श्री पीटसने वह रियायती टिकट दिखलाया, जिसका मने उल्लेख किया है, अपने हस्ताक्षर देनेका प्रस्ताव किया, किन्तु कोई फायदा नहीं हुआ। और अधिकारीने उनका यह कहकर अपमान किया कि शायद आप और किसीका रियायती टिकट लेकर आये है । इसपर श्री पीटसने अपनी छडी तक दिखलाई, जिसपर उनके नामके प्रथम अक्षर अकित थे । फिर, उन्होने अपनी कमीज भी दिखलाई, जिसपर उनका पूरा नाम था । किन्तु यह भी सन्तोषजनक नही समझा गया । तब उन्होने तीन दिन बाद लौटनेकी जमानतके लिए रुपया जमा करनेका प्रस्ताव किया, कितु अधिकारीने एक काफिर पुलिसको आज्ञा दी कि वह श्री पीटसको अक्षरश डिब्बेसे बाहर घसीट ले । जब श्री पीटसको सार्जेंट मैसफील्डके सामने पेश किया गया तो उसने उस भयकर गलतीको अनुभव करते हुए माफी मागी और उनको छोड़ दिया। लेकिन इतनेसे ही भला सन्तोष कैसे होता ? इस अपमानके अलावा उहे फोक्सरस्टमे, जहा वे किसीका जानते नही थे, लम्बी तथा थका देनेवाली प्रतीक्षा करनी पडी और साथ ही उनकी तीन दिनकी छोटी सी छुट्टीका भी बडा सा हिस्सा बेकार गया। श्री पीटस आज रातको नौकरीपर लौटेगे। इस घटनाके बारेमे मुझे टिप्पणी करनेकी आवश्यकता नही है । मुझे केवल यही कहना है कि इस देशमे
१ देखिए खण्ड ५, पृष्ठ २८८८९ और २९४ । २ वही, पृष्ठ ४६३६४ ।
यात्रा करने में भी अनेक सम्मानित भारतीयोको जो कुछ सहन करना पड़ता है, यह उसका एक नमूना है । यहा साधारण कानून बनानेका प्रश्न नही है, एशियाइयोका बडी सख्यामे आनेका भी प्रश्न नहीं है, बल्कि मनुष्य और मनुष्यके बीचमे साधारण शिष्टता तथा यायका प्रश्न है । अथवा, 'ग्लासगो हेरल्ड' में उस दिन लिखनेवाली श्रीमती वॉगलके शब्दोमे, क्या रगदार चमडी होना ट्रान्सवालमे श्वेत लोगोके विरुद्ध जुम है ?
२२३ केपके भारतीय
केपके सर्वोच्च यायालयमे प्रवासी कानूनसे उत्पन्न एक महत्त्वपूर्ण परीक्षणात्मक मुकदमेकी सुनवाई हुई थी, जिसका विवरण' 'केप टाइम्स' ने प्रकाशित किया था । कुछ विलम्ब हो जानेपर भी हम उसे इस अकमे अयत्र उद्धत कर रहे है । केपकी ससदमे जब प्रवासी अधिनियम पास किया जा रहा था उस समय वहाके प्रमुख भारतीयोने जो सुस्ती दिखाई उसपर हम पहले भी खेद प्रकट कर चुके है । हमे विश्वास है कि फरियाद की जाती तो इस प्रकारके कानूनमे निश्चय ही काफी संशोधन कर दिया जाता । यद्यपि मुकदमेके तथ्योको उक्त विवरणमे पूरी तरहसे दिया गया है, तथापि हम दुबारा उनको यहा दे रहे है । केपमे बसा हुआ एक भारतीय, जिसकी वहा कुछ जमीन जायदाद थी, और जो १८९७ से वहा सामान्य विक्रेताका रोजगार करता था, भारत जाना चाहता था, और भारतसे लौटते समय होनेवाली असुविधासे बचने के इरादेसे एक निश्चित अवधि तक उस उपनिवेशसे अनुपस्थित रहनेका अनुमतिपत्र चाहता था । प्रवासी अधिकारीने ऐसा अनुमतिपत्र देनेसे इनकार कर दिया और ऐसा अनुमतिपत्र देना चाहा जिसकी अवधिका निश्चय वह स्वय करता । यहा प्रश्न यह नहीं है कि प्रवासी अधिकारीका निणय उचित था या नहीं, क्योकि एक ओरसे अधिकार पानेका तथा दूसरी ओरसे उसे न देनेका प्रयत्न किया जा रहा था । प्रवासी अधिकारीका कहना था कि एक एशियाईको उपनिवेशसे अनुपस्थित रहनेका अनुमति - पत्र देना एक रियायत है । किन्तु एशियाईका कहना था कि यह उसका अधिकार है । अब सर्वोच्च यायालयने यह निर्णय दिया है कि कानूनके अनुसार एशियाइयोको अनुपस्थितिका अनुमतिपत्र पानेका निहित अधिकार नही है । साराश यह कि यह मामला निरा स्वाग है, क्योकि इससे एशियाइयोको दासताकी अवस्थामे पहुँचा दिया गया है, जिसके लिए वहाके प्रमुख भारतीयोके अलावा और किसीको दोष नही दिया जा सकता । इसके अलावा, दलीलोमें उठाया गया सबसे दिलचस्प मुद्दा अनिश्चित ही छोड़ दिया गया है। प्रवासी अधिनियमकी पहली धारा १९०२ के प्रवासी अधिनियम के द्वारा दिये गये अधिकारोकी रक्षा करती हुई
१ विवरण यहाँ नही दिया जा रहा है । |
6c32eff13ecdcc2a7ca96a1e07659f7c6db7f051 | web | प्रिलिम्स के लियेः
लिक्विड नैनो यूरिया, पारंपरिक यूरिया की तुलना में लिक्विड नैनो यूरिया का महत्त्व।
मेन्स के लियेः
यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता।
चर्चा में क्यों?
भारत अगले चार वर्षों के भीतर अर्थात् वर्ष 2025 तक लिक्विड नैनो यूरिया के रूप में ज्ञात स्थानीय रूप से विकसित संस्करण के उत्पादन का विस्तार करके आयातित यूरिया पर अपनी निर्भरता समाप्त करने की उम्मीद कर रहा है।
लिक्विड नैनो यूरियाः
- यह एक नैनोकण के रूप में यूरिया है। यह पारंपरिक यूरिया के विकल्प के रूप में पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करने वाला एक पोषक तत्त्व (लिक्विड) है।
- यूरिया सफेद रंग का एक रासायनिक नाइट्रोजन उर्वरक है, जो कृत्रिम रूप से नाइट्रोजन प्रदान करता है जो पौधों के लिये एक आवश्यक प्रमुख पोषक तत्त्व है।
- नैनो यूरिया को पारंपरिक यूरिया के स्थान पर विकसित किया गया है और यह पारंपरिक यूरिया की न्यूनतम खपत को 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
- इसकी 500 मिली.की एक बोतल में 40,000 मिलीग्राम/लीटर नाइट्रोजन होता है, जो सामान्य यूरिया के एक बैग/बोरी के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्त्व प्रदान करेगा।
- यह स्वदेशी यूरिया है, जिसे सबसे पहले भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (IFFCO) द्वारा दुनिया भर के किसानों के लिये पेश किया गया था।
- प्रधानमंत्री ने गुजरात के कलोल में पहले लिक्विड नैनो यूरिया (LNU) संयंत्र का उद्घाटन किया है।
यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता की आवश्यकताः
- आपूर्ति शृंखला में कमी को पूरा करने के लिये भारत दशकों से यूरिया का आयात कर रहा है। भारत, यूरिया के सबसे बड़े आयातकों में से एक होने के कारण, इसकी मांग यूरिया की अंतर्राष्ट्रीय कीमत को प्रभावित करती है।
- भारत यूरिया और डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार है।
- DAP, यूरिया के बाद भारत में दूसरा सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला उर्वरक है।
- किसान आमतौर पर इस उर्वरक को बुवाई से ठीक पहले या शुरुआत में इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि इसमें फास्फोरस (P) की मात्रा अधिक होती है जो जड़ के विकास को प्रेरित करता है।
- आपूर्ति बाधित होने के कारण इस वर्ष 2022 में वैश्विक उर्वरक कीमतों में तेज़ वृद्धि से यूरिया और DAP प्रभावित हुए हैं।
- कृषि हमारी लगभग 70% आबादी का मुख्य आधार है, आपूर्ति में किसी भी तरह की कमी या उर्वरकों जैसे महत्त्वपूर्ण इनपुट की कीमत में वृद्धि का हमारे ग्रामीण क्षेत्र के समग्र आर्थिक प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है।
- यह संभावना है कि निकट भविष्य में यूरिया की मांग में कमी नहीं आने वाली है, इसलिये यूरिया के आयात पर हमेशा निर्भर उचित निर्णय साबित नहीं होगा।
- इस संबंध में वर्ष 2016 में सार्वजनिक क्षेत्र में कई ब्राउनफील्ड यूरिया संयंत्र स्थापित करने का निर्णय एक सार्थक कदम था।
- यूरिया में आत्मनिर्भरता से सरकार को करीब 40,000 करोड़ रुपए की बचत होगी।
भारत में उर्वरकों की स्थितिः
- भारत ने पिछले 10 वर्षों में प्रतिवर्ष लगभग 500 एलएमटी (LMT) उर्वरक की खपत की है।
- केंद्र का उर्वरक सब्सिडी भुगतान वित्त वर्ष 2011 में बजटीय राशि से 62% से बढ़कर3 लाख करोड़ रुपया हो गया है।
- चूंँकि गैर-यूरिया (MoP, DAP, कॉम्प्लेक्स) किस्मों की लागत अधिक होती है इसलिये कई किसान वास्तव में आवश्यकता से अधिक यूरिया का उपयोग करना पसंद करते हैं।
- सरकार ने यूरिया की खपत को कम करने के लिये कई उपाय किये हैं। इसने गैर-कृषि उपयोग हेतु यूरिया के अवैध प्रयोग को कम करने के लिये नीम कोटेड यूरिया की शुरुआत की। जैविक और शून्य-बजट खेती को बढ़ावा दिया है।
- वर्ष 2018-19 और वर्ष 2020-21 के बीच भारत का उर्वरक आयात84 मिलियन टन से लगभग 8% बढ़कर 20.33 मिलियन टन हो गया।
- वित्तीय वर्ष 2021 में यूरिया की आवश्यकता का एक-चौथाई से अधिक आयात किया गया था।
- अधिक मात्रा में उर्वरकों की आवश्यकताः
- भारत के कृषि उत्पादन में प्रतिवर्ष वृद्धि हुई है और इसके साथ ही देश में उर्वरकों की मांग भी बढ़ी है।
- आयात के बावजूद स्वदेशी उत्पादन लक्ष्य पूरा न होने के कारण मांग और उपलब्धता के बीच अंतर बना हुआ है।
संबंधित सरकारी पहलः
- नैनो यूरिया उत्पादनः
- आठ नए नैनो यूरिया संयंत्र, जिनकी केंद्र द्वारा निगरानी की जा रही है, नवंबर 2025 तक उत्पादन शुरू कर देंगे।
- ये कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और असम सहित कई राज्यों में स्थित हैं।
- नीम कोटेड यूरिया (Neem Coated Urea- NCU)
- उर्वरक विभाग (DoF) ने सभी घरेलू उत्पादकों के लिये शत-प्रतिशत यूरिया का उत्पादन 'नीम कोटेड यूरिया' (NCU) के रूप में करना अनिवार्य कर दिया है। ताकि मिट्टी की सेहत में सुधार हो, पौधों की सुरक्षा करने वाले रसायनों का उपयोग कम हो।
- नई यूरिया नीति 2015:
- स्वदेशी यूरिया उत्पादन को बढ़ावा देना।
- यूरिया इकाइयों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
- भारत सरकार पर सब्सिडी के भार को युक्तिसंगत बनाना।
- नई निवेश नीति, 2012:
- सरकार ने जनवरी 2013 में नई निवेश नीति (New Investment Policy- NIP), 2012 की घोषणा की जिसे वर्ष 2014 में यूरिया क्षेत्र में नए निवेश की सुविधा तथा भारत को यूरिया क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये संशोधित किया गया।
- सिटी कम्पोस्ट के संवर्द्धन पर नीतिः
- भारत सरकार ने सिटी कम्पोस्ट के उत्पादन और खपत को बढ़ाने के लिये 1500 रुपए की बाज़ार विकास सहायता (Market Development Assistance) प्रदान करने हेतु वर्ष 2016 में उर्वरक विभाग द्वारा अधिसूचित सिटी कम्पोस्ट को बढ़ावा देने की नीति को मंज़ूरी दी।
- उर्वरक क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोगः
- उर्वरक विभाग ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और परमाणु खनिज निदेशालय (AMD) के सहयोग से इसरो के तहत राष्ट्रीय्र रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा "रॉक फॉस्फेट का रिफ्लेक्सेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी और पृथ्वी अवलोकन डेटा का उपयोग करके संसाधन मानचित्रण" पर तीन साल का पायलट अध्ययन शुरू किया।
- पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (NBS) योजनाः
- इसे रसायन और उर्वरक मंत्रालय के उर्वरक विभाग द्वारा अप्रैल 2010 से लागू किया गया है।
- NBS के तहत, वार्षिक आधार पर तय की गई सब्सिडी की एक निश्चित राशि सब्सिडी वाले फॉस्फेटिक और पोटाशिक (P&K) उर्वरकों के प्रत्येक ग्रेड पर इसकी पोषक सामग्री के आधार पर प्रदान की जाती है।
- DAP और म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) जैसे गैर-यूरिया उर्वरकों के लिये, हमें महत्त्वपूर्ण कदम उठाने की ज़रूरत है कि सुनिश्चित कर सकें की हमारे किसानों को उचित मूल्य पर आवश्यक उर्वरकों की निर्बाध आपूर्ति मिलती रहे, हालाँकि अभी तक इन गैर-यूरिया उर्वरकों के कच्चे माल के लिये हम आयात पर निर्भर रहे हैं।
- उर्वरक क्षेत्र में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) को सार्वभौमिक बनाकर सब्सिडी वितरण तंत्र को सुव्यवस्थित करना समय की मांग है।
- दूसरे, उर्वरक सब्सिडी वितरण व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को सख्ती से रोकने की ज़रूरत है। इन कदमों से उर्वरक सब्सिडी के बोझ में काफी कमी आएगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)
प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
उत्तरः (b)
प्रश्नः 'आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है?
अतः विकल्प (b) सही है।
प्र. सब्सिडी किसानों के फसल प्रतिरूप, फसल विविधता और अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करती है? लघु और सीमांत किसानों के लिये फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है? (मुख्य परीक्षा, 2017)
|
8a66eefe7fc5529437e242711a23be4e8e53d975 | web | गिरीश लाहौर का रहनेवाला है, विद्यार्थी है, युवा है और युवकों की साधारण भावुकता से भी सम्पन्न है। और इन सबके अतिरिक्त वह धनिक नहीं है। तो भी ऐसा है कि उसे कभी पहाड़ जाने के लिए खीस के बहाने घर से रुपये मँगा कर जोड़ने नहीं पड़ते, बिना बहाने ही मिल जाते हैं।
हाँ, तो गिरीश ने निश्चय किया है कि उसमें साहित्यिक प्रतिभा है और उसी को पनपने का अवसर देने के लिए वह यहाँ आया है। अनुभव से जानता है कि जो लोग पहाड़ों में जाते हैं, वे कुछ भी देखकर नहीं आते, कुछ देखने आते भी नहीं। उनसे कोई पूछे कि अमुक स्थान में क्या देखा या अमुक स्थान का जीवन कैसा है, तो केवल इतना ही बता पाते हैं कि वहाँ ठंड बहुत है, या बर्फ़ का दृश्य बहुत सुन्दर है या वहाँ घोड़े की सवारी का मज़ा आता है! बहुत हुआ तो कोई यह बता देगा कि वहाँ चीड़-वृक्षों में हवा चलती है तो उसका स्वर ऐसा होता है या कि वहाँ किसी जल-प्रपात को देखकर जीवन की नश्वरता का या अजस्रता का, अथवा प्रेम की अचल एकरूपता का, या अस्थायित्व का, या अपनी-अपनी रुचि के अनुसार ऐसी ही किसी बात का स्मरण हो आता है... पर, क्या यह सब वहाँ का जीवन है? क्या यही दर्शनीय है, और बस? क्या वहाँ के वासी चीड़ के वृक्ष खाकर जीते हैं या जल प्रवाह पहनते हैं, या बर्फ से प्रणय करते हैं, या घोड़ों पर रहते हैं?
गिरीश इन्हीं सब प्रश्नों का उत्तर पाने और उस उत्तर को शब्दबद्ध करने यहाँ आया है। उसका विश्वास है कि वह यहाँ के जीवन की सत्यता देखकर जाएगा और लिखेगा। वह उस दिन का स्वप्न देख रहा है, जब उसकी रचनाएँ प्रकाशित होंगी और साहित्य-क्षेत्र में तहलका मच जाएगा, लोग कहेंगे कि न-जाने इसने कहाँ कैसे यह सब देख लिया, जो लोग इतने वर्षों में भी नहीं देख पाये।
यह सब उसे एक दिन लाहौर में बैठे-बैठे सूझा था। और उसने तभी तैयारी कर ली थी और दो-तीन सप्ताह के लिए डलहौज़ी चला आया था। यहाँ आकर उसने अपना सामान इत्यादि एक होटल में रखा और खाना खाकर घूमने-पहाड़ी जीवन देखने-निकल पड़ा। किन्तु उसने देखा, वह जीवन वैसा नहीं है जो स्वयं उछल-उछल कर आँखों के आगे आये, जैसा कि आजकल की सभ्यता का, आत्म-विज्ञापन का जीवन होता है। जब वह शाम को होटल लौटा, तब उसने देखा, उसका मस्तिष्क उससे भी अधिक शून्य है, जैसा वह लाहौर में था! क्योंकि गिरीश उन चित्रों और दृश्यों की ओर ध्यान देने के लिए तैयार नहीं था जो और लोग - 'साधारण लोग' - देखते हैं। वह अपने कमरे में बैठ कर सोचने लगा कि कहाँ जाकर वह पहाड़ी जीवन का असली रूप देखे; किन्तु न जाने क्यों उसका मन इस विचार में भी नहीं लगा, भागने लगा। उसे न जाने क्यों एकाएक अपनी एक बाल्य-सखी और दूर के रिश्ते की बहिन करुणा का ध्यान आया, जो सदा पहाड़ पर जाने के लिए तरसा करती है, जो कहती रहती है कि पहाड़ का जीवन कितना स्वच्छन्द होगा, कितना निर्मल, कितना स्वतःसिद्ध - जैसे कि आनन्दातिरेक से अनायास गाया हुआ शब्दहीन आलाप! वह सोचने लगा कि क्या सचमुच पहाड़ी जीवन ऐसा ही होता है, या यह उसकी भावुक बहिन का इच्छा-स्वप्न है?
काफ़ी देर तक ऐसी बातें सोच चुकने पर जब उसे एकाएक विचार आया कि वह पहाड़ी जीवन का पता लगाना चाहता है, न कि करुणा की प्रकृति पर विचार करना, तब वह खीझ कर उठ बैठा। फिर उसने निश्चय किया कि कल वह जाकर बाज़ार में बैठेगा और वहाँ पहाड़ी लोगों को देखेगा - नहीं, वहाँ क्यों, वह मोटर के अड्डे पर जाएगा, जहाँ सैकड़ों पहाड़ी कुली आते हैं। वहीं उनका सच्चा रूप देखने को मिलेगा। उनके वास्तविक जीवन की झलक तो केवल तब देखने में आती है, जब मानव किसी आर्थिक दबाव का अनुभव करता है।
गिरीश एक मोटर कम्पनी के दफ़्तर में बैठा है, उसके आस-पास और भी लोग हैं, जो आनेवाली लारियों की प्रतीक्षा में हैं-कुछ तो अपने मित्र या सम्बन्धियों की अगवानी के लिए और कुछ होटलों के एजेन्ट इत्यादि। बाहर कोई सौ-डेढ़ सौ कुली, जिनमें कुछ कश्मीरी हैं बैठे, खड़े या चल-फिर रहे हैं। कोई सिगरेट पी रहा है, कोई गुड़गुड़ी; कोई तम्बाकू चबा रहा है; कोई अपने जूते उतार कर हाथ में लिये उनकी परीक्षा में तन्मय हो रहा है; कोई एक रस्सी का टुकड़ा अपनी उँगली पर ऐसे लपेट और खोल रहा है, मानो वही जगन्नियन्ता की सबसे बड़ी उलझन हो और वह उसे सुलझा रहा हो; कोई हँस रहा है; कोई शरारत-भरी आँखों से किसी दूसरे की जेब की ओर देख रहा है, जो किसी अज्ञात वस्तु के विस्तार से फूल रही है; कोई एक शून्य थकान-भरी दृष्टि से देख रहा है - न-जाने किस ओर; कोई अपने आरक्त नेत्र मोटर कम्पनी के साइनबोर्ड पर गड़ाये हुए है; और एक-आध बूढ़ा, भीड़ से अलग खड़ा, अन्धों की विशेषतापूर्ण, उत्सुक और अभिप्राय-भरी दृष्टि से (यदि अन्धी भी दृष्टि हो सकती है तो) देख रहा है अपने आगे के सभी लोगों की ओर, यानी किसी की ओर नहीं... पर गिरीश को जान पड़ता है और ठीक जान पड़ता है कि इस प्रकार अपने विभिन्न तात्कालिक धन्धों में निरत और व्यस्त जान पड़नेवाले इन व्यक्तियों की वास्तविक दृष्टि, वास्तविक प्रतीक्षा, किसी और ही ओर लगी हुई है। इन लोगों के सामान्य शारीरिक उद्योग से कुचले हुए शरीरों के भीतर छिपी हुई है भूखे भेड़िये की-सी प्रमादपूर्ण और अन्वेषण तत्परता, जो लारियों के आते ही फूट पड़ेगी।
इससे हटकर गिरीश की दृष्टि दूसरे व्यक्ति की ओर गयी। दो-तीन तो वहीं के (एजेंसी के काम करने वाले) थे, उन्हें गिरीश छोड़ गया। एक और था, खूब मोटा-सा आदमी, धोती और डबल-ब्रेस्थ कोट पहने, किसी तीखे सेंट की सौरभ में डूबा हुआ, ऊपर के ओठ पर तितली के परों-सी मूँछ मानो चिपकाये, और आँखों में एक उद्दंडता, एक बेशर्म औद्धत्य लिए हुए। इस व्यक्ति को दूसरे लोग 'सेठ साहब' कहकर सम्बोधन कर रहे थे।
इस ग्रुप का तीसरा व्यक्ति वर्णन से परे था। वह दुबला और साँवला था, इसके अतिरिक्त उसका कुछ वर्णन यदि हो सकता था, तो यही कि उसकी आयु का, उसके घर का और उसकी जात-पाँत का कुछ अनुमान नहीं हो सकता था - यह उन व्यक्तियों में से था, जो बहुत घूमते-फिरते हैं, और जहाँ जाते हैं, वहाँ अपने व्यक्तित्व का थोड़ा-सा अंश खोकर वहाँ के थोड़े-से ऐब ले लेते हैं; तब तक, जबकि अन्त में सर्वथा व्यक्तित्वहीन किन्तु सब अवस्थाओं के ऐबों से पूर्ण परिचित नहीं हो जाते। ऐसे व्यक्ति पहाड़ों में और अन्य स्थानों में, जहाँ लोग बसते नहीं, केवल आते-जाते हैं, अक्सर देखने में आते हैं।
इसी घटना को देखते-देखते उपर्युक्त बात छिड़ी थी, क्योंकि पेटियों का मालिक तेज़ होता जा रहा था और सब ओर यही प्रतीक्षा थी कि घोड़ेवाला या तो किसी प्रकार का बोझ लादता है, चाहे उतने पत्थर डाल कर ही बोझ को एक-सा करता है, या फिर पेटीवाले से पिटता है। कुली भी इसी दृश्य को देखने की उत्कंठा से उधर घिरे आ रहे थे। कुछ औरतें भी पास आकर देख रहीं थीं।
सेठ साहब ने फिर आत्मतुष्ट दृष्टि से सब ओर देखा और चुप हो गये।
गिरीश एक नये क्षीण-से कौतूहल से उस भीड़ की ओर देखने लगा, जो बाहर जुट रही थी। सोचने लगा कि इन लोगों में क्या सभी का जीवन एक-सा ही है - दिन-भर टें-टें, चें-चें करना, घोड़े हाँकना और शाम को खा-पीकर सो रहना, या ग़लौज कर लेना?
एकाएक उसकी दृष्टि अटक गयी - बैंगनी रंग के एक रूमाल के नीचे एक स्त्री-मुख पर। एक स्त्री-मुख में जड़ी हुई आँखों पर।
जो भीड़-सी इकट्ठी होकर सेठ की बात सुन रही थी - सुन नहीं रही थी, कानों से उसी भाँति बीन रही थी, जिस भाँति किसी धनिक की थाली में गिरी हुई जूठन को कुत्ते बीन कर खाते हैं -उसी भीड़ के स्त्री-अंश में से एक स्त्री कुछ आगे बढ़कर खड़ी थी एकाएक जड़ित हुई गति की अवस्था में, एक पैर कुछ आगे बढ़ा हुआ, शरीर सहसा रुकने के कारण कुछ पीछे खिंचा हुआ-सा, एक हाथ उठा हुआ माथे पर टिककर प्रकाश से आँखों पर ओट करता हुआ, ताकि आँखें अच्छी तरह देख सकें।
गिरीश ने बड़े यत्न से अपनी आँखें उन आँखों से हटायीं और उस स्त्री का सम्पूर्णत्व देखने लगा।
उसकी वेश-भूषा बिलकुल साधारण थी - सिर पर कस कर बाँधा हुआ बैंगनी रंग का रूमाल, कानों में चाँदी के झुमके, गले में एक लम्बा सफ़ेद कुरता (जो कभी सफेद था, अब नहीं है), जिसके ऊपर एक मनकों का हार, उसके नीचे मटियाले रंग की छींट का तंग पैजामा। किन्तु उसे देखकर ध्यान उस वेश की साधारणता की ओर नहीं, बल्कि उससे वेष्टित व्यक्तित्व की असाधारणता की ओर आकृष्ट होता था।
यद्यपि उसमें असाधारण क्या था? वह कोई विशेष सुन्दर नहीं थी, उसमें कुछ विशेष नहीं था, सिवा उन आँखों की उस स्थिरता के-वह इतनी तीखी और कठोर थीं कि निर्लज्ज तक जान पड़ती थीं, जैसे किसी संसारी अनुभव-प्राप्त पुरुष की।
किसी असाधारण वस्तु के देखने से जो एक हल्का-सा, शारीरिक खिंचाव-सा होता है, उसमें शायद शरीर की और इन्द्रियों की अनुभूति-शक्ति बढ़ जाती है, या शायद कोई अन्य अमानवीय इन्द्रिय काम करने लग जाती है। किसी ऐसी ही क्रिया के कारण गिरीश को मालूम हुआ कि उसके सामने की भीड़ के वातावरण में कुछ परिवर्तन हो गया है। उसने जाना कि कोई व्यक्ति भद्दे अभिप्राय से उस स्त्री की ओर देख रहा है, उसे हाथ से थोड़ा-सा हिलाकर सेठ साहब को इंगित करके कह रहा है, "हाँ, हाँ वह अमीर है... और-वैसा है..." उसने जाना कि स्त्री का ध्यान एकाएक टूट गया है वह कुछ सहम कर पीछे हट रही है।
वह उस समय तक वैसी ही खड़ी थी। गिरीश ने देखा, अपनी साधारण आँखों से देखा कि उस स्त्री के चिबुक पर एक छोटा-सा हल्के-नीले रंग का, गोदा हुआ बिन्दु है। इसके साथ ही उसकी वह विस्तृत हुई अनुभूति-शक्ति भी सकुच कर अपनी साधारण अवस्था में आ गयी।
वह स्त्री पीछे हट गयी; हट कर पास खड़े एक और पहाड़ी को देखकर उससे धीरे-धीरे कुछ कहने लगी, जिसे गिरीश नहीं सुन पाया। उस पहाड़ी से बात करते समय भी वह देख रही थी सेठ साहब की ओर ही। जब उसकी बात सुनकर उस पहाड़ी ने प्रश्न-भरी दृष्टि से मोटर-कम्पनी के दफ़्तर के भीतर देखा, तब उसने हाथ उठाकर सेठ साहब की ओर इशारा किया।
वह स्त्री घबराकर घूम गयी और उस पहाड़ी के साथ, जिससे उसने कुछ कहा था, जल्दी से भीड़ में से निकलकर अदृश्य हो गयी। गिरीश की स्मृति में उसका तो कुछ रहा नहीं, रहा केवल उसकी पीठ पर लदी हुई कोयले की धूल से काली डांडी का एक धूमिल चित्र; किन्तु मन में उससे सम्बद्ध अनेकों विचार उठने लगे। पूछने लगे कि वह अभिनय क्या था, भाँपने लगे कि उन दीप्त स्थिर आँखों का रहस्य उन्हें ज्ञात हो।
होगा, होगा... होता ही होगा... यही देखने, यही जानने तो वह यहाँ आया है, यही तो यहाँ के जीवन का छिपा हुआ रहस्य है, जो सतह के पास ही रहता है; किन्तु देखने में नहीं आता। वह इसी को उघाड़ कर रखेगा और अपना नाम अमर कर जाएगा।
और उसका ध्यान फिर गया करुणा की ओर। वह और करुणा बाल्यसखा थे; किन्तु पिछले दिनों धीरे-धीरे न जाने क्यों और कैसे अलग-अलग हो गये थे-वैसे ही, जैसे सभी लड़के-लड़कियाँ एकाएक वयःसन्धि के काल में हो जाते हैं-परस्पर रूखे, उदासीन, एक-दूसरे को न समझ सकनेवाले, विचार-विनिमय में असमर्थ। आज गिरीश यह भी नहीं कह सकता कि वर्तमान संसार के प्रति करुणा के भाव में क्या हैं, वह संसार को क्या समझती है और उससे क्या आशा करती है? वह सुखी भी है या नहीं, इसका उत्तर भी गिरीश नहीं दे सकता, यद्यपि करुणा से जितना परिचय उसका है, उतना शायद ही किसी का होगा।
यह क्यों है? ऐसा क्यों है कि वह करुणा के विचारों की यदि कोई बात जानता है, तो यही कि करुणा पहाड़ों को चाहती है, उनमें रहने की इच्छुक है, उनसे स्वतन्त्रता की और सुख की आशा करती है, और यह भी इसलिए कि एक बार चोरी से उसने करुणा के लिखे हुए कुछ पन्ने पढ़े थे। इसीलिए कि हम अपनी आँखें खुली रखकर भी अपने घर में ही कुछ नहीं देखते-देख नहीं पाते। हममें से कितने हैं जो अपने घर में ही अपने भाई-बहिनों के विचार जानते हैं, समझते हैं या जानने-समझने की चेष्टा भी करते हैं?
गिरीश सोचने लगा, मैं यहाँ क्यों आया हूँ? क्या यह अधिक उचित नहीं है कि घर जाकर पहले अपने निकटतम लोगों का जीवन समझूँ, फिर उसी का आश्रय लेकर यहाँ के जीवन का अध्ययन करूँ? क्योंकि प्रत्येक वस्तु को कसा तो किसी कसौटी पर ही जा सकता है, और उसके पास कसौटी तो कोई है ही नहीं।
नहीं, है क्यों नहीं? वह क्या इतने दिन तक आँखें बन्द ही किये रहा, क्या उसने संसार ही नहीं देखा, वह समझ सकता है और विचार कर सकता है, उसमें इतना विवेक है कि वह पहाड़ी जीवन को देखे, उसका सत्य अलग करके जाँच सके। और वह देखेगा, अवश्य देखेगा। करुणा का क्या है, वह तो घर में है ही, उसे किसी भी दिन जाकर गिरीश समझ सकता है। स्त्रियों को समझना कौन बड़ी बात है? और फिर करुणा को वह इतने दिनों से जानता है, वह कुछ छिपाएगी थोड़े ही!
और फिर, यह जो आज अभिनय देखा है, वह समझे बिना कैसे जाया जाय? यह मन से निकल नहीं सकता, जब तक उसका उत्तर न पा लिया जाए। और गिरीश समझता है कि वह ठीक पथ पर चल रहा है, उससे यह रहस्य छिपा नहीं करेगा, स्वयं भी खुलेगा और पहाड़ी जीवन की सत्यता भी दिखा जाएगा।
एक सप्ताह के-पहाड़ में आये हुए यात्रियों के-से जीवन के निरर्थक एक सप्ताह के बाद।
गिरीश डलहौज़ी से सैर करने निकलकर, चम्बे के रास्ते पर चल पड़ा था और लक्कड़मंडी में एक चीड़ की छाया में बैठा हुआ था। पास एक छोटी कापी, कुछ खुले काग़ज़ और फ़ाउंटेनपेन रखा हुआ था, हाथ में एक पत्र के दो-चार पन्ने थे, जिन्हें वह अभी कोई पाँचवीं-छठी बार पढ़ चुका था।
गिरीश होटल से यहाँ आया था कि एकान्त में बैठ कर कुछ विचार करेगा, कुछ लिखेगा, लिखने के लिए कुछ सुलझा कर मैटर रखेगा, पर साथ ही वह ताज़ी डाक में आए हुए पत्र भी ले आया था कि यहीं चलकर पढ़ूँगा और यदि जवाब भी देना होगा, तो वहीं लिख दूँगा। इन पत्रों में एक करुणा का भी था, जिसे उसने अभी पढ़ा है और जिसने उसके लिखने के विचारों को बिलकुल बिखेर दिया है।
यह नहीं कि गिरीश कुछ सोच ही न रहा हो; किन्तु वे विचार हैं उलझे हुए, पागलपन से भरे, अशान्ति को ओर बढ़ानेवाले। वह सोच रहा है कि मैंने क्यों करुणा को पत्र लिखा? जो हमारा बाल्य-सख्य टूट-सा गया था, उसे क्यों भावुकता के आवेश में आकर जमाने की चेष्टा की? क्योंकि यह आज की करुणा नहीं है, वह करुणा भी नहीं, जो पहाड़ी जीवन की स्वच्छन्दता के लिए तरसती थी। यह तो एक नयी कठोर, अत्यन्त अकरुण किन्तु जीवन से छलकती हुई करुणा है जिसे उसके पत्र ने जगा दिया है और जिसे अब कुछ लिख नहीं सकता, क्योंकि जिस आग्नेय तल पर करुणा का पत्र लिखा गया है, उस तल पर वह कैसे पहुँच सकता है, यद्यपि करुणा ने उसे ऐसे पत्र लिखा है, जैसे वह कोई बड़ा कवि, या पहुँचा हुआ फिलासफर हो-उस पत्र में से इतना विश्वास, इतनी श्रद्धा टपकती है।
गिरीश फिर एक बार उस अंश को पढ़ने लगा - "आपने पूछा है, मेरे जीवन में क्यों यह परिवर्तन आ गया है, क्यों मैं ऐसी अशान्त-सी रहती हूँ? आप पूछते हैं; पर मैं आपको न लिखूँगी, तो किसको लिखूँगी? यहाँ के लोगों को जिन्हें इतना भी पता नहीं कि शान्ति क्या होती है?
"मैं तो पूरा लिख भी नहीं सकती, थोड़ा-सा ही लिखती हूँ।
गिरीश को याद आया कि उसने अपनी कौन-सी कहानी में किस स्थान पर यह लिखा था। वह सोचने लगा, मैंने अपनी बुद्धि से जो लिखा था केवल प्रभाव के लिए, उसे सच समझने वाले, उसका यथातथ्य अनुभव करनेवाले भी संसार में हैं। इस विचार से वह एकाएक सहम-सा गया, वैसे-ही, जैसे कोई शिकारी पहले बन्दूक चलाये और फिर उसकी घातक शक्ति का प्रमाण पाकर एकाएक सहम जाये। और वह पढ़ने लगा-'इस देश में स्त्री होकर जन्म लेना मृत्यु-यन्त्रणा से भी बढ़ कर ही है। मृत्यु तो यन्त्रणाओं से छुटकारा दे देती हैं; किन्तु यह जन्म स्वयं समस्त यन्त्रणाओं का मूल है। आप इसे गौरव समझें या साहस; किन्तु उन्हें जीना पड़ता है। और वे कहीं से तनिक-सी सहानुभूति पा लें, तो उसके दाता के हाथ मानो बिक जाती हैं, बाज़ारू कुत्ते की भाँति वे अपना यह अधिकार भी नहीं समझतीं कि उन्हें सहानुभूति मिले! इस प्रकार वे कब कितना धोखा खाती हैं, पतन की ओर कैसे बढ़ती जाती हैं, समझ नहीं पातीं। समझें कैसे? निचाई का अनुभव वे कर सकते हैं, जिन्होंने कभी ऊपर उठ कर देखा हो; पर हम स्त्रियाँ तो सदा से ही दलित हैं!
गिरीश को ऐसा जान पड़ा, कोई उसके भीतर कहने को हो रहा है कि मैं क्या कर सकता हूँ? मैं तो कुछ जानता नहीं, कुछ देख ही नहीं सकता; किन्तु उसके अहंकार ने इसे दबा दिया। वह आगे पढ़ने लगा-परमात्मन्! हमें क्या हुआ है, जो हम मरने के योग्य होकर भी मरती नहीं, अहंकार में डूबी हुई हैं; ज़ंजीरों में जकड़ी जाने में ही अपना स्वातन्त्र्य समझती हैं?
गिरीश ने पत्र लपेट कर जेब में डाल लिया और सोचने लगा, मुझमें क्यों लोगों को श्रद्धा है, क्यों वे मुझसे आशाएँ करते हैं? यदि मैं कुछ न कर सका तो? यह उत्तरदायित्व मेरे सिर पर क्यों लादा जा रहा है? एकाएक वह खीझ उठा। यों मैं विवश किया जा रहा हूँ कि किसी एक दिशा में अग्रसर होऊँ, क्यों न अपनी स्वच्छन्द प्रगतियों का अनुसरण करूँ? कला तो किसी बाह्य प्रेरणा से चलती नहीं, वह तो स्वयं प्रमुख प्रेरक है।
वह सोचने लगा, यह दासत्व क्या एक बाह्य बन्धन है, या अन्तःशक्ति की एक निष्क्रिय परमुखापेक्षी अवस्था? आदमी केवल बँध जाने से ही दास नहीं हो जाता। दासता तो एक आत्मगत भावना है। तभी तो जो दास हो जाते हैं, वे स्वाधीनता पाकर उसका उपभोग नहीं कर सकते, न कभी उसकी इच्छा ही करते हैं।
उसे एक घटना याद आयी, जो उसी दिन की घटी थी, और जैसी यहाँ नित्य सैकड़ों बार घटती हैं। उसने उसे एकाएक ग्लानि से भरा दिया था।
वह कुछ सोचता हुआ चला आ रहा था, इधर ही लक्कड़मंडी की ओर। एका-एक उसने सुना कि एक बालक उसे देखकर, पथ की एक ओर खड़ा होकर कह रहा है, "सलाम, साहब!" गिरीश को यह कुछ अच्छा-सा लगा। उसने कुछ मुस्करा कर उत्तर दिया, "सलाम।" तब बालक ने एक दीन स्वर में, जो सर्वथा स्वाभाविक नहीं था, बालकों की स्वाभाविक नक़ल करने की शक्ति से प्रेरित था, कहा "बक्शीश,साहब!" गिरीश को एकाएक ध्यान आया, यह सलाम उसे नहीं, उसके सिर पर के टोप को किया गया था और वह भी एक पैसे की आशा में। वह सोचने लगा, यह है दासत्व की पराकाष्ठा, जहाँ पर किसी टोप को देख कर उसके आगे झुकना और झुकने के पुरस्कार-रूप में कुछ पाने की आशा करना एक अनैच्छिक क्रिया हो गयी है, और वह भी बच्चे-बच्चे में अभिभूत; और इतनी सामान्य कि लोगों का ध्यान ही इसके गूढ़ अभिप्राय की ओर नहीं जाता। वे सलाम ले लेते हैं और चले जाते हैं, और स्वयं हैट पहने रहते हैं।
इन विचारों की उग्रता से शायद गिरीश का मन थक गया। वह चीड़ के वृक्ष के सहारे लेट गया और आकाश की ओर देखने लगा।
"बाबू, बहुत बोलो मत! चुपचाप चले जाओ! नहीं तो अच्छा न होगा।" कहकर पहाड़ी नीचे बस्ती की ओर देखने लगा, मानो सहायता के लिए पुकारेगा। सेठ साहब भी यह देख कर कुछ ठंडे पड़ गये, भुनभुनाते हुए लौट पड़े। थोड़ी देर में वह गिरीश की आँखों से ओझल हो गये। गिरीश इस घटना पर विचार करने लगा - उसकी समझ में न आया कि वह पहाड़ी क्यों इतनी बदगुमानी से उत्तर दे रहा था, सेठ ने कोई बात तो ऐसी नहीं कही थी। शायद सदा दबते रहने से ये पहाड़ी ऐसे हो गये हैं कि मौका लगते ही अपना बदला निकालते हैं!
गिरीश चाहता था कि वह पहाड़ियों के प्रति न्याय करे और इसलिए वह प्रत्येक बात में उनके पक्ष को पुष्ट करने के लिए युक्तियाँ खोजा करता था। इसीलिए अब भी उसने यही निश्चय किया कि ये पहाड़ी हम लोगों से डरने लग गये हैं, और उसी डर से लज्जित होकर कभी-कभी दिलेर बन जाते हैं-एक दिखावटी दिलेरी से।
किन्तु आज शायद पहाड़ियों ने निश्चय किया था कि अपने जीवन की समस्त पहेलियाँ एक साथ उसके आगे बिखरा देंगे; उसे ललकारेंगे कि वह उन्हें सुलझा सकता हो तो सुलझाये। वह अभी इसी समस्या पर विचार कर रहा था कि उसने फिर सेठ साहब का स्वर सुना, अब की बार अपने बहुत निकट और धीमा, मानो कुछ गुपचुप बात कहने का यत्न कर रहे हों। वे किसी स्त्री से बात कर रहे थे, क्योंकि बीच-बीच में कभी एक-आध शब्द किसी स्त्रीकंठ का निकला हुआ भी सुन पड़ता था।
वह बात इतनी गोपनीय नहीं थी - उसका गोपन हो ही नहीं सकता, क्योंकि वह संसार की सबसे पुरानी बात, सबसे महत्त्वपूर्ण बात - और जो शक्ति का मूल्य समझते हैं, उनके लिए सबसे गौरव की बात थी; पर जिस प्रकार कला बेची जाकर केवल एक व्यावसायिक निपुणता रह जाती है, जिसका स्वामी स्वयं उसे व्यावसायिक गुण समझकर उसे स्वीकार करने में अपनी हेठी समझता है, उसी प्रकार शक्ति भी बेची जाकर एक लज्जाजनक वस्तु हो जाती है, और हम उसे छिपाते हैं, उसका चोरी से उपयोग करते हैं कि वह लज्जा दीख न पड़े, हमें और अधिक लज्जित न करे।
गिरीश ने सुना, सब सुना। एक सौदा हुआ था, जिसमें क्रेता अत्यन्त उत्सुक था, विक्रेता पहले असहमत, किन्तु अन्त में एक लम्बी साँस के साथ अपना विकल्प छोड़कर विक्रय के लिए तत्पर हो गया था; विनिमय का दिन और समय भी निश्चित हो गया था। वह स्त्री यहीं लक्कड़मंडी में रहती है, समय पर आ जाएगी, विशेष देख-भाल की आवश्यकता है, क्योंकि यह गाँव काफ़ी बदनाम हो चुका है, और यहाँ की स्त्रियों पर, यहाँ आने-जाने वालों पर भी, कड़ी निगाह रखी जाने लगी है; पर वह आएगी अवश्य, वादा जो किया है।
और गिरीश के मन ने अपनी ओर से जोड़ दिया - "पैसे जो लिये हैं...' क्योंकि उसने अपने रुपयों की-कई-एक रुपयों की-खन-खन भी सुनी थी।
गिरीश का सिर झुक गया, दम घुटने-सा लगा। यह है पहाड़ी जीवन का आन्तरिक सौन्दर्य जिसे देखने वह आया है, जिसके बूते वह संसार में यशःप्रार्थी होगा, यह, यह - यह, जिसके लिए शब्द नहीं मिलते!
सामने वह खड़ी है। उसी दिन वाली स्त्री, वही बैंगनी रंग का रूमाल सिर पर बँधा हुआ, वही कुरता, वही लाल छींट का पैजामा, वही हार, वही झुमके, वही गोदने का बिन्दु-चिह्न और वही आँखें, जो चौंककर उसे देख रही थीं, निर्भीकता से उसकी दृष्टि का सामना कर रही थीं।
और वह शायद यह बता देने में समर्थ भी हुआ। उस स्त्री की दृष्टि क्षण-भर के लिए काँपकर झुक भी गयी। किन्तु उसके बाद ही उसने सिर उठाया, एक अवज्ञा-भरी दर्प-भरी मुद्रा में लाकर हिलाया, जिससे उसके बालों की लट रूमाल के नियन्त्रण से निकल कर, हिलकर मानो बोली - "मैं क्या परवाह करती हूँ!" और फिर वह अवमानना-भरी हँसी-हँसकर चली; किन्तु पाँच-सात क़दम जाकर उसने गर्दन घुमाकर देखा, क्षण-भर ग्रीवा फेरे हुए ही पीड़ित-सी खड़ी रही, फिर चली गयी, अब मानो कुछ शान्त, कुछ सन्दिग्ध, कुछ आहत, कुछ उद्विग्न।
और गिरीश भी एकाएक आवेग में उठा और काग़ज़ उठाकर नीचे की ओर चल पड़ा। उसे मानो अपने सब प्रश्नों के उत्तर मिल गये थे; कितने कठोर उत्तर! सब समस्याओं का समाधान मिल गया था, कैसा उपहास-भरा समाधान!
वह कुछ ही दूर गया था कि सेठ साहब मिल गये; कुछ चौंके, कुछ झेंप-से गये। गिरीश को उस स्त्री के प्रति इतनी ग्लानि हो रही थी कि उसे यह ध्यान ही न आया कि सेठ साहब भी किसी सम्बन्ध में दोषी हो सकते हैं; वह उनके साथ हो लिया और बातचीत चलाने का ढोंग करने लगा। किन्तु इसमें स्वयं अपने को ही असमर्थ पाकर, वह क्षमा माँग कर आगे निकल गया और फिर विचार-सागर में उतराने लगा, उस आघात को मिटाने का यत्न करने लगा, जो उस स्त्री की अवज्ञापूर्ण हँसी ने उसके हृदय पर किया था।
वह सोचने लगा - "हम क्यों एक शारीरिक पवित्रता को इतना महत्त्व देते हैं, विशेषतया जब कि वह पवित्रता एक कृत्रिम बन्धन है? हम एक ओर तो मानते हैं, कि कृत्रिम बन्धन सब प्रकार के पतन के मूल हैं, दूसरी ओर हम यह भी मानते हैं कि पवित्रता, व्रत-निष्ठा एक मानसिक या आध्यात्मिक तथ्य है, शारीरिक नहीं; तब फिर क्यों हम एक नकारात्मक शारीरिक पवित्रता को इतना महत्त्व देते हैं कि उसके न होने पर किसी व्यक्ति को नरक का पात्र समझने लग जाते हैं? और विशेषतया स्त्री को?
"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कोई उस शारीरिक नियन्त्रण को उतना महत्त्व न दे; जो कर्मों को करे, जिन्हें हम वर्जित समझते हैं, किन्तु पापभावना से नहीं, केवल इसीलिए कि वह उन्हें इतना महत्त्व नहीं देता, इसीलिए कि वह इतनी छोटी-सी बात के लिए अपनी स्वाभाविक प्रगति को दबाना नहीं चाहता? यदि कोई ऐसा हो तो हम उसे कैसे दोषी ठहराएँ, यह जानते हुए कि पाप वह नहीं है जो बिना पाप-भावना के किया जाए?
एकाएक गिरीश की विचारधारा रुकी। उसने देखा कि वह भावुकता के आवेश में किधर बहा जा रहा है... किस अकर्मण्य विशृँखलता की ओर, जो उदारता की आड़ में फैल रही है। उसने अपनी ग़लती जानी कि जिस विषय की वह आलोचना कर रहा है उसका उद्भव उन भावनाओं से नहीं हुआ था, जो वह उन्हें दे रहा है, बल्कि केवल रुपये के लालच के लिए यानी रुपये के लिए इन पहाड़ियों का आचार और चरित्र बिकाऊ है।
पर यह धोखा है! ऐसे तर्क से केवल पतन ही पतन हो सकता है। उन्नति नियम के बिना, एक निष्ठा के बिना, नहीं होती।
इस तथ्य पर पहुँचकर गिरीश ने अपने विचार स्थिर कर लिए और फिर उससे आगे पहाड़ी जीवन की उन रहस्यमयी घटनाओं पर विचार करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। वह करुणा के पत्र के बारे में ही सोचने लगा-करुणा अवश्य दुखी है, नहीं तो इतना उद्वेग-भरा पत्र नहीं लिख सकती थी - विशेषतया इसा अवस्था में, जबकि उसने अनेक दिनों से करुणा से कोई व्यवहार नहीं रखा। पर क्या करुणा का दुख, उसकी यन्त्रणा और-हाँ, उसे अखरने वाला वह दासत्व भी इस पहाड़ी जीवन से अच्छा नहीं है, इसी पहाड़ी जीवन से, जिसमें करुणा अपने सुख-स्वप्नों का चरम उत्कर्ष देखती है?
गिरीश ने जाना, उसमें यदि प्रतिभा है, लेखन-शक्ति है, तो वह यहाँ पहाड़ों में वृद्धिगत न होगी; यह उसका क्षेत्र नहीं; वह यहाँ रहकर उस स्वप्न को साकार नहीं बना सकता, जो वह कुछ दिन पहले देख रहा था। यहाँ, जहाँ के जीवन में प्रतिभा का आहार बिलकुल नहीं मिलता, जहाँ चरित्र घुटकर मर जाता है, और जीती हैं केवल लिप्साएँ, उग्र पाप-भावनाएँ, जहाँ के जीवन का सार है ग़रीबी, कायरता, दम्भ और व्यभिचार, जहाँ प्रत्येक वस्तु एक धातु के टुकड़े पर निछावर होती है, जहाँ लोग पर्वतों के मुख को काला कर रहे हैं अपने ओछे, छिछोरे, पतित, निरर्थक जीवन से! इससे वह दासत्व ही अच्छा, वह भीड़-भड़क्का, वह रोग, पीलापन और घुलती हुई मृत्यु। करुणा रोती है तो उसे रोने दो, वह यदि बलि है तो हमारी सभ्यता की, जिसे बनाए रखना हमारा कर्त्तव्य है और जिसमें मेरी प्रतिभा का एकमात्र आधार है।
और यह निश्चय करके गिरीश होटल पहुँचा। वहाँ उसने अपना सामान बाँधा और सायंकाल ही को लौट गया वहीं जहाँ से आया था - अपने संसार के सभ्य जीवन में, जो पहाड़ी जीवन की सभ्यताओं में उलझा हुआ नहीं है, यद्यपि उसमें भीड़ है, और रोग हैं, और घुला मारनेवाली मृत्यु है और है करुणा का रोदन, जिसे कोई सुनता ही नहीं।
और पहाड़ों में यह नित्य ही होता है, शायद दिन में कई बार होता है।
नीचे के समतल प्रदेशों से अपनी सभ्यता और शान्ति-रूपी घातक औषधियों द्वारा जीवित रहनेवाले लोग आते हैं - पहाड़ों पर अपने निर्बल हृदय और निर्बलतम पाचनशक्तियाँ लेकर, और लौट जाते हैं भन्नाते हुए मस्तिष्क और मतली से आक्रान्त उदर लेकर।
क्योंकि ये पर्वत-ये मूक, विराट्, अभिमानी और लापरवाह पर्वत-अपना रहस्य खोले नहीं फिरते, अपना हृदय उघाड़कर दिखाते नहीं फिरते, उन्हें वही देख और खोज पाता है, जो उनकी खोज़ में निरत रहता है, जो उनके लिए अनवरत यत्न करने की क्षमता रखता है, और जो इतना सहिष्णु होता है कि उन्हें देखकर चौंधिया नहीं जाता, अन्धा नहीं हो जाता। पहाड़ कुछ कहते नहीं, उनके जिह्वा है ही नहीं।
उनकी कहानी की सत्यता फिर भी न कही जाती, वैसी ही रह जाती, केवल पढ़ने की क्षमता रखनेवाले उसे पढ़ते और समझते और पर्वतों से प्रेम करते।
क्योंकि वह है ही अकथ्य, जैसे सभी गहरी बातें अकथ्य होती हैं - गहरा प्रेम, गहरी वेदना, गहरा सौन्दर्य, गहरा आह्लाद, गहरी भूख।
जब एक पहाड़ी घोड़ा न लादने पर पिटता है, और फिर संन्यासी होकर लापता हो जाता है, तब पहाड़ उसकी उस गहरी आत्मग्लानि का चित्र नहीं खींचते जिसके कारण वह ऐसा करने को बाध्य होता है, जिसके कारण वह अपने कुटुम्बियों, अपने बाल-बच्चों का ध्यान भुलाकर, अपने व्यक्तित्व को इसलिए कुचल डालता है कि उस व्यक्तिगत जीवन में केवल परमुखापेक्षा, झुकना, प्रपीड़न और दासत्व की प्रतारणा है; वे चुप ही रह जाते हैं। और जब उसी पहाड़ी की लड़की, अपने पिता को पीटने वाले के मुख से दर्प और आत्मश्लाघा-भरे शब्दों में वही कहानी सुनती है, तब वे किसी से उसके व्यथा भरे जड़-विस्मय का रहस्य कहने नहीं जाते; जब कोई पहाड़ी, यह समझकर कि लोग उनके घर आते हैं केवल उनकी स्त्रियों को भ्रष्ट करने, उनके भोलेपन से और उनकी नैसर्गिकता से लाभ उठाकर उन्हें पतित और बदनाम करने, उन लोगों के प्रति उपेक्षा का बर्ताव करता है, तब पर्वत किसी देखनेवाले को उस उपेक्षा का कारण नहीं बताते फिरते। जब एक पहाड़ी कन्या अपने शत्रु, अपने पिता के घातक से एक दिन और समय नियत करती है, ताकि वह उससे बदला लेने का उचित उपाय सोच सके, तब वे पर्वत उस कन्या के किसी आलोचक को सत्य का निदर्शन कराने नहीं जाते, उसकी मानसिक प्रगति समझाने की चेष्टा नहीं करते; और अन्त में, जब कोई उनके विषय में अत्यन्त अनुचित, अन्यायपूर्ण भावना लेकर, उनकी विशाल स्वच्छन्दता और शक्तिमत्ता को छोड़कर लौट जाता है अपने घिरे हुए, बँधे हुए, कलुषित, मारक, चूहेदान जैसे संसार में, तब वे उसे वापस भी नहीं बुलाते। वे उसी भव्य, विराट्, उपेक्षा-पूर्ण कठोर मुस्कराहट से निश्चल आकाश की ओर देखा करते हैं।
|
7b97732f83fdab98146ee248d6e1c2a78a0313e1 | web | - ओये बड़ी आयी खरचे की चाची, अच्छा एक बात बता - तू रोज़ ही इस तरह भाग कर कॉलेज से आती है?
- अगर रोज रोज मेरे वीरजी आयें तो मैं रोज़ ही कॉलेज से भाग कर आऊं।
वह गर्व से बताती है - अभी मैं सड़क पर ही थी कि किसी ने बताया - ओये घर जा कुड़िये, घर से भागा हुआ तेरा भाई वापिस आ गया है। बहुत बड़ा अफसर बन के। एकदम गबरू जवान दिखता है। जा वो तेरी राह देख रहा होगा। पहले तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि हमारा वीर भी कभी इस तरह से वापिस आ सकता है। मैंने सोचा कि हम भी तो देखें कि कौन गबरू जवान हमारे वीरजी बन कर आये हैं जिनकी तारीफ पूरा मौहल्ला कर रहा है। ज़रा हम भी देखें वे कैसे दिखते हैं। फिर हमने सोचा, आखिर भाई किसके हैं। स्मार्ट तो होंगे ही। मैंने ठीक ही सोचा है ना वीर जी....!
- बातें तो तू खूब बना लेती है। कुछ पढ़ाई भी करती है या नहीं?
जवाब बेबे देती है - सारा दिन कताबां विच सिर खपांदी रैंदी ए। किन्नी वारी केया ए इन्नू - इन्ना ना पढ़ेया कर। तूं केड़ी कलकटरी करणी ए, पर ऐ साडी गल सुण लवे तां गुड्डी नां किसदा?
अभी बेबे उसके बारे में यह बात बता ही रही है कि वह मुझे एक डायरी लाकर दिखाती है। अपनी कविताओं की डायरी।
मैं हैरान होता हूं - हमारी गुड्डी कविताएं भी लिखती है और वो भी इस तरह के माहौल में।
पूछता हूं मैं - कब से लिख रही है?
- तीन चार साल से। फिर उसने एक और फाइल दिखायी है। उसमें स्थानीय अखबारों और कॉलेज मैगजीनों की कतरनें हैं। उसकी छपी कविताओं की। गुड्डी की तरक्की देख कर सुकून हुआ है। बेबे ने बिल्लू और गोलू की जो तस्वीर खींची है उससे उन दोनों की तो कोई खास इमेज नहीं बनती।
गुड्डी मेरे बारे में ढेर सारे सवाल पूछ रही है, अपनी छोटी छोटी बातें बता रही है। बहुत खुश है वह मेरे आने से। मैं बैग से अपनी डायरी निकाल कर देखता हूं। उसमें दो एक एंट्रीज ही हैं।
डायरी गुड्डी को देता हूं - ले गुड्डी, अब तू अपनी कविताएं इसी डायरी में लिखा कर।
इतनी खूबसूरत डायरी पा कर वह बहुत खुश हो गयी है। तभी वह डायरी पर मेरे नाम के नीचे लिखी डिग्रियां देख कर चौंक जाती है,
- वीरजी, आपने पीएच डी की है?
- हां गुड्डी, खाली बैठा था, सोचा, कुछ पढ़ लिख ही लें।
- हमें बनाइये मत, कोई खाली बैठे रहने से पीएच डी थोड़े ही कर लेता है। आपके पास तो कभी फ़ुर्सत रही भी होगी या नहीं, हमें शक है। सच बताइये ना, कहां से की थी?
- अब तू ज़िद कर रही है तो बता देता हूं। एमटैक में युनिवर्सिटी में टॉप करने के बाद मेरे सामने दो ऑफर थे - एक बहुत बड़ी विदेशी कम्पनी में बढ़िया जॉब या अमेरिका में एक युनिवर्सिटी में पीएच डी के लिए स्कॉलरशिप। मैंने सोचा, नौकरी तो ज़िंदगी भर करनी ही है। लगे हाथों पीएच डी कर लें तो वापिस हिन्दुस्तान आने का भी बहाना बना रहेगा। नौकरी करने गये तो पता नहीं कब लौटें। आखिर तुझे ये डायरी, ये वॉक मैन और ये सारा सामान देने तो आना ही था ना...। मैंने उसे संक्षेप में बताया है।
- जब अमेरिका गये होंगे तो खूब घूमे भी होंगे? पूछती है गुड्डी। अमेरिका का नाम सुन कर बेबे भी पास सरक आयी है।
- कहां घूमना हुआ। बस, हॉस्टल का कमरा, गाइड का कमरा, क्लास रूम, लाइब्रेरी और कैंटीन। आखिर में जब सब लोग घूमने निकले थे तभी दो चार जगहें देखी थीं।
हँसते हुए कहती है वह - वहां कोई गोरी पसंद नहीं आयी थी?
मैं हँसता हूं - ओये पगलिये। ये बाहर की लड़कियां तो बस एÿवेई होती हैं। हम लोगों के लायक थोड़े ही होती हैं। तू खुद बता अगर मैं वहा से कोई मेम शेम ले आता तो ये बेब मुझे घर में घुसने देती?
यह सुन कर बेबे ने तसल्ली भरी ठंडी सांस ली है। कम से कम उसे एक बात का तो विश्वास हो गया है कि मैं अभी कुंवारा हूं।
गुड्डी आग्रह करती है - वीरजी कुछ लिखो भी तो सही इस पर.. मैं अपनी सारी सहेलियों को दिखाऊंगी।
- ठीक है, गुड्डी, तेरे लिए मैं लिख भी देता हूं।
जो एक मेले के चक्कर में मुझसे बिछ़ुड़ गयी थी।
डायरी ले कर वह तुरंत ही उसमें पता नहीं क्या लिखने लग गयी है। मैं पूछता हूं तो दिखाने से भी मना कर देती है।
आंगन में चारपाई पर लेटे लेटे गुड्डी से बातें करते-करते पता नहीं कब आंख लग गयी होगी। अचानक शोर-शराबे से आंख खुली तो देखा, दारजी मेरे सिरहाने बैठे हैं। पहले की तुलना में बेहद कमज़ोर और टूटे हुए आदमी लगे वे मुझे। मैं तुरंत उठ कर उनके पैरों पर गिर गया हूं। मैं एक बार फिर रो रहा हूं। मैं देख रहा हूं, दारजी मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए अपनी आंखें पोंछ रहे हैं। उन्हें शायद बेबे ने मेरी राम कहानी सुना दी होगी इसलिए उन्होंने कुछ भी नहीं पूछा। सिर्फ एक ही वाक्य कहा है - तेरे हिस्से विच घरों बार जा के ई आदमी बनण लिखेया सी। शायद रब्ब नूं ऐही मंज़ूर सी।
मैंने सिर झुका लिया है। क्या कहूं। बेबे मुझे अभी बता ही चुकी है घर से मेरे जाने के बाद का दारजी का व्यवहार। मुझे बेबे की बात पर विश्वास करना ही पड़ेगा। दारजी मेरे लिए कुछ भी कर सकते हैं। ये बूढ़ा जिद्दी आदमी, जिसने अपने गुस्से के आगे किसी को भी कुछ नहीं समझा। बेबे बता रही थी - जद तैनूं अद्धे अधूरे कपडेयां विच घरों कडेया सी तां दारजी कई दिनां तक इस गल्ल नूं मनण लई त्यार ई नईं सन कि इस विच उन्नादी कोई गलती सी। ओ ते सारेयां नूं सुणा-सुणा के ए ही कैंदे रये - मेरी तरफों दीपू कल मरदा ए, तां अज मर जावे। सारेयां ने एन्ना नूं समझाया सी - छोटा बच्चा ए। विचारा कित्थे मारेया मारेया फिरदा होवेगा। लेकन तेरे दारजी नईं मन्ने सी। ओ तां पुलस विच रपोट कराण वी नईं गए सन। मैं ई हत्थ जोड़ जोड़ के तेरे मामे नूं अगे भेजया सी लेकन ओ वी उत्थों खाली हत्थ वापस आ गया सी। पुलस ने जदों तेरी फोटो मंग्गी तां तेरा मामा उत्थे ई रो पेया सी - थानेदारजी, उसदी इक अध फोटो तां है, लम्मे केशां वाली जूड़े दे नाल, लेकन उस नाल किदां पता चलेगा दीपू दा ..। ओ ते केस कटवा के आया सी इसे लई तां गरमागरमी विच घर छड्ड के नठ गया ए..।
मुझे जब बेबे ये बात बता रही थी तो जैसे मेरी पीठ पर बचपन में दारजी की मार के सारे के सारे जख्म टीस मारने लगे थे। अब भी दारजी के सामने बैठे हुए मैं सोच रहा हूं - अगर मैं तब भी घर से न भागा होता तो मेरी ज़िंदगी ने क्या रुख लिया होता। ये तो तय है, न मेरे हिस्से में इतनी पढ़ाई लिखी होती और न इतना सुकून। तब मैं भी गोलू बिल्लू की तरह किसी दुकान पर सेल्समैनी कर रहा होता।
मैं दारजी के साथ ही खाना खाता हूं।
खाना जिद करके गुड्डी ने ही बनाया है।
बेबे ने उसे छेड़ा है - मैं लख कवां, कदी ते दो फुलके सेक दित्ता कर। पराये घर जावेंगी तां की करेंगी लेकन कदी रसोई दे नेड़े नईं आवेगी। अज वीर दे भाग जग गये हन कि साडी गुड्डी रोटी पका रई ए।
बेबे भी अजीब है। जब तक गुड्डी नहीं आयी थी उसकी खूब तारीफें कर रही थी कि पूरा घर अकेले संभाल लेती है और अब ...।
खाना खा कर दारजी गोलू और बिल्लू को खबर करने चले गये हैं।
मैं घर के भीतर आता हूं। सारा घर देखता हूं।
घर का सामान देखते हुए धीरे-धीरे भूली बिसरी बातें याद आने लगी हैं। याद करता हूं कि तब घर में क्या क्या हुआ करता था। कुल मिला कर घर में पुरानापन है। जैसे अरसे से किसी ने उसे जस का तस छोड़ रखा हो। बेशक इस बीच रंग रोगन भी हुआ ही होगा लेकिन फिर भी एक स्थायी किस्म का पुरानापन होता है चीजों में, माहौल में और कपड़ों तक में, जिसे झाड़ पोंछ कर दूर नहीं किया जा सकता।
हां, एक बात जरूर लग रही है कि पूरे घर में गुड्डी का स्पर्श है। हलका-सा युवा स्त्राú स्पर्श। उसने जिस चीज को भी झाड़ा पोंछा होगा, अपनी पसंद और चयन की नैसर्गिक महक उसमें छोड़ती चली गयी होगी। यह मेरे लिए नया ही अनुभव है। बड़े कमरे में एक पैनासोनिक के पुराने से स्टीरियो ने भी इस बीच अपनी जगह बना ली है। एक पुराना ब्लैक एंड व्हाइट टीवी भी एक कोने में विराजमान है। जब गया था तो टीवी तब शहर में पूरी तरह आये ही नहीं थे। टीवी चला कर देखता हूं। खराब है।
बंद कर देता हूं। सोचता हूं, जाते समय एक कलर टीवी यहां के लिए खरीद दूंगा। अब तो घर-घर में कलर टीवी हैं।
छोटे कमरे में जाता हूं। हम लोगों के पढ़ने लिखने के फालतू सामान रखने का कमरा यही होता था। हम भाइयों और दोस्तों के सारे सीक्रेट अभियान यहीं पूरे किये जाते थे क्योंकि दारजी इस कमरे में बहुत कम आते थे। इसी कमरे में हम कंचे छुपाते थे, लूटी हुई पतंगों को दारजी के डर से अलमारी के पीछे छुपा कर रखते थे। गुल्ली डंडा तो खैर दारजी ने हमें कभी बना कर दिये हों, याद नहीं आता। मुझे पता है, अल्मारी के पीछे वहां अब कुछ नहीं होगा फिर भी अल्मारी के पीछे झांक कर देखता हूं। नहीं, वहां कोई पतंग नहीं है। जब गया था तब वहां मेरी तीन चार पतंगें रखी थीं। एक आध चरखी मांझे की भी थी।
रात को हम सब इकट्ठे बैठे हैं। जैसे बचपन में बैठा करते थे। बड़े वाले कमरे में। सब के सब अपनी अपनी चारपाई पर जमे हुए। तब इस तरह बैठना सिर्फ सर्दियों में ही होता था। बेबे खाना बनाने के बाद कोयले वाली अंगीठी भी भीतर ले आती थी और हम चारों भाई बहन दारजी और बेबे उसके चारों तरफ बैठ कर हाथ भी सेंकते रहते और मूंगफली या रेवड़ी वगैरह खाते रहते। रात का यही वक्त होता था जब हम भाई बहनों में कोई झगड़ा नहीं होता था।
अब घर में गैस आ जाने के कारण कोयले वाली अंगीठी नहीं रही है। वैसे सर्दी अभी दूर है लेकिन सब के सब अपनी अपनी चारपाई पर खेस ओढ़े आराम से बैठे हैं। मुझे बेबे ने अपने खेस में जगह दे दी है। पता नहीं मेरी अनुपस्थिति में भी ये जमावड़े चलते रहते थे या नहीं।सबकी उत्सुकता मेरी चौदह बरस की यात्रा के बारे में विस्तार से सुनने की है जबकि मैं यहां के हाल चाल जानना चाहता हूं।
फैसला यही हुआ है कि आज मैं यहां के हाल चाल सुनूंगा और कल अपने हाल बताऊंगा। वैसे भी दिन भर किस्तों में मैं सबको अपनी कहानी सुना ही चुका हूं। ये बात अलग है कि ये बात सिर्फ़ मैं ही जानता हूं कि इस कहानी में कितना सच है और कितना झूठ।
शुरूआत बेबे ने की है। बिरादरी से..। इस बीच कौन-कौन पूरा हो गया, किस-किस के कितने-कितने बच्चे हुए, शादियां, दो-चार तलाक, दहेज की वजह से एकाध बहू को जलाने की खबर, किसने नया घर बनाया और कौन-कौन मोहल्ला छोड़ कर चले गये और गली में कौन-कौन नये बसने आये। किस के घर में बहू की शक्ल में डायन आ गयी है जिसने आते ही अपने मरद को अपने बस में कर लिया है और मां-बाप से अलग कर दिया है, ये और ऐसी ढेरों खबरें बेबे की पिटारी में से निकल रही हैं और हम सब मज़े ले रहे हैं।
अभी बेबे ने कोई बात पूरी नहीं की होती कि किसी और को उसी से जुड़ी और कोई बात याद आ जाती है तो बातों का सिलसिला उसी तरफ मुड़ जाता है।
मैं गोलू से कहता हूं - तू बारी बारी से बचपन के सब साथियों के बारे में बताता चल।
वह बता रहा है - प्रवेश ने बीए करने के बाद एक होटल में नौकरी कर ली है। अंग्रेजी तो वह तभी से बोलने लगा था। आजकल राजपुर रोड पर होटल मीडो में बड़ी पोस्ट पर है। शादी करके अब अलग रहने लगा है। ऊपर जाखन की तरफ घर बनाया है उसने।
- बंसी इसी घर में है। हाल ही में शादी हुई है उसकी। मां-बाप दोनों मर गये हैं उनके।
- और गामा?
मुझे गामे की अगुवाई में की गयी कई शरारतें याद आ रही हैं। दूसरों के बगीचों में अमरूद, लीची और आम तोड़ने के लिए हमारे ग्रुप के सारे लड़के उसी के साथ जाते थे।
बिल्लू बता रहा है - गामा बेचारा ग्यारहवीं तक पढ़ने के बाद आजकल सब्जी मंडी के पास गरम मसाले बेचता है। वहीं पर पक्की दुकान बना ली है और खूब कमा रहा है।
- दारजी, ये नंदू वाले घर के आगे मैंने किसी मेहरचंद की नेम प्लेट देखी थी। वे लोग भी घर छोड़ गये हैं क्या? मैं पूछता हूं।
- मंगाराम बिचारा मर गया है। बहुत बुरी हालत में मरा था। इलाज के लिए पैसे ही नहीं थे। मजबूरन घर बेचना पड़ा। उसके मरने के बाद नंदू की पढ़ाई भी छूट गयी। लेकिन मानना पड़ेगा नंदू को भी। उसने पढ़ाई छोड़ कर बाप की जगह कई साल तक ठेला लगाया, बाप का काम आगे बढ़ाया और अब उसी ठेले की बदौलत नहरवाली गली के सिरे पर ही उसका शानदार होटल है। विजय नगर की तरफ अपना घर-बार है और चार आदमियों में इज्जत है।
- मैं आपको एक मजेदार बात बताती हूं वीर जी।
ये गुड्डी है। हमेशा समझदारी भरी बातें करती है।
- चल तू ही बोल दे पहले। जब तक मन की बात न कह दे, तेरे ही डकार ज्यादा अटके रहते हैं। बिल्लू ने उसे छेड़ा है।
- रहने दे बड़ा आया मेरे डकारों की चिंता करने वाला। और तू जो मेरी सहेलियों के बारे में खोद खोद के पूछता रहता है वो...। गुड्डी ने बदला ले लिया है।
बिल्लू ने लपक कर गुड्डी की चुटिया पकड़ ली है - मेरी झूठी चुगली खाती है। अब आना मेरे पास पंज रपइये मांगने।
गुड्डी चिल्लायी है - देखो ना वीरजी, एक तो पंज रपइये का लालच दे के ना मेरी सहेलियों ....। बिल्लू शरमा गया है और उसने गुड्डी के मुंह पर हाथ रख दिया है - देख गुड्डी, खबरदार जो एक भी शब्द आगे बोला तो।
सब मजे ले रहे हैं। शायद ये उन दोनों के बीच का रोज का किस्सा है।
- तूं वी इन्नां पागलां दे चक्कर विच पै गेया एं। ऐ ते इन्ना दोवां दा रोज दा रोणा ऐ। बेबे इतनी देर बाद बोली है।
- असी ते सोइये हुण। गोलू ने अपने सिर के ऊपर चादर खींच ली है। गप्पबाजी का सिलसिला यहीं टूट गया है।
बाकी सब भी उबासियां लेने लगे हैं। तभी बिल्लू ने टोका है - लेकिन वीरा, आपके किस्से तो रह ही गये ।
- अब कल सुनना किस्से। अब मुझे भी नींद आ रही है। कहते हुए मैं भी बेबे की चारपाई पर ही मुड़ी-त़ुड़ी हो कर पसर गया हूं। बेबे मेरे बालों में उंगलियां फिरा रही है। चौदह बरस बाद बेबे के ममताभरे आंचल में आंखें बंद करते ही मुझे तुरंत नींद आ गयी है। कितने बरस बाद सुकून की नींद सो रहा हूं।
देख रहा हूं इस बीच बहुत कुछ बदल गया है। बहुत कुछ ऐसा भी लग रहा है जिस पर समय के क्रूर पंजों की खरोंच तक नहीं लगी है। सब कुछ जस का तस रह गया है। घर में भी और बाहर भी.. । दारजी बहुत दुबले हो गये हैं। अब उतना काम भी नहीं कर पाते, लेकिन उनके गुस्से में कोई कमी नहीं आयी है। कल बेबे बता रही थी - बच्चे जवान हो गये हैं, शादी के लायक होने को आये लेकिन अभी भी उन्हें जलील करने से बाज नहीं आते। उनके इसी गुस्से की वजह से अब तो कोई मोया ग्राहक ही नहीं आता।
गोलू और बिल्लू अपने अपने धंधे में बिजी है। बेबे ने बताया तो नहीं लेकिन बातों ही बातों में कल ही मुझे अंदाजा लग गया था कि गोलू के लिए कहीं बात चल रही है। अब मेरे आने से बात आगे बढ़ेगी या ठहर जायेगी, कहा नहीं जा सकता। अब बेबे और दारजी उसके बजाये कहीं मेरे लिए .. .. नहीं यह तो गलत होगा। बेबे को समझाना पड़ेगा।
ये गोलू और बिल्लू भी अजीब हैं। कल पहले तो तपाक से मिले, थोड़ी देर रोये-धोये। जब मैंने उन्हें उनके उपहार दे दिये तो बहुत खुश भी हुए लेकिन जब बाद में बातचीत चली तो मेरे हालचाल जानने के बजाये अपने दुखड़े सुनाने लगे। दारजी और बेबे की चुगलियां खाने लगे। मैं थोड़ी देर तक तो सुनता रहा लेकिन जब ये किस्से बढ़ने लगे तो मैंने बरज दिया - मैं ये सब सुनने के लिए यहां नहीं आया हूं। तुम्हारी जिससे भी जो भी शिकायतें हैं, सीधे ही निपटा लो तो बेहतर। इतना सुनने के बाद दोनों ही उठ कर चल दिये थे। रात को बेशक थोड़ा-बहुत हंसी मज़ाक कर रहे थे, लेकिन सवेरे-सवेरे ही तैयार हो कर - अच्छा वीरजी, निकलते हैं, कहते हुए दोनों एक साथ ही दरवाजे से बाहर हो गये हैं। गुड्डी के भी कॉलेज का टाइम हो रहा है, और फिर उसने सब सहेलियों को भी तो बताना है कि उसका सबसे प्यारा वीर वापिस आ गया है।
हँसती है वह - वीरजी, शाम को मेरी सारी सहेलियां आपसे मिलने आयेंगी। उनसे अच्छी तरह से बात करना।
|
95ce2a72ca47077a1a24ce74e89ec0a79f5bc60e427d2c58143c2fff6727e369 | pdf | साहित्य की रचना की है जो अति विलास के उन्माद का स्मरण करा देता है। शराब और सुंदरी इस मार्ग में भक्ति और ईश्वर के प्रतीक माने जाते हैं । मानवस्वभाव या मानव समाज की यह एक चिंतनीय विचित्रता है कि कभी तो वह देह संबंध और कामवासना को अपवित्र मानता है, और कमी उसमें संपूर्ण पवित्रता का आरोपण करने के प्रयत्न में अपवित्रता की हद मानी जाने वाली वेश्यावृत्ति तक पहुँच जाता है।
साथ ही यह भी नहीं भूलना चाहिये कि धर्म ने काम या विलास को सर्वदा वर्ज्य नहीं माना । जो ज्य नहीं है, वह अपवित्र नहीं हो सकता । धर्म के इतिहास का निरीक्षण करते समय इतना तो स्पष्ट दिखाई देता है कि मनुष्यजाति कामवृत्ति या यौन आकर्षण को सदा एक चमत्कार ही मानती आई है । आज हमने बहुत अधिक वैज्ञानिक प्रगति की है। काम भावना के अनेक विद्वत्तापूर्ण विश्लेषण भी हो चुके हैं । फिर भी आज के युग तक कामवृत्ति के साथ जुड़ा हुआ चमत्कार नष्ट नहीं हुआ । तो फिर अज्ञान और असंस्कृत प्राचीन मानवता को इस महाप्रबल कामभावना में चमत्कार दिखाई दे तो आश्चर्य किस बात का ? इस वृत्ति का प्रबल आवेग, मनुष्य के हृदय को हिला डालने की इसकी शक्ति, विकट एवं साहसपूर्ण कार्यों में मनुष्य को खींच ले जाने वाली इसकी प्रेरणा, इसमें से जन्म लेने वाले शिष्टाचार और संस्कृति एवं में इसके उपयोग से प्राप्त देह और मन का अनिर्वचनीय सुख मनुष्य के मन में इसके प्रति आश्चर्य और सम्मान की भावना उत्पन्न करे, यह स्वाभाविक ही है । आश्चर्य और सम्मान से पूज्यभाव प्रकट होता है और जिसके प्रति पूज्यभाव हो, उसे पवित्र मानने में कोई बाघा नहीं होनी चाहिये ।
इस प्रकार कामभावना एक ओर अपवित्र मानी जाकर अनेक सामाजिक उलझनों की सृष्टि करती है तो दूसरी ओर परम पवित्र मानी जाकर अन्य प्रकार के परिणामों को जन्म देती है। दोनों परिणाम परंपराएँ यौन भावना को अतिशय महत्त्व देकर मनुष्य समाज को ऐसे अमर्याद संबंधों की ओर प्रेरित करती हैं जो वेश्यावृत्ति के बहुत निकट पहुँच जाते हैं। कामवासना को अत्यंत पवित्र या अत्यंत अपवित्र मानकर धर्म उसमें से गणिकावृत्ति की सृष्टि करता है । यह तथ्य जितना विचित्र है, उतना ही सत्य है ।
पूज्यभाष और आश्चर्य की भावना अधिक तीव्र होने का एक कारण कामवृत्ति में निहित जीवन संवर्धन की शक्ति में भी ढूंढा जा सकता है । कामवासना की परिणति वैयक्तिक सुख में होती हैं, यह सही है । परंतु यह भी नहीं भुलाया जा सकता कि उसी से नवजीवन का निर्माण होता है । सृष्टि निर्माण के लिए प्रकृति या ईश्वर ने कामवृत्ति के सिवा और कोई मार्ग प्रस्तुत नहीं किया, यह सत्यसामाजिक दृष्टि से भी कामतृप्ति को एक महान विधि, एक परमपुण्यकारी कर्तव्य और जीवन की एक महान जिम्मेदारी सिद्ध करके उसे अतीत को भविष्य से जोड़नेवाले पवित्र तंतु का महत्व प्रदान करता है। कामतृप्ति द्वारा उत्पन्न होने वाली संतति मानव इतिहास के अनेक चलायमान तत्वों के बीच एकमात्र अचल तत्व प्रमाणित होती है। बालक का जन्म जीवनशृंखला को जोड़ने वाली एक कड़ी है। भूतकाल से लगाकर अब तक के मनुष्य लिए बालजन्म से अधिक आश्चर्यकारक घटना शायद और कोई नहीं हो सकती । नवनिर्माण में अपवित्रता हो ही नहीं सकती । यह कार्य सबसे अधिक पवित्र और पुण्यमय है, यह विचार यौन भावना के प्रति मनुष्य के सद्भाव को अधिक गंभीर और दृढ़ बनाता है। इससे जागृत होने वाला पूज्यभाव कामवासना को भी पवित्र मानने की प्रेरणा देता है। जो पूज्य होता है, उसकी पूजा होना स्वाभाविक है। अतः कामभावना का अनेक प्रकार से पूजन होता आया है । यह पूजन व्यापक मानव समुदायों का धर्म बन गया इतना ही नहीं बल्कि काम भावना का वहन करने वाली स्त्रीपुरुष की जननेद्रियाँ भी पूजा का विषय बन गई । यह भावना आज हमें भद्दी मालूम पड़ने पर भी किसी युग में परम धर्म मानी जाती थी, इसके प्रमाण आज भी उपलब्ध है।
अप्सराकामभावना या उसके प्रतीक रूप इंद्रियों को अश्लील मानने की प्रथा आज भले ही प्रचलित हो, परंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि ये दोनों मनुष्य जीवन के अनिवार्य सत्य है। इनके प्रति सही दृष्टिकोण क्या हो सकता है, यह चर्चा यहाँ पर अप्रस्तुत होगी; परंतु इन तथ्यों की उपेक्षा नहीं की जा सकती । आज भी प्रत्येक शिवालय में स्त्री-पुरुष के गुप्तांगों की एवं उनके संपर्क की पूजा होती है। किसी प्रकार का परदा न रखते हुए, उन्हें योनि और लिंग के स्पष्ट नाम से पुकारा जाता है। फिर भी उनका दर्शन करने वालों में किसी प्रकार की छिछली या अपवित्र भावना उत्पन्न होती हो, यह कभी नहीं सुना । कामवासना को, काम की सृजनशक्ति को एवं उस शक्ति के वाहक अंगों को शिव शंकर या महादेव का अंग मानकर, और उनका पूजन करके, उन्हें जो सम्मान हिंदूजाति देती आई है, उससे उच्च कोटि का पूजनकार्य और कहीं विखाई नहीं देता । स्त्री हो या पुरुष, हिंदूमात्र शंकर के मंदिर में कामवासना से अलिप्त रहकर पूजा कर सकता है । इस कार्य से कामवासना का अति स्पष्ट और वैयक्तिक रूप सामाजिक स्तर पर भी व्यापक एवं सम्मानयुक्त स्वीकृति प्राप्त करता है, इसमें कोई संदेह नहीं । सृष्टि की प्रेरणा सृजन की शक्ति, एवं नवनिर्माण के प्रतीकों का पूजन, कामवासना की ही भव्य और स्पष्ट गौरवगाथा है ।
और इसमें बुराई भी क्या है ? किस तर्क से हम इस सृजनकार्य को छिपा या भुला सकते हैं ? शर्म, मर्झदा, लज्जा या संकोच सत्यदर्शन के अधिक सभ्य एवं कलामय परिधान तो हो सकते हैं, परंतु वह सनातन सत्य को ढँकने के आवरण कभी नहीं बन सकते; फिर चाहे वह सत्य अंग संबंधी हो, भावगत हो या विचार के क्षेत्र का हो । स्त्री पुरुष के जातिसूचक अंग-उपांगों की पूजा प्राचीन काल में बहुत व्यापक रूप से धर्मकार्य की आवश्यक अंग मानी जाती थी, और मिश्र से लगाकर भारत तक की प्रजाओं द्वारा स्वीकृत थी, इसके प्रमाण आज भी उपलब्ध हैं ।
लिंगपूजन को पवित्र मान लेने पर पूजा की अनेक विधियाँ आरंभ होती हैं। प्रजासमूहों द्वारा अंगीकृत किये जाने पर धीरे-धीरे यौनकार्य का सूचक कर्मकांड भी शिष्ट माना जाने लगता है और उसका संयम विभाग अदृश्य होता जाता है। कामभावना में से पाप या अपवित्रता का भाव दूर हो जाने पर यौन संबंधों की निरंकुशता बढ़ती जाती है। मनुष्य का अत्यंत प्रिय कार्य धर्मकार्य मान लिया जाने पर यौन व्यवहार मर्यादा की भावना का उल्लंघन करने की कक्षा तक पहुँच जाय, यह स्वाभाविक है ।
केवल अंगों की पूजा होते होते उन अंगों को धारण करने वाले देवी देवताओं की पूजा, उनके मंदिरों की रचना एवं उनकी कथावार्ताएँ भी होने लगती हैं। पूजनविधि का विकास होते होते, निरंकुश यौन व्यवहार की उन्मत्तता देवता की भक्ति की ही प्रतिष्ठित अभिव्यक्ति मानी जाने लगती है। इस हालत' में उत्सवों, उपचारों और नृत्यगीतों में यौन सुख की पराकाष्ठा पर पहुँचने का उन्माद भक्तजनों में फैलता जाय, तो आश्चर्य की बात नहीं । उन्माद की उत्कटता बढ़ाने के लिए नशीली चीजों का सेवन भी धर्मकार्य की सहायता करने लगे और उनके प्रभाव से बेहोश स्त्री-पुरुष यौन व्यवहार के सब बंघनों को शिथिल करके स्वच्छंद व्यभिचार को ही धर्म का स्थायी अंग बना दें, यह अत्यधिक संभव है । शिथिल सहचार की व्यापक स्वीकृति होते ही समाज एक विस्तृत वेश्यालय बन जाता है। संभव है कि इस प्रकार का अनियमित यौन व्यवहार स्थिर समाज का स्थायी रूप न बने; परंतु अमुक पर्यो, अमुक उत्सवों या विशिष्ट दिनों के लिए प्राप्त होने वाला काम- स्वातंत्र्य भी अपना प्रभाव छोड़े बिना नहीं रहता । धर्म कार्य के अंग रूप मिलनेवाली स्वतंत्रता का उपयोग अन्य प्रसंगों पर करने की वृत्ति मानव स्वभाव के अनुसार ही मानी जायगी ।
एक और बात भी विचारणीय है । जननकार्य और देहसुख परस्पर अनिवार्य रूप से संकलित हैं । इसमें जरा सा भी असंयम होते ही जनन का गंभीर्य केवल सुखलोलुपता, इंद्रियपरायणता, कामोन्माद और |
ee75611728b1b55ecc686260c67e747cd8de7990 | web | हरियाला सावन ले आया, नेह भरा उपहार।
आया राखी का त्यौहार!
आया राखी का त्यौहार!!
यही कामना करती मन में, गूँजे घर में शहनाई,
खुद चलकर बहना के द्वारे, आये उसका भाई,
कच्चे धागों में उमड़ा है भाई-बहन का प्यार।
आया राखी का त्यौहार!
आया राखी का त्यौहार!!
तिलक लगाती और खिलाती, उसको स्वयं मिठाई,
आज किसी के भइया की, ना सूनी रहे कलाई,
भाई के ही कन्धों पर, होता रक्षा का भार।
आया राखी का त्यौहार!
आया राखी का त्यौहार!!
पौध धान के जैसी बिटिया, बढ़ी कहीं पर-कहीं पली,
बाबुल के अँगने को तजकर, अन्जाने के संग चली,
रस्म-रिवाज़ों ने खोला है, नूतन घर का द्वार।
आया राखी का त्यौहार!
आया राखी का त्यौहार!!
रखती दोनों घर की लज्जा, सदा निभाती नाता,
राखी-भइयादूज, बहन-बेटी की याद दिलाता,
भइया मुझको भूल न जाना, विनती बारम्बार।
आया राखी का त्यौहार!
आया राखी का त्यौहार!!
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा।
आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है।
कृपया इस मंच में योगदान करने के लिए[email protected] पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...!
और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए "आपका ब्लॉग" तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।
बस आपको मुझे मेरे ई-मेल [email protected] पर एक मेल करना होगा। मैं आपको "आपका ब्लॉग" पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।
गीत "भाई-बहन का प्यार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दोहे "रंग-बिरंगे तार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कितना अद्भुत है यहाँ, रिश्तों का संसार।
जीवन जीने के लिए, रिश्ते हैं आधार।१।
केवल भारत देश में, रिश्तों का सम्मान।
रक्षाबन्धन पर्व की, अलग अनोखी शान।२।
कच्चे धागों से बँधी, रक्षा की पतवार।
रोली-अक्षत-तिलक में, छिपा हुआ है प्यार।३।
भाई की लम्बी उमर, ईश्वर करो प्रदान।
बहनें भाई के लिए, माँग रहीं वरदान।४।
सदा बहन की मदद को, भइया हों तैयार।
रक्षा का यह सूत्र है, राखी का उपहार।५।
चाहे युग बदलें भले, बदल जाय संसार।
अमर रहेगा हमेशा, यह पावन त्यौहार।६।
राखी के ही तार में, छिपी हुई है प्रीत।
जब तक चन्दा-सूर हैं, अमर रहेगी रीत।७।
राखी के दिन किसी का, सूना रहे न हाथ।
प्रेम-प्रीत की रीत का, छूटे कभी न साथ।८।
रेशम-जरी-कपास के, रंग-बिरंगे तार।
ले करके बहना चली, अब बाबुल के द्वार।९।
गीत "राखी का त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आया राखी का त्यौहार!!
हरियाला सावन ले आया, ये पावन उपहार।
अमर रहा है, अमर रहेगा, राखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!
जितनी ममता होती है, माता की मृदु लोरी में,
उससे भी ज्यादा ममता है, राखी की डोरी में,
भरा हुआ कच्चे धागों में, भाई-बहन का प्यार।
अमर रहा है, अमर रहेगा, राखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!
भाई को जा करके बाँधें, प्यारी-प्यारी राखी,
हर बहना की यह ही इच्छा राखी के दिन जागी,
उमड़ा है भगिनी के मन में श्रद्धा-प्रेम अपार!
अमर रहा है, अमर रहेगा, राखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!
खेल-कूदकर जिस अँगने में, बीता प्यारा बचपन,
कैसे याद भुलाएँ उसकी, जो मोहक था जीवन,
कभी रूठते और कभी करते थे, आपस में मनुहार।
अमर रहा है, अमर रहेगा, राखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!
गुज़रे पल की याद दिलाने, आई बहना तेरी,
रक्षा करना मेरे भइया, विपदाओं में मेरी,
दीर्घ आयु हो हर भाई की, ऐसा वर दे दो दातार।
अमर रहा है, अमर रहेगा, राखी का त्यौहार।।आया राखी का त्यौहार!!
रक्षाबन्धन पर भाई की, सूनी न हो कलाई,
पहुँचा देना मेरी राखी, अरे डाकिए भाई,
बहुत दुआएँ दूँगी तुझको, तेरा मानूँगी उपकार!
अमर रहा है अमर रहेगा, राखी का त्यौहार!!
आया राखी का त्यौहार!!
देश भक्ति गीत "प्राणों से प्यारा है अपना वतन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जिसकी माटी में चहका हुआ है सुमन,
मुझको प्राणों से प्यारा वो अपना वतन।
जिसकी घाटी में महका हुआ है पवन,
मुझको प्राणों से प्यारा वो अपना वतन।
जिसके उत्तर में अविचल हिमालय खड़ा,
और दक्षिण में फैला है सागर बड़ा.
नीर से सींचती गंगा-यमुना चमन।
मुझको प्राणों से प्यारा वो अपना वतन।।
वेद, कुरआन-बाइबिल का पैगाम है,
ज़िन्दगी प्यार का दूसरा नाम है,
कामना है यही हो जगत में अमन।
मुझको प्राणों से प्यारा वो अपना वतन।।
सिंह के दाँत गिनता, जहाँ पर भरत,
धन्य आजाद हैं और विस्मिल-भगत,
प्राण आहूत करके किया था हवन।
मुझको प्राणों से प्यारा है अपना वतन।।
यह धरा देवताओं की जननी रही,
धर्मनिरपेक्ष दुनिया में है ये मही,
अपने भारत को करता हूँ शत्-शत् नमन।
मुझको प्राणों से प्यारा वो अपना वतन।।
गीत "स्वतन्त्रता का नारा है बेकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जिस उपवन में पढ़े-लिखे हों रोजी को लाचार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
जिनके बंगलों के ऊपर,
निर्लज्ज ध्वजा लहराती,
रैन-दिवस चरणों को जिनके,
निर्धन सुता दबाती,
जिस आँगन में खुलकर होता सत्ता का व्यापार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
मुस्टण्डों को दूध-मखाने,
बालक भूखों मरते,
जोशी, मुल्ला, पीर, नजूमी,
दौलत से घर भरते,
भोग रहे सुख आजादी का, बेईमान मक्कार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
वयोवृद्ध सीधा-सच्चा,
हो जहाँ भूख से मरता,
सत्तामद में चूर वहाँ हो,
शासक काजू चरता,
ऐसे निठुर वजीरों को, क्यों झेल रही सरकार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
"मैना चीख रही उपवन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सज्जनता बेहोश हो गई,
दुर्जनता पसरी आँगन में।
कोयलिया खामोश हो गई,
मैना चीख रही उपवन में।।
गहने तारे, कपड़े फाड़े,
लाज घूमती बदन उघाड़े,
यौवन के बाजार लगे हैं,
नग्न-नग्न शृंगार सजे हैं,
काँटें बिखरे हैं कानन में।
मैना चीख रही उपवन में।।
मानवता की झोली खाली,
दानवता की है दीवाली,
चमन हुआ बेशर्म-मवाली,
मदिरा में डूबा है माली,
दम घुटता है आज वतन में।
मैना चीख रही उपवन में।।
शीतलता रवि ने फैलाई,
पूनम ताप बढ़ाने आई,
बेमौसम में बदली छाई,
धरती पर फैली है काई,
दशा देख दुख होता मन में।
मैना चीख रही उपवन में।।
सुख की खातिर पश्चिमवाले,
आते थे होकर मतवाले,
आज रीत ने पलटा खाया,
हमने उल्टा पथ अपनाया,
खोज रहे हम सुख को धन में।
मैना चीख रही उपवन में।।
शावक सिंह खिलाने वाले,
श्वान पालते बालों वाले,
बौने बने बड़े मनवाले,
जो थे राह दिखाने वाले,
भटक गये हैं बीहड-वन में।
मैना चीख रही उपवन में।।
दोहे "लोकतन्त्र की बात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बेटा उप-अध्यक्ष है, माता है अध्यक्ष।
दोनों मिलकर धो रहे, प्रजातन्त्र के पक्ष।।
आजीवन अध्यक्ष हों, जिस कुनबे के तात।
उस दल में बेकार है, लोकतन्त्र की बात।।
कुटुम-कबीले की चले, मनमानी के साथ।
चार-पाँच ही नाथ हैं, बाकी सभी अनाथ।।
कुर्सी पर बैठी बहन, सब पर हुक्म चलाय।
ठेकेदारी का चलन, मूरख रहा बनाय।।
चाय बनाता था कभी, वो है अब सरदार।
भारत माँ का पूत अब, चला रहा सरकार।।
वसुन्धरा का देश की, जो करता गुणगान।
बन जाता वो एक दिन, जन-गण का भगवान।।
खिसियानी सब बिल्लियाँ, खम्बा नोचें आज।
समझ गया है कुटिलता, इनकी देश-समाज।।
|
691d49c9158eacc78d621ee5fdbb3c6e3947c3d03dd853727aeaebf7c8a638b4 | pdf | दूध की पैदाइश होती है, वह विशेष कर धनियामेही व्यवहृत हो जाती है । इस देशके करोड़ों लोगोंको तो दूध मिलता ही नहीं। उनके लिये तो मलाई के बिनाका दूध या छाछ भी महान वस्तु हो सकती
हमारे देश में अन्य खाद्य द्रव्यों की अपेक्षा धीका महत्व अधिक समझा जाता है । यहांतक कि "ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्" जैसी कहावतें बन गया हैं । सामान्य जनता में अकेला घी ही आहार की मुख्य चीज होने की छापसी गिर गयी है । जीवनतत्वों के रूप में की उपयोगिता बारे में इन्कार नहीं किया जा सकता; लेकिन घी कोई अनिवार्य चीज नहीं । अथवा अन्य तरह से कहा जा सकता है कि घी तथा छाछ आदि दूध की बनावटोमेका नत्रज इन दोनोमेसे पसंद करना हो तो घी को छोड़ने की सलाह दी जा सकती है । शरीरका बनना अटकेगा नहीं; जब कि नत्रजके बिना तो शरीर की वृद्धि ही अटक जायगी । याने दूध की कीमत उसमें से मिलनेवाली मलाईपर जितनी अवलंबित है उससे अधिक उसमेंके नत्रजं, ळवणद्रव्य आदिके कारण समझनी चाहिये । मलाई हटाये दूध में या छाछमें नत्रज और लवणद्रव्य जैसे के वैसे पूरे प्रमाण में मौजूद रहते हैं । इसलिये हमारे बच्चोंको मलाई के बिनाका भी दूध या छाछ मिले ऐसा प्रचार करने की विशेष जरूरत है । हरेक शाला में दूध या छाछ बाटनेके व्यवस्थित कार्यक्रम रखे जाने चाहिये ।
i,
खाद्यद्रव्योंको हजम करनेवाले, मलमूत्रको बाहर निकालनेवाले, खून तथा प्राणवायुको सारे शरीर में पहुँचानेवाले, आदि हरेक प्रकार के अवयवोंकी बनावटमें लवणद्रव्य एक अंग के रूप में होते हैं जिससे शरीर की प्रत्येक क्रिया - स्थूल या सूक्ष्म के साथ उनका घनिष्ट संबंध होता है। लवणद्रव्यों की इस प्रकारकी सर्वत्र व्याप्त होने के कारण कहीं भी उनका अभाव हो तो तुरंत तंदुरुस्ती में विकार आये बिना नहीं रह सकता ।
प्रकृतियोंने जैसे अपने अम्लताप्रधान और लवणप्रधान ऐसे दो स्वतंत्र भाग कर लिये हैं ऐसा प्रतीत होता है । कंदमूल, पत्ते और ये लवणप्रधान बनाये और सभी दानें अम्लता प्रधान बनाये। हमारे खाद्यद्रव्योंका वडा हिस्सा गेहूं, चावल, बाजरा, दाल तिलहन आदि दाने होने की वजह से हमारा आहार अम्लताप्रधान हो जाता है। शरीर में जाय अिसलिये हमें फल और सब्जी खाना' अधिक
आवश्यक हो गया है ।
प्रकृतिने दोनोंमें भी खाद्यद्रव्योंका साफ साफ विभाजन कर रखा । जो कुछ मामूली लवणद्रव्य दानों में होते हैं. उनका बड़ा हिस्सा दानों की ऊपरी सतहमें होता है । चावलको कूटनेमें या गेहूंका मैदा बनानेमें दानेकी यह ऊपरी सतह निकल जाती है, फलतः हम लवणद्रव्योंसे वचित हो जाते हैं ।
दानों में स्थित इस लवणद्रव्य का महत्व समझ लेना नितान्त : आवश्यक है । पत्तोंकी तुलना में दानोंमें लवणद्रव्य कम होते हैं सही लेकिन पत्तों (सब्जी) के लवणद्रव्य शरीर में कम घुल पाते हैं जब कि ··· दानों के लवणद्रव्य ज्यादा घुल सकते हैं । दानेकी पैदाइशमें ही प्रकृतिने १. इस प्रकारकी तब्दीली की होती है । सिवा दाने ही हमारे भोजनका बडा हिस्सा होता है इसलिये दानोंमेंसे ही लवणद्रव्योंकी आवश्यकताका 1. बडा हिस्सा मिलाना सरल होता है। हम आगे चलकर देखेंगे कि दानोंकी ऊपरी सतहमें ही अनुकूल नत्रज और बहुतसे जीवनतत्व भी
केंद्रित हुए रहते हैं। इससे दानोंके ऊपरी हिस्सोका पूरा उपयोगः कर लेना कितना महत्वपूर्ण है यह स्पष्ट होता है ।
A खाद्य द्रव्योंका इतना मोटासा वर्गिकरण भी ख्यालमै रहे तो, अम्लता तथा लवणता प्रमाण में रखने में काफी सरलता होगी। किसी मा प्रकारके बुखार में शरीर में अम्लता बढ़ जाती है इसलिये बुखारके समयमें लवण प्रधान चीजें जैसे सब्जी, फल तथा पानी लेना चाहिये; मांस तथा दाने-गेहूं, दाल आदि-अम्लता प्रधान चीजें छोडना चाहिये ।
शरीरमे करीव २० जातिके लवणद्रव्य पाये जाते हैं । आहारमेंसे वे सभी लवणद्रव्य मिलें और योग्य प्रमाण में मिलें तो भी तंदुरुस्ती कायम रह सकती है यह, साफ बात है । लेकिन प्रत्यक्ष व्यवहारको दृष्टि से इन सारे लवणद्रव्योंका विचार करना जरूरी नहीं है । कॅलशियम ( चूना ) फॉस्फरस, लोह, और आयोडिन ये लवणद्रव्य यदि पूरे प्रमाण में आहार में से मिलते रहें तो वाकांके आपसे आप मिल जाते हैं ऐसा माना जा सकता है । इन चार लवणद्रव्योंकी कमी के कारण होनेवाले रोगोंका निदान शक्य हुआ है। बाकीके लवणद्रव्योंकी कमांके परिणाम के विषय में अभी .कुछ तय नहीं हो पाया है । हमें फॉस्फरस तथा आयोडिनको कमीका भी विचार करना अनावश्यक है। क्योंकि जिस आहारमेंसे हमें कॅल्शियम मिलता है उसीमेंसे फॉस्फरस मिल जाता है, ऐसा माना जा सकता है। सब्जी और फलोंमेंसे आवश्यक आयोडिंन मिल जाता है । इन दोनों लवणद्रव्योकी कमी प्रादेशिक कारणोंसे हुआ करती है ।
इसप्रकार हमें कमीकी दृष्टिसे कॅलशियम और लोहेकाही विचार करना होगा। आजकल बाजार में जो तैयार दवायें मिलती हैं उनमें लवणद्रव्यों में से ये दो दवाएं ही विषेश करके हुआ करती. हे
(४) दो महत्वपूर्ण लवणद्रव्य
१. कॅलशियम - सारे लवणद्रव्यों में कॅलशियम सबसे महत्वपूर्ण कवणद्रव्य है। शरीर के सारे अंगोंसे और उनकी सारी क्रियाओं के साथ
इसका सीधा संबंध है । ' शरीरके सारे लवणद्रव्योंमें सबसे ज्यादा प्रमाण कॅलशियमका है । हड्डियों में भी बड़ा हिस्सा कॅलशियमका ही है। इसी कारण जिनकी हड्डियाँ बना, करती हैं जैसे बढ़ने वाले बच्चों को तथा जिनके शरीरसे बच्चोंका शरीर बनता है उन माताओको कलशियमकी : काफी जरूरत होती है।
कॅलशियमका इतना अधिक महत्व होने के कारण ही यदि आहारमें कॅलशियम की कमी हो तो भाँति भाँतिक रोग हो जाते हैं। इस कमीका असर बढ़ते बच्चों में साफ साफ दिखाई देती है। कॅलशियम की कमी के परिणाम के विषय में डॉ० एक्रॉइड अपनी किताब में इंग्लैंडके आरोग्य विभाग के डॉक्टरका मत लिखते हैंः
" आहारकी कमीका असर तुरंत दीख सके ऐसी बचपनकी बढ़ती उम्र दरमियान यदि कॅलशियम की कमी रह जाती है तो सारे हड्डियों के ढाँचेका ही विकास व्यंगवाला हो जाता है । यह तो तुरंत और स्पष्ट दीखनेवाली बात हुई। किन्तु इसके अलावा कितने ही नुक्स खडे हो जाते हैं । अमुक प्रमाणमें कॅलशियम हो तो ही शरीर के अवयवोंको संकोच और विकसन होते रहता है । आहारमे कॅलशियम की कमी हो - तो खून कॅलशियम के प्रमाण कमी होकर अवयवोंके संकोच और विकसनकी शक्ति घट जाती है। ऐसा होनेसे अन्नको पचानेवाले, मलोत्सर्ग करनेवाले, खूनको बहता रखनेवाले, श्वासोच्छ्वास करनेवाले आदि अनको अवयव अपने अपने कार्य ठीक नहीं कर पाते। ऐसा भी माननेके "लिये आधार है कि कॅलशियमका प्रमाण घट जाने से कोयले के रूप में व्यवहृत होती शक्कर शरीरमें अच्छी तरह घुल नहीं पाती, और शकरका कोयलेके रूप में उपयोग होना भी बंद हो जाता है । शरीरमे फॉस्फरसका उपयोग भी कॅलशियमके कारण ही होता है 1 गलेमेकी प्राणग्रंथी ( थाईरॉईड ग्लँड्) कॅलशियम के कारण ही ठीकसे काम दे सकती है । याने कॅलशियमकी कमी हो तो फॉस्फरसका उपयोग न होगा और
प्राणग्रंथी भी अपना काम ठीकसे नहीं कर सकेगी और कॅलशियमकी मददसे ही शरीरके कोष खाद्यद्रव्योंमेंसे पोषण चूस सकते हैं। सारांश शरीरकी ऐसी एक भी क्रिया नहीं है जो कि कॅलशियम की कमी के कारण न बिगडे । इस तरह आहारमें एक ही व्यकी कमी के कारण शरीरमें कितना वडा सर्वव्यापी और कायमी असर हो सकता है !"
कॅलशियमके महत्वके विषय में अधिक कहने की जरूरत न होनी 4 चाहिये लेकिन हमारे आहारमें कॅलशियम की कमी सर्व सामान्य वाचत हो चुकी है ।
२. लोह -मनुष्य के सारे शरीर में मिलाकर कुल ३ ग्राम से भी कम लोह होता है लेकिन शरीर की दृष्टि से उसका महत्व उसके प्रमाण के हिसाब से कहीं अधिक है। लोह का वडा हिस्सा खून में मिला हुआ रहता है । खनका लाल रंग इसी लोइ के बदौलत होता है शरीर में लोह की कमी होनेपर उसका लाल रंग कम हो जाता है और आदमी फीका दिखाई देने लगता है; इसे ही हम पांडुरोग कहेत हैं । कॅलशियम की तरह लोह भी शरीरके हरेक कोषका अंग होकर रहता है और कोपोंकी अन्य क्रियाओं के साथ उसका घनिष्ट संबंध भी होता है ।
हम पहले देख चुके हैं कि लोह ही फेफडों में से प्राणवायुको सारे शरीरमें पहुंचाता है और सारे शरीर के कार्बन वायुको फेफड़ों से बाहर निकालता है। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि लोह ही मनुष्यको जीवित रखता है। उसकी कमी के हिसाब से ही शरीर कम ताकत समझा जायगा यह साफ बात है ।
लोहकी कमी के कारण होनेवाला पांडुरोग सर्वव्यापी सार्वत्रिक है । छोटे बच्चोंमें प्रायः ५० फी सदी बच्चोंको पांडुरोग होता है, क्योंकि एक साल तक बच्चों को केवल दूधपर ही रखनेकी लोगोंमें आदइसी हो गयी है । दूधमें लोह नहींके समान है याने दूधसेही पोषण पानेवाले बच्चोंको
लोह बिलकुल नहीं मिटता । बालकके जन्म के समय उसके शरीर में छः माह तक चल सके इतना लोह होता है । इसलिये आहार शास्त्री कहते हैं कि छः महिनेके बाद बाटकको अकेले दूधपर न रखकर अनाज खिलाना शुरू कर देना चाहिये । हमारे यहाँ छः महीने के बाद जो अन्न प्राशन विधि किया जाता है सो इस दृष्टि से संयुक्तिक ही है । इतनी छोटी उम्र में अनाज इजम न होनेका डर रखनेकी कोई जरूरत नहीं है।
इररोज थोडासा खून शरीरके अवयवोंके अंदर नष्ट हो जाता है और मैलके रूपमें बाहर निकल जाता है । इस खूनके साथही थोडासा लोभी बाहर निकल जाता है । यह कमी रोजानाके आहारमेंसे मिलानी होती है ।..
आंहारमेंसे रोजानांक घिसाईके जितना लोह शरीरको देना यह हुई सामान्य बात । मलेरिया तथा कृमि रोग ( Hook Worm ) जैसे रोगोंमें लोहका असामान्य प्रमाणमे नाश होता है । मलेरिया के मच्छरके जंतु खूनके कणों में घुसकर वहाँ बढने लगते हैं। उनके बढ़ने के कारण रक्त-कण फट जाते हैं और इसप्रकार बहुतसा रक्त नष्ट हो जाता है । ' बारबारके मलेरियाके बुखार में उपरोक्त कारण से पांडुरोग हो जाता कृमि रोगमें उसके सैंकडों जंतु आँतों में पड़े रहते हैं और खून चूसते रहते हैं । ऐसे अवसरोपर आहारमेंसे लोइ मिलाना कठिन हो जाता है, क्योंकि lon हा जात रोगके कारण हुई कमी केले आहार में से पूरण नहीं हो सकती । इसीलिये तो दवाके जरिये लोह लेना अच्छा समझा गया है । क्योंकि दवाके जरिये ही अच्छे प्रमाण में लोह लेना शक्य होता है ।
· पुरुषों के प्रमाणमे त्रियों की लोहकी जरूरत असामान्य होती है। क्योंकि उन्हें अपने शरीरमेंसे ही बच्चोंको लोह पहुंचाना होता है। इसलिये पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियोको पांडुरोग होनेका संभव अधिक होता है। उसमें भी मलेरिया या कृमि रोग हुआ हो तो पूछनाही क्या ? |
6a9ccea522975f03dc9f6082a2a74e28327f9cd4 | web | पेरिटोनियल कैंसर पेट के ऊपरी हिस्से के ऊतकों के पतली परत के अंदर विकसित होता है जो गर्भाशय, ब्लैडर व रेक्टम को प्रभावित करता है।
वैश्विक स्तर पर कैंसर मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष 10 मिलियन कैंसर के नए मामले सामने आते हैं। डब्ल्यूएचओ के नए अनुमानों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 10 भारतीयों में से एक को अपने पूरे जीवनकाल में कैंसर विकसित होने की संभावना है और 15 में से एक व्यक्ति की मौत कैंसर के कारण हो सकती है। डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट में भारत में कैंसर से संबंधित कुछ चौंकाने वाले आंकड़े भी सामने आए हैंः
कैंसर (Cancer) शरीर में होने वाली एक असामान्य और खतरनाक स्थिति है। कैंसर तब होता है, जब शरीर में कोशिकाएं (Cells) असामान्य रूप से बढ़ने और विभाजित होने लगती हैं। हमारा शरीर खरबों कोशिकाओं से बना है। स्वस्थ कोशिकाएं शरीर की आवश्यकताओं के अनुसार बढ़ती और विभाजित होती हैं। कोशिकाओं की उम्र जैसे-जैसे बढ़ती या क्षतिग्रस्त होती है, ये कोशिकाएं मर भी जाती हैं। इनकी जगह नई कोशिकाओं का निर्माण होता है। जब किसी को कैंसर होता है, तो कोशिकाएं इस तरह से अपना काम करना बंद कर देती हैं। पुरानी और क्षतिग्रस्त कोशिकाएं मरने की बजाय जीवित रह जाती हैं और जरूरत नहीं होने के बावजूद भी नई कोशिकाओं का निर्माण होने लगता है। ये ही अतिरिक्त कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विभाजित होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ट्यूमर (Tumour) होता है। अधिकतर कैंसर ट्यूमर्स होते हैं, लेकिन ब्लड कैंसर (Blood cancer) में ट्यूमर नहीं होता है। हालांकि, हर ट्यूमर कैंसर नहीं होता है। कैंसर शरीर के किसी भी हिस्से में विकसित हो सकता है। आमतौर यह आस-पास के ऊतकों (Tissues) में फैलता है। असामान्य और क्षतिग्रस्त कैंसर कोशिकाएं (Cancer cells) शरीर के दूसरे भागों में पहुंचकर नए घातक व मैलिग्नेंट ट्यूमर (malignant tumours) बनाने लगती हैं।
ब्रेस्ट कैंसर (Breast cancer), ओवेरियन कैंसर (ovarian cancer), स्किन कैंसर (skin cancer), लंग कैंसर (Lung cancer), कोलोन कैंसर (Colon cancer), प्रोस्टेट कैंसर (Prostate cancer), लिंफोमा (Lymphoma) सहित सौ से अधिक प्रकार के कैंसर होते हैं। इन सभी कैंसर के लक्षण और जांच एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। कैंसर का इलाज मुख्यरूप से कीमोथेरेपी (chemotherapy), रेडिएशन (Radiation) और सर्जरी द्वारा की जाती है।
अचानक वजन कम होना (Unexplained weight loss) : बिना कोई कारण नजर आए यदि आपका वजन तेजी से कम होने लगे, तो यह कैंसर के पहले संकेतों में से एक हो सकता है। अग्न्याशय (pancreas), पेट (Stomach cancer) या फेफड़ों में होने वाले कैंसर (Lung cancer) से पीड़ित लोगों में वजन कम होने की समस्या होती है। हालांकि, अन्य प्रकार के कैंसर से पीड़ित लोगों में भी वजन कम हो सकता है।
अत्यधिक थकान (Extreme fatigue) : सारा दिन थकान महसूस होना भी कैंसर के महत्वपूर्ण लक्षणों में शामिल है। ल्यूकेमिया (Leukemia), कोलन कैंसर (Colon cancer) होने पर थकान अधिक महसूस होती है।
गांठ (Lump) : त्वचा में किसी भी तरह की गांठ या लम्प नजर आए, तो संभवतः यह कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। स्तन कैंसर, लिम्फ नोड्स, सॉफ्ट ऊतक और अंडकोष (Testicles) में होने वाले कैंसर में आमतौर पर गांठ होते हैं।
त्वचा में बदलाव (Changes in the skin) : यदि आपकी त्वचा का रंग बदलकर पीला, काला या लाल हो गया है, तो ये कैंसर का संकेत हो सकता है। इसके साथ ही शरीर के किसी भी हिस्से पर हुए मोल्स या मस्से के रंग और आकार में बदलाव नजर आए, तो इसे नजरअंदाज ना करें। इस बात पर भी गौर करें कि कोई भी घाव ठीक होने में अधिक समय तो नहीं ले रहा है।
तेज दर्द (Accute pain) : तीव्र दर्द आमतौर पर हड्डी या वृषण कैंसर (Bone Cancers Or Testicular Cancer) का शुरुआती लक्षण हो सकता है, जबकि पीठ दर्द कोलोरेक्टल (colorectal), अग्नाशय (pancreatic) या डिम्बग्रंथि के कैंसर (ovarian cancer) के संकेत होते हैं। जिन लोगों को मैलिग्नेंट ब्रेन ट्यूमर होता है, उनमें तेज सिरदर्द होने की शिकायत रहती है।
बाउल मूवमेंट और ब्लैडर फंक्शन में बदलावः कब्ज, दस्त, मल में खून आना कोलोरेक्टल कैंसर के संकेत हो सकते हैं। पेशाब करते समय दर्द के साथ खून आना ब्लैडर (bladder cancer) और प्रोस्टेट कैंसर (prostate cancer) के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं।
लिम्फ नोड्स में सूजन (Swelling in lymph nodes) : तीन से चार सप्ताह तक ग्रंथियों में सूजन (Swollen glands) बने रहना ठीक नहीं। लिम्फ नोड्स के आकार में वृद्धि भी कैंसर का संकेत होती है।
एनीमिया (Anemia) : एनीमिया होने पर लाल रक्त कोशिका में भारी कमी आ जाती है। यह हेमटोलॉजिकल कैंसर का संकेत (haematological cancers) हो सकता है।
तंबाकू चबाना या सिगरेट पीना (Chewing tobacco or smoking cigarettes) : इन चीजों में मौजूद निकोटीन के सेवन से शरीर के किसी भी अंग में कैंसर हो सकता है। तंबाकू और धूम्रपान करने से आमतौर पर मुंह का कैंसर (Mouth cancer), फेफड़ों का कैंसर (lung cancer), एलिमेंटरी ट्रैक्ट (alimentary tract) और पैंक्रियाटिक कैंसर (Pancreatic cancer) होने का खतरा बढ़ जाता है।
जीन (Genes) : परिवार में यदि कैंसर होने की हिस्ट्री है, तो इस खतरनाक बीमारी के होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। कैंसर एक दोषपूर्ण जीन के कारण भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, स्तन कैंसर (Breast Cancer), वंशानुगत गैर पॉलीपोसिस कोलोरेक्टल कैंसर (Hereditary Non Polyposis Colorectal Cancer) आदि वंशानुगत (Hereditary) हो सकते हैं।
पर्यावरण में कार्सिनोजेन्स का होना (Carcinogens in the environment) : हम जो कुछ भी खाते या पीते हैं, जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उनमें कई ऐसे तत्व या पदार्थ मौजूद होते हैं, जो कैंसर होने की जोखिम को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। एज्बेस्टस (Asbestos), बेंजीन (Benzene), आर्सेनिक (Arsenic), निकल (Nickel) जैसे कम्पाउंड फेफड़े के कैंसर (Lung cancer) के अलावा कई अन्य कैंसर होने के जोखिम को बढ़ाते हैं।
फूड्स (Foods) : आजकल अधिकतर फल और सब्जियां कीटनाशकों से दूषित होते हैं, जिनके सेवन से शरीर पर अवांछनीय प्रभाव पड़ता है। दोबारा गर्म किए गए भोजन, अधिक पके हुए फूड्स, दोबारा गर्म किए गए तेल कार्सिनोजेनिक (Carcinogenic) हो जाते हैं। कल-कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों की वजह से प्रदूषित जल भी काफी नुकसानदायक होता है, क्योंकि इसमें भारी खनिजों (Heavy minerals) की मात्रा अधिक होती है।
वायरस (Virus): हेपेटाइटिस बी और सी वायरस लिवर कैंसर (Liver cancer) के लिए 50 प्रतिशत तक जिम्मेदार होते हैं, जबकि ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (Human Papilloma virus) 99. 9% मामलों में सर्वाइकल कैंसर (cervical cancer) होने के लिए जिम्मेदार होता है। साथ ही, रेडिएशन और सन एक्सपोजर भी कैंसर के जोखिम को काफी हद तक बढ़ाते हैं।
अधिकांश कैंसर में ट्यूमर होता है और इन्हें पांच चरणों (Stages) में विभाजित किया जा सकता है। कैंसर के ये सभी स्टेजेज दर्शाते हैं कि आपका कैंसर कितना गंभीर रूप ले चुका है।
स्टेज 0 (Stage 0) : यह दर्शाता है कि आपको कैंसर नहीं है। हालांकि, शरीर में कुछ असामान्य कोशिकाएं मौजूद होती है, जो कैंसर में विकसित हो सकती हैं।
पहला चरण (Stage I) : इस स्टेज में ट्यूमर छोटा होता है और कैंसर कोशिकाएं केवल एक क्षेत्र में फैलती हैं।
दूसरा और तीसरा चरण (Stage II and III) : पहले और दूसरे स्टेज में ट्यूमर का आकार बड़ा हो जाता है और कैंसर कोशिकाएं पास स्थित अंगों और लिम्फ नोड्स में भी फैलने लगती हैं।
चौथा चरण ((Stage IV) : यह कैंसर का आखिरी और बेहद खतरनाक स्टेज होता है, जिसे मेटास्टेटिक कैंसर (metastatic cancer) भी कहते हैं। इस स्टेज में कैंसर शरीर के दूसरे अंगों में फैलना शुरू कर देता है।
शारीरिक लक्षणों और संकेतों को देखते हुए डॉक्टर कैंसर का पता लगाने की कोशिश करते हैं। आपकी मेडिकल हिस्ट्री को देखने के बाद शारीरिक परीक्षण की जाती है। टेस्ट के लिए मूत्र (Urine), रक्त (Blood) या मल (Stool) का सैंपल लिया जाता है। कैंसर की आशंका होने पर एक्स-रे, कंप्यूटेड टोमोग्रैफी (computed tomography), एमआरआई, अल्ट्रासाउंड और फाइबर-ऑप्टिक एंडोस्कोपी परीक्षणों से आपको गुजरना पड़ सकता है। इन सभी टूल्स के जरिए डॉक्टर आसानी से ट्यूमर के स्थान और आकार के बारे में जान पाते हैं। किसी को कैंसर है या नहीं इसका पता बायोप्सी (Biopsy) के जरिए आसानी से चल जाता है। बायोप्सी में जांच के लिए ऊतक के नमूने (tissue sample) लिए जाते हैं। यदि बायोप्सी के परिणाम सकारात्मक आते हैं, तो कैंसर के प्रसार का पता लगाने के लिए आगे कई अन्य टेस्ट भी किए जाते हैं।
डॉक्टर कैंसर के प्रकार, स्थान या अवस्था के आधार पर इलाज का विकल्प (Cancer treatment) तय कर सकता है। आमतौर पर, कैंसर के उपचार में मुख्य रूप से सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडिएशन, हार्मोन थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट्स शामिल हैं।
सर्जरी (Surgery)
डॉक्टर सर्जरी के जरिए कैंसर के ट्यूमर, ऊतकों, लिम्फ नोड्स या किसी अन्य कैंसर प्रभावित क्षेत्र को हटाने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी डॉक्टर बीमारी की गंभीरता का पता लगाने के लिए भी सर्जरी करते हैं। यदि कैंसर शरीर के दूसरे अंगों में नहीं फैला है, तो सर्जरी इलाज का सबसे अच्छा विकल्प है।
कीमोथेरेपी (Chemotherapy)
कीमोथेरेपी को कई चरणों में किया जाता है। इस प्रक्रिया में ड्रग्स के जरिए कैंसर कोशिकाओं को खत्म की जाती है। हालांकि, उपचार का यह तरीका किसी-किसी के लिए काफी कष्टदायक होता है। इसके कई साइड एफेक्ट्स भी नजर आते हैं, जिसमें बालों का झड़ना मुख्य रूप से शामिल है। दवाओं को खाने के साथ ही नसो में इंजेक्शन के जरिए भी पहुंचाया जाता है।
रेडिएशन थेरेपी (Radiation therapy)
रेडिएशन कैंसर कोशिकाओं पर सीधा असर करता है और उन्हें दोबारा बढ़ने से रोकता है। इस प्रक्रिया में, उच्च ऊर्जा कणों (high-energy particles) या तरंगों (Waves) का उपयोग करके कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने की कोशिश की जाती है। कुछ लोगों को इलाज में सिर्फ रेडिएशन थेरेपी तो किसी-किसी को रेडिएशन थेरेपी के साथ सर्जरी और कीमोथेरेपी भी दी जाती है।
इम्यूनोथेरेपी (Immunotherapy)
इम्यूनोथेरेपी आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं से लड़ने में सक्षम बनाती है।
हार्मोन थेरेपी (Hormone therapy)
इस थेरेपी का उपयोग उन कैंसर के उपचार के लिए किया जाता है, जो हार्मोन से प्रभावित होते हैं। हार्मोन थेरेपी से स्तन और प्रोस्टेट कैंसर में काफी हद तक सुधार होता है।
पेरिटोनियल कैंसर पेट के ऊपरी हिस्से के ऊतकों के पतली परत के अंदर विकसित होता है जो गर्भाशय, ब्लैडर व रेक्टम को प्रभावित करता है।
एक शोध में साबित हुआ है कि विटामिन डी हमें कोलन कैंसर के खतरे से भी बचा सकता है।
कैंसर का पता शुरुआती स्टेज में लग जाए तो इसे ठीक किया जा सकता है। शुरुआत में पता चलने पर 90 फीसदी कैंसर के मरीज पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।
इरफान खान, सोनाली बेंद्रे और आयुष्मान खुराना की पत्नी के बाद अब नफीसा भी इस मुश्किल दौर से गुजर रही हैं।
ग्लोबोकैन 2018 की इंडिया फैक्ट शीट के अनुसार, 2012 में 56,000 मामलों से 2018 में होंठ और मुंह के कैंसर से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़कर 119,992 हो गई जो इन 6 वर्षों में 11. 4% बढ़ी है।
हाल में जो शोध हुआ है उसमेें यह दावा किया गया है कि दवाओं के उपयोग से सबसे अधिक जो बीमारी होने की संभावना होती है वह लैम लंग डिजीज होती है।
आंकड़ों के मुताबिक, 28 में से किसी एक महिला को लाइफ में कभी न कभी ब्रेस्ट कैंसर होने का अंदेशा रहता है।
आप जो भी खाते-पीते हैं, उसका सीधा असर आपके फेफड़ों पर भी होता है। ऐसे में धूम्रपान और गलत खान-पान के कारण फेफड़े बीमार भी हो सकते हैं।
विश्व स्वास्थय संगठन के एक सर्वे के अनुसार, तकरीबन 7. 6 मिलियन लोगों की मौत लंग कैंसर के कारण होती है।
जो लोग धूम्रपान अधिक करते हैं, उनमें फेफड़े का कैंसर होने की आशंका सबसे ज्यादा रहती है। यदि आप फेफड़ों के कैंसर से बचे रहना चाहते हैं, तो इसमें आपकी मदद करेंगे फल और सब्जियां।
सोनाली ने कहा कि कीमोथेरेपी की वजह से मेरी आंखों में अजीब सी दिक्कतें हो रही हैं और इस वजह से मैं सही तरीके से पढ़ नहीं पा रही हूं।
स्वाद के लिए खाई जाने वाली सुपारी सेहत के लिए नुकसानदायक भी साबित हो सकती है। इससे दांत और मसूड़े तो खराब होते ही हैं, साथ ही कई अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं।
भारत के अग्रणी स्वास्थ्य बीमा कंपनी रेलिगेयर हेल्थ इंश्योरेंस ने 2014 में 23% से स्तन कैंसर के दावों में वृद्धि देखी, जो कि कुल कैंसर के दावों में से 2018 में 38% थी। यह आंकड़ा बताता है कि केवल चार वर्षों की अवधि में स्तन कैंसर के दावों में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
फ्रिज में रखा हुआ आलू कैंसर के लिए जिम्मेदार होता है।
कार्यक्रम की थीम रही 'डर से स्वतंत्रता'
नियमित लाइफस्टाइल में कुछ चीजों को शामिल करना, स्तर कैंसर के खतरे को कम कर सकता है।
आलू का रंग अगर बदल जाए तो इसे खाने से बेहतर होगा फेंक देना।
अगर मरीज को पूरी तरह से सुनाई देना बंद हो गया है, तो यह कान के कैंसर का लक्षण हो सकता है।
कैंसर से पीड़ित मरीज को बहुत अधिक सकारात्मकता की जरूरत होती है। उसे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक मजबूती की आवश्यकता होती है।
वजन का तेजी से अचानक घटने लगना शरीर में कुछ गंभीर बीमारियों का शुरुआती संकेत हो सकता है।
हाल ही में हुए एक शोध की माने तो हाई प्रोटीन के लिए उपयोग में लाए जाने वाले सोया प्रोडक्ट्स ब्रेस्ट कैंसर के कारक के रूप में काम करता है।
महिलाओं का वजन ज्यादा होने या फिर मोटापा का शिकार होने पर 50 साल की उम्र से पहले ही कोलोन कैंसर होने की संभावना होती है।
माँ बनने वाली स्त्री के स्तनों में कई तरह के बदलाव आते हैं। यही कारण है कि ज़्यादातर स्तन कैंसर का पता एडवांस स्टेज में लगता है।
ब्रेस्ट कैंसर इस समय सबसे ज्यादा होने वाले कैंसरों में से एक है। इसको लेकर महिलाओं में जागरूकता की बेहद जरूरत होती है।
प्राथमिक लिवर कैंसर को हेपैटोसेल्युलर कार्सिनोमा (एचसीसी) नाम से भी जाना जाता है।
बढ़ती उम्र के साथ कुछ महिलाओं के ब्रेस्ट में छोटी-छोटी गांठ बनने लगती हैं। ज्यादातर महिलाएं इसे ब्रेस्ट कैंसर का संकेत समझ लेती हैं जबकि ऐसा नहीं है क्योंकि हर गांठ ब्रेस्ट कैंसर नहीं होता है।
डायट में कार्बोहाइड्रेड और शुगर की मात्रा अधिक होने से सिर और गले के कैंसर का इलाज करवा चुके मरीजों को दोबारा इस कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
अनुमान है कि वर्ष 2040 तक डायबिटीज से पीड़ित मरीजों की यह संख्या बढ़कर लगभग 64. 2 करोड़ हो सकती है।
एक रिसर्च के अनुसार स्मोंकिंग छोड़ने के 15 साल बाद भी लंग्स कैंसर होने का खतरा रहता है।
इस सर्वे से ये बात तो स्पष्ट हो जाती है कि अधिक उम्र की महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की संभावना तो है ही इसके साथ उनकी मौत की संभावना भी ज्यादा है।
कैंसर थेरेपी की यह खोज विश्व में सबसे अधिक लोगों के लिए खतरा बने कैंसर के इलाज में नया रास्ता दिखाती है।
भारत में हर साल स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं की संख्या में एक लाख में से तीस की औसत से इजाफा हो रहा है।
यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन 2 पत्ते तुलसी की चबाता है तो वह कई गंभीर रोगों से बचा रह सकता है। इतना ही नहीं तुलसी के सिर्फ 2 पत्तों को नियमित रूप से चबाने से महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर से बची रह सकती हैं।
दुनिया भर में कम से कम 10 करोड़ महिलाएं हर दिन हॉर्मोनल गर्भनिरोधक दवाओं का इस्तेमाल कर रही हैं।
|
4293bdd51001b8c3b7f17e8cc3c5b2b8f21317766e177c3cbe6b92ad05d424f0 | pdf | स्वच्छन्दतावादी आन्दोलन का सूत्रपात किया था। अमरीका के उन्नत सामाजिक विकास के कारण, आल्स्टन भी, अपने पूर्ववर्ती चित्रकारों की भाँति, यूरोप के समृद्ध दर्शन को ग्रहण करने के लिए तैयार था । थोड़े समय के भीतर ही कोलरिज ने लिखा कि केवल प्राल्स्टन ही ऐसा चित्रकार है जो प्रकृति की नवीन भावपूर्ण अभि व्यक्ति में सक्षम है। 'और इस प्रक्रिया में निष्प्राण प्राकृतियाँ अथवा बाह्य आकार नहीं बनते वरन् प्रकृति की सप्राणता का उद्घाटन होता है।' आल्स्टन की लालसा थी कि वह 'राइम ब्रॉफ़ व ऐन्शेन्ट मैरिनर' जैसी कविताओं द्वारा उद्भूत विस्मय को रंगों में व्यक्त कर सके, इसलिए उसने मस्तिष्क की तार्किक क्षमताओं को नजरअन्दाज़ करके सीधे संवेगों को स्पर्श करने का प्रयास किया। संगीतज्ञ जैसे स्वरों का उपयोग करता है उसी तरह रंगों के उपयोग द्वारा वह 'दृष्टि से परे की हजारों वस्तुओं को जन्म देना चाहता था। 1819 में उसने 'चांदनी में नहाया हुआ वृश्य' (Moonlit landscape ) चित्रफलक 12, का सृजन किया। इसमें एक रात के प्रशान्त सौन्दर्य का अंकन है, फिर भी प्रतीत होता है कि दृश्यचित्र की मानव प्राकृतियाँ किसी प्रसाधारण उद्देश्य से चल फिर रही हैं। अल्स्टन इससे प्रागे नहीं बढ़ता, मानो रहस्यात्मकता का बोध कराना ही उसका उद्देश्य हो : रहस्य का अर्थ तो हमें ही प्रयत्न करके समझना है। मुख्यतः रंगों के उपयोग द्वारा अद्भुत भावावेगपूर्ण प्रभावों की सृष्टि करना आल्स्टन की विशेषता थी । यही गुण देलाॉय जैसे परवर्ती फ्रांसीसी स्वच्छन्दतावादियों में भी आया ।
वेस्ट की अपेक्षा प्राल्स्टन अधिक प्रखर चित्रकार था और लगता था कि शीघ्र ही वह एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना लेगा । किन्तु यकायक उसमें स्नायविक विकार उत्पन्न हो गया और उसके व्यक्तित्व में क्रमशः परिवर्तन आने लगा । पहले तो उसकी कार्यक्षमता पर इस स्नायविक विकार का कोई प्रभाव न पड़ा। इतना अवश्य था कि अब उसने अपने दृश्यचित्रों के उत्तेजक प्रयोग कम कर दिये
1. बेलाक्रॉय, फडिनेंड विक्टर यूजीन ( 1798-1863 ) : फ्रांसीसी ऐतिहासिक चित्रकार । स्वच्छन्दतावादी धारा का एक नेता, प्रारम्भ में जेरीकॉल्त से प्रभावित, फिर स्वतन्त्र शैली का विकास । प्रसिद्ध चित्र : दांते और वर्जिल, किड्स का हत्याकांड, धर्मयोद्धाओं का प्रवेश आदि ।
और अपना अधिकांश समय प्राकृतियों के विशाल सम्पुंजनों में लगाना प्रारम्भ कर दिया था; ये सम्पुंजन वेनिस के महान् चित्रकारों की अनुकृतियाँ मात्र थे । फिर भी, 'ओल्ड टेस्टामेंट' की अलौकिक घटनाओं पर आधारित उसके चित्र इंगलैंड-वासियों की रुचि के अनुकूल थे; ये लन्दन में पुरस्कृत हुए और आल्स्टन को प्रसिद्धि मिली ।
1818 में वह मैसाच्युसेट्स लौट गया। उस समय उसके पास बेहशाजार की बाबत (Belshazzar's Feast ) नामक एक लगभग पूर्ण चित्र था । वह चित्र उस समय तक इतना प्रसिद्ध हो चुका था कि बोस्टन-वासियों ने उसे खरीदने के लिए 10,000 डालर (लगभग 47,600 रुपये) की राशि चन्दे से इकट्ठी कर ली थी। आल्स्टन को सन्तोष हुआ। उसने चित्र को अन्तिम स्पर्श देने के इरादे से काम प्रारम्भ किया, किन्तु परिणाम उल्टा हुआ । वह जितना अधिक श्रम करता गया, चित्र में उलझाव उतना ही बढ़ता गया। उसने लिखा है कि वह इस कदर परेशान हो चुका था जैसे कोई विशाल हाथ 'मेरे चित्र से बाहर निकलकर मुझे फर्श पर पीस डालने वाला हो ।' अनेक वर्षों तक उसकी अधिकांश शक्ति बेल्शाजार की दावत में लगती रही ; प्राखिरकार मृत्यु ने ही उसे इस काम से ने मुक्त किया । चित्र उस समय भी अस्पष्ट असम्बद्ध प्राकृतियों का समूह मात्र था। उसके एक घनिष्ट मित्र का कथन हैः 'प्राल्स्टन को जीवन भर यंत्रणा देने वाला यह चित्र एक भयानक कल्पना है, दुःस्वप्न है, मरीचिका है।'
अमरीका वापस पहुँचते ही श्राल्स्टन की सृजन शक्ति समाप्त हो गई थी; अतः बाद के प्रवासियों ने यही उदाहरण देकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि (हेनरी जेम्स के शब्दों में ) कला अमरीका के 'क्रूर वातावरण में मुरझा जाती है ।' किन्तु सचाई यह है कि आल्स्टन की परेशानियाँ विदेश में ही प्रारम्भ हो
1. हेनरी जेम्स (1843-1916) : अमरीका में जन्मा उपन्यासकार, जो अधिकतर यूरोप में रहा और अन्त में ब्रिटेन का नागरिक बन गया। उसके उपन्यासों की विशेषता है : इस सभ्य संसार के व्यवहारों और नैतिकता के सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्तरों का अध्ययन प्रमुख । कृतियाँ : डेजी मिलर, द बॉस्टोनियन्म, द पोर्ट्रेट भाफ ए लेडी, वाशिंगटन स्क्वायर, टर्न भाफ़ द आदि ।
चुकी थीं । वह स्वयं को यूरोपीय जीवन का एक अंग कभी भी न मान सका था इसीलिए वह लगातार अधिकाधिक उद्विग्न होता गया और अन्त में देशप्रेम के जोश में अमरीका वापस चला गया। और वहाँ पहुँचकर उसने पाया कि अमरीका की गति की दिशा उसके लिए सर्वथा अरुचिकर थी । निजी प्राय समाप्त हो गई तो उसे धन कमाने के लिए चित्र बनाने पड़े; फलतः उसने स्वयं को अपमानित महसूस किया और अमरीका की व्यापारी संस्कृति के प्रति उसमें द्वेष भावना जागी। उसने कहा कि युद्धों को छोड़कर अमरीकी इतिहास की कोई भी घटना चित्रांकन के योग्य नहीं है। मैसाच्युसेट्स के देहातों में वह स्पेनी युवतियों और खंडहरों-भरी इतालवी पहाड़ियों को अंकित करता । उसने लिखा है : 'मुझे अपने देश की कमियों का ज्ञान है और कोई भी अमरीकी मुझसे अधिक गहराई से इन्हें महसूस नहीं करता, तथा हमारी शासन प्रणाली के प्रति प्रास्था मुझसे कम किसी में नहीं है ।' सुपरिचित पुरानी दुनिया तथा नव-परिचित नई दुनिया दोनों से आल्स्टन का सम्पर्क सूत्र टूट गया था । जड़ें न रहीं और प्रतिभा स्वयं मुरझा गई ।
स्ट की कुंठा की कहानी ज्यों-ज्यों फैलती गई, त्यों-त्यों उसकी प्रसिद्धि बढ़ती गई । इस नये गतिशील राष्ट्र में स्वयं को अजनबी महसूस करनेवाले अनेक संस्कृति के दावेदार श्रमरीकी इस कल्पना मात्र पर मुग्ध थे कि कोई कलाकार इतना सुरुचि सम्पन्न है कि नयी हलचलों से भरे इस वातावरण में सृजन नहीं कर पाता । असफलता को संवेदनीयता का प्रमाण मान लिया गया था, इसीलिए सृजनशक्ति खो देनेवाले व्यक्ति को एकमात्र महान् अमरीकी चित्रकार मान लिया
स्टनका प्रिय शिष्य था सैम्युएल एफ़० बी० मॉर्स ( 1791-1872 ) । चित्रकार बनने के इच्छुक मॉर्म ने उस समय तक स्वप्न में भी न सोचा था कि कभी वह टेलीग्राफ का आविष्कार करेगा । मॉर्स के पिता एक प्रसिद्ध पादरी थे और अपने पुत्र के लिए चित्रकला को निम्न कोटि का व्यवसाय मानते थे । कारण, अमरीकी चित्रकार परम्परा से स्वयंप्रशिक्षित कारीगर-मात्र थे । लेकिन ऊँचे घराने का प्रल्स्टन चित्रकार बना, इस उदाहरण से पिता ने अपना विरोध त्याग दिया। आल्स्टन के साथ मॉर्स भी इंगलैंड गया । वहाँ से उसने प्रसन्नतापूर्वक लिखा
अभिमानी चित्रकार और अमरीको चित्रकला का ह्रास
कि अमरीका की भाँति इंगलैंड में चित्रकला को 'सिर्फ निम्न श्रेणी के लोगों का पेशा नहीं माना जाता ।' उसने यह भी लिखा कि 'सम्भ्रान्त महिलाएं बेझिझक सार्वजनिक रूप से मॉडेल बनती हैं, जिससे सिद्ध होता है कि कला को 'कितना स्पृहणीय स्थान प्राप्त है।'
मॉर्स के पूर्ववर्ती अमरीकी चित्रकारों की रुचि व्यक्तिचित्रण में सबसे अधिक थी किन्तु मॉर्स ने इसे ओछा काम कहकर तिरस्कृत किया : 'मैं अपनी कला को व्यापार बनाकर अपना अपमान कभी नहीं करूँगा । यदि मैं भले आदमी की भाँति नहीं जी सकता, तो भूखा मर जाना पसन्द करूंगा। मैं पन्द्रहवीं शताब्दी की गरिमा को पुनरुज्जीवित करनेवालों में से एक और राफेल, माइकेलांजेलो अथवा तीत्यां जैसा श्रेष्ठ कलाकार बनना चाहता हूँ ।' अपने प्रोटेस्टेंट धर्म के कारण वह धार्मिक विषयों को स्पर्श नहीं कर सकता था और अनगढ़ स्वदेश का दर्शन कराने वाले विचारों से दूर भागता था । इसीलिए उसने मृतप्राय हरक्युलीज ( The Dying Hercules) और ज्युपिटर का न्याय ( The Judgement of Jupiter) नामक चित्रों का सृजन किया। 1816 में धन की समस्या ने उसे प्रमरीका लौटने को बाध्य कर दिया। उसका ख्याल था कि अपने अज्ञानी प्रसंस्कृत देशवासियों के लिए वह संस्कृति की सौगात लेकर आया है, किन्तु देशवासियों ने
1. माइकेलांजेलो (1475 1564): सर्वाधिक प्रसिद्ध इतालवी मूर्तिकार, वास्तुकार, चित्रकार और कवि । संसार के प्रसिद्धतम कलाकारों में से एक । उसे पोप जूलियस द्वितीय का शानदार मकबरा बनाने का काम मिला लेकिन यह विचार कभी पूरा न हुआ । सिस्ताइन गिरजे की छत को उसने चित्रित किया; यही उसकी महानतम कृति है । इसमें सृष्टि के जन्म से लेकर प्रलय तक की 'जेनेसिस' की कथा सैकड़ों प्राकृतियों की एक डिजायन में प्रदर्शित है । 'मोजियों', 'गुलाम' भौर मेडिकी स्मारक की मूर्तियाँ उसकी प्रसिद्ध मूर्तियाँ हैं ।
2. तिजियानो वेसेली तोस्यां (1477-1576) इतालवी चित्रकार । चार्ल्स पंचम के व्यक्ति चित्र का अंकन और सम्राट द्वारा सम्मान । धार्मिक और ऐतिहासिक चित्रों तथा व्यक्तियों में रंगों की अप्रतिम प्रभविष्णुता तीत्यां के चित्रों की विशेषता है । प्रसिद्ध चित्र : वीनस और क्यूपिड, वोनस, एमैन्स का भोजन, साठ वर्ष की उम्र में आत्मचित्र, असी वर्ष की उम्र में आत्मचित्र ।
उसके रूढ़ोपम शैली के चित्रों को न खरीदकर अपनी रुचिहीनता का ही परिचय दिया - कम से कम उसका विश्वास यही था । और जब व्यक्ति चित्रण को ही उसे अपनी जीविका का साधन बनाना पड़ा तो वह बहुत निराश हुआ ।
मॉर्स व्यक्ति चित्रों को धन कमाने वाली चीजों से ज्यादा कुछ नहीं समझता था, जिनके लिए गम्भीर प्रयास की आवश्यकता नहीं। इसीलिए अपना ध्यान संगठन सम्बन्धी मामलों में लगाकर उसे खुशी ही मिली। 1800 तक अमरीका में ऐसी संस्थाएँ न थीं जहाँ पर चित्रकार अपना कार्य सोख सकें या अपने चित्रों का प्रदर्शन और सहकर्मियों के चित्रों का अवलोकन कर सकें । धनी नागरिकों ने प्रवश्य संगठित होकर धीरे-धीरे प्रादेशिक प्रकादेमियाँ बना ली थीं, जिनके लिए वे अनुकृतियाँ और मूर्तियाँ मँगाया करते थे और कभी-कभी अपनी रुचि के समकालीन प्रमरीकी चित्रों की प्रदर्शनियाँ भी आयोजित करते थे । किन्तु चित्रकारों और इन तानाशाह कला-पारखियों के बीच तनाव जन्मा और बढ़ने लगा। 1825 में कला के विद्यार्थियों ने अध्ययनाधिकार की माँग पेश की तो 'अमरीकी ललित कला अकादेमी के अध्यक्ष पद से जॉन ट्रम्बुल ने उत्तर दिया : 'दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते।' यह तनाव की चरम सीमा थी। अपने ऊंचे घराने के कारण जॉन ट्रम्बुल स्वयं को अपने साथी चित्रकारों से ऊँचा समझता था। मॉर्स भी उतने ही ऊँचे घराने का था, किन्तु अपने सहकर्मियों को ऊँचे उठाकर अपने स्तर पर लाना चाहता था। कुछ क्षुब्ध चित्रकारों का अगुआ बनकर मॉर्स ने 'नेशनल अकादेमी ऑफ डिज़ायन का संगठन किया। यह एक जनतन्त्रतात्मक संस्था थी, जिस पर चित्रकारों का अधिकार था । स्वयंभू कला-पारखियों की सहायता पर निर्भर न रहकर इस संस्था को कला में रुचि रखनेवाले किसी भी व्यक्ति का सहाय्य स्वीकार था। मॉर्स की अध्यक्षता में नेशनल अकादेमी आफ डिज़ायन' शीघ्र ही अमरीका की सर्वाधिक प्रभावशाली कला-सम्बन्धी संस्था बन गई।
मॉर्स की स्थिति अब सम्माननीय थी । प्रतः उसने अपनी कुंठाओं का प्रदर्शन दूसरे ढंग से किया । उसने कहा कि विदेशों में अध्ययन करने के पश्चात् स्वदेश वापस आने पर चित्रकारों को अमरीका के 'ठण्डे और बंजर रेगिस्तान में मरणान्त अकेलेपन और निराशा का अनुभव होता है क्योंकि उनके देशवासी
अभिमानी चित्रकार और प्रमरीकी चित्रकला का ह्रास
चाहते हुए भी उन्हें समझ नहीं पाते ।' अक्सर कोई 'घटिया दर्जे का चित्रकार', जिसे यूरोप में कोई पूछता तक नहीं, श्रमरीकियों को अच्छा लगता है और श्रेष्ठतर चित्रकारों पर हावी हो जाता है। इस बात से एक कला-पारखी को बहुत बुरा लगा और उसने आक्रोशपूर्वक दावा किया कि कला पारखी भी विदेशों में अध्य यन कर चुके हैं और उन्हें इतनी आसानी से बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। विवाद जारी रहा, किन्तु दोनों पक्ष इस बात पर एकमत थे कि अमरीकी रुचि 'स्वदेश - जन्य' नहीं है ।
वर्षों की कुंठा के बाद मॉर्स की इच्छा पूरी हुई। उसे एक विवरणात्मक चित्र बनाने का काम मिला । आतुरतापूर्वक उसने ब्रश उठाये, किन्तु फिर रख दिए । उसे अनुभव हुआ कि अपने गुरु आल्स्टन की भाँति वह भी मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अन्धी गली में है। वह अपने महान् चित्र का प्रारम्भ तक न कर सका और ग्रन्त में उसने चित्रकला से ही विराग ले लिया । दुःखी मन से उसने कहा : 'चित्रकला बहुतों की निष्ठुर प्रेमिका रह चुकी है, लेकिन मुझे तो उसने निर्दयतापूर्वक ठुकराया। मैंने उसे नहीं छोड़ा, वह मुझे छोड़ गई ।' उसका विश्वास था कि उसके 'अत्यधिक उच्च आदर्श ही उसकी असफलता के कारण बने ।
अमरीकी जीवन को निन्दनीय पदार्थवादी ठहराते हुए मॉर्स अमरीकियों का सुधार करना और इस उद्देश्य से धुंधले अतीत को अमरीकियों पर लादना चाहता था । लेकिन कला से नाता तोड़ने के बाद वह सर्वाधिक पदार्थवादी व्यवसाय - आविष्कार - में लग गया । और असफलता तब सफलता में बदल गई; उसने टेलिग्राफ का आविष्कार किया। उसके लफायेत ( Lafayette ), चित्रफलक 14, से स्पष्ट है कि आविष्कारों की भाँति चित्रकला को भी उसने समान व्यावहारिकता से अपनाया होता तो वह किस तरह के चित्र बनाता । व्यक्ति चित्र को भव्य बनाने के उद्देश्य से उसने अनेक रूपक एक साथ उपस्थित कर दिये -सूर्यास्त का आकाश, बाड़ा, बस्ट, बरतन, सूर्यमुखी श्रादि । किन्तु इन रूपकों ने चित्र की शक्ति को और कम कर दिया, क्योंकि व्यक्ति चित्र की शक्ति यथार्थ चित्रण पर निर्भर करती है, काल्पनिक जगत् के अंकन पर नहीं । किन्तु इतना प्रवश्य है कि इस चित्र में परिवेश जितना भड़कीला है, प्रधेड़ नायक की प्राकृति प्रौर मुख के
अंकन में उतनी ही सक्षमता और सहजता है । अमरीका में अनेक स्वप्नदर्शी कलाकार हुए हैं, लेकिन मॉर्स वैसा न था; उसके आविष्कारों से स्पष्ट है कि वह वास्तव में यथार्थवादी था । अपने प्राडम्बरपूर्ण सिद्धान्तों के कारण ही उसने मूर्त संसार को चित्रित नहीं किया, वरना वह शायद एक महान् चित्रकार होता ।
अनेक प्रतिभा के विनाश का एकमात्र कारण यह धारणा है कि कला एक चाय का प्याला है जिसे अँगुलियाँ टेढ़ी किये बिना उठाया ही नहीं जा सकता। जॉन वाण्डरलीन (1775-1852 ) एक होनहार चित्रकार था । वह लन्दन या रोम के बजाय पेरिस में अध्ययन करनेवाला पहला अमरीकी था। उसने निरावरण चित्रों में, जो इंगलैंड में उपेक्षित और अमरीका में गर्हित थे, कमाल हासिल किया । उसकी कृति एरियाद्ने (Ariadne ), चित्रफलक 13 में, एक निरावरण 'क्लासिकल' नायिका अपने प्रेमी के चले जाने के बाद सोई पड़ी है। 1815 में वह इसे लेकर श्रमरीका पहुँचा तो लोगों को बहुत बुरा लगा। किन्तु लोगों में श्रौचित्य की अनुचित धारणा उसकी असफलता का प्रमुख कारण न थी । वह अमरीकी धरती पर कला के उन बीजों को रोपने के लिए कृतसंकल्प था जो यूरोप में सदियों पहले पुष्पित हो चुके थे। ये बीज नहीं उगे तो उसने ऐसे बीजों की तलाश तक न की जो उस धरती पर उग सकते । इसके विपरीत उसने घोषित कर दिया कि धरती ही बंजर है। उसने कहा : 'कोई अनाड़ी चित्रकार ही अमरीका में कला-साधना कर सकता है।'
उन दिनों अमरीका की मिसीसीपी श्रौर श्रोहायो नदियों की घाटियों में एक महान् कार्य सम्पन्न हो रहा था। पहले बन्दूकधारी अन्वेषक प्राए; फिर कुल्हाड़े लिये आदमी; तब लकड़ी के घर बनानेवाले श्रादमी । जहाँ कभी सिर्फ पत्तियों की सरसराहट सुनाई पड़ा करती थी, वहाँ पर शीघ्र ही एक नगर बस गया। धन और विचारों का प्रवाह पूर्व की ओर होने लगा ; धन से लोगों की तिजोरियाँ भरीं और विचारों ने उनके मस्तिष्कों को उत्तेजित-स्तम्भित कर दिया। इस इलाके के निवासी ऐण्डू जैकसन क्रमशः राष्ट्रपति पद की ओर अग्रसर थे। किन्तु चित्रकार तो हरक्युलोज़ के स्वप्न ले रहे थे, उन्हें सीमान्त के जंगलों के लकड़1. हरक्युलोज : यूनान का महान् पौराणिक योद्धा । विलक्षण शक्ति का धनी । अनेक असम्भव कार्यों को सम्पन्न करने में सफलता प्राप्त की। देवताओं के समान पूज्य ।
हारे पॉल बन्यन को देखने तक की फुर्सत न थी ।
विदग्ध कलाकारों में से केवल व्यक्ति चित्रकारों ने अमरीका के किसी पक्ष का चित्रण किया । उनका व्यापार खूब चलता था, क्योंकि व्यक्ति पूजा ही उस समय भी अमरीका का राष्ट्रीय गुण था। फिर भी, मॉर्स की तरह उन्होंने भी मान लिया था कि व्यक्ति चित्रण कला का निम्नतम प्रकार है क्योंकि व्यक्तियों में श्रादर्श का नहीं वरन् यथार्थ का चित्रण होता है। वे अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करना चाहते थे, इसलिए व्यक्ति चित्र के लिए बैठनेवाले व्यक्ति को खुश करना उन्हें बुरा लगता था। मैथ्यू हैरिस जूएट (1788-1827) और रेम्ब्रान्त पील (17781860) जैसे शिल्पियों ने यथार्थवादी प्रनलंकृत व्यक्ति चित्रों में अमरीकी समानतावाद की अभिव्यक्ति तो की, किन्तु कलात्मक उपलब्धि के लिए प्रयास करना उन्हें भी समय का अपव्यय लगता था । उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के व्यक्तिचित्र ऐसे तथ्यों के सशक्त और अक्सर कठोर चित्रण हैं, जो परस्पर संयुक्त होकर किसी एक प्रखण्ड बिम्ब ( unified image ) की सृष्टि नहीं करते ।
टॉमस सली (1783-1872 ) एक अपवाद था । यथातथ्य से अधिक उसका प्रयास था चित्रमयता (pictorial effect ) उत्पन्न करना, किन्तु उसमें भी गम्भीरता का प्रभाव था । बायांका की भूमिका में फैनी केम्बिल (Fanny Kemble as Bianca ), चित्रफलक 16, को पहली बार देखते ही हम मुग्ध हो जाते हैं, किन्तु दुबारा देखने पर रीतापन ही दीख पड़ता है। फैनी केम्बिल को महान् अभिनेत्री बनानेवाला गुण था भावनात्मक गाम्भीर्य, किन्तु श्रेष्ठ प्रकाश-संयोजन प्रौर साहसिक ब्रश संचालन के बावजूद सली इस गाम्भीर्य को नहीं पकड़ सका। सली की कला अत्यधिक सतही है इसीलिए उसे सुन्दर नहीं कहा जा सकता; वह बस लुभावने चित्रों का चितेरा था ।
प्रमुख चित्रकारों को अपने औपनिवेशिक पूर्ववर्तियों के प्रति तनिक भी रुचि न थी । अमरीकी व्यक्ति चित्रण - परम्परा का वयोवृद्ध चित्रकार गिल्बर्ट स्टुअर्ट
1. पॉल बन्यनः अमरीकी लोककथाओं का एक प्रसिद्ध नायक । विलक्षण बुद्धि का धनी । अनेक कथाओं में बन्यन के अद्भुत कारनामों का वर्णन है; एक कथा में तो उसने एक नदी को काट दिया था ।
हमेशा कॉप्ले के बोस्टनी चित्रों का मजाक उड़ाता था; उसका कहना था कि कॉप्ले के मांस के रंग 'कमाए हुए चमड़े' जैसे हैं । 1810 में 'सोसायटी ऑफ द आर्टिस्ट्स ऑफ यूनाइटेड स्टेट्स' ( अमरीकी चित्रकार संस्था ) का संगठन हुआ, तो एकत्र चित्रकारों ने एकमत होकर स्वीकार किया किया कि वेस्ट के यूरोप जाने पर ही अमरीकी कला का प्रारम्भ हुआ। अमरीका के सबसे अधिक ख्यातनामा चित्रकारों ने जानबूझकर स्वयं को स्वदेश की मिट्टी से विच्छिन्न कर लिया ।
इसके बावजूद, निम्नतर आर्थिक स्तर पर औपनिवेशिक कला पनपती रही। अक्सर घुमक्कड़ चित्रकार सीधे-सादे नागरिकों के यहाँ जा पहुचते थे प्रौर लोग सभी प्रकार के चित्र खरीद लेते थे । कभी-कभी तो चित्रों का मूल्य अंशतः निवास, भोजन और शराब से भी चुकाया जाता था। इस तरह बने चित्रों को अमरीकी प्राद्य चित्र ( American Primitives ) कहा जाता है और आजकल संग्रह - कर्ताओं को इनके संग्रह की धुन है । इस प्रकार के चित्रों का एक श्रेष्ठ उदाहरण है कनेक्टीकट के इरास्टस सैलिसबरी फील्ड (1805-लगभग 1900 ) का नीलवसन बालक (The Blue Boy ), चित्रफलक 15 इस चित्र का अंकन उन्नीसवीं शताब्दी के पाँचवें दशक में हुआ था, किन्तु शैली की दृष्टि से यह ऐन पालडं (चित्रफलक 4) जैसे बहुत पहले के चित्रों के समान है। यह समानता कितने अंश तक सीधे प्रभाव का परिणाम है और कितने अंश तक स्वतन्त्र विकास है, यह बता सकना प्रसंभव है । हर समय और हर स्थान के स्वयं शिक्षित चित्रकारों के काम करने का ढंग एक-सा होता है। वे बच्चों की तरह, पहले टिपाई करते हैं और फिर रंग भर देते हैं । वे प्रकृति की जटिलता में से कुछ विवरण, जो उन्हें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मालूम पड़ते हैं, चुन लेते हैं और फिर उन्हें सपाट प्राकृतियों के रूप में अंकित कर देते हैं। कैनवस पर साथ-साथ अंकित ये प्राकृतियाँ देखने में अच्छी लगती हैं; अच्छे लगने का कारण यथार्थ अंकन नहीं वरन् पैटनों में समंजन हैं और पैटर्न प्राकारों की पुनरावृत्ति पर निर्भर हैं। यही कारण है कि नीलवसन बालक के कान, जो श्रादमी के कानों से अधिक किसी रोमन ग्राम-देवता के कानों जैसे हैं, उसके वस्त्रों के फैलाव को और अधिक बढ़ाते हैं।
औपनिवेशिक काल में चित्रकार अलग-अलग रहने के कारण आदिम या |
438695b28b6866106fb3b78f9095c781f7603ce6f0a8d1d36d0f42f84cfa37f8 | pdf | घियो विश्वा विराजति । -ऋ. वे. १ - ३-१२
इति कर्तव्य है कि स्वसंपत्ति का यथायोग्य विनिमय करने के बाद दान के रूप में अन्य से संविभाग करना चाहिये ।
आपका वेद - प्रचार-प्रसार कार्य की अविरत धारा विश्व के कोने-कोने में बहती भूमि को पावन करती रहती है । कलकत्ता के मारा विश्वनाथ मंदिर में भगवान् वेद का पारायण काशीजी के विद्वानों द्वारा प्रारंभ हुआ । यह पारायण क्या, यह तो वेद कल्लोलिनी गंगा का सुमधुर घोष, या द्विज - मधुरों के गुंजारव में विश्व वाटिका में वसंत का संदेश, या विरही प्रणयिनी को पियु- मिलन की आशा देती कोयल की कुहुक है ! कि या फिर अपने प्रियतम का उद्गार । इस ऋचा रूपी सुरभित सुमनावली से सम्मानित, सत्कारित करती देवांनना की यह प्रशस्ति है, क्या उपमाएं दी जाय ।
वस्तुतः श्री कृष्ण मुखारविन्द से निर्झरित वेद, विश्व संगीत स्वरूप ही हैं, क्योंकि वे स्वयं 'राग' या संगीत ही हैं। दूसरे अर्थ में राग या प्रेम स्वरूप होने से भी, समस्त विश्व उनकी प्रेम - परिमल से, प्रेम - रंग-तरंग से ही आप्लावित है ।
ता. १४ फरवरी को महाशिवरात्रि का उत्सव खूब धूमधाम से मनाया गया । ता. १६ फरवरी को सूर्यग्रहण था । उसका असर वैज्ञानिक दृष्टि से इतना खतरनाक था, कि बहुत दिन पहले से ही, वर्तमान पत्रों तथा डॉक्टरों ने जनता को सूचना दे रखी थी कि ग्रहण के समय कोई भी व्यक्ति उसकी ओर दृष्टि न करे, क्योंकि ऐसा करने से दृष्टि चली जाने की संभावना थी। उस समय दरम्यान खाना-पीना तो प्रथम भी वर्ज्य ही होता है । ता. १५ को आप देहली से मोटर में वृंदावन गये । भाई भूरामल अग्रवाल की ओर से, श्रौत - मुनि निवास में वेद - पारायण शुरू किया गया । उसकी पूर्णाहुति ता. २५ फरवरी को हुई । उसी दिन संस्कृत विद्यालय का शिलान्यास भाई भूरामलजी द्वारा हुआ । दूसरे दिन अखंड कीर्तन तथा होलो उत्सव प्रारंभ हो गया ।
स्वामी रामानंदजी की जन्मजयन्ती
फाल्गुन शुल्क त्रयोदशी को मेरे दादागुरु ब्रह्मलीन स्वामी रामानंदजी महाराज की जन्म जयंति थी । उस दिन प्रतिवर्षानुसार, भक्त - संत- मंडल ने उनके चित्र का अर्चन पूजन कर, भावपूर्ण कीर्तन किया । प्रसिद्ध कीर्तनकार कृष्णप्रेमी श्री दलीलीजी खलीली राम पञ्चषानी, गंगारामजी के कीर्तन तो ब्रजभूमि की श्रीकृष्ण लीलाओं को मूर्तिमान कर देता है । आपने कईबार 'कीर्तन' शब्द को अति सरल सुंदर सारपूर्ण भाव बताया कि कीर्तन शब्द को उलटा करने से 'नर्तकी' बनता है, जिसका अर्थ है
माया । अतः कीर्तन करने से माया नर्तकी की चूड में फँसा हुआ जीव, भगवद्रस में डूब कर लाख चौरासी के चक्कर से छूट जाता है, क्योंकि भगवान के चरण कमल में प्रविष्ट सुभागी जीव को माया कदापि स्पर्श नहीं कर सकती, यह नितान्त सत्य है । एक बार आपने गुरु का महत्व दर्शाया था कि
गुरु का महत्त्व
गुरु शब्द सांसारिक प्रक्रिया में आज रूढ़ हुआ है। जो पढ़ाता है वह हमारा शिक्षक याने गुरु है । शाला में शिक्षक गुरु, संगीतशाला में उस्ताद । उसी प्रकार सब लोग गुरु का अर्थ मानकर चलते हैं। गुरु सांसारिक बातें सिखायें और उनके द्वारा उदरपूर्ति हो ऐसा एक भाव संस्कारवश समाज में दृढ हो रहा है । लेकिन यह तो पानी से भी पतला अर्थ है ।
गुरु वास्तव में सांसारिक बातें नहीं, किन्तु पारमार्थिक रहस्यों के उद्घाटन के लिये होता है । संसार की जाल से माया एवं ममता से, आवागमन के चक्कर से जो हमें छुड़ाये वही सच्चा गुरु है । हम तो अपनी अहंकार ग्रंथि के साथ संत या गुरु के पास जाते हैं। कभी कभी आर्थिक या सांसारिक बातों से महापुरुष को तंग करते हैं । यह उचित नहीं है । सच कहा जाय तो आत्मार्थी शिष्य के अभाव में महान गुरु के जीवन में रिक्तता बनी रहती है । जब आत्मजिज्ञासु आता है, तब सहस्रसूर्य की भाँति ज्ञानप्रकाश फैला कर जन्म जन्म के अज्ञान - अन्धकार को नष्ट करने में गुरु अपना सच्चा सामर्थ्य दिखलाते हैं । कमी हमारी है । हम आत्मकेन्द्री एवं स्वार्थी बनकर जाते हैं और परिणामतः सच्चा ज्ञान नहीं पा सकते
। उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई दे, उसमें सूर्य का क्या कसूर ? यहाँ तो उल्लू आंखें बन्द कर लेता है। हम भी उल्लू की भाँति सद्गुरु पाकर भी मुक्ति के दर्शन नहीं कर पाते हैं ।
होली उत्सव : 'सजना' की होली
ता. २ मार्च को होली - उत्सव सानंद मनाया गया। उस दिन मुख्यतया व्रज में एवं अन्य स्थानों में भी सब नर - नारी, रंग की पीचकारियाँ भरभर, एक दूसरे पर छाँट कर, बहुत ही मस्ती में साग दिन झूमते रहते हैं । बड़ा आनंदोत्सव होता है यह । सजन कसाई परमात्मा के परम भक्त थे । श्रीकृष्ण के साथ उनकी हार्दिक श्रीति थी। परंतु वे होली खेलने नहीं जाते थे । एक दिन प्रभु ने उससे पूछा, 'सजना' क्या आज मेरे साथ होरी नहीं खेलोगे ? तो सजना ने
क्या ही सुंदर भावपूर्ण प्रत्युत्तर दिया; कहा, 'मेरे जीवनधन ! आपके साथ अवश्य खेलूँगा । और इन क्षुल्लक बनावटी रंगों से क्या होली खेलूँगा ! मैं तो अपने रक्त की एक एक बूँद से आपके साथ अवश्य खेलूँगा और एक दिन सचमुच ही अकस्मात् एक घर की दीवार उनके सिर पर टूट पड़ी और सजना का सिर फूट जाने से उनके प्राणपखेरू प्रभु की अनंत ज्योति में मिल गये । धन्य है ऐसे अद्भुत प्रेमी !
वृन्दावन में नेत्र यज्ञ
ता. ९ मार्च को श्रौत मुनि आश्रम में नेत्र - शिविर लगाया । भिवानी हरियाणा आदर्श नेत्र अस्पताल के डॉ. मदन मोहन गुप्ता को दस दिन के लिए आश्रम में नेत्र रोगियों की चिकित्सा तथा इलाज के हेतु बुलाया गया । दरम्यान १३० नेत्र ओपरेशन, ७०० को चश्मा, सबको दूध भोजन तथा औषधि निःशुल्क दिये गये । इतना ही नहीं, उनको वापस जाने का किराया तक दिया गया । वृन्दावन निवासी श्री नानकचंद द्वारा यह अति श्लाघनीय परमार्थ कार्य नियोजित था एवं श्री परसराम गुप्ता ने इसमें पूरी तरह सहायक बन, उसको सफल बनाया । आजकल ऐसे अनेक मानवतापूर्ण कार्य, भारत में विभिन्न स्थानों पर दानी सज्जनों एवं परोपकार-रत डॉक्टरों के साथ अनेक सेवाधारी व्यक्तियों के सहयोग से हो रहे हैं। यह बड़े आनंद का विषय है । दूसरे दिन ता. १० मार्च को गुरु गंगेश्वर देवकी भोजराज महाविद्यालय का उद्घाटन, मथुरा जिल्लाधीश श्री वी. डी. माहेश्वर द्वारा, पूज्य स्वामी श्री अखंडानंदजी की अध्यक्षता में किया गया, जब वहाँ के सभी प्रतिष्ठित संत - विद्वान उपस्थित थे । श्रीमती देवकी बहन भोजराज आपके परम पुराने भक्तों में से एक थीं। उनकी इच्छा के अनुसार, इस कन्या महाविद्यालय तथा होमयोपैथिक औषधालय की स्थापना की गई । साथ साथ, ता. १४ मार्च को उपर्युक्त औषधालय में एलोपैथिक दवाखाना भी शुरू किया गया, ताकि उभय प्रकार के चिकित्सक प्रयाग हो सके । इस प्रकार तीन सप्ताह श्री वृन्दावन में रहकर, ता. १७ मार्च को रामनवमी उत्सव के लिये आप दिल्ली पधारे ।
चैत्रो नवरात्र प्रारंभ
रामनवमी उत्सव निमित, गंगेश्वर - घाम आश्रम में १०८ रामायण नवाह पारायण एवं साथ ही भगवान् - वेद का पारायण भी प्रारंभ हो गया । सायंकाल श्रीमती रामादेवी एवं कृष्णदासजी के प्रवचन हुए । ता. २३ मार्च को पटेल नगर शक्तिबाग से भगवगन् - त्रेइ तथा भगवान राम की शोभा यात्रा खूब धूमधाम से निकलकर, गंगेश्वर धाम में पूर्ण की गई । ता. २४ मार्च, रामनवमी के दिन,
रामायण नवाह तथा वेद पारायण की पूर्णाहुति की गई । उस उत्सव के साथ, ब्रह्मलीन स्वामी सर्वांनंदजी महाराज को जन्म जयंति मनाई गई । दूसरे दिन, यज्ञ तथा यमुना स्नान हुआ । ता. २७ मार्च को कश्मीर के डॉ. करणसिंहजी आश्रम में आपके दर्शनार्थ पधारे एवं वेद में नवधा भक्ति इस विषय पर प्रव चन किया ।
वेद में नवधा भक्ति
भगवान् से भक्ति की याचना करते हुए वेद कहता है : 'तस्य ते भक्तिवांसः स्याम'
अर्थात् हम सदा पूर्वोक्तगुण विशिष्ट आपकी अतिशय भक्ति से युक्त रहें ।
भगवान् श्रीकृष्ण ने भी गीता में भगवत्प्राप्ति के लिए भक्ति की साधना का अनेक प्रकार से उपदेश दिया है - सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः ( ६ - ३१), श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ( ६ - ४७ ), चतुर्विधा भजन्ते माम् (७-१६), भजन्ते मां दृढव्रताः ( ७ - २८), भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव ( ८ - १०), भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया (८ - २२), भजन्त्यनन्यमनसः (९ - १३), नमस्यन्तश्च मां भक्त्या (९-१४ ), पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति (९ - २६), ये भजन्ति तु मां भक्त्या (९ - २९ ), भजते मामनन्यभाक् (९-३० ) न मे भक्तः प्रणश्यति (९ - ३१), अनित्यममुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ( ९ ३३ ), इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः (१०-८), तेषां सततयुक्तनां भजतां प्रीतिपूर्वकम् (१० - १० ) , भक्त्या त्वनन्यया शक्यः (११-५४), मद्भक्तः सङ्गवर्जितः (११-५५), यो मद्भक्तः स मे प्रियः (१२-१४-१६), भक्तिमान् यः स मे प्रियः (१२ - १७), भक्तिमान् मे प्रियो नरः (१२-१९), भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः (१२-२०), भक्तिरव्यभिचारिणी (१३ - १० ) , भक्तियोगेन सेवते (१४-२६), स सर्वविद् भजति माम् ( १५ - १९ ), मद्भक्तिं लभते पराम् ( १८ - ५४), भक्त्या मामभिजानाति (१८-५५)।
श्रीमद्भागवत आदि पुराणों में भक्ति के नौ भेद बताये गये हैं -
श्रवण कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥
एक ही मन्त्र में नवधा भक्ति
वेद में भी विभिन्न स्थलों पर भक्ति के इन नौ भेदों का पृथक्-पृथक् वर्णन तो है ही, जिसका दिग्दर्शन आगे किया जायेगा, यहाँ भगवान् वेद का वह प्राचीन मन्त्र उद्धृत किया जाता है जिसमें भक्ति के उपर्युक्त सभी प्रकारों का अद्भुत कौशल के साथ एकत्र ही समावेश किया गया हैभद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
अर्थात् (देवाः !) हे देवगण ! हम, ( भद्रम् ) भजनीय, सेवनीय, आराधनीय, विद्वानों की 'कल्याणानां निधानम्' इस उक्ति से कल्याणमय तथा 'मङ्गलं मङ्गलानाम्' इस उक्ति से परममङ्गलमय परमात्मा को, (कर्णेभिः शृणुयाम कानों से सुनें अर्थात् उनके दिव्य गुण, कर्म और चरित्र को सुनें । तात्पर्य यह है कि हमारी श्रोत्रेन्द्रियाँ निरन्तर हरिकथा - श्रवण में संलग्न रहें । ( यजत्राः) भगवान् के अर्चक हम भक्त, (स्थिरैः अङ्गैः) कर-पदादि अंगों से, तथा (तनूभिः) अवयवी शरीरों से संयुक्त होकर, (तुष्टुवांसः) भगवत्कीर्तन करते हुए, (देवहितम्) देव के, भगवान् के हितार्थ, भगवत्प्रीत्यर्थ, ( यत्, इण्र, गतौ शतरि रूपम्, आयुः) प्रवहमान जीवन को, (व्यशेम ) प्राप्त हों अर्थात् हमारे जीवन का लक्ष्य लौकिक स्वार्थसिद्धि नहीं अपितु भगवान् की सेवा द्वारा उनकी प्रसन्नता प्राप्त करना हो । इस प्रकार श्रवण आदि साधनों से भक्ति के अनुष्ठान के फलस्वरूप नैसर्गिक प्रेम का उदय होने पर, (अक्षभिः) नेत्रों से, (पश्येम) अपने आराध्यदेव भगवान् श्रीकृष्ण का दर्शन करें ।
इस मन्त्र में प्रयुक्त 'श्रृणुयाम' पढ़ से श्रवण का, 'तुष्टुवांस : ' से कीर्तन का, 'देवहितम्' और 'आयु' से आत्मनिवेदन का तथा 'यजत्रा : ' से अर्चन भक्ति का प्रतिपादन हुआ है । इसी प्रकार 'स्थिरैरङ्गैः' पदों से परमात्मा की स्थावर मूर्तियों, मन्दिरों में स्थापित प्रतिमाओं तथा जंगममूर्ति महात्माओं की पादसेवा सूचित की गयी है । भाव यह है कि भगवान् की स्थावर जंगम द्विविध मूर्तियों की पाद-सेवा में ही हाथों की सार्थकता है । मस्तक भगवान् के निवासाश्रय सम्पूर्ण प्राणियों की वन्दना करके अपने को सार्थक करें और यह शरीर प्रभु के दास्य एवं सख्य भाव का साधन हो । 'शरीर' पद मन का भी उपलक्षक है, अतः इससे मानस स्मरण भक्ति भी प्रतिपादित होती है । इस प्रकार भक्ति के सभी प्रकारों का निर्देश इस मन्त्र में
इसी प्रकार शुक्ल यजुर्वेद का एक मन्त्र देखिये जिसमें भक्ति के श्रवणकीर्तनादि सभी भेद एक साथ दृष्टिगोचर होते हैं -
तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुकमुच्चरत् । पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं शृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ॥ - - शु० यजु० ३६ - २४
प्रकाशदाता सूर्य प्रभु की प्रत्यक्ष ज्योतिर्मय मूर्ति है, अतः इस मन्त्र में साधक उसी रूप में अपने इष्टदेव की प्रार्थना कर रहा है कि - हे भास्करात्मक प्रभो ! (तत् । पूर्वमन्त्रों से प्रतिपादित, (देवहितम्) देवताओं के प्रिय, (शुक्रम्) शुद्ध पापरहित अथवा तेजोमय (चक्षुः ) समस्त विश्व के प्रकाशक, नेत्रस्थानीय आप, (पुरस्तात् ) पूर्वदिशा में, (उच्चरत् उच्चरति ) विश्वकल्याण के लिए उदित होते हैं । ( शतं शरदः जीवेम) हम आपकी सेवा के उद्देश्य से सौ शरद् ऋतुओं तक अर्थात् सौ वर्ष जीवन धारण करें, ( शतं शरदः श्रृणुयाम ) सौ वर्षों तक आपकी गुणगाथा का श्रवण करते रहें, ( शतं शरदः प्रब्रवाम) सौ वर्षों तक आपके पराक्रमों का प्रवचन, पुनः पुनः वर्णन या कीर्तन करें तथा अन्त में, (शतं शरदः पश्येम) श्रवण, कीर्तन आत्मनिवेदन आदि की महिमा से नैसर्गिक प्रेमदशा में सौ वर्षों तक आपका दर्शन करें, श्रवणादि साधनों से साध्य भगवदर्शन हेतु सहजानुरक्ति चिरकालस्थायिनी हो । इसके पश्चात् भक्त अपनी पूर्ण शरणागति अनन्य निष्ठा का परिचय दे रहा है - ( शतं शरदः अदीनाः स्याम) सौ वर्षों तक हम किसी के सम्मुख दीनता न दिखावें । जब एकमात्र प्रभु ही दाता हैं, विश्वम्भर हैं, विश्व के बड़े से बड़े राजा-महाराजा, सेठ - साहूकार सब उसी के द्वार के भिखारी है, तो एक भिक्षुक से क्या माँगे, क्यों माँगे ? अतः हम एक उसी प्रभु से मनोरथ पूर्ति की प्रार्थना करें, अन्य से नहीं । 'शतं शरदः' अर्थात् सौ वर्ष, ये पद सुदीर्घकाल के ही द्योतक हैं। किन्तु भक्त की प्रार्थना है कि (भूयश्च शरदः शतात् । सौ वर्षों से भी अधिक काल तक यह अनन्य शरणागति, साध्य - साधन भावापन्न भक्ति की धारा हमारे हृदय में प्रवाहित होती रहे ।
ईश्वर प्रेरित प्रारब्ध के अनुरूप जीवन आदि क्रियाएँ स्वतः सिद्ध हैं, उनके लिए प्रार्थना का विशेष महत्त्व नहीं है । अतः श्रवण - कीर्तनादि भक्ति की सतत स्थिति के लिए प्रभु से प्रार्थना ही इस मन्त्र का प्रतिपाद्य है। प्राचीन भाष्यकारों ने उपर्युक्त दोनों मन्त्रों की अन्धत्व -वधिरत्वादि - दोष - निवारण - परक जो व्याख्याएँ को हैं, वे चमत्कृतिशून्य होने से विशेष आदरणीय नहीं जान पड़तीं। अतलस्पर्श वेदरत्नाकर में गहराई तक डुबकी लगाने पर ही आत्मनिवेदनादि बहुमूल्य चमत्कृतिपूर्ण भावरत्न अधिगत होते हैं ।
एक ही मन्त्र द्वारा नवविध भक्ति का निरूपण करनेवाले दो वेदमन्त्र ऊपर उद्धृत किये गये । अब भक्ति के नौ भेदों में से कमयः श्रवण आदि प्रत्येक भेद के दिग्दर्शक वेदवाक्य प्रस्तुत किये जा रहे हैं ।
इन्द्रस्य तु वीर्याणि प्रवोत्रम् । ( ऋ० १.३२.१) अर्थात् मैं मन्त्रद्रष्टा ऋषि इन्द्र के पराक्रमों का प्रवचन वर्णन करता हूँ । विष्णोनु कं वीर्याणि प्रवोचम् । (ऋ० १.१५४.१ ) अर्थात् भगवान् विष्णु के पराक्रमों का प्रवचन करता हूँ ।
इन दोनों वेदवाक्यों में 'नु' और 'कम्' पादपूरक निपात हैं। प्रवचन सदा श्रवण - सापेक्ष ही होता है । श्रोता के उपस्थित रहने पर ही प्रवक्ता प्रवचन के लिए उत्साहित होता है । कोई सुननेवाला न हो तो प्रवचन निरर्थक, अरण्यरोदन
होगा । अतः जहाँ-जहाँ 'वोचम्' 'वोचेम्' आदि वक्तृत्वमूलक क्रियापद आये हो, वहाँ - वहाँ' 'श्रृणु' 'श्रृणुयाः ' आदि श्रवणार्थक क्रियापदों का अध्याहार करना ही होगा । इस प्रकार उपर्युक्त दोनों वाक्यों का अर्थ यह हुआ कि 'मैं मन्त्रद्रष्टा ऋषि इन्द्र तथा विष्णु के पराक्रमों का प्रवचन करता हूँ, साधकगण सुनें ।' यदि लिङर्थ विवक्षित होगा तब यह अर्थ मानना होगा कि 'यदि आप लोग श्रवण करना चाहें तो मुझे अनुमति दें । मैं इन्द्रादि के पराक्रमों का प्रवचन आरम्भ करूँ ।'
ज्ञातव्य है कि पूरे ऋग्वेद में 'वोचम' पद का १९ बार तथा 'वोचेम' पद का ६ बार जहाँ-जहाँ प्रयोग हुआ है वे सब मन्त्र वचोभङ्गी से नवधा भक्ति के प्रथम भेद श्रवण के ही प्रतिपादक हैं, क्योंकि प्रवचन का क्योंकि प्रवचन का श्रवण से नियत साहचर्य है ।
प्रवचन में किसी के गुण कर्मादि का अनेक प्रकार से कथन ही अभिप्रेत होता है, अतः कीर्तन को प्रवचन का पर्याय माना जाय, तो अर्थ की दृष्टि से कोई अंतर नहीं पड़ता । इस दृष्टि से उपर्युक्त श्रवण - सम्बन्धी सभी वेद वाक्य कीर्तन के सहज ही प्रतिपादक हो जाते हैं ।
कोर्तन शब्द का अन्य अर्थ है गुणगान । इस अर्थ में कोर्तन भक्ति के निर्देशक कतिपय वेद-वचन निम्नलिखित हैं-१७२
गायन्ति त्वा गायत्रिणः । (ऋ० १.१०.१)
सुष्टुतिमीरयामि । (ऋ० २.३३.८)
बृहदिन्द्राय गायत । (ऋ० ८.८९.१ )
इन्द्रिमभि प्र गायत । (ऋ०
प्र गायत्रेण गायत । ( ऋ०
प्र गायताभ्यर्चाम । (ऋ० ९.९७.४ )
उपर्युक्त सभी वेदवचनों का अर्थ सुस्पष्ट ही है । अर्थ का विचार करते समय यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि अग्नि, इन्द्र आदि देवताओं के नाम से सर्वत्र ईश्वर का ही ग्रहण अभिप्रेत है । इसका विशेष विवरण वेदोपदेश - चन्द्रिका के 'देवता - विचार' शीर्षक लेख ( पृ० ३७६) में दिया गया है
इस प्रसङ्ग में अथवंवेद का निम्नलिखित मन्त्र विशेष महत्त्वपूर्ण है, जो प्रहनिंश भगवत्कीर्तन का सुस्पष्ट आदेश दे रहा हैदोषो गाय वृहद् गाय धुमद्धेहि । आथर्वण स्तुहि देवं सवितारम् ।।
(आथर्वण - थर्वतिश्चरतिकर्मा तत्प्रतिषेधः अथर्वन्नित्यतः स्वार्थिकाऽणू । अथर्वै वाथर्वणः तत्सम्बुद्धौ आथर्वणेति) । हे एकाग्रचित्त साधक ! (दोषा उ गाय ) रात्रि में भी भगवान् के गुणों का गान करो अर्थात् दिन-रात भगवत्कीर्तन का अनुष्ठान करते रहो । ( बृहत् गाय ) विशाल गान करो अर्थात् अकेले ही नहीं, अपितु संकीर्तन- सम्मेलन आदि की भी योजना बनाकर कोर्तन-मण्डलियों के साथ मिलकर विराट्र कोर्तन करो, जिसकी ध्वनि से धरती - आकाश गूँज उठे । (धुमत् ) तेजोमय सात्त्विक चित्तको, (धेहि) भगवान् में स्थापित करो अर्थात् जिहूवा से कीर्तन करते समय अपना चित्त भी भगवच्चरणारविन्द में लगाये रहो। ( सवितारम्) जगत् के उत्पादक अथवा प्रेरक, ( देवम् ) परमात्मा की, ( स्तुहि) स्तुति करो । इस मन्त्र में 'गाय' और 'स्तुहि' क्रियापदों से भगवद् - यशोगान और भगवद्गुणानुकथन उभयविध कीर्तन का निर्देश किया गया है ।
काष्णिकलापाचार्य श्रीस्वामी गोपालदासजी महाराज ने भक्तिप्रकाश में कोर्तन का लक्षण लिखा है - 'भगवतो यशोगानं रटनं बा मुहुर्मुहुः' अर्थात् भगवान् के यश का गाना अथवा पुनः पुनः रटना यानी गुणानुकथन ही कोर्तन है। |
83abc9953823d9ca6d58b3848b6e670dc61a71252e61fa61cf09585c29660a07 | pdf | अधिक तेजस्वी बनता चला जाता है। आग में पड़कर सोना कभी मैला या काला नहीं पड़ता। तभी तो कहा जाता है -
'आग में पड़कर भी सोने की चमक जाती नहीं।"
साधु जीवन में कहां तक सत्यता है, कौन साधु किस रूप में साधना की ज्योति में ज्योतित हो रहा है, यह भी बिना परीक्षा के नहीं जाना जा सकता। साधु-जीवन की परिपक्व साधुता उसकी परीक्षा के अनन्तर ही निर्धारित की जा सकती है। जो साधु अनुकूल परीषहों के आने पर समभाव से रहता है, संकट की उपस्थिति में जरा भी डांवाडोल नहीं होता, विषम से विषम परिस्थितियों में समभाव की डोरी टूटने नहीं देता, वही सच्चा साधु या खरा साधु कहा जा सकता है। निःसन्देह ऐसा साधु ही साधुत्व की उच्च भूमिका प्राप्त करने में सफल हो सकता है। किन्तु जो साधु जरा-सी प्रतिकूलता में बौखला उठता है, सामान्य कष्ट के आ जाने पर आकुल-व्याकुल हो जाता है, शान्ति खो बैठता है तो उसे साधु पद के महान् सिंहासन पर कैसे बिठलाया जा सकता है? वह साधु नहीं स्वादु (स्वाद - प्रिय) होता है । वह साधु ही क्या जो कष्ट से भयभीत होता हो ! वस्तुतः साधु की साधना का निर्णय उसकी परीक्षा के अनन्तर ही किया जा सकता है।
केशलांच' जैन साधु की एक परीक्षा है। केशलोच के द्वारा साधु की सहिष्णुता और सहनशीलता का पता चल जाता है। साधु कष्ट सहने में कितनी क्षमता रखता है और समय आने पर कष्टों को झेल सकेगा या नहीं, आदि सभी बातें केश लोच के द्वारा मालूम पड़ जाती हैं। साधु- जीवन के प्रति साधु कितना दृढ़ है तथा कितना स्थिर है, इस बात का भी लोच के द्वारा आसानी से बोध हो जाता है।
साधु- जीवन में मान और अपमान दोनों की वर्षा होती है। अच्छी और बुरी दोनों घड़ियां उसके जीवन में आती हैं। जब सम्मान का अवसर आता है तो वह सर्वत्र सम्मान को
1. श्री कल्पसूत्र की 24वीं समाचारी में लिखा है- वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गन्थाणं निग्गन्थीण वा परं पज्जोसवणाओ गोलोमप्यमाण मित्तेऽवि केसे तं रयणि उवायणावित्तए... । अर्थात् साधुओं को साध्वियों को सम्वत्सरी से पहले-पहले केशलोच करवा लेना चाहिए। गोरोम से अधिक लम्बे केश नहीं रखने चाहिएं।
श्री निशीथ सूत्र के प्रथम उद्देश्य में लिखा है कि जो साधु, साध्वी सम्वत्सरी को गोरोम से अधिक लम्बे केश रखता है, उसको गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है, उसे लगातार चार उपवास रखने पड़ते हैं। जे भिक्खू पज्जोसवणाए गोलोमाइपि बालाई उव्वायणावेइ उव्वायणावंतं वा साइज्जड़ 45
[ बारहवां अध्याय : अनगार धर्म / 395]
प्राप्त करता है। आहार भी उसे सम्मान के साथ मिलता है और वस्त्रादि की प्राप्ति भी उसे सम्मान से ही होती है। जहां भी वह जाता है, वहीं अभिवन्दनों और अभिनन्दनों के पुलिन्दे उसके चरणों में अर्पित किये जाते हैं। अमीर-गरीब, राजा - रंक सभी के मस्तक उसकी चरण-रज प्राप्त करते हैं। स्थान-स्थान पर उसे आतिथ्य मिलता है। उसके जय-नादों से कई बार तो आकाश भी गूंज उठता है। इस प्रकार सर्वत्र साधु को सम्मान ही सम्मान प्राप्त होता है। किन्तु जब जीवन में अपमान की घड़ियां आती हैं तो कई बार उसे अपमान का सामना भी करना पड़ता है। लोग उसे घृणा से देखते हैं, उस पर दुत्कार और तिरस्कार की वर्षा करते हैं। भोजन तो किसने देना है, प्रेम-पूर्वक उससे कोई बात भी नहीं करता। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा है तथापि पानी की दो घूंटें उपलब्ध नहीं होतीं, भोजन को देखे तीन-तीन दिन गुजर जाते हैं। वृक्षों के नीचे रातें व्यतीत करनी होती हैं। रोगों से शरीर आक्रान्त हो जाता है। इस प्रकार असातावेदनीय कर्म के अनेकों प्रकोप उसे जीवन में दृष्टिगोचर होते हैं ।
जैन दर्शन कहता है कि साधु- जीवन में मान की प्राप्ति हो या अपमान की, दोनों अवस्थाओं में साधु को शान्त और दान्त रहना चाहिए। हर्ष- शोक के प्याले उसे बिना झिझक पीने चाहिएं। समता भगवती की आराधना ही उसके जीवन की साधना होनी चाहिए। परन्तु प्रश्न उपस्थित होता है कि इस बात का पता कैसे चले कि साधु मानापमान में शान्त रहता है या नहीं और समता के महापथ पर दृढ़ता से बढ़ रहा है या नहीं? इसी बात की जांच करने के लिए जैनाचार्यों ने वर्ष में एक परीक्षा नियत की है और वह परीक्षा है - केशलोच। केशलोच साधु की मानसिक स्थिति का पूरा-पूरा बोध प्राप्त हो जाता है। सम्मान पाकर क्या वह सुख- प्रिय बन गया है? दुःख में आकुल- व्याकुल तो नहीं हो जाता ? आदि सभी प्रश्न केशलोच के समय समाहित हो जाते हैं।
केशलोच ही ऐसी परीक्षा है जो जैन साधु के अन्तरंग जीवन का प्रत्यक्ष दर्शन करा देती है। वास्तव में कष्ट में ही जीवन की सहनशीलता का परिचय मिलता है। इन पंक्तियों के लेखक ने एक बार बंगाल के राजनैतिक क्रान्तिकारी दल का एक इतिहास पढ़ा था। उसके एक अध्याय में क्रान्तिकारी दल का सदस्य बनने के लिए कुछ नियमों का निर्देश किया गया था। उन नियमों में एक नियम यह भी था कि उस दल का सदस्य बनने वाले व्यक्ति को प्रज्वलित दीपक-शिखा पर अंगुली रखनी पड़ती थी। अग्निदाह से उंगली के जलने पर भी जो व्यक्ति उफ तक नहीं करता था, उसे उस दल का सदस्य बनाया जाता था। अनुमान लगाइये, क्रान्तिकारी दल का सदस्य बनने के लिए अपने को कितना सहनशील प्रमाणित । जैन ज्ञान प्रकाश / 396 ]
करना पड़ता था। उस कठोर परीक्षा के पीछे यही भावना थी कि दल का सदस्य सरकार द्वारा बन्दी बनाये जाने पर आग में भी जला दिया जाए तब भी वह डांवाडोल न होने पावे और अपने दल के रहस्य प्रकट न करने पावे।
केशचोल भी इसी प्रकार की एक परीक्षा है। केशचाल कराने वाले साधक भी एक क्रातिंकारी दल के सदस्य के रूप में हमारे सामने आते हैं। यह सत्य है कि इस दल की क्रांति आध्यात्मिक क्रांति है। इसमें किसी के विनाश का कोई लक्ष्य नहीं होता है। इस क्रांति में आत्मा को विकारों के साथ संघर्ष करना पड़ता है। विकारों के राज्य पर काबू पाने के लिए ही इस क्रांति का आश्रयण किया जाता है। परन्तु इस आध्यात्मिक क्रांतिकारी दल का सदस्य बनने के लिए भी मनुष्य को परीक्षा देनी पड़ती है ताकि विकारों द्वारा बन्दी बना लिए जाने पर यह डांवाडोल न हो जाए। विकारों के प्रहारों से आकुल होकर कहीं यह संयमभ्रष्ट न हो जाए। एतदर्थ उसकी केशलोच द्वारा परीक्षा ली जाती है। जो इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है, उस पर विकारों के कितने ही प्रहार हों और उस पर कितना भी संकट आ जाए, फिर भी वह धर्म से च्युत नहीं होता प्रत्युत धर्म को जीवन के साथ संभाल कर रखता है।
केशलोच जैसी भीषण परीक्षा प्रत्येक व्यक्ति नहीं दे सकता। यह परीक्षा तो वही दे सकता है, जिसका मानस तप-त्याग की पवित्र भावना से सदा भावित रहता है, जिसने मोक्ष को ही अपना परम - साध्य बना लिया है, वही व्यक्ति इस अहिंसक परीक्षा में अपने को प्रस्तुत करता है। फिर यह परीक्षा ऐसी विलक्षण है कि प्रतिवर्ष देनी पड़ती है। बंगाल के क्रांतिकारी दल के सदस्य को तो एक बार ही परीक्षा देनी पड़ती थी, किन्तु केशलोच की परीक्षा साधु को प्रतिवर्ष देनी होती है। '
लोच को हिंसा समझना ठीक नहीं है। क्योंकि हिंसा में दूसरों को दुःख दिया जाता परन्तु लोच में दूसरों को दुःख नहीं दिया जाता, प्रत्युत स्वयं दुःख सहन किया जाता है। ऐसी स्थिति में लोच को हिंसा कैसे कहा जा सकता है? दूसरी बात, लोच कराने वाला साधक उसे दुःख समझ कर नहीं कराता है। वह तो उसे आध्यात्मिक परीक्षा की घड़ी समझता है।
आजकल वर्ष में दो बार सिर की लोच कराने की परम्परा पाई जाती है। यह सत्य है किन्तु यह तो साधक की साधना की पराकाष्ठा है। साधक अधिक से अधिक साधना का लाभ प्राप्त करना चाहता है। वैसे शास्त्रीय दृष्टि से वर्ष में एक बार लोच कराना आवश्यक है।
[ बारहवां अध्याय : अनगार धर्म / 397]
जैसे विद्यार्थी परीक्षा में बड़े उत्साह से बैठता है वैसे ही साधु इस परीक्षा में सोत्साह भाग लेता है और उसमें उत्तीर्ण होने के लिए अपने को पूर्णतया सहिष्णु बनाए रखता है। यदि अपने को सहिष्णु बनाना और कष्टों को सहर्ष सहन करना भी हिंसा कृत्य मान लिया जाए तब तो असिधारा व्रत ब्रह्मचर्य का परिपालन भी हिंसा- कृत्य स्वीकार करना पड़ेगा। ब्रह्मचर्य के अतिरिक्त अहिंसा, सत्य आदि अन्य सभी साधनाओं में मन को मारना पड़ता है, अनेकविध संकटों का सामना करना पड़ता है। तब ये सभी साधनाएं हिंसा में परिगणित करनी पड़ेंगी। पर वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। वस्तुतः आत्म-शुद्धि तथा आत्म-कल्याण के महापथ पर बढ़ते हुए साधक को जिन कष्टों का सामना करना पड़ता है, उनको साधना का रूप देता है। अतः लोच करना हिंसा नहीं है; प्रत्युत जीवन-निर्मात्री अहिंसा का ही एक रूपान्तर है।
प्रज्ञापना सूत्र के 22वें क्रिया पद में आचार्य मलयगिरि ने इस सम्बन्ध में बहुत सुन्दर ऊहापोह किया है। वहां लिखा है
पारितापनिकी क्रिया के तीन भेद होते हैं - स्वपारितापनिकी, परपारितापनिकी और उभयपारितापनिकी। स्वयं को पीड़ित करना स्वपारितापनिकी, दूसरों को पीड़ित करना परपारितापनिकी और दोनों को पीड़ित करना उभयपारितापनिकी क्रिया कहलाती है।
यहां प्रश्न उपस्थित होता है कि यदि दुःख देने से क्रिया लगती है, तो स्वयं लोच करने पर स्वपारितापनिकी, दूसरे की लोच करने से परपारितापनिकी, और परस्पर एक-दूसरे की लोच करने पर उभयपारितापनिकी क्रिया लगनी चाहिए। क्योंकि इससे दुःखोत्पत्ति होती है। इसका समाधान निम्नोक्त है
दुष्ट बुद्धि से दिया गया दुःख पारितापनिकी क्रिया का कारण बना करता है। किन्तु जिस दुःख के पीछे सद्भावना हो और जिसका परिणाम हितकर हो, उससे कर्मबन्ध नहीं होता। जैसे डॉक्टर शल्य चिकित्सा करता है, चिकित्सा में रोगी को वेदना भी होती है, किन्तु डॉक्टर की भावना शुद्ध होने से और उसका फल हितप्रद होने से डॉक्टर पाप का भागी नहीं बनता। ऐसे ही लोच का परिणाम हितावह और आत्मशुद्धि तथा साहिष्णुता आदि आत्मगुणों का संवर्धक होने से लोच पारितापनिकी क्रिया का कारण नहीं बन सकती।
केश लोच जैसी कठिनतम साधना को देखकर सामान्य व्यक्ति कई बार आकुल- व्याकुल हो जाते हैं किन्तु यदि गम्भीरता से विचार किया जाए तो यह मानना पड़ेगा कि लोच जैन साधु का भूषण है। इस भूषण से विभूषित होने के कारण ही आज जैन साधु का जैन और अजैन [ जैन ज्ञान प्रकाश / 398 ]
सभी विचारक सम्मान करते हैं। संसार के सभी साधु आचारगत - शिथिलता के कारण आज अपना सम्मान समाप्त करते जा रहे हैं। केवल एक जैन साधु ही ऐसा साधु है जो केश लोच और अखण्ड ब्रह्मचर्य जैसी विलक्षण साधनाओं के कारण आज भी गौरवास्पद बना हुआ है और उसे सर्वत्र आदर से देखा जाता है। जैन दर्शन से भले ही कोई विरोध रखता हो पर जैन साधु की साधना के आगे सबको नतमस्तक होना पड़ता है। जैन साधु की कठोर साधुवृत्ति का आज भी लोग मान करते हैं और उसके आदर्श तप, त्याग का लोहा मानते हैं। अतः केश लोच जैसी अध्यात्म साधना से भयभीत नहीं होना चाहिए। अध्यात्म जगत में इसका एक विशिष्ट स्थान है, इसे हिंसा समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।
सत्य का अर्थ है-वस्तु के यथार्थ रूप को प्रकट करना अथवा ऐसी वाणी या भाषा का प्रयोग नहीं करना जिससे यथार्थता पर पर्दा पड़ता हो । परन्तु सत्य भाषा के साथ मधुरता भी होनी चाहिए। जिस सत्य के साथ कटुता रहती है या यों कहिए जो सत्य दूसरे के मन को दुःखाने-पीड़ा पहुंचाने के लिए, उसको नीचा दिखाने के लिए, उसका अपमान - तिरस्कार करने के लिए या उसका सर्वनाश करने की दृष्टि से बोला जाता है, वह सत्य नहीं, बल्कि असत्य है। सत्य वचन यथार्थ और कल्याणकारी, हितकारी एवं मधुर होना चाहिए।
सत्य के भी नौ भेद बताए गए हैं- मन, वचन और काया से असत्य बोले नहीं, दूसरे को असत्य बोलने को कहे या प्रेरित करे नहीं और असत्य बोलने वाले को अच्छा भी नहीं समझे। इस तरह साधु सर्वथा असत्य का त्याग करता है। इसलिए वह कभी भी दूसरे व्यक्ति को कष्ट हो ऐसी सावद्य-पापकारी भाषा का तथा निश्चयकारी- जब तक किसी भी वस्तु या प्राणी के सम्बन्ध में पूरा निश्चय न हो- भाषा का उपयोग नहीं करता। यदि कभी उसके सामने अयथार्थ बात कहने का प्रसंग उपस्थित हो जाए तो उस समय मौन रहता है।
सत्य - यथार्थ भाषा हो, परन्तु साथ में सर्व क्षेमकारी भी होनी चाहिए। क्योंकि साधु का जीवन जगहित के लिए होता है। अतः उस की भाषा भी कल्याणकारी होनी चाहिए। इस भावना को ध्यान में रखकर सत्य को भगवान् और लोक में सारभूत कहा है। सत्य से बढ़कर दुनिया में कोई पदार्थ नहीं है ।
"सच्चं खु भगवं," "सच्चं लोगम्मि सारभूयं "।
- प्रश्नव्याकरण सूत्र, संवरद्वार।
( बारहवां अध्याय : अनगार धर्म / 399]
स्तेय का अर्थ है चोरी करना। चोरी करना भी पाप है। इस कार्य से स्व और पर दोनों की आत्मा में अशांति एवं जलन बनी रहती है। अतः साधु चोरी का सर्वथा परित्याग करते हैं। वे मन से, वचन से और शरीर से न चोरी करते हैं, न दूसरे व्यक्ति के द्वारा चोरी करवाते हैं और न चोरी करने वाले व्यक्ति को अच्छा ही समझते हैं। यहां तक कि यदि उन्हें एक तिनका या कंकर भी आवश्यकतावश लेना होता है तो वह भी मांग कर लेते हैं, बिना आज्ञा के छोटी या बड़ी कोई वस्तु नहीं उठाते। यदि कहीं कोई व्यक्ति न मिले तो शक्रेन्द्र महाराज की आज्ञा लेकर तृण आदि ग्रहण करते हैं। विहार के समय रास्ते में विश्रांति करने से पूर्व या शौच जाते समय बैठने के लिए स्थान की आज्ञा भी शक्रेन्द्र से लेने की परम्परा है। इस तरह साधु यत्र-तत्र सर्वत्र आज्ञा लेकर ही प्रत्येक वस्तु को स्वीकार करते हैं ।
ब्रह्म + चर्य इन दो शब्दों के संयोग से ब्रह्मचर्य शब्द बना है। अतः ब्रह्मचर्य शब्द का अर्थ हुआ ब्रह्म में रमण करना । ब्रह्म शब्द के आनन्दवर्धक, वेद, धर्म शास्त्र, तप, मैथुन- त्याग आदि अनेकों अर्थ होते हैं। परन्तु ब्रह्मचर्य का अर्थ मैथुन- त्याग किया जाता रहा है। मैथुन - वासना आत्मा को ब्रह्म - ईश्वरीय भावना से दूर और दूरतर कर देती है, इसलिए काम-वासना को दोषी माना गया है और साधु के लिए यह विधान है कि वह सर्वथा मैथुन का परित्याग करे। यह व्रत भी 9 कोटि से स्वीकार किया जाता है अर्थात् साधु मन, वचन और शरीर से न मैथुन सेवन करते हैं, न करवाते हैं और न करने वाले को अच्छा समझते हैं।
आजकल ब्रह्मचर्य का अर्थ सिर्फ स्त्री-पुरुष संसर्ग-त्याग किया जाता है और इसी में ब्रह्मचर्य की पूर्णता मान ली जाती है। परन्तु ऐसा नहीं है, ब्रह्मचर्य का अर्थ है- सम्पूर्ण वासना से मुक्त होना । भगवान् अजितनाथ से लेकर पार्श्वनाथ पर्यन्त चार महाव्रत ही थे, ब्रह्मचर्य महाव्रत का अपरिग्रह महाव्रत में ही समावेश कर लिया जाता था। ममता, मूर्च्छा, आसक्ति का नाम परिग्रह है और इसका नाम अब्रह्मचर्य भी है। भोग सेवन करना भी अब्रह्मचर्य है और उन भोगों की आसक्ति रखना भी अब्रह्मचर्य है। परन्तु अब्रह्मचर्य को अलग
1. शक्रेन्द्र महाराज ने सभी साधु-साध्वियों को जंगल में या अन्यत्र कभी कोई व्यक्ति न मिले तो उस समय तृण-काष्ठ आदि पदार्थ लेने की आज्ञा दी । देखो - भगवती शतक 16 उद्देशक 2.
[ जैन ज्ञान प्रकाश / 400]
न करने से पीछे से साधुओं में दोष प्रवृत्ति की ओर झुकाव होने लगा। मर्यादा से अधिक रखे गये एक सामान्य से उपकरण के दोष को और मैथुन सेवन के दोष को समान रूपता दी जाने लगी। यह देखकर भगवान् महावीर ने अब्रह्मचर्य को परिग्रह से अलग करके उस दोष से भी सर्वथा बचने की बात कही। इससे यह लाभ हुआ कि स्त्री-पुरुष संसर्ग का त्याग किया जाने लगा, परन्तु आगे चलकर इसमें यह दोष भी आ गया कि ब्रह्मचर्य का विस्तृत अर्थ भुला कर उसे केवल स्त्री-पुरुष संसर्ग के परित्याग तक ही सीमित रखा गया।
आगम के स्वाध्याय से यह स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री-पुरुष का संसर्ग ही नहीं, पदार्थों के भोगोपभोग की वासना, तृष्णा भी अब्रह्मचर्य है। दशवैकालिक सूत्र में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि "वस्त्र, गन्ध - सुगन्धित पदार्थ, अलंकार - शृंगार सामग्री, स्त्री, शय्या आदि का जो स्वतन्त्रता से भोग नहीं कर सकता है, फिर भी अन्तर् में उसकी लालसा, कामना, वासना रखता है तो वह त्यागी नहीं है। इसी तरह उत्तराध्ययन के 32वें अध्ययन में ब्रह्मचारी को प्रकाम-विकारोत्पादक सरस आहार करने का निषेध किया गया है। श्रमण सूत्र के "निगाम सिज्जाए " पाठ में उसे नर्म-सुकोमल शय्या के परित्याग की बात कही है। इसके सिवाय ब्रह्मचर्य की नौ बाड़ें भी इस सत्य को पूर्णतया प्रमाणित कर रही हैं। वे नौ बाड़ें इस प्रकार हैं
1. साधु उस मकान में रात को न रहे जिस मकान में स्त्री, नपुंसक और पशु रहते हों, 2. साधु स्त्री की तथा साध्वी पुरुष की विकारोत्पादक कथा न करे, 3. जिस स्थान पर स्त्री बैठी हो उस स्थान पर साधु और जिस स्थान पर पुरुष बैठा हो उस स्थान पर साध्वी उसके उठने के बाद 48 मिनट तक न बैठे, 4. साधु स्त्री के और साध्वी पुरुष के अंगोपांगों को विकारी दृष्टि से न देखे, 5. दीवार या पर्दे की ओट में स्त्री-पुरुष की विषय-वासना युक्त बातें न सुने, 6. पूर्व में भोगे हुए भोगों का चिन्तन-मनन न करे, 7. प्रतिदिन सरस आहार न करे, 8. मर्यादा या भूख से अधिक भोजन न करे, और 9. शरीर को विभूषित - शृंगारित न करे।
इससे यह स्पष्ट हो गया कि केवल स्त्री-पुरुष संसर्ग ही अब्रह्मचर्य नहीं प्रत्युत भोगोपभोग जन्य सामग्री की वासना या आकांक्षा रखना भी अब्रह्मचर्य है। मैथुन या अब्रह्मचर्य का सम्बन्ध मोह कर्म से है, मोह कर्म के उदय से ही आत्मा भोगों में आसक्त होती है और
1. दशवैकालिक 2. 2.
। बारहवां अध्याय : अनगार धर्म / 401]
तृष्णा, अभिलाषा, आकांक्षा ये मोह के ही दूसरे नाम हैं, अतः समस्त वासनाओं पर विजय पाना ही साधुत्व या पूर्ण ब्रह्मचर्य की साधना है। इस व्रत में वासना या तृष्णा को जरा भी छूट देने का अवकाश नहीं है। जैसे तम्बू रस्सों से कसा हुआ होने के कारण ही उसमें स्थित सामग्री एवं मनुष्यों को वर्षा से सुरक्षित रख सकता है, यदि उसकी एक रस्सी भी शिथिल पड़ जाए तो उसमें वर्षा का जल टपकने लगेगा। इसी तरह वासना या तृष्णा को भोगोपभोग के साधनों में किसी भी तरफ जरा-सी छूट दी गई तो उसका परिणाम यह होगा कि धीरे-धीरे सारा जीवन कामवासना के पानी से भर जाएगा। अतः साधु-साध्वी के लिए स्त्री-पुरुष संसर्ग त्याग की बात ही नहीं, बल्कि विकारोत्पादक सभी तरह के भोगोपभोग का मन, वचन और शरीर से सेवन करने, करवाने और करते हुए को अच्छा समझने का निषेध किया गया है। अपरिग्रह
"परिगृह्णातीति परिग्रहः" इस परिभाषा से परिग्रह का अर्थ होता है - जो कुछ ग्रहण किया जाय। दुनिया में स्थित पुद्गलों को दो तरह से ग्रहण किया जाता है - 1. द्रव्य से और 2. भाव से। धन-धान्य आदि स्थूल पदार्थों को हम द्रव्य रूप से ग्रहण करते हैं, इसलिए इसे द्रव्य परिग्रह कहते हैं और राग-द्वेष एवं कषायादि भाव परिणति से हम कर्म पुद्गलों को ग्रहण करते हैं, अतः उसे (कषायादि भावों एवं कर्मों को) भाव- परिग्रह कहते हैं। द्रव्य-परिग्रह के 9 भेद किए गए हैं- 1. क्षेत्र, 2. वास्तु, 3. हिरण्य, 4. सुवर्ण, 5. धन, 6. धान्य, 7. द्विपद, 8. चतुष्पद, और 9. कुप्य पदार्थ । इनका अर्थ इस प्रकार है
1. क्षेत्र - कृषि के उपयोग में आने वाली भूमि को क्षेत्र कहते हैं। वह सेतु और केतु के भेद से दो प्रकार का कहा गया है। नहर, कुआं आदि कृत्रिम साधनों से सींची जाने वाली भूमि को सेतु और मात्र वर्षा के जल पर आधारित कृषि योग्य भूमि को केतु कहते हैं।
2. वास्तु - मकान को वास्तु कहते हैं। वास्तु संस्कृत का शब्द है, प्राकृत में वत्थु रूप बनता है। मकान तीन तरह के होते हैं - 1. खात, 2. उच्छृत और 3. खातोच्छृत । भूमिगृह- तलघर या जमीन के अन्दर बनाए जाने वाले मकानों को खात, जमीन के ऊपर बनाए जाने वाले मकानों को उच्छृत और नीचे तलघर बनाकर उसके ऊपर मकान बनाने को खातोच्छृत कहते हैं।
3. हिरण्य - आभूषणों के आकार में रही हुई तथा ढेले के रूप में स्थित चांदी को हिरण्य कहते हैं।
[ जैन ज्ञान प्रकाश / 402 ] |
4d2d30350c42b81c8049026dd8a0d2faefcf8b54 | web | जर्मन टैंक "टाइगर": तकनीकी विनिर्देश, उपकरण, मॉडल, फोटो, खोलने के परीक्षण। सोवियत हथियार जर्मन टी -6 टाइगर टैंक में कैसे घुस गए?
दूसरी दुनिया में भाग लेने वाली तकनीकसामने के दोनों तरफ युद्ध, कभी-कभी अधिक पहचानने योग्य और इसके सदस्यों की तुलना में "कैननिकल"। इसकी एक स्पष्ट पुष्टि हमारी पीपीएसएच सबमिशन गन और जर्मन टाइगर टैंक है। पूर्वी मोर्चे पर उनकी "लोकप्रियता" ऐसी थी कि लगभग हर दूसरे दुश्मन टैंक में हमारे सैनिकों ने टी -6 देखा।
यह सब कैसे शुरू हुआ?
निष्पक्षता में, हम ध्यान देते हैं कियह परियोजना 1 9 37 से चल रही है, लेकिन केवल 40 के दशक में सेना की मांगों ने अधिक विशिष्ट रूपरेखाओं पर विचार किया था। एक भारी टैंक की परियोजना पर, दो कंपनियां एक बार में काम करती थींः हैंशेल और पोर्श। फर्डिनेंड पोर्श हिटलर का पसंदीदा था, और इसलिए एक कष्टप्रद पर्ची बनाई, बहुत जल्दी ... हालांकि, हम इसके बारे में बाद में बात करेंगे।
1 9 41 में पहले से ही वेहरमाच उद्यम प्रस्तावित थे"जनता के फैसले के लिए" दो प्रोटोटाइपः वीके 3001 (एच) और वीके 3001 (पी)। लेकिन उसी वर्ष मई में, सेना ने भारी टैंकों के लिए अद्यतन आवश्यकताओं का प्रस्ताव दिया, जिसके परिणामस्वरूप परियोजनाओं को गंभीरता से संशोधित किया जाना था।
तब यह था कि पहले दस्तावेज सामने आएउत्पाद वीके 4501, जिसमें से जर्मन भारी टैंक "बाघ" उत्पन्न होता है। प्रतियोगियों को मई-जून 1 9 42 तक पहले नमूने जमा करने की आवश्यकता थी। कामों की संख्या विनाशकारी रूप से बड़ी थी, क्योंकि जर्मनों को वास्तव में दोनों प्लेटफार्मों को फिर से बनाना था। 1 9 42 के वसंत में, फ्रेडरिक क्रुप एजी टावरों से लैस दोनों प्रोटोटाइप को वुल्फ के लेयर में लाया गया ताकि फूहरर को उनके जन्मदिन पर एक नई तकनीक का प्रदर्शन किया जा सके।
यह पता चला कि दोनों कारों में हैमहत्वपूर्ण कमी तो, पोर्श को "इलेक्ट्रिक" टैंक बनाने के विचार से "दूर ले जाया गया" है, जिसका प्रोटोटाइप बहुत भारी है, शायद ही कभी 90 डिग्री के आसपास बदल सकता है। हेंशेल में भी, सब ठीक नहीं थेः बड़ी कठिनाई वाला उसका टैंक आवश्यक 45 किमी / घंटा तक पहुंचने में सक्षम था, लेकिन साथ ही उसके इंजन को गरम किया गया ताकि वास्तविक आग का खतरा हो। लेकिन फिर भी यह टैंक जीता।
यह यहां ध्यान दिया जाना चाहिए कि पहले खुद पोर्शपरीक्षणों की शुरुआत उनकी सफलता के बारे में इतनी निश्चित थी कि उन्होंने स्वीकृति के परिणामों की प्रतीक्षा किए बिना उत्पादन शुरू करने का आदेश दिया। 1 9 42 के वसंत तक पौधे की कार्यशालाओं में बिल्कुल 90 तैयार चेसिस पहले से ही थे। परीक्षणों की विफलता के बाद, यह तय करना आवश्यक था कि उनके साथ क्या किया जाए। एक रास्ता निकला - एसीएस फर्डिनेंड बनाने के लिए एक शक्तिशाली चेसिस का इस्तेमाल किया गया था।
यह स्व-चालित बंदूक अगर से कम प्रसिद्ध नहीं थीटी -6 के साथ इसकी तुलना करेंगे। इस राक्षस का "माथे" लगभग कुछ भी नहीं, सीधे आग नहीं, और केवल 400-500 मीटर की दूरी से नहीं टूट गया था। आश्चर्य की बात नहीं है, सोवियत टैंक "फेबिया" के दल ने स्पष्ट रूप से डर दिया और सम्मान किया। हालांकि, पैदल सेना उनके साथ सहमत नहीं थीः "फर्डिनेंड" में मशीन गन कोर्स नहीं था, और इसलिए 9 0 वाहनों में से कई चुंबकीय खानों और एंटी-टैंक शुल्कों द्वारा "सावधानीपूर्वक" ट्रैक के तहत रखे गए थे।
उसी वर्ष अगस्त के अंत में, टैंक गयाउत्पादन। आश्चर्यजनक रूप से पर्याप्त है, लेकिन इसी अवधि में, नई तकनीक के परीक्षणों ने गहन रूप से जारी रखा। पहले हिटलर को दिखाया गया नमूना पहले से ही 960 किमी की लैंडफिल की सड़कों पर गुजरने में कामयाब रहा था। यह पता चला कि एक क्रॉस-कंट्री इलाके में कार 18 किमी / घंटा तक बढ़ सकती है, और ईंधन को 100 किमी प्रति 430 लीटर तक जला दिया गया था। इसलिए लेख में वर्णित जर्मन टाइगर टैंक ने इसकी अस्पष्टता के कारण आपूर्ति सेवाओं में बहुत सी समस्याएं पैदा की हैं।
उत्पादन और डिजाइन में सुधार हुआएक भी बंडल में। कई बाहरी तत्वों बक्से और स्पेयर पार्ट्स सहित, बदल दिया गया है। फिर, टॉवर की परिधि पर छोटे मोर्टार विशेष रूप से स्मोक बम और खानों "एस" प्रकार के लिए डिज़ाइन किया गया कर दिया था। बाद के दुश्मन पैदल सेना को नष्ट करने के लिए होते हैं और बहुत घातक थाः ट्रंक से जारी किया जा रहा है, वह एक कम ऊंचाई पर ऊपर विस्फोट से उड़ा दिया, घनी छोटे धातु गेंदों के साथ टैंक के चारों ओर सो अंतरिक्ष गिरने। इसके अलावा, कुछ धुआं हथगोले विशेष रूप से युद्ध के मैदान पर मशीन मास्किंग के लिए एन बी 39 (कैलिबर 90 मिमी) प्रदान किया गया।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जर्मन टाइगर टैंक बन गएटैंक बिल्डिंग मशीनों के इतिहास में पहला, जो पानी के नीचे ड्राइविंग के लिए उपकरण से सुसज्जित थे। यह टी -6 के बड़े द्रव्यमान के कारण था, जिसने इसे अधिकांश पुलों पर पहुंचाया नहीं था। यह सिर्फ अभ्यास में है, उपकरण लगभग कभी नहीं इस्तेमाल किया जाता है।
यह भी दिलचस्प है क्योंकि इस कार के लिए थादो प्रकार के ट्रैक एक बार में विकसित किए गए थेः संकीर्ण 520 मिमी और चौड़ा 725 मिमी। पूर्व में मानक रेलवे प्लेटफॉर्म पर टैंक परिवहन करने के लिए और यदि संभव हो, तो हार्ड-सतह सड़कों पर अपने आप को स्थानांतरित करने के लिए उपयोग किया जाता था। दूसरे प्रकार के ट्रैक मुकाबले में थे, इसका इस्तेमाल अन्य सभी मामलों में किया जाता था। जर्मन टैंक "टाइगर" का डिवाइस क्या था?
कार का डिजाइन ही क्लासिक था,पीछे एमटीओ के साथ। पूरे सामने के हिस्से प्रबंधन विभाग द्वारा कब्जा कर लिया गया था। यह वहां था कि मैकेनिक-ड्राइवर और रेडियो ऑपरेटर के कार्यस्थल स्थित थे, जिन्होंने प्रक्रिया में एक शूटर के कर्तव्यों का पालन किया, एक कोर्स बंदूक चलाया।
टैंक के मध्य भाग को युद्ध के तहत दिया गया थाकार्यालय। एक तोप के साथ एक बुर्ज और इसके ऊपर एक मशीन गन स्थापित किया गया था, और कमांडर, गनर और लोडर के लिए नौकरियां भी थीं। इसके अलावा लड़ाई डिब्बे में पूरे टैंक गोला बारूद रखा गया था।
मुख्य हथियार एक बंदूक KwK 36 कैलिबर 88 मिमी था। यह उसी कैलिबर की कुख्यात एएचटी-एएचटी एंटी-एयरक्राफ्ट बंदूक के आधार पर विकसित किया गया था, जिसने 1 9 41 में आत्मविश्वास से लगभग सभी दूरी से सभी सहयोगी टैंकों को मारा। बंदूक बैरल की लंबाई - 4 9 28 मिमी, थूथन ब्रेक को ध्यान में रखते हुए - 5316 मिमी। यह बाद वाला था जो जर्मन इंजीनियरों का एक मूल्यवान खोज था, क्योंकि इसे रीकोल ऊर्जा को स्वीकार्य स्तर तक कम करने की अनुमति थी। सहायक हथियार 7.9 2 मिमी मशीन गन एमजी -34 था।
कोर्स मशीन गन, जैसा कि हमने कहा था,अगली सूची में स्थित रेडियो रेडियो ऑपरेटर। ध्यान दें कि कमांडर के बुर्ज पर, विशेष माउंट्स के उपयोग के अधीन, एक और एमजी -34 / 42 रखना संभव था, इस मामले में एंटी-एयरक्राफ्ट हथियारों के रूप में इस्तेमाल किया गया था। यहां ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस उपाय को मजबूर किया गया था और अक्सर यूरोप में जर्मनों द्वारा उपयोग किया जाता था।
आम तौर पर, विमान किसी का विरोध नहीं कर सकाएक जर्मन भारी टैंक। टी -4, "बाघ" - वे सहयोगी विमानन के लिए सभी आसान शिकार थे। हमारी स्थिति पूरी तरह से अलग थी, क्योंकि 1 9 44 तक यूएसएसआर में भारी जर्मन प्रौद्योगिकी पर हमला करने के लिए पर्याप्त हमले विमान नहीं थे।
टॉवर की बारी द्वारा किया गया था4 kW की शक्ति के साथ हाइड्रोलिक रोटेटर। पावर को गियरबॉक्स से लिया गया था, जिसके लिए एक अलग गियर का उपयोग किया गया था। यह तंत्र बेहद प्रभावी थाः अधिकतम गति पर, टॉवर ने एक मिनट में 360 डिग्री कर दिया।
यदि किसी कारण से इंजन बंद हो गया था,लेकिन बुर्ज को चालू करना आवश्यक था, टैंकर एक हाथ से पकड़े गए कुंडा उपकरण का उपयोग कर सकते थे। इसका नुकसान, चालक दल पर उच्च भार के अलावा, यह तथ्य था कि ट्रंक के मामूली झुकाव के साथ, मोड़ असंभव था।
एमटीओ में पावर प्लांट और फुल दोनों शामिल थेईंधन का स्टॉक। यह जर्मन टैंक "टाइगर" हमारे मशीनों से अनुकूल रूप से भिन्न था, जिसमें ईंधन स्टॉक सीधे लड़ने वाले डिब्बे में स्थित था। इसके अलावा, एमटीओ को एक ठोस विभाजन द्वारा अन्य डिब्बों से अलग किया गया था, जिसने इंजन के डिब्बे को सीधे हिट करने पर चालक दल को जोखिम को कम कर दिया था।
कार को दो मेबैक एचएल इंजन द्वारा संचालित किया गया था।210P30 650 एचपी या मेबैक एचएल 230 पी 45 700 एचपी (जो 251 वें "टाइगर" के बाद से सेट किए गए थे)। मोटर्स वी-आकार, चार-स्ट्रोक, 12-सिलेंडर हैं। ध्यान दें कि टैंक "पैंथर" में एक ही इंजन था, लेकिन एक। इंजन को दो तरल रेडिएटर्स से ठंडा किया। इसके अलावा, शीतलन प्रक्रिया में सुधार के लिए इंजन के दोनों किनारों पर अलग-अलग पंखे लगाए गए थे। इसके अलावा, जनरेटर और निकास कई गुना के लिए अलग एयरफ्लो प्रदान किया गया था।
घरेलू टैंकों के विपरीत, ईंधन भरने के लिएकम से कम 74 की ऑक्टेन रेटिंग वाले केवल उच्च श्रेणी के गैसोलीन का उपयोग किया जा सकता है। एमटीओ में रखी गई चार गैस टंकियों में 534 लीटर ईंधन था। सौ किलोमीटर तक ठोस गंदगी वाली सड़कों पर गाड़ी चलाते समय 270 लीटर गैसोलीन खर्च होता है, और ऑफ-रोड खपत के चौराहे पर तुरंत 480 लीटर तक बढ़ जाता है।
इस प्रकार, टैंक की तकनीकी विशेषताओं"टाइगर" (जर्मन) ने अपने लंबे "स्वतंत्र" मार्च का अनुमान नहीं लगाया था। यदि केवल एक न्यूनतम अवसर था, तो जर्मनों ने उसे ट्रेनों में युद्ध के मैदान के करीब लाने की कोशिश की। इसलिए यह बहुत सस्ता निकला।
प्रत्येक पक्ष में 24 समर्थन रोलर्स थे,जो न केवल कंपित थे, बल्कि एक ही बार में चार पंक्तियों में खड़े थे! रबड़ के टायरों का उपयोग रोलर्स पर किया गया था, दूसरों पर वे स्टील थे, लेकिन आंतरिक मूल्यह्रास की एक अतिरिक्त प्रणाली का उपयोग किया गया था। ध्यान दें कि जर्मन टैंक टी -6 "टाइगर" में एक बहुत महत्वपूर्ण खामी थी, जिसे समाप्त नहीं किया जा सकता थाः अत्यधिक उच्च भार के कारण, ट्रैक रोलर्स की पट्टियाँ बहुत तेज़ी से बाहर निकलती हैं।
सभी पर लगभग 800 कारों से शुरूरोलर्स ने स्टील की पट्टी और आंतरिक मूल्यह्रास डालना शुरू किया। निर्माण की लागत को सरल और कम करने के लिए, बाहरी एकल रोलर्स को भी परियोजना से बाहर रखा गया था। वैसे, जर्मन टैंक टाइगर ने वेहरमाच्ट की लागत कितनी थी? विभिन्न स्रोतों के अनुसार, १ ९ ४३ की शुरुआत के मॉडल का अनुमान ६०० हजार से लेकर ९ marks हजार तक के रीचार्च में था।
स्टीयरिंग व्हील को नियंत्रित करने के लिए, इसके समान उपयोग किया गया थामोटरसाइकिल हैंडलबारः 56 टन वजन वाले हाइड्रोलिक ड्राइव टैंक के उपयोग के माध्यम से एक हाथ के बल से आसानी से नियंत्रित किया जाता है। ट्रांसमिशन को सचमुच दो उंगलियों से बदलना संभव था। वैसे, इस टैंक का पीपीसी डिजाइनरों का वैध गौरव थाः रोबोटिक (!), चार गियर आगे, दो पीछे।
शरीर बॉक्स के आकार का है, इसके तत्वों को इकट्ठा किया गया थास्पाइक "और वेल्डेड। क्रोमियम और मोलिब्डेनम योजक के साथ लुढ़का हुआ कवच प्लेटें, सीमेंटेड। कई इतिहासकार "टाइगर" के "बॉक्सिंग" की आलोचना करते हैं, लेकिन, सबसे पहले, पहले से ही महंगी कार को इतना सरल बनाया जा सकता है। दूसरे, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि 1944 तक युद्ध के मैदान में एक भी मित्र देशों का टैंक नहीं था जो टी -6 को ललाट प्रक्षेपण में मार सकता था। खैर, अगर केवल रोकने के लिए नहीं।
तो जर्मन भारी टैंक टी-VI "टाइगर" परनिर्माण समय एक बहुत ही संरक्षित मशीन थी। वास्तव में, वेहरमाच के टैंक चालक दल उसके लिए प्यार करते थे। वैसे, सोवियत हथियारों ने जर्मन टाइगर टैंक को कैसे छेद दिया? अधिक सटीक, किस तरह का हथियार?
ललाट कवच की मोटाई 100 मिमी, बोर्ड और फ़ीड थी- 82 मिमी। कुछ सैन्य इतिहासकारों का मानना है कि "कटा हुआ" वाहिनी रूपों के कारण, टाइगर हमारे 76 मिमी कैलिबर ZIS-3 से सफलतापूर्वक लड़ सकता है, लेकिन यहां कई सूक्ष्मताएं हैंः
- पहले, हार 500 मीटर को छोड़कर माथे पर कम या ज्यादा की गारंटी थी, लेकिन कम-गुणवत्ता वाले कवच-भेदी के गोले अक्सर पहले रेंजरों के गुणवत्ता कवच को बंद सीमा पर भी घुसना नहीं करते थे।
- दूसरे, और अधिक महत्वपूर्ण बात, युद्ध का मैदान था45 मिमी कैलिबर "विस्तृत" रेजिमेंट व्यापक है, जो सिद्धांत रूप में, टी -6 के माथे में नहीं लगी थी। यहां तक कि बोर्ड में प्रवेश के साथ, केवल 50 मीटर की गारंटी दी जा सकती है, और यह एक तथ्य नहीं है।
- T-34-76 टैंक की F-34 तोप भी चमक नहीं पाई, औरयहां तक कि उप-कैलिबर "कॉइल" के उपयोग ने स्थिति को खराब तरीके से ठीक किया। तथ्य यह है कि यहां तक कि इस बंदूक के सबोट प्रोजेक्टाइल ने विश्वसनीय रूप से टाइगर को केवल 400-500 मीटर से दूर ले लिया। और फिर भी - बशर्ते कि "कुंडल" उच्च गुणवत्ता का था, जो हमेशा मामला नहीं था।
- अच्छा दृश्य है।
- उच्च गुणवत्ता वाला प्रक्षेप्य।
तो 1944 में टी-34-85 के अधिक या कम जन उपस्थिति और SU-85/100/122 स्व-चालित बंदूकों के साथ सैनिकों की संतृप्ति और SU / ISU 152 टाइगर्स के "Hypericles" हमारे सैनिकों के बहुत खतरनाक विरोधी थे।
जर्मन टैंक टी -6 को कितना महत्व दिया गया है"टाइगर" वेहरमाट कमांड, कम से कम इस तथ्य को कहते हैं कि सैनिकों की एक नई सामरिक इकाई - एक भारी टैंक बटालियन - विशेष रूप से इन वाहनों के लिए बनाई गई थी। और यह एक अलग, स्वायत्त हिस्सा था, जिसे स्वतंत्र कार्यों का अधिकार था। बताया जा रहा है कि बनाई गई 14 बटालियनों में शुरू में एक इटली में, एक अफ्रीका में और बाकी 12 यूएसएसआर में काम करती हैं। इससे पूर्वी मोर्चे पर लड़ाई की कड़वाहट का पता चलता है।
अगस्त 1942 में, "टाइगर्स" का "परीक्षण" किया गया थामगॉय के पास, जहां हमारे बंदूकधारियों ने दो से तीन परीक्षण वाहनों को गिरा दिया (उनमें से छह पूरी तरह से थे), और 1943 में हमारे सैनिक लगभग सही हालत में पहले टी -6 पर कब्जा करने में कामयाब रहे। तत्काल, जर्मन टाइगर टैंक पर शेलिंग के साथ परीक्षण किए गए, जिससे निराशाजनक निष्कर्ष निकलेः फासीवादियों के साथ टी -34 टैंक अब समान शर्तों पर नहीं लड़ सकते थे, और मानक 45 मिमी रेजिमेंटल एंटी-टैंक गन की शक्ति कवच को भेदने के लिए पर्याप्त नहीं थी।
यह माना जाता है कि सबसे बड़े पैमाने पर मामला हैयूएसएसआर में "टाइगर्स" का उपयोग कुर्स्क की लड़ाई के दौरान हुआ। यह योजना बनाई गई थी कि इस प्रकार के 285 वाहन शामिल होंगे, लेकिन वास्तव में वेहरमैच ने 246 टी -6 लॉन्च किए।
यूरोप के रूप में, विघटन के समय तकसहयोगी तीन भारी टैंक बटालियन थे, जो 102 "टाइगर्स" से सुसज्जित थे। गौरतलब है कि मार्च 1945 तक दुनिया में इस तरह के करीब 185 टैंक चल रहे थे। कुल में, लगभग 1,200 टुकड़े का उत्पादन किया गया था। आज दुनिया में एक जर्मन टाइगर टैंकर है। एबरडीन प्रोविंग ग्राउंड में स्थित इस टैंक की तस्वीरें मीडिया में नियमित रूप से दिखाई देती हैं।
"टाइग्रोबॉयज़्न" का गठन क्यों किया गया था?
इन टैंकों के उपयोग की उच्च दक्षताबड़े पैमाने पर उत्कृष्ट हैंडलिंग और चालक दल की आरामदायक कामकाजी परिस्थितियों के कारण। 1944 तक, युद्ध के मैदान पर एक भी एलाइड टैंक नहीं था जो टाइगर से बराबरी पर लड़ सके। जब जर्मनों ने 1.5-1.7 किमी की दूरी से अपनी कारों को मारा तो हमारे कई टैंकर मर गए। जब टी -6 को एक छोटी संख्या के साथ मारा गया तो मामले बहुत दुर्लभ हैं।
जर्मन ऐस विटमैन की मौत - एक उदाहरण। उसका टैंक, जो शेरमांस के माध्यम से टूट रहा था, अंततः पिस्तौल की गोली की दूरी से समाप्त हो गया था। एक डाउनडाउन "टाइगर" में 6-7 जले हुए टी -34 थे, जबकि अमेरिकियों के पास अपने टैंक के साथ अधिक दुखद आँकड़े थे। बेशक, "चौंतीस" - एक पूरी तरह से अलग वर्ग की एक मशीन, लेकिन यह वह थी जो ज्यादातर मामलों में टी -6 का विरोध करती थी। यह एक बार फिर हमारे टैंकरों की वीरता और समर्पण की पुष्टि करता है।
मुख्य नुकसान उच्च द्रव्यमान और थाचौड़ाई, बिना पूर्व तैयारी के पारंपरिक रेलवे प्लेटफार्मों पर टैंक को परिवहन करना असंभव है। तर्कसंगत रूप से देखने के कोणों के साथ "टाइगर" और "पैंथर" के कोणीय कवच की तुलना करने के लिए, व्यवहार में टी -6 अभी भी अधिक तर्कसंगत आरक्षण के कारण सोवियत और संबद्ध टैंकों के लिए एक अधिक दुर्जेय प्रतिद्वंद्वी निकला। टी -5 बहुत अच्छी तरह से संरक्षित ललाट प्रक्षेपण था, लेकिन पक्ष और स्टर्न लगभग नग्न थे।
क्या बुरा है, यहां तक कि दो इंजनों की शक्ति थीइस तरह की भारी कार को उबड़-खाबड़ इलाके में ले जाना बहुत कम है। दलदली मिट्टी पर, यह सिर्फ एक एल्म है। अमेरिकियों ने टाइगर्स के खिलाफ एक विशेष रणनीति भी विकसित कीः उन्होंने जर्मनों को मोर्चे के एक सेक्टर से दूसरे हिस्से में भारी बटालियन फेंकने के लिए मजबूर किया, जिसके परिणामस्वरूप कुछ हफ्तों में टी -6 के आधे हिस्से की मरम्मत कम से कम हुई।
|
2baf6c44ffc4325a179ed0e17fba8c74b20c71afb63d4b2cd94a30e87c734eb0 | pdf | द्वितीय अंक में भी इस प्रकार के सहसा की कमी नहीं है । अवन्ती के दुर्ग में बन्धुवमा, के भीमवर्मा और जयमाला के बीच देवसेना सहसा ही आ जाती है और आते ही बकने लगती है, मानो किसी कोने में छिपी हुई वह बात सुन रही हो और उत्तर देने को प्रस्तुत हो । अगले दृश्य में मातृगुप्त, मुद्गल और गोविन्दगुप्त का पथ में सहसा ही आगमन होता है । इस प्रकार के अन्य अनेक सहसा की चर्चा अनपेक्षित है ।
चमत्कार का दूसरा उदाहरण इस नाटक में हम उस स्थल पर पाते हैं, जहाँ विजया के शव के लिए भूमि खोदते हुए भटार्क को रत्नगृह मिलता है ।
प्रसाद जी का स्वगत के प्रति भी कम मोह नहीं है, यद्यपि स्वगत के दोषो से वे अपरिचित नहीं हैं। स्वयं उन्होंने विशाख में उसका मजाक भी उड़ाया है। इस नाटक में अपेक्षाकृत स्वगत कम है तथापि विजया, देवसेना, भटार्क, मुद्गल आदि से अनेक स्थलों पर स्वगत वचन कहलाये हैं । थोड़े ही श्रम से इन स्वगतों से मुक्ति मिल सकती थी । इनमें कोई भी ऐसा स्वगत नहीं है जो मानसिक संघर्ष को व्यक्त करता हो और जिसके अव्यक्त रहने पर कथावस्तु के विकास में बाधा पड़ती हो । ये स्वगत कहीं-कहीं काफी लम्बे और भाषण के समान हैं ।
गीतों के प्रति भी प्रसाद जी ने समय का ध्यान नहीं रखा है। अनेक गीत काफी लम्बे हैं । रणक्षेत्र के प्रयाण गीत प्रायः अत्यन्त छोटे हुआ करते हैं, किन्तु रणक्षेत्र में मातृगुप्त का गान बहुत ही लम्बा-चौड़ा है और खटकनेवाला है। इसी प्रकार पंचम अंक के द्वितीय दृश्य का विजया का गीत भी खटकता है ।
की दृष्टि से नाटक तीन स्वतन्त्र समस्याओं को लेकर खड़ा किया गया है । ये समस्याएँ स्कन्दगुप्त के सम्मुख विदेशी आक्रमण, गृह कलह और प्रेम के अन्तर्द्वन्द्व की हैं । इनमें प्रथम दो समस्याएं ऐतिहासिक हैं और तीसरी नाटककार की कल्पना प्रसूत । नाटककारों और कथाकारों की यह धारणा रही है कि बिना रोमांस (प्रेम-चर्चा) के कथा सजीव नहीं हो सकती व रोमांसविहीन कथानक का कोई महत्त्व नहीं है । सम्भवतः इसीलिए नाटककार ने यह आवश्यक समझा कि स्कन्दगुप्त के जीवन को लेकर इसकी भी चर्चा की जाय । इस कार्य में वे कितने सफल हुए हैं इसका विवेचन हम आगे चल कर करेंगे । यहाँ इतना ही कहा जा सकता है कि यदि रोमांस के इस अंश को नाटक से अलग कर दिया जाय तो भी नाटक के मूल कथानक पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता और न स्कन्दगुप्त के चरित्र के निखार में ही किसी प्रकार की कमी आती है, वरन् स्कन्दगुप्त के अस्त यस्त जीवन में इस प्रकार की चर्चा, एक प्रकार से उसके जीवन का उपहास करती सी जान पड़ती है ।
नाटक में उपस्थित की गयी इन तीन समस्याओं की दृष्टि से यदि कथावस्तु का विश्लेषण किया जाय तो उसे हम अलग-अलग इस प्रकार रख सकते हैं ।
विदेशी आक्रमण
गुप्त साम्राज्य के विरुद्ध पुष्यमित्रों के आक्रमण को रोकने में प्रयत्नशील स्कन्दगुप्त नाटक में हमारे सामने आता है और उनके पराजित करने में वह सफल होता है । पुष्यमित्र विजय का अन्तिम प्रयत्न करते हुए आगे बढ़ते हैं और नासीर के सेनानायक की ओर से सहायता की माँग आती है । दशपुर से भी आता है और सूचना मिलती है कि महाराज विश्ववर्मा का निधन हो गया । शक - राष्ट्रमंडल चंचल हो रहा है । नवागत म्लेच्छवाहिनी से सौराष्ट्र पदाक्रान्त हो चुका है और पश्चिमी मालव भी अब सुरक्षित नहीं हैं । बर्बर हूणों से वलभी का बचना भी कठिन है। इन समस्याओं के बीच घिरा हुआ स्कन्दगुप्त मालव की रक्षा का निश्चय करता है और चक्रपालित को आदेश देता है 'पुष्यमित्र युद्ध में विजयी होने के बाद मालव में प्राकर मिलो' । मालव पर शक और हूणों की सेना आक्रमण करती है और स्कन्दगुप्त समय पर पहुँच कर शत्रुओं को पराजित कर देता है । आगे, गान्धार की घाटी के रणक्षेत्र में स्कन्दगुप्त हूणों को पराजित करने के लिए प्रस्तुत है । चर कर उसे सूचना देता है कि 'हूण शीघ्र ही नदी के पार होकर प्रतीक्षा कर रहे हैं और यदि आक्रमण न हुआ तो वे स्वयं प्राक्रमण करेंगे। कुभा के रणक्षेत्र में मगध की सेना का हूणों से सन्धि होने के कारण परिस्थिति कुछ कठिन-सी है । गान्धार के क्षेत्र में हूणों का आक्रमण होता है और महाराज बन्धुवर्मा मारे जाते हैं । कुभा के रणक्षेत्र में स्कन्दगुप्त भटार्क को आदेश देता है और विश्वास के प्रमाणस्वरूप कहता है कि -- 'यदि शत्रु की दूसरी सेना कुभा को पार करना चाहे तो उसे काट देना ।' युद्ध में हूण पराजित होते हैं और कुभा के उस पार उतर जाना चाहते हैं और मगध सेना कुछ नहीं करती । भटार्क बांध तोड़ देता है और कुभा में अकस्मात् जल बढ़ जाता है और सब लोग बहते दिखाई देते हैं । युद्ध की इस असफलता के बाद तक्षशिला में कनिष्क स्तूप के आस-पास स्कन्दगुप्त विचित्र अवस्था में घूमता हुआ दिखाई देता है । यहीं परिस्थितिवश बिखरे हुए साथी एकत्र होते हैं और हूण सेना के साथ युद्ध होता है और वे पराजित होते हैं । बस इतना ही ।
विदेशी आक्रमण द्वारा गुप्त साम्राज्य पर आयी हुई विपत्ति का चित्रण कुल मिला कर छः दृश्यों में किया गया है । ये दृश्य हैं : प्रथम अंक में प्रथम और सप्तम दृश्य, तृतीय अंक में पाँचवाँ और छठा दृश्य, चतुर्थ अंक में दृश्य सात और पंचम अंक में दृश्य पाँच ।
कथावस्तु के इस भाग की सारी घटनाएँ स्कन्दगुप्त में केन्द्रित हैं, किन्तु नाटक में कहीं भी स्कन्दगुप्त में वह सक्रियता नहीं दिखाई पड़ती, जो विदेशियों को देश से बाहर करने के लिए अपेक्षित है । पुष्यमित्रों से युद्ध का हमें संकेतमात्र मिलता है। उसमें स्कन्दगुप्त का क्या हाथ रहा, यह हमें ज्ञात नहीं होता । उनके साथ हुए अन्तिम युद्ध को वह स्वयं नहीं करता वरन् चऋपालित पर छोड़ कर मालव चला जाता है । वहाँ उसे हम युद्ध में निस्सन्देह विजयी होते देखते हैं, किन्तु उसके पश्चात् गान्धार और कुभा के युद्ध में हम स्कन्दगुप्त को निष्क्रिय ही पाते हैं। गान्धार के रणक्षेत्र में बन्धुवर्मा की प्रधानता है । कुभा के रणक्षेत्र में स्कन्दगुप्त कुछ दिखाई पड़ता है पर वहाँ भी वह भेंटार्क पर निर्भर करता है और उसके विश्वासघात के फलस्वरूप उसकी विजय पराजय का रूप ले लेती है । इस पराजय के बाद भी स्कन्दगुप्त का अकर्मण्य रूप ही सामने आता है । वह स्वयं सेना संगठन
का प्रयत्न नहीं करता, देवसेना द्वारा दी गयी ललकार ही उसे चेतन बनाती है । देवसेना ही उसके सब साथियों को एकत्र करती है और तब स्कन्दगुप्त हूणों से युद्ध करता है । इस प्रकार नाटक में स्कन्दगुप्त के सम्मुख प्रस्तुत तीन समस्याओं में प्रथम समस्या के निराकरण में स्कन्दगुप्त निष्क्रिय है । यदि चेतना कुछ हो भी तो वह दिखाई नहीं देती । गृह कलह
अब यदि कथावस्तु के दूसरे भाग को देखें तो यह अंश उसके साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध रखता हुआ भी उसके निकट नहीं जान पड़ता । ऐसा लगता है कि वह एकदम स्वतन्त्र हो । कम से कम स्कन्दगुप्त तो उसके साथ सम्बन्ध जोड़ने में सहायक नहीं है । कथावस्तु के इस भाग में स्कन्दगुप्त वस्तुतः बहुत कम ही आया है, जहाँ आया भी है वहाँ उसकी उपस्थिति दोनों घटनाओं को एक सूत्र में आबद्ध करने में सहायक नहीं होती। दोनों को बाँधने वाला पात्र वस्तुतः भटार्क है ।
कथावस्तु की दूसरी समस्या का सम्बन्ध अनन्तदेवी के उस कुचक्र से है जो वह अपने बेटे पुरगुप्त को, स्कन्दगुप्त के विरुद्ध, राज्य दिलाने के निमित्त करती है । इसका आभास यद्यपि प्रथम दृश्य में मिलता है किन्तु वह प्रकट जाकर चतुर्थ दृश्य में होता है । जया और अनन्तदेवी की बातचीत से प्रभास मिलता है कि अनन्तदेवी कुछ ऐसा कार्य करने जा रही है जो साधारण है। वह अपने नियति के पथ पर अपने प्राप चलना चाहती है । वह अपनी पत्नी देवकीके प्रभाव को उग्रता के साथ बढ़ते हुए देख कर अपने पुत्र पुरगुप्त के प्रति सशंक हो उठती है । वह समझती है कि सम्राट् की मति एक-सी नहीं रहती, वे अव्यवस्थित और चंचल हैं । वह भटार्क को भावी का संकेत इस प्रकार देती है'राजधानी में प्रानन्द विलास हो रहा है औौर पारसीक मदिरा की धारा बह रही है । इनके स्थान पर रक्त की धारा बहेगी। आज तुम कालागुरु के गन्धधूम्र से सन्तुष्ट हो रहे हो, कल इन उच्च शौर्य मन्दिरोंमें महापिशाची की विप्लव ज्वाला धधकेगी । उस चिर्याधंध की उत्कट गन्ध असह्य होगी ।
अनन्तदेवी का सहायक प्रपंचबुद्धि है और वह उसकी सहायता से भाद्र की अमावस्या को कुछ कार्य करने का निश्चय करती है और भटार्क भी उसमें सहायक होने को प्रतिश्रुत होता है। अगले दृश्य में प्रकट होता है कि महादेवी देवकी के प्राण संकट में हैं और परमभट्टारक महाराज कुमारगुप्त का निधन हो गया है, किन्तु भटार्क आदि इस बात को प्रकट होने देना नहीं चाहते । कुमारामात्य पृथ्वीसेन, महादंडनायक और महाप्रतिहार कुमारगुप्त को देखने भीतर जाना चाहते हैं किन्तु भटार्क द्वारा नियुक्त नायक उन्हें जाने से रोकता है । वे तीनों नायक के विरुद्ध खड्गहस्त होते हैं । इतने में पुरगुप्त और भटार्क आते हैं। भटार्क अभिवादन करता हुआ कहता है-- 'परमभट्टारक महाराजाधिराज पुरगुप्त की जय हो ! माननीय कुमारामात्य, महादंडनायक और महाप्रतिहार साम्राज्यके नियमानुसार शस्त्र अर्पण करके परमभट्टारक का अभिनन्दन कीजिए।' तीनों वाक् हो जाते हैं । जब उन्हें पता लगता है कि महाराज कुमारगुप्त गत हो गये, तो वे उत्तराधिकारी स्कन्दगुप्त की बात करते हैं । इस पर पुरगुप्त उन्हें डाँट देता है --- 'तुम लोगों को बैठ कर व्यवस्था नहीं देनी होगी। उत्तराधिकार का निर्णय स्वयं स्वर्गीय |
d3ce669aefc3eff08358794682794e6e93deef15 | web | संयुक्त राज्य संविधान ने महिलाओं का उल्लेख नहीं किया है या पुरुषों के अपने अधिकारों या विशेषाधिकारों को सीमित नहीं किया है। "व्यक्तियों" शब्द का उपयोग किया गया था, जो लिंग तटस्थ लगता है। हालांकि, ब्रिटिश कानूनों से विरासत में मिला, आम कानून, कानून की व्याख्या को सूचित किया। और कई राज्य कानून लिंग-तटस्थ नहीं थे। संविधान को अपनाए जाने के ठीक बाद, न्यू जर्सी ने महिलाओं के लिए मतदान अधिकार स्वीकार कर लिया, यहां तक कि उन लोगों ने 1807 में एक बिल से खो दिया था, जो उस राज्य में वोट देने के लिए महिलाओं और काले पुरुषों दोनों के अधिकार को रद्द कर दिया था।
जब संविधान लिखे और अपनाया गया था तब गुप्तचर का सिद्धांत प्रचलित थाः एक विवाहित महिला बस कानून के तहत एक व्यक्ति नहीं थी; उसका कानूनी अस्तित्व उसके पति के साथ बंधे थे।
अपने जीवनकाल के दौरान विधवा की आय की रक्षा के लिए डावर अधिकारों को पहले से ही अनदेखा कर दिया जा रहा था, और इसलिए महिलाएं अपनी संपत्ति के लिए महत्वपूर्ण अधिकार नहीं रखने की कठिन स्थिति में थीं, जबकि उस प्रणाली के तहत उन्हें संरक्षित करने वाले डावर का सम्मेलन गिर रहा था । 1840 के दशक की शुरुआत में, महिलाओं के अधिकार समर्थकों ने कुछ राज्यों में महिलाओं के लिए कानूनी और राजनीतिक समानता स्थापित करने के लिए काम करना शुरू कर दिया। महिलाओं के संपत्ति अधिकार पहले लक्ष्यों में से थे। लेकिन इससे महिलाओं के संघीय संवैधानिक अधिकारों को प्रभावित नहीं हुआ। अभी नहीं।
महिलाओं के अधिकारों को प्रभावित करने वाला पहला प्रमुख संवैधानिक परिवर्तन चौदहवें संशोधन था ।
इस संशोधन को ड्रेड स्कॉट फैसले को खत्म करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, जिसमें पाया गया था कि काले नागरिकों के पास "नागरिक अधिकार का सम्मान करने के लिए कोई अधिकार नहीं था," और अमेरिकी गृहयुद्ध समाप्त होने के बाद अन्य नागरिकता अधिकारों को स्पष्ट करने के लिए। प्राथमिक प्रभाव यह सुनिश्चित करना था कि मुक्त गुलामों और अन्य अफ्रीकी अमेरिकियों के पास पूर्ण नागरिकता अधिकार हों।
लेकिन संशोधन में मतदान के संबंध में "पुरुष" शब्द भी शामिल था, और महिलाओं के अधिकार आंदोलन में संशोधन का समर्थन करने के लिए विभाजित किया गया था क्योंकि यह मतदान में नस्लीय समानता स्थापित करता है, या इसका विरोध करता है क्योंकि यह पहली स्पष्ट संघीय अस्वीकार थी कि महिलाओं ने मतदान किया था अधिकार।
मताधिकार आंदोलन ने चौदहवें संशोधन का उपयोग करने का फैसला किया, यहां तक कि महिलाओं के वोट को औचित्य देने के लिए "पुरुष" के उल्लेख के साथ भी। 1872 में कई महिलाओं ने संघीय चुनाव में मतदान करने का प्रयास किया; सुसान बी एंथनी को गिरफ्तार कर लिया गया और ऐसा करने के लिए दोषी पाया गया। एक मिसौरी महिला, वर्जीनिया माइनर ने भी कानून को चुनौती दी। रजिस्ट्रार की कार्रवाई ने उन्हें मतदान से मना कर दिया था, फिर भी एक और मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचने का आधार था। (उसके पति को मुकदमा दायर करना पड़ा, क्योंकि गुप्त कानूनों ने उसे अपनी तरफ से दाखिल करने से विवाहित महिला के रूप में मना कर दिया था। ) माइनर वी। हैप्परसेट में उनके फैसले में, अदालत ने पाया कि महिलाएं वास्तव में नागरिक थे, मतदान मतदान में से एक नहीं था "नागरिकता के विशेषाधिकार और उन्मूलन" और इस तरह के राज्य महिलाओं को वोट देने का अधिकार अस्वीकार कर सकते हैं।
बेलवा लॉकवुड ने वर्जीनिया को कानून का अभ्यास करने की अनुमति देने के लिए एक मुकदमा दायर किया। वह पहले से ही कोलंबिया जिले में बार का सदस्य था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि 14 वें संशोधन में केवल "नागरिक" शब्द को पढ़ने के लिए स्वीकार्य था, जिसमें केवल पुरुष नागरिक शामिल थे।
नागरिक मामलों के रूप में महिलाओं की पूर्ण समानता का दावा करने वाले कानूनी मामलों में विफल, महिला अधिकार और श्रम अधिकार श्रमिकों ने मुलर बनाम ओरेगन के मामले में ब्रांडेस संक्षिप्त दायर किया। दावा यह था कि पत्नियों और मांओं, विशेष रूप से माताओं के रूप में महिलाओं की विशेष स्थिति के लिए आवश्यक है कि उन्हें श्रमिकों के रूप में विशेष सुरक्षा दी जाए। सर्वोच्च न्यायालय विधायकों को घंटों या न्यूनतम मजदूरी आवश्यकताओं पर सीमा निर्धारित करके नियोक्ताओं के अनुबंध अधिकारों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देने के लिए अनिच्छुक था; हालांकि, इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कार्य परिस्थितियों के साक्ष्य को देखा और कार्यस्थल में महिलाओं के लिए विशेष सुरक्षा की अनुमति दी।
लुई ब्रांडेस, जिसे बाद में सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त किया गया, महिलाओं के लिए सुरक्षात्मक कानून को बढ़ावा देने के मामले में वकील था; ब्रांडेस संक्षिप्त रूप से मुख्य रूप से अपनी बहू जोसेफिन गोल्डमार्क और सुधारक फ्लोरेंस केली द्वारा तैयार किया गया था।
महिलाओं को 1 9 1 9 में कांग्रेस द्वारा पारित 1 9वीं संशोधन द्वारा वोट देने का अधिकार दिया गया था और 1 9 20 में पर्याप्त राज्यों द्वारा इसे प्रभावी बनाने के लिए अनुमोदित किया गया था।
1 9 23 में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि संघीय न्यूनतम मजदूरी कानून अनुबंध की स्वतंत्रता और इस प्रकार पांचवें संशोधन पर उल्लंघन करने वाली महिलाओं को लागू करता है। हालांकि, मुलर बनाम ओरेगन को उलट नहीं दिया गया था।
एलिस पॉल ने संविधान में पुरुषों और महिलाओं के बराबर अधिकारों के लिए एक प्रस्तावित समान अधिकार संशोधन लिखा था। उन्होंने मताधिकार अग्रणी लुक्रेटिया मोट के लिए प्रस्तावित संशोधन का नाम दिया। जब उन्होंने 1 9 40 के दशक में संशोधन का खुलासा किया, तो उसे ऐलिस पॉल संशोधन कहा जाने लगा। 1 9 72 तक कांग्रेस ने इसे पास नहीं किया।
एडकिन्स बनाम चिल्ड्रेन हॉस्पिटल को उलटाने वाले सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस फैसले ने वाशिंगटन राज्य के न्यूनतम मजदूरी कानून को बरकरार रखा, महिलाओं या पुरुषों को लागू सुरक्षा श्रम कानून के लिए फिर से दरवाजा खोल दिया।
इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने शराब की सेवा या बेचने से ज्यादातर महिलाओं (पुरुष सराय रखवालों की बेटियों की पत्नियों के अलावा) को प्रतिबंधित करने वाले राज्य कानून को वैध पाया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को इस आधार पर एक दृढ़ संकल्प को चुनौती दी कि महिला प्रतिवादी को सभी पुरुष जूरी का सामना करना पड़ा क्योंकि महिलाओं के लिए जूरी ड्यूटी अनिवार्य नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया कि जूरी ड्यूटी से महिलाओं को छूट देने वाला राज्य कानून भेदभावपूर्ण था, यह पता लगाने के लिए कि महिलाओं को अदालत के वातावरण से सुरक्षा की आवश्यकता है और यह मानना उचित था कि घर में महिलाओं की जरूरत थी।
रीड वी। रीड में , यूएस सुप्रीम कोर्ट ने एक मामला सुना जहां राज्य कानून ने महिलाओं को संपत्ति के प्रशासक के रूप में महिलाओं को पसंद किया। इस मामले में, कई पुराने मामलों के विपरीत, अदालत ने कहा कि 14 वें संशोधन के समान संरक्षण खंड महिलाओं पर समान रूप से लागू होते हैं।
1 9 72 में, अमेरिकी कांग्रेस ने समान अधिकार संशोधन पारित किया, इसे राज्यों को भेज दिया । कांग्रेस ने एक आवश्यकता को जोड़ दिया कि संशोधन को सात साल के भीतर मंजूरी दे दी गई, बाद में 1 9 82 तक बढ़ा दी गई, लेकिन अपेक्षित राज्यों के बजाय केवल 35 ने उस अवधि के दौरान इसे मंजूरी दे दी। कुछ कानूनी विद्वान समय सीमा को चुनौती देते हैं, और उस आकलन के अनुसार, ईआरए अभी भी तीन और राज्यों द्वारा अनुमोदित होने के लिए जीवित है।
फ्रंटियरो वी। रिचर्डसन के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि पांचवें संशोधन के कारण प्रक्रिया खंड का उल्लंघन करते हुए सेना के लाभ के लिए पात्रता तय करने में सैन्य सदस्यों के पुरुष पति / पत्नी के लिए अलग-अलग मानदंड नहीं हो सकते थे। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि यह कानून में सेक्स भेदभाव को देखने में भविष्य में और अधिक जांच का उपयोग करेगा - काफी सख्त जांच नहीं, जिसे मामले में न्यायसंगतों में बहुमत नहीं मिला।
गेडुलडिग बनाम एइलो ने एक राज्य की विकलांगता बीमा प्रणाली को देखा जिसने गर्भावस्था विकलांगता के कारण काम से अस्थायी अनुपस्थितियों को छोड़ दिया, और पाया कि सामान्य गर्भावस्था को सिस्टम द्वारा कवर नहीं किया जाना चाहिए था।
इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने उस उम्र में भेदभाव फेंक दिया जिस पर लड़कियों और लड़कों को बाल समर्थन के हकदार थे।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि पारस्परिक सहमति कानून (इस मामले में, तीसरे तिमाही में) असंवैधानिक थे, क्योंकि गर्भवती महिला के अधिकार उसके पति की तुलना में अधिक आकर्षक थे। न्यायालय ने यह कायम रखा कि महिलाओं की पूर्ण और सूचित सहमति की आवश्यकता वाले नियम संवैधानिक थे।
क्रेग बनाम बोरेन में , अदालत ने एक कानून फेंक दिया जिसने पुरुषों और महिलाओं को पीने की उम्र निर्धारित करने में अलग-अलग व्यवहार किया। मामले में सेक्स भेदभाव, मध्यवर्ती जांच शामिल मामलों में न्यायिक समीक्षा के नए मानक को स्थापित करने के लिए भी नोट किया गया है।
ओरर वी। ओरर में, अदालत ने कहा कि गुमराह कानून महिलाओं और पुरुषों के लिए समान रूप से लागू होते हैं, और साथी के साधनों पर विचार किया जाना चाहिए, न केवल उनके लिंग।
इस मामले में, अदालत ने यह जांचने के लिए बराबर सुरक्षा विश्लेषण लागू किया कि चुनिंदा सेवा के लिए पुरुष-केवल पंजीकरण ने उचित प्रक्रिया खंड का उल्लंघन किया है या नहीं। छः से तीन निर्णय तक, अदालत ने क्रेग बनाम बोरेन के बढ़ते जांच मानक को लागू करने के लिए सैन्य तैयारी और संसाधनों के उचित उपयोग को लिंग-आधारित वर्गीकरण को उचित ठहराया। अदालत ने महिलाओं को युद्ध से बचाने और सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका को अपना निर्णय लेने में चुनौती नहीं दी।
इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने "अपने नागरिकों के खिलाफ लिंग आधारित भेदभाव को खत्म करने और एक निजी संगठन के सदस्यों द्वारा लगाए गए संघ की संवैधानिक आजादी को खत्म करने के राज्य के प्रयासों का वजन किया। " न्यायमूर्ति ब्रेनन द्वारा लिखित निर्णय के साथ अदालत द्वारा सर्वसम्मति से निर्णय , सर्वसम्मति से पाया गया कि संगठन का संदेश महिलाओं को स्वीकार करके बदला नहीं जाएगा, और इसलिए, सख्त जांच परीक्षण द्वारा, राज्य के हित ने संघ की स्वतंत्रता और भाषण की स्वतंत्रता के पहले संशोधन अधिकार के दावे को ओवरराइड कर दिया।
|
5c4e71d84bfee8368a57a01539f74af0d8c45f618c2204dfa848387dcec01601 | web | Posted On:
बीते 24 घंटे में टीके की 25 लाख से ज्यादा खुराकें दी गयी हैं।
- आज देश में संक्रमण से मुक्त होने वालों की कुल संख्या 1,48,17,371 पर रही।
- देश के संक्रमण से मुक्त होने वालों की दर 82.33 प्रतिशत है।
- बीते 24 घंटे में 3,60,960 नये मामले दर्ज हुए।
- देश में कोविड से मरने वालों की दर में गिरावट जारी, फिलहाल मृत्यु दर 1.12 प्रतिशत पर।
- 5 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में बीते 24 घंटे के दौरान एक भी मौत दर्ज नहीं हुई। ये हैं दमन औऱ दीव, दादर नगर हवेली, लक्षद्वीप, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह।.
1 मई, 2021 से कोविड-19 टीकाकरण के तीसरे चरण को और प्रभावी तथा उदार स्वरूप में देश भर में क्रियान्वित किया जाएगा। भारत सरकार ने अब तक राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को कोविड रोधी टीके की लगभग 16 करोड़ (15,95,96,140) ख़ुराकें निःशुल्क उपलब्ध कराई हैं। इसमें से बर्बादी सहित 14,89,76,248 ख़ुराकों का उपयोग किया जा चुका है। राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के पास इस समय कोविड रोधी टीके की एक करोड़ से अधिक (1,06,19,892) खुराक उपलब्ध है, जिसका इस्तेमाल किया जाना है।
राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अगले 3दिनों में 57लाख से अधिक (57,70,000) अतिरिक्त ख़ुराकें उपलब्ध कराई जाएगी।
पीएम केयर्स फंड के अंतर्गत डीआरडीओ द्वारा विकसित तकनीक पर आधारित 500 और पीएसए ऑक्सीजन संयंत्रों को स्वीकृति दी गई है। पीएसए संयंत्रों और पोर्टेबल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मांग वालों क्षेत्रों के करीब ऑक्सीजन की आपूर्ति में बड़ी बढ़ोतरी करेंगे।
विस्तृत जानकारी के लियेः
एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने प्रधानमंत्री को बताया कि त्वरित गति से देश और विदेशों में कोविड संबंधित कार्य को पूरा करने के लिए आईएएफ ने पूरे हेवी लिफ्ट फ्लीट और पर्याप्त संख्या में मीडियम लिफ्ट फ्लीट को एक हब एवं स्पोक मॉडल में संचालित करने को लेकर हमेशा तैयार रहने का आदेश दिया है। सभी बेड़े के लिए दिन-रात परिचालनों को सुनिश्चित करने के लिए हवाई कर्मियों को तैयार किया गया है।वहीं प्रधानमंत्री ने ऑक्सीजन टैंकरों एवं अन्य जरूरी सामग्री के परिवहन में परिचालन की गति, पैमाने और सुरक्षा को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि कोविड संबंधित कार्यों में संलग्न वायुसेना कर्मी संक्रमण से सुरक्षित रहें। इसके अलावा उन्होंने सभी कोविड संबंधित परिचालनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जरूरत के बारे में भी बात की।
जानकारी के लियेः
भारतीय रेलवे ने अब तक उत्तर प्रदेश को 202 मीट्रिक टन, महाराष्ट्र को 174 मीट्रिक टन, दिल्ली को 70 मीट्रिक टन और मध्य प्रदेश को 64 मीट्रिक टन तरल ऑक्सीजन पहुंचाई है।
जानकारी के लियेः
राष्ट्र की निस्वार्थ सेवा की अपनी विशेषता को बनाए रखते हुए भारतीय सेना ने युद्ध स्तर पर कई कोविड सुविधाओं कीस्थापना की है ताकि विभिन्न स्थानों पर पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों (परिवारों) को व्यापक चिकित्सा सुविधाएं दी जा सकेंI ऐसी ही एक सुविधा बेस चिकित्सालय दिल्ली छावनी (कैंटोनमेंट) में तैयार की गई है जहां पूरे अस्पताल को ऐसेकोविड चिकित्सालय में बदल दिया गया है जहां आने वाले सभी रोगियों की अत्यावश्यक महत्वपूर्ण देखरेख के लिए व्यापक प्रबंध किए गए हैं।यह सुविधा प्राप्त करने के लिए नागरिक निम्नलिखित टेलीफोन नम्बरों पर सम्पर्क कर सकते है :
- -37176 (सेना लाइन के माध्यम से)
जानकारी के लियेः
उम्मीद है की उर्वरक संयंत्रों द्वारा कोविड रोगियों के लिए प्रतिदिन लगभग 50 मीट्रिक टन (एमटी) मेडिकल ऑक्सीजन उपलब्ध करायी जा सकती है। ये कदम आने वाले दिनों में देश के अस्पतालों में मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन की आपूर्ति को बढ़ाएंगे।
जानकारी के लिये :
महाराष्ट्रः महाराष्ट्र कैबिनेट ने आज 18 से 44 आयुवर्ग में सभी को मुफ्त में वैक्सीन देने की मंजूरी दे दी। राज्य के लिये इस आयुवर्ग के करीब 5.7 करोड़ नागरिकों को टीका लगाने की लागत करीब 6500 करोड़ रुपये होगी। ये फैसला केंद्र द्वारा टीकाकरण अभियान का विस्तार सभी वयस्कों तक करने के बाद लिया गया है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा "महाराष्ट्र में हमारे पास 13000 टीकाकरण केंद्र हैं, जिनके जरिये हम अगले 6 महीने में 5.71 करोड़ लोगों का टीकाकरण पूरा करने का लक्ष्यरख रहे हैं"। 895 मौतों के साथ मंगलवार को किसी एक दिन की सर्वाधिक मौतें दर्ज की गयीं। राज्य में 66,358 नये मामले दर्ज किये गये, साथ 2.88 लाख कोविड जांच भी हुईं, जो कि नया रिकॉर्ड है।
गुजरातः कोविड-19 संक्रमण के मामलों में बढ़त को नियंत्रित करने के प्रयास में, राज्य सरकार ने सख्त प्रतिबंध लगाये हैं और रात्रि कर्फ्यू वाले शहरों और कस्बों की संख्या मौजूदा 20 से बढ़ाकर 29 कर दी है।नये प्रतिबंध 29 अप्रैल से 5 मई तक जारी रहेंगे। ये फैसला गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के द्वारा बुलायी गयी उच्च स्तरीय बैठक में लिया गया। गुजरात ने 14,352 नये मामले दर्ज किये।
मध्य प्रदेशः आज कुल 64 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन के 6 टैंकर लेकर ऑक्सीजन एक्सप्रेस भोपाल के करीब मंडीदीप पहुंची। इसमें से 2 टैंकर को ग्रीन कॉरिडोर के जरिए भोपाल लाया गया।
गोवाः गोवा सरकार ने गुरुवार को रात 10 बजे से सोमवार सुबह 6 बजे तक 80 घंटे के लॉकडाउन का ऐलान किया है। इस अवधि के दौरान सभी आवश्यक सेवायें और किराने की दुकाने पूरे दिन खुली रहेंगी, जबकि रेस्टोरेंट सिर्फ होम डिलीवरी के लिए खुले रहेंगे। केसिनो और सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह से बंद रहेंगे।
केरलः राज्य सरकार ने कोरोना टीके की एक करोड़ खुराक खरीदने का फैसला किया है, जिसमें कोविशील्ड की 70 लाख और कोवैक्सीन की 30 लाख खुराकें हैं। सरकार ने लॉकडाउन न लगाने का फैसला लिया। फिलहाल सप्ताह के अंत में सीमित लॉकडाउन है। इसके साथ ही हर दिन रात्रि कर्फ्यू भी है। राज्य ने बीते दिन 32,819 कोविड मामले दर्ज किये, जो कि किसी एक दिन की सर्वाधिक संख्या है, जिससे कुल संख्या बढ़कर 14,60,364 हो गयी है। जांच सकारात्मक दर 23.24 प्रतिशत थी। मरने वालों की संख्या बढ़कर 5,170 हो गयी है। बीते दिन राज्य में 1,13,009 लोगों को टीका लगा।
तमिलनाडुः राज्य पहली मई से 18 साल से ऊपर के सभी को मुफ्त में टीका लगाने की तैयारी कर रही है, इसलिये तमिलनाडु सरकार ने पहले चरण में 1.5 करोड़ कोविड-19 टीके की खरीद का आदेश दे दिया है। तमिलनाडु के लोक निर्माण विभाग ने मंगलवार को ऐलान किया कि वो राज्य में अतिरिक्त 12,370 बेड में ऑक्सीजन पाइपलाइन उपलब्ध करायेगा। सोमवार को तमिलनाडु ने कोविड-19 के 15,684 मामले दर्ज किये, जिससे राज्य में संक्रमितों की कुल संख्या 10,97,672 हो गयी। इसमें से चेन्नई में 4250 सकारात्मक मामले दर्ज हुए, जिससे शहर के संक्रमितों की कुल संख्या 3,14,074 पर पहुंच गयी। बीते दिन राज्य में 1,41,458 लोगों को टीका लगा। इसके साथ राज्य में कुल 56,26,091 लोगों को टीका लगाया जा चुका है, इसमें से 44,96,115 लोगों को टीके की पहली खुराक और 11,29,976 को दूसरी खुराक मिल चुकी है।
कर्नाटकः दर्ज हुए नये मामलेः 31,830; कुल सक्रिय मामलेः 301899; कोरोना से हुई मौतेंः 180, कोरोना से कुल मौतेंः 14,807। बीते दिन 1,33,662 को टीका लगा, इसके साथ राज्य में अब तक कुल 90,43,861 को टीका लगाया जा चुका है। शहर में कोविड के आम बेड की कोई कमी नहीं है। बीबीएमपी के मुख्य आयुक्त गौरव गुप्ता ने कहा कि संक्रमित मरीज कोविड हेल्पलाइन पर कॉल कर सकते हैं, और अस्पतालों में भर्ती हो सकते हैं, और उन्होने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वो अधिकार क्षेत्र की सभी निजी प्रयोगशालाओं से 24 घंटे के अंदर कोविड टेस्ट रिपोर्ट जारी करने के लिए परामर्श करें।
आंध्र प्रदेशः राज्य ने बीते 24 घंटे में कोविड 19 के 11,434 नये मामले और 64 मौतें दर्ज की हैं, वहीं 7055 संक्रमण से मुक्त हुए हैं। कुल मामलेः 10,54,875; सक्रिय मामलेः 99446; डिस्चार्जः 9,47,629; मौतेंः 7800। बीते दिन तक राज्य में कोविड टीके की कुल 61,77,974 खुराकें दी जा चुकी हैं। राज्य सरकार ने 40 बेड वाले अस्पतालों को कोविड अस्पतालों में बदलने का अहम निर्णय लिया है, और हर निर्वाचन क्षेत्र में केयर सेंटर स्थापित करने के लिये कदम उठाये गये हैं। अधिकारी हर निर्वाचन केंद्र में कॉलेजों की पहचान करने में लगे थे। सरकार वितरण के लिए हर दिन 12,000 रेमडिसिवर इंजेक्शन का प्रबंध कर रही है। इसी बीच टीटीडी प्रशासन ने पहली मई से प्रतिबंधों को फिर से लागू करने का फैसला लिया है, मंदिर के उप कार्यकारी अधिकारी के अनुसार मौजूदा 25000 की जगह अब प्रतिदिन 15,000 श्रद्धालु को ही दर्शन की अनुमति होगी।
तेलंगानाः राज्य में एक दिन के दौरान कुल 8,061 नये कोविड मामले और 56 मौतें दर्ज हुईं। मंगलवार शाम तक राज्य के सभी श्रेणियों में टीके की पहली खुराक पाने वालों की कुल संख्या 38,48,591 और दूसरी खुराक पाने वालों की संख्या 5,49,898 थी। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री श्री इटेला राजेंद्र ने कहा कि राज्य में मेडिकल ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है और राज्य में अगले एक हफ्ते के अंदर कोविड मरीजों के लिये 3010 अतिरिक्त ऑक्सीजन बेड उपलब्ध करा दिये जायेंगे। हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक जो कि कोवैक्सीन का निर्माण कर रही है, ने तेलंगाना सरकार के द्वारा राज्य को टीके की अधिकतम खुराकों की आपूर्ति के अनुरोध पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। तेलंगाना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आरटी-पीसीआर जांच बढ़ाने और होम आइसोलेशन में रह रहे कोविड मरीजों को टेलीमेडिसिन सुविधा उपलब्ध कराने के लिए हितम (होम आइसोलेशन टेलीमेडिसिन एंड मॉनिटरिंग) एप को फिर से शुरू करने का निर्देश दिया।
असमः असम सरकार ने कोविड-19 मामलों में बढ़त के बीच पूरे असम में रात 8 बजे से सुबह 5 बजे के बीच रात्रि कर्फ्यू लगा दिया है। मंगलवार को राज्य को 5 लाख खुराकें मिली हैं। ऐसे जिलों में जहां कोविड मामलों की संख्या 300 से ज्यादा होगी, प्री-प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालयों तक सभी स्कूल और कॉलेज 15 दिन के लिए बंद रहेंगे।
मणिपुरः राज्य में कोविड 19 से बीते 24 घंटे के दौरान 3 और लोगों की मौत हो गयी, जबकि 175 लोग जांच में संक्रमित पाये गये। अब तक राज्य में 1,39,457 लोगों को कोविड के खिलाफ टीका लग चुका है।
मेघालयः मंगलवार को लगातार 9वें दिन मेघालय ने 100 से ज्यादा नये मामले दर्ज किये। राज्य में इस दिन 4 मौतें भी दर्ज हुईं जिससे कुल मृतकों की संख्या बढ़कर 165 हो गयी। मंगलवार को 147 नये मामलों के साथ राज्य में अब 1,456 सक्रिय मामले हैं। साथ ही मंगलवार को राज्य में 90 लोग संक्रमण मुक्त भी हुए। स्वास्थ्य मंत्री ए एल हेक ने मंगलवार को कहा कि राज्य सरकार 20 मई तक राज्य में 3 ऑक्सीजन उत्पादक संयंत्र स्थापित करने की प्रक्रिया पूरी कर लेगी। राज्य सरकार ये जांच रही है कि कोविड 19 का कौन सा स्ट्रेन मेघालय में मामलों में तेज बढ़ोतरी कर रहा है और मृतकों की संख्या बढ़ा रहा है।
सिक्किमः केंद्रीय रक्षा मंत्री ने राज्यपाल के साथ सिक्किम में कोरोना की स्थिति पर समीक्षा की। सिक्किम में 97 नये मामले और 2 मौतें दर्ज होने की वजह से सरकारी कार्यालय एक हफ्ते के लिये बंद कर दिये गये हैं। देश में कोरोना में बढ़त के बाद नेपाल ने भारत के साथ अपनी सीमायें बंद कर दी हैं।
त्रिपुराः बीते 24 घंटे में 111 कोविड मामले और 2 मौतें दर्ज की गयीं।त्रिपुरा हाईकोर्ट में 31 मई तक वर्चुअली सुनवाई होगी। निचली अदालत जरूरी मामलों पर सुनवाई करेगी, लेकिन ऐसे मामलों की सुनवाई कोर्ट रूम में होगी।
नागालैंडः नागालैंड ने मंगलवार को 207 नये मामलों के साथ अब तक की सबसे अधिक दैनिक बढ़त दर्ज की। सक्रिय मामले अब 874 हैं। नागालैंड कैबिनेट ने 30 अप्रैल से 14 मई तक लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया है। संयुक्त दिशानिर्देश कल जारी होंगे। ये भी फैसला लिया गया है कि 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को कोविड वैक्सीन मुफ्त में लगायी जायेगी।
पंजाबः संक्रमित पाये गये मरीजों की संख्या 351282 है। सक्रिय मामलों की संख्या 51936 है। दर्ज की कुल मौतों की संख्या 8630 है। कोविड 19 टीके की पहली खुराक पाने वालों ( हेल्थकेयर + फ्रंटलाइन कर्मचारी)की कुल संख्या 599384 है। कोविड 19 टीके की दूसरी खुराक पाने वालों ( हेल्थकेयर + फ्रंटलाइन कर्मचारी)की कुल संख्या 174908 है। 45 साल से ऊपर टीके की पहली खुराक पाने वालों की संख्या 2167231 है। 45 साल से ऊपर टीके की दूसरी खुराक पाने वालों की संख्या 164329 है।
चंडीगढ़ः प्रयोगशाला से पुष्टि हुए कुल कोविड -19 मामले 40,350 हैं। कुल सक्रिय मामले 5980 हैं। अब तक कोविड 19 से मरने वालों की संख्या 446 है।
हिमाचलप्रदेशः अब तक कोविड संक्रमित मरीजों की कुल संख्या 91350 है। सक्रिय मामलों की कुल संख्या 15151 है। अब तक दर्ज हुई कुल मौतें 1374 हैं।
|
01dd6477474bc58a0b248718af0e0d66b4b7b1f8 | web | आनन्दपुर साहिब भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्य पंजाब के रूपनगर ज़िले का एक इतिहासक नगर है। .
10 संबंधोंः डाक सूचक संख्या, पंजाब (भारत), पंजाबी भाषा, भारत के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेश, भारत के ज़िले, भारतीय मानक समय, रूपनगर जिला, सिखों के दस गुरू, होला मोहल्ला, गुरु तेग़ बहादुर।
डाक सूचक संख्या या पोस्टल इंडेक्स नंबर (लघुरूपः पिन नंबर) एक ऐसी प्रणाली है जिसके माध्यम से किसी स्थान विशेष को एक विशिष्ट सांख्यिक पहचान प्रदान की जाती है। भारत में पिन कोड में ६ अंकों की संख्या होती है और इन्हें भारतीय डाक विभाग द्वारा छांटा जाता है। पिन प्रणाली को १५ अगस्त १९७२ को आरंभ किया गया था। .
पंजाब (भारत)
पंजाब (पंजाबीः ਪੰਜਾਬ) उत्तर-पश्चिम भारत का एक राज्य है जो वृहद्तर पंजाब क्षेत्र का एक भाग है। इसका दूसरा भाग पाकिस्तान में है। पंजाब क्षेत्र के अन्य भाग (भारत के) हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्यों में हैं। इसके पश्चिम में पाकिस्तानी पंजाब, उत्तर में जम्मू और कश्मीर, उत्तर-पूर्व में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में हरियाणा, दक्षिण-पूर्व में केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान राज्य हैं। राज्य की कुल जनसंख्या २,४२,८९,२९६ है एंव कुल क्षेत्रफल ५०,३६२ वर्ग किलोमीटर है। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है जोकि हरियाणा राज्य की भी राजधानी है। पंजाब के प्रमुख नगरों में अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, पटियाला और बठिंडा हैं। 1947 भारत का विभाजन के बाद बर्तानवी भारत के पंजाब सूबे को भारत और पाकिस्तान दरमियान विभाजन दिया गया था। 1966 में भारतीय पंजाब का विभाजन फिर से हो गया और नतीजे के तौर पर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश वजूद में आए और पंजाब का मौजूदा राज बना। यह भारत का अकेला सूबा है जहाँ सिख बहुमत में हैं। युनानी लोग पंजाब को पैंटापोटाम्या नाम के साथ जानते थे जो कि पाँच इकठ्ठा होते दरियाओं का अंदरूनी डेल्टा है। पारसियों के पवित्र ग्रंथ अवैस्टा में पंजाब क्षेत्र को पुरातन हपता हेंदू या सप्त-सिंधु (सात दरियाओं की धरती) के साथ जोड़ा जाता है। बर्तानवी लोग इस को "हमारा प्रशिया" कह कर बुलाते थे। ऐतिहासिक तौर पर पंजाब युनानियों, मध्य एशियाईओं, अफ़ग़ानियों और ईरानियों के लिए भारतीय उपमहाद्वीप का प्रवेश-द्वार रहा है। कृषि पंजाब का सब से बड़ा उद्योग है; यह भारत का सब से बड़ा गेहूँ उत्पादक है। यहाँ के प्रमुख उद्योग हैंः वैज्ञानिक साज़ों सामान, कृषि, खेल और बिजली सम्बन्धित माल, सिलाई मशीनें, मशीन यंत्रों, स्टार्च, साइकिलों, खादों आदि का निर्माण, वित्तीय रोज़गार, सैर-सपाटा और देवदार के तेल और खंड का उत्पादन। पंजाब में भारत में से सब से अधिक इस्पात के लुढ़का हुआ मीलों के कारख़ाने हैं जो कि फ़तहगढ़ साहब की इस्पात नगरी मंडी गोबिन्दगढ़ में हैं। .
पंजाबी (गुरमुखीः ਪੰਜਾਬੀ; शाहमुखीः پنجابی) एक हिंद-आर्यन भाषा है और ऐतिहासिक पंजाब क्षेत्र (अब भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित) के निवासियों तथा प्रवासियों द्वारा बोली जाती है। इसके बोलने वालों में सिख, मुसलमान और हिंदू सभी शामिल हैं। पाकिस्तान की १९९८ की जनगणना और २००१ की भारत की जनगणना के अनुसार, भारत और पाकिस्तान में भाषा के कुल वक्ताओं की संख्या लगभग ९-१३ करोड़ है, जिसके अनुसार यह विश्व की ११वीं सबसे व्यापक भाषा है। कम से कम पिछले ३०० वर्षों से लिखित पंजाबी भाषा का मानक रूप, माझी बोली पर आधारित है, जो ऐतिहासिक माझा क्षेत्र की भाषा है। .
भारत राज्यों का एक संघ है। इसमें उन्तीस राज्य और सात केन्द्र शासित प्रदेश हैं। ये राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश पुनः जिलों और अन्य क्षेत्रों में बांटे गए हैं।.
तालुकों में बंटे हैं ज़िला भारतीय राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश का प्रशासनिक हिस्सा होता है। जिले फिर उप-भागों में या सीधे तालुकों में बंटे होते हैं। जिले के अधिकारियों की गिनती में निम्न आते हैं.
मिर्ज़ापुर और 82.5° पू के स्थान, जो भारतीय मानक समय के संदर्भ लम्बाई के लिए व्यवहार होता है भारतीय मानक समय (संक्षेप में आइएसटी) (अंग्रेज़ीः Indian Standard Time इंडियन् स्टैंडर्ड् टाइम्, IST) भारत का समय मंडल है, एक यूटीसी+5:30 समय ऑफ़सेट के साथ में। भारत में दिवालोक बचत समय (डीएसटी) या अन्य कोइ मौसमी समायोग नहीं है, यद्यपि डीएसटी 1962 भारत-चीन युद्ध, 1965 भारत-पाक युद्ध और 1971 भारत-पाक युद्ध में व्यवहार था। सामरिक और विमानन समय में, आइएसटी का E* ("गूंज-सितारा") के साथ में नामित होता है। --> .
रूपनगर भारतीय राज्य पंजाब का एक ज़िला है। क्षेत्रफल - वर्ग कि॰मी॰ जनसंख्या - (2001 जनगणना) साक्षरता - एस॰टी॰डी॰ कोड - जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में) समुद्र तल से उचाई - अक्षांश - उत्तर देशांतर - पूर्व औसत वर्षा - मि॰मी॰ .
श्रेणीःसिख धर्म.
होला मोहल्ला सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनन्दपुर साहिब मे होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिखों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहाँ पर होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है। इसीलिए दशम गुरू गोविंद सिंह जी ने होली के लिए पुल्लिंग शब्द होला मोहल्ला का प्रयोग किया। गुरु जी इसके माध्यम से समाज के दुर्बल और शोषित वर्ग की प्रगति चाहते थे। होला महल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छः दिन तक चलता है। इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से 'महा प्रसाद' पका कर वितरित किया जाता है। पंज पियारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं। आनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है। कहते है गुरु गोबिन्द सिंह (सिक्खों के दसवें गुरु) ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है। .
गुरू तेग़ बहादुर (1 अप्रैल, 1621 - 24 नवम्बर, 1675) सिखों के नवें गुरु थे जिन्होने प्रथम गुरु नानक द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण करते रहे। उनके द्वारा रचित ११५ पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं। उन्होने काश्मीरी पण्डितों तथा अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हे इस्लाम कबूल करने को कहा कि पर गुरु साहब ने कहा सीस कटा सकते है केश नहीं। फिर उसने गुरुजी का सबके सामने उनका सिर कटवा दिया। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग़ बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। अंगूठाकार गुरुद्वारा शीशगंज साहिब के अन्दर का दृष्य इस महावाक्य अनुसार गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था। आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग़ बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे। 11 नवंबर, 1675 ई को दिल्ली के चांदनी चौक में काज़ी ने फ़तवा पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने तलवार करके गुरू साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया। किन्तु गुरु तेग़ बहादुर ने अपने मुंह से सी तक नहीं कहा। आपके अद्वितीय बलिदान के बारे में गुरु गोविन्द सिंह जी ने 'बिचित्र नाटक में लिखा है- .
|
ce07c7593a6ebc967ff1fdba488bbc505bcecc17 | speech | Venha querido.
Vir.
Devo fazer o seu 'Aarti' também?
não vocês dois.
Vir.
Mãe..
à minha casa pela primeira vez.
pelo menos isso.
Vamos.
Ayush..
Esta é a sua casa.
Tenho móveis novos para você.
Você não vai precisar disso.
quero mostrar. Vamos.
Olhar.
Aqui está uma cama.
e tudo isso ao longo da cama.
Isso é bom?
lençol da Suhana, certo?
Por que você colocou isso aqui?
Vou pegar outro.
Suhana tem tantos brinquedos.
Eles estão por toda parte.
para Ayush.
que ele gosta.
ela é possessiva com suas coisas.
nem com Shubh.
Sonakshi, você tem que pegála..
Você me disse isso..
pelos sentimentos dela.
poucos tudo vai ficar bem.
As coisas vão se acalmar.
com Suhana.
Você sabe como ela é.
em todos esses anos.
dividir o quarto com Ayush.
Não sei como ela vai reagir.
aqui ou não.
los entender.
Como ele pode entender, Dev?
Ele é apenas uma criança.
em apenas um dia?
e compreender muito.
amadurecem muito rapidamente.
quando meu pai foi embora.
Ayush também entenderá.
É estranho que Que eu possa entender a dor dele.
Mas não posso fazer nada.
Não posso salválo dessa dor.
vou lhe mostrar o templo.
afinal.
à casa dele.
É tudo por sua causa.
sobre nós, Deus.
Junte as mãos, querido.
diante de Deus.
você está com fome?
Do que você gosta?
isso para você rapidamente.
Digame.
você está chateado.
Mas, querido Nós somos seus entes queridos.
Esta é a sua casa.
para sua casa.
Eu sou sua avó.
Você é meu neto.
Como posso ver você triste?
Você é o Dev júnior.
Meu desenvolvedor júnior.
quando criança.
sorrindo.
Dizer algo.
Dizer algo.
Por favor.
Ayushmaan.
isso?
com alguém de agora em diante.
Quem é esse?
Estamos esperando um convidado?
Sim! Eu tenho um bom amigo.
Ayushmaan.
Ele vai ficar com você.
Mas por que meu quarto?
Querido..
filho do amigo do seu pai.
sua faixa etária.
se ficarem juntos.
Quanto tempo ele vai ficar aqui?
algum problema na casa dele.
de resolver isso.
Então, ele vai ficar apenas aqui.
e sensata, certo?
cuidar dele.
ok?
Por que?
Esta não é a casa dele.
Esta é a minha casa.
e carinhosa.
jeito nenhum.
jantar está pronto.
Todos vocês vêm.
Venha querido.
Sentese aqui.
Vir.
Sentar.
Sentese confortavelmente.
Ayushmaan? Oi.
do que você gosta?
O que você terá?
'Rajma', 'Channa', salada?
Nos digam.
Você vai querer 'Chaat'?
É picante e saboroso.
Quiabo também é saboroso.
Sim, eu preparei isso.
Você vai ter isso?
Alguém me sirva também.
seu prato favorito para você.
'Dum Aloo'.
'Dum Aloo'?
Uau! vegetais folhosos também.
dia e noite.
Tome isso, querido.
Tenha isso também.
Você vai querer 'Chaat'?
Eu servirei isso também.
Têlo.
Tenha sua comida.
Sogra, ele come mais tarde.
Não.
Quando ele comerá mais tarde?
e alimentarse adequadamente.
e comer o que quiserem.
que não faz bem à saúde.
ficar assim.
Vou fazêlo gostar do meu Dev.
Vamos, coma.
Ele não quer comer agora.
Ele comerá mais tarde.
Ele vai comer.
Você vai comer, querido?
comida tão saborosa para você.
Não é?
Comer.
coma com as mãos.
Comer.
Você viu aquilo?
Ele estava com tanta fome.
As crianças não percebem.
Muito bem Amor! sua comida corretamente.
Você viu, Sonakshi?
você deve fazêlo comer.
Bem, Ayush.
Deixeme leválo para o seu quarto.
OK. Vir.
Vá, querido.
Vamos, querido.
Como ele estava comendo?
Eu não gosto dele.
Por que você não gosta dele?
tendo acessos de raiva.
com ele.
Você nunca deve se recusar a comer.
Soha..
Soha, você não deveria..
Soha..
Soha, venha aqui.
O que eu disse a ela de errado?
por que você contou isso a ela?
ela é muito teimosa com relação à comida.
Shubh e Soha.
Você atende a todas as suas demandas.
como ela fará isso?
Sim, mas ele diria alguma coisa.
Ele conversaria com outras pessoas. Mas Ele não pronunciou uma única palavra.
Ayush está com medo, mãe?
Não, Dev.
em sua própria casa?
Sim, ele é novo neste lugar.
Somos novos para ele.
Portanto, ele deve estar se sentindo estranho.
Mas não se preocupe.
Deixe para mim.
Ayush parte desta família.
e meu neto.
'Está lindo, né?
melhor do que eu?
Não se preocupe.
na sua família?
problemas em sua família.
É por isso que você vai ficar aqui.
para ser legal com você.
Mas você não fala nada.
E você é tão rude.
Voce pode ficar aqui.
Mas não toque nos meus brinquedos.
Quão estúpido ele é?
licença.
Meu gibi..
não mexer nas minhas coisas?
Olha, podemos dividir o quarto.
minhas coisas com você.
Entendi?
O que há de errado com isso agora?
pela manhã.
de repente?
Pai! O que você está fazendo?
Tentando consertar o rádio.
Você não consegue ver?
meu pai.
bater assim.
novamente assim antes.
Pai, aquele rádio é muito antigo.
vou comprar um novo para você.
Uau, filho.
aqui também envelheceu.
Vá e vendao no mercado.
um novo pai.
Muito bom! conectar tudo com você.
Boa noite, senhores.
Jatina?
Venha, Jatin..
Muito obrigado.
Sr. Bose, deixe isso de lado.
Olha o que eu trouxe para você.
será um grande banquete hoje.
ser divertido hoje.
como vai seu trabalho?
seu trabalho se torna fácil.
no ramo.
Afinal, ela é minha irmã.
O que?
filha, afinal.
ela o faz com paixão.
o crédito também vai para você.
significado da amizade de infância.
para ela lidar com isso.
e também seu bom amigo.
tudo o que tem no coração.
Honestamente.
chegaram ao fim.
Sirva..
vamos fazer a nossa refeição.
Claro..
que acontecerá no futuro?
Você notou a reação de Soha?
o quarto com Ayush.
quartos separados para eles.
será bom para eles.
Não será bom para ninguém.
Quero dizer, Ayush não é um convidado.
embora depois de alguns dias.
Eles são irmãos.
Eles terão que ficar juntos.
isso é normal.
Eu também era assim.
muito o vínculo entre eles.
eles deveriam ficar juntos.
Eu sei, Dev.
Mas você deveria 'Ayush, por que você parou?
'Eu estou aqui! 'Sim! Vamos Você vai me pegar?
'Vir! Eu vou te pegar, pai.
Pai?
Onde você está, pai?
Pai?
O que aconteceu?
O que quebrou aqui?
Ayush?
Ayush, o que aconteceu?
Ayush?
Mãe..
Ayush, fique onde está.
Não se mova. OK?
Dev, tenha cuidado.
Dev, olhe ali.
Perto de Ayush.
Está lá também.
Vovó.. O que aconteceu?
Ayush.. Venha.
Venha querido.
Querido, por que você está com medo?
Está tudo bem..
Você não precisa ter medo.
Você não é uma criança corajosa?
Não tenha medo..
Está tudo bem..
Mãe. Nenhuma mãe.
Vou leválo para cima.
Vá dormir.
com seu pai?
por que sonha com ele?
Porque ele está perto de você.
cuidar de você.
na hora certa ou não.
Ele está realmente comigo?
Sim, querido.
E ele não pode vir aqui agora.
para cuidar de você.
um relatório sobre você.
Então, você vai me ouvir?
Bom garoto.
Agora, feche os olhos.
Ele sonhou com seu pai.
não havia ninguém ao seu redor.
Então, ele estava com medo.
nosso filho ficou longe de nós.
com oito anos de amor.
Agora ele não terá medo.
O que foi isso, Sonakshi?
Ayush estava com medo.
No entanto, você não foi até ele.
Dev, eu estavam com Ayush.
mas por que você não foi para Ayush?
por pedaços de vidro.
Ele poderia ter se machucado.
ir até ele?
'Aqui você vai.
Fique com isso, querido.
entender nada.
para entender, Sonakshi?
Tudo era evidente.
O que está errado?
Eu sei, Dev.. Mas eu..
Sonakshi..
até Ayush e confortado ele.
Mas você congelou. Por que?
por pedaços de vidro.
Ele poderia ter se machucado.
Você deveria ter ido até ele.
silêncio. Por que?
Venha querido.
Vir.
Devo fazer o seu 'Aarti' também?
Ayush veio aqui
pela primeira vez,
não vocês dois.
Vir.
Mãe..
Meu neto veio
à minha casa pela primeira vez.
Eu deveria ser capaz de fazer
pelo menos isso.
Vamos.
Ayush..
Esta é a sua casa.
Tenho móveis novos para você.
Você não vai precisar disso.
Há algo que
quero mostrar. Vamos.
Olhar.
Aqui está uma cama.
Tem também uma mesinha lateral
e tudo isso ao longo da cama.
Isso é bom?
Sogra, esse é o
lençol da Suhana, certo?
Por que você colocou isso aqui?
Vou pegar outro.
Sonakshi
Suhana tem tantos brinquedos.
Eles estão por toda parte.
O que há de errado em colocar
alguns aqui? Mas
vou comprar brinquedos novos
para Ayush.
Vou perguntar a ele e conseguir o
que ele gosta.
Você sabe como
ela é possessiva com suas coisas.
Ela não compartilha seus brinquedos
nem com Shubh.
Sonakshi, você tem que pegála..
Você me disse isso..
Que você terá consideração
pelos sentimentos dela.
Não se preocupe. Aos
poucos tudo vai ficar bem.
As coisas vão se acalmar.
Isso mesmo.. Mas estou preocupado
com Suhana.
Você sabe como ela é.
Nunca mudei coisas
no quarto dela
em todos esses anos.
E de repente, ela terá que
dividir o quarto com Ayush.
Não sei como ela vai reagir.
Ou se Ayush ficará
confortável
aqui ou não.
Sei que vai ser difícil,
mas temos que fazê
los entender.
Como ele pode entender, Dev?
Ele é apenas uma criança.
Como entender
em apenas um dia?
Sonakshi, alguém cuja
vida inteira mudou em um dia,
precisa aprender
e compreender muito.
Essas crianças
amadurecem muito rapidamente.
Como fiz
quando meu pai foi embora.
Ayush também entenderá.
É estranho que...
Que eu possa entender a dor dele.
Mas não posso fazer nada.
Não posso salválo dessa dor.
Venha, querido,
vou lhe mostrar o templo.
Você tem que agradecer a Deus,
afinal.
Depois de oito anos,
meu neto chegou
à casa dele.
É tudo por sua causa.
Mantenha suas bênçãos
sobre nós, Deus.
Junte as mãos, querido.
Coloque as mãos juntas
diante de Deus.
Querido,
você está com fome?
Do que você gosta?
Digame. A
vovó fará
isso para você rapidamente.
Digame.
Eu sei que
você está chateado.
Mas, querido...
Nós somos seus entes queridos.
Esta é a sua casa.
Você veio
para sua casa.
Eu sou sua avó.
Você é meu neto.
Como posso ver você triste?
Você é o Dev júnior.
Meu desenvolvedor júnior.
Nunca o vi sorrindo
quando criança.
Mas eu quero ver você
sorrindo.
Dizer algo.
Dizer algo.
Por favor.
Ayushmaan.
Mãe, o que é isso? Para que serve
isso?
Suhana, você dividirá
este quarto
com alguém de agora em diante.
Quem é esse?
Estamos esperando um convidado?
Sim! Eu tenho um bom amigo.
Ele tem um filho chamado
Ayushmaan.
Ele vai ficar com você.
Mas por que meu quarto?
Querido..
Ayushmaan é
filho do amigo do seu pai.
E ele pertence à
sua faixa etária.
Vocês se tornarão amigos
se ficarem juntos.
Quanto tempo ele vai ficar aqui?
Na verdade, há
algum problema na casa dele.
Eles não são capazes
de resolver isso.
Então, ele vai ficar apenas aqui.
E a nossa Suhana é inteligente
e sensata, certo?
Então, vamos
te dar uma responsabilidade
e você tem que
cuidar dele.
E não faça ele sentir
que esta não é a casa dele,
ok?
Por que?
Esta não é a casa dele.
Esta é a minha casa.
Sim, esta casa é sua
e sempre será sua,
mas temos que mostrar
que Suhana é uma boa menina
e carinhosa.
Se eu tiver que dividir meu quarto
para provar que sou uma boa garota,
não gosto disso. De
jeito nenhum.
Suhana, Dev, o
jantar está pronto.
Todos vocês vêm.
Venha querido.
Sentese aqui.
Vir.
Sentar.
Sentese confortavelmente.
Suhana, você conheceu
Ayushmaan? Oi.
Ayushmaan,
do que você gosta?
O que você terá?
'Rajma', 'Channa', salada?
Nos digam.
Você vai querer 'Chaat'?
É picante e saboroso.
Quiabo também é saboroso.
Sim, eu preparei isso.
Você vai ter isso?
Alguém me sirva também.
Preparei
seu prato favorito para você.
'Dum Aloo'.
'Dum Aloo'?
Uau!
Suhana, coma alguns
vegetais folhosos também.
Você come batatas
dia e noite.
Tome isso, querido.
Tenha isso também.
Você vai querer 'Chaat'?
Eu servirei isso também.
Têlo.
Tenha sua comida.
Sogra, ele come mais tarde.
Não.
Quando ele comerá mais tarde?
Esse é o erro
que vocês cometem. As
crianças devem ser obrigadas a sentar
e alimentarse adequadamente.
Caso contrário, eles vão sentar
em frente à TV
e comer o que quiserem.
Vão comer pizzas
e hambúrgueres, o
que não faz bem à saúde.
Não vou deixar meu Ayushmaan
ficar assim.
Vou fazêlo gostar do meu Dev.
Vamos, coma.
Ele não quer comer agora.
Ele comerá mais tarde.
Ele vai comer.
Você vai comer, querido?
Olha, eu preparei uma
comida tão saborosa para você.
Não é?
Comer.
Vamos,
coma com as mãos.
Comer.
Você viu aquilo?
Ele estava com tanta fome.
As crianças não percebem.
Muito bem Amor!
Você comeu
sua comida corretamente.
Você viu, Sonakshi?
É assim que
você deve fazêlo comer.
Bem, Ayush.
Deixeme leválo para o seu quarto.
OK. Vir.
Vá, querido.
Vamos, querido.
Como ele estava comendo?
Eu não gosto dele.
Por que você não gosta dele?
Eu vejo. Porque ele não estava
tendo acessos de raiva.
Suhana, aprenda algo
com ele.
Você nunca deve se recusar a comer.
Soha..
Soha, você não deveria..
Soha..
Soha, venha aqui.
O que eu disse a ela de errado?
Sogra,
por que você contou isso a ela?
Como você sabe,
ela é muito teimosa com relação à comida.
Você estragou
Shubh e Soha.
Você atende a todas as suas demandas.
Se você pedir a ela para mudar
de repente,
como ela fará isso?
Sim, mas...
eu pensei que se ele
sentasse com todo mundo para comer,
ele diria alguma coisa.
Ele conversaria com outras pessoas. Mas...
Ele não pronunciou uma única palavra.
Ayush está com medo, mãe?
Não, Dev.
Por que ele deveria sentir medo
em sua própria casa?
Sim, ele é novo neste lugar.
Somos novos para ele.
Portanto, ele deve estar se sentindo estranho.
Mas não se preocupe.
Deixe para mim.
Sei muito bem como fazer de
Ayush parte desta família.
Ele é seu filho
e meu neto.
'Não importa o que aconteça'
'ela não deveria
saber a verdade.'
'Não se preocupe com isso.'
'Não vou deixar que ela
saiba a verdade.'
'A importância de Suhana nesta
família permanecerá a mesma'
'como é agora.'
'Veja isso.'
'Eu mantive a cama aqui
e a mesa lateral.'
'E tudo isso com cama..'
'Está lindo, né?
'Este é o lençol favorito de Suhana
, certo?'
Quem pode entendêlo
melhor do que eu?
Não se preocupe.
O que aconteceu
na sua família?
Mamãe disse que há
problemas em sua família.
É por isso que você vai ficar aqui.
Mamãe me pediu
para ser legal com você.
Mas você não fala nada.
E você é tão rude.
Voce pode ficar aqui.
Mas não toque nos meus brinquedos.
Quão estúpido ele é?
Estou falando tanto
e ele fica quieto! Com
licença.
Meu gibi..
Eu não falei para você
não mexer nas minhas coisas?
Olha, podemos dividir o quarto.
Mas não vou compartilhar
minhas coisas com você.
Entendi?
O que há de errado com isso agora?
Estava funcionando bem
pela manhã.
Por que parou de funcionar
de repente?
Pai! O que você está fazendo?
Tentando consertar o rádio.
Você não consegue ver?
Minha filha não
me deixa dormir de noite
e de dia,
meu pai.
É um rádio, não é seu filho
bater assim.
Asha costumava fazer com que funcionasse
novamente assim antes.
Pai, aquele rádio é muito antigo.
Deixe isso de lado,
vou comprar um novo para você.
Uau, filho.
Faça uma coisa, seu pai
aqui também envelheceu.
Vá e vendao no mercado.
E traga para casa
um novo pai.
Muito bom!
Você sabe muito bem como
conectar tudo com você.
Boa noite, senhores.
Jatina?
Venha, Jatin..
Muito obrigado.
Sr. Bose, deixe isso de lado.
Olha o que eu trouxe para você.
Há lanchonetes de Shravani
no Parque Chitranjan
'Bhetki Paturi', peixe mostarda,
será um grande banquete hoje.
Uau! As
comidas de Shravani
são incríveis. Tem o
mesmo gosto da comida
que Asha costumava fazer. Vai
ser divertido hoje.
Então, Jatin,
como vai seu trabalho?
Quando o parceiro de negócios
é perfeccionista,
seu trabalho se torna fácil.
Sona está trabalhando tão bem que
temos grandes clientes
no ramo.
Afinal, ela é minha irmã.
O que?
Quero dizer, ela é sua
filha, afinal.
Querido, tudo o que Sona faz,
ela o faz com paixão.
Mas, para ser honesto,
o crédito também vai para você.
Você cumpriu o verdadeiro
significado da amizade de infância.
Ou então, quando o
relacionamento de Dev e Sona acabou,
foi muito difícil
para ela lidar com isso.
Mas você não apenas
cuidou dos negócios dela,
você se tornou seu parceiro de negócios
e também seu bom amigo.
Sintome aliviada em saber
que ela tem uma amiga
com quem pode compartilhar
tudo o que tem no coração.
Honestamente.
Todos os problemas de Sona
chegaram ao fim.
Sirva..
Tudo bem, então
vamos fazer a nossa refeição.
Claro..
'Ayush perdeu a mãe
muito jovem.'
'Posso ligar para você, senhorita?'
Se for assim agora, o
que acontecerá no futuro?
Você notou a reação de Soha?
Ela não se sente confortável em dividir
o quarto com Ayush.
Acho que deveríamos dar
quartos separados para eles.
Caso contrário, não
será bom para eles.
Não será bom para ninguém.
Quero dizer, Ayush não é um convidado.
Se ele morar em um quarto separado,
Soha pensará que ele irá
embora depois de alguns dias.
Eles são irmãos.
Eles terão que ficar juntos.
E se os irmãos moram juntos
eles vão brigar o tempo todo,
isso é normal.
Eu também era assim.
Mas essas brigas fortalecem
muito o vínculo entre eles.
Eu acho que
eles deveriam ficar juntos.
Eu sei, Dev.
Mas você deveria...
'Ayush, por que você parou?
Eu estou aqui.'
'Eu estou aqui!
Vamos.'
'Sim! Vamos...
Você vai me pegar?
'Vir! Eu vou te pegar, pai.
Vamos!'
'Pegar você!'
'Pai?'
'Pai!'
Pai?
Onde você está, pai?
Pai?
O que aconteceu?
O que quebrou aqui?
Ayush?
Ayush, o que aconteceu?
Ayush?
Mãe..
Ayush, fique onde está.
Não se mova. OK?
Dev, tenha cuidado.
Dev, olhe ali.
Perto de Ayush.
Está lá também.
Vovó.. O que aconteceu?
Ayush.. Venha.
Venha querido.
Querido, por que você está com medo?
Está tudo bem..
Você não precisa ter medo.
Você não é uma criança corajosa?
Não tenha medo..
Está tudo bem..
Mãe. Nenhuma mãe.
Vou leválo para cima.
Vá dormir.
Você sonhou
com seu pai?
Você sabe
por que sonha com ele?
Porque ele está perto de você.
Ele quer
cuidar de você.
Ele quer ver se você
está comendo bem ou não
e se está dormindo
na hora certa ou não.
Ele está realmente comigo?
Sim, querido.
E ele não pode vir aqui agora.
É por isso que ele
me nomeou, seu outro pai,
para cuidar de você.
E no final do dia
ele vai me pedir para lhe dar
um relatório sobre você.
Então, você vai me ouvir?
Bom garoto.
Agora, feche os olhos.
Ele sonhou com seu pai.
Quando ele acordou,
não havia ninguém ao seu redor.
Então, ele estava com medo.
Durante oito anos,
nosso filho ficou longe de nós.
Agora, vou regálo
com oito anos de amor.
Agora ele não terá medo.
O que foi isso, Sonakshi?
Ayush estava com medo.
No entanto, você não foi até ele.
'Vovó, o que aconteceu?'
Dev, eu...
eu estava com Soha e... sua
sogra e você
estavam com Ayush.
Eu estava lá,
mas por que você não foi para Ayush?
Ele estava cercado
por pedaços de vidro.
Ele poderia ter se machucado.
Você não teve vontade de
ir até ele?
'Aqui você vai.
Fique com isso, querido.
'Alguém me sirva também.'
Dev, não consegui
entender nada.
O que há
para entender, Sonakshi?
Tudo era evidente.
O que está errado?
Eu sei, Dev.. Mas eu..
Sonakshi..
Você deveria ter ido
até Ayush e confortado ele.
Mas você congelou. Por que?
Ayush estava cercado
por pedaços de vidro.
Ele poderia ter se machucado.
Você deveria ter ido até ele.
No entanto, você ficou lá em
silêncio. Por que?
|
97aafcfdc78483cfa0bf4b1acbd2dd67193f247b175669a9826527b7b17aaf95 | pdf | को व्यक्तिगत रूप से भेजा। वह अक्तूबर, १७७५ ६० को वलकत्ता पहुँचा तथा उसने व्यक्तिगत वार्तालाप द्वारा तथा लिखित रूप स भी पश्चिमी प्रा त की वस्तुस्थिति को सवथा स्पष्ट कर दिया। बम्बई के शासकों ने कलकत्ता की आनाओ का सवथा उल्लघन किया तथा अपनी शिकायतो वो इगलण्ड के गृहाधिकारियों के पास निणयाथ भेज दिया। इस उपाय द्वारा और भी अधिक जटिलताएँ उत्पन्न हो गयीं । स्वप क्लवत्ता की सभा फूट तथा वलहवा वेद्र बन गयो ।
वारेन हेस्टिग्ज की आना पर अक्तूबर १७७५ ई० म क्नल अपटन वलकत्ता से चल दिया। उसके साथ लगभग डेढ हजार अनुचरों को पक्ति के अतिरिक्त हाथी, पालकियों तथा ब्रिटिश सत्ता की महत्ता के अनुरूप अय उपकरण थे। सखाराम बापू ने उसको वु देलखण्ड तथा मालवा वे मराठा प्रदेश मे होकर यात्रा करने के लिए आज्ञापत्र दे रखे थे। हस्टिग्ज ने उसको माग स्थित विभिन्न सरदारों के नाम परिचयात्मक पत्र दिये थे। सखाराम बापू के पूछने पर हस्टिग्ज ने स्वीकार किया था कि क्नल अपटन को शान्ति को शर्तों को निश्चित करने के सम्व घ मे पूर्ण अधिकार दे दिये गये है। वह जो कुछ सधि करेगा उसका बम्बई तथा क्लक्त्ता दोनो के द्वारा श्रद्धापूर्वक पालन किया जायेगा। इस समय पर रघुनाथराव ने भी कलकत्ता को अपने प्रतिनिधि भेजे। उन्होंने अपटन वे आयोग वा तीव्र विरोध किया तथा सूरत की सधि के पालन को भाग उपस्थित को 199 परस्पर विरोधी हितो का सामजस्य करन तथा पश्चिमी तट पर बम्बई मराठा सम्ब धो को दूषित करने वाले क्लह वा शांतिमय समझौता करने मे हेस्टिग्ज को बहुत कष्ट हुआ । बम्बई के शासको ने अपटन से प्राथना की कि पूना जाने के पहले वह उनसे मिल ले, परंतु उसने इस प्रस्ताव को न मानने मे हो बुद्धिमत्ता समझी। अपटन ने नवम्बर मे कालपी म यमुना को पार किया तथा २८ दिसम्बर को पूना पहुँचा। वहाँ पर पेशवा शासन द्वारा उसका भय रूप में स्वागत किया गया । ३१ दिसम्बर वो पुर दरगढ मे आयोजित पूरे दरबार में उसका स्वागत किया गया। इसका सभापति शिशु पेशवा था जिसकी आयु उस समय लगभग २० मास की थी । इस समय रघुनाथराव तथा हरिपात के विरोधी दल सोनगढ़ के समीप गुजरात तथा काठियावाड की सीमा पर पडाव डाले पड़े हुए थे। अपटन के आगमन पर उनको अपनो सनिक प्रवृत्ति को शक देने को आना दी गयी ।
इस विषय पर पारसी पजिवा, जिल्द ४ न० १६१६ ३०४१ म मुद्रित पत्र व्यवहार देखो।
पूना के मत्रीगण बम्बई तथा कलकत्ता के बीच की नीति भिन्नता से इतने तग आ गये कि उहोने सीधे रघुनाथराव से शान्तिपूर्ण निपटारे का प्रयास करना ही श्रेयस्कर समझा। परंतु रघुनाथराव मे इतनी बुद्धि नहीं थी । उसकी मनोदशा भी किसी प्रकार का समझौता स्वीकार करने योग्य नहीं थी । बम्बई के अधिकारियों को भी घटनाचक्र से कुछ कम चिता नहीं थी । यद्यपि गुजरात पर व्यवहार रूप मे उनका अधिकार था, परतु इस दीघकालीन अभियान का व्यय इस समय इतना बढ़ गया था कि वे इसको सहन नहीं कर सकते थे । हरिपत ने उनकी परिस्थिति को अधिक कष्टप्रद बना देने मे विलम्ब नही किया । वर्षाऋतु के शीघ्र पश्चात उसने अपना आक्रमण आरम्भ कर दिया। इस प्रकार मराठो के दोनो दलो तथा अग्रेजो को इस युद्ध के कारण घोर असुविधा सहन करनी पड़ी। केवल दो शासको को इससे महत्त्वपूर्ण लाभ पहुँचा-वे थे हैदराबाद का निजाम तथा मैसूर का हैदरअली । वे दोनो अपने अपने क्षेत्रो मे जिन प्रदेशो पर अधिकार कर सकते थे उन पर उन्होंने अधिकार जमा लिया ।
रघुनाथराव की मक्कारी के कारण पूना शासन को बहुत कष्ट हुआ। उसने खानदेश के कोलियो को विद्रोह को उत्तेजना दी, तथा उसी क्षेत्र मे रणाला के गुलजारखाँ को मराठा शासन के विरुद्ध लूटमार करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार बार भाइयो को अनेक दिशाओं से असीम कष्ट सहना पडा । मानाजी फडके, त्रिम्बक सूर्याजी तथा रघुनाथराव ने अन्य पक्ष पातियो ने पूना की सभा को पगु कर देने के लिए अपकारक प्रवृत्तियो का आश्रय लिया। इस अकारण अपकार के परिणामस्वरूप भी रघुनाथराव को अपने उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की कोई सहायता प्राप्त न हुई। उल्टा वह घोरतम सक्ट मे फँमा रहा। २३ जनवरी, १७७६ ई० को वह अग्रेजी शिविर से इस प्रकार लिखता है "मैं अपनी वतमान दशा पर भयानक रूप से दुखी हूँ। मैं भूखा मर रहा हूँ। मेरे पास धन नहीं है मेरी सेना मे विद्रोह फल रहा है मेरे अग्रेज मित्रो को सस्या इतनी कम है कि उनके बनाये कुछ भी नहीं बन सकता । मुझे पहले उनको शक्ति में प्रवल विश्वास था, परन्तु इस विषय मे मुझे बहुत धोखा हुआ है। हरिपन्त किसी भी क्षण मुझे पक्ड सकता है।' रघुनाथराव के अत्यात उत्साही समयक सखाराम हरि ने भी उसी प्रकार शोक्पूर्ण शब्दों में पत्र लिखा है ।
८ पुरवर को सधि - पूना मे अपटन के आगमन से भा किसी प्रकार परिस्थिति न सँभलो । दोधवालीन वार्ता तथा चिन्तापूर्ण विवाद गतिरोध आ जान से तीन मास तक ज्यों के त्या बन रहे। सखाराम बापू, नाना तथा
कृष्णराव काले पूना की सभा के प्रमुख थे । गम्भीर शपथो द्वारा दोना पक्ष गोपनीयता के लिए बाध्य थे। ये अधिवेशन पुरदरगढ़ के नीचे कोडिन गाँव के एक डेरे मे प्रतिदिन तीसरे पहर को आरम्भ होकर प्राय सायकाल तक होते रहते थे। अपटन के पास एक सहायक के अतिरिक्त एक दुभाषिया भी रहता था। अत वार्तालाप को गति बहुत माद रही । अपने आगमन के शीघ्र पश्चात ही अपटन ने शिशु पेशवा के जन्म के विषय में सूक्ष्म अवेषण किया तथा जब उसको पूर्ण विश्वास हो गया कि शिशु जाली नहीं हैं, तभी उसने पूना शासन को सधि प्रस्ताव के निमित्त मान्यता प्रदान की।
अपने समस्त वार्तालाप मे अपटन ने यथाशक्ति प्रयास किया कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी को कुछ ठोस लाभ प्राप्त हो जाये उसने कहा कि वह रघुनाथराव के पक्ष से ब्रिटिश समधन को हटा लेने के लिए अपनी सहमति उसी समय देगा जब वसइ, साल्सेट ( साष्टी) तथा भडोच पर उसको स्थायो अधिकार दे दिया जायेगा । अग्रेजो का यह पका निश्चय था कि जिस प्रकार कलकत्ता तथा मद्रास के समुद्रवर्ती क्षेत्रों पर उनका बहुत दिनों से अधिकार है, उसी प्रकार बम्बई के लम्बे समुद्रतट पर उनका विवादरहित अधिकार होना चाहिए। परंतु मराठा शासन किसी भी आधार पर वसइ को छोड़ने के लिए सहमत नहीं हो सकता था, क्योंकि बसइ बम्बई का प्रतिद्वन्द्वी था तथा स्वतन्त्र सत्ता के रूप में उनके लिए यह मम स्थान था। पूना शासन के इस कड़े रुख पर अपटन को घोर निराशा हुई ।
दोनो पक्षों के बीच धोर मतभेद का एक अन्य विषय रघुनाथराव की स्थिति तथा उसके भावी पालन पोषण से सम्बंधित मामला था। अपटन ने हठ किया कि रघुनाथराव को सव प्रबधाधिकार प्राप्त सरक्षक नियुक्त कर दिया जाये, क्योकि पेशवा अल्पवयस्क शिशु है। इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से मंत्रियो ने यायपूवक इनकार कर दिया । म त्रयो का यह अाग्रह था कि रघुनाथराव हत्यारा तथा विद्रोही है, किसी कारण से भी उसको पूना लौटने को आज्ञा नही मिल सकती। उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता कि दिवगत पेशवा का औरस शिशु उसकी रक्षा मे सकुशल रह सकेगा। इसके विपरीत उन्होंने रघुनाथ राव को पूणत सौंप देने की मांग की। अपटन ने कहा कि रघुनाथराव उनका अतिथि है बदी नही। उसके साथ वे कवल इतना कर सकते हैं कि उससे अपना समधन वापस ले लें परतु वे उसको स्वयं समर्पित न करेंगे। जब अग्रेज उसकी सहायता न करेंगे तब पूना की परिषद उसके साथ जसा चाहे वैसा व्यवहार कर सकती है। मंत्रियो द्वारा प्रस्तावित स्वत्वो के औचित्य पर अपटन ने वाद विवाद नहीं किया परतु बम्बई के अधिकारी बसइ तथा रघुनाथ |
1af1f7b203fc3f8eb46a149c37618f4cf157bbbac28fb280d907b31bfd10da21 | pdf | पत्र : च० राजगोपालाचारीको
कारण मुझसे कुछ कहा नही, लेकिन तुम्हे बहुत अटपटा लगा था, झुंझलाहट चाहे न भी हुई हो । मैने उनसे कहा कि तुम इतने भले आदमी हो कि अगर तुम्हे सचमुच अटपटा लगा होता तो मुझसे छिपाते नही, और छिपाना तुम्हारे स्वभावके विपरीत होगा । मैंने यह भी कहा कि खास इस मामलेमे तो तुमने मेरा प्रस्ताव पसन्द भी किया है, और अगर यह पता चले कि तुमने उसे पसन्द नही किया है और तुम अपनेको सचमुच बहुत अटपटी स्थितिमे पा रहे हो, तो भी मेरे लिए हर मौकेपर तुमसे या अन्य साथियोसे परामर्श कर सकना असम्भव है । मैने इससे आगे बढ़कर यह भी कहा कि इस ढगसे तो काम कर सकना लगभग असम्भव हो जायेगा । लोग साथ मिलकर काम तभी करते है जब उनके बीच बुनियादी सिद्धान्तोके ऊपर सहमति होती है और सामान्यत इन बुनियादी सिद्धान्तो परसे निकाले गये उनके निष्कर्ष एक जैसे ही होते है। और यदि कभी-कभी वे भिन्न निष्कर्षोपर पहुँचे तो भी समय रहते अपनी गलतीको स्वीकार कर लेनेसे उनकी दोस्ती और उनका जो समान उद्देश्य है, वे दोनो ही अक्षत रहते है । लेकिन मेरी किसी भी वातसे वल्लभभाई सन्तुष्ट नही हुए । तब 'कर्फ्यू बेल,' जिसपर हम दोनोकी परस्पर सहमति थी, ने हमारी रक्षा की और इस प्रकार हमारी यह वहस, जिसके खत्म होनेके लक्षण नहीं थे, खत्म हुई । लेकिन मैं इस निश्चय के साथ बिस्तरपर लेटा कि मै यह सारा मामला तुम्हारे सामने रखूंगा। तुम्हारा उत्तर जो भी होगा, उससे तुम्हारे वकीलको कुछ तसल्ली पहुँचेगी, और तुम जानते हो कि अगर तुम अपने वकीलके दोनो मुद्दोसे सहमति व्यक्त करोगे तो मुझे कोई गम नही होगा। उनके दोनो मुद्दे ये है पडित पचानन तर्करत्नके सामने मैने जो समझौता प्रस्ताव रखा था उसे ससारके सामने प्रकट करनेसे पहले मुझे तुमसे परामर्श करना चाहिए था, और दूसरे यह कि मैने निश्चित ही तुम्हे अटपटी स्थितिमे डाल दिया है। इन मुद्दोपर अपनी राय व्यक्त करनेके साथ ही तुम यह भी लिखना कि गुणावगुणके खयालसे तुम मेरे प्रस्तावको ठीक समझते हो या नही ।
कल यहाँ जो कुछ हुआ उसे एक दुखान्त नाटक ही कहा जायेगा । कल पाँच पडित और उनके पाँच सलाहकार नियत समयसे डेढ घटा पीछे जेलके फाटकपर पहुँचे और मेरे साथ सक्षिप्त टिप्पणियोके आदान-प्रदानमे ढाई घंटे लगा दिये। जिन तीन टिप्पणियोका' उनके और मेरे वीच आदान-प्रदान हुआ उन्हीने ढाई घटेका सारा समय ले लिया । आप विश्वास नही करेगे कि वे अन्दर आकर बातचीत करनेको इस कारण तैयार नही हुए क्योकि मैने उनके मसविदेमे जो एक शब्द जोड़ दिया था उसे उठानेको मै तैयार नही था । यह शब्द था 'अस्पृश्यो' शब्दके आगे जोडा गया एक विशेषण । यह विशेषण जो मैने लगाया था, यह था. "मौजूदा वर्गीकरणके । अनुसार । " निस्सन्देह इससे उनकी बहसका सारा विषय ही बदल जाता था । अत वे लौट गये । वेशक हमारा कहना यह नहीं है कि शास्त्रोमे अस्पृश्यताका स्थान है ही नही । हमारा कहना यह है कि जिस प्रकारकी अस्पृश्यता हम आज देखते है
१. देखिए पृष्ठ ४०-४१ ।
उसका शास्त्रोमे कोई स्थान नही है। पडितोंसे यह सिद्ध करना अपेक्षित था कि अस्पृश्यताका जो स्वरूप आज प्रचलित है, शास्त्रोमे उस अस्पृश्यताका समर्थन किया गया है। यह चीज ईमानदारीसे सिद्ध नहीं की जा सकती। उनकी ओरसे जो भी शास्त्रोक्ति अभीतक की गई है उससे यह बात सिद्ध नही हुई है। हमारी ओरसे जो शास्त्री बोल रहे है वे वास्तवमे बहुत विद्वान लोग है और धर्मनिष्ठ भी है। वे ईमानदारीसे ऐसा मानते है कि वर्तमान ढगकी अस्पृश्यताका शास्त्रोमे कोई औचित्य नही है । वास्तविक अस्पृश्यता तो सदैव रहेगी। यह एक बहुत ठीक ढगका सफाई और स्वच्छताका नियम है जिसपर सारे ससारमे आचरण किया जाता है ।
अग्रेजीकी माइक्रोफिल्म ( एस० एन० १८९२२ ) से ।
४९. पत्रः जॉर्ज जोजेफको
प्रिय जोजेफ,
तुम्हारा पत्र पाकर, और विशेषकर प्यारेलालके नाम तुम्हारे पत्रसे' मुझे जो प्रसन्नता हुई उसकी कल्पना तुम मेरे वर्णनकी अपेक्षा ज्यादा अच्छी तरह कर सकते हो । मै तुम्हारा पत्र उसतक पहुँचवानेकी कोशिश करूंगा। लेकिन उस पत्रके बारेमे मै दो चीजे कहना चाहूँगा ।
मेरा अनशन शाब्दिक अर्थमे आमरण अनशन नही था । इस जेलमें जो रोमन कैथॉलिक पादरी आता है वह मुझे जानता है, और मेरा अनशन शुरू होनेकी पूर्वसध्याको वह अपने करुणापूर्ण स्वभावके अनुसार केवल एक शब्द कहनेके लिए मेरे पास आया और उसने बताया कि वह आत्मघात और बलिदानके बीच क्या भेद मानता है । आत्मघाती व्यक्तिके मनमे नष्ट हो जानेका निश्चय रहता है । बलिदानका अर्थ है जीवनको खतरेमे डालना, और जितना बडा खतरा, उतना ही बड़ा त्याग । लेकिन इसमे खतरेसे आगेकी कोई बात नही होनी चाहिए। इस अन्तरको स्वीकार करके उससे सहमत होनेमे मुझे कोई हिचकिचाहट नही थी, और मेरा अनशन चूँकि सशर्त था इसलिए यह अनशन आत्मघात नही था बल्कि एक ऐसा अनशन था जिसमें मृत्युका खतरा तो था, लेकिन था खतरा ही, इससे ज्यादा कुछ नही ।
१. इस पत्र में जोजेफने प्यारेलालकी पुस्तक द एपिक फास्ट पर अपने विचार व्यक्त किये थे और लिखा था • " अन्तरकी आवाज या तो भ्रम है या ईश्वरको आवाज है। यदि यह सचमुच ईश्वरको आवाज है तो वह आत्म-हननकी सलाह नहीं दे सकती, क्योकि ईश्वर जो जीवन देता है उसे केवल वही समाप्त कर सकता है।
पत्र : जॉर्ज जोजेफको
तुम्हे यह जानकारी दिलचस्प लगेगी कि मेरे कुछ रोमन कैथॉलिक मित्रोने अनशनमे कोई दोष नही देखा है। बेशक, हिन्दू धर्ममे कुछ ऐसे आत्यन्तिक उदाहरण हिन्दू-धर्ममे भी है जिनमें जीवनका अन्त कर लेना एक अनिवार्य नियम है, लेकिन इनपर फिलहाल हमे विचार करनेकी जरूरत नही है । हिन्दू धर्म और अन्य धर्मोमें इस बातपर सामान्यरूपसे सहमति है कि आत्मघात करना पाप है।
अब रही अन्तरकी आवाजकी बात । तुम्हारी इस बातसे मै पूरे दिलसे सहमत हो सकता हूँ कि ईश्वरकी आवाज कभी पाप-कर्मकी सलाह या उसका समर्थन नही कर सकती। पाप करनेका प्रोत्साहन केवल शैतान दे सकता है। लेकिन असली कठिनाई तब खड़ी होती है जब पापका प्रश्न स्वय विवादास्पद हो । जो लोग अमुक कार्यको पाप मानते है वे स्वभावतः इस दावेको अमान्य कर देगे कि उसकी प्रेरणा ईश्वरने दी थी । इसीलिए एक प्रश्न के उत्तरमे मैने कहा था कि आत्मरक्षा के हेतु तथा उस सत्यकी खातिर जिसकी मै पूजा करता हूँ, मैं जिस बातका विश्वास करता हूँ उसे कहनेको बाध्य हूँ, लेकिन मेरे दावेको प्रासंगिक प्रश्नोको तय करनेके लिए दिये गये तर्कोंका अंग नहीं माना जाना चाहिए । देखा गया कि विरोधियोने उस दावेको अप्रासंगिक ही माना । ईश्वरकी आवाज सुननेका दावा किसी दृष्टान्त विशेषमे ठीक था या गलत, इसका निर्धारण दावा करनेवालेकी मत्युके बाद ही किया जा सकता है, और कुछ असाधारण मामलोमे तो इसका निर्धारण तब भी कठिन हो सकता है। इन मामलोमे दम्भसे भी ज्यादा बड़ा खतरा आत्म-प्रवचनाका है जिसकी शिकार मानवजाति सरलतासे हो जाती है । आत्म-प्रवंचनासे ग्रस्त लोगोके लिए बड़े-बड़े कामोकी सिद्धि कर लेना सम्भव है और इसके बावजूद उनका यह दावा कि उनके कार्योंके पीछे ईश्वरीय आवाजकी प्रेरणा है, सर्वथा गलत हो सकता है। ये अन्तिम ढंगकी कठिनाइयाँ है, जो समयके अन्ततक बनी रहेंगी, किन्तु यदि सत्यको कुछ भी प्रगति करनी है, तो आत्म-प्रवचनासे ग्रस्त लोगोको पूरा मौका मिलना ही चाहिए ।
अन्तमे पापोकी स्वीकारोक्तिका प्रश्न आता है। तुमको शायद पता न हो कि मेरे कुछ कैथॉलिक मित्र भी है जिनकी मै बहुत कद्र करता हूँ। मेरा स्वभाव है कि मैं छपी हुई कितावी चीजोकी अपेक्षा व्यक्तिगत सम्पर्कसे ही ज्यादातर ज्ञान प्राप्त करता हूँ । ये मित्र अभीतक स्पष्टरूपसे यह नहीं बता सके है कि पापोकी स्वीकारोक्ति और पापोकी स्वीकारोक्ति सुननेवालेका क्या प्रयोजन और कार्य है । जिस व्यक्तिको पापकी कोई प्रतीति ही नही है वह क्या स्वीकार करेगा, और यदि प्रतीति हो, तो मैं यह तो समझ सकता हूँ कि स्वीकारोक्ति सुननेवाला पादरी पापी व्यक्तिको पापोसे मुक्त कर दे, किन्तु क्या वह प्रायश्चित करनेवालेके भविष्य के कार्योका भी निर्देशन कर सकता है ? स्वीकारोक्ति सुननेवाले पादरीके स्थानपर हिन्दू धर्म गुरु है। मैने किसी गुरुकी तलाश जीवन भर की है, ऐसा गुरु जिसके कन्धोपर मैं अपने सारे बोझ डाल सकूँ और केवल उसकी इच्छानुसार काम करता हुआ घूमता फिरूँ । लेकिन ऐसी
१. बातचीतके लिए, देखिए परिशिष्ट २ । |
7f56d6eb13e8e4de9defdd199c8018d4dca4c05f618bf3a4f1486e6dfc35fed6 | pdf | मन्त्र ४१
इस नाद की ध्वनि प्रारम्भिक काल में समुद्र, मेघ, भेरी तथा झरनों से उत्पन्न ध्वनि के समान सुनायी देती है । इसके बाद बीच की अवस्था (मध्यमावस्था) में मृदङ्ग, घंटे और नगाड़े की भाँति यह ध्वनि सुनाई पड़ती है। अन्त में अर्थात् उत्तरावस्था में किङ्किणी, वंशी, वीणा एवं भ्रमर की ध्वनि के समान मधुर नादध्वनि सुनायी पड़ती है। इस प्रकार सूक्ष्मातिसूक्ष्म होते हुए नाना प्रकार के नाद सुनायी पड़ते हैं ॥३४-३५॥ महति श्रूयमाणे तु महाभेर्यादिकध्वनौ ।
तत्र सूक्ष्मं सूक्ष्मतरं नादमेव परामृशेत् ॥ ३६॥
निरन्तर नाद का अभ्यास करते हुए जब भेरी आदि की ध्वनि (आवाज) तेजी से सुनायी पड़ने लगे, तब उसमें भी सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतर नाद के सुनने का विचार करना चाहिए ॥ ३६ ॥
घनमुत्सृज्य वा सूक्ष्मे सूक्ष्ममुत्सृज्य वा घने । रममाणमपि क्षिप्तं मनो नान्यत्र चालयेत् ॥ ३७॥
(नाद में रुचि रखने वाले साधक को चाहिए कि) वह घन नाद को छोड़कर सूक्ष्मनाद (मन्द ध्वनि) या फिर सूक्ष्म नाद का परित्याग करके घन नाद में मन को केन्द्रित करे। अन्यत्र और कहीं भी इधर- उधर मन को भ्रमित न होने दे ॥ ३७॥
यत्र कुत्रापि वा नादे लगति प्रथमं मनः ।
तत्र तत्र स्थिरीभूत्वा तेन सार्धं विलीयते ॥ ३८ ॥
साधक का मन सर्वप्रथम जहाँ-कहीं किसी भी सूक्ष्म (अतिमन्द) अथवा घननाद (अभेद्यध्वनि) में लगता है। उसको (मन को) वहीं केन्द्रित करना चाहिए। ऐसा करने से वह (चित्त) स्वयमेव तन्मय (विलीन) होने लगता है ॥ ३८ ॥
विस्मृत्य सकलं बाह्यं नादे दुग्धाम्बुवन्मनः ।
एकीभूयाथ सहसा चिदाकाशे विलीयते ॥ ३९ ॥
साधक का मन सभी सांसारिक बाह्य-प्रपंचों से विस्मृत होकर दूध में मिश्रित जल की भाँति नाद (ध्वनि) में एकीभूत हो जाता है। इस प्रकार वह (मन) नाद के साथ अकस्मात् ही चिदाकाश में स्वयं को विलय कर लेता है ॥ ३९ ॥
उदासीनस्ततो भूत्वा सदाभ्यासेन संयमी ।
उन्मनीकारकं सद्यो नादमेवावधारयेत् ॥ ४० ॥
संयमी पुरुष को चाहिए कि नाद - श्रवण से भिन्न विषयों-वासनाओं को उपेक्षित करके सतत अभ्यास द्वारा मन को तत्क्षण ही उस नाद में नियोजित करे और सदैव चिन्तन के द्वारा उसी में रमण करता रहे ॥ ४० ॥
सर्वचिन्तां समुत्सृज्य सर्वचेष्टाविवर्जितः ।
नादमेवानुसंदध्यान्नादे चित्तं विलीयते ॥ ४१ ॥
योगी साधक को चाहिए कि सतत चिन्तन करते हुए समस्त चिन्ताओं का परित्याग कर सभी तरह की चेष्टाओं से मन को हटाकर (उस) नाद का ही अनुसन्धान ( श्रवण-मनन-चिन्तन) करे; क्योंकि (चिन्तन द्वारा सहज ही) चित्त का नाद में लय हो जाता है ॥ ४१॥
मकरन्दं पिबन्भृङ्गो गन्धान्नापेक्षते यथा ।
नादासक्तं सदा चित्तं विषयं न हि काङ्क्षति ॥ ४२ ॥
जिस प्रकार भ्रमर फूलों का रस ग्रहण करता हुआ पुष्पों के गन्ध की अपेक्षा नहीं रखता है, ठीक वैसे ही सतत नाद में तल्लीन रहने वाला चित्त विषय-वासना आदि की आकांक्षा नहीं करता है ॥ ४२ ॥ बद्धः सुनादगन्धेन सद्यः संत्यक्तचापलः । नादग्रहणतश्चित्तमन्तरङ्गभुजङ्गमः ॥ ४३ ॥
यह चित्त रूपी अन्तरङ्ग भुजङ्ग (सर्प) नाद को सुनने के पश्चात् उस सुन्दर नाद की गन्ध से आबद्ध हो जाता है और तत्क्षण ही सभी तरह की चपलताओं का परित्याग कर देता है ॥ ४३ ॥
विस्मृत्य विश्वमेकाग्रः कुत्रचिन्न हि धावति । मनोमत्तगजेन्द्रस्य विषयोद्यानचारिणः ॥ ४४ ॥
नियामनसमर्थोऽयं निनादो निशिताङ्कुशः । नादोऽन्तरङ्गसारङ्गबन्धने वागुरायते ॥ ४५ ॥ अन्तरङ्गसमुद्रस्य रोधे वेलायतेऽपि वा ।
ब्रह्मप्रणवसंलग्ननादो ज्योतिर्मयात्मकः ॥ ४६॥
तदनन्तर ( वह मन) विश्व (सांसारिकता) को विस्मृत करके तथा एकाग्रता को धारण करके (विषयों में) इधर-उधर कहीं भी नहीं दौड़ता है। विषय-वासना रूपी उद्यान में विचरण करने वाले मन रूपी उन्मत्त गजेन्द्र को वश में करने में यह नादरूपी अति तीक्ष्ण अङ्कुश ही समर्थ होता है। यह नाद मनरूपी हिरण को बाँधने में जाल का कार्य करता है और मन रूपी तरङ्ग को रोकने में तट का काम करता है। ब्रह्मरूप प्रणव में संयुक्त हुआ यह नाद स्वयं ही प्रकाश स्वरूप होता है ॥ ४४-४६ ॥
मनस्तत्र लयं याति तद्विष्णोः परमं पदम् ।
तावदाकाशसंकल्पो यावच्छब्दः प्रवर्तते ॥ ४७ ॥
मन वहाँ ही (उस प्रकाश तत्त्व में) विलय को प्राप्त हो जाता है। वहीं परम श्रेष्ठ भगवान् विष्णु का परम पद है। मन में आकाश तत्त्व का संकल्प तभी तक रहता है, जब तक कि शब्दों का उच्चारण और श्रवण होता है ॥ ४७ ॥
निःशब्दं तत्परं ब्रह्म परमात्मा समीयते ।
नादो यावन्मनस्तावन्नादान्तेऽपि मनोन्मनी ।। ४८ ।।
निःशब्द (शब्दरहित ) होने पर तो वह (मन) परमब्रह्म के परमात्म-तत्त्व का अनुभव करने लगता है। नाद (ध्वनि) के रहने तक ही मन का अस्तित्व बना रहता है। नाद के समापन होने पर मन भी 'अमन' (शून्यवत् ) हो जाता है ॥ ४८ ॥
सशब्दश्चाक्षरे क्षीणे निःशब्दं परमं पदम् ।
सदा नादानुसंधानात्संक्षीणा वासना तु या ॥ ४९ ॥ निरञ्जने विलीयेते मनोवायू न संशयः । नादकोटिसहस्त्राणि बिन्दुकोटिशतानि च ॥ ५० ॥
मन्त्र ५६
सर्वे तत्र लयं यान्ति ब्रह्मप्रणवनादके । सर्वावस्थाविनिर्मुक्तः सर्वचिन्ताविवर्जितः ॥ ५१ ॥ मृतवत्तिष्ठते योगी स मुक्तो नात्र संशयः । शङ्खदुन्दुभिनादं च न शृणोति कदाचन ॥ ५२ ॥
सशब्द अर्थात् शब्दयुक्त नाद (ध्वनि) के अक्षर स्वरूप ब्रह्म में क्षीण (लय) हो जाने पर वह निःशब्द परमपद कहलाता है। जब सतत नाद का अनुसन्धान करने पर समस्त विषय-वासनाएँ पूर्णरूपेण नष्ट हो जाती हैं, तदुपरान्त मन एवं प्राण दोनों संशयरहित हो उस निराकार परमब्रह्म में लय हो जाते हैं। करोड़ों-करोड़ नाद एवं बिन्दु उस ब्रह्मरूप प्रणव नाद में विलीन हो जाते हैं। वह योगी जाग्रत् स्वप्न तथा सुषुति आदि सभी अवस्थाओं से मुक्त होकर सभी तरह की चिन्ताओं से रहित हो जाता है। ऐसी स्थिति वह योगी मरे हुए व्यक्ति की भाँति (मृतवत्) रहता है। निश्चय ही वह योगी मुक्तावस्था प्राप्त कर लेता है और वह (योगी) शङ्ख-दुन्दुभि आदि (लौकिक) नाद का श्रवण कभी भी नहीं करता ॥ ४९-५२ ॥ काष्ठवज्ज्ञायते देह उन्मन्यावस्थया ध्रुवम् ।
न जानाति स शीतोष्णं न दुःखं न सुखं तथा ॥ ५३ ॥
जिस अवस्था में मन 'अमन' हो जाता है, उस अवस्था के प्राप्त होने पर शरीर लकड़ी की भाँति चेष्टारहित सा हो जाता है । वह (मन) न शीत जानता है, न गर्मी जानता है और न ही वह सुख-दुःख का अनुभव करता है ॥ ५३॥
न मानं नावमानं च संत्यक्त्वा तु समाधिना।
अवस्थात्रयमन्वेति न चित्तं योगिनः सदा ॥ ५४॥
वह (योगी) मान-अपमान से परे हो जाता है। समाधि द्वारा वह इन सभी का पूर्णतया परित्याग कर देता है। योगी का चित्त तीनों अवस्थाओं- जाग्रत् स्वप्र, सुषुति आदि का कभी भी अनुगमन नहीं करता है ( अर्थात् उससे परे हो जाता है) ॥ ५४ ॥
जाग्रन्निद्राविनिर्मुक्तः स्वरूपावस्थतामियात् ॥ ५५ ॥
दृष्टिः स्थिरा यस्य विनासदृश्यं वायुः स्थिरो यस्य विना प्रयत्नम् । चित्तं स्थिरं यस्य विनावलम्बं स ब्रह्मतारान्तरनादरूप इत्युपनिषत् ॥ ५६ ॥
(वह) योगी जाग्रत् और निद्रा (स्वप्न) की अवस्था से मुक्त होकर अपने वास्तविक स्वरूप में स्थिर हो जाता है। दृश्य वस्तु के अभाव में भी जिसकी दृष्टि स्थिर हो जाती है, बिना प्रयास के ही जिसका प्राण अपने स्थान पर सुस्थिर हो जाता है तथा बिना किसी आश्रय अथवा अवलम्बन के ही जिसका चित्त स्थिरता को प्राप्त हो जाता है, ऐसा वह (योगी) ब्रह्ममय प्रणव नाद के अन्तर्वर्ती तुरीयावस्था (परमानंद) में सदैव स्थित हो जाता है। यही उपनिषद् (रहस्यात्मक ज्ञान ) है ॥ ५५-५६ ॥
ॐ वाड्मे मनसि...इति शान्तिः ॥ ॥ इति नादबिन्दूपनिषत्समाप्ता ॥
॥ निरालम्बोपनिषद् ॥
शुक्ल यजुर्वेद से सम्बद्ध इस उपनिषद् में ब्रह्म, ईश्वर, जीव, प्रकृति, जगत्, ज्ञान, कर्म आदि का सुन्दर विवेचन किया गया है। निर्विकार ब्रह्म जब प्रकृति के साथ सृष्टि का सृजन करके उसका ईशन-शासन-संचालन करता है, तो ईश्वर कहलाता है। इसी प्रकार विभिन्न संबोधनों को परिभाषित किया गया है। ऋषि जाति-पाँति सम्बन्धी भ्रमों का निवारण करते हुए कहते हैं कि वह आत्मा, रक्त, चमड़ा, मांस, हड्डियों आदि से सम्बन्धित नहीं है, वह तो व्यवहार के क्रम में कल्पित व्यवस्था मात्र है। इसी प्रकार अहंता, ममता आदि को त्याग कर इष्ट में समर्पित हो जाने को 'संन्यास' कहते हुए उन्हीं को मुक्त, पूज्य, योगी, परमहंस आदि उपाधियों से विभूषित होने को बात समझायी गयी है। ऐसी स्थिति प्राप्त करके ही साधक जन्म-मरण के बन्धनों को काट सकता है।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं
इति शान्तिः ॥ (द्रष्टव्य - ईशावास्योपनिषद्)
ॐ नमः शिवाय गुरवे सच्चिदानन्दमूर्तये । निष्प्रपञ्चाय शान्ताय निरालम्बाय तेजसे । निरालम्बं समाश्रित्य सालम्बं विजहाति यः । स संन्यासी च योगी च कैवल्यं पदमश्रुते ॥ १ ॥
उस कल्याणकारी (शिव) गुरु, सत्-चित् और आनन्द की मूर्ति को नमस्कार है। उस निष्प्रपञ्च, शान्त, आलम्ब ( आश्रय) रहित, तेजः स्वरूप परमात्मा को नमन है । जो निरालम्ब (परमात्म तत्त्व) का आश्रय ग्रहण करके (सांसारिक) आलम्बन का परित्याग कर देता है, वह योगी और संन्यासी है, वही कैवल्य (मोक्ष) पद प्राप्त करता है ॥ १ ॥
एषामज्ञानजन्तूनां समस्तारिष्टशान्तये । यद्यद्बोद्धव्यमखिलं तदाशङ्क्य ब्रवीम्यहम् ॥ २॥
इस संसार के अज्ञानी जीवों के सभी अरिष्टों (कष्टों) की शान्ति के निमित्त जो-जो ज्ञान आवश्यक ( है, उसकी आशंका करके (उसके उत्तर के रूप में) मैं यहाँ कहता हूँ (पूछता हूँ) ॥ २ ॥
किं ब्रह्म । क ईश्वरः । को जीवः । का प्रकृतिः । कः परमात्मा । को ब्रह्मा । को विष्णुः । को रुद्रः। क इन्द्रः। कः शमनः । कः सूर्यः । कश्चन्द्रः । के सुराः । के असुराः । के पिशाचाः । के मनुष्याः । काः स्त्रियः । के पश्चादयः । किं स्थावरम् । के ब्राह्मणादयः । का जातिः । किं कर्म । किमकर्म । किं ज्ञानम् । किमज्ञानम् । किं सुखम् । किं दुःखम् । कः स्वर्गः । को नरकः । को बन्धः । को मोक्षः । क उपास्यः । कः शिष्यः । को विद्वान् । को मूढः । किमासुरम् । किं तपः । किं परमं पदम्। किं ग्राह्यम् । किमग्राह्यम् । कः संन्यासीत्याशङ्कयाह ब्रह्मेति ॥ ३ ॥
ब्रह्म क्या है ? ईश्वर कौन है ? जीव कौन है ? प्रकृति क्या है ? परमात्मा कौन है ? ब्रह्मा कौन है ? विष्णु कौन है ? रुद्र कौन है ? इन्द्र कौन है ? यम कौन है ? सूर्य कौन है ? चन्द्र कौन है ? देवता कौन हैं ? असुर कौन हैं? पिशाच कौन हैं ? मनुष्य क्या हैं ? स्त्रियाँ क्या हैं? पशु आदि क्या हैं ? स्थावर (जड़) क्या है ? ब्राह्मण आदि क्या हैं ? जाति क्या है ? कर्म क्या है ? अकर्म क्या है ? ज्ञान और अज्ञान क्या हैं? सुख-दुःख क्या हैं ? स्वर्ग-नरक क्या हैं? बंधन और मुक्ति क्या हैं ? उपासना करने योग्य कौन है ? शिष्य कौन है ? विद्वान् कौन है ? मूर्ख कौन है ? असुरत्व क्या है ? तप क्या है ? परमपद किसे कहते हैं ? ग्रहणीय और अग्रहणीय क्या हैं? संन्यासी कौन है ? इस प्रकार शंका व्यक्त करके उन्होंने ब्रह्म आदि का स्वरूप विवेचित किया ॥ ३ ॥
मन्त्र १०
स होवाच महदहंकारपृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशत्वेन कर्मज्ञानार्थरूपतया भासमानमद्वितीयमखिलोपाधिविनिर्मुक्तं पबृंहितमनाद्यनन्तं शुद्धं शिवं शान्तं निर्गुणमित्यादिवाच्यमनिर्वाच्यं चैतन्यं ब्रह्म । ईश्वर इति च । ब्रह्मैव स्वशक्तिं प्रकृत्यभिधेयामाश्रित्य लोकान्सृष्ट्वा प्रविश्यान्तर्यामित्वेन ब्रह्मादीनां बुद्धीन्द्रियनियन्तृत्वादीश्वरः ॥ ४ ॥
उन्होंने कहा कि महत् तत्त्व, अहं, पृथिवी, आप, तेजस्, वायु और आकाश रूप बृहद् ब्रह्माण्ड कोश वाला, कर्म और ज्ञान के अर्थ से प्रतिभासित होने वाला, अद्वितीय, सम्पूर्ण (नाम रूप आदि) उपाधियों से रहित, सर्व शक्तिसम्पन्न, आद्यन्तहीन, शुद्ध, शिव, शान्त, निर्गुण और अनिर्वचनीय चैतन्य स्वरूप परब्रह्म कहलाता है। अब ईश्वर के स्वरूप का कथन करते हैं । यही ब्रह्म जब अपनी प्रकृति (शक्ति) के सहारे लोकों का सृजन करता है और अन्तर्यामी स्वरूप से (उनमें) प्रविष्ट होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा बुद्धि और इन्द्रियों को नियन्त्रित करता है, तब उसे ईश्वर कहते हैं ॥ ४ ॥
जीव इति च ब्रह्मविष्ण्वीशानेन्द्रादीनां नामरूपद्वारा स्थूलो ऽहमिति मिथ्याध्यासवशाज्जीवः । सोऽहमेकोऽपि देहारम्भकभेदवशाद्बहुजीवः ॥५॥
जब इस चैतन्य स्वरूप ईश्वर को ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र तथा इन्द्रादि नामों और रूपों के द्वारा देह का मिथ्याभिमान हो जाता है कि मैं स्थूल हूँ, तब उसे जीव कहते हैं । यह चैतन्य ' सोऽहं ' स्वरूप में एक होने पर भी शरीरों की भिन्नता के कारण 'जीव' अनेकविध बन जाता है ॥ ५ ॥
ब्रह्मशप्रकृतिरिति च ब्रह्मणः सकाशान्नानाविचित्रजगन्निर्माणसामर्थ्यबुद्धिरूपा
क्तिरेव प्रकृतिः ॥ ६ ॥
प्रकृति उसे कहते हैं, जो ब्रह्म के सान्निध्य से चित्र विचित्र संसार को रचने की शक्ति वाली तथा ब्रह्म की बुद्धिरूपा शक्ति वाली है ॥ ६ ॥
परमात्मेति च देहादेः परतरत्वाद् ब्रह्मैव परमात्मा ॥ ७ ॥ देहादि से परे रहने के कारण ब्रह्म को ही परमात्मा कहते हैं ॥ ७ ॥
स ब्रह्मा स विष्णुः स इन्द्रः स शमनः स सूर्यः स चन्द्रस्ते सुरास्ते असुरास्ते पिशाचास्ते मनुष्यास्ताः स्त्रियस्ते पश्वादयस्तत्स्थावरं ते ब्राह्मणादयः ॥ ८ ॥
यही परमात्मा ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, यम, सूर्य और चन्द्र आदि देवता के रूप में; यही असुर, पिशाच, नर-नारी और पशु आदि के रूप में प्रकट होता है; यही जड़-पदार्थ और ब्राह्मण आदि भी है ॥ ८ ॥ सर्वं खल्विदं ब्रह्म नेह नानास्ति किंचन ॥ ९ ॥
यह समस्त विश्व ही ब्रह्म है, इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ॥ ९ ॥
जातिरिति च । न चर्मणो न रक्तस्य न मांसस्य न चास्थिनः । न जातिरात्मनो जातिर्व्यवहारप्रकल्पिता ॥ १० ॥
जाति (शरीर के) चर्म, रक्त, मांस, अस्थियों और आत्मा की नहीं होती। उसकी (मानव, पशु-पक्षी या ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि जाति की) प्रकल्पना तो केवल व्यवहार के निमित्त की गई है ॥ १० ॥
[ ऋषि यहाँ स्पष्टता से कहते हैं कि जाति शरीर भेद से नहीं, व्यवहार भेद से निर्धारित की गयी है। ]
कर्मेति च क्रियमाणेन्द्रियैः कर्माण्यहं करोमीत्यध्यात्मनिष्ठतया कृतं कर्मैव कर्म । अकर्मेति च कर्तृत्वभोक्तृत्वाद्यहंकारतया बन्धरूपं जन्मादिकारणं नित्यनैमित्तिकयागव्रततपोदानादिषु फलाभिसंधानं यत्तदकर्म ॥ ११-१२॥
इन्द्रियों द्वारा की जाने वाली क्रियाओं को कर्म कहते हैं। जिस क्रिया को 'मैं करता हूँ' इस भावपूर्वक (अध्यात्म निष्ठा से ) किया जाता है, वही कर्म है। कर्त्तापन और भोक्तापन के अहंकार के द्वारा फल की इच्छा से किये गये बन्धन स्वरूप नित्य-नैमित्तिक यज्ञ, व्रत, तप, दान आदि कर्म' अकर्म' कहलाते हैं ॥ ११-१२॥
ज्ञानमिति देहेन्द्रियनिग्रहसद्गुरूपासनश्रवणमनननिदिध्यासनैर्यद्यद्दृग्दृश्यस्वरूपं सर्वान्तरस्थं सर्वसमं घटपटादिपदार्थमिवाविकारं विकारेषु चैतन्यं विना किंचिन्नास्तीति साक्षात्कारानुभवो ज्ञानम् ॥ १३ ॥
सृष्टि की सभी बदलने वाली वस्तुओं में एक ही अपरिवर्तनशील चैतन्य तत्त्व विद्यमान है, अन्य कुछ भी नहीं है, द्रष्टा और दृश्य जो कुछ भी है, सब कुछ चैतन्य तत्त्व ही है। सबके अन्दर यह चैतन्य तत्त्व ही विद्यमान रहने पर भी ऐसा प्रतीत होता है, मानो वह घट - वस्त्रादि रूप में ही परिवर्तित हो गया है। इसी साक्षात्कार की अनुभूति को ज्ञान कहते हैं। यह अनुभूति शरीर और इन्द्रिय आदि पर नियंत्रण रखने से और सद्गुरु की उपासना, उनके उपदेशों के श्रवण, चिन्तन, मनन और निदिध्यासन करने से होती है ॥ १३ ॥
अज्ञानमिति च रज्जौ सर्पभ्रान्तिरिवाद्वितीये सर्वानुस्यूते सर्वमये ब्रह्मणि देवतिर्यङ्नरस्थावरस्त्रीपुरुषवर्णाश्रमबन्धमोक्षोपाधिनानात्मभेदकल्पितं ज्ञानमज्ञानम् ॥ १४ ॥
जिस प्रकार रस्सी में सर्प की भ्रान्ति होती है, उसी प्रकार सब में विद्यमान ब्रह्म और देव, पशु-पक्षी, मनुष्य, स्थावर, स्त्री-पुरुष, वर्ण-आश्रम, बन्धन मुक्ति आदि सभी अनात्म वस्तुओं में भेद मानना ही 'अज्ञान' है ॥ १४ ॥ सुखमिति च सच्चिदानन्दस्वरूपं ज्ञात्वानन्दरूपा या स्थितिः सैव सुखम् ॥ १५ ॥ सत्-चित्-आनन्द स्वरूप परमात्मा के ज्ञान से जो आनन्दपूर्ण स्थिति बनती है, वही सुख है ॥ १५ ॥ दुःखमिति अनात्मरूपो विषयसंकल्प एव दुःखम् ॥ १६ ॥
अनात्म रूप (नश्वर) विषयों का सङ्कल्प (विचार) करना दुःख कहलाता है ॥ १६ ॥
स्वर्ग इति च सत्संसर्गः स्वर्गः । नरक इति च असत्संसारविषयजनसंसर्ग एव नरकः ॥ १७ ॥ सत् का (अनश्वर का) समागम (सत्पुरुषों का सत्संग) ही स्वर्ग है। असत् (नश्वर) संसार ! के विषयों (में रचे-पचे लोगों) का संसर्ग ही नरक है ॥ १७ ॥
बन्ध इति च अनाद्यविद्यावासनया जातोऽहमित्यादिसंकल्पो बन्धः ॥ १८ ॥ अनादि अविद्या की वासना (संस्कार) द्वारा उत्पन्न इस प्रकार का विचार कि 'मैं हूँ, ' यही बन्धन है । पितृमातृसहोदरदारापत्यगृहारामक्षेत्रममतासंसारावरणसङ्कल्पो बन्धः ॥ १९ ॥ माता-पिता, भ्राता, पुत्र, गृह, उद्यान तथा खेत आदि मेरे अपने हैं, यह सांसारिक विचार भी बन्धन ही हैं। कर्तृत्वाद्यहंकारसंकल्पो बन्धः ॥ २० ॥
कर्त्तापन के अहंकार का संकल्प भी बन्धनरूप है ॥ २० ॥ अणिमाद्यष्टैश्वर्याशासिद्धसंकल्पो बन्धः ॥ २१ ॥ |
465afc7788e91c098bf28e4c3df0667d6aef9c8103f2fc8d7b0b502dc055de52 | pdf | की स्थिति भी वैसी न हो और त्याग कर वैठे तो प्रातध्यान होता है । प्रतिज्ञा के प्रति निरादर भाव न हो, किन्तु बढते रहे - उच्च भाव रहे ऐसी प्रतिज्ञा लेते हैं । ऐसा जैनधर्म का उपदेश है और जैनधर्म को आम्नाय भी ऐसी है । - ऐसे दो प्रकार कहे है ।
प्रश्न - चाडालादिक ने प्रतिज्ञा की थी, उन्हे कहीं इतना विचार होता है ?
उत्तर - "मृत्यु - पर्यंत कष्ट हो तो भले हो, किन्तु प्रतिज्ञा नही छोडेंगे-ऐसे विचार से वे प्रतिज्ञा लेते हैं, किन्तु प्रतिज्ञा के प्रति उनका निरादरभाव नहीं है । श्रात्मा के भान बिना भी कोई प्रतिज्ञा ले तें, तथापि मृत्यु - पर्यंत कष्ट प्राने पर भी उसे नही छोडते, श्रीर उनके प्रतिज्ञा का श्रादर नही छूटता । यह व्यवहाराभासी मिथ्यादृष्टि की प्रतिज्ञा की बात कही । कपाय की मन्दतारूप चढते ( उच्च ) परिणाम रहे तदनुसार वह प्रतिज्ञा लेता है, और प्रतिज्ञा भङ्ग नही होने देता । श्रव सम्यग्दृष्टि की बात करते हैं । ज्ञानी जो प्रतिज्ञा लेते हैं वह तत्त्वज्ञान पूर्वक ही करते हैं । अपने परिणाम देखकर प्रतिज्ञा लेते हैं । वे विचार करते हैं कि मेरी पर्याय मे वर्तमान तुच्छता वर्तती है, मेरे परिणामो मे वृद्धि नहीं होती। द्रव्य से प्रभु हैं, किन्तु पर्याय से पामर है उसका अच्छी तरह ज्ञान करते हैं । तत्वज्ञानपूर्वक ही प्रतिज्ञा लेना योग्य है ।
असलीस्वरूप प्रात्म द्रव्य त्रिकाल शुद्ध है । उसके श्राश्रय से सम्यग्दर्शन रूपी शुद्ध पर्याय तो प्रगट हुई है, किन्तु अभी उग्र पुरुषार्थ पूर्वक राग का सर्वथा प्रभाव नही हुआ है अर्थात् निर्बलता है, द्रव्य
का पूर्ण माश्रय नही हुआ है, पर्याय मे पामरता है और उससे निमित्त का सम्बन्ध सर्वथा नही छूटा है । - इसप्रकार पर्याय का ज्ञान करके प्रतिज्ञा लेते हैं । दृष्टि मे से द्रव्य का अवलम्बन छूट जाये तो मिथ्यादृष्टि हो जाये और पर्याय मे से निमित्तका अवलम्बन सर्वथा छूट जाये तो केवलज्ञान हो जाये । साधक को दृष्टि अपेक्षा से द्रव्य का अवलम्बन कभी नही छूटता, और पर्यायमे पामरता है इसलिये सर्वथा निमित्त का श्रवलम्बन भी नही छूटा है । इसलिये ज्ञानी तत्त्वज्ञान पूर्वक ही प्रतिज्ञा लेते है । परद्रव्य मेरा कुछ करती है यह बात तो है ही नहीं, यहाँ तो त्रिकाली द्रव्य और वर्तमान पर्याय दो की बात है । पर्यायमे दया का राग आाये तो उस प्रकारके निमित्त पर लक्ष जाता है । पर का अवलम्बन नही छूटता । इसका अर्थ ऐसा नही है कि पर निमित्त के कारण राग हुआ है जिस-जिस प्रकार का राग होता है । उस उस प्रकार के निमित्तो पर लक्ष जाता है, किन्तु उन निमित्तो के कारण राग हुआ है - ऐसा नहीं है ।
डुगडुगी वजती है, उसकी डोरी एक ही होने पर भी वह दोनो र बजती है । उसीप्रकार ज्ञानीको शुद्ध दृष्टि अपेक्षा से सदैव द्रव्य का अवलम्बन होता है और पर्याय की अपेक्षासे निमित्तका अवलम्बन है । - इसप्रकार साधकदशा मे दो प्रकार होते हैं । द्रव्यपर्यायके ज्ञान बिना व्रत - प्रतिज्ञा ले ले तो वह यथार्थ प्राचरण नही है । कोई ज्ञानी की निन्दा करे तो ज्ञानी उसका भी ज्ञान करते हैं, और जो राग-द्वेष होता है उसे भी ज्ञेय रूप अच्छी तरह जानते हैं । भौर वह ऐसी प्रतिज्ञा लेते हैं जिससे सहज परिणाम हो ।
श्रव कहते हैं कि जिसे अन्तरग विरकता नही हुई और बाह्यसे प्रतिज्ञा धारण करता है, वह प्रतिज्ञा लेने से पूर्व और पश्चात् प्रासक्क रहता है। उपवास की प्रतिज्ञा लेने से पूर्व धारणा मे प्रासक्त होकर आहार लेता है और उपवास पूर्ण होने पर मिष्टान्न उडाता है, खाने मे जल्दी करता है। जिस प्रकार रोके हुए जल को छोड़ने पर वह बड़े वेग पूर्वक बहने लगता है, उसी प्रकार इसने प्रतिज्ञासे विषयवृत्तिको रोका, किन्तु अन्तरग मे प्रासक्ति वढती गई और प्रतिज्ञा पूर्ण होते ही प्रत्यन्त विपयवृत्ति होने लगी । इसलिये वास्तव में उसके प्रतिज्ञा कालमे भी विषय वासना नही छूटी है । तथा नागे-पीछे उलटा अधिक राग करता है, किन्तु फलकी प्राप्ति तो राग भाव मिटने पर ही होती है, इसलिये जितना राग कम हुआ हो उतनी ही प्रतिज्ञा करना चाहिये । महामुनि भी पहले थोडी प्रतिज्ञा लेकर फिर श्राहारादि मे कमी करते हैं, और यदि बडी प्रतिज्ञा लेते हैं तो अपनी शक्ति का विचार करके लेते हैं । इसलिये परिणाम मे चढते भाव रहे और प्राकुलता न हो - ऐसा करना कार्यकारी है ।
पुनश्च, जिसकी धर्म पर दृष्टि नहीं है वह किसी समय तो महान धर्म का आचरण करता है और कभी अधिक स्वच्छन्दी होकर वर्तता है । जैसे- दशलक्षण पर्व मे दस उपवास करता है और अन्य पर्व दिवसों में एक भी नही । श्रव, यदि धर्मबुद्धि हो तो सर्व धर्म पर्वो मे यथायोग्य सयमादि धारण करना चाहिये, किन्तु मिथ्यादृष्टि को उसका विवेक नही होता । उसके व्रत, तप, दान भी सच्चे नहीं होते । यहाँ तो, प्रज्ञानी को कैसा विकल्प आता है उसकी बात करते
हैं । जहाँ बडप्पन मिलता हो वहाँ अधिक रुपये खर्च करता है। मकान मे नाम की तख्ती लगा दो तो अधिक रुपये दे सकता है --- ऐसा कहने वाले जीव को धर्म बुद्धि नहीं है, राग घटाने का उसका प्रयोजन नहीं है ।
और कभी किसी धर्म कार्य मे बहुत-सा धन खर्च कर देता है, तथा किसी समय कोई कार्य ना पडे तो वहाँ थोडा-सा भी नहीं देता । यदि उसके धर्म बुद्धि हो तो सर्व धर्म कार्यो मे यथायोग्य धन खर्च करता रहे । इसी प्रकार अन्य भी जानना । अज्ञानी को धन खर्च करनेका भी विवेक नही होता । कहने सुनने से धन खर्च करता है, किन्तु यदि धर्म बुद्धि हो तो अपनी शक्ति के अनुसार सभी धर्म कार्यों मे यथायोग्य धन दिये बिना न रहे । जैसे - लडकी का विवाह करना हो तो वहीं चन्दा करने नही जाता, किन्तु अपने घर में से पैसा निकालता है, मकान बनाना हो तो चन्दा नहीं करता, - उसी प्रकार जिसे धर्म बुद्धि हो वह धर्म के सभी कार्यों में यथाशक्ति धन खर्च करता है, उसके ऐसे परिणाम होते हैं ।
तत्त्वज्ञान पूर्वक व्रत, तप श्रीर दान होना चाहिये, - यह तीन - बाते कही । इसप्रकार जिस २ काल मे जिस २ प्रकार का राग हो उस २ प्रकार से ज्ञानी को विवेक होता है - ऐसा समझना चाहिये । और जिसे सच्चे धर्म की दृष्टि नही है उसके सच्चा साधन भी नही है । बाह्यसे लक्ष्मीका त्याग कर देता है, किन्तु वस्त्रादिका मोह नहीं छूटता । सुन्दर मखमली जूते और कोट पहिने तो वह त्याग मेल रहित है । बाह्यसे त्याग किया हो और सट्टे का धन्धा करे, स्वय तो
त्यागी हो किन्तु दूसरो को लक्ष्मी प्राप्त कराने के लिये फीचर के प्रक यादि बतलाये, तो वह धर्म मे कलयस्प है, उसने वास्तव में लक्ष्मी का त्याग नहीं किया है, किन्तु लाभान्तराय के कारण लक्ष्मी को प्राप्ति नहीं हुई है । स्वय त्यागी हो जाये और अपने माता-पिता आदि के लिये चन्दा इक्ट्ठा कराये वह भी त्यागी नही है ।
किमी से चन्दे मे प्रमुक रकम देने का प्राग्रह करना प्रथवा कहना भोगी के लिये शोभनीय नहीं है । सच्चा त्याग हो तो अपने परिणामो को देखता है । कोई साधु यहे कि मुझे प्रमुक रुपयो की श्रावश्यकता है, तो इसप्रकार सानु होकर भागना वह धर्म की शोभा नहीं है। निस्पृह रूप से त्याग होना चाहिये। मुनि को याचना नही होती ।
कोई-कोई त्यागी ऐसे होते है कि यात्रा के लिये श्रथवा भोजनादि के लिये पैसो की याचना करते हैं, और कोई न दे तो क्रोधकपाय करते हैं। प्रथम तो त्यागो को याचना करना ही योग्य नही है, और फिर कपाय करना तो महान बुरा है, तथापि अपने को त्यागी और तपस्वी मानता है वह व्यवहाराभासी मिथ्यादृष्टि का प्रविवेक है । मुनि नाम धारण करके अपने को तपस्वी मानकर क्रोध मान, माया और लोभ करता है, "मैं तपस्वी हूँ," इमलिये ग्रन्थमाला में मेरा नाम रखा जाये तो ठोक - ऐसा मानकर अभिमान करता है, वह सच्चा मुनि नही किन्तु प्रज्ञानी है ।
[ वीर स० २४७६ धंद्यात कृष्णा १ मगलवार, ता० ३१-३-५३ ] यह व्यवहाराभासी मिथ्यादृष्टि का अधिकार चलता है । तत्त्व२३
ज्ञान के विना यथार्थ प्राचरण नही होता । वह जीव कोई प्रत्यन्त नीच क्रिया करता है इसलिये लोकनिद्य होता है, और धर्म की हँसी कराता है । जैसे- कोई पुरुष एक वस्त्र प्रति उत्तम श्रीर एक प्रति हीन पहिने तो वह हास्यपात्र ही होता है, उसीप्रकार यह भी हँसी कराता है। व्यवहाराभासी जीवकी क्रिया हास्यास्पद होती है, क्योकि किसी समय उच्च क्रिया करता है और कभी फिर नीच क्रिया मे लग जाता है, इसलिये लोकनिंद्य होता है। इसलिये सच्चे धर्म की तो यह आम्नाय है कि - जितने अपने रागादिक दूर हुए हो तदनुसार जिस पद मे जो धर्म क्रिया सभव हो वह सव अगीकार करे ।
चौथे और पांचवें गुणस्थान में जिस प्रकार की क्रिया सभव हो उसी प्रकार ज्ञानी वर्तते है ।
किन्तु उच्चपद धारण करके नोची क्रिया नहीं करना चाहिये । सम्यग्दृष्टि की भूमिका मे मासादि का आहार नही होता । सम्यग्दृष्टि को कदाचित् लडाई के परिणाम हो, किन्तु उसके प्रभार नही हो सकता । अभी प्रासक्ति नही छूटी इसलिये स्त्री सेवनादि होता है। पाँचवें गुरणस्थान मे भूमिकानुसार त्याग होता है । पुरुषार्थ सिद्धय पाय मे कहा है कि जिसके मास-मदिरा का त्याग न हो वह उपदेश सुनने को भी पात्र नहीं है ।
प्रश्नः - स्त्री सेवनादि का त्याग ऊपर की प्रतिमान में कहा है, तो निचली दशा वाले को उसका त्याग करना चाहिये या नहीं ?
उत्तर - निचली दशावाला उनका सर्वथा त्याग नही कर सकता, कोई दोष लग जाता है । इसलिये ऊपर की प्रतिमानो मे उनका त्याग होता है, किन्तु निचली दशा मे जिस प्रकार से त्याग
सभव है उतना त्याग उस दशा में भी करना चाहिये । किन्तु निचली दशा में जो सभव न हो, वह त्याग तो कपायभावो से ही होता है । जैसे- कोई सात व्यमन का तो सेवन करे और स्व-स्त्री का त्याग करे - यह कैसे हो सकता है ? यद्यपि स्वस्थी का त्याग करना धर्म है, तथापि पहले जब मप्तव्यमन का त्याग हो जाये तभी स्वस्त्री का त्याग करना योग्य है । चौथे गुणस्थानवाला प्रतिमा की प्रतिज्ञा नहीं करता क्योंकि अतर्वासना अभी सहज छूटी नही है ।
पुनश्च सर्व प्रकार से धर्मके स्वरूपको न जानने वाले कुछ जीव घिमी धमके अगको मुन्य करके ग्रन्य धमको गौरण करते हैं। जैसेकोई जीव दया धर्मको मुल्य करके पूजा-प्रभावनादि कार्योका उत्थापन करता है, वह व्यवहार धर्मको भी नही समझना । ज्ञानीको पूजा, प्रभावनादि के भाव प्राये बिना नहीं रहते । पर जीवकी हिमा, प्रहिंसा कोई नही कर सकता, किन्तु भावो की बात है। पूजा-प्रभावना में शुभभाव होते हैं उनकी उत्थापना नहीं की जा सकती, तथापि उन्हे धर्म नही मानना चाहिये । कोई पूजा - प्रभावनादि धर्मको ( शुभभाव को) मुख्य करके हिमादिका भी भय नहीं रखते। रात्रि के ममय पूजा नहीं करना चाहिये, शुद्ध जल से अभिषेक होना चाहिये ।
यह बात न्याय से समझना चाहिये । भले ही मिथ्यादृष्टि हो किन्तु सत्य बात श्राये तो पहले स्वीकार करना चाहिये । अज्ञानी किमी तपकी मुख्यता मानकर प्रातध्यानादि करके भी उपवासादि करते हैं, अथवा अपने को तपस्वी मानकर नि शकरूपसे क्रोधादि करते हैं । उपवास करके सो जाते हैं, आध्यान करके दिन पूरा करते हैं । तत्त्वज्ञान के विना सच्चा तप नही होता । श्रात्माकी शातिसे |
154614f063fb59c5c2bbf6890710754f102c2416 | web | पठान vs सर्कसः दीपिका की दो फिल्मों की दो तस्वीरों से भी समझ सकते हैं बॉलीवुड की असल बीमारी?
बेशरम रंग में कला और अश्लीलता के फर्क को समझना है तो कहीं दूर ना जाकर दीपिका पादुकोण के ही एक और आइटम नंबर करंट लागा रे से समझ सकते हैं. करंट लागा रे रोहित शेट्टी की सर्कस का गाना है. सर्कस इसी शुक्रवार को सिनेमाघर में रिलीज होने जा रही है.
रोहित शेट्टी के निर्माण-निर्देशन में बनी पीरियड कॉमेडी ड्रामा सर्कस रिलीज के लिए तैयार है. इसी शुक्रवार क्रिसमस डे वीक पर सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है फिल्म. असल में सर्कस मल्टीएक्टर्स पीरियड ड्रामा है. इसमें रणवीर सिंह, पूजा हेगड़े, जैकलीन फर्नांडीज और वरुण शर्मा अहम भूमिकाओं में हैं. बॉलीवुड के कई दिग्गज कैरेक्टर आर्टिस्ट भी कॉमिक किरदारों में नजर आएंगे. रणवीर की भूमिका हैं और उनकी पत्नी दीपिका पादुकोण भी मेहमान कलाकार की हैसियत से नजर आने वाली हैं. उनपर फिल्म का एक डांस नंबर 'करंट लागा रे' फिल्माया गया है. सर्कस का गाना पहले ही रिलीज हो चुका है. गाने में रियल लाइफ कपल की केमिस्ट्री लोगों के आकर्षण का विषय है.
सर्कस की रिलीज से पहले यह गाना एक बार फिर लोगों की जेहन में ताजा हो रहा है. बावजूद कि इसकी बड़ी वजह सर्कस नहीं बल्कि शाहरुख खान की पठान के गाने बेशरम रंग पर छिड़ा विवाद है. बेशरम रंग को दीपिका के ऊपर एक बीच सीक्वेंस के रूप में फिल्माया गया है. बेशरम रंग भी डांस नंबर बताया जा रहा है. हालांकि गाने में दीपिका ने जिस तरह बिकिनी में भड़काऊ स्टेप्स किए हैं बहुतायत लोगों को पसंद नहीं आया है. बावजूद कि उसे पसंद करने वाले और आलोचनाओं को खारिज करने वाले भी कम नहीं हैं. असल में गाने गाने का बोल बेशरम रंग हैं और दीपिका भगवा रंग की बिकनी में शाहरुख के साथ बहुत उत्तेजक स्टेप्स करते दिख रही हैं. गाने की धुन-बोल पर भी कॉपी करने के आरोप लग रहे हैं. बहुत सारे लोगों की शिकायत यह भी है कि गाने में दम ही नहीं है. बस दीपिका के अंग प्रदर्शन और प्रचार के लिए जानबूझकर कंट्रोवर्सी क्रिएट की गई है. कंट्रोवर्सी ने गाने को हाइप भी खूब दी.
दीपिका पादुकोण का एक आइटम नंबर सर्कस में भी है. यह बेशरम रंग से कितना अलग है.
अब जबकि सर्कस रिलीज होने वाली है और बेशरम रंग भी आ चुका है- दोनों गानों के विजुअल सामने रखकर, दो फिल्मों के मेकर्स के अप्रोच पर सवाल किए जा रहे हैं. एक्टर्स की ड्रेस, बोल, धुन, डांस स्टेप के आधार पर दोनों फिल्मों पर तुलनात्मक बातचीत हो रही है. अगर दोनों गानों को देखा जाए तो दोनों को मसालेदार ही कहा जाएगा. लेकिन दोनों गानों की प्रस्तुति में जमीन आसमान का अंतर साफ़ नजर आता है. सर्कस के गाने में दीपिका ने ब्लाउज और साड़ी पहना है. हालांकि साड़ी उन्होंने पारंपरिक अंदाज में नहीं पहना है. मगर ख़ूबसूरत दीपिका इसमें भी बहुत आकर्षक नजर आ रही हैं. सर्कस के गाने करंट लागा रे की बीट भी बहुत तेज है और रणवीर-दीपिका की डांस केमिस्ट्री देही खते बन रही है. गाने पर रोहित शेट्टी का प्रभाव साफ नजर आ रहा है.
क्या स्त्री देह को लेकर किसी ख़ास तबके की यौन कुंठा को टिकट खिड़की पर भुनाना चाहते हैं शाहरुख?
जबकि बेशरम रंग में दीपिका ने अलग-अलग रंग की बिकिनी पहनी है. गाने पर उनके डांस स्टेप्स रूटीन नहीं हैं. हो सकता है कि यह कोई कलात्मक प्रयोग हो जिसे तमाम लोग बहुत पिछड़ा होने या फिर दुनियादारी को लेकर तमाम चीजें समझ नहीं पा रहे हो. बावजूद बेशरम रंग में दीपिका को जिस तरह ऑब्जेक्ट के रूप में प्रस्तुत किया गया है तमाम लोग उसे डांस नंबर की बजाए जानबूझकर किया गया अंग प्रदर्शन करार दे रहे हैं. ऐसा अंग प्रदर्शन जिसका उद्देश्य दर्शकों के एक तबके की यौन कुंठा को टिकट खिड़की पर भुनाना है. बेशरम रंग में दीपिका को देखकर लोगों का कहना है कि असल में यह उन दर्शकों को ललचाने का उपक्रम है जो अब तक औरतों के शरीर के बारे में नहीं जानते और उन्हें दूसरे ग्रह का जीव समझते हैं.
कुछ लोगों की नजर में यह कोई कला नहीं बल्कि एक मानसिक बीमारी है. अफसोस यह है कि जो लोग कला के नाम पर मानसिक रूप से बीमार हो गए हैं उन्हें कोई समझा भी नहीं सकता कि आप दिमागी रूप से बीमार है. दीपिका के ही गाने करंट लागा रे से तुलना में सवाल स्वाभाविक है कि बेशरम रंग में आखिर कौन सी कलात्मकता है? लोग कह भी रहे हैं कि ट्रिक्स से सफलता पाने की कोशिश का नतीजा है कि यशराज फिल्म्स पिछले एक दशक में कुछेक मौकों को छोड़ दें तो उसने ब्लॉकबस्टर नहीं दी है. एक दो ब्लॉकबस्टर (धूम 3, सुल्तान, टाइगर ज़िंदा है, वॉर) को छोड़कर इक्का-दुक्का औसत हिट (मर्दानी, दम लगा के हइशा, हिचकी, सुई धागा) शामिल हैं.
जबकि पिछले 11 साल में यशराज ने 27 फ़िल्में की हैं और इसमें कई ऐसी फ़िल्में हैं जो टिकट खिड़की पर बड़ा डिजास्टर साबित हुई हैं. टिकट खिड़की पर यशराज का सक्सेस रेट औसत से भी खराब कहा जा सकता है. लोगों का कहना है कि यशराज के फिल्मों की हालत असल में सस्ते ट्रिक्स के जरिए सक्सेस हासिल करने का नतीजा है. इंटरनेट से पहले के दौर में प्रमोशन आदि वजहों से बड़े बैनर तमाम चीजें पैसों के दम पर मैनेज कर लेते थे. लेकिन अब संभव नहीं है. इंटरनेट के दौर में व्यापक रूप से यौनकुंठा जैसी चीज रही नहीं. लोग ओटीटी पर ज्यादा बोल्ड कॉन्टेंट देख रहे हैं और उन्हें कला क्या है और अश्लीलता क्या है - अब बेहतर जानकारी है.
जबकि पिछले 11 साल में रोहित शेट्टी की फिल्मों को देखें तो सर्कस समेत करीब 9 फ़िल्में आई हैं. इसमें शाहरुख-वरुण के साथ आई रोमांटिक कॉमेडी दिलवाले को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी फ़िल्में या तो ब्लॉकबस्टर हुई हैं या सुपरहिट. अपनी फिल्म मेकिंग की वजह से रोहित शेट्टी का सक्सेस रेट लगभग 90 प्रतिशत से ऊपर है. अगर रोहित शेट्टी की फिल्मों को देखें तो उन्होंने ग्लैमर का भरपूर इस्तेमाल किया है मगर कहीं से भी ऐसा नहीं दिखता कि अंग प्रदर्शन के ट्रिक से फ़िल्में हिट कराने की कोशिश की गई हो. असल में रोहित फैमिली ऑडियंस को फोकस करते हैं. बतौर फिल्ममेकर फैमिली ऑडियंस उनकी कामयाबी का सबसे बड़ा आधार भी हैं.
यहां तक कि जब 2013 में रोहित शेट्टी ने शाहरुख और दीपिका पादुकोण को लेकर चेन्नई एक्सप्रेस के रूप में ब्लॉकबस्टर रोमांटिक कॉमेडी बनाई थी इसे भी दर्शकों ने खूब पसंद किया था. चेन्नई एक्सप्रेस में कहीं भी नजर नहीं आता कि रोहित ने शाहरुख के अपोजिट दीपिका की देह को भुनाकर दर्शकों को आकर्षित करने की कोशिश की हो. किसी भी फिल्म में उनकी हीरोइनों को देखकर वल्गारिटी के आरोप नहीं लगाए जा सकते. बावजूद उनकी हीरोइनें परदे पर उतनी ही आधुनिक और ख़ूबसूरत नजर आई हैं हकीकत में वे जितनी हैं. तुलनात्मक चीजों से स्पष्ट हो जाता है कि रोहित के लिए फिल्ममेकिंग और उनका टारगेट ऑडियंस क्या है? इनकी फ़िल्में कल्चरली साउदर्न स्टेट से आने वाली फिल्मों से प्रेरित दिखती हैं.
रोहित की फ़िल्में देखकर समझा जा सकता है बॉलीवुड कहां बर्बाद हुआ?
हो सकता है कि यह भी एक बड़ी वजह हो कि जब दक्षिण की अंधी में बॉलीवुड के तमाम 100 करोड़ी एक्टर्स की फ़िल्में तिनके की तरह उड़ती नजर आती हैं, रोहित शेट्टी की फिल्मों ने रिकॉर्डतोड़ वह भी लगातार- फिल्म ट्रेड सर्किल को हैरान करके रख दिया. ज्यादा दूर क्यों जाना. पिछले साल आई रोहित शेट्टी की सूर्यवंशी ऐसी ही एक फिल्म है. कोरोना की वजह से सिनेमाघरों की हालत खराब थी. कई जगह सिनेमाघर बंद थे. ज्यादातर जगहों पर 50 प्रतिशत दर्शक क्षमता के साथ शोकेसिंग का नियम था. बावजूद सूर्यवंशी ने देसी बॉक्सऑफिस पर कमाई के कीर्तिमान बनाए. सूर्यवंशी ने घरेलू बाजार में 196 करोड़ रुपये कमाए थे. जिस हालात में यह कलेक्शन आया वह अपने आप में एक रिकॉर्ड है.
सर्कस का हश्र क्या होगा यह इसी वीकएंड पता चल जाएगा. पठान रिपब्लिक डे वीक पर आ रही है. पठान के कॉन्टेंट को लेकर लोगों में जबरदस्त गुस्सा है. देखने वाली बात रहेगी कि दर्शक फिल्म को किस तरह से लेते हैं.
|
1f4ce41c01d233ecf91dd3c8ff0b5562f1b7b244 | web | Yoni me fungal sankraman योनि यीस्ट संक्रमण या वैजिनल यीस्ट इन्फेक्शन एक ऐसा संक्रमण है जिसे कैंडिडिआसिस के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सामान्य स्थिति होती है जिसमे योनि में खुजली जलन और सफ़ेद तरल पदार्थ का स्त्राव होता है। योनि यीस्ट इन्फेक्शन महिलाओ में होने वाली एक आम समस्या है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से योनि यीस्ट इन्फेक्शन क्या है? वजाइना में फंगल संक्रमण कैसे होता है इसके लक्षण, कारण, जांच, उपचार,और घरेलू उपाय के बारे में बतायेंगे।
योनि यीस्ट इन्फेक्शन या संक्रमण एक ऐसा संक्रमण है जो योनि में होता है यह एक फंगल संक्रमण है जिससे महिला के जननागों में खुजली, जलन और योनि स्त्राव होता है । महिला की स्वस्थ योनि में कुछ बैक्टेरिया या कुछ फंगल कोशिकाये होती है लेकिन जब बैक्टेरिया और फंगल कोशिकाओ का संतुलन बिगड़ता है तो बैक्टेरिया की तुलना में फंगस कोशिकाएँ कई गुना तक बढ़ जाती है खमीर कोशिकाओ के बढ़ने के कारण योनि (वेजाइना) में तेज खुजली के साथ लालपन, सूजन और जलन होने लगती है।
अगर समय रहते वजाइना में फंगल संक्रमण का इलाज हो जाये तो योनि में हो रहे लक्षण जैसे-जलन और खुजली की समस्या पूरी तरह से दूर हो जाएगी। योनि के संक्रमण को ठीक होने में कम से कम दो हफ्तों तक का समय लग सकता है।
योनि खमीर संक्रमण को योन संचारित संक्रमण (SIT) नहीं माना जाता है। परन्तु यह शारीरिक संबंध बनाने से फ़ैल सकता है लेकिन जो महिलाये शारीरिक संबंध बनाने में सक्रिय नहीं होती है उन महिलाओ में भी योनि को साफ न रखने से योनि यीस्ट संक्रमण हो सकता है जिन महिलाओ में एक बार योनि यीस्ट संक्रमण हो जाये तो उनमे योनि यीस्ट संक्रमण दोबारा होने की सम्भावना ज्यादा बढ़ जाती है।
(और पढ़े - योनी में खुजली, जलन और इन्फेक्शन के कारण और घरेलू इलाज...)
- वजाइना में इन्फेक्शन होने के कारण खुजली चलना।
- योनि में खुजली के दौरान योनि के आसपास सूजन आना।
- पेशाब या सेक्स (शारीरिक संबंध) करते समय योनि में जलन होना।
- वजाइना में सेक्स के दौरान तेज दर्द होना।
- योनि में लालपन या लाल चकते आ जाना।
योनि से कभी-कभी सफ़ेद पानी का निकलना भी योनि में फंगस संक्रमण का एक प्रमुख लक्षण होता है। अगर आप सही समय पर वजाइना में फंगल संक्रमण का उपचार नहीं करवाती है तो योनि यीस्ट संक्रमण के लक्षण बहुत ज्यादा गंभीर हो सकते है।
(और पढ़े - योनि में जलन के कारण और घरेलू इलाज...)
- महिलाओ के मासिक धर्म चक्र में कई महिलाये 4 से 5 घंटे तक एक ही सेनेटरी पैड का उपयोग करती है इस सेनेटरी पैड को हर 4 घंटे में नहीं बदलती है कई महिलाये सेनेटरी पैड की जगह संक्रमित कपड़ो का उपयोग करती है जिससे योनि में यीस्ट इन्फेक्शन बहुत तेजी से फैलता है।
- महिलाओं का नहाते समय हल्के गर्म पानी का उपयोग करना। और पानी से अपनी योनि (वेजाइना) की अच्छे से सफाई न करना भी वैजिनल यीस्ट इन्फेक्शन का कारण बनता है।
- वेजाइना में रफ साबुन का प्रयोग करने से भी योनि में संक्रमण बढ़ जाता है योनि को साफ़ व स्वच्छ न रखना।
- ढीले कपड़े या काटन की पेंटी नहीं पहनने से पसीने के द्वारा बैक्टेरिया पनपने से योनि में नमी के कारण संक्रमण बढ़ जाता है।
- अधिक तनाव में रहने से और पर्याप्त नींद न लेने से भी हमारे शरीर में हॉर्मोन का संतुलन पूरी तरह से बिगड़ जाता है जिससे वैजिनल यीस्ट इन्फेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है।
(और पढ़े - योनि के साथ कभी नहीं करना चाहिए ये 7 चीजें...)
- योनि में यीस्ट (फंगस) संक्रमण कवक कैंडिडा नामक सूक्ष्मजीव के कारण फैलता है जो शरीर में हॉर्मोन के संतुलन को पूरी तरह से बिगाड़ देता है जो योनि में फंगस संक्रमण की अधिकता का कारण बनता है।
- कुछ एंटीबायोटिक्स होती है जो योनि (वेजाइना) में लेक्टोबेसिलस यानि अच्छे बैक्टेरिया की मात्रा को कम कर देता है जो सामान्यतः दही में पाया जाता है जिससे दही में खट्टापन आ जाता है।
- गर्भावस्था भी योनि यीस्ट संक्रमण का एक प्रमुख कारण है गर्भावस्था में महिलाओ को योनि की ज्यादा देखभाल करने की जरुरत होती है।
- जिन महिलाओ के शरीर में शुगर (मधुमेह) यानि डाइबिटिज बहुत ज्यादा है उनका हार्मोनल संतुलन, और प्रतिरोधकता प्रणाली को फंगस संक्रमण ज्यादा प्रभावित करते है जिससे जिससे वैजिनल यीस्ट इन्फेक्शन फैलने की सम्भावना बढ़ जाती है।
- कैंडिडा एल्बिकस नामक जीव होता है जो योनि (वेजाइना) में संक्रमण को बढाने में मदद करता है ।
- पर्याप्त नींद न होना और अत्यधिक पानी न पीना, ख़राब भोजन जैसे-कम पोषक तत्व वाला खाना खाने से भी योनि में संक्रमण बढ़ सकता है।
(और पढ़े - कैंडिडिआसिस (कैंडिडा) के कारण, लक्षण, उपचार, बचाव और घरेलू उपाय...)
- खमीर संक्रमण का निदान करना आसान है। आपका डॉक्टर आपके मेडिकल इतिहास के बारे में पूछेगा। इसमें शामिल है कि क्या आपको पहले खमीर संक्रमण हुआ था। वे यह भी पूछ सकते हैं कि क्या आपको कभी एस.टी.आई. रोग हुआ था।
- कही ऐसा तो नहीं की आपकी योनि में संक्रमण पहले भी हो चुका हो या आप पहले भी इसका इलाज करवा चुकी है यदि ऐसा है तो आपको अपनी योनि संक्रमण की जाँच की रिपोर्ट भी डॉक्टर को दिखानी होगी।
- अगला चरण एक श्रोणि परीक्षा है। आपका डॉक्टर आपकी योनि की दीवारों और गर्भाशय ग्रीवा की जांच करेगा। वे संक्रमण के बाहरी लक्षणों के लिए आसपास के क्षेत्र को भी देखेंगे।
आपका डॉक्टर क्या देखता है, इसके आधार पर, अगला कदम आपकी योनि से कुछ कोशिकाओं को इकट्ठा करना हो सकता है। ये कोशिकाएं जांच के लिए एक लैब में जाती हैं। लैब परीक्षण का आमतौर पर उन महिलाओं के लिए आदेश दिया जाता है जिनके पास नियमित रूप से योनि में खमीर संक्रमण होता है या उन संक्रमणों के लिए जो जल्दी दूर नहीं होते हैं। जिससे यह पता लगाया जा सके की आपकी योनि में संक्रमण बार-बार होने का कारण क्या है तथा योनि में यह संक्रमण क्यों हो रहा है।
(और पढ़े - गर्भाशय की जानकारी, रोग और उपचार...)
महिलाओ में प्रत्येक यीस्ट संक्रमण बहुत अलग होता है योनि में यीस्ट संक्रमण से बचने के लिए डॉक्टर अच्छे उपचार की सलाह देते है सामान्य तौर पर योनि में संक्रमण से इलाज आपकी योनि में फंगस इन्फेक्शन के लक्षणों के आधार पर किया जाता है।
साधारण संक्रमण में डॉक्टर आपको कुछ दवाएँ खाने के लिए देता है जो सामान्य तौर पर एंटीफंगल होती है इसमें आपको योनि में लगाने के लिए कुछ मलहम क्रीम और टेबलेट दी जाती है एक दो दिन के लिए आपके आहार चार्ट को भी बदला जाता है। ये दवाएँ खाने के बाद आपको डॉक्टर से मिलकर यह बताना होता है की आपको दी हुई दवाएँ असर कर रही है या नहीं ।
(और पढ़े - योनि से जुड़े रोग और उपचार...)
- जटिल संक्रमण में महिलाओ को अधिक समय तक योनि में संक्रमण रहता है जैसे- योनि में जलन, खुजली, लालिमा या चकतों का होना।
- यदि आपको योनि में बार-बार संक्रमण हो रहा है तो यह कैंडिडा एल्बिकैस के अलावा कैंडिडा जीव के कारण होता है। जो योनि में होने वाले संक्रमण को बढ़ाते है।
- यदि आपको अत्यधिक मधुमेह तो नहीं जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली के साथ-साथ हॉर्मोन में बदलाव के कारण भी संक्रमण ज्यादा होता है।
- कही आप एच.आई.वी (एड्स) पॉजिटिव तो नहीं है।
- इसमें आपको कुछ एंटीफंगल दवाएँ और मलहम क्रीम,और टेबलेट दी जाती है जो आपको 14 दिनों तक उपयोग करनी पड़ती है।
- सेक्स (शारीरिक संबंध) बनाते समय यह पता कर लें की आपके पार्टनर को यीस्ट (फंगस) संक्रमण तो नहीं है और कंडोम का उपयोग करे।
(और पढ़े - महिलाओं में एचआईवी एड्स के लक्षण...)
- नारियल का तेल जो योनि के संक्रमण में लाभदायक है इसे आप अपनी योनि में नारियल के तेल के साथ कपूर डालकर लगाये। जिससे आपको योनि में खुजली की समस्या नहीं होगी।
- योनि में संक्रमण से बचने के लिए आप लहसुन का प्रयोग भी कर सकती है। यह योनि संक्रमण से बचने के लिए एक अच्छा घरेलू उपाय है।
- आप दही भी पी सकती है, इसमें लेक्टोबेसिलस नामक जीवाणु होता है जो योनि में हो रहे संक्रमण को रोकता है और अच्छे बैक्टेरियां की संख्या को बढाता है इसे आप अपनी योनि में भी कुछ मात्रा में लगा सकतीं है।
- योनि यीस्ट संक्रमण के प्राकर्तिक उपचार में आप बोरिक एसिड का प्रयोग भी योनि में कर सकते है इसे आपको अपनी योनि में लगाना होता है। जिससे योनि में फंगस इन्फेक्शन नहीं होता है।
- साफ़ व स्वच्छ कपड़ो का ही उपयोग करे।
- पोषक तत्वों से भरपूर फल और सब्जियां खाए और खूब पानी पिए।
- योनि को साफ़ पानी से नियमित धोये, तथा धोने से लिक्विड चीजों का ही प्रयोग करे।
(और पढ़े - संतुलित आहार के लिए जरूरी तत्व , जिसे अपनाकर आप रोंगों से बच पाएंगे...)
- आप अधिक मात्रा में दही का प्रयोग करे। जिससे आपके शरीर में अच्छे बैक्टेरियां की मात्रा कम न हो।
- गीले कपड़ो को पहनने से बचे तथा कॉटन की पेंटी या सूती लेगिग्न्स का ही प्रयोग करे।
- आप सुगन्धित सेनेटरी पैड का उपयोग करने से बचे। इससे आपकी योनि में नमी बढ़ेगी जिससे बैक्टेरियां पनपने लगेंगे।
- नियमित गर्म पानी से अपनी पेंटी को धोये।
- योनि में क्रीम, लगाने से पहले आप अपने हाथो को अच्छे से साफ़ करे।
(और पढ़े - योनी में गीलापन होने के कारण और उपाय...)
- टाइट पैंट, पेंटीहोज, पेंटी या लेगिंग न पहने।
- सुगंधित टैम्पोन या पैड का उपयोग न करें।
- गर्म टब में न बैठे या लगातार गर्म स्नान न करें।
- अंदर तक योनि की सफाई या डोउच (douching) न करें।
(और पढ़े - टैम्पोन का उपयोग कैसे करें फायदे और नुकसान...)
इसी तरह की अन्य जानकारी हिन्दी में पढ़ने के लिए हमारे एंड्रॉएड ऐप को डाउनलोड करने के लिए आप यहां क्लिक करें। और आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं।
|
46060c2195ae2050e51f6fab056e6fe017c5b27bcb8a9787ca97075a690c461a | pdf | कर लेता था। इस वसूलयावी का दृश्य प्रत्यन्त हृदय विदारक होता था ! और यह लोम- हर्षण अत्याचार गरीब किसान सहते थे, क्योंकि वे एक जमीदार की ज़मींदारी से निकल कर दूसरे ज़मीदार की अध्यक्षता में जाकर वस भी नही सकते थे, क्योंकि अत्याचारी ज़ार का क़ानून उन्हें एक ही स्थान पर बस कर रहने के लिए मजबूर किये हुए था !
ऐसा क्यों था, इसका एक कारण और है । सैनिक सेवा के लिए ज़ार ने एक प्रकार से उक्त भूमि को सैनिकों के हाथ गिरवीं रख दिया था ! क्योंकि ज़ार इन सैनिक-ज़मींदारों को किसी प्रकार की तनख्वाह नहीं देता था। ३५०६६५१८७ ईकड भूमि पर इन सैनिक ज़मीदारों का क्रूर शासन था। जार, पहिले तो किसानों की करुण-कहानी सुनते ही न थे, और फिर सुन कर ही वे क्या कर सकते थे। सैनिकों के हाथ भूमि गिरवी थी, फिर यदि किसान को एक ज़मींदारो छोड़ कर दूसरी ज़मीदारी में बसने की इजाजत दे दी जाती तो रूस पर आर्थिक संकट श्री पड़ता। इसी कारण से ज़ार भी चुप्पी साधे रहते थे !
अन्त में, १८६१ में, सैनिक ज़मींदारियों की इतिश्री निकट श्राई । वेतनभोगी सेनाओं की रचना की गई। और इस प्रकार परम्परागत जमींदारों के आसन डगमगाये । किसानों की गुलामी का बन्धन ढीला हुआ। जिस भूमि को किसान पराई समझ कर जोतता-चोता था, वह उसे दे दी गई। और ऐसा सदा के लिए कर दिया गया = ईकड़ से ११ ईकड़ भूमि तक एक २ किसान को मिली। पर, इसके
साथ ही सरकार ने उक्त भूमि का मूल्य ज़मीदारों को भी श्रदा कर दिया और किसानों को उक्त भूमि का मूल्य सरकार के पास किस्तों में अदा करने के लिये ४६ वर्ष का समय दिया गया । इतनाही नहीं, सरकार ने किसानों को भी इस अदायगी के लिये ६ फोसदी सूद पर रुपये उधार दे दिये । अर्थात् रूसी सरकार ने इस मामले में वैंकर का काम किया । १६०७ तक, जो कुछ किसानों से देते बना, सो उन्हों ने देदिया, इसके
की अदायगी मंसूख कर दीगई। शायद रूसी सरकार ने अपने समस्त इतिहास में किसानों के लिये यही एक अच्छा काम किया ! परन्तु, पाठकों को स्मरण रखना चाहिये कि, किसान इस, प्राकर के भूमि के सौदे से सन्तुष्ट नहीं थे, उन्हे व्यर्थ ही ४६ वर्ष तक लगान के अतिरिक्त किश्तों में भूमि का मूल्य अदा करना पड़ा, वें सरकारी कतरव्यौत से असन्तुष्टथे ।
भूमि के वापस मिलने के बाद भी भूमि-विभाजन का एक विचित्र प्रवन्ध किया गया। जिस घर में जितने पुरुष जोतवो सकते थे, उनके हिसाब से १२ वर्ष के लिये उन्हें भूमि दी जाती थी । यह 'साम्यवाद' की एक शाख़ ( Communism ) 'भौमिक साम्यवाद' के ढंग का बँटवारा हुआ । इंगलैंड के श्रानरेबिल मारिस वेरिङ्ग ने अपनी Maan Springs of Russia नामक पुस्तक में लिखा है किः"...After the emancipation, cach batch of serís belonging to each separate owner became a separate and independent community, which owned in common. The land which was thus o vned in common could not be redistributed more than once every twelre years, and even then, only if two thirds
of village assembly rote । for redistribution A sinitar majonty was necessary before any of the common land could become private property."
अर्थात्, इस मुक्ति के पश्चात् एक ज़मींदार के आधिपत्य में रहने वाले किसानों में एक स्वतंत्र गोष्ठी के रूप में, भूमि का विभाजन कर दिया गया। इस प्रकार का विभाजन १२ वर्ष के पूर्व फिर नही किया जाता था, वशर्ते, गांव की तीन चौथाई जनता का पुनर्विभाजन का मत न हो। और इसी प्रकार उक्त बँटी हुई भूमि १२ वर्ष के पहिले किसी की व्यक्तिगत सम्पत्ति भी नहीं हो सकती थी ।
कृषि योग्य जितनी भूमि थी सब किसानों में वॉट दी गई थी। एक घर के कई आदमियों के बीच में उपजाऊ और अनउपजाऊ, और दोनों प्रकार की भूमि के टुकड़े वरावर वाँटे जाते थे। बीच में यदि कोई मर जाय, तो स्वामीविहीन भूमि पर घर के लोगों का ही कब्ज़ा रहता था । १२ वर्ष वाद फिर बँटवारा होता था ।
१८६१ से १६०४ तक ये नियम काम करते रहे। १८६० में, अलेक्ज़ एडर ( तृतीय ) के समय में, यह एक नियम और के जोड़ा गया कि, "चॅटवारे की भूमि के अतिरिक्त अन्य भूमि को किसान नहीं खरीद सकता ।" इतने समय के चोच में, कृषि की कुछ भी उन्नति नहीं हुई थी, किसानों ने इस नये नियम को अपनी भूमि-वृद्धि के लिए घातक समझा। उधर सरकार ने ज़मीन्दारो की संख्या विल्कुल घटते हुए देखकर ही यह प्रतिबन्ध स्थापित किया था ।
१९०५ में, रूस को एक सर्वव्यापी राजनैतिक अशान्ति
का सामना करना पड़ा। इस प्रशान्ति के कारण लगभग एक शताब्दि हुए, तब उत्पन्न हुए थे, जिन्हें हम आगे चलकर विस्तार पूर्वक कहेंगे। यहां पर, सक्षेप में हम केवल इतना ही कहेंगे कि, जनता राजनैतिक अधिकार चाहती थी, कई बार प्रातिनिधिक शासन की मांग की गई थी, पर सारे प्रयत्न निष्फल हुए । 'पुलिस के अत्याचारों और निरंकुशता से सभी लोग परेशान थे । नागरिक जोवन एक अत्यन्त संकुचित एवं पराधीन जीवन था । इस प्रशान्ति का एक बड़ा कारण किसानों का असन्तोष था। किसानों की माँग थी कि - "हमें और भूमि दो ।"
१९०४ की प्रशान्ति के समय भी, १९०११ कृषक-ग्रामों में इगे हुए ! १९०६१९ किसानों की गिरफ्तारी हुई । ४११ आदमियों को प्राण-दण्ड दिया गया और ६०१ श्राइसी साइबेरिया में तथा कैदखानों में डाल दिये गये ! पर, साथही, किसानों ने भी जहाँ अवसर देखा, ज़मीदारों के घर जला दिये, उनके खेत नष्ट कर दिये, गोरू-हरहे हॉक दिये और अन्य नाना प्रकार की हानि पहुंचाई । इस महा अशान्ति में किसान फिर विजयी हुए ! ज़मीदारों को अपनी २ भूमि में से फिर कुछ भूमि बॅचनी पड़ी। इस प्रकार भूमि का एक बहुत बड़ा टुकड़ा किसानों को मिल गया। इस प्रकार जमोदारों की २५ फीसदी भूमि विक गई ।
१९१० में एक परिवर्तन और हुआ। श्रव एक कानून ऐसा बना दिया गया, जिसके अनुसार किसान अपनी गोष्ठी ( Commune) भी छोड़ सकता था। अर्थात् सरकारी तौर पर १२वर्ष के लिए मिलने वाली भूमि को जोतने चोने से भी वह छुट्टी पा सकता था और केवल अपनी मोल ली हुई भूमि को ही
जोत- वो सकता था। साथ ही, इच्छानुसार गोष्ठी द्वारा प्राप्त भूमि को मोल लेकर अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति भी बना सकता था। साथ ही यदि वह चाहता, तो उसे ( Form ) बनाने के लिए सरकारी मदद भी मिल सकती थी।
नये क़ानून की शब्दावली बहुत भली मालूम पड़ती थी । पर, संसार जानता है कि स्वेच्छाचारी श्रधिकारी-तंत्र जिस समय एक अच्छे से अच्छे कानून के अनुसार भी काम करने बैठता है, तो प्रजा को हानि हो होती ! रूसी अधिकारी-तंत्र ने इस कानून के भीतर भी एक गहरी चाल खेलो। असल चात यह थी कि, रूसी सरकार किसानों के प्रश्न को राजनैतिक दृष्टि से देखती थी, और उसी दृष्टि से उसके काम भी होते थे । १२ वर्ष वाले भूमि के बँटवारे की व्यवस्था ने सरकार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था, और सरकार भी यही चाहती थी कि किसान इस वंटवारे के फेर में पड़े रहे। इसा लिए, उसने ऐसी घातें खेली जिससे किसान गोष्ठी से बाहर न निकल सकें। पर जब १९०४ में गोष्ठी-व्यवस्था ( Commitne ) में साम्यवाद की बू आने लगी, तब तो रूसी सरकार बहुत चकराई ! तब उसने व्यक्तिगत सम्पत्ति रख सकने का क़ानून बनाया । इस ढंग से अधिकारी तंत्र को यह आशा थी कि, गोष्ठी-व्यवस्था के पक्ष में अधिक किसान रहेंगे, और कुछ दिनों तक ऐसा हुआ भी । व्यक्तिगत सम्पत्ति के रूप में भूमि ख़रीदने वाले किसान बहुत कम निकले। इसका कारण यह था कि, बहुत बड़ी भूमि के जोतने बोने के लिए बड़ी पूंजी की भी दरकार थी। किसानों के पास बिना धीरे २ पूंजी बढ़ाये, एक साथ बड़ी पूंजी एकत्रित कर सकने का कोई मार्गन था। इसलिए किसान एकाएक समस्त भूमि पर
कृब्ज़ा न कर सके । यद्यपि, सरकारी बैंकों द्वारा किसानों को अच्छी सहायता मिली थी, पर इस सहायता का फल धीरे २ ही प्रकट होगा ।
रूसी किसान के सम्बन्ध में हम मुख्य २ वातें बतला चुके । राजनैतिक क्षेत्र में किसानों की क्या स्थिति थी इसे हम आगे चल कर बतलावेंगे, पर यह जान लेने योग्य बात है कि, रूस का किसान राजनैतिक व्यक्ति नहीं है । वह सिर्फ आर्थिक व्यक्ति है, उसका इतिहास केवल आर्थिक समस्याओं के सोपानों पर रचा गया है। और आज भी वह संसार के आर्थिक क्षेत्र में ही अपनी रखता है। उसकी सारी पहेलियां आर्थिक हैं, और रूस में उसने जो विजय प्राप्त की है, वह केवल आर्थिक है।
यहां पर हम एक बात और कहेंगे। रूसी किसान बहुत भोला-भाला और सरल प्रकृति का जीव है । उसको स्वभाव ही इतना मोठा है कि, उसकी ऐतहासिक दीनता का प्रत्यक्ष दर्शन हो जाता है। ईश्वर पर उसका अटल विश्वास है, और प्रत्येक काम में वह ईश्वर की इच्छा को ही प्रधान मानता है। ईश्वर के ऊपर अविश्वास करने वालों को वह वेवकूफ़ समझता है । वह राजभक्त इतना कहा जाता है कि, ज़ार के अत्याचारी शासन में रह कर भी, ज़ार के व्यक्तित्व को उसने ईश्वर की शक्ति से समानता दी है। पर, जब २ उसने आर्थिक प्रश्न पर दृष्टि डाली है, वह अधिकारी - तंत्र का घोर शत्रु प्रमाणित हुआ है। आगे चल कर पाठक देखेंगे कि, रूसी किसान संसार में कौन सा स्थान रखता है।
रूसी ज़मीन्दार ।
( DVOIANSTVO ) सी ज़मीन्दारों का इतिहास भी बड़ा ही गुगल है। असल में, रूसी ज़मीन्दारों की सृष्टि उस समय से हुई, जब, रूसी सरकार ने सैनिक सेवा तथा सिविल सर्विस के लिए लोगों को कुछ पद दिये और साथ ही कुछ भूमि भी दी । इस प्रकार पद, भूमि और कुछ स्थायी अधिकारों की प्राप्ति करने के बाद, रूसी ज़मीन्दार की सृष्टि हुई । इनके अतिरिक कुछ स्वतन्त्र भूमि रखने वाले ज़मींदार भी थे, पर रूसी किसानों और ज़मीदारों का जहाँ २ वर्णन आया है, सरकारी ओहदा पाने वाले ज़मीदारों से ही तात्पर्य रहा है। यूरोप में, 'रूसा ज़मीदार' एक बहुत पुराना फिर्का है। अभी तक उनके वंशज विद्यमान रहे हैं। रूसी क्रान्ति के पश्चात उनकी क्या दशा हुई, यह अभी प्रकट नहीं हुआ है।
ज़मीन्दारों से ऊंचे पदों पर भी कुछ लोग बहुत पुराने समय में थे। ये जागीरें (Pincipalities) पूर्व समय में 'कीव' ( Kiev ) नगर की राजधानी की अध्यक्षता में थीं, जब ज़ार की राजधानी मास्को में उठकर चली गई, तब उक जागीरों का सम्बन्ध मास्को से होगया । पर मास्को में राजधानी के पहुँचने के बाद ये जागीरें सरकारी प्रान्तों में सम्मिलित कर ली गईं। जागीरों के टूटने पर भी 'प्रिंस' (जागीरदार) का उपाधि परम्परागत बनी रही और अब तक बनी हुई है । जागीरों के टूट जाने से 'प्रिन्स' उपाधि धारी लोग पूर्ण
स्वतन्त्र होगये और उन्होंने सार्वजनिक श्रान्दोलनों में भी भाग लेना आरम्भ कर दिया।
इन प्रिन्सो के सिवा दो उपाधियाँ और चली थीं । 'ग्राफ' ( Grof= Count यानी काउन्ट ) तथा 'वैरन' ( Baron ) नामक उपाधियाँ भी कुछ खान्दानों को परम्परागत रूप से प्राप्त थीं । पर ये दोनों शब्द जर्मन भाषा से लिये गये हैं, क्योंकि, रूसी भाषा में इन के पर्य्यायवाची शब्द नहीं मिलते। ये उपाधियाँ ज़ार द्वारा दी गई थी, या फिर अन्य देशों से आये हुए प्रवासी-वंशों के साथ जुड़ी हुई थीं।
जागीरदारों के जो खान्दान अब तक मशहूर हैं, उनके नाम के पीछे डलगोरुकी, वरियाटिम्स्की, श्रोब्लेन्स्की, गोर्चकाव, खोवन्स्की, गलिट्ट्सन, ट्रोवस्कोय आदि पद लगे रहते रहते हैं । रूसी क्रान्ति में कई ऐसे नाम आये है । जागीरदारों के प्रत्येक वंशज के नाम में ये शब्द जुड़े रहते हैं । इसका कारण यह मालूम पड़ता है कि, रूसी गृहस्थी में समान - धिकार ( Democracy ) सदा से रहा है । इसी कारण से उपाधियां भी केवल घर के मुखिया के नाम में न जुड़कर सभी स्त्री-पुरुष वंशजों के नाम के पीछे जुड़ती रही है।
रूसी क़ानून की दृष्टि से स्त्री को अपनी पैत्रिक सम्पत्ति में से चौदहर्वा हिस्सा मिलता है, पर पति के जीवित रहते हुए भी स्त्री अपनी निज की सम्पत्ति पर व्यक्तिगत रूप से पूरा अधिकार रखती है ।
* फ्रांस में स्त्रियों को यह अधिकार नहीं है । |